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17 साल छोटे अभिनेता के साथ इश्क फरमाएंगी ऐश्वर्या राय

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ की सफलता के बाद से ही फिल्म के स्टार रहे अभिनेता कार्तिक आर्यन के सितारे काफी बुलंद होते नजर आ रहे हैं. उन्हें इन दिनों बड़ी-बड़ी फिल्मों के आफर मिल रहे हैं. मीडिया में आई खबरों के अनुसार कार्तिक जल्द ही खूबसूरत अदाकारा ऐश्वर्या राय बच्चन के साथ लीड रोल में नजर आने वाले हैं. कार्तिक आर्यन और ऐश्वर्या को एकसाथ बड़े परदे पर इश्क फरमाते देखना वाकई दिलचस्प होगा.

खबरों के मुताबिक इस फिल्म में ऐश्वर्या के अलावा एक और अभिनेत्री होंगी. हालांकि अभी तक दूसरी अभिनेत्री का नाम सामने नहीं आया हैं. बताया जा रहा है कि रोहन सिप्पी के निर्देशन में बनाई जा रही यह एक थ्रिलर फिल्म होगी. वहीं इस फिल्म को सिद्धार्थ आनंद और प्रेरणा अरोड़ा (क्रिअर्ज एंटरटेनमेंट) मिलकर प्रोड्यूस करेंगे.

खास बात यह है कि इस फिल्म से पहले भी ऐश्वर्या राय और रोहन सिप्पी 2003 में आई फिल्म ‘कुछ ना कहो’ में साथ काम काम चुके हैं. खबरों की मानें तो इस फिल्म की शूटिंग इसी साल शुरू हो जाएगी. फिलहाल फिल्म का नाम अभी तक तय नहीं हुआ हैं और ना ही इसकी कास्टिंग को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा की गई है.

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कोहली की दीवानी इस विदेशी महिला क्रिकेटर ने आरसीबी को लगाई फटकार

टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली के पूरे दुनिया में करोड़ों फैन हैं. खासकर लड़कियों में विराट कोहली को लेकर खासी दीवानगी है. विराट कोहली के लिए लड़कियों की यह दीवानगी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. इंग्लैंड टीम की कई महिला क्रिकेटर विराट कोहली की फैन है. इन इंग्लिश महिला क्रिकेटरों की विराट कोहली के लिए दीवानगी एक अलग ही लेवल पर है. इन महिला क्रिकेटरों में से कुछ तो विराट कोहली को सोशल मीडिया पर आई लव यू बोल चुकी हैं तो एक क्रिकेटर उन्हें शादी के लिए भी प्रपोज कर चुकी है.

इंग्लैंड टीम की विकेटकीपर-बल्लेबाज सारा टेलर, तेज गेंदबाज भी केट क्रौस, बल्लेबाज डेनियल व्याट, तेज गेंदबाज कैथरीन ब्रंट के बारे में तो सभी को पता है, लेकिन अब इंग्लैंड महिला क्रिकेट टीम की एक और खिलाड़ी विराट कोहली पर फिदा हो गई हैं. इस महिला क्रिकेटर का नाम है- एलेक्जेंड्रा हर्टली. एलेक्जेंड्रा हर्टली इंग्लैंड महिला क्रिकेट टीम की औलराउंडर खिलाड़ी हैं.

एलेक्जेंड्रा हर्टली ने आईपीएल 2018 में विराट कोहली की तारीफ करते हुए उनकी टीम बेंगलुरु को कड़ी फटकार लगाई है. कोलकाता के खिलाफ खेले गए मैच में जब बेंगलुरु को हार का सामना करना पड़ा था. उस वक्त एलेक्जेंड्रा हर्टली ने बेंगलुरु के बाकी खिलाड़ियों को जमकर फटकार लगाई थी.

कोलकाता से मिली हार के बाद एलेक्जेंड्रा हर्टली ने अपने औफिशियल टि्वटर हैंडल से एक ट्वीट किया था. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था- ‘खराब गेंदबाजी के चलते एक बार फिर बेंगलुरु हार गई. कोहली कड़ी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें किसी का साथ नहीं मिल रहा. उन्होंने कितना जबर्दस्त कैच भी पकड़ा. क्या कुछ ऐसा बचा है जो वो नहीं कर सकते हैं.’

बता दें कि विराट कोहली जून में काउंटी क्रिकेट खेलने के लिए इंग्लैंड जा रहे है. काउंटी में विराट सरे टीम की तरफ से खेलेंगे. काउंटी में खेलने की वजह से विराट कोहली अफगानिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच का हिस्सा भी नहीं बन पाएंगे. विराट कोहली की गैरहाजिरी में टेस्ट टीम की कमान अजिंक्य रहाणे के हाथों में होगी.

इंग्लैंड की औलराउंडर खिलाड़ी एलेक्जेंड्रा हर्टली को जैसे ही पता चला कि विराट कोहली काउंटी क्रिकेट खेलने के लिए इंग्लैंड आ रहे हैं तो वह बहुत खुश हो गई. एलेक्जेंड्रा हर्टली ने विराट कोहली के सरे टीम ज्वाइन करने पर अपनी खुशी जताई है.

एलेक्जेंड्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा- यूके में स्वागत है विराट कोहली… यह बहुत ही शानदार है.

आईपीएल 2018 शुरु होने के साथ ही एलेक्जेंड्रा हर्टली ने बता दिया कि वह विराट कोहली की टीम बेंगलुरु को सपोर्ट करने वाली हैं. बेंगलुरु के सपोर्ट के लिए एलेक्जेंड्रा ने एक ट्वीट भी किया था.

24 साल की एलेक्जेंड्रा हर्टली खूबसूरत औलराउंडर खिलाड़ी हैं. विराट के फैन्स की लिस्ट में अब इस महिला क्रिकेटर का नाम भी शामिल हो गया है.

बता दें कि आईपीएल 2018 में बेंगलुरु की टीम का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है. बेंगलुरु टीम की गेंदबाजी और फील्डिंग लगातार फ्लौप साबित हो रही है. टीम का सारा भार सिर्फ विराट कोहली और एबी डिविलियर्स के कंधों पर है. अगर इन दोनों खिलाड़ियों का बल्ला चल जाए तो टीम जीत जाती है. बेंगलुरु के इस प्रदर्शन से उनके फैन्स भी खासे निराश हैं.

अफगानिस्तान टेस्ट में कोहली की जगह ले सकता है यह खिलाड़ी

देश में एक तरफ आईपीएल 2018 अपने शबाब पर है तो दूसरी तरफ युवा क्रिकेटरों की निगाहें टीम इंडिया में शामिल होने पर लगी हैं. ये क्रिकेटर जानते हैं कि इन्हें आईपीएल में अच्छे प्रदर्शन का ईनाम मिल सकता है. आज (8 मई) बीसीसीआई की राष्ट्रीय चयन समिति टीम इंडिया की घोषणा करने वाली है.

बीसीसीआई अफगानिस्तान के खिलाफ होने वाले एकमात्र टेस्ट मैच के लिए, आयरलैंड के खिलाफ दो मैचों की टी-20 सीरीज और जून में इंग्लैंड दौरे के लिए इंडिया ‘ए’ के नाम की घोषणा करेगी. इस बात की घोषणा पहले ही की जा चुकी है कि कप्तान विराट कोहली और ईशांत शर्मा जैसे कई सीनियर खिलाड़ी अफगानिस्तान में टेस्ट मैच नहीं खेलेंगे.

कुछ युवा खिलाड़ियों को मिलेगा मौका

बीसीसीआई के एक अधिकारी के अनुसार इंडिया ‘ए’ में सात नियमित खिलाड़ी होंगे. इनमें अजिंक्य रहाणे टीम की कप्तानी संभालेंगे. इनके अलावा मुरली विजय, रोहित शर्मा और हार्दिक पांड्या टीम में होंगे. जाहिर है कुछ युवा खिलाड़ियों को इसमें मौका दिया जाएगा. श्रेयस अय्यर ने गौतम गंभीर के कप्तानी छोड़ने के बाद आईपीएल 2018 में दिल्ली की कप्तानी संभाली. बेशक वह टीम को जीत अधिक न दिला पाए हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने अपने बल्ले से टीम में एक नई जान फूंकी है.

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श्रेयस अय्यर ने अब तक खेले गए 10 मैचों में 351 रन बनाए हैं. उनकी आक्रामकता और कंसीस्टेंसी को सबने पसंद किया है. इसी तरह अंडर 19 टीम के कप्तान रहे पृथ्वी शौ एक शानदार बल्लेबाज के रूप में सामने आए हैं. दिल्ली के ओपनर पृथ्वी शौ ने आईपीएल में कई शानदार पारियां खेलीं हैं. उनकी एक पारी को देखकर औस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज मार्क वौ ने कहा कि उनकी तकनीक बिलकुल सचिन की तरह है. उनके पास धैर्य, आक्रामकता और कलात्मकता है.

चयन समिति की नजर भी पृथ्वी शौ पर होगी. अंडर 19 टीम के ही शुभमन गिल को कोलकाता ने नीलामी में खरीदा था. अब तक गिल कई शानदार पारियां खेल चुके हैं. उन्हें युवा खिलाड़ियों में सबसे प्रतिभाशाली माना जाता है. उनके पास शानदार तकनीक है. वह गेंद को पूरी तरह देखने के बाद अपने शौट खेलते हैं. वह भी उम्मीद लगाए हैं कि टीम इंडिया के दरवाजे उनके लिए खुलेंगे.

तेज गेंदबाज शिवम मावी भी चयन समिति के फैसले के इंतजार में हैं. 8 मई को जब चयन समिति की बैठक होगी तो वे छह अलग-अलग स्कैवेड चुनेंगे. पहली टीम अफगानिस्तान के साथ खेले जाने वाले एकमात्र टेस्ट मैच के लिए होगी. एक स्क्वैड इंडिया ‘ए’ का होगा जिसमें इंग्लैंड ए और वेस्ट इंडीज ‘ए’ के बीच त्रिकोणीय सीरीज खेली जानी है. आयरलैड के साथ होने वाली टी-20 सीरीज, इंग्लैंड के साथ टी-20 की सीरीज, वन डे सीरीज और पांच टेस्ट मैचों की सीरीज.

महेंद्र धोनी की उपस्थिति के बावजूद इस बार दिनेश कार्तिक को जिम्मेदारी मिल सकती. निडास ट्रौफी में अंतिम गेंद पर भारत को छक्का मार कर जीत दिलाने वाले कार्तिक का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता जा रहा है. कोलकाता के कप्तान के रूप में आईपीएल में वह अब तक कई बढ़िया पारियां खेल चुके हैं. उनका आत्मविश्वास लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में वह इंडिया ए और टीम इंडिया में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं.

दिनेश कार्तिक खुद भी यह उम्मीद कर रहे होंगे कि इंग्लैंड दौरे के लिए चयनकर्ता उन पर भरोसा करें. पृथ्वी शौ और शिवम मावी का नाम इंडिया ए में शामिल होने की पूरी संभावना है.

चयन समिति की बैठक शाम को पांच बजे मुंबई के ताज वेस्ट एंड होटल में होगी जिसमें बोर्ड के कार्यकारी सचिव अमिताभ चौधरी भी मौजूद होंगे.

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झटपट तैयार स्वाद मजेदार : मंगोड़ी फिंगर्स

सामग्री

– 1 कप मूंग स्प्राउट्स

– 2 उबले आलू

– 1 लाल शिमलामिर्च कटी

– 1 हरी शिमलामिर्च कटी

– 100 ग्राम 1 गाजर कटी

– 100 ग्राम फ्रैंचबींस कटी

– 2 हरे प्याज कटे

– 4-5 हरीमिर्चें कटी

– 1/2 कप कौर्नप्लोर घोल

– अमचूर स्वादानुसार

– गरममसाला या चाटमसाला व नमक स्वादानुसार.

विधि

कौर्नफ्लोर के घोल को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री को मिक्स कर इस मिश्रण के लंबे पतले फिंगर्स बना लें. अब कड़ाही में तेल गरम कर फिंगर्स को कौर्नफ्लोर के घोल में लपेट कर सुनहरा होने तक तल लें. कड़ाही से सीधा बटरपेपर पर रखें ताकि बटरपेपर अतिरिक्त तेल सोख ले. फिर चटनी के साथ गरमगरम परोसें.

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पुरुष नसबंदी भी है जरूरी, जानिए आखिर क्यों

मर्दानगी शब्द भारतीय पुरुषों के लिए शान की बात होती है. वे सब कुछ खो सकते हैं परंतु अपनी मर्दानगी को नहीं. अपनी पत्नी का सहयोग करने से उन की इस तथाकथित मर्दानगी को बट्टा लग जाता है तथा पत्नी पर रोब गांठने से उन की मर्दानगी में चारचांद लगते हैं.

वे प्यार में अपनी जान देने तक की बात तो कर सकते हैं, परंतु पत्नी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्वयं नसबंदी करवाने के बारे में सोच भी नहीं सकते जबकि चिकित्सा विज्ञान आज इतनी तरक्की कर चुका है कि दर्दरहित यह प्रक्रिया कुछ ही मिनटों में समाप्त हो जाती है.

इस के बावजूद हजार में से कोई 1 पुरुष ही है जो नसबंदी के लिए सहमत होता है और वह भी चोरीछिपे, रिश्तेदारों एवं समाज को बताए बिना. जबकि महिला नसबंदी खुले में शिविर लगा कर की जाती है. सरकार भी महिला नसबंदी का ही ज्यादा प्रचार करवाती है. नसबंदी करवाने के लिए महिलाओं को रुपए भी मिलते हैं.

ग्रामीण संस्था ‘आशा’ भी महिलाओं को ही नसबंदी के फायदे एवं नुकसान की जानकारी देती है. कुछ गांवों में तो टारगेट पूरा करने के लिए ट्रकों में भरभर कर महिलाओं को शिविरों में लाया जाता है. ये पैसों के लालच में यहां आ तो जाती हैं परंतु उचित देखभाल न होने के कारण कई बार हादसे का भी शिकार हो जाती हैं.

हमारे देश की यह विडंबना है कि परिवार नियोजन का सारा दारोमदार महिलाओं पर ही छोड़ दिया गया है. महिलाएं भी पुरुषों को कंडोम इस्तेमाल करने के लिए नहीं कह सकती हैं परंतु स्वयं बिना सोचेसमझे इस्तेमाल करने से नहीं हिचकतीं. बचपन से त्याग और कर्तव्य पालन की घुट्टी जो कूटकूट कर पिलाई जाती है उन्हें.

सरल है पुरुष नसबंदी

डेनमार्क में हुए एक शोध से पता चलता है कि गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं अकसर अवसाद में चली जाती हैं. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की मानें तो सभी चिकित्सक यही कहते हैं कि महिला नसबंदी की तुलना में पुरुष नसबंदी अधिक सरल, सुरक्षित, आसान एवं कम खर्चीली है.

पुरुष नसबंदी में स्पर्म्स को ले जाने वाली नलिका ‘वासडिफरैंस’ को कट कर दिया जाता है. इस के लिए शल्यचिकित्सक सब से पहले अंडकोषों के ऊपर वाली चमड़ी पर सूई लगा कर उसे सुन्न करते हैं और फिर एक खास तरह की चिमटी से बारीक सूराख कर के उस नली को बाहर निकाल कर अंडकोषों से वीर्य को पेशाब की नली तक पहुंचाया जाता है. पुन: इस थैली को बीच से काट कर दोनों कटे हुए सिरों को बांध कर उन के मुंह बंद कर दिए जाते हैं और वापस अंडकोष थैली के अंदर डाल देते हैं. इस प्रक्रिया में 20 से 25 मिनट लगते हैं. व्यक्ति को न तो एनेस्थीसिया की आवश्यकता होती है और न ही अस्पताल में भरती होना पड़ता है.

यह प्रक्रिया बिना किसी चीरे या टांके के संपूर्ण हो जाती है. इस प्रक्रिया के कुछ ही घंटों बाद व्यक्ति अपने पैरों से चल कर घर जा सकता है. यह गर्भनिरोध के लिए महिला नसबंदी जितना ही प्रभावशाली होता है.

सैक्स क्षमता पर प्रभाव

इस के विपरीत महिला नसबंदी में उक्त महिला को लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है तथा एक चीरा एवं टांका भी लगता है. महिला को पूरी तरह सामान्य होने में 1 हफ्ता लग जाता है. इस प्रक्रिया में महिला को संक्रमण और अंदरूनी भागों में चोट लगने का भी खतरा होता है. दूरबीन प्रक्रिया में तो औजार अंदाज से अंदर डाला जाता है.

अत: इस में गुरदा खराब होने एवं अंदरूनी रक्तस्राव होने की भी संभावना रहती है, जबकि पुरुषों में इस प्रकार की कोई समस्या नहीं होती और न ही उन के सैक्स ड्राइव में कोई कमी आती है.

जागरूकता जरूरी

हाल में ही प्रदर्शित एक फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ में भी निर्देशक श्रेयस तलपड़े ने इसी समस्या को उठाया है. फिल्म के नायकों पर नसबंदी का शक मात्र हो जाने से उन के सामाजिक और पारिवारिक जीवन में भूचाल सा आ जाता है. एक गुनहगार की भांति उन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कोर्ट तक का सहारा लेना पड़ता है. अंतत: मुख्यमंत्री के मुंह से पुरुष नसबंदी का संदेश दिलाया जाता है.

यह फिल्म एक तरह से पुरुष नसबंदी को ही प्रमोट करती है और यह संदेश देती है कि इस प्रक्रिया से पुरुषों में किसी भी तरह की कमजोरी नहीं होती है और न ही यह शर्मनाक कृत्य है, बल्कि परिवार नियोजन के अन्य साधनों की तरह यह भी एक साधन मात्र है.

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नसीहतें देने वाली आंटियों के बारे में ये सोचते हैं बच्चे

11 बज रहे थे. आरोही की सीए फाइनल की परीक्षा का समय दोपहर 2 बजे था. वह घर में घूमती हुई आखिरी वक्त की तैयारी पर नजर डाल रही थी. हाथ में बुक थी. उस की मां रीना किचन में व्यस्त थीं. डोरबैल बजी तो रीना ने ही दरवाजा खोला.

नीचे के फ्लोर पर रहने वाली अलका थी. अंदर आते हुए बोली, ‘‘इंटरकौम नहीं चल रहा है रीना. जरा देखना केबिल आ रहा है?’’

‘‘देख कर बताती हूं,’’ कह रीना ने टीवी औन किया. केबिल गायब था. बताया, ‘‘नहीं, अलका.’’

‘‘उफ, मेरे सीरियल का टाइम हो रहा है.’’

आरोही की नजरें अपनी बुक पर गड़ी थीं, पर उस ने अलका को गुडमौर्निंग आंटी कहा तो अलका ने पूछा, ‘‘परीक्षा चल रही है न? आज भी पेपर है?’’

‘‘जी, आंटी.’’

‘‘आरोही, सुना है सीए फाइनल पहली बार में पास करना बहुत मुश्किल है. 3-4 प्रयास करने ही पड़ते हैं. मेरा कजिन तो 6 बार में भी नहीं कर पाया. वह भी पढ़ाई में होशियार तो तुम्हारी ही तरह था.’’

‘‘देखते हैं, आंटी,’’ कहतेकहते आरोही का चेहरा बुझ सा गया.

अलका ने फिर कहा, ‘‘इस के बाद

क्या करोगी?’’

‘‘एमबीए.’’

‘‘और शादी?’’

‘‘सोचा नहीं, आंटी’’ कहते हुए आरोही के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव देख रीना ने बात संभाली, ‘‘अलका, किचन में ही आ जाओ. मैं इस के लिए खाना तैयार कर रही हूं.’’

अलका किचन में ही खड़ी हो कर आधा घंटा आरोही की शादी के बारे में पूछती रही.

रीना के चायकौफी पूछने पर बोली, ‘‘नहीं फिर कभी. अभी जल्दी में हूं.’’ कह चली गई.

उस के जाने के बाद आरोही ने बस इतना ही कहा, ‘‘मम्मी, आप ऐसी आंटी कभी न बनना, जिन्हें यह भी न पता हो कि कब क्या बात करनी चाहिए.’’

आंटियों के बारे में युवा सोच

महिलाओं को तो अकसर यह बात करते हुए सुना जा सकता है कि आजकल की युवा पीढ़ी से परेशान हो गए हैं, आजकल के बच्चे ऐसे हैं, वैसे हैं. शिकायतें चलती ही रहती हैं पर क्या महिलाओं ने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि आजकल के युवा बच्चों को इन आंटियों की कौन सी बात पसंद नहीं है? युवा बच्चे भी कम परेशान नहीं हैं आंटियों के स्वभाव, व्यवहार और आदतों से. कई युवा बच्चों से यह प्रश्न पूछने पर कि उन्हें किस आंटी की कौन सी बात पसंद नहीं है, उन्होंने अपने दिल की बात खुल कर बताई. आइए, जानते हैं:

24 वर्षीय वान्या अपनी एक आंटी के बारे में बताती हैं, ‘‘मंजू आंटी, जब भी घर आती हैं तो मेरी कोशिश यही होती है कि मैं अपने रूम से निकलूं ही नहीं. डर लगा रहता है कि मम्मी कहीं किसी काम से आवाज न दे दें. उन के घर पर हमेशा ‘पीस औफ माइंड’ चैनल चलता रहता है. वे जब भी आती हैं हर बात में समझाना शुरू कर देती हैं कि गुस्सा नहीं करना चाहिए, हलका पौष्टिक खाना चाहिए, सिंपल रहना चाहिए.

‘‘मम्मी की तबीयत खराब हो तो समझाएंगी, जीवन का कुछ पता नहीं, किसी से मोह मत रखो. बच्चों की तरफ से अपना ध्यान हटा लो, आजकल के बच्चे स्वार्थी हैं. इन के मोह में मत पड़ो. कोई भी बीमार होगा, कहेंगी यह तो कर्मों का फल है. जबकि वे खुद इन में से कोई बात फौलो नहीं करतीं. हर वीकैंड मूवी, बाहर लंचडिनर, एकदम फैशनेबल, हर समय अपने बच्चों के पीछे. अरे, दूसरों को इतना उपदेश देने की जरूरत क्या है जब आप खुद कुछ नहीं कर रही हैं. दूसरों ने क्या बिगाड़ा है, जीने दो सब को.’’

शाउटिंग आंटी

इन बच्चों ने एक और शिकायत पर समान प्रतिक्रिया दी और वह यह कि दोस्तों के सामने किसी भी पेरैंट्स का चिल्लाना अच्छा नहीं लगता.

राहुल बताता है, ‘‘हमारा पूरा गु्रप मेरे घर पर ही बैठ कर प्रोजैक्ट तैयार कर रहा था. हम बहुत देर से काम कर रहे थे. मेरी मम्मी ने सब के लिए कुछ नाश्ता तैयार किया था. सब ने काम करते हुए खाया.

थोड़ी रात हो गई तो मेरी मम्मी ने कहा, ‘‘शिखा को घर तक छोड़ आना राहुल.’’

शिखा की मम्मी और मेरी मम्मी फ्रैंड्स हैं. मैं जब उसे छोड़ने उस के घर गया तो दरवाजा खोलते ही शिखा की मम्मी नीतू आंटी ने कहा, ‘‘बहुत देर कर दी. खाना लगाती हूं.’’

शिखा ने कहा, ‘‘मम्मी, अभी आंटी ने कुछ खिला दिया है बहुत देर से बैठेबैठे बहुत थकान हो गई है. बस सोऊंगी.’’

मैं दरवाजे पर ही था. आंटी चिल्लाने लगीं, ‘‘खा लिया? फोन कर के बताया क्यों नहीं? मैं इतनी देर तक किचन समेटती रहूंगी?’’

मैं चुपचाप ‘बाय’ बोल कर वापस आ गया पर दोस्तों के सामने अगर कोईर् ऐसे चिल्लाए तो सचमुच बुरा लगता है. आंटी अकेले में शिखा को डांट लेतीं, प्यार से समझातीं पर दूसरों के सामने ऐसे चिल्लाना दोस्त को असहज बना देता है.’’

अब बच्चों से बात करते हुए कोई भी टिप्पणी करते हुए अपने शब्दों को पहले मन में जांचपरख लें. फालतू नकारात्मक बातें किसी को भी अच्छी नहीं लगतीं. आज की युवा पीढ़ी बहुत समझदार है. उस की बातों को ध्यान से सुनेंसमझें, उस के साथ स्नेहिल, मित्रवत व्यवहार करें.

ऐक्सरे वाली आंटी

23 वर्षीय नेहा ने भी अपने दिल की भड़ास निकालते हुए कहा, ‘‘रेखा आंटी, मम्मी की किट्टी फ्रैंड हैं. वे कहीं भी मिलती हैं चाहे किसी मौल में या किसी फंक्शन में अथवा घर पर, तो आंखों से ऐक्सरे करती लगती हैं. ऊपर से नीचे तक देखती रहती हैं. बात करते हुए उन की नजरें मुझे सिर से पैर तक इतनी बार देखती हैं कि मन होता है पूछ लूं कि आंटी क्या ढूंढ़ रही हैं? मुझे आजतक नहीं समझ आया कि वे हर इंसान को ऐसे क्यों देखती हैं? बहुत अजीब लगता है उन का ऐसे देखना.’’

सैल्फी वाली आंटी

आरती तो अपनी एक आंटी के बारे में बताने से पहले ही कुछ याद कर के हंस पड़ती है. वह बताती है, ‘‘हमारा दोस्तों का जो गु्रप है, उस में एक लड़का है शेखर. उस के बर्थडे आदि पर या वैसे ही जब भी किसी काम से उस के घर जाना होता है, हम लड़कियां पहले से ही मानसिक रूप से तैयार रहती हैं कि अभी जाते ही क्या होगा.

‘‘उस की मम्मी, नीला आंटी को सैल्फी लेने का बहुत ज्यादा शौक है. हम सब के साथ और वह भी एक आम सैल्फी नहीं, हर सैल्फी में वे तरहतरह के इतने मुंह बनाती हैं कि शेखर झेंप जाता है, जहां हम सब मुसकराते हुए साथ में आम सा फोटो लेते हैं वहां बस आंटी ही उस समय मुंह बनाबना कर इतने फोटो खिंचवाती हैं कि सब एकदूसरे को ऐसी नजरों से देखते हैं जैसे पूछ रहे हों इन आंटी का क्या करें, बेचारा शेखर.’’

बेचारी आंटी

20 वर्षीय रोहन का अनुभव भी कुछ कम मजेदार नहीं है. वह कहता है, ‘‘मालती आंटी जब भी घर आती है, अंकल की बुराई के अलावा कोई और बात करती ही नहीं. अंकल की आदतों से परेशान दिखती हैं. पर हम लोग अंकल को भी इतने सालों से जानते हैं. अंकल उच्चपद पर कार्यरत हैं. अच्छा स्वभाव है, हंसमुख हैं. आंटी को बस अपने को बेचारी दिखाने का शौक है, इसलिए पति और बच्चों की बुराई करती रहती हैं. मैं ने तो उन का नाम ही ‘बेचारी आंटी’ रख दिया है.’’

आरोही कहती है, ‘‘एक तो यह बात समझ नहीं आती कि इन आंटियों को हमारी शादी की इतनी चिंता क्यों रहती है. हमारी लाइफ है, हमारे पेरैंट्स हैं, वे सोच सकते हैं कि कब क्या करना है, हर 10-15 दिन में सामना होने पर क्या इस प्रश्न को तर्कसंगत कहा जा सकता है कि शादी कब होगी? मेरी प्राथमिकताएं अभी कुछ और हैं. मेहनत कर के अपने पैरों पर खड़ा होना है, लेकिन अलका आंटी जैसे लोगों का हर बार टोकना जरा भी अच्छा नहीं लगता.’’

आजकल के बच्चे आसपास के लोगों व आंटियों को बहुत अच्छी तरह औब्जर्व करते हैं. लड़कों की तरह आज लड़कियां भी बहुत कुछ करना चाहती हैं. उन के साथ बात करते हुए हमेशा विवाह के टौपिक पर ही न अटके रहें नहीं तो आप के जाने के बाद भी आरोही की तरह कोई अपनी मम्मी से कह रहा होगा, ‘‘मम्मी, आप ऐसी आंटी न बनना कभी.’’

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सीबीएसई पेपर लीक : अपवित्र हुई परीक्षा, पर ये हुआ कैसे

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक से डाटा लीक होने की खबर के बाद भारत सरकार ने फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग को एक नोटिस भेजा था. आईटी मंत्रालय के इस नोटिस के जवाब में जकरबर्ग ने 7 दिन की मियाद खत्म होने का इंतजार न कर के 3 अप्रैल को ही जवाब दे दिया था. यह जवाब था— मोदी सेठ, जिन के घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते. पहले अपने यहां के सीबीएसई पेपर संभाल लो, फिर मुझ से डाटा लीक पर जवाब लेना.

हर कोई जानता है कि बी.आर. चोपड़ा निर्देशित अपने वक्त की हिट फिल्म ‘वक्त’ में यह डायलौग अक्खड़ स्वभाव के अभिनेता राजकुमार ने खलनायक रहमान के सामने बोला था. दरअसल, यह सोशल मीडिया पर हुआ अभिजात्य किस्म का हंसीमजाक था, जिस ने एक गंभीर संदेश दिया था कि लीक के मामले में हम पहले खुद के गिरहबान में झांक लें फिर किसी और पर अंगुली उठाना सही है.

सीबीएसई पेपर लीक मामले को फिल्मी अंदाज में ही समझने की कोशिश करें तो 70 के दशक के हिंदी फिल्मों के बैंक डकैती के वे दृश्य सहज याद हो आते हैं, जिन में खलनायक बैंक लूटने के लिए बैंक में घुस कर धांयधांय नहीं करता था, बल्कि वह उस वैन के नीचे छिप जाता था, जिस में नकदी ले जाई जाती थी.

जैसे ही वैन स्टार्ट होती थी, खलनायक नीचे से सेंध लगा कर तिजोरी तक पहुंचता था और वैन में रखी तिजोरी पर ऐसे हाथ साफ करता था कि किसी को कानोंकान खबर तक नहीं होती थी. वैन का ड्राइवर वैन चलाता रहता था और सिक्योरिटी गार्ड हाथ में राइफल लिए यूं ही इधरउधर ताकते हुए सतर्कता दिखाने की एक्टिंग करते रहते थे. फिर कोई पुल या रेलवे फाटक आता था, जहां वैन के रुकते ही खलनायक नीचे के रास्ते से ही छूमंतर हो जाता था.

वैन के मुकाम पर पहुंचने के बाद डकैती का हल्ला मचता. पुलिस आ कर जांच करती थी और मीटिंग में आला अफसर झल्लाते हुए कड़क आवाज में हिदायत देता रहता था कि दिनदहाड़े कैश वैन लुट गई. यह हमारे डिपार्टमेंट के लिए शरम की बात है. जल्दी से जैसे भी हो डकैतों को पकड़ो. आम पब्लिक और मीडिया वाले हमारी हंसी उड़ा रहे हैं.

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रहस्य बनती लीक डकैती

फिल्मों में विलेन को पकड़ना मजबूरी होती थी, इसलिए लुटेरे किसी तरह धर लिए जाते थे. लेकिन सीबीएसई पेपर लीक मामले की बात जरा अलग है. यह एक ऐसा अहिंसक अपराध है, जिस में शक की सुई कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक घूम रही है लेकिन वह खलनायक पकड़ में नहीं आ रहा है, जिस ने पेपर उड़ाने में सेंधमारी की थी. देश भर की पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां इधरउधर छापे मार कर तथाकथित पेपर लीक करने वालों को खोज रही हैं, लेकिन यह पता नहीं कर पा रही हैं कि आखिर पेपर लीक कब, कैसे और कहां से हुआ था.

सेंट्रल बोर्ड औफ सेकेंडरी एजूकेशन यानी सीबीएसई हर साल 10वीं और 12वीं बोर्ड के इम्तहान आयोजित करता है. इस साल यह परीक्षा 8 मार्च से शुरू हुई थी. 1952 से इस बोर्ड की स्थापना का एक खास मकसद एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम को आकार देना था, जिस से उन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सहूलियत रहे जिन के तबादले होते रहते हैं.

राज्यों के माध्यमिक शिक्षा मंडलों और सीबीएसई में काफी अंतर होता है. सीबीएसई सिलेबस से पढ़ना प्रतिष्ठा की बात समझी जाती है, इसलिए बीते 2 दशकों से बड़ी तादाद में प्राइवेट स्कूलों ने इस से संबंद्धता लेनी शुरू कर दी थी.

एफिलिएशन मिलने के बाद प्राइवेट स्कूल वाले बड़ी शान से लिखने और बताने लगे कि उन का स्कूल सीबीएसई से संबद्ध या मान्यताप्राप्त है.

इन स्कूलों में पढ़ना फैशन की बात हो चली है. देखते ही देखते अभिभावकों में भी होड़ लगने लगी कि बच्चे को सीबीएसई वाले स्कूल में पढ़ाएं. नर्सरी क्लास से ही बच्चों को ऐसे स्कूलों में दाखिला दिलाया जाने लगा जिन में सीबीएसई का पाठ्यक्रम हो.

जब काम बढ़ने लगा और छात्रों की संख्या भी लाखों की तादाद में जाने लगी तो सीबीएसई को 4 जोनों में बांट दिया गया. इस से कार्यालयीय और दीगर कामों में सहूलियत होने लगी. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले सीबीएसई की साख और पूछपरख दिनोंदिन बढ़ने लगी.

हर साल की तरह इस साल भी सीबीएसई ने बोर्ड परीक्षाओं का टाइमटेबल वक्त रहते घोषित कर दिया था. देश भर के केंद्रों पर इम्तहान परंपरागत ढंग से शुरू हुए और शुरुआत ठीकठाक रही. हालांकि इस साल बोर्ड ने अपनी कार्यशैली में कई अहम बदलाव किए थे, लेकिन इन की जानकारी हर किसी को नहीं थी.

शिक्षा जगत से जुड़े लोग ही इन बदलावों से वाकिफ थे. आम लोगों को इतना जरूर मालूम था कि कुछ राजनैतिक वजहों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्मृति ईरानी से छीन कर प्रकाश जावड़ेकर को दे दिया था और पिछले साल दिसंबर में सीबीएसई का चेयरमैन अनीता करवाल को बनाया था, जो गुजरात कैडर की 1988 बैच की तेजतर्रार और खूबसूरत आईएएस अधिकारी हैं.

अनीता करवाल के बारे में भी हर कोई जानता है कि वह नरेंद्र मोदी की पसंदीदा अधिकारी हैं, लिहाजा उन की नियुक्ति पर किसी को हैरानी नहीं हुई थी. क्योंकि हर एक प्रधानमंत्री अहम पदों पर अपने पसंद और भरोसे के अधिकारियों की नियुक्ति करता है.

परीक्षाएं सुचारू रूप से शुरू हुई थीं लेकिन 23 मार्च, 2018 को एक अफवाह दिल्ली से उड़ी कि 12वीं कक्षा का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो गया है. इस खबर या अफवाह पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि खुद सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग जानतेसमझते हैं कि यह अफवाहों और गपशप का अड्डा है. दूसरे अर्थशास्त्र की परीक्षा 26 को होनी थी और भरोसा न करने की तीसरी खास वजह यह थी कि इस के साथ कोई प्रमाण नहीं थे. लिहाजा यह पोस्ट तूल नहीं पकड़़ पाई, लोगों ने इसे शरारत समझ कर खारिज कर दिया.

पर यह अफवाह या शरारत नहीं थी. यह बात 26 मार्च को अर्थशास्त्र की परीक्षा के दिन ही उजागर हुई, जब वाकई यह पुष्टि हो गई कि सोशल मीडिया पर ही 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो कर लाखों मोबाइल फोनों में कैद है. कई वाट्सऐप ग्रुप में इस परचे के स्क्रीन शौट और हाथ से लिखी आंसरशीट तक वायरल हुई थी.

पेपर लीक हो जाने के बाद भी लोग इस पर यकीन नहीं कर रहे थे तो इस की वजह लोगों का यह मानना था कि सीबीएसई एक विश्वसनीय संस्था है और मुमकिन है पेपर हो जाने के बाद इसे महज तूल पकड़ाने की गरज से वायरल किया गया हो, जिस से बेवजह का हड़कंप मचे. न्यूज चैनल्स ने इस खबर को चलाना शुरू किया तो लोगों का ध्यान इस तरफ गया कि बात में सच्चाई है. और यह कोई मामूली बात नहीं है.

26 मार्च की शाम होतेहोते देश की राजधानी दिल्ली गरमा उठी थी और अब तरहतरह की नईनई बातें सामने आने लगी थीं, जिन का सार यह था कि वाकई अर्थशास्त्र का पेपर परीक्षा से पहले बाजार में आ चुका था. लेकिन इस गोरखधंधे की जड़ें कहां हैं, यह अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सीबीएसई की तरफ से यह बयान आया कि अर्थशास्त्र का पेपर लीक नहीं हुआ है, यह अफवाह भर है. यह दावा भी बोर्ड ने किया कि उस ने सभी परीक्षा केंद्रों की जांच कराई है और कहीं से पेपर लीक होने के प्रमाण नहीं मिले हैं. इस के बाद लोग एक बार फिर असमंजस में घिरते नजर आए.

प्रधानमंत्री का दखल

जो लोग पेपर लीक होने के प्रति आश्वस्त थे, वे धीरेधीरे गुस्साने लगे थे. ये वे अभिभावक थे, जिन के बच्चों ने यह परीक्षा दी थी. यह दिन खासतौर से दिल्ली और एनसीआर में काफी गहमागहमी वाला था.

हरियाणा और पंजाब की तरफ से भी पेपर लीक होने की बातें सामने आने लगी थीं. अब तक सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल और मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कोई बयान सामने नहीं आया था. इसी गफलत में 28 मार्च, 2018 को 10वीं का गणित पेपर भी लीक हो गया. और इस तरह हुआ कि इस कड़वी सच्चाई को हर किसी को हजम करना पड़ा कि देश में बोर्ड के वे पेपर भी लीक होने लगे हैं जिन के लीक होने से छात्रों का भविष्य, मेहनत और कैरियर प्रभावित होता है.

28 मार्च की शाम होतेहोते यह बात आम हो गई थी कि पेपर लीक हुए हैं और भाजीतरकारी के भाव बिके भी हैं. 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लगभग 8 लाख छात्रों ने और 10वीं गणित का इम्तहान 16.38 लाख छात्रों ने दिया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोर्ड पेपर लीक जैसे गंभीर मसले पर खामोश बैठे मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की जम कर क्लास लगाई तो प्रशासनिक और राजनैतिक गलियारों में खासी हलचल मच गई. नरेंद्र मोदी ने सख्त नाराजगी दिखाते हुए प्रकाश जावड़ेकर से न केवल सफाई मांगी बल्कि उचित काररवाई करने को भी कहा.

दरअसल, नरेंद्र मोदी की नाराजगी की वजह जायज थी. बीती 25 फरवरी, 2018 को वह अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में बोर्ड के छात्रों से रूबरू हुए थे. दूसरी कई बातों के साथ उन्होंने उन्हें परीक्षा के बाबत तनावमुक्त और बेफिक्र रहने को भी कहा था.

यह वाकई अफसोस की बात थी कि जिस देश में प्रधानमंत्री छात्रों को चिंतामुक्त रहने का आश्वासन दें, उस में ही परीक्षा के पेपर कुछ इस तरह लीक हो जाएं कि छात्रों की चिंता कई गुना बढ़ जाए. इस के अलावा वे तरहतरह की अनिश्चितताओं से घिर जाएं. नरेंद्र मोदी की दूसरी चिंता सरकार की गिरती साख है. यह उन के कार्यकाल में पहला उजागर मामला था, जिस का दोष वे किसी और पार्टी  खासतौर से कांग्रेस के सर नहीं मढ़ सकते थे.

इस फटकार से हड़बड़ाए प्रकाश जावडे़कर ने सब से पहले तो पेपर लीक होने की बाबत खेद व्यक्त किया और फिर परंपरागत ढर्रे वाली बातें कह डालीं कि जांच होगी, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. मैं भी अभिभावक हूं, इसलिए अभिभावकों का दर्द समझता हूं और लीक हुए दोनों पेपर रद्द किए जाते हैं. जल्द ही दूसरी तारीखों का ऐलान भी किया जाएगा वगैरहवगैरह.

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इधर छात्रों और अभिभावकों ने जगहजगह विरोध प्रदर्शन करने शुरू कर दिए थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के जंतर मंतर, सीबीएसई के औफिस और प्रकाश जावडे़कर के घर से हुई. जैसे ही दोबारा परीक्षा का ऐलान किया गया तो छात्रों और अभिभावकों का गुस्सा और बढ़ गया कि अब नए सिरे से सारी कवायद करनी पड़ेगी. ऐसे में बोर्ड परीक्षाओं के माने क्या रह गए और सीबीएसई इस की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहा.

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि प्रश्नपत्र लीक कैसे और कहां से हुए, लेकिन मीडिया के जरिए ये बातें जरूर सामने आने लगी थीं कि लीक हुए पेपर 35 हजार रुपए से ले कर 200 रुपए तक में बिके थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के बवाना इलाके के एक स्कूल से हुई थी. इन सच्चाइयों या खबरों से छात्रों का गुस्सा और बढ़ने लगा था. अब पहली बार सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल सामने आईं और वही रटेरटाए बयान दे कर गायब हो गईं कि जांच होगी, दोषी जेल जाएंगे.

शक की सुई सीबीएसई की तरफ मुड़ना स्वाभाविक बात थी, क्योंकि पेपर सेट करने से ले कर परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उस की ही होती है. इन परीक्षाओं की विश्वसनीयता और गोपनीयता अगर भंग हुई थी तो इस की जिम्मेदारी भी सीबीएसई की ही बनती थी, जिस से वह बचने और मुकरने की कोशिश तब से ले कर अब तक कर रहा है.

कहां से लीक

सीबीएसई को पाकसाफ बताने में प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी. इन दोनों ने पेपर लीक होने को दिल्ली के कुछ कोचिंग सेंटरों को दोषी ठहराया, इस से इन की जगहंसाई ही हुई. क्योंकि मामूली सी अक्ल रखने वाला भी इस बात को समझ रहा था कि जब पेपर सीबीएसई बनाता है तो उसे कोई कोचिंग वाला कैसे लीक कर सकता है. हां, वह अपना धंधा चमकाने के लिए इन्हें बेच जरूर सकता है. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि सीबीएसई का कोई अफसर उसे पेपर बेचे.

कोई भी अपराध तब तक अपराध नहीं माना जाता, जब तक कि पुलिस एफआईआर दर्ज न कर ले. चूंकि कुछ करना था इसलिए सीबीएसई की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 420, 468 और 471 के तहत मामला दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी. जल्द ही एक एसआईटी (स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम) का भी गठन कर डाला, जिस की कमान पुलिस अधिकारी आर.पी. उपाध्याय को सौंप दी गई.

इधर 29 मार्च, 2018 को पेपर लीक होने के विरोध में देश भर में प्रदर्शन होने लगे थे. दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने आरोप लगाया कि अकेले अर्थशास्त्र या गणित का ही नहीं, बल्कि 10वीं और 12वीं के सारे पेपर लीक हुए हैं. लिहाजा पूरी परीक्षा दोबारा होनी चाहिए.

जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों में से एक छात्र राहुल ने बताया कि पेपर सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत से लीक हुए हैं और 2-2 हजार रुपए में बिके हैं. यह हमारे भविष्य से खिलवाड़ है.

हरकत में आई पुलिस काररवाई के नाम पर दिल्ली के कोचिंग सेंटरों पर ही छापामारी कर के यह जताने की कोशिश कर रही थी कि पेपर यहीं से लीक हुए हैं. पुलिस ने दिल्ली के द्वारका, रोहिणी और राजेंद्रनगर इलाकों के कोचिंग सेंटरों पर छापे मारे और कोचिंग सेंटर संचालकों सहित छात्रों से भी पूछताछ की.

पुलिस वाले छात्रों और कोचिंग संचालकों के मोबाइल फोन खंगाल रहे थे जैसे लीक का राज उन्हीं में छिपा हो. हो यह रहा था कि पुलिस वाले उन छात्रों को तंग कर रहे थे, जिन्हें कहीं से लीक पेपर मिला था. एक के बाद एक कइयों के मोबाइल खंगाले गए, लेकिन लीक सोर्स पुलिस को नहीं मिलना था सो नहीं मिला.

प्रकाश जावड़ेकर जोर इस बात पर दे रहे थे कि लीक सोर्स ढूंढा जा रहा है. छात्रों और अभिभावकों का बढ़ता विरोध प्रदर्शन देख कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौका ताड़ कर हमलावर हो उठे. उन्होंने ताना मारा ‘कितने लीक, डाटा लीक, आधार लीक, चुनाव की तारीखें लीक, एसएससी के पेपर लीक और अब सीबीएसई के पेपर लीक. लेकिन हमारा चौकीदार वीक.’

छात्रों की परेशानियों को कम करने के बजाय और बढ़ाते सीबीएसई की तरफ से कहा गया कि लीक हुए पेपरों की परीक्षा दोबारा होगी, जिन की तारीखों की घोषणा जल्द कर दी जाएगी.

दिल्ली के एक अभिभावक पेशे से वकील अलख श्रीवास्तव ने तुक की बात यह कही कि लीक प्रभावित छात्रों को एकएक लाख रुपए का मुआवजा दिलाया जाए.

31 मार्च को एक सनसनी भरी खबर यह आई कि दरअसल सीबीएसई के पेपर दिल्ली से नहीं बल्कि पटना से लीक हुए थे. झारखंड के चतरा जिले के एसपी ए.बी. वारियार ने दावा किया कि लीक हुआ प्रश्नपत्र पटना से चतरा आया था. इस बाबत बिहार और झारखंड से कोई दरजन भर लोगों को गिरफ्तार किया गया है. एसआईटी ने पटना के कृष्णनगर से गया स्थित शेरधारी निवासी अमित कुमार व छपरा के आकाश कुमार को गिरफ्तार कर लिया.

पेपर लीक के तार जुड़े थे दिल्ली से

बताया यह गया कि इन दोनों के तार दिल्ली से जुड़े हैं और ये दिल्ली के शिक्षा माफिया की मदद से सीबीएसई के पेपर लीक कर पैसों के बदले छात्रों को प्रश्नपत्र मुहैया कराते हैं. पुलिस ने चतरा के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट स्टडी विजन के संचालक सतीश पांडेय सहित 3 लोगों को गिरफ्तार किया.

सतीश पांडेय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जिला संयोजक भी है. इन कथित आरोपियों ने 28 मार्च का पेपर 27 मार्च को ही उपलब्ध करा दिया था. इस दिन एसआईटी ने 9 नाबालिग छात्रों को भी गिरफ्तार कर उन्हें हजारीबाग स्थित बाल सुधार गृह भेजा.

यह निहायत ही हास्यास्पद और बचकानी बात थी. पुलिस जड़ तक पहुंचने के बजाय पत्तियां तोड़ रही थी. पेपर अगर पटना में लीक हुए थे तो आरोपियों तक कहां से और कैसे आए, इस बात का कोई संतोषजनक जवाब पुलिस के पास नहीं था. सुधार गृह भेजे गए जब नाबालिग कोई पेशेवर या आदतन मुजरिम नहीं थे तो उन्हें सुधार गृह क्यों भेजा गया?

पेपर लीक होने की बात अब गंभीर चिंता के बजाय मजाक का विषय बन गई, यह बात एक बार फिर 7 अप्रैल, 2018 को साबित हुई. इस दिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हिमाचल प्रदेश के ऊना के डीएवी स्कूल के एक शिक्षक राकेश कुमार को लीक मामले का आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

डीएवी स्कूल ऊना की अपनी साख है. यह सीबीएसई का परीक्षा केंद्र नहीं था, बल्कि इस बार वहां के जवाहर नवोदय विद्यालय को परीक्षा केंद्र बनाया गया था. सीबीएसई ने डीएवी स्कूल के प्रिंसिपल अमित महाजन को परीक्षा के लिए अधीक्षक बनाया था. अमित महाजन ने परीक्षा की जिम्मेदारी एक शिक्षक राकेश कुमार को सौंप दी थी.

राकेश कुमार दूसरे कई लाख शिक्षकों की तरह पढ़ाने के साथसाथ कोचिंग सेंटर भी चलाता था. सीबीएसई के प्रश्नपत्र बैंक लौकर में रखे जाते हैं. 23 मार्च को जब राकेश कुमार 12वीं का कंप्यूटर साइंस का पेपर निकाल कर केंद्र तक पहुंचाने बैंक गया तो उस ने वहां रखा 28 मार्च को होने वाले अर्थशास्त्र के पेपर का बंडल भी उठा लिया. फिर उसे गायब कर लीक कर दिया.

इस काम में उस का साथ देने वाले अमित और अशोक भी धर लिए गए. दरअसल राकेश की कोचिंग का एक छात्र अर्थशास्त्र में कमजोर था, जिस के लिए राकेश ने यह पेपर उड़ाया था. बाद में उस ने यह पेपर चंडीगढ़ में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार को भी वाट्सऐप के जरिए भेजा था.

लीक के बाद हर कहीं से खबरें आने लगी थीं कि पेपर यहां से लीक हुआ. इन छापों की पुलिसिया काररवाई से लोग जरूर कंफ्यूज हो रहे थे कि पेपर बना कहां था और लीक कहां से हुआ.

मान लिया जाए कि ऊना के राकेश कुमार ने 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक किया तो 10वीं का गणित का पेपर लीक होने का जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों का जवाब किसी को नहीं मिल रहा और न ही मिलने की उम्मीद है.

पेपर कहांकहां से और कैसे लीक हो सकते हैं, यह समझने के लिए सीबीएसई की प्रक्रिया को समझना जरूरी है. प्रक्रिया को देख कर लगता है कि सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना पेपर लीक होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सी बात है.

सीबीएसई के बारे में कहा जाता है कि प्रश्नपत्र बना कर उन्हें परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की उस की पूरी प्रक्रिया इतनी फूलप्रूफ है कि पेपर कहीं से लीक हो ही नहीं सकते. लेकिन इस के बाद भी हो गए तो जाहिर है यह वही मिलीभगत और साजिश थी, जिस ने 28 लाख छात्रों की मेहनत पर पानी फेर दिया.

सभी छात्र अब तक शक कर रहे हैं कि सारे पेपर लीक हुए थे यानी इस परीक्षा प्रणाली को अविश्सनीय बनाने का मास्टरमाइंड हिंदी फिल्मों के खलनायक जैसा है, जिस तक पुलिस कथा लिखने तक नहीं पहुंच पाई थी.

ऐसा भी नहीं है कि पुलिस ने सीबीएसई को एकदम बख्श दिया हो या क्लीन चिट दे दी हो. उस ने कुछ अधिकारियों से पूछताछ की, खासतौर से परीक्षा नियंत्रक से जिन्होंने सीबीएसई की परीक्षा प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया. इस जानकारी का कोई खास उपयोग पुलिस वालों ने क्यों नहीं किया, यह जरूर शक पैदा करने वाली बात है.

प्रश्नपत्र बनाने की प्रक्रिया सामान्यत: अगस्त महीने से शुरू हो जाती है. जिस के तहत सीबीएसई देश भर के शिक्षकों में से कुछ को छांट कर उन्हें विषयवार प्रश्नपत्र बनाने की जिम्मेदारी देती है. इन शिक्षकों की योग्यता के अलग पैमाने होते हैं. ये शिक्षक प्रश्नपत्रों के 3 से 4 सेट सीबीएसई को भेजते हैं.

इन में से कोई एक सेट सीबीएसई लेती है, पर यह शिक्षकों को नहीं मालूम रहता कि परीक्षा के लिए उन का बनाया प्रश्नपत्र ही लिया जाएगा. सीबीएसई यह सुनिश्चित करती है कि पेपर बनाने वाले शिक्षक कहीं कोचिंग या ट्यूशन न पढ़ाते हों और उन का कोई नजदीकी रिश्तेदार बोर्ड के इम्तहान में शामिल न हो रहा हो.

अलगअलग विषयों के प्रश्नपत्र जब छांट लिए जाते हैं तो उन्हें छपाई के लिए भेजा जाता है. इन प्रिंटिंग प्रेसों की जानकारी बेहद गोपनीय रहती है, जो देश भर में कहीं भी हो सकती है. सीबीएसई में नोटिफाइड प्रेसों में से किस प्रेस को काम दिया गया है, यह जानकारी महत्त्वपूर्ण और गिने हुए अधिकारियों को ही रहती है. जिस प्रिंटिंग प्रेस में पेपर छपते हैं, उस में सीसीटीवी कैमरे लगे होना जरूरी होता है.

कड़ी प्रक्रिया से गुजरने के बाद छात्रों तक पहुंचते हैं प्रश्नपत्र

पेपर उतने ही छपवाए जाते हैं, जितने छात्र परीक्षा में शामिल हो रहे होते हैं. छपाई के बाद से प्रश्नपत्र सीधे परीक्षा केंद्र नहीं पहुंचाए जाते बल्कि उन्हें परीक्षा केंद्रों के नजदीक किसी बैंक के लौकर में रखा जाता है. ऐसे बैंकों को कस्टोडियन बैंक या कलेक्शन सेंटर कहा जाता है. यह जानकारी बैंक मैनेजर के अलावा परीक्षा केंद्र अधीक्षक को ही रहती है.

जिस दिन परीक्षा होती है, उस दिन एक बैंक कर्मचारी, सीबीएसई का एक प्रतिनिधि और परीक्षा केंद्र यानी स्कूल का प्रतिनिधि मौजूद रहता है. ये तीनों जब सुनिश्चित कर लेते हैं कि रखे हुए पेपरों के बंडल सीलबंद हैं और उन से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है, इस के बाद ही पेपर के बंडल बैंक से सीधे परीक्षा केंद्र पहुंचाए जाते हैं. जिस वाहन में प्रश्नपत्र जाते हैं, उस में एक सिक्योरिटी गार्ड भी रहता है.

परीक्षा केंद्र पर प्रश्नपत्र पेपर शुरू होने के आधे घंटे पहले खोले जाते हैं और ड्यूटी दे रहे शिक्षकों को कमरों में मौजूद छात्रों की संख्या के हिसाब से दिए जाते हैं. फिर ड्यूटी दे रहे शिक्षक प्रश्नपत्र वितरित करते हैं.

देखा जाए तो प्रक्रिया वाकई फूलप्रूफ है लेकिन इस में कई छेद हैं, जिन से हो कर कोई भी प्रश्नपत्र लीक हो सकता है या किया जा सकता है. पहला झोल तो यही है कि छपाई के प्रश्नपत्र जब सीबीएसई मुख्यालय में रखे रहते हैं, तब वहां के अधिकारी ही इन्हें उड़ा सकते हैं. ऐसा साल 2004 और 2011 में हो भी चुका है.

दूसरा छेद बैंक लौकर हैं, जहां प्रश्नपत्र लंबे समय तक रखे रहते हैं. बैंक अधिकारी कभी भी ताला खोल कर प्रश्नपत्र लीक कर सकते हैं. साल 2006 में 12वीं का बिजनैस स्टडीज का पेपर बैंक से ही लीक हुआ था.

यह मामला बड़ा दिलचस्प है. हरियाणा के पानीपत शहर में पुलिस ढूंढ तो रही थी वाराणसी बम ब्लास्ट के आरोपियों को, लेकिन जगहजगह की छापेमारी में पुलिस के हाथ ये प्रश्नपत्र लग गए थे, जिन में 6 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन में बैंक मैनेजर व कैशियर भी शामिल थे. यानी बैंक लौकर में रखे प्रश्नपत्रों के लीक न होने की गारंटी नहीं है.

बैंक से परीक्षा केंद्र तक के रास्ते में पेपर के लीक होने की गुंजाइश काफी कम है क्योंकि उस वक्त पेपर उड़ाने का कोई खास फायदा नहीं होता. उस समय तक छात्र परीक्षा केंद्र पहुंच चुके होते हैं. दूसरे इतनी जल्द बंडल को सील पैक नहीं किया जा सकता. इस में वाहन में मौजूद तीनों लोगों की मिलीभगत जरूरी है.

इस साल के पेपर लीक से एक नई बात या तरीका यह उजागर हुआ कि पेपर लेने गया स्कूल का प्रतिनिधि अगले पेपर का भी बंडल उठा सकता है. यह जरूर चिंता वाली बात है कि सीबीएसई का कोई जोर इन बैंकों पर नहीं है और सारे पेपर एक साथ इस तरह क्यों रखे जाते हैं कि आने वाली परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों का बंडल भी शिक्षक उठा ले जाए.

साफ दिख रहा है कि ऊना और पटना की सनसनी सिर्फ लीपापोती थी, जिस से लोग भ्रमित हों और ऐसा हो भी रहा है. लोग इस लीक कांड को दूसरे कांडों की तरह भूलने लगे हैं. सीबीएसई ने बवाल से बचने के लिए गणित का पेपर दोबारा कराने का फैसला ले कर कोई बुद्धिमानी का काम नहीं किया है, बल्कि यह संदेशा दिया है कि अगर कोई पेपर सीमित स्थान में लीक हुआ है तो उसे लीक हुआ नहीं माना जाएगा.

जाह्नवी की अनदेखी क्यों

पुलिसिया कार्रवाई कितनी खोखली और बनावटी थी, इस बात का अंदाजा लगाने कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं. परीक्षा के 9 दिन पहले ही लुधियाना की रहने वाली एक 17 वर्षीय छात्रा जाह्नवी बहल ने इस कांड का पहले ही परदाफाश कर दिया था, पर अफसोस इस बात का है कि तब भी उस की बात पर ध्यान नहीं दिया गया था और अब भी नहीं दिया जा रहा.

जाह्नवी लुधियाना के बसंत सिटी इलाके में रहती है और पक्खोवाल रोड स्थित डीएवी स्कूल की 12वीं की कौमर्स की छात्रा है. जाह्नवी के पिता अश्विनी बहल नौकरीपेशा हैं और मां नंदिनी गृहिणी हैं.

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17 मार्च को ही जाह्नवी ने पेपर लीक का ब्यौरा अपनी शिकायत के साथ लुधियाना के पुलिस कमिश्नर आर.एन. ढोके को भेजा था. कमिश्नर ने जांच की जिम्मेदारी एडीसीपी रतन बराड़ को सौंप दी थी. पुलिस ने कोई जांच की हो, ऐसा लग नहीं रहा बावजूद इस के कि जाह्नवी ने पेपर लीक कराने वाले का फोन नंबर भी दिया था.

जाह्नवी ने अकेले पुलिस को ही नहीं बल्कि समझदारी दिखाते हुए उस ने शिकायत की प्रतियां सीबीएसई के औफिस और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी थीं.  इस के बावजूद काररवाई न होना इस शक को यकीन में बदल रहा है कि पेपर लीक कांड के तार बहुत लंबे हैं. अगर वक्त रहते पुलिस काररवाई करती तो होता यह कि दोनों पेपर तुरंत रद्द करने पड़ते जिस में घाटा या नुकसान उन लोगों का होता जो इन का कारोबार कर रहे थे.

पेपर वक्त रहते रद्द हो जाते तो बिकते नहीं, इसलिए काररवाई का न होना बड़े घपले की तरफ इशारा कर रहा है. जिस किसी ने भी पेपर लीक किए, उसे पैसे बनाने का मुकम्मल मौका मुहैया कराया गया. पर लाख टके का सवाल यह है कि वह कौन है, जिस ने पेपर बेचे? अब जब भी वह पकड़ा जाएगा, तभी राज से परदा उठ पाएगा.

अकेली जाह्नवी ने ही नहीं बल्कि एक और अज्ञात जागरूक नागरिक जिसे व्हिसल ब्लोअर करार दिया गया, पेपर लीक होने के मामले में सीबीएसई औफिस को आगाह करता रहा था.

सीबीएसई इस बात को मान चुकी है कि इस व्हिसल ब्लोअर ने मेल के जरिए पेपर लीक होने की बात बताई थी. जाने यह कोई क्यों नहीं बता रहा कि इस शिकायत या जानकारी पर समय से कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया था. सांप निकल जाने के बाद अब लकीर क्यों पीटी जा रही है.

मुमकिन है देरसबेर पुलिस असल अपराधी तक पहुंच जाए, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी और छात्रों के नुकसान की भरपाई तो किसी भी सूरत में नहीं हो पाएगी. साल 2018 जिन अपराधों के लिए याद किया जाएगा, उन में से एक सीबीएसई पेपर लीक मामला भी होगा.

गर्लफ्रेंड को टौप कराने के चक्कर में बैंक से चुराए थे पेपर

हिमाचल प्रदेश के ऊना में स्थित डीएवी स्कूल का टीचर राकेश कुमार शर्मा बैंक से चुराया हुआ अर्थशास्त्र का पेपर अपनी गर्लफ्रैंड के अलावा अपनी भाभी को नहीं देता तो शायद पेपर आऊट होने का राज उजागर नहीं होता. यह राज उसी तरह से दबा रहता जिस तरह से राकेश कुमार द्वारा अन्य पेपर चुराने का दबा रहा.

राकेश ऊना के डीएवी स्कूल में एक टीचर था. इस स्कूल को सीबीएसई एग्जाम का सेंटर बनाया गया था. सीबीएसई ने प्रश्न पत्र स्थानीय यूनियन बैंक औफ इंडिया के लौकर में सुरक्षित रखवा दिए थे. बैंक से पेपर लाने की जिम्मेदारी स्कूल के प्रिंसिपल अतुल महाजन ने टीचर राकेश कुमार शर्मा, क्लर्क अमित शर्मा और चपरासी अशोक कुमार को दे रखी थी.

ये तीनों ही यूनियन बैंक औफ इंडिया के लौकर में 12वीं कक्षा के पेपर ले कर आते थे. टीचर राकेश कुमार की अपनी एक खास स्टूडेंट थी. कहा जाए तो वह उस की गर्लफ्रैंड थी, जो 12वीं की परीक्षा दे रही थी. वह गर्लफ्रैंड को टौप कराना चाहता था, इसलिए जब वह बैंक से पेपर लेने जाता तो मौका लगते ही वहां से आगामी पेपर भी पार कर लेता था. इसी तरह उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को लगभग सभी विषयों के प्रश्न पत्र पहले ही उपलब्ध करा दिए थे.

28 मार्च, 2018 को होने वाला 12वीं कक्षा का अर्थशास्त्र का पेपर भी उस ने गर्लफ्रैंड को पहले ही उपलब्ध करा दिया था. लेकिन उस ने वह पेपर फिरोजपुर, पंजाब में रहने वाली अपनी भाभी अंजू बाला को भी वाट्सऐप कर दिया था. अंजू बाला एक काउंसलिंग सेंटर चलाती हैं और 12वीं के स्टूडेंट्स की कैरियर काउंसलिंग करती हैं.

अर्थशास्त्र का पेपर मिल जाने के बाद अंजू बाला ने राकेश को किसी स्कूल में प्रिंसिपल बनवाने का वादा किया था. इस के बाद लोगों ने अपनी ऊंची पहुंच दिखाने के लिए वह प्रश्न पत्र और लोगों को भेजना शुरू कर दिया. अंजू बाला की एक बहन है मीनू जो पंचकूला में रहती है. अंजू ने अर्थशास्त्र का वह प्रश्न पत्र वाट्सऐप द्वारा मीनू के पास भेजा.

मीनू ने दिल्ली के पश्चिम विहार में रहने वाले अपने जीजा अजय को वह पेपर भेजा. अजय की बहन पूजा दिल्ली के लारेंस रोड पर रहती थी, उस ने वह पेपर पूजा को भेज दिया. फिर पूजा ने दिल्ली के मौडल टाउन में रहने वाले अपने करीबी दोस्त को भेजा. दोस्त ने वह किसी और को भेजा. इस के बाद लोगों ने इस पेपर से पैसे कमाने शुरू कर दिए. बाद में कहीं जा कर जब यह बात मीडिया तक पहुंची तो पता चला कि 12वीं कक्षा का अर्थशासत्र का प्रश्न पत्र लीक हो चुका है.

राकेश कुमार शर्मा यदि अर्थशास्त्र का प्रश्न पत्र अपनी भाभी अंजू बाला तक नहीं भेजता तो पेपर लीक होने की बात किसी को पता नहीं चलती. इस से पहले उस ने सभी प्रश्न पत्र केवल अपनी गर्लफ्रैंड को दिए थे इसलिए लीक होने की बात किसी को पता नहीं लगी. अब राकेश शर्मा को इस बात का पछतावा हो रहा है कि काश वह अंजू भाभी को अर्थशास्त्र का पेपर नहीं भेजता तो उस का राज छिपा रहता और उसे जेल भी जाना नहीं पड़ता.

राकेश शर्मा से पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच अंजू बाला, मीनू, अजय, पूजा आदि तक पहुंच गई.

दिल्ली पुलिस का पेपर लीक न हो, लिए जा रहे हैं टिप्स  

राजस्थान पुलिस परीक्षा, एफसीआई परीक्षा, सीबीएसई परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक हो जाने के बाद दिल्ली पुलिस भी अब चौकस हो गई है कि वह ऐसी क्या व्यवस्था करे कि विभाग में होने वाली चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भरती परीक्षा तक पेपर लीक कराने वाला गैंग न पहुंच सके.

दरअसल, दिल्ली पुलिस में दफ्तरी, माली, कुक, चपरासी आदि के 700 पद भरे जाने हैं. इन पदों के लिए करीब 7 लाख आवेदन आए हैं. इन पदों के लिए 10वीं पास योग्यता रखी गई थी पर 12वीं से ले कर ग्रैजुएट तक की योग्यता वालों ने फौर्म भरे हैं.

भरती प्रक्रिया में लिखित परीक्षा के बाद उन का प्रैक्टिकल भी लिया जाएगा. इस में यह देखा जाएगा कि जिस पद के लिए आवेदन किया है, क्या आवेदक वह काम करने में सक्षम है. इस के लिए विभाग तमाम एक्सपर्ट की भी मदद लेगा.

इन पदों के लिए लिखित परीक्षा जून, 2018 में कराने की योजना है. जिस तरह हाल ही में राजस्थान पुलिस परीक्षा, सीबीएसई परीक्षा, एफसीआई परीक्षा आदि के प्रश्नपत्र लीक होने के मामले सामने आए हैं, इन्हें देख कर दिल्ली पुलिस इस बात को ले कर चिंतित है कि कहीं उन के विभाग की इस परीक्षा का पेपर भी लीक न हो जाए.

इस के लिए पुलिस न केवल यूपीएससी के लिए होने वाले एग्जाम पैटर्न पर विचारविमर्श कर रही है बल्कि और भी कई एजेंसियों के संपर्क में है. परीक्षा लीकप्रूफ बनाने के लिए पुलिस अधिकारी भी विचारविमर्श कर रहे हैं.

डीडीए ने परीक्षा में नकल रोकने के लिए उठाया नायाब तरीका

सीबीएसई और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सुनियोजित तरीके से नकल कराने की बात उजागर होने के बाद अब अन्य सरकारी विभाग इस बात को ले कर आशंकित हैं कि कहीं उन के विभाग में होने वाली परीक्षाओं के प्रश्नपत्र नकल कराने वाले गैंग के हाथ में न पहुंच जाएं.

दिल्ली विकास प्राधिकरण में भी कनिष्ठ अभियंताओं की नियुक्ति के लिए अप्रैल के अंतिम सप्ताह में हुई लिखित परीक्षा के लिए अजीबोगरीब निर्देश जारी किए थे.

दिल्ली विकास प्राधिकरण में 302 कनिष्ठ अभियंता (सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल) पदों के लिए 82 हजार 205 उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. यह परीक्षा 23 से 26 अप्रैल तक चली थी. इस के लिए दिल्ली एनसीआर में 28 परीक्षा केंद्र बनाए गए थे. 4 दिनों तक चलने वाली यह परीक्षा 2 शिफ्ट में संपन्न हुई. किसी भी तरह से परीक्षा में नकल न हो, इस के लिए प्राधिकरण ने उम्मीदवारों के लिए कुछ ऐसे निर्देश जारी किए थे कि उम्मीद भी हैरान रह गए.

इन निर्देशों के तहत कहा गया था कि उम्मीदवार पूरी बाजू की शर्ट, टौप्स, जूते, अंगूठी, नथ, ब्रेसलेट, हेयरपिन, हेयरबैंड लगा कर परीक्षा में नहीं घुस सकेंगे. पैरों की अंगुलियों को ढकने वाले फुटवियर पर भी पाबंदी लगाई लगा दी गई थी. कहा गया था कि वह पैरों की अंगुलियों की ओर खुले फुटवियर ही परीक्षा हाल में पहन कर जा सकेंगे. इस के अलावा बड़े बटन वाले कपड़े पहन कर जाने पर भी पाबंदी लगाई गई थी.

इन के अलावा प्राधिकरण ने यह भी कह दिया था कि परीक्षार्थी अपने साथ किताबें, पेन, पेंसिल, स्टेशनरी बौक्स, पेपर चिट, मैगजीन, इलैक्ट्रौनिक गैजेट और किसी भी प्रकार की घड़ी परीक्षा हाल में नहीं लाएं. रफ कार्य के लिए परीक्षा केंद्रों पर ही उम्मीदवारों को पेन, पेंसिल और कागज उपलब्ध कराए. यह बात साफ बता दी गई थी कि अगर कोई परीक्षार्थी इन प्रतिबंधित सामान को अपने साथ लाएगा तो उसे परीक्षा से वंचित कर दिया जाएगा. कुल मिला कर परीक्षार्थी को खाली हाथ आने को कहा था.

इन अजीबोगरीब निर्देशों के जारी करने के बाद यह बात स्पष्ट थी कि प्राधिकरण पेपर लीक कराने वाले माफियाओं से कितना डरा हुआ था.

VIDEO : ट्रांइगुलर स्ट्रिप्स नेल आर्ट

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भरती घोटाला : इम्तिहान में फेल हुई पुलिस

मार्च के दूसरे सप्ताह की बात है. राजस्थान  पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. को मिली एक सूचना ने उन्हें चिंता में डाल दिया. दरअसल, सूचना ही ऐसी थी कि आईजी साहब का चिंतित होना स्वाभाविक था. उन्हें सूचना मिली कि पुलिस कांस्टेबल भरती की औनलाइन परीक्षा में हाईटेक गिरोह परीक्षा केंद्रों के कंप्यूटर हैक कर दूसरी जगह से अभ्यार्थियों को नकल करा रहा है. भरती की प्रक्रिया के तहत सब से पहले औनलाइन परीक्षा होनी थी. इस के लिए पुलिस मुख्यालय ने परीक्षा कार्यक्रम जारी कर दिया था. यह औनलाइन परीक्षा पहले चरण में 7 मार्च को प्रारंभ हो गई थी जो 45 दिनों तक अलगअलग तारीखों को आयोजित की जानी थी.

परीक्षा के लिए प्रदेश में 10 जिलों जयपुर, जोधपुर, अजमेर, अलवर, बीकानेर, झुंझनूं, कोटा, सीकर, गंगानगर व उदयपुर में 34 विभिन्न इंस्टीट्यूट में केंद्र बनाए गए थे. इन में 19 परीक्षा केंद्र जयपुर में थे.

आईजी दिनेश एम.एन. जानते थे कि बौलीवुड फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस की तर्ज पर देश में होने वाली प्रत्येक बड़ी परीक्षा में आजकल बडे़ पैमाने पर नकल होने लगी है और तो और शिक्षा व कालेजों की परीक्षा में भी बड़े स्तर पर नकल होती है.

सरकारी नौकरियों के लिए भरती और औल इंडिया तथा राज्य स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षाओं में नकल कराने वाले अनेक गिरोह सक्रिय हो गए हैं. ये गिरोह पैसे ले कर अत्याधुनिक उपकरणों से अभ्यर्थी को दूर बैठ कर नकल कराते हैं.

चिंता की वजह से आईजी ने जांच का काम सौंपा एसओजी को आईजी साहब के सामने चिंता की बात यही थी कि लोग कहेंगे कि पुलिस अपनी ही भरती परीक्षा में फेल हो गई. उन्होंने अपने आला अफसरों को सूचना की जानकारी दी. फिर एसओजी के 5-6 तेजतर्रार अफसरों को बुलाया. इन पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक कर आईजी साहब ने कांस्टेबल भरती परीक्षा में हाईटेक गिरोह की ओर से नकल कराने की सूचना की सच्चाई का पता लगाने को कहा.

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एसओजी के अफसर अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गए. प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आ गई कि सूचना सही है. इतना पता लगने पर पुलिस अधिकारी गिरोह के सदस्यों की तलाश और उस की कार्यप्रणाली का पता लगाने में जुट गए.

सभी जरूरी जानकारियां और सबूत जुटाने के बाद 12 मार्च, 2018 को एसओजी ने जयपुर के मालवीय नगर स्थित सरस्वती इंफोटैक सेंटर पर छापा मारा. पुलिस ने यहां से 5 लोगों और इंफोटैक सेंटर के एक पार्टनर को हिरासत में ले लिया.

ये लोग दिल्ली, हरियाणा व महाराष्ट्र के रहने वाले थे. पता चला कि ये अभ्यर्थियों के कंप्यूटर हैक कर पेपर हल करते थे. सरस्वती इंफोटैक पुलिस कांस्टेबल भरती परीक्षा का एक औनलाइन परीक्षा केंद्र था. इस केंद्र पर एक पारी में 300 अभ्यर्थियों के बैठने की व्यवस्था थी. इन के लिए 300 कंप्यूटर लगाए गए थे. इन से पूछताछ के आधार पर एसओजी ने दूसरे ही दिन एक परीक्षार्थी और दिल्ली निवासी एक दलाल को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी इस मामले में गिरोह के अन्य सदस्यों को पकड़ने और नकल से पेपर देने वाले अभ्यथियों की तलाश में जुटी हुई थी. गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों को पुलिस ने रिमांड पर ले रखा था.

उन से की गई पूछताछ में 13 मार्च को पता चला कि जयपुर के ही हरमाड़ा स्थित डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में गिरोह ने कंप्यूटर सिस्टम को रिमोट एक्सेस के जरिए हैक कर जयपुर से 300 किलोमीटर दूर हरियाणा के भिवानी शहर में औपरेट कर के पुलिस कांस्टेबल भरती के पेपर हल कर दिए थे. डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में प्रत्येक पारी में 200 अभ्यर्थी परीक्षा दे रहे थे.

यह जानकारी मिलने पर एसओजी की टीम ने उसी रात दबिश दे कर इस स्कूल के संचालक सहित 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. ये चारों राजस्थान के रहने वाले थे. जयपुर से एसओजी की एक टीम हरियाणा के भिवानी शहर भेजी गई. लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले आरोपी फरार हो गए.

पुलिस को 2 परीक्षा केंद्रों पर नकल कराए जाने की पुष्टि हो चुकी थी. पुलिस कांस्टेबल भरती परीक्षा आयोजित कराने का ठेका एप्टेक कंपनी ने लिया था. डीजीपी ओ.पी. गल्होत्रा ने 14 मार्च को पुलिस अधिकारियों और परीक्षा आयोजित करने का ठेका लेने वाली एप्टेक कंपनी के अधिकारियों की बैठक बुलाई.

कोई एक गिरोह नहीं लगा था नकल कराने में, कुछ अंदर वाले थे कुछ बाहर वाले  इस में उन 10 जिलों के एसपी शामिल हुए, जहां परीक्षा हो रही थी. बैठक में डीजीपी ने सभी अधिकारियों को परीक्षा केंद्र अपनी निगरानी में लेने और अभ्यर्थियों पर नजर रखने के निर्देश दिए. बैठक में परीक्षा रद्द करने पर भी विचार किया गया. इस पर तय किया गया कि एसओजी की जांच के बाद ही परीक्षा के बारे में आगे का फैसला लिया जाएगा.

एसओजी को जांचपड़ताल में नकल कराने वाले दूसरे गिरोह के सक्रिय होने और अंगूठे के निशान की क्लोनिंग करने की भी चौंकाने वाली नई जानकारी मिली. एसओजी की टीम ने 15 मार्च को जयपुर में डौल्फिन किड्स इंरटनैशनल स्कूल में ही थंबप्रिंट क्लोन के जरिए असली परीक्षार्थी की जगह परीक्षा दे रहे नकली परीक्षार्थी को पकड़ा.

वह सरकारी कर्मचारी ग्रामसेवक निकला. उस की निशानदेही पर परीक्षा केंद्र के बाहर से हरियाणा निवासी असली परीक्षार्थी और भरतपुर निवासी एक दलाल को गिरफ्तार कर लिया.

उसी दिन एसओजी ने सरस्वती इंफोटैक के हरियाणा निवासी फरार संचालक को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के अलावा 15 मार्च को ही अलवर के अजरका निवासी एक परीक्षार्थी को गिरफ्तार किया गया. उस ने 10 मार्च को जयपुर के डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में परीक्षा दी थी. नकल कराने वाले गिरोह से सौदा करने के बाद परीक्षा के दौरान वह अपनी सीट पर डमी की तरह बैठा रहा था. उस का कंप्यूटर हैक कर हरियाणा के भिवानी से पेपर हल किया गया था.

उसी दिन अजमेर में भी कांस्टेबल भरती में नकल का मामला सामने आया. पुलिस ने कायड़ रोड घूघरा स्थित टैक्निकल संस्थान अजमेर इंफोटैक के 2 संचालकों और एक अभ्यर्थी सहित 8 लोगों को धोखाधड़ी और आईटी एक्ट में गिरफ्तार किया. यह गिरोह एएमएमवाईवाई एडमिन सौफ्टवेयर टूल से कंप्यूटर सिस्टम हैक कर लेता था. फिर एक्सपर्ट से पेपर हल करवाया जाता था.

16 मार्च को एसओजी ने थंबप्रिंट का क्लोन बनाने वाले गिरोह के भरतपुर निवासी मास्टरमाइंड और उस के जीजा को भी गिरफ्तार कर लिया. इन के अलावा सरस्वती इंफोटैक नकल गिरोह मामले में हरियाणा के 2 लेगों को गिरफ्तार किया.

कांस्टेबल भरती परीक्षा में हाईटेक नकल करने के रोजाना एक से बढ़ कर एक चौंकाने वाले तरीके सामने आने से परीक्षा की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठने लगे थे. इस के विरोध में 17 मार्च को जयपुर कैलगिरि रोड पर सैकड़ों अभ्यर्थियों ने जाम लगा दिया.

इन अभ्यर्थियों ने परीक्षा में नकल करने और कराने वालों पर सख्त काररवाई करने और परीक्षा की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की. इस के अलावा यह परीक्षा औफलाइन कराने की मांग भी की गई.

नकल के नएनए पैंतरे सामने आने पर दूसरे चरण की परीक्षाएं स्थगित करने की घोषणा कर दी गई. डीजीपी का कहना है कि 5390 पदों के लिए राज्य के बजट में की गई घोषणा के अनुसार, 15 हजार 291 पदों पर कांस्टेबलों की भरती भी इसी के साथ कराई जाएगी. इस तरह अब 20 हजार से ज्यादा कांस्टेबलों की भरती होगी. यह भरती परीक्षा नए सिरे से औफलाइन कराई जाएगी.

20 से 31 मार्च तक दूसरे चरण की होने वाली परीक्षा में करीब 3 लाख अभ्यर्थियों को भाग लेना था, जबकि इतने ही अभ्यर्थी पहले चरण की परीक्षा दे चुके थे.

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एसओजी ने नकल के मामले में 17 मार्च को डाक्टर व इंजीनियर सहित 5 अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया. ये लोग बिहार, हरियाणा व राजस्थान के रहने वाले थे.

6 दिन में 4-5 अलगअलग गिरोह के सामने आने और करीब 3 दरजन बदमाशों की गिरफ्तारी के बाद आखिर 20 मार्च को नकल कराने वाले गिरोह के गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ की गई. उस के बाद जो कहानियां सामने आई हैं, वह इस प्रकार हैं—

एसओजी ने 12 मार्च को सरस्वती इंफोटैक सेंटर से गिरफ्तार किए गए 6 लोगों, रोहतक के रहने वाले और सरस्वती इंफोटेक के पार्टनर विकास मलिक, नासिक के रहने वाले अमोल महाजन, बहादुरगढ़ के रहने वाले अभिमन्यु सिंह और संजय छिंकारा, सोनीपत के अंकित शेरावत और दिल्ली के अमित जाट से पूछताछ की तो पता चला कि गिरोह के लोगों ने 5 मार्च को ही परीक्षा केंद्र से करीब 500 मीटर दूर एक बिल्डिंग किराए पर ले कर वहां समानांतर सेंटर खोल लिया था.

इस समानांतर सेंटर से पेपर हल कर सबमिट किए जा रहे थे. इस गिरोह ने 8 मार्च को 6 और 10 मार्च को 3 अभ्यर्थियों के पेपर हल कर के सबमिट करने की बात बताई. छापे के दौरान सरस्वती इंफोटैक के 2 पार्टनर मुख्तियार और कपिल फरार हो गए थे. गिरफ्तार किए गए आरोपियों में अभिमन्यु सिंह और संजय छिंकारा आईटी एक्सपर्ट हैं. इन दोनों को इंफोटैक के पार्टनर ने 10-10 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से हायर किया था.

पता चला कि इस गिरोह का मास्टरमाइंड विकास मलिक राजस्थान पुलिस कांस्टेबल की भरती निकलने के साथ ही सक्रिय हो गया था. उस ने अपना गिरोह बना कर नकल कराने का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. इस के लिए सब से पहले उस ने सरस्वती इंफोटैक में पार्टनरशिप की.

फिर उस ने जुगाड़बाजी से पास होने की इच्छा रखने वाले अभ्यर्थी तलाशने शुरू कर दिए. थोड़ी कोशिश के बाद उसे कई अभ्यर्थी मिल गए. इस के बाद उस ने परीक्षा केंद्र के पास किराए पर बिल्डिंग ली और 2 एक्सपर्ट अभिमन्यु और संजय छिंकारा को हायर किया.

राजस्थान पुलिस मुख्यालय ने कांस्टेबल भरती परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी दिल्ली की एप्टेक कंपनी को सौंपी थी. इस कंपनी ने भरती परीक्षा के सेंटर संचालकों से ही कंप्यूटर आदि संसाधन उपलब्ध कराने को कहा.

विकास मलिक ने इस का फायदा उठाया और हायर किए गए 2 आईटी एक्सपर्ट अभिमन्यु सिंह तथा संजय छिंकारा को अपना कर्मचारी बता कर सिस्टम में घुसपैठ करा दी. विकास ने इंफोटैक की बिल्डिंग पर वायरलैस एंटीना लगा दिया. परीक्षा केंद्र में लगे कंप्यूटर सर्वर को वायरिंग से जोड़ कर एंटीना से कनेक्ट कर दिया था.

टेक्नोलौजी के इस्तेमाल से रची गई नकल कराने की साजिश गिरोह ने परीक्षा सेंटर के पास किराए पर ली दूसरी बिल्डिंग की छत पर राउटर और अन्य उपकरण लगा दिए. इसी बिल्डिंग के एक कमरे में लैपटाप और अन्य उपकरणों के साथ प्रश्नपत्र हल करने वाले एक्सपर्ट किताबों  के साथ बैठा दिए. जिस अभ्यर्थी से गिरोह का सौदा हुआ था, उस के कंप्यूटर में पहले ही पैन ड्राइव से सौफ्टवेयर इंस्टाल कर दिया गया था.

इस के बाद आरोपी फोन पर अभ्यर्थी के कंप्यूटर का आईपी एड्रेस नकल कराने वाले कंट्रोलरूम में बैठे अपने साथियों को बता देते थे. कंट्रोलरूम में बैठे गिरोह के लोग अभ्यर्थी का कंप्यूटर रिमोट एक्सेस पर ले लेते थे. यानी उस का कंप्यूटर दूर बैठ कर भी अपने कब्जे में ले लेते थे.

रिमोट एक्सेस लेने के बाद अभ्यर्थी तो सेंटर पर बैठा हुआ केवल माउस हिलाता रहता था और दूसरी बिल्डिंग में बैठे गिरोह के एक्सपर्ट किताबें पढ़ कर पेपर हल कर वहीं से सबमिट भी कर देते थे.

पूछताछ में पता चला कि गिरोह ने नकल कराने के एवज में प्रत्येक अभ्यर्थी से 5 से 7 लाख रुपए तक का सौदा किया था. एसओजी ने गिरोह के कंट्रोलरूम में लैपटौप, राउटर, किताबें वगैरह जब्त कीं.

हाईटेक नकल के इस मामले में एसओजी ने दूसरे दिन एक परीक्षार्थी नागौर के डेगाना निवासी रामदेव खींचड़ और दिल्ली के दलाल राजीव डबास को गिरफ्तार किया. इन में रामदेव खींचड़ ने एसओजी अधिकारियों को बताया कि वह नागौर में एक कोचिंग क्लासेज में कोचिंग करता था. कोचिंग संचालक ने उसे गारंटी से कांस्टेबल परीक्षा पास कराने का वादा कर एक लाख रुपए एडवांस लिए थे.

बाकी रकम लिखित परीक्षा पास होने पर कोचिंग संचालक को दी जानी थी. इस कोचिंग क्लासेज से 60 अभ्यर्थियों ने कांस्टेबल भरती परीक्षा की तैयारी की थी. दलाल राजीव डबास नकल के लिए अभ्यर्थी तलाशता था. सरस्वती इंफोटैक के फरार 2 संचालक कपिल और मुख्तियार नकल कराने के लिए कोचिंग संचालकों से संपर्क करते थे.

एसओजी इस मामले में गिरोह के अन्य सदस्यों को पकड़ने और नकल से पेपर देने वाले अभ्यर्थियों की तलाश में जुटी हुई थी. एसओजी टीम ने उसी रात दबिश दे कर डौल्फिन किड्स इंटरनेशनल स्कूल के संचालक नागौर निवासी रामनिवास के अलावा जयपुर के चौमूं निवासी मुकेश कुमार जयपुर के ही आमेर निवासी रामरतन शर्मा और राजू उर्फ राजेंद्र जाट को गिरफ्तार कर लिया.

इन में स्कूल संचालक रामनिवास का एक आईटीआई कालेज होने का भी पता चला, जयपुर से एसओजी की एक टीम हरियाणा के भिवानी शहर भेजी गई. लेकिन वहां बैठे आरोपी प्रमोद फोगट और उस के साथी पहले ही फरार हो गए. गिरफ्तार हुए संजय छिकारा का मौसेरा भाई है. प्रमोद फोगट का डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल संचालक रामनिवास से संपर्क था. प्रमोद ने रामनिवास को एक अभ्यर्थी से 5 लाख रुपए तक मिलने का आश्वासन दे कर नकल कराने के लिए तैयार किया था.

रामनिवास ने कंप्यूटर हैक कर पेपर हल करने के लिए स्कूल के पास जो किराए की बिल्डिंग ली थी. प्रमोद ने स्कूल के परीक्षा केंद्र में लगे कंप्यूटरों को उस बिल्डिंग में लगे इंटरनेट से जोड़ दिया. फिर इंटरनेट के जरिए ही भिवानी में कंप्यूटर से हैकिंग सौफ्वेयर के जरिए सेंटर के कंप्यूटर को हैक कर लिया था.

इन में स्कूल संचालक रामनिवास ने खुद नकल करने वाले अभ्यर्थियों से सौदा किया और फिर हरियाणा के विकास मलिक के गिरोह से मिल गया. मुकेश कुमार परीक्षा का पर्यवेक्षक था. परीक्षा की पूरी मानिटरिंग की जिम्मेदारी उसी की थी. लेकिन वह भी नकल गिरोह से मिल गया. रामरतन शर्मा आईटी का एक्सपर्ट है. यह कंप्यूटर को रिमोट एक्सेस पर लेने के लिए डार्क कौंबैट सौफ्टवेयर डाउनलोड करता था. राजू उर्फ राजेंद्र स्कूल में टेक्नीशियन था.

गिरोह ने इस परीक्षा शुरू होने से पहले 7 मार्च को स्कूल के कक्ष के 100 कंप्यूटर पास वाले कमरे के कंप्यूटरों से ही जोड़ दिए. सभी कंप्यूटरों को ट्रांसमीटर लगा कर वाईफाई से जोड़ा गया ताकि इंटरनेट से भिवानी में हैक किए जा सकें. कंप्यूटर में डार्क कौंबैट सौफ्टवेयर डाउनलोड कर एक्सेस किया गया. छापा पड़ने का पता चलने पर रामनिवास ने रामरतन के साथ मिल कर स्कूल के कंप्यूटरों में डाउनलोड सौफ्टवेयर डिलीट कर सिस्टम फार्मेट कर दिए.

पहली बार सामने आया थंबप्रिंट क्लोन का मामला

इस बीच, एसओजी को मुन्ना भाइयों द्वारा अंगूठे के निशान की क्लोनिंग करने की चौंकाने वाली जानकारी मिली. इस पर 15 मार्च को डौल्फिन किड्स इंटरनैशनल स्कूल में ही थंबप्रिंट क्लोन के जरिए असली परीक्षार्थी की जगह परीक्षा दे रहे भरतपुर के एक ग्रामसेवक नरेश कुमार प्रजापति को गिरफ्तार किया गया.

उस की निशानदेही पर एसओजी ने परीक्षा केंद्र के बाहर से असली परीक्षार्थी हरियाणा के पलवल निवासी देवेंद्र कुमार और भरतपुर जिले में डीग निवासी दलाल नरेश जाट को भी गिरफ्तार कर लिया. इस गिरोह का मुख्य आरोपी डीग के पास अउ दरवाजा का रहने वाला जितेंद्र सिंह सिनसिनवार उस दिन एसओजी की गिरफ्त में नहीं आ सका.

गिरफ्तार दलाल नरेश जाट ने एसओजी को बताया कि उस ने थंबप्रिंट क्लोन के जरिए अलवर में भी आधा दर्जन अभ्यर्थियों की जगह दूसरे लोगों को परीक्षा देने के लिए भेजा था, लेकिन पुलिस के पहुंचने के कारण फरजी परीक्षार्थी केंद्र पर नहीं पहुंचे.

नरेश ने हरियाणा निवासी परीक्षार्थी देवेंद्र से ढाई लाख रुपए में परीक्षा में पास कराने का सौदा किया था. इस के लिए 1 लाख रुपए एडवांस लिए थे. इस के बाद नरेश ने भरतपुर जिले के ग्रामसेवक नरेश प्रजापति को देवेंद्र की जगह परीक्षा देने के लिए तैयार किया और उसे जयपुर में परीक्षा देने भेज दिया. ग्रामसेवक नरेश प्रजापति ने उस दिन मेडिकल अवकाश लिया था.

पूछताछ में पता चला कि फरार जितेंद्र सिनसिनवार सहित इन आरोपियों ने थंबप्रिंट का क्लोन बनाने का तरीका यूट्यूब से सीखा था. इस के लिए सब से पहले ये लोग गर्म मोम को किसी सतह पर डालते थे. फिर अभ्यर्थी के अंगूठे पर मछली का तेल लगा कर मोम पर उस का थंब इंप्रेशन लेते थे. इंप्रेशन आने पर मोम की परत पर फेविकोल की हलकी परत बिछाते.

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इस से इंप्रेशन फिक्स हो जाता था और इस तरह थंबप्रिंट का क्लोन बन जाता था. थंबप्रिंट का क्लोन बनाने के बाद आरोपियों ने परीक्षा से पहले टेस्टिंग के लिए आधार कार्ड वेरिफाई करवाया था. इस के लिए उन्होंने अभ्यर्थी का थंबप्रिंट क्लोन दूसरे व्यक्ति के अंगूठे पर लगा कर आधार कार्ड का पंजीयन कराया. इस थंबप्रिंट क्लोन को बायोमेट्रिक मशीन भी नहीं पकड़ पाती है.

आरोपियों ने इसी तरीके से देवेंद्र के अंगूठे का क्लोन बना कर ग्रामसेवक नरेश प्रजापति को दिया. नरेश प्रजापति अपने अंगूठे पर देवेंद्र के अंगूठे का  क्लोन चिपका कर परीक्षा देने गया था.

इसी दिन एसओजी ने सरस्वती इंफोटैक के एक फरार संचालक मुख्तियार को भी गिरफ्तार कर लिया. वह हरियाणा के गुनाहा क्षेत्र का रहने वाला है. वह पहले दिल्ली में औनलाइन परीक्षा करवाता था. बाद में उस ने जयपुर आ कर सरस्वती इंफोटैक में पार्टनरशिप कर ली थी.

पुलिस की जांच में पता चला कि अजमेर इंफोटैक का मालिक विकास जाट और हनुमान भाकर सेंटर में लगे कंप्यूटरों में आईटी एक्सपर्ट इंतजार अली और मोहम्मद जकी के जरिए प्रोक्सी आईडी बना कर उस कंप्यूटर सिस्टम का आईपी एड्रेस बाहर बैठे साथियों को मुहैया कराते थे.

सेंटर से बाहर बैठे लोग अपने सिस्टम पर पेपर को लौगइन कर एक्सपर्ट से हल कराते थे. गिरफ्तार आरोपी रणजीत, सुरेश व जितेंद्र गोदारा नकल के इच्छुक अभ्यर्थियों को तलाशते थे. इस गिरोह ने नकल कराने के लिए अभ्यर्थियों से 4-4 लाख रुपए लिए थे.

जीजासाले का कमाल

थंबप्रिंट का क्लोन बनाने वाले गिरोह के मास्टरमाइंड जितेंद्र सिंह सिनसिनवार और उस के जीजा शिशुपाल जाट को एसओजी ने 16 मार्च को गिरफ्तार कर लिया. इन से पूछताछ में पता चला कि जितेंद्र सिंह सिनसिनवार 3 बार कांस्टेबल भरती परीक्षा में पास हो चुका था, लेकिन एक आपराधिक मामले में चालानशुदा होने के कारण सिपाही नहीं बन सका. इस के बाद उस ने थंबप्रिंट क्लोन बना कर फरजी अभ्यर्थी को भरती परीक्षाओं में बैठा कर मोटी रकम लेने का धंधा शुरू कर दिया.

जितेंद्र की कुछ विषयों पर अच्छी पकड़ थी. इसीलिए वह अपने जीजा शिशुपाल का भी थंबप्रिंट बना कर उस के नाम से परीक्षा दे चुका था.

जितेंद्र अपने जीजा के साथ अभी जयपुर में मालवीय नगर में किराए पर रह कर कांस्टेबल की परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों से संपर्क कर उन के थंबप्रिंट क्लोन बना कर फरजी परीक्षार्थी से परीक्षा दिलवाते थे. जितेंद्र इस से पहले एसएससी और पोस्टमैन भरती परीक्षा में भी इसी तरह थंबप्रिंट क्लोन बना कर दूसरे परीक्षार्थियों की जगह परीक्षा दे चुका है.

एसओजी ने सरस्वती इंफोटैक नकल गिरोह मामले में हरियाणा के भिवानी निवासी संदीप कुमार और झज्जर निवासी सज्जन सिंह को भी 16 मार्च को गिरफ्तार कर लिया.

एसओजी ने इस मामले में 17 मार्च को डाक्टर व इंजीनियर सहित 5 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया. इन में बीटेक उत्तीर्ण बिहार के पटना निवासी अतुल वत्स, भागलपुर निवासी बैंक परीक्षा की तैयारी में जुटा संदीप जाट, हरियाणा के हिसार का रहने वाला एमबीबीएस में अध्ययनरत योगेश यादव, नागौर के चितावा का रहने वाला अभ्यर्थी हीरालाल जाट और हरियाणा का सोनीपत निवासी सरस्वती इंफोटैक का कर्मचारी रविकिरण जाट शामिल थे.

इन्होंने कांस्टेबल भरती के पहले चरण की परीक्षा में कई अभ्यर्थियों के पेपर हल किए थे. इन में अतुल वत्स ने पटना एनआईटी से बीटेक किया है. वह दिल्ली में इसी तरह कंप्यूटर हैकिंग कर नीट प्रीपीजी परीक्षा में भी नकल करते पकड़ा जा चुका है. योगेश यादव रोहतक कालेज से एमबीबीएस अंतिम वर्ष का छात्र है.

इतने सारे मुन्नाभाई पकड़े जाने पर आखिर 20 मार्च, 2018 को पुलिस मुख्यालय ने कांस्टेबल भरती की औनलाइन परीक्षा रद्द कर दी. अब 20 हजार से ज्यादा कांस्टेबल पदों के लिए नई भरती औफलाइन तरीके से होगी. राजस्थान पुलिस के लिए पद बढ़ जाने की वजह से अब एक बार फिर आवेदन लिए जाएंगे. इस बार करीब 25 लाख तक आवेदन आने की उम्मीद है.

तलाश है फरार अपराधियों की

पुलिस अफसर इस बार भरती प्रक्रिया को पूरी तरह बदलना चाहते हैं ताकि फिर नकल की स्थिति सामने न आए. इस के लिए आईजी का नया पद सृजित कर आईजी प्रशाखा माथुर को पुलिस भरती की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

कांस्टेबल भरती परीक्षा के लिए जिस कंपनी एप्टेक को जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उस की भूमिका की भी जांच की जा रही है. इस संबंध में कंपनी के अधिकारियों से भी पूछताछ की गई है. पुलिस इस कंपनी को परीक्षा के लिए दी गई एडवांस राशि भी वापस वसूल करेगी.

परीक्षा के लिए करीब 16 लाख अभ्यर्थियों से फीस के रूप में पुलिस को 60 करोड़ रुपए से ज्यादा मिले थे. टेंडर की शर्तों के मुताबिक एप्टेक कंपनी को 220 रुपए प्रति अभ्यर्थी यानी करीब 30 करोड़ रुपए का भुगतान पुलिस मुख्यालय को करना था. इस में करीब 3 करोड़ रुपए से ज्यादा की एडवांस राशि कंपनी को दे दी गई थी. कंपनी ने 140 रुपए प्रति अभ्यर्थी के हिसाब से 34 सेंटरों को 15 फीसदी एडवांस राशि दे दी थी.

कांस्टेबल भरती परीक्षा में नकल के मामले में फरार आरोपियों को राजस्थान पुलिस और एसओजी तलाश कर रही है. साथ ही उन अभ्यर्थियों को भी चिन्हित किया गया है जिन्होंने परीक्षा में नकल की थी.

सरकारी नौकरियों की भरती एजेंसियां और पुलिस भले ही कितने ही व्यापक प्रबंध कर लें, लेकिन आमतौर पर हरेक दूसरी बड़ी परीक्षा में कोई ना कोई नकल माफिया अपने मंसूबों में कामयाब हो ही जाते हैं.

दिल्ली के यूसुफ सराय मार्केट और टैगोर नगर सहित कई अन्य जगहों पर नकल के लिए 7 हजार से ले कर 25 हजार रुपए तक में कई तरह की डिवाइस मिल जाती हैं. इन में जैमर प्रूफ बनियान, कान में लगाए जाने वाले माइक्रो ईयरफोन और शर्ट की कौलर में लगने वाली डिवाइस आदि उपकरण शामिल हैं.

माफिया ब्लूटूथ से भी अभ्यर्थियों को नकल कराता है. कंप्यूटर हैक कर रिमोट एक्सेस पर लेने और बायोमेट्रिक को धोखा देने वाले थंबप्रिंट का क्लोन बनाने के मामले पहली बार सामने आए हैं. नकल माफिया के ये मुन्नाभाई जब तक रहेंगे, तब तक परीक्षाओं पर आंच आती ही रहेगी.

VIDEO : ट्रांइगुलर स्ट्रिप्स नेल आर्ट

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स्पेशल रिपोर्ट : खतरनाक स्थिति में पहुंचा साइबर क्राइम

घटना -1

कपड़ों के शोरूम के मालिक प्रशांत कुमार दोपहर में ग्राहक न होने की वजह से शोरूम के सेल्समैनों से बात कर रहे थे कि उन के मोबाइल की घंटी बजी. अनजान नंबर था, इसलिए उन्होंने लापरवाही से फोन रिसीव कर जैसे ही कान से लगाया, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘जी, मैं स्टेट बैंक से बोल रहा हूं.’’

प्रशांत कुमार का सारा लेनदेन भारतीय स्टेट बैंक से ही होता था इसलिए उन्हें लगा कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए सचेत होते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जी कहिए, क्या बात है.’’

‘‘दरअसल आप के डेबिट कार्ड का पिन ब्लौक हो गया है इसलिए आप उस का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर बता देते तो उस का नया पिन नंबर जेनरेट कर देते.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

प्रशांत कुमार को पता था कि बैंक की ओर से अकसर इस तरह के मैसेज आते रहते हैं कि ‘आप किसी को अपने डेबिट/के्रडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं, क्योंकि बैंक किसी से यह सब नहीं पूछता.’ प्रशांत कुमार तुरंत जान गए कि फोन करने वाला कोई ठग है. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘भाई साहब, बेवकूफ समझते हो क्या?’’

उन का इतना कहना था कि दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. दरअसल, फोन करने वाला ठग था. अगर प्रशांत कुमार उस के द्वारा मांगी गई जानकारी बता देते तो वह ठग समझ जाता कि यह आदमी बेवकूफ है. इस के बाद वह ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से पैसे निकाल लेता.

प्रशांत कुमार समझदार आदमी थे, इसलिए बच गए. लेकिन ये ठग इसी तरह न जाने कितने लोगों से कार्ड नंबर, एक्सपायरी डेट, सीवीवी नंबर, पूछ कर रोजाना ठगते हैं. लोगों को ठगी से बचने के लिए ही बैंक अब मैसेज भेजने लगे हैं कि आप किसी को अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं. इस के बावजूद लोग ठगी का शिकार बन रहे हैं.

घटना-2

प्रशासनिक नौकरी की तैयारी करने वाले राजेश शर्मा को सोशल मीडिया इसलिए पसंद था, क्योंकि इस से उसे थोड़ीबहुत जानकारी तो मिलती ही थी, पढ़ाई करतेकरते थक जाने पर फेसबुक या चैट साइट खोल कर दोस्तों से थोड़ीबहुत चैट कर के मूड फ्रैश हो जाता था. राजेश युवा तो था ही कुंवारा भी था, दूसरे घर वालों से दूर अकेला रह रहा था. राजेश के ऐसे दोस्त भी थे, जिन से वह हर तरह की चैट कर लेता था. इस में अश्लील चैट भी शामिल था. इस तरह की चैट करने वालों में ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग थे.

अधेड़ लोगों से अश्लील चैट कर के राजेश अपना मूड जरूर फ्रैश कर लेता था. लेकिन इस में उसे वह आनंद नहीं आता था, जो वह चाहता था. उस का मन करता था कि कोई लड़की हो, जिस से वह इस तरह का चैट करे. इस के लिए उस ने चैट साइट ऐप टिंडर डाउनलोड किया और लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. मैसेज का किसी ने जवाब दिया तो किसी ने टाल दिया. किसी का जवाब आता तो उसे खुशी होती कि शायद अब बात बन जाएगी. क्योंकि ज्यादातर लड़कियों के जवाब नकारात्मक होते थे.

राजेश भी हिम्मत हारने वालों में नहीं था. उस की कोशिश जारी थी. जो लड़कियां जवाब देतीं थीं, वे भी 2-4 दिन जवाब दे कर शांत हो जाती थीं. किसी ने बात आगे बढ़ाई भी तो बाद में कहने लगती थी कि अब बात तभी होगी, जब उस का फोन रिचार्ज कराओगे. चैट करने के लालच में राजेश ने एक बार एक लड़की का फोन रिचार्ज कराया भी.

लेकिन फोन रिचार्ज होते ही उस लड़की ने राजेश को ब्लौक कर दिया. इस से राजेश को निराशा तो हुई लेकिन एक सीख यह मिल गई कि दुनिया बहुत चालाक है.

SOCIETY

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक तो राजेश शांत रहा, लेकिन उस का मन नहीं माना और वह फिर पहले की ही तरह लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उसे एक लड़की मिल गई, जो उस के मैसेज के वैसे ही जवाब देने लगी, जैसा वह चाहता था. राजेश रोज रात में उस लड़की से चैटिंग करने लगा. दोनों के मैसेज ऐसे होते थे, जिन्हें पतिपत्नी या प्रेमीप्रेमिका ही भेज सकते थे.

कुछ ही दिनों में मैसेज के आदानप्रदान के साथ एकदूसरे को फोटो भी भेजे जाने लगे. फिर एक दिन लड़की ने राजेश से अपने निर्वस्त्र यानी नग्न फोटो भेजने को कहा. राजेश को उस लड़की पर इतना भरोसा हो चुका था कि उस ने बिना कुछ सोचे लड़की को अपने नग्न फोटो भेज दिए. राजेश ने जब लड़की से उसी तरह के अपने फोटो भेजने को कहा तो उस ने बहाना बना कर फोटो भेजने से मना कर दिया. राजेश ने उस की बात पर विश्वास कर के उस पर दबाव भी नहीं डाला.

लड़की ने राजेश को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उस के कई नग्न फोटो मांग लिए. इस के बाद एक दिन लड़की ने जो रंग दिखाया, उसे देख राजेश परेशान हो उठा. लड़की ने राजेश के फोटो सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे कर उस से पैसे मांगे. राजेश को अपनी इज्जत बचानी थी, सो किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया.

जब वह लड़की को रुपए देने पहुंचा तो पता चला वह लड़की नहीं, 45-46 साल का आदमी था. राजेश ने अपने वे फोटो डिलीट कराने के लिए अपनी हैसियत के हिसाब से रुपए तो दिए ही उसे उस की मनमानी भी सहनी पड़ी.

अच्छा यह हुआ कि वह आदमी एक बार में ही मान गया, वरना पता नहीं राजेश को कब तक उस की दुर्भावना का शिकार होना पड़ता. हो सकता है, उस ब्लैकमेलर ने सोचा हो कि जो मिलता है, ले कर किनारे हो जाओ. क्योंकि उसे यह डर भी था कि ज्यादा लालच करने पर राजेश पुलिस के पास भी जा सकता है.

मजे लेने के चक्कर में राजेश ने इधरउधर से इंतजाम कर के पैसे तो दिए ही, उस आदमी की मनमानी भी झेली. उस के साथ जो हुआ शायद ही वह जीवन में इसे भूल पाए. अब वह मोबाइल देख कर डर जाता है.

राजेश ही नहीं सोशल मीडिया के नाम से सुष्मिता भी घबराने लगी है क्योंकि उस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. लेकिन उस का मामला राजेश के मामले से कुछ अलग है.

घटना-3

सुष्मिता भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी. लेकिन फेसबुक हो या चैटसाइट टिंडर, उस की फ्रैंडलिस्ट में जो भी लोग थे, सभी उस की जानपहचान वाले थे. इन में ज्यादातर उस के कालेज के मित्र थे. फालतू लोगों को न तो वह फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजती थी और न ही रिक्वेस्ट आने पर स्वीकार करती थी.

चैटिंग भी वह कुछ ही दोस्तों से करती थी, जिस में पढ़ाई से संबंधित बातें ज्यादा होती थीं. किसी वजह से वह 15-20 दिन सोशल मीडिया से दूर रही. एक दिन उस ने अपनी चैट साइट खोली तो उस में एक दोस्त का मैसेज पढ़ कर दंग रह गई. उस ने दोस्त को लताड़ना चाहा तो उस ने कहा कि उसी ने तो इस तरह की फूहड़ चैटिंग की थी. उस ने तो केवल उस के मैसेज के जवाब भर दिए थे.

इस से सुष्मिता की हैरानी और बढ़ गई, क्योंकि 15-20 दिनों से उस ने किसी से चैटिंग की ही नहीं थी. उस ने दोस्त को झूठा साबित करना चाहा तो उस ने चैटिंग के स्क्रीन शौट ले कर भेज दिए. चैटिंग के फोटो देख कर सुष्मिता परेशान ही नहीं हुई बल्कि डिप्रेस हो गई. क्योंकि वह चैटिंग इतनी अश्लील थी कि उस तरह की चैटिंग करने की कौन कहे, सुष्मिता सोच भी नहीं सकती थी. इस डिप्रेशन से उबरने में उसे काफी समय लगा.

सुष्मिता ने सचमुच वह चैटिंग नहीं की थी. उस के चैटरूम में घुस कर किसी ने उस के दोस्त से उस की ओर से चैटिंग की थी. पहले तो सुष्मिता के उस दोस्त को भी हैरानी हुई थी कि सुष्मिता को यह क्या हो गया है? लेकिन उस ने सोचा कि जब वह ही इस तरह की फूहड़ चैटिंग कर रही है तो उसे क्यों परेशानी होगी. मजे लेने के लिए उस ने भी उसी तरह के जवाब देने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब असलियत खुली कि वह चैटिंग सुष्मिता ने नहीं, बल्कि उस की ओर से किसी और ने की थी तो वह काफी शर्मिंदा हुआ था.

घटना-4

ऐसा ही कुछ हुआ प्रदीप के साथ. 15 साल का प्रदीप भी सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय था. मौका मिलते ही वह फेसबुक खोल कर बैठ जाता और यह देखता कि उस के फोटो और पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया और उस पर किस ने क्या कमेंटस लिखे. उस की अपने कुछ दोस्तों से चैटिंग भी होती थी. प्रदीप सोशल मीडिया पर सक्रिय जरूर था. लेकिन अपनी उम्र को देखते हुए वह सावधानी भी बरतता था. उस की फ्रैंडलिस्ट में ज्यादा लोग नहीं थे, जो थे वे पढे़लिखे और समझदार लोग थे.

इतनी सावधानी बरतने के बावजूद प्रदीप के साथ गड़बड़ हो गई. एक दिन उस के साथ पढ़ने वाली एक लड़की अपनी मम्मी के साथ उस के घर आई और अपने फोन पर मैसेंजर में उस का मैसेज दिखाते हुए बोली, ‘‘प्रदीप, मैं तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का समझती थी, पर तुम ने मुझे यह कैसा मैसेज भेजा है?’’

प्रदीप उस मैसेज को देख कर हैरान रह गया, क्योंकि उस ने वैसा मैसेज भेजा ही नहीं था. उस ने लाख सफाई दी, लेकिन न तो लड़की ने उस की बात पर विश्वास किया न ही उस की मां ने. दरअसल वह मैसेज था, ‘आई लव यू’. लड़की और उस की मां इसी मैसेज से खफा थीं.

उन से जो बना, वह तो उन्होंने कहा है, जातेजाते धमकी भी दे गईं कि फिर कभी ऐसा मैसेज भेजा तो प्रिंसिपल से उस की शिकायत कर देंगी. इस बार वे उसे इसलिए छोड़ रही हैं, क्योंकि उस की मां ने उन से हाथ जोड़ कर उस की गलती के लिए माफी मांगी है.

इस मामले में भी कुछ वैसा ही हुआ था, जैसे ऊपर की घटनाओं में हुआ था. प्रदीप ही नहीं उस की मां को भी इस गलती के लिए शर्मिंदा ही नहीं होना पड़ा था, बल्कि हाथ जोड़ कर माफी भी मांगनी पड़ी. दरअसल किसी और ने प्रदीप की ओर से वह मैसेज उस के साथ पढ़ने वाली उस लड़की को भेज दिया था.

इस बात को न वह लड़की समझ पाई थी, न ही उस की मां. उन्हें ही नहीं, इस बात का पता तो प्रदीप और उस की मां को भी नहीं चला था. प्रदीप सिर्फ इतना जानता था कि उस ने यह मैसेज नहीं भेजा था. यह सब कैसे हुआ, उसे पता भी नहीं था.

दरअसल, यह सब एक तरह का साइबर अपराध है, जो धीरेधीरे आम होता जा रहा है. लेकिन इस के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. इंटरनेट के तेजी से हो रहे प्रचारप्रसार के साथ अब साइबर अपराध भी उसी तेजी से बढ़ रहा है. युवा और महिलाएं ही नहीं, बच्चे भी औनलाइन चैटिंग, डेटिंग ऐप के चक्कर में फंस कर प्रभावित हो रहे हैं. बैंकिंग, इनफोर्मेशन, बीमा कंपनियां और शेयर मार्केट ही नहीं, सरकारें तक इस अपराध से खासा प्रभावित हैं.

एक लिंक से ठगी

किसी की निजी जानकारी प्राप्त कर के धोखाधड़ी, डेबिट/के्रडिट कार्ड का ब्यौरा पता कर के चूना लगाना तो आम हो गया. लगभग रोज ही अखबारों में इस तरह की ठगी की खबरें आती रहती हैं. इस साइबर क्राइम से आम लोगों के साथसाथ कारपोरेट जगत और सरकारें भी परेशान हैं. क्योंकि इस की वजह से अन्य लोग ही नहीं, बड़ीबड़ी कंपनियों के साथ सरकारें भी लुट रही हैं.

अभी पिछले दिनों आम लोगों के लुटने की बड़ी खबर आई थी, जिस में क्लिक से पैसा कमाने की ललक ने लाखों लोगों को चूना लगा दिया. ऐसा करने वाली ‘सोशलट्रेड डौट बिज’ अकेली कंपनी नहीं थी. इसी तरह की एक कंपनी और थी ऐडकैश. दोनों ही कंपनियों के कारोबार का पैटर्न एक जैसा था. पहले इन्होंने विज्ञापन दिया कि ‘घर बैठे लाइक करें और पैसे कमाएं.’ इस तरह का विज्ञापन देख कर फटाफट पैसा कमाने की होड़ में लाखों लोग इन कंपनियों के झांसे में आ गए.

दरअसल, सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज में सभी चाहते हैं कि उन के फालोअर्स की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े. इसी बात को ध्यान में रख कर पहले इन कंपनियों ने नेताओं और सेलिब्रेटी को जोड़ा यानी ग्राहक बनाया. उन के साथ ईमानदारी से डील हुई. इस तरह कंपनियों ने फालोअर्स बढ़ाए और बदले में फीस ली. लेकिन असली खेल तो आम लोगों के साथ शुरू हुआ.

सेलिब्रिटी को जोड़ने के बाद कंपनियों ने लिंक्स को अपना मार्केटिंग हथियार बनाया. आम लोगों को नेता और सेलिब्रिटी के लिंक दिखा कर कंपनियों ने उन्हें जोड़ा. इस स्कीम के तहत लोगों को मेंबर बनाया गया. यहीं से शुरू हुआ असली खेल. 10 हजार रुपए फीस ले कर उन्हें मेंबर बनाया गया और बिजनैस मौडल के अनुसार, उस के लिंक को बूस्ट किया गया. मेंबरशिप के लिए ग्राहक को अपना पैन नंबर देना पड़ता था.

जबकि परदे के पीछे दूसरी डील हो रही थी, जिस के तहत कंपनियां मेंबरशिप लेने वाले ग्राहक से 5 लिंक क्लिक करवाती थीं और एक क्लिक का 5 रुपए देती थीं. अगर कोई मेंबर 2 नए मेंबर जोड़ता था तो उस के लिंक डबल हो जाते थे. लिंक डबल होने का मतलब मिलने वाला पैसा भी डबल. इस तरह मेंबर जितने मेंबर जोड़ता था, उस के लिंक बढ़ते जाते थे.

ये कंपनियां खुद को कानूनी रूप से सही साबित करने के लिए 10 प्रतिशत टीडीएस काट कर पैसे देती थीं. शुरूशुरू में ये कंपनियां रोज के हिसाब से पैसे देती थीं. कंपनी के सदस्यों की संख्या लाखों में होने की वजह से बैंक सवाल उठाने लगे कि आखिर इन्हें इतने अधिक पैसे क्यों दिए जा रहे हैं.

इस के बाद कंपनियां हफ्ते में, फिर महीने में पैसे देने लगीं. बैंकों ने फिर सवाल उठाया तो कंपनियां रुपए के बदले प्वाइंट देने लगीं. मेंबर जब चाहे प्वाइंट के बदले पैसे ले सकता था.

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घर बैठे कमाई का मौका देख कर लोगों ने एक पैन कार्ड पर कईकई आईडी बना लीं. इस के लिए उन्हें सालाना 11 हजार रुपए की फीस देनी पड़ती थी. लेकिन बदले में उन्हें ज्यादा लिंक्स मिल रहे थे. बाद में कपंनियां सख्ती बरतते हुए एक पैन कार्ड पर एक ही मेंबर बनाने लगीं. इस पर लोगों ने अपने घर के अन्य लोगों के नाम आईडी बना डालीं.

अगर ऐडकैश कंपनी की बात की जाए तो उस से करीब 6-7 लाख लोग जुड़ चुके थे. एडकैश का विज्ञापन तो व्हाट्सऐप पर भी धड़ल्ले से चल रहा था.

शुरूशुरू में वे कंपनियां वादे के अनुसार लाइक करने के लिए लिंक्स और बदले में नियमित पैसे देती रहीं. शनिवार और रविवार छुट्टी होती थी. इन दोनों दिन लिंक्स नहीं मिलते थे. धीरेधीरे सर्वर खराब होने का बहाना बना कर लिंक्स देना कम कर दिया गया, जिस से लोग नाराज हुए. जबकि नए मेंबर बनाने का काम उसी तरह चलता रहा. कंपनी फीस तो जमा कर लेती थी, लेकिन आईडी बनाने में आनाकानी करने लगी थी.

बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर कंपनियां पौइंट पर पैसे देने से आनाकानी करने लगीं. इस के बाद लोगों ने पुलिस में शिकायत की तो पता चला कि यह एक तरह की साइबर ठगी थी, जिस में इन कंपनियों ने लोगों को खरबों का चूना लगाया था. यह तो रही आम लोगों की ठगी की बात, जो यह नहीं जानते कि ऐसा भी हो सकता है.

डेबिट कार्ड के पिन की चोरी

इस का सब से बड़ा उदाहरण है 4 महीने पहले हुई आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन की चोरी. बैंक को इस बात की जानकारी हो गई थी, इस के बावजूद बैंकों ने यह बात ग्राहकों को नहीं बताई. एक तरह से देखा जाए तो साइबर क्राइम से बड़ा अपराध वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन ने किया. डेबिट कार्ड की ही बात क्यों की जाए, आम आदमी के तमाम तथ्य आधार नंबर से चुराए जा चुके हैं. देश भर में करीब 65 लाख डेबिट कार्डों का डाटा चुराए जाने की आशंका है. लेकिन संबंधित बैंकों ने अपना कारोबार बचाने की गरज से इस का खुलासा नहीं किया.

भारतीय स्टेट बैंक तो अब किसी तरह खुलासा कर रहा है. जबकि निजी बैंकों में उस से कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यावसायिक हितों को देखते हुए जब तक संभव है, कोई जानकारी देने से बचेंगे. फिलहाल बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर पुराना कार्ड ब्लौक कर नया कार्ड देना शुरू कर दिया है.

ताज्जुब की बात तो यह है कि अभी तक किसी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई है. यही नहीं, इस मामले में सरकार को भी कोई सूचना नहीं दी गई है. जबकि महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल ने बैंकों को पत्र लिखा है.

4 महीने से आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन चोरी हो रहे थे, बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, लेकिन वे चुप्पी साधे थे. एक तरह से देखा जाए तो यह साइबर अपराध से बड़ा अपराध हमारे वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन का है.

जबकि बैंकिंग के नियमों और आरबीआई के ड्राफ्ट के अनुसार, खाताधारकों द्वारा धोखाधड़ी की सूचना दिए जाने पर बैंक को 10 कार्य दिवसों के अंदर ग्राहक के खाते से गायब हुआ पैसा वापस करना होता है. इस के लिए ग्राहक को 3 दिन के अंदर धोखाधड़ी की सूचना देनी होगी और उसे यह दिखाना होगा कि उस की तरफ से कोई लेनदेन नहीं किया गया और बिना उस की जानकारी के पैसा गलत तरह से गायब हुआ है.

संकट सिर्फ यही नहीं है कि 32 लाख डेबिट कार्ड साइबर अपराधियों के कब्जे में हैं, बल्कि वीसा, मास्टर कार्ड समेत विदेश से संचालित एटीएम और डिजिटल लेनदेन में वायरस संक्रमण से जमापूंजी भी खतरे में है. भारतीय स्टेट बैंक ने लाखों डेबिट कार्ड बदल दिए हैं. अन्य बैंकों ने सुरक्षित लेनदेन के लिए ग्राहकों को निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन क्या एटीएम या नेट बैंकिंग से पिन बदल देने से आप की जमापूंजी की सुरक्षा की गारंटी है. क्योंकि पुराना पिन लीक हो सकता है तो नया पिन भी तो लीक हो सकता है.

इंटरनेट औफ थिंग्स और साइबर क्राइम

इंटरनेट नित नई तरक्की कर रहा है, जिस से यह जिंदगी का एक जरूरी अंग बन गया है. इस से न सिर्फ संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, बल्कि जीवनशैली ही बदल गई है. शिक्षा, मैडिकल, हेल्थ, मनोरंजन, सभी क्षेत्रों में इंटरनेट अपने कारनामे दिखा रहा है. इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए ऐसे कारनामे करने को तैयार हैं, जिस के बारे में हम सोच भी नहीं सकते. वैसे यह कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है, लेकिन स्मार्ट फोन के आने से यह धारणा खत्म हो गई है.

स्मार्ट फोन के आने से इंटरनेट के वे सारे काम अब फोन पर किए जा सकते हैं, जो पहले कंप्यूटर पर किए जाते थे. स्मार्ट फोन से कई मूलभूत बदलाव आए हैं. अब फोन ही नहीं, घर गाड़ी और किचन भी स्मार्ट होंगे. मसलन घर के बाहर रहते हुए भी घर की देखभाल की जा सकेगी. आप घर पहुंचने से पहले ही एसी चला सकते हैं. यानी जो काम पहले हम मैनुअली करते थे, अब वही काम औटो मोड पर होंगे. इस के लिए वहां किसी के मौजूद रहने की जरूरत नहीं होगी और यह सब होगा इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए. लेकिन जिस तरह हर मांबाप को बच्चों की अच्छाईबुराई का डर होता है, उसी तरह फादर आफ इंटरनेट कहे जाने वाले विंट सर्फ भी इंटरनेट औफ थिंग्स (आईओटी) को ले कर थोड़ा डरे हुए हैं. चूंकि आईओटी अप्लायंसेज और साफ्टवेयर से मिल कर बना है, इसलिए साफ्टवेयर को ले कर उन्हें डर है, क्योंकि साफ्टवेयर को हैक किया जा सकता है. यही एक तरह का साइबर अपराध होगा.

साइबर क्राइम आज एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है. इस में किसी व्यक्ति की निजी जानकारी पता कर के धोखाधड़ी करना, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के बारे में पता कर के चूना लगाना, अहम सूचनाओं की चोरी करना, ब्लैकमेलिंग, कौपीराइट और ट्रेडमार्क फ्रौड, पोर्नोग्राफी डिटेल या अन्य एकाउंट हैक करना, वायरस भेज कर धमकी भरे मैसेज भेजना शामिल है.

इस तरह के अपराध कोई अकेले नहीं, बल्कि संगठित गिरोह बना कर किए जाते हैं. पिछले साल साइबर क्राइम से लगभग एक खरब डौलर का चूना लगाया गया है. जबकि इस के शिकार हुए लोगों को पता नहीं कि वे खुद को कैसे सुरक्षित बनाएं. पुलिस के पास भी कोई ऐसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं कि वह कुछ मदद कर सकें. जबकि दिनोंदिन साइबर अपराध बढ़ता ही जा रहा है.

साइबर आतंकवाद और साइबर युद्ध

साइबर आतंकवाद का मतलब आतंकवादी गतिविधियों में इंटरनेट आधारित हमले यानी कंप्यूटर वायरस जैसे साधनों के माध्यम से कंप्यूटर नेटवर्क में जानबूझ कर बडे़ पैमाने पर किया गया व्यवधान, विशेष रूप से इंटरनेट से जुड़े निजी कंप्यूटर पर. इसी तरह साइबर युद्ध भी इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से लड़ा जाता है.

अनेक विकासशील देश लगातार साइबर आतंकवाद या युद्ध चलाते हैं, यही नहीं वे किसी संभावित साइबर हमले के लिए तैयार भी रहते हैं. लगातार तकनीक पर बढ़ती जा रही निर्भरता के कारण अब लगभग सभी देशों को साइबर हमले की चिंता सताने लगी है. ऐसे हमलों में वायरस की मदद से वेबसाइटें ठप कर दी जाती हैं और सरकार एवं उद्योग जगत को पंगु बना दिया जाता है.

साइबर युद्ध में तकनीकी उपकरणों एवं अवसंरचना को भारी नुकसान होता है. कुशल साइबर योद्धा किसी भी देश की विद्युत ग्रिडों में हैकिंग द्वारा घुस कर अत्यधिक गोपनीय सैन्य और अन्य जानकारियां प्राप्त कर सकता है. यही नहीं, हैकर किसी कंपनी के कंप्यूटरों पर वायरस द्वारा कब्जा कर के तमाम डाटा एनक्रिप्ट (कूटरचित) कर देते हैं. बाद में डाटा को वापस काम लायक बनाने यानी डीक्रिप्ट करने के लिए ये कंपनी की हैसियत के हिसाब से फिरौती वसूलते हैं. कंपनियां अपनी साख बचाने के लिए चुपचाप फिरौती दे भी देती हैं.

यह फिरौती हैकर डालर में नहीं, बल्कि बिटकौइन में लेते हैं. बिटकौइन साइबर जगत की पसंदीदा डिजिटल क्रिप्टोकरेंसी है. इंटरनेट पर लेनदेन के लिए पूरी तरह सुरिक्षत, गुप्त और अनामी रूप से रह कर लेनदेन हेतु ही इस करेंसी को डिजाइन किया गया है. इस का कोई भौतिक रूप नहीं है, इसलिए इसे डिजिटल करेंसी कहा जाता है.

इस करेंसी की कीमत मांग और सप्लाई के आधार पर रोज निर्धारित होती है. इस पर किसी का अधिकार नहीं है. एक बार साइबर संसार में आ जाने के बाद जिस के पास जितनी बिटकौइन होती है, वही उस का मालिक होता है. संक्षेप में यह समझ लें कि बिटकाइन के जरिए किया गया इंटरनेटी व्यापार, खरीदबिक्री, भुगतान का किसी को पता नहीं चलता. इसीलिए हैकर बिटकौइन में भुगतान मांगते हैं, ताकि उन तक पहुंचना किसी भी सूरत में संभव न हो. हैकर पूरी दुनिया को अपना शिकार मानते हैं. इसलिए पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय होते हुए भी विविध क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं. इस के लिए ये स्वचालित गूगल अनुवादक का उपयोग करते हैं.

दुनिया में बढ़ते साइबर खतरे

इंटरनेट की व्यापकता और आम लोगों तक इस की आसान पहुंच के कारण औनलाइन कारोबार या कामकाज का दायरा दुनिया भर में तेजी से बढ़ा है. लेकिन इस सुगमता के साथ साइबर अपराध में आई नई चुनौती भी लगातार विकराल हो रही है. अन्य अपराधों की तरह साइबर अपराधों में अपराधी अपराध स्थल पर खुद मौजूद नहीं होता.

इस में मुख्य रूप से तकनीक का इस्तेमाल होता है. भारत में जहां ज्यादातर इंटरनेट उपयोगकर्ता नए हैं, उन्हें आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. कभी लुभावने विज्ञापनों से तो कभी आकर्षक उपहारों और इनामी योजनाओं के ईमेल या वेबसाइट पर भड़कीले विज्ञापन डाल कर. चूंकि इस्तेमाल करने वाला इन की बारीकियों को ज्यादा नहीं जानता, इसलिए आसानी से शिकार बन जाता है.

छोटीछोटी कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने के लिए औनलाइन गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं, पर लागत खर्च को कम करने के लिए औनलाइन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देतीं. ऐसे में उन के लिए हमेशा खतरा बना रहता है. साइबर अपराध अब सोशल नेटवर्किंग हैकिंग तक ही नहीं रह गया है, इस ने भी अपना बिजनैस बढ़ा लिया है. अब यह बिजनैस सिर्फ बैडरूम और एक सिस्टम तक नहीं रहा, इस का भी दायरा काफी बड़ा है.

सरकारें भी शामिल हैं इस अपराध में

क्योंकि इस अपराध में अब कई देशों की सरकारें, औनलाइन गैंग और बड़े अपराधी शामिल हैं, जिन का साथ दे रहे हैं औनलाइन फोरम. दरअसल, औनलाइन फोरम एक तरह का बाजार है, जहां पर अपराधी चोरी किया हुआ डेटा खरीद या बेच सकते हैं.

भारत के किसी भी शहर से ले कर विदेशों तक साइबर क्राइम करवाने में एक कम्युनिटी मदद कर रही है. बस एक क्लिक में कहीं का भी डेटा आप के पास हाजिर हो जाएगा. इतना ही नहीं, कई ऐसी भी साइट्स हैं, जो ऐसे कामों को अंजाम देने की ट्रेनिंग देती हैं. माना जा रहा है कि देश में चलने वाले काल सेंटर भी भीतरी धोखाधड़ी में लगे हैं. भारत समेत चीन, रूस और ब्राजील जैसे देश इस साइबर अपराध से परेशान हैं.

हालांकि भारत में इस मामले में जागरूकता बढ़ी है और सरकार ने सन 2000 में आईटी एक्ट बनाया और सन 2008 में उसे संशोधित भी किया, लेकिन साइबर अपराध पर इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ा. देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए जो आईटी एक्ट बना है, उस में वेबसाइट ब्लौक करने तक का प्रावधान है, लेकिन यह एक्ट देश के अंदर भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है.

कानूनी प्रावधानों के बावजूद अकसर लोग किसी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट कर देते हैं. लगातार डेबिट/क्रेडिट कार्डों से धोखाधड़ी हो रही है. नियमानुसार पुलिस आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले से पोस्ट हटाने को कहती है, अगर वह हटा लेता है तो ठीक, नहीं तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है. कंप्यूटर द्वारा किया गया कोई भी अपराध साइबर क्राइम में आता है. जिस में 7 साल की जेल हो सकती है. लेकिन इंटरनेट से धोखा देने और रकम उड़ाने की खबरें रोज आ रही हैं. क्योंकि यहां डेबिट/क्रेडिट कार्ड की डिटेल्स को हैक करना आसान है.

भारत में साइबर क्राइम से निपटने के लिए कानून तो बने हैं, लेकिन साइबर अपराध से जुड़े कानून ज्यादा कारगर नहीं हैं. क्योंकि एक तो जल्दी लोग शिकायत नहीं करते, अगर करते भी हैं, तो सबूत नहीं दे पाते. फिर कड़ी सजा न होने की वजह से अपराधी डरते भी नहीं हैं. इस की एक वजह यह भी है कि इस में तुरंत जमानत मिल जाती है. इसलिए साइबर अपराध से बचने के लिए खुद ही ऐहतियात बरतें तो ज्यादा ठीक रहेगा.

इस की एक वजह यह भी है कि पुलिस वालों को खुद ही पता नहीं कि जिस अपराध की शिकायत उन से की जा रही है, वह किस धारा के अंतर्गत आता है. इस के अलावा उन के पास साइबर अपराध करने वाले तक पहुंचने का कोई उपाय भी नहीं है. इस के लिए उन्हें दूसरों का ही सहारा लेना पड़ता है.

तरह तरह के साइबर क्राइम

अपराध अपराध होता है. फिर भी हम अपनी सुविधा के लिए उस के तौरतरीकों के आधार पर कुछ नाम दे देते हैं. कुछ प्रमुख साइबर अपराध इस तरह से होते हैं—

  साइबर स्टाकिंग: इंटरनेट या इलेक्ट्रौनिक माध्यम से व्यक्ति अथवा संगठन को विविध तरीकों से परेशान करना.

  परिचय चोरी: इंटरनेट या इलेक्ट्रौनिक माध्यम से दूसरों की व्यक्तिगत जानकारियों की चोरी कर उस का उपयोग अपने लाभ के लिए करना.

  हैकिंग: इंटरनेट या इलेक्ट्रौनिक माध्यम से दूसरों के कंप्यूटर पर अनधिकृत कार्य करना व हैक सिस्टम से जानकारी चुरा कर उन्हें फायदे के लिए बेचना.

बैकिंग चोरी: बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के सिस्टम में इंटरनेट या इलेक्ट्रौनिक माध्यम से सेंध लगा कर उन के इलेक्ट्रौनिक फंड ट्रांसफर के सिस्टम के जरिए फंड की हेराफेरी व चोरी करना.

  रैंसमवेयर: इंटरनेट व इलेक्ट्रौनिक माध्यम से कंप्यूटरों के बहुमूल्य डेटा पर कब्जा कर उस के एवज में फिरौती वसूल करना.

डीडीओएस अटैक: किसी औनलाइन इंटरनेट सेवा को अत्यधिक ट्रैफिक बाट से बंबार्डिंग कर उस का प्रचालन बाधित करना.

स्पैम फिशिंग और स्पीयर फिशिंग: साइबर जगत में बहुतायत किए जाने वाले अपराध स्पैम यानी अवांछित ईमेल मैसेज भेजना, फिशिंग यानी ईमेल के जरिए लोगों को लालच दे कर फांसना और स्पीयर फिशिंग यानी लक्षित हमला कर विशिष्ट उद्देश्यों के लिए फांसना.

ड्राइव-बाई-डाउनलोड: मैलवेयर, वायरस युक्त ऐसी साइटें बनाना, जिस में केवल विजिट मात्र से कंप्यूटर पर स्वचालित मैलवेयर डाउनलोड हो जाए और उसे संक्रमित कर दे.

  रिमोट एडमिनिस्ट्रेशन टूल: इंटरनेट या इलेक्ट्रौनिक माध्यम के जरिए दूसरों के कंप्यूटर पर कब्जा जमा कर उस में गैरकानूनी गतिविधियां करना.

डार्क वेब अपराध: डार्कवेब (गुप्त वेबसाइटों) के जरिए ड्रग, आर्म्स व अवैध वस्तुओं की तस्करी व भुगतान आदि की व्यवस्था करना.

  साइबर युद्ध या आतंकवाद: शत्रु देशों के विविध शासकीय उपक्रमों की वेबसाइटों पर प्रत्यक्ष, परोक्ष, गुप्त हमले कर बंद करना, जानकारियां चुराना आदि.

औनलाइन जुआ, चाइल्ड पोनौग्राफी

  कार्डिंग: क्रेडिट/डेबिट कार्डों की जानकारियां चुरा कर उन्हें बेचना.

  ईमेल बौंबिंग: किसी व्यक्ति के ईमेल पर इतना ज्यादा मेल भेजना कि उस का एकाउंट बंद हो जाए.

  डाटा डिडलिंग: इस हमले में कंप्यूटर के कच्चे डाटा को प्रोसेस होने से पहले ही बदल दिया जाता है. जैसे ही पूर्ण होता है, डाटा फिर मूलरूप में आ जाता है.

  सलामी अटैक: इस में गुपचुप तरीके से आर्थिक अपराध को अंजाम दिया जाता है.

लौजिक बम: यह स्वतंत्र प्रोग्राम होता है. इसे इस तरह बनाया जाता है कि यह तभी एक्टिवेट हो, जब कोई विशेष तारीख या घटना आती है.

ट्रोजन हार्स: यह एक अनधिकृत प्रोग्राम है, जो अंदर से ऐसे काम करता है जैसे अधिकृत प्रोग्राम है.

कैसे बचें साइबर अपराध से

कुछ लोगों को जिस तरह शराबसिगरेट का नशा होता है, उसी तरह सोशल साइट भी एक नशा है. लोगों की जिंदगी में सोशल साइट का दखल इस कदर बढ़ चुका है कि इन से दूर रहने पर उन्हें लगता है कि जैसे वे कुछ मिस कर रहे हैं.

कुछ लोग जब तक अपना फेसबुक चैक नहीं कर लेते, उन के फोटो को कितने लाइक मिले हैं, उन के दोस्तों ने क्या कमेंट किए हैं, क्या अपडेट किए हैं, उन्हें चैन नहीं मिलता. फोटो पर लिखे कमेंट ब्यूटीफुल, अमेजिंग, सैक्सी आदि से उत्साहित हो कर कुछ महिलाएं हर दिन अपनी फोटो अपडेट करती रहती हैं.

उन्हें इस बात का इल्म नहीं होता कि कोई उन की फोटो से छेड़छाड़ कर के उन की जिंदगी में तूफान खड़ा कर सकता है. सोशल मीडिया से जुडे़ अपराधों का एक प्रमुख कारण है लोगों द्वारा अपनी निजी जिंदगी के हर पल सोशल साइट्स पर अपडेट करना, जिस की बदौलत अपराधी आसानी से ऐसे लोगों को अपना निशाना बना लेते हैं. फिर भी आज के युग में खुद या बच्चों को साइबर वर्ल्ड से पूरी तरह दूर रखना नामुमकिन है. लेकिन कुछ बातों को ध्यान में रख कर साइबर अपराधियों का निशाना बनने से बचा जा सकता है—

सोशल साइट्स का इस्तेमाल करते समय जरूरी है कि सिक्योरिटी सिस्टम को एक्टिवेट करें, किसी भी अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट न करें.

किसी के बेहूदा मैसेज का जवाब न दें. अपने फोटो या पर्सनल डिटेल को रिस्ट्रिक्ट कर दें, ताकि गिनेचुने दोस्तों को छोड़ कर कोई अन्य व्यक्ति उस तक न पहुंच सके.

औनलाइन निजी जानकारी ‘फोन नंबर, बैंक डिटेल आदि’ किसी से शेयर न करें.

उत्तेजक स्क्रीन नाम या ईमेल एड्रेस का इस्तेमाल न करें.

अपना पासवर्ड किसी से शेयर न करें.

किसी अंजान व्यक्ति से औनलाइन फ्लर्ट या बहसबाजी न करें.

एक अच्छे एंटी वायरस प्रोग्राम का इस्तेमाल करें.

अपनी पूरी बातचीत को कंप्यूटर में सेव रखें.

औनलाइन लौटरी जीतने वाले ईमेल का जवाब न दें.

कोई अनजान व्यक्ति इंटरव्यू, नौकरी या कोई गिफ्ट देने के बहाने अगर आप की बैंक डिटेल्स मांगता है तो ऐसे ई-मेल का जवाब न दें.

समयसमय पर पासवर्ड बदलते रहें.

सोशल नेटवर्किंग साइट पर दोस्तों की संख्या सीमित रखें.

सोशल साइट्स पर पर्सनल फोटो अपलोड करने से बचें.

यदि आप के कंप्यूटर में वेबकैम लगा है तो ध्यान रखें कि इस्तेमाल न होने पर उसे अनप्लग कर दें.

VIDEO : ट्रांइगुलर स्ट्रिप्स नेल आर्ट

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फेसबुक डाटा लीक : क्या बदल सकता है भारत का चुनावी समीकरण?

एक प्राइवेट कंपनी में एकाउंटेंट सचिन अरोड़ा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए उस ने सोचा क्यों न कुछ देर फेसबुक में ही समय गुजारा जाए. अभी उस ने फेसबुक खोला ही था कि सामने एक खूबसूरत तसवीर के साथ एक आकर्षक इबारत चमकी, ‘जानिए आप की शक्ल देशविदेश के किस महान एक्टर से मिलती है.’

सचिन को हमेशा यह खुशफहमी रही थी कि उस की शक्ल विनोद खन्ना से /मिलती है, इसलिए उस ने यह पढ़ते ही सोचा क्यों न आजमा कर देख लिया जाए कि उस का अनुमान सही भी है या नहीं. अत: उस ने तुरंत उस पौइंट पर क्लिक कर दिया, जहां से यह जानने के लिए कदम दर कदम आगे बढ़ना था.

पहली क्लिक के बाद ही बारीक अक्षरों में लिखी यह बात सामने आई कि अगर आप इस मनोरंजक क्विज में भाग लेते हैं तो इस ऐप को, जिस ने यह क्विज डेवलप की है, क्या मिलेगा? साथ ही जवाब में लिखा था, आप की सार्वजनिक प्रोफाइल, तसवीरें और आप के कमेंट.

सचिन ने सोचा ऐसी कौन सी खास चीजें हो सकती हैं. इसलिए वह नेक्स्ट के बाद नेक्स्ट बटन क्लिक करता गया. हालांकि उसे बाद में निराशा हुई, क्योंकि ऐप ने उसे हौलीवुड के एक्टर टौम हैंक जैसा बताया था, जिसे वह जानता तक नहीं था.

बहरहाल, इस पहेली में टाइम पास कर के सचिन यह सब भूल गया था, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे तब आश्चर्य हुआ जब एक असहिष्णुता संबंधी औनलाइन वोटिंग में उस ने अपने आप को उन लोगों के विरुद्ध मोर्चाबंदी करते हुए पाया, जो सरकार की सांस्कृतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप कर रहे थे.

सचिन को तो शायद यह पूरा मामला पता ही नहीं चलता, अगर उस के एक दोस्त ने व्यंग्य करते हुए यह न कहा होता कि आजकल कलाकारों का बहुत विरोध कर रहे हो. सचिन को इस से ही पता चला कि उस के नाम और तसवीरों का किसी ने दुरुपयोग किया है.

दरअसल, हाल के सालों में हम ने भले ही ध्यान न दिया हो, लेकिन फेसबुक में इस तरह के खेलों की बाढ़ आ गई है, जिस में कहा जाता है कि जानिए आप किस हीरो की तरह लग रहे हैं? पिछले जन्म में क्या थे? या आप उद्योगपति होते तो किस के जैसे होते? या फिर आप खिलाड़ी के रूप में किस खेल के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं? ऐसी तमाम पहेलियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने वाले कार्यक्रमों की इंटरनेट में बाढ़ आ गई है. इन में लोग रुचि से भाग भी लेते हैं.

सब से पहले इस तरह के सवाल आने शुरू हुए थे— आप 60 साल बाद कैसे दिखेंगे? आप की जोड़ी किस हीरोइन या हीरो के साथ जमती है? मनोवैज्ञानिक रूप से आकर्षित करने वाले टाइमपास खेलों की यह शृंखला लगातार बढ़ती गई तो ऐसा यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इस के पीछे एक पूरी साजिश थी.

दरअसल, आम लोग भले ही न जानते हों लेकिन इन खेलों के जरिए पर्सनल डाटा चुराने का बहुत ही सोचासमझा खेल चल रहा था. इस डाटा चोरी की बात शायद इतनी डरावनी नहीं लगती, अगर पिछले दिनों इस बात का खुलासा न होता कि इसी तरह डाटा चुरा कर कुछ कंपनियों ने डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति बनवा दिया है.

जी हां, ये सब उन साइको प्रोफाइल विकसित करने वाली कंपनियों का खेल है, जिस को ले कर आज पूरी दुनिया में हंगामा है. वास्तव में ये कंपनियां आम लोगों को सोशल मीडिया में विशेषकर फेसबुक जैसे लोकमंच में मनोवैज्ञानिक रूप से फांसती हैं.

अपने सहज मानवीय आकर्षण वाले सवालों के जरिए ये कंपनियां लोगों को अपने जाल में फांस कर उन का प्रकट रूप में तो मनोरंजन करती हैं, लेकिन इस मनोरंजन के पीछे उन का असली मकसद इन लोगों की मेल आईडी, तसवीरें और तमाम पर्सनल जानकारियां हासिल करना होता है.

बाद में एकत्र की गई इन प्रोफाइल जानकारियों को ये कंपनियां कारपोरेट सेक्टर से ले कर विभिन्न मार्केटिंग एजेंसियों तक को बेच देती हैं. अब यह खुलासा इसलिए खौफनाक लगने लगा है, क्योंकि पता चला है कि ये अपना डाटा राजनीतिक पार्टियों को भी बेचती हैं और वे इस डाटा के जरिए मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के मनपसंद नतीजे हासिल करने की कोशिश करती हैं.

2 बड़े अखबारों के स्टिंग से घबराई भाजपा, कांग्रेस 

गत 17 मार्च, 2018 को अमेरिका और ब्रिटेन के 2 अखबारों ने जब इस बात का खुलासा किया कि अमेरिकी चुनावों में मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप के पक्ष में इस तरह के खेल का किस तरह से इस्तेमाल किया गया तो पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया. इस खुलासे के बाद भारत में भी हंगामा मचा हुआ है.

देश की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस डर रही हैं कि कहीं अमेरिका की तरह यहां भी अगले साल होने वाले चुनाव में राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह के तथ्यों का इस्तेमाल न किया जाए. इसीलिए दोनों पार्टियां एकदूसरे पर आरोप लगा रही हैं कि वे देश के आम मतदाताओं का निजी डाटा हासिल कर के उन का राजनीतिक ब्रेनवाश कर रही हैं. हालांकि चुनाव आयुक्त ए.के. रावत ने साफतौर पर इनकार करते हुए कहा है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा, न हो सकता है.

लेकिन अमेरिका में घटी घटना ने साबित कर दिया है कि जब अमेरिकी मतदाताओं का ब्रेनवाश हो सकता है तो हिंदुस्तानी मतदाताओं का क्यों नहीं?

कांग्रेस ने तो भाजपा पर आरोप भी लगा दिया है कि भाजपा ने 2014 का चुनाव फेसबुक के जरिए इसी तरह से मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के जीता था. हालांकि इस के लिए डाटा चोरी का आरोप नहीं लगाया गया. बहरहाल, डर की यह पूरी कहानी कहां और कैसे सामने आई, इस पर हम आगे बात करेंगे. फिलहाल अमेरिका में डाटा लीक के दुरुपयोग के जरिए जो डर पूरी दुनिया के सामने आया है, वह यह है कि इस साल और अगले साल दुनिया के 2 दरजन देशों में होने जा रहे आम चुनावों में इंटरनेट कंपनियां हारजीत का फैसला कर सकती हैं.

कुल मिला कर यह डर वैसा ही है, जैसा 1970 के दशक में हुआ करता था. तब राजनीतिक पार्टियों को लगता था कि उन के धाकड़ विरोधी जीतने के लिए बूथ कैप्चरिंग कर लेंगे. यह भी एक किस्म से कैप्चरिंग की ही आशंका है.

फर्क बस यह होगा कि तब भौतिक रूप से लठैतों और हथियारों की बदौलत यह काम होता था और अब आशंका है कि सोशल मीडिया के मनोवैज्ञानिक कब्जे के जरिए यह खेल खेला जाएगा. बहरहाल, यह आशंका कहां से पैदा हुई और कैसे कदम दर कदम आगे बढ़ी, इस का सिलसिला कुछ यूं शुरू होता है.

वाट्सऐप के को-फाउंडर ब्रायन एक्टन ने फैलाई सनसनी

21 मार्च, 2018 को शाम 5 बज कर 18 मिनट पर किए गए अपने एक ट्वीट से मैसेजिंग ऐप वाट्सऐप के को-फाउंडर ब्रायन एक्टन ने तब हड़कंप मचा दिया, जब उन्होंने सभी से अपना फेसबुक एकाउंट डिलीट करने को कहा. एक्टन ने ट्वीट किया, ‘यह डिलीट फेसबुक का वक्त है.’

एक्टन का यह ट्वीट ऐसे समय में आया, जब पौलिटिकल डाटा एनालिस्ट कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका पर अमेरिका के 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स का डाटा चुरा कर, उस का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा था.

अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स और ब्रिटेन के अखबार औब्जर्वर के एक संयुक्त स्टिंग से यह खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी ने फेसबुक के 5 करोड़ यूजर्स के बारे में विस्तृत जानकारियां एकत्र कर के उन की अनुमति के बिना उन का दुरुपयोग किया.

यह सब 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के समय हुआ और माना जाता है कि डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाने के लिए किया गया. स्टिंग के मुताबिक कंपनी ने एक ऐप बनाया और उस के जरिए इन जानकारियों का कई किस्म से दुरुपयोग किया. मालूम हो कि इस कंपनी ने ऐप के जरिए वोटरों के व्यवहार की भविष्यवाणी की थी, जिस में डोनाल्ड ट्रंप को जीतता हुआ बताया गया था.

इस खुलासे के बाद से माना जा रहा है कि फेसबुक मुश्किल में है. चूंकि कैंब्रिज एनालिटिका ने यह डाटा फेसबुक से हासिल किया था, इस वजह से यह आशंका जताई जा रही है कि फेसबुक में किसी का भी डाटा सुरक्षित नहीं है.

इस आशंका का एक कारण यह भी है कि स्टिंग से यह भी पता चलता है कि कंपनी के पास 5 और देशों के फेसबुक यूजर्स का डाटा है, जिस में से एक देश भारत भी है. इस असुरक्षा के बाद अब बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि क्या फेसबुक जिंदा भी रहेगा या बंद हो जाएगा?

लेकिन सवाल यह भी है कि अगर फेसबुक बंद हो गया तो इस प्लेटफार्म में मौजूद असंख्य अनंत डाटा का क्या होगा? लोगों के एकाउंट में मौजूद अपार जानकारियों, तसवीरों और वीडियोज का क्या होगा? क्या फेसबुक का हश्र भी सोशल मीडिया वेबसाइट माईस्पेस डौटकौम जैसा होगा?

गौरतलब है कि माईस्पेस डौटकौम पर भी साल 2011 में इसी तरह डाटा बेचने का आरोप लगा था. माना गया था कि उस ने भी अपने यूजर्स के डाटा को चोरीछिपे एक एजेंसी को बेच दिया था.

क्या होगा फेसबुक का और उस के यूजर्स के डाटा का

इस आरोप के बाद जिस माईस्पेस डौटकौम को साल 2005 में रूपर्ट मर्डोक ने 58 करोड़ डालर में खरीदा था, उसे साल 2011 में महज 3.5 करोड़ डालर में बेचना पड़ा. क्योंकि इस खुलासे के बाद साइट की विश्वसनीयता बिलकुल खत्म हो गई थी. नतीजतन उस की सदस्य संख्या नहीं बढ़ रही थी. यही कारण था कि रूपर्ट की कंपनी न्यूज कारपोरेशन को मजबूरी में अपनी इस कंपनी को औनलाइन विज्ञापन कंपनी स्पेसिफिक मीडिया को बेचना पड़ा था.

लेकिन माईस्पेस डौटकौम को तो फिर भी ग्राहक मिल गया था, मगर क्या फेसबुक को भी कोई ग्राहक मिल पाएगा? यह इसलिए भी संभव नहीं है, क्योंकि दोनों के आकार में जमीनआसमान का फर्क है.

जब माईस्पेस डौटकौम को बेचना पड़ा था, उस समय उस की सदस्य संख्या महज 3 करोड़ के आसपास थी, जबकि फेसबुक के सदस्यों की संख्या इस समय करीब 2.1 अरब है. इस में इस के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 1 अरब 40 करोड़ है. ये फेसबुक के वे सदस्य हैं, जो हर दिन फेसबुक का चक्कर काटते हैं.

यही वजह है कि दुनिया की कोई भी कारपोरेट कंपनी फिलहाल फेसबुक के अधिग्रहण की नहीं सोच पा रही. लेकिन स्टिंग औपरेशन से हुए खुलासे ने फेसबुक की नींव हिला कर रख दी है. इस खुलासे के  बाद फेसबुक के शेयरों में भारी गिरावट आई है.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह गिरावट 8 फीसदी से ज्यादा हो चुकी थी, जिस के कारण मार्क जकरबर्ग को 350 अरब रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है, जबकि कंपनी को अब तक इस से 600 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो चुका है. इस वजह से भी कारपोरेट दुनिया में फेसबुक के भविष्य को ले कर हड़कंप मचा हुआ है.

बहरहाल, फेसबुक के अस्तित्व की आशंकाओं और अनुमानों वाले सवालों के जवाब हम बाद में जानेंगे, पहले हम इस विषय पर बात करते हैं कि आखिर हम इस सब पर बात ही क्यों कर रहे हैं?

अमेरिका और ब्रिटेन के इन 2 अखबारों के इस साझा स्टिंग से आखिर हमारा क्या लेनादेना? लेनादेना है, जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है कि इस स्टिंग से पता चलता है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने सिर्फ अमेरिका के फेसबुक यूजर्स का ही डाटा नहीं चुराया है, बल्कि उस ने ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया और भारत सहित 5 देशों के फेसबुक यूजर्स के डाटा की चोरी की है.

हकीकत पर परदा डालने की कोशिश

हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने इस का खंडन किया है, लेकिन इस स्टिंग के प्रकाश में आने के बाद भारत के कानून और सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफसाफ कहा है कि यदि फेसबुक डाटा का दुरुपयोग भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश में किया गया तो यह कतई सहन नहीं किया जाएगा. उन्होंने 17 मार्च, 2018 को इस खुलासे के बाद फेसबुक को कड़ी चेतावनी दी, जिस में यहां तक कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो भारत सरकार फेसबुक के विरुद्ध कड़े से कड़ा कदम उठाएगी.

हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने कहा है कि उस ने फेसबुक के भारतीय उपभोक्ताओं का कोई डाटा नहीं चुराया है और न ही उस का चुनाव को प्रभावित करने का कोई इरादा है. फेसबुक के मालिक जकरबर्ग ने तो इस संबंध में भारत से स्पष्ट तौर पर माफी भी मांगी है और फेसबुक में डाटा संबंधी सुरक्षा को और मजबूत करने की बात भी कही है.

फिर भी अगर इस सब से भारत के राजनीतिक गलियारों में एकदूसरे के विरुद्ध आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला थम नहीं रहा तो इस के पीछे बड़ी वजह यही है कि सभी राजनीतिक पार्टियां डरी हुई हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के मतों का अपहरण करने की कोशिश की जा सकती है.

इस आशंका की वजह से देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों— कांग्रेस और भाजपा का एकदूसरे पर यह आरोप लगाना है कि उस का कैंब्रिज एनालिटिका से संबंध है. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाया है कि आखिर कांग्रेस का कैंब्रिज एनालिटिका से इस कदर प्रेम क्यों है?

भाजपा की तरफ से कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी की सोशल मीडिया प्रोफाइल में कैंब्रिज एनालिटिका की क्या भूमिका है? क्या कांग्रेस अब चुनाव जीतने के लिए डाटा चोरी का इस्तेमाल करेगी, जैसा कि इस कंपनी ने अमेरिका में किया. चूंकि हाल ही में राहुल गांधी के ट्विटर पर फालोअर्स की संख्या काफी बढ़ी है तो भाजपा का आरोप यह भी है कि ये फरजी फालोअर्स हैं, जिन्हें ऐसे ही डाटा जगलरी के जरिए हासिल किया गया है.

कांग्रेस की सफाई और आरोप में दम है

इस पर कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा की खबर ली है. उन्होंने भाजपा को इन आरोपों के बदले खूब खरीखोटी सुनाई है. सुरजेवाला के मुताबिक भाजपा फेक न्यूज की फैक्ट्री है, वही इस तरह की कंपनियों का सहारा लेती है.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने या कांग्रेस के अध्यक्ष ने कभी भी इस कंपनी की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं ली है. अगर स्वतंत्र रूप से कैंब्रिज एनालिटिका के दावों की बात करें तो उस का कहना है कि साल 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव में उस ने काम किया था.

कैंब्रिज एनालिटिका की वेबसाइट में मौजूद विवरण में एक जगह यह दावा किया गया है कि हमारे प्रयासों से हमारे ग्राहक की बड़ी जीत हुई. हम ने जितना टारगेट किया, उस की 90 फीसदी सीटें हमारे क्लाइंट को मिलीं. अगर इतिहास में पीछे मुड़ कर जाने की कोशिश करें कि साल 2010 में बिहार विधानसभा में किस को जीत मिली थी तो निश्चित रूप से वह भाजपा और जेडीयू का गठबंधन था, जिसे भारी बहुमत मिला था.

जनता दल यूनाइटेड ने तब 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 115 सीटें जीती थी जबकि भारतीय जनता पार्टी जिस ने सिर्फ 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उस ने 91 सीटें जीती थीं. इस तरह देखा जाए तो तथ्यात्मक रूप से यह भारतीय जनता पार्टी है, जिस ने 2010 के विधानसभा चुनाव में 90 फीसदी सीटें जीती थीं. इस तरह कैंब्रिज एनालिटिका के दावे में वही फिट हो रही है.

यही नहीं, रणदीप सुरजेवाला का यह भी कहना है कि साल 2010 में कैंब्रिज एनालिटिका की इंडियन पार्टनर ओवलेनो बिजनैस नाम की कंपनी वास्तव में भाजपा की साथी पार्टी के सांसद के बेटे की थी और तब ओबीआई की सेवाओं का राजनाथ सिंह ने अपने लिए इस्तेमाल किया था.

रणदीप सुरजेवाला भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि भाजपा फेक स्टेटमेंट, फेक कौन्फ्रैंस के साथसाथ फेक डाटा का सहारा लेने वाली पार्टी है. इसी क्रम में कांग्रेस आईटी सेल की प्रभारी दिव्या स्पंदना का कहना है कि कैंब्रिज एनालिटिका राइट विंग पार्टियों के साथ मिल कर काम करती है, लिबरल्स के साथ नहीं और सब को पता है कि राइट विंग कौन है.

कुल मिला कर अब यह डाटा लीक इतना डरावना क्यों है, इसे समझ लेते हैं. दरअसल, भारत में फेसबुक के करीब 20 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता हैं, जिस में ज्यादातर की उम्र 18 से 35 साल के बीच है.

समाजशास्त्रियों और मनोविदों का मानना है कि ये लोग राजनीतिक दलों द्वारा फैलाई गई अफवाहों को सच मान लेते हैं और उसी के मुताबिक उन के बारे में अपनी राय बना लेते हैं.

कहने का मतलब यह है कि ये लोग तात्कालिक माहौल के प्रभाव में आ कर अपना मतदान करते हैं. ऐसे में आशंका है कि परदे के पीछे रहने वाली ये डाटा विश्लेषक कंपनियां चोरी से हासिल किए गए डाटा के जरिए आगामी चुनावों में अपनी सेवा लेने वाली राजनीतिक पार्टियों को कृत्रिम माहौल बना कर जिताने की कोशिश करेंगी, जैसा कि आरोप है कि 2 साल पहले अमेरिका में ट्रंप के लिए ऐसा माहौल बनाया गया.

क्या भारतीय वोटरों को भ्रमित कर के मतदान कराया जाएगा?

चूंकि भारत में 20 करोड़ से ज्यादा फेसबुक के सक्रिय उपभोक्ता हैं और उन में से 90 फीसदी 35 साल से कम उम्र के हैं. ये उपभोक्ता आमतौर पर हमेशा अपने जैसे तमाम दूसरे लोगों के साथ जुड़े रहते हैं और इस तरह एकदूसरे की बातों से प्रभावित होते हैं. इसलिए आशंका है कि ऐसी जानकारियों को व्यक्तिगत स्तर पर प्रसारित किया जाएगा, जिस से कि इन लोगों का दिमाग बदल जाए.

चूंकि लोगों का वास्तविक इंटरैक्शन बहुत कम हो गया है, जबकि आभासी मेलमिलाप बहुत बढ़ गया है, इसलिए यह माना जा रहा है कि उपभोक्ता एकदूसरे को प्रभावित करेंगे. लब्बोलुआब यह है कि साल 2019 में राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के बीच अपने लोकप्रिय समर्थन के बजाय आंकड़ों के जोड़तोड़ और भ्रामक माहौल से उपजी भावनात्मक स्थितियों के जरिए चुनाव जीतने की कोशिश करेंगी.

यह भी माना जा रहा है कि साल 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ऐसे ही चुनाव जीते थे. यही वजह है कि कैंब्रिज एनालिटिका के डाटा चोरी संबंधी खबर के खुलासे से भारत में हड़कंप मच गया है.

इंटरनेट के जानकारों का मानना है कि यह आशंका पूरी तरह से हवाहवाई नहीं है. कैंब्रिज एनालिटिका या कोई भी कंपनी जिस के पास किसी समुदाय विशेष का बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत डाटा हो, वह ऐसा माहौल रच सकती है, जिस के मनोविज्ञान में उलझ कर मतदाता वैसा ही निर्णय ले जैसा कि कोई शातिर कंपनी उन से निर्णय लिवाने की कोशिश करे.

स्टिंग औपरेशन के दौरान यह बात सामने आई है कि कैंब्रिज एनालिटिका लोगों के डाटा से उन की साइकोलौजिकल प्रोफाइलिंग करती है और उसी प्रोफाइलिंग के आधार पर किसी उम्मीदवार के समर्थन में या उस के विरोधी के खिलाफ सूचनाएं प्लांट की जाती हैं. कुल मिला कर नतीजा यह होता है कि मत देने वाले मतदाता का मन बदल जाता है और वह अपना वोट उसे दे देता है, जिसे वह इस तरह के प्रभाव में आने के पहले अपना वोट नहीं देना चाहता हो.

मतदाता का मन बदलने का षडयंत्र

यह पूरा किस्सा शायद महज एक अनुमान ही होता, अगर ब्रिटेन के चैनल-4 ने कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी के बड़े अधिकारियों का स्टिंग औपरेशन प्रसारित न किया होता. इस प्रसारण के बाद ही पूरी दुनिया को पता चला कि यह कंपनी दुनिया के तमाम राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया में कैंपेन चलाती है और अपने क्लाइंट या ग्राहकों को जितवाने के लिए हर वह हथकंडा अपनाती है, जिस से कि मतदाता का मूड बदला जा सके.

फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया पर जो लोग ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं और अपने दिलदिमाग की तमाम बातों को यहां दर्ज करते हैं. ये कंपनियां इन्हीं बातों से इन के मनोविज्ञान का अध्ययन करती हैं. फिर उसी अध्ययन के आधार पर इन्हें भावनात्मक बाहुपाश में कैद करने के लिए चक्रव्यूह रचती हैं. देश की 2 सब से बड़ी राजनीतिक पार्टियां अगर इस डाटा लीक से डरी हुई हैं और एकदूसरे पर गंभीर से गंभीरतम आरोप लगा रही हैं तो इस के पीछे बहुत बड़ा कारण लोगों की साइकोलौजिक प्रोफाइलिंग करने वाली कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियों के कामकाज का तौरतरीका भी है.

इस तरह की कंपनियां सोशल मीडिया प्लेटफार्म से डाटा चुरा कर मनोवैज्ञानिक कैंपेन विकसित करती हैं. यही नहीं, ये कंपनियां नेताओं के भाषण, राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों तक को अपने इन्हीं सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर तैयार करवाती हैं.

कहने का मतलब यह है कि अगर भाजपा यह घोषणा करे कि वह अगले साल, इस महीने, इस तारीख तक अयोध्या में मंदिर बनवा देगी तो हो सकता है यह भाजपा के नेताओं के बजाए मतदाताओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने वाली कंपनी का निष्कर्ष हो और जो किसी पार्टी के नेता विशेष के मुंह से जारी हुआ हो.

जकरबर्ग की सीनेट के सामने पेशी

फेसबुक के संस्थापक और सीईओ मार्क जकरबर्ग बहुत बड़ी हस्ती हैं. दुनिया भर में फेसबुक के अरबों यूजर्स हैं, जिन का सीधा लाभ जकरबर्ग की कंपनी को मिलता है. फेसबुक के माध्यम से हुई गलतियों के लिए जकरबर्ग सितंबर 2006 से नवंबर 2011 तक 5 बार माफी मांग चुके हैं.

इस बार तो उन्होंने अमेरिकी सीनेटर्स के सामने माफी मांगी और अपनी गलतियों को सुधारने का वादा भी किया. लेकिन अपने इस वादे पर वह कब तक कायम रहेंगे, कहा नहीं जा सकता.

जकरबर्ग पर सब से बड़ा आरोप यह है कि उन की कंपनी की वजह से 8.7 करोड़ फेसबुक यूजर्स का डाटा लीक हुआ, जिस का चुनाव के समय सीधा लाभ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मिला, वरना वह राष्ट्रपति नहीं बन पाते.

इस का सीधा मतलब यह है कि किसी भी देश में, चाहे वह भारत ही क्यों न हो, अमेरिका में बैठे चंद लोग चुनाव के समय फेसबुक यूजर्स का सहारा ले कर चुनाव परिणामों का रुख मोड़ सकते हैं.

यह जितनी गहन चिंता का विषय भारत में है, उतना ही अमेरिका में भी है. इसी के मद्देनजर 11-12 अप्रैल को अमेरिकी सीनेट ने मार्क जकरबर्ग को सीनेटर्स के सामने पेश होने को कहा. मंगलवार और बुधवार को जकरबर्ग सीनेट के सामने पेश हुए, जहां 44 सीनेटर्स को 5-5 मिनट का समय दे कर जकरबर्ग से सवाल पूछने को कहा गया. हालांकि यह मात्र औपचारिकता जैसा था, क्योंकि इतने समय में क्रौस क्वेश्चन नहीं किए जा सकते थे. जबकि यह जरूरी था.

10 घंटे चली इस काररवाई में सीनेटर डिक डर्बिन ने जकरबर्ग से पूछा कि पिछली रात आप किस होटल में ठहरे थे और किसे मैसेज किया था? जवाब में जकरबर्ग ने कहा कि यह निजी मामला है, जिसे मैं सार्वजनिक नहीं करना चाहूंगा. इस पर डर्बिन बोले, ‘डाटा लीक का मामला भी निजता से जुड़ा है.’

लंबी चली सवालजवाबों की इस फेहरिश्त के दौरान जकरबर्ग ने अपनी गलती सुधारने का वादा करते हुए कहा कि फेसबुक यह तय करेगा कि आने वाले साल में भारत, पाकिस्तान, हंगरी, ब्राजील और अमेरिका में होने वाले चुनावों में फेसबुक का दुरुपयोग न हो.

इस सुनवाई की वजह था ब्रिटिश फर्म कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा फेसबुक के 8.7 करोड़ यूजर्स का डाटा लीक करने का मामला, जिस का इस्तेमाल अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में हुआ बताया जाता है.

जकरबर्ग ने हर गलती को स्वीकारते हुए माफी मांगी और कहा कि फेसबुक को मैं चलाता हूं, इस के माध्यम से जो भी गलती हुई या होगी, उस के लिए जिम्मेदार भी मैं ही रहूंगा.

जकरबर्ग ने अपनी कंपनी को ले कर कई दावे भी किए, लेकिन न्यूयार्क टाइम्स ने उन की हकीकत बताते हुए उन दावों को गलत बताया. मसलन जकरबर्ग ने कहा कि फेसबुक काल का डाटा स्टोर नहीं करता, जबकि हकीकत यह है कि फेसबुक एंड्रायड फोन के काल और एसएमएस तक के रिकौर्ड रखता है.

उधर सीएनएन का कहना है कि जकरबर्ग की पेशी महज एक दिखावा है. इस मौके पर जकरबर्ग ने यह भी कहा कि उन की कंपनी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के न्यूरो साइंटिस्ट अलेक्सांद्र और कैंब्रिज एनालिटिका पर मुकदमा करने की सोच रही है. लेकिन इस पर कुछ सीनेटर्स ने कहा कि उन्हें शंका है कि ऐसा होगा.

VIDEO : ट्रांइगुलर स्ट्रिप्स नेल आर्ट

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