उत्तर प्रदेश के जिला एटा की शबाना का अलग ही मामला है. उस के पति ने उसे तलाक नहीं दिया है, फिर भी इद्दत के दौरान भरणपोषण की रकम दे कर उस से छुटकारा पा लिया है. जबकि इद्दत 2 स्थितियों में होता है. एक औरत विधवा हो जाए, दूसरा उस का तलाक हो जाए. लेकिन शबाना के साथ इन दोनों स्थितियों में एक भी नहीं है.
एटा शहर के किदवईनगर में समरुद्दीन पत्नी रजिया, 2 बेटियों शबाना, शमा तथा 2 बेटों सरताज और नूर आलम के साथ रहते थे. उन का खातापीता परिवार था. बेटियों में शबाना शादी लायक हुई तो वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगे.
एटा में ही उन के एक रिश्तेदार अलीदराज रहते थे. बाद में वह काम की तलाश में दिल्ली चले गए और वहां दक्षिणपूर्वी दिल्ली जिले के संगम विहार में रहने लगे. उन्होंने वहीं स्टील फरनीचर का अपना कारखाना लगा लिया, जो ठीकठाक चल पड़ा.
अलीदराज के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और 1 बेटी थी. वह बेटी की शादी कर चुके थे. बड़े बेटे आसिफ की शादी के लिए उन्होंने समरुद्दीन के पास प्रस्ताव भेजा. क्योंकि शबाना उन्हें पसंद थी. आसिफ पिता के स्टील फरनीचर के धंधे में हाथ बंटा रहा था. लड़का ठीकठाक था, इसलिए समरुद्दीन ने हामी भर दी. इस के बाद आसिफ और शबाना का निकाह हो गया.
शादी के बाद शबाना दिल्ली आ गई. वह समझदार लड़की थी, इसलिए रजिया को पूरा विश्वास था कि बेटी अपने बातव्यवहार से ससुराल वालों का दिल जीत लेगी और खुशहाल जीवन जिएगी. हुआ भी ऐसा ही. शबाना के दांपत्य के शुरुआती दिन काफी खुशहाल थे. मांबाप ने शादी में 4-5 लाख रुपए खर्च किए थे.
आसिफ का भी काम ठीक चल रहा था. सासससुर, पति, देवर सभी उसे प्यार करते थे. इसलिए शबाना भविष्य को ले कर निश्ंिचत थी. शादी के साल भर बाद शबाना को एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम अलीशा रखा गया. अलीशा घर की पहली संतान थी, इसलिए उसे ले कर सभी खुश थे. सब कुछ बढि़या चल रहा था, लेकिन अचानक शबाना के सुख के दिन दुखों में बदल गए.
एक दिन आसिफ शराब पी कर घर आया तो शबाना को गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘यह क्या कर के आए हो तुम? यह नया शौक कब से पाल लिया? पीने वाले मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे मायके में शराब की छोड़ो, कोई बीड़ीसिगरेट तक नहीं पीता.’’
पत्नी की नसीहत सुन कर उसे अमल में लाने के बजाय आसिफ ने शबाना के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘क्या मैं तेरे बाप के पैसों से पी कर आया हूं, जो तू मुझे समझा रही है? तू कौन होती है मुझे रोकने वाली?’’
शौहर के इस व्यवहार से शबाना हैरान रह गई. उस ने कहा, ‘‘भले तुम मेरे बाप के पैसों की नहीं पी रहे हो, पर शराब पीना अच्छा तो नहीं है.’’
‘‘तू ठीक कह रही है. तू ही कौन सी अच्छी है. मेरे दोस्त मुझ पर हंसते हैं, वे कहते हैं कि कहां मोटी के चक्कर में फंस गया.’’
कह कर आसिफ कमरे में चला गया. उस की इस बात पर शबाना हैरान थी. उस ने तो उसे पसंद कर के निकाह किया था. अब यह क्या कह रहा है? शबाना डर गई. उस ने मन को समझाया कि आसिफ ने नशे में यह बात कह दी होगी.
लेकिन सुबह भी आसिफ का व्यवहार जस का तस रहा तो शबाना सहम उठी. क्योंकि इस से उस का दांपत्य सुखी नहीं हो सकता था. शबाना ने शौहर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘देखो, अब मैं जैसी भी हूं, तुम्हारी बीवी हूं. अब पूरा जीवन तुम्हें मेरे साथ ही बिताना होगा.’’
आसिफ ने उस की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. वह खापी कर फैक्ट्री चला गया. शबाना को परेशान देख कर सास अफसरी ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहू, तुम कुछ परेशान लग रही हो?’’
‘‘अम्मी आप ही बताइए कि अगर मैं मोटी हूं, तो इस में मेरा क्या दोष है?’’ शबाना ने कहा.
‘‘नहीं, इस में तुम्हारा दोष नहीं, हमारा दोष है.’’ अफसरी बेगम ने व्यंग्य किया.
उसी बीच सामूहिक विवाह समारोह में शबाना के देवर असद की शादी दिल्ली की कमरुन्निसा के साथ हो गई थी. कमरुन्निसा छरहरे बदन की काफी खूबसूरत लड़की थी. भाई की दुलहन देख कर आसिफ को लगा कि मांबाप ने उस के निकाह में कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दी थी, वरना उस का निकाह भी किसी खूबसूरत लड़की के साथ हुआ होता.
यह बात मन में आते ही आसिफ को भाई से ईर्ष्या होने लगी. पर मन की बात बाहर नहीं आने दी. बेटी के पहले जन्मदिन पर आसिफ के कुछ दोस्त घर आए तो उन्होंने कहा, ‘‘भाई आसिफ, असद की बीवी तो बहुत सुंदर है.’’
दोस्तों की इस बात से आसिफ ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. उसे लगा कि शबाना से निकाह कर के उस ने बहुत बड़ी गलती की थी. उस दिन के बाद से आसिफ शबाना से उखड़ाउखड़ा रहने लगा. उसे शबाना में हजार कमियां नजर आने लगीं. बातबात में वह उस की पिटाई करने लगा. उस की इस पिटाई से शबाना का 2 बार गर्भपात हो गया.
शबाना परेशान थी कि इस तरह पिटते हुए जिंदगी कैसे बीतेगी? पति का व्यवहार काफी तकलीफ देने वाला था. परेशान हो कर उस ने पिता को फोन कर दिया कि दिल्ली आ कर वह उसे ले चलें. समरुद्दीन दिल्ली पहुंचे और शबाना को एटा ले गए. घर पहुंच कर शबाना ने मांबाप को पति द्वारा प्रताडि़त करने की सारी बात बता दी.
अब तक समरुद्दीन को कहीं से पता चल चुका था कि शादी से पहले आसिफ किसी शादीशुदा औरत को भगा ले गया था. पुलिस ने उसे चंडीगढ़ में गिरफ्तार किया था. लेकिन आसिफ के नाना इसलाम ने किसी तरह से उसे जेल जाने से बचा लिया था. उस के बाद आननफानन में शबाना से उस का निकाह करा दिया गया था. इस से समरुद्दीन को लगा कि उस के साथ धोखा हुआ है.
आसिफ मोटी बीवी शबाना से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. कुछ दिनों बाद वह शबाना को ले आया. शबाना एक बार फिर गर्भवती हो गई. घर वाले बेटा होने की उम्मीद कर रहे थे. शबाना को लगा कि अगर बेटा न हुआ तो उस पर होने वाले अत्याचार बढ़ जाएंगे. समय पर शबाना को बेटा ही हुआ, लेकिन वह दिव्यांग था. उस का नाम आतिश रखा गया.
दिव्यांग बेटा पैदा होने की वजह से शबाना पर होने वाले अत्याचार बढ़ गए थे. सास ने कह दिया था कि दिव्यांग बच्चे पैदा करने वाली बहू के साथ उस के बेटे का कोई भविष्य नहीं है. अब वह अपने बेटे के लिए चांद सी बहू लाएगी.
‘‘तो फिर मेरा क्या होगा अम्मी?’’ शबाना ने पूछा तो अफसरी ने कहा, ‘‘तुझे तलाक दे देगा और क्या होगा. मेरा बेटा मर्द है, जवान है, 4-4 शादियां कर सकता है.’’
‘‘नहीं, यह गलत है.’’ शबाना ने कहा तो अफसरी ने आसिफ से कहा, ‘‘तोड़ दे इस के हाथपैर. अब यह हमें बताएगी कि क्या गलत है और क्या सही है.’’
आसिफ जानवरों की तरह शबाना पर टूट पड़ा. इस के बाद बातबात पर उस की पिटाई होने लगी. शबाना समझ नहीं पा रही थी कि वह अब क्या करे? दिव्यांग बेटा पैदा होने के बाद आसिफ बेलगाम हो गया था. अलीदराज और अफसरी अकसर फैक्ट्री में रहते थे. ऐसे में आसिफ बाजारू लड़कियों को घर ला कर शबाना के सामने ही कमरे में बंद हो जाता था. विरोध करने पर उस की पिटाई करता और उसे घर से निकाल देने की धमकी देता.
आसिफ शबाना को इतना परेशान कर देना चाहता था कि वह खुद ही घर छोड़ कर चली जाए. क्योंकि उस के लिए दूसरी बीवी की तलाश शुरू हो गई थी.
आसिफ अपने दोस्तों को घर बुला कर उन के साथ शराब पीता. उस के दोस्तों ने नशे में एक दो बार शबाना से छेड़छाड़ भी की. शबाना ने इस बात की शिकायत आसिफ से की तो उस ने कहा, ‘‘अगर तू मेरे दोस्तों के साथ सो जाएगी तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा.’’
पति इतना गिर सकता है, शबाना ने सोचा भी नहीं था. शौहर की हरकतें बरदाश्त से बाहर होती जा रही थीं. शबाना समझ गई कि आसिफ उस से छुटकारा पाना चाहता है. वह बुरी तरह फंसी हुई थी. वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. संयोग से उसी बीच वह गर्भवती हो गई. इस की जानकारी होते ही आसिफ ने कहा, ‘‘तुझे यह बच्चा गिरवाना होगा, वरना तू फिर से दिव्यांग बच्चे को जन्म देगी. हमें तो स्वस्थ बेटा चाहिए.’’
शबाना ने पति को बहुत समझाया, पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा. शबाना पिता को बुला कर उन के साथ मायके चली गई. वह ससुराल के बजाय मायके में ही बच्चे को जन्म देना चाहती थी. लेकिन अफसरी और आसिफ ने तय कर लिया था कि वह इस बच्चे को पैदा नहीं होने देंगे. उसी बीच आसिफ के लिए बरेली की एक लड़की तलाश कर ली गई थी. फरवरी, 2016 में आसिफ ससुराल पहुंचा और ससुर समरुद्दीन से कहा कि वह शबाना को ले जाना चाहता है.
लेकिन समरुद्दीन ने शबाना को विदा करने के बजाय कहा कि वह उन लोगों के खिलाफ अदालत में घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज कराएंगे. ससुर के तेवर से आसिफ डर गया. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मुझ से जो गलती हुई, उसे माफ कर दें. अब मैं शबाना को कुछ नहीं कहूंगा.’’
आखिर समरुद्दीन ने कुछ लोगों को बुलाया तो उन के सामने आसिफ ने आश्वासन दिया कि अब वह शबाना को अच्छी तरह रखेगा. इस के बाद समरुद्दीन ने शबाना को विदा कर दिया.
शबाना ससुराल आ गई. ससुराल में 10-15 दिन तो ठीक से गुजरे, लेकिन उस के बाद उसे फिर से प्रताडि़त किया जाने लगा. शबाना के 3 माह के गर्भ को अफसरी गिराने में जुट गई. वह उसे तरहतरह की दवाएं खिलाने लगी. आसिफ भी उस के साथ मारपीट करने लगा.
परेशान हो कर शबाना ने पिता को फोन कर के सारी बात बता दी. समरुद्दीन दिल्ली पहुंचे और थाना संगम विहार में शिकायत दर्ज करा दी. शिकायत की एक प्रति उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग को भी भेज दी. यह मामला साकेत स्थित महिला सेल में पहुंचा. वहां सुनवाई भी हुई, पर कोई फैसला नहीं हुआ.
अफसरी और आसिफ ने तय कर लिया था कि उन्हें शबाना से छुटकारा पाना है. अब उसे उस के पिता समरुद्दीन से भी मिलने नहीं दिया जाता था. चूंकि शबाना गर्भवती थी, इसलिए आसिफ उसे तलाक भी नहीं दे सकता था. क्योंकि इसलाम में गर्भवती महिला को तलाक नहीं दिया जा सकता. उन्होंने मौलवियों से मशविरा कर के एक योजना बनाई और उसी योजना के तहत समरुद्दीन से कहा कि वह 11 जून, 2016 को पंचायत में आ कर अपनी बात कहें.
11 जून, 2016 को अलीदराज की फैक्ट्री में पंचायत बैठी. समरुद्दीन भी उस पंचायत में पहुंचे. शबाना भी अपने बच्चों के साथ पंचायत में आई. पंचों के पूछने पर शबाना ने कहा कि वह आसिफ के साथ रहना चाहती है, पर वह उस के साथ मारपीट न करे. परंतु आसिफ ने कहा कि अब वह उसे तलाक देना चाहता है. इस पर पंचों ने कहा कि वह गर्भवती पत्नी को तलाक नहीं दे सकता.
शबाना और समरुद्दीन परेशान थे. आखिर एक सादे कागज पर दोनों से जबरदस्ती दस्तखत करा लिए गए. फिर उसी कागज पर अलगअलग रहने का समझौता तैयार किया गया. उस में जो लिखा गया, उस के अनुसार मनमुटाव की वजह से शबाना और आसिफ एक साथ नहीं रहना चाहते. अत: दहेज का 30 हजार रुपए का चैक शबाना को दिया जाता है. इस के अलावा 5 हजार रुपए इद्दत के दौरान का खर्च भी दिया जाता है.
समझौते में यह भी लिखा गया था कि दोनों बच्चे अलीशा और आतिश आसिफ के पास रहेंगे. पंचायत में आसिफ ने शबाना से कह दिया कि वह समझ ले कि उस का तलाक हो चुका है. उस के दोनों बच्चे उस के पास ही रहेंगे. शबाना कहती रही कि उस के बच्चे उसे दे दिए जाएं, लेकिन किसी ने उस की एक नहीं सुनी और बापबेटी को जबरन बाहर निकाल दिया गया.
शबाना पिता के साथ एटा आ गई. मां रजिया को जब पता चला कि बेटी को उस के पति ने छोड़ दिया है तो उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा. गर्भवती बेटी की हालत भी खराब थी. आखिर रजिया ने अपने आंसू पोंछ कर बेटी को संभाला.
पंचायत ने आसिफ से कहा था कि वह गर्भवती पत्नी को तलाक नहीं दे सकता, लेकिन बच्चा पैदा होने के बाद वह फोन कर के 3 तलाक कह सकता है. यही योजना बना कर इद्दत के दौरान दिया जाने वाला भरणपोषण का खर्च आसिफ ने 5 हजार रुपए पहले ही दे दिए थे.
इस के बाद आसिफ ने समझ लिया कि उस का तलाक हो चुका है. बस कहना भर बाकी है. लेकिन शबाना और उस के मांबाप आसिफ और उस के घर वालों को सबक सिखाना चाहते थे.
इस संबंध में समरुद्दीन एडवोकेट मोहम्मद इरफान से मिले. समझौता देख कर उन्होंने कहा कि किसी भी दृष्टि से शबाना और आसिफ का तलाक नहीं हुआ है. इसलिए शबाना को अपने पति से बच्चे और भरणपोषण का खर्च पाने का पूरा हक है.
एडवोकेट मोहम्मद इरफान ने 24 नवंबर, 2016 को शबाना की तरफ से मुकदमा दायर करा दिया. शबाना ने 4 दिसंबर, 2016 को एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अहमद रखा गया. वह पूरी तरह से स्वस्थ है. जुलाई, 2017 में आसिफ ने बरेली की किसी लड़की से निकाह कर लिया. शादी की बात सुन कर शबाना काफी दुखी हुई. मांबाप के समझाने पर शबाना ने खुद को संभाला और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस ली.
शबाना आसिफ से अपने बच्चों की वापसी का और भरणपोषण का मुकदमा लड़ रही है. उस का कहना है कि सौतेली मां उस के बच्चों को कभी खुश नहीं रख सकेगी. 9 अगस्त, 2017 को उस ने परिवार न्यायालय एटा में सैक्शन 10 के अंतर्गत गार्जियन ऐंड वार्ड्स एक्ट का केस दायर कर दिया है.
22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. शबाना खुश है कि अब आसिफ उसे कम से कम 3 तलाक तो नहीं दे सकता. वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ कर उस से अपने बच्चे और गुजाराभत्ता ले लेगी. वह एक चरित्रहीन शौहर के पास जाने के बजाय अकेली रह कर स्वाभिमान के साथ जीने का प्रण कर चुकी है.
शराब के लिए पैसे नहीं दिए तो दे दिया तलाक
बिहार के जिला बेगूसराय के थाना वीरपुर की पश्चिमी पंचायत क्षेत्र में मोहम्मद शकील अपनी पत्नी रूबेदा खातून के साथ रहता था. दोनों का विवाह 22 साल पहले हुआ था और घर में 6 बच्चे थे.
शकील शराब का लती था, मजबूरी में रूबेदा ही जैसेतैसे परिवार का भरणपोषण करती थी. बिहार में नीतीश सरकार ने शराब पर पाबंदी लगाई तो शराबियों को दिन में तारे नजर आने लगे.
लेकिन शराब ऐसी चीज है, जो पाबंदी के बावजूद भी बंद नहीं होती. लोग बेचनेखरीदने के नएनए रास्ते खोज लेते हैं. गुजरात की तरह बिहार का भी हाल है. मोहम्मद शकील ने भी शराब मिलने का अड्डा तो खोज लिया, पर उसे ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ने लगी. एक दिन जब शकील ने रूबेदा से पैसे मांगे तो उस ने पैसे देने से इनकार कर दिया.
इस से शकील आपे से बाहर हो गया और गुस्से में रूबेदा को 3 बार तलाक बोल कर उस से रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दिया. घबरा कर रूबेदा ने पासपड़ोस के लोगों को हकीकत बताई. वे लोग जानते थे कि शकील आए दिन रूबेदा के साथ मारपीट करता है.
वे रूबेदा का साथ देने के वादे के साथ उसे थाना वीरपुर ले गए. जहां रूबेदा ने पूरी बात थानाप्रभारी बाबूलाल को बताई. थानाप्रभारी ने 15 अगस्त, 2017 को रूबेदा की ओर से शकील के खिलाफ उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया. लेकिन तलाक के मामले में वह भी कुछ नहीं कर सकते थे. बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद रूबेदा और उस के 6 बच्चों का भविष्य अंधकारमय होने से बच गया.
आला हजरत के खानदान की बहू भी 3 तलाक के फेर में
कोई सोच भी नहीं सकता कि 3 तलाक के चक्कर में बरेली के आला हजरत खानदान की बहू रही निदा खान मौत के आगोाश में जाने से बामुश्किल बच पाई है. 5 मई, 2017 को निदा जब अपने वालिद के घर थी, तभी करीब दर्जन भर गुंडों ने घर में घुस कर तोड़फोड़ की. निदा को कमरे में बंद कर के ताला लगा दिया गया था, इसलिए वह बच गई. बाकी घर वालों के साथ गुंडों ने मारपीट की.
बदमाश जातेजाते धमकी दे कर गए कि निदा बच नहीं पाएगी. निदा को उस के पति ने 3 तलाक कह कर घर से निकाल दिया था. इस मामले को ले कर निदा अदालत गई. उस का केस तो दर्ज हो गया, लेकिन बदले में दुश्मनी भी मिली.
निदा के भाई मोइन खान का कहना है कि जब एक दिन वह और निदा अदालत से घर लौट रहे थे तो रास्ते में कुछ बाइक सवारों ने उन के साथ बदसलूकी की और केस वापस न लेने पर जान से मारने की धमकी दी. इस के बाद उन के घर पर गुंडे आए थे. निदा अपनी लड़ाई तो लड़ ही रही है, साथ ही अपने जैसी महिलाओं की मदद भी करती है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से निदा खुश है. उसे न्याय मिल सकेगा या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा.