गोरखपुर और फूलपुर में लोकसभा के उपचुनाव में हार के बाद भाजपा कैराना और नूरपुर को हल्के में नहीं लेना चाहती. दूसरी तरफ विपक्ष ने भाजपा की घेराबंदी करने का फैसला लिया है. अगर नूरपुर और कैराना में भाजपा को मात मिलती है तो 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के एकजुट होने का रास्ता साफ हो जायेगा.
भाजपा को घेरने के लिये सपा-बसपा के साथ लोकदल खुल कर मैदान में है. कांग्रेस ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले है पर विपक्षी एकता की हिमायती वह भी है. ऐसे में कैराना और नूरपुर को जीतना भाजपा के लिये सरल नहीं होगा. विपक्ष की घेराबंदी को तोड़ने के लिये भाजपा ने ‘धर्म’ और ‘सहानुभूति’ का सहारा लेने का फैसला किया है.
कैराना लोकसभा सीट भाजपा के सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के कारण रिक्त हुई है. भाजपा यहां से हुकुम सिह की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दे रही है. नूरपुर विधानसभा की सीट विधायक लोकेन्द्र सिंह की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के कारण खाली हुई है. लोकेन्द्र सिंह की मृत्यु सड़क दुर्घटना में हुई थी. उस समय वह नूरपूर से लखनऊ इंवेस्टर मीट में हिस्सा लेने जा रहे थे. लोकेन्द्र सिंह 2012 और 2017 में विधायक का चुनाव जीते थे. भाजपा अब वहां से लोकेन्द्र की पत्नी अवनी को चुनाव लड़ाने जा रही है.
असल में विपक्षी एकता से भाजपा के तोते उड़े हुये हैं. उसे फूलपुर और गोरखपुर की हार दिखाई दे रही है. ऐसे में भाजपा ने ‘सहानुभूति’ के साथ ही साथ ‘धर्म’ का सहारा लेने के लिये अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर को लेकर विवाद को भड़का दिया. पश्चिम उत्तर प्रदेश में धर्म के नाम पर वोट पड़ते रहे हैं. भाजपा विपक्षी एकता की काट के लिये धर्म का सहारा लेने की योजना में है.
कैराना से समाजवादी पार्टी की तबस्सुम लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ेगी. नूरपुर से सपा नईमूल हसन चुनाव लड़ेंगे. सपा के नेता अखिलेश यादव और लोकदल के नेता जयंत चैधरी ने आपसी तालमेल से चुनाव लड़ने का फैसला किया है. बसपा यहां सपा और लोकदल के साथ है. कैराना में 2014 में जब हुकुम सिंह चुनाव जीते थे तो मोदी की लहर चल रही थी. उस समय भाजपा के हुकुम सिंह को 50 फीसदी वोट मिले थे. सपा को 29 फीसदी, बसपा को 14 फीसदी और लोकदल को 3 फीसदी वोट मिले थे. हुकुम सिंह का भाजपा के अलावा दूसरे वोट बैंक पर भी प्रभाव था. इसके बाद मोदी लहर का असर था.
हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह का क्षेत्र में कोई बहुत प्रभाव नहीं है. 2014 जैसी मोदी लहर भी नहीं है. ऐसे में कैराना जीतना भाजपा के लिये सरल नहीं होगा. भाजपा के लिये सबसे कड़ी चुनौती विपक्षी एकता भी है. ऐसे में केवल सहानुभूति लहर के बल पर चुनाव जीतना सरल नहीं है. कैराना जैसी हालत नूरपुर में भी है. वहां से 2 बार विधायक रहे लोकेन्द्र सिंह की पत्नी अवनी के लिये चुनाव जीतना सरल नहीं होगा. ‘मोदी-योगी’ की चमक गायब है. अवनी सिंह नेता नहीं हैं, ऐसे में केवल सहानुभूति लहर से जीत नहीं हासिल होने वाली.
विकास की बात करने वाली भाजपा अब अलीगढ़ के जिन्ना मुद्दे को उठा कर पश्चिम उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतना चाहती है. 31 मई को कैराना और नूरपुर का चुनाव परिणाम आयेगा. इस बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने होंगे. ऐसे में अगर कर्नाटक में भाजपा को जीत मिलती है तो उसका असर उत्तर प्रदेश के कैराना और नूरपुर उपचुनाव पर पड़ सकता है. अगर भाजपा कैराना और नूरपुर हारती है तो उत्तर प्रदेश में उसकी उखडती जड़ों पर मोहर लग जायेगी. 2019 में उसे आधी सीटे जीतना भी मुश्किल हो जायेगा.