सर्वकालिक महान मुक्केबाजों में शुमार किए जाने वाले मोहम्मद अली के मुसलमान बनने के बारे में नए दावे किए गये हैं. 17 जनवरी 1942 को जन्मे मोहम्मद अली 1964 में मुस्लिम बने थे. मोहम्मद अली की इस जीवनी में दावा किया गया है उनका ईसाई धर्म सो मोहभंग एक कार्टून के कारण हुआ था.

ये बात खुद अली ने लिखी है. अली ने अपनी पत्नी बेलिंडा के कहने पर मुसलमान बनने की वजह को लिखा था. अली की पत्नी बेलिंडा जीवनी लेखक को बताया, “वो सारी शालीनता भूल चुका था. वो भगवान की तरह बरताव करता था.

मैंने उससे कहा कि तुम खुद को सबसे महान कह सकते हो लेकिन तुम कभी अल्लाह से महान नहीं हो सकते.” मोहम्मद अली की जीवनी “अली” के लेखक जोनाथन ईग ने वाशिंगटन पोस्ट में लिखी रिपोर्ट में बताया है कि इस बहस के बाद ही मेलिंडा ने अली से इस बदलाव की वजह को लिखने के लिए कहा था. मेलिंडा जो अब खलिहा कामाचो-अली नाम से जानी जाती हैं, ने अली का लिखा वो लेख जीवनीकार को उपलब्ध कराया है.

अली का मूल नाम कैसियस क्ले जूनियर था. मेलिंडा के दिए लेख में अली ने बताया है कि वो किशोर थे तब वो लड़कियों का पीछा किया करते हुए इधर-उधर घूमते थे और ऐसे ही एक दिन उन्होंने सड़क पर एक आदमी को “नेशन औफ इस्लाम” अखबार बेचते हुए देखा था.

अली ने नेशन औफ इस्लाम संगठन के नेता एलिजा मोहम्मद के भाषण भी सुने थे लेकिन उन्होंने कभी उसमें शामिल होने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा था. अली के अनुसार इस अखबार में छपे एक कार्टून ने उनका ध्यान सबसे ज्यादा खींचा था.

कार्टून में एक गोरा एक काले व्यक्ति को पीट रहा था और उससे ईसा मसीह की प्रार्थना करने को कह रहा था. अली ने लिखा है, “मुझे कार्टून पसंद आया. इसने मुझ पर असर किया. वो मुझे सही लगा”

जोनाथन के अनुसार अली ने अपने लेख में माना है कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा सुंदर लड़कियों की तलाश और एक अखबारी कार्टून से शुरू हुई थी. कार्टून देखकर अली को महसूस हुआ कि वो स्वेच्छा से ईसाई नहीं हैं और न ही उनका नाम उनका चुना हुआ है.

अली को लगा कि उनका ईसाई होना गोरों की गुलामी का प्रतीक है. इसलिए वो ईसाई धर्म को छोड़ना चाहते थे. एलीजा मोहम्मद की मौत के बाद ही अली ने आधिकारिक तौर पर इस्लाम स्वीकार किया. मुक्केबाजी से संन्यास लेने के बाद भी अली कुरान और बाइबिल के तुलानत्मक चर्चा पसंद किया करते थे. तीन जून 2016 को उनका देहांत हो गया.

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