स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों में से ज्यादातर लोगों के पास व्हाट्सऐप है. वह व्हाट्सऐप के जरिए चैट, कौल, और वीडियो कौल करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि व्हाट्सऐप पर किए जाने वाले वीडियो कौल को रिकौर्ड भी किया जा सकता है. जी हां, यह सच है आप अपने वीडियो कौल को रिकौर्ड भी कर सकते हैं. आइये आज हम आपको इस खबर में बताते हैं कि कैसे आप अपने व्हाट्सऐप वीडियो कौल को रिकौर्ड कर सकते हैं.
कैसे करें व्हाट्सऐप वीडियो कौल को रिकौर्ड
व्हाट्सऐप में वीडियो कौल को रिकौर्ड करने के लिए आपको व्हाट्सऐप पर दो विकल्प दिखाई देंगे. पहला या तो आपके फोन में पहले से ही स्क्रीन रिकौर्ड की सुविधा हो या फिर आपके फोन में स्क्रीन रिकौर्डर ऐप हो.
अगर आपके फोन में पहले से स्क्रीन रिकौर्डर नहीं है तो सबसे पहले गूगल प्ले-स्टोर से स्क्रीन रिकौर्डर ऐप (Screen Recorder) ऐप डाउनलोड करें. इसके बाद अब स्क्रीन रिकौर्डिंग ऐप को ओपन करें. अब आपके फोन की डिस्प्ले पर रिकौर्डिंग का विकल्प दिखाई देने लगेगा.
अब व्हाट्सऐप पर वीडियो रिकौर्डिंग के आइकन पर टैप करें. बस आपके व्हाट्सऐप वीडियो कौलिंग स्टार्ट हो गई है. कौल खत्म होने के बाद आपको रिकौर्डिंग बंद करने का विकल्प मिलेगा और रिकौर्ड किया गया वीडियो आपकी गैलरी में आ जाएगा.
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भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली का नाम दुनिया के टौप बल्लेबाजों में गिना जाता है. कप्तानी में भी कोहली का रिकौर्ड अभी तक बेहद शानदार रहा है. लेकिन जब बात आईपीएल की आती है तो कहानी पूरी तरह से बदल जाती है. बता दें कि आईपीएल में पिछले कई सीजन से कोहली आरसीबी की कप्तानी कर रहे हैं, लेकिन अभी तक अपनी कप्तानी में कोहली आरसीबी को आईपीएल खिताब जिताने में नाकामयाब रहे हैं. इस सीजन में भी आरसीबी का प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरुप नहीं चल रहा है. आंकड़ों की भी बात करें तो विराट कोहली आईपीएल के सबसे खराब कप्तानों में शुमार हैं.
सबसे कम जीत का प्रतिशत
आरसीबी के कप्तान विराट कोहली का आईपीएल में जीत प्रतिशत सिर्फ 46.59 प्रतिशत है, जोकि सभी आईपीएल कप्तानों में सबसे खराब है. कोहली ने अपनी कप्तानी में कुल 88 मैच खेले हैं, जिनमें से उन्हें सिर्फ 41 मैचों में ही जीत मिली है, जबकि 44 में हार का सामना करना पड़ा है. वहीं 3 मैच बेनतीजा रहे हैं.
वहीं अपनी कप्तानी का लोहा मनवाने वाले पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान और आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स की कप्तानी संभालने वाले एमएस धोनी इस मामले में सबसे टौप पर हैं. धोनी का कप्तान के तौर पर जीत प्रतिशत 59.06 है और उनकी टीम ने 2 बार आईपीएल खिताब अपने नाम किया है. धोनी के बाद मुंबई इंडियंस की कप्तानी संभालने वाले महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर का नाम आता है, जिनका जीत प्रतिशत 58.82 है. तीसरे नंबर पर मुंबई इंडियंस के मौजूदा कप्तान रोहित शर्मा का नाम आता है, जिन्होंने अपनी कप्तानी में 58.02 प्रतिशत मैच जीते हैं. रोहित मुंबई को 3 बार आईपीएल विजेता बना चुके हैं.
राजस्थान रायल्स के पूर्व कप्तान शेन वौर्न इस लिस्ट में चौथे स्थान पर हैं, जिनका जीत प्रतिशत 56.36 है. दिल्ली डेयरडेविल्स के मौजूदा कप्तान गौतम गंभीर का ये सीजन बहुत अच्छा नहीं जा रहा है, लेकिन इससे पहले गंभीर अपनी कप्तानी में कोलकाता नाइटराईडर्स की टीम को 2 बार आईपीएल खिताब जिता चुके हैं और उनका जीत प्रतिशत 55.04 है.
छठे नंबर पर सहवाग हैं, जिनका कप्तान के तौर पर जीत प्रतिशत 54.72 है. एडम गिलक्रिस्ट भी इस लिस्ट में शामिल हैं, जिन्होंने डेक्कन चार्जर्स की कप्तानी करते हुए 47.30 प्रतिशत मैचों में जीत दर्ज की थी. इन सबके बाद विराट कोहली का नाम आता है. ऐसे में इन आंकड़ों के आधार पर तो कोहली कप्तानी के मामले में सबसे फिसड्डी नजर आ रहे हैं.
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कुछ साल से बौलीवुड से लेकर हौलीवुड तक हर जगह ‘कास्टिंग काउच’ पर खुलकर चर्चा हो रही है, हालांकि अब भी कई लोग ऐसे हैं जो इस बहस का हिस्सा ही नहीं बनना चाहते. बता दें कि इस मुद्दें पर बहस की शुरुवात तब हुई जब हौलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वेनस्टीन पर यौन शोषण के आरोपों लगे. उनपर आरोप लगने के बाद सोशल मीडिया पर चलाए गए #MeToo कैंपेन से लोगों ने अपने कड़वे अनुभव शेयर करना शुरू किया. फिर धीरे धीरें #MeToo कैंपेन के साथ कई लोग जुड़े. फिर क्या था यह मामला हमें और गहराई में ले गया. पर्दे के पीछे छिपे एक काले और भयावह सच से लोग वाकिफ होने लगे. इस कैंपेन ने न सिर्फ लोगों को इस मामले पर बात करने की हिम्मत दी बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया.
वहीं दूसरी तरफ जहां हौलीवुड में मशहूर एक्टर-एक्ट्रेस ने खुलकर इस मुद्दे पर बोलना शुरू किया तो वहीं बौलीवुड में इस पर दो अलग-अलग राय देखने को मिली. बौलीवुड की कई हस्तियों ने कास्टिंग काउच के मुद्दे को उठाया तो किसी ने इससे इनकार किया. हाल ही में फिल्म ‘संजू’ के टीजर लौन्च के बाद रणबीर कपूर ने कहा कि उन्हें कभी इसका सामना नहीं करने को मिला. वहीं तेलुगू अभिनेत्री श्री रेड्डी द्वारा कास्टिंग काउच के खिलाफ टापलेस होकर प्रदर्शन और सरोज खान का इस मुद्दे पर विवादित बयान से तो सभी परिचित हैं. तेलुगू अभिनेत्री श्री रेड्डी ने कहा था कि सरोज मैम को लेकर मेरे मन में जो सम्मान था वो अब नहीं रहा है. उनकी बातें तो इस ओर इशारा करती हैं कि हमें खुद को प्रड्यूसर के हवाले कर देना चाहिए.
इन सबके बीच कास्टिंग काउच पर एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा से बात हुई तो उन्होंने इस मुद्दे पर अपना बोल्ड स्टेटमेंट दिया. ‘अभी तोह पार्टी शुरु हुई है’ के सेट पर ऋचा ने एक हिन्दी चैनल से बातचीत के दौरान कहा कि रणबीर ने क्या कहा मुझे इसके बारे में नहीं पता है. उन्होंने हंसते हुए कहा रणबीर ने इसका सामना नहीं किया होगा. हो सकता है कि उसे इसका अनुभव ही नहीं रहा हो. यह तो स्पष्ट है, कि फिल्म इंडस्ट्री के भीतर के लोगों के अनुभव और बाहर से आए लोगों के अनुभव अलग-अलग रहे हो. लेकिन जहां तक मुझे लगता है, यह एक ट्रेंडिग टौपिक बन गया है इसलिए प्रेस भी श्री रेड्डी और सरोज खान जैसे कुछ अन्य लोगों को जोड़कर इसे कवर करने की कोशिश में लगी है. लेकिन मैं ये भी कहूंगी कि कास्टिंग काउच निहायती घटिया काम है. यह वास्तव में घृणित अभ्यास है.
ऋचा ने आगे कहते हैं कि #MeToo कैंपेन से मुझे सच में बेहद उम्मीद थी कि भारत में भी बहुत से लोग होंगे जो बाहर आएंगे और इस पर बिना शर्म के खुलकर बात करेंगे. मैंने यह भी सोचा था कि जैसे ही मामले सामने आना शुरू होंगे लोगों पर कार्रवाई भी होगी, क्योंकि इस सच को कोई नहीं झुठला सकता कि यहां महिलाएं लंबे समय से पीड़ित हैं. हां इस मसले पर मेरी दिलचस्पी बौलीवुड के परिप्रेक्ष्य से नहीं है, क्योंकि बौलीवुड भी एक बड़ा उद्योग क्षेत्र बन चुका है. मैंने धरातल की हकीकत जानने के लिए बलात्कार और तस्करी के पीड़ितों के साथ भी काम किया है, यही नहीं मैंने उनके लिए एक फंडिंग भी शुरू की. लेकिन अब मुझे लगता है कि यहां कुछ भी नहीं होने वाला है. परिस्थितियां बदलने वाली नहीं है, यह वैसी ही रहेंगी जैसी पहले थी. देश में फिल्म जगत के कालाकारों की रक्षा करने के लिए तो कोई व्यवस्था ही नहीं है. मुझे अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है इससे. ऋचा कहती हैं भारत में ऐसे मामलों को राजनीति करने के लिए रखा जाता है. चुनाव के माहौल में इसे सांप्रदायिक और राजनीतिक विषय बना देना बिल्कुल गलत है. अगर कोई भी कानून बलात्कारियों का बचाव कर रहा है, तो ये मेरे लिए घृणा का विषय है.
आपको बता दें कि जल्द ही ऋचा चड्ढा ‘अभि तोह पार्टी शुरु हुई है’ फिल्म में नजर आएंगी. इसमें उनके सात प्रतीक बाबर, श्रीया पिलगोंकर, उमेश शुक्ला, दिव्य दत्ता, पंकज त्रिपाठी, मनोज पहवा, पवन मल्होत्रा, विनय पाठक भी हैं. सोनी पिक्चर्स नेटवर्क प्रोडक्शंस, स्नेहा रजानी और अनुभाव सिन्हा द्वारा निर्मित 2018 में ही रिलीज होने की संभावना है.
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पर्यावरण संरक्षण, बिजली व पानी बचाओ, शिक्षा आदि की बात करने वाली बाल फिल्म ‘‘हमारी पलटन’’ कमजोर पटकथा व निर्देशन के चलते उतनी बेहतरीन फिल्म नहीं बन पाई, जितनी बन सकती थी. फिल्म ‘‘हमारी पलटन’’ की शुरुआत होती है बड़ी संख्या में हरे भरे पेड़ों के काटे जाने व पृथ्वी पर पानी के अभाव में सूखा पड़ने के दृश्यों के साथ. फिर कुछ वर्ष पहले बारिश के मौसम में उत्तराखंड में हुइ तबाही के टीवी समाचार के साथ फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है. एक शिक्षिका नंदिता गांव के बच्चों को इकट्ठा कर उन्हें पढ़ाती हैं. वह समाज सेविका हैं. जबकि मास्टरजी (टौम आल्टर) के नाम से मशहूर उनके पति भी नंदिता के बच्चों के लिए स्कूल की किताबें व नोटबुक आदि उपलब्ध कराते रहते हैं.
एक दिन कुछ असामाजिक तत्व नंदिता की हत्या कर देते हैं. उसके बाद से मास्टर जी अपनी दत्तक बेटी भावना (प्रगति मंगला) के साथ समाज सेवा के कार्य को आगे बढ़ाते हैं. वह हर दिन साइकल पर घूमते हुए बड़ी बड़ी इमारतों में रहने वाले अमीरों के बच्चों को पानी व बिजली बचाने की सीख देते रहते हैं. मास्टर जी अपनी पत्नी के जन्मदिन पर हर साल अलग अलग कालोनियों में पेड़ पौधे बच्चों के हाथों से लगवाते हुए उन्हें समझाते हैं कि पेड़ों के होने से कितने फायदे हैं. पेड़ों की वजह से हम इंसान जिंदा हैं. पड़ोसी सोनपुर गांव के किसान हीरा के बेटे चैतन्य (मास्टर हेमंत) को अच्छा क्रिकेट खेलते व पढ़ाई में अच्छा होने पर वह शहर के एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश दिला देते हैं.
पहले दिन कक्षा में चैतन्य का सभी मजाक उड़ाते हैं. पर दो दिन बाद जब मास्टर जी की कालोनी के अमीर माता पिता के बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे, उसी वक्त मास्टर जी के घर पर दूध पहुंचाकर वापस लौट रहे चैतन्य को गेंद लगती है. चैतन्य वह गेंद उठाकर बल्लेबाजी कर रहे कबीर को फेंकता है और कबीर आउट हो जाता है. अब सभी बच्चे आपस में बाते करते हैं कि वह अब तक हर मैच हारते आए हैं. क्योंकि उनकी टीम/पलटन में कोई अच्छा गेंदबाज नही है. कबीर दूसरे दिन स्कूल में चैतन्य से दोस्ती कर लेता है. फिर तय होता है कि कबीर व उसके बाकी दोस्त चैतन्य को अंग्रेजी पढ़ाएंगे तथा वह उनके साथ क्रिकेट खेलेगा.
कुछ समय बाद मंत्री (मनोज बख्शी) की मदद से एक ठेकेदार रास बिहारी (रजनीश) पूरे सोनपुर गांव व उसके आस पास के जंगल के पेड़ों को कटवाकर, नदी पर बांध बनवा कर फैक्टरी खड़ा करना चाहता है. इसके चलते दूसरे किसानों के साथ ही चैतन्य के परिवार को भी सोनपुर गांव छोड़ने का आदेश सुना दिया जाता है. अब चैतन्य का स्कूल जाना बंद हो जाता है. मास्टरजी कहते हैं कि वह ऐसा नहीं होने देंगे. जंगल कटने नहीं देंगे. मास्टर जी, कबीर व उसके दूसरे साथियों को लेकर चैतन्य के गांव में उसका घर दिखाकर सारी बात बताते हैं. इस पर स्कूल के प्रिंसिपल सभी छात्रों के माता पिता को बुलाकर बैठक कर बताते हैं कि मास्टर जी उनके बेटों को भड़का रहे हैं. इधर मास्टरजी पीआईएल दाखिल करने की तैयारी करते हैं. ठेकेदार रास बिहारी उनकी हत्या कर देता है. इससे सारे बच्चे भावना के साथ मिलकर अदालत में पीआईएल दाखिल करने के साथ ही जंगल के पेड़ों को बचाने के लिए ‘चिपको आंदोलन’ की तर्ज पर आंदोलन करते हैं.
टीवी पर खबर आती है, मुख्यमंत्री, मंत्री को तलब करते हैं..उस दिन पेड़ का कटना रुक जाता है. मंत्री जी टीवी पर घोषणा करते हैं कि वह सोनपुर गांव जाकर आंदोलनकारी बच्चों से सवाल जवाब करेंगे कि वह विकास में रोड़ा क्यों डाल रहे हैं. इधर मंत्री जी व बच्चों के बीच सवाल जवाब हो रहे हैं, तभी अदालत से पीआईएल स्वीकार होने और जंगल को काटने व सोनपुर गांव के निवासियों को वहां से हटाने पर रोक का आदेश आ जाता है.
लेखक व निर्देशक जैनेंद्र जिज्ञासु ने बाल फिल्म ‘‘हमारी पलटन’’ में बहुत ही अच्छे मुद्दे उठाए हैं, मगर कमजोर पटकथा व धीमी गति के चलते फिल्म अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाती. बाल फिल्म के हिसाब से मास्टर जी का बच्चों को सीख देने का अच्छा तरीका अपनाया गया है, संवाद भी ठीक हैं. फिल्म की पटकथा पर मेहनत की गयी होती, तो फिल्म काफी बेहतर बन सकती थी.
जहां तक अभिनय का सवाल है तो अभिनय में टौम आल्टर का कोई सानी नहीं रहा. उन्होंने मास्टर जी के किरदार को जीवंतता प्रदान की है. बाल कलाकार हेमंत के साथ दूसरे बच्चों ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है. फिल्म का गीत संगीत भी कमजोर है.
लगभग दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘हमारी पलटन’’ का निर्माण ‘अलख मीडिया’ ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक जैनेंद्र जिज्ञासु हैं. पटकथा, संवाद व गीत लेखक जैनेंद्र जिज्ञासु, एनीमेशन कर्ता मोहम्मद इरफान, संगीतकार मालती माथुर, वी हेमानंदन व अनुराग सिंह तथा कैमरामैन सतिंदर व विजय चैहाण हैं. फिल्म में बाल कलाकारों के साथ टौम आल्टर और मनोज बख्शी की अहम भूमिकाएं हैं.
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‘एक देश एक कर’ की तर्ज पर एक जुलाई 2017 से लागू माल एवं सेवा कर (GST) से सरकार ने 2017-18 के दौरान 7.41 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं. वित्त मंत्रालय की तरफ से शुक्रवार को इसकी जानकारी दी गई. गौरतलब है कि केंद्र और राज्यों के क्रमश: उत्पाद शुल्क एवं वैट सहित बहुत से कर जीएसटी में समा गए हैं. वित्त मंत्रालय की तरफ से ट्वीट में कहा गया ‘जीएसटी से 2017-18 की अगस्त-मार्च अवधि में कुल कर संग्रह 7.19 लाख करोड़ रुपये रहा. जुलाई 2017 के कर संग्रह को शामिल करने पर 2017-18 में कुल जीएसटी संग्रह अस्थायी तौर पर 7.41 लाख करोड़ रुपये रहा.’
इसमें केंद्रीय जीएसटी (GST) से प्राप्त 1.19 लाख करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी (SGST) से मिले 1.72 लाख करोड़ रुपये, एकीकृत जीएसटी (IGST) के 3.66 लाख करोड़ रुपये (इसमें आयात से 1.73 लाख करोड़ रुपये भी शामिल) और उपकर से प्राप्त 62,021 करोड़ रुपये (इसमें आयात पर उपकर के 5,702 करोड़ रुपये) शामिल हैं. अगस्त – मार्च अवधि के दौरान औसत मासिक जीएसटी संग्रह 89,885 करोड़ रुपये रहा. 2017-18 के आठ महीनों में राज्यों को क्षतिपूर्ति के रूप में कुल 41,147 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
राजस्व में गिरावट की भरपाई केंद्र करेगा
जीएसटी कानून के तहत नई कर व्यवस्था के कारण पांच साल तक राज्यों के राजस्व में गिरावट की भरपाई केंद्र करेगी. इसके लिए विलासिता और अहितकर उपभोक्ता वस्तुओं पर विशेष उपकर लागू किया गया है. राजस्व हानि की गणना के लिए 2015-16 की कर आय को आधार बनाते हुए उसमें सालना औसत 14 प्रतिशत की वृद्धि को सामान्य संग्रह माना गया है. मंत्रालय के मुताबिक, पिछले 8 महीने में प्रत्येक राज्य के राजस्व में कम घटी है और यह औसतन 17 प्रतिशत रही है.
वेतनभोगियों पर पड़ सकती है जीएसटी की मार
इससे पहले खबर आई थी कि जीएसटी की मार अब वेतनभोगियों पर भी पड़ सकती है. कंपनियों ने जीएसटी की मार से बचने के लिए कर्मचारियों के वेतन पैकेज में बदलाव करने की तैयारी शुरू कर दी है, ताकि कंपनियों पर जीएसटी का असर न पड़े. विशेषज्ञों के मुताबिक, वेतन में मिलने वाले किराए, मेडिकल बीमा, ट्रांसपोर्टेशन और फोन किराए के तहत मिलने वाला लाभ अब जीएसटी के दायरे में आ जाएगा.
टैक्स विशेषज्ञों ने कंपनियों को सलाह दी है कि कंपनियों का एचआर डिपार्टमेंट सैलरी की इन मदों की फिर से समीक्षा करे. अथौरिटी ऑऔ एडवांस रूलिंग (एएआर) के हालिया निर्णयों के बाद कंपनियां इस मामले को लेकर सजग हो गई हैं. बता दें कि एएआर ने हाल ही में फैसला दिया था कि कंपनियों द्वारा कैंटीन चार्जेस के नाम पर कर्मचारी के वेतन से कटौती जीएसटी के दायरे में होगी. इस फैसले के बाद जानकारों का मानना है कि कंपनियों द्वारा कर्मचारियों की दी जा रही कई सुविधाएं जिसके ऐवज में सैलरी में कटौती की जाती है को जीएसटी के दायरे में कर दिया जाएगा.
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अगले साल यानी 2019 में इंग्लैंड में होने वर्ल्डकप के कार्यक्रम का ऐलान कर दिया गया है. 30 मई से 14 जुलाई के बीच खेले जाने वाले इस टूर्नामेंट में पहला मुकाबला 30 मई को इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के बीच होगा. ये मैच ओवल में खेला जाएगा. भारत अपने अभियान की शुरुआत 5 जून से करेगा. उसका पहला मुकाबला अफ्रीका के साथ साउथंप्टन के हेंपशायर में होगा.
टीम इंडिया 2019 वर्ल्डकप में पांच जून को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत करेगी और अपने नौ राउंड रौबिन लीग मैचों को छह अलग-अलग स्थलों पर खेलेगी. भारतीय टीम साउथेम्प्टन (दक्षिण अफ्रीका, अफगानिस्तान), बर्मिंघम (इंग्लैंड और बांग्लादेश) और मैनचेस्टर (पाकिस्तान और वेस्टइंडीज) में दो-दो मैच जबकि ओवल (औस्ट्रेलिया), नौटिंघम (न्यूजीलैंड) और लीड्स (श्रीलंका) में एक-एक मैच खेलेगी.
टीम इंडिया के वर्ल्डकप में इन टीमों से होंगे मुकाबले
5 जून : दक्षिण अफ्रीका (साउथेम्प्टन)
9 जून : औस्ट्रेलिया ( ओवल )
13 जून : न्यूजीलैंड ( नौटिंघम )
16 जून : पाकिस्तान (मैनचेस्टर)
22 जून : अफगानिस्तान (साउथेम्प्टन)
27 जून : वेस्टइंडीज (मैनचेस्टर)
30 जून : इंग्लैंड (बर्मिंघम)
दो जुलाई : बांग्लादेश (बर्मिंघम)
छह जुलाई : श्रीलंका (लीड्स)
नौ जुलाई : पहला सेमीफाइनल (मैनचेस्टर)
11 जुलाई : दूसरा सेमीफाइनल (बर्मिंघम)
14 जुलाई : फाइनल (लौर्ड्स)
इससे पहले 1999 में इंग्लैंड की धरती पर वर्ल्डकप हुआ था. इसमें टीम इंडिया का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा था. वह प्लेऔफ में तक नहीं पहुंच पाई थी. इस वर्ल्डकप को औस्ट्रेलिया ने जीता था.
वर्ल्डकप 2019 यूनाईटेड किंगडम में 30 मई से 14 जुलाई के बीच खेला जाएगा और भारत अपने अभियान की शुरूआत पांच जून को करेगा, क्योंकि बीसीसीआई को लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुरूप आईपीएल और अंतरराष्ट्रीय मैच के बीच 15 दिन का अनिवार्य अंतर रखना होगा.
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सोशल मीडिया का सब से गलत इस्तेमाल हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा मुसलिम भारतीयों को मांबहन की गालियां देने और बारबार उन्हें पाकिस्तान जाने को कहने में हो रहा है. उम्मीद थी कि इंटरनैट का इस्तेमाल दुनिया को एक करने में किया जाएगा और दूरदराज के लोग जिन्हें जानते भी नहीं हैं, उन के दोस्त बनेंगे, एकदूसरे के रहनसहन के बारे में जानेंगे और सीमाएं मिटा देंगे.
हो उलट रहा है, भारत में ही नहीं, दुनिया भर के देशों में इंटरनैट का इस्तेमाल घृणा फैलाने और गालियां देने में ज्यादा हो रहा है, प्यार और भाईचारा फैलाने में कम. इंटरनैट के जरिए शहरों, राज्यों व देशों की सीमाएं लांघते हुए गालियों को इस बुरी तरह दुनिया भर में फैलाया जा रहा है कि बहुत से लोग रोमन में लिखी भाषाई गालियों को समझ नहीं पाते. मुसलिमों के लिए भारत में इस बुरी तरह मां को ले कर कहे अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है कि फेसबुक ट्रांसलेटर ने एक हिंदी गाली का अनुवाद ‘मुसलिम’ कर दिया. यह उन्होंने ठीक कर लिया पर मूल सवाल है कि ऐसा होता ही क्यों है? इंटरनैट ने एकदूसरे के प्रति अपने पूर्वाग्रह जताने का काम क्यों किया? उस ने ज्ञान कम क्यों बांटा, बकवास क्यों बांटी? अभी हिलेरी क्लिंटन के डोनल्ड ट्रंप के बारे में कहे गए कुछ बयानों पर पाठकों के कमैंट पढ़ने को मिले. अमेरिकी शिक्षित रिपब्लिकन भी डोनल्ड ट्रंप की कमियों को स्वीकार करने की जगह बिल क्लिंटन के बारे में अपशब्द इस्तेमाल करने लगे. बहस कुछ हो रही हो पर जल्दी गालीगलौज चालू हो जाती है. भारत में पहले गौरक्षक आंदोलन छेड़ा गया ताकि गाय का व्यापार करने वाले मुसलमान व मरी गायों का चमड़ा उतारने वाले दलितों को धमकाया जा सके और ऊंचे हिंदुओं को मंच दिया जा सके. तुरंत इंटरनैट गौ सेवा के संदेशों से भर गया. जिन्होंने कभी गाय का दूध नहीं पीया हो और जो गाय को छोड़ कर बहुत से जानवरों का मांस खाते हों, उन्हें अचानक अहिंसा के गुण याद आ गए और सोशल मीडिया को रणक्षेत्र बना डाला.
अब यही बात तिहरे तलाक पर हो रही है. जिन लोगों ने अपने यहां दहेज, कुंडली, परदेस, औरतों के बलात्कार को नहीं छोड़ा वे उन औरतों के लिए हमदर्दी जताने लगे जिन्होंने तिहरे तलाक को कभी सुना भी नहीं, बेबात में मुसलिम औरतों के हमदर्द कुकुरमुत्तों की तरह सोशल मीडिया की पथरीली जमीन पर उग आए. सोशल मीडिया अब दुनिया के लिए आफत बन रहा है. अब जरूरी होने लगा है कि इस में प्राइवेसी समाप्त हो. जिस ने जो कहना है कहे पर पूरी तरह अपना परिचय देते हुए. हर ईमेल के साथ किसी साइट पर उस व्यक्ति, फर्म, संस्था का पूरा पता, नाम, फोन नंबर हो. यह सैंसरशिप नहीं पर सड़क पर चलते हुए गाली देने वाले के चेहरे से मुखौटा उतरवाना है. सोशल मीडिया का उपयोग अपनों के लिए हो. फेसबुक या व्हाट्सऐप के जरिए अनजानों को दोस्ती के लिए न उकसाएं. यह घृणा का व्यापार बंद हो.
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‘हाय, मेरा नाम रानी है. मैं 19 साल की हूं और इंदौर में अकेली रहती हूं. क्या आप मेरे साथ सैक्स करना चाहेंगे? मेरा मोबाइल नंबर है 975519××××…’
हालांकि यह सब अंगरेजी में लिखा था, लेकिन मध्य प्रदेश के शाजापुर में रहने वाले 26 साला जितेंद्र रघुवंशी (बदला नाम) को पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि वह 12वीं जमात पास था. नजदीक के एक गांव से शाजापुर आ कर बस गए इस नौजवान ने एक साल पहले स्मार्टफोन खरीदा था. मालदार किसान परिवार का होने की वजह से जितेंद्र को पैसों की कमी नहीं थी, इसलिए अपनी खादबीज की दुकान पर बैठाबैठा वह कालगर्ल ढूंढ़ने लगा और ढूंढ़ा तो हैरान रह गया. उसे ऐसा लगा, मानो इस दुनिया में ऐसी लड़कियों के अलावा कुछ है ही नहीं, जो कुछ हजार रुपयों के एवज में अपना जिस्म बेचती हैं और बाकायदा फोटो समेत इश्तिहार भी करती हैं. उन्हें अपना फोन नंबर देने में कोई हिचक नहीं होती और किसी का डर भी नहीं लगता.
आखिरकार हिम्मत कर के जितेंद्र ने दिए गए नंबर पर फोन किया, तो दूसरी तरफ से उम्मीद के मुताबिक एक लड़की की ही आवाज आई.
‘हैलो, कहिए?’ वह लड़की बोली, तो जितेंद्र सकपका गया और हड़बड़ाहट में बोला, ‘‘मैं ने इंटरनैट पर देखा, तो सोचा…’’
‘सोचा क्या, आ ही जाइए. रानी आप की खिदमत में हाजिर है. 2 घंटे के 2 हजार और पूरी रात के 20 हजार रुपए चार्ज है. बताइए, कब और कहां मिलूं? आप जैसे चाहें मेरे साथ सैक्स कर सकते हैं. मैं बहुत ऐक्सपर्ट हूं.’
जितेंद्र अचानक मिली इस दावत से घबरा सा उठा और बोला, ‘‘मैं कल फोन करूंगा…’’
‘ओके स्वीटहार्ट, जब मरजी हो बता देना. रानी हमेशा तुम्हारी खिदमत में हाजिर मिलेगी. जैसे चाहोगे वैसे सैक्स करेगी और जन्नत का मजा देगी.’ फोन काट कर जितेंद्र गटागट 3 गिलास पानी पी गया और कुछ देर बाद रानी की मीठी बातों के जाल से निकला, तो उसे समझ आया कि कहीं कोई फर्जीवाड़ा या खतरा नहीं है, बस एक बार बात कर के इंदौर जाने की देर है, फिर तो मजे ही मजे हैं. जितेंद्र ने जैसेतैसे 3 दिन काटे, फिर उसी नंबर पर फोन किया, तो उसी लड़की की आवाज आई, ‘बड़ी देर कर दी जानेमन, बोलो…’
‘‘कहां मिलोगी?’’ जितेंद्र ने पूछा.
‘जहां तुम कहो…’ वहां से मधुर आवाज आई.
‘‘कल दोपहर 12 बजे मिलो, सरवटे बसस्टैंड पर.’’
‘ओके, मैं… कौफी हाउस में बैठी मिलूंगी, गुलाबी रंग के सूट में रहूंगी.’ अगले दिन जितेंद्र इंदौर जा पहुंचा और रानी के बताए कौफी हाउस में पहुंचा, तो देख कर हैरान रह गया कि सचमुच कोने वाली सीट पर गुलाबी सूट पहने एक खूबसूरत सी लड़की कोल्ड कौफी की चुसकियां ले रही थी. जितेंद्र उस से मुखातिब हो पाता, उस के पहले ही उस ने उंगलियों से इशारा कर उसे बुलाया. जाहिर है कि वह अपने ग्राहक को पहचान गई थी. जितेंद्र उस के सामने जा कर बैठ गया और बातचीत करने लगा.
रानी 2 घंटे के 2 हजार रुपए ही लेगी. जगह उस की रहेगी, पर कौफी हाउस में खिलानेपिलाने, आटोरिकशा वगैरह के सारे खर्च वह खुद उठाएगा.
‘‘ठीक है,’’ जितेंद्र उस के उभारों पर से नजर हटाते हुए थूक निगल कर बोला.
‘‘तभी इतने नर्वस हो रहे हो. चलो, रास्ते में बीयर या ह्विस्की कुछ ले लेते हैं. दोनों साथ बैठ कर पीएंगे, तो ज्यादा मजा आएगा और तुम्हारी यह ख्वाहिश भी पूरी हो जाएगी,’’ रानी बोली.
ऐसा हुआ भी. बसस्टैंड से आटोरिकशा कर के जितेंद्र रानी के साथ वहां से तकरीबन 16 किलोमीटर दूर एक बड़े अपार्टमैंट्स के उस के फ्लैट पर पहुंचा. वहां कोई नहीं था. अंदर दाखिल होते ही रानी ने दरवाजा बंद किया और बोली, ‘‘चलो, हो जाओ शुरू…’’
‘‘पर बीयर तो ले ही नहीं पाए,’’ जितेंद्र ने कहा.
‘‘सब है यहां, बस पैसे तुम देना…’’ फ्रिज से बीयर की बोतलें और गिलास निकालते हुए रानी ने शोख आवाज में जवाब दिया. 2 घंटे बाद जितेंद्र उसे पैसे दे कर उस फ्लैट से बाहर निकला, तो उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. वाकई रानी ने उसे मजा दिया था. हालांकि शराब के एक हजार रुपए अलग से रखवा लिए थे. जितेंद्र को इस का कोई मलाल नहीं था. 2 घंटे के दौरान किसी ने कोई दखल नहीं दिया था. रानी ने अपना फोन बंद कर लिया था और जितेंद्र का भी बंद करा दिया था, लेकिन जाते समय उस ने जितेंद्र को अपना पर्सनल नंबर दे दिया था कि फिर कभी मूड हो तो इस नंबर पर ही फोन करना. जितेंद्र ने अलगअलग फोन नंबरों के घालमेल से ज्यादा सिर नहीं खपाया और इस के बाद 2 बार और इंदौर गया, तो रानी से उस के पर्सनल नंबर पर बात कर सीधे उस के फ्लैट पर जा पहुंचा और जम कर मौजमस्ती की.
स्मार्टफोन ने बदला चलन
अब तकरीबन हर हाथ में स्मार्टफोन है, जिस में हर तरह की जानकारियां बहुत सस्ते में मिल जाती हैं. कालगर्ल की जानकारी भी इन में से एक है. स्मार्टफोन आने से पहले देह का कारोबार पुराने तरीके से चलता था. इंदौर की ही मिसाल लें, तो वहां का बंबई बाजार कभी देह धंधे के लिए जाना जाता था. वहां कोठे थे. जितेंद्र की तरह लोग आते थे, लेकिन मनपसंद कालगर्ल ढूंढ़ने में उन्हें परेशानी होती थी. 2-4 कोठों पर धक्के खाने के बाद या तो मनपसंद कालगर्ल ग्राहक को मिल जाती थी या थकहार कर ग्राहक ही किसी को अपनी पसंद बना लेता था. लेकिन बंबई बाजार जैसी बदनाम जगहों का माहौल लोगों को रास नहीं आता था. शराब की बदबू होती थी. खिड़की और दरवाजों से झांकती लड़कियां भद्दे इशारे कर के ग्राहकों को बुलाती थीं. कई दफा तो हाथ पकड़ कर अंदर खींच लेती थीं. उन की ज्यादतियों से बचने के लिए ग्राहक दलाल का सहारा लेते थे. स्मार्टफोन ने देह धंधे के इस चलन में भारी बदलाव कर दिए हैं. अब दलाल भी कालगर्लों की तरह हाईफाई हो गए हैं. बंबई बाजार टुकड़ेटुकड़े हो कर पूरे इंदौर में चारों तरफ फैल गया है. हर चौथे अपार्टमैंट्स में एक रानी है. जब किसी जितेंद्र का फोन आता है, तो वह मेकअप कर के तैयार हो जाती है. जानपहचान वाला न हो, तो जगह तय कर लेने भी पहुंच जाती है. लेकिन दलाल किसी को नजर नहीं आता.
पहली दफा जितेंद्र ने जिस नंबर पर फोन किया था, वह एजेंट का था. इस फोन नंबर पर शिफ्ट में लड़कियां बैठती हैं और ग्राहक से सैक्सी बातें करती हैं. ग्राहक का नंबर ले कर वे अपने पास रखी लिस्ट या फोन बुक में से किसी एक कालगर्ल का नंबर देख कर उसे बताती है. वह फ्री होती है, तो बातचीत का ब्योरा ग्राहक को दे दिया जाता है और तगड़ा कमीशन ले लिया जाता है. यह ऐस्कौर्ट सर्विस देश के हर बड़े शहर में मौजूद है. भोपाल में ऐस्कौर्ट सर्विस से जुड़े एक मुलाजिम ने बताया कि स्मार्टफोन वालों के लिए उन की एजेंसी इंटरनैट पर तमाम जानकारियां डालती है. वे कई नामों से वैबसाइट बनाते और चलाते हैं. उन्हें देख कर ग्राहक बातचीत करते हैं, तो अपने आसपास की किसी कालगर्ल को उस का नंबर दे देते हैं.
उस मुलाजिम के मुताबिक, अभी उन की लिस्ट में तकरीबन 2 हजार लड़कियों के नाम हैं, जिन में होस्टल में रह रही छात्राएं भी शामिल हैं. कुछ घरेलू औरतें भी हैं, लेकिन ज्यादातर पेशेवर कालगर्ल हैं. उस दलाल के मुताबिक, आजकल लड़कियों के पास खुद की जगह रहती है. इस में खतरा कम रहता है, क्योंकि वे रिहायशी इलाकों में रहती हैं. लेकिन पड़ोसी हल्ला मचाने लगें और पुलिस वालों की नजर उन पर पड़ जाए, तो वे अपना ठिकाना बदल लेती हैं. उस दलाल की मानें, तो ज्यादातर लड़कियां ग्राहक से सीधे बात करने लगती हैं, तो नुकसान दलाल का होता है, क्योंकि उन्हें जमाने में दलाल का बड़ा हाथ रहता है. शुरू में दलाल उन्हें प्यार से ऊंचनीच समझाते हैं. अगर वे नहीं मानतीं, तो एकाध दफा गुंडे या पुलिस वालों के हाथों फंसवा देते हैं. उस के बाद वे कभी झंझट नहीं करती हैं. इस से हर बार दलाल को कमीशन मिलता रहता है. हालफिलहाल तो भोपाल जैसे शहरों में भी ऐस्कौर्ट सर्विस वाले 5-6 लाख रुपए हर महीना कमा रहे हैं, जो 8-10 मुलाजिमों के बीच बंट जाता है. सभी को काम और ओहदे के मुताबिक तनख्वाह मिलती है.
कंप्यूटर पर साइट्स बनाने और लोड करने वाले इंजीनियर को 15-20 हजार रुपए, स्मार्टफोन पर बात करने वाली कालगर्ल को 10-12 हजार और कारोबार को बढ़ाने वाली मुलाजिमों को 20-25 हजार रुपए महीना तनख्वाह मिलती है. सब से बड़ा हिस्सा बौस की जेब में तकरीबन 3 लाख रुपए जाता है.
घाटे में पुलिस वाले
स्मार्टफोन पर देह धंधे के चलन से बड़ा नुकसान पुलिस वालों का हुआ है. अब तो इन के मुखबिर भी नहीं बता पाते हैं कि कौन कहां धंधा कर रहा है. अब तो कालगर्लें भी कहने लगी हैं कि वे बालिग हैं, किसी के साथ हमबिस्तरी करें, यह मरजी की बात है. लिहाजा, पुलिस वाले कसमसा कर रह जाते हैं. जबरदस्ती करें, तो बेवजह हल्ला मचता है. गिरोह बना कर इंटरनैट पर इस कारोबार को बढ़ावा दे रही ऐस्कौर्ट एजेंसियां भी पुलिस की पकड़ और पहुंच से दूर हैं. वे भी अपना पताठिकाना और फोन नंबर बदलती रहती हैं. सीधेसीधे कहा जाए, तो अब हो यह रहा है कि जितेंद्र जैसे ग्राहक स्मार्टफोन पर ऐसी एजेंसी को ढूंढ़ते हैं और बगैर किसी सिरदर्द के अपनी ख्वाहिश और जरूरत पूरी कर लेते हैं. हालांकि इस से उन का खर्च बढ़ा है, लेकिन इज्जत बनी रहती है और हिफाजत की भी गारंटी रहती है. अब कालगर्लों के पास ग्राहक के नामपते और फोन नंबर वाली डायरी नहीं होती. स्मार्टफोन की फोन बुक होती है, जिस में पासवर्ड डाल दो, तो कोई दूसरा इस को नहीं खोल सकता.
ग्राहक भी फायदे में हैं. जितेंद्र जैसे ग्राहकों को ब्लू फिल्में, सीधे कालगर्ल से चैटिंग और अब वीडियो चैटिंग की सहूलियत, जब भी जोश दिलाती है, तो वे भागते हैं किसी रानी की तरफ, जो उन्हें संतुष्ट करने में माहिर होती है.
मर्द भी मिलते हैं
स्मार्टफोन अब औरतें भी खूब इस्तेमाल करती हैं. लिहाजा, ‘पुरुष वेश्याओं’ की भी मांग बढ़ रही है. ऐस्कौर्ट सर्विस के कर्ताधर्ता अपनी इंटरनैट साइट पर बिकाऊ मर्दों की जानकारी और फोन नंबर भी डालने लगे हैं, जिस से सैक्स की जरूरतमंद औरतें फोन कर के अपनी जिस्मानी भूख मिटा सकती हैं.
ऐस्कौर्ट सर्विस के एक दलाल के मुताबिक, मर्दों के दाम औरतों से ज्यादा होते हैं. वजह, उन की मांग ऊंचे तबकों की औरतों में ज्यादा है. उम्रदराज कुंआरियां, विधवाएं और पति द्वारा छोड़ दी गई औरतों के अलावा पति से नाखुश औरतें भी ऐसे मर्दों की सर्विस लेती हैं. उन्हें 5 हजार रुपए आसानी से मिल जाते हैं. अगर औरत को उन के मुताबिक खुश कर दें, तो 5 के 50 हजार रुपए भी झटक लेते हैं.
सोशल साइटों पर यह धंधा खूब फलफूल रहा है. विदिशा, मध्य प्रदेश के नजदीक गंजबासौदा कसबे का एक बेरोजगार नौजवान एस. कुमार बताता है कि उस ने फर्जी नाम से फेसबुक पर अकाउंट खोला और यह मैसेज डालना शुरू कर दिया कि जो भाभियां, आंटियां अपने पतियों से संतुष्ट नहीं होतीं, वे उस से बात कर सकती हैं. यह नौजवान फेसबुक में चुनचुन कर उम्रदराज औरतों को फ्रैंड रिक्वैस्ट मैसेज कर अपना फोन नंबर दे देता है.
देखते ही देखते उस की कई फ्रैंड बन गईं और इनबौक्स में जा कर सैक्सी बातें करने लगीं. कुछ ने उसे बुलाया भी. इस नौजवान ने हालांकि अभी 50-60 हजार रुपए ही इस धंधे से कमाए हैं, लेकिन वह स्मार्टफोन का शुक्रगुजार रहता है कि इस की वजह से उसे पैसा मिल रहा है और मजा भी.
अपना एक किस्सा सुनाते हुए वह कहता है कि गुना की एक सरकारी स्कूल की टीचर ने उस से दोस्ती की और बताया कि उस का पति ढीला है. अगर तुम गुना आ कर सैक्स करो, तो मैं आनेजाने का खर्च और 2 हजार रुपए दूंगी. वह नौजवान वहां गया और उसे संतुष्ट कर आया.
ब्लू फिल्मों का खजाना
स्मार्टफोन का इस्तेमाल देह धंधे से ज्यादा ब्लू फिल्में और अश्लील साइटें देखने में हो रहा है. ‘अंतरवासना’ इस में सब से ज्यादा देखी और पढ़ी जाने वाली साइट है. इस साइट पर सैक्सी कहानियां होती हैं, जिन की मस्तराम छाप नीलीपीली किताबें 30 रुपए से सौ रुपए तक में बिका करती थीं, पर ‘अंतरवासना’ की एक और खूबी यह है कि रोज 2-3 कहानियां अपलोड होती हैं. यह साइट दावा करती है कि कहानियां पाठकों की खुद की लिखी होती हैं. इसी में हमबिस्तरी वाले वीडियो भी भरे पड़े हैं. आज से तकरीबन 15 साल पहले तक सिनेमाघर वाले पहले शो में दक्षिण भारत की फिल्में दिखाते थे, तो उन में 15-20 मिनट का एक टुकड़ा ब्लू फिल्म का भी जोड़ देते थे, जिस पर खूब हल्ला मचता था. अकसर आबकारी महकमा छापा मार कर दर्शकों की नाक में दम कर देता था और सिनेमा मालिक को ऐसी फिल्में चलाने पर भारीभरकम घूस देनी पड़ती थी.
अब तो ‘सविता भाभी डौट कौम’ जैसी दर्जनों साइटें ये नजारे आसानी से दिखा रही हैं, वह भी सिर्फ 250 रुपए महीने में. गांवदेहातों में इन साइटों की मांग तेजी से बढ़ रही है. यहां के लोग मनपसंद गोरी देशीविदेशी कालगर्ल को देख कर सैक्स की अपनी जिस्मानी भूख मिटा रहे हैं. मिल, तेलुगु, मराठी, गुजराती, कन्नड़ वगैरह भाषाओं में भी ऐसी फिल्मों की डबिंग की जाती है.
VIDEO : प्री वेडिंग फोटोशूट मेकअप
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ब्रिटेन में साल 2009 में सेना के जवानों की पत्नियों ने घायल और बीमार सेना वालों की खातिर एक चैरिटी कलैंडर में बिना कपड़ों के पोज दे कर सभी को चौंका दिया था.‘द गैरिन गर्ल्स’ नामक उस कलैंडर में सेना वालों की पत्नियों ने ब्लैक ऐंड ह्वाइट तसवीरों में ऐसे फोटो खिंचवाए थे. फोटोग्राफर ने उन से कोई मेहनताना नहीं लिया था. कलैंडर की कीमत 10 पाउंड रखी गई थी. 19 साल से 40 साल की उन औरतों को मौडलिंग की इतनी समझ नहीं थी, फिर भी उन्हें यह फोटो शूट कराने में कोई झिझक महसूस नहीं हुई थी.
फ्रांस की कर्लाबनी अपने बौयफ्रैंड और न्यूड फोटो को ले कर हमेशा सुर्खियों में रही हैं. कर्लाबनी साल 2009 में तब पूरी दुनिया में चर्चित हुई थीं, जब उन को एक न्यूड फोटो की नीलामी की खबर मीडिया द्वारा फैली थी. नीलाम किए जाने वाले फोटो में वे बिना कपड़े पहने एक बिस्तर पर लेटी हुई थीं. यह फोटो मार्च, 1993 में एक अमेरिकी फोटोग्राफर पौमेला हैनसन ने खींचा था. एक रिएलिटी शो के दौरान बेहद खूबसूरत और बिंदास मौडल हैदी क्लूम ने न्यूड हो कर सब को चौंका दिया था. यह बात जून, 2011 की है, जब हैदी क्लूम 19 साल की थीं और तब प्रोजैक्ट ‘रनवे’ नाम के एक शो में वे न केवल काम कर रही थीं, बल्कि होस्ट की भूमिका में भी थीं. हैदी क्लूम इसी शो के दौरान न्यूड हुई थीं. वैसे भी न्यूड पोज देना हैदी क्लूम के लिए कोई पहली घटना नहीं थी. वे इस से पहले कई बार कई चर्चित पत्रिकाओं के लिए अपने न्यूड फोटो खिंचवा चुकी हैं.
जानेमाने टैनिस स्टार आंद्रे अगासी ने जनवरी, 2011 में चैरिटी के लिए हो रही नीलामी में सर्वाधिक बोली लगाने वाले खरीदार को अपनी पत्नी स्टेफी ग्राफ का न्यूड फोटो दिखाने का ऐलान कर सनसनी फैला दी थी. आंद्रे अगासी ने नीलामी में 4 हजार डौलर से ज्यादा की बोली लगाने वाले खरीदार को स्टेफी ग्राफ, जो खुद बेहद खूबसूरत और मशहूर लौन टैनिस स्टार रह चुकी हैं, का न्यूड फोटो दिखाने का वादा किया था. आंद्रे अगासी ने अपने वादे पर कायम रहते हुए अपने मोबाइल फोन पर कथित न्यूड फोटो दिखाया. लेकिन तब यह साफ नहीं हो पाया था कि आंद्रे अगासी ने क्या सचमुच बोली लगाने वाले शख्स को स्टेफी ग्राफ का न्यूड फोटो दिखाया था या फिर वह न्यूड फोटो किसी और का था.
भारत की मौडल पूनम पांडे भी अपने न्यूड फोटो को ले कर समयसमय पर सुर्खियों में रहती आई हैं. क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत की जीत पर कपड़े उतारने की बात कह कर पूनम पांडे पहली बार चर्चा में आई थीं. अपने वादे को पूरा करते हुए उन्होंने बाथरूम में नहाते हुए एक फोटो वैबसाइट पर पोस्ट कर दिया था. साल 2011 में इस फोटो को ले कर वे खासा चर्चित रही थीं. पूनम पांडे ने साल 2012 में ट्विटर पर एक और फोटो पोस्ट किया. इस फोटो में वे बिना बिकिनी की दिखाई दे रही थीं. उन्होंने बंगलादेश के खिलाफ खेले गए क्रिकेट मैच में भारतीय टीम को बधाई देते हुए एक हौट फोटो ट्वीट किया था और तब इसे भारतीय टीम की अपनी स्टाइल में दिया गिफ्ट बताया था. भारत और पाकिस्तान के बीच 19 मार्च, 2016 को खेले गए क्रिकेट मैच में भारतीय टीम की शानदार जीत की खुशी में शाहिद अफरीदी की गर्लफ्रैंड होने का दावा करने वाली इंडियन मौडल अर्शी खान ने न्यूड हो कर अपना वादा पूरा किया था.
अर्शी खान ने कहा था कि मैच भारत के पक्ष में होगा, तो वे इस खुशी में न्यूड हो कर फाटो शूट कराएंगी. कहा जाता है कि अर्शी खान ने कथित तौर पर न्यूड हो कर फोटो शूट कराया और टीम इंडिया को जीत की सौगात दी. वैसे, कैटरीना मिग्लोरिनी ने जो फैसला लिया, वह बेहद चौंकाने वाला था. ब्राजील की इस 20 साला छात्रा ने साल 2012 में अपनी वर्जिनिटी की नीलामी औनलाइन कर सब को हैरानी में डाल दिया था. इस छात्रा ने अपनी वर्जिनिटी की कीमत 7 लाख, 80 हजार डौलर यानी 4 करोड़ रुपए लगाई थी. कैटरीना मिग्लोरिनी के इस ऐलान के बाद खरीदारों की लंबी लाइन लग गई थी. जापान के नात्सू नामक शख्स ने सब से ज्यादा बोली लगाई थी. कैटरीना मिग्लोरिनी ने अपनी वर्जिनिटी को बेचने से मिले पैसे से गरीबों के लिए घर बनाने की बात कही थी. यह भी कहा था कि एक बार किसी के साथ पैसे ले कर सैक्स करने से कोई लड़की कालगर्ल नहीं बन जाती.
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* हाल ही में राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के एक गांव किराड़ के एक काली मंदिर में राम सिंह नाम के आदमी ने अपनी 4 महीने की बेटी की बलि देने की कोशिश की. हालांकि मंदिर ट्रस्ट के एक मुलाजिम ने ऐन मौके पर मासूम बच्ची को उस जालिम बाप के चंगुल से छुड़ा लिया.
* उदयपुर जिले के गांव निमाना से 5 किलोमीटर दूर रामदेव की पहाड़ी पर तंत्रमंत्र के चक्कर में 6 साल के बच्चे जितेश की बलि चढ़ा दी गई.
* सिरोही जिले के रतनाड़ा गांव में दकियानूसी लोगों की भीड़ ने निचले तबके की एक 45 साला औरत को डायन होने के शक में नंगा कर के जलील किया. ये तो महज चंद बानगियां हैं. सचाई यह है कि इस तरह की दिल दहला देने वाली घटनाएं आएदिन देश के किसी न किसी कोने में होती रहती हैं. कभी किसी औरत को डायन होने के शक में मार दिया जाता है, तो किसी को नंगा कर के पूरे गांव के गलीमहल्लों में घुमाया जाता है. ढोंगीपाखंडी बाबाओं व तांत्रिकों की काली करतूतें तो आएदिन मीडिया में भी छाई रहती हैं. बीमारी, पारिवारिक कलह व बच्चा न होने से निराश औरतों के बीच ये तांत्रिक अपने तंत्रमंत्र का मायाजाल कुछ इस तरह से बुनते हैं कि वे उन के झांसे में आसानी से आ कर अपनी इज्जत, दौलत व जिंदगी तक गंवा बैठती हैं. राजस्थान के आदिवासी इलाके डूंगरपुर में पिछले 10 साल के दौरान 48 औरतों की जिंदगी डायन बता कर छीन ली गई. इस के अलावा 76 औरतों को दूसरे तरीकों से सताया गया.
राजस्थान में ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व ओडिशा जैसे राज्यों में भी मर्दों को ओझा और औरतों को डायन बता कर मार डालने की घटनाएं भी दिन ब दिन बढ़ रही हैं. 21वीं सदी का नारा, तकनीकी उड़ान का दावा, चांद और मंगल ग्रह समेत अंतरिक्ष पर फतेह के बीच डायन का वजूद भी सारे दावों व नारों की पोल खोल कर रख देता है. इस बारे में प्रोफैसर अजय कुमार कहते हैं, ‘‘अनपढ़ लोग अंधविश्वास के जाल से बाहर नहीं निकल सकते. जो इलाके पढ़ाईलिखाई के मामले में पिछड़े हुए हैं, वहीं अंधविश्वास व पोंगापंथ की जड़ें ज्यादा गहरी हैं.’’
गांव में किसी बच्चे या जवान शख्स की मौत होने पर गांव वाले मानते हैं कि किसी डायन ने अपने काले जादू से उसे मार डाला और जिस किसी औरत पर शक होता है, उसे मारापीटा जाता है. इतना ही नहीं, लाश को जिंदा करने के लिए कहा जाता है. बेचारी वह औरत चिल्लाती, रोती, गिड़गिड़ाती रहती है, पर कोई उसे बचाने नहीं आता.इस मसले पर सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश बडोलिया कहते हैं, ‘‘डायन होने के आरोप झेलती औरत को जबरन गंदगी खिलाना, उस के साथ बलात्कार करना, नंगा कर के पूरे गांव में घुमाना जैसी शर्मनाक घटनाएं खुलेआम हो रही हैं. इस के बावजूद ऐसे लोगों पर पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती है, क्योंकि ऐसी हरकत करने वाले ज्यादातर दबंग लोग होते हैं, जिन की मोटी गरदन तक पुलिस वालों का पहुंचना नामुमकिन है.’’
पिछले दिनों राजस्थान विधानसभा में निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल ने यह सवाल उठाया था कि क्या सरकार ने यह पता लगाने की कोशिश की है कि पिछले 2 साल के भाजपा सरकार के राज में डायन के नाम पर कितनी औरतों की हत्याएं की गई हैं? इस के जवाब में तिलकधारी हठीले गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने बताया कि सरकार ने ऐसा कोई सर्वे नहीं कराया है. अलबत्ता, राज्य अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के पास मौजूद सूचना के मुताबिक, साल 2015 के दौरान प्रदेश में जादूटोने की वजह से 126 औरतों की हत्याएं हुई हैं. डूंगरपुर जिले के एक गांव संग्रामपुरा में 6 साल के बच्चे जितेश की बलि देने वाली घटना कई सवाल खड़े करती है. जितेश की हत्या करने वाले 16-17 साल की उम्र के किशोर थे. हत्या के पहले सिर का मुंडन व दूसरे कर्मकांड किए गए थे. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिम है कि कम उम्र के किशोर एक मासूम की बलि चढ़ा कर आखिर क्या हासिल करना चाहते थे और कम उम्र के इन किशोरों ने यह सब कहां से सीखा?
उदयपुर के रहने वाले रामेश्वर प्रजापत की बीवी सुनीता अकसर पेट के दर्द से परेशान रहती थी. एक दिन सुनीता ने एक साधु को अपनी तकलीफ बताई. साधु ने उसे खाने के लिए चुटकीभर भभूत दी. भभूत खाते ही सुनीता की हालत बिगड़ने लगी. आननफानन उसे अस्पताल में भरती कराया गया, जहां उस की मौत हो गई. बीकानेर के पुरानी बस्ती इलाके में गरीबी और बीमारी से तंग मनभरी देवी के घर 2 पंडे पहुंचे और उन्होंने बताया, ‘घर के भीतर जमीन में खजाना छिपा है, लेकिन उसे निकालने से पहले जरूरी पूजा करानी होगी और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक यह बात किसी को नहीं बताई जाए.’
मनभरी देवी ने ऐसा ही किया. 5 हजार रुपए खर्च कर के उस ने बताई गई सामग्री मंगाई और 21 सौ रुपए पंडों को दिए. हवन के दौरान निकले धुएं से मनभरी के दोनों बच्चे बेहोश हो गए. उधर पंडे सारा सामान ले कर फरार हो गए. पाखंडी पंडेपुजारी व तांत्रिक दावा करते हैं कि बलि देने से जादुई ताकत हासिल की जा सकती है. इस के बारे में हिंदू धर्मग्रंथों में भी लिखा गया है. किसी जमाने में राजस्थान के करौली, अलवर, भानगढ़ व अजबगढ़ के आसपास का इलाका जादूटोने के लिए बदनाम था, पर अब वहां के हालात में सुधार आया है. दूसरी तरफ प्रदेश के आदिवासी व पिछड़े जिलों में लोगों की सोच आज भी अंधविश्वास से छूट नहीं पाई है. अमूमन अंधविश्वास की बुनियाद पर उपजी घटनाओं को ‘चमत्कार’ का जामा पहना दिया जाता है. इस बारे में डाक्टर सतीश सेहरा ने बताया, ‘‘समाज और धर्म के धंधेबाज अंधविश्वास को खाद व पानी दे कर सींचने का ही काम कर रहे हैं. वे धर्म की आड़ ले कर किसी औरत को डायन बता कर मारना व बाल विवाह तक की पैरवी करते रहते हैं.’’ इन रूढि़यों, कुप्रथाओं, पाखंड, अंधविश्वास व तंत्रमंत्र के जंजाल को काटने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों को जगाने की जरूरत है. कानून को सख्ती के साथ लागू करने के साथ ही लोगों की सोच में बदलाव लाने की भी जरूरत है. जब इनसान निराशा व हताशा के गहरे अंधेरे में डूब जाता है, तो वह इन चमत्कारी नतीजों के ख्वाब देखने लगता है. इस का नाजायज फायदा उठाने के लिए हर जगह पेशेवर मतलबी लोग मौजूद रहते हैं.
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