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बड़ा सवाल : किसको महंगी पड़ेगी जनेऊ पॉलिटिक्स

राहुल गांधी को उनके पिता राजीव गांधी की अन्त्येष्टि में जबरन जनेऊ पहनाया गया था, जो उन्होंने कपड़ों के ऊपर से पहन लिया था, यदि राहुल जनेऊ नहीं पहनते तो उन्हें अन्त्येष्टि में शामिल नहीं होने दिया जाता, भोपाल में जिस वक्त भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमणयम  स्वामी पत्रकारों के सामने यह रहस्योद्घाटन कर रहे थे, लगभग उसी वक्त पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी एक राज खोल रहे थे कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने एक सभा में सभी लोगों के जनेऊ उतरवा दिये थे. उनका कहना था कि हम लोगों के बीच गैर बराबरी नहीं होनी चाहिए.

जनेऊ से ताल्लुक रखते इन दोनों बयानों के अपने अलग सियासी माने हैं और विकट का विरोधाभास भी इनमे है. नीतीश ने बड़ी मासूमियत से यह भी पूछ डाला कि जो लोग जनेऊ नहीं पहनते हैं तो क्या वे हिन्दू नहीं. नीतीश को यह सवाल बजाय राहुल गांधी से पूछने के अपनी नई सहयोगी पार्टी भाजपा से करना चाहिए था क्योंकि जनेऊ पुराण के उठते ही वित्त मंत्री अरुण जेटली भाजपा को असली हिंदूवादी पार्टी करार देते विवाद को आहुति देने के मूड में थे, पर अपने ही खेमे के दूसरे, उनसे भी ज्यादा असली और महा हिंदूवादी नेता सुब्रमणयम स्वामी का मुंह तो वे भी पकड़ने की हिमाकत नहीं कर सकते थे, सो सोमनाथ मंदिर के रजिस्टर में कथित रूप से खुद का नाम गैर हिंदूवादियों के खाने में लिखाये जाने की राहुल गांधी की चालाकी या नासमझी कुछ भी कह लें राजीव गांधी की अन्त्येष्टि तक पहुंच गई. खुद स्वामी ने मान लिया कि राहुल गांधी जनेऊ धारी हिन्दू हैं.

इधर सोशल मीडिया पर एक दिलचस्प पोस्ट यह वायरल हो रही थी जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि अभी तो उसे जनेऊ पहनाया है, जल्द ही कांवड़ यात्रा पर भी भेज दूंगा. सोशल मीडिया की दुनिया से इतर बुद्धिजीवी खीझ  कर सोचने लगे थे कि क्या गुनाह हो गया जो राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर चले गए और कौन से रजिस्टर के कौन से खाने में अपना नाम लिखा दिया, भगवान के मंदिरो में एंट्री रजिस्टर रखने की तुक क्या और जनेऊ … वह तो आजकल ब्राम्ह्ण भी नहीं पहनते.

असल में खुद भाजपा जनेऊ को लेकर डरी सहमी है कि यह जनेऊ का फंदा कहीं गले में न आ जाये, क्योंकि हर कोई जानता है कि जनेऊ सवर्णों और उनमे भी ब्रामहणों की पहचान हुआ करता था (और आज भी है). पिछड़ों और दलितों को जनेऊ पहनने की इजाजत नहीं है, जिसे लेकर वे कुंठित और क्रुद्ध रहते हैं और इस हद तक रहते हैं कि खुद ही जनेऊ नहीं पहनते. भीमराव अंबेडकर तो जनेऊ का खुलेआम विरोध यह कहते करते थे कि यह सूत का धागा बीस फीसदी ऊंची जाति वालों के दबदबे और पहचान की निशानी है. यह कथन भी सोशल मीडिया पर चला कि दलित आदिवासी और पिछड़े कैसे खुद को हिन्दू साबित करेंगे.

बात और विवाद इस मुकाम तक आने लगा कि हिन्दू वही है जिसके कान में ब्रम्हा, विष्णु और महेश के प्रतीक तीन धागे जनेऊ के लटके हों तो भगवा खेमे में खलबली मच गई, क्योंकि इस पैमाने पर तो सवर्ण ही हिन्दू बच रहे थे, जो गुजरात विधानसभा चुनाव के लिहाज से दलितों के गुस्से की आग में घी डालने जैसी बात थी, लेकिन धोखे से ही सही जनेऊ विवाद भगवा खेमे के गले की हड्डी बन गया है जिसे वह न उगल पा रहा न निगल पा रहा.

गैर जनेऊ धारी हिन्दू फिर हीनभावना से घिरते खुद के हिन्दू होने को लेकर असमंजस से घिर गया है जिसका तोड़ निकालने विशेषज्ञ सक्रिय हो गए हैं कि ऐसा कोई उदाहरण धर्मग्रन्थों से निकाल लाएं, जिससे यह साबित होता हो कि फलां शूद्र का यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था. चूंकि तमाम संस्कार करवाने का ठेका ब्राह्मणों का होता है इसलिए ऐसा उदाहरण ढूँढे से नहीं मिल रहा है,  हां यह प्रचार जरूर जोर पकड़ रहा है कि धर्मग्रंथों में सभी को जनेऊ धारण करने की छूट है, लेकिन इस सवाल का जबाब नहीं मिल रहा है कि अगर ऐसा है तो छोटी जाति बाले जनेऊ क्यों नहीं पहनते.

अब मैसेज का जवाब ना दे पाने पर व्हाट्सऐप खुद कर देगा औटो रिप्लाई

व्हाट्सऐप एक ऐसा लोकप्रिय मैसेजिंग ऐप है, जिसके जरिए लोग व्यस्त होने के बावजूद एक दूसरे से बात करते रहते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आप अपनों के मैसेज का रिप्लाई नहीं दे पाते.

इसी को ध्यान में रखते हुए हम अपनी इस खबर में ऐसी ट्रिक बताने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप अपने स्मार्टफोन को छुए बिना सामने वाले यूजर को रिप्लाई कर सकते है. तो आइये जानते है कि कैसे व्हाट्सऐप करता है औटो-रिप्लाई.

औनलाइन कई ऐसी ऐप्स हैं जो आपको व्हाट्सऐप में औटो रिप्लाई करने में मदद करती है. इसके लिए सबसे पहले यूजर को स्मार्टफोन में “AutoResponder for WhatsApp” एप को इन्स्टौल करना होता है. ये एक फ्री ऐप है.

इस एप को इन्स्टौल करने के बाद आपको यह ऐप अपने व्हाट्सऐप अकाउंट से लिंक करना होगा, जिसके बाद सेटिंग्स में कुछ बदलाव करके आप किसी भी मैसेज का औटो-रिप्लाई कर सकते हैं.

कैसे करें इस्तेमाल?

  • सबसे पहले फोन में इस ऐप को डाउनलोड कर इसे इंस्टौल कर लें. अब AutoResponder for WhatsApp ऐप को ओपन करें.
  • अब नोटिफिकेशन सेटिंग पर क्लिक करें और ऐप को नोटिफिकेशन एक्सेस के लिए अनुमति दें.
  • इसके बाद नए नियम बनाने के लिए “+” आइकन पर क्लिक करें.
  • अब आप “Received Message” सेक्शन में जो भी मैसेज भेजना हो, उसे रिप्लाई टेक्स्ट में जाकर लिख सकते हैं.
  • इसी तरह आप “Reply Message” सेक्शन में जो भी मैसेज भेजना हो, उसे टाइप कर एंटर करें.
  • अब आप स्क्रौल डाउन कर रिसीवर को सेलेक्ट करें. कौन्टैक्ट, ग्रुप या दोनों को.
  • अगर आप किसी खास कौन्टैक्ट को औटोमेटिक रिप्लाई भेजना चाहते हैं तो “Specific Contacts” सेक्शन में उस कौन्टैक्ट को एंटर करें या “Ignored Contacts” सेक्शन उस कौन्टैक्ट को एंटर करें जिन्हें आप औटोमेटिक रिप्लाई नहीं भेजना चाहते हैं.
  • पूरी सेटिंग करने के बाद Tick Button पर क्लिक करें.
  • अब आपके पास जैसे ही कोई मेसेज आएगा तो आपकी तरफ से आपका वो मैसेज सेंड हो जाएगा.

इसके अलावा, आप ‘Auto-reply for WhatsApp’ ऐप का भी इस्तेमाल कर व्हाट्सऐप पर अपने कौन्टैक्ट्स को औटो रिप्लाई कर सकते हैं.

कैसे करे सेटिंग्स?

  • इंस्टौल होने के बाद ऐप को ओपन करें, जिसके बाद आपको एक Grant Permission का मैसेज आएगा.
  • इसके लिए यूजर को नोटिफिकेशन एक्सेस पर जाकर व्हाट्सऐप रिप्लाई ऐप को औन करना होता है.
  • अब ऐप ओपन होने के बाद औटो-रिप्लाई का टाइम और औटो-रिप्लाई का फीचर नजर आने लगेगा.
  • अगर आप ग्रुप में औटो रिप्लाई नहीं करना चाहते, तो आप Enable औप्शन से टिक हटा सकते हैं.
  • औटो रिप्लाई में आपको जो भी मैसेज भेजना हो, उसे रिप्लाई टेक्स्ट में जाकर लिख सकते हैं.
  • अब आपके पास जैसे ही कोई मेसेज आएगा तो आपके तय किये हुए समय पर आपका वो मैसेज सेंड हो जाएगा.
  • आप जब न चाहें तो औटो-रिप्लाई के फीचर को ऊपर की तरफ से डिसेबल भी कर सकते हैं.

पत्नी व देश का संविधान : पत्नी से लेकर कामवाली तक सबने किया मेरा मुंह बंद

इस समय देश का हर नागरिक संवैधानिक हो गया है. अवैधानिक काम करने वाला भी बातबात में संविधान की बात कर रहा है. एक कहता है कि भारतमाता की जय बोलना संविधान में कहां लिखा है, तो दूसरा कहता है कि कहां लिखा है कि नहीं बोल सकते.

अब छोटीछोटी बात में भी लोग संविधान की आड़ ले रहे हैं.  हमारा एक दोस्त मैसेजेस का जवाब नहीं देता था. एक दिन हम ने मैसेज किया कि भाई, थोड़ा सा सोशल हो जा सोशल मीडिया में, तो उस का मैसेज आ गया कि कहां लिखा है संविधान में कि हर मैसेज का जवाब देना आवश्यक है. मैं ने कहा कि यार, तूने तो मिलियन डौलर का प्रश्न खड़ा कर दिया. तू सही कह रहा है कि नहीं, यह मैं कैसे सही या गलत ठहराऊं.

अब यह संविधान की आड़ लेने वाली बात छूत के रोग की तरह हर तरफ फैलती जा रही है. उस दिन मैं सब्जी बाजार में था. मैं ने मोलभाव करना चाहा, तो सब्जी वाला बोला, ‘साहब पढ़ेलिखे हो कर भी एक दाम की तख्ती आप ने नहीं पढ़ी. संविधान में मोलभाव करने का उल्लेख नहीं है. कहां लिखा है, यदि लिखा हो तो हमें बताएं.’ मैं बहुत देर तक उस का थोबड़ा देखता रहा कि अब तो सब्जी मंडी में भी सब्जी वाला सब्जीभाजी की कम, संविधान की ज्यादा जानकारी रखने लगा है.

संविधान गलीकूचेबाजार से होते हुए घर के किचन में कब घर कर गया, हमें वैसे ही भान ही नहीं हुआ जैसे दिल्ली में भाजपाकांग्रेस का सफाया होने का नहीं हुआ था. पिछले रविवार को मैं ने पत्नी के सामने इच्छा प्रकट की कि आज रविवार है, कुछ खास डिश हो जाए? तो उस ने आंखें तरेर लीं कि पत्नी रविवार को पति के लिए खास डिश तैयार करेगी, यह संविधान में कहां लिखा है.

मैं भौचक था इस संविधान के घर के रसोई तक आ पहुंचने से. मैं ने सोचा, यह बाहर जो हवा बह रही है, शायद उसी का परिणाम है. वैसे, इस देश में आजकल किसी भी बात की हवा के चहुंओर पहुंचने में समय नहीं लगता है. मेड 2 दिन नहीं आई. वैसे यह कोई नई बात नहीं है. मेड इस तरह से मेड है कि वह आकस्मिक रूप से कभी भी गायब हो जाती है. पत्नी ने पूछ लिया कि 2 दिन कहां रही, बिना बताए छुट्टी मार ली, ऐसे नहीं चलेगा? तो वह हाथ नचा कर बोली कि संविधान में कहां लिखा है कि 2 दिन मेड बिना बताए नहीं आ सकती? और मैडमजी, आप की यह पड़ताल गैरसंवैधानिक ढंग की लग रही है? मैं मेड के संविधान के प्रति अचानक उपज आई सजगता से अचंभित था.

गांवों में नईनवेली आई पत्नियों के शौचालय के अभाव में ससुराल छोड़ने के तो आप ने कई किस्से पढ़े होंगे. अब नईनवेली बहू को किसी ने ज्ञान देने की कोशिश की कि सुबह उठ कर सासससुर के पैर छूना चाहिए. तो वह बोली कि फिर कहना कि रात को सास के पैर दबाना चाहिए. उस ने आंख मार कर आगे कहा कि संविधान में ऐसा कुछ नहीं लिखा है, इसलिए वह बाध्य नहीं है. उस के आराध्य न पति है और न सास. उस का कैरियर ही उस का आराध्य है, उस का संविधान है.

महिला मंडल की किटी पार्टियों का यह मौसम है. हम ने एक दिन हिम्मत बटोर कर, पत्नी से कहा कि अब किटी पार्टियां बंद कर दो क्योंकि बच्चों की परीक्षा नजदीक आ रही है. तो वह बोली कि संविधान का अध्ययन कर लो, उस में ऐसा कहीं लिखा नहीं है. मैं ने कहा कि बहुत जवाब देने लगी हो? तो वह तपाक से बोली कि संविधान में यह कहां लिखा है कि पत्नी केवल सुन सकती है, पलट कर जवाब नहीं दे सकती. आगे वह बोली, ‘‘जब मोदीजी कह रहे हैं कि उन का धर्म देश का संविधान है तो फिर हम कैसे इस का सम्मान करने में पीछे रह सकते हैं.’’

बौस के घर में एक कार्यक्रम था. हम ने पत्नी से गुजारिश की कि चलना है तो वह तपाक से बोली कि संविधान में कहां लिखा है कि पत्नी का बौस के यहां के हर बोरिंग फंक्शन में जाना जरूरी है. बौस आप का होगा, हमें तो उस दिन किटी पार्टी में जाना है.

ये दोटूक बातें आजकल संविधान की बैकिंग के कारण हमें हर जगह सुनने को मिल रही हैं. सरकार ने डाक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस करने से रोका क्या, कि उन की यूनियन खड़ी हो गई कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है कि डाक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकता. उस ने तो शपथ ली हुई है मरीज का इलाज करने की. इस के बदले में यदि स्वेच्छा से कोई मरीज कुछ दे जाता है तो इस के लिए डाक्टर कहां जिम्मेदार है?

शाम को पत्नी घर पर नहीं थी. चाय खुद बनानी पड़ी. वह 8 बजे घर में आई. हम पूछ बैठे कि कहां चली गई थी, हमें चाय भी आज खुद ही बनानी पड़ी? हमारा इतना कहना था कि वह बिफर गई, नहीं, सही कर लेता हूं कि वह भड़क पड़ी. ध्यान रहे पत्नियां अकसर भड़कती हैं पति नामक जीव पर. और पति की बोलती बंद हो जाती है, ले बच्चू अब ऊंट पहाड़ के नीचे आया है. वह बोली कि देश के संविधान में कहां लिखा है कि मैं कहीं जाऊंगी तो पूछ कर जाऊं और आगे भी कि यह कहां लिखा है कि चाय रोज मैं ही बना कर दूंगी. और संवैधानिक जानकारी लो, काम आएगी कि, संविधान में पति द्वारा चाय बना कर पत्नी को पिलाने की कोई रोक नहीं है? सो, तुम्हें तो अपनी चाय के साथ ही एक अदद चाय मेरे लिए भी बना कर थर्मस में रख देनी थी.

मैं अब निरुत्तर था. आप के पास कोई उपाय हो तो बताएं संविधान के घेरे से निकलने का. वैसे, आप की भी स्थिति मेरे से कम बदतर नहीं होगी, यह मैं जानता हूं, फिर भी आप से पूछ रहा हूं.

जानिए अपने वित्तीय अधिकार जो देश का कानून आपको देता है

देश के मौजूदा कानून ने एक आम भारतीय को कई अधिकार दे रखे हैं, जिन से बहुत से लोग अनजान हैं. आइए जानते हैं, कुछ अहम वित्तीय अधिकारों को:

इंश्योरैंस पौलिसी वापस करने का अधिकार

अगर आप ने कोई बीमा पौलिसी खरीदी है और लेते ही आप के मन में पछतावा हो कि आप का यह निर्णय गलत हो गया तो आप पौलिसी डौक्यूमैंट मिलने के 15 दिनों के भीतर उसे वापस लौटा सकते हैं. सोचनेसमझने की यह समयावधि 3 साल या अधिक समय के लिए की गई सभी जीवन बीमा पौलिसियों व स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए वैध है.

पौलिसी वापस करने के लिए आप को एक आवेदनपत्र लिखना पड़ेगा. ज्यादातर बीमा कंपनियों ने इस के लिए फौर्म डाउनलोड कर रखे हैं जिन्हें आप अपनी वैबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं. इसे आप को खुद कंपनी में जमा करवाना चाहिए, क्योंकि एजेंट अपने कमीशन के चक्कर में आप को धोखा दे सकता है और जानबूझ कर 15 दिनों का समय बिता सकता है.

ऋणदाता द्वारा दुर्व्यवहार से सुरक्षा

आप ने किसी भी वित्तीय संस्था, (बैंक/फाइनैंस कंपनी) निजी कंपनी या फिर व्यक्ति से ऋण लिया है और किसी कारणवश उसे लौटा नहीं पा रहे हैं तो भी ऋणदाता या उन के रिकवरी एजेंट आप के साथ बदतमीजी से पेश नहीं आ सकते हैं. सब से पहले ऋणदाता आप को 60 दिनों का समय देते हुए एक नोटिस देगा. इस बीच आप ऋणदाता के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं.

ऋणदाता इस समयावधि में आप के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकता और उसे आप ने मिलने या कौल करने के लिए सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे का ही समय चुनना होगा. आधी रात में फोन करना या धमकाना कानूनन जुर्म है. आप इस के लिए अधिकारियों से शिकायत कर सकते हैं या फिर पुलिस स्टेशन में एफआईआर भी लिखवा सकते हैं.

टैक्स रिफंड 90 दिनों के भीतर मिलना चाहिए

अगर आप का विभिन्न मदों में टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) कटा है और आप का टैक्स उस से कम बनता है तो आयकर विभाग टैक्स काटने के बाद की रकम आप को लौटा देता है. यह राशि आप को इनकम टैक्स रिटर्न जमा देने के 90 दिनों के भीतर प्राप्त करने का अधिकार है.

अगर विभाग आप की अतिरिक्त रकम लौटाने में देर करता है तो 0.5 फीसदी प्रतिमाह की दर से आप को ब्याज हासिल करने का अधिकार है. यह ब्याज आप द्वारा रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न फाइल करने के बावजूद मिलेगा. अगर आप को 90 दिनों में टीडीएस रिफंड नहीं मिलता है तो आप संबंधित अधिकारी से निवेदन कर सकते हैं.

संपत्ति पर अधिकार समय पर प्राप्त होना चाहिए

जब आप कोई प्रौपर्टी (फ्लैट या मकान) खरीदते हैं तो खरीदारी के वक्त तय समय सीमा के भीतर उस पर कब्जा करने का अधिकार भी मिल जाता है. किसी कारणवश बिल्डर प्रोजैक्ट में देरी कर रहा हो और तय समयावधि में आप को फ्लैट या मकान में कब्जा न दे पा रहा हो तो आप ईएएमआई में लग रही ब्याज के समान दर की वसूली के हकदार हैं. आप चाहें तो उस के पास अपनी बकाया रकम की मांग भी कर सकते हैं.

आप के द्वारा दावा करने के 45 दिनों के भीतर बिल्डर को रकम लौटानी होगी. अगर बिल्डर आप की बात न सुने तो आप अपने राज्य की रीयल एस्टेट रैगुलेटरी औथरिटी के पास इस की शिकायत कर सकते हैं. प्राधिकरण द्वारा 60 दिनों में शिकायत का निबटारा अपेक्षित है.

लौकर सुविधा पाने का अधिकार

किसी बैंक में लौकर लेने के लिए आप को न तो वहां बचत खाता खोलने के लिए और न ही उन का प्रोडक्ट खरीदने के लिए बाध्य किया जा सकता है. हां, बैंक आप से एक फिक्स डिपौजिट मांग सकता है जिस में 3 साल का किराया व अन्य शुल्क वसूल हो सके. अगर बैंक लौकर उपलब्ध न होने का दावा करता है तो आप उन से वेट लिस्ट मांग सकते हैं, जिस से उन के दावे की सत्यता जांची जा सकती है.

अगर बैंक उपलब्धता के बावजूद लौकर न दें तो आप वहां की ग्रीवैंस सेल में शिकायत करें. इस के बावजूद मामले की सुनवाई न हो तो ओंबड्समैन या रिजर्व बैंक को शिकायत करें.

रैस्टोरैंट में सर्विस चार्ज न देने का अधिकार

अगर आप किसी रेस्तरां की सेवाओं से खुश नहीं हैं तो आप बिल में लगाए गए सर्विस चार्ज को देने से मना कर सकते हैं. सर्विस चार्ज सर्विस टैक्स या वैट की तरह कोई सरकारी लेवी नहीं है और यह सीधेसीधे रेस्तरां मालिक की जेब में जाती है. अगर रेस्तरां के कर्मचारी या मालिक इस के लिए जोरजबरदस्ती या झगड़ा करें तो आप उपभोक्ता मामलों के विभाग में शिकायत दर्ज करवा सकते हैं. हां, बिल अवश्य साथ में ले लें.

म्यूचुअल फंड मैंडेट में बदलाव जानने का हक

आप किसी खास म्यूचुअल फंड में पैसा तभी लगाते हैं जब आप को उस की निवेश पौलिसी पसंद आती है, लेकिन किन्हीं कारणों से अगर म्यूचुअल फंड कंपनी निवेश नीति में बदलाव करती है और पहले से बिलकुल अलग सेजमैंट में अपना पैसा निवेश करने की योजना बनाती है तो उसे अपने निवेशकों को इस की पूर्व सूचना देनी पड़ेगी. अगर आप को कंपनी की नई निवेश नीति पसंद नहीं तो आप बिना कोई एग्जिट चार्ज दिए इस में से निकल सकते हैं.

अनधिकृत कार्ड ट्रांजैक्शन के पेमैंट से इनकार

अगर आप के डैबिट या क्रैडिट कार्ड से अनधिकृत भुगतान किया गया है और आप को इस की जानकारी नहीं है तो आप इस के पेमैंट के लिए मना कर सकते हैं. लेकिन आप को यह प्रमाणित करना होगा कि आप ने ऐसा कोई ट्रांजैक्शन नहीं किया. किसी भी प्रकार के अनधिकृत लेनदेन का पता चलते ही सब से पहले बैंक से लिखित शिकायत करें और कार्ड को ब्लौक करने का निर्देश दें. इस के बाद आप को पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट भी लिखवानी चाहिए.

कमीशन की राशि जानने का अधिकार

आप को यह जानने का अधिकार है कि आप को बेची गई पौलिसी या म्यूचुअल फंड प्रोडक्ट से आप को इंश्योरैंस एजेंट या फंड डिस्ट्रीब्यूटर ने कितना कमीशन कमाया है. आप के पूछने पर इंश्योरैंस एजेंट आप को कमीशन की राशि बताने के लिए बाध्य है. इसी प्रकार म्यूचुअल फंड कंपनी डिस्ट्रीब्यूटर को कितना कमीशन दे रही है, यह अकाउंट स्टेटमैंट में लिखने का चलन है. अगर आप के चाहने के बावजूद आप को इन सूचनाओं से वंचित रखा जाता है तो आप म्यूचुअल फंड्स के लिए सेबी और इंश्योरैंस के लिए आइआरडीएआई से संपर्क कर के शिकायत कर सकते हैं.

(कोलकाता हाईकोर्ट के वकील इंद्रनील चंद्र, फाइनैंस एडवाइजर प्रदीप अग्रवाल, सीए जतिन मित्तल, सीए चीनू शर्मा, सीएस गौतम दुगड़ से बातचीत पर आधारित).

लोन लेने से पहले इन जरूरी बातों पर भी ध्यान दें

हर व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी कर्ज लेने की आवश्यकता पड़ती है. जरूरत के हिसाब से कर्ज छोटा या बड़ा हो सकता है. मसलन, घर या गाड़ी खरीदते समय हमें बैंक से लोन लेने की जरूरत पड़ती है. इसी तरह अचानक किसी बड़े खर्चे के आ जाने पर हम अपने किसी दोस्त, रिश्तेदार या औफिस में साथ काम करने वाले व्यक्ति से पैसे उधार लेते हैं अन्यथा बड़े खर्चे का भुगतान क्रैडिट कार्ड से कर के उस को सुविधानुसार भविष्य में चुकाते हैं. इस तरह कर्ज भले छोटा हो या बड़ा, इस की जरूरत समयसमय पर हर किसी को पड़ती रहती है. कर्ज लेने से पहले जरूरी इन 9 बातों को ध्यान में जरूर रखें. ऐसा करने पर न तो आप कभी कर्ज के जाल में फंसेंगे और न ही आप को अपना बजट गड़बड़ाता महसूस होगा.

रिपेमैंट कैपेसिटी के अनुरूप ही लें उधार

कर्ज किसी भी माध्यम से लें, इतना जरूर ध्यान रखें कि यह रकम आप की कर्ज चुकाने की क्षमता के हिसाब से ही हो. यानी अपनी नियमित आय से पैसा बचा कर आप लोन की रकम एक निश्चित समय में चुका सकने में सक्षम हों. विशेषज्ञ मानते हैं कि आप के कुल कर्ज की मासिक किस्त आप की मासिक आय के 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

उदाहरण के तौर पर अगर आप 40,000 रुपए महीना कमाते हैं तो आप के सभी प्रकार के कर्ज की ईएमआई 6,000 रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इस से ज्यादा ईएमआई होने पर आप की भविष्य की योजनाएं या मासिक बजट प्रभावित हो सकता है.

ईएमआई निश्चित समय पर दें

इस बात का ध्यान जरूर रखें कि कर्ज चाहे छोटे समय के लिए हो, जैसे कि क्रैडिट कार्ड का बिल या लंबी अवधि का, जैसे होम लोन, भुगतान समय पर करें. अगर आप एक भी किस्त देने से चूक जाते हैं या फिर पेमैंट में देरी करते हैं तो इस का असर सीधा क्रैडिट प्रोफाइल पर पड़ता है. जिस के कारण भविष्य में लोने पाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

कर्ज कम से कम समयावधि के लिए लें

कर्ज चुकाने की समयावधि जितनी लंबी होती है उतनी ही ज्यादा राशि आप को लोन के भुगतान में चुकानी होती है. ऐसा माना जाता है कि लोन का कार्यकाल जितना छोटा हो उतना अच्छा है. कर्ज चुकाने की समयावधि बढ़ाने पर ईएमआई की राशि तो कम हो जाती है लेकिन कर्जदाता की ओर से चुकाई जाने वाली कुल रकम बढ़ जाती है.

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि कार्तिक ने 10 फीसदी की दर से 50 लाख रुपए का लोन 20 वर्षों के लिए लिया है. इस में उस की ईएमआई 48,251 रुपए होगी. अगर वह अपनी ईएमआई 5 फीसदी सालाना की दर से बढ़ा दे, तो यह लोन 12 साल में पूरा हो सकता है. वहीं ईएमआई 10 फीसदी की दर से सालाना बढ़ा देने पर लोन 9 वर्ष 3 महीने में खत्म हो जाएगा.

निवेश करने या फुजूलखर्ची के लिए कर्ज

निवेश करने के लिए पैसे उधार न लें. निश्चित रिटर्न देने वाले निवेश विकल्प, जैसे फिक्सड डिपौजिट, बौंड कभी भी लोन पर लिए जाने वाले ब्याज की बराबरी नहीं कर सकते. इक्विटी में निवेश बेहद अस्थिर होते हैं. अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कभी भी लोन न लें.

भविष्य की योजनाओं को प्रभावित न करें

सरल शब्दों में समझें तो कभी भी अपने बच्चों की पढ़ाई या शादी के लिए रिटायरमैंट फंड का इस्तेमाल न करें. पढ़ाई के लिए लोन और स्कौलरशिप जैसे विकल्प मौजूद हैं जिन में पढ़ाई का खर्चा कवर होता है. लेकिन बाजार में ऐसा कोई आकर्षक प्रोडक्ट नहीं जिस के जरिए आप अपनी रिटायरमैंट की जरूरतों को पूरा कर सकें. ध्यान रखें कि रिटायरमैंट योजना भी बच्चे की पढ़ाई जितनी ही जरूरी होती है. एक अच्छी फाइनैंशियल प्लानिंग की खासियत यही है कि एक जरूरत को पूरा करने के लिए दूसरी जरूरी चीज के प्लान को प्रभावित न करे.

सभी कर्ज एक जगह से लेने का प्रयास करें

अगर आप ने एक से ज्यादा लोन ले रखे हैं और ये सब अलगअलग बैंक या वित्तीय कंपनियों से हैं तो कोशिश करें कि इन सभी को एक ही बैंक या वित्तीय कंपनी में ट्रांसफर करवा लें. लोन की रकम एक जगह हो जाने पर बैंक आप को बैलेंस ट्रांसफर जैसी सुविधाओं के अंतर्गत आकर्षक ब्याज दरें औफर कर सकता है. ऐसा करने से आप पर ईएमआई का बोझ कम हो जाएगा. साथ ही, समयसमय पर मिलने वाली अतिरिक्त आय का भी इस्तेमाल कर्ज चुकाने के लिए करें. अगर आप नौकरीपेशा हैं तो कंपनी में बोनस मिलने पर, इंक्रीमैंट या इंसैंटिव हाथ आने पर आप को अपने कर्ज का भुगतान कर देना चाहिए.

बड़ी राशि वाले लोन के साथ इंश्योरैंस जरूर लें

अगर आप होम लोन या कार लोन जैसा कोई बड़ा लोन लेते हैं तो साथ में इंश्योरैंस लेना न भूलें. जैसे कि लोन की राशि के बराबर का टर्म प्लान लें. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप को कुछ हो जाता है और आप पर आश्रित लोग ईएमआई नहीं चुका पाते तो कर्जदाता आप के एसेट्स ले लेता है. टर्म प्लान लेने से आप की अनुपस्थिति में घर वालों को आर्थिक तंगी से नहीं जूझना पड़ेगा.

कर्ज से जुड़ी शर्तें जरूर पढ़ें

किसी भी आकस्मिक स्थिति से बचने के लिए लोन लेते समय नियम व शर्तें जरूर पढ़ें. अगर आप कानूनी दस्तावेज का संदर्भ नहीं समझ पा रहे हैं तो किसी वित्तीय सलाहकार की मदद लें.

खरीदारी करते समय कीमतों की तुलना कर लें

अगर आप कर्ज ले कर कोई संपत्ति खरीद रहे हैं तो बाजार में कीमतों की तुलना जरूर कर लें. सही डील मिलने पर आप को हो सकता है कि कम राशि का ही लोन लेना पड़े. लोन की राशि जितनी कम होगी, कर्जदाता के लिए उतना ही अच्छा होगा.

सरकार, न्यायाधीश, अदालतें : सुप्रीम कोर्ट की खुद की नियुक्तियों पर सवाल

इंदिरा गांधी के युग में कई वर्षों तक उच्च व सर्वोच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियां कानून मंत्री ही करते थे और स्वाभाविक है कि इन पर इंदिरा गांधी की मुहर होती थी. धीरेधीरे सुप्रीम कोर्ट ने यह अधिकार अपने हाथों में ले लिया, क्योंकि इन नियुक्तियों में सरकारी पक्ष का समर्थन करने वाले ही ज्यादा जज होते थे. यह बात दूसरी कि पहले के समर्थक नियुक्ति के बाद आमतौर पर स्वतंत्र हो जाते और सरकार के विरुद्घ फैसले लेने से हिचकते नहीं थे.

अब सुप्रीम कोर्ट की खुद की नियुक्तियों पर सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार के इस अधिकार को वापस लेने की चेष्टा पर पानी फेर दिया है. सरकार के समर्थक सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों में कोलेजियम द्वारा की गई नियुक्तियों में दोष निकालने में लग गए हैं. कर्नाटक के एक जज न्यायाधीश जयंत पटेल का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में कर देने के सवाल पर विवाद को ले कर इस सर्कल में खासा हल्ला मच रहा है.

आज जनता को इस विवाद से लंबाचौड़ा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि यह खेल दरबारियों की अपनी राजनीति का है और छनछना कर जब फैसलों का असर आम नागरिक तक पहुंचता है तो उसे लगता है कि फैसला तो कहीं के सरकारी अधिकारी का है. वह दोष नेता या अधिकारी को देता है, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट को नहीं.

पर देश की राजनीति को दिशा देने में यह उठापटक बहुत गंभीर है. सर्वोच्च न्यायालय ने जब से नियुक्तियां अपने हाथों में ली हैं, सुप्रीम कोर्ट में सरकार समर्थक जजों की कमी हो गई है और नतीजा है कि प्राइवेसी यानी कि निजता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक स्वतंत्रताओं की एक नई व्याख्या कर डाली है जो कट्टरपंथी सरकार के गले की हड्डी बन गई है.

सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों में अगर नियुक्तियों में जजों के रिश्तेदार, मित्र, पूर्व सहयोगी हों तो भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जजों का काम अरबोंखरबों के टैंडर पास करना नहीं होता. वह अधिकार तो सरकार के पास होता है. जज कितने ही बेईमान हों, उन के पास बहुत सीमित अधिकार होते हैं, वे विवाद में एक का पक्ष ले सकते हैं पर उन्हें बहुत से तर्क देने पड़ते हैं. उच्च न्यायालय तक तो हर जज को डर रहता है कि कहीं ऊपरी अदालत उन की गलत मंशा को भांप न जाए.

सरकार द्वारा जजों की नियुक्तियां किया जाना देश के लिए घातक होगा क्योंकि फिर जज और अदालतें सजावटी बन कर रह जाएंगी, देश में नागरिक स्वतंत्रताएं समाप्त हो जाएंगी. वर्तमान विवाद सरकार बनाम अदालतें हैं जिस में जनता को पर्याप्त जानकारी व रुचि लेनी होगी वरना उस का बहुत नुकसान होगा.

जानिए अपने रिटायरमैंट का पैसा आखिर कहां करें निवेश

अगर आप हालफिलहाल रिटायर हुए हैं और रिटायरमैंट के वक्त प्राप्त राशि को कहीं जमा करने की सोच रहे हैं तो आप को सब से आसान विकल्प बैंक फिक्स्ड डिपौजिट लगता होगा. लेकिन ब्याज दरों में जिस तरह गिरावट आई है, उस से आप को न तो बढि़या नियमित आय प्राप्त होगी और न ही धन की वृद्धि होगी. इसलिए उचित है कि आप अलगअलग विकल्पों का पता लगाएं और एक विविधिकृत रिटायरमैंट आय पोर्टफोलियो तैयार करें जिन पर रिटर्न भी बढि़या मिलता है.

कहां निवेश करें, इस के विकल्पों  की चर्चा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि कहां निवेश नहीं करें.

जब ब्याज दर लगातार कम हो रही हो तो ऐसी स्थिति में अनेक लोगों को नियमों का कम पालन करने वाले और ज्यादा ब्याज दर का दावा करने वाले उत्पादों का लोभ हो सकता है. स्वर्ण जमा योजनाएं, चिटफंड योजनाएं और इस तरह की अनेक नईनई योजनाएं इस दायरे में आती हैं. इन में से कुछ तो अंत में धोखाधड़ी वाली पोंजी योजनाएं साबित हुई हैं और अनेक दूसरी योजनाओं की नियति भी वैसी ही हो सकती है.

अर्थशास्त्री रौबर्ट शिलर ने अपने शोधपत्र में पोंजी योजना की परिभाषा दी थी और आज मीडिया में उस की अकसर चर्चा होती है- ‘‘इस (पोंजी स्कीम) योजना में शामिल होने वाले नए सदस्यों से मिलने वाली रकम से पुराने निवेशकों को भुगतान कर के नए निवेशकों को ऊंची दर पर लाभ देने का भ्रम पैदा किया जाता है. योजना में नए निवेशकों की प्रतिक्रिया कमजोर होती है, लेकिन जैसा कि बाद के दौर में ऊंचे प्रतिलाभ से जोश बढ़ता है, योजना में लोगों का विश्वास और निवेशकों की उत्कंठा बढ़ती जाती है. अंत में जब नए निवेशक योजना में शामिल होने से कतराने लगते हैं, तब यह औंधेमुंह गिर जाती है.’’

कहने की जरूरत नहीं कि रिटायरमैंट के करीब या रिटायर हो चुके अनेक लोग इस तरह की योजनाओं के मुख्य निशाने पर होते हैं. इसलिए हम आप को निवेश के बुनियादी सिद्धांत की याद दिलाना जरूरी समझते हैं : ज्यादा जोखिम से ज्यादा प्रतिलाभ मिलता है, यह तभी सही होता है जब कम अवधि में प्रतिलाभ मिल जाता है. रिटायर हो चुके व्यक्ति के नाते आप को चिंता हो सकती है कि आप की रिटायरमैंट की राशि रोजमर्रे के खर्च के लिए कम पड़ सकती है और इसलिए उच्च प्रतिलाभ उत्पन्न करने के रास्ते पर दुसाहसिक कदम बढ़ाने को उत्सुक हो सकते हैं. लेकिन याद रखें कि इस प्रतिलाभ के लोभ में आप की पूंजी डूब सकती है.

इस के बाद अब आप के टैक्स स्लैब के आधार पर सही विकल्पों और प्रत्येक विकल्प की उपयुक्तता की बात करते हैं.

डाकघर वरिष्ठ नागरिक योजना

अक्तूबर 2017 से 8.3 प्रतिशत प्रति वर्ष (प्रत्येक तिमाही समायोजन की शर्त पर) की दर पर यह मौजूदा माहौल में 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए सब से बढि़या दर है. यह दर 5 वर्षों के लिए यानी परिपक्वता तक निश्चित होगी. भले ही प्रत्येक तिमाही में नई दरें (बाजार में सरकारी प्रतिभूति प्रतिफल से संबद्ध) घोषित की जाएंगी. यह अनेक कारणों से एक आदर्श विकल्प है, जैसे कि : पहला, डाकघर की ब्याजदर के बैंक की ब्याजदरों से ज्यादा रहने की संभावना होगी. दूसरा, तिमाही ब्याज भुगतान से आप को आवश्यक आय मिलती रहेगी. तीसरा, यह आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कटौती के योग्य होती है और अगर आप टैक्स के दायरे में हैं तो कटौती का लाभ मिलता है.

यह समस्त टैक्स स्लैब वाले सभी रिटायर्ड निवेशकों के लिए उपयुक्त है. लेकिन याद रखें कि ब्याज से मिली आय आप के स्लैब के दर में करयोग्य होती है. रिटायरमैंट के वर्ष में, विशेषकर धारा 80सी का कर लाभ लेने के लिए, यह निवेश का एक आदर्श विकल्प है.

कौर्पोरेट फिक्स्ड डिपौजिट्स

हालांकि आप को वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष दरों का फायदा मिलेगा लेकिन दरों में गिरावट को देखते हुए अधिकांश राशि बैंक में या दूसरी जमा स्कीमों में रखने के लिए यह निसंदेह सही समय नहीं है. सुरक्षा और विविधीकरण के लिए कुछ राशि बैंक में रखनी जरूरी है तो भी अगर आप को ज्यादा आमदनी की जरूरत हो तो दूसरे विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए. साथ ही, आप के स्लैब दर पर ब्याज करयोग्य होता है.

बैंकों के अलावा, सर्वोच्च मूल्यांकन (एएए रेटिंग) वाले विभिन्न एनबीएफसी के कौर्पोरेट डिपौजिट्स भी बढि़या विकल्प हैं क्योंकि उन से आप को बैंक की एफडी से थोड़ा ज्यादा प्रतिलाभ मिल सकता है.

बौंड और अपरिवर्तनीय डिबैंचर

बौंड्स भी निश्चित ब्याज प्राप्त करने का विकल्प होते हैं. अगर आप खरीदारी कर रहे हैं तो प्रारंभिक प्रस्ताव के वक्त आप को पक्का कर लेना चाहिए कि आप किसी ऐसी कंपनी का ही बौंड खरीद रहे हैं जिस की साख और वित्तीय स्थिति काफी मजबूत है. अनेक निवेशक आजकल परिपक्वता के समय तक नियमित करमुक्त ब्याज पाने के लिए द्वितीयक बाजार में खरीदारी का विकल्प खोज रहे हैं. तथापि, यहां याद रखने वाला तथ्य यह है कि आप के दूसरे विकल्पों के करोपरांत प्रतिलाभ की तुलना में अगर इस का प्रतिलाभ आकर्षक नहीं है तो यह आप के लिए सब से आकर्षक विकल्प नहीं होना चाहिए.

असल में, अगर आप कर के दायरे में नहीं हैं, तब बेहतर है कि आप इन बौंड्स के बदले पीओएससीएस का रुख करें. अगर आप किसी भी टैक्स स्लैब में हैं तो भी आप को इन विकल्पों के साथ पीओएससीएस के करोपरांत गणना की तुलना कर लेनी चाहिए.

अगर आप का डीमैट और ट्रेडिंग खाता है तो बौंड्स और अपरिवर्तनीय डिबैंचर (एनसीडी) को भी द्वितीय बाजार में खरीदा जा सकता है. लेकिन यह नहीं भूलें कि द्वितीयक बाजार में जब तक मूल्य छूट पर कारोबार नहीं करते हैं (जो गिरते दर के माहौल में आमतौर पर नहीं होता है), तब तक इन बौंडों को खरीदने के लिए आप को ज्यादा रकम चुकानी होगी. दूसरे शब्दों में द्वितीयक बाजार में बौंड्स खरीदने के लिए ब्याजदर और मूल्यों में उतारचढ़ाव को समझना जरूरी है.

डेट म्यूचुअल फंड्स

1-2 दशकों पहले, जब फिक्स्ड डिपौजिट्स और डाकघर योजनाओं पर करीब दहाई अंक में प्रतिलाभ मिला करता था, अधिकांश रिटायर्ड लोग प्रतिलाभ के लिए केवल इन विकल्पों को ही अपनाते थे. किंतु ब्याजदरों में लगातार गिरावट के कारण अनेक निवेशकों का ध्यान एक व्यवस्थित, पारदर्शी उत्पाद के रूप में म्यूचुअल फंड्स की ओर आकृष्ट हुआ है. एक रिटायर्ड व्यक्ति के लिए, जो पूंजी की सुरक्षा या कुछ आय चाहते हैं, ऋण निधियां एक बेहतर विकल्प है. इक्विटी फंड्स के साथ जोखिम जुड़ा होता है और इन के लिए न्यूनतम 5 वर्षों का समय जरूरी होता है.

डेट म्यूचुअकल फंड्स के फायदे हैं.

अत्यधिक तरलता

निर्धारित लौकइन अवधि वाले फिक्स्ड डिपौजिट्स के विपरीत कभी भी पैसा निकाला जा सकता है.

सक्रिय प्रबंधन

घटतीबढ़ती ब्याजदर के चक्र से प्रतिलाभ उत्पन्न होता है. दूसरी ओर फिक्स्ड डिपौजिट्स के साथ पुनर्निवेश जोखिम जुड़ा रहता है. जमा राशि का समय पूरा हो जाने पर अगर उसे दोबारा निवेश करना चाहें तो आप को कम ब्याज दर व्यवस्था का सामना करना पड़ सकता है और पहले की अपेक्षा कम प्रतिलाभ हासिल होगा.

उच्चतर प्रतिलाभ

लंबी अवधि वाले ऋण फंड्स परंपरागत तौर पर फिक्स्ड डिपौजिट्स की अपेक्षा बेहतर प्रतिलाभ देते हैं, क्योंकि इस में रकम को एफडी की तुलना में ज्यादा प्रतिलाभ देने वाले विविध ऋण विपत्रों में निवेश किया जाता है.

कर लाभ के लिए काफी बढि़या

लंबी अवधि के पूंजीगत लाभार्जन पर (3 साल से ज्यादा समय तक जमा के लिए) सूचीकरण के साथ 20 प्रतिशत की दर पर टैक्स लगता है. हालांकि, फिक्स्ड डिपौजिट पर ब्याज आप की आय पर कराधान किया जाता है.

उच्च लचीलापन

क्रमिक रूप से निवेश के अलावा आप क्रमिक रूप से पैसों की निकासी भी कर सकते हैं और आप को नियमित नकद राशि मिलती रहेगी.

किंतु, आप के जोखिम विवरण के आधार पर डेट फंड्स की सही श्रेणी का चुनाव करना आवश्यक है. उदाहरण के लिए, तात्कालिक तौर पर पैसा रखने के लिए लिक्विड फंड बढि़या विकल्प हो सकता है, जबकि अल्पकालिक डेट फंड्स और आय फंड्स में एफडी के बदले निवेश किया जा सकता है.

अगर आप आय फंड जैसे किसी दीर्घकालिक फंड में निवेश करते हैं तो कुछ दिनों तक ऋणात्मक प्रतिलाभ पर गौर करें कि वह आप के लिए फायदेमंद है या नहीं. ऐसा इसलिए कि इन फंड्स के साथ अल्पकाल में कुछ जोखिम जुड़ा रहता है, लेकिन लंबी अवधि में यह जोखिम समाप्त हो जाता है. अगर आप अल्पकाल की अस्थिरता की आशंका झेलना नहीं चाहते तो आप के लिए लिक्विड या अत्यंत अल्पकालिक फंड्स उचित होंगे.

डेट म्यूचुअल फंड्स से मिलने वाले लाभार्जन को अगर आप 3 वर्षों के भीतर बेचते हैं तो उस पर आप के स्लैब की दर पर कर आरोपित होता है. अगर 3 वर्षों से अधिक समय तक जमा रखा जाए तब कर न केवल 20 प्रतिशत तक कम हो जाता है बल्कि पूंजीकत लाभार्जन के रूप में सूचीकरण का लाभ भी मिलता है. ऐसे मामलों में आप की धारित जमा के वर्षों में मुद्रास्फीति दिखलाने के लिए आप के निवेश की लागत बढ़ा दी जाती है. मतलब कि करों का भुगतान करने के लिए आप का लाभार्जन वास्तविक लाभार्जन से कम होगा.

अगर आप अपने डेट म्यूचुअल फंड्स से नियमित आय पाना चाहते हैं तो लाभांश भुगतान विकल्प आप के लिए उचित नहीं होंगे क्योंकि ऐसे मामले में आप के एनएवी से ही 28.3 प्रतिशत का लाभांश वितरण कर की कटौती की जाएगी.

इस का अर्थ यह है कि इस तरह के करारोपण के कारण आप के पास कम पैसा है. साथ ही, म्यूचुअल फंड्स में नियमित लाभांश भुगतान की गारंटी नहीं होती. किंतु, आप क्रमिक निकासी योजनाओं (एसडब्लूपी) के सहारे अपनी खुद की नियमित आय की आमद तैयार कर सकते हैं.

एसडब्लूपी से आप को निर्धारित नकदी आमदनी होती है और यह उम्मीद से ज्यादा टैक्स एफिशिएंट (कर कुशल) हो सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप के द्वारा की गई निकासी की प्रत्येक किस्त के लिए केवल लाभार्जन हिस्सा ही कर योग्य होता है (अगर आप कर के दायरे में होंगे तभी) और मूलधन पर कोई कर नहीं लगता है. साथ ही, धारित अवधि के 3 वर्षों के बाद आप को ऋण फंड्स के लिए पूंजीगत लाभार्जन सूचीकरण लाभ का आनंद मिलता है. इस से आप के टैक्स और भी कम हो जाएंगे. आप अपने रिटायरमैंट फंड्स पर प्रतिलाभ बढ़ाने के लिए म्यूचुअल फंड्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.

कुशलतापूर्वक विचार कर के निवेश करें ताकि आप अपना रिटायर्ड जीवन शांतिपूर्वक बिता सकें.

(लेखिका फंड्स इंडिया की म्यूचुअल फंड शोध प्रमुख हैं)

आप भी बौलीवुड हीरोईनों की तरह खूबसूरत दिख सकती हैं, कुछ इस तरह

बदलते समय के साथ मेकअप में भी मौडर्न बदलाव आए हैं. अब महिलाएं पुराने फैशन की तरह हैवी और ओवर मेकअप को पसंद न कर के सिंपल और सोबर मेकअप पसंद करती हैं. अब वे कम मेकअप में शादीविवाह, पार्टी आदि के दिन फ्रैश, गौर्जियस और हौट नजर आना चाहती हैं.

न्यूट्रल ट्रांसबेस मेकअप और हेयरस्टाइल के बारे में मेकअप ऐक्सपर्ट पायल और हेयर डिजाइनर मनु के टिप्स जानिए:

न्यूट्रल ट्रांसबेस मेकअप: न्यूट्रल ट्रांसबेस मेकअप इतना सौम्य और लाइट होता है कि यह आसानी से स्किन के साथ मर्ज हो कर उसे फ्रैश, नैचुरल और प्रौब्लम कवर लुक तो प्रदान करता ही है, साथ ही सौम्यता के साथ कंप्लीट लुक भी देता है.

आईज को छोड़ कर पूरे चेहरे पर प्राइमर लगाएं. फिर उस पर स्किनटोन से मैच करता न्यूट्रल बेस लगाएं. अब हलका सा लूज पाउडर लगा कर फाइनल टच दें.

आईज मेकअप का खास अंदाज: आजकल आईज मेकअप में भी कई सारे ऐक्सपैरिमैंट हो रहे हैं. अब आईज को सिर्फ गोल्डन या पिंक आईशैडो से ही नहीं सजाया जाता वरन निओन कलर की भी बहुत डिमांड है. निओन का मतलब ब्राइट, नैचुरल कलर जिस में ग्रीन, यलो, पीच, ब्लू, परपल, रूबी रैड, एवं लैमन ग्रीन आदि कलर शामिल होते हैं. निओन आईशेड्स के साथ आईज को डिफाइन करने के लिए आप लाइनर व वौल्यूमाइजिंग मसकारा के साथ फैदर टच आर्टिफिशियल का जरूर इस्तेमाल करें. इस से आंखें खूबसूरत लगती हैं. फिर आईलाइनर का प्रयोग करें. जरूरत हो तो वाइटलाइन एरिया पर ब्रश से काजल लगाएं. आईब्रोज को हाईलाइट करें.

चीकबोंस को करें हाईलाइट: चीक्स को उभारने के लिए फोरलसौफ्ट, पिंक, औरेंज जैसे सौफ्ट शेड्स का ही इस्तेमाल करें. हैवी ब्रौंजर का इस्तेमाल न करें वरना यह लुक को ग्रे दिखाने लगता है. फेस के हिसाब से ही चीकबोंस को हाईलाईट करें, क्योंकि हर किसी का फेसकट अलग होता है. हाईलाइट करने के लिए ब्रश को नीचे से ऊपर की ओर एक स्ट्रोक में चलाएं.

लिप्स हों ग्लैम ज्यूसी: मेकअप के दौरान 1-1 चीज पर बारीकी से ध्यान दिया जाता है. लोगों की सब से ज्यादा नजर होंठों और आंखों पर ही पड़ती है. अत: स्पैनिश, प्लम, बरगंडी, रूबी रैड, फ्यूशिया पिंक, पीच आदि लिपस्टिक का इस्तेमाल करें. ये कलर आप के होंठों को ग्लैम ज्यूसी दिखाएंगे. ब्रश की सहायता से लिप्स की आउटलाइन बनाते हुए उन्हें अच्छी तरह फिल करें.

डिजाइनर नेलआर्ट: नेल्स की शोभा बढ़ाने के लिए आजकल डिफरैंट तरह के नेलआर्ट हैं. आप अपनी पसंद का चुन सकती हैं.

मौइश्चराइज करें: विंटर सीजन में मौइश्चराइजर जरूर लगाएं.

शादीविवाह अथवा किसी पार्टी में आप आकर्षक लगें इस के लिए हेयरस्टाइल भी खास होना चाहिए. ये हेयरस्टाइल आजमा कर आप भी खूबसूरत दिख सकती हैं:

आकर्षक दिखें हेयरस्टाइल में: बालों को अच्छी तरह कंघी कर के बीच की मांग निकाल कर मांगटीका लगाएं और इसे बौबपिन से बालों में ही टाइट करें. अब टौप के बालों को उठा कर स्प्रे डालें और कंघी करें. अब रोलर को गरम कर के टौप के बालों की 1-1 लट ले कर रोल करती जाएं. ऐसे ही टौप की दोनों साइडों के बालों को रोल करती जाएं. रोल की गई लटों को पीछे की तरफ से जा कर पिन से सैट करें. अब पीछे के बालों की पोनी बनाएं और 1-1 लट को ट्विस्ट करते हुए पिन लगाएं. हेयर ऐक्सैसरीज लगा कर इसे और खूबसूरत बनाएं.

रोलर हेयरस्टाइल: बालों को अच्छी तरह कंघी कर के स्प्रे डालें. अब पूरे बालों से 1-1 पतला सैक्शन ले कर रोल करती जाएं. ऐसे ही पूरे बालों के पतलेपतले सैक्शन ले कर रोल बनाती जाएं और पूरे रोल किए बालों को एक साइड कर के पिन से वन साइड ही सैट करें. दूसरी साइड में सिर्फ एक लट कान के पास छोड़ दें. अब इसे खूबसूरत फ्लौवर वाली हेयर ऐक्सैसरीज से सजाएं.

आतंकी, मानव और धर्म : अमेरिका को टौम उजहन्नालिल को सुनना चाहिए

अमेरिका न जाने क्यों पश्चिम एशिया में क्रूर आतंकी संगठन इसलामिक स्टेट के खिलाफ तोपों, मिसाइलों, ड्रोनों का इस्तेमाल कर रहा है और क्यों इराकी, सीरियाई सैनिकों को मरवा रहा है. अमेरिका को आतंकियों के चंगुल में यमन में 18 महीने कैदी रहे पादरी टौम उजहन्नालिल की सुननी चाहिए जिन्होंने कहा कि क्रूर और हत्यारे आतंकियों ने उन्हें जिंदा रखा.

विधर्मी होते हुए भी अगर उन्हें जिंदा रखा गया, तो पादरी की सोच के अनुसार यह लोगों की प्रार्थनाओं के कारण हुआ जिन्होंने अपहर्ताओं का हृदय परिवर्तन कर दिया. इसी कारण उन्हें शारीरिक कष्ट नहीं दिया गया और न ही रमजान के महीने में भूखा रखा गया. वे अगर छूटे तो ईश्वर के कारण. भारत, अमेरिका, वेटिकन के दूतावासों ने तो कुछ किया ही नहीं उन्हें छुड़ाने में और उन्हें तो केवल ईसा मसीह को धन्यवाद देना है.

इसीलिए औपचारिकता निभाने के लिए वे रोम में पोप के विशाल महल वैटिकन में भी रुके और अपने मूल देश भारत में आ कर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी मिले. पर उन्होंने शायद उन दोनों से कहा होगा कि आतंकी पागलों से निबटने के लिए पूजापाठ और प्रार्थनाओं की जरूरत है, टैंकों या हवाई जहाजों की नहीं.

महीनों अपहर्ताओं की कारगुजारी देखने के बाद भी कोई मानव स्वभाव को न समझ पाए, यह तभी संभव है जब दिमाग पर धार्मिक परत इतनी मोटी पड़ी हो कि सच व तर्क की बात वह भेद ही न सके. प्रार्थनाओं से काम चलता होता तो दुनिया में कहीं अनाचार, अत्याचार, भूख, बीमारी, अपराध न होता. मारना, लूटना हो सकता है, प्रकृति की देन हो.

समाज ने और सभ्यता ने मार कर खाने को नियंत्रित किया है पर दूसरी ओर धर्म ने दूसरे धर्म के लोगों पर अत्याचार करने का लाइसैंस दे दिया और उस लाइसैंस को पाने के लिए अपने धर्म की हर गलत बात और मान्यता को बिना सवाल उठाए मानने की शर्त लगा दी. इन्हीं मान्यताओं में से ही एक है कि जब कुछ अच्छा हो जाए, तो धन्यवाद धर्म के बजाय ईश्वर को दें, उस व्यक्ति या संस्था को नहीं, जिस ने जीवन सुखद बनाया.

हौकी का दम

जापान के कागामिगहारा में महिला एशिया कप हौकी के फाइनल में भारतीय टीम ने जो कमाल दिखाया है वह काबिलेतारीफ है. चीन के साथ फाइनल मैच में दोनों टीमों के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ. आखिरकार भारतीय टीम ने जीत कर ही दम लिया. इस जीत से भारतीय महिला टीम को अगले वर्ष होने वाली विश्वकप हौकी प्रतियोगिता में जगह मिल गई.

भारतीय महिला टीम के हौसले इस लिहाज से भी बुलंद थे कि उस ने एशिया कप के लीग राउंड में चीन को 4-2 के अंतर से मात दी थी. इस के लिए भारतीय महिला टीम को 13 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा.

ऐसा नहीं है कि यह जीत आसानी से मिली हो. इस के लिए पूरी टीम ने हर मोरचे पर मेहनत की और योजनाबद्ध तरीके से खेल खेला. फाइनल मैच में दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर रह गईं. पैनल्टी शूटआउट में भी हारजीत का फैसला न हो सका. आखिर में सडेन डेथ के तहत चीनी खिलाड़ी गोल नहीं कर सकीं और भारतीय खिलाड़ी रानी के अचूक निशाने के बूते भारतीय टीम को जीत मिल गई.

पिछले कुछ समय से हौकी में भारत की महिला और पुरुष टीमों ने जिस तरह से प्रदर्शन किया है उसे देखते हुए अतीत का याद आना स्वाभाविक है. एक समय में भारत हौकी में नंबर वन हुआ करता था. समय के साथ देश में क्रिकेट की चकाचौंध में हौकी का खेल गुम होता चला गया. हौकी की दुर्दशा के पीछे खेल मंत्रालय से ले कर खेल संघ और संबंधित अधिकारी सीधासीधा जिम्मेदार रहे. नए प्रतिभाशाली खिलाडि़यों की खोज से ले कर बुनियादी सुविधाओं के लिए खिलाड़ी हमेशा तरसते रहे.

हौकी में राजनीति होती रही और यह खेल पिछड़ता चला गया. पैसों की किल्लत के आगे खिलाड़ी एकएक चीज के लिए जूझते रहे. जिन्होंने मुंह खोला उस की बोलती बंद कर दी गई. ऐसे में कैरियर की चिंता को ले कर खिलाडि़यों ने भी अपने मुंह में ताला जड़ लिया. गाहेबगाहे कुछ खिलाडि़यों ने हिम्मत जुटा कर बोलने की कोशिश की पर वे भी सफल नहीं रहे.

बहरहाल, महिला टीम की इस जीत से सुकून की बात यह है कि सभी खिलाडि़यों को 1-1 लाख रुपए का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. मगर क्या 1-1 लाख रुपए से खेल और खिलाडि़यों का भला हो जाएगा? इस के लिए संबंधित अधिकारियों और खेल मंत्रालय को सोचना पड़ेगा अन्यथा हौकी में दम देखने को मिलेगा, ऐसा लगता नहीं.

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