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आईसीआईसीआई बैंक की एक गलती और डूब गए आपके 16 हजार करोड़

बैंकिंग सेक्टर के लिए बुरा दौर कब खत्म होगा? क्या बैंक की सबसे बड़ी समस्या एनपीए ही है? पिछले डेढ़ महीने में बैंकों की स्थिति को देखते हुए नहीं लगता कि बैंक आरबीआई नियमों को लेकर गंभीर हैं. पीएनबी घोटाला उजागर होने के बाद बैंकों की स्थिति की असलियत सामने आने लगी है. दरअसल, पीएनबी के बाद एक-एक बैंकों के घोटाले उजागर हुए. सरकारी बैंकों से शुरू हुई इस फेहरिस्त में अब प्राइवेट सेक्टर भी जुड़ गया है.

आईसीआईसीआई बैंक इन दिनों 3250 करोड़ रुपए की ‘स्वीट डील’ के पेंच में फंसा है. अब यह बैंक की एमडी चंदा कोचर का नाम बदनाम करने की कोशिश है या फिर सच में बैंक के लिए कोई खतरे की घंटी. इसका जवाब तो जांच के बाद ही पता चलेगा. लेकिन, बैंक की एक गलती से आज निवेशकों के करीब 16 हजार करोड़ डूब चुके हैं. यह रकम तो पीएनबी घोटाले से भी ज्यादा है.

लोन या ‘स्वीट डील’?

आईसीआईसीआई बैंक और वीडियोकौन ग्रुप के बीच हुई 3250 करोड़ की डील कोई आम डील नहीं थी. इस डील में बैंक की एमडी चंदा कोचर पर गलत तरीके से वीडियोकौन ग्रुप को 3,250 करोड़ रुपए का लोन देने का आरोप लगा है. इस डील में उनके पति दीपक कोचर का भी नाम शामिल है. इसलिए चंदा कोचर को और ज्यादा शक के घेरे में खड़ा किया गया है. आलम यह है कि बैंक के बोर्ड को दो बार आकर सफाई देनी पड़ी. हालांकि, जांच अभी जारी है, लेकिन बैंक का बोर्ड चंदा कोचर को क्लीन चिट दे चुका है.

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कैसे एक झटके में डूब गए 16 हजार करोड़?

वीडियोकौन ग्रुप ने बैंक को लोन के 2,810 करोड़ रुपए नहीं लौटाए और बैंक ने साल 2017 में इसे एनपीए घोषित कर दिया. मामला सामने आने के बाद से आईसीआईसीआई बैंक का शेयर 8 प्रतिशत से ज्यादा टूट चुका है. बैंक की इस एक गलती की वजह से निवेशकों के 16 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा डूब गए हैं.

3 दिन में साफ हुई मार्केट कैप

वीडियोकौन लोन मामला सामने आने के बाद से आईसीआईसीआई बैंक का शेयर टूट रहा है. निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं. ब्रोकरेज हाउस भी पैसा डालने से इनकार कर रहे हैं. यही वजह है कि बैंक की मार्केट कैप में बड़ी गिरावट आई. 3 दिन में आईसीआईसीआई बैंक का शेयर 8.80 फीसदी टूट चुका है. इससे बैंक का मार्केट कैप 16,090.64 करोड़ रुपए घट गया है. आपको बता दें, 27 मार्च को बंद हुए भाव 283.90 रुपए के लिहाज से बैंक का मार्केट कैप 1,82,725.35 करोड़ रुपए था, जो तीन दिन में घटकर 1,66,634.71 करोड़ रुपए हो गया है.

11% टूट चुका है बैंक का शेयर

लोन मामले की खबर आने और चंदा कोचर के खिलाफ जांच शुरू होने से आईसीआईसीआई बैंक के शेयर पर दबाव दिख रहा है. सोमवार को शेयर में 7 फीसदी की गिरावट देखी गई. कारोबार के दौरान बीएसई पर स्टौक 7 फीसदी टूटकर 258.90 रुपए के निचले स्तर पर आ गया था. हालांकि, बाद में थोड़ा रिकवर होकर 261.50 रुपए पर बंद हुआ. लेकिन, पिछले एक महीने में देखें तो बैंक का शेयर करीब 11 फीसदी टूट चुका है.

SEBI ने टेढ़ी की नजर

मार्केट रेग्युलेटर सेबी ने भी आईसीआईसीआई बैंक समेत लेंडर्स ग्रुप से हुई इस स्वीट डील से वीडियोकौन और उसके प्रोमोटर पर नजरें टेढ़ी कर ली हैं. आईसीआईसीआई बैंक भी सेबी के रडार पर है. सेबी ने बैंक के खिलाफ कौरपोरेट गवर्नैंस से संबंधित खामियों की जांच शुरू कर दी है. उधर सीबीआई भी आईसीआईसीआई बैंक के अधिकारियों से पूछताछ कर रही है.

चंदा कोचर पर क्यों उठे सवाल?

एक इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट के मुताबिक, वीडियोकौन ग्रुप को आईसीआईसीआई बैंक ने 3250 करोड़ रुपए का लोन दिया. बाद में यह लोन चुकाया नहीं गया. वीडियोकौन की मदद से बनी एक कंपनी आईसीआईसीआई बैंक की एमडी और सीईओ चंदा कोचर के पति दीपक कोचर के नाम कर दी गई. बैंक ने वीडियोकौन के लोन में से 86% यानी 2810 करोड़ रुपए डूबते खाते में डाल दिए और इसे एनपीए (नौन परफौर्मिंग असेट्स) घोषित कर दिया.

2008 में आई न्यूपावर

एक रिपोर्ट के मुताबिक, वीडियोकौन ग्रुप के मालिक वेणुगोपाल धूत ने चंदा कोचर के पति दीपक कोचर के साथ एक नई कंपनी बनाई. दिसंबर 2008 में न्यूपावर के नाम से कंपनी की नींव रखी गई. इसमें दोनों पार्टी यानी कोचर परिवार और वेणुगोपाल धूत की 50-50 फीसदी हिस्सेदारी थी. दीपक कोचर को इस कंपनी में बतौर एमडी नियुक्त किया गया. जबकि वेणुगोपाल धूत कंपनी के डायरेक्टर थें.

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कैसे बेची गई कंपनी

जनवरी 2009 में वेणुगोपाल धूत ने न्यूपावर कंपनी में डायरेक्टर का पद छोड़ दिया. उन्होंने ढाई लाख रुपए में अपने 24,999 शेयर्स भी न्यूपावर में ट्रांसफर कर दिए. रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2012 के बीच धूत ने 65 करोड़ की कंपनी को सिर्फ 9 लाख रुपए में दीपक कोचर को बेच दिया. 94.99 फीसदी होल्डिंग वाले शेयर महज 9 लाख रुपए में चंदा कोचर के पति को मिल गए. इस कंपनी को धूत की कंपनी से 64 करोड़ का लोन भी दिया गया.

सिर्फ 9 लाख में बेची कंपनी

खबरों के मुताबिक, इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि दीपक कोचर को इस कंपनी का ट्रांसफर वेणुगोपाल द्वारा आईसीआईसीआई बैंक की तरफ से वीडियोकौन ग्रुप को 3250 करोड़ रुपए का लोन मिलने के छह महीने के बाद किया गया.

VIDEO : करीना कपूर मेकअप लुक फ्रॉम की एंड का मूवी

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अब आदित्य राय कपूर और सनी सिंह के साथ दिखेंगी दिशा पाटनी

टाइगर श्रौफ के साथ फिल्म ‘‘बागी 2’’ में हीरोईन बनकर आ चुकी अभिनेत्री दिशा पाटनी की लौटरी लग गयी है. फिल्म ‘‘बागी 2’’ के हिट होते ही दिशा पाटनी को फिल्मकार मोहित सूरी ने अपनी अनाम रोमांचक फिल्म में आदित्य राय कपूर और सनी सिंह के साथ अभिनय करने के लिए अनुबंधित किया है.

मोहित सूरी ने आदित्य राय कपूर के साथ अतीत में दो फिल्में की हैं. जबकि सनी सिंह ने हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘‘सोनू के टीटू की स्वीटी’’ में अभिनय किया था.

मोहित सूरी की इस फिल्म के मिलने से दिशा पाटनी काफी उत्साहित हैं, मगर वह यह भूल गयीं कि फिल्म ‘‘बागी 2’’ में उनके सामने सिर्फ एक हीरो टाइगर श्रौफ थे. जबकि मोहित सूरी की इस फिल्म में आदित्य राय कपूर और सनी सिंह दो हीरो हैं.

VIDEO : करीना कपूर मेकअप लुक फ्रॉम की एंड का मूवी

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गोप्रो ने भारत में लौन्च किया अपना नया कैमरा, पानी में करेगा काम

मशहूर कैमरा ब्रांड ‘गोप्रो’(GoPro) ने भारत में अपना वाटरप्रूफ कैमरा लौन्च कर दिया है. कंपनी ने अपने इस एक्शन कैमरा का नाम ‘हीरो’ (HERO) रखा है. कंपनी के मुताबिक ‘गो प्रो हीरो’ 10 मीटर तक की पानी की गहराई में खराब नहीं होगा. ‘हीरो गो प्रो’ में वाइड एंगल व्यू, वौयस कंट्रोल और स्टेबलाइजेशन जैसे फीचर्स दिए गए हैं. भारत में कैमरे की बिक्री 2 अप्रैल से फ्लिपकार्ट पर शुरू हो चुकी है.

कीमत

GoPro HERO की भारत में कीमत 18,990 रुपये तय की गई है. फ्लिपकार्ट ने GoPro HERO एक्शन कैमरा को अपने वेबसाइट पर लिस्ट कर रखा है.

फीचर्स

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  • कैमरे में 10 मेगापिक्सल का कैमरा है.
  • इसमें 1/2.3 इंच का सीएमओएस सेंसर लगा है.
  • डिवाइस से 60 एफपीएस और 30 एपपीएस पर 4K रिकौर्डिंग की जा सकती है.
  • कैमरे का आईओएस रेंज 100-1600 का है.
  • गो प्रो हीरो में 95 सेंटीमीटर का टच स्क्रीन है, जिसका रेजोल्यूशन 320×480 पिक्सल है.
  • डिवाइस में 4जीबी की इनबिल्ट स्टोरेज दी है, जिसे माइक्रो एसडी कार्ड के जरिए 128 जीबी तक बढ़ाया जा सकता है.
  • कैमरा 117 ग्राम भारी है.

भारत में गो प्रो के तीन कैमरा पहले से ही उपलब्ध हैं. इनमें, HERO6 Black, HERO5 Black और HERO5 Session शामिल हैं. इन कैमरे की क्रमश: कीमत 37,000 रुपये, 27,000 रुपये और 18,000 रुपये है.

फोटोग्राफी के शौकिनों के लिए ये कैमरे हो सकते हैं पहली पसंद

Olympus OM-D E-M10 Mark II mirrorless camera

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फीचर्स

  • Olympus OM-D E-M10 Mark II मिरर लेस कैमरा है.
  • कैमरे में 16 मेगापिक्सल का सेंसर है.
  • इसमें 14-42 एमएम का जूम लेंस दिया गया है.
  • कैमरा 60एफपीएस और 1080 पिक्सल के साथ फुल एचडी क्वालिटी देता है.
  • इसमें 3 इंच का एलसीडी टच स्क्रीन दिया गया है.
  • कैमरे की कीमत करीब 32,325 रुपये है(कीमत में बदलाव हो सकता है).

Canon EOS Rebel T6

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फीचर्स

  • सिंगल लेंस रिफेक्स के तौर पर ये शानदार कैमरा है.
  • कैमरे में 18 मेगापिक्सल का सेंसर है.
  • इसमें ईएप-एस 18-55 एमएम आइएस जूम लेंस दिया गया है.
  • कैमरा की मदद से 1080 पिक्सल की एचडी वीडियो रिकौर्ड की जा सकती है.
  • डीएसएलआर कैमरे की कीमत करीब 28,086 रुपये है(कीमत में बदलाव हो सकता है).

Nikon D3400 DSLR camera

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फीचर्स

  • डिजिटल सिंगल लेंस रिफेक्स कैमरा के तौर पर निकौन का ये कैमरा बजट फ्रेंडली है.
  • कैमरे में 24.2 मेगापिक्सल का सेंसर है.
  • आपको पैकेज में 18-55 एमएम और 70-300 एमएम के एएफ-पी निकौन लेंसेस मिलेंगे.
  • कैमरे का आइएसओ रेंज 100 से 25,600 का है.
  • डीएसएलआर कैमरे की कीमत करीब 38,673 रुपये है(कीमत में बदलाव हो सकता है).

Yi M1 Mirrorless camera

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फीचर्स

  • Yi M1 एक मिररलेस इंटर चेंजबल कैमरा है.
  • कैमरा 12-40 एमएम एफ3 5-5.6 जूम लेंस के साथ आता है.
  • कैमरे में 20 मेगापिक्सल का इमेज सेंसर है.
  • कैमरे से 4k रिकौर्डिंग की जा सकती है.
  • इसमें 3 इंच का एलसीडी टच स्क्रीन दिया हुआ है.
  • कैमरे की कीमत करीब 22,673 रुपये है(कीमत में बदलाव हो सकता है).

VIDEO : करीना कपूर मेकअप लुक फ्रॉम की एंड का मूवी

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फिल्म ‘‘मिलन टौकीज’’ के लिए अली फजल ने घटाया वजन

अंततः तिग्मांशु धुलिया अपनी महत्वांकाक्षी फिल्म ‘‘मिलन टौकीज’’ की शूटिंग लखनउ में शुरू  कर चुके है. जहां पर दक्षिण की स्टार अभिनेत्री श्रृद्धा श्रीनाथ के साथ अली फजल भी शूटिंग कर रहे हैं. इस फिल्म के सेट पर अली फजल को देखकर लोग आश्चर्य चकित हो रहे हैं. क्योंकि वेब सीरीज ‘मिरजापुर’ के पोस्टर में वह काफी मोटे व मसल्स बढ़ाए हुए नजर आए थें.

पर उन्हें ‘मिलन टौकीज’ के किरदार के लिए खुद को उपयुक्त बनाने के लिए काफी वजन कम करना पड़ा. इस संबंध में अली फजल कहते हैं – ‘‘वजन घटना या बढ़ाना तो हम कलाकारों के काम का एक हिस्सा है. पिछले दिनों जब मैं अमरीका के लास एजेंल्स शहर गया हुआ था, तभी मैंने अपना वजन कम करना शुरू कर दिया था. मैं वहां भी वर्कआउट कर रहा था. मुंबई पहुंचने के बाद भी वर्कआउट किया.’’

किन एक्टर्स ने किया बौडी ट्रांसफौर्म

आमिर खान

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आमिर खान का नाम सुनते ही लोग अनुमान लगाते हैं मिस्टर परफेक्शनिस्ट का क्योंकि बौलीवुड में उन्हें इस नाम से भी जाना जाता है. आमिर खान ने साल 2016 में आई फिल्म दंगल में अपना वजन इस कदर बढ़ाया था कि उनसे झुका तक नहीं जा रहा था. कुछ दिनों बाद सोशल मीडिया पर आमिर का एक पोस्ट तेजी से वायरल हुआ जिसमें आमिर जिम करते हुए काफी फिट दिखाई दे रहे थें.

रणदीप हुड्डा

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रणदीप हुड्डा ने अपनी फिल्म दो लफ्जों की कहानी के लिये अपने वजन को बढ़ाकर 95 किलो तक किया था लेकिन ठिक उसके बाद आई फिल्म सरबजीत में रणदीप हुड्डा ने अपने बौडी को कुछ इस तरह ट्रांसफौर्म किया कि लोगों को उन्हें पहचानने में भी दिक्कत हुई थी. रणदीप ने फिल्म सरबजीत लिये 35 किलो तक वजन कम किया था.

रणवीर सिंह

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रणवीर सिंह बौलीवुड में इन्हें पावरबैंक के नाम से भी जाना जाता है. इन्होंने अपनी फिल्म पद्मावत के लिये अपने वजन को बढ़ाया था लेकिन फिलहाल हो रहे फिल्म गली बौय के सेट से जो तस्वीरें आ रही हैं उसमें रणवीर सिंह काफी दुबले पतले दिख रहे हैं क्योंकि इस फिल्म में रणवीर को एक कौलेज में पढ़ रहे लड़के का किरदार निभाना है.

VIDEO : करीना कपूर मेकअप लुक फ्रॉम की एंड का मूवी

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हुक्मशाही का दौर है : अन्ना हजारे

अन्ना हजारे आज किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं. आजादी के बाद शांतिपूर्ण आंदोलन कर सत्ता को उखाड़ फेंकने का बड़ा काम अन्ना हजारे ने किया था. महाराष्ट्र के अहमदनगर के रालेगण सिद्धि गांव में रहने वाले अन्ना हजारे का पूरा नाम किसन बाबू राव हजारे है. परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए वे बचपन में ही अपनी बूआ के साथ मुंबई आए और यहां उन्होंने फूल बेचने का काम शुरू किया.

अन्ना के दादाजी सेना में थे. अन्ना के बचपन पर उन का प्रभाव था. 1962 में जब भारतचीन युद्ध हुआ तो युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील की गई, जिस के तहत अन्ना सेना में भरती हो गए. 15 साल उन्होंने सेना में काम किया. इस के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले कर वे अपने गांव वापस आ गए.

अन्ना के जीवन पर महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज का काफी असर था. ऐसे में उन्होंने अपने गांव में सुधारकार्य शुरू किया. गांव में सिंचाई के साधन उपलब्ध कराए जिस से गांव तरक्की की राह पर आगे बढ़ा. आज यह गांव देश में एक मिसाल है. लोग इसे देखने के लिए यहां आते हैं. अन्ना हजारे को पद्मभूषण सहित कई सम्मान मिल चुके हैं.

अन्ना का नाम दोबारा चर्चा में तब आया जब 1991 में उन्होंने महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन शुरू किया. शिवसेना और भाजपा सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों को हटाने की मांग की. इस के बाद 1997 में अन्ना ने सूचना का अधिकार कानून बनाने के लिए अभियान शुरू किया. यह कानून बन गया. फिर वर्ष 2011 में लोकपाल कानून बनाने के लिए जन आंदोलन शुरू किया जो देश के सब से बड़े आंदोलनों में गिना जाता है. इस का ही असर था कि कांग्रेस सरकार को कई कानून बनाने पड़े. सरकार ने लोकपाल बिल तैयार किया.

अन्ना के इसी आंदोलन का असर था कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार बन गई. अन्ना अब एक बार फिर से आंदोलन की राह पर हैं. वे 22 प्रदेशों का दौरा कर चुके हैं. 2 दिनों के दौरे पर वे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आए और लखनऊ से सीतापुर तक कई जगहों पर उन्होंने जनसभाएं की. लखनऊ में लोकतंत्र की पाठशाला कार्यक्रम में हिस्सा लिया, युवाओं से बातचीत की. इसी दौरान इस प्रतिनिधि की अन्ना हजारे से बातचीत हुई, पेश हैं अंश :

आप के इस दौरे का उद्देश्य क्या है, किस तरह का बदलाव चाहते हैं?

हम चाहते हैं कि देश पर किसी एक पार्टी का  शासन न हो. बल्कि संविधान का राज हो. अभी देश में पार्टी का राज चलता है. नेता बदलते हैं लेकिन कुरसी पर बैठते ही वे चुनावी वादे भूल जाते हैं. नेता सत्तापैसा के बीच ही चलता रहता है. हम लोगों को बताना चाहते हैं कि सरकार बदलने की चाबी उन्हीं के पास है. इसे जनता भूल गई है. जनता के सरकार गिराने का डर यदि नेताओं में बैठ जाएगा तो वे चुनावी वादे नहीं भूलेंगे. आज के नेताओं की बातों पर विश्वास नहीं किया जा सकता. विश्वास पानीपत की लड़ाई में खो सा गया है. चुनाव में सुधार हों ताकि जनता सही प्रत्याशी को चुन सके.

राजनीतिक बदलाव की बातें लोकपाल आंदोलन के समय हुई थीं, वे कैसे बेनतीजा हो गईं?

लोकपाल आंदोलन सफल रहा. पूरा देश एकसाथ खड़ा था. कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना. सरकार बनाने के बाद भाजपा ने जो वादे किए, उन को पूरा नहीं किया. अब हम अपने साथ काम करने वाले लोगों से एक हलफनामा ले रहे हैं कि उन का उद्देश्य चुनाव लड़ना नहीं है.

हमारे साथ जुड़े 5 हजार लोग 100 रुपए के स्टांप पर यह लिख कर दे चुके हैं कि वे राजनीति में नहीं जाएंगे. ये लोग अगर बाद में अपने वादे से मुकरे तो मैं उन के खिलाफ कोर्ट में जाऊंगा. राजनीति में अच्छे लोग आने चाहिए. उस से पहले चुनाव प्रणाली, मतदान सुधार की दिशा में काम होना चाहिए. 1952 में  ही संविधान की बातों को चुनाव में दरकिनार किया गया. उस समय चुनाव आयोग मौन था जिस का खमियाजा आज देश को भुगतना पड़ रहा है. ऐसे में चुनावसुधार की जरूरत है. तभी पार्टीतंत्र खत्म हो कर सही माने में लोकतंत्र आएगा.

लोकपाल को ले कर आप की क्या रणनीति है?

मजबूत लोकपाल की मांग है. अभी जो लोकपाल कानून बना है वह बेहद कमजोर है. कई ऐसे उपाय कर दिए गए हैं जिन से भ्रष्टाचार को रोका नहीं जा सकता. केंद्र सरकार ने बिना चर्चा के ही लोकपाल बिल पास कर दिया. लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में बिना चर्चा के बिल पास हो गया. संसद ने जिस तरह से लोकपाल बिल को पास किया उस से साफ है कि सरकार चर्चा में नहीं, हुक्म देने में विश्वास कर रही है. असल बात यह है कि कोई भी सरकार लोकपाल लाना ही नहीं चाहती, जिस से उस का सत्ताकुरसी का खेल चलता रहे, चुनाव जीतने के लिए पार्टियां झूठे आश्वासन देती हैं.

राजनीति मेें बदलाव कैसे होगा?

चरित्रवान लोग राजनीति में आएं, तभी कुछ सुधार हो सकता है. राजनीति में धर्म और जातपांत का प्रभाव भी चुनावी सुधार से रोका जा सकता है, जिस के बाद ही देश संविधान के अनुसार चल सकेगा. हम ने देशभर का दौरा कर के युवाओं को जागरूक किया है. बहुत सारे संगठन हमारे साथ जुड़ रहे हैं. यह काम किसी जादू की छड़ी से होने वाला नहीं है. यह धीरेधीरे संभव होगा. नेताओं की नफरत वाली राजनीति को लोग समझने लगे हैं. आने वाली पीढ़ी के लिए देश को बचाना जरूरी है.

केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार को कैसे देखते हैं?

कोई भी सरकार लोकपाल कानून को लागू नहीं करना चाहती. मोदी सरकार ने लोकपाल बिल को कमजोर किया, जिस की वजह से देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. अंगरेजी हुकूमत चली गई पर देश में लोकतंत्र नहीं आ पाया. आज किसानों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है. किसान आत्महत्या कर रहा है, पर उस की बात नहीं सुनी जा रही है. 2013 में लोकपाल नियुक्ति कानून पास हो गया, पर 5 वर्षों के बाद भी उस को लागू नहीं किया जा सका. गोरे अंगरेज तो देश छोड़ कर चले गए पर देश के भ्रष्ट काले लोग यहां हावी हो गए हैं. केंद्र सरकार अपने वादे पूरे नहीं कर रही है. कालाधन वापस ला कर सभी के खातों में 15-15 लाख रुपए देने की बात कह कर वोट तो ले लिए पर खातों में 15 रुपए भी नहीं आए.

दिल्ली में केजरीवाल सरकार के बारे में आप की क्या राय है?

केजरीवाल क्या काम कर रहे हैं, यह सब देख रहे हैं. मेरी उन से उस समय ही बातचीत बंद हो गई थी जब उन्होंने पार्टी बना कर चुनाव लड़ा था. लोकपाल बिल पर उन्होंने मुझ से कुछ सुझाव मांगे थे. सुझाव भेजने के बाद उस पर क्या हुआ, यह जानकारी नहीं है. जनता के हित में सरकार गिराने की ताकत जनता में होनी चाहिए.

आप ने इन्वैस्टर समिट के बाद उत्तर प्रदेश का दौरा किया, क्या लाभ दिख रहा है?

इन्वैस्टर समिट से बिजनैस करने वालों को लाभ हो सकता है, लेकिन किसानों और आम जनता को कोई लाभ नहीं होने वाला. किसानों को तब तक लाभ नहीं मिलेगा जब तक उन की उपज का सही दाम उन्हें नहीं मिलेगा. अभी किसानों की हालत ‘माल खाए मदारी नाच करे बंदर’ जैसी है. केंद्र सरकार को गरीबों और किसानों की नहीं, उद्योगपतियों की चिंता है. तभी तो देश का करोड़ों रुपया ले कर वे गायब हो रहे हैं. मोदी सरकार बनने के बाद मैं ने 22 पत्र लिखे पर एक का भी जवाब नहीं मिला. हम ने यह भी पूछा कि वे व्यस्तता के कारण जवाब नहीं दे रहे या ईगो के कारण, तो उस का भी जवाब नहीं दिया.

VIDEO : करीना कपूर मेकअप लुक फ्रॉम की एंड का मूवी

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हनीमून डैस्टिनेशंस : जम्मू कश्मीर की खूबसूरत वादियां

वैसे तो नवविवाहित जोड़े विवाह के बाद अपनी अलग दुनिया में मग्न होते हैं लेकिन इस के बावजूद दोनों को एकदूसरे को जानने, समझने का पूरा मौका मिलना चाहिए. इस के लिए जरूरी है हनीमून पर जाना. यों तो हनीमून डैस्टिनेशन के लिए कई जगहें हैं लेकिन हनीमून ट्रिप यादगार बन सकता है जब सही जगह और समय का चुनाव किया जाए. तो चलिए हम बताते हैं आप को कुछ खूबसूरत हनीमून डैस्टिनेशंस :

जम्मू

हनीमून प्लान करते वक्त जिस जगह का नाम जेहन में सब से पहले आता है वह जम्मूकश्मीर है. 90 के दशक तक की हिंदी फिल्मों का रोमांस जम्मूकश्मीर का मुहताज हुआ करता था. कभी फिल्मी सितारों से गुलजार रहने वाले जम्मूकश्मीर को क्यों धरती के स्वर्ग के खिताब से नवाजा गया है, यह वहीं जा कर महसूस किया जा सकता है.

travel

जम्मूकश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी जम्मू है. सालभर यहां देशीविदेशी पर्यटकों की आवाजाही बनी रहती है, जिन में बड़ी तादाद नवविवाहित जोड़ों की रहती है. यह मिथक अब टूट चुका है कि जम्मू गरमी में ही जाना चाहिए, अब तो कड़कड़ाती सर्दी में भी सैलानी जम्मू की सैर करने लगे हैं.

जम्मू शहर देश के दूसरे शहरों जैसा ही है जिस में सभी वर्गों के लोग रहते हैं और धर्मस्थलों की यहां भी भरमार है. लेकिन जब पर्यटक जम्मू शहर से बाहर निकलते हैं तो मानो खुद को एक नई दुनिया में पाते हैं. तवी नदी के किनारे बसे जम्मू के बाहर का प्राकृतिक सौंदर्य, खूबसूरत वादियां, ऊंचीऊंची पहाडि़यां और घाटियों के बीच से बहती झीलें बरबस ही मूड को रोमांटिक बना देती हैं. फूलों से सजी पगडंडियां देख लगता है कि फिल्मी परदे से निकल कर सामने आ खड़ी हुई हैं जिन के इर्दगिर्द की खामोशी प्यार की भाषा बोलती नजर आती है.

तवी नदी के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित अमर महल म्यूजियम जम्मू के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है. कभी महल रहे इस म्यूजियम में शाही परिवार के चित्र व अन्य स्मृतिचिह्न संग्रहीत हैं. पहाड़ी चित्रकला से भी दर्शक यहां परिचित होते हैं और पुस्तकालय में रखी दुर्लभ पुस्तकें भी उन का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं.

डोगरा आर्ट गैलरी जम्मू का दूसरा दर्शनीय स्थल है. पहाड़ी कला और चित्रकला से संबंधित सामग्री इस आर्ट गैलरी में संग्रहीत है. बसोहली शैली के आभूषण भी अपनी अलग डिजाइनों के कारण पर्यटकों को भाते हैं.

शहर से 4 किलोमीटर दूर स्थित तवी नदी के किनारे की पहाड़ी पर स्थित बाहू किला जम्मू का सब से पुराना किला है. लगभग 3 हजार साल पहले राजा बाहुलोचन द्वारा बनवाए गए इस किले के नीचे बने बगीचे में प्रेमी युगल एकदूसरे की बांहों में बाहें डाले रोमांस करते नजर आते हैं. यहां से पूरा जम्मू शहर दिखता है.

हनीमून मनाने आए कपल्स की पहली पसंद जम्मू की झीलें हुआ करती हैं. जम्मू से 65 किलोमीटर दूर स्थित मानसर झील एक रोमांटिक जगह है. यहां नौकायन की भी सुविधा है.

मानसर झील पर सुबह आ कर पूरा दिन गुजारा जा सकता है. यदि रात को रुकना चाहें तो यहां हट्स भी हैं और पर्यटन विभाग का बंगला भी है जिस की बुकिंग पहले करा लेना सुविधाजनक रहता है. मानसर झील के नजदीक ही सुरिनसर झील है जिस की प्राकृतिक दृश्यावली भी कम नहीं है.

कब जाएं : यों तो जम्मू साल में कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन बरसात में यहां असुविधा होती है, इसलिए इस दौरान जम्मू नहीं जाना चाहिए.

कैसे जाएं : हवाईमार्ग द्वारा जम्मू जाया जा सकता है. प्रमुख एयरलाइंस की उड़ानें यहां के लिए उपलब्ध हैं. रेलमार्ग से जम्मू देश के सभी प्रमुख शहरों से सीधे जुड़ा है. सड़कमार्ग से दिल्ली व अमृतसर से जाया जा सकता है.

कहां ठहरें : जम्मू में ठहरने के लिए हर तरह के होटल उपलब्ध हैं.

क्या खरीदें : जम्मू के बाजार आकर्षक हैं जहां से ड्राइफ्रूट और ऊनी कपड़े खरीदे जा सकते हैं. अधिकांश पर्यटक जम्मू का राजमा, बासमती चावल, चैरी, अखरोट और बादाम जरूर खरीदते हैं.

श्रीनगर

जिस शहर की वजह से जम्मूकश्मीर दुनियाभर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है वह शहर श्रीनगर है, जो जम्मू से 300 किलोमीटर दूर है. जम्मू से श्रीनगर अगर सड़क से जाएं तो समझ आता है कि प्रकृति किस तरह यहां मेहरबान रही है. ठंडी हवा, चारों तरफ बिछी हरियाली और खूबसूरत वादियों को देख कर लगता है कि काश, यहीं बस जाएं.

श्रीनगर को देख कर ही मुगल बादशाहों ने इसे जन्नत कहा था और इसे बनाने व सजानेसंवारने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मुगल शैली के बागबगीचों की तो यहां भरमार है. ऐतिहासिक महत्त्व वाले श्रीनगर में सभी जातियों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं जिन की अपनी एक अलग कदकाठी, खूबसूरती और बातचीत का खास लहजा है.

हर दौर के कपल्स का हमेशा से ही एक सपना रहा है कि हनीमून श्रीनगर में मनाएंगे तो इस की वजह भी है. रोमांस के लिए जिस माहौल या आदर्श परिस्थितियों की जरूरत होती है वे श्रीनगर में सहज उपलब्ध हैं. यह कहना गलत नहीं है कि कश्मीर और श्रीनगर हर मौसम में अपना रंग बदलते हैं. फूलों से लदी पगडंडियां दुनिया में अगर कहीं दिखती हैं तो वह श्रीनगर है.

श्रीनगर में दर्शनीय स्थलों की भरमार है. झीलें और बागबगीचे यहां की जान और शान हैं जिन को देखने के लिए पर्यटक दौड़े चले आते हैं. समुद्रतल से 1,730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्रीनगर हर दौर में प्रकृतिप्रेमियों को लुभाता रहा है.

न्यू कपल्स को सब से ज्यादा यहां की झीलें लुभाती हैं. इन में से प्रसिद्ध डल झील शहर के बीचोंबीच स्थित है. अब इस झील का दायरा 28 वर्ग किलोमीटर से घट कर 12 किलोमीटर में सिमट कर रह गया है. पर इस का प्राकृतिक दृश्यावली पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. डल झील पर कई द्वीप बने हुए हैं. न्यू कपल्स को सब से ज्यादा लुभाती हैं वहां की हाउसबोट जिन में जिंदगी का खास वक्त गुजारने का मजा ही कुछ और है. शिकारे पर बैठ कर झील की सैर करते पर्यटक अपनी सुधबुध खो बैठते हैं.

इस झील का ही एक हिस्सा नगीन झील के नाम से प्रसिद्ध है. इस झील की तुलना उंगली में हीरे की अंगूठी की तरह भी की जाती है. शहर से 8 किलोमीटर दूर इस झील की खूबसूरती बेजोड़ है जिस में अंगूठी के आकार के पेड़ों की भरमार है. नीले पानी वाली नगीन झील में तैराकी और वाटर स्कीइंग की सुविधा भी उपलब्ध है.

श्रीनगर कितना भी घूम लें, जी नहीं भरता. खूबसूरत बगीचों में बैठे और बतियाते कब वक्त गुजर जाता है, इस का पता ही नहीं चलता, यही यहां की विशेषता है कि पर्यटक अपनी तमाम परेशानियां और चिंताएं खुदबखुद भूल जाते हैं.

कब जाएं : श्रीनगर सालभर कभी भी जाया जा सकता है लेकिन ठंड के मौसम में यहां का तापमान शून्य से 2 डिगरी नीचे तक चला जाता है. श्रीनगर आते वक्त गरम कपड़े जरूर साथ लाने चाहिए.

कैसे जाएं : हवाईमार्ग से दिल्ली, चंडीगढ़, अमृतसर, मुंबई से सीधी उड़ानों द्वारा आयाजाया जा सकता है. रेलमार्ग से आने के लिए जम्मू उतर कर सड़क के रास्ते आना उचित रहता है.

कहां ठहरें : श्रीनगर में ठहरने के लिए हर बजट के होटल हैं. न्यू कपल्स आमतौर पर हाउसबोट्स में ठहरना पसंद करते हैं. जम्मूकश्मीर नगर निगम के कौटेज व बंगलों में भी ठहरा जा सकता है.

क्या खरीदें : कश्मीर के शौल सभी पर्यटक खरीदते हैं. इस के अलावा दूसरे ऊनी कपड़ों की भी खरीदारी श्रीनगर में की जा सकती है. यहां की सिल्क की साडि़यां भी प्रसिद्ध हैं. लकड़ी के आइटम भी खरीदे जा सकते हैं.

गुलमर्ग

खूबसूरती के जो नजारे जम्मू से शुरू होते हैं और श्रीनगर में नजर आते हैं वे वहां से 52 किलोमीटर और दूर आ कर गुलमर्ग में पूरे शबाब पर दिखते हैं. गुलमर्ग ऐसी जगह है जिस की तुलना किसी दूसरी जगह से नहीं की जा सकती. जो कपल्स अपने हनीमून को यादगार बनाना चाहते हैं उन के लिए गुलमर्ग वाकई आदर्श पर्यटन स्थल है. समुद्रतट से 2,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग एकदम शांत जगह है.

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गुलमर्ग को 1927 के आसपास अंगरेजों ने बसाया था. यहां देश का सब से बड़़ा गोल्फ कोर्स है. अपने शाब्दिकअर्थ फूलों की वादी को चरितार्थ करते इस स्थल की बेशुमार खूबियां हैं. हरी घास मानो यहां बिछी ही रहती है और बर्फ से ढकी पहाडि़यां इस का अतिरिक्त आकर्षण हैं. बारामूला जिले की शान गुलमर्ग ढलान वाले मैदानों के लिए भी जाना जाता है.

सैकड़ों हिंदी फिल्मों की शूटिंग यहां हुई है. फिल्मकार हमेशा इस खूबसूरत जगह को कैमरे में कैद करने को बेताब रहे हैं. फिल्म ‘आप की कसम’ का मशहूर गाना ‘जयजय शिवशंकर कांटा लगे न कंकर…’ राजेश खन्ना और मुमताज पर गुलमर्ग में ही फिल्माया गया था. यहां सेब के बगीचे देखना एक अलग अनुभव है. गुलमर्ग की केसर भी दुनियाभर में मशहूर है. इस ठंडी जगह में जब सर्दी में बर्फबारी होती है तो नजारा वाकई देखने लायक होता है.

बर्फ के खेलों का आनंद लेते सैलानियों को देख कर लगता है कि जिंदगी अगर कहीं है तो बस यही है. स्कीइंग का लुत्फ उठाते न्यू कपल्स यहां हनीमून का सही मानो में आनंद लेते हैं.

गुलमर्ग बेहद साफसुथरा और व्यवस्थित कसबा है. कदमकदम पर फूल, ढलान और हरियाली पर्यटकों को जिंदगीभर याद रहते हैं. सड़क किनारे बनी दुकानों और होटलों पर अकसर भीड़ लगी दिखती है. रोपवे, जिसे स्थानीय भाषा में गंडोला कहा जाता है, से चारों तरफ का मनमोहक नजारा देख जम्मूकश्मीर देखना सार्थक हो जाता है.

खिलनमर्ग गुलमर्ग की फूलों की खूबसूरत घाटी है, जहां बैठ जाएं तो उठने का मन नहीं करता. चीड़ और देवदार के वनों से घिरी अलपायर झील भी रोमांटिक जगह है. निंगलीनगाह गुलमर्ग का प्रसिद्ध पिकनिक स्थल है. अलपायर झील पर घूमने का अलग ही आनंद है. इस झील का पानी जून के मध्य तक बर्फ की शक्ल में जमा रहता है.

गुलमर्ग जाने के लिए सभी मौसम उपयुक्त हैं. नवंबर से ले कर अप्रैल तक यहां खूब बर्फबारी होती है, जिस का लुत्फ उठाने खासतौर से पर्यटक यहां आते हैं. आने के लिए पहले जम्मू, फिर श्रीनगर हो कर रास्ता तय करना पड़ता है. गुलमर्ग में ठहरने के लिए अच्छे होटल उपलब्ध हैं. जब भी गुलमर्ग आएं, गरम कपड़े जरूर साथ रखें और पर्यटन विभाग से मौसम की जानकारी ले कर ही आएं.

सोनमर्ग

रोमांस के लुत्फ के साथसाथ अगर रोमांच का भी शौक पूरा करना हो तो उस के लिए सोनमर्ग से बेहतर जगह शायद ही कोई और हो. श्रीनगर से 70 किलोमीटर दूर स्थित सोनमर्ग, नाम के मुताबिक, सोने का मैदान ही लगता है. फरवरीमार्च में इस जगह की खूबसूरती शबाब पर होती है. ट्रैकिंग के लिए लोकप्रिय सोनमर्ग में बर्फ जब गिरती है तो पूरी वादी सफेद नजर आती है. समुद्रतल से इस की ऊंचाई 2,740 मीटर है.

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सोनमर्ग में झीलें भी हैं, पर्वत और दर्रे भी हैं. गटसर, कृष्णसर और गंगाबल झीलें इस के सौंदर्य में चारचांद लगाती हैं. सोनमर्ग से 15 किलोमीटर दूर स्थित गटसर झील बर्फ के पहाड़ों और अल्पाइन फूलों से घिरी हुई है. यह दृश्य देख कर पर्यटक जैसे दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं. नए जोड़ों को यह जगह बहुत भाती और लुभाती है. कृष्णसर झील समुद्रतट से 3,801 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जिस में दर्रे से हो कर पहुंचा जाता है. यहां पर्यटक मछली पकड़ने का शौक पूरा करते देखे जा सकते हैं. सत्सर झील तक सोनमर्ग से पैदल जाया जा सकता है जो यहां एक और आकर्षण पर्यटकों के लिए है.

सोनमर्ग का एक और आकर्षण निलागर्द है जोकि एक पहाड़ी नदी है. इस नदी का पानी लाल रंग का है.

सोनमर्ग भी अब सालभर जाया जा सकता है. नवंबर से अप्रैल के बीच यहां खूब बर्फबारी होती है जिस का लुत्फ उठाने के लिए खासतौर से पर्यटक आते हैं. आने के लिए श्रीनगर हो कर ही सड़कमार्ग से आना पड़ता है. ठहरने के लिए यहां भी अच्छे होटल मौजूद हैं.

पहलगाम

अनंतनाग जिले का यह कसबा मूलतया एक हिल स्टेशन है जो श्रीनगर से 93 किलोमीटर दूर है. पहलगाम की खूबसूरती किसी सुबूत की मुहताज नहीं. यहां की प्राकृतिक सुंदरता का चित्रण कई फिल्मों में किया गया है. कई फिल्मी हस्तियां छुट्टियां मनाने पहलगाम ही आया करती हैं.

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न्यू कपल्स के लिए पहलगाम अब हनीमून मनाने की पसंदीदा जगह बनती जा रही है. जम्मूकश्मीर के सब से खूबसूरत नगरों में शुमार पहलगाम में भी पहाडि़यों और झीलों की भरमार है. केसर की पैदावार के लिए मशहूर इस जगह में कहीं भी चले जाएं, एक खूबसूरत एहसास होता है.

हौर्स राइडिंग, स्कीइंग, ट्रेकिंग और गोल्फ के लिए मशहूर पहलगाम में बर्फबारी के दिनों में नजारा अद्भुत होता है. स्थानीय लोग काफी सीधे हैं और वे पर्यटकों का स्वागत करने को हर वक्त तैयार रहते हैं. समुद्रतल से 2,120 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस जगह पर ठहरने व खानेपीने की खासी सहूलियतें हैं.

सुबह उठ कर कहीं भी चल पड़ें, एक अद्भुत दृश्य पर्यटकों को हैरान करने को हर जगह मौजूद रहता है. घाटियां, हरियाली, फूल और झीलें यहां भी इफरात से हैं. आमतौर पर पर्यटक यहां खगार की सवारी से भ्रमण करना उपयुक्त समझते हैं. एकांत में शांति से कुछ दिन गुजारने के लिए पहलगाम से बेहतर जगह कोई है ही नहीं.

पर्यटक यहां ऊनी कपड़े और केसर खूब खरीदते हैं. पहलगाम में मोलभाव कर ही सामान खरीदना चाहिए. पहलगाम के लोगों की आमदनी का बड़ा जरिया पर्यटक ही हैं, लिहाजा, स्थानीय लोग अनापशनाप भाव बताते हैं. यहां जाने से पहले मौसम का हाल जरूर जान लेना चाहिए.

VIDEO : करीना कपूर मेकअप लुक फ्रॉम की एंड का मूवी

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हनीमून डैस्टिनेशंस : पूर्वोत्तर, यहां की फिजा है जवांजवां

मेघालय

जो कपल्स हनीमून जरा हट के मनाना चाहते हैं उन के लिए पूर्वोत्तर राज्य मेघालय का रुख करना बेहतर होगा. यहां का जनजातीय जीवन उन्हें सांस्कृतिक विविधता से भी रूबरू कराता है. मेघालय नाम से ही रूमानियत टपकती है. मेघालय यानी बादलों का घर. यहां की पहाडि़यों से न केवल आप बादलों को नजदीक से देख सकते हैं, बल्कि शिद्दत से महसूस भी कर सकते हैं.

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आदिवासी बाहुल्य राज्य मेघालय भारत का स्कौटलैंड भी कहा जाता है क्योंकि यहां की खूबसूरत वादियां, बादलों से ढके पहाड़, झरने और हरेभरे जंगल मिल कर जो नजारा पेश करते हैं वह रूमानियत को और बढ़ा देता है. मेघालय की राजधानी शिलौंग शहर अंगरेजों के शासनकाल में महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र हुआ करता था. शिलौंग में जो 3 जातियां प्रमुखता से पाई जाती हैं वे हैं खासी, जयंति और मारो. ये तीनों जातियां देश की सब से पुरानी जनजातियां हैं.

मेघालय मातृसत्तात्मक व्यवस्था को मान्यता देता राज्य है. वहां घरों के छोटेबड़े फैसले महिलाएं लेती हैं. आप यह जान कर हैरान हो सकते हैं कि मेघालय में शादी के बाद दूल्हा दुलहन के घर जा कर रहता है.

शिलौंग में दर्शनीय स्थलों की भरमार है. इन में से एक प्रमुख शिलौंग पीक है जो शहर से 10 किलोमीटर दूर है. इस पीक की ऊंचाई 1,965 मीटर है, जहां से पूरा शहर दिखाई देता है. रात के समय यह पीक काफी मनोरम दिखाई देती है.

स्वीट फौल शिलौंग का दूसरा प्रमुख दर्शनीय स्थल है जहां पर्यटक दिनभर इत्मीनान से पिकनिक मनाते हैं. यहां के झरनों से 200 फुट नीचे तक पानी गिरता है.

ऊपरी शिलौंग में स्थित हाथी झरना, दरअसल, कई झरनों का समूह है इन से गिरते पानी का दृश्य काफी मनोहारी लगता है. शहर के बीचोंबीच स्थित वार्ड्स लेक शिलौंग की पहचान मानी जाती है. इस झील में कपल्स बोटिंग का भी लुत्फ उठा सकते हैं. यहां के बोटैनिकल गार्डन में तरहतरह की रंगबिरंगी चिडि़या देख मन प्रसन्न हो उठता है.

चेरापूंजी का नाम हर कोई जानता है कि यहां सब से ज्यादा बारिश होती है. यह शिलौंग से 60 किलोमीटर दूर स्थित है जहां सुबह जा कर शाम तक वापस लौटा जा सकता है. चेरापूंजी का नया नाम सोहरा है. यहां से बंगलादेश की सीमा लगी हुई है. सोहरा का एक अन्य आकर्षण देश का सब से ऊंचा झरना नोहकलिकाई है. लगभग 1 हजार फुट ऊंचे इस झरने से गिरता पानी हरे रंग का दिखाई पड़ता है.

इन के अतिरिक्त लेडी हैदरी पार्क, उमियान झील, क्रेम माम्लुह, क्रेम फिलुन, मावसिराय और सीजू भी दर्शनीय स्थल हैं. गुफाओं में घूमने का रोमांच हर कहीं नहीं मिलता.

कब जाएं : मेघालय सालभर कभी भी जा सकते हैं लेकिन बारिश के मौसम में जाने का लुत्फ ही कुछ और है.

कैसे जाएं : हवाईमार्ग से 128 किलोमीटर दूर गुवाहाटी एयरपोर्ट पर उतर कर

40 किलोमीटर सड़क के रास्ते शिलौंग पहुंचा जा सकता है. रेलमार्ग से जाने पर भी गुवाहाटी ही उतरना पड़ता है. यहां से सड़क के रास्ते शिलौंग जाना पड़ता है.

कहां ठहरें : शिलौंग में ठहरने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं हैं. होटल पोलो टावर्स, सैंटर पौइंट, त्रिपुरा केस्टल और पैराडाइज क्रौम यहां के प्रमुख होटल हैं.

क्या खरीदें : मेघालय के बेंत के बने आइटम्स काफी मशहूर हैं जो स्थानीय बाजारों में मिलते हैं, खासतौर से चटाइयां और बास्केट्स काफी आकर्षक व टिकाऊ होती हैं.

गंगटोक

पूर्वोत्तर का सब से साफसुथरा और अनुशासित शहर है गंगटोक. सिक्किम की राजधानी गंगटोक की बेमिसाल खूबसूरती को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती. पूर्वी हिमालय शृंखला की पहाडि़यों के ऊपर 1,477 मीटर की ऊंचाई पर बसे गंगटोक जा कर ऐसा लगता है मानो किसी बौद्धनगरी में आ गए हों. बौद्ध धर्म का प्रभाव यहां कदमकदम पर दिखता है.

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गंगटोक सालभर सैलानियों से भरा रहता है और कभीकभी तो इतनी भीड़ होती है कि यहां के होटलों में जगह ही नहीं मिलती. रानीपूल नदी के पश्चिम में स्थित इस खूबसूरत शहर से कंचनजंघा पर्वत की पूरी शृंखला दिखाई देती है.

बौद्ध मठों के अलावा यहां से 40 किलोमीटर दूर स्थित सोमगो झील पर्यटकों को सुधबुध खो देने की हद तक हैरान कर देती है. सोमगो झील चारों तरफ से बर्फीली पहाडि़यों से घिरी हुई है. 1 किलोमीटर लंबी और लगभग 15 मीटर गहरी इस झील में जाड़े में प्रवासी पक्षी आते हैं तो पर्यटकों को लगता है कि वे किसी दूसरी दुनिया में विचर रहे हैं.

शहर से 6 किलोमीटर दूर टाशीलिंग मूलतया एक बौद्ध मठ है जिस की विशेषता यह है कि इस के एक बरतन में रखा पानी 300 साल बाद भी सूखा नहीं है.

गंगटोक की साफसुथरी हवा में सांस लेने से ही शरीर में जान आ जाती है. हरीभरी पहाडि़यां, झूमते पेड़ और हरियाली के बीचोंबीच बैठ कर नए कपल्स खुद को काफी रिलैक्स और भावी जीवन के लिए यहां आ कर तैयार कर सकते हैं. इस शहर का मौसम सालभर सुहाना रहता है और शहर के मुख्य मार्ग एमजी रोड पर सैलानियों की भीड़ जब गंगटोक के सौंदर्य की चर्चा करती नजर आती है तो लगता है कि सही जगह आए हैं. राजकपूर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ में यहां के ही झरने दिखाए गए थे.

प्रकृतिप्रेमियों का स्वर्ग कहे जाने वाले गंगटोक के पूर्व में 10 किलोमीटर दूर नाथुला दर्रा 14,200 फुट की ऊंचाई पर है. टेढे़मेढे़ रास्तों से इस की धुंधभरी पहाडि़यों तक पहुंचना बेहद रोमांचक अनुभव होता है. चीन की सीमा को जोड़ते इस दर्रे के झरने और भी मोहक लगते हैं. नाथुला दर्रा सप्ताह में 4 दिन शनिवार, रविवार, बुधवार व गुरुवार को ही खुलता है. यहां जाने से पहले प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है.

बौद्ध मठों के इस शहर में खासी चहलपहल मुख्य एमजी मार्ग पर रहती है. खानेपीने के एक से बढ़ कर एक आइटम यहां मिलते हैं जिन का स्वाद भी अलग महसूस होता है. न्यू कपल्स को वक्त गुजारने के लिए शहर से 8 किलोमीटर दूर स्थित हिमालयन जूलौजिकल पार्क एक बेहतर जगह है जो 205 एकड़ में फैला हुआ है. इस पार्क में जंगली जानवर भी बहुतायत में हैं.

कब जाएं : गंगटोक सालभर जाया जा सकता है.

कैसे जाएं : हवाईमार्ग द्वारा सिलीगुड़ी स्थित बागडोगरा एयरपोर्ट पर उतर कर सड़क के रास्ते 124 किलोमीटर की यात्रा कर गंगटोक पहुंचा जा सकता है. रेल द्वारा न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन पर उतर कर इतनी ही दूरी तय करना पड़ती है. यहां टैक्सियां उपलब्ध रहती हैं.

कहां ठहरें : गंगटोक में हर बजट के होटल मिल जाते हैं, हालांकि दूसरे शहरों के मुकाबले गंगटोक के होटल थोड़े महंगे हैं.

क्या खरीदें : यहां के भूटिया समुदाय द्वारा हाथ से बनाए गए ऊनी कपड़ों के अलावा स्थानीय लालबाजार में मिलते सिक्किमी मग यहां की पहचान हैं. तिब्बतियन कारपेट भी आकर्षक लगते हैं. अधिकांश पर्यटक गंगटोक के एकमात्र चाय बागान से और्गेनिक टी जरूर ले जाते हैं, जो दुनियाभर में मशहूर है.

भूटान

विदेश जा कर हनीमून मनाने की नवदंपतियों की इच्छा बहुत सस्ते में और आसानी से भूटान जा कर पूरी हो जाती है. देश की पूर्वोत्तर सीमा पर बसे भूटान देश की अपनी विशिष्टताएं हैं.  भूटानी लोग अपनी संस्कृति व मान्यताओं के साथसाथ अनुशासन का भी सख्ती से पालन करते हैं. बौद्ध धर्म के प्रभाव वाले भूटान में आधुनिकता अभी दाखिल होनी शुरू हुर्ह है.

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भूटान अद्भुत रूप से शांत देश है. यहां की जिंदगी की अपनी अलग रफ्तार है, जिस में शोरशराबे, रेलों, अव्यवस्थित बसावट व बेतरतीब बाजारों की कोई जगह नहीं है. भूटानी लोग हमेशा अपने परंपरागत परिधानों में नजर आते हैं. लगभग 10 लाख की आबादी वाले इस देश की आमदनी का बड़ा जरिया अब पर्यटन है.

पूरा भूटान पहाडि़यों, हरियाली, चाय बागानों, जंगलों, नदियों और झीलों से भरा पड़ा है. दुनिया के सब से छोटे देशों में शुमार भूटान तेजी से पर्यटकों की पसंद बन रहा है तो इस की वजह यहां की शांति के अलावा अब पर्यटकों से पहले सा परहेज न रहना भी है.

भूटान में दर्शनीय स्थलों की भरमार है हालांकि उन में से अधिकांश बौद्ध मठ ही हैं लेकिन कुदरती नजारों से नवाजे दर्शनीय स्थलों की भी यहां कमी नहीं जिन्हें अब तेजी से विकसित किया जा रहा है.

थिंपू वांगछू नदी के किनारे समुद्रतल से 2,400 मीटर की ऊंचाई पर बसा शहर है. थिंपू को 4 समानांतर सड़कें समेटे हुए हैं. इन्हीं सड़कों पर तमाम सरकारी इमारतें और होटल व रैस्टोरैंट हैं. बीचबीच में बागबगीचों की बसाहट है.

सिमटोक जोंग, मैमोरियल चोरटन, ताशीछोए जोंग चांग का लहाबांग, बुद्धा पौइंट और नेचर पार्क यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं. इस के अलावा द फौक हैरिटेज म्यूजियम और नैशनल टैक्सटाइल म्यूजियम में भूटान की रमणीय व शहरी दोनों संस्कृतियों की झलक देखने को मिल जाती है. क्राफ्ट बाजार में भूटानी हैंडीक्राफ्ट के सभी आइटम्स मिलते हैं. इस के अलावा राष्ट्रीय संग्रहालय और चिडि़याघर भी दर्शनीय हैं.

थिंपू से 77 किलोमीटर दूर बसे शहर पुनाखा में भी दर्शनीय स्थलों की भरमार है. पुनाखा के बाद पारो शहर जरूर जाना चाहिए, यहां भी दार्शनिक स्थल पर्यटकों को लुभाते हैं.

3-4 दिनों में पूरा भूटान घूमा जा सकता है. न्यू कपल्स के लिए भूटान बेहतरीन जगह है जहां रह कर हनीमून मनाना मानो प्रकृति और संस्कृति को साक्षी बनाना है.

कब जाएं : भूटान वर्षभर जाया जा सकता है.

कैसे जाएं : भूटान सड़कमार्ग व वायुमार्ग से भी जाया जा सकता है. अब कई नामी टूर ऐंड ट्रैवल्स एजेंसियां भूटान के लिए आकर्षक पैकेज देने लगी हैं.

ध्यान रखें : भारतीयों को भूटान जाने के लिए पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं होती है, लेकिन भूटान में दाखिले के लिए एक परमिट बनवाना पड़ता है जिस के लिए उन्हें 2 फोटो व पहचानपत्र, पासपोर्ट या राज्य वोटर आईडी पास रखना चाहिए. पूरे भूटान में भारतीय मुद्रा स्वीकार्य है.

कहां ठहरें : भूटान में ठहरने के लिए हर बजट के होटल उपलब्ध हैं. तीन और पांचसितारा होटल का किराया  3 से ले कर 5 हजार रुपया प्रतिदिन पड़ता है. अच्छे लक्जरी होटल 2 हजार रुपए प्रतिदिन की दर पर भी मिल जाते हैं.

क्या खरीदें : भूटान के कारीगरों द्वारा बनाए गए स्मृतिचिह्न पर्यटक बड़े शौक से खरीदते हैं. इस के अलावा हैंडीक्राफ्ट के आइटम्स भी स्थानीय बाजारों में मिल जाते हैं. भूटान की लेमन ग्रास टी सभी खरीदते हैं.

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हनीमून डैस्टिनेशंस : उत्तराखंड में सदाबहार मौसम की बयार

नैनीताल

हनीमून मनाने इन दिनों कपल्स अगर सब से ज्यादा कहीं जा रहे हैं तो वह जगह उत्तराखंड में नैनीताल है. देश का इकलौता शहर जो पूरी तरह झीलों से घिरा है. इसे लेक डिस्ट्रिक्ट भी कहा जाता है. उत्तराखंड राज्य का नैनीताल किसी भी पर्यटक की पहली पसंद होता है. 12 महीने सदाबहार मौसम वाले नैनीताल पहुंचना अपेक्षाकृत आसान भी है.

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हिमालय की कुमाऊं पहाडि़यों की तलहटी की शीतलता पर्यटकों को तनावमुक्त करती है, तो झीलें और देवदार के घने वृक्ष एहसास कराते हैं कि आप किसी खास जगह पर हैं. यों तो पूरा नैनीताल ही दर्शनीय है लेकिन नाशपती के आकार की नैनी झील देख हर कोई होश खो बैठता है. इस झील के पानी में झांकने पर पहाड़ों का प्रतिबिंब देख लगता है कि पहाड़ पानी में उतर आए हैं.

नैनी झील में बोटिंग का भी लुत्फ उठाया जा सकता है. न्यू कपल्स तो यह सुनहरा मौका छोड़ते ही नहीं. इस झील का उत्तरी हिस्सा मल्लीताल और दक्षिणी भाग तल्लीताल कहलाता है. यहां बने पुल पर पोस्टऔफिस भी है.

सैलानियों की चहलपहल मुंहअंधेरे से देररात तक नैनी झील पर रहती है. झील के दोनों किनारों पर दुकानें हैं. मल्लीताल में शाम होते ही पर्यटकों की भीड़ जमा होनी शुरू हो जाती है. इस वक्त जगमगाती रोशनी में यह इलाका बेहद सुहाना और आकर्षक लगता है. नैनीताल के मुख्य बाजार मालरोड पर भी देर रात तक आवाजाही बनी रहती है.

हनीमून का लुत्फ उठाने के लिए बेहतर यह होता है कि नैनीताल से महज 11 किलोमीटर पर स्थित भवाली कसबे में भी जाया जाए. ऐतिहासिक महत्त्व वाला भवाली भी शांत और आकर्षक जगह है. चीड़ और बांस के वृक्षों से घिरे भवाली की फल मंडी भी पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ खींचती है. यहां सेब, आलू बुखारा और खुमानी बहुतायत से बिकते हैं.

भीड़भाड़ से बचने के लिए लोग, खासतौर से न्यू कपल्स, अब भवाली में ही ठहरना पसंद करते हैं जहां होटलों की कमी नहीं. गरमी में नैनीताल में जगह मिलनी मुश्किल हो जाती है, इसलिए इस मौसम में आने से पहले होटल में आरक्षण करा लेना बेहतर रहता है.

उत्तराखंड के इस इलाके में न्यू कपल्स शृंखलाबद्ध तरीके से हनीमून मना सकते हैं क्योंकि यहां ऐसी जगहों की भरमार है जो हिमाच्छादित पहाडि़यों, ठंडक, घने जंगलों और झीलों से भरी पड़ी हैं.

मुक्तेश्वर

नैनीताल से 46 किलोमीटर दूर कुमाऊं शृंखला की पहाडि़यों का एक और छोटा सा हिल स्टेशन है मुक्तेश्वर जो समुद्रतल से 2,286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. 1897 में स्थापित इंडियन वेटेनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट, मुक्तेश्वर की एक अलग पहचान है जहां जानवरों पर शोध होता है. इस संस्थान की लाइब्रेरी में दुर्लभ पुस्तकें और सामग्री देखने को मिल जाती हैं.

जब पर्यटक मुक्तेश्वर में होते हैं तो वे खुद को प्रकृति के सब से ज्यादा नजदीक पाते हैं. हिमालय की पर्वत शृंखला के पीछे से उगते सूर्य को देखने का दुर्लभ अवसर भी मुक्तेश्वर देता है. यहां बड़ीबड़ी चोटियां हैं जो जब बर्फ से ढक जाती हैं तो देखते ही बनती हैं.

न्यू कपल्स के लिए मुक्तेश्वर तेजी से उभरता पसंदीदा हिल स्टेशन है जहां अपार शांति व प्राकृतिक दृश्यावली है. पूरे कुमाऊं की तरह मुक्तेश्वर भी अंगरेज शासकों की पसंद रहा क्योंकि यहां की शीतलता उन्हें काफी राहत देती थी.

कभी मुक्तेश्वर जंगली जानवरों का गढ़ हुआ करता था. जानवर यहां आज भी दिखते हैं लेकिन खतरनाक तरीके से नहीं दिखते. प्रकृतिप्रेमी और ब्रिटिश शिकारी जिम कार्बेट द्वारा रचित उपन्यास ‘मैनईटर्स औफकुमाऊं’ में मुक्तेश्वर की मुक्तकंठ से चर्चा की गई है जिस के चलते इस हिल स्टेशन को काफी लोकप्रियता मिली.

न्यू कपल्स यहां प्रकृति के अद्भुत नजारे देखने के अलावा ऐडवैंचर खेलों – रौक क्लाइबिंग और रेसलिंग का भी लुत्फ उठाते नजर आते हैं.

शीतला यहां का कोई 39 एकड़ में फैला दर्शनीय स्थल है. ओक और देवदार के सदाबहार वृक्षों से ढके शीतला से हिमालय का मनोरम दृश्य दिखता है.

मुक्तेश्वर निरीक्षण बंगला एक अन्य दर्शनीय स्थल है जहां जिम कार्बेट रहते थे. उन की केतली आज भी यहां सलामत रखी हुई है. बर्फीली पहाडि़यां, हरियाली, झूमते वृक्ष और सिर पर उड़ते बादल मुक्तेश्वर को और खुशनुमा बना देते हैं. न्यू कपल्स यहां आ कर काफी रिलैक्स महसूस करते हैं. यहां की शांति उन्हें भाती और लुभाती है. मुक्तेश्वर के नजदीक भीमताल में बोटिंग करने का भी लुत्फ उठाया जा सकता है. आमतौर पर यहां भीड़भाड़ कम रहती है.

मुक्तेश्वर की सूखी आलू की चटपटी सब्जी और प्याज के जायकेदार पकौड़े काफी मशहूर हैं. सभी पर्यटक इन्हें चाव से खाते हैं. यहां हर तरह का भोजन उपलब्ध रहता है और ठहरने के लिए ठीकठाक होटल मिल जाते हैं.

बारिश का मौसम छोड़ कर मुक्तेश्वर कभी भी जाया जा सकता है. नैनीताल हो कर आना सुविधाजनक

रहता है क्योंकि रास्तेभर के नजारे दर्शनीय होते हैं. जनवरीफरवरी में यहां भारी बर्फबारी होती है, इसलिए इन दिनों में आने पर पर्याप्त गरम कपड़े साथ लाने चाहिए. वैसे भी, इस पूरे इलाके में गरम कपड़े इफरात से बिकते हैं.

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा नैनीताल से 67 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐसी जगह है जिसे भारत के स्विट्जरलैंड के खिताब से नवाजा गया है. जहां तक नजर जाए वहां तक इतराते बर्फ के पहाड़ और उन पर बिखरी रुई जैसी बर्फ, पहाडि़यों पर बिछी नर्ममुलायम घास, चारों तरफ झरनों का दिलकश नजारा और सोने पे सुहागा वाली बात कई पेड़ों से आती खुशबू जो पर्यटकों को खूबसूरती का एहसास कराती है. यह सब एकसाथ कहीं और नहीं मिलता.

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अल्मोड़ा की ताजी हवा में सांस लेते ही ताजगी का एहसास होता है. पहाडि़यों के ढलान पर बने लकड़ी के मकान देख लगता है कि किसी और दुनिया में तो नहीं आ गए. ब्राइट और कौर्नर से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखने के लिए दोनों वक्त भीड़ लगती रहती है. ऐसा लगता है सूर्य मानो सामने से ही कहीं उग और डूब रहा है.

अल्मोड़ा के मनमोहने वाले जंगलों में कितना भी घूमफिर लें, थकान नहीं होती. अल्मोड़ा में ठहरने के लिए होटलों व रिसोर्ट्स की भरमार है जो सस्ते भी हैं. सभी तरह का खानपान यहां उपलब्ध रहता है. न्यू कपल्स एक दिन बेहद शांति से यहां गुजार सकते हैं और उन का अगला पड़ाव रानीखेत हो सकता है.

रानीखेत

नैनीताल से 56 किलोमीटर दूर स्थित रानीखेत का नाम सुनने में अटपटा सा लगता है जो एक स्थानीय लोककथा से लिया गया है. रानीखेत भी कुमाऊं इलाके का खूबसूरत हिल स्टेशन है. समुद्रतल से इस की ऊंचाई 1,800 मीटर है. इस का नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम 85 किलोमीटर दूर है.

रानीखेत के बाजार के दोनों तरफ दुकानें हैं. यहां का गोल्फ कोर्स मैदान एशिया के सब से ऊंचे गोल्फ कोर्स में से एक है. यहां का वातावरण हमेशा ठंडा रहता है. रानीखेत में चारों तरफ हरी घास की चादर बिछी रहती है. पाइन के पेड़ यहां बहुतायत से पाए जाते हैं और यहां के जंगल काफी घने हैं.

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रानीखेत में कुमाऊं रेजिमैंट की एक बड़ी सैनिक छावनी भी है. अंगरेजों ने इसे सैनिक प्रशिक्षण के लिए विकसित किया था. यह शहर काफी साफसुथरा व व्यवस्थित है. कई हिंदी फिल्मों में रानीखेत के प्राकृतिक सौंदर्य को दिखाया गया है. यहां न तो दूसरे शहरों की तरह भीड़भाड़ रहती है न ही कहीं प्रदूषण दिखता है. दिखती है तो बस हिमालय की पहाडि़यां, चांदी जैसे बादल, चारों तरफ फैला चीड़ और देवदार का जंगल.

रानीखेत की प्राकृतिक शांति का गवाह यहां आने वाला हर पर्यटक होता है. कई प्राचीन इमारतें यहां देखने को मिल जाती हैं जिन का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है. इस हिल स्टेशन पर एक दिन गुजारना भी यादगार अनुभव होता है. यहां से 13 किलोमीटर दूर स्थित है मजखली जहां से हिमालय पर्वत काफी नजदीक से देखा जा सकता है. यहां के 2 अन्य स्थल शीतलाखेत और सुरईखेत भी दर्शनीय हैं.

बारिश के मौसम को छोड़ रानीखेत सालभर कभी भी जाया जा सकता है. ठंड में गरम कपड़ों का खयाल रखना चाहिए. दिसंबर से ले कर फरवरी तक यहां बर्फबारी का आनंद लिया जा सकता है. यहां ठहरने के लिए अच्छे, सुविधाजनक व हर बजट के होटल उपलब्ध हैं.

नैनीताल कब जाएं : नैनीताल सहित रानीखेत, मुक्तेश्वर और अल्मोड़ा जुलाईअगस्त के महीने छोड़ साल में कभी भी जाया जा सकता है.

कैसे जाएं : हवाई मार्ग से पंतनगर हवाई अड्डे हो कर जाया जा सकता है. पंतनगर से नैनीताल तक सड़क की दूरी 71 किलोमीटर है.

रेलमार्ग से काठगोदाम रेलवे स्टेशन उतरना पड़ता है जो यहां से महज 35 किलोमीटर दूर है.

सड़क के रास्ते दिल्ली, आगरा, देहरादून, लखनऊ, उन्नाव, सीतापुर, कानपुर और बरेली से सीधे बस या टैक्सी से नैनीताल जाया जा सकता है. नैनीताल से रानीखेत, अल्मोड़ा और मुक्तेश्वर की यात्रा सड़क द्वारा तय की जा सकती है.

क्या खरीदें : कुमाऊं के गरम कपड़े देशभर में पसंद किए जाते हैं जो यहां के सभी हिल स्टेशनों पर मिलते हैं. इस के अलावा यहां की आकर्षक मोमबत्तियां भी खरीदी जा सकती हैं. सभी पर्यटन स्थलों पर चीड़ की लकड़ी से बने आइटम्स भी मिलते हैं.

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प्रख्यात वैज्ञानिक स्टीफन विलियम हाकिंग, व्हीलचेयर पर ब्रह्मांड की यात्रा

ईश्वर के अस्तित्व को नकारने वाले मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग के चले जाने से दुनिया में विज्ञान पर भरोसा करने वाले लोगों को दुख पहुंचा है जबकि ईश्वर के नाम पर धंधा करने वाले शायद खुश हो रहे होंगे. प्रगतिशील वैज्ञानिक विचारों के पक्षकारों, अनीश्वरवादियों और नास्तिकों के लिए बहुत बड़ा संबल रहे हाकिंग धर्म के धंधेबाजों के लिए सब से बड़े दुश्मन थे. उन के वैज्ञानिक सिद्धांतों ने धर्म और ईश्वर की धज्जियां उड़ा दी थीं. उन के विचार चचर्च के लिए उतने ही घातक रहे जितने कौपरनिक्स और गैलीलियो के थे.

शुरू से ही नास्तिक रहे हाकिंग समयसमय पर धार्मिक विश्वासों के विरोध में बोलते रहते थे. इस के लिए उन्हें ईसाई संगठनों का विरोध भी झेलना पड़ा. 2001 में जब वे भारत आए तो हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने उन्हें कोई भाव नहीं दिया. पर वे इन सब के प्रति बेपरवा रहे और अपने विचारों के प्रति दृढ़ रहे.

कौस्मोलौजी, क्वांटम फिजिक्स, ब्लैकहोल और स्पेस टाइम के लिए बड़ा योगदान देने वाले इस वैज्ञानिक का कहना था कि निश्चित ही ब्रह्मांड एक भव्य डिजायन है पर इस का भगवान से कोईर् लेनादेना नहीं है. यानी, उन्होंने भगवान के अस्तित्व को साफतौर पर नकार दिया और खुद को नास्तिक घोषित करार दिया. विश्व के बहुत से लोगों ने उन की बातों पर भरोसा किया, इसीलिए उन की पुस्तक ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री औफ टाइम’ बहुत ही लोकप्रिय हुई.

ईसाई धार्मिक परिवार में जन्मे हाकिंग स्कूली समय से ही अपने ईसाई सहपाठियों के साथ धर्म को ले कर तर्क करते थे. कालेज आतेआते वे नास्तिक छात्र के रूप में मशहूर हो चुके थे. इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि हाकिंग जैसे वैज्ञानिकों की थ्योरी के बल पर ही दुनिया में नास्तिकों, तर्कवादियों की तादाद बढ़ रही है.

उन्होंने कहा था कि धर्र्म और विज्ञान के बीच एक बुनियादी फर्क है. धर्म आस्था और विश्वास पर टिका है, ईश्वर दिखता नहीं पर विज्ञान साक्षात सुबूत के तौर पर दिखाईर् देता है, इसलिए धर्र्म पर विज्ञान की जीत तय है.

उन्होंने अपनी थ्योरी किसी पर थोपनी नहीं चाही. उन्होंने साफ कहा कि हम सभी जो चाहें, उस पर विश्वास करने के लिए स्वतंत्र हैं पर कोई ईश्वर नहीं है, किसी ने हमारे ब्रह्मांड को नहीं बनाया और न ही हमारे भविष्य को निर्देशित करने वाला कोईर् है.

आमतौर पर अमेरिका, यूरोप जैसे देशों के अधिकतर वैज्ञानिक ईश्वर के वजूद को ठुकराते आए हैं पर भारत के ज्यादातर वैज्ञानिक रौकेट, मिसाइलें छोड़ते समय नारियल फोड़ते, दीपक जलाते, हवन और पूजापाठ करते देखे जा सकते हैं.

एक सर्वे में बताया गया है कि 93 प्रतिशत वैज्ञानिकों ने भगवान के अस्तित्व को नकारा है. केवल 7 प्रतिशत वैज्ञानिक ही ईश्वर में भरोसा करते हैं. शायद, ये वैज्ञानिक भारतीय हों.

प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने कहा था कि मैं पिछले 49 सालों से मरने का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूं कि मुझे मरने की कोई जल्दी नहीं है. मेरा जन्म बहुत से काम करने के लिए हुआ है और जब तक मैं सारे काम नहीं कर लूंगा, मैं इस दुनिया को छोड़ नहीं सकता.

ये बातें उन के जीवन की सचाई थीं जिन के साथ वे पिछले 55 वर्षों से जी रहे थे. अपने कहे मुताबिक, स्टीफन ने अपना काम पूरा कर लिया तो हाल ही में दुनिया को अलविदा कह गए.

ब्रिटिश भौतिकशास्त्री स्टीफन हाकिंग ने ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में जो अद्भुत कार्य किया उस के कारण उन की तुलना विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन और न्यूटन से की जाती है. मगर हाकिंग का जीवन अद्भुत वैज्ञानिक प्रतिभा के साथसाथ मनुष्य की अदम्य जिजीविषा के संघर्ष की सुनहरी दास्तान था.

वे जिंदगीभर एम्योट्रौफिक लैटरल स्लेरोसिस यानी एएलएस बीमारी से पीडि़त थे. इस घातक न्यूरोलौजिकल बीमारी ने उन के शरीर को बेहद कमजोर कर दिया. वे हमेशा व्हीलचेयर पर बैठे रहने के लिए अभिशप्त थे. मगर अपने जीवन को उन्होंने इस प्रकार ढाला था कि उन की बीमारी भी उन्हें नहीं हरा सकी. विकलांगता उन्हें विज्ञान में योगदान करने से नहीं रोक सकी.

बीमारी पर भारी पड़े

इस बीमारी के कारण केवल उन का मस्तिष्क ही काम कर पाता था. व्हीलचेयर पर बैठ कर ही उन्होंने सारे ब्रह्मांड की सैर की, उस के अबूझ रहस्य खोज निकाले, उन के बारे में लिखा भी. तब, दुनिया भौचक्की रह गई. इस असाध्य बीमारी से जूझते हुए स्टीफन हाकिंग ने ब्लैकहोल और बिग बैंग सिद्धांत को समझने में अहम योगदान दिया.

स्टीफन की आयु जब मात्र 21 वर्ष की थी, तब ही उन्हें मोटर न्यूरौन नामक बीमारी हो गई. चिकित्सकों ने स्पष्ट कर दिया कि उन के पास अधिकतम 2 वर्ष हैं, लेकिन स्टीफन की इच्छाशक्ति ने चिकित्सा विज्ञान को झूठा साबित कर एक मिसाल कायम की. बावजूद इस के, हाकिंग कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई करने गए और एक महान वैज्ञानिक के रूप में सामने आए. महज 32 वर्ष की उम्र में साल 1974 में हाकिंग ब्रिटेन की प्रतिष्ठित रौयल सोसाइटी के सब से कम उम्र के सदस्य बने. 5 वर्षों बाद उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफैसर के रूप में नियुक्त किया गया. इस पद पर कभी महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन नियुक्त थे.

अकसर पीडि़त इस बीमारी की चपेट में आने के 2 से 3 वर्षों के भीतर दम तोड़ देते हैं, लेकिन हाकिंग एकदो नहीं, बल्कि 50 वर्षों से ज्यादा वक्त तक इस से जूझते रहे. एएलएस का कोई इलाज या उपचार नहीं है जो इसे रोक सके, हालांकि इस के लक्षणों को कुछ हद तक नियंत्रित करने के कुछ विकल्प जरूर मौजूद हैं.

76 साल के जीवन में स्टीफन हाकिंग ने सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में कमोबेश वैसी ही हलचल मचाई है जैसी कि अपने दौर में आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत से मचाई थी. उन्हें चुनौती देने वालों में अग्रणी हाकिंग ही थे. ‘ईश्वर पासे नहीं खेलता’ कह कर जब आइंस्टीन अपनी खोज में आगे बढ़ने से ठिठक गए थे तो कई वर्षों बाद हाकिंग ने आगे बढ़ कर यह प्रतिपादित किया था कि ईश्वर न सिर्फ पासे खेलता है बल्कि उस के फेंके पासे कहां गिरते हैं, यह तक पता नहीं चल पाता. इस उक्ति से आशय यह था कि ब्रह्मांड के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है और किसी एक शक्ति ने इस की रचना नहीं की है. यह कथन ‘सिंगुलैरिटी’ सिद्धांत की स्थापना की ओर भी इंगित करता था जिसे दिक्काल (स्पेसटाइम) का एक अनिश्चित झुकाव माना जाता है.

स्टीफन विलियम हाकिंग ने ही ब्लैकहोल के बारे में यह नतीजा निकाला था कि उस से भी विकिरण के छूट जाने की संभावना रहती है. इसे हाकिंग रेडिएशन कहा गया. ब्लैकहोल के बारे में वैज्ञानिक मान्यता रही है कि प्रकाश तक उस में जा कर डूब जाता है, लेकिन स्टीफन हाकिंग का कहना था कि ब्लैकहोल से भी बाहर कोई रास्ता जरूर निकलता होगा.

जटिल रहस्यों को भेदते हाकिंग का सब से बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने सैद्धांतिक भौतिकी और ब्रह्मांडीय विज्ञान के जटिल रहस्यों को आमफहम बना कर लोगों तक पहुंचाया. उन्होंने अपने निराले अंदाज में भौतिकी की पहेलियां बूझीं. यही कारण था कि वे वैज्ञानिकों, बौद्धिकों में भी उतने ही लोकप्रिय थे जितने छात्रों व बच्चों के बीच. उन्होंने विज्ञान को कथा, कला और कविता बना दिया. हाकिंग की एक बड़ी देन यह भी है कि उन्होंने ब्रह्मांड की रचना में ईश्वरीय प्रताप को खारिज किया, अंधविश्वासों और धार्मिक रूढि़यों को फटकारते रहे और ताउम्र एक संवेदनशील प्रगतिशील दुनिया का सपना संजोए रहे. स्टीफन ने कभी भी ईश्वरीय शक्ति को नहीं माना बल्कि, हमेशा ईश्वर और उस की शक्ति के प्रमाण की बात की. वहीं उन्होंने ब्रह्मांड की रचना के लिए बिग बैंग थ्योरी को दुनिया के सामने रखा बजाय ईश्वरीय चमत्कार के.

हाकिंग ने पर्यावरण की दुर्दशा पर तीखी टिप्पणियां की और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से दुनिया को आगाह किया. उन्होंने इन्हीं संदर्भों में एलियन

की अवधारणा को भी अपने चुटीले व व्यंग्यात्मक अंदाज में हवा दी और बताया कि यह न मानने का कोई कारण नहीं कि आकाशगंगाओं में कहीं कोई एक ऐसी प्राणी व्यवस्था जरूर है जो हमारी धरती के मनुष्यों से हर स्तर पर उच्चतर स्थिति में है.

बिग बैंग थ्योरी

वैज्ञानिक खोजों द्वारा यह तो पता लग गया कि दुनिया की उत्पत्ति 13.8 अरब साल पहले महाविस्फोट से हुई थी लेकिन स्टीफन ने ब्रह्मांड से पहले की दुनिया के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि महाविस्फोट से पहले सिर्फ एक अनंत ऊर्जा और तापमान वाला एक बिंदु था. महाविस्फोट सिद्धांत ब्रह्मांड की रचना का एक वैज्ञानिक सिद्धांत है, कोई पौराणिक कथा नहीं.

उस में बताया गया है कि ब्रह्मांड कब और कैसे बना? इस सिद्धांत के अनुसार, करीब 15 अरब साल पहले पूरे भौतिक तत्त्व और ऊर्जा एक बिंदु में सिमटे हुए थे. फिर इस बिंदु ने फैलना शुरू किया. महाविस्फोट, बम विस्फोट जैसा विस्फोट नहीं था, बल्कि इस में प्रारंभिक ब्रह्मांड के कण, सारे अंतरिक्ष में फैल गए और एकदूसरे से दूर भागने लगे. इस तरह ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार हो रहा है. हाकिंग ब्रह्मांड की रचना को एक स्वत:स्फूर्त घटना मानते थे, न कि ईश्वरीय.

समकालीन विज्ञान जगत में इतना खिलंदड़ और मस्तमौला वैज्ञानिक नहीं देखा गया. वे अंतिम समय तक गुरुत्वाकर्षण और क्वांटम मैकेनिक्स को एकीकृत करने की गुत्थियों में डूबे हुए थे और आखिर तक यह जानना चाहते थे कि वाष्पीकृत होने के बाद ब्लैकहोल का क्या होता है. इन्हीं गुत्थियों को सुलझाते हुए हो सकता है उन्हें धरती पर एलियन के पदार्पण की बात सूझी हो.

1988 में प्रकाशित ‘समय का संक्षिप्त इतिहास’ (अ ब्रीफ हिस्ट्री औफ टाइम) जैसी किताब ने स्टीफन हाकिंग को विज्ञान दुनिया का चमकता तारा बनाया.

संडे टाइम्स की बैस्टसैलर सूची में यह किताब 237 सप्ताह तक बनी रही और इस की बदौलत गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में इस का नाम दर्ज हुआ. इस की 1 करोड़ से अधिक प्रतियां बिकीं और 40 भाषाओं में अनूदित हुईं. फिर उन की दूसरी किताब ‘ब्लैक होल्स ऐंड बेबी यूनिवर्सेस ऐंड अदर एसेस’ प्रकाशित हुई.

इसी किताब में हाकिंग ने ब्रह्मांड से जुड़े अपने अध्ययनों को दिलचस्प तरीके से पेश किया और इसी में वह लेख भी है जिस में हाकिंग ने आइंस्टीन की दुविधाओं पर उंगली रखी. 2001 में आई उन की किताब ‘द यूनिवर्स इन अ नटशैल’ ने भी प्रकाशन जगत में धूम मचाई.

स्टीफन हाकिंग ने दुनिया का परिचय ब्रह्मांड के जिस सत्य से कराया है वह न सिर्फ विज्ञान के इतिहास में सदैव अमर रहेगा बल्कि यह सकारात्मक सोच और उच्च इच्छाशक्ति की एक मिसाल भी कायम करता है जो हमेशा ही दुनिया को प्रेरित करेगी.

खुशमिजाज और हाजिरजवाब स्टीफन

हाकिंग सिर्फ हमारी सदी के सब से महान वैज्ञानिक ही नहीं थे, बल्कि बेहद मजाकिया भी थे. उन के चुटीले कमैंट्स अकसर सुनने वालों को अचंभे में डाल देते थे. कई बार लोग उन से मिलने पर उन की बीमारी और शारीरिक अवस्था के प्रति सहानुभूति जताते, तो हाकिंग अपने मजेदार अंदाज में उन्हें जीने का तरीका सिखा देते.

मशहूर टौक शो ‘लास्ट वीक दिस टाइम’ के होस्ट जौन ओलिवर अपनी कौमिक टाइमिंग के लिए मशहूर हैं, लेकिन हाकिंग ने उन की भी बोलती बंद कर दी थी. हुआ यह कि एक इंटरव्यू के दौरान ओलिवर ने हाकिंग से पूछा, ‘अगर आप मानते हैं कि इस ब्रह्मांड में अनगिनत पैरेलल यूनिवर्स हैं, तो कोई ऐसी भी समानांतर दुनिया होगी जहां मैं आप से ज्यादा बुद्धिमान हूं?’ हाकिंग ने जवाब दिया, ‘बिलकुल, और मुझ से ज्यादा मजाकिया भी.’ ओलिवर बेचारे खिसिया कर रह गए.

इस वैज्ञानिक के लतीफे बहुत मशहूर रहे हैं. उन के विज्ञान से जुड़े कुछ मजेदार लतीफे इस प्रकार हैं-

एक न्यूट्रौन बार में पहुंचा. बारटैंडर से उस ने पूछा, ‘एक ड्रिंक का कितना?’ बारटैंडर ने न्यूट्रौन को देखा और बोला, ‘आप के लिए नो चार्ज.’

2 एटम सड़क पर घूम रहे थे. पहले ने कहा, ‘लगता है मैं ने अपना एक इलैक्ट्रौन खो दिया है.’ दूसरा बोला, ‘क्या तुम श्योर हो?’ पहले ने कहा, ‘हां, मैं पौजिटिव हूं…’

क्या आप जानते हैं ब्लैकहोल क्या है? यह वह छेद है जो आप के काले मोजे में हो जाता है.

मैं ने 2 शादियां कीं और दोनों टूट गईं, इतना काफी है यह समझने के लिए कि एक आदमी ब्रह्मांड के रहस्य समझ सकता है, लेकिन औरतों को नहीं.

जो लोग कहते हैं कि ब्रह्मांड में सबकुछ पहले से ही तय है, मुझे ताज्जुब होता है जब ऐसे लोग सड़क पार करने से पहले दाएंबाएं देखते हैं.

प्रेरणा देते स्टीफन

दुनिया में हाकिंग के लेखन और खोजों का क्या परिणाम हुआ, इस की मिसाल गीतकार और पटकथा लेखक वरुण ग्रोवर के शब्दों में- ‘अलविदा मेरे पहले (और शायद अंतिम) हीरो. मुझे फिजिक्स से कभी प्यार नहीं होता और मेरा भाई कभी एक फिजिसिस्ट नहीं बनता अगर आप के स्पष्ट व उत्साहित करने वाले लेख हम बच्चों के लिए एक नई दुनिया के दरवाजे न खोलते. हमारे समय की ‘ब्रीफ हिस्ट्री’ आप को हमेशा बहुत प्यार से याद रखेगी.’

स्टीफन हाकिंग के प्रेरक कथन

  • ऊपर सितारों की तरफ देखो अपने पैरों के नीचे नहीं. जो देखते हो उस का मतलब जानने की कोशिश करो और आश्चर्य करो कि क्या है जो ब्रह्मांड का अस्तित्व बनाए हुए है. उत्सुक रहो.
  • चाहे जिंदगी कितनी भी कठिन लगे, आप हमेशा कुछ न कुछ कर सकते हैं और सफल हो सकते हैं.
  • बुद्धिमत्ता बदलाव के अनुरूप ढलने की क्षमता है.
  • विज्ञान केवल तर्क का अनुयायी नहीं है, बल्कि रोमांस और जनून का भी है.
  • अन्य विकलांग लोगों के लिए मेरी सलाह होगी कि उन चीजों पर
  • ध्यान दें जिन्हें अच्छी तरह से करने से आप की विकलांगता नहीं रोकती, और उन चीजों के लिए अफसोस न करें जिन्हें करने में यह बाधा डालती है.
  • मुझे लगता है बह्मांड में और ग्रहों पर जीवन आम है, हालांकि बुद्धिमान जीवन कम ही है. वहीं, कुछ का कहना है इस का अभी भी पृथ्वी पर आना बाकी है.
  • हम एक औसत तारे के छोटे से ग्रह पर रहने वाले बंदरों की एक उन्नत नस्ल हैं. लेकिन हम ब्रह्मांड को समझ सकते हैं, यह हमें कुछ खास बनाता है.
  • मैं चाहूंगा न्यूक्लियर फ्यूजन व्यावहारिक ऊर्जा का स्रोत बने. यह प्रदूषण या ग्लोबल वार्मिंग के बिना, ऊर्जा की अटूट आपूर्ति प्रदान करेगा.
  • लाइफ दुखद होगी अगर यह अजीब न हो.
  • जब किसी की उम्मीद एकदम खत्म हो जाती है, तब वह सचमुच हर उस चीज की महत्ता समझ पाता है जो उस के पास है.
  • मैं, बस एक बच्चा हूं जो कभी बड़ा नहीं हुआ. मैं अभी भी ‘कैसे’ और ‘क्यों’ वाले सवाल पूछता रहता हूं. कभीकभार मुझे जवाब मिल जाता है.
  • काम आप को अर्थ और उद्देश्य देता है और इस के बिना जीवन अधूरा है.
  • मेरा लक्ष्य स्पष्ट है. ये ब्रह्मांड को पूरी तरह समझना है, यह जैसा है वैसा क्यों है और आखिर इस के अस्तित्व का कारण क्या है.
  • विज्ञान लोगों को गरीबी व बीमारी से निकाल सकता है और सामाजिक अशांति खत्म कर सकता है.
  • मैं एक अच्छा छात्र नहीं था, मैं कालेज में ज्यादा समय नहीं बिताता था, मैं मजे करने में बहुत व्यस्त था.
  • कभीकभी मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मैं अपनी व्हीलचेयर और विकलांगता के लिए उतना ही प्रसिद्ध हूं जितना अपनी खोजों के लिए.
  • धर्मशास्त्र अनावश्यक है.
  • मुझे नहीं लगता कि मानव जाति अगले हजार साल बची रह पाएगी जब तक कि हम अंतरिक्ष में विस्तार नहीं करते.
  • मेरा विश्वास है कि चीजें खुद को असंभव नहीं बना सकतीं.
  • दिव्य रचना से पहले भगवान क्या कर रहा था ?
  • यदि आप यूनिवर्स को समझते हैं तो एक तरह से आप इसे नियंत्रित करते हैं.
  • वास्तविकता की कोई अनूठी तसवीर नहीं होती.
  • मेरी पहली लोकप्रिय किताब , ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री औफ टाइम,’ ने काफी रुचि पैदा की, लेकिन कई लोगों को इसे समझने में कठिनाई हुई.
  • हम यहां क्यों हैं? हम कहां से आते हैं? परंपरागत रूप से, ये फिलौसोफी के सवाल हैं, लेकिन फिलौसोफी मर चुकी है.

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मूर्तियों पर महाभारत : जड़ता के दौर में मौज उड़ाते मूर्तिभक्त, पिसते मेहनतकश

मूर्तियों के देश भारत में किसी राज्य की सरकार बदलने पर मूर्तियां उखाड़ने का पहली बार खतरनाक दृश्य उभर कर सामने आया है. यह एक नए खतरे की आहट है.

वैसे तो देश में सत्ता बदलते ही दफ्तरों में तसवीरें बदलने का पुराना रिवाज है पर मूर्ति के बदले मूर्तियां तोड़नेफोड़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह किसी सभ्य लोकतांत्रिक युग का नहीं, मध्ययुगीन सोच को जाहिर करता है. देश में तरक्की का नहीं, जड़ता का दौर दिखाईर् दे रहा है जहां मूर्तियों को नफरत की वजह से तोड़ा जा रहा है. मूर्ति तोड़े जाने की पहली घटना त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 90 किलोमीटर दूर बेलोनिया के सैंटर औफ कालेज स्क्वायर में स्थापित व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति को जेसीबी मशीन से गिराने से घटी. राज्य में वामपंथ को हरा कर भाजपा को जीत हासिल किए महज 48 घंटे ही बीते थे कि भारत माता की जय का नारा लगाती भीड़ ने इसे ढहा दिया. 2013 में वामपंथी पार्टी ने जब चुनाव जीता था तब इस प्रतिमा को लगाया था.

इस के बाद दक्षिण त्रिपुरा के सबरूम में लेनिन की एक और मूर्ति गिरा दी गई. देखतेदेखते देश के कई हिस्सों से मूर्तियों को तोड़ने, गिराने की खबरें आने लगीं. प्रतिक्रियास्वरूप, पश्चिम बंगाल के कोलकाता में वामपंथी समर्थकों ने जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर कालिख पोत दी और उसे तोड़ने का प्रयास किया.

इसी बीच तमिलनाडु में वेल्लूर के तिरुपत्तूर तालुका में द्रविड़ आंदोलन के प्रवर्तक ई वी रामास्वामी पेरियार की प्रतिमा को हथौड़े से तोड़ दिया गया. उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के मवाना क्षेत्र में भीमराव अंबेडकर की मूर्ति नष्ट कर दी गई. फिर केरल से महात्मा गांधी की प्रतिमा का चश्मा और चेन्नई से अंबेडकर की प्रतिमा के तोड़े जाने की खबरें आईं.

जिन नेताओं की प्रतिमाएं तोड़ी गईं उन में एक रूसी क्रांतिकारी लेनिन के आंदोलन ने पूरी दुनिया की तसवीर बदल दी थी. धर्म और पूंजीपतियों के गठजोड़ को तोड़ कर वे समानता के पक्षधर थे. पेरियार दक्षिण भारत के तर्कवादी, जातिविरोधी नेता थे. वे द्रविड़ आंदोलन के प्रवर्तक और मूर्तिपूजा विरोधी थे. वे बराबरी का समाज चाहते थे. इस तरह, परस्पर विरोधी विचारधारा को स्वीकार न कर पाने वाली नफरतभरी विध्वंसक प्रतिक्रियाएं देखी गईं. हालांकि ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन घटनाओं की निंदा की और गृहमंत्री राजनाथ सिंह को इस पर कड़ी कार्यवाही करने का निर्देश दिया, लेकिन फिर भी एक लोकतांत्रिक देश में विरोधी वैचारिक प्रतीकों को खंडित किए जाने के लिए भाजपा सरकार के अंधभक्तों की जम कर आलोचना की गई और सरकार के विकास के दावों पर सवाल उठने लगे.

समाज में उथलपुथल आज विश्व नई तकनीक, आर्थिक विकास, शिक्षा और नए कौशल प्रबंधन में जुटा दिखाईर् दे रहा है जबकि भारत मूर्तियों में आजादी खोज रहा है. देश के नक्शे को भले ही भाजपा ने तकरीबन भगवा रंग दिया हो और अपने एकछत्र राज पर गर्व कर रही हो पर तरक्की व सुधार के उस के दावे हवाहवाई दिखाई दे रहे हैं.

देशभर में व्यापारी, किसान, बेरोजगार व महिलाएं सड़कों पर आंदोलनरत हैं. कितनी ही समस्याएं मुंहबाए खड़ी हैं. दूसरी ओर, मंदिर निर्माण, गौरक्षा, लवजिहाद, दलितों पर हमले, योग, आयुर्वेद, संस्कृत शिक्षा, पीएनबी घोटाला, बैंकों का कर्ज घोटाला आदि सुर्खियों में छाए हुए हैं. आम लोग हताश व निराश हैं. हिंदू संगठनों की बढ़ती तादाद, उन की धमकियां, सोशल मीडिया और सड़कों पर भगवा झंडे, माथे पर भगवा पट्टी धारण जैसी कट्टरता का सैलाब दिखाई दे रहा है. चारों ओर तर्कहीन, अवैज्ञानिक बातों का स्वरराग सुना जा रहा है. यह कोई और नहीं, खुद सरकार और उस के समर्थक कर रहे हैं.

सचाई पर मिथक थोपना केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को खारिज करते हुए फरमाया कि यह आधार अवैज्ञानिक है, क्योंकि हमारे पूर्वजों ने यह नहीं कहा अथवा लिखा कि उन्होंने किसी बंदर को मानव बनते देखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंबई में एक अस्पताल के कार्यक्रम में दावा कर चुके हैं कि हाथी के सिर वाले गणेश का होना इस बात का सुबूत है कि प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी का ज्ञान था. उन्होंने महाभारत के हवाले से कहा था कि तब लोगों को जेनेटिक्स का पता था.

उधर, राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने दावा किया था कि गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो औक्सीजन लेती है और औक्सीजन छोड़ती है. यह सरकार का विज्ञान पर हमला है. सरकार और भाजपा के लोग बारबार धर्म की किताबों के उदाहरण दे कर, हिंदुत्व की बात कर देश को फिर से प्राचीनकाल में ले जाना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि पौराणिक मिथकों को लोग सत्य इतिहास मान लें और तभी के पुरातन नियमकानून आज भी चलें जिन में वर्णवाद मुख्य है. भाजपा सरकार इसी तरह के अवैज्ञानिक विचारों में देश को उलझाए रखना चाहती है. ऐसे पुराने विचारों के साथ भाजपा देशभर के 33 प्रतिशत लोगों के वोटों के बल पर एकछत्र छा गई है और बाकी बहुसंख्यक लोगों पर अपने विचार ही नहीं थोपना चाहती, बल्कि उन्हें डरा कर, धमका कर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहती है.

भाजपा के लिए धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं है, बल्कि परंपरागत सांस्कृतिक पहचान की राजनीति का प्रमुख तत्त्व है. यह अतीत की सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने और बदलाव को रोकने का साधन है. मूर्तियां इस देश में शासकों के लिए हमेशा से चमत्कारी लाभ देने वाली रही हैं. मूर्तियों से समाज के एक वर्ग को इकट्ठा किया जा सकता है तो दूसरे वर्ग को अलगथलग भी रखा जा सकता है. मूर्तियां प्रेम, शांति, सहिष्णु, एकता की वाहक नहीं बल्कि नफरत, भेदभाव, हिंसा, खूनखराबा की पर्याय हैं. मूर्तियां अंधविश्वास, ढोंग, पाखंड का खेल हैं. भोलीभाली जनता इस खेल की कठपुतली मात्र है. आजादी के बाद मूर्तियों को ले कर हजारों दंगे, मौतें हो चुकी हैं. सब से ज्यादा गांधी और अंबेडकर की मूर्तियां क्षतिग्रस्त की गईं. कट्टर हिंदुत्व का इन नेताओं और इन के समर्थकों के साथ मतभेद कायम रहा है और रहेगा.

मूर्ति युग की शुरुआत ईसापूर्व की पहली शताब्दी में 33 वैदिक और सैकड़ों पौराणिक देवीदेवताओं को पहचान लिया गया था. प्राचीन हिंदू गं्रथों में मूर्तियों का जिक्र नहीं है. चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान बड़ा सांस्कृतिक विकास हुआ. रामायण और महाभारत जैसे तमाम धार्मिक स्रोतों का इस अवधि के दौरान संग्रहण किया गया. इस दौर में वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला में उपलब्धियां हासिल होने लगीं. फिर तो धीरेधीरे देशभर में न सिर्फ मंदिर और मूर्तियों की भरमार हो गई, बल्कि गलीचौराहों पर नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित करने का सिलसिला भी चल पड़ा.

धार्मिक मूर्तियों का बड़े पैमाने पर कारोबार शुरू हो गया. मूर्तियों के प्रति लोगों में धार्मिक आस्था उत्पन्न की गई. यह काम यों ही संभव नहीं था. मूर्तियों को चमत्कारी बताया गया. उन की पूजा करने पर मनोकामना पूर्ण होने के दावे प्रचारित किए गए. बिना कुछ किए सबकुछ पाने की भूखी अंधविश्वासी जनता मूर्ख बनती गई और धर्म के धंधेबाजों का कारोबार चल पड़ा.

आजादी के बाद के दशकों में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित करने का दौर चला. साथ ही साथ उन जातियों को भी मूर्तिपूजा की ओर धकेल दिया गया जिन्हें नीच, अछूत, अधम, पापी समझा गया. शूद्र, दलित जातियों को उन्हीं के पौराणिक पात्र पूजने को दे दिए गए. जातियों ने अपनेअपने पूर्वज और महापुरुष बांट लिए और उन की प्रतिमाएं स्थापित करा दीं. ऊंची जातियों ने मनु महाराज, परशुराम जैसे, शूद्रों ने शाहूजी महाराज, शिवाजी, ज्योतिबा फूले और दलितअछूतों ने वाल्मीकि, अंबेडकर को पूजना शुरू कर दिया.

बौद्धों और जैनियों में मूर्तिपूजा निषेद्ध होने के बावजूद बड़े पैमाने पर प्रतिमाएं स्थापित की गईं. इस तरह मूर्तियों के नाम पर धर्म के धंधेबाजों का कारोबार फलनेफूलने लगा.

अभी देश में हजारों करोड़ रुपए खर्च कर मूर्तियां खड़ी की जा रही हैं. अहमदाबाद में ‘स्टैच्यू औफ यूनिटी’ का बजट 3,000 करोड़ रुपए और मुंबई में शिवाजी की प्रतिमा पर 3,600 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं. राममंदिर निर्माण का बजट अभी सामने आया नहीं है पर वह भी निश्चित ही हजारों करोड़ का होगा. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रामसीता की मूर्ति लगाने की बात कर रहे हैं. देश में गरीबों के लिए स्कूलों, अस्पतालों और उन के विकास के लिए फंड नहीं है जबकि मूर्तियों में हजारों करोड़ रुपए बरबाद किए जाते हैं.

मूर्ति विरोधी आंदोलन

जहां तक मूर्तिविरोधी आंदोलन की बात है, हिंदू परंपराओं में नास्तिक चार्वाक ने सब से पहले देवीदेवताओं की मूर्तियों के ढोंग को खारिज किया. बाद में आर्य समाज और ब्रह्म समाज आंदोलन ने मूर्तियों का विरोध किया. आजादी के पहले से ही, लगभग 70 सालों से, ‘सरिता’ मूर्तिपूजा के पाखंड की पोल खोलती आ रही है. पत्रिका का यह आंदोलन जारी है. मौजूदा समय में मूर्तिपूजा विरोधी आंदोलन की सब से अधिक जरूरत है, लेकिन कहीं कोई दूसरी बड़ी आवाज नहीं सुनाई देती. चारों ओर हिंदुत्व के नगाड़ों के शोर में मूर्तिभंजकों की आवाज सुनाई ही नहीं पड़ रही. राजनीतिक पार्टियों के लिए मूर्तियां चमत्कारी साबित होती हैं, वे चाहे नेताओं की हों या देवीदेवताओं कीं. लेकिन मूर्तियां समाज के लिए कभी फायदेमंद रही हों, दिखाई नहीं दिया.

एक प्रतिमा किसी वर्ग के लिए सम्माननीय है तो वही दूसरे के लिए नफरत का कारण. इस तरह के सामाजिक विभाजन का फायदा धर्म के धंधेबाज उठाते आए हैं. सरकार पुरोहितों के आदेशों पर चलने लगती है.

पेशवा राज से समानता

मौजूदा शासन और राजनीतिक व सामाजिक माहौल पेशवा राज से मिलताजुलता दिखाई देता है. 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में शाहूजी महाराज ने मराठा की राजधानी सतारा में स्थापित कर ली थी. पर शासन के सारे अधिकार पेशवा बालाजी विश्वनाथ के हाथों में सौंप दिए थे. यहीं से पेशवा राज का प्रारंभ हो गया था. मराठों का शूद्र राजा नाममात्र का प्रमुख था. सत्ता का केंद्र पेशवा बन गए थे और पुणे का महत्त्व बढ़ गया था. पेशवा काल में सामाजिक स्थिति अत्यधिक अव्यवस्थित थी. छुआछूत, ऊंचनीच, रूढि़वादी बुराइयां चरम पर थीं. चारों ओर अज्ञानता, अंधविश्वास, खोखली आस्था का अंधकार व्याप्त था. शूद्रों, अछूतों और स्त्रियों को पढ़ने की इजाजत नहीं थी. स्त्रियों की स्थिति दयनीय थी. समाज भाग्यवादी बन कर छोटे से दायरे में संकुचित हो गया था.

पेशवाओं के समय समाज अस्थिरता और असुरक्षा के दौर से गुजर रहा था. उस में जड़ता आ गई थी. पेशवाओं से पहले सामाजिक विषमता के दुष्परिणाम दलितों को छोड़ कर अन्य शूद्र जातियों को एक सीमा तक ही सहन करने पड़ते थे पर पेशवाकाल में ब्राह्मणों, खासतौर से चितपावन ब्राह्मणों का, समाज के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आधिपत्य था.

उस समय पेशवा ब्राह्मणों की संख्या कुल आबादी के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं थी. फिर भी संख्या में कहीं अधिक दलितों, शूद्रों को किसी भी गलती पर हाथी के पैर से कुचलवा दिया जाता था. शूद्रों को थूकने के लिए गले में मिट्टी की हांडी बांधनी पड़ती थी. वे उसी हांडी में थूक सकते थे. इन लोगों को सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद सड़क पर चलने की इजाजत नहीं थी. शूद्रों, दलितों को तालाबों से पानी भरने से रोका जाता था.

कर्मकांड, तंत्रमंत्र, शकुनअपशकुन का बाजार गरम था. यही कारण था कि शिक्षा, व्यापार और कला के क्षेत्र में पेशवाकाल एकदम खाली रहा. दूसरी ओर यूरोप में पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति के कारण ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र में युगांतकारी बदलाव हो रहे थे.

भारत में कारोबारी संसाधन और संभावनाएं बहुत हैं. इसे भांप कर पुर्तगाली, डच, अंगरेज भारत आए और विकास दिखने लगा. मुगलों के किए कार्य आज भी नजर आ रहे हैं. इन का मुख्य मकसद अपने धर्र्म का विस्तार करना नहीं था, व्यापार और साम्राज्य को नया आधार देना था.

हिंदुत्ववादी विस्तार के प्रयास

आज हमारे देश की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार हिंदुत्ववादी विस्तार करना चाहती है. वह पेशवा राज व्यवस्था पर चलती दिख रही है. वैसा ही सबकुछ देखा जा सकता है. हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में भेदभाव और पढ़ाई में बाधा डालने का विरोध करने के चलते रोहित वेमुला जैसे युवाओं को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया जाता है. गैरबराबरी के खिलाफ आवाज उठाने पर सहारनपुर में दलित युवक चंद्रशेखर को देशद्रोेह के आरोप में जेल में डाल दिया जाता है. जेएनयू में गैरबराबरी और झूठे राष्ट्रवाद के खिलाफ बोलने पर छात्रों को देशद्रोही बताया जाता है और उन पर मुकदमा कायम कर दिया जाता है. गाय की खाल उतारने पर ऊना में दलितों पर अमानुषिक कहर ढाया जाता है. लेकिन कभी किसी ऊंची जाति के ब्राह्मण को अनर्गल बोलने पर जेल में नहीं डाला गया है.

दरअसल, मूर्तियों का यह झगड़ा धर्म के निठल्ले, समाज में गैरबराबरी चाहने वाले धंधेबाजों और मेहनतकश व समानता के पैरोकारों के बीच है, जिन की मूर्तियां तोड़ी गईं उन में लेनिन, पेरियार, अंबेडकर मेहनत और समानता के लिए संघर्ष करने वाले लोग थे और वे समाज में भेदभाव, शोषण का खात्मा कर मेहनतकश व बराबरी वाले समाज की स्थापना का सपना देख रहे थे.

आज इस बात का ध्यान रखा जाता है कि प्राचीन सामाजिक व्यवस्था कायम रहे, पुनर्स्थापित हो. उसे सुधारें नहीं. अगर बदलने का प्रयास हो तो उसे डरा, धमका कर नियंत्रित रखा जाए. दलित मूंछ रखे तो पुराणों के अनुसार वह ऐसा नहीं कर सकता. मुसलमानों को पशुवध से रोका जाए. हिंदू धर्र्म से अलग विचार वालों के महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़ा जाए. ऐसा चाहने वाला देश का वह वर्ग है जो सदियों से बिना कामधाम किए लोगों की मेहनत पर मुफ्त में ऐश करता आया है. लेनिन, पेरियार, अंबेडकर की मूर्तियां नष्ट करने वाले ऐसी ही निकम्मी सोच के समर्थक हैं जो देश में दूसरों की कमाई पर पलते आ रहे हैं.

सत्ता में आरएसएस की घुसपैठ सरकार की योजनाएं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस का थिंकटैंक बना रहा है. भ्रष्ट नेता, नौकरशाह और कौर्पोरेट तथा धर्म की खाने वाले बिना कुछ किए दौलत कूट रहे हैं. वे बेईमानी, चोरी, घोटाले और खालीपीली बातें बना कर मौज कर रहे हैं. दूसरी ओर 65 प्रतिशत मेहनतकश वर्ग दिक्कतें झेल रहा है. वह रोजीरोटी और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जद्दोजेहद कर रहा है.

5 प्रतिशत निकम्मों द्वारा देश, समाज पर वर्चस्व रखने की कोशिश के चलते 65 प्रतिशत मेहनती, हुनर वाले लोगों की उत्पादन क्षमता पर असर पड़ रहा है. इस से देश व समाज को नुकसान हो रहा है. मोदी जब आए थे तब लगा था कि देश में अब उत्पादकता बढे़गी. उन के आते ही मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, स्टैंडअप इंडिया, जैसी कई योजनाएं सामने आईं पर अब इन पर कोई बात नहीं हो रही. देश में विकास की कोरी बातें बहुत प्रचारित की जा रही हैं. यह विकास नहीं, जड़ता का दौर है. वैज्ञानिक और सामाजिक विकास धर्म के कारोबार पर चोट पहुंचाता है. आज हर देश में बैठा धर्म का व्यापारी विकासविरोधी है. वह शासकों को और जनता को धर्म के जाल में उलझाए रखने में कामयाब दिख रहा है.

हमारे यहां साफ देखा जा सकता है कि कुछ भगवाधारी हिंदुत्व के विस्तार में जुटे हुए हैं मानो उन्हें सरकार ने नियुक्त कर रखा है. अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए श्रीश्री रविशंकर बाबरी मसजिद के नेताओं से सुलह के स्वंयभू मध्यस्थ बने नजर आ रहे हैं. सहमति न होने पर देश को सीरिया बनाने की धमकी दे रहे हैं. रामदेव स्वदेशी व्यापार के ऐंबैसेडर की तरह योग, आयुर्वेद को प्रचारित कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में महंत सरकार धर्मनिरपेक्षता को धता बता कर ईद न मनाने पर गर्व कर रही है यानी महंत महोदय गैरहिंदू वर्ग के खिलाफ नफरत का इजहार कर रहे हैं. निकम्मे लोगों की मौज देख कर मेहनती लोगों की उत्पादक क्षमता पर असर पड़ना स्वाभाविक है.

बहुसंख्यक आबादी पर अपना वर्चस्व थोपने, उसे अपने अनुसार चलाने में दिख रही उन की सफलता से देश जिहालत की ओर ही बढे़गा. यह वर्ग कभी नहीं चाहता कि देश में मेहनत, समानता की बात करने वाले नेता और उन के समर्थक शक्तिशाली बनें तभी लेनिन की मूर्ति ढहा कर वे आजाद होने का जश्न मना रहे थे.

भाजपा, संघ देश में एक विचारधारा थोपना चाहते हैं. इस से नफरत व अराजकता का माहौल तैयार हो रहा है. यह खतरनाक है. इस से निश्चिततौर पर देश की उत्पादकता पर बुरा असर पड़ेगा, काम करने वाले लोग हतोत्साहित होंगे. बिना उत्पादन करने वाले लोग भरपूर पैसा बनाते दिखेंगे तो मेहनती लोगों पर बुरा असर होगा ही. इन हालात से निबटना ही होगा. मेहनतकशों के वर्चस्व से ही किसी देश, समाज की तरक्की हो सकती है.

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