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विरुष्का के बाद अब रणवीर-दीपिका करेंगे श्रीलंका में सगाई..!

विराट-अनुष्का की गुपचुप शादी के बाद अब एक और बौलीवुड कपल की शादी के चर्चे शुरू हो गए हैं. हम बात कर रहे हैं रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की. दीपिका और रणवीर को लेकर कई खबरें आती रहती हैं. कभी दोनों के रिलेशन की तो कभी दोनों के ब्रेकअप की, लेकिन अब जो खबर आ रही है वो तो बहुत ही चौंकाने वाली खबर हैं.

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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रणवीर श्रीलंका में एक ऐड शूट करने के लिए गए थे. दीपिका भी न्यू इयर के मौके पर वहीं पहुंच गईं और दोंनों ने साथ ही नए साल का जश्न मनाया. अब खबर है कि दीपिका अपना बर्थडे भी वहीं मनाने के मूड में हैं. इसके साथ ही ये खबर भी है कि इस मौके पर दोनों अपने रिलेशन में एक स्टेप आगे बढ़ा सकते हैं. बता दें कि 5 जनवरी को दीपिका पादुकोण का 32वां जन्मदिन है और इस मौके को और भी ज्यादा खास बनाने के लिए दीपिका, रणवीर के साथ सगाई कर सकती हैं. हालांकि, इस बात की दोनों में से किसी ने भी पुष्टी नहीं की है.

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बता दें कि रणवीर और दीपिका हर जगह साथ ही दिखाई देते हैं. वह इवेंट्स और पार्टीज में भी साथ आते-जाते हैं. दोनों एक साथ छुट्टियां भी मनाने जाते हैं. हालांकि लंबे समय तक दोनों में से किसी ने भी कभी अपने रिश्ते के बारे में खुलकर बात नहीं की थी, लेकिन हाल ही में दीपिका ने कुबूल किया था कि रणवीर उनके ब्वायफ्रेंड हैं.

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मालूम हो कि कुछ ही समय पहले रणवीर दीपिका के पैरंट्स से भी मिले थे. जिसके बाद से ही दोनों की शादी की अटकलें लगाई जाने लगी थी. दीपिका और रणवीर ने साथ में ‘रामलीला’, ‘बौम्बे टौकीज’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसी फिल्मों में काम किया है. उनकी अगली फिल्म ‘पद्मावती’ है, जो दिसंबर में ही रिलीज होने वाली थी लेकिन विवादों के कारण इसकी रिलीज टल गई. फिल्म में रणवीर सिंह अलाउद्दीन खिलजी का किरदार निभा रहे हैं और दीपिका रानी पद्मावती के किरदार में हैं.

घटिया चुनावी बोल : चुनावी भाषा पर इन घावों का नासूर सालों तक रहेगा

गुजरात चुनाव ने जो घाव चुनावी भाषा पर छोड़े हैं उन का नासूर सालों तक रहेगा. हारजीत किसी की भी हो, शब्द जो दोनों तरफ से बोले गए, गंभीर थे क्योंकि इन्हें बोलने वाले एक तरफ नरेंद्र मोदी और उन के सहयोगी व दूसरी तरफ कांग्रेस के कई नामी नेता थे. सड़कछाप नेता तो हर चुनाव में असभ्य बोल बोलते ही रहते हैं.

सोशल मीडिया ने छोटीछोटी बातों को खूब उछाला. टीवी ऐंकरों ने कागजों से बेबात के मुद्दे निकाल कर इतना दोहराए कि मानो वे कहीं अशोक की लाट पर लिखे शब्द हों. चुनावी भाषणों का स्तर हमेशा ही नीचा होता है पर चूंकि प्रधानमंत्री ने न केवल हर अपशब्द को लपक लिया, बल्कि उस पर और गंद जमा कर वापस फेंक दिया. यह चाहे चुनावी तिकड़म हो, पर यह मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह व अमेरिकी चुनावों की तरह दुर्गंध छोड़ गई है.

चुनावों में जीत की छटपटाहट लगभग अद्भुत थी और हर नेता तनाव में था. राहुल गांधी ने लगातार आक्रमण कर के और गुड्स एवं सर्विसेज टैक्स को गब्बर सिंह टैक्स कह कर एक गंभीर मामले को सड़क पर लाने का काम किया तो प्रधानमंत्री ने बेपर की पाकिस्तानी सुपारी की बात कह  डाली और खुद को गुजरात की अस्मिता का इकलौता नमूना घोषित कर डाला. अगर कभी ‘इंदिरा इज इंडिया’ कहा गया तो नरेंद्र मोदी ने खुद नरेंद्र मोदी ही गुजरात है जैसा घोषित कर दिया, जिस की देखादेखी उन के प्रवक्ता संबित पात्रा ने नरेंद्र मोदी को देश का बाप घोषित कर डाला.

गलीछाप औरतों की सी तूतूमैंमैं, जिस में 3 पीढि़यों का इतिहास उधेड़ा गया, विशाल पंडालों और स्क्रीनों से हुईं. गनीमत यह रही कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का आमनासामना अमेरिकी व यूरोपीय चुनावी परंपरा के अनुसार नहीं हुआ वरना शायद दोनों हाथापाई तक पर उतर आते.

हर घर की जरूरत बन चुके एलईडी बल्ब का काला कारोबार

भले ही देश में लाइट एमिटिंग डियोड्स यानी एलईडी बल्ब का बाजार 10 हजार करोड़ रुपए से ऊपर चला गया है, लेकिन घीरेधीरे यह काले कारोबार में तबदील हो रहा है, जो निश्चितरूप से चिंता की बात है. मौजूदा समय में एलईडी बल्ब का बाजार नकली उत्पादों से भरा पड़ा है. कंपनियां इसे मुनाफा कमाने का एक बड़ा साधन मान कर चल रही हैं.

इलैक्ट्रिक लैंप ऐंड कंपोनैंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन यानी एलकोमा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2010 में एलईडी लाइटिंग का भारतीय बाजार महज 500 करोड़ रुपए का था, जो अब बढ़ कर 10 हजार करोड़  रुपए का हो गया है. यह 22 हजार करोड़ रुपए की पूरी लाइटिंग इंडस्ट्री का लगभग 45 प्रतिशत से भी ज्यादा है. दरअसल, एलईडी बल्ब में विद्युत ऊर्जा की कम खपत होती है और इस की रोशनी पारंपरिक बल्ब से ज्यादा होती है, फिर भी यह आंखों को नहीं चुभती है, जिस के कारण इस की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है.

वैश्विक स्तर की ख्यातिप्राप्त एजेंसी नीलसन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि घरेलू बाजार में उलब्ध एलईडी बल्ब के 76 और एलईडी डाउनलाइटर के 71 प्रतिशत ब्रैंड सुरक्षामानकों के अनुकूल नहीं हैं. गौरतलब है कि ये मानक भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआईएस और इलैक्ट्रौनिक्स एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय ने तैयार किए हैं. नीलसन ने अपने सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद में बिजली के उत्पादों की खुदरा बिक्री करने वाली 200 दुकानों के एलईडी बल्बों को नमूने के तौर पर शामिल किया था.

एलकोमा के अनुसार, बीआईएस मानकों के उल्लंघन के सब से ज्यादा मामले दिल्ली में देखे गए हैं. एलकोमा की मानी जाए तो अधिकृत मापदंडों पर खरा नहीं उतरने वाले उत्पादों से उपभोक्ता गंभीररूप से बीमार हो सकते हैं.

अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन यानी एएमए द्वारा 14 जून, 2016 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार एलईडी द्वारा निकलने वाली रोशनी मानवस्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. नकली उत्पाद से जोखिम की गंभीरता और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

दूसरी तरफ नकली उत्पादों को बेचने से सरकार को भारीभरकम राजस्व का नुकसान हो रहा है क्योंकि ऐसे उत्पादों का निर्माण व उन की बिक्री गैरकानूनी तरीके से की जा रही है. देखा जाए तो नकली एलईडी बल्ब के कारोबार से सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ संकल्पना को भी नुकसान हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2017 में बीआईएस ने एलईडी बल्ब निर्माताओं को उन के उत्पाद की सुरक्षा जांच के लिए बीआईएस में पंजीकृत कराने का निर्देश दिया था, लेकिन कंपनियां इस आदेश की अनदेखी कर रही हैं. एलईडी बल्ब के काले कारोबार में बढ़ोतरी का एक बहुत बड़ा कारण भारतीय बाजार का चीन के उत्पादों से भरा हुआ होना भी है. आज की तारीख में एलईडी बल्ब बड़े पैमाने पर चीन से भारत गैरकानूनी तरीके से लाए जा रहे हैं.

सर्वेक्षण के मुताबिक, एलईडी बल्ब के 48 प्रतिशत ब्रैंडों पर बनाने वाली कंपनी का पता दर्ज नहीं है, जबकि 31 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर कंपनी का नाम नहीं लिखा है. साफ है, इन का निर्माण गैरकानूनी तरीके से किया जा रहा है. इसी तरह एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले में भी 45 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर निर्माता का नाम दर्ज नहीं है और 51 प्रतिशत ब्रैंडों के उत्पादों पर कंपनी का नाम नहीं लिखा हुआ है.

नीलसन की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में शामिल दिल्ली में बिकने वाले एलईडी बल्ब के तकरीबन तीनचौथाई ब्रैंड बीआईएस मानकों के अनुरूप नहीं हैं. एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले की भी लगभग ऐसी ही स्थिति है. वर्तमान में घर, बाजार और दफ्तर में धड़ल्ले से एलईडी बल्बों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी वजह से रोशनी के बाजार में इस की हिस्सेदारी बढ़ कर आज 50 प्रतिशत हो गई है.

हाल ही में सरकार ने ‘उजाला’ योजना के तहत देशभर में 77 करोड़ पारंरिक बल्बों की जगह एलईडी बल्ब इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखा है. इस आलोक में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने आपूर्ति करने वाले निर्माताओं या डीलरों को स्टार रेटिंग वाले एलईडी बल्ब की आपूर्ति करने का निर्देश दिया है ताकि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े.

बहरहाल, मौजूदा परिदृश्य में सरकार को नकली एलईडी बल्बों के प्रसार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए, खासकर चीन से गैरकानूनी तरीके से आने वाले नकली व बिना ब्रैंड वाले उत्पादों को. नकली या बिना ब्रैंड वाले एलईडी बल्ब ईमानदार कारोबारियों, सरकार व उपभोक्ताओं सभी के लिए नुकसानदेह हैं.

‘मी टू कैंपेन’ को न बनाएं इतना बड़ा इश्यू

औस्कर अवार्ड विजेता हौलीवुड निर्देशक हार्वे वेंस्टीन ने जब यह स्वीकार किया कि एक अभिनेत्री द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं तब बहुत सारी दूसरी औरतें भी ‘मी टू’ यानी मैं भी शिकार हूं कहने के लिए खड़ी हो गईं. अमेरिका के समाज में महिलाओं ने भले ही यह स्वीकार कर खुलेआम इस अभियान को चलाया हो पर भारत में अभी कोई भी खुल कर इस विषय में बात नहीं करना चाहता.

भारत में मी टू कैंपेन को चलाने वाली महिलाओं की संख्या कम है. औफ द रिकौर्ड बात करने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है. फिल्मों और फैशन की दुनिया में बात करने पर पता चलता है कि यहां के हालात अभियान से कहीं अधिक गंभीर हैं. यहां मी टू को इश्यू बनाना उतना सरल भी नहीं है. यह कई तरह की बाधाएं खड़ी करने वाला अभियान हो सकता है. शायद यही वजह है कि भारत में इस अभियान को लोगों ने स्वीकार नहीं किया है.

मी टू के जरिए सभ्य समाज की पोल खुल रही है. सफल महिलाएं तक यह बता रही हैं कि उन को भी कभी न कभी मी टू का शिकार होना पड़ा है. मी टू का मतलब छेड़छाड़ से सैक्स तक की घटनाओं से जुड़ा है. असल में मी टू के लिए पढ़ेलिखे और अनपढ़ जैसी कोई सीमारेखा नहीं है. पहले इन बातों को लोग छिपाते थे, अब इन को बताने लगे हैं. कहा यह जा रहा है कि मी टू जैसे कैंपेन से महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाएं रुकेंगी. अमेरिका जैसे देश में जहां छेड़छाड़ को छिपाया नहीं जाता वहां भी ऐसी घटनाएं घट रही हैं.

भारत से ले कर अमेरिका तक मी टू अभियान में ज्यादातर मामले फिल्मी दुनिया के ही आ रहे हैं. कुछ मामले महिला खिलाडि़यों के हैं. हौलीवुड के प्रख्यात फिल्म निर्माता हार्वे वेंस्टीन के खिलाफ महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले सुर्खियों में हैं. बताया जाता है कि वेंस्टीन फिल्म अभिनेत्रियों को मजबूर करते थे.

अमेरिका के ओहायो सुप्रीम कोर्ट के जज ने अपने बयान में कहा कि उन के 50 से अधिक महिलाओं से संबंध रहे हैं. जज बिल ओ नील ने फेसबुक पर यह शेयर किया था. नील ने बताया कि उन के पिछले 50 सालों में 50 बेहद सुंदर महिलाओं से यौनसंबंध रहे हैं. 70 साल के जज नील ने 2 महिलाओं के नाम लिख कर इस बात का जिक्र किया था. नील ने लिखा कि इन खूबसूरत 50 महिलाओं में निजी सचिव से ले कर विधायक यानी सीनेटर तक शामिल हैं. नील ने एक सीनेटर को अपना पहला और सगा प्यार बताया. नील के इस बयान की बाद में आलोचना भी हुई. तब नील ने माफी भी मांगी.

अमेरिका से अलग नहीं भारत के हालात

अमेरिका में पिछले दिनों यौनशोषण के कई मामले सामने आए. इन में अमेरिका के कई जानेमाने नाम सामने आए. जिन दिनों अमेरिका में ये नाम उभरे, भारत में मी टू अभियान सामने आया. भारत में कई अभिनेत्रियों ने इस मुहिम का हिस्सा बनते हुए बताया कि वे भी मी टू की शिकार हुई हैं. असल में भारत में इस बात को केवल सुर्खियों में बने रहने के लिए प्रयोग किया गया. यही वजह है कि इसे छेड़छाड़ तक ही सीमित रखा गया.

भारत की फिल्मी दुनिया से ले कर राजनीति और दूसरे हलकों में ऐसे किस्से दबी जबान से कहेसुने जाते रहे हैं. फिल्मी दुनिया में इसे ‘कास्ंिटग काउच’ और कंप्रोमाइजिंग का नाम दिया गया. यहां हीरो ही नहीं, फिल्मों के निर्माता और निर्देशक पर ऐसे आरोप लगे. फिल्मों में काम देने के बहाने यौन संबंधों के लिए दबाव बनाया गया.

खुलेआम इस तरह की घटनाओं पर कम ही लोग खुल कर बोलते हैं. ज्यादातर ऐसे बयान तब ही सामने आते हैं जब कोई आपराधिक घटना घट जाए या फिर वादा कर के उस को पूरा न किया जाए. केवल फिल्मों में ही नहीं, राजनीति में भी ऐसी घटनाओं की लंबी लिस्ट है. यौनशोषण से शुरू हुई घटनाएं अकसर हत्या जैसी जघन्य अपराधों में बदल जाती हैं.

उत्तर प्रदेश में मधुमिता हत्याकांड और कविता चौधरी हत्याकांड इस के प्रत्यक्ष उदाहरण रहे हैं. कई दूसरे नेताओं के महिला नेताओं से संबंध चर्चा का विषय रहे हैं. यह बात और है कि हमारे देश में इसे खुल कर स्वीकार नहीं, किया जाता, छिपाने का प्रयास किया जाता है. जिस के कारण हत्या जैसी जघन्य घटनाएं घट जाती हैं.

भारत में जब सोशल मीडिया पर मी टू अभियान की शुरुआत हुई तो बहुत सारी महिलाएं सामने आईं. 2006 में शुरू हुए इस अभियान को 15 अक्तूबर, 2017 को अलाइशा मिलानो ने इसे फिर से चर्चा में ला दिया. इस अभियान से लोग जुड़े जरूर, पर केवल दिखावा भर के लिए.

धर्म का असर

यौनशोषण की घटनाएं भारत में हर तरफ होती हैं. इन की चर्चा नहीं होती. इस पर बात करते हुए बिहार की राजधानी पटना की एक अभिनेत्री कहती है, ‘‘हमारे जीवन पर धर्म की कहानियों का बहुत असर है. गौतम की पत्नी अहल्या से छल करने वाले इंद्र के बजाय अहल्या को ही दोष दिया गया है. उसे ही पत्थर बनना पड़ा है. आज भी पुरुष का कोई दोष नहीं माना जाता है.

‘‘अहल्या ही नहीं, सीता को भी देखें, तो यही घटना सामने आई. सीता को अग्निपरीक्षा देने के बाद भी समाज से बाहर निकलना पड़ा. ये कहानियां आज भी दिलोदिमाग पर हावी हैं. इन सब से यहां औरत को ही गलत माना जाता है. इसी वजह से शोषण का शिकार होने के बाद भी कोई औरत अपनी बात कहना नहीं चाहती. उसे इस बात का डर होता है कि ऐसे मामले सामने आने के बाद लोग उसे काम देना बंद कर देंगे.’’

पटना की रहने वाली यह अभिनेत्री टीवी सीरियलों में काम करने मुंबई आई थी. यहां आ कर उस के सामने ऐसे प्रस्ताव आने लगे कि जब तक समझौता नहीं करोगी, रोल नहीं मिलेंगे. वह कहती है, ‘‘प्रोड्यूसर से ले कर हीरो तक इस चाहत में रहते हैं. ऐसे कलाकारों की ही सिफारिश करते हैं जो उन के साथ संबंध बनाने में राजी हों.’’

हिंदी सिनेमा में यह कोई चर्चा का विषय नहीं रह गया है. मी टू अभियान में ये अपनी बात क्यों नहीं कहतीं? इस सवाल पर नाम न छापने की शर्त पर वह कहती है, ‘‘मी टू का शिकार तो बहुत हैं. सच कहेंगी तो काम नहीं मिलेगा, कैरियर के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे.’’

भोजपुरी फिल्मों की 2 प्रमुख अभिनेत्रियों से बात की तो वे बोलीं, ‘‘भोजपुरी फिल्मों की हालत सब से अधिक खराब है. यहां छोटेछोटे शहरों की लड़कियां काम करने आती हैं. पैसे से भी वे उतना मजबूत नहीं होतीं और परिवार के लोग उन का साथ नहीं देते. ऐसे में काम करना उन की मजबूरी हो जाती है.’’

इन दोनों ने बताया कि भोजपुरी फिल्मों में हीरो अपनी जोड़ी बना कर काम करते हैं. जो लड़की समझौता करती है उस की सिफारिश की जाती है. जो लड़की समझौते के लिए तैयार नहीं होती, उस के साथ काम करने से मना कर दिया जाता है. यही वजह है कि नई लड़कियां यहां कम आती हैं. ऐसी आवाज उठाने वाली लड़कियों के काम करने के रास्ते बंद हो जाते हैं.

घटते अवसर

लड़कियों की सुरक्षा के लिए काम कर रही समाजसेवी विनीता ग्रेवाल कहती हैं, ‘‘एक ऐसी ही घटना की शिकार लड़की हमारी संस्था में आई. हम ने उस की कांउसलिंग कर के एक शौप पर नौकरी में रखवा दिया. इस बात की जानकारी एक समाचारपत्र में छपी तो शौप के मालिक को यह पता चल गया.

‘‘नतीजतन, उस ने लड़की को उस का वेतन दिया और आगे न आने के लिए कह दिया. जब हम ने इस बारे में पूछा तो उस ने बहाना बना दिया. दूसरी लड़कियों ने बताया कि जब दुकानदार को यह पता चला कि लड़की इस तरह की घटनाओं को तूल दे देती है तो उस ने उसे जौब से हटाने का फैसला ले लिया. उसे लगता था कि ऐसी लड़की से शौप की इमेज खराब हो जाती है.’’

विनीता ग्रेवाल ने एक लड़की को ब्यूटीपार्लर चलाने के लिए शौप किराए पर दिलाई. मकानमालिक को जैसे ही इस बात का पता चला कि लड़की इस तरह से विवादों में उलझी है, उस ने दुकान देने से मना कर दिया. विनीता कहती हैं, ‘‘हमारे समाज में लोग ऐसी लड़कियों से दूर रहना चाहते हैं जो मी टू घटनाओं का शिकार होती हैं. इस तरह की शिकार लड़कियों को ही गलत माना जाता है. यही वजह है कि समाज में बहुत सारी घटनाओं के घटने के बाद भी महिलाएं सामने आ कर कुछ कहने से बचती हैं.’’

यह बात केवल आम लोगों की नहीं है. संसद में जब महिला सुरक्षा बिल पास हो रहा था, कई नेताओं ने इस बात के तर्क दिए कि इस तरह का बिल आने के बाद लड़कियों के लिए काम के अवसर कम हो जाएंगे. यह चिंता गलत नहीं थी. कौर्पोरेट वर्ल्ड में अघोषित पौलिसी बन गई, जिस में  लड़कियों की जौब औफिस वर्क के लिए ही होने लगी. टूरिंग जौब से लड़कियों को दूर किया जाने लगा.

एक कंपनी की एचआर मैनेजर ने बताया कि टूर के समय अगर 2 या 3 लड़के हैं तो वे एक रूम में रह लेंगे. काम के समय देर को ले कर कोई परेशानी नहीं होगी. लड़की के होने से कंपनी को काम से ज्यादा चिंता लड़की की रखनी पड़ती है. लड़की की शिकायत पर कंपनी की छवि तो खराब होती ही है, उसे कानूनी दांवपेंच में भी फंसना पड़ता है. ऐसे में एचआर का प्रयास यह होने लगा कि लड़की के बजाय काम करने के लिए लड़कों को ही रखा जाए. इस से लड़कियों के सामने कैरियर के औप्शंस कम होते जा रहे हैं.

सफलता की गारंटी नहीं होते ब्यूटी पेजेंट्स

हौलीवुड की सुपरस्टार ऐक्ट्रैस हेली बेरी सब से ज्यादा कमाई करने वाले सितारों की लिस्ट में कई सालों तक टौप पर रहीं. लेकिन उन के बारे में यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि इस जेम्स बौंड गर्ल को साल 1986 की मिस वर्ल्ड की प्रतियोगिता में 6वां स्थान दे कर एक तरह से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. जबकि उस साल की विजेता रही मिस वर्ल्ड जिसेले लारोंडे को त्रिनिदाद टोबैगो की पहली मिस वर्ल्ड होने गौरव मिला.

साल 1986 से अब तक करीब 30 साल से भी ज्यादा गुजर चुके हैं. उस साल की मिस वर्ल्ड जिसेले कहीं गुमनामीभरा जीवन जी रही हैं जबकि हेली बेरी आज भी दुनिया में कामयाब सितारा की हैसियत रखती हैं.

इस तुलना का उद्देश्य किसी खास शख्सियत की असफलता को आंकना या किसी को महिमामंडित करने का नहीं, बल्कि यह बताना भर है कि मिस वर्ल्ड, मिस यूनीवर्स, मिस प्लेनेट, मिस अर्थ, मिस इंडिया, मिस एशिया पैसिफिक, मिस इंडिया वर्ल्ड, मिस इंडिया यूनिवर्स जैसी ब्यूटी पेजेंट्स यानी सौंदर्य प्रतियोगिताओं के विजेता होने का मतलब यह नहीं कि अब आप का कैरियर हवाई स्पीड से आसमान को छू लेगा.

ब्यूटी कौंटैस्ट्स की 90 प्रतिशत विजेता महिलाओं का कैरियर किसी खास मुकाम पर नहीं पहुंच सका है जैसा कि उन के जीतने के समय प्रतीत होता है. भारत में भले ही इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं को कामयाबी और शोहरत की गारंटी मानने की गलतफहमी हो लेकिन आंकड़े और असलियत कुछ और ही बयां करते हैं.

रिऐलिटी शो सरीखी है इन की जीत

भारत की ओर से इस साल मिस वर्ल्ड का खिताब जीत कर आईं मानुषी छिल्लर अभी पूरे देश में सितारा बनी हुई हैं. सरकार उन के नाम पर एक के बाद एक इनाम और तोहफों की बारिश कर रही है. निजी कंपनियां कई मौडलिंग असाइंमैंट देने के लिए बेताब हैं और फिल्म इंडस्ट्री  कतार में खड़ी है कि वह मानुषी को फिल्मों में लौंच कर के ही दम लेगी.

लेकिन क्या इतना सबकुछ होने के बावजूद इस बात की गारंटी है कि मानुषी छिल्लर अपनी मौजूदा जीत की कामयाबी और सितारा कद को बरकरार रख पाएंगी? बिलकुल नहीं. ज्यादातर मामलों में तो ऐसा ही देखा गया है. दुनियाभर में जितने भी ब्यूटी पीजेंट हुए हैं उन में ज्यादातर की विजेता बहुत जल्दी ही कामयाबी की लाइमलाइट से बाहर हो गईं जबकि अन्य क्षेत्रों से आई महिलाओं ने ज्यादा नाम व शोहरत कमाई. यह हाल सिर्फ विदेश का ही नहीं, बल्कि भारत समेत दुनिया के हर देश का है.

सच तो यह है कि इन की जीत किसी रिऐलिटी शो सरीखी है जहां बड़े स्तर पर आयोजन होता है. दुनियाभर के दर्शक और जज आप का टैस्ट लेते हैं. जीतने पर एक बड़ी रकम और कुछ दिनों के लिए सुर्खियां मिलती हैं. लेकिन इस के बाद इन विजेताओं का कैरियर किस दिशा में जाता है, इस बात को किस को पड़ी होती है. स्पौंसर्ड कंपनियां, आयोजक और सैटेलाइट चैनल अपना मुनाफा कमा कर चलते बनते हैं और विजेता ग्लैमर व कामयाबी की लाइमलाइट में अंधा हो जाता है. वरना याद कीजिए कितने कौंटैस्ट, रिऐलिटी शोज और टैलेंट कंपीटिशंस के विनर्स अपनी कामयाबी को कायम रख पाए हैं? गिनती के नाम होंगे.

इन टैलेंट शोज की तरह ही मिस वर्ल्ड और मिस यूनीवर्स प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, बड़ेबड़े सौंदर्य उत्पाद स्पौंसर करते हैं और रंगारंग जलसे में एक देश का प्रतिभागी जीत जाता है. लेकिन उस जीत के बाद उस प्रतिभागी का कैरियर गुमनामी की किस मांद में जा कर दम तोड़ देता है, इस की परवा किसी को नहीं रहती.

कितनी मिस वर्ल्ड व मिस यूनीवर्स कामयाब हैं?

सच को किसी सुबूत की जरूरत नहीं होती. जरा कुछ मिस वर्ल्ड या ब्यूटी पेजेंट्स के कैरियर पर नजर डाल लेते हैं, सब साफ हो जाएगा. अब तक भारत की ओर से कुल 6 महिलाओं ने मिस वर्ल्ड जैसे खिताब अपने नाम किए हैं. वर्ष 1966 में भारत की रीता फारिया पहली मिस वर्ल्ड बनीं. भारत और एशिया की पहली मिस वर्ल्ड होने का गौरव हासिल करने वाली रीता पेशे से डाक्टर हैं. खिताब जीतने के बाद उन से लोगों ने उम्मीदें लगाई थीं कि ये दुनिया में कुछ बड़ा करेंगी लेकिन मैडिकल पेशे को ही अपनाया और शादी कर के आयरलैंड में शिफ्ट हो गईं. बीच के कुछ साल उन्होंने  कुछ ब्यूटी कौंटैस्ट में बतौर जज सक्रियता दिखाई लेकिन आज उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर न के बराबर ही देखा जाता है.

फारिया के बाद लगभग 28 साल बाद 1994 में ऐश्वर्या राय ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता. यह वही साल था जब सुष्मिता सेन भी मिस यूनीवर्स बन दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रही थीं. लेकिन उस के बाद क्या हुआ. दोनों ने बौलीवुड में कैरियर आजमाया. सुष्मिता सेन का कैरियर कुछ फिल्में करने के बाद खत्म हो गया और अब वे इक्कादुक्का ब्यूटी इवैंट्स में शिरकत करती दिखती हैं जबकि ऐश्वर्या राय बच्चन आज भले ही नामी हस्ती बन गई हैं लेकिन प्रतियोगिता जीतने के बाद उन्हें अचानक से कोई कामयाबी नहीं मिली थी. खिताब जीतने के बाद कई सालों तक वे रीजनल फिल्मों यानी तमिल और तेलुगु में संघर्ष करती रहीं, फिर जा कर उन्हें हिंदी फिल्मों में काम मिला. बौलीवुड में सितारा हैसियत हासिल करने में उन्हें कई साल लग गए. जाहिर है इस में उन की अपनी मेहनत ज्यादा थी, खिताब जीतने की भूमिका कम.

ऐश्वर्या के बाद डायना हेडन ने 1997 में फेमिना मिस इंडिया वर्ल्ड का ताज जीता, और फिर एक ही साल में मिस वर्ल्ड का ताज जीता. ऐसा कर के, वे 1966 व 1994 में रीता फारिया और ऐश्वर्या राय के बाद, मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता जीतने वाली तीसरी भारतीय बनीं. लेकिन जितनी तेजी से डायना ने कामयाबी हासिल की, उतनी ही तेजी से कैरियर के मोरचे पर वे औंधेमुंह गिर गईं. फ्लौप फिल्म ‘अब बस’, ‘ओथेलो’ के फिल्मी संस्करण, ‘तहजीब’, ‘बिग बौस’ के बाद वे फिल्म इंडस्ट्री से गायब हो गईं. फिल्म ‘अब बस’ (2004) से  जोरदार वापसी करने की कोशिश की थी. यह फिल्म हौलीवुड की सुपरहिट फिल्म ‘इनफ’ का रीमेक थी. पर इस फिल्म के बाद दर्शकों ने डायना को ही ‘अब बस’ कह दिया. इन दिनों वे किसी एनजीओ से  जुड़ी हैं.

डायना के बाद साल 1999 में युक्ता मुखी ने भी मिस वर्ल्ड का खिताब जीता. खिताब ने युक्ता को बौलीवुड मे एंट्री करने का सीधा रास्ता दिखाया. पर उन की फिल्म ‘प्यासा’ बौक्स औफिस पर एक बूंद पानी को तरस गई और कैरियर वहीं खत्म हो गया. न्यूयौर्क के रईस बिजनैसमैन प्रिंस टूली के साथ शादी रचा ली, थोड़े ही समय बाद युक्ता ने अपने पति प्रिंस टूली पर मारपीट करने और अप्राकृतिक यौनसंबंध बनाने का आरोप लगा कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है. खैर यह मामला तलाक पर जा कर खत्म हुआ.

वर्ष 2000 में प्रियंका चोपड़ा (मिस वर्ल्ड) और लारा दत्ता (मिस यूनीवर्स) ने इस खुशी को दोहराया. प्रियंका चोपड़ा ने भी कई सालों का संघर्ष और रिजैक्शन झेला और फिल्मी कैरियर बनाया, वरना साल 2000 में ही खिताब जीतते वे स्टार बन जातीं. उन के साथ ही मिस यूनीवर्स रहीं लारा दत्ता ने प्रियंका के साथ ही फिल्म ‘अंदाज’ से कैरियर स्टार्ट किया और वे अब ‘सिंह इज ब्ंिलग’ जैसी फिल्म में सहयोगी भूमिकाएं करने की मजबूर हैं. जाहिर है कैरियर औसत रहा उन का.

अन्य ब्यूटी पेजेंट्स भी ढाक के तीन पात

मिस वर्ल्ड खिताबों से परे अन्य ब्यूटी पेजेंट्स की बात करें तो यहां भी बहुत कम सुंदरियां हैं जिन्होंने अपने कैरियर में कुछ उल्लेखनीय किया, वरना सब खिताब के जीत के बोझ तले दब गईं. अभिनेत्री सेलिना जेटली को देख लीजिए, साल 2001 में फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स चुनी गईं, उस के बाद फिल्मों में ‘जानशीन’ से डैब्यू किया और कुछेक फिल्मों के बाद घरगृहस्थी संभालने को मजबूर हैं. मिस इंडिया वर्ल्ड 2010 मनस्वी मामगई,  मिस इंडिया इंटरनैशनल नेहा हिंगे का नाम भी अब कहां सुनने को मिलता है. साल 2000 में दीया मिर्जा  फेमिना मिस इंडिया में मिस एशिया पैसिफिक बनीं. उस के बाद वे मिस एशिया पैसिफिक भी चुनीं गईं. बाकी की कहानी सब को पता है.

फिल्म, राजनीति और विवाद भी काम न आए

गुल पनाग ने 1999 में मिस इंडिया का खिताब जीता और मिस यूनिवर्स में वे टौप टैन में आईं. बाद में मिस इंडिया गुल पनाग ने ‘मनोरमा सिक्स फीट अंडर’, ‘हैलो’, ‘धूप’ जैसी फिल्मों में काम किया. कहानी वही पुरानी. फिल्मों से राजनीति में आईं. आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ीं और एक अन्य अभिनेत्री किरण खेर से जा भिड़ीं. लेकिन असफलता ही हाथ लगी उन के. फिलहाल शौर्ट फिल्में कर कैरियर की गाड़ी किसी तरह खींच रही हैं.

गुल पनाग की तरह पूर्व मिस इंडिया नफीसा अली ने भी 2005 में दक्षिण कोलकाता से चुनाव लड़ा. लेकिन वे हार गईं. उन्होंने फिर 2009 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने की घोषणा की. लेकिन इस के बाद वे फिर से कांग्रेस पार्टी से जुड़ गईं और सोनिया गांधी से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए माफी भी मांगी.

नफीसा अली ने कई बौलीवुड फिल्मों में काम किया. लेकिन कभी पहली कतार की सफल अभिनेत्रियों में उन का नाम नहीं आया.

मधु सप्रे ने 1992 में मिस यूनिवर्स कौंटैस्ट में भारत का प्रतिनिधित्व किया. इस प्रतियोगिता में वे तीसरे स्थान पर रहीं. एक समय मौडलिंग जगत में उन के खूब चर्चे हुए थे एक विवादास्पद विज्ञापन में मिलिंद सोमन के साथ नग्न फोटोशूट को ले कर. फिलहाल, असफल कैरियर के साथ मधु सप्रे इटली में रह रही हैं और कभीकभी रैंप पर भी दिख जाती हैं.

मनप्रीत बरार ने 1995 में मिस इंडिया का खिताब जीता. मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में वे दूसरे स्थान पर रहीं. मेहर जेसिया ने 1986 में मिस इंडिया का खिताब जीता. उन्होंने फिल्म अभिनेता अर्जुन रामपाल से शादी की. इन का कैरियर भी मौडलिंग जगत तक सीमित रहा.

कई बार असफलता से भी ज्यादा बुरा हश्र हुआ है ब्यूटी पेजेंट्स का. मसलन, नफीसा जोसफ ने 12 साल की उम्र में मौडलिंग की दुनिया में कदम रखा और मिस इंडिया के मुकाम तक पहुंचीं. 2007 में मुंबई के अपने मकान में शादी टूटने की वजह से उन्होंने आत्महत्या कर ली.

2002 में मिस इंडिया चुनी गईं नेहा धूपिया, 2003 में मिस इंडिया का खिताब जीतीं. निकिता आनंद 2008 में मिस इंडिया वर्ल्ड चुनी गईं. पार्वथी ओमनाकुट्टन नायर 15 साल की उम्र में मिस इंडिया यूनिवर्स (1965) चुनी गईं. इन सब ने मौडलिंग व फिल्मी क्षेत्र में हाथ आजमाए लेकिन असफल रहीं. 2004 में फेमिना मिस इंडिया चुनी गईं सयाली भगत, 2004 में मिस इंडिया कौंटैस्ट जीत चुकीं तनुश्री दत्ता का भी ऐसा ही हश्र हुआ.

ग्लैमर बनाम संघर्ष और मेहनत

ऐसा नहीं है कि ब्यूटी पेजेंट्स में भाग लेने और जीतने वाली प्रतिभाशाली नहीं होतीं, इसीलिए कैरियर के मोरचे पर उतनी कामयाब नहीं हो पातीं. दरअसल, हर कामयाब इंसान के पीछे उस का संघर्ष, रिजैक्शन, धैर्य और सूझबूझ का हाथ होता है. जो इन सब से गुजर कर मंजता है वह ही कामयाबी की लंबी पारी खेलता है.

लेकिन इन ब्यूटी पेजेंट्स में किसी भी प्रतियोगी विजेता को रातोंरात इतना बड़ा स्टार बना दिया जाता है कि उसे संघर्ष की अहमियत ही समझ नहीं आती. घर बैठे ही ढेरों औफर्स की लाइन लग जाती है और कम समय में बिना किसी मेहनत व संघर्ष से जब काम आता है तो सहीगलत का चुनाव करने की सोच मंद पड़ जाती है. यही कुछ शुरुआती गलत फैसले स्टारडम की शुरुआती झलक दिखा कर इन्हें असफलता की राह पर ढकेल देते हैं. इसीलिए कई मौडल और ऐक्ट्रैस ने ब्यूटी खिताब तो खूब जीती होती हैं लेकिन अपनी जीत को वे कामयाब कैरियर में तबदील करने में पूरी तरह से चूक जाती हैं.

बहुत कम होती हैं जो प्रियंका चोपड़ा, ऐश्वर्या राय या हेली बेरी की तरह लंबा संघर्ष कर सफलता हासिल करती हैं. ज्यादातर खिताबी ग्लैमर और स्टारडम के नशे में चूर हो कर संघर्ष और रिजैक्शन का सामना नहीं कर पातीं और नतीजतन, आरंभिक चमकदमक के बाद की उन की जिंदगी अपेक्षाकृत गुमनामी या असफलता की डगर में गुजरती है. आने वाली पीढ़ी और लड़कियों को सलाह है कि जो ऐसे दावे करते हैं कि एक बार ब्यूटी प्रतियोगिता जीत गए तो आप का कैरियर सैट हो जाएगा, उन की न सुनें. हर प्रतियोगिता में भाग लें और जीतें लेकिन कामयाबी के मूलभूत सिद्धांतों को अनदेखा न करें.

कैसे होता है चयन

मिस इंडिया प्रतियोगिता विश्व सौंदर्य प्रतियोगिता में शिरकत करने वाली भारतीय सुंदरियों का चयन करती है. इस प्रतियोगिता से 3 सुंदरियों को चुना जाता है जो मिस वर्ल्ड, मिस इंटरनैशनल और मिस अर्थ में भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं. शुरूशुरू में इस तरह का कोई नियम नहीं था कि मिस इंडिया एक ही साल में मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकती. लेकिन बाद में जब फेमिना ने मिस इंडिया चुनने का जिम्मा संभाला तो इस में तबदीली की गई. अब इस प्रतियोगिता के विनर को मिस यूनिवर्स और रनरअप को मिस वर्ल्ड कौंटैस्ट में भेजा जाने लगा.

रोचक तथ्य

1995 से मिस इंडिया प्रतियोगिता में एक विनर चुनने का रिवाज समाप्त हो गया. यहां से 3 विनर चुनने की प्रथा शुरू हुई. अब तीनों ही विनर को बराबर की प्राइज मनी और ईनाम मिलते हैं. और इन्हें मिस इंडिया वर्ल्ड, मिस इंडिया यूनिवर्स और मिस इंडिया अर्थ का नाम दिया जाता है.

मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में इंदरानी रहमान भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली महिला थीं. भारत ने पहली बार 1953 में मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में शिरकत की.

मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भारत ने पहली बार 1959 में भाग लिया. फ्लेयूर इजेकियल मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में शिरकत करने वाली पहली भारतीय थीं.

अब तक भारत ने दुनिया को सर्वाधिक मिस वर्ल्ड दिए हैं. इस मामले में भारत वेनेजुएला की बराबरी पर है. भारतीय सुंदरियों ने 1966, 1994, 1997, 1999 और 2000 व 2017 में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता जीती है.

भारत की ओर से मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के लिए 1963, 1964, 1965 और 1967 में किसी प्रतियोगी को नहीं भेजा गया.

दिसंबर 2009 में दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में संपन्न हुए मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में प्रियंका चोपड़ा जज के रूप में शामिल हुईं.

प्रेमपत्र सी तुम

पीपल के पत्ते पर

मोरपंख की कलम से लिखे

प्रेमपत्र सी तुम

प्रेम की पहली पाती सी

सुकुमार रूमानियत में

डूबी लगती हो आज भी

अक्षरअक्षर तुम्हें पढ़ता

हरसिंगार के फूलों सा

झरता रहता हूं मैं

पढ़ता हूं तो रहस्यमयी सा

पाता हूं तुम्हें

नित नई सी लगती हो तुम

रोमांचित होता हूं उतना

जितना पहली बार

पढ़ते हुए हुआ था

तभी सहेज रखा है

धड़कनों के साथ सीने में

अधखुली चिट्ठी सा तुम्हें.

– विनीता राहुरिकर

इसराईल विवाद-1 : ट्रंप का येरूशलम को राजधानी मानना

येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा देने की अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा से विश्व राजनीति में तूफान आ गया है. यह अमेरिका की कूटनीतिक रणनीति के बदलाव का संकेत है और अमेरिका दुनिया का पहला देश बना जो आधिकारिक रूप से येरूशलम को इसराईल की राजधानी के रूप में मान्यता दे रहा है.

इतिहास में येरूशलम को यहूदियों की राजधानी होने के प्रमाण उपलब्ध हैं. ट्रंप ने अमेरिका के दूतावास को तेलअवीव से येरूशलम में शिफ्ट करने की भी घोषणा तो कर दी है लेकिन, यह इतना भी आसान काम नहीं है. अमेरिका की विदेश नीति का यह बदलाव मिडिल ईस्ट (खाड़ी देशों) के शक्ति संतुलन को बिगाड़ कर हिंसा भड़काने का कारण बन सकता है. अरब देश इस फैसले का उग्र विरोध कर रहे हैं.

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि येरूशलम को इसराईल और फिलिस्तीन दोनों ही अत्यंत पवित्र मानते हैं. येरूशलम की भूमि को 3 धर्मों ईसाई, यहूदी व इसलाम में पवित्र माना गया है. इसराईल और फिलिस्तीन में लंबे समय से यह संघर्ष का कारण बना हुआ है. दोनों ही इस पर अपना नैसर्गिक अधिकार मानते हैं. इसराईल शुरू से ही इस पर दावा करता रहा है जबकि फिलिस्तीन इसे अपने देश की भविष्य की राजधानी मानता है.

1948 में इसराईल के स्वतंत्र राष्ट्र बनने से अभी तक किसी भी देश ने येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा नहीं दिया है. अपने कदम से मध्य एशिया में अमेरिका के समर्थक सऊदी अरब के शाह सलमान और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अलसीसी की चेतावनी को भी डोनाल्ड ट्रंप ने खारिज कर दिया है. इसराईल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस कदम का दिल खोल कर स्वागत किया है जबकि फिलिस्तीन ने इसे मध्य एशिया में शांति प्रक्रिया खत्म होने का सूचक माना है. गाजा में ट्रंप और इसराईल के विरोध में उग्र हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं.

येरूशलम का इतिहास यहूदियों के संघर्ष, बलिदान और त्याग का रहा है. हिब्रू में येरूशलम को येरूशलाइम और अरबी में अलकुद्स के नाम से जाना जाता है. दुनिया का यह प्राचीन शहर बारबार आक्रमणकारियों का शिकार रहा है. यहीं से 3 धर्मों के उद्गम की मान्यता भी है, इसलिए ईसाई, यहूदी और इसलाम धर्म में इस जगह का विशिष्ट स्थान है. यही संघर्ष का कारण भी है. इस शहर की आत्मा पुराने शहर में दिखती है. संकरी गलियां, ऐतिहासिक स्थापत्य के विलक्षण नमूने इस के 4 भागों को ईसाई, मुसलिम, यहूदी और आर्मेनियन से जोड़ते हैं.

ईसाई धर्म : इसराईल में ईसाई हिस्से में पवित्र सेपुलकर चर्च है जो प्राचीनतम ईसा मसीह की गाथाओं से जुड़ा है कि यहीं ईसा को सूली पर चढ़ाया गया और कहा जाता है कि यहीं ईसा फिर से जीवित हुए.

इसलाम धर्म : मुसलिम हिस्से में गुंबदाकार डोम औफ रौक अथवा कुव्वतुल सखरह और अलअक्सा मसजिद हैं जो मुसलिमों के लिए हरम अलशरीफ यानी पवित्र स्थान है. मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद साहब मक्का से यहां आए और यहीं सभी पैगंबरों से दुआ की और वे यहीं से जन्नत तशरीफ ले गए.

यहूदी धर्म : यहूदी हिस्से में पवित्र दीवार है जहां अतीत में यहूदियों का मंदिर था, जिस की दीवारें आज भी इतिहास की निशानी के रूप में बची हुई हैं. यह यहूदियों की पवित्रतम जगह ‘होली औफ होलीज’ है. यहां लाखों यहूदी आ कर प्रार्थना करते हैं.

अमेरिका के फैसले के कारण

अमेरिका ने अपने इस ऐतिहासिक कदम से इसराईल-यहूदियों के प्रति अपनी पक्की दोस्ती पर फिर से मुहर लगा दी है. इस रणनीतिक फैसले से ट्रंप ने अमेरिका में रह रहे यहूदियों की शक्तिशाली लौबी को संतुष्ट कर दिया है. अमेरिका के विकास में यहूदियों का बड़ा हाथ है और ट्रंप ने उन का समर्थन पा कर अपने देश में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है.

येरूशलम शहर पर हजारों सालों से कब्जा करने की जंग लड़ी गई. येरूशलम के लिए धर्मयुद्ध लड़े गए. लेकिन इतिहास और अतीत के अन्याय का प्रतिफल अब इसराईल को प्राप्त हो सकेगा. यह सभ्यताओं के संघर्ष का जीवंत उदाहरण है. ट्रंप के फैसले से द्विराष्ट्र की संभावना खारिज हो गई है जिस के अनुसार, येरूशलम को भविष्य में 2 हिस्सों में बांट कर यहूदियों और फिलिस्तीन के अंतहीन संघर्ष को समाप्त करने का सब से कारगर समाधान समझा जा रहा था. वैसे, ट्रंप ने अविभाजित येरूशलम शब्द का प्रयोग नहीं किया है, इसलिए यह विश्व कूटनीति में ट्रंप की नई चाल साबित होगी.

ट्रंप की घोषणा के माने

येरूशलम को इसराईल की राजधानी मानने की घोषणा कर ट्रंप ने अपने कार्यकाल में इसराईल-फिलिस्तीन समस्या का समाधान करने के स्पष्ट संकेत दे कर, श्रेय लेने की इच्छा व्यक्त कर दी है. इस से फिलिस्तीन की स्थिति और कमजोर हो गई है जबकि इसराईल सशक्त हो गया है. यही कारण है कि अरब राष्ट्र हिंसक हो रहे हैं और इसराईल में जश्न मनाए जा रहे हैं.

विश्व राजनीति में तूफान

ट्रंप के येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा देने की घोषणा से पूरी दुनिया में भूचाल आ गया है. फ्रांस, जरमनी, ईरान ट्रंप के इस फैसले का समर्थन नहीं कर रहे हैं. भारत के लिए दुविधा की स्थिति है, सो, उस ने संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

इस सब से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन परिस्थितियों में डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा से विश्व राजनीति और इसराईल को ले कर नए समीकरण बनेंगे और यहूदी फिर से नए संघर्ष में उलझेंगे जो उन का इतिहास रहा है. आइए, यहूदियों के संघर्ष का ऐतिहासिक परिचय लें.

इसराईल निहायत छोटा सा देश है जो पश्चिमी एशिया की विकट भौगोलिक परिस्थितियों, चहुंओर दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद संघर्ष में कभी घुटने नहीं टेकता. उस का मूल मंत्र है- ‘हम नहीं कहते कि हमारे ऊपर आतंकी हमला मत करो, लेकिन याद रखो, अगर हमारा एक नागरिक मारा गया तो हम उस देश में घुस कर उस के हजारों नागरिक मार डालेंगे.’

इसराईल की खूबियां

इतिहास में मिसाल बने यहूदी कई माने में अन्य प्रजातियों से अग्रणी हैं. कम संख्या होते हुए भी कड़ी मेहनत, दृढ़निश्चय, ईमानदार प्रयास, उच्च मनोबल, अजेय जज्बा, स्वाभिमान, देशभक्ति में उन को कोई संदेह नहीं है. इसलिए दुनिया के किसी भी कोने में रहने के बावजूद यहूदियों ने वहां अपनी योग्यता के दम पर दबदबा कायम किया है. उन्होंने व्यापार, वाणिज्य, कला, विज्ञान, साहित्य, शिक्षा के उच्च मापदंड स्थापित किए हैं. उन की काबिलीयत और मेहनतकश जीवन हमलावरों के नफरत का कारण बने. जब जिस का वश चला उन को अपनी धरती से बेदखल किया, इसलिए 1948 तक वे दरदर की ठोकरें खाते रहे. अनेक महान वैज्ञानिक यहूदी थे, जैसे आइंस्टाइन, आटोहोन यहूदी थे. यदि हिटलर यहूदियों का संहार नहीं करता तो शायद यहूदी जरमनी से पलायन कर अमेरिका में शरण नहीं लेते. तब परमाणु बम हिटलर के पास होता जो अमेरिका को मिला, जिस से वह दुनिया का नेता बन बैठा.

इसराईल चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा है. दांतों के बीच जीभ की तरह उस की सुरक्षा आसान नहीं. बेइंतहा खतरों को झेलते हुए इसराईल का प्रथम उद्देश्य हर कीमत पर अपनी सुरक्षा करने की गारंटी बन गया है.

इसराईल एकमात्र यहूदी राष्ट्र है जो आकार और जनसंख्या में बहुत छोटा है. विकट भौगोलिक परिस्थितियां, संसाधनों की कमी के बावजूद इसराईल ने विकास की मिसालें कायम की हैं. प्राचीन शास्त्रीय भाषा हिबू्र यहां पुनर्जीवित हुई है. यहां महिलाओं को भी अनिवार्यरूप से सैनिकसेवा करनी होती है.

इसराईल का सैटेलाइट सिस्टम अनोखा है जिसे वह गुप्त रखता है. इसलिए कोई भी दुश्मन उस की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता. सीमित पेयजल के बावजूद इसराईल ने 7 गुना खाद्यान्न की उत्पादन वृद्धि का चमत्कार कर दिखाया है. 20वीं सदी से 21वीं सदी में यहां हरियाली बढ़ी है.

इसराईल की वायुसेना का कोई मुकाबला नहीं. यह संपूर्ण देश ही बैलिस्टिक मिसाइल से लैस है. सो, इसराईल पर अगर दुश्मन रौकेट दागते हैं तो इस का मतलब है उन की मौत निश्चित है. कंप्यूटर के मामले में इसराईल का मुकाबला नहीं है. जन्म के बाद उस ने 7 लड़ाइयां लड़ी हैं. जिन में वह विजयी रहा है. अपनी राष्ट्रीय आय का सब से ज्यादा हिस्सा वह अपनी सुरक्षा पर खर्च करता है.

इसराईल सुरक्षात्मक नीति की जगह आक्रामक नीति पर चलता है. उस का ध्येय है- ‘अगर किसी ने हमारा एक नागरिक मारा तो हम उस के देश में घुस कर उस के हजार नागरिक मार डालेंगे.’ उस के दुश्मनों का संसार के किसी भी कोने में जिंदा रहना संभव नहीं. इसराईल में 90 प्रतिशत घरों में सौर ऊर्जा प्रयोग की जाती है. व्यापारिक मामलों में इसराईल का विश्व में तीसरा स्थान है. वहां 3,000 से ज्यादा हाईटैक कंपनियां हैं. इसराईल का सब से ज्यादा शरणार्थियों को अपने यहां बसाने का रिकौर्ड है. दुनियाभर के यहूदियों को जन्म लेते ही इसराईल की नागरिकता मिल जाती है. फिर उस का मन करे तो वहां बस सकता है.

गुप्तचर संस्था मोसाद

मोसाद के बिना इसराईल की कल्पना भी असंभव है. यह वहां की गुप्तचर संस्था है जो पूरी दुनिया से बेजोड़ है. चूंकि हजारों साल यहूदियों ने अपने अस्तित्व और राष्ट्र के लिए संघर्ष किया, इसलिए इसराईल देश की स्थापना के साथ ही ऐसे संगठन की जरूरत महसूस हुई जो पूरी दुनिया में इसराईल को महफूज रखे. अभी तक मोसाद यहूदियों के मापदंडों पर खरी उतरी है. इतिहास में इस की 13 दिसंबर, 1949 को स्थापना हुई. रोचक तथ्य यह है कि इसराईल के प्रधानमंत्री इसी संगठन से निकले हुए होते हैं.

यह संगठन संपूर्ण विश्व में इसराईल के हितों की रक्षा करता है. उस की तरफ उठने वाली हर आंख को फोड़ देना उस का उद्देश्य है. इस का नामकरण यहूदी पैगंबर मूसा के नाम पर हुआ. साफ है कि यहूदी असंभव से असंभव परिस्थितियों में भी हार मानने वाले नहीं हैं. उन का राष्ट्रवाद पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय है. आगामी राजनीतिक परिदृश्य पूरी दुनिया के लिए कुतूहल का विषय होगा. अमेरिका और इसराईल के नए राजनीतिक समीकरण विश्व में क्या गुल खिलाते हैं, यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में है.

अगले अंक में : यहूदियों ने सहीं सदियों यातनाएं.

मेरी स्किन बहुत नर्म है, लेकिन सर्दियों में सौफ्ट नहीं रहती. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं जो मेरी स्किन हरदम सौफ्ट रहे.

सवाल
वैसे तो मेरी स्किन बहुत नर्म है, लेकिन सर्दियों में सौफ्ट नहीं रहती. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं जो मेरी स्किन हरदम सौफ्ट रहे?

जवाब
आप इस मौसम में अपनी स्किन को हरदम सौफ्ट बनाए रखने के लिए पैक लगा सकती हैं. अंडे के पीले भाग में 1 चम्मच औलिव औयल, थोड़ा सा औरेंज जूस, कुछ बूंदें गुलाबजल की और थोड़ा सा लाइम जूस मिक्स कर के चेहरे पर लगाएं. सूखने पर चेहरे को सादे पानी से धो लें. ऐसा करने से त्वचा खिलीखिली नजर आएगी.

मैं एक लड़की के साथ कई बार संबंध बना चुका हूं. कल मैंने उसे एक लड़के के साथ मस्ती करते हुए देखा. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं बालिग हूं और जिस लड़की से प्रेम करता हूं वह भी बालिग है. हम हर हदें पार कर चुके हैं. मैं उसे बेइंतहा प्यार करता हूं लेकिन पिछले दिनों मैं ने उसे किसी अन्य युवक के साथ मस्ती करते हुए देखा. यह देख मेरा दिल अंदर से रो पड़ा. और जब मैं ने इस बारे में बात की तो उस ने साफ कहा कि मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ टाइमपास कर रही थी और अब कभी तुम मुझ से बात मत करना. इस बात से मैं बहुत परेशान हूं और आत्महत्या का विचार भी कई बार मन में आता है.

जवाब
प्रेम में धोखा खाया व्यक्ति अकसर आत्महत्या करने के बारे में ही सोचता है. लेकिन ऐसे व्यक्ति कायर होते हैं जो किसी लड़की, वह भी ऐसी जो सिर्फ अपना हित साध रही थी, के लिए अपना जीवन ही खत्म कर लें. इसलिए आप ऐसी गलती भूल कर भी न करें.

पछताने के बजाय यह सोचें कि आप की जिंदगी तबाह होने से बच गई,  वरना शादी होने के बाद आप के साथ क्या होता, यह तो आप भलीभांति समझ गए होंगे. उस की हर याद को मिटाते हुए नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करें और दोस्तों के साथ समय बिताएं.  आऊटिंग के लिए बाहर घूमने जाएं. अच्छीअच्छी पुस्तकें पढ़ें. इस से बुरी यादों से बाहर निकलने में आसानी होगी.

तो 2018 में चौदह बौलीवुड संतानें बौलीवुड इंडस्ट्री में अपनी किस्मत आजमाएंगी

अनमोल ठाकरिया

अभिनेत्री पूनम ढिल्लों और मशहूर फिल्म निर्माता अशोक ठाकरिया के 25 वर्षीय बेटे अनमोल ठाकरिया भी संजय लीला भंसाली प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘ट्यूस्डे एंड फ्रायडे’’ से बौलीवुड में कदम रख रहे हैं. लंदन में पढ़ाई करके वापस लौटे अनमोल ठाकरिया ने शामक डावर से नृत्य का प्रशिक्षण हासिल किया है.

करण देओल

देओल परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य करण देओल भी अब बौलीवुड में कदम रख चुके हैं और उनकी पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ 2018 में सिनेमाघरों में पहुंचेगी. जी हां! धर्मेद्र के पोते और सनी देओल के बेटे करण देओल ने भी बौलीवुड में अभिनेता के रूप में कदम रख दिया है. करण देओल की पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ का निर्माण व निर्देशन उनके पिता सनी देओल ही कर रहे हैं. फिल्म की अस्सी प्रतिशत शूटिंग पूरी हो चुकी है.

करण कपाड़िया

अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया की बहन और अभिनेत्री व कास्ट्यूम डिजाइनिंग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी स्व. सिंपल कपाड़िया के बेटे करण कपाड़िया भी बौलीवुड में बतौर अभिनेता कदम रख रहे हैं. करण कपाड़िया की एक्शन रोमांचक फिल्म का निर्देशन बेहजाद खंबाटा कर रहे हैं.

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करण कपाड़िया का हौसला आफजाई करने के लिए इस फिल्म में डिंपल कापिड़या व अक्षय कुमार कैमियो करते नजर आएंगे.

मालविका मोहनन

दक्षिण भारत के चर्चित कैमरामैन कु मोहनन की बेटी मालविका मोहनन ने यूं तो 2017 में ही मजीद मजीदी की फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड’’ में ईशान खट्टर की बहन का किरदार निभाकर बौलीवुड में कदम रखा था. यूं तो यह फिल्म नवंबर 2017 में गोवा में संपन्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में न सिर्फ प्रदर्शित हुई बल्कि पुरस्कृत भी हुई. मगर प्यार, जिंदगी और रिश्तों की बात करने वाली यह फिल्म 2017 में सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हुई, अब यह फिल्म 2018 में सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है.

रोहण मेहरा

अभिनेता स्व.विनोद मेहरा के बेटे रोहण मेहरा को निर्माता संजय लीला भंसाली अपने प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘बाजार’’ से बौलीवुड में लौंच कर रहे हैं.

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गौरव चोपड़ा निर्देशित इस फिल्म में सैफ अली खान और राधिका आप्टे भी होंगी.

अभिमन्यू दसानी

फिल्म ‘‘मैने प्यार किया’’ फेम अदाकारा भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यू दसानी कई फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद अब रानी स्क्रूवाला निर्मित व बासन बाला निर्देशित फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’ से बौलीवुड में कदम रख रहे हैं. इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी है. इस फिल्म के लिए खास तौर पर अभिमन्यू दसानी ने टायकोंडो, मिक्स मार्शल आर्ट, चोई क्वांग डो की ट्रेनिंग हासिल की. इस फिल्म में उनकी हीरोईन होंगी मशहूर टीवी स्टार राधिका मदान. राधिका मदान की यह पहली बौलीवुड फिल्म होगी.

दलक्वेर सलमान

दक्षिण भारत व मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार ममूटी के बेटे दलक्वेर सलमान अब इरफान खान के साथ रोड ट्रिप वाली फिल्म ‘‘कारवां’’ के साथ बौलीवुड में कदम रखने जा रहे हैं. आकाश खुराना निर्देशित इस फिल्म में कृति खरबंदा भी हैं.

शर्मिन सहगल

संजय लीला भंसाली अब अपनी भांजी और अपनी बहन व फिल्म निर्देशक बेला सहगल की बेटी शर्मिन सहगल को अनाम फिल्म से लांच कर रहे हैं. लौस एंजेल्स से अभिनय की ट्रेनिंग लेकर आयी शर्मिन सहगल ने अपने मामा संजय लीला भंसाली के साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म ‘‘बाजीराव मस्तानी’’ की थी.

मीजान

मशहूर हास्य अभिनेता जावेद जाफरी के बेटे मीजान को भी संजय लीला भंसाली अपनी भांजी शर्मिन के ही साथ अनाम फिल्म से लांच कर रहे हैं.

उत्कर्ष शर्मा

‘‘गदर’’ फेम मशहूर फिल्म निर्देशक अनिल शर्मा अपने बेटे को बौलीवुड में लौंच करने के लिए साइंस फिक्शन के साथ प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘जीनियस’’ का निर्माण व निर्देशन कर रहे हैं.

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उत्कर्ष शर्मा ने बाल कलाकार के रूप में फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ में अभिनय किया था.

इशान खट्टर

अभिनेत्री नीलिमा अजीम व अभिनेता राजेश खट्टर के बेटे तथा अभिनेता शाहिद कपूर के सौतेले भाई इशान खट्टर बौलीवुड से जुड़ चुके हैं. ईरानी फिल्मकार मजीद मजीदी निर्देशित तथा मुंबई में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड’’ में वह मालविका मोहनान और जी वी शारदा जैसे भारतीय कलाकारों के साथ अभिनय कर चुके हैं.

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यह फिल्म नवंबर 2017 में गोवा में संपन्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत हो चुकी है. यह फिल्म प्यार, जिंदगी और रिश्तों की बात करती है. अब ईशान खट्टर, श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर के साथ करण जोहर निर्मित फिल्म ‘‘धड़क’’ भी कर रहे हैं, जो कि 2016 की मराठी भाषा की बहु चर्चित और सफल प्रेम कहानी प्रधान फिल्म ‘‘सैराट’’ का हिंदी रीमेक है.

सारा अली खान

सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान ने अंततः सुशांत सिंह राजपूत के साथ ‘कैराज इंटरटेनमेंट’ की फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ से बौलीवुड में कदम रख रही हैं.

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अभिषेक कपूर उर्फ गट्टू निर्देशित इस फिल्म की आधी शूटिंग पूरी हो चुकी है. करीना कपूर और सोहा अली खान अभी से सारा अली खान के अभिनय की तारीफों के पुल बांधने लगी हैं.

जान्हवी कपूर

श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर की पहचान स्टाइलिश के रूप में पहले से बनी हुई है. अब वह ईशान खट्ट के संग करण जोहर निर्मित फिल्म ‘‘धड़क’’ से बौलीवुड में कदम रख रही हैं, जो कि 2016 की मराठी भाषा की बहु चर्चित और सफल प्रेम कहानी प्रधान फिल्म ‘‘सैराट’’ का हिंदी रीमेक हैं.

आयुष शर्मा

हिमाचल प्रदेश के चर्चित राजनीतिक परिवार से जुड़े आयुष शर्मा को लोग अब तक सलमान खान के बहनोई यानी कि सलमान खान की बहन अर्पिता खान के पति के रूप में ही पहचानते आए हैं.

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मगर 2018 में वह फिल्मी हीरो के रूप में पहचाने जाएंगे. फिलहाल वह अपनी फिल्म ‘‘लवयात्री’’ के लिए गुजरात में ट्रेनिंग हासिल कर रहे हैं. प्रेम कहानी वाली इस फिल्म का निर्माण स्वयं सलमान खान कर रहे हैं. अभिराज मीनावाला के निर्देशन में बनने वाली इस फिल्म के लेखक निरेन भट्ट हैं.

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