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टाइगर श्रौफ में यह कैसा बदलाव

क्या टाइगर श्रौफ अपने आपको सुपर स्टार समझने लगे हैं कि अब उन्हे अपने प्रशंसकों को धोखा देने में भी कोई हिचक नहीं हो रही है? जी हां, इस तरह के सवाल टाइगर श्रौफ के तमाम प्रशंसक उनसे पूछ रहे हैं. वास्तव में जब फिल्म ‘‘बागी 2’’ की शुरूआत हुई थी, उसी वक्त टाइगर श्रौफ एक प्रोडक्ट को इंडोर्स कर रहे थे.

उस प्रोडक्ट का निर्माण करने वाली कंपनी ने फेसबुक के माध्यम से एक प्रतियोगिता की घोषणा की थी और विजेताओं को टाइगर श्रौफ के साथ दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर घुमाने ले जाने का वादा किया था. इस कंपनी ने फेसबुक पर यह भी लिखा था कि प्रशंसक यह भी बता सकते हैं कि वह केप टाउन शहर में क्या क्या करना चाहेंगे, उनकी वह इच्छाएं भी पूरी होंगी.

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सूत्र बताते हैं कि टाइगर श्रौफ के तमाम प्रशंसकों ने बढ़चढ़कर इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. लेकिन अब टाइगर श्रौफ ने केप टाउन जाने से मना कर दिया है. सूत्रों की माने तो अंडरविअर बनाने वाली कंपनी ने एक वर्ष पहले टाइगर श्रौफ की सहमति लेकर यह प्रतियोगिता शुरू की थी. सूत्र यह भी बताते हैं कि जनवरी 2018 में जब आयोजकों ने टाइगर श्रौफ से बात की, तब भी टाइगर श्रौफ केप टाउन जाने को तैयार थे और उस वक्त उनका मकसद केपटाउन में अपनी फिल्म ‘‘बागी 2’’ को प्रमोट करना भी था.

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मगर सूत्रों का दावा है कि जब मार्च के पहले सप्ताह में आयोजकों ने टाइगर श्रौफ से मिलकर केप टाउन जाने की तारीख तय करनी चाही,तो टाइगर श्रौफ ने शर्त रखी कि उनके साथ छह लोगों की टीम भी जाएगी, जिसका सारा खर्च आयोजक उठाएं. आयोजकों ने टाइगर श्रौफ के साथ एक व्यक्ति को ले जाने की टिकट व अन्य खर्च देने को तैयार थे. मगर टाइगर श्रौफ ने कह दिया कि जब तक आयोजक उन्हें छह लोगों की टीम का खर्च नहीं उठाएगी, तब तक वह केप टाउन नहीं जाएंगे. अंततः अब कंपनी ने फेसबुक पर लिखा है – ‘‘विजेता केप टाउन जाएंगे, लेकिन टाइगर श्रौफ के साथ मेल मिलाप मुंबई में ही होगा.’’

पर इससे टाइगर श्रौफ के प्रशंसक जरुर निराश हुए हैं.

क्या सच में 5 दिनों के लिये बंद हो रहे हैं बैक, पढ़ें पूरी खबर

क्या आपको भी बैंक में कुछ जरूरी काम है? क्या आपको भी डीडी बनवाना है या बैंक अकाउंट खुलवाना है, तो आपको बता दें कि अगले हफ्ते बैंक के काम करवाने में आपको कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक पहले कहा जा रहा था कि बैंक 29 मार्च से 2 अप्रैल तक लगातार पांच दिन के लिए बंद रहेंगे. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इससे संबंधित पोस्ट किए और लोगों को चेतावनी दी कि अगर उन्हें बैंक से जुड़ा कोई काम करना है तो जल्दी कर लें. अगर आप भी इस तरह की खबरों पर विश्वास कर रहे हैं तो आपको बता दें कि बैंक लगातार पांच दिनों के लिए बंद नहीं होंगे. इस बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी गई है.

29 मार्च को महावीर जयंती है, इसलिए बैंक बंद रहेंगे. 30 मार्च को गुड फ्राइडे है, इसलिए बैंकों की छुट्टी रहेगी, लेकिन 30 मार्च को महीने का पांचवां शनिवार पड़ रहा है, इसलिए बैंक बंद नहीं रहेंगे. वहीं 1 अप्रैल को रविवार है और दो अप्रैल को 2 अप्रैल को वार्षिक लेखाबंदी के लिए बैंक बंद रहेंगे.

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औल इंडिया बैंक औफिसर्स कन्फेडरेशन के महासचिव डी थौमस फ्रांको राजेंद्र देव ने इस बात की जानकारी दी. उन्होंने कहा, ‘बैंकों में 31 मार्च (शनिवार) को कामकाज होगा और सोशल मीडिया में जारी संदेशों के अनुसार कोई लगातार छुट्टियां नहीं हैं.’ सोशल मीडिया पर यह खबर छाई हुई है कि 31 मार्च को भी शनिवार होने के कारण बैंक की छुट्टी होगी, लेकिन अब इस बात का आधिकारिक तौर पर खंडन कर दिया गया है.

देव ने जानकारी दी है कि बैंक गुरुवार (29 मार्च) को महावीर जयंती, शुक्रवार (30 मार्च) गुड फ्राइडे के कारण बंद रहेंगे, लेकिन 31 मार्च को खुलेंगे. उन्होंने कहा, ‘बैंक केवल महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को बंद रहते हैं. वहीं 2 अप्रैल को वार्षिक लेखाबंदी के कारण बैंक बंद रहेंगे.’ इसके अलावा एटीएम में कैश की कमी होने का सवाल है तो आपको बता दें कि बहुत से बैंकों ने अब एटीएम में कैश डालने की जिम्मेदारी थर्ड पार्टी को सौंप दी है.

इसलिए, अब एटीएम में कैश होने की जिम्मेदारी बैंक की नहीं है, बैंक भले ही लगातार पांच दिन बंद नहीं रहेंगे, लेकिन फिर भी अगर आप बैंक से संबंधित कोई काम करने की योजना बना रहे हैं तो आप उसे जल्दी निपटा लीजिएगा, क्योंकि जाहिर सी बात है कि शनिवार (31 मार्च) के दिन बैंक में काफी भीड़ रहेगी, ऐसे में आपका काम लेट भी हो सकता है.

बौल टैंपरिंग विवाद : डेविड वार्नर को हटाने के मूड में नहीं है हैदराबाद

इंडियन प्रीमियर लीग में डेविड वार्नर की भागीदारी को लेकर चल रहे संशय पर सनराइजर्स हैदराबाद के मेंटर वीवीएस लक्ष्मण का कहना कि फ्रेंचाइजी क्रिकेट औस्ट्रेलिया के इस खिलाड़ी पर फैसले का इंतजार करेगी जो गेंद छेड़छाड़ विवाद में फंसा हुआ है. स्टीव स्मिथ और वार्नर केपटाउन में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीसरे टेस्ट के तीसरे दिन गेंद छेड़छाड़ में शामिल होने के कारण औस्ट्रेलिया के बाकी बचे दिनों के लिए क्रमश: कप्तानी और उप कप्तानी से हट गये थे.

लक्ष्मण ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘केपटाउन टेस्ट में जो हुआ वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. जहां तक सनराइजर्स का संबंध है तो इस पर टिप्पणी करना बहुत जल्दबाजी होगी. क्योंकि यह सबकुछ परसों ही हुआ है. हम इसपर औस्ट्रेलिया के फैसले का इंतजार करेंगे.’’

गेंद से छेड़छाड़ पर कड़ी आलोचनायें झेल रहे स्मिथ ने आज राजस्थान रायल्स की कप्तानी छोड़ दी और वार्नर के साथ भी ऐसा ही कुछ हो सकता है. वार्नर के खिलाफ किसी तरह की कड़ी कार्रवाई के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि सनराइजर्स हैदराबाद इस समय इस बारे में नहीं सोच रही है. लक्ष्मण ने कहा, ‘‘ अभी जो सूचना उपलब्ध है, वह काफी सीमित है. इसलिए हमें और सूचना का इंतजार करना होगा. अगर जरूरत पड़ी तो हम इसके बारे में चर्चा करेंगे. जहां तक वार्नर का संबंध हैं तो वह सनराइजर्स टीम के लिए बेहतरीन नेतृत्वकर्ता रहे हैं.’’

वहीं औस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीवन स्मिथ ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की टीम राजस्थान रायल्स की कप्तानी से हटने का फैसला कर लिया स्मिथ के इस फैसले को बाद फ्रेंचाइजी ने अंजिक्य रहाणे को टीम का कप्तान बनाया है. फ्रेंचाइजी ने सोमवार को एक बयान जारी कर इस बात की जानकारी दी.

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फ्रेंचाइजी द्वारा जारी किए गए बयान में टीम के हेड औफ क्रिकेट जुबीन भरूचा ने कहा, “हम स्मिथ से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं. स्मिथ का मानना है कि मौजूदा परिस्थति में राजस्थान रायल्स के लिए सही यही होगा की वह कप्तानी छोड़ दें ताकि टीम बिना किसी परेशानी के आईपीएल की तैयारी शुरू कर सके. उन्होंने बीसीसीआई के अधिकारियों और अपने प्रशंसकों का उनका समर्थन करने के लिए शुक्रिया अदा किया है.”

यह है पूरा मामला

दक्षिण अफ्रीका और औस्ट्रेलिया के बीच केपटाउन में तीसरे टेस्ट मैच के तीसरे दिन जब अफ्रीकी पारी का 43वां ओवर चल रहा था और मार्करम व एबी डिविलियर्स खेल रहे थे, उसी समय औस्ट्रेलियाई बल्लेबाज बेनक्रौफ्ट एक चिप जैसी चीज के साथ कैमरे पर पकड़े गए. कहा गया कि ये गेंद की चमक उड़ाने वाली चिप है. इसे उन्होंने गेंद पर घिसा. हालांकि मैदानी अंपायरों ने इस बारे में उनसे बातचीत की. अंपायरों के पास जाने से पहले बैनक्राफ्ट को अपने अंत:वस्त्र में छोटी सी पीली चीज रखते हुए देखा गया. जब अंपायर उनसे बात करने के लिये पहुंचे तो उन्होंने पैंट की जेब में हाथ डालकर दिखाया और यह भिन्न वस्तु थे. वह धूप के चश्मे को साफ करने के लिये मुलायम कपड़े जैसा लग रहा था.

इसके बाद कप्तान स्टीव स्मिथ और बेनक्राफ्ट ने इस पूरे मामले में अपनी गलती मान ली. तीसरे दिन का जब खेल खत्म हुआ तो उसके बाद प्रेस कौन्फ्रेंस में औस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव स्मिथ ने इस बात को स्वीकार कर लिया. वहीं बैनक्राफ्ट ने स्वीकार किया कि वह टेप से गेंद की शक्ल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे. औस्‍ट्रेलिया सरकार ने औस्‍ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड को स्टीव स्मिथ को कप्तानी से हटाने का आदेश दिया. औस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मेल्कोन टर्नबुल ने इस पूरी घटना को शर्मनाक बताया. उन्होंने कहा ये भरोसा करना मुश्किल है, कि औस्ट्रेलियाई टीम ने ये कृत्य किया.

इसके बाद लगातार हो रही आलोचनाओं के बाद स्टीव स्मिथ ने टीम की कप्तानी और  डेविड वार्नर ने तीसरे टेस्ट के लिए उपकप्तानी छोड़ दी. तब क्रिकेट औस्ट्रेलिया के सीईओ जेम्स सदरलैंड ने कहा, “हमने स्टीव स्मिथ और डेविड वार्नर से इस पूरे मामले पर बातचीत की. दोनों इस टेस्ट के लिए अपने अपने पद छोड़ने को तैयार हो गए. हालांकि अभी ये सिर्फ तीसरे टेस्ट के लिए है. मैच की अंतरिम जांच क्रिकेट आस्ट्रेलिया भी कर रहा है. तीसरे मैच के बाद इस पूरे मामले पर फैसला होगा.”

आईसीसी ने ये दी सजा

इस मामले में सजा का ऐलान करते हुए स्टीव स्मिथ पर एक मैच का प्रतिबंध लगा दिया. इसके अलावा उनकी 100 फीसदी मैच फीस का जुर्माना लगाया गया. बौल टैंपरिंग करने वाले बेनक्रौफ्ट को आईसीसी कोड औफ कंडक्ट के तहत लेवल 2 का दोषी माना गया. इसके लिए उनके खाते में 3 डिमेरिट प्वाइंट जोड़ दिए गए. ये प्वाइंट एक साल तक मान्य रहते हैं. इसके अलावा बेनक्राफ्ट पर 75 फीसदी मैच फीस का जुर्माना भी लगाया गया.

गौरतलब है कि पूरे क्रिकेट जगत में इस घटना की कड़ी निंदा की जा रही है. सारी टीम के दिग्गज खिलाड़ी एक स्वर में इस कांड की आलोचना कर रहे है इसमें औस्ट्रेलिया के भी पूर्व दिग्गज क्रिकेटर्स शामिल हैं.

नया सिम लेते समय रखें इन बातों का ध्यान, होगा फायदा

आज के समय में ड्यूल और ट्रिपल सिम स्मार्टफोन बाजार में उपलब्ध हैं. इसी के साथ हर टेलिकौम कंपनी के अपने-अपने खास प्लान भी मौजूद हैं. ऐसे में एक से ज्यादा सिम होना अब आम हो गया है. लेकिन नई सिम लेने से पहले कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें ध्यान में रखना जरुरी है. ध्यान ना रखने पर कई बार हमें परेशानियों से भी जूझना पड़ता है. सिम लेने के बाद किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े इसके लिए इन बातों का ख्याल जरूर रखें.

सिम डौक्यूइमेंट पर पर्पज लिखकर करें साइन : सिम खरीदते समय आईडी और एड्रेस प्रूफ की फोटोकौपी दुकानदार या एजेंट को ऐसे ही न दें, बल्कि उस पर (केवल सिम खरीदने के लिए) लिखकर नीचे साइन कर दें. इससे आपके दस्तावेज का कभी भी मिसयूज नहीं हो पाएगा. क्योंकि उसकी दूसरी फोटोकौपी कराके कोई उस पर दूसरा सिम नहीं ले पाएगा.

ना लें सिम कार्ड का खुला पैकेट : अगर सिमकार्ड का पैकेट पहले से खुला हो, तो ऐसा सिम कभी न खरीदें, क्योंकि ऐसा सिम पहले से एक्टीवेट किया हुआ हो सकता है. हमेशा अपने सामने ही सील्ड पैक खुलवाकर सिम खरीदें.

बिना वेरिफिकेशन के ना लें सिम : अगर दुकानदार या एजेंट कह रहा हो कि आप वो सिम तुरंत ही यूज कर पाएंगे यानि कि आपको वेरीफिकेशन के लिए कस्टमर केयर को कौल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. तो जान लीजिए कि कुछ न कुछ गड़बड़ है और सिम पहले से किसी और के नाम पर एक्टीवेट किया हुआ है.

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फोटो पर करें क्रौस साइन : सिम खरीदने के लिए दिए गए दस्तावेज के अलावा अपनी फोटो पर भी परमानेंट मार्कर से साइन कर दें, वर्ना आपके दस्तावेज का रीयूज या कहें कि मिसयूज होने की पूरी संभावना रहेगी.

ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स छोड़कर ना जाएं : सिम खरीदने के लिए अपने ओरिजिनल दस्तावेज की फोटोकौपी कराते समय कोई भी कौपी दुकान पर मत छोड़ें. कई बार कोई फोटोकौपी साफ या अच्छी न आने पर लोग उसे वहीं छोड़कर चले जाते हैं. ऐसा न करें वर्ना कोई और उसका मिसयूज कर सकता है.

सिर्फ एक बार दें थम्ब इम्प्रैशन : आजकल जियो के अलावा कई मोबाइल कंपनियों के सिम बायोमेट्रिक्स स्कैन के बाद ही मिलते हैं. ऐसा करते समय बार बार थंब इंप्रेशन न दें. थंब इंप्रेशन का प्रोसेस सिर्फ एक बार किया जाता है.

बायोमेट्रिक्स डिटेल्स देते समय रखें ध्यान : पिछले कुछ दिनों में ऐसे केस भी पुलिस के पास आ चुके हैं जिनमें सिम वेंडर ने ग्राहक को बिना बताए उससे थंब इम्प्रैशन कई बार लगवाए और उससे कई फर्जी लोगों के सिम एक्टीवेट कर दिए.

सिम एक्टिवेट ना होने पर दूसरे वेंडर के पास ना जाएं : सिम खरीदने के लिए सभी जरूरी दस्तावेज देने या थंब इंप्रेशन देने के बाद भी अगर आपका नया सिम एक्टीवेट न हो तो किसी नए वेंडर के पास जाकर दोबारा प्रक्रिया न दोहराएं. बल्कि आप उसी दुकानदार या एजेंट को मिलें और अगर वो कुछ गोलमाल जवाब दे, तो पुलिस कंप्लेंट करने से भी ना हिचकें. हो सकता है कि दुकानदार आपकी आईडी का मिसयूज कर रहा हो.

अधिकृत सेंटर से लें सिम : नया मोबाइल सिम हमेशा अधिकृत सिमकार्ड विक्रेता या औफीशियल सेंटर से खरीदें. कहीं से भी सिम कार्ड लेने पर दस्तावेज मिसयूज या फ्रौड की संभावना ज्यादा होती है.

किसी और के लिए अपनी आईडी का ना करें इस्तेमाल : घर के खास मेंबर्स को छोड़कर अपनी आईडी / थंब इंप्रेशन से किसी दोस्तो या अन्य रिश्तेदार के लिए सिम न खरीदें. अगर भविष्य में वो कोई क्राइम करता है या आपकी आईडी वाले मोबाइल नबंर से कोई रौन्ग कौल कर देता है तो आप पुलिस के चक्कर में फंस सकते हैं.

ट्रिपल तलाक विशेष : बिना तलाक के तलाकशुदा

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की शबाना का अलग ही मामला है. उस के पति ने उसे तलाक नहीं दिया है, फिर भी इद्दत के दौरान भरणपोषण की रकम दे कर उस से छुटकारा पा लिया है. जबकि इद्दत 2 स्थितियों में होता है. एक औरत विधवा हो जाए, दूसरा उस का तलाक हो जाए. लेकिन शबाना के साथ इन दोनों स्थितियों में एक भी नहीं है.

एटा शहर के किदवईनगर में समरुद्दीन पत्नी रजिया, 2 बेटियों शबाना, शमा तथा 2 बेटों सरताज और नूर आलम के साथ रहते थे. उन का खातापीता परिवार था. बेटियों में शबाना शादी लायक हुई तो वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगे.

एटा में ही उन के एक रिश्तेदार अलीदराज रहते थे. बाद में वह काम की तलाश में दिल्ली चले गए और वहां दक्षिणपूर्वी दिल्ली जिले के संगम विहार में रहने लगे. उन्होंने वहीं स्टील फरनीचर का अपना कारखाना लगा लिया, जो ठीकठाक चल पड़ा.

अलीदराज के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और 1 बेटी थी. वह बेटी की शादी कर चुके थे. बड़े बेटे आसिफ की शादी के लिए उन्होंने समरुद्दीन के पास प्रस्ताव भेजा. क्योंकि शबाना उन्हें पसंद थी. आसिफ पिता के स्टील फरनीचर के धंधे में हाथ बंटा रहा था. लड़का ठीकठाक था, इसलिए समरुद्दीन ने हामी भर दी. इस के बाद आसिफ और शबाना का निकाह हो गया.

शादी के बाद शबाना दिल्ली आ गई. वह समझदार लड़की थी, इसलिए रजिया को पूरा विश्वास था कि बेटी अपने बातव्यवहार से ससुराल वालों का दिल जीत लेगी और खुशहाल जीवन जिएगी. हुआ भी ऐसा ही. शबाना के दांपत्य के शुरुआती दिन काफी खुशहाल थे. मांबाप ने शादी में 4-5 लाख रुपए खर्च किए थे.

आसिफ का भी काम ठीक चल रहा था. सासससुर, पति, देवर सभी उसे प्यार करते थे. इसलिए शबाना भविष्य को ले कर निश्ंिचत थी. शादी के साल भर बाद शबाना को एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम अलीशा रखा गया. अलीशा घर की पहली संतान थी, इसलिए उसे ले कर सभी खुश थे. सब कुछ बढि़या चल रहा था, लेकिन अचानक शबाना के सुख के दिन दुखों में बदल गए.

एक दिन आसिफ शराब पी कर घर आया तो शबाना को गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘यह क्या कर के आए हो तुम? यह नया शौक कब से पाल लिया? पीने वाले मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे मायके में शराब की छोड़ो, कोई बीड़ीसिगरेट तक नहीं पीता.’’

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पत्नी की नसीहत सुन कर उसे अमल में लाने के बजाय आसिफ ने शबाना के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘क्या मैं तेरे बाप के पैसों से पी कर आया हूं, जो तू मुझे समझा रही है? तू कौन होती है मुझे रोकने वाली?’’

शौहर के इस व्यवहार से शबाना हैरान रह गई. उस ने कहा, ‘‘भले तुम मेरे बाप के पैसों की नहीं पी रहे हो, पर शराब पीना अच्छा तो नहीं है.’’

‘‘तू ठीक कह रही है. तू ही कौन सी अच्छी है. मेरे दोस्त मुझ पर हंसते हैं, वे कहते हैं कि कहां मोटी के चक्कर में फंस गया.’’

कह कर आसिफ कमरे में चला गया. उस की इस बात पर शबाना हैरान थी. उस ने तो उसे पसंद कर के निकाह किया था. अब यह क्या कह रहा है? शबाना डर गई. उस ने मन को समझाया कि आसिफ ने नशे में यह बात कह दी होगी.

लेकिन सुबह भी आसिफ का व्यवहार जस का तस रहा तो शबाना सहम उठी. क्योंकि इस से उस का दांपत्य सुखी नहीं हो सकता था. शबाना ने शौहर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘देखो, अब मैं जैसी भी हूं, तुम्हारी बीवी हूं. अब पूरा जीवन तुम्हें मेरे साथ ही बिताना होगा.’’

आसिफ ने उस की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. वह खापी कर फैक्ट्री चला गया.  शबाना को परेशान देख कर सास अफसरी ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहू, तुम कुछ परेशान लग रही हो?’’

‘‘अम्मी आप ही बताइए कि अगर मैं मोटी हूं, तो इस में मेरा क्या दोष है?’’ शबाना ने कहा.

‘‘नहीं, इस में तुम्हारा दोष नहीं, हमारा दोष है.’’ अफसरी बेगम ने व्यंग्य किया.

उसी बीच सामूहिक विवाह समारोह में शबाना के देवर असद की शादी दिल्ली की कमरुन्निसा के साथ हो गई थी. कमरुन्निसा छरहरे बदन की काफी खूबसूरत लड़की थी. भाई की दुलहन देख कर आसिफ को लगा कि मांबाप ने उस के निकाह में कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दी थी, वरना उस का निकाह भी किसी खूबसूरत लड़की के साथ हुआ होता.

यह बात मन में आते ही आसिफ को भाई से ईर्ष्या होने लगी. पर मन की बात बाहर नहीं आने दी. बेटी के पहले जन्मदिन पर आसिफ के कुछ दोस्त घर आए तो उन्होंने कहा, ‘‘भाई आसिफ, असद की बीवी तो बहुत सुंदर है.’’

दोस्तों की इस बात से आसिफ ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. उसे लगा कि शबाना से निकाह कर के उस ने बहुत बड़ी गलती की थी. उस दिन के बाद से आसिफ शबाना से उखड़ाउखड़ा रहने लगा. उसे शबाना में हजार कमियां नजर आने लगीं. बातबात में वह उस की पिटाई करने लगा. उस की इस पिटाई से शबाना का 2 बार गर्भपात हो गया.

शबाना परेशान थी कि इस तरह पिटते हुए जिंदगी कैसे बीतेगी? पति का व्यवहार काफी तकलीफ देने वाला था. परेशान हो कर उस ने पिता को फोन कर दिया कि दिल्ली आ कर वह उसे ले चलें. समरुद्दीन दिल्ली पहुंचे और शबाना को एटा ले गए. घर पहुंच कर शबाना ने मांबाप को पति द्वारा प्रताडि़त करने की सारी बात बता दी.

अब तक समरुद्दीन को कहीं से पता चल चुका था कि शादी से पहले आसिफ किसी शादीशुदा औरत को भगा ले गया था. पुलिस ने उसे चंडीगढ़ में गिरफ्तार किया था. लेकिन आसिफ के नाना इसलाम ने किसी तरह से उसे जेल जाने से बचा लिया था. उस के बाद आननफानन में शबाना से उस का निकाह करा दिया गया था. इस से समरुद्दीन को लगा कि उस के साथ धोखा हुआ है.

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आसिफ मोटी बीवी शबाना से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. कुछ दिनों बाद वह शबाना को ले आया. शबाना एक बार फिर गर्भवती हो गई. घर वाले बेटा होने की उम्मीद कर रहे थे. शबाना को लगा कि अगर बेटा न हुआ तो उस पर होने वाले अत्याचार बढ़ जाएंगे. समय पर शबाना को बेटा ही हुआ, लेकिन वह दिव्यांग था. उस का नाम आतिश रखा गया.

दिव्यांग बेटा पैदा होने की वजह से शबाना पर होने वाले अत्याचार बढ़ गए थे. सास ने कह दिया था कि दिव्यांग बच्चे पैदा करने वाली बहू के साथ उस के बेटे का कोई भविष्य नहीं है. अब वह अपने बेटे के लिए चांद सी बहू लाएगी.

‘‘तो फिर मेरा क्या होगा अम्मी?’’ शबाना ने पूछा तो अफसरी ने कहा, ‘‘तुझे तलाक दे देगा और क्या होगा. मेरा बेटा मर्द है, जवान है, 4-4 शादियां कर सकता है.’’

‘‘नहीं, यह गलत है.’’ शबाना ने कहा तो अफसरी ने आसिफ से कहा, ‘‘तोड़ दे इस के हाथपैर. अब यह हमें बताएगी कि क्या गलत है और क्या सही है.’’

आसिफ जानवरों की तरह शबाना पर टूट पड़ा. इस के बाद बातबात पर उस की पिटाई होने लगी. शबाना समझ नहीं पा रही थी कि वह अब क्या करे? दिव्यांग बेटा पैदा होने के बाद आसिफ बेलगाम हो गया था. अलीदराज और अफसरी अकसर फैक्ट्री में रहते थे. ऐसे में आसिफ बाजारू लड़कियों को घर ला कर शबाना के सामने ही कमरे में बंद हो जाता था. विरोध करने पर उस की पिटाई करता और उसे घर से निकाल देने की धमकी देता.

आसिफ शबाना को इतना परेशान कर देना चाहता था कि वह खुद ही घर छोड़ कर चली जाए. क्योंकि उस के लिए दूसरी बीवी की तलाश शुरू हो गई थी.

आसिफ अपने दोस्तों को घर बुला कर उन के साथ शराब पीता. उस के दोस्तों ने नशे में एक दो बार शबाना से छेड़छाड़ भी की. शबाना ने इस बात की शिकायत आसिफ से की तो उस ने कहा, ‘‘अगर तू मेरे दोस्तों के साथ सो जाएगी तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा.’’

पति इतना गिर सकता है, शबाना ने सोचा भी नहीं था. शौहर की हरकतें बरदाश्त से बाहर होती जा रही थीं. शबाना समझ गई कि आसिफ उस से छुटकारा पाना चाहता है. वह बुरी तरह फंसी हुई थी. वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. संयोग से उसी बीच वह गर्भवती हो गई. इस की जानकारी होते ही आसिफ ने कहा, ‘‘तुझे यह बच्चा गिरवाना होगा, वरना तू फिर से दिव्यांग बच्चे को जन्म देगी. हमें तो स्वस्थ बेटा चाहिए.’’

शबाना ने पति को बहुत समझाया, पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा. शबाना पिता को बुला कर उन के साथ मायके चली गई. वह ससुराल के बजाय मायके में ही बच्चे को जन्म देना चाहती थी. लेकिन अफसरी और आसिफ ने तय कर लिया था कि वह इस बच्चे को पैदा नहीं होने देंगे. उसी बीच आसिफ के लिए बरेली की एक लड़की तलाश कर ली गई थी. फरवरी, 2016 में आसिफ ससुराल पहुंचा और ससुर समरुद्दीन से कहा कि वह शबाना को ले जाना चाहता है.

लेकिन समरुद्दीन ने शबाना को विदा करने के बजाय कहा कि वह उन लोगों के खिलाफ अदालत में घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज कराएंगे. ससुर के तेवर से आसिफ डर गया. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मुझ से जो गलती हुई, उसे माफ कर दें. अब मैं शबाना को कुछ नहीं कहूंगा.’’

आखिर समरुद्दीन ने कुछ लोगों को बुलाया तो उन के सामने आसिफ ने आश्वासन दिया कि अब वह शबाना को अच्छी तरह रखेगा. इस के बाद समरुद्दीन ने शबाना को विदा कर दिया.

शबाना ससुराल आ गई. ससुराल में 10-15 दिन तो ठीक से गुजरे, लेकिन उस के बाद उसे फिर से प्रताडि़त किया जाने लगा. शबाना के 3 माह के गर्भ को अफसरी गिराने में जुट गई. वह उसे तरहतरह की दवाएं खिलाने लगी. आसिफ भी उस के साथ मारपीट करने लगा.

परेशान हो कर शबाना ने पिता को फोन कर के सारी बात बता दी. समरुद्दीन दिल्ली पहुंचे और थाना संगम विहार में शिकायत दर्ज करा दी. शिकायत की एक प्रति उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग को भी भेज दी. यह मामला साकेत स्थित महिला सेल में पहुंचा. वहां सुनवाई भी हुई, पर कोई फैसला नहीं हुआ.

अफसरी और आसिफ ने तय कर लिया था कि उन्हें शबाना से छुटकारा पाना है. अब उसे उस के पिता समरुद्दीन से भी मिलने नहीं दिया जाता था. चूंकि शबाना गर्भवती थी, इसलिए आसिफ उसे तलाक भी नहीं दे सकता था. क्योंकि इसलाम में गर्भवती महिला को तलाक नहीं दिया जा सकता. उन्होंने मौलवियों से मशविरा कर के एक योजना बनाई और उसी योजना के तहत समरुद्दीन से कहा कि वह 11 जून, 2016 को पंचायत में आ कर अपनी बात कहें.

11 जून, 2016 को अलीदराज की फैक्ट्री में पंचायत बैठी. समरुद्दीन भी उस पंचायत में पहुंचे. शबाना भी अपने बच्चों के साथ पंचायत में आई. पंचों के पूछने पर शबाना ने कहा कि वह आसिफ के साथ रहना चाहती है, पर वह उस के साथ मारपीट न करे. परंतु आसिफ ने कहा कि अब वह उसे तलाक देना चाहता है. इस पर पंचों ने कहा कि वह गर्भवती पत्नी को तलाक नहीं दे सकता.

शबाना और समरुद्दीन परेशान थे. आखिर एक सादे कागज पर दोनों से जबरदस्ती दस्तखत करा लिए गए. फिर उसी कागज पर अलगअलग रहने का समझौता तैयार किया गया. उस में जो लिखा गया, उस के अनुसार मनमुटाव की वजह से शबाना और आसिफ एक साथ नहीं रहना चाहते. अत: दहेज का 30 हजार रुपए का चैक शबाना को दिया जाता है. इस के अलावा 5 हजार रुपए इद्दत के दौरान का खर्च भी दिया जाता है.

समझौते में यह भी लिखा गया था कि दोनों बच्चे अलीशा और आतिश आसिफ के पास रहेंगे. पंचायत में आसिफ ने शबाना से कह दिया कि वह समझ ले कि उस का तलाक हो चुका है. उस के दोनों बच्चे उस के पास ही रहेंगे. शबाना कहती रही कि उस के बच्चे उसे दे दिए जाएं, लेकिन किसी ने उस की एक नहीं सुनी और बापबेटी को जबरन बाहर निकाल दिया गया.

शबाना पिता के साथ एटा आ गई. मां रजिया को जब पता चला कि बेटी को उस के पति ने छोड़ दिया है तो उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा. गर्भवती बेटी की हालत भी खराब थी. आखिर रजिया ने अपने आंसू पोंछ कर बेटी को संभाला.

पंचायत ने आसिफ से कहा था कि वह गर्भवती पत्नी को तलाक नहीं दे सकता, लेकिन बच्चा पैदा होने के बाद वह फोन कर के 3 तलाक कह सकता है. यही योजना बना कर इद्दत के दौरान दिया जाने वाला भरणपोषण का खर्च आसिफ ने 5 हजार रुपए पहले ही दे दिए थे.

इस के बाद आसिफ ने समझ लिया कि उस का तलाक हो चुका है. बस कहना भर बाकी है. लेकिन शबाना और उस के मांबाप आसिफ और उस के घर वालों को सबक सिखाना चाहते थे.

इस संबंध में समरुद्दीन एडवोकेट मोहम्मद इरफान से मिले. समझौता देख कर उन्होंने कहा कि किसी भी दृष्टि से शबाना और आसिफ का तलाक नहीं हुआ है. इसलिए शबाना को अपने पति से बच्चे और भरणपोषण का खर्च पाने का पूरा हक है.

एडवोकेट मोहम्मद इरफान ने 24 नवंबर, 2016 को शबाना की तरफ से मुकदमा दायर करा दिया. शबाना ने 4 दिसंबर, 2016 को एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अहमद रखा गया. वह पूरी तरह से स्वस्थ है. जुलाई, 2017 में आसिफ ने बरेली की किसी लड़की से निकाह कर लिया. शादी की बात सुन कर शबाना काफी दुखी हुई. मांबाप के समझाने पर शबाना ने खुद को संभाला और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस ली.

शबाना आसिफ से अपने बच्चों की वापसी का और भरणपोषण का मुकदमा लड़ रही है. उस का कहना है कि सौतेली मां उस के बच्चों को कभी खुश नहीं रख सकेगी. 9 अगस्त, 2017 को उस ने परिवार न्यायालय एटा में सैक्शन 10 के अंतर्गत गार्जियन ऐंड वार्ड्स एक्ट का केस दायर कर दिया है.

22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. शबाना खुश है कि अब आसिफ उसे कम से कम 3 तलाक तो नहीं दे सकता. वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ कर उस से अपने बच्चे और गुजाराभत्ता ले लेगी. वह एक चरित्रहीन शौहर के पास जाने के बजाय अकेली रह कर स्वाभिमान के साथ जीने का प्रण कर चुकी है.

शराब के लिए पैसे नहीं दिए तो दे दिया तलाक

बिहार के जिला बेगूसराय के थाना वीरपुर की पश्चिमी पंचायत क्षेत्र में मोहम्मद शकील अपनी पत्नी रूबेदा खातून के साथ रहता था. दोनों का विवाह 22 साल पहले हुआ था और घर में 6 बच्चे थे.

शकील शराब का लती था, मजबूरी में रूबेदा ही जैसेतैसे परिवार का भरणपोषण करती थी. बिहार में नीतीश सरकार ने शराब पर पाबंदी लगाई तो शराबियों को दिन में तारे नजर आने लगे.

लेकिन शराब ऐसी चीज है, जो पाबंदी के बावजूद भी बंद नहीं होती. लोग बेचनेखरीदने के नएनए रास्ते खोज लेते हैं. गुजरात की तरह बिहार का भी हाल है. मोहम्मद शकील ने भी शराब मिलने का अड्डा तो खोज लिया, पर उसे ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ने लगी. एक दिन जब शकील ने रूबेदा से पैसे मांगे तो उस ने पैसे देने से इनकार कर दिया.

इस से शकील आपे से बाहर हो गया और गुस्से में रूबेदा को 3 बार तलाक बोल कर उस से रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दिया. घबरा कर रूबेदा ने पासपड़ोस के लोगों को हकीकत बताई. वे लोग जानते थे कि शकील आए दिन रूबेदा के साथ मारपीट करता है.

वे रूबेदा का साथ देने के वादे के साथ उसे थाना वीरपुर ले गए. जहां रूबेदा ने पूरी बात थानाप्रभारी बाबूलाल को बताई. थानाप्रभारी ने 15 अगस्त, 2017 को रूबेदा की ओर से शकील के खिलाफ उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया. लेकिन तलाक के मामले में वह भी कुछ नहीं कर सकते थे. बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद रूबेदा और उस के 6 बच्चों का भविष्य अंधकारमय होने से बच गया.

आला हजरत के खानदान की बहू भी 3 तलाक के फेर में

कोई सोच भी नहीं सकता कि 3 तलाक के चक्कर में बरेली के आला हजरत खानदान की बहू रही निदा खान मौत के आगोाश में जाने से बामुश्किल बच पाई है. 5 मई, 2017 को निदा जब अपने वालिद के घर थी, तभी करीब दर्जन भर गुंडों ने घर में घुस कर तोड़फोड़ की. निदा को कमरे में बंद कर के ताला लगा दिया गया था, इसलिए वह बच गई. बाकी घर वालों के साथ गुंडों ने मारपीट की.

बदमाश जातेजाते धमकी दे कर गए कि निदा बच नहीं पाएगी. निदा को उस के पति ने 3 तलाक कह कर घर से निकाल दिया था. इस मामले को ले कर निदा अदालत गई. उस का केस तो दर्ज हो गया, लेकिन बदले में दुश्मनी भी मिली.

निदा के भाई मोइन खान का कहना है कि जब एक दिन वह और निदा अदालत से घर लौट रहे थे तो रास्ते में कुछ बाइक सवारों ने उन के साथ बदसलूकी की और केस वापस न लेने पर जान से मारने की धमकी दी. इस के बाद उन के घर पर गुंडे आए थे. निदा अपनी लड़ाई तो लड़ ही रही है, साथ ही अपने जैसी महिलाओं की मदद भी करती है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से निदा खुश है. उसे न्याय मिल सकेगा या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा.

तलाक के डर से बच्चे की बलि

9 जुलाई, 2017 की शाम 6 बजे के करीब घर के बाहर गली में बच्चों के साथ खेल रहा सुनील का 3 साल का बेटा यश अचानक लापता हो गया. सुनील मध्य प्रदेश के जिला इंदौर के थाना गौतमपुरा के गांव गढ़ी बिल्लौदा का रहने वाला था. बेटे के गायब होने का पता चलते ही वह गांव वालों की मदद से उस की तलाश में लग गया.

काफी खोजबीन के बाद भी जब बेटे का कुछ पता नहीं चला तो सुनील ने गांव के कुछ लोगों के साथ थाना गौतमपुरा जा कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करवा दी थी. सुनील बेटे की गुमशुदगी भले ही दर्ज करवा आया था, लेकिन घर लौट कर उस से रहा नहीं गया. वह पूरी रात बेटे की तलाश में इधरउधर भटकता रहा. जहां भी संभव हो सका, उस ने बेटे को खोजा.

लेकिन सुनील की सारी मेहनत तब बेकार गई, जब सुबह मुंहअंधेरे सुनील के पड़ोसी दिलीप बागरी ने शोर मचाया कि सुनील का बेटा यश उस के आंगन में बेहोश पड़ा है.

दिलीप के शोर मचाते ही पूरा गांव उस के आंगन में जमा हो गया. गांव वालों ने यश को टटोला तो पता चला कि वह मर चुका है. तुरंत इस बात की सूचना थाना गौतमपुरा पुलिस को दी गई.

सूचना मिलते ही थाना गौतमपुरा के थानाप्रभारी हीरेंद्र सिंह राठौर पुलिस बल के साथ गांव गढ़ी बिल्लौदा पहुंच गए. उन्होंने यश को गौर से देखा तो उन्हें भी लगा कि बच्चा मर चुका है. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो उसे देख कर ही लग रहा था कि बच्चे के पूरे शरीर में सुई चुभोई गई है. उस के पूरे शरीर से खून रिस रहा था.

बच्चे के मुंह पर भी अंगुलियों के निशान थे, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बच्चे का मुंह भी दबाया गया था. संभवत: मुंह दबाने से ही दम घुटने के कारण बच्चे की मौत हुई थी. सुई चुभोने से पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि तंत्रमंत्र में बच्चे की हत्या की गई थी. इस के बाद घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर हीरेंद्र सिंह राठौर ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

यह साफसाफ तंत्रमंत्र में हत्या का मामला था, इसलिए हीरेंद्र सिंह इस बात पर विचार करने लगे कि आखिर बच्चे की हत्या किस ने की है? तंत्रमंत्र के अलावा हत्या की कोई दूसरी वजह भी नहीं दिखाई दे रही थी. क्योंकि सुनील इतना पैसे वाला आदमी नहीं था कि कोई फिरौती के लिए उस के बेटे का अपहरण करता. उस का कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था कि दुश्मनी में उस के बेटे का कत्ल किया गया हो.

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इस के अलावा थानाप्रभारी ने यह भी पता कराया कि सुनील का किसी अन्य औरत से चक्कर तो नहीं था? जिस की वजह से उस ने पत्नी और बेटे से छुटकारा पाने के लिए ऐसा किया हो.

जिस दिलीप बागरी के आंगन में यश का शव मिला था, उस से भी पूछताछ की गई. उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं मासूम बच्चे की हत्या क्यों करूंगा? मैं तो उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करता था. रात 12 बजे तक तो मैं सुनील के साथ ही था. उस के बाद घर आ कर सो गया था. बच्चे की चिंता में मैं ने रात में खाना भी नहीं खाया था.’’

दिलीप बागरी ने जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए सफाई दी थी, उस से हीरेंद्र सिंह राठौर को लगा कि शयद किसी अन्य ने बच्चे की हत्या कर के इसे फंसाने के लिए लाश इस के आंगन में फेंक दी है. यही सोच कर वह थाने लौट आए. थाने आ कर उन्होंने यश की गुमशुदगी की जगह उस की हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की खुद ही जांच शुरू कर दी.

कई दिनों तक वह इस मामले की विवचेना करते रहे, पर हत्यारे तक पहुंचने की कौन कहे, वह यह तक पता नहीं कर सके कि मासूम यश की हत्या क्यों की गई थी?

जब हीरेंद्र सिंह राठौर इस मामले में कुछ नहीं कर सके तो आईजी हरिनारायण चारी ने उन का तबादला कर उन की जगह पर गौतमपुरा का नया थानाप्रभारी अनिल वर्मा को बनाया.

अनिल वर्मा थोड़ा तेजतर्रार अधिकारी थे. अब तक की गई हीरेंद्र सिंह की जांच का अध्ययन कर के पूरी बात उन्होंने डीआईजी हरिनारायण चारी, एडिशनल एसपी पंकज कुमावत तथा एसडीओपी अमित सिंह राठौर को बताई तो सभी अधिकारियों ने एक बार फिर दिलीप बागरी से थोड़ा सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

क्योंकि दिलीप बागरी ने भले ही अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा था, पर सभी को उसी पर शक था. अनिल वर्मा ने दिलीप से पूछताछ करने से पहले मुखबिरों से उस के बारे में पत कराया. मुखबिरों से उन्हें पता चला कि दिलीप इधर बेटे की चाह में तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा था. बेटे के लिए ही वह एक के बाद एक कर के 3 शादियां कर चुका है.

बेटे के ही चक्कर में उस की पहली पत्नी की मौत हुई थी. यह जानकारी मिलने के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप और उस की दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी को थाने बुलवा लिया. थाने में दिलीप और उस की पत्नियों से अलगअलग पूछताछ की जाने लगी तो तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास पाया गया.

इस से अनिल वर्मा का संदेह गहराया तो उन्होने दिलीप बागरी से सख्ती से पूछताछ शुरू की. पुलिस की सख्ती के आगे दिलीप टूट गया और उस ने अपनी दोनों पत्नियों संतोष कुमारी और पुष्पा के साथ मिल कर यश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने यश की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

दिलीप की पहली शादी 17 साल की उम्र मे गौतमपुरा के नजदीक के गांव इंगोरिया की रहने वाली सज्जनबाई से हुई थी. सज्जनबाई नाम से ही नहीं, स्वभाव से भी सज्जन थी. उस ने दिलीप की घरगृहस्थी तो संभाल ही ली थी, समय पर 2 बेटियों को जन्म दे कर उस का घरआंगन महका दिया था.

2 बेटियां पैदा होने के बाद सज्जनबाई और बच्चे नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने दिलीप से औपरेशन कराने को कहा. लेकिन दिलीप इतने से संतुष्ट नहीं था. उसे तो बेटा चाहिए था, इसलिए औपरेशन कराने से मना करते हुए उस ने कहा, ‘‘बिना बेटे के इस संसार से मुक्ति नहीं मिलती, इसलिए जब तक बेटा पैदा नहीं हो जाता, तुम औपरेशन के बारे में सोचना भी मत.’’

पति के आदेश की अवहेलना करना सज्जनबाई के वश में नहीं था. क्योंकि दिलीप ने साफ कह दिया था कि उसे एक बेटा चाहिए ही चाहिए. अगर वह उस का कहना नहीं मानेगी तो वह उसे तलाक दे कर दूसरी शादी कर लेगा. दिलीप ऐसा कर भी सकता था, क्योंकि उस की जाति में यह कोई मुश्किल काम नहीं था.

इसलिए सज्जनबाई चुप रह गई. कुछ दिनों बाद सज्जनबाई तीसरी बार गर्भवती हुई. जबकि उस की उम्र तो अभी शादी लायक भी नहीं थी और वह तीसरे बच्चे की मां बनने जा रही थी. दुर्भाग्य से दिलीप का बेटे का बाप बनने का सपना पूरा नहीं हो सका. क्योंकि बच्चे को जन्म देते समय सज्जनबाई ही नहीं, उस के बच्चे की भी मौत हो गई थी.

संयोग से पैदा होने वाला बच्चा बेटा ही था. दिलीप को पत्नी और बेटे की मौत का दुख तो हुआ, लेकिन चूंकि ज्यादा दिनों तक वह अकेला नहीं रह सकता था, फिर उसे बेटा भी चाहिए था, जो दूसरी पत्नी लाने के बाद ही पैदा हो सकता था. इसलिए उस ने उज्जैन के नागदा के नजदीक के गांव उन्हेल की रहने वाली पुष्पा से दूसरी शादी कर ली. पुष्पा के घर आते ही वह बेटा पैदा करने की कोशिश में जुट गया.

साल भर बाद ही पुष्पा ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह 3 महीने का हो कर गुजर गया.

इस तरह से एक बार फिर दिलीप की आशाओं पर पानी फिर गया. बेटे की मौत से वह काफी दुखी था. लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पा से उसे बेटा हो सकता है, इसलिए वह इस दुख को भुला कर एक बार फिर बेटा पैदा करने की कोशिश में लग गया. पुष्पा गर्भवती तो हुई, लेकिन कुछ महीने बाद उस का गर्भपात हो गया.

इस से दिलीप को वहम होने लगा कि जरूर कोई ऐसी बात है, जो उसे बेटे का बाप बनने में बाधा डाल रही है. वह पड़ोस के गांव में रहने वाले तांत्रिक बलवंत से जा कर मिला. पूरी बात सुनने के बाद तांत्रिक बलवंत ने कहा, ‘‘तुझे बेटा कहां से होगा, तेरी पत्नी की कोख में तो डायन बैठी है. वही उस की संतान को खा जाती है.’’

उपाय के नाम पर पुष्पा की झाड़फूंक शुरू हो गई. दिलीप कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उस ने संतोष कुमारी से एक और शादी कर ली. उस का सोचना था कि पुष्पा से बेटा नहीं होगा तो संतोष कुमारी से तो हो ही जाएगा. लेकिन शायद उस की किस्मत ही खराब थी. संतोष कुमारी को बेटा होने की कौन कहे, गर्भ ही नहीं ठहरा.

बेटे के लिए दिलीप तो परेशान था ही, उस की दोनों पत्नियां पुष्पा और संतोष कुमार भी परेशान रहने लगी थीं, उन की परेशानी की वजह यह थी कि बेटे के चक्कर में कहीं दिलीप उन्हें तलाक दे कर चौथी शादी न कर ले. क्योंकि उन्हें पता था कि बेटे के लिए दिलीप कुछ भी कर सकता है.

दिलीप चौथी ही नहीं, बेटे के लिए पांचवीं शादी भी कर सकता था. तलाक के बारे में सोच कर पुष्पा और संतोष परेशान रहती थीं. अपनी परेशानी पुष्पा ने पिता मनोहर सिंह को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. क्योंकि वह भी दामाद की सोच को अच्छी तरह जानते थे. दामाद को न वह रोक सकते थे, न उन की बात उस की समझ में आ सकती थी.

इसलिए बेटी का भविष्य खराब न हो, यह सोच कर वह पुष्पा को नागदा के पास स्थित गांव उमरनी के रहने वाले तांत्रिक अंबाराम आगरी के पास ले गए. पुष्पा की पूरी बात सुनने के बाद अंबाराम ने कहा, ‘‘तुम्हारी कोख में जो डायन बैठी है, वह मासूम बच्चे की बलि मांग रही है. जिस बच्चे की बलि दी जाए, वह मांबाप की पहली संतान हो. बलि के बाद तुम्हें जो गर्भ ठहरेगा, वह बेटा ही होगा और जीवित भी रहेगा.’’

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तांत्रिक अंबाराम ने जो उपाय बताया था, ससुराल आ कर पुष्पा ने उसे पति दिलीप बागरी और सौत संतोष कुमारी को बताया. दिलीप तो थोड़ा कसमसाया, पर पति के तलाक के डर से संतोष कुमारी राजी हो गई. लेकिन समस्या थी मासूम बच्चे की, जो मांबाप की पहली संतान हो.

लेकिन तीनों ने जब इस विषय पर गहराई से विचार किया तो उन्हें पड़ोस में रहने वाले सुनील का 3 साल का बेटा यश याद आ गया. वह मांबाप की पहली संतान था और पड़ोसी होने के नाते दिलीप के घर आताजाता रहता था.

इस के बाद दिलीप और उस की पत्नियों ने यश की बलि देने का मन बना लिया. मासूम बच्चा मिल गया तो दिलीप ने अंबाराम से मिल कर पूछा कि बलि कब और कैसे देनी है? इस तरह अपने घर का चिराग रोशन करने के लिए दिलीप ने पड़ोसी सुनील के घर का चिराग बुझाने का मन बना लिया. अंबाराम ने बलि देने के लिए अमावस्या या पूर्णिमा का दिन बताया था.

9 जून को पूर्णिमा थी, इसलिए 8 जून को पुष्पा, दिलीप और संतोष कुमारी ने अगले दिन बलि देने की तैयारी कर के यश को अगवा करने की योजना बना डाली. इस के बाद दिलीप रोज की तरह सट्टा खेलने बड़नगर चला गया. शाम को जैसे ही यश दिलीप के घर आया, संतोष कुमारी और पुष्पा ने उसे कमरे में बंद कर के दिलीप को फोन कर के काम हो जाने की सूचना दे दी.

दिलीप उत्साह से गांव के लिए चल पड़ा. जब वह गांव पहुंचा, यश के गायब होने का हल्ला मच चुका था. पूरा गांव मासूम यश की तलाश में लगा था. दिलीप भी गांव वालों के साथ यश की तलाश का नाटक करने लगा. रात एक बजे तक वह गांव वालों के साथ यश की तलाश में लगा रहा.

जब सभी अपनेअपने घर चले गए तो दिलीप भी अपने घर आ गया. इस के बाद दोनों पत्नियों के साथ मिल कर जिस तरह तांत्रिक अंबाराम ने बलि देने की बात बताई थी, उसी तरह सभी बलि देने की तैयारी करने लगे. यश पड़ोसियों की खतरनाक योजना से बेखबर गहरी नींद में सो रहा था. अंबाराम के बताए अनुसार, दिलीप उसे उठा कर कमरे के अंदर ले गया और वहां बिछी रेत पर लिटा कर तांत्रिक के बताए अनुसार, मासूम यश के शरीर में पिनें चुभोने लगा. पीड़ा से बिलबिला कर मासूम यश रोने लगा तो संतोष और पुष्पा ने उस का मुंह दबा दिया.

दिलीप लगातार यश के होंठों, गर्दन और कंधे पर पिन चुभोता रहा. जहां पिन चुभती, वहां से खून रिसने लगता, जो बह कर रेत में समा जा रहा था. इसी तरह करीब 3 घंटे तक दिलीप यश के शरीर में पिन चुभोता रहा, क्योंकि उसे तब तक यह करना था, जब तक उस मासूम की मौत न हो जाए.

लगभग 3 घंटे बाद जब यश की मौत हुई, तब तक करीब साढ़े 3 बज चुके थे. इस के बाद यश की लाश को ला कर आंगन में रख दिया गया, जिस जगह उस मासूम का खून गिरा था, उसी के ऊपर बिना बिस्तर बिछाए दिलीप ने अपनी दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

क्योंकि तांत्रिक अंबाराम ने दिलीप से कहा था कि मासूम की बलि देने पर जो खून निकलेगा, उस के सूखने से पहले ही उस के ऊपर जितनी भी औरतों से वह शारीरिक संबंध बनाएगा, सभी को 9 महीने बाद बेटा पैदा होगा और वे जीवित भी रहेंगे. इस तरह बेटा पाने की खुशी में दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी ने जश्न मनाया.

दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी को तांत्रिक अंबाराम पर इतना भरोसा था कि यश की लाश उन के आंगन में भले मिलेगी, फिर भी पुलिस उन तीनों पर जरा भी संदेह नहीं करेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

दिलीप और उस की पत्नियों से पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने उज्जैन के रेलवे स्टेशन से तांत्रिक अंबाराम को भी गिरफ्तार कर लिया था. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस का कहना था कि उस की नीयत दिलीप की दोनों पत्नियों पर खराब हो गई थी.

उस का सोचना था कि बच्चे की हत्या के आरोप में दिलीप जेल चला जाएगा तो बाद में उस की दोनों पत्नियां संतोष और पुष्पा आसानी से उस के कब्जे में आ जाएंगी. इसीलिए उस ने बलि देने के बाद बच्चे की लाश को घर के आंगन में रखने के लिए कहा था, ताकि दिलीप आसानी से कानून के शिकंजे में फंस जाए.

पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप, पुष्पा, संतोष कुमारी और तांत्रिक अंबाराम को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. बेटे की चाहत में दिलीप ने अपना घर तो बरबाद किया ही, पड़ोसी के मासूम बेटे की जान ले कर उस के घर का भी चिराग बुझा दिया.

इस में सब से ज्यादा दोषी तो तांत्रिक अंबाराम है, जिस ने अपनी कुंठित भावना को पूरी करने के लिए 2 घर बरबाद कर दिए.

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जब विवाह बोझ बन जाए

एक बीमार विवाह के साथ रहना क्या विवाह को समाप्त करने से अच्छा है? यह सवाल बहुत से पुरुषों और स्त्रियों के मन में कौंधता है. जो पतिपत्नी सदा एकदूसरे को कोसते रहते हैं, एकदूसरे की गलतियां निकालते रहते हैं उन्हें अकसर लगता है कि इस विवाह के चक्कर में पड़े ही क्यों, क्यों नहीं वे विवाह तोड़ कर आजादी को अपनाते?

यह सवाल जीवन के उन चंद उलझे सवालों में से है जिन के उत्तर नहीं होते. विवाह, पहली बात समझ लें कोई संस्कार नहीं, कोई ईश्वरप्रदत्त नहीं, कोई परमानैंट जीवन का हिस्सा नहीं. विवाह हमेशा तोड़ा जाता रहा है. हमारे पौराणिक इतिहास में तो पतिपत्नी हमेशा विवाद से ग्रस्त रहे हैं और शायद ही कोई ऐसा जोड़ा हो, जो आदर्श पतिपत्नी के रूप में रहा हो. जो खुद ईश्वर के अवतार रहे हैं या अवतारों की संतान कहे जाते हैं, आदर्श पतिपत्नी का उदाहरण पेश नहीं कर सके.

इसीलिए किसी को भी विवाह तोड़ने पर कोई विशेष अपराध भाव नहीं पालना चाहिए. विवाह में बच्चे हुए या नहीं हुए, अगर लगने लगे कि इस बीमार काया को ढोने से अच्छा इस से मुक्ति पाना है तो इसे अपना लेना चाहिए.

अगर मुसलमानों का कोई हिस्सा तीन तलाक को मानता है तो यह गलत नहीं, क्योंकि यह एकतरफा होते हुए भी सहज और सुलभ तरीका है एकदूसरे से रंज और रोष भरे संबंध को तोड़ने का.

भारतीय जनता पार्टी तो नहीं कर सकती पर दूसरी पार्टियों को चाहिए था कि वे कहते कि तीन तलाक का यह अधिकार पुरुषों के साथसाथ औरतों को भी मिले ताकि कानूनन बराबरी हो जाए और भेदभाव की आड़ में हिंदू एजेंडे को लागू न करा जा सके.

यह सुविधा हिंदुओं को भी मिलनी चाहिए, क्योंकि एक बोझिल विवाह जितनी जल्दी समाप्त हो जाए उतना ही अच्छा है.

पर यहां सवाल उठता है कि कौन सा विवाह बोझ है, कौन सा विवाह बीमार है. जैसे लाइलाज बीमारी से ग्रस्त बेटे या पिता को मारा नहीं जाता वैसे ही जब तक विवाह जिंदा है, उसे सहना भी चाहिए और स्वीकारना भी. जरूरत उस के इलाज की है, उसे तलाक का जहर देने की नहीं.

असल में विवाह तोड़ना निकटतम संबंधी की मृत्यु के बराबर ही नहीं उस से बढ़ कर है. जब विवाह संक्रमण के कारण अपनेआप मर जाए तभी उसे फूंका जा सकता है. यह संक्रमण एक साथी का दूसरा साथी ढूंढ़ लेना हो सकता है, अलग जा कर रहना हो सकता है, विवाह संबंध पर पुलिस का तेजाब उड़ेल देना हो सकता है, भयंकर मारपीट हो सकती है.

केवल असहमति, ताने देना, जोर से बोलना, गुस्सा होना, रूठना, रोनाधोना, देर से घर आना, डांटफटकार करना आदि विवाह की छोटीबड़ी बीमारियों में गिना जा सकता है. उन्हें विवाह के मरने की संज्ञा नहीं दी जा सकती.

बहुत से युवा केवल असहमति पर विवाह तोड़ देते हैं और यह तुनकबाजी लंबे समय तक कष्ट देती है. अरेंज्ड मैरिज हो या लव मैरिज, बाद में पतिपत्नी में सैक्स के माध्यम से यह संबंध प्रेमी जोड़े का सा ही हो जाता है. एक बार का प्रेम कुछ अरसे बाद इतना कटु हो जाए कि इसे बहुत आसानी से घर बदलने की तर्ज पर तोड़ दिया जाए, गलत है.

यह समझ लेना चाहिए कि जब तक दूसरा दरवाजा खुला न हो अपना बनाबनाया सुरक्षा देता दरवाजा छोड़ देना पति और पत्नी दोनों के लिए बेवकूफी है. विवाह व्यावहारिकता पर टिका होता है. यह धार्मिक या कानूनी बंधन नहीं. दोनों चाहते हैं कि विवाह में विवाद हो ताकि धर्म और कानून के बिचौलियों की बनी रहे.

पतिपत्नी विवाद में बाहरी लोग, दोनों के मातापिता, रिश्तेदार, दोस्त, सहकर्मी, काउंसलर, पंडे, मुल्ला, पुलिस, अदालत जितना न आएं उतना अच्छा है. ये सब पतिपत्नी के झगड़े में अपना उल्लू सीधा करते हैं.

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दिल्ली के चीफ सैक्रेटरी अंशु प्रकाश को मारे गए थप्पड़ का सच

आम आदमी पार्टी के 2 विधायकों प्रकाश जारवाल और अमानतुल्ला खान ने दिल्ली के चीफ सैक्रेटरी अंशु प्रकाश को मीटिंग में आधी रात को थप्पड़ मारे थे या नहीं, उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले अदालत में इस बारे में कोई फैसला हो जाएगा.

असल फसाद आप बनाम एलजी और भाजपा है जो इस बवंडर में दब गया और बेचारे चीफ सैक्रेटरी साहब बेवजह बलि का बकरा बन गए, जिन पर आप का आरोप है कि वे आम लोगों के हितों से जुड़े सवालों व बातों पर गौर ही नहीं कर रहे थे.

अपने साथी की बेइज्जती पर देशभर के आईएएस अधिकारी इकट्ठा हो गए. इस बाबत उन्हें गृहमंत्री राजनाथ सिंह की शह मिली हुई थी जिन्होंने इस कथित थप्पड़ को अफसरशाही के स्वाभिमान से जोड़ दिया था. रिपोर्ट दोनों पक्षों ने लिखाई लेकिन आम राय आप के पक्ष में जा रही है, तो इस की वजह यह थप्पड़ नहीं, बल्कि वे साहब लोग हैं जो सरकार को अपने इशारों पर नाचते देखने के आदी हो गए हैं.

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झूठी तारीफ कर पैसे नहीं कमाता : टैरेंस लुईस

कई हीरो और हीरोइनों को अपनी उंगली पर नचा चुके कोरियोग्राफर टैरेंस लुईस ‘डीआईडी,’ ‘नच बलिए,’ ‘हिंदुस्तान के हुनरबाज’ और ‘चक धूमधूम’ जैसे टीवी रिऐलिटी शोज के जज रहे चुके हैं. टैरेंस की खासीयत यह है कि वे प्रतियोगियों को काफी मोटिवेट करते हैं और अपने कमैंट्स व गाइडैंस से उन का बैस्ट निकलवा लेते हैं. यही वजह है कि आज वे अपनी अलग पहचान रखते हैं. एक माइक्रोबायलौजिस्ट और होटल मैनेजमैंट की पढ़ाई करने के बाद भी डांस में रुचि होने की वजह से टैरेंस ने परंपरागत पेशे को न अपना कर अपने दिल की बात सुनी और अपने लिए वह काम चुना, जिस में उन का मन रमता था. हालांकि, उन को शुरुआत में अपने परिवार से काफी नाराजगी मिली, लेकिन वे यह समझते थे कि उन्होंने अपने लिए बिलकुल सही रास्ता चुना है. टैरेंस की मेहनत और लगन ने उन्हें आज अपने क्षेत्र में काफी ऊंचाई पर ला दिया है. पेश हैं एक शो के दौरान उन से हुई बातचीत के खास अंश :

डांस की लत कैसे लगी?

डांस तो मैं बचपन से ही करता था. 14 साल की उम्र में मैं ने अपने स्कूल की तरफ से डांस इंटरनैशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था. वहां मौजूद जज परवेज शेट्टी ने मुझे डांस करते देखा और आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया क्योंकि उस प्रतियोगिता में मुझे पहला पुरस्कार मिला था. साथ ही, डांस सीखने के लिए स्कौलरशिप भी मिली थी.

जब मैं जैज बैलेट क्लासेज में डांस सीखने गया तो वहां के टीचर मेरा डांस देख कर खुश हो गए. परवेज शेट्टी सर के बाद अमेरिकन मौडर्न कन्टैंपरेरी डांस टीचर जौन फ्रीमैन का मेरी जिंदगी में आना मेरी लाइफ को ट्विस्ट कर गया.

वर्ष 1996-97  में फ्रीमैन मुझे हौटन स्टाइल सिखाने के लिए मुंबई आए थे. उस से पहले मुझे इस डांस स्टाइल के बारे में पता तक नहीं था. इस के बाद मैं डांस में पूरी तरह खो गया.

डांस को कैरियर बनाने की कब सोची?

मेरा परिवार मुंबई की चाल में रहता था. मैं ने वह सबकुछ देखा जो एक आम भारतीय परिवार में होता है. इसलिए परिवार चलाने के लिए जब पैसों की जरूरत हुई तो मैं ने डांस को ही कैरियर बनाने की सोची. सब से पहले मैं ने शुरुआत डांस टीचर के रूप में शुरू की. इस के बाद सैलिब्रिटी माधुरी दीक्षित और गौरी खान जैसी कई हस्तियां को डांस सिखाया.

‘लगान’ फिल्म में मैं ने कोरियोग्राफी की है. मेरी डांस क्लास सही चल रही थी कि एक दिन एलीक पद्मसी का कौल आया. उन्होंने मुझे एक विज्ञापन कोरियोग्राफ करने का मौका दिया. उस विज्ञापन के लिए मुझे कुछ डांसर्स की जरूरत थी. इसलिए कई  कालेजों में मैं ने डांस औडीशंस कराए और यहीं से नींव पड़ी मेरी डांस कंपनी टैरेंस लुईस कन्टेंपरेरी डांस कंपनी की.

क्या यंग जैनरेशन डांस में कैरियर बना सकती है?

बिलकुल बना सकती है. जब से डांस रिऐलिटी शो शुरू हुए हैं तब से तो संभावनाएं और बढ़ गई हैं. मेरा डांस कंपनी शुरू करने का मकसद भी यही था कि मैं इस के माध्यम से डांस को मेन स्ट्रीम कैरियर के रूप में स्थापित कर सकूं. विदेशों में डांसिंग एक फुलफलेज्ड कैरियर है, जबकि भारत में इसे केवल हौबी के रूप में लिया जाता है और इज्जत की नजर से नहीं देखा जाता. हमारा मुंबई में सिर्फ एक डांस इंस्टिट्यूट है. हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है, सिर्फ उन्हें पहचानने और प्लेटफौर्म देने की जरूरत है.

नए लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

मैं एक डांस टीचर हूं, लेकिन हमेशा स्टूडैंट बन कर ही रहना चाहता हूं, क्योंकि मैं हमेशा सीखना चाहता हूं. जिंदगी में अनुशासन व अभ्यास 2 ऐसी चीजें हैं जिन्होंने मुझे कभी रुकने नहीं दिया. यही मैं डांस में कैरियर बनाने वालों से कहना चाहता हूं कि वे अपने काम में माहिर बनें. बाजार में क्या स्टाइल चल रहा है, इस पर नजर रखें.

बौलीवुड में कोरियोग्राफी ज्यादा न करने की वजह?

कोई खास वजह नहीं. मैं उन लोगों को डांस नहीं सिखा सकता जो उस की एबीसीडी भी न जानते हों.  दूसरी बात, मैं जो कहना चाहता हूं, सामने बोल देता हूं जो सब को बुरा लगता है. फिल्मों में कई बार ऐसा होता है कि डांस करने वाले को बच्चों की तरह सिखाना पड़ता है. तब मैं कह देता हूं कि तुम से नहीं होगा डांस, इसी वजह से मैं बौलीवुड में कोरियोग्राफी कम करता हूं. मैं सिर्फ डांस सिखाता और जज करता हूं. पैसे की मुझे भी जरूरत होती है लेकिन किसी की झूठी तारीफ कर के मैं पैसा नहीं कमाना चाहता.

सबसे अच्छे डांसर

आज रणवीर सिंह और वरुण धवन सब से अच्छे डांसर हैं. इन्हें ज्यादा सिखाना नहीं पड़ता. क्योंकि आज के कलाकार फिल्म में आने से पहले डांस सीखने और जिम जाने को पहली प्राथमिकता देते हैं. रितिक रोशन जैसे कलाकार के साथ काम करना आसान है. वे डांस में इतने परफैक्ट हैं कि कोरियोग्राफर एकदो नए स्टैप्स खुद सीख लेता है.

काबिलीयत की कदर नहीं

टैरेंस कहते हैं ‘‘मैं रिऐलिटी डांस शोज करता हूं. कई ऐसे लोगों को देखता हूं जो डांस के मामले में जीरो हैं लेकिन उन के प्रशंसकों की तादाद इतनी ज्यादा है कि काबिलीयत न होने पर भी वे ऊपर पहुंच जाते हैं. हमारे यहां टैलेंट की नहीं, चमकदमक और ग्लैमर की कदर है.’’

राइटर भी हैं टैरेंस

टैरेंस एक अच्छे डांसर होने के साथसाथ एक राइटर भी हैं. पिछले दिनों उन्होंने एक विवाहित जोड़े के तनावपूर्ण जीवन पर एक कहानी लिखी. कोरियोग्राफी पेशे से संबद्ध एक पति व पत्नी के रिश्तों में पैदा हुई समस्याओं पर आधारित इस पटकथा पर अगर फिल्म बनती है तो यह संवेदनशील फिल्म साबित होगी.

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कहीं आप भी तो अपने फोन की स्क्रीन साफ करते वक्त नहीं करते हैं ये गलतियां!

आजकल बड़ी टचस्क्रीन वाले स्मार्टफोन का क्रेज लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. मोबाइल के बाद टैबलेट और टीवी, सभी कुछ टचस्क्रीन में आ चुका है. यूज करने में अच्छी लगने वाली टचस्क्रीन डिवाइस की सेफ्टी का ख्याल रखना भी काफी जरूरी है.

यदि आपके हाथ साफ नहीं हैं तो डिस्पले पर निशान पड़ जाते हैं और डिवाइस देखने में अच्छी नहीं लगती. स्क्रीन पर आने वाले मामूली निशान तो आसानी से साफ हो जाते हैं, लेकिन यदि गंदगी का कोई गहरा निशान बन जाए तो उसे हटाना काफी मुश्किल होता है. टचस्‍क्रीन के सही ढंग से साफ नहीं होने पर यह सही से काम भी नहीं करती है.

महंगे स्मार्टफोन्स और टैबलेट्स की स्क्रीन को सुरक्षित रखने के लिए डायरी कवर, टैम्पर्ड ग्लास, स्क्रीन प्रोटेक्टर जैसी चीजें मार्केट में उपलब्ध हैं. हालांकि, गोरिल्ला ग्लास आने के बाद स्क्रीन डैमेज का खतरा काफी कम हुआ है. लेकिन फिर भी कई बार फोन की स्क्रीन काफी गंदी हो जाती है जिसे साफ करते समय कई बातों का ध्यान रखना बेहद जरुरी है.

जानें स्मार्टफोन की स्क्रीन को साफ करते वक्त किन सावधानियों को बरतना चाहिए.

स्क्रीन साफ करते समय क्या न करें

– स्क्रीन साफ करते समय ग्लास क्लीनर जैसे कैमिकल्स का इस्तेमाल न करें. साथ ही अमोनिया जैसे क्लीनर्स का भी इस्तेमाल करने से बचें. स्क्रीन को आसानी से बिना कैमिकल के भी साफ किया जा सकता है.

– स्क्रीन को साफ करने के लिए कभी भी पानी का इस्तेमाल न करें. यह स्मार्टफोन या टैबलेट को खराब भी कर सकता है. अगर जरुरत हो तो माइक्रोफाइबर कपड़े को हल्का-सा पानी में भिगोएं और उससे फोन की स्क्रीन को साफ करें.

– इसे साफ करने के लिए प्लास्टिक, टिशू पेपर या किसी भी तरह का सख्त कपड़ा इस्तेमाल न करें. इससे स्क्रीन पर स्क्रैच पड़ सकते हैं.

– स्क्रीन साफ करते समय उस पर ज्यादा दबाव न डालें. इससे स्क्रीन टूट भी सकती है.

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