आज के समय में कई सारी डाटा लीक की खबरें आ रही हैं, जिसके बाद आम लोग अपनी निजी जानकारी को लेकर चिंतित हैं. फेसबुक डाटा लीक विवाद के चलते फेसबुक की काफी आलोचना हुई, जिसके बाद कंपनी के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने माफी मांगी. इससे पहले भी करीब सात करोड़ क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड की जानकारियां लीक होने की खबरें आई थीं, जबकि कंपनी के आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में कोई खामी नहीं थी. इसके बावजूद डाटा लीक हुआ, डाटा लीक में शुरुआती जांच से पता चलता है कि इन सब में मूलरूप से थर्ड पार्टी का हाथ था. आपके साथ ऐसा ना हो इसके लिए इसके लिए आपको थोड़ी सावधानी बरतने की आवश्यकता है. हम आपको यहां कुछ उपाय बता रहे हैं जिनका इस्तेमाल कर आप अपने डाटा या निजी जानकारियों को लीक होने से बचा सकते हैं.
नेटवर्क लौक करना
डाटा लीक होने से बचाने के लिए सबसे पहला उपाय है कि जिस नेटवर्क का आप इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे लौक कर दीजिए. जिस प्रकार की वेबसाइट्स आप प्रयोग नहीं करते हैं, उन्हें ब्लौक कर दीजिए. जैसे-जैसे कंप्यूटर और मोबाइल टेक्नोलौजी विकसित हो रही है, डाटा लीक होने की संभावनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं.
महत्वपूर्ण डाटा की पहचान
सबसे पहले यूजर्स को व्यवसाय में इस्तेमाल हो रहे महत्वपूर्ण डाटा की पहचान करनी चाहिए. इसके लिए डाटा लास प्रिवेन्शन साफ्टवेयर (डीएलपी) का इस्तेमाल करना चाहिए. इस तरह के महत्वपूर्ण डाटा किसी भी योजना का ब्लू-प्रिंट, वित्तीय लेखा-जोखा या फिर किसी भी तरह की निजी तस्वीरें भी हो सकती हैं. डीएलपी साफ्टवेयर सुरक्षित की जाने वाली जानकारियों को वर्गीकृत कर देता है, जिसके बाद संस्था या आपको उसकी सुरक्षा के लिए एक योजना के तहत अत्यंत ही महत्वपूर्ण जानकारियों के रख-रखाव की उचित व्यवस्था करनी होती है. यह एक तरह का उत्कृष्ट उपाय है, जिसकी मदद से आप सभी महत्वपूर्ण जानकारियों को हानि पहुंचने से बचा सकते हैं.
डीएलपी साफ्टवेयर
डीएलपी साफ्टवेयर की मदद से हमें यह भी पता चल जाता है कि डाटा का किस चैनल के माध्यम से आदान-प्रदान हो रहा है. इसके अलावा खासतौर पर, फेसबुक जैसे तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर थर्ड पार्टी ऐप्स की भरमार होती है, जिनके जरिए प्रायः हमारी जानकारी लीक होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं. फेसबुक पर थर्ड पार्टी ऐप्स को एक साथ हटाने के लिए आपको फेसबुक सेटिंग्स में ऐप्स विकल्प के अंदर सभी थर्ड पार्टी ऐप्स मिल जाएंगे, जिन्हें आपने अपने फेसबुक से लिंक किया है. इन ऐप्स को आप एक साथ सेलेक्ट करके रिमूव कर सकते हैं. आप चाहें, तो इन ऐप्स की मदद से फेसबुक पर शेयर किए गए पोस्ट, फोटोज और वीडियो को रख सकते हैं या रिमूव कर सकते हैं.
इन्क्रिप्शन का उपयोग
इन्क्रिप्शन भी तीसरा और एक महत्वपूर्ण कदम है. इसलिए किसी भी निजी, गोपनीय या संवेदनशील जानकारी को इन्क्रिप्ट करना न भूलें. हां ये जरूर है कि इन्क्रिप्शन अभेद्य नहीं होता है, लेकिन ये भी है कि डाटा को सुरक्षित रखने के बेहतरीन तरीकों में से ये एक है. इन्क्रिप्शन के इस्तेमाल की वजह से चुराया गया डाटा अपठनीय और बेकार हो जाता है. नेटवर्क के विभिन्न बिंदुओं पर इन्क्रिप्शन का इस्तेमाल, डाटा के स्थानांतरण और आदान-प्रदान के दौरान होने वाले डाटा लास से आपकी जानकारियों को सुरक्षित कर देता है.
पहुंच और गतिविधियों की निगरानी
डाटा को सुरक्षित रखने के लिए अगला कदम होता है, उसकी पहुंच और गतिविधियों की निगरानी. इसमें हम अपने व्यवसाय से जुड़ी निजी जानकारियों के बारे में एक रियल-टाइम तस्वीर के बारे में पता लगा सकते हैं. इसे डाटा एक्टिविटी मानिटरिंग (डैम) कहते हैं. इसके उपयोग से अनधिकृत कार्यों का पता लगाया जा सकता है.
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एटीएम से लेन-देन करने और चेक व कार्ड्स सरीखी सेवाओं पर बैंक जल्द ही खाता धारकों से शुल्क वसूलेंगे. आयकर विभाग ने इस संबंध में देश के प्रमुख बैंकों को उन सेवाओं पर टैक्स चुकाने के लिए कहा है, जो वे अपने उपभोक्ताओं को न्यूनतम राशि रखने के दौरान मुफ्त में मुहैया कराते हैं. विभाग ने जिन बैंकों को यह आदेश दिया है, उनमें भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और कोटक महिंद्रा बैक के नाम शामिल हैं.
डायरेक्टरेट जनरल औफ गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स इंटेलिजेंस (डीजीजीएसटी) ने इस बाबत शो कौज नोटिस भी जारी किया है, जो आने वाले समय में अन्य बैंकों पर भी लागू होगा. आयकर विभाग के आदेशानुसार बैंकों पर बीते पांच सालों का टैक्स लागू होगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक, बैंक खातों में न्यूनतम राशि न रखने वाले उपभोक्ताओं से वसूली जाने वाली रकम पर भी टैक्स वसूली जाएगी. ऐसे में बैंकों के सिर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. नोटिस पाने वाले बैंक फिलहाल यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर वे टैक्स की रकम कैसे अदा करेंगे.
जानकारों का मानना है कि अगर यह टैक्स लागू किया गया तो इसका सीधा-सीधा असर बैंक उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. हालांकि, बैंक इस मामले में डीजीजीएसटी के दावे को चुनौती भी दे सकते हैं. एक अधिकारी ने बताया कि कुछ नोटिस जारी किए जा चुके हैं, जबकि कुछ अभी होने हैं. फिलहाल इन बैंकों में से किसी ने भी अभी तक ई-मेल का जवाब नहीं दिया है.
बैंकों पर तकरीबन छह हजार करोड़ रुपए के आसपास की टैक्स की देनदारी बनती है. मगर बैंकों को आशंका है कि यह रकम और भी बढ़ सकती है. ऐसे में डीजीजीएसटी बैकों की ओर से उपभोक्ताओं को मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं की जांच-पड़ताल कर रहा रही है. पीडब्ल्यूसी में इनडायरेक्ट टैक्स लीडर प्रतीक जैन ने बताया कि अगर बैकों को पिछले कुछ सालों का भी सर्विस टैक्स चुकाना पड़ा तब उपभोक्ताओं पर भी उस स्थिति की मार पड़ेगी.
फोर्ड इंडिया ने कौम्पैक्ट यूटिलिटी वाहन फ्रीस्टाइल पेश किया है. इसकी शोरूम कीमत 5.09 लाख रुपये से शुरू होती है. इसका पेट्रोल संस्करण 5.09 लाख रुपये से 6.94 लाख रुपये तक और डीजल संस्करण 6.09 लाख रुपये से 7.89 लाख रुपये तक में उपलब्ध है.
फोर्ड फ्रीस्टाइल, फोर्ड की यह नयी कार मारुति सुजुकी ब्रेजा, इग्निस, टोयोटा इटिऔस क्रौस, ह्यूंदैई i20 ऐक्टिव जैसी गाड़ियों को टक्कर देगी. फ्रीस्टाइल के पेट्रोल और डीजल मौडल एंबिएंट, ट्रैंड, टाइटेनियम और टाइटेनियम प्लस वेरिएंट्स में मिलेंगे.
फोर्ड फ्रीस्टाइल में 4 स्पोक वाले 15 इंच व्हील्स और हाई डेफिनेशन टचस्क्रीन सिस्टम दिया गया है. एसयूवी स्टायलिंग के अलावा इस वाहन में 6.5 इंच स्क्रीन वाला इंफोटेनमेंट सिस्टम भी दिया गया है जो ऐप्पल कारप्ले और एंड्रौयड औटो को सपोर्ट करता है.
कार की सेफ्टी की बात करें तो इसमें एंटीलौक ब्रेकिंग सिस्टम (ABS) के साथ ट्रैक्शन कंट्रोल और डुअल एयरबैग्स दिया गया है. फोर्ड ने अपनी इस फ्रीस्टाइल कार में नया पेट्रोल इंजन दिया है.
इस बार कंपनी ने ड्रैगन मौडल का 1.2 लीटर इंजन दिया है, जो पेट्रोल पर 19 किमी/लीटर का माइलेज देता है. वहीं, डीजल वाला इंजन 1.5 लीटर का है, जो 99 bhp पावर और 215 Nm पीक टौर्क जनरेट करता है और इसका माइलेज 24.4 किमी/लीटर होगा.
कंपनी के प्रबंध निदेशक अनुराग मेहरोत्रा ने यहां संवाददाताओं से कहा, फोर्ड ने कौम्पैक्ट यूटिलिटी वाहन की नयी श्रेणी शुरू की है. यह हमारे मौजूदा स्पोर्ट्स यूटिलिटी वाहनों (एसयूवी) इकोस्पोर्ट और एंडेवर के पोर्टफोलियो को समृद्ध करेगा.
मेहरोत्रा ने कहा कि इसे उसके साणंद संयंत्र में बनाया जायेगा और यूरोप और पश्चिम एशिया समेत मुख्य बाजारों को निर्यात किया जायेगा. फोर्ड अभी भारत से करीब 50 देशों को कारों का निर्यात करती है.
पिछले छह मैचों में से पांच गंवा चुकी दिल्ली डेयरडेविल्स नये कप्तान श्रेयस अय्यर के साथ आज कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ उतरेगी तो उसकी नजरें आईपीएल के मौजूदा सत्र में जीत की राह पर लौटने पर लगी होंगी. टूर्नामेंट में अभी तक दिल्ली के ना तो बल्लेबाज चल सके हैं और ना ही गेंदबाजी में धार नजर आई है.
अभी तक उसे एकमात्र जीत मुंबई इंडियंस के खिलाफ मिली है, जबकि बाकी 5 मैचों में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा है . लगातार हार से तंग आकर कप्तान गौतम गंभीर ने न सिर्फ कप्तानी छोड़ दी बल्कि खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए वेतन नहीं लेने का भी फैसला किया. अब उनकी जगह श्रेयस अय्यर को कमान सौंपी गई है, लिहाजा आज नए कप्तान के साथ मेजबान को भाग्य बदलने की भी उम्मीद होगी .
गंभीर का खराब फार्म दिल्ली की चिंता का सबब रहा है जो छह मैचों में 17 की खराब औसत से 85 रन ही बना सके हैं. रिषभ पंत ने छह मैचों में 227 और अय्यर ने 151 रन बनाये हैं जिसमें किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ पिछले मैच में 45 गेंद में 57 रन की पारी शामिल है लेकिन जासन रे, ग्लेन मैक्सवेल और क्रिस मौरिस जैसे विदेशी सितारों ने निराश किया.
गेंदबाजी में लियाम प्लंकेट ने पंजाब के खिलाफ मौजूदा सत्र का पहला मैच खेलते हुए तीन विकेट लिये जबकि ट्रेंट बोल्ट छह मैचों में नौ विकेट ले चुके हैं. लेग स्पिनर राहुल तेवातिया ने छह मैचों में छह विकेट लिये जबकि निजी समस्याओं से जूझ रहे तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी चार ही मैच खेल सके जिनमें तीन विकेट उनकी झोली में गिरे.
केकेआर के बल्लेबाजों के सामने दिल्ली को अपने गेंदबाजों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद होगी. दूसरी ओर केकेआर की स्पिन तिकड़ी वेस्टइंडीज के सुनील नारायण (आठ विकेट), कुलदीप यादव (छह विकेट) और पीयूष चावला (पांच विकेट) ने अभी तक बेहतरीन प्रदर्शन किया है. तेज गेंदबाजों में आस्ट्रेलिया के मिशेल जानसन प्रभावी रहे हैं हालांकि दूसरे छोर से उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिल सका.
बल्लेबाजों में कप्तान दिनेश कार्तिक ने मोर्चे से अगुवाई करते हुए छह मैचों में 194 रन बनाये जबकि क्रिस लिन 181 रन बना चुके हैं. शाहरूख खान की टीम को पिछले मैच में डकवर्थ लुईस प्रणाली के आधार पर पंजाब ने हराया हालांकि इससे पहले उसने लगातार दो मैच जीते हैं. छह मैचों में छह अंक लेकर केकेआर अभी अंकतालिका में चौथे स्थान पर है और कल जीत के साथ शीर्ष तीन में पहुंचना चाहेगी .
मध्यप्रदेश की कांग्रेसी राजनीति में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया 2 ऐसी समानान्तर रेखाएं हैं जिनके कहीं भी जाकर मिलने की संभावना कभी नहीं रही. मध्यप्रदेश की ही कांग्रेसी राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की हालत नोटबंदी के पहले के एक हजार के नोट जैसी है जिसे न तो रखने की इच्छा होती है और न ही फेंकने की, क्योंकि आज हो न हो, कल तक तो उसकी कीमत थी. इस आकर्षक नोट को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तिजोरी में संभाल कर रख लिया है और 2 नए नोट चलन में ला दिये हैं जिनका खासा मूल्य बाजार में है.
कमलनाथ अब नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रचार समिति के मुखिया हैं. इस संतुलन से हाल फिलहाल दोनों के बीच की खाई अब और नहीं बढ़ेगी. इन दोनों ही नेताओं का अपना अलग रसूख और हैसियत है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर में कमलनाथ अपनी सीट छिंदवाड़ा और सिंधिया गुना से हारे नहीं थे इससे न केवल मध्यप्रदेश में बल्कि पूरी हिन्दी पट्टी में कांग्रेस की लाज बच गई थी.
अब एक बार फिर इन दोनों को लाज बचाने की जिम्मेदारी विधिवत सौंपकर राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी के सामने एक चुनौती पेश कर दी है, वजह सिर्फ यह नहीं कि राज्य में शिवराज सिंह विरोधी लहर चल रही है बल्कि यह भी है कि इस दफा कांग्रेस दिल से एक दिखाई दे रही है.
आमतौर पर शांत रहने वाले कमलनाथ मूलरूप से कारोबारी हैं जिन्हें आपातकाल के बाद संजय गांधी पश्चिम बंगाल से लाये थे. आदिवासी बाहुल्य जिला छिंदवाड़ा उन्हें इतना रास आया कि वे यहीं के होकर रह गए और इस इलाके को गुलजार करने में कोई कसर उन्होंने नहीं छोड़ी है. संजय गांधी की मौत के बाद भी कमलनाथ ने गांधी परिवार का साथ नहीं छोड़ा और इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के बेहद भरोसेमंद और वफादार नेताओं में उनका नाम शुमार होने लगा.
कब आहिस्ता से मध्यप्रदेश की राजनीति में कमलनाथ, शुक्ला बंधुओं, अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया जैसे धाकड़ नेताओं की कद काठी के बराबर के नेता हो गए इसका एहसास जब कांग्रेसियों को हुआ तब तक नर्मदा का काफी पानी बह चुका था. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के भी वे खास सिपहसलार हैं, मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाल लेना इसका सबूत है. पिछले तीन विधानसभा चुनावों से कांग्रेस प्रदेश में सत्ता के लिए तरस रही है बावजूद इस हकीकत के कि उसके पास एक से बढ़ कर एक जमीनी नेता हैं तो इसकी उजागर वजह उसमें पसरी गुटबाजी ही रही है. आपसी फूट का जो पौधा अर्जुन सिंह रोप गए थे उसे मुख्यमंत्री रहते 1993 से लेकर 2003 तक दिग्विजय सिंह ने मुरझाने नहीं दिया और बाद में भी उसे खूब खाद पानी से सींचा.
लेकिन दिग्विजय सिंह भूल गए थे कि लोकतन्त्र में कोई भी पार्टी एक नेता के दम पर ज्यादा नहीं चलती और इस भूल का खामियाजा वे आज तक भुगत भी रहे हैं. हालिया फेर बदल में उनकी भूमिका कुछ इस तरह समेट कर रख दी गई है जिस पर न तो वे खुश हो सकते और न ही अफसोस जाहिर कर सकते. दिग्विजय सिंह के बारे में गलत नहीं कहा जाता कि वे कांग्रेस को जिता भले ही न पाएं लेकिन हराने में अहम रोल निभा सकते हैं. पिछले दो विधानसभा चुनावों में उनकी भूमिका ने इस मिथक को एक पुख्ता ख्याल में बदला भी था.
जब वे अपने ही कर्मों यानि तोड़ फोड़ की राजनीति के चलते हाशिये पर आ गए तब भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आए और 6 महीने की फ्लाप ही सही नर्मदा यात्रा करने के बाद अपने तरकश का आखिरी जहर बुझा तीर छोड़ ही दिया कि प्रदेश कांग्रेस का मुखिया या मुख्यमंत्री पद का चेहरा कमलनाथ ही होना चाहिए तो बात फिर बिगड़ती नजर आई. दिग्विजय सिंह की मंशा इस बार भी नाथ – सिंधिया के बीच की खाई और गहरी करने की थी, अगर ज्योतिरादित्य की नजरंदाजी की जाती तो कांग्रेस वहीं खड़ी नजर आती जहां साल 2003 में थी.
चतुराई दिखाते राहुल गांधी ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य दोनों को बराबर वजन देते दिग्विजय सिंह की बात भी रख ली और उनकी मंशा पर पानी फेरते उन्हें खुला भी छोड़ दिया कि अब वे जो चाहे सो कर लें. अब दिग्विजय पहले सी कोई खुरफात करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि उन्हे अपने बेटे और पत्नी अमृता राय को चुनाव लड़ाना है दूसरे उनका गुट भी तितर बितर हो चुका है और उम्रजनित थकान का शिकार भी वे हो चले हैं.
चार कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी, राम निवास रावत, सुरेन्द्र चौधरी और बाला बच्चन को बनाकर राहुल गांधी ने क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण भी साध लिए हैं और कमलनाथ को सहूलियत भी दे दी है कि उन्हें अपना कारोबार और संसद छोडकर भागदौड़ी करने की जहमत उठाने की जरूरत नहीं, बात या यह नियुक्ति विधानसभा चुनाव तक के लिए ही है अगर कांग्रेस हारी तो कमलनाथ खुद हार की जिम्मेदारी लेते पद छोड़ देंगे और जीती तो अब तक उसे संभाले रखने वाले अरुण यादव को पद वापस ससम्मान सौंप दिया जाएगा.
इस डील में कोई जोखिम नहीं है वजह कमलनाथ की तरह मुद्दे की बात ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी समझ आ रही है कि अगर इस बार भी कांग्रेस हारी तो उनकी हालत भी दिग्विजय सरीखी हो जाएगी. सिंधिया का अपना एक अलग ग्लेमर युवाओं और महिलाओं में है अलावा इसके बीते दो सालों से वे जमीनी मेहनत भी करते आम जनता के बीच जाकर अपनी महल और महाराजा वाली छवि से छुटकारा पाने की कोशिश में कामयाब होते नजर आ रहे हैं. पहले अटेर और फिर अशोकनागर और कोलारस विधानसभा के उपचुनाव अपने दम और पहुंच पर जिताकर उन्होंने शिवराज सिंह की नींद तो उड़ा ही रखी है.
नया फेरबदल कांग्रेस को सुकून देने वाला है जिसे एक बड़ी और एकलौती चुनौती शिवराज सिंह से जूझना है. यह कोई आसान काम भी नहीं है बावजूद इस हकीकत के तीसरे कार्यकाल के उत्तरार्ध में शिवराज सिंह से दलित आदिवासी युवा और किसान उतने ही नाराज हैं जितने 2003 में दिग्विजय सिंह से थे.
इन दिनों शिवराज सिंह की बौखलाहट शबाब पर है जो 2003 के दिग्विजय सिंह की तरह दलितों की हिमायत पर कुछ इस तरह उतारू हो आए हैं मानों सवर्ण वोटो की कोई अहमियत ही न हो. दलितों और आरक्षण की उनकी खुलेआम तरफदारी से सवर्ण नाराज हैं और भाजपा का तगड़ा वोट बैंक ब्राह्मण तो उन्हें श्राप तक दे चुका है. इस पर भी दिक्कत यह कि दलित उनके झांसे में नहीं आ रहा है. शिवराज सिंह कैसे कमलनाथ और सिंधिया की जुगलबंदी से निबटेंगे यह देखना दिलचस्पी नहीं बल्कि रोमांच की भी बात होगी. इन दोनों के ही पास पैसों और साधनों की कमी नहीं है यानि कांग्रेस की कंगाली का कोई असर ये दोनों चुनाव पर नहीं पड़ने देंगे.
शिवराज सिंह की एक बड़ी दिक्कत उनकी पार्टी के कुछ बड़े नेता भी होंगे जिनमें बाबूलाल गौर, राघव जी भाई और सरताज सिंह के नाम प्रमुख हैं, यानि भाजपा और शिवराज सिंह की मौजूदा हालत और दिक्कतें वैसी ही हैं जैसे 2003 मे कांग्रेस और दिग्विजय सिंह की हुआ करती थीं. इन सबसे भी बड़ी दिक्कत नरेंद्र मोदी का उतरता जादू है जिनकी जुमलेबाजी अब कहीं नहीं चल रही. मुसलमान और दलित तो अब उनके जिक्र से ही चिढ़ने लगे हैं.
इन हालातों में कांग्रेस का फैसला सटीक तभी साबित होगा जब नाथ और सिंधिया दोनों वाकई मिलकर काम करें और वोटर के गुस्से को लाइटर दिखाते रहें उनकी राह के सनातनी रोड़े दिग्विजय सिंह के पर राहुल गांधी ने कुतरे भी इसीलिए हैं.
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रोमांटिक, पोलीटिकल व रोमांचक फिल्म ‘‘दास देव’’ लंबे इंतजार के बाद सिनेमाघरों तक पहुंच पाई है. पृष्ठभूमि बदली है, मगर कहानी के केंद्र में राजनीति और प्यार ही है. चाहत,पावर और लत की कहानी के साथ ही हमारे देश की राजनीति का स्तर किस हद तक गिरा हुआ है, इसका नमूना है फिल्म ‘‘दासदेव’’. क्योंकि फिल्म ‘‘दास देव’’ में प्रेम कहानी या हारे हुए प्रेमी की मासूमियत नहीं, बल्कि यह फिल्म गंदी राजनीति के साथ अपनी राजनीतिक विरासत को बढ़ाते रहने की महत्वाकांक्षा की काली दलदल मात्र है.
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की देवदास फिल्मकारों के लिए एक पसंदीदा विषय रहाहै. इस पर 1928 में बनी मूक फिल्म ‘देवदास’ से लेकर अब तक कई फिल्में बनचुकी हैं. इसका आधुनिक वर्जन अनुराग कश्यप की फिल्म ‘देवडी’ थी. और अब तक कहा जा रहा था कि सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘‘दास देव’’ भी शरतचंद्र के उपन्यास ‘देवदास’ का आधुनीकरण है. मगर फिल्म की शुरूआत में ही फिल्मकार सुधीर मिश्रा ने स्वीकार किया है कि यह फिल्म शरतचंद्र के उपन्यास ‘देवदास’ के साथ साथ शेक्सपियर के हेलमेट और उनके नाना द्वारिका प्रसाद मिश्रा, जो कभी राजनीति में थे, द्वारा सुनाई गई कहानियों से प्रेरित है. ज्ञातब्य है कि मशहूर लेखक, पत्रकार, कवि द्वारिका प्रसाद मिश्रा 30 सिंतबर 1963 से 29 जुलाई 1967 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे. पं. जवाहर लाल नेहरू से मतभेद के चलते द्वारिका प्रसाद मिश्रा को 13 वर्ष का राजनीतिक वनवास झेलना पड़ा था.
फिल्म की कहानी 1997 में उत्तरप्रदेश के जहानाबाद से शुरू होतीहै, जब राजनेता विश्वंभर चैहाण(अनुराग कश्यप) एक राजनीतिक सभा को संबोधित करते हुए ऐलान करते हैं कि वह किसानों को उनकी जमीन का सही मुआवजा दिलवाकर रहेंगे और अपने छोटे भाई अवधेश(सौरभ शुक्ला) को अगला मुख्यमंत्री बनाने की बात करते हैं. उस वक्त उनका छह सात वर्ष का बेटा देव उनके साथ चलने की जिद करता है, पर वह कहते हैं कि वह अपने चाचा अवधेश व पारो के पिता के साथ रहे. वह जल्द वापस आ जांएगे. भाषण खत्मकर जैसे ही हेलीकोप्टर में बैठकर विश्वंभर चैहाण उड़ते हैं, वैसे ही आसमान में उनका हेलीकोप्टर जलकर स्वाहा हो जाता है. उसके बाद कहानी पूरे 21 वर्ष बाद दिल्ली से शुरू होती है, जहां एक पब में देव(राहुल भट्ट) व पारो(रिचा चड्ढा) दोनों हैं. दोनों एक दूसरे के बचपन के साथी होने के साथ ही एक दूसरे से प्यार करते हैं. देव को ड्रग्स की लत लग चुकी है. ड्रग्स व शराब के नशे में देव कुछ लोगों से मारामारी कर लेता है, तो गुस्से में पारो पब से बाहर आ जाती है, फिर गाड़ी में एक साथ जाते हुए रास्ते में देव, पारो को मनाने की कोशिश करता है. पर कुछ दूर आगे चलने पर सूनी सड़क पर चड्ढा की कार देव की कार को रोकती है.
चड्ढा ने देव को करोड़ो रूपए कर्ज दे रखा है, जो कि उन्हें वापस चाहिए. इसलिए चड्ढा अपने साथ देव को लेकर जाती हैं. उधर उसी वक्त अवधेश को हृदयाघात होता है और वह अस्पताल पहुंच जाते हैं. इधर पारो, सहाय(दिलीप ताहिल) को फोन करके सारी बात बताती है, उस वक्त सहाय के सामने चांदनी (अदिति राव हैदरी) बैठी होती है. सहाय किसी तरह देव को छुड़ा लेते हैं. अवधेश, सहाय से कहते हैं कि वह देव को संभाले. देव की मां सुशीला को यकीन है कि अवधेश, देव के साथ गलत नही होने देंगे. धीरे धीरे पता चलता है कि चांदनी भी देव से प्यार करती है. पर वह सहाय की गुलाम सी बनी हुई है, क्यांकि सहाय बार बार उसे याद दिलाते रहते हैं कि सहाय की मौत के बाद सारी संपत्ति की मालकिन चांदनी होंगी. चांदनी बहुत ताकतवर है. देश के हर राजनेता से उसके अच्छे संबंध है.
सहाय के कहने पर चांदनी, देव को संभालती है और देव के साथ हम बिस्तर भी होती है. पारो के साथ साथ अवधेश भी चाहते हैं कि देव ड्रग्स व शराब से तौबा कर ले. अवधेश चाहते हैं कि देव उनकी राजनीतिक विरासत को संभाले. मगर यह बात उभरकर आती है कि विश्वंभर को पारो के पिता (अनिल जौर्ज) पर यकीन था और उन्होंने ही पारों के परिवार को रहने के अपनी कोठी के अंदर ही कमरे दिए थे. पर अवधेश पारो के पिता व पारो को पसंद नहीं करते. उन्हें देव व पारो का साथ भी पसंद नहीं है. पर फिलहाल वह अपनी राजनीतिक चालें चलने में मस्त है.
एकदिन गुस्से में पारो, देव से कह देती है कि वह दिल्ली छोड़कर जलाना जा रही है. पारो गांव पहुंचकर अपने पिता के साथ मिलकर किसानों के लिए काम करना शुरू करती है. उधर अपने चाचा अवधेश, सहाय, चांदनी व मां सुशीला के रचे चक्रव्यूह में फंसकर देव भी परिवार की राजनीतिक विरासत को संभालने व राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनने के मकसद से जलाना पहुंचकर किसानों के बीच काम करना शुरू करते हैं. बहुत जल्द वह अति लोकप्रिय हो जाते है. मुख्यमंत्री भी देव की सराहना करते हैं.
फिर देव को चमकाने के लिए और पारो के परिवार को फंसाने के मकसद से चांदनी, सहाय व अवधेश मिलकर एक खेल रचते हैं, जिसमें अब तक किसानों के हिमायती माने जाने वाले पारो के पिता पर ही किसानों की जमीन हथियाने से लेकर किसानों की हत्या करने तक का आरोप लग जाता है. और खुद को बीमार बताकर अवधेश अस्पताल में भर्ती होकर वहीं से अपनी गंदी राजनीतिक चाले चलता है.
देव, पारो के पिता को छुडाने में असमथर्ता व्यक्त करते हुए कह देता है कि देव के पिता ने उसके पिता की तरह ऐसा काम कभी न करते. इससे पारो नाराज होकर देव से रिश्ता खत्म कर अपनी उम्र से काफी बड़ी उम्र व विपक्ष के नेता रामाश्रय शुक्ला (विपिन शर्मा) के साथ शादी कर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरूकर देती है.
अब शुरू होता है राजनीति का अति गंदा खेल और धीरे धीरे अतीत के काले अध्याय खुलते हैं. पता चलता है कि देव की मां सुशीला व अवधेश के बीच अवैध रिश्ते हैं. अवधेश व रामाश्रय शुक्ला ने मिलकर ही देव के पिता विश्वंभर की हत्या की योजना बनाई थी, जिसमें उद्योगपति सहाय ने मदद की थी. पारो के पिता को जेल व जेल में उनकी हत्या के पीछे भी अवधेश ही है. अवधेश के ही इशारे पर पारो की हत्या की कोशिश की गई.
यह सारा सच पारो के साथ साथ देव को पता चलता है. तब देव अपने चाचा अवधेश के साथ ही रामाश्रय शुक्ला व अन्य दोषियों की हत्या कर देता है. पूरे एक वर्ष बाद देव व पारो नदी किनारे मिलते हैं.
विचारोत्तेजक फिल्म ‘‘हजारों ख्वाहिषें ऐसी’’ के अलावा जुनूनी रोमांचक प्रेम कहानी प्रधान फिल्म ‘ये साली जिंदगी’ के निर्देशक सुधीर मिश्रा इस कदर अपनी नई फिल्म ‘‘दास देव’’ में निराश करेंगे, यह उम्मीद तो किसी को नहीं थी.
फिल्म की कहानी चांदनी के नजरिए से कही जाना शुरू होती है. चांदनी कहानी की सूत्रधार के रूप में भी नजर आती है, मगर क्लायमैक्स पर पहुंचते पहुंचते निर्देशक सुधीर मिश्रा खुद इस बात को भूल गए. फिल्म में आगजनी व हिंसा अपनी चरम सीमा पर है. फिल्मकार राजनीति व प्रेम के बीच सामंजस्य बैठाने में बुरी तरह से विफल रहे हैं. फिल्म में रोमांस तो कहीं है ही नहीं, सिर्फ गंदी राजनीति हावी है. राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए हर रिश्ते का खून किया गया है.
फिल्म इंटरवल से पहले रोचक है, मगर तब उसकी गति धीमी है. इंटरवल के बाद कहानी गति पकड़ती है, पर जिस तरह से पूरा कथानक गड़बड़ होता है, उससे दर्शक कन्फ्यूज हो जाता है. उसकी समझ में ही नहीं आता कि आखिर किस किरदार का किसके साथ क्या रिश्ता है, कौन सा किरदार किसके साथ है और क्यों? वास्तव में ‘देवदास’ और शेक्सपियर के हेमलेट के ग्रे विश्वासघाती रंग का मिश्रण करते हुए फिल्मकार कहानी को फैलाते चले गए, पर वह भूल गए कि किसे प्रमुखता देनी है, कथा किसके नजरिए से शुरू हुई और फिर वह कहानी को समेट नही पाए. फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी पटकथा है. यानी कि फिल्मकार फिल्म के कथानक के साथ न्याय करने में पूर्णरूपेण विफल रहे हैं.
फिल्म के कैमरामैन सचिन के कृष्ण बधाई के पात्र है. निर्देशक ने फिल्म की लोकेशन बहुत सही चुनी है. जहां तक अभिनय का सवाल है तो देव के किरदार में राहुल भट्ट फिट ही नहीं बैठते हैं, वह अपने अभिनय से भी निराश करते हैं. भावों की अभिव्यक्ति करने में असमर्थ रहते हैं. पारो के किरदार में रिचा चड्ढा ने जानदार अभिनय किया है. चांदनी के किरदार में अदिति राव हैदरी अपनी प्रतिभा का जलवा ठीक से नहीं दिखा पाईं, शायद फिल्म की पटकथा ने उन्हें ऐसा अवसर नहीं दिया. यूं तो वह कहानी की नायिका है, मगर जैसे ही कई उपकहानियां आती हैं, कई किरदार आते हैं, तो उनका किरदार हाशिए पर पहुंच जाता है.
यह लेखक व निर्देशक की कमजोरी का नतीजा है. भ्रष्ट व अति महत्वाकांक्षी राजनेता अवधेश के किरदार में सौरभ शुक्ला से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता था. उन्होंने जबरदस्त परफार्मेंस दी है. उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि वह अति बेहतरीन अभिनेता हैं. पारो के पिता के किरदार में अनिल जौर्ज जमे हैं. दिलीप ताहिल, विपिन शर्मा, विनीत कुमार सिंह, अनिल जौर्ज भी अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं.
दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘दास देव’’ का निर्माण संजीव कुमार, गौरव शर्मा व मनोहर पी कानुनगो ने किया है. फिल्म के निर्देशक सुधीर मिश्रा, पटकथा लेखक सुधीर मिश्रा व जयदीप सरकार, संगीतकार संदेश शांडिल्य, विपिन पटवा, शमीर टंडन, अनुपम राग, सत्य माणिक अफसर, कैमरामैन सचिन के कृष्ण व कलाकार हैं- राहुल भट्ट, रिचा चड्ढा,अदिति राव हैदरी, सौरभ शुक्ला, विनीत कुमार सिंह, दिलीप ताहिल, विपिन शर्मा, दीपराज राणा, अनिल जौर्ज, सोहेला कपूर, जयशंकर पांडे, योगेश मिश्रा, श्रुति शर्मा व अनुराग कश्यप.
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16 जुलाई, 2017 की सुबह की बात है. लोग रोजाना की तरह उठ कर अपने दैनिक कामों में लग गए थे. उसी दौरान कुछ लोग स्टोन पार्क की ओर गए, तभी किसी व्यक्ति की नजर वहां पड़ी लाश की ओर गई. इस के बाद जल्दी ही यह बात आग की तरह पूरे पुरानी छावनी थानाक्षेत्र में फैल गई. जहां लाश पड़ी थी, वह क्षेत्र पुरानी छावनी थानाक्षेत्र के अंतर्गत आता था.
स्टोन पार्क में लाश पड़ी होने की खबर सुन कर स्टोन पार्क के आसपास रहने वाले लोगों का घटनास्थल पर जमघट लग गया. इसी बीच किसी ने यह सूचना थाना पुरानी छावनी को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी प्रीति भार्गव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गईं. उन्होंने देखा, मृतक 50-55 साल का था और उस की लाश लहूलुहान पड़ी हुई थी.
थानाप्रभारी ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक की छाती, गले, हाथ व सिर पर किसी तेजधार हथियार के घाव थे. उस की लाश के पास ही शराब की खाली बोतल और 2 गिलास पड़े हुए थे. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या से पहले हत्यारे ने मृतक के साथ शराब पी होगी. घटनास्थल पर काफी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी.
थानाप्रभारी ने भीड़ से मृतक की शिनाख्त कराई तो किसी ने उस का नाम अंगद कडेरे बताते हुए कहा कि यह स्टोन पार्क की करीबी बस्ती का रहने वाला है और पेशे से हलवाई है. थानाप्रभारी ने एसआई रामसुरेश को अंगद के घर भेज कर उस की हत्या की खबर भिजवा दी. अंगद की पत्नी गीता को जैसे ही पति की हत्या की खबर मिली, उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया.
मृतक की पत्नी और बच्चे एसआई रामसुरेश के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने उन से संक्षिप्त पूछताछ कर के घटनास्थल की काररवाई पूरी की और लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.
मृतक अंगद की पत्नी गीता की तरफ से पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. एसपी डा. आशीष ने थानाप्रभारी प्रीति भार्गव को हत्या के शीघ्र खुलासे के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतक अंगद के घर जा कर उस के घर वालों से पूछताछ की. उन लोगों ने बताया कि अंगद की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, वह बहुत सीधेसादे इंसान थे. बस उन्हें शराब पीनेपिलाने की आदत थी.
15 जुलाई, 2017 की रात उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद वे यह कह कर घर से निकल गए थे कि उन्हें जरूरी काम है, बस थोड़ी देर में लौट कर आते हैं. लेकिन जाने के बाद वह वापस लौट कर नहीं आए. सुबह को उन की हत्या की जानकारी मिली.
प्रीति भार्गव ने अंगद कडेरे की पत्नी गीता से विस्तार से बातचीत की, लेकिन उस का इतना भर कहना था कि यह सब कैसे हो गया, इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. गीता से बातचीत करते वक्त प्रीति भार्गव की नजर उस के हावभाव पर टिकी हुई थी.
पति के मरने का जो गम होना चाहिए, वह उस के चेहरे पर दिखाई नहीं दे रहा था. गीता थानाप्रभारी से बातचीत करने तक में डर रही थी. यहां तक कि उन से नजरें चुरा रही थी. थानाप्रभारी ने अपने अनुभव से अनुमान लगाया कि कहीं न कहीं दाल में काला जरूर है. लेकिन बिना ठोस सबूत के गीता पर हाथ डालना उन्होंने ठीक नहीं समझा. लिहाजा वे गीता से यह कह कर थाने लौट आईं कि अगर किसी पर संदेह हो तो फोन कर के मुझे बता देना.
इस के बाद थानाप्रभारी ने गीता के मोबाइल नंबर की कालडिटेल्स निकलवाई. कालडिटेल्स से उन्हें पता चला कि घटना वाले दिन गीता के मोबाइल पर देर रात जो आखिरी काल आई थी, वह बंटी जाटव की थी. उन्होंने बिना देरी किए थाने के तेजतर्रार एसआई रामसुरेश और कुछ पुलिसकर्मियों को मुरैना भेजा. पुलिस ने बंटी जाटव के सुभाषनगर स्थित घर से उसे पकड़ लिया और पूछताछ के लिए उसे पुरानी छावनी थाने ले आए.
उस से अंगद कडेरे की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को निर्दोष बताता रहा, लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. बंटी ने अपना अपराध कबूल करते हुए बताया कि अंगद कडेरे की हत्या उस ने ही की थी. उस ने अंगद की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों पर आधारित थी.
अंगद कडेरे पुरानी छावनी थाने के अंतर्गत आने वाले स्टोन पार्क के पीछे बसी बस्ती में रहता था. वह जवान हुआ तो अपनी आजीविका चलाने के लिए हलवाई का काम करने लगा. उस की पहली पत्नी से 4 बच्चे सपना, गजेंद्र, भारती और विकास थे.
दरअसल, अंगद ने पहली पत्नी मीरा की मौत के बाद गीता से दूसरी शादी कर ली थी. इस से पहले अंगद अपनी दूसरी पत्नी गीता के साथ मुरैना के सुभाषपुरा में रहता था. वहीं उस के पड़ोस में बंटी जाटव रहा करता था. गीता से शादी के बाद उस के यहां 2 बेटे दुर्गेश और आकाश पैदा हुए. बंटी का अंगद के यहां काफी आनाजाना था. उस की गीता से बहुत पटती थी. गीता रिश्ते में उस की भाभी लगती थी, इस नाते वह उस से हंसीमजाक कर लेता था.
अंगद हलवाई था. दिन भर अपनी दुकान और कभीकभी रात में शादीविवाह में काम करने की वजह से वह देर रात को थकामांदा घर लौटता तो पत्नी को ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था. खाना खाने के बाद वह शराब पी कर सो जाता था. यह बात गीता को काफी अखरती थी. पति की इस उदासीनता के चलते गीता का झुकाव बंटी की ओर हो गया.
भाभी के इस आमंत्रण को बंटी भांप गया. अंगद के काम पर निकलते ही वह उस के घर पहुंच जाता और अपनी लच्छेदार बातों से गीता का मन बहलाता. जल्दी ही एक दिन ऐसा आया, जब दोनों ने अपनी सीमाएं लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कर लीं. दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. घर में अंगद के साथ उस के आधा दरजन बच्चे और पत्नी रहती थी. अंगद के काम पर निकलते ही गीता घर में अकेली रह जाती थी. बंटी इसी का फायदा उठा कर उस के घर पहुंच जाता था. इस तरह काफी दिनों तक दोनों ऐश करते रहे.
जाहिर है, अवैध संबंध छिपाए नहीं छिपते. बस्ती की औरतों को इस बात का शक हो गया कि बंटी अंगद की गैरमौजूदगी में ही उस के घर क्यों आता है. किसी तरह यह बात अंगद के कानों तक पहुंच गई. इस से अंगद का माथा ठनका. उस ने गीता से दोटूक कह दिया कि उस की गैरमौजूदगी में बंटी घर पर कतई न आया करे. लेकिन गीता की शह की वजह से बंटी ने अंगद के घर आना बंद नहीं किया.
यह पता चलते ही अंगद ने खुद ही बंटी से सख्त लहजे में कह दिया कि वह उस की गैरमौजूदगी में घर पर न आया करे, वरना इस का अंजाम बुरा होगा. उधर उस ने अपनी पत्नी गीता को भी जम कर खरीखोटी सुनाई. आखिर बंटी ने अंगद के यहां उस की गैरमौजूदगी में आना बंद कर दिया.
अंगद की रोकटोक की वजह से गीता और बंटी की मुलाकात नहीं हो पा रही थी. दोनों ही बहुत परेशान थे. ऐसे में दोनों को अंगद अपनी राह का कांटा दिखाई देने लगा.
एक दिन मौका मिलते ही गीता ने बंटी से मुलाकात की. उस ने बंटी से कहा कि अंगद को हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है. उस ने मेरे ऊपर जो सख्ती की है, उस हालत में मैं नहीं रह सकती. मुझे तुम इस घुटनभरी जिंदगी से निकालो. बेहतर होगा, किसी तरह अंगद को ठिकाने लगा दो. इस के बाद ही हम दोनों सुकून से रह सकेंगे. गीता की बातों में आ कर वह अंगद की हत्या करने को तैयार हो गया.
15 जुलाई की रात अंगद खाना खाने बैठा ही था कि उस के मोबाइल पर बंटी जाटव का फोन आया. उस ने यह सोच कर उस का फोन रिसीव किया कि उसे कोई काम होगा, इसी वजह से इतनी रात गए फोन कर रहा है.
बंटी बोला, ‘‘अंगद भाई, तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है. मेरे एक रिश्तेदार को बेटे के जन्मदिन पर बड़ी पार्टी देनी है. ऐसा करते हैं हम दोनों मिल कर ठेके पर कैटरिंग का काम ले लेते हैं. पैसे मैं लगा दूंगा. पार्टी से आज ही बात कर लेते हैं. अगर आज बात नहीं की तो पार्टी किसी दूसरे को कैटरिंग का ठेका दे सकती है. तुम जल्दी आ जाओ, मैं स्टोन पार्क के पास तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अगर बात बन गई तो आज ही पार्टी से एडवांस ले लेंगे.’’
अंगद बंटी की बातों में आ गया. वह गीता से यह कह कर घर से निकल गया कि थोड़ी देर में लौट कर खाना खाएगा. जब वह स्टोन पार्क के करीब पहुंचा तो बंटी वहां शराब की बोतल लिए खड़ा था. अंगद को देखते ही वह बोला, ‘‘चलो, पार्टी के पास चलने से पहले एकदो पैग लगा लेते हैं.’’
दोनों ने वहीं बैठ कर शराब पी. शराब पीने के बाद बंटी ने क हा, ‘‘अब रात भी काफी हो गई है. गीता भाभी खाने के लिए इंतजार कर रही होंगी. हम पार्टी से सुबह बात कर लेंगे. मैं ऐसा करता हूं कि पहले तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूं, उस के बाद अपने घर चला जाऊंगा.’’
उस के बाद अंगद उस की बाइक के पीछे बैठ गया. कुछ दूर चल कर बंटी ने स्टोन पार्क के निकट अपनी बाइक रोक दी और बाइक की डिक्की में रखी कुल्हाड़ी निकाल ली.
अंगद बंटी की योजना से पूरी तरह अनभिज्ञ था. उसे क्या पता था कि अंगद ने डिक्की से कुल्हाड़ी उस की हत्या करने के लिए निकाली है. उस ने अंगद से कहा, ‘‘भाईसाहब, अभी एक बोतल और रखी है मेरी डिक्की में, 2-2 पैग और ले लेते हैं.’’
अंगद बंटी की बात टाल नहीं सका. दोनों जिस जगह पर खड़े हो कर बातचीत कर रहे थे, वहां बैठ कर शराब पीना ठीक नहीं था. लिहाजा वे वहां से कुछ दूर चले और स्टोन पार्क में झाडि़यों के पास बैठ कर शराब पीने लगे.
अंगद एक तो पहले से ही ज्यादा पिए हुए था. 2 पैग और लगाने के बाद उसे ज्यादा नशा हो गया, जिस से उस के कदम लड़खड़ाने लगे. ठीक उसी समय बंटी ने उस पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए.
नशे की हालत में अंगद को संभलने तक का अवसर नहीं मिला. वह निढाल हो कर नीचे गिर पड़ा. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. बंटी ने उसे हिलाडुला कर देखा तो वह मर चुका था. वह वहां से अपने घर मुरैना चला गया. उस ने मुरैना पहुंचते ही गीता को उस के मोबाइल पर अंगद की हत्या की सूचना दे दी.
उस ने बतौर ऐहतियात गीता से कहा कि जब उसे पुलिस द्वारा अंगद की हत्या की खबर मिले तो वह रोने का नाटक करे, जिस से किसी को योजना पर संदेह न हो. पुलिस ने बंटी से पूछताछ के बाद गीता को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी बिना नानुकुर के स्वीकार कर लिया कि पति की हत्या की साजिश में वह भी शामिल थी. बंटी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त वह कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली, जोकि गीता ने उसे धार लगा कर दी थी.
उस के बाद दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. उधर हत्याकांड के खुलासे पर पुलिस अधीक्षक डा. आशीष ने सीएसपी जादौन, टीआई पुरानी छावनी प्रीति भार्गव, एसआई रामसुरेश सिंह कुशवाह को 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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राजस्थान के जिला जालौर के थाना चितलवाना का एक गांव है सेसावा. इसी गांव में दीपाराम प्रजापति अपनी 2 पत्नियों के साथ रहता था. उस की पहली शादी 10 साल पहले मालूदेवी से हुई थी. माली भोलीभाली मंदबुद्धि लड़की थी. इसलिए दीनदुनिया से बेखबर वह खुद में ही मस्त रहती थी. लेकिन वह घरगृहस्थी के सभी काम कर लेती थी. भले ही वह काम धीरेधीरे करती थी.
जिस समय दीपाराम की शादी माली देवी से हुई थी, वह काफी गरीब था. वह राजमिस्त्री था. किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के गुजरबसर कर रहा था. लेकिन माली से शादी के बाद उस के दिन फिर गए. वह मकान बनाने के ठेके लेने लगा. वहां वह खुद राजमिस्त्री था. अब उस के यहां कईकई राजमिस्त्री काम करने लगे.
कुछ ही दिनों में दीपाराम लाखों में खेलने लगा. पैसे आए तो उस के शौक भी बढ़ गए. उस ने अपना बढि़या मकान बनवा लिया. कार भी खरीद ली. इस बीच माली से उसे एक बेटा पैदा हुआ, जो इस समय 7 साल का है.
मंदबुद्धि माली जो कभी दीपाराम को सुघड़ और बहुत सुंदर लगती थी, पैसा आने के बाद वह बेकार लगने लगी. इस की एक वजह यह थी कि वह सिर्फ औरत थी. वह न सजती थी न संवरती थी.
दिन भर काम में लगी रहती और रात में कहने पर उस के पास सो जाती. इस तरह धीरेधीरे माली से उस का मन उचटने लगा. वह ऐसी पत्नी चाहता था, जो उसे प्यार करे. सजसंवर कर नखरे दिखाए, उस के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए वह दूसरी शादी के बारे में सोचने लगा. उसे लगा कि दूसरी शादी के बाद ही उस की जिंदगी की नीरसता दूर हो सकती है.
दूसरी शादी का विचार आते ही वह लड़की की खोज में लग गया, जो उस के लायक हो. इस के लिए उस ने अपनी जानपहचान वालों को भी सहेज दिया. उस के किसी जानपहचान वाले ने एक ऐसी औरत के बारे में बताया जिस की 3 शादियां हो चुकी थीं. इस के बावजूद वह मांबाप के घर रह रही थी.
उस औरत का नाम था दरिया देवी उर्फ दौली. वह राजस्थान के जिला बाड़मेर के गांव सिवाना के रहने वाले पीराराम प्रजापति की बेटी थी. दौली के बारे में दीपाराम को पता चला तो वह पीराराम से उस के एक परिचित के माध्यम से मिला. उस ने वहां बताया कि उस की शादी हुई थी, लेकिन पत्नी की मोैत हो गई है. इसलिए अब वह उस की बेटी दौली से नाताप्रथा के तहत विवाह करना चाहता है. इस के लिए उस ने पीराराम को मोटी रकम का लालच दिया.
पीराराम को मोटी रकम तो मिल ही रही थी, इस के अलावा जवान बेटी से मुक्ति भी. उस ने 5 लाख रुपए ले कर दौली का नाताप्रथा के तहत दीपाराम से विवाह कर दिया. इस तरह दीपाराम से चौथा विवाह कर के उस की पत्नी बन गई. लेकिन जब वह ससुराल पहुंची तो उस की पहली पत्नी माली और उस के बेटे को देख कर उस ने सिर पर आसमान उठा लिया. क्योंकि दीपाराम ने यह झूठ बोल कर उस से शादी की थी. उस की पहली पत्नी मर चुकी है और उस का कोई बच्चा भी नहीं है.
इस के बाद तो यह रोज का सिलसिला बन गया. दौली दीपाराम को झूठा कहती और उस की किसी बात पर यकीन नहीं करती. दीपाराम उसे समझाता कि माली मंदबुद्धि है. नौकरानी की तरह रहती है. उसे तो मौज से रहना चाहिए. लेकिन इस पर दौली राजी नहीं थी. उस का कहना था कि वह पति का बंटवारा नहीं चाहती. उस ने यह बात अपने घर वालों से बताई तो उन्होंने पंचायत बुला ली.
पंचों की खातिरदारी में दीपाराम को लाखों रुपए खर्च करने पड़े. इस के अलावा उसे दौली के नाम से उसे 10 लाख रुपए की एफडी करानी पड़ी. इस तरह दूसरी पत्नी के चक्कर में एक बार फिर उसे लाखों रुपए खर्च करने पड़े.
पंचायत में समझौता तो करा दिया लेकिन दौली शांत नहीं हुई. वह लगभग रोज ही उस से लड़ाईझगड़ा करती. दिनभर का थकामांदा दीपाराम घर लौटता तो चायपानी पिलाने के बजाए वह उसे जलीकटी सुनाती. दीपाराम पत्नी के इस व्यवहार से काफी दुखी था. वह दौली को बहुत समझाता, लेकिन वह तो लड़ने का कोई न कोई बहाना ढूंढती रहती थी.
बहाने की कोई कमी नहीं होती थी. बहाना मिलते ही वह आसमान सिर पर उठा लेती थी. 2 बच्चों, ढाई साल के कैलाश और 8 महीने की सरिता की मां बनने के बाद भी दौली के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.
इधर दीपाराम को गुजरात के पालनपुर में मकान बनाने का ठेका मिला था. वहां वह ससुराल में रहता था. दौली उस के साथ ही थी. वह वहां भी क्लेश करती थी. दौली के इस व्यवहार से तंग आ कर उस का मन काम से उचटने लगा और पहली पत्नी माली की ओर उस का झुकाव होने लगा. इस की वजह यह थी कि माली भोलीभाली थी. उस के लिए तो सभी एक जैसे थे. पति प्यार करे तो ठीक, न करे तो भी ठीक. वह अपनी मस्ती में मस्त रहती थी. बेटे और सास की सेवा में लगी रहती थी.
नवंबर, 2017 में दौली दीपाराम के साथ सेसावा आई तो सास से खूब झगड़ा किया. दीपाराम को दौली की यह हरकत इतनी बुरी लगी कि अब वह उसे पत्नी नहीं, मुसीबत लगने लगी. यही सोच कर अब वह इस मुसीबत रूपी पत्नी से पीछा छुड़ाने के बारे में सोचने लगा, क्योंकि उस ने उस का ही नहीं, पूरे परिवार का जीना मुहाल कर दिया था.
दीपाराम अब इस बात पर विचार करने लगा कि वह दौली से कैसे पीछा छुड़ाए. वह उसे इस तरह मारना चाहता था कि लोगों को लगे कि उस की हत्या नहीं की गई, बल्कि दुर्घटना में मरी है. ऐसा होने पर पुलिस भी उस का कुछ नहीं कर पाएगी. पालनपुर में वह ऐसा करना नहीं चाहता था, इसलिए गहने बनवाने की बात कह कर वह उसे गांव ले आया.
18 दिसंबर, 2017 को वह सेसावा आ गया. चलते समय उस ने बोतल में 2 लीटर पैट्रोल भरवा लिया था. बोतल में पैट्रोल देख कर दौली को संदेह हुआ तो उस ने यह बात मायके वालों को बता दी. लेकिन घर वालों ने उस का वहम बता कर बात खारिज कर दी. क्योंकि दीपाराम ने अपने ससुर को पहले ही फोन कर के बता दिया था कि वह दौली के लिए गहने बनवाने गांव जा रहा है.
19 दिसंबर, 2017 की सुबह दीपाराम ने मां से कहा कि वह दौली के लिए थोड़े गहने बनवाने जा रहा है. हम दोनों के आने तक वह बच्चों का खयाल रखना. यह बात मंदबुद्धि माली ने सुनी तो गहने के लालच में वह भी भाग कर आई और कार का पिछला दरवाजा खोल कर बैठते हुए बोली, ‘‘मुझे भी गहने चाहिए. मैं भी साथ चलूंगी.’’
दीपाराम उसे उतार भी नहीं सकता था, दूसरे इसलिए उस ने कार आगे बढ़ा दी. दौली दीपाराम की बगल वाली सीट पर आगे बैठी थी. उस ने कार बढ़ा दी, लेकिन वह इस सोच में डूब गया कि वह अपनी योजना को कैसे अंजाम दे? वह एक बार फिर योजना बनाने लगा.
इस बार उस के दिमाग में जो योजना आई, उस के अनुसार उस ने जिस तरफ दौली बैठ गई थी, उसी ओर गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर सड़क किनारे पड़े पत्थरों से कार भिड़ा दी.
संयोग से दौली को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. उस के मन में शंका तो थी, वह कार से उतर भागी. वह समझ गई कि दीपाराम उसे मारने के लिए लाया है. वह थोड़ी दूर गई थी कि रास्ते खड़ी औरतों ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तुम इस तरह भाग क्यों रही हो.’’
‘‘मेरा पति मुझे मारना चाहता है. इसीलिए उस ने कार पत्थरों से टकरा दी है.’’
दीपाराम ने भाग रही दौली को पकड़ा और गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘गलती से कार टकरा गई थी. लगता है समय ठीक नहीं है. चलो, घर लौट चलते हैं.’’
दौली दीपाराम के साथ जाने को तैयार नहीं थी लेकिन, औरतों ने कहा कि औरतें 2 हैं और पति अकेला, वह कुछ नहीं कर पाएगा. फिर यह उस का वहम है, भला उसे क्यों मारेगा. वह पति के साथ घर जाए.
इस के बाद दौली और माली पीछे वाली सीट पर बैठ गईं तो दीपाराम गांव की ओर लौट पड़ा. दीपाराम सिर्फ दौली को मारना चाहता था, लेकिन अब वह दौली के साथ माली को भी ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. उस का सोचना था कि उस के पास पैसे हैं ही, वह तीसरी शादी कर लेगा.
गांव एक किलोमीटर के लगभग रह गया तो दीपाराम ने कार रोक दी. वह फुरती से नीचे उतरा और कार को लौक कर दिया, जिस से माली और दौली उतर न सकें. पैट्रोल की बोतल उस ने अपनी सीट के पास ही रखी थी. उतरते समय उस ने बोतल हाथ में ले ली थी. बाहर आ कर उस ने बोतल का पैट्रोल कार पर उड़ेल कर आग लगा दी. कार धूधू कर जलने लगी. कार के दरवाजे लौक थे, इसलिए दौली और माली बाहर नहीं आ सकीं.
उन की चीखें तक बाहर नहीं आ सकीं और दोनों उसी में घुटघुट कर मर गईं. थोड़ी देर बाद उधर से एक मोटरसाइकिल सवार निकला तो उसे देख कर दीपाराम चीखनेचिल्लाने लगा. उस ने गांव में खबर की तो गांव वाले वहां पहुंचे. तब तक कार जल चुकी थी.
गांव वालों ने किसी तरह पानी डाल कर आग बुझाई तो पता चला कि कार के साथ दीपाराम की दोनों पत्नियां जल कर मर चुकी थीं. उस का कहना था कि गाड़ी बंद होने पर वह नीचे उतरा तो दरवाजे खुद लौक हो गए और उस के बाद आग लगने से दोनों जल कर मर गईं.
गांव वालों ने घटना की सूचना थाना चितलवाना को दी तो थानाप्रभारी तेजू सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. 2 महिलाओं की जली हुई लाशें कार में पड़ी थीं. पति सिर पीटपीट कर रो रहा था. पुलिस ने उसे सांत्वना दी. थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना एसपी विकास शर्मा एवं एसएसपी बींजाराम मीणा एवं डीएसपी फाऊलाल को दी.
थोड़ी देर में पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर आ गए. निरीक्षण में पुलिस को यह घटना संदिग्ध लगी तो दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर उन के मायके वालों को सूचना दे कर थाने बुला लिया. दौली के मायके वालों का कहना था कि यह दुर्घटना नहीं, इस में दीपाराम की कोई साजिश है तो पुलिस ने दीपाराम से सख्ती से पूछताछ की.
आखिर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि दौली के लड़नेझगड़ने से ऊब कर उस ने ऐसा किया. वह पहली पत्नी को नहीं मारना चाहता था, मगर वह भी गहनों के चक्कर में साथ आ गई और मारी गई.
दीपाराम ने अपराध स्वीकार कर लिया तो 20 दिसंबर को मालूदेवी और दौली की हत्या का मुकदमा मृतका दौली के पिता पीराराम की ओर थाना चितलवाना में दीपाराम प्रजापत के खिलाफ दर्ज करा दिया गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अब उस के तीनों बच्चों की देखभाल उस की बूढ़ी मां कर रही है.
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वैसे तो बौलीवुड स्टार्स डायरैक्टर के हिसाब से काम करते हैं और सफलता का शिखर छूते हैं, लेकिन जिस तरह हर मां का अपने सभी बच्चों में एक बच्चा फेवरेट होता है ठीक उसी तरह एक ऐक्टर का अपने सभी डायरैक्टर्स में से कोई एक डायरैक्टर ऐसा होता है जो उस का फेवरेट होता है. उस डायरैक्टर के साथ काम करते वक्त वह बहुत एंजौय करता है.
करण जौहर – आलिया भट्ट
मेरे मनपसंद डायरैक्टर तो वन ऐंड ओनली करण जौहर ही हैं, क्योंकि मैं ने उन्हीं से जाना कि ऐक्टिंग क्या होती है, लोकप्रियता कैसे बढ़ती है, खूबसूरती क्या होती है.
जब मैं ने सुना कि बौलीवुड के डायरैक्टर स्टार्स बनाते हैं तो मुझे यकीन नहीं हुआ. लेकिन जब मैं ने करण जौहर के साथ पहली फिल्म ‘स्टुडैंट औफ द ईयर’ की तो मुझे इस बात पर विश्वास हो गया कि एक अच्छा डायरैक्टर ही ऐक्टर को स्टार बनाता है. करण सर की बदौलत सिर्फ मैं ही नहीं, वरुण व सिद्धार्थ भी स्टार बने. इस हिसाब से मेरी लिए करण सर मेरे सब से फेवरेट डायरैक्टर हैं.
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विशाल भारद्वाज – शाहिद कपूर
विशाल भारद्वाज मेरे पसंदीदा डायरैक्टर्स में से एक हैं, क्योंकि उन की फिल्मों की वजह से ही मेरे अंदर का टैलेंट बाहर आया. मुझे खुद नहीं पता था कि विशाल सर मेरे अंदर के कलाकार को इतनी बखूबी निकालेंगे. उन की फिल्में ‘हैदर,’ ‘रंगून’ और ‘कमीने’ ने बतौर ऐक्टर मुझे अभिनय के क्षेत्र में नया मुकाम दिलाया.
विशाल सर के अलावा एक और डायरैक्टर हैं जिन की मैं दिल से इज्जत करता हूं और वह हैं सूरज बड़जात्याजी.
सूरजजी की फिल्म में काम करने का मौका मुझे उस वक्त मिला जब मेरा कैरियर ढलान पर था. उस दौरान मेरा खुद पर से भी यकीन उठ गया था, लेकिन ऐसे नाजुक मौके पर सूरजजी ने न सिर्फ मुझे प्रोत्साहित किया बल्कि ‘विवाह’ जैसी सफल फिल्म का हीरो भी बनाया.
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यश चोपड़ा – शाहरुख खान
अपने 25 वर्षों के कैरियर में मैं ने एक से एक बेहतरीन डायरैक्टर्स के साथ काम किया है, जो अपने कार्य में महारत हासिल कर चुके हैं. मुझे स्टार बनाने में उन का बहुत बड़ा योगदान रहा है. फिर चाहे वे यश चोपड़ा हों, करण जौहर हों या फराह खान हों. ये सभी मेरे पसंदीदा डायरैक्टर्स ही नहीं, बल्कि दिल के करीब भी हैं.
अगर मैं सब से फेवरेट डायरैक्टर की बात करूं तो मेरे सब से पसंदीदा डायरैक्टर यश चोपड़ा थे. अब वे हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन आज भी मैं उन की कमी महसूस करता हूं. वे मेरे लिए सिर्फ एक फिल्ममेकर या डायरैक्टर नहीं, बल्कि मेरे पितासमान थे. उन के साथ काम करने में जो मजा मुझे आता था वह आज तक नहीं आया.
मैं ने यशजी के साथ ‘दिल तो पागल है,’ ‘वीरजारा’ और ‘जब तक है जान’ में काम किया है. इन तीनों ही फिल्मों में यशजी के साथ बिताए एकएक पल मुझे आज भी याद हैं.
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कबीर खान – कैटरीना कैफ
कबीर खान मेरे फेवरेट डायैरक्टर्स में से एक हैं. कबीर खान सिर्फ अच्छे डायरैक्टर ही नहीं, अच्छे और सुलझे इंसान भी हैं. सब से खास बात, वे मेरे अच्छे दोस्त और सच्चे सलाहकार भी हैं. मैं उन के साथ काम करते वक्त बहुत सहज महसूस करती हूं, क्योंकि वे मुझे ऐक्टिंग के दौरान बहुत अच्छे से गाइड करते हैं. उन की फिल्म ‘एक था टाइगर,’ ‘फैंटम’ और ‘न्यूयौर्क’ में मेरा काम करने का अनुभव काफी अच्छा रहा है. उन की ज्यादातर फिल्मों में मेरे अभिनय की सराहना हुई है. कबीर के डायरैक्शन में काम करते वक्त मैं बहुत सहज महसूस करती हूं.
संजय लीला भंसाली – रणवीर सिंह
संजय लीला भंसाली मेरे फेवरेट डायरैक्टर हैं, क्योंकि उन की फिल्मों में मुझे अपनेआप को साबित करने का मौका मिला है. संजय सर ने मुझे ऐसेऐसे रोल दिए हैं जो अपनेआप में इतिहास रचते हैं. फिर चाहे वह ‘रामलीला’ हो या ‘बाजीराव मस्तानी.’ वे बहुत ही क्रिएटिव हैं. डायरैक्शन और फिल्ममेकिंग के लिए संजय सर पूरी तरह समर्पित हैं. यही वजह है कि अगर संजय सर की तरफ से कोई फिल्म औफर आता है तो मैं आंख बंद कर के हां कर देता हूं. वे जो भी काम करते हैं, बस, कमाल ही करते हैं. वे अपनी फिल्म में जान डाल देते हैं. मेरा उन के साथ काम करने का अनुभव काफी अच्छा रहा है. वे बहुत ही सभ्य और शांत इंसान हैं, लेकिन जब डायरैक्शन की बात आती है तो जब तक वे संतुष्ट नहीं होते, तब तक कलाकार को छोड़ते नहीं हैं. उन की यही बात मुझे बहुत अच्छी लगती है.
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शैड्यूल कास्ट ऐंड शैड्यूल ट्राइब्स (प्रिवैंशन औफ ऐट्रोसिटीज) ऐक्ट में शिकायत पर ऊंची जाति के व्यक्ति की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने जो अंकुश लगाया था, उस पर देश भर के दलित बुरी तरह भड़क गए हैं. 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान न केवल 10 लोग मारे गए, जगहजगह आगजनी हुई और कितने ही शहर ठप्प पड़े रहे. कुछ शहरों में तो यह फसाद कई दिनों तक चला.
नरेंद्र मोदी की सरकार, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी जीत मान कर चल रही थी, सकते में आ गई कि सदियों के सताए दलितों में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि उन्होंने पूरे देश में हल्ला बोल दिया और उन के जानेपहचाने 2-3 नेता नजर तक नहीं आए.
सरकार भागती हुई सुप्रीम कोर्ट पहुंची कि माईबाप बचा लो पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप की सुन लेंगे पर गिरफ्तारी बेबात की हो यह कोर्ट को मंजूर नहीं. अत: कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
यह मामला असल में राजनीतिक नहीं धार्मिक है. छुआछूत वोट की राजनीति की देन नहीं, हिंदू धर्म की देन है. हिंदू धर्म को बिना परखे मानने वाले लोग छुआछूत को किसी भी तरह से छोड़ने को तैयार नहीं हैं और उन के धर्मगुरु भी उसे धर्मजनित पापपुण्य व प्रायश्चित्त की संज्ञा देते हैं. अगर कुछ उदार इसे छोड़ना भी चाहें तो उन के घरों की औरतें ही इस बात पर दबाव डालती हैं कि धर्मजनित भेदभाव तो मानना ही होगा, कानून या संविधान चाहे कुछ भी कहे.
भारतीय जनता पार्टी ने जो जीतें हासिल की हैं वे इस कट्टर धर्म की वापसी के लिए की हैं और कट्टरपंथी इस मामले में जो भी ढीलढाल सह रहे हैं वह जबरन है, वोट बैंक की देन है.
असल में जातिगत भेदभाव राजनीति, सत्ता की शक्ति, व्यापार, सामाजिक गठन से ज्यादा औरतों को प्रभावित करना है. मजे और ख दोनों की बात है कि औरतें यह बात समझ नहीं पातीं. ऊंची जातियों की औरतें भेदभाव को अपना कर जो अन्याय दूसरी छोटी जातियों की औरतों पर करती हैं, वह सहन करने लायक नहीं है, क्योंकि यही अत्याचार स्वयं उन पर उन के पुरुष और खुद दूसरी औरतें भी करती हैं.
ऊंची जातियों की औरतें अपने बच्चों को नीची जातियों के बच्चों के साथ खेलने, बैठने नहीं देतीं और उन पर जातिगत अहं का भूत चढ़ा रहता है. वे केवल छूतअछूत के चक्कर में एक बड़ी कौम की सेवाएं लेने तक को तैयार नहीं हैं.
घरों में बाइयों को रखने से पहले निश्चित कर लिया जाता है कि वे एससी तो (दलित) नहीं. ऐसा कर के उन्हें चाहे जाति गर्व हो पर वे उन करोड़ों औरतों से हाथ धो रही हैं जो काम करने को तैयार हैं और मुस्तैदी से कर सकती हैं.
20 करोड़ दलितों को नीचे रख कर दबा कर जीना आसान नहीं, जब उन में से कुछ अब आरक्षण की सुविधा के कारण आसपास रहने आ गए हों, उतने ही समझदार हों, मेहनती हों व बराबरी की चाह रखते हों.
भेदभाव घरों से शुरू होता है जो नेताओं तक जाता है. सुप्रीम कोर्ट का यह संशोधन इन ऊंची जातियों को राहत देने वाला था और उस के खिलाफ आक्रोश अगर दलित दिखा रहे हैं तो आश्चर्य नहीं.
यह काफी हद तक औरतों के कारण ही है कि पिछले 70 सालों में दलित जातियों को समाज में सहज स्वीकारा नहीं गया. सुप्रीम कोर्ट ने चाहे निर्णय सही सा दिया हो पर जो सदियों से कुचला रहा उस को अपने हक अब छिनते नजर आ रहे हैं. जैसे औरतें बलात्कार से भयभीत रहती हैं वैसे ही दलित जातियां और खासतौर पर उन की औरतें भेदभाव से भयभीत रहती हैं. ये दंगे उस भय का ही परिणाम हैं. जब तक देश में धर्म प्रचार और अंधविश्वासों की दुकानों की भरमार रहेगी, स्थिति में सुधार नहीं होगा. हां, अगर ऊंची जातियों की औरतों को तर्क, बराबरी, स्वतंत्रता की भावनाओं का एहसास होने लगे तो बात दूसरी.
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