मैं ने कब कहा प्रिय,
तुम से बेहद प्यार है
हर पल, हर घड़ी
तुम्हारा ही इंतजार है
वो तो निगाहें हैं,
जो उठ जाती हैं हर आहट पर
ढूंढ़ती हैं तुम्हारी छवि,
वश नहीं है खुद पर
जैसे आ ही जाओगे तुम,
कहीं से और कभी भी
इक ख्वाहिश है अंदर,
कुछ जगी सी, कुछ बुझी सी
मैं ने कब कहा सब के बीच,
तुम्हें याद करती हूं
कि बातों में तुम बसे हो
तुम्हारा ही दम भरती हूं
वो तो जबान है,
बरबस ही तुम्हारा नाम लेती है
और मेरी बातों में दुनिया,
तुम्हारा अक्स देखती है
न,न, मैं तो जिक्र भी तुम्हारा,
नहीं करती हूं कभी
पसोपेश में हूं मैं
न जानूं ये गलत है या फिर सही
मैं ने कब कहा,
अपना दिल तुम को है दिया
और इस जीवनभर का वादा
तुम से ही है किया
ये तो रातें हैं
जो मेरा मजाक सा उड़ाती हैं
न जाने मुझे क्यों
ये रातभर जगाती हैं
ख्वाब भी जो थे मेरे,
तुम्हारे साथ हो लिए हैं
तुम्हारी ही सूरत से जैसे,
सारे नाते जोड़ लिए हैं
पर शायद कुछ ऐसा हो रहा है,
अनजाना सा मेरे संग
घेरे हैं तुम्हारी यादों के बादल,
ले के साजिशों के रंग
ये बादल बेरहम मुझे,
तनहा नहीं छोड़ते कभी भी
छाए रहते हैं मनमस्तिष्क पे,
हरपल और अभी भी
पर फिर भी इस का मतलब,
इकरार न समझना
मुझे तुम से प्यार है,
ये हरगिजहरगिज न समझना.
- जयश्री वर्मा
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