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आतंकी, मानव और धर्म : अमेरिका को टौम उजहन्नालिल को सुनना चाहिए

अमेरिका न जाने क्यों पश्चिम एशिया में क्रूर आतंकी संगठन इसलामिक स्टेट के खिलाफ तोपों, मिसाइलों, ड्रोनों का इस्तेमाल कर रहा है और क्यों इराकी, सीरियाई सैनिकों को मरवा रहा है. अमेरिका को आतंकियों के चंगुल में यमन में 18 महीने कैदी रहे पादरी टौम उजहन्नालिल की सुननी चाहिए जिन्होंने कहा कि क्रूर और हत्यारे आतंकियों ने उन्हें जिंदा रखा.

विधर्मी होते हुए भी अगर उन्हें जिंदा रखा गया, तो पादरी की सोच के अनुसार यह लोगों की प्रार्थनाओं के कारण हुआ जिन्होंने अपहर्ताओं का हृदय परिवर्तन कर दिया. इसी कारण उन्हें शारीरिक कष्ट नहीं दिया गया और न ही रमजान के महीने में भूखा रखा गया. वे अगर छूटे तो ईश्वर के कारण. भारत, अमेरिका, वेटिकन के दूतावासों ने तो कुछ किया ही नहीं उन्हें छुड़ाने में और उन्हें तो केवल ईसा मसीह को धन्यवाद देना है.

इसीलिए औपचारिकता निभाने के लिए वे रोम में पोप के विशाल महल वैटिकन में भी रुके और अपने मूल देश भारत में आ कर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी मिले. पर उन्होंने शायद उन दोनों से कहा होगा कि आतंकी पागलों से निबटने के लिए पूजापाठ और प्रार्थनाओं की जरूरत है, टैंकों या हवाई जहाजों की नहीं.

महीनों अपहर्ताओं की कारगुजारी देखने के बाद भी कोई मानव स्वभाव को न समझ पाए, यह तभी संभव है जब दिमाग पर धार्मिक परत इतनी मोटी पड़ी हो कि सच व तर्क की बात वह भेद ही न सके. प्रार्थनाओं से काम चलता होता तो दुनिया में कहीं अनाचार, अत्याचार, भूख, बीमारी, अपराध न होता. मारना, लूटना हो सकता है, प्रकृति की देन हो.

समाज ने और सभ्यता ने मार कर खाने को नियंत्रित किया है पर दूसरी ओर धर्म ने दूसरे धर्म के लोगों पर अत्याचार करने का लाइसैंस दे दिया और उस लाइसैंस को पाने के लिए अपने धर्म की हर गलत बात और मान्यता को बिना सवाल उठाए मानने की शर्त लगा दी. इन्हीं मान्यताओं में से ही एक है कि जब कुछ अच्छा हो जाए, तो धन्यवाद धर्म के बजाय ईश्वर को दें, उस व्यक्ति या संस्था को नहीं, जिस ने जीवन सुखद बनाया.

हौकी का दम

जापान के कागामिगहारा में महिला एशिया कप हौकी के फाइनल में भारतीय टीम ने जो कमाल दिखाया है वह काबिलेतारीफ है. चीन के साथ फाइनल मैच में दोनों टीमों के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ. आखिरकार भारतीय टीम ने जीत कर ही दम लिया. इस जीत से भारतीय महिला टीम को अगले वर्ष होने वाली विश्वकप हौकी प्रतियोगिता में जगह मिल गई.

भारतीय महिला टीम के हौसले इस लिहाज से भी बुलंद थे कि उस ने एशिया कप के लीग राउंड में चीन को 4-2 के अंतर से मात दी थी. इस के लिए भारतीय महिला टीम को 13 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा.

ऐसा नहीं है कि यह जीत आसानी से मिली हो. इस के लिए पूरी टीम ने हर मोरचे पर मेहनत की और योजनाबद्ध तरीके से खेल खेला. फाइनल मैच में दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर रह गईं. पैनल्टी शूटआउट में भी हारजीत का फैसला न हो सका. आखिर में सडेन डेथ के तहत चीनी खिलाड़ी गोल नहीं कर सकीं और भारतीय खिलाड़ी रानी के अचूक निशाने के बूते भारतीय टीम को जीत मिल गई.

पिछले कुछ समय से हौकी में भारत की महिला और पुरुष टीमों ने जिस तरह से प्रदर्शन किया है उसे देखते हुए अतीत का याद आना स्वाभाविक है. एक समय में भारत हौकी में नंबर वन हुआ करता था. समय के साथ देश में क्रिकेट की चकाचौंध में हौकी का खेल गुम होता चला गया. हौकी की दुर्दशा के पीछे खेल मंत्रालय से ले कर खेल संघ और संबंधित अधिकारी सीधासीधा जिम्मेदार रहे. नए प्रतिभाशाली खिलाडि़यों की खोज से ले कर बुनियादी सुविधाओं के लिए खिलाड़ी हमेशा तरसते रहे.

हौकी में राजनीति होती रही और यह खेल पिछड़ता चला गया. पैसों की किल्लत के आगे खिलाड़ी एकएक चीज के लिए जूझते रहे. जिन्होंने मुंह खोला उस की बोलती बंद कर दी गई. ऐसे में कैरियर की चिंता को ले कर खिलाडि़यों ने भी अपने मुंह में ताला जड़ लिया. गाहेबगाहे कुछ खिलाडि़यों ने हिम्मत जुटा कर बोलने की कोशिश की पर वे भी सफल नहीं रहे.

बहरहाल, महिला टीम की इस जीत से सुकून की बात यह है कि सभी खिलाडि़यों को 1-1 लाख रुपए का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. मगर क्या 1-1 लाख रुपए से खेल और खिलाडि़यों का भला हो जाएगा? इस के लिए संबंधित अधिकारियों और खेल मंत्रालय को सोचना पड़ेगा अन्यथा हौकी में दम देखने को मिलेगा, ऐसा लगता नहीं.

मैरीकौम का जज्बा

5 बार की विश्व चैंपियन एम सी मैरीकौम ने एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 48 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रच दिया. 35 वर्षीय मैरीकौम ने अपनी उत्तर कोरियाई प्रतिद्वंद्वी किम ह्यांग मी को 5-0 से हरा कर यह पदक जीता.

एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भारत को 1 स्वर्ण, 1 रजत और 5 कांस्य पदक मिले. मैरीकौम ने तकरीबन 1 साल बाद बौक्ंिसग रिंग में वापसी की है.

3 बच्चों की मां मैरीकौम ने साबित कर दिया कि मन में लगन हो तो कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं है. मैरीकौम राज्यसभा सांसद भी हैं.

मैरीकौम का मानना है कि व्यस्त कार्यक्रम के बीच सक्रिय मुक्केबाज और सांसद के रूप में काम करना आसान काम नहीं है. दोनों ही काम थकाने वाले हैं. हर काम को अच्छी तरह से मैनेज करना सब के बूते की बात नहीं है, लेकिन मैरीकौम संसद से ले कर चूल्हाचौका और अपने बच्चों की देखभाल पूरी तरह से करती हैं. यह बात उन्होंने खुद स्वीकार की है.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चमकने वाली मैरीकौम की जिंदगी संघर्षों से भरी रही है. मैरीकौम साधारण परिवार से हैं. गांव की सीधीसादी गोरी लड़की मैरीकौम खेल की शुरुआत में छोटेछोटे सपोर्ट के लिए तरसी हैं. उन के पिता भी नहीं चाहते थे कि वे बौक्सर बनें. उन्हें लगता था कि उन का लुक्स खराब हो जाएगा. पर मैरीकौम ने हार नहीं मानी और जब उन्हें मैडल्स मिलने लगे तो सब की बोलती बंद हो गई.

मैरीकौम बौक्ंिसग अकैडमी भी चलाती हैं. वह इसलिए कि वे नहीं चाहतीं कि किसी भी गरीब बच्चे को पैसों या बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़े. वे ज्यादातर लड़कियों को बौक्ंिसग के क्षेत्र में लाना चाहती हैं ताकि बेटियां आगे बढें और देश का नाम रोशन करें.

विश्व बैंक की रिपोर्ट और जीएसटी सुधार से बाजार में बदलाव

बौंबे स्टौक एक्सचेंज में अक्तूबर के आखिरी सप्ताह और नवंबर की शुरुआत में स्थिति बहुत अच्छी रही. इस की वजह विश्व बैंक की वह रिपोर्ट है जिस में सुगम कारोबार के माहौल में वैश्विक स्तर पर 30 स्तरों का सुधार हुआ है. भारत की रैंकिंग में सुधार की इस खबर के बाद बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई तथा नैशनल स्टौक एक्सचेंज नए स्तर पर बंद हुए.

रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 130 से सुधर कर 100 पर पहुंच गई है. इस के अलावा अमेरिकी शेयर बाजार में तेजी का भी बीएसई के सूचकांक पर सकारात्मक असर रहा और इस के कारण साप्ताहिक स्तर पर सूचकांक में 529 अंक की तेजी दर्ज की गई.

नवंबर के पहले सप्ताह के दौरान बाजार में उतारचढ़ाव का दौर रहा लेकिन सप्ताह के आखिरी दिन गुवाहाटी में जीएसटी परिषद की बैठक में कई वस्तुओं के लिए जीएसटी दर में बदलाव किए जाने की घोषणा से बाजार की रौनक बढ़ गई. जीएसटी परिषद ने गुवाहाटी की बैठक में महत्त्वपूर्ण फैसला लिया. परिषद ने 178 वस्तुओं की दर 28 प्रतिशत से घटा कर 18 प्रतिशत कर दी और 28 प्रतिशत की सर्वाधिक दर वाले स्तर पर सिर्फ 50 वस्तुओं को रखा. जीएसटी परिषद का यह फैसला बाजार के लिए आगे भी बदलावभरा माना जा रहा है.

आपसी उधारी कहीं बिगाड़ न दे रिश्तेदारी

संबंधों का वाकई कोई मूल्य नहीं होता. अनमोल रिश्तों और दोस्ती में पैसों का लेनदेन संवेदनशील बात है इसलिए इन्हें बनाए रखने के लिए जरूरी है कि आपसी लेनदेन के समय कुछ सावधानियां जरूर बरती जाएं वरना पैसा रिश्तों व अपनेपन को दरका देता है.

नए जमाने की यह कहावत श्रुति और स्मृति पर आधारित न हो कर ढेरों अनुभवों व उदाहरणों का निचोड़ है कि अगर रिश्तेदारी बिगाड़नी हो तो उधार ले लो या फिर उधार दे दो. अर्थशास्त्र के शुरुआती पाठों में ही पढ़ा दिया जाता है कि फाइनैंस का एक बड़ा स्रोत व्यक्तिगत भी होता है. इन्हीं पाठों में बताया जाता है कि सहज उपलब्ध होने के साथसाथ इस तरह के फाइनैंस की एक खासियत यह भी है कि इस में ब्याज या अवधि का दबाव नहीं होता. पढ़ाया हालांकि यह भी जाता है कि दोस्तीयारी और रिश्तेदारी में लेनदेन अकसर रिश्तों के लिए नुकसानदेह साबित होता है और उन के टूटने की वजह भी बनता है.

रिश्ते हमेशा से ही अर्थप्रधान रहे हैं. धर्म और संस्कृति की दुहाई दे कर बेवजह ही इस सच से मुंह मोड़ने की कोशिश भी हमेशा की जाती रही है. जबकि सच यह है कि समाज में रहना है तो आप आपस में उधारी के लेनदेन से बच नहीं सकते.

बिलाशक अपनों की मदद का जज्बा एक अच्छी बात है जो न केवल मानव जीवन की बल्कि पैसे की भी सार्थकता सिद्ध करता है. भोपाल के 70 वर्षीय एक नामी डाक्टर की मानें तो साल 1968 में उन्हें मैडिकल में दाखिले के लिए उस वक्त महज 600 रुपए की जरूरत थी. तब यह रकम काफी भारीभरकम थी. डाक्टर साहब के पिताजी ने बेबसी से असमर्थता जाहिर कर दी तो उन की उम्मीद टूटने लगी और सपने दम तोड़ने लगे. पैसों के आगे प्रतिभा घुटने टेकती नजर आई.

ऐसे में रिश्ते के एक मामा ने उन की मदद की और बगैर ज्यादा पूछताछ किए या एहसान जताए उन्हें पैसे उधार दिए और खूबी यह कि उन की 5 वर्षों की पढ़ाई पूरी होने तक कभी तकाजा नहीं किया. भावविह्वल हो कर डाक्टर साहब बताते हैं कि अब मामाजी इस दुनिया में नहीं, लेकिन मैं अकसर उन के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं. उन के उस वक्त के 600 रुपए के मुकाबले आज अपनी कमाई की करोड़ों की दौलत और जायदाद फीकी लगती है.

ऐसे कई उदाहरण आसपास मिल जाएंगे जिन में निस्वार्थ उधारी देने के चलते किसी की जिंदगी संवरी या जरूरी काम वक्त पर हो पाया. लेकिन ये उदाहरण उन उदाहरणों के मुकाबले कुछ भी नहीं जिन में स्थायी रूप से रिश्तों में खटास पड़ गई, वजह थी आपस में उधारी.

गौर से देखें तो असल वजह उधारी नहीं, बल्कि उस में रिश्तों की तरह पसरी अपारदर्शिता है. भारतीय समाज की यह बड़ी कमजोरी है, जिस में लिहाजा, संकोच और रिश्तों को बनाए रखने की कोशिश के चलते अकसर बहुतकुछ स्पष्ट नहीं होता.

भोपाल की ही एक प्रोफैसर की मानें तो अब से 8 वर्षों पहले उन्होंने अपने दिवंगत देवर की बेटी को 2 लाख रुपए उधार दिए थे. मंशा मदद की थी जिस से वह एमबीए करने का अपना सपना पूरा कर सके. पढ़ाई के बाद भतीजी की नौकरी एक नामी कंपनी में तगड़े पैकेज पर लग गई तो उन्हें आस बंधी कि अब वह पैसा वापस कर देगी.

इस बाबत उन्होंने इशारों में कई दफा कहा भी पर भतीजी चालाक थी जो जानबूझ कर अंजान बनी रही. प्रोफैसर साहिबा के पति उन से काफी नाराज हुए पर मामला नजदीकी था और इस की कोई लिखापढ़ी नहीं थी, इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता था सिवा अपनी मूर्खता पर कलपते रहने के.

अब वह भतीजी अपने पति के साथ मौज से बेंगलुरु में रह रही है और ताई व ताऊ के स्पष्ट मांगने पर भी पैसे वापस नहीं कर रही. नतीजतन, बोलचाल बंद है. हर कोई यह कहता है कि 2 लाख रुपए जैसी भारीभरकम रकम सगी भतीजी को भी बिना लिखापढ़ी के नहीं देनी चाहिए थी. अकसर फुरसत में अपनी मेहनत की कमाई के 2 लाख रुपयों को ले कर प्रोफैसर साहिबा क्षोभ, अवसाद और क्रोध से घिर जाती हैं कि अगर इन्हें कहीं निवेश करतीं तो कम से कम 6-7 लाख रुपए तो हो जाते और तनाव भी झेलना न पड़ता.

आपस में उधारी से ताल्लुक रखते एक ही शहर के दिलचस्प उदाहरण सामने हैं. डाक्टर साहब को वक्त पर उधारी मिल गई थी जो उन्होंने डाक्टर बनते चुका भी दी थी. इसलिए वे अब हर किसी जरूरतमंद रिश्तेदार की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं और उधार देते वक्त न यह सोचते हैं, न पूछते हैं कि पैसा वापस कब मिलेगा. उलट इस के, प्रोफैसर साहिबा ने कसम खा ली है कि मर जाएंगी लेकिन अब वे किसी अपने वाले को कभी उधार नहीं देंगी.

क्या ऐसा कोई रास्ता है जिस से रिश्तों की मिठास भी कायम रहे और उधारी की खटास उन पर हावी न हो? इस सवाल का एक ही जवाब है, नहीं, क्योंकि उधार लेने वालों की नीयत नारियल जैसी होती है. आप ऊपर से नहीं भांप सकते कि नारियल भीतर से सड़ा है या साबुत है. यानी नीयत को नापने का कोई पैमाना नहीं है.

वक्त तेजी से बदल रहा है, बाजार में पैसों की किल्लत है और नोटबंदी के बाद तो हालात और भी बिगड़े हैं. ऐसे में जरूरी है कि आपस में उधारी को 2 हिस्सों में बांट कर देखा जाए. पहला, देने वाला और दूसरा, लेने वाला. इन दोनों ही पक्षों को कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है जिस से रिश्तों पर कोई आंच न आए.

– देने वाले को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि मांगने वाले की जरूरत वाकई गंभीर है. पढ़ाई, बीमारी और शादी के बाबत पैसा मांगा जा रहा है तो उधार देना हर्ज की बात नहीं. लेकिन आप को लगता है कि उधारी मौजमस्ती और सैरसपाटे के लिए मांगी जा रही है तो विनम्रता से असमर्थता जता दें.

– मांगने वाले से रिश्ते की नजदीकी व दूरी देखें. अगर रिश्तेदार अकसर मिलनेजुलने वाला और विश्वसनीय है तो उधार दिया जा सकता है.

– देने वाले की वापस करने की क्षमता का आकलन बैंक की तरह करें. बेरोजगार रिश्तेदारों और बाहर रहने वाले छात्रों को देने से अकसर पैसा डुब जाता है.

– नौकरीपेशा या नियमित आमदनी वाले रिश्तेदारों को उधार दिया गया पैसा कम ही डूबता है.

– आपस में उधारी की बात पतिपत्नी को एकदूसरे से छिपाना नहीं चाहिए.

जब बात उलझ जाए

इन तमाम एहतियातों को बरतने के बाद भी बात उलझ जाए तो रिश्तेदारी या दोस्ती का टूटना एक तय बात है जिस का जिम्मेदार लेने वाला ही होता है. एक कैमिस्ट अनिल कुमार ललवानी की मानें तो उधार लेने वाले के बाद अपने वाले भी कतराने लगते हैं जिस से देनदार का तनाव व ब्लडप्रैशर और बढ़ जाता है.

वक्त का तकाजा है कि आपस के हर लेनदेन की लिखापढ़ी हो, यह कतई हर्ज या शर्म की बात नहीं बल्कि इस से संबंध पूर्व की तरह बने रहते हैं. अगर उधारी की रकम बड़ी है और उस की मियाद ज्यादा है तो ब्याज लेने में भी हर्ज नहीं. अगर यही राशि देने वाला बैंक में जमा करेगा तो उसे ब्याज तो मिलता जो उस का हक है.

भोपाल के एक अधिवक्ता महेंद्र श्रीवास्तव का कहना है, ‘‘आपस में लिखापढ़ी न होने से देने वाला अदालत नहीं जा पाता और अपनी नादानी पर पछताता रहता है. मौखिक लेनदेन को अदालत में साबित करना मुश्किल होता है. कोर्ट में कागजी लिखापढ़ी ही कारगर होती है लेकिन उस पर 2 गवाहों के दस्तखत होने चाहिए.’’

जब उधारी लेने वाला न देने की ठान ही ले तो उस से पैसे निकलवाना दुष्कर काम है. बात यहीं से बिगड़ती है, इसलिए पहली कोशिश आपस में लेनदेन से बचने की होनी चाहिए. रिश्ते पैसों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होते. लेकिन मदद का जज्बा है तो बेहतर है मांगने वाले को किसी तीसरे से दिलवाएं और लिखापढ़ी करवाएं.

रखें इन बातों का ध्यान

– 1 लाख रुपए तक या इस से ज्यादा की उधारी की लिखापढ़ी करना शर्म या हर्ज की बात नहीं. याद रखें आप मदद कर रहे हैं, इसलिए अपनी कमाई व बचत के पैसों के प्रति सजग रहना आप की जिम्मेदारी है, न कि लेने वाले की.

– लिखित दें या मौखिक दें, उधारी के पैसों की समयसीमा जरूर तय करें, जिस से लेने वाले पर वक्त के भीतर चुकाने की बाध्यता रहे.

– रिश्तेदारी और दोस्तीयारी में उधार मांग कर वापस न लौटाने वाले कुख्यात लोगों को टरकाना ही बेहतर होता है.

– रिश्तेदारी में ब्याज लेना एक असमंजस वाली बात है, इस से यथासंभव बचा जाना चाहिए. आप कोई बनिए या सूदखोर नहीं हैं जो जरा सी रकम के लिए रिश्तेदारी में अपनी इमेज बिगाड़ें. यही बात दोस्तों पर लागू होती है.

– सब से अहम बात यह है कि पहले देख लें कि आप के पास देने लायक अतिरिक्त पैसा है या नहीं. भावुकता में खुद यहांवहां से पैसा जुगाड़ कर किसी को उधार देना बुद्धिमानी की बात नहीं. इस के अलावा झूठी शान, भभके या दिखावे, रिश्तेदारी या दोस्ती में धाक जमाने के लिए उधार न दें.

– हर समय तकाजा न करें, न ही 4 लोगों के सामने अपनी ही उधारी का गाना गाएं. इस से कुछ हासिल नहीं होता, सिवा इस के कि उधारी मांगने वाले कुछ दूसरे भी पैदा हो जाते हैं.

– वक्त पर पैसा वापस न मिले तो धैर्य से काम लें और फिर नियमित अंतराल से तकाजा करें. इस के बाद भी बात न बने तो लेने वाले को अपमानित करने में हर्ज नहीं. लेकिन यह अपमान शिष्ट तरीके का होना चाहिए.

– बड़ी उधारी अकाउंटपेयी चैक से दें.

लेने वाले भी सोचें

– यह न सोचें कि जिस अपने ने जरूरत के वक्त आर्थिक मदद की है या उस की मजबूरी या रिश्ता निभाने की शर्त थी, बल्कि सोचें यह कि उस ने उदारता और अपनापन दिखाया, इस बाबत उस के आभारी रहें.

– अगर देने वाला अमीर है तो यह भी न सोचें कि उसे पैसों की क्या जरूरत. जब ज्यादा पैसे होंगे तब दे देंगे जैसी सोच से बचें, यह एक तरह की एहसानफरामोशी और चालाकी है जो अपनेपन को दरकाती है.

– अगर तयशुदा वक्त पर किसी वजह से पैसों का इंतजाम न हो तो पूरे कारण और हालात से देने वाले को अवगत कराएं और मियाद बढ़वाएं. लेकिन ऐसा बारबार करना आप की इमेज बिगाड़ने वाली बात होगी, इसलिए वक्त पर पैसा लौटाने की कोशिश करें.

– उधार ले कर कतराएं नहीं, बल्कि देनदार के संपर्क में रहें और कभीकभार उसे बताएं कि आप पैसा वापसी के प्रति गंभीर हैं, इस से उसे बेफिक्री रहेगी.

– अगर रकम ज्यादा है तो खुद अपनी तरफ से वैधानिक लिखापढ़ी की पहल करें. इस से एक फायदा यह होगा कि आप भी लापरवाही के शिकार होने से बच जाएंगे.

– उधार मांगने की नौबत महज जरूरत की वजह से नहीं, बल्कि कभीकभार आप के फुजूलखर्ची होने और बचत की आदत न होने से भी पड़ती है. इसलिए इस तरफ ध्यान दें कि खर्च आमदनी के मुताबिक रखें जिस से मांगने की नौबत ही न आए.

यह भी सोचें

– अपनी नीयत साफ रखें, पैसा हड़पने की बात मन में न लाएं.

– अगर देने वाला असमर्थता जता रहा है या कन्नी काट रहा है तो मांगने के लिए उस के पीछे न पड़ जाएं. इस से तो अपनापन उधारी की डील के पहले ही खत्म हो जाएगा.

– जरूरत के वक्त आपस वालों से उधार लेना हर्ज या शर्म की बात नहीं. लेकिन आप खुद देखें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आप अपना पैसा दबा कर उधार मांग रहे हैं. यह तो उधारी पूर्व की बेईमानी है, इस से बचें.

– पैसा लौटाने के बाद हृदय देने वाले का आभार व्यक्त करें. यह न केवल शिष्टता की, बल्कि नैतिकता का भी तकाजा है.

– एकमुश्त न दे पाएं तो ली गई राशि किस्तों में लौटाएं.

नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान तीन गुना हुआ

नोटबंदी के बाद देश का आम नागरिक जब नकदी की कमी से परेशान था तो सरकार ने इस के विकल्प के रूप में डिजिटल भुगतान की सुविधा का सुझाव दिया था. आरंभ में विपक्षी दलों के साथ ही कई सामाजिक संगठनों ने इसे बेतुका सुझाव बता कर सरकार का मजाक उड़ाया था. उन का कहना था कि जिस देश की लगभग पूरी आबादी नकदी में लेनदेन करने की आदी है वह डिजिटल भुगतान का रुख नहीं कर सकती. अपने सुझाव से सरकार ने सिर्फ जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का प्रयास मात्र किया है.

नोटबंदी से जब नकदी का अभाव बढ़ने लगा मोबीक्विक तथा पेटीएम जैसी डिजिटल भुगतान कंपनियों के कारोबार बढ़ने लगे. चाय की दुकानों पर चाय का डिजिटल भुगतान होने लगा.

भारतीय भुगतान परिषद के  अनुसार, देश में भुगतान कारोबार नोटबंदी के पहले के 20 फीसदी से बढ़ कर 60 फीसदी के आसपास पहुंच गया है. मतलब 1 साल पहले डिजिटल भुगतान 20 से 50 प्रतिशत के बीच  था जो अब 40 से 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है. इस बीच, औनलाइन फ्रौड की खबरें भी तेजी से आ रही हैं. एटीएम कोड ले कर लोगों के खातों में सेंध लगाए जाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. सरकार को इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है ताकि औनलाइन बैंकिंग व अन्य कारोबार के प्रति लोगों को ज्यादा आकर्षित किया जा सके.

ईपीएफओ की विदेश सेवा

कर्मचारियों के कल्याण के लिए काम करने वाली इंडिया की सब से बड़ी संस्था कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ ने अपने नागरिकों को विदेशों में भी काम करते हुए घरेलू कर्मचारी भविष्य निधि योजना का लाभ देने के लिए कुछ देशों के साथ समझौता किया है जिस से भारतीय कामगार संबंधित देश की सामाजिक सुरक्षा योजना के दायरे में नहीं आएंगे और उन्हें अपने भुगतान के लिए परेशान भी नहीं होना पड़ेगा.

ईपीएफओ ने इस के लिए फ्रांस, जरमनी, डेनमार्क, कनाडा, आस्ट्रिया, आस्ट्रेलिया, जापान सहित 18 देशों के साथ समझौता कर लिया है और इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की दिशा में काम चल रहा है. ईपीएफओ सवा 9 लाख कंपनियों को कवर कर 60 लाख से ज्यादा लोगों को पैंशन की सुविधा दे रहा है और करीब 5 करोड़ लोग उस के सदस्य हैं. उस की कर्मचारी कल्याण योजनाओं का लाभ विदेशों में काम करने वाले भारतीयों को मिले, इस के लिए उस ने कई देशों के साथ समझौता करने का फैसला किया है.

संगठन का कहना है कि उस की इस योजना का सर्वाधिक लाभ उन लोगों को होगा जो कम अवधि के लिए विदेशों में काम करने जाते हैं. ईपीएफओ का कहना है कि उस की इस सुविधा का लाभ लेने के लिए औनलाइन सेवा शुरू की गई है और औनलाइन फौर्म भर कर इस सेवा के लिए आवेदन किया जा सकता है. उस की वैबसाइट पर एक पन्ने का निर्धारित फौर्म है जिसे भर कर औनलाइन जमा कर देना है.

इस सुविधा से दोहरे सामाजिक सुरक्षा भुगतान के दायित्व से बचा जा सकेगा, साथ ही, भुगतान में आने वाले विलंब से भी मुक्ति मिलेगी. यह संगठन देश में कर्मचारियों के कल्याण के लिए काम करने वाला महत्त्वपूर्ण संगठन है जो लोगों को सेवा देने के लिए निरंतर नई पहल कर रहा है और सुविधा को सरल बना रहा है.

 

कारोबार सुगमता रैंकिंग सुधार के अभियान में जुटी सरकार

नोटबंदी के बाद आर्थिक स्तर पर लगातार विपक्षी दलों की आलोचना से घिरी सरकार के लिए वैश्विक सर्वेक्षणों की नकारात्मक आर्थिक रिपोर्टें काफी परेशान कर रही थीं लेकिन इसी बीच, विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में सुगम कारोबार के माहौल वाले देशों की सूची में भारत को मिली 30 अंक की उछाल से उस के हौसले बुलंद हो गए हैं.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कारोबार सुगमता के माहौल पर आई उस रिपोर्ट के बाद कहा कि उन्हें भरोसा हो गया है कि आर्थिक सुधारों के सरकार के प्रयास अच्छे परिणाम देने वाले हैं. कुछ आलोचकों ने तो सरकार पर उस आंकड़े को ले कर हेराफेरी का भी आरोप लगाया था लेकिन उन्हें जवाब दिया गया कि यदि यही होता है तो फिर अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सकता था.

बहरहाल, सरकार इस रिपोर्ट से उत्साहित है और उस ने घोषणाकर दी है कि उस का लक्ष्य कारोबार सुगमता रैंकिंग में भारत को शीर्ष 50 देशों में शामिल करवाना है. इस के लिए उस ने इस दिशा में करीब 200 सुधार कार्यक्रमों को लागू करने के लिए काम शुरू कर दिया है.

अब तक सरकार ने निर्माण, कराधान, निवेशकों को संरक्षण, आसानी से परमिट देना, दिवालिया नहीं होने देने जैसे उपायों पर काम किया है जिस के कारण देश में रैंकिंग में सुधार हुआ है. एकल खिड़की जैसे प्रयास देश में पहले भी होते रहे हैं और इस सतत प्रक्रिया के कारण औद्योगिक विकास को गति मिलती रही है.

सरकार को छोटे कारोबारियों को उत्साहित करने के लिए उन्हें हतोत्साहित किए जाने से रोकने के प्रयास करने चाहिए. इस से रैंकिंग सुधारने में कितनी मदद मिलेगी, यह अलग सवाल है, लेकिन इस का असर देश के कुटीर उद्योग को मिलेगा, जिस का सीधा फायदा आम व्यक्ति को होगा.

मैं ने कब कहा

मैं ने कब कहा प्रिय,

तुम से बेहद प्यार है

हर पल, हर घड़ी

तुम्हारा ही इंतजार है

वो तो निगाहें हैं,

जो उठ जाती हैं हर आहट पर

ढूंढ़ती हैं तुम्हारी छवि,

वश नहीं है खुद पर

जैसे आ ही जाओगे तुम,

कहीं से और कभी भी

इक ख्वाहिश है अंदर,

कुछ जगी सी, कुछ बुझी सी

मैं ने कब कहा सब के बीच,

तुम्हें याद करती हूं

कि बातों में तुम बसे हो

तुम्हारा ही दम भरती हूं

वो तो जबान है,

बरबस ही तुम्हारा नाम लेती है

और मेरी बातों में दुनिया,

तुम्हारा अक्स देखती है

न,न, मैं तो जिक्र भी तुम्हारा,

नहीं करती हूं कभी

पसोपेश में हूं मैं

न जानूं ये गलत है या फिर सही

मैं ने कब कहा,

अपना दिल तुम को है दिया

और इस जीवनभर का वादा

तुम से ही है किया

ये तो रातें हैं

जो मेरा मजाक सा उड़ाती हैं

न जाने मुझे क्यों

ये रातभर जगाती हैं

ख्वाब भी जो थे मेरे,

तुम्हारे साथ हो लिए हैं

तुम्हारी ही सूरत से जैसे,

सारे नाते जोड़ लिए हैं

पर शायद कुछ ऐसा हो रहा है,

अनजाना सा मेरे संग

घेरे हैं तुम्हारी यादों के बादल,

ले के साजिशों के रंग

ये बादल बेरहम मुझे,

तनहा नहीं छोड़ते कभी भी

छाए रहते हैं मनमस्तिष्क पे,

हरपल और अभी भी

पर फिर भी इस का मतलब,

इकरार न समझना

मुझे तुम से प्यार है,

ये हरगिजहरगिज न समझना.

– जयश्री वर्मा

रघुराम राजन का आम आदमी पार्टी को नो थैंक्स

शिकागो यूनिवर्सिटी में फुलटाइम नौकरी कर रहे रिजर्व बैंक औफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का वह प्रस्ताव निर्ममतापूर्वक ठुकरा दिया है जिस में उन्हें आप की तरफ से राज्यसभा में भेजे जाने की बात कही गई थी.

इस में कोई शक नहीं कि रघुराम राजन के मौजूदा केंद्र सरकार से गहरे वैचारिक मतभेद हैं, पर वे राज्यसभा जा कर उन्हें हवा नहीं देना चाहते. अब यह केजरीवाल के सोचने की बात थी कि अगर राजन की मंशा किसी ऊंचे या नीचे सदन में जाने की होती तो भाजपा तो उन्हें हाथोंहाथ लेने के लिए तैयार बैठी थी.

पार्टी की अंदरूनी कलह को राजन के नाम पर शांत करने का आप का फार्मूला या दांव बेकार ही गया है. रघुराम राजन एक दृढ़ व्यक्ति हैं और जाहिर है राजनीति में आ कर खुद अपने हाथों अपनी प्रतिभा को ग्रहण नहीं लगाना चाहते.

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