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इन खातों का इस्तेमाल कर इमरजेंसी के लिए बचा सकते हैं पैसा

हर व्यक्ति को अपनी वित्तीय सुरक्षा के लिए 3-6 महीने के खर्च के पैसे जमा कर रखना बेहद ही जरूरी है, क्योंकि विपत्ती कभी बोल कर नहीं आती. सोचिये जरा, अगर अचानक किसी वजह से आपकी नौकरी चली जाती है और आमदनी रुक जाती है तो क्या होगा? जब तक आपको दूसरी नौकरी नहीं मिल जाती तब तक आपके आगे का खर्चा कैसे चलेगा? तो इसलिए जरूरी है कि कुछ फंड को अपने भविष्य के लिए बचा कर रखा जाए, जिससे इस फंड का उचित उपयोग कर आने वाली मुश्किल दौर से कुछ आसानी से निकला जा सके.

बिजनस में नुकसान होने या बीमारी की वजह से लंबी छुट्टी की वजह से भी टेंपरेरी इनकम लौस हो सकती है. इस फंड से मेडिकल खर्च जो इंश्योरेंस में कवर नहीं होते, उन्हें भी पूरा किया जा सकता है. अब इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यही है कि इमरजेंसी फंड का पैसा कहां लगाना चाहिए.

बचत खाते के ब्याज पर टैक्स संबंधी फायदे

इनका इस्तेमाल भी इमरजेंसी फंड बनाने के लिए किया जा सकता है. बचत खाते से 10,000 रुपये का ब्याज टैक्स फ्री है. इसलिए अगर आप इसमें 2.85 लाख रुपये रखते हैं और उस पर 3.5 पर्सेंट का ब्याज मिलता है तो ऐसे वक्त पर आपको टैक्स की चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती.

फिक्स्ड डिपाजिट

अधिकतर बैंक फिक्स्ड डिपाजिट तोड़ने पर भारी पेनाल्टी नहीं लगाते, इसलिए इमरजेंसी फंड का कुछ पैसा इसमें भी रखा जा सकता है. हालांकि, बैंक एफडी पर तुलनात्मक तौर पर अभी कम ब्याज मिल रहा है. फिक्स्ड डिपाजिट शुरू करने का एक तरीका आपके सेविंग्स एकाउंट से लिंक्ड स्वीप-इन फैसिलिटी है. हालांकि, यह याद रखिए कि फिक्स्ड डिपाजिट से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स चुकाना पड़ता है. यह लिक्विड फंड के शार्ट टर्म कैपिटल गेन की तरह होता है.

लिक्विड फंड्स

इमरजेंसी फंड बनाने के लिए लिक्विड फंड अच्छे होते हैं. जहां आम बचत खाते पर 4 पर्सेंट का रिटर्न मिलता है, वहीं इनसे पहले 8 पर्सेंट का रिटर्न मिल रहा था. हालांकि, अब हालात बदल गए हैं. कैटेगरी लेवल पर लिक्विड फंड्स का एक साल का रिटर्न 6.5 पर्सेंट रहा है. इसमें और कमी आने का अंदेशा है. फिलहाल इससे 6 पर्सेंट का रिटर्न मिलने की उम्मीद की जानी चाहिए.

लिक्विड फंड पर टैक्स आपको होल्डिंग पीरियड से तय होता है. अगर होल्डिंग पीरियड तीन साल से अधिक का है तो लिक्विड फंड में निवेश टैक्स के लिहाज से फायदेमंद होगा. तब आपको टैक्स कटने के बाद करीब 5.59 पर्सेंट का रिटर्न मिलेगा, जो बचत खाते पर मिल रहे ब्याज से अधिक है. हालांकि, अगर आपको तीन साल से पहले लिक्विड फंड से पैसा निकालना पड़ता है तो सबसे ऊंचे स्लैब में आने वालों का टैक्स के बाद का रिटर्न घटकर 4.15 पर्सेंट रह जाएगा.

बैंकबाजार के सीईओ आदिल शेट्टी ने बताया, ‘अगर आप लिक्विड फंड की यूनिट्स को भुनाते हैं तो अगली सुबह 10 बजे आपको पैसा मिल जाता है.’ कई लिक्विड फंड्स मोबाइल ऐप बेस्ड इंस्टैंट लिक्विडिटी फैसिलिटी भी आफर कर रहे हैं, जहां रिडेम्पशन के तुरंत बाद पैसा आपके बैंक अकाउंट में आ जाता है. जोशी ने बताया कि इसमें आप प्रति फोलियो 50,000 रुपये ही एक दिन में रिडीम कर सकते हैं. इस मामले में बेहतर लिक्विडिटी के लिए आपके पास एक से अधिक फोलियो होने चाहिए.

फ्लाइट में फैंस से बचने के लिए धोनी ने किया कुछ ऐसा, देखें वीडियो

पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी करोड़ो दिलों की धड़कन हैं. वह जहां भी जाते हैं, फैंस उनके पीछे पीछे पहुंच ही जाते हैं. धोनी के लिए सफर करना आम आदमी जितना आसान नहीं होता क्योंकि हमेशा ही उनके आगे पीछे फैंस का तांता लग जाता है. लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार धोनी यानी की लोगों के चहेते माही ने एक तरकीब निकाल ली है.

ऐसा हम नहीं ऐसा सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा एक वीडियो कह रहा है. जी हां, एमएस धोनी की पत्नी साक्षी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर कुछ वीडियोज अपलोड किए हैं, जिसमें वो और उनकी पत्नी फ्लाइट में हैं. इसी एक वीडियो में धोनी फ्लाइट में बैठे हुए हैं, लेकिन उन्होंने फैंस से बचने के लिए अपना चेहरा ढका हुआ है. इस दौरान वहां कुछ लोग आ रहे हैं और धोनी को नोटिस भी कर रहे हैं. वो समझ भी रहे हैं कि ये माही हैं पर माही हैं कि अपने चेहरें से पर्दा उठाने का नाम ही नहीं ले रहें.

इसके अलावा साक्षी ने एक और वीडियो भी डाला जिसमें धोनी चुपचाप खड़े हैं, और साक्षी उनके साथ मजाक कर रही हैं.

आपको बता दें कि टीम इंडिया को 16 नवंबर से श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट मैच खेलना है. धोनी टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल गया है.

गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से महेंद्र सिंह धोनी आलोचकों के निशाने पर हैं. टी-20 सीरीज में अच्छा प्रदर्शन ना करने के कारण वीवीएस लक्ष्मण, आकाश चोपड़ा, अजित अगरकर समेत कई अन्य पूर्व खिलाड़ियों ने धोनी की टी-20 टीम में जगह को लेकर सवाल खड़े किए थे. हालांकि, कई पूर्व दिग्गज और कप्तान कोहली समेत सभी धोनी के बचाव में उतर आए थे.

रेणुका शहाणे संग इस बार फिर टीवी पर पकने को तैयार है ‘खिचड़ी’

फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ में सलमान खान की बड़ी भाभी का किरदार निभाने वाली और टीवी सीरियल ‘सुरभि’ से लोगों के दिलों पर राज करने वाली एक्ट्रेस रेणुका शहाणे अब एक बार फिर टीवी पर वापसी कर रही हैं.

रेणुका एक बार फिर अपने जबरदस्त एक्टिंग से हर दिल पर छा जाने की तैयारी में लगी हुई हैं. दरअसल मशहूर कामेडी सीरियल ‘खिचड़ी’ का तीसरा सीजन जल्द ही टीवी पर आने वाला है और खबर है कि इस बार खिचड़ी में एक्ट्रेस रेणुका शहाणे नजर आएंगी.

आपको बता दें कि इस सीरियल पहला सीजन साल 2002 में आया था. इसके बाद साल 2005 में दूसरा सीजन इंस्टेंट खिचड़ी के नाम से शुरू हुआ था. अब जेडी मजीठिया, ‘साराभाई वर्सेस साराभाई’ के बाद पौपुलर सटायर कामेडी सीरियल ‘खिचड़ी’ का तीसरा सीजन लाने वाले हैं.

पहले की तरह इस बार भी इस सीजन में सभी पुराने कलाकार काम करते और आपको हंसाते नजर आएंगे. अनंग देसाई, राजीव मेहता, सुप्रिया पाठक और वंदना पाठक के साथ ही रेणुका शहाणे भी शो में दिखेंगी. हालांकि सूत्रों की मानें तो रेणुका शहाणे का रोल छोटा होगा लेकिन काफी इंस्टरेटिंग होगा.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रोड्यूसर आतीश कपाडि़या और जेडी मजीठिया के बच्चे इस शो से डेब्यू करेंगे. अगस्तया कपाड़िया और मिश्री मजीठिया जैकी और चक्की नाम के किरदार निभाएंगी. बलविंदर सिंह सूरी और समीक्षा को भी इस कामेडी शो के लिए अप्रोच किया गया है.

बाल दिवस विशेष : बतौर बाल कलाकार इन सितारों ने बौलीवुड में की शुरुआत

बौलीवुड में ऐसे कई सितारे हैं जिन्होंने बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत की. इनमें से कुछ हिट हुए तो कुछ फ्लौप. कुछ ने सफलता का मिला-जुला स्वाद चखा. इन कलाकारों ने करियर की शुरुआत बौलीवुड से की और बड़े होकर भी एक्टिंग की फिल्ड में ही नाम कमाया. आइए जानते हैं किन सितारों ने बचपन में ही एक्टिंग में आजमाया हाथ.

आफताब सिवदेसानी

अपने डिंपल और गुड लुक्स के लिए जाने वाले आफताब ने बौलीवुड में बाल कलाकार के रूप में करियर की शुरुआत की थी. आफताब जब 14 महीने के थे तभी उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक टीवी कमर्शियल बेबी फूड से की थी. बतौर चाइल्ड एक्टर आफताब ने 1987 में आई फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ से बौलीवुड में कदम रखा था. 1999 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘मस्त’ में पहली बार लीड रोल निभाया. इतना ही नहीं 2009 में आफताब ने मुंबई में खुद का प्रोडक्शन हाउस ‘राइजिंग सन एंटरटेनमेंट’ भी शुरू किया.

आएशा टाकिया

ग्लैमरस एक्ट्रेस आएशा टाकिया ने कौम्पलैन के विज्ञापन से अपने अभिनय की दुनिया में कदम रखा. शायद ही कोई होगा जो इस कौम्प्लैन गर्ल को नहीं जानता होगा. बतौर लीड एक्ट्रेस आएशा ने फाल्गुनी पाठक के म्यूजिक वीडियो ‘मेरी चुनर उड़ उड़ जाए’ में काम किया था. वो साल 2004 में ‘टार्जन द वंडर कार’ में लीड रोल में नजर आईं. अब तक वह सलमान, शाहिद कपूर, अजय देवगन जैसे सुपरस्टार्स के साथ काम कर चुकी हैं.

शाहिद कपूर

आएशा टाकिया की तरह शाहिद ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत कौमप्लैन ब्वाय की तरह किया. म्यूजिक वीडियो ‘आंखों में’ आप चाह कर भी शाहिद को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. फिल्म ‘इश्क-विश्क’ से उनहोंने बौलीवुड में डेब्यू किया.

उर्मिला मातोंडकर

उर्मिला ने 6 साल की उम्र में फिल्म ‘कलयुग’ से अपने एक्टिंग करियर की शुरूआत की थी. लेकिन इस रंगीला गर्ल को फिल्म ‘मासूम’ से बाल कलाकार के रुप में पहचान मिली. मासूम उन्होंने 9 साल की उम्र में की थी. 1991 में आई फिल्म ‘नरसिम्हा’ से उर्मिला ने युवा कलाकार की तरह अपने करियर की शुरुआत की. 1995 में रिलीज हुई फिल्म ‘रंगीला’ से उन्हें बौलीवुड में पहचान मिली.

इमरान खान

‘जाने तू या जाने ना’ फेम एक्टर इमरान खान ने फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ से बतौर बाल कलाकार अपने बौलीवुड करियर की शुरुआत की थी. फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ और ‘कयामत से कयामत तक’ में आमिर खान के बचपन का किरदार निभाया था. युवा कलाकार के रूप में इमरान ने साल 2008 में फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ से बौलीवुड में डेब्यू किया था.

हंसिका मोटवानी

टीवी सीरियल ‘शका लका बूम बूम’ और ‘देश में निकला होगा चांद’ में बाल कलाकार का किरदार निभाने के बाद हंसिका ने बौलीवुड में कदम रखा. 2003 में आई फिल्म ‘हवा’ से उन्होंने अपने बौलीवुड करियर की शुरुआत की. फिल्म ‘कोई मिल गया’ में उन्हें खुब पसंद किया गया. हिमेश रेशमिया की फिल्म ‘आपका सुरूर’ में लीड रोल निभाया और बतौर बौलीवुड एक्ट्रेस अपनी पहचान बनाई.

आमिर खान

बौलीवुड की एवरग्रीन फिल्मों में से एक है ‘यादों की बारात’. और इसी फिल्म से बौलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट ने महज 7 साल की उम्र में एक्टिंग की शुरुआत की. फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ में उन्होंने पहली बार लीड रोल निभाया था.

सना सईद

‘कुछ कुछ होता है’ कि अंजली तो आपको याद ही होगी. आज की हौट एक्ट्रेस सना सईद ने ‘कुछ कुछ होता है’ में रानी मुखर्जी और शाहरुख कान की बेटी अंजली का किरदार निभया था. सना चाइल्ड एक्टर के रूप में फिल्म ‘हर दिल जो प्यार करेगा’ में भी नजर आईं. युवा कलाकार के तैर पर सना ने ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ से अपने करियर की शुरुआत की.

श्रीदेवी

बौलीवुड की पहली फीमेल सुपरस्टार श्रीदेवी ने भी अपने करियर की शुरुआत चाइल्ड एक्ट्रेस के रूप में ही किया था. सिर्फ 4 साल की उम्र में ही श्रीदेवी ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत कर दी थी. सिर्फ हिंदी नहीं श्रीदेवी ने तमिल, कन्नड़, तेलगु, मलयालम फिल्मों में भी अपने एक्टिंग का परचम लहराया. उन्होंने 1975 में आई फिल्म ‘जूली’ से बौलीवुड में बतौर चाइल्ड एक्ट्रेस एंट्री ली. ‘सोलवा सावन’ में उन्होंने पहली बार एडल्ट रोल निभाया. फिल्म ‘हिम्मतवाला’ ने उन्हें रातोरात स्टार बना दिया.

कुनाल खेमु

कुनाल को लोग आज भी फिल्म ‘राजा हिंदुस्तानी’ और ‘हम हैं राही प्यार के’ के बाल कलाकार के रुप में याद करते हैं. 1980 के दशक के वे फेमस बाल कलाकार थें. कुनाल ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत दुरदर्शन के सीरियल ‘गुल गुलशन गुलफाम’ से की थी. बतौर युवा कलाकार उन्होंने महेश भट्ट की फिल्म ‘सर’ से बौलीवुड में डेब्यू किया.

नीतू सिंह

नीतू ने महज 8 साल की उम्र में फिल्मों में अपना कदम जमा लिया था. उन्होंने पहली बार फिल्म ‘दो कलियां’ में चाइल्ड एक्ट्रेस के रूप में काम किया. 1972 में आई फिल्म ‘रिक्शेवाला’ में उनहोंने लीड रोल निभाया था. फिल्म ‘यादों की बारात’ से उन्होंने बौलीवुड में नाम कमाया.

ऋषि कपूर

राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ से ऋषि ने अभिनय की दुनिया में कदम रखा था. इस फिल्म में उन्होंने राज कपूर के बचुन का किरदार निभाया था. लीड रोल में ऋषि ने सबसे पहले फिल्म ‘बौबी’ में अभिनय किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

रितिक रोशन

रितिक ने फिल्म ‘आशा’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की. इस फिल्म में उन्होंने एक डांस सीक्वेंस किया था. युवा कलाकार की तरह उन्होंने फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ से अभिनय की दुनिया में कदम रखा.

निवेश करने से पहले जरूर पढ़ लें ये खबर

सही समय पर अगर सही निवेश किया जाए तो आपका भविष्य सुनहरा हो सकता है. यहां निवेश से जुड़े कुछ ऐसे टिप्स हैं जो भविष्य के लिए बनाई जा रही निवेश रणनीति को बेहतर बनाने में मददगार होंगे.

क्या है निवेश

निवेश या विनियोग (investment) का सामान्य आशय ऐसे खर्चों से है जो आपकी आर्थिक स्थिती को सुधारे. निवेश शब्द का कई मिलते जुलते अर्थों में अर्थशास्त्र, वित्त तथा व्यापार-प्रबन्धन आदि क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है. यह पद बचत करने और उपभोग में कटौती या देरी के संदर्भ में प्रयुक्त होता है. एक व्यक्ति कई तरह से निवेश कर सकता है जैसे- किसी बैंक में पूंजी जमा करके, ऐसेट्स खरीदकर, किसी कंपनी में निवेश कर के भविष्य में लाभ कमाया जा सकता है.

निवेश करें, पर जरा ध्यान से

बचत से करें शुरुआत

निवेश करने से पहले आप बचत करने की आदत डालें. कम से कम बचत भी मुश्किल घड़ी में बहुत काम आती है. छोटी बचत से भी बड़ा फायदा होगा, ये सोचकर बचत करें. अगर आप इक्विटी फंड में हर महीने 8 वर्षों तक 500-1000 रुपए भी निवेश करते हैं तो आप लगभग 1 लाख रुपए की टैक्स फ्री रकम जमा कर सकते हैं.

सही जानकारी से बचायें टैक्स

आजकल 22-23 साल की उम्र से ही लोग कमाने लगते हैं. और इस उम्र में कोई भी सेविंग और निवेश को लेकर सीरियस नहीं होते. रेंट रिसिप्ट के जरिए मामूली टैक्स सेविंग के अलावा कोई बड़ी बचत या निवेश रणनीति युवाओं के दिमाग में नहीं आती. लेकिन उम्र के इस पड़ाव में अगर हम ELSS (Equity Linked Savings Scheme) जैसे निवेश विकल्पों में निवेश कर जहां एक ओर हम टैक्स की बचत कर सकते हैं वहीं दूसरी ओर लंबी अवधि में अच्छे रिटर्न भी संभव हैं.

इक्विटी में करें निवेश

इक्विटी में निवेश से आपको बेहतर रिटर्न मिल सकता है. पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो सेंसेक्स से करीब 15 फीसदी रिटर्न मिल सकता है. अगर आप लंबे समय तक इंडेक्स फंड में ही SIP के माध्यम से निवेश करते हैं लंबे समय में आपको बड़ा रिटर्न मिलने की संभावनायें हैं.

बेस्ट में करें इनवेस्ट

घर के बड़े-बुजुर्ग टैक्स सेव करने की सलाह तो देते हैं, पर कैसे करना है ये कोई नहीं बता पाता. असल में इस मामले में सबको ज्यादा जानकारी नहीं होती. पर आजकल इंटरनेट पर हर जानकारी उपलब्ध है. आप औनलाइन जानकारी हासिल करें, और जहां निवेश करने से सबसे ज्यादा रिटर्न मिले, वहां निवेश करें.

तो क्या मास्क से अनलौक हो जाएगा आईफोन X..!

ऐपल के नए iPhone X की बिक्री शुरू हो गई है. फोन की डिमांड भी काफी है. वहीं फोन के जिस खास फीचर Face ID को लेकर लोगों में दीवानगी देखने को मिल रही है, उसी फीचर में रिसर्चर ने सेंध लगा दी है.

एक कौम्पोजिट 3D मास्क का इस्तेमाल कर वियतनाम के रिसर्चरों के एक दल ने दावा किया है कि उन्होंने ऐपल के ‘सुपर प्रीमियम’ iPhone X की फेस आईडी रिकग्निशन तकनीक को बेवकूफ बनाने में सफलता हासिल की है और उन्होंने कहा कि यह स्मार्टफोन की सुरक्षा की गारंटी देने के लिए फेस आईडी तकनीक अभी पूरी तरह मच्योर नहीं है.

हाल ही में आईफोन लान्च प्रोग्राम में ऐपल के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट फिल सिलर ने दावा किया था कि फेस आईडी असली चेहरे और मुखौटे के बीच अंतर करने में अपनी आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के बूते पर सक्षम है. वियतनाम की सुरक्षा कंपनी बीकौव ने 3D प्रिंटर की मदद से एक मास्क बनाया है, जिसकी लागत 150 डालर है.

बीकौव ने एक ब्लौग पोस्ट में कहा, ‘नाक को कलाकारों ने हाथ से बनाया है. हमने अन्य हिस्सों के लिए 2डी प्रिटिंग का प्रयोग किया (इसी तहत से हमने नौ साल पहले चेहरा पहचानने वाली प्रणाली को चकमा दिया था). वहीं, मुखौटे की त्वचा को भी हाथों से बनाया गया, ताकि ऐपल के एआई को चकमा दिया जा सके.’

बीकौव के उपाध्यक्ष (साइबर सुरक्षा) एनगो तुआन आन ने कहा, ‘इस मुखौटे को 3D प्रिटिंग, मेकअप और 2D प्रिटिंग की मदद से बनाया गया है. इसके अलावा गालों और चेहरे के आसपास विशेष कलाकारी की गई है, जहां त्वचा का अधिक हिस्सा होता है, ताकि फेसआईडी के एआई को मूर्ख बनाया जा सके.’

बल्लेबाज को इस तरह आउट होते नहीं देखा होगा आपने

क्रिकेट के मैदान पर आए दिन कई अजीबोगरीब कारनामे होते रहते हैं लेकिन यहां हम आपको जिस घटना के बारे में बताने जा रहे हैं वो शायद ही पहले कभी हुई हो. भारतीय बल्लेबाज युवराज सिंह ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें अंपायर के उंगली उठाने पर एक बल्लेबाज जो कि साफ तौर पर नौट आउट था, वह पवेलियन लौट जाता है.

ताज्जुब की बात तो ये है कि वीडियो में ना गेंद बल्लेबाज के बल्ले पर लगी, ना ही गेंदबाज और ना ही विकेटकीपर ने किसी भी तरह की अपील की फिर भी अंपायर ने बल्लेबाज को आउट दे दिया. गेंद और बल्ले में जब मुलाकात हुई ही नहीं तो आउट कैसे? सोशल मीडिया पर यह सवाल उठने लगे… विपक्षी टीम ने आउट की अपील भी नहीं की और अंपायर ने आउट कैसे दे दिया..?

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दरअसल, यह 2007 में खेले गए एक प्रदर्शनी मैच का वीडियो है. उस मैच की शर्त यह थी कि अगर किसी ओवर की ऐसी दो गेंदें जो खेली जा सकती थीं, लेकिन बल्लेबाज बिना कोई शौट खेले उन गेंदों को छोड़ देता है, तो अंपायर उस बल्लेबाज को आउट दे सकता है. और इसी वजह से वीडियो में दिख रहे बल्लेबाज को आउट दिया गया.

आपको बता दें कि युवराज सिंह काफी समय से टीम इंडिया से बाहर चल रहे हैं. उन्होंने अपना आखिरी वनडे मैच 30 जून 2017 को वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था. इस मैच में उन्होंने 55 गेंदों में 39 रन बनाए, जिसमें 4 चौके शामिल थे. वो फिलहाल क्रिकेट पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और भारतीय टीम में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

धर्म और समाज में बंटता त्योहार, क्या है इसकी असल वजह

यदि हम बात करें मनाए जाने वाले त्योहारों की तो सारे त्योहार आपस में प्यार व खुशी का संदेश ही देते हैं. रक्षाबंधन भाईबहन का प्यार, दीवाली बुराई पर अच्छाई की जीत, होली खुशी व उल्लास के लिए मानते हैं. इस के अलावा कुछ अन्य त्योहार जैसे पोंगल, बैसाखी आदि खेती से संबंधित त्योहार हैं, जो यह दर्शाते हैं कि जब काम का वक्त था जम कर काम किया और जब फसल पकी तो खुशियां मनाओ जोकि एक तरह से व्यवस्थित रहने का तरीका भी है. लेकिन इन खूबसूरत त्योहारों को धर्म, समाज व भाषा में बंटते देख मन बड़ा ही व्यथित हो जाता है.

यह मेरा धर्म यह तुम्हारा धर्म

कुछ वर्षों पहले की बात है. मैं हैदराबाद में तबादले के कारण गई थी. वहां एक अपार्टमैंट में नवरात्र स्थापना यानी कि गुड़ी पड़वा मनाया जाना था. उस के पहले ही अपार्टमैंट के 2 गुटों में विवाद हो गया. एक गुट जो वर्षों से अपार्टमैंट में इस त्योहार को अपने तौर पर मना रहा था और सारे लोग उस में शामिल भी हो रहे थे, वहीं दूसरा गुट आ गया और काफी झगड़े के बाद यह तय हुआ कि इसे बतुकम्मा के नाम से और उसी के रीतिरिवाजों के हिसाब से मनाया जाए. खैर काफी बहस के बाद उसे बतुकम्मा के नाम से मनाया गया. आकर्षक फूलों की सजावट हुई, पंडितों को बुलाया गया, पूजापाठ हुए और केबल टीवी पर उस का लाइव प्रसारण भी हुआ. यह सब हुआ अपनेआप को मानने वाले गुट के जमा किए पैसों और मैनेजमैंट से.

इस तरह के त्योहारों को लोग अलगअलग नाम से मानते हैं, लेकिन इस को मनाने के पीछे चाहे सब का उद्देश्य एक ही है, लेकिन अपने पंडितों के बताए रीतिरिवाजों और अपने जाति, भाषा या क्षेत्र का अहं जब तक शांत न हो कुछ लोगों को त्योहार का मजा ही नहीं आता.

अब कोई उन लोगों से यह पूछे कि ये रीतिरिवाज और धर्म आया कहां से? तो शायद किसी को पता नहीं होगा. सही माने में तो असली रीतियां भी किसी को पता नहीं लेकिन जो पंडित ने बताया वह सब किया और उस के एवज में पंडित को भारी दक्षिणा मिली.

गणपति के लिए चंदा इकट्ठा किया गया तो कुछ पंजाबी लोगों ने यह कह चंदा देने से इनकार कर दिया कि हमारी लोहड़ी तो नहीं मनाते यहां. दोनों में एक खटास धर्म के नाम पर पड़ गई जबकि कहने को धर्म एक ही था.

ऐसे में यह सवाल अहम है कि हम धर्म, राज्य, जाति, भाषा के नाम पर त्योहारों को क्यों अलग करते हैं? त्योहार मनाने के पीछे सिर्फ खुशी के भाव नहीं, बल्कि सभी से मिलेंजुलें, अच्छे परिधान पहनें, लजीज पकवान बनाएं और चेहरे पर मुसकान बिखेरें. लेकिन उस में भी हमारे धर्म, समाज, भाषा पहरेदार बन कर खड़े हो जाते हैं.

त्योहारों में अगर इन झगड़ों से किसी का भला होने वाला है तो सिर्फ पंडेपुजारियों का और धर्म व समाज के ठेकेदारों का.

धर्म की बेलें जहां फलों से लदने लगती हैं वहीं हमारे धर्मगुरु मठाधीश अपने धर्म की तूती बजाने निकल पड़ते हैं और उन के चेले अलगअलग युक्तियों से उन का प्रचार करते हैं.

ऐसे ही धर्म व समाज के ठेकेदार अपने मठों में खुशीखुशी दूसरे धर्मों के नेताओं की चिलम भरते हैं. बस उन्हें उन धर्मगुरुओं से कुछ फायदा चाहिए. जहां अपने चेलों को दूसरे धर्म के खिलाफ भड़काते हैं, वहीं स्वयं जरा से फायदे के लिए दूसरे धर्म के ठेकेदारों को अपने आयोजनों में स्टेज पर मालाएं पहनाते हैं. रही बात समाज की तो समाज तो स्वयं संस्कृति का मुखौटा ओढ़े इस पल इधर तो उस पल उधर रहता है जैसे ही कोई पैसे वाला या कोई अन्य ताकत अपने हाथ में ले कर समाज में दाखिल होता है उसी के हिसाब से समाज के नियम, कानून बदल जाते हैं.

धार्मिक आयोजन में यदि कोई सरकारी ताकत हाथ में हो तो कहने ही क्या. पूरी सोसायटी उस के त्योहार को अपना मानने लगती है, चाहे पीठ पीछे बुराई करेंगे पर सामने सब मुसकान बिखेरते उस में शामिल होने के लिए तत्पर रहेंगे.

स्वयं के फायदे के लिए नहीं है त्योहार

अभी पिछले वर्ष की ही बात है. कुछ विदेशी वस्तुओं के प्रेमी लोग भी होते हैं. बस ऐसी ही महिला को एक विदेशी महिला से दोस्ती बढ़ाते देखा. थोड़े दिन बाद ही उसे क्रिसमस ट्री डैकोरेशन के लिए बच्चों समेत विदेशी महिला के घर जाते देखा. जबकि वह महिला स्वयं आए दिन पूजापाठ कराने के लिए पंडितों को घर में बुलाती रहती. आज सत्यनारायण कथा तो कल वट सावित्री व्रत. और सिर्फ जो रीत वह निभाए वही सही होती, अन्य सभी महिलाएं उसे जबरन मानें वरना जो न मानें उस का पत्ता कट.

बड़े व्यवसाई की पत्नी हैं तो दूसरी महिलाएं भी उस के घर हर तीजत्योहार मनाने सजधज कर चल देतीं. उन्हीं पिछलग्गू महिलाओं में से एक के मुंह से पीठ पीछे से बोलते सुना, ‘‘विदेशी वस्तुओं के चक्कर में मैडम क्रिसमस भी मनाने लगीं और उस फिरंगी से दोस्ती भी बढ़ा ली.’’

इस वर्ष भी कुछ नए विचारों के लोगों ने गणपति पूजा पर विभिन्न पदार्थों को ले कर गणेश की प्रतिमा बनाई. किसी ने मिट्टी की बनाई जिस में खाद व बीज भी मिला दिए ताकि पूजा के बाद उसे सीधे गमले में लगा दिया जाए. न तो उस के पैरों में आने की संभावना और न ही प्रदूषण. कहने को तो बड़ा नेक विचार पर पंडितों ने उस में कमी ढूंढ़ ली कि फिर विसर्जन कैसे होगा?

वहीं किसी  ने चौकलेट के गणपति बनाए ताकि पूजा के बाद उसे दूध में मिला दिया जाए और वह दूध गरीब बच्चों को पिला दिया जाए.

कुछ महिलाओं के इस पर विचार सुने- किसी ने कहा चौकलेट की बिक्री का तरीका है, तो किसी ने कहा जिस गणपति की पूजा करो उसे ही दूध बना कर पी जाओ, ये कैसी गलत विधि है पूजा की. यहां सोचने की बात यह है कि त्योहार में खुशियां ढूंढ़ें और बांटें भी. आपस में एकदूसरे की कमियां न ढूंढ़ें.

नकारें नहीं अपनाएं

अकसर देखा गया है एक ही भाषा के लोग जब अपने उत्सव मनाते हैं, तो उन के रीतिरिवाज, पहनावा, खानपान सब एक जैसा ही होता है. ऐसे में यदि कोई एक महिला दूसरी भाषा की हो तो उसे शामिल कर लेने में कोई बुराई तो नहीं. उसी उत्सव को वह अपने हिसाब से मना ले आप सभी के साथ और आप भी उस नई महिला की रीतियां अच्छी लगें तो अपना लें. लेकिन नहीं, हमारे यहां तो अपनी भाषा के लोग मिलते ही दूसरे को झट से नकार दिया जाता है. जबकि भाषा तो सिर्फ संचार का माध्यम होती है. आप अपनी बात किसी को कह सकें, भाषा का औचित्य वहीं तक है, लेकिन उस को ले गुटबाजी करना और त्योहार में भी आपस में बंट जाना कहां तक सही है?

और तो और हमारा सोशल मीडिया भी इस में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. जैसे ही कोई त्योहार आता है, पहले से ही सोशल मीडिया उस उत्सव से संबंधित पोस्ट शेयर करने लगता है और फिर गुहार लगाता है कि इस वर्ष फलां उत्सव कुछ ऐसे मनाएं, वैसे मनाएं और लाइक करें.

कोई भी धर्म, भाषा, जाति और समाज पीछे नहीं. सभी अपनीअपनी मार्केटिंग में लगे हुए हैं और भोलीभाली भीड़ की मिट्टी में अपने नाम का झंडा गाड़ कर अपनी साख जमाने की कोशिश कर रहे हैं. उसे अपनी राजनीति का शिकार बना रहे हैं.

कभीकभी तो ऐसा महसूस होता है कि यदि ये ‘मेरा धर्म श्रेष्ठ’ का नारा न लगाएं तो जैसे इन का धर्म अभी नष्ट ही हो जाएगा. जो उन्मादी लोग ‘मेरा धर्म श्रेष्ठ’ का नारा लगा रहे हैं और धर्म के नाम पर लोगों को बांट रहे हैं उन्हें धर्म का इस्तेमाल करना पूरापूरा आता है.

जब वोट डालने के लिए लोगों को फुसलाने की बात होती है, तो धर्म ही सब से ज्यादा कारगर साबित होता है. प्रकृति के नियमों का फायदा धर्म के दुकानदार उठा रहे हैं. प्रकृति ने तो सब को आजाद किया है. पशुपक्षी, नदीझरने, पहाड़पत्थर उन का तो कोई धर्म नहीं, कोई समाज नहीं, लाखों करोड़ों सालों से बस अपनाअपना कार्य कर रहे हैं.

नदी कभी नहीं पूछती कि ऐ झरने तू पहले बता कि किस पहाड़ से बह कर आया है वरना मैं तुझे अपने में नहीं समाऊंगी. और वह स्वयं सब झरानों का काफिला ले सागर के हृदय में समा जाती है. पहाड़ से टूटी चट्टान भी लुढ़क कर जहां रुक जाए, बस वही उस का ठिकाना हो जाता है. कोई पहाड़ उसे धकेलता नहीं. हवा अपना रुख मनमुताबिक तय करती है. आसमान, तारे, चांद, सूरज सब ही तो हैं जो हर धर्म, समाज को यथा योग्य कुछ दे रहे हैं.

सिर्फ हम मनुष्यों को ही धर्म, समाज, जाति, भाषा की आवश्यकता क्यों है? क्यों हम किसी पंडेपुजारी के बिना अपनी मनपसंद की पूजा नहीं कर सकते? यदि करें तो ये समाज के लोग तिरस्कृत क्यों करने लगते हैं? जबकि वे स्वयं नियम बनाते और स्वयं ही तोड़ते हैं.

ये सत्ता पिपासु लोग हैं. उन्हें डर है कि यदि लोग अपनी सुविधानुसार ऐसा करने लगेंगे तो उन की अहमियत कम हो जाएगी.

वैबसाइट्स के जरीए लूट रहे पाखंडी, इनका शिकार होने से बचें

पिछले कुछ सप्ताहों से हमारी पीपल्स फौर ऐनिमल्स की टीम उन धार्मिक औन लाइन वैबसाइटों को खंगाल रही थी, जिन में हिंदू धर्म के नाम पर बकवास भरी हुई है. जब से मुझे हठजोड़ी के बारे में पढ़ने को मिला है, जिसे चमत्कारी तावीज के नाम पर बेचा जा रहा है जो असल में गोह चमकी मौनिटर लिजर्ड का लिंग है और जिसे साइटों पर सेहत, धन, वशीकरण आदि पाने का उपाय मान कर बेचा जा रहा है, हम इसी बकवास के बेचे जाने के बारे में ढूंढ़ रहे हैं.

सियार सिंघी एक गीदड़ सींग के नाम पर बेची जा रही है. पहली बात गीदड़ वाइल्ड लाइफ प्रोटैक्शन एक्ट 1972 के अंतर्गत संरक्षित प्राणी है. दूसरी बात यह है कि सियार या गीदड़ के सींग होता ही नहीं है. लेकिन यह दावा किया जाता है कि जब गीदड़ सिर नीचा कर हुआंहुआं किए चीखता है तो उस के सिर पर एक सींग उग आता है और तभी उसे मारा जाए और यह सींग बालों सहित निकाल लिया जाए तो बाल हमेशा उगते रहेंगे. आप को उसे बस सिंदूर में रखना होगा.

इस से दुष्टात्माओं को दूर रखा जा सकता है. आप को पंडों को बुला कर इसे बीच में रख कर हवन कराना होगा और उस पर जो खर्च होगा, वह सहना होगा वरना यह चमत्कारी सींग काम न करेगा.

सिर्फ अंधविश्वास

यह बेहूदगी सिर्फ हिंदुओं में ही नहीं है. वरन मुसलमानों और बौद्धों में भी है. श्रीलंका में अनपढ़ लोग इस का तावीज बना कर इसे गले में पहनते हैं ताकि वे जुए में जीत सकें. नेपाल के थारू आदिवासियों में अंधविश्वास है कि अगर यह साथ हो तो अंधेरे में भी देखा जा सकता है और औरतों को वश में करा जा सकता है.

बंगाल में हठजोड़ी की तरह इसे तिजोरियों में रखा जाता है ताकि धनदौलत दिन दूनी रात चौगुनी हो जाए. यह बात दूसरी है कि जब तिजोरी के सामने पूजा की जाती है तो शातिर लोग पुजारी बन कर पैसा ही उड़ा कर अंतर्ध्यान हो जाते हैं.

कुछ साइटों पर दावा किया जा रहा है कि बाइबिल में लिखा है कि सियारी शैतान की मां है और यदि सिंघी को साथ रखा जाए तो शैतान की मां शैतान को दूर रखती है.

घट रही है संख्या

सुनहरे सियार की 13 प्रजातियां होती थीं, जिन में से अब 7 बची हैं. यह कुत्ते की तरह वन पशु है, जो फल, कीड़े, पक्षी, चूहे आदि खा कर जिंदा रहता है. आमतौर पर नर मादा व बच्चे साथ एक परिवार की तरह झुंड में रहते हैं. पंचतंत्र में इन्हें होशियार व अक्लमंद जानवर मान कर इन पर कहानियां लिखी गई हैं. सियारों की आवाज को कईर् जगह शुभ भी माना जाता है.

सियारों को मार कर खाया भी जाता है पर इन की घटती संख्या का बड़ा कारण यह काल्पनिक सींग है. अब पुलिस इन वैबसाइटों को बंद कर के इन्हें चलाने वालों को पकड़ने की कोशिश कर रही है.

न फसें मायाजाल में

इस तिलिस्मी हड्डी के बहुत से गुण बताए जाते हैं, बशर्ते आप सही पूजा करवा लें. धन मिलेगा, केस जीतोगे, जीवनसाथी के साथ सुख पाओगे, स्वास्थ्य लाभ होगा, संपत्ति मिलेगी, डिप्रैशन समाप्त हो जाएगा. यही नहीं इस से बहुत सी गंभीर बीमारियां जैसे मानसिक रोग, औटिज्म, खाने में गड़बड़, पागलपन आदि भी दूर होंगी.

आप को बस सिंघी सामने रख कर मंत्र पढ़ने होंगे. इन वैबसाइटों पर अलगअलग धर्मों में अलगअलग मंत्र भी सुझाए गए हैं- मुमकरया कुरु कुक नम:, ओम पद्माश्रिम, ओम हरीओम.

पूर्व दक्षिण उत्तर पश्चिम, अधिक तरल पदार्थ सभी जन्य आज्ञाकारी कुरुकुरु नम: वगैरह पढ़ना जरूरी है. 1 बार नहीं 21 से 108 बार ये मंत्र जपने होंगे. और हां यदि इसी साइट पर बिक रही चमत्कारी मणियों की माला नहीं खरीदी तो यह सियार सिंघी काम नहीं करेगी.

महज बकवास है

मुसलमानों को बताया जाता है कि अल्लाह ने इस में खास ताकत भरी है. कुछ साइटों पर पैसा कमाने की और भी तरकीबें भी ठूंसी गई हैं. इन्हीं साइटों में बताया गया है कि इसे सियार सिंघी को पारे में रखने से इस की ताकत बढ़ जाती है और यह सिंघी पारे को खा लेती है.

यदि 21वीं सदी में भी लोग इस तरह की बकवास पर विश्वास करेंगे तो वे धनवान हों न हों पर बेचने वाले जरूर हो रहे हैं.

मेड नहीं लाइफलाइन कहिए : इनसे बेहतर तालमेल कैसे बनाएं

जिम में संध्या के साथ ट्रेडमिल पर वाक करते समय मैं ने शौपिंग का प्लान बना लिया. घर जा कर नहाई, नाश्ता किया और तभी संध्या का फोन आ गया. कहने लगी कि एक घंटा देरी से निकलेंगे. आज कामवाली नहीं आई है. थोड़ा रसोई और घर साफ कर लूं या फिर कल चलेंगे. यह बताते हुए वह बहुत दुखी थी और कह रही थी कि मेड छुट्टी लेती है, तो पहले से बताती भी नहीं.

मैं भी क्या करती एक घंटा देर से चलने के लिए राजी हो गई, क्योंकि अगले दिन मेरा डाक्टर का अपौइंटमैंट था. लेकिन अब हमारे पास शौपिंग के लिए समय कम था क्योंकि बच्चे स्कूल से आएं उस से पहले हमें वापस घर लौट कर आना था.

अनेक समस्याएं

अगले दिन मेरी कामवाली देरी से आई, लेकिन मुझे डाक्टर के पास जाना था, तो मैं बैडरूम लौक कर के घर की चाबी पड़ोसी के घर दे कर गई ताकि कामवाली आए तो ह रसोई और बाकी घर साफ कर दे. मुझे उसे अकेले घर में छोड़ना ठीक नहीं लग रहा था. पर मजबूरी थी क्योंकि हम एकल परिवारमें रहते हैं. यह समस्या आज लगभग हर घर में है. जहां नौकरियों और तबादलों के चलते संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, वहीं कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. बच्चे, बूढ़े और जवान सभी घर में नौकरों पर निर्भर हैं.

साफसफाई करने से खाना बनाने तक का, बच्चा पालने से ले कर बुजुर्गों की देखभाल का काम घरों में कामवालियां कर रही हैं. जहां इन से सुविधाएं मिल रही हैं, वहीं इन से काम करवाने में अनेक समस्याएं भी हैं.

मेड और मैडम एकदूसरे के पूरक

मुंबई में रहने वाली रिया कहती हैं, ‘‘जब मैं गर्भवती थी. मेरे घर में काम करने वाली लड़की ने मेरा बहुत ध्यान रखा. जो काम मैं ने उसे नहीं दिया था, वह भी वह अपनेआप कर देती और सिर्फ इतना ही नहीं मेरी बेटी के जन्म के बाद जब मैं काम में व्यस्त होती तो वह उस के साथ खेलती और जब कभी मुझे बाहर का काम होता तो वह मेरे साथ जाती ताकि वह मेरी बेटी को संभाल ले और मैं अपना काम शांति से कर सकूं.

उस का व्यवहार देख कर हम ने उसे घर के सदस्य का दर्जा दिया. हमारे घर रिश्तेदार भी आते तो उसे फैमिली मैंबर जैसा सम्मान देते.

‘‘मैं स्वयं भी उस की पारिवारिक जरूरतों का खयाल रखती. हम दोनों एकदूसरे के पूरक हो गए. कुछ वर्षों में जब उस का विवाह हुआ तो हम ने उसे बेटी की तरह विदा किया और उस के परिवार की आर्थिक मदद भी की.’’

परिस्थिति के हाथों मजबूर हैदराबाद की रहने वाली कोमल कहती हैं, ‘‘मैं ने अपनी कामवाली को घर के सदस्य जैसा रखा. लेकिन जब दूसरी बेटी पैदा होने के बाद उसे रातदिन घर में रहने का काम दिया तो वह घर में चोरी करने लगी. शुरुआत रसोई में खाने की चीजें चुराने से की और धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ने लगी.

‘‘एक दिन मौका पा कर उस ने मेरी अलमारी से सोने की चूडि़यां चुरा लीं. पुलिस में शिकायत की तो उस के बाद से मेरे घर में एक भी कामवाली काम करने के लिए तैयार नहीं थी.’’ तबादले के कारण चेन्नई गई मोहिनी कहती हैं, ‘‘भाषा सब से पहली समस्या है.

यहां हिंदीभाषी कामवालियां बहुत कम हैं, इसलिए डिमांड में हैं. उन का दिमाग सातवें आसमान पर रहता है. इसलिए थोड़ी तमिल सीख ली है.

‘‘कमर्शियल एरिया होने के कारण आसपास के अपार्टमैंट में कामकाजी महिलाएं ज्यादा हैं. अकसर एनआरआई यहां किराए पर रहने आतेजाते रहते हैं. कामवालियां बहुत डिमांड में हैं इसलिए आएदिन काम छोड़ कर चली जाती हैं. एक घर का काम छोड़ें तो 4 घरों में इन की डिमांड होती है. ‘‘विदेशों में हाथ से काम कर के आए लोगों के लिए कामवालियां एक लग्जरी है. इसलिए वे न सिर्फ उन्हें मुंहमांगी कीमत देते

हैं, बल्कि उन के खूब नखरे भी उठाते हैं. दिनबदिन इन की डिमांड बढ़ती जा रही है और उस का वे खूब फायदा भी उठा रही हैं. समय पर काम पर नहीं आना तो जैसे इन की आदत बन गई है.’’

पढ़ीलिखी हो मेड

यह समस्या आजकल आम महिलाओं के साथ है. सभी को घर में एक अच्छी, साफसुथरी, ईमानदार और समय पर आने वाली कामवाली की आवश्यकता है. लेकिन ये सभी गुण एक ही महिला में होना बहुत मुश्किल है.

आज की तारीख में ये हर घर की लाइफलाइन हैं, तो ऐसे में यह कोशिश होनी चाहिए कि चाहे तनख्वाह ज्यादा देनी पड़े लेकिन थोड़ी पढ़ीलिखी व अच्छे स्तर की मेड रखी जाए.

समस्या है तो समाधान भी

समस्याएं हैं तो समाधान भी हमें ही ढूंढ़ने पड़ेंगे. आखिर ऐसा क्या किया जाए कि हमें अच्छी कामवालियां मिलें. गौर फरमाइए कुछ पौइंट्स पर:

वे भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं, उन्हें स्कूल भेज कर ही वे काम पर आ सकती हैं. समय पर पहुंचने के चक्कर में कई बार वे भूखी ही घर से निकल जाती हैं. कम से कम 1 कप चाय तो मैडम उन्हें पिला दें. वे यही आस रखती हैं.

वे भी अपने परिवार के साथ वक्त बिताना चाहती हैं. उन के बच्चे भी कभीकभी बीमार होते हैं या कभीकभी वे खुद भी. इसलिए उन के लिए भी पर्याप्त छुट्टियों का प्रावधान हो.

जिस तरह मैडम कभी बाहर जाती हैं तो वे टाइम ऐडजस्ट करती हैं. उसी तरह कभीकभी उन के लिए भी यह ऐडजस्टमैंट किया जाए. वे दफ्तर में नहीं घरों में काम करती हैं. कभी उन्हें भी पर्सनल काम होते हैं और वे छुट्टी भी नहीं खत्म करना चाहती हैं.

उन से अमानवीय व्यवहार न किया जाए. उन के साथ बोलचाल की भाषा सम्मानजनक हो.

कई बार मैडम घूमने के लिए एक सप्ताह या महीना भर बाहर जाती हैं. ऐसे में कामवाली की छुट्टियां और उन के पैसे न काटे जाएं. आखिर उन का घरखर्च आप के द्वारा दी गई तनख्वाह से ही चलता है.

क्योंकि इन की तनख्वाह बहुत कम है, इसलिए इन्हें तनख्वाह सही समय पर दी जाए.

यदि आप की कामवाली ईमानदार और अच्छे व्यवहार वाली है, तो उसे उस व्यवहार के बदले भी कुछ मिले वरना अच्छे व बुरे में क्या फर्क रह जाएगा.

महीना खत्म होने से पहले इन का पर्स खाली हो जाता है. लेकिन पेट की भूख सब को सताती है. अत: कभीकभी ऐडवांस या कुछ मदद की जाए.

प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा, भूकंप आदि में इन के घर तहसनहस हो जाते हैं, इसलिए ऐसी आपदाओं के समय इन के घरों को बसानेबनाने हेतु मदद की जाए.

साल में एक बार इन्हें बोनस जरूर दिया जाए ताकि वे अपने खानेपीने के खर्च के अलावा अपनी जरूरत का कुछ सामान भी खरीद सकें.

घरों में काम करने वाली बाइयों के लिए पीएफ या मैडिकल इंश्योरैंस जैसी कोई सुविधा नहीं होती जबकि दूसरे और्गेनाइज्ड सैक्टर में लेबर के लिए यह सुविधा होती है. इस के लिए दवा आदि के पैसे दे दिए जाएं.

कई बार देखा गया है कि मैडम इन के काम से संतुष्ट न हो या जरूरत न हो तो दूसरी ढूंढ़ कर इन्हें काम से निकाल देती हैं, जिस से इन के खर्च पर असर पड़ता है. यदि ऐसा हो तो इन्हें कुछ अतिरिक्त रुपए दे कर निकाला जाए ताकि इन के घरखर्च पर बुरा असर न पड़े.

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