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गांव के लड़कों को शादी की परेशानी

गांव में शादियों के मामले में सरकारी नौकरी बनाम पकौड़ा रोजगार के मद्देनजर पकौड़े बेचने वाले युवाओं को लोग कम पसंद कर रहे हैं. ऐसे में खेतीकिसानी और उस से जुड़े रोजगार करने वालों को तो गांव की सही लड़की मिल भी जा रही है पर बेरोजगार और नशेड़ी युवाओं के लिए शादी के रिश्ते ही नहीं आ रहे हैं. गांव में शादी योग्य लड़कों की संख्या बढ़ती जा रही है. लड़कियों की जनसंख्या कम होने से लड़कों के सामने शादी एक समस्या बनती जा रही है. योग्य लड़कों की तलाश की वजह से दहेज भी बढ़ता जा रहा है. अच्छे लड़कों की गिनती में सरकारी नौकरी वाले सब से आगे हैं. गांव में रोजगार करने वाले लड़कों के लिए गांव की लड़कियों के रिश्ते भले ही आ रहे हों पर उन के लिए पढ़ीलिखी व नौकरी करने वाली शहरी लड़कियों के रिश्ते नहीं आ रहे हैं. कानपुर में विवाह का एक कार्यक्रम था. लड़कालड़की वाले सभी रीतिरिवाजों में व्यस्त थे. शादी में शामिल होने आए नातेरिश्तेदार इस चर्चा में मशगूल थे कि गांव में लड़कों की शादियों के लिए बहुत कम रिश्ते आ रहे हैं. इस शादी में कानपुर, रायबरेली, हरदोई, उन्नाव और लखनऊ जैसे करीबी शहरों के तमाम लोग शामिल हुए थे.

हर किसी का कहना था कि उन के गांव में 20 से ले कर 50 तक की संख्या में लड़के शादीयोग्य उम्र के हैं, लेकिन उन की शादी नहीं हो पा रही है. उन की उम्र बढ़ती जा रही है. यह परेशानी केवल कानपुर की शादी में ही चर्चा का विषय नहीं थी बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में एक शादी समारोह में भी ऐसी ही चर्चा हो रही थी. यहां गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, सुल्तानपुर और गोरखपुर के लोग इसी परेशानी की चर्चा में लगे दिखे. सामान्यतौर पर देखें तो ऐसे हालात हर गांव में दिख रहे हैं. अगड़ी और पिछड़ी दोनों ही जातियों में यह समस्या दिख रही है. पिछड़ी जातियों में यह समस्या उन जातियों में सब से अधिक है जो पिछड़ों में अगड़ी जातियां जैसे यादव, कुर्मी, पटेल हैं. अगड़ी और पिछड़ी जातियों के मुकाबले दलितों में ऐसे हालात नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कन्या विद्याधन योजना चलाई थी जिस के तहत हाईस्कूल और इंटर पास करने वाली लड़कियों को नकद पैसे मिले. इस के साथ उन्हें साइकिल भी मिली थी. इस योजना के बाद गांवों में लड़कियों के स्कूल जाने की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी हुई थी. अब गंवई इलाकों में ग्रेजुएट लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक हो गई है. इन इलाकों में शिक्षक के रूप में नौकरी पाने वालों में भी लड़कों के मुकाबले लड़कियां अधिक हैं.

आगे निकल रही हैं लड़कियां

एक तरफ समाज में यह कहा जा रहा है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है, दूसरी तरफ लड़कों की शादी के लिए लड़कियों के परिवारों से रिश्ते नहीं आ रहे हैं. इस स्थिति को समझने के लिए जब कई ग्रामीणों से बात की गई तो पता चला कि योग्यता के पैमाने पर लड़कियां लड़कों से आगे निकल रही हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों, जैसे देवरिया, बलिया, गोरखपुर में शादियों के रिश्ते ज्यादातर बिहार से आते हैं. बिहार में लड़कियां शिक्षा के मामले में ज्यादा आगे निकल रही हैं. ऐसे में बिहार से शादी के लिए उत्तर प्रदेश के इन जिलों में आने वाले रिश्ते खत्म हो गए हैं. उत्तर प्रदेश के इन जिलों के गांवों में रहने वाले लड़कों के लिए अब रिश्ते नहीं आ रहे हैं. बिहार में यह परेशानी जस की तस उत्तर प्रदेश जैसी ही है.

गांव में रहने वालों में से करीब 50 फीसदी लोग अब दूरदराज के शहरों में रहने लगे हैं. ये लोग अपना परिवार सीमित रखते हैं. लड़की हो या लड़का, दोनों को पढ़ने का समान अवसर देते हैं. ऐसे में ये परिवार अपनी लड़की को शादी के लिए शहर से गांव में नहीं ले जाते हैं. उस का कारण गांव में रहने वालों की संकीर्ण विचारधारा और रूढि़वादी सोच है. गांव में भले ही लड़के के पास जमीन या रोजगार हो, वह शहर में प्राइवेट नौकरी करने वाले से अधिक पैसा कमा रहा हो पर उस की सोच वही होती है, ऐसे में पढ़ीलिखी लड़की खुद को वहां ऐडजस्ट नहीं कर पाती है. परिवारों के सीमित होने से लड़की के परिवार के पास अब लड़की की शादी में खर्च करने के लिए पैसा है और वह बेटी के भविष्य को सुखमय देखना चाहता है. ऐसे में वह नौकरी करने वाले लड़कों को प्राथमिकता देता है.

जाति और गोत्र की परेशानी गांव में रहने वाले परिवार आज भी जाति व गोत्र की ऊंचनीच में फंसे हैं. गैरबिरादरी में शादी तो बड़ी दूर की बात है. सब से पहली इच्छा भी यही होती है कि लड़के की शादी एक गोत्र नीचे और लड़की की शादी एक गोत्र ऊपर की जाए. हालांकि, अब इस प्रथा को छोड़ने के लिए लोग तैयार हो गए हैं.

अब लोगों की इच्छा रहती है कि अपनी ही बिरादरी में शादी हो जाए. गोत्र को ले कर लोग समझौते करने लगे हैं. अभी गैरबिरादरी में वे शादी करने को तैयार नहीं होते हैं. अपनी ही जाति में योग्य लड़कों की संख्या सब से कम मिलती है. अगर मिलती भी है तो वहां दहेज अधिक देना पड़ता है. दहेज की मांग इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि योग्य लड़कों की संख्या बहुत कम है, सो, उन के लिए शादी के औफर ज्यादा हैं. योग्यता के पैमाने के बाद पर्सनैलिटी के हिसाब से देखें तो गांव के लड़केलड़कियों से कमतर दिखते हैं. गांव के लोगों में गैरबिरादरी में शादी का रिवाज नहीं है. ऐसा केवल अगड़ी जाति में ही नहीं है. पिछड़ी और दलित जातियों में भी अपनी जाति से बाहर शादी करने का चलन नहीं है. यही कारण है कि विवाह योग्य कुछ लोग जब अपनी शादी होते नहीं देखते तो वे दूरदराज से शादी कर के लड़की ले आते हैं. उस की जाति के बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता है और धीरेधीरे उस को सामाजिक स्वीकृति भी मिल जाती है.

हरियाणा और पंजाब में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जहां पर बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल की लड़कियां आ जाती हैं. कई लोग तो ऐसी लड़कियों को खरीद कर लाते हैं.

नशे के शिकार

गांव में खेतीकिसानी ही मुख्य पेशा होता है. हाल के कुछ सालों में किसानी बेहाल होती जा रही है. गांव के आसपास शहरों का विकास होने लगा है. गांव की जमीन महंगी होती जा रही है. गांव के आसपास सड़क बनने से सरकार ग्रामीणों से जमीन खरीद कर उन्हें अच्छाखासा मुआवजा देने लगी है. घर और रिसोर्ट बनाने वाले भी गांवों की जमीन की खरीदारी कर रहे हैं. शहरों में रहने वाले लोग भी गांव की जमीनें खरीदने लगे हैं. ऐसे में गांव के लोगों के पास जमीन बेचने से पैसा आने लगा है. पैसा आने के बाद ये लोग उस का उपयोग अपने ऐशोआराम में करने लगे हैं. ऐसे में नशे की प्रवृत्ति सब से अधिक बढ़ती है. गांव में रहने वाले 90 फीसदी युवा नशे के शिकार हो रहे हैं. ये शराब, भांग और गांजा सहित तंबाकू का सेवन करने लगे हैं. पढ़ाईलिखाई से दूर ऐसे बेरोजगार युवाओं से लोग अपनी लड़की की शादी नहीं करना चाहते हैं.

नशे के आदी इन युवाओं की छवि बेहद खराब है. लड़कियों को लगता है कि ये लोग शादी के बाद मारपीट और गालीगलौज अधिक करते हैं. ऐसे में इन के पास जमीनजायदाद होते हुए भी लड़कियां शादी के लिए तैयार नहीं होतीं. कई बार अगर मातापिता के दबाव में लड़की शादी करने को राजी हो भी जाए तो आखिर में शादी टूट ही जाती है. नशे और स्वभाव के चलते गंवई लड़के लड़कियों को पसंद नहीं आते. गांव के माहौल में ग्रामीण लड़कियां तो किसी तरह से अपने को ढाल भी लें पर शहरी लड़कियां ऐसा नहीं कर पाती हैं. समाजसेवी राकेश कुमार कहते हैं, ‘‘गांव में भी अब परिवार सीमित होने लगे हैं. ऐसे में लड़कियों के मातापिता अपनी लड़की की शादी नौकरी करने वालों से करना चाहते हैं. इस के अलावा, उन की यह चाहत भी रहती है कि लड़की शहर में रहे.’’

रूढि़वादी सोच शहरों के मुकाबले ग्रामीणों की रूढि़वादी सोच भी यहां की शादियों में एक बड़ी परेशानी बन रही है. तमाम तरह के रीतिरिवाज पुराने ढंग से निभाए जा रहे हैं, जिन के बारे में शहरों में रह रही लड़कियां कुछ जानती भी नहीं. ऐसे में उन को वहां सामंजस्य बैठाना सरल नहीं होता. रूढि़वादी सोच के कारण लड़कियों को वहां टीकाटिप्पणी का सामना भी करना पड़ता है, जिस से नई सोच की लड़कियों को परेशानी होने लगती है.

गांव में आज भी परदा प्रथा हावी है. अभी भी वहां घूघंट निकाल कर रहना पड़ता है. किसी काम के लिए बाहर आनेजाने पर मनाही है, जिस की वजह से पढ़ीलिखी लड़कियों को लगता है कि वे गांव में शादी कर के अपने कैरियर को हाशिए पर ले जा रही हैं. अभी भी बहुत सारे गांवों में घरों में शौचालय नहीं हैं. जिन घरों में हैं भी, वहां वे प्रयोग में नहीं हैं. ऐसे में शहरों या कसबों की लड़कियों के लिए वहां शादी करना मुश्किल हो रहा है. अब गांव के लोग भी अपनी लड़कियों की शादी शहरों में करना चाहते हैं. वे उन लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं जो गांव और शहर दोनों जगह रहते हैं.

सब से बड़ी शर्त सरकारी नौकरी की होने लगी है. सरकारी नौकरी वाले लड़के से अपेक्षा की जाती है कि वह गांव में रहने के साथसाथ शहर या कसबे में भी अपना घर जरूर बना लेगा. ऐसे में लड़की को गांव में ही नहीं रहना होगा. आज जिस तरह से महिलाओं के मजबूर होने की बात हो रही है उस से शादी के मामले में लड़कियों की पसंद का भी खयाल रखा जाने लगा है.

बदलती जीवनशैली

लड़कियों की बदलती जीवनशैली, पहनावा और शिक्षा भी इस के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक बन गया है. इस के अलावा लड़कियों की शादी की उम्र भी बढ़ गई है. पहले जहां 18 से 20 साल में लड़की की शादी हो जाती थी वहीं अब 20 से 25 वर्ष तक की उम्र में शादी हो रही है. लड़की कम से कम अब ग्रेजुएशन कर रही है और किसी न किसी रूप में रोजगार या नौकरी से जुड़ रही है.

ऐसे में वह आसानी से समझौते नहीं करती है. उस की पसंद गांव वाली शादी नहीं होती है. वह शहर में शादी कर के रहना चाहती है. इस वजह से भी गांव में शादी करने के लिए लोग रिश्ते ले कर कम आ रहे हैं. गांव में पहले ज्यादातर शादियां आपसी रिश्तों में तय होती थीं. अब आपसी रिश्तेदारियों में लोग शादी कर शादी के बाद होने वाली परेशानियों से बचना चाहते हैं.

ऐसे में जानकारी के बाद भी लोग शादी के बीच में नहीं पड़ना चाहते हैं. गांव के रहने वालों के सामने लड़की को तलाश करने का कोई दूसरा माध्यम नहीं है. गांव के लोगों का अभी भी वैवाहिक विज्ञापनों पर भरोसा नहीं है. ऐसे में शादी लायक युवकों के सामने परेशानी बढ़ती जा रही है. कई बारबार ऐसे गांवों का हाल प्रमुखता से खबरों में आता है जहां पानी या सड़क की परेशानी के चलते शादियां कम होती हैं. ऐसे गांवों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है जहां पर लड़कों की शादियों के लिए रिश्ते कम आ रहे हैं. इस के अपने अलगअलग कारण हैं. परेशानी की बात यह है कि सालदरसाल वह परेशानी बढ़ती जा रही है. इस से गांव में एक अलग किस्म का बदलाव महसूस किया जा रहा है. गंवई युवा पहले से अधिक कुंठित हो कर मानसिक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं.

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याद आई है

अब तो बस लौट के

आ जाओ कि याद आई है

यूं सनम दिल न दुखाओ

कि याद आई है

 

गम में डूबे हुए

मायूस हैं कंगन मेरे

आओ छू कर इन्हें खनकाओ

कि याद आई है

 

अब तो ये रंग ए हिना

बुझ भी गई हाथों की

बन के सतरंग झमक जाओ

कि याद आई है

 

तनहातनहा सी हर इक शय है

आशियाने की

आओ हर शय में महक जाओ

कि याद आई है

हसरत ए दिल

कहीं टूट कर दम तोड़ न दे

आओ, आ जाओ, आ भी जाओ

कि याद आई है.

– तबस्सुम ‘कशिश’

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भारतीय जनता पार्टी को जोर का झटका जोर से

उत्तर प्रदेश और बिहार में भारतीय जनता पार्टी को जोरदार झटका लगा है. यह झटका अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी के एक मंच पर आने मात्र से नहीं लगा, बल्कि उस की अपनी कलई खुलने से लगा है. भारतीय जनता पार्टी ने अपने पंडिताई मंसूबे पर राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचारमुक्त भारत, स्वच्छ भारत, कालेधन की वापसी के जो चमाचम कवरिंग पेपर लगाए थे, वे फट गए हैं और अंदर से पार्टी की पाखंडभरी नीतियां निकल आई हैं.

भाजपा कार्यकर्ता भगवा दुपट्टा डाले देशभर में कानून तोड़ते नजर आ रहे हैं. वे कभी गौरक्षक बन कर, कभी लवजिहाद रोकने का नाम ले कर तो कभी देशभक्ति का नारा लगा कर आम व्यक्ति को धकियाने में लिप्त हैं. भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि यह देश हिंदू वर्णव्यवस्था के अनुसार चलेगा, जहां जन्म से अधिकार तय होंगे और लोगों को पिछले जन्मों के पापों का फल भोगना ही होगा.

भाजपा में शामिल पिछड़ी जातियों के दबंगों को पहले तो लगा कि उन को कुबेर का खजाना मिल गया है और वे अपनी लाठियों के बल पर दलितों व मुसलमानों पर ही नहीं, महिलाओं, व्यापारियों और अफसरों तक को सीधा कर सकेंगे पर धीरेधीरे उन्हें समझ आने लगा किभाजपा की नीति केवल एक पार्टी का वर्चस्व स्थापित करने की नहीं, बल्कि केवल एक जाति का वर्चस्व स्थापित करने की है.

जिस तरह सवर्ण लोग दूसरी पार्टियां छोड़छोड़ कर भाजपा में जा रहे थे और जिस तरह भाजपा में पिछड़े व दलित नेताओं की उपेक्षा हो रही थी उस से साफ था कि पार्टी का उद्देश्य तो कुछ और ही है. वह तो पेशवाई युग की वापसी चाहती है पर अपनी सीमाएं जानते हुए चुनाव जीतने मात्र के लिए किसानों, पिछड़ों, दलितों से समझौते कर रही है. पार्टी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में केवल ब्राह्मणों व बनियों को ऊंचे स्थान दिए हैं. यदि दूसरी जातियों के इक्कादुक्का नेता ऊंचे स्थान पर हैं तो वह रामायणमहाभारत से प्रेरित लगता है कि जरूरत पड़ने पर निचलों को अवतारों के विशेष दास के रूप में स्वीकार कर लिया जाए.

जनता को अब समझ आने लगा है कि भाजपा की नीतियों में व्यापारियों तक को आजादी नहीं है जबकि ये वैश्य ही ब्राह्मण श्रेष्ठों के सब से ज्यादा अंधभक्त हैं. पार्टी ने पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी से उन पर वैसा ही हमला किया जैसा मुसलमानों और दलितों पर गौरक्षा और खापों के माध्यम से अपनी जाति के बाहर विवाह करने के नाम पर किया गया. 4 वर्षों में भाजपा की सरकार कालेधन की तो फूटी कौड़ी नहीं निकाल पाई, ऊपर से अपने मूर्खतापूर्ण फैसलों के चलते उस ने वैश्य व्यापारियों के गले में औनलाइन टैक्स कुंडली के फंदे डाल दिए हैं.

सरकार के फैसलों में एक भी फैसला ऐसा नहीं था जिस से आम किसान, कारीगर, मजदूर, गड़रिए, दूधिए, चौकीदार, राजमिस्त्री, सफाई वाले और भूखेनंगे को कोई लाभ मिले बल्कि वे तो भगवा दुपट्टा डाले नएनए रंगदारों के कहर के शिकार ही बन रहे थे. स्वाभाविक है कि गिनती में ज्यादा पर क्षमता में कम लोगों का रोष उभरेगा.

यही रोष 1965 के बाद कांग्रेस के खिलाफ उभरा था जब कम्युनिस्टों और समाजवादियों के सहारे इन वंचित लोगों ने ऊंची सवर्ण जातियों की पार्टी कांग्रेस को नकारना शुरू किया था. आज कांग्रेस अपना चरित्र बदल चुकी है क्योंकि उस के काफी नेता तो भाजपा को अपना चुके हैं. लोगों का यह गुस्सा अब तक कई पार्टियों में बंट रहा था. इस बार उत्तर प्रदेश व बिहार के नेताओं की अक्लमंदी थी कि उन्होंने वोट बंटने नहीं दिए और योगीमोदी के गढ़ पर हमला कर उसे जीत लिया.

भाजपा के पास अब विकल्प कम हैं. व्यापारी वर्ग समझ रहा है कि घंटेघडि़यालों के नाम पर उस को बेवकूफ बना कर भाजपा उन से पैसा और वोट बटोर रही है. उसे इस झटके की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

गोरखपुर व फूलपुर में पानीपत की तीसरी लड़ाई तो नहीं हुई जहां पेशवा लाखों की भीड़नुमा फौज के बावजूद हार गए थे पर यह उसी परंपरा की पहली मुठभेड़ जरूर है जिस में पेशवाई भाजपा को नुकसान हुआ है.

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एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून को कमजोर करने की कवायद

एससी/एसटी एक्ट पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर देश भर का दलित समुदाय उबल रहा है. 2 अप्रैल को भारत बंद के ऐलान के बाद दलित संगठनों द्वारा धरना, प्रदर्शन, तोड़फोड़ और हिंसा की वारदातें हुईं. पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ में रेलगाड़ियां रोकने, गाड़ियों में तोड़फोड़ की खबरें आईं. पुलिस के साथ झड़पें हुईं. मुरैना में एक व्यक्ति की मौत की हो गई और दूसरे हिस्सों में सैंकड़ों लोगों के घायल होने के समाचार हैं.

पंजाब में पहले दिन ही सरकार ने स्कूलें बंद करने की घोषणा कर दी थी और राज्य में इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी गई. पूरे पंजाब में सुरक्षा बल तैनात कर दिए थे.

भारत बंद का समर्थन कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने तो किया ही, खुद सरकार के सहयोगी दलों के दलित और पिछड़े वर्ग के जनप्रतिनिधियों पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की.

हालांकि विरोध के बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की.

मालूम हो कि दलित समुदाय के एक व्यक्ति ने महाराष्ट्र के सरकारी अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में महाजन पर अपने ऊपर आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में अपने दो जूनियर कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई पर रोक लगाने का आरोप लगाया था. याचिकाकर्ता का कहना था कि उन कर्मचारियों ने उन पर जातिसूचक टिप्पणी की थी.

इन गैर दलित अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उस के खिलाफ टिप्पणी की थी. जब मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के खिलाफ कारवाई के लिए उन के वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत मांगी तो इजाजत नहीं दी गई. बचाव पक्ष का कहना था कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इस से काम करना मुश्किल होगा.

महाजन ने एफआईआर खारिज करने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया, पर बोंबे हाई कोर्ट ने इस से इनकार कर दिया. बाद में महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी. इस पर शीर्ष कोर्ट ने उन पर एफआईआर हटाने का आदेश देते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दिया था. यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत की भी मंजूरी दे दी थी.

इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. दलित संगठनों और कई राजनीतिक दलों की ओर से केंद्र सरकार के इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की. इस के बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से कहा गया कि इस मामले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाएगी. सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की पर कोर्ट ने तुरंत सुनवाई नहीं की.

इस एक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है. ऐसे में यह छूट दी जाती है तो फिर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा. इस के अलावा सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ अपांटिंग अथौरिटी की मंजूरी को ले कर भी दलित संगठनों का कहना है कि उस में भेदभाव किया जा सकता है.

साफ है कि इस फैसले से एससी/एसटी एक्ट 1989 के प्रावधान कमजोर हो जाएंगे. अदालत के आदेश से लोगों में कानून का भय खत्म होगा और इस मामले में ज्यादा कानून का उल्लंघन हो सकता है.

अदालत का मुख्य तर्क है कि इस एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है. सवाल है कि क्या दूसरे कानूनों का दुरुपयोग नहीं हो रहा? दहेज कानून से ले कर मानहानि, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने तक अनगिनत मामलों में दुरुपयोग  होता है. अगर ऐसा है तो सभी मामलों में एक समान आदेश होने चाहिए.

यह सही है कि दलितों की इतने व्यापक स्तर पर एकजुटता 1932 के बाद पहली बार दिखाईर् दी है. संविधान ने दलितों को इन दशकों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से मजबूत किया है.

सदियों से चले आ रहे भेदभाव के खिलाफ बने कानूनों को कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं. सरकार की मंशा पर संदेह है कि अगर वह वास्तव में दलितों के साथ है तो हल्ला मचने से पहले ही क्यों नहीं उस ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात की.

जिस भेदभाव वाली मनुस्मृति की व्यवस्था के खिलाफ बराबरी का संविधान बना है, अदालत का यह फैसला मनुस्मृति की तरफ झुकता दिखता है.

शिक्षा में तो संघ की घुसपैठ हो चुकी है. अब ज्यूडिशियरी में भी संघ केलोगों या समान  विचारधारा वाले निर्णय नजर आने लगे हैं.

शिक्षा व्यवस्था में संघी विचारधारा पूरी तरह से कामयाब दिख रही है. इतिहास से ले कर सिलेबस तक मन मुताबिक बदले जा रहे हैं. अगर बराबरी की व्यवस्था के संविधान पर धर्म के भेदभाव की व्यवस्था थोपी जाती है तो न्याय कहां होगा? इस तरह के फैसले कानून को कमजोर करने की कवायद है.

एसबीआई में हुए तीन बड़े बदलाव, जानिए इसके बारे में

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस साल आम बजट पेश किया. जिसमें उन्होंने कई नये बदलाव किए हैं. वो सारे बदलाव 1 अप्रैल से लागू हो गए हैं. इसी के साथ देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक औफ इंडिया ने भी 3 नए बदलाव किए हैं. एसबीआई के इस बदलाव से 25 करोड़ खाताधारकों पर असर होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या हुए हैं नये बदलाव और कैसे आपकी जेब पर पढ़ेगा इसका असर.

SBI में मिनिमम बैलेंस चार्ज कम लगेगा

एसबीआई ने मिनिमम बैलेंस पर लगने वाले पेनेल्टी को लेकर बड़ा बदलाव किया है. बैंक ने सेविंग्‍स अकाउंट में मिनिमम बैलेंस नहीं रखने पर लगने वाली पेनल्टी को 75 फीसदी घटा दिया है. शहरों में 50 रुपये की जगह 15 रुपये. अर्धशहरी क्षेत्र में 40 रुपये की जगह 12 रुपये और गांव में 40 रुपये की जगह 10 रुपये लगेगा. यह नया नियम 1 अप्रैल से लागू कर दिया गया है. बैंक के इस फैसले से 25 करोड़ कस्‍टमर्स को फायदा मिलेगा.

पुरानी चेक बुक नहीं चलेगी

भारीतय स्टेट बैंक ने ग्राहकों को 31 मार्च तक चेक बुक बदलने को कहा था. उसने बार-बार उन खाताधारकों को इस बारे में सूचित किया है जो एसबीआई में विलय होने वाले बैंक के हैं. जैसे बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक औफ हैदराबाद , स्टेट बैंक औफ मैसूर, स्टेट बैंक औफ पटियाला, स्टेट बैंक औफ त्रावणकोर और भारतीय महिला बैंक. बैंक के इन कस्टमर्स को बार-बार सूचना दी गई थी कि वो 31 मार्च तक नई चेकबुक इश्‍यू करा लें वरना उनको समस्या झेलनी पड़ सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि 1 अप्रैल से इन पुराने चेकबुक के जरिए लेनदेन नहीं होगा.

एसबीआई में मिलेंगे इलेक्‍टोरल बौन्‍ड

अप्रैल की शुरूआत के साथ ही एसबीआई के ब्रांच में इलेक्टोरल बौन्ड दिया जा रहा है. एसबीआई को सीरिज को बेचने के लिए अधिकृत किया गया है. आप इन बौन्‍ड को 2 अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच बैंक की 11 शाखाओं से ले सकते हैं. आपको बता दें कि इन चुनावी बौन्ड की वैधता 15 दिनों की होती है.

VIDEO : फंकी पाइनएप्पल नेल आर्ट

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वीडियो : भारत आने की इतनी खुशी कि बोट पर ही भांगड़ा करने लगे क्रिस गेल

आईपीएल का रोमांच एक बार फिर शुरू होने जा रहा है. करीब दो माह तक चलने वाले आईपीएल सीजन 11 का पहला मैच 7 अप्रैल को होगा. इस सीजन में एक बार फिर से राजस्थान रौयल्स और चेन्नई सुपर किंग्स की टीम दो साल के बैन के बाद मैदान में उतर रही हैं. सभी टीमों ने आईपीएल के लिए तैयारी शुरू कर दी है.

विदेशी खिलाड़ी भी आईपीएल के लिए भारत आ रहे हैं. इसी कड़ी में वेस्टइंडीज के धुरंधर बल्लेबाज क्रिस गेल भी भारत आने वाले हैं. भारत आने और आईपीएल के लिए क्रिस गेल खासे रोमांचित हैं. हाल ही में क्रिस गेल ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह पंजाबी अवतार में भांगड़ा करते हुए नजर आ रहे हैं.

इस वीडियो में गेल समुद्र के बीच एक बोट पर पंजाबी गाने पर भांगड़ा करते हुए नजर आ रहे हैं. पीछे से एक शख्स किंग्स इलेवन पंजाब बोल रहा है. गेल ने अपने वीडियो पोस्ट के कैप्शन में लिखा, ‘क्रिस गेल इंडिया आ रहा है.’

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दरअसल, किंग्स इलेवन पंजाब से जुड़ने के बाद गेल पूरी तरह से पंजाबी रंग में रंग गए हैं. गेल के इस भांगड़ा ने उनके गंगनम डांस को भी फेल कर दिया, जिसके लिए वह जाने जाते हैं. इससे  पहले किंग्स इलेवन पंजाब ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट से गेल की तस्वीर शेयर की थी, जिसमें वह पगड़ी पहनकर सोते दिखे. जिसके कैप्शन में उन्होंने लिखा था- पंजाब आने के लिए वह पहले से ही तैयार हैं.

बता दें कि पिछले साल तक रौयल चैलेंजर्स बेंगलुरु से खेलने वाले क्रिस गेल को आईपीएल 2018 में उनकी टीम ने रिटेन नहीं किया. उनकी जगह सरफराज खान को टीम ने रिटेन किया. इसके बाद जब नीलामी की बारी आई तो भी गेल दो बार नकारे गए. नीलामी के पहले दिन और दूसरे दिन किसी ने उन पर दांव नहीं खेला. इसके बाद किंग्स इलेवन पंजाब की स्पेशल रिक्वेस्ट पर दोबारा बोली लगाई गई और पंजाब ने उन्हें उनके बेस प्राइस दो करोड़ रुपए में खरीद लिया गया. किंग्स इलेवन पंजाब के लिए बिक जाने के बाद गेल के फैंस को काफी राहत मिली. एक समय तो ऐसा लग रहा था कि इस बार गेल के बिना यह आईपीएल फीकी रहेगी.

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‘परमाणु’ को लेकर जौन अब्राहम ने दिया क्रियाज इंटरटनमेट को करारा जवाब

फिल्म ‘परमाणु’ को लेकर जौन अब्राहम की कंपनी द्वारा ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छपवाने के बाद ‘क्रियाज इंटरटनेमट’ की तरफ से जौन अब्राहम को दोषी ठहराते हुए बयानबाजी की गयी. ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ द्वारा जारी बयान के बाद अब जौन अब्राहम की कंपनी ‘जौन अब्राहम इंटरटेनमेट’’ ने अपने प्रवक्ता के माध्यम से हर पत्रकार को ईमेल द्वारा अपना बयान भिजवाया है.

इस बयान में जौन अब्राहम ने कहा है-‘‘क्रियाज इंटरटनमेट के साथ हमारे द्वारा संबंध खत्म किया जाना कानूनी तौर पर वैध व जायज है. क्रियाज इंटरटेनमेंट ने इतनी वादा खिलाफी की है, अनुबंध की शर्तें इतनी तोड़ी हैं कि फिल्म की बेहतरी के लिए हमारे पास उनसे संबंध खत्म करने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं रहा. हम यहां पर स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि हमने अपनी तरफ से फिल्म को प्रदर्शित करने के लिए सारी समस्याओं को सुलझाने के लिए क्रियाज इटरटेनमेंट से बात करने की काफी कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ.’’

बयान में आगे कहा गया है-‘‘हमने हर कदम पर अपना वादा पूरा किया और इस बात को हमने समय समय पर लिखित रूप से क्रियाज इंटरटेनमेंट को सूचित भी किया है. कदम कदम पर हम उनसे पैसा मांगते रहे, पर उन्होंने समय से कभी पैसा नहीं दिया. कई बार उन्होंने हमें गलत यूटीआर नंबर भेजा. चेक को कई बार रुकवाया गया. उनकी तरफ से पैसा इतनी देर से दिया गया कि पोस्ट प्रोडक्शन के काम में अवरोध हुआ. हमें काफी आर्थिक नुकसान हुआ. जबकि हमारी शूटिंग समय से पूरी हो गयी थी.

हमने कई बार उन्हे याद दिलाया, मगर उन्होंने कभी भी फिल्म के वितरण की योजना के बारे में नहीं बताया. वह तीसरे पक्ष के साथ पारदर्शिता नहीं रख रहे हैं. हमने अभी तक क्रियाज के साथ किसी तीसरे पक्ष के होने को लेकर कोई अनुबंध नहीं किया है, यदि कोई तीसरा पक्ष है, तो.

जौन अब्राहम इंटरटेनमेंट ने देर से पैसा मिलने के बावजूद तीन तीन बार फिल्म के प्रमोशन व प्रदर्शन की तारीखों का ऐलान किया. मगर क्रियाज इंटरटेनेमट ने हमसे बात किए बगैर, हमें सूचना दिए बगैर बाहर हमारे खिलाफ बयान बाजी की और हम पर गलत आरोप लगाए. उन्होंने हर बार फिल्म का प्रदर्शन टलने के गलत कारण बताए.

हमने जब भी क्रियाज इंटरटेनमेंट से संपर्क किया, हमसे गलत वादे ही किए गए. इस तरह उन्होंने फिल्म के लिए कठिन समय को बर्बाद किया. फिल्म इंडस्ट्री क्रियाज इंटरटेनमेंट की कार्यशैली से पूरी तरह से परिचित है. उन्होंनेग अतीत में इसी तरह से एक अन्य फिल्म के साथ किया था.

उपरोक्त हालातों के चलते अपनी फिल्म के हित में हमने ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट प्रा.लिमिटेड’ के साथ अनुबंध खत्म करने की घोषणा की है और बहुत जल्द हम फिल्म के प्रदर्शन की पूरी योजना की घोषणा करेंगे.

यदि अब भविष्य में क्रियाज इंटरटेनमेंट ने फिल्म के प्रदर्शन में विघ्न डालने, हमारे प्रोडक्शन हाउस को बदनाम करने आदि की कोशिश की, जैसा कि वह पिछली बार एक फिल्म के साथ कर चुके हैं, तो हम इनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य होंगे.

‘‘जौन अब्राहम इंटरटेनमेंट’’ के इस पूरे बयान से एक बात यह भी साफ तौर पर उभरती है कि जौन अब्राहम को पता ही नहीं है कि ‘क्रियाज इंटरटनमेट’ ने जी स्टूडियो को भी तीसरे पक्ष के रूप में इस फिल्म के साथ जोड़ा हुआ है.

‘परमाणु’ के लिए जौन अब्राहम दोषी हैं या वे खुद फंस चुके हैं..??

फिल्म ‘‘परमाणु : द स्टोरी आफ पोखरण’’ को लेकर अभिनेता व निर्माता जौन अब्राहम तथा क्रियाज इंटरटेनमेंट के बीच तलवारे खिंच चुकी हैं. दोनों ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए हैं. जौन अब्राहम ने ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छापकर क्रियाज इंटरटेनमेंट पर कई तरह के आरोप लगाते हुए खुद को फंसा हुआ और शोषित बताया है. जिस पर पलटवार करते हुए ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ की प्रेरणा अरोड़ा ने जौन अब्राहम पर आरोप लगाते हुए उन्हे ही दोषी बताते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है. यह मामला अब और अधिक बिगड़ेगा, ऐसा लग रहा है.

वास्तव में 1998 में पोखरण में हुए सफल न्यूकलियर बम टेस्ट पर जौन अब्राहम ने जब फिल्म ‘‘परमाणु : द स्टोरी आफ पोखरण’’ का निर्माण शुरू किया था, तो इस फिल्म के निर्माण में सह निर्माता के रूप में प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ को जोड़ा था. जौन अब्राहम की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘जा इंटरटेनमेंट’’ ने ‘‘क्रियाज इंटरटेनमेट’’ के साथ एक अनुबंध किया था.

फिल्म ‘‘परमाणु’’ को 8 दिसंबर 2017 को प्रदर्शित होना था. सूत्र बताते हैं कि फिल्म पूरी हो चुकी है, मगर इसका प्रदर्शन 8 दिसंबर 2017 की बजाय टालकर फरवरी 2018 और फिर 2 मार्च 2018 किया गया. 2 मार्च 2018 को ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ और अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘परी’ प्रदर्शित हुई, इसलिए ‘परमाणु’ के प्रदर्शन की तारीख 6 अप्रैल की गयी थी. मगर अब यह फिल्म 6 अप्रैल को भी प्रदर्शित नहीं होगी. अब इसे ग्यारह मई को प्रदर्शित करने की बात कही जा रही है.

Parmanu The Story of Pokhran

जब से फिल्म ‘‘परमाणु’’ के प्रदर्शन की तारीखें बदलना शुरू हुई थीं, तभी से बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हो गयी थी कि जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. पर दोनों इन अफवाहों को गलत बताते रहे. लेकिन अब जौन अब्राहम ने अपनी तरफ से पहल करते हुए ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छपवाकर ऐलान कर दिया है कि फिल्म ‘‘परमाणु’’ से अब ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ का कोई लेना देना नहीं है. अब इस फिल्म पर सारा अधिकार उनकी प्रोडक्शन कंपनी ‘जा इंटरटेनमेंट’ का है. अब उनकी कंपनी ही इस फिल्म के प्रदर्शन वगैरह को लेकर सारे निर्णय लेगी.

अपने इस नोटिस में जौन अब्राहम ने ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ पर वादा खिलाफी के कई आरोप लगाए हैं. जौन अब्राहम का आरोप है कि ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ ने फिल्म निर्माण के लिए दिया जाने वाला धन भी नहीं दिया है. दोनों के बीच रचनात्मक मतभेद काफी रहे. यहां तक दोनों के बीच इस बात पर सहमति नहीं हो पा रही है कि फिल्म के प्रदर्शन से पहले इसका प्रमोशन किस तरह से किया जाए..वगैरह वगैरह.

जौन अब्राहम की तरफ से ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छपवाए जाते ही प्रेरणा अरोड़ा आग बबूला हो उठी हैं. अब तक प्रेरणा अरोड़ा ने किसी अभिनेता के खिलाफ कोई कटु बयान नहीं दिया था. फिल्म ‘केदारनाथ’ के विवाद के वक्त भी प्रेरणा अरोड़ा की तरफ से फिल्म के कलाकारों पर कोई आरोप नहीं लगाए गए. प्रेरणा ने फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर पर ही आरोप लगाए थे. मगर इस बार प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ की तरफ से सीधे जौन अब्राहम पर हमला बोला गया है.

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क्रियाज इंटरटेनमेंट की तरफ से कहा गया है कि जौन अब्राहम उनकी कंपनी के साथ कानूनी अनुबंध में बंधे हुए हैं और वह किसी भी सूरत में फिल्म ‘परमाणु’ को ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ से अलग नहीं कर सकते.

‘‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’ कंपनी से जुड़े अधिकारी ने एक वेब साइट से बात करते हुए कहा हैं-‘‘ट्रेड पत्रिकाओं में जौन अब्राहम ने जो नोटिस छापा है, वह बेमानी है. फिल्म के साथ संयुक्त निर्माता/प्रस्तुत कर्ता सहित हमारे सारे अधिकार सुरक्षित हैं. हमने अपने सारे वादे समय से पूरे किए हैं. ‘जा इंटरटेनमेंट’ को शुरू से ही पता था कि ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ और ‘जी स्टूडियो’ फिल्म के सह निर्माता हैं. फिल्म को विदेश में वितरण के अधिकार के साथ ही सारे सेटेलाइट, डिजिटल व संगीत के अधिकार हमारे पास हैं.

‘जा इंटरटेनमेंट’ ने अब तक अपने एक भी वायदे पूरे नहीं किए. उन्होंने अब तक हमें नहीं बताया कि फिल्म पूरी हो चुकी है. इतना ही नहीं वह अवैध तरीके से बार बार फिल्म के प्रदर्शन की तारीखें बदलते जा रहे हैं. परिणामतः हमें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है और हमारी अपनी इज्जत पर भी धब्बा लगा है. फिल्म को बड़े स्तर पर प्रमोट करने के लिए हमने योजना बनायी है, उस पर भी हम काफी धन खर्च कर चुके हैं. हम उन्हे अपेक्षित पैसा दे चुके हैं, फिर भी वह हमसे धन की मांग कर रहे हैं, जो कि अनुबंध के अनुसार भी हमें उन्हें नहीं देना चाहिए. सच यह है कि ‘जा इंटरटेनमेट’ हमें अवैध तरीके से दबाने के साथ साथ हमें आर्थिक नुकसान पहुंचाती आ रही है. पर हम फिल्म की बेहतरी के लिए चुप हैं, किंतु अब उन्होंने गलत नोटिस छपवाकर और अधिक गलत कदम उठाया है.’’

जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा में से कौन कितना सच बोल रहा है, यह तो यही दोनों जानते होंगे. इनके बीच किस तरह के अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं, यह भी फिलहाल इन्हे ही पता है. मगर बौलीवुड में चर्चा हो रही है कि प्रेरणा अरोड़ा जिस तरह से फिल्मकारों के साथ पेश आ रही हैं, उसे देखते हुए हर फिल्मकार व कलाकार को उनके साथ हाथ मिलाने से पहले दस बार सोचना चाहिए.

ज्ञातब्य है कि कुछ समय पहले फिल्म ‘केदारनाथ’ को लेकर भी प्रेरणा अरोड़ा की अभिषेक कपूर के साथ अनबन हुई थी, पर अंत में अनुबंध पत्र की ही वजह से अभिषेक कपूर को प्रेरणा अरोड़ा के सामने घुटने टेकने पडे़.

अब देखना यह है कि जौन अब्राहम अैर प्रेरणा अरोड़ा के बीच फिल्म ‘‘परमाणु’’ को लेकर जो विवाद छिड़ा है, उसका परिणाम क्या सामने आता है? कौन दोषी और कौन शोषित साबित होता है? पर इस तरह के विवादों के ही चलते भारतीय सिनेमा में स्टूडियो सिस्टम पर से लोगों का विश्वास डगमगा रहा है.

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सावधान : इस ऐप के जरिए की जा रही है व्हाट्सऐप की जासूसी

स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालो में ज्यादातर लोग व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं. आज हम जो खबर लेकर आए हैं वो भारत समेत दुनिया भर में व्हाट्सऐप के करोड़ों यूजर्स के लिए जानना काफी जरूरी है. ये खबर काफी चौका देने वाली है. क्योंकि हाल ही में व्हाट्सऐप की जासूसी करने वाले ऐप का पता चला है.

एक अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक चैटवाच नाम का ऐप व्हाट्सऐप के तमाम सुरक्षा उपायों को तोड़ उसकी जासूसी करता है. इस ऐप के जरिये व्हाट्सऐप के औनलाइन या औफलाइन स्टेटस का पता लगाया जा सकता है. इस ऐप की वेबसाइट www.chatwatch.net पर जानकारी दी गई है- ”अपने दोस्तों, परिवार और कर्मचारियों की व्हाट्सऐप पर औनलाइन और औफलाइन एक्टिविटी को मानीटर करने के लिए चैटवाच का इस्तेमाल करें, तब भी जब उनका लास्ट सीन (आखिरी बार देखा गया) संकेतक छिपा हुआ हो.”

ऐप की वेबसाइट पर आगे जानकारी दी गई है- “पता लगाएं कि वे कब सोते हैं, कितनी देर सोते हैं… यहां तक की उन लोगों के चैट पैटर्न की तुलना करें जिन्हें आप जानते हैं, और हम इसकी कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए आपको उस संभावना के बारे में बताएंगे जब आप दिन के वक्त उनसे बात कर सकते हैं. हां, यह सच है, हमने इसे हकीकत बनाया है.”

अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक चैटवाच सिर्फ 24 घंटों के भीतर ही अपना काम दिखाने लगता है. अगर यह ऐप स्टोर में बना हुआ है तो भारत में इसके एंड्रायड ऐप के लिए आपको 140 रुपये कीमत चुकानी होगी. वैसे कंपनी ने ऐप मार्केट से इस ऐप को हटा दिया है. चैटवाच इसके बारे में अनभिज्ञ है. कहा जा रहा है कि एप्पल ने ऐप स्टोर से चैटवाट को निलंबित कर दिया है.

बता दें कि व्हाट्सऐप यूजर्स के लिए एक खुशखबरी भी है. व्हाट्सऐप पर एक नया फीचर जुड़ने जा रहा है. इस फीचर के जरिये एंड्रायड, आईओएस और विंडोज का डेटा आसानी से नए नंबर पर ट्रांसफर किया जा सकता है. इस फीचर का नाम है ‘चेंज नंबर.

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14वीं सदी के मैथिली कवि विद्यापति से प्रेरित भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’

14 वीं सदी में मधुबनी, बिहार में मैथिली कवि विद्यापति हुए थे, जो कि भगवान शंकर के इतने बड़े भक्त थे कि भगवान शंकर को उनके घर में अवतरित होना पड़ा था. विद्यापति की इसी कहानी से प्रेरित होकर निर्माता प्रदीप शर्मा और लेखक व निर्देशक रजनीश मिश्रा एक भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’ लेकर आ रहे हैं, जो कि छह अप्रैल को प्रदर्शित होगी.

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जी हां! फिल्म ‘डमरू’,विद्यापति की ही कहानी है. विद्यापति मधुबनी बिहार के लेखक थे, जिनकी वजह से भगवान शंकर को वहां अवतरित होना पड़ा था. विद्यापति की कहानी से प्रेरित होकर ‘डमरू’ की कहानी लिखी गयी है. इस फिल्म की कहानी का सार यही है कि यदि इंसान की ईश्वर में गहरी आस्था हो, तो उसकी मदद के लिए ईश्वर को धरती पर अवतरित होना पड़ता है.

भोजपुरी फिल्म ‘‘डमरू’’ के निर्माता प्रदीप शर्मा इससे पहले ‘डायरेक्ट इश्क’ और ‘एक तेरा साथ’ जैसी दो हिंदी फिल्में बना चुके हैं. अब भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’ बनाने की वजह पूछे जाने पर कहते हैं- ‘‘मैं एक फिल्म के प्रीमियर पर गया था, वहीं पर सुपरहिट भोजपुरी फिल्म ‘मेंहदी लगा के रखना’ के निर्देशक रजनीश मिश्रा से मुलाकात हुई थी. उसके बाद हम दोनों का एक दूसरे के आफिस आना जाना शुरू हो गया. इसी बीच कुछ लोगो ने मुझसे कहा कि मुझे भोजपुरी में भी अच्छी फिल्म बनानी चाहिए. मुझे एक पटकथा सुनायी गयी, पर वह आम भोजपुरी फिल्म थी, जिसे मैंने बनाने से इंकार कर दिया. फिर मेरे पास ‘डमरू’ की पटकथा आयी. इसे पढ़कर मुझे लगा कि यह सामाजिक संदेश देने वाली फिल्म है, इसे बनाया जाना चाहिए. यह एकदम साफ सुथरी फिल्म है.

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दूसरी आम भोजपुरी फिल्मों से अपनी फिल्म ‘डमरू’ को अलग बताते हुए प्रदीप शर्मा कहते हैं- ‘‘एकदम अलग तरह की फिल्म है. पिछले दस पंद्रह वर्षो में ‘डमरू’ जैसी भोजपुरी में एक भी फिल्म नहीं बनी. इन दिनों जिस तरह की भोजपुरी फिल्में बन रही हैं, उन्हें देखने के लिए बुजुर्गो के अलावा महिलाएं सिनेमाघरों में नहीं जाती हैं. मगर हमारी फिल्म ‘डमरू’ देखने के लिए पूरा परिवार एक साथ जाएगा. मेरा पूरा ध्यान इस बात पर रहा कि ऐसी साफ सुथरी सामाजिक फिल्म बने, जिसे देखने के लिए बच्चे, बूढ़े व घर की हर महिला एक साथ सिनेमा घर में जाए.’’

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विद्यापति की कहानी से प्रेरणा लेकर ‘डमरू’ बनाने के मायने स्पष्ट करने के साथ ही अपनी फिल्म ‘डमरू’ की कहानी के बारे में प्रदीप शर्मा कहते हैं- ‘‘विद्यापति की जो कहानी है, उस पर हमारी फिल्म नहीं है, बल्कि उनकी कहानी से प्रेरित है हमारी फिल्म ‘डमरू’. यह कहानी है गांव के एक सीधे सादे लड़के की है, जो कि बचपन से ही भगवान शंकर का भक्त है. उसके पिता नही है. गांव के मंदिर का पुजारी व उसकी मां ने ही उसे पाला पोसा है. पंडित हमेशा कहते हैं कि संसार में जो कुछ अच्छा या बुरा होता है, वह भगवान शंकर ही करते हैं. वह बचपन से ही शंकर की भक्ति में इस कदर लीन रहता है कि वह हर छोटी बड़ी समस्या आने पर भगवान शंकर से बात करता है. जब वह बड़ा होता है और इलाके के गुंडे व असामाजिक तत्व जब उसके पीछे पड़ जाते हैं, तब भगवान शंकर को अवतरित होकर उसके घर में रहना पड़ता है. पर यह बात यह बालक नहीं जानता. उसे लगता है कि यह जो मेरे घर में रहने आए हैं, इनके पास कोई काम काज नहीं है. तो वह उनसे गोबर उठवाने से लेकर झाड़ू तक लगवाने लगता है कि इसे काम सिखाया जाए. इसी में पूरी कौमेडी है. हिंदू मुस्लिम धर्म को लेकर बात की है. हमने दिखाया है कि हर धर्म एक ही है.’’

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फिल्म ‘डमरू’ में भ्रष्टाचार, सामाजिक विद्वेष, लालच व कुरीतियों से लड़कर ऊपर आने की कथा है. फिल्म में समाज में फैले हुए अंधविश्वास को भी व्यंग व हास्य के साथ पेश किया गया है. हमारी फिल्म हर इंसान को अंधविश्वासों से ऊपर उठने का संदेश देती है.

बनारस, सारनाथ व चौबेपुर में फिल्मायी गयी फिल्म‘‘डमरू’’में एक भक्ति गीत, दो कव्वाली, एक भगवान शंकर पर गाना और तीन प्रेम गीत सहित कुल सात गाने हैं.

हिंदी फिल्म की तरह फिल्मायी गयी फिल्म ‘डमरू’ में मुख्य किरदार खेसारीलाल यादव का है. उनकी प्रेमिका के किरदार में याशिका कपूर तथा भगवान शंकर के किरदार में अवधेश मिश्रा है. फिल्म के अन्य कलाकार हैं- आनंद मोहन, पद्म सिंह, किरण यादव, तेज सिंह, रोहित सिंह व अन्य.

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फिल्म ‘डमरू’ के लेखक व निर्देशक रजनीश मिश्रा कहते हैं- ‘फिल्म ‘डमरू’ की कहानी का सारा ताना बाना सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार, लालच, सत्ता का दुरूपयोग आदि के इर्द गिर्द मनोरंजक तरीके से बुना गया है. हमारी फिल्म बताती है कि किस तरह सामाजिक कुरीतियों से ऊपर उठा जा सकता है. इसी के साथ हमारी फिल्म धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठने का संदेश भी देती है.’’

प्रदीप शर्मा आगे कहते हैं- ‘‘हमारी फिल्म ‘डमरू’ नारी को सबल करने की बात करती है. जब राजनेता सत्ता का दुरूपयोग करते हैं, तब किस तरह के सामाजिक दुष्प्रभाव पड़ते हैं, उसकी भी बात हमारी फिल्म करती है.’’

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‘परमाणु’ के लिए जौन अब्राहम दोषी हैं या वे खुद फंस चुके हैं..??

फिल्म ‘‘परमाणु : द स्टोरी आफ पोखरण’’ को लेकर अभिनेता व निर्माता जौन अब्राहम तथा क्रियाज इंटरटेनमेंट के बीच तलवारे खिंच चुकी हैं. दोनों ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए हैं. जौन अब्राहम ने ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छापकर क्रियाज इंटरटेनमेंट पर कई तरह के आरोप लगाते हुए खुद को फंसा हुआ और शोषित बताया है. जिस पर पलटवार करते हुए ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ की प्रेरणा अरोड़ा ने जौन अब्राहम पर आरोप लगाते हुए उन्हे ही दोषी बताते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है. यह मामला अब और अधिक बिगड़ेगा, ऐसा लग रहा है.

वास्तव में 1998 में पोखरण में हुए सफल न्यूकलियर बम टेस्ट पर जौन अब्राहम ने जब फिल्म ‘‘परमाणु : द स्टोरी आफ पोखरण’’ का निर्माण शुरू किया था, तो इस फिल्म के निर्माण में सह निर्माता के रूप में प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ को जोड़ा था. जौन अब्राहम की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘जा इंटरटेनमेंट’’ ने ‘‘क्रियाज इंटरटेनमेट’’ के साथ एक अनुबंध किया था.

फिल्म ‘‘परमाणु’’ को 8 दिसंबर 2017 को प्रदर्शित होना था. सूत्र बताते हैं कि फिल्म पूरी हो चुकी है, मगर इसका प्रदर्शन 8 दिसंबर 2017 की बजाय टालकर फरवरी 2018 और फिर 2 मार्च 2018 किया गया. 2 मार्च 2018 को ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ और अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘परी’ प्रदर्शित हुई, इसलिए ‘परमाणु’ के प्रदर्शन की तारीख 6 अप्रैल की गयी थी. मगर अब यह फिल्म 6 अप्रैल को भी प्रदर्शित नहीं होगी. अब इसे ग्यारह मई को प्रदर्शित करने की बात कही जा रही है.

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जब से फिल्म ‘‘परमाणु’’ के प्रदर्शन की तारीखें बदलना शुरू हुई थीं, तभी से बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हो गयी थी कि जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. पर दोनों इन अफवाहों को गलत बताते रहे. लेकिन अब जौन अब्राहम ने अपनी तरफ से पहल करते हुए ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छपवाकर ऐलान कर दिया है कि फिल्म ‘‘परमाणु’’ से अब ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ का कोई लेना देना नहीं है. अब इस फिल्म पर सारा अधिकार उनकी प्रोडक्शन कंपनी ‘जा इंटरटेनमेंट’ का है. अब उनकी कंपनी ही इस फिल्म के प्रदर्शन वगैरह को लेकर सारे निर्णय लेगी.

अपने इस नोटिस में जौन अब्राहम ने ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ पर वादा खिलाफी के कई आरोप लगाए हैं. जौन अब्राहम का आरोप है कि ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ ने फिल्म निर्माण के लिए दिया जाने वाला धन भी नहीं दिया है. दोनों के बीच रचनात्मक मतभेद काफी रहे. यहां तक दोनों के बीच इस बात पर सहमति नहीं हो पा रही है कि फिल्म के प्रदर्शन से पहले इसका प्रमोशन किस तरह से किया जाए..वगैरह वगैरह.

जौन अब्राहम की तरफ से ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छपवाए जाते ही प्रेरणा अरोड़ा आग बबूला हो उठी हैं. अब तक प्रेरणा अरोड़ा ने किसी अभिनेता के खिलाफ कोई कटु बयान नहीं दिया था. फिल्म ‘केदारनाथ’ के विवाद के वक्त भी प्रेरणा अरोड़ा की तरफ से फिल्म के कलाकारों पर कोई आरोप नहीं लगाए गए. प्रेरणा ने फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर पर ही आरोप लगाए थे. मगर इस बार प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ की तरफ से सीधे जौन अब्राहम पर हमला बोला गया है.

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क्रियाज इंटरटेनमेंट की तरफ से कहा गया है कि जौन अब्राहम उनकी कंपनी के साथ कानूनी अनुबंध में बंधे हुए हैं और वह किसी भी सूरत में फिल्म ‘परमाणु’ को ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ से अलग नहीं कर सकते.

‘‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’ कंपनी से जुड़े अधिकारी ने एक वेब साइट से बात करते हुए कहा हैं-‘‘ट्रेड पत्रिकाओं में जौन अब्राहम ने जो नोटिस छापा है, वह बेमानी है. फिल्म के साथ संयुक्त निर्माता/प्रस्तुत कर्ता सहित हमारे सारे अधिकार सुरक्षित हैं. हमने अपने सारे वादे समय से पूरे किए हैं. ‘जा इंटरटेनमेंट’ को शुरू से ही पता था कि ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ और ‘जी स्टूडियो’ फिल्म के सह निर्माता हैं. फिल्म को विदेश में वितरण के अधिकार के साथ ही सारे सेटेलाइट, डिजिटल व संगीत के अधिकार हमारे पास हैं.

‘जा इंटरटेनमेंट’ ने अब तक अपने एक भी वायदे पूरे नहीं किए. उन्होंने अब तक हमें नहीं बताया कि फिल्म पूरी हो चुकी है. इतना ही नहीं वह अवैध तरीके से बार बार फिल्म के प्रदर्शन की तारीखें बदलते जा रहे हैं. परिणामतः हमें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है और हमारी अपनी इज्जत पर भी धब्बा लगा है. फिल्म को बड़े स्तर पर प्रमोट करने के लिए हमने योजना बनायी है, उस पर भी हम काफी धन खर्च कर चुके हैं. हम उन्हे अपेक्षित पैसा दे चुके हैं, फिर भी वह हमसे धन की मांग कर रहे हैं, जो कि अनुबंध के अनुसार भी हमें उन्हें नहीं देना चाहिए. सच यह है कि ‘जा इंटरटेनमेट’ हमें अवैध तरीके से दबाने के साथ साथ हमें आर्थिक नुकसान पहुंचाती आ रही है. पर हम फिल्म की बेहतरी के लिए चुप हैं, किंतु अब उन्होंने गलत नोटिस छपवाकर और अधिक गलत कदम उठाया है.’’

जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा में से कौन कितना सच बोल रहा है, यह तो यही दोनों जानते होंगे. इनके बीच किस तरह के अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं, यह भी फिलहाल इन्हे ही पता है. मगर बौलीवुड में चर्चा हो रही है कि प्रेरणा अरोड़ा जिस तरह से फिल्मकारों के साथ पेश आ रही हैं, उसे देखते हुए हर फिल्मकार व कलाकार को उनके साथ हाथ मिलाने से पहले दस बार सोचना चाहिए.

ज्ञातब्य है कि कुछ समय पहले फिल्म ‘केदारनाथ’ को लेकर भी प्रेरणा अरोड़ा की अभिषेक कपूर के साथ अनबन हुई थी, पर अंत में अनुबंध पत्र की ही वजह से अभिषेक कपूर को प्रेरणा अरोड़ा के सामने घुटने टेकने पडे़.

अब देखना यह है कि जौन अब्राहम अैर प्रेरणा अरोड़ा के बीच फिल्म ‘‘परमाणु’’ को लेकर जो विवाद छिड़ा है, उसका परिणाम क्या सामने आता है? कौन दोषी और कौन शोषित साबित होता है? पर इस तरह के विवादों के ही चलते भारतीय सिनेमा में स्टूडियो सिस्टम पर से लोगों का विश्वास डगमगा रहा है.

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