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मेरे चेहरे पर काफी पिंपल्स थे. वे तो खत्म हो गए हैं, पर उन के निशान रह गए हैं. उन से छुटकारा पाने के लिए क्या करूं.

सवाल
1 साल पहले मेरे चेहरे पर काफी पिंपल्स निकले थे. वे तो अब खत्म हो गए हैं, पर उन के निशान रह गए हैं. उन से छुटकारा पाने के लिए क्या करूं?

जवाब
पिंपल्स के निशानों को जाने में थोड़ा वक्त लगता है. आप घर पर इन्हें कम करने के लिए स्क्रब बना सकती हैं. इस के लिए मसूर की दाल को दरदरा पीस लें, फिर उस में मुलतानी मिट्टी व पुदीने का रस मिला कर पेस्ट बना लें. इस स्क्रब के नियमित इस्तेमाल से निशान जल्दी कम नजर आने लगेंगे. वैसे इन निशानों से पूरी तरह से छुटकारा पाने के लिए आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से माइक्रोडर्माऐब्रेजर या फिर लेजर थेरैपी भी करा सकती हैं. इस थेरैपी में लेजर किरणों से त्वचा को रीजेनरेट कर के नया रूप दिया जाता है. उस के बाद यंग स्किन मास्क से त्वचा को निखारा जाता है. ये थेरैपी लगभग 3-4 सिटिंग्स में पूरी होती है और इस से लगभग 75% निशानों को दूर किया जा सकता है.

मेरे पति का अपनी सेक्रेटी से चक्कर चल रहा है. वह हमारे फ्लैट में भी कई रातें गुजार चुकी है. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 30 वर्षीय विवाहिता व 1 बेटे की मां हूं. मैं ने प्रेम विवाह किया है. विवाह जज्बातों में बह कर जल्दीबाजी में लिया गया फैसला नहीं था. हमारा प्रेम संबंध 8 वर्षों तक चला. जब हमें लगा कि हम दोनों एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच हैं तब हम ने विवाह किया.

हम सिक्किम के रहने वाले हैं. विवाह के बाद हम मुंबई आ गए, क्योंकि वहां पति एक कौल सैंटर में नौकरी करते थे. मुंबई आ कर साल भर हम ने खूब मस्ती की. मेरे पति मेरा बहुत खयाल रखते.

1 साल के बाद मैं गर्भवती हो गई. इस के साथ ही मैं ने नोटिस किया कि पति की दिलचस्पी मुझ में दिनोंदिन कम होती जा रही है. नियमित सहवास करने वाले पति कईकई दिनों तक संबंध नहीं बनाते थे. प्रसवोपरांत भी उन के रवैए में कोई बदलाव नहीं आया.

फिर बच्चे की देखरेख भलीभांति हो, इस के लिए मुझे गांव अपनी मां के पास छोड़ आए. वहां छोड़ने के बाद तो वे मुझ से और मेरे बेटे से पूरी तरह चिंतामुक्त हो गए. कईकई दिनों तक फोन भी नहीं करते थे. मैं ही बीचबीच में फोन कर लेती थी. फोन पर भी उन्होंने कभी खुल कर बात नहीं की. सिर्फ उतनी ही बात करते जितनी मैं पूछती.

उन की बेरुखी देख कर मैं चिंतित थी. बारबार उन से वापस ले जाने की गुजारिश करती. पूरे साल भर के बाद वे गांव लौटे. इतने अरसे बाद भी उन्होंने मुझ से न तो खुल कर बात की और न ही रात को सहवास किया. अलबत्ता मैं बहुत बेसब्र थी, इसलिए मैं ने आलिंगन में ले चुंबन आदि कर के पहल भी की पर इतने पर भी उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और करवट बदल कर सो गए. मेरे कुरेदने पर भी कि वे इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं, उन्होंने कुछ नहीं बताया.

फिर मैं बेटे के साथ मुंबई लौट आई. यहां आ कर वे अकसर दफ्तर से देर से घर लौटते. आ कर थकावट का बहाना कर के सो जाते. पति की बेरुखी के पीछे क्या वजह है, चाह कर और पूछने पर भी मैं कोई सुराग नहीं पा सकी.

कई महीनों बाद जो सचाई सामने आई उसे जान कर मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई. पता चला कि औफिस में अपनी किसी शादीशुदा सहकर्मी, जो बालबच्चेदार भी है से उन का अफेयर चल रहा है. मेरी गैरहाजिरी में वह हमारे फ्लैट में भी कई रातें गुजार चुकी है. मेरी एक पड़ोसिन ने जब मुझे बताया तो मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने उन्हें खूब खरीखोटी सुनाई. खुद भी रोईचिल्लाई पर उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा. न तो उन्होंने कोई सफाई दी और न ही कोई अपराधबोध उन के चेहरे पर नजर आया. एक छत के नीचे भी हम दोनों अजनबियों की तरह रहते रहे.

अचानक इन की नौकरी छूट गई और हम गांव लौट आए. मुझे उम्मीद थी कि अपनी फ्रैंड से दूर हो कर वे पहले की रौ में लौट आएंगे. पर यहां आ कर भी वे उसी तरह परेशान और अब तो बेचैन भी रहते हैं. अपने पिता के व्यवसाय में थोड़ीबहुत दिलचस्पी लेने लगे हैं. उम्मीद कर रही हूं कि शायद पहले की तरह वे सामान्य व्यवहार करने लगें और हम दांपत्य जीवन का खोया सुख पुन: पा सकें. क्या यह संभव होगा?

जवाब
गर्भावस्था में जब तक कोई स्वास्थ्यगत परेशानी न हो शारीरिक संबंध बनाने में गुरेज करने की आवश्यकता नहीं रहती. आप के पति आप से दूरी बरत रहे थे तो शुरू में ही आप को सतर्क हो जाना चाहिए था.

उन के बदलते व्यवहार से आप का माथा ठनकना चाहिए था और उन से पूछना चाहिए था कि वे आप को पहले की तरह समय क्यों नहीं दे रहे जबकि उस अवस्था में उन की देखरेख की आप को ज्यादा जरूरत थी. इतना ही नहीं पति की बढ़ती बेरुखी की परवाह न कर के आप उन की बातों में आ गईं और उन्हें छोड़ कर गांव चली गईं. पीछे से उन्हें और खुल कर खेलनेखाने का मौका दे कर.

अब उस युवती से तो आप को नजात मिल गई है. शुरूशुरू में कुछ समय तक आप के पति को बुरा लगेगा. इस के अलावा अभीअभी उन की नौकरी गई है, उन्हें उस का भी मलाल होगा. बिजनैस में स्थापित होने में भी उन्हें थोड़ा समय लगेगा.

कुछ समय बाद स्थितियां जब अनुकूल हो जाएंगी तब उन का व्यवहार भी सामान्य हो जाएगा. तब तक थोड़ा धैर्य बनाए रखें और उन्हें भरपूर प्यार दें. सकारात्मक सोच रखें. समय बदलते देर नहीं लगती.

मोबाइल की डिस्प्ले से स्क्रैच हटाना है तो अपनाएं ये शानदार ट्रिक

आज हर कोई स्मार्टफोन का इस्तेमाल करता है. आज हमारा ज्यादातर काम इसी पर हो जाता है. लगातार इस्तेमाल करते-करते फोन की डिस्प्ले पर स्क्रेच आ जाता हैं और साफ दिखाई नहीं देता है. स्क्रेच आने पर हमारा फोन देखने में भी खराब लगता है. अगर आपके फोन की डिस्प्ले पर भी स्क्रेच आ गए हैं, तो परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि फोन के डिस्प्ले पर स्क्रेच आना आम बात है.

चलिए आज हम आपको कुछ ऐसे तरीके बताते हैं जिनसे आप अपने फोन की डिस्प्ले पर से स्क्रेच हटा सकते हैं, वो भी घर पर बिना कोई खर्च किये. इसके लिए आपको अलग से कुछ भी खरीदकर लाने की जरूरत नहीं है. तो चलिए शुरू करते हैं.

पेस्ट से: सबसे पहला तरीका हैं पेस्ट से मोबाइल की डिस्प्ले साफ करना. कोलगेट लेकर अपने फोन की डिस्प्ले पर लगाएं. इसके बाद उसे धीरे धीरे रगडे़ं. थोड़ी देर तक रगड़ते रहें. इसके बाद इसे धीरे-धीरे हल्के प्रेशर के साथ रुमाल या किसी कपडे़ से साफ करें. जब पूरा साफ कर लेंगे तो पाएंगे कि स्क्रेच लगभग खत्म ही हो गया है.

वेसलीन से: दूसरा तरीका है वेसलीन. इसके लिए घर में मौजूद वेसलीन को लें, इसे अपने फोन की डिस्प्ले पर लगाकर किसी गद्दे के टुकड़े से धीरे-धीरे रगड़ें. रगड़ना वैसे ही जैसे कि पोलिश करते हैं. थोड़ी देर बाद आप देखेंगे की फोन की स्क्रीन बिलकुल साफ हो गई है.

इरेजर से: जिस इरेजर से बच्चे अपनी नोटबुक में गलती होने पर इरेज करते हैं. उसी इरेजर से आप अपने फोन की डिस्प्ले को साफ कर सकते हैं और उसपर आने वाले स्क्रेच को भी पूरी तरह से हटा सकते हैं. इसके लिए इरेजर नई होगी तो बेहतर होगा. इरेजर को फोन की डिस्प्ले पर ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर की ओर चलाना है. थोड़ी देर तक ऐसा ही करेंगे तो आपके फोन की डिस्प्ले से स्क्रेच कम हो जाएगा. ध्यान रखें कि गोल गोल या किसी और तरीके से इरेजर को डिस्प्ले के उपर न घुमाएं.

ये सारे उपाय अपनाने से पहले एक बार फोन की स्क्रीन को हल्का सा साफ जरूर कर लें. ताकि उसके ऊपर कोई रेत आदि न रह जाए.

दक्षिण अफ्रीका के तेज गेंदबाज ने दी भारत को चुनौती

भारतीय क्रिकेट टीम इस समय दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर है. यहां वह तीन टेस्ट मैचों की सीरीज खेलेगा. पहला मैच न्यूलैंड्स में शुक्रवार से शुरू हो रहा है. दक्षिण अफ्रीका और इंडिया के बीच खेला जाने वाला यह टेस्ट मैच शुरू होने में कुछ ही दिन शेष है. दक्षिण अफ्रीका के तेज गेंदबाज वेर्नान फिलेंडर ने पहले टेस्ट मैच की शुरुआत से पहले भारत को उसके सामने मौजूद चुनौतियों के प्रति आगाह किया.

फिलेंडर ने कहा कि यह सीरीज भारत को बिलकुल अलग तरह की चुनौती पेश करेगी. उनका कहना है कि अभी तक इंडिया ने अपने अधिकतर मैच अपने घर में खेले हैं, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि वे यहां दक्षिण अफ्रीका में कैसा खेलते हैं.” उन्होंने कहा, “यहां दक्षिण अफ्रीका में बिल्कुल अलग तरह का खेल होने वाला है. हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए.”

फिलेंडर ने आगे कहा, “हम अपना सर्वश्रेष्ठ मैच खेलना चाहते हैं. 2015 में वहां जाकर हारना काफी अलग था, लेकिन हम अपने घर में शानदार खेल खेलेंगे.” मालूम हो कि भारत ने दक्षिण अफ्रीका को अपने घर में स्पिन गेंदबाजों के अनुकूल पिचों पर 3-0 से हरा दिया था.

फिलेंडर ने कहा कि हम भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं. हम बल्ले और गेंद का क्रिकेट खेलना चाहते हैं न कि नामों की. हमें विराट को आउट करना ही होगा दिक वैसे ही जैसे कि हमें बाकी के नौ या दस खिलाड़ियों को आउट करना होगा.”

दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के कोच ओटिस गिब्सन ने भारत के साथ खेली जाने वाली टेस्ट सीरीज को लेकर अपनी टीम को चेताया है. गिब्सन का कहना है कि भारतीय टीम वर्तमान में टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर है, उनकी टीम में विश्वस्तरीय खिलाड़ी शामिल हैं और वे केवल अपने देश में ही विश्वस्तरीय नहीं हैं. इसलिए आगामी तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में भारतीय टीम कड़ी प्रतिद्वंदी साबित हो सकती है. गिब्सन ने कहा, भारत की टीम अच्छी है और हमें यकीन है कि यह सीरीज बहुत ही मुश्किल और शानदार होने वाला है.

आने वाला है 10 रुपये का नया नोट, ये सब होगा खास

8 नवंबर 2016 को नोटबंदी के तहत पांच सौ और हजार के पुराने नोट बंद कर दिये. आरबीआई ने नोटबंदी के वक्त दो हजार और पांच सौ के नए नोट जारी किये थे. इसके बाद पिछले साल अगस्त में आरबीआई ने 200 और 50 रुपए के नए नोट भी जारी किए. ये नोट महात्मा गांधी सीरिज के ही थे. आरबीआई के नए नोट जारी करने का सिलसिला यहीं खत्म नही हुआ है. ताजा खबर ये है कि रिजर्व बैंक औफ इंडिया 10 रुपये के नए नोट लाने वाला है. ये नए नोट महात्मा गांधी सीरीज के ही होंगे. आखिरी बार साल 2005 में दस रुपये के नोट में बदलाव हुआ था.

नए नोट में क्या होगा खास

दस का नोट चौकलेट ब्राउन रंग का होगा और इस पर कोणार्क के सूर्य मंदिर की तस्वीर भी अंकित होगी.

माना जा रहा है कि नए नोट में सुरक्षा के फीचरों को पहले से बेहतर बनाया गया है.

नए नोटों पर नंबर पैनल के इनसेट में अंग्रेजी का बड़ा ‘एल’ अक्षर होगा.

पीछे की तरफ छपाई का वर्ष 2017 लिखा होगा.

इन पर केंद्रीय बैंक के नए गवर्नर उर्जित पटेल का हस्ताक्षर होगा.

बताया जा रहा है कि सरकार से नए नोट के डिजाइन पर अनुमति मिलने के बाद आरबीआई दस रुपये के एक बिलियन नोट छाप चुका है. हालांकि इस मामले पर आरबीआई के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से मना कर दिया है.

ये भी है योजना

सरकार ने पिछले साल संसद के बजट 2017 के सत्र में बताया था आरबीआई को फील्‍ड ट्रायल की अनुमति दी जा चुकी है. सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि कौटन सब्सट्रैट बैंक नोट्स के मुकाबले प्लास्टिक नोट्स की जीवन अवधि ज्यादा होती है. देश में सरकार ने पांच जगहों पर प्लास्टिक बैंक नोट्स का फील्ड ट्रायल करने का फैसला लिया. प्लास्टिक सब्सट्रैट खरीदे जाने की मंजूरी दे दी.

सावधान : इंटरनैट पोर्नोग्राफी से बच्चों को रखें दूर

चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में भारत सब से बड़े कंज्यूमर व डिस्ट्रीब्यूटर के तौर पर उभर रहा है. साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ‘स्कूल गर्ल’, ‘टीन्स’, ‘देसी गर्ल्स’ जैसे टौप सर्च बताते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी का बाजार कितना बड़ा है. जाहिर है इस के असली टारगेट स्कूली बच्चे ज्यादा हैं. इंटरनैट पर तैरती पोर्नोग्राफी व फ्री इंटरनैट डाटा सेवाओं ने ज्यादातर बच्चों के स्मार्टफोन में एडल्ट कंटैंट के फ्लो में इजाफा किया है.

एक शोध के मुताबिक, 12 से 18 वर्ष तक के 90 प्रतिशत लड़के व 60 प्रतिशत लड़कियां पोर्नोग्राफी की जद में हैं. ये आंकड़े वाकई चिंताजनक हैं.

कुछ माह पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से निबटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा रहे हैं. सरकार ने जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली 3 सदस्यीय पीठ से यह भी कहा था कि उस ने सीबीएसई से स्कूलों में जैमर लगाने पर विचार करने को कहा ताकि छात्रों को पोर्नोग्राफी साइट्स से दूर रखा जा सके. लेकिन 2-3 महीनों के बावजूद नतीजा कुछ नहीं निकला. सरकार की कमेटी और वादों की लापरवाही के तले सारे मुद्दे दब गए. सरकार भले ही सुप्रीम कोर्ट को करीब 3,523 चाइल्ड पोर्नोग्राफी साइट्स पर रोक लगाने का दावा करती हो लेकिन उन्हीं साइटों पर यह काम बदस्तूर जारी है.

जरूरी है इंटरनैट लेकिन…

आजकल पढ़नेलिखने वाले बच्चों को रैफरैंस जुटाने के लिए इंटरनैट जरूरी हो गया है. जाहिर है आज घरघर में इंटरनैट कनैक्शन हैं. और घर पर इंटरनैट होने का मतलब है पूरी दुनिया का कंप्यूटर के स्क्रीन पर सिमट कर आ जाना. इस में दोराय नहीं कि यह बहुत ही अच्छी बात है. बच्चे इंटरनैट सर्च करना पसंद भी करते हैं. लेकिन यह भी सचाई है कि कुछ किशोर उम्र के बच्चे इस का बेजा इस्तेमाल भी करते हैं.

इंटरनैट के दौरान विभिन्न साइटों में लुभावने विज्ञापन का भुलावा कभीकभी इन्हें भटका देता है. खासतौर पर वे विज्ञापन जो दोस्ती का झांसा दे कर बच्चोंकिशोरों को भटकाव के रास्ते ले जाते हैं. और बच्चे भी एक अनजानी, रहस्यमयी दुनिया के आकर्षण में खिंचे चले जाते हैं.

किंशुक पटेल एक अच्छा स्टूडैंट रहा है. अपनी कक्षा में टौप टैन में उस का नंबर आता रहा है. खेलकूद में भी भाग लेता रहा है. शाम को क्रिकेट तो कभी फुटबौल खेलने जाता. खेलने के अलावा किताबें पढ़ने का भी उसे शौक रहा है.

9वीं क्लास की फाइनल परीक्षा देने के बाद किंशुक कभीकभार कंप्यूटर पर गेम भी खेल लिया करता था. एक दिन उस ने चैट में अपना हाथ आजमाया. यह उसे कंप्यूटर गेम से कहीं अधिक भाया. अब अकसर वह चैटिंग करने बैठ जाया करता. कुछ ही दिनों में चैटिंग उस का शगल बन गया. मौका मिलते ही वह चैटिंग करने लगता. और चूंकि उस के मम्मीपापा दोनों वर्किंग हैं तो घर पर उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. मम्मीपापा की अनुपस्थिति में अगर वह कुछ करता तो वह सिर्फ और सिर्फ चैटिंग करता.

एक दिन उस ने विभिन्न साइटों पर आने वाले फ्रैंडशिप विज्ञापन पर क्लिक किया. इस के बाद दूसरे दिन उस ने चैटिंग पर भी अपना हाथ आजमाया. धीरेधीरे उस का हाथ खुलने लगा. जिज्ञासाएं बढ़ती चली गईं. और फिर एक दिन एस्कौर्ट सर्विस से ले कर पोर्नोग्राफी तक उस की पहुंच हो गई. एक तरफ किशोर मन पर बहुत सारे सवाल कुलबुलाने लगे तो दूसरी तरफ एक अनजानी व रहस्यमयी दुनिया का आकर्षण उसे खींचने लगा. अगले कुछ ही दिनों में किंशुक पर पोर्नोग्राफी का नशा छाने लगा.

ऐसा अकेले किंशुक के साथ हुआ, ऐसा नहीं है. ऐसा होना किशोर उम्र के बच्चों के साथ आम बात हो गई है. इंटरनैट पर बहुतकुछ मिलने के साथ पोर्नोग्राफी भी सहज उपलब्ध है. और इसीलिए घर पर बच्चों द्वारा इंटरनैट के इस्तेमाल के सिलसिले में मातापिता को सजग होना जरूरी होता है.

हाल ही में हुए सर्वेक्षण से पता चलता है कि 4 किशोर उम्र के लड़केलड़कियों में से एक इंटरनैट पर बिछे पोर्नोग्राफी के जाल में फंस जाता है. यही नहीं, ये भोलेभाले बच्चे, महज उत्सुकता के चक्कर में पड़ कर, इंटरनैट पर फ्रैंडशिप के कारण किसी न किसी तरह के झमेले में पड़ जाते हैं.

इसीलिए, कम या कच्ची उम्र के लड़केलड़कियों को इंटरनैट के इस्तेमाल का तरीका और कुछ गाइडलाइन तय कर देनी जरूरी है. और यह काम मातापिता या अभिभावक ही कर सकते हैं. बल्कि यह कहना चाहिए कि उन का यह फर्ज बनता है कि वे अपने बच्चों द्वारा इंटरनैट के इस्तेमाल के प्रति हमेशा सजग रहें, चौकस रहें. कुछ मोटी बातें उन्हें साफसाफ समझा दें, मसलन इंटरनैट पर फ्रैंडशिप से बचें.

अपरिचितों के साथ चैटिंग में न जाएं. अगर चैटिंग करते भी हैं तो किसी अपरिचित को अपना नाम, घर का पता, पारिवारिक सूचना व जानकारी और पासवर्ड न बताएं. किसी भी तरह के भुलावे या छलावे में न पड़ें. अपने ही घर पर इंटरनैट के इस्तेमाल का एक कल्चर तैयार करें.

कई घरों में यह सब होता भी है. लेकिन यहां समस्या यह है कि बच्चे पूरी तरह से उस गाइडलाइन को फौलो नहीं करते. कभी जानबूझ कर, तो कभी इंटरनैट पर छलावे और चकाचौंध में भटक कर. और कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो अपनी उम्र व समझ की तुलना में कुछ ज्यादा ही स्मार्ट होते हैं. वैसे भी, आजकल स्कूलों में कंप्यूटर पर विषय अलग से पढ़ने के कारण उन्हें अभिभावकों और मातापिता की आंखों में धूल झोंकना भी बखूबी आता है. ऐसे लड़केलड़कियां इंटरनैट के बेजा इस्तेमाल के बाद तथ्यों को डिलीट कर देते हैं. वे ऐसा न कर पाएं, इस के भी रास्ते हैं.

जिएं दूसरों की खातिर भी, क्योंकि दूसरे की मदद करने में क्या हर्ज है

एक दिन अनायास एक व्यक्ति आता है और भीड़भरे चौराहे पर, चिलचिलाती धूप में ट्रैफिक कंट्रोल करते पुलिसमैन को ठंडे पानी की बोतल पकड़ा कर खामोशी से आगे बढ़ जाता है.

ट्रैफिक पुलिस के इस बंदे का गला भरी दोपहरी में सूख रहा था. ऐसे में ठंडे पानी की यह बोतल उसे तृप्त कर गई. वह एक सांस में ही पूरा पानी पी गया और दूर जाते उस इंसान को देखता रहा जिस में दूसरों की खातिर जीने का जज्बा था. वह उसे नम्रतावश सलाम करने लगा.

एक और दिन एक चौराहे पर एक अजनबी ने एक बूढ़े व्यक्ति को हाथ पकड़ कर रास्ता पार करा दिया और आगे बढ़ गया.

lifestyle

ट्रैफिक पुलिस और बूढ़े व्यक्ति के चेहरे पर इत्मीनान था. इस से ज्यादा इत्मीनान और खुशी उन चेहरों पर दिखी जो मदद के लिए आगे आए थे.

लोग शांति और सुकून की तलाश में न जाने कहांकहां भटकते हैं. वे कई मंदिरों और तीर्थों के फेरे लगा आते हैं. लेकिन फिर भी उन्हें शांति और सुकून नहीं मिलता. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो लोगों को छोटीछोटी खुशियां बांट कर मदद के लिए हाथ आगे बढ़ा कर असीम सुख और सुकून महसूस करते हैं, ऐसा सुकून जो पूजापाठ से हासिल नहीं होता.

छोटेछोटे कामों में बड़ीबड़ी खुशियां : 70 वर्षीया मन्नू देवी घरेलू महिला हैं. ये अपने पासपड़ोस में, रिश्तेदारों में देखती हैं कि कहीं कोई तकलीफ में है या जरूरतमंद है तो वहां पहुंच कर चुपके से उस की मदद अपनी सामर्थ्यानुसार कर आती हैं. घरों में काम करने वाली गरीब महिला के किसी बच्चे की स्कूल की फीस भर आती हैं तो कभी होनहार गरीब बच्चों के लिए छात्रवृत्ति दे आती हैं. और तो और, रास्ते चलते किसी गरीब बच्चे को देखती हैं तो झट उसे चौकलेट, खिलौने पकड़ा कर खामोशी से आगे बढ़ जाती हैं.

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एक सवाल के जवाब में मन्नू देवी कहती हैं, ‘‘काम ऐसा हो जिस से किसी के चेहरे पर खुशी आ जाए.

उस हंसते हुए चेहरे को देख कर जो खुशी मिलती है, उसे बयान नहीं कर सकती.’’

दूसरों की तकलीफ महसूस करती हैं: 69 वर्षीया दर्शन नरवाल ऐसी महिला हैं जो दूसरों के दर्द को शिद्दत से महसूस करती हैं.

एक बार शहर में ऐक्सिडैंट हुआ. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति रात में अपनी बाइक से घर जा रहा था. रास्ते का डिवाइडर अंधेरे की वजह से दिखा नहीं और दुर्घटना हो गई. कुछ ही देर में उस व्यक्ति की मौत हो गई. इस घटना से दर्शन नरवाल अंदर तक हिल गईं. घटनास्थल पर जा कर घटना के कारणों को समझा, तब समझ आया कि अंधेरे में डिवाइडर, ग्रिल आदि दिखाई नहीं देते, इसलिए ऐसी गंभीर दुर्घटनाएं होती हैं.

बस, फिर क्या था, सड़कों पर उतर कर उन जगहों को चिह्नित किया जो दुर्घटना का कारण बन सकती थीं. इस के बाद वे वहां पहुंच कर लालपीली रेडियम की पट्टी लगाती जाती हैं. वे रास्ते के पेड़ों पर, गांव की ओर जाती साइकिलों, बैलगाडि़यों पर भी रेडियम की पट्टी लगाती हैं ताकि ये अंधेरे में चमकें और लोगों को रास्ते का सही अंदाजा हो जाए.

पिछले 16 सालों से छत्तीसगढ़ के रायपुर में दर्शन नरवाल यह काम लगातार कर रही हैं. इस के अलावा वे गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें सिलाई मशीन, विकलांगों को ट्रायसाइकिल दे कर प्रशिक्षित करती हैं.

पूजापाठ करने से बेहतर टूटी झोंपड़ी ठीक कराना : ‘‘पूजापाठ का आयोजन कराने से कहीं बेहतर है किसी गरीब की टूटी झोंपड़ी ठीक कराना, बेसहारों, अनाथों के लिए घर बनवाना.’’ यह कहना है रायपुर निवासी बसंत अग्रवाल का. ये कहते ही नहीं, बल्कि कर के दिखाते हैं. ये दूसरों के दर्द को शिद्दत से महसूस करते हैं.

दूसरों के दर्द को महसूस करने का यह जज्बा आप को कहां से मिला? यह पूछने पर बसंत अग्रवाल कहते हैं, ‘‘अपने मातापिता से ऐसे संस्कार मिले हैं. जब हम गांव में रहते थे, हमारे घर में कोई भी अतिथि आता था तो मां उसे खिलाए बिना जाने नहीं देती थीं. अगर किसी के पास जाने का साधन नहीं होता था तो उसे साधन जुटा कर देते थे. ये सब बचपन से देख कर हम ने सीखा है औरों के काम आना.’’

बसंत अग्रवाल की एक खास बात यह है कि वे अपने कार्यों का प्रदर्शन या दिखावा नहीं करते, सिर्फ स्वयं की भीतरी खुशी के लिए वे ऐसा करते हैं.

कोशिश किसी के काम आ पाने की : कूलर इंडस्ट्रीज चलाने वाले रायपुर के दिलीप कुंदु बहुत ही भावुक प्रवृत्ति के इंसान हैं. उन में एक भावना है कि वे किसी के काम आएं.

इस के लिए जरूरी नहीं कि व्यक्ति हजारोंलाखों रुपए खर्च कर के ही किसी की मदद कर सकता है. बिना कुछ खर्च किए भी इंसान किसी की मदद कर के यादगार बना रह सकता है.

दिलीप कुंदु चूंकि कूलर के व्यवसाय से जुड़े हैं, लिहाजा, अपने जुड़े कार्य से ही ये लोगों की भरपूर मदद करते हैं, जैसे किसी के घर में शोक (गमी) होता है, गरमी में शोकसभाओं में कूलर की जरूरत होती है, तो ऐसे घरों में वे निशुल्क कूलर भिजवा कर सेवा देते हैं. अनाथालयों में कूलरों की निशुल्क मरम्मत करवा देते हैं.

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एक बार ये एक बेसहारों के आश्रम में गए. वहां उस दिन भोजन नहीं बना था. कारण पूछा तो पता चला गैस सिलैंडर खत्म हो गया है, दूसरा नहीं है. बस, फिर क्या था, दिलीप कुंदु ने महज 20 मिनट में एक भरे गैस सिलैंडर की व्यवस्था की. तब जा कर वहां खाना बना. खाना खा कर तृप्त हुए लोगों ने उन्हें तहेदिल से शुक्रिया अदा किया. दिलीप कहते हैं, ‘‘मेरी कोशिश रहती है कि मैं किसी के काम आऊं.’’

रक्तदान कर के बचाते हैं जीवन : 53 वर्षीय मुकुंद राठौर अपनी 18 वर्ष की उम्र से रक्तदान कर रहे हैं. रक्तदान करने का उन में ऐसा जनून है कि 35 वर्षों में अब तक वे 47 बार रक्तदान कर चुके हैं.

इन के साथ एक दुखद घटना घटी. इन के बेटे की असमय ही मृत्यु हो गई. बेटे के जीवन को स्मरणीय बनाने के लिए उस की पुण्यतिथि पर न सिर्फ वे खुद रक्तदान करते हैं बल्कि कैंप लगा कर 50 बोतल रक्त इकट्ठा कर अस्पतालों को निशुल्क दान करते हैं ताकि लोगों को जीवनदान मिल सके.

वे कहते हैं, ‘‘मेरे रक्त से जब किसी का जीवन बचता है तो मुझे बहुत ज्यादा खुशी मिलती है.’’

जख्मों को छील कर उस पर नमक छिड़कने वाले लोग बहुत मिल जाएंगे लेकिन दुखते जख्मों पर मरहम लगाने वाले लोग कम ही होते हैं.

दरअसल, अपने जीवन को वही लोग सार्थक करते हैं जो औरों के काम आते हैं.

आज समाज में जिस तरह से असहष्णिता बढ़ रही है और लोग छोटीछोटी बातों पर हिंसा पर उतारू हो रहे हैं, ऐसे समय में दूसरों की खातिर कुछ कर गुजरने वालों की सख्त जरूरत है.

छत पर उगाएं हरी सब्जियां और जहरीली सब्जियों से पाए नजात

खाने पीने की वस्तुओं में आज मिलावट की जा रही है. शुद्घ हरी सब्जियों का मिलना मुश्किल हो गया है. लौकी, तुरई, पालक, फूलगोभी, पत्तागोभी आदि सब्जियों में तरहतरह की रायायनिक खाद के साथ ही जहरीले कीटनाशक मिला कर खुलेआम बेचा जा रहा है. हम न चाहते हुए भी जहरीली सब्जियां खाने को मजबूर हैं.

मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में रहने वाले रिटायर्ड अफसर जी एस कौशल अपने घर की छत पर साल के बारहों महीने हरी सब्जियां उगाते हैं. इस बारे में वे बताते हैं कि जहरीली सब्जियों से नजात पाने के लिए उन के दिमाग में यह बात आई.

घर से निकलने वाले गचरे, खाने के जूठन को वे फेंकते नहीं हैं, बल्कि इस से वे खाद तैयार करते हैं, जो छत में लगे पौधों को देने के काम में आती है. जी एस कौशल अपने दोमंजिले मकान की छत पर सब्जियों के अलावा अमरूद, नीबू, अनार और मुनगा के पेड़ भी लगाए हुए हैं.

कृषि विभाग से सेवानिवृत्त हुए जी एस कौशल बताते हैं, ‘‘वे कभी सब्जी के लिए बाजार का रुख नहीं करते. मुझे घर की छत पर तैयार नर्सरी से सब्जी मिल जाती है, जो एकदम तरोताजा होती है. इन सब्जियों की एक खास बात यह भी है कि मैं देशी बीजों से ही सब्जी की फसल तैयार करता हूं. पौधों में स्वनिर्मित जैविक खाद का प्रयोग करता हूं. खाद निर्माण के लिए छत पर एक हिस्से में व्यवस्था कर रखी है. गोबर, गौमूत्र, गुड़, सड़ेले फल, छिलके और हरा कचरा मिला कर खाद तैयार करता हूं. इस के लिए सभी वस्तुओं को पानी में डाल कर उस में गुड़ डाल देता हूं. 2 से 3 महीनों में जैविक खाद बन कर तैयार हो जाती है.’’

जी एस कौशल ने सब्जी उगाने के लिए गमलों के अलावा घर से निकले कबाड़ के सामान का बखूबी इस्तेमाल किया है. उन्होंने कार के खराब हो चुके बंपर, खराब वाशिंग मशीन, बालटी आदि में मिट्टी भर कर उस में भिंडी, लौकी, बैगन, टमाटर, कुंदरू, अमरूद, अनार, करेला आदि लगाए हैं.

जी एस कौशल का मानना है कि शहर के लोगों को इस तरह से जैविक बागबानी करनी चाहिए जिस से कि पौष्टिकता से भरपूर हरी सब्जियां खाने को मिल सकें.

घने कोहरे में

घने कोहरे में

कोई मुसकरा कर गया

आहट सी कोई

स्तब्ध किए मुझे

मेरे मुंह को

निशब्द बना

रागिनी सी रजनी

यों यायावर बनी

गहन अंधियारे को चीरती

लौट गई

कहीं और सिमट गई

यों ही

उदित हो चला

उजियारे में वो

मुसकराता सा चेहरा

जो कोहरे से

अब कहीं दूर

हो चला था.

– मनोज शर्मा

यह भी खूब रही

बात मेरे मामा के लड़के की शादी की है. मेरी मामी को हर बात में यह कहने की आदत थी कि ऐसा तो मेरे मायके में भी होता है. उन की इस आदत से सभी परेशान थे. शादी की रस्में हंसीखुशी संपन्न हो रही थीं. फेरों के समय मामा ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘आज के समाचारपत्र में यह खबर छपी है कि दिल्ली में नईनवेली दुलहन ने सास को इतना प्रताडि़त किया कि सास घर छोड़ कर चली गई. देखोदेखो कैसा जमाना आ गया है.’’

इस बात पर सभी लोग अपनीअपनी टिप्पणी करने लगे. उधर, मेरी मामी बिना कुछ सुने अपनी आदत के मुताबिक बोलीं, ‘‘इस में ऐसी क्या बड़ी बात है, ऐसा तो मेरे मायके में भी होता है.’’

यह सुन कर मंडप में मौजूद सभी लोग जोरजोर से हंस पड़े और कहने लगे, वाहवाह, क्या खूब रही. उधर मामी अपनी कही बात समझ में आने पर वहां से खिसिया कर चली गईं.

राधा काल्या

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बैंक से पैसे निकलवाने गया था. चैक मेरे पर्स में था. मेरा स्वभाव है, घर पर ही चैक भर लेता हूं, हस्ताक्षर छोड़ देता हूं. वह मैं बैंककाउंटर पर ही करता हूं. आज काउंटर पर अधिक भीड़ नहीं थी. मेरे आगे 4 व्यक्ति थे. मैं ने पर्स से चैक निकाला, जेब में हाथ डाला. सदा की भांति वहां पैन नहीं था.

मैं ने आगे खड़े सज्जन से पैन मांगा. उन के पास भी पैन नहीं था. उन्होंने अपने आगे खड़ी युवती की ओर संकेत किया. मुझे कुछ संकोच हुआ. किंतु मांगने के सिवा कोई चारा नहीं था.

‘‘एक्सक्यूज मी, कैन आई हैव योर पैन प्लीज?’’ मैं ने युवती से अनुरोध किया.

उस ने मेरी ओर देखा, मुसकराई, फिर अपने पर्स से पैन निकाल कर मुझे दे दिया.

मैं ने एक कोने में खड़े हो कर हस्ताक्षर किया. फिर पैन लौटाने क लिए मुड़ा. युवती को पैसे मिल गए थे. वह काउंटर छोड़ कर बाहर जा रही थी. शायद, पैन वापस लेना भूल गई थी. मैं तेजी से उस की ओर बढ़ा, ‘‘थैंक्स फौर योर पैन.’’

वह फिर मुसकराई, ‘‘इट्ज ओके. इसे अपने पास ही रखिए. मैरा अदना सा गिफ्ट समझ कर सदा अपने पास रखिए. अन्यथा कभी परेशानी में पड़ जाएंगे.’’

वह बिना कुछ और बोले तेजी से आगे बढ़ गई. मैं उसे देखता रह गया पैन हाथ में लिए. यह गिफ्ट नहीं था,शायद सबक था.

सत्यस्वरूप दत्त 

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