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प्रैगनैंट महिलाओं पर घरेलू हिंसा का ऐसे पड़ता है प्रभाव

मुंबई की 24 साल की मनीषा जब गर्भवती हुई तो कुछ परेशान सी रहने लगी. वह न तो अपनी मनपसंद का खाना बना सकती थी और न ही खा सकती थी, क्योंकि परिवार में सासससुर हमेशा उसे अच्छा खाना बना कर खाने पर ताने देते थे. अगर मनीषा का पति अपने मांबाप से कुछ कहता तो वे उसे भी भलाबुरा कहते.

एक दिन तो इतनी कहासुनी हुई कि सासससुर ने मनीषा को घर से निकल जाने को कह दिया. मनीषा के घर छोड़ने के कदम में उस के पति ने भी उस का साथ दिया और दोनों ने बड़ी मुश्किल से अपनी अलग गृहस्थी जमाई. अब मनीषा को इस बात का डर सताने लगा था कि पता नहीं उस की डिलिवरी ठीक से होगी या नहीं. अपनेआप को काफी संभालने के बाद भी उस की प्रीमैच्योर डिलिवरी हुई. बच्ची ने काफी समय बाद बोलनाचलना सीखा.

नवजात पर बुरा असर

ऐसी कई घटनाएं हैं जहां डिलिवरी के समय या बाद में बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास कम होने पर डाक्टर जब इस की बारीकी से जांच करते हैं तब कई बार घरेलू हिंसा की बात सामने आती है. एक सर्वे में पाया गया कि 5 प्रैगनैंट महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार अवश्य होती है. इन में से कुछ महिलाएं तो पहले इस बारे में बता देती हैं तो कुछ छिपाती हैं, जिस का पता डिलिवरी के बाद चलता है. यह घरेलू हिंसा ज्यादातर 21 से 35 वर्ष की महिलाओं के साथ होती है और खासकर गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली महिलाओं के साथ और कुछ खास समुदाय और उच्च वर्ग की महिलाओं के साथ.

इस बारे में मुंबई के मल्हार नर्सिंगहोम की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा, डा. रेखा अंबेगांवकर कहती हैं, ‘‘घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को केवल प्रैगनैंसी के दौरान या बाद में ही नहीं, बल्कि गर्भधारण के पहले से भी अगर उन्हें डोमैस्टिक वायलैंस का सामना करना पड़ता है, तो उस का असर प्रैगनैंसी के बाद भी बच्चे पर होता है. यह अधिकतर उन परिवारों में अधिक होता है जहां पति किसी नशे का आदी हो. निम्नवर्ग में यह अधिक है.

‘‘कई बार महिला नहीं चाहती कि उस का बच्चा ऐसे माहौल में जन्म ले, जहां उसे अच्छी परवरिश न मिले. ऐसे में गर्भधारण के बाद वह जरूरत के अनुसार खानापीना छोड़ देती है. सही समय पर अपना चैकअप नहीं कराती, जिस से बच्चे का विकास गर्भ में कम होता है और प्रीमैच्योर डिलिवरी हो जाती है, जिस से बाद में बच्चे में कई प्रकार की समस्याएं जन्म लेती हैं. मसलन, विकास सही तरह से न होना, बात न कर पाना. देरी से चलना आदि.

‘‘इस के अलावा अगर किसी ने पत्नी के पेट पर जोर से लात मारी हो या धक्का दिया हो तो कई बार प्लैसेंटा अलग हो जाने से भी बच्चा प्रीमैच्योर हो जाता है या फिर गर्भपात होने का डर रहता है.’’

डा. रेखा आगे कहती हैं, ‘‘शारीरिक हिंसा तो बाहर से दिखती है, लेकिन मानसिक यातनाओं को समझना मुश्किल होता है, क्योंकि महिलाएं उसे बताना नहीं चाहतीं. ऐसी कई महिलाएं मेरे पास आती हैं जो ट्रामा में होती हैं कि बच्चा लड़का है या लड़की. ऐसे केसेज को बहुत सावधानी से हैंडल करना पड़ता है.

‘‘शारीरिक यातनाओं की शिकार महिलाएं अधिकतर सरकारी अस्पतालों में दिखाई पड़ती हैं, क्योंकि वहां गरीब महिलाएं अधिक जाती हैं और उन के घरों में घरेलू हिंसा अधिक होती है.

‘‘थोड़े पढ़ेलिखे परिवारों में मेल चाइल्ड पर लोग अधिक फोकस्ड होते हैं, क्योंकि उन्हें 1 या 2 बच्चे ही चाहिए, उन्हें लड़का अवश्य चाहिए. उन्हें लिंग की जांच कराने के लिए मजबूर किया जाता है, जो वे नहीं कराना चाहतीं. ऐसे में अधिकतर महिलाएं मानसिक रूप से प्रताडि़त होती हैं.’’

हिंसा की शुरुआत

घरेलू हिंसा की शुरुआत पुरुष का पहले अपनी पत्नी को चांटा मारने से होती है. इस के बाद आती है शारीरिक और सैक्सुअल वायलैंस. कई बार घरेलू हिंसा इतनी अधिक होती है कि महिला की जान पर भी बन आती है. इस में अगर महिला कामकाजी है, तो कुछ विरोध करती है, लेकिन ऐसा करने पर परिवार के अन्य लोग और समाज उसे ही दोषी मानता है.

इस बारे में मुंबई के सूर्या हौस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डा. मेहुल दोषी कहते हैं, ‘‘घरेलू हिंसा की वजह से प्रैगनैंट वूमन हमेशा डरी रहती है. इस में चाहे शादी लव मैरिज हो या अरेंज्ड किसी में भी यह समस्या हो सकती है. ऐसी प्रताडि़त महिला का ब्लडप्रैशर सही नहीं होता. वह ऐनीमिक हो जाती है, उसे मधुमेह की बीमारी भी हो सकती है. इस से बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास सही नहीं हो पाता और उस का वजन कम होता है. बच्चा कुपोषण का शिकार होता है. मृत्यु दर भी इन बच्चों की अधिक है.’’

यह हिंसा उन परिवारों में भी अधिक है. जहां पतिपत्नी अकेले रहते हैं. संयुक्त परिवारों में इन की संख्या कम है. इस की वजह के बारे में मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. राजीव आनंद बताते हैं, ‘‘प्रैगनैंसी के बाद महिला को कई सारे शारीरिक और मानसिक दौर से गुजरना पड़ता है. अकेले होने पर इस बदलाव को अपने ऊपर देख कर उन्हें अजीब अनुभव होता है, इस में पति का साथ न मिलने पर वे चिड़चिड़ी हो जाती हैं और पति इसे समझ नहीं पाता, परिणामस्वरूप, कहासुनी, बहस, मारपीट आदि शुरू हो जाती है जबकि संयुक्त परिवारों में सब का साथ मिलने से यह थोड़ा आसान हो जाता है. महिला अपनी समस्या को किसी के साथ शेयर कर सकती है.

बच्चे को जन्म देने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे के प्रति निष्ठावान होने की आवश्यकता होती है. कुछ दंपतियों में तो शादी के दूसरे साल से ही अनबन शुरू हो जाती है. ऐसे में पत्नी सोचने पर मजबूर हो जाती है कि वह बच्चे को जन्म दे या नहीं.

औडियोलौजिस्ट ऐंड स्पीच थेरैपिस्ट देवांगी दलाल का कहना है, ‘‘बचपन से अगर बच्चा कुपोषण का शिकार है, तो उस की बौडी मूवमैंट भी देर से होती है. अधिकतर ऐसे बच्चे 1 साल के बाद बोलने लगते हैं. इस की वजह उन का गर्भ में सही तरह विकास न होना है.

‘‘घरेलू हिंसा की शिकार अधिकतर महिलाओं के पति अशिक्षित और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, जिन्हें बच्चा इसलिए नहीं चाहिए क्योंकि उन के लिए बच्चा बोझ है और वे अपनी पत्नी को गर्भपात के

लिए मजबूर करते हैं. उन के न मानने पर मारपीट करते हैं. इसे कम करने के लिए महिलाओं का शिक्षित और आत्मनिर्भर होना आवश्यक है.’’

बच्चे की जिम्मेदारी पतिपत्नी दोनों की होती है, लेकिन अगर पति या पारिवारिक माहौल ठीक नहीं है तो निराश न हों, क्योंकि बच्चे की जिम्मेदारी मां की भी है और कुछ सावधानियां बरतने से इस से छुटकारा पाया जा सकता है. डाक्टर रेखा के अनुसार डोमैस्टिक वायलैंस से बचने के उपाय निम्न हैं:

  • सब से पहले पति का व्यवहार ठीक न होने पर परिवार के दूसरे सदस्यों का सहारा लें.
  • अधिक समस्या है, तो मनोरोग चिकित्सक के पास जाएं.
  • नशे या ड्रग के आदी पति से दूर रहें.
  • घरेलू हिंसा को सहें नहीं, बल्कि पुलिस में रिपोर्ट करें.
  • किसी एनजीओ की भी हैल्प ले सकती हैं.

विदेश में बदले प्यार के मायने : पिंकी के साथ सफदर ने क्या किया

25 वर्षीय पिंकी चंदा हैदराबाद में पुरानी सिटी के मलकजगिरी इलाके में अपने परिवार के साथ रहती थी. वह शेखर चंदा की एकलौती संतान थी. शेखर चंदा का अपना छोटा सा घरसंसार था. वह अच्छाभला कमाते थे, इसलिए उन के पास हर तरह की भौतिक सुखसुविधा थी. इन सब से अलग उन में जो खासियत थी, वह यह थी कि वे स्वच्छंद विचारों वाले जीवंत इंसान थे. इसी परिपाटी पर उन का परिवार भी चलता था.

शेखर चंदा का सपना था कि वह अपनी एकलौती बेटी को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दें कि वह कोई बड़ी अफसर बन जाए. पिंकी का भी यही सपना था कि वह कुछ ऐसा करे, जिस से मांबाप का नाम इज्जत से लिया जाए.

पिंकी बातचीत करने और पढ़नेलिखने में अव्वल थी. वह मन लगा कर पढ़ती रही. ग्रैजुएशन करने के बाद पिंकी चंदा को हैदराबाद के सोमाजुगुडा क्षेत्र की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई. वह उस कंपनी के कंप्यूटर सैक्शन में थी. यह सन 2013-14 की बात है.

जिस बहुराष्ट्रीय कंपनी में पिंकी जौब करती थी, उसी कंपनी के कंप्यूटर सैक्शन में दारुलशफा का रहने वाला सफदर अब्बास खलीम अख्तर जैदी नाम का युवक भी नौकरी करता था. वह सौफ्टवेयर इंजीनियर था. सफदर जैदी बेहद ईमानदार, मेहनती और लगनशील युवक था. वाकपटुता उस की रगरग में भरी हुई थी. अपनी कलात्मक बातों से वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर था.

पिंकी चंदा सफदर जैदी के बगल वाली सीट पर बैठती थी. उस की बातों की वह भी मुरीद थी. सफदर जब भी फुरसत में होता या उसे मौका मिलता तो वह अपनी बातों से सभी को गुदगुदाता रहता था.

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हंसीठिठोली के बीच पिंकी चंदा और सफदर जैदी जल्द ही आपस में घुलमिल गए और अच्छे दोस्त बन गए. खास बात यह थी कि दोनों ही खुले विचारों के थे और उन के विचार आपस में काफी मिलतेजुलते थे.

एक दिन बातोंबातों में पिंकी सफदर से पूछ बैठी, ‘‘सफदर, मैं तुम से एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानोगे?’’

‘‘नहीं, बिलकुल भी बुरा नहीं मानूंगा. पूछो.’’ सफदर ने जवाब दिया.

‘‘हर वक्त हंसीठिठोली करते तुम्हारा मुंह नहीं थकता?’’ पिंकी ने कहा.

‘‘जी नहीं मैडम, मेरा बस चले तो मैं 24 घंटे टेपरिकौर्डर बना रहूं. लेकिन कोई ऐसा होने दे तब न.’’ सफदर जैदी ने कहा, ‘‘एक बात और बताऊं मैडम, जब मैं घर पर इस तरह की बातें करता हूं तो सभी लोग एंजौय करते हैं. मेरी बातों से उन का एंटरटेनमेंट होता है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ, ये मैडममैडम क्या लगा रखा है.’’ पिंकी चंदा तुनक कर बोली, ‘‘तुम मेरा नाम ले कर नहीं बुला सकते क्या?’’

‘‘जो हुकूम मल्लिका-ए-आला.’’

‘‘क्या? क्या कहा तुम ने?’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘मेरे कहने का मतलब है कि आज से मैं तुम्हें पिंकी कह कर बुलाऊंगा, पिंकी…पिंकी… पिंकी.’’ सफदर ने अपने स्टाइल में कहा.

शाम को छुट्टी के बाद औफिस से निकलते वक्त सफदर ने पिंकी को अपनी कार में बैठने का औफर दिया तो वह इनकार नहीं कर पाई. दोनों एक ही राह के मुसाफिर थे. पिंकी का घर रास्ते में पहले पड़ता था.

उस दिन के बाद से सफदर औफिस से निकल कर पिंकी को उस के घर छोड़ कर जाने लगा. धीरेधीरे सफदर का पिंकी के घर भी आनाजाना शुरू हो गया. अपनी वाकपटुता से उस ने पिंकी के मांबाप के दिलों में जगह बना ली. पिंकी के मांबाप सफदर के व्यवहार से काफी खुश थे.

चूंकि शेखर चंदा भी खुले विचारों के इंसान थे, इसलिए सफदर की कंपनी उन्हें अच्छी लगती थी. जब भी सफदर पिंकी को औफिस से घर छोड़ने आता, शेखर चंदा उसे घर में बुला लेते थे और चाय पिलाने के बाद ही घर से जाने देते थे. रोजमर्रा के साथ से पिंकी चंदा और सफदर जैदी की दोस्ती प्यार में बदल गई.

पिंकी और सफदर दोनों बालिग थे. दोनों समाज के रीतिरिवाजों और ऊंचनीच के भेदभाव को बखूबी जानते और समझते थे. उन के बीच में सिर्फ समुदाय का फर्क था. दोनों अलगअलग समुदाय से थे. प्यार में उन के बीच यह भेद भी मिट गया था कि वे 2 भिन्नभिन्न समुदायों के हैं. धीरेधीरे पिंकी और सफदर के घर वालों को उन के प्रेमप्रसंग की बातें पता चल गई थीं.

पिंकी के पिता शेखर चंदा और मां श्रेया चंदा को बेटी के प्रेमप्रसंग की बात पता चली तो वे हैरान रह गए. वे भले ही लाख खुले विचारों के थे, भले ही सफदर को सम्मान देते थे लेकिन यह बात पसंद नहीं थी कि उन की बेटी किसी दूसरे धर्म के लड़के से प्यार करे.

उन्होंने पिंकी को समझाया कि सफदर का साथ छोड़ दे. इस बात पर पिंकी मांबाप से लड़ बैठी. उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह सफदर से प्रेम करती है और उसी से शादी करेगी. यही हाल सफदर का था.

उस के अब्बू खलीम अख्तर जैदी और चाचा हैदर जैदी को उस के प्रेम के बारे में पता चला तो वे आगबबूला हो गए. उन्होंने उस से कहा कि वह पिंकी से मिलना बंद कर दे. लेकिन सफदर बगावत पर उतर आया. उस ने कह दिया कि वह किसी कीमत पर पिंकी को नहीं छोड़ेगा, बल्कि निकाह भी उसी से करेगा.

इस के बाद सफदर ने पिंकी के घर जाना बंद कर दिया. वह उसे घर से कुछ देर पहले ही छोड़ कर अपने घर चला जाता था. जिस दिन से मांबाप ने पिंकी को हिदायत दी थी, तब से वह अपने प्यार को ले कर परेशान रहती थी. इसी चिंता में एक दिन उस ने सफदर से पूछा, ‘‘सफदर, प्यार तो हम दोनों एकदूसरे से करते ही हैं. तुम यह बताओ कि मुझे धोखा तो नहीं दोगे?’’

‘‘ये कैसी बेतुकी बात कर रही हो पिंकी, मैं वादा करता हूं कि जीवन भर मैं तुम्हारा साथ निभाऊंगा.’’ सफदर बोला, ‘‘एक बात और है.’’

‘‘वो क्या?’’ पिंकी चौंकी.

‘‘हम दोनों के धर्म अलगअलग हैं. मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है कि क्या तुम्हारे घर वाले इस के लिए तैयार होंगे?’’ सफदर ने गंभीर हो कर कहा.

‘‘देखो सफदर, मेरे घर वाले राजी हों न हों, मैं ने जो फैसला ले लिया उस से मैं हरगिज पीछे नहीं हटूंगी.’’ पिंकी दृढ़ता से बोली.

‘‘पिंकी, जब तुम मेरे लिए अपने घर वालों से बगावत करने को तैयार हो तो मैं भी तुम्हारी खातिर कुछ भी करने को तैयार हूं.’’

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प्रेमी के ये शब्द सुनते ही पिंकी उस के सीने से लग गई. उस का स्पर्श पाते ही सफदर के तनबदन में आग लग गई. कुछ ही देर में दोनों एकदूसरे में खो गए. उन के बीच एक तूफान आ कर गुजर गया.

उस दिन के बाद से उन दोनों के बीच जो भी दूरियां रहीं, वो सब मिट गईं. अब तो जब भी उन्हें मौका मिलता, दोनों दो जिस्म एक जान हो जाते. धीरेधीरे पिंकी और सफदर के मांबाप जान चुके थे कि दोनों एक दूसरे को बहुत मोहब्बत करते हैं. फिर एक दिन पिंकी ने अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में बता दिया.

पिंकी के मांबाप नहीं चाहते थे कि वह उस की शादी दूसरे धर्म के लड़के के साथ करें. लेकिन पिंकी उन की बहुत लाडली थी, इसलिए बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा.

यही हाल सफदर के घर वालों का भी था. सफदर के अब्बू खलीम जैदी और चाचा हैदर जैदी इस शादी के खिलाफ थे लेकिन बेटे के फैसले के आगे आखिर उन्हें भी विवश होना पड़ा.

बच्चों की खुशी की खातिर दोनों परिवारों के सदस्यों ने सोच कर अपने खयालातों से समझौता कर लिया. उन की खुशी में ही उन्होंने अपनी खुशी समझी. मांबाप की तरफ से हरी झंडी मिलते ही उन की मुराद पूरी हो गई. इसी बीच सफदर की जिंदगी से एक और खुशी आ कर जुड़ गई.

सफदर को दुबई की एक कंपनी में नौकरी मिल गई. नौकरी मिलने के बाद वह दुबई जाने की तैयारी करने लगा तो पिंकी उस के साथ जाने की जिद पर अड़ गई. इस पर न तो पिंकी के मांबाप ने ऐतराज किया और न ही सफदर के मांबाप ने.

पिंकी की जिद पर सफदर उसे दुबई ले जाने के लिए तैयार हो गया. उस का पासपोर्ट भी बनवा दिया. सब कुछ होने के बाद सफदर और उस के परिवार वालों ने पिंकी के सामने एक शर्त रख दी कि वह दुबई तभी जा सकती है, जब वह इसलाम कबूल करेगी. यह सुन कर पिंकी और उस के मांबाप अवाक रह गए. उन के लिए यह अप्रत्याशित शर्त रख दी.

लेकिन सफदर के प्यार में पागल पिंकी धर्म परिवर्तन के लिए भी तैयार हो गई. पिंकी के इस फैसले से उस के मांबाप को काफी दुख हुआ, लेकिन वे कर भी क्या सकते थे. औलाद के सामने वे हारे हुए थे, इसलिए उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

हैदराबाद हज हाउस में पिंकी का धर्म परिवर्तन करा दिया गया. हिंदू धर्म छोड़ कर पिंकी ने इसलाम कबूल कर लिया. उस का नाम पिंकी चंदा से फातिमा जेहरा रखा गया. उस ने मुसलिम रवायतों को अपनाया, इबादत की. सफदर के कहे मुतातिब हिजाब पहनना भी शुरू कर दिया. यह सन 2013-14 की बात है.

सफदर पिंकी को ले कर दुबई चला गया. जिस कंपनी में सफदर की नौकरी लगी थी, उस ने वहीं पर फातिमा जेहरा उर्फ पिंकी की नौकरी भी लगवा दी. कंपनी की ओर से दोनों के रहने का इंतजाम अलगअलग हौस्टलों में किया गया था. वे एकदूसरे से मिलते रहे. धीरेधीरे पिंकी और सफदर को दुबई में रहते 4 साल बीत गए.

इस बीच पिंकी सफदर से पूछती रही कि वह निकाह कब करेगा, इस पर सफदर कोई तवज्जो नहीं देता था, बल्कि यह कह कर बात टालने की कोशिश करता था कि अभी जल्दी क्या है, शादी भी कर लेंगे, थोड़ा और सब्र करो.

एक ही जवाब सुनतेसुनते पिंकी के कान पक गए थे. पिंकी जो पहले सफदर पर पागलों की तरह मरती थी, अब वह अपने लिए गए फैसले पर सोच कर तनाव में रहने लगी.

सफदर के हावभाव में भी काफी बदलाव आ गया था. न तो वह पहले की तरह पिंकी से बात करता था और न ही उसे लिफ्ट देता था. सफदर के ये हावभाव पिंकी को अच्छे नहीं लग रहे थे. पता नहीं क्यों सफदर को ले कर उस के मन में नकारात्मक भावनाएं हावी होती जा रही थीं.

अब पिंकी को महसूस होने लगा था कि उस ने मांबाप से बगावत कर के अच्छा नहीं किया. उस ने सोचा कि यदि सफदर ने उसे सचमुच में धोखा दे दिया तो उस की तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी. कहीं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी. इसी तरह की चिंता में उस का बुरा हाल हो रहा था.

जिस बात का पिंकी को डर था, वह बात उसे सच होती दिख रही थी. प्यार के चक्कर में उस ने अपना सब कुछ गंवा दिया था. जब वह शादी के लिए सफदर पर दबाव डालती तो वह परेशान हो जाता था.

सफदर की सोच सचमुच बदल चुकी थी, उस का मुख्य उद्देश्य उस के जिस्म से खेलना था. अब वह यह सोच रहा था कि उस से किस तरह पीछा छुड़ाए.

वह उस से पीछा छुड़ाने के उपाय खोजने लगा. इस के बाद तो वह छोटीछोटी बातों पर पिंकी से कलह करने लगा. पिंकी की छोटी सी बात भी उसे कांटे की तरह चुभने लगी थी. रोजरोज की कलह से तंग आ कर एक दिन पिंकी उस से पूछ बैठी, ‘‘पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं कि तुम बदलेबदले से नजर आ रहे हो. बात क्या है सफदर?’’

‘‘मैं नहीं बदल रहा बल्कि तुम्हारे तेवर ही बदल गए हैं.’’ सफदर ने झल्ला कर जवाब दिया.

‘‘तुम ने मुझ में ऐसा क्या देख लिया कि तुम्हें मेरे तेवर बदले नजर आने लगे?’’ वह बोली.

‘‘छोड़ो यार, क्या बताऊं?’’ सफदर ने कहा.

‘‘नहीं, तुम बता दो कि मुझ में ऐसा क्या देख लिया कि तुम्हें मेरे तेवर बदले नजर आ रहे हैं?’’

॒‘‘सच बताऊं, तुम्हारा यही एटीट्यूड मुझे अच्छा नहीं लगता. तुम किसी भी बात को पकड़ कर जिद पर अड़ जाती हो.’’ सफदर ने बताया.

‘‘अब तो तुम्हें मेरी बात बुरी लगेगी ही. सच्ची बात जो कह दी मैं ने. शादी के लिए 4 सालों से आजकलआजकल कर के टरका रहे हो. इसी से तुम्हारी नीयत का पता चलता है.’’ वह गुस्से में बोली.

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‘‘हां, टरका रहा था मैं.’’ सफदर ने भी गुस्से में जवाब दिया, ‘‘जाओ, जो करना है, कर लो. अब मैं तुम से निकाह नहीं करूंगा.’’

‘‘क्यों? जरा मैं भी तो जानूं कि तुम मुझ से निकाह क्यों नहीं करोगे?’’

‘‘इसलिए कि तुम ने इसलाम धर्म का ईमानदारी से पालन नहीं किया है. न तो तुम 5 वक्त की नमाजी बन पाई और न हिजरा का पालन किया, इसलिए मैं तुम से निकाह नहीं कर सकता, समझी.’’ सफदर ने बताया.

‘‘धोखेबाज, मक्कार.’’ पिंकी सफदर पर फट पड़ी, ‘‘मेरी जिंदगी तो खराब हो ही गई, पर मैं तुम्हें भी चैन से नहीं जीने दूंगी. मैं इतनी आसानी से तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम पर यकीन कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की. तुम्हारे ही कारण मैं अपने मांबाप से बगावत कर बैठी और तुम कहते हो कि मैं ने तुम्हारे धर्म का पालन नहीं किया. अरे 5 वक्त नमाज पढ़ती थी मैं. बुरका पहन कर बाहर निकलती थी मैं. तुम्हारे लिए मैं वह सब करती थी जो तुम ने कहा. इतने पर भी तुम कहते हो कि शादी नहीं करूंगा. तुम्हें मैं तुम्हारी औकात बता कर रहूंगी. इस की सजा जरूर दिलाऊंगी, तभी मुझे सुकून मिलेगा.’’

पिंकी को कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने अपने वतन लौट जाने का फैसला कर लिया. वह जान चुकी थी कि दुबई में रही तो उस की जान को खतरा हो सकता है. सफदर राज छिपाने के लिए उसे जान से भी मार सकता है. यह सोचते ही पिंकी चुपके से जनवरी, 2018 के दूसरे सप्ताह में अपने घर हैदराबाद लौट आई और मांबाप से अपनी आपबीती कह डाली.

रोती हुई पिंकी मां से बोली, ‘‘मां, मुझ से बहुत बड़ी भूल हुई, जो मैं ने आप सब की बातें नहीं मानीं. सफदर ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है. शादी के नाम पर उस ने मेरा धर्म परिवर्तन कराया और मेरे जिस्म से खेलता रहा. अब कहता है कि मैं तुम से शादी नहीं करूंगा, क्योंकि तुम ने मेरे हिसाब से मेरा धर्म कबूल नहीं किया. मां, मुझे माफ कर दो. काश, मैं ने तुम्हारी बात मान ली होती तो आज ये दिन देखने को नहीं मिलते.’’ कह कर पिंकी मां के सीने से लिपट कर रोने लगी तो श्रेया चंदा का मन पिघल गया.

बेटी की यह पहली गलती थी, सो मां ने एक ही झटके में उस की गलती माफ कर दी. अब सवाल यह था जिस ने बेटी की जिंदगी बरबाद की है, उसे सजा कैसे दिलाई जाए.

31 जनवरी, 2018 को श्रेया चंदा पिंकी को ले कर मलकजगिरी थाना पहुंची. थाने के इंसपेक्टर जानकी रेड्डी से मिल कर उन्होंने सारी बात बताई. साथ ही बेटी के साथ हुए धोखे के संबंध में एनआरआई सफदर अब्बास जैदी के खिलाफ लिखित तहरीर भी दी. तहरीर के साथ वे सभी दस्तावेज भी संलग्न किए जो पिंकी के पास मौजूद थे.

मामला हाईप्रोफाइल और एनआरआई से जुड़ा देख कर थानाप्रभारी चौंक गए. उन्होंने तत्कालीन एसीपी जी. संदीप को फोन कर के इस बारे में अवगत कराया. मामला लव जिहाद से जुड़ा हुआ था. प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए एसीपी जी. संदीप ने जांचपड़ताल कर के एनआरआई सफदर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया.

जांचपड़ताल में मामला सही पाया गया. इंसपेक्टर जानकी रेड्डी ने आरोपी एनआरआई सफदर अब्बास जैदी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 376, 417 और 420 के तहत केस दर्ज कर लिया है.

कथा लिखे जाने तक आरोपी सफदर अब्बास जैदी गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. उसे गिरफ्तार करने के लिए भारत सरकार की ओर से दुबई सरकार को पत्र भेजे.

– कथा में पीडि़ता का नाम परिवर्तित है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

द्वापर का इंटरनैट और धृतराष्ट्र की आंखों का औपरेशन

त्रिपुरा के नएनवेले मुख्यमंत्री विप्लब कुमार देव ने अपने मुंह से उगल दिया कि इंटरनैट द्वापर में भी था जिस के जरिए संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत का आंखों देखा हाल सुनाया था. लगेहाथ उन्होंने युवाओं को नौकरी के बजाय पान की दुकान और डेयरी खोलने की सलाह भी दे डाली.

बहरहाल, पौराणिकवादियों के गिरोह की एक शाखा विज्ञान को धर्म साबित करने पर तुली है, विप्लब उस के नए रंगरूट हैं जिन पर गांवदेहातों की यह कहावत सटीक बैठती है कि कल के जोगी और जांघ तक जटा.

इस गैंग की निगाह में सबकुछ सनातन धर्म में है पर कलियुग के प्रभाव के चलते मोह और वासनाग्रस्त पापी उसे मानते नहीं, उलटे यह पूछ कर लाजवाब कर देते हैं कि सबकुछ था, लेकिन एक भी डाक्टर ऐसा नहीं था जो धृतराष्ट्र की आंखों का औपरेशन कर उस की नजर लौटा देता. अब इस बात का जवाब भी शायद वे किसी धार्मिक ग्रंथ में तलाश रहे हों.

नकदी की कमी से आफत में आई जनता की जान

नकदी की एक बार फिर कमी ने जनता की जान आफत में डाल दी है. एटीएमों के बाहर लाइनें लगने लगी हैं और व्यापार ढीला पड़ गया है क्योंकि नकदी की कमी में लेनदेन कम होने लगा है. जब लोगों को काम करने के बजाय लाइन में अपना ही पैसा निकालने के लिए खड़ा होने की मुसीबत झेलनी पड़े तो सरकार को कोसने के अलावा बचता ही क्या है. ‘नो कैश’ के बोर्डों का मतलब है ‘नो सरकार’.

नकदी की कमी का कारण वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक की गलती है. वित्त मंत्री लगातार कोशिश कर रहे हैं कि देश में सारा व्यापार, लेनदेन, जमा कैशलैस हो, चाहे इस से आम आदमी को जो मरजी कठिनाई हो. उन को लगता है कि अगर कैशलैस अर्थव्यवस्था होगी तो काला धन न होगा, बेईमानी न होगी.

वे यह याद ही नहीं रखना चाहते कि बैंकों के मारफत ही नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या जैसे बीसियों धन्ना सेठों ने पैसे निकाले ही नहीं, विदेश भी ले गए. कम नकदी असल में आम व्यापारी, किसान, मजदूर, छोटे कर्मचारी को परेशान करती है जिसे हर खर्च के लिए बैंक का मुंह ताकना पड़ता है.

जेब में नकदी हो तो सामान खरीदा और मामला खत्म. चैक, क्रैडिट कार्ड से खरीद का मतलब है कि महीने के आखिर तक इंतजार करो कि लेनदेन का ब्योरा आए और फिर एकएक खर्च को जांचो. कोई गड़बड़ी हो तो सिर धुनो, क्योंकि बैंक तो आप की सुनने वाला नहीं है. बैंक क्रैडिट कार्ड देते समय आप को लुभावने सपने दिखाएगा पर बाद में वह आप को दिन में तारे गिनवा देगा. कोई बैंक न अपने किसी अधिकारी का नाम बताने को तैयार होता है न नंबर.

कैश की कमी बताती है कि सरकार अब संभल ही नहीं रही है और देश धीरेधीरे अराजकता की ओर बढ़ रहा?है. यहां कैसे भी बलात्कार, मारपीट, जातीय झगड़ों का माहौल बन गया है. अच्छे दिन तो भूलिए, आम दिन भी दिख नहीं रहे.

आप का कैश आप का हक है. इसे किसी को जबरन रखने का हक नहीं है. सरकार हर बार आप को बैंकों के सामने कतार लगाने को मजबूर नहीं कर सकती. एक निकम्मी जनता ही इस तरह का अन्याय सह सकती है. जिस कौम को अपने ही लूट ले जाते हैं वह कभी भी देश को नहीं बना सकती, देश को नहीं बचा सकती. अगर जनता इस जबरन लूट पर चुप है तो इस का मतलब है कि वह बेजबान जानवरों की भीड़ ही है.

ओपन किचन को कुछ इस तरह बनाएं ब्यूटीफुल

पहले के जमाने में घर बड़े होते थे, जिस में बहुत से लोग रहा करते थे, एक बड़े कमरे को किचन के रूप में ढाला जाता था. लेकिन वक्त के साथ किचन और परिवार छोटे होते गए. ऐसे में ओपन किचन एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभरा है.

भारतीय घरों के लिए ओपन किचन एक हौट ट्रैंड है. यह सुंदर दिखने के साथसाथ कंफर्टेबल भी होता है.

ओपन किचन के फायदे

– ओपन किचन का सब से बड़ा फायदा यह है कि अगर कोई महिला किचन में काम कर रही होती है तो वह पूरे घर पर निगरानी भी रख सकती है. बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखने के साथसाथ चाहे तोे टीवी प्रोग्राम देख सकती है. अपने मेहमानों के लिए चायनाश्ता बनाते हुए उन से बातें भी कर सकती है.

– ओपन किचन में काम करते वक्त घुटन महसूस नहीं होती.

– बंद किचन की तुलना में ओपन किचन स्वाभाविक रूप से अधिक चमकदार और प्राकृतिक रोशनी से भरपूर रहते हैं.

– ओपन किचन घर के डिजाइन को अनौपचारिकता आबोहवा देते हैं.

ओपन किचन: समस्याएं व समाधान

– ओपन किचन की एक समस्या यह है कि इस में काम करते वक्त बाहर से आने वाला कोई भी शख्स उस अव्यवस्था को सहजता से देख सकता है जो आप खाना पकाते वक्त हड़बड़ी में फैलाती हैं.

समाधान: किचन को व्यवस्थित दिखाने के लिए बेहतरीन स्टोरेज सिस्टम चुनें.

आप वुडन की जगह ग्लास के कैबिनेट्स बनवा सकती हैं. ये देखने में खूबसूरत लगेंगे और आप को सामान ढूढ़ने में असुविधा भी नहीं होगी.

– भारतीय खानों में पर्याप्त मात्रा में मसाले प्रयुक्त होते हैं. छौंक लगाने की भी जरूरत पड़ती है, जिस से खुशबू दूर तक फैल जाती है.

समाधान: इलैक्ट्रिक चिमनियों का प्रयोग कर के उचित वैंटिलेशन सैटअप स्थापित करें.

– मिक्सर, प्रैशर कुकर या डिश वाशर जैसे सभी कुकिंग उत्पादों की आवाज पास के कमरों तक सुनाई पड़ती है.

समाधान: कोशिश करें कि किचन से जुड़े सारे उत्पाद अच्छी क्वालिटी और नई तकनीक वाले हों ताकि आवाज कम पैदा हो. साथ ही इन के प्रयोग का समय भी निश्चित कर लें.

कुछ सरल टिप्स आजमा कर आप किचन के काम को सुविधाजनक बना सकती हैं:

– अपने किचन के लिए स्लाइड करने वाले बार्न डोर्स लगवाइए और ऐसा कर के आप का आधुनिक किचन आप की इच्छानुसार ओपन या क्लोज्ड बन सकता है.

– किचन और लिविंग रूम को अलग करने वाला कांच का पार्टिशन भी किचन को हमेशा प्राकृतिक रोशनी से जगमगाया हुआ रखेगा.

– आप किचन के एक छोटे हिस्से को बंद भी करा सकती हैं. इस हिस्से में आप वे काम कर सकती हैं जिन से ज्यादा शोर होता है.

– किचन और लिविंग रूम के बीच पौधों का प्रयोग कर के विभाजन रेखा खींची जा सकती है.

– अगर आप एक ओपन आधुनिक किचन चाहती हैं, लेकिन यह नहीं चाहतीं कि मेहमान पूरे समय ताकझांक करते रहें, तो मेहमानों के लिए बैठक की व्यवस्था ऐसे करें ताकि उन की पीठ किचन की ओर हो.

– गरिमा पंकज की इंटीरियर डिजाइनर शिंजिनी चावला, अर्बन क्लैप डौट कौम से की गई बातचीत पर आधारित

स्पाइसी ट्रीट : मटर मशरूम

मटर मशरूम

सामग्री

– 8-10 मशरूम

– 1/2 कप मटर

– 2 बड़े चम्मच औयल

– 2 प्याज मध्यम आकार के पिसे हुए

– 2 छोटे चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– 1-2 छोटे चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच हलदी

– 1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

– 1 छोटा चम्मच गरममसाला

– सजाने के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– नमक स्वादानुसार.

विधि

पानी में थोड़ा सा नमक डाल कर मशरूम को उबाल लें. फिर एक पैन में औयल गरम कर के उस में प्याजटमाटर  व अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर तब तक भूनें जब कि वह घी न छोड़ दे. फिर सारे सूखे मसाले डाल कर मिलाएं. अब मशरूम व मटर के साथ जरूरतानुसार पानी डाल कर तब तक पकाएं जब तक मटर नर्म न पड़ जाएं. धनियापत्ती से सजा कर गरमगरम सर्व करें.

स्पाइसी ट्रीट : आमलेट करी

आमलेट करी

सामग्री आमलेट बनाने की

– 4 अंडे – प्यार बारीक कटा हुआ

– 2 हरीमिर्चें

– 1-2 छोटे चम्मच औयल

– नमक स्वादानुसार

सामग्री करी बनाने की

– 2 बड़े चम्मच औयल

– 1/4 कप प्याज कटा हुआ

– 1/4 कप प्याज का पेस्ट

– 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– 1 बड़ा चम्मच कश्मीरी लालमिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच गरममसाला

– 1 छोटा चम्मच हलदी

– 2 टमाटर बारीक कटे

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– नमक स्वादानुसार.

विधि

आमलेट बनाने की सारी सामग्री को एक बरतन में डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. अब एक पैन में तेल गरम कर के तैयार पेस्ट से 2 आमलेट बनाएं.

फिर एक कड़ाही में औयल गरम कर के उस में प्याज डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. फिर उस में प्याज व अरदकलहसुन का पेस्ट डालें. अच्छी तरह भुनने के बाद इस में टमाटर के साथ सभी सूखे मसाले डाल कर थोड़ा पानी डाल तब तक पकाएं जब तक वह तेल न छोड़ दे. फिर पानी डाल कर 5-10 मिनट तक पकाएं. अब तैयार आमलेट के टुकड़े कर के ग्रेवी में डाल कर धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

सपनों से सस्ता सिंदूर : भाग 2

कल्पना पर जब पति के समझाने का कोई असर नहीं हुआ तो वह उसे छोड़ कर वहीं पर जा कर रहने लगा, जहां वह नौकरी करता था. इस के बावजूद वह अपनी पूरी पगार ला कर कल्पना को दे जाता था.
हालांकि कल्पना के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. बसवराज बसु के जाने के बाद वह और भी आजाद हो गई थी. वह अपने चारों दोस्तों के साथ बारीबारी से घूमतीफिरती और मौजमजा करती. इस के अलावा वह उन से अच्छीखासी रकम भी ऐंठती थी. वह पूरे समय अपने रूपयौवन को सजानेसंवारने में लगी रहती थी. यहां तक कि अब वह घर पर खाना तक नहीं बनाती थी. खाना पकाने के लिए उस ने अपने प्रेमी अब्दुल शेख की पत्नी सिमरन शेख को सेवा में रख लिया था.

2 अप्रैल, 2018 को बसवराज बसु की जिंदगी का आखिरी दिन था. एक दिन पहले उसे जो पगार मिली थी, उसे पत्नी को देने के लिए वह 2 अप्रैल को दोपहर में फ्लैट पर पत्नी के पास पहुंचा. घर का जो माहौल था, उसे देख कर उस का खून खौल उठा. कल्पना ने बेशरमी की हद कर दी थी. वहां पर सुरेश सोलंकी, आदित्य और अब्दुल शेख जिस अवस्था में थे, उसे देख कर साफ लग रहा था कि कल्पना उन के साथ क्या कर रही थी. यह देख कर बसवराज का खून खौल गया.

वह पत्नी को खरीखोटी सुनाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हें खर्चे के लिए पैसे देने के लिए आता हूं. लेकिन तुम्हारा यह घिनौना रूप देख कर तुम्हें पैसा देने और यहां आने का मन नहीं होता. लेकिन बच्चों के लिए यह सब करना पड़ता है.’’

बसवराज की मौत आई रस्सी में लिपट कर

पति की बात सुन कर कल्पना डरी नहीं बल्कि वह भी उस पर हावी होते हुए बोली, ‘‘तो मत आओ. मैं ने तुम्हें कब बुलाया और पैसे मांगे. तुम क्या समझते हो, मेरे पास पैसे नहीं हैं? तुम कान खोल कर सुन लो, मैं जिस ऐशोआराम से रह रही हूं, वह तुम्हारे पैसों से नहीं मिल सकता. तुम्हारी पूरी पगार से तो मेरा शैंपू ही आएगा. रहा सवाल बच्चों का तो उन की चिंता तुम छोड़ दो.’’

कल्पना की यह बात सुन कर बसवराज बसु को जबरदस्त धक्का लगा. इस के बाद पतिपत्नी के बीच झगड़ा बढ़ गया. तभी गुस्से में आगबबूला कल्पना ने अपने तीनों प्रेमियों को इशारा कर दिया. कल्पना का इशारा पाते ही उस के तीनों प्रेमियों ने मिल कर बसवराज बसु को पीटपीट कर बेदम कर दिया.
शारीरिक रूप से कमजोर बसवराज बसु बेहोश हो कर जमीन पर गिर गया. उसी समय अब्दुल शेख की बीवी सिमरन भी वहां आ गई. तभी कल्पना के घर के अंदर बंधी नायलौन की रस्सी खोल कर बसवराज के गले में डाल कर पूरी ताकत से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई. यह देख कर सिमरन सहम गई.

टुकड़ों में बंट गया पति

अब्दुल शेख और कल्पना ने सिमरन को धमकी दी कि अपना मुंह बंद रखे. अगर मुंह खोला तो उस का भी यही हाल होगा. डर की वजह से सिमरन चुप रही. कल्पना और उस के प्रेमियों का गुस्सा शांत हुआ तो वे बुरी तरह घबरा गए. हत्या के समय पंकज वहां नहीं था.

थोड़ी देर सोचने के बाद कल्पना और उस के प्रेमियों ने बसवराज बसु की लाश ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. कल्पना ने शव ठिकाने लगवाने के मकसद से पंकज को फोन कर के बुला लिया. लेकिन पंकज को जब हत्या का पता चला तो वह घबरा गया. पहले तो पंकज ने इस मामले से अपना हाथ खींच लिया, लेकिन अपनी प्रेमिका कल्पना को मुसीबत में घिरी देख कर वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया.
चारों ने मिल कर बसवराज बसु के शव को बाथरूम में ले जा कर उस के 3 टुकड़े किए और उन टुकड़ों को कपड़ों में लपेट कर प्लास्टिक की 3 बोरियों में भर दिया. मौका देख कर उसी रात 12 बजे इन लोगों ने तीनों बोरियों को अब्दुल शेख की कार की डिक्की में रख दिया. इस के बाद ये लोग कुड़चड़े महामार्ग के अनमोड़ घाट गए और उन बोरियों को एकएक किलोमीटर की दूरी पर घाट की घाटियों में दफन कर के लौट आए.

जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे इस हत्याकांड के सभी अभियुक्त बेखबर होते गए. उन का मानना था कि इस हत्याकांड से कभी परदा नहीं उठेगा और उन का राज राज ही रह जाएगा. लेकिन वे यह भूल गए थे कि उन के इस राज की साक्षी अब्दुल शेख की बीवी सिमरन शेख थी, जिस की आंखों के सामने बसवराज बसु की हत्या का सारा खेल खेला गया था. वह इस राज को अपने सीने में छिपाए हुए थी.
पता नहीं क्यों सिमरन को हत्या में शामिल लोगों से डर लगने लगा था. यहां तक कि अपने पति से भी उस का विश्वास नहीं रहा. उसे ऐसा लगने लगा जैसे उस की जान को खतरा है. वे लोग अपना पाप छिपाने के लिए कभी भी उस की हत्या कर सकते हैं. इस डर की वजह से सिमरन शेख बेलगांव की जानीमानी पत्रकार ऊषा नाईक देईकर से मिली और उस ने बसवराज बसु हत्याकांड की सारी सच्चाई बता दी.

आखिर राज खुल ही गया

बसवराज बसु की हत्या की सच्चाई जान कर ऊषा नाईक के होश उड़ गए. उन्होंने सिमरन शेख को साहस और सुरक्षा का भरोसा दे कर मामले की सारी जानकारी बेलगांव कुड़चड़े पुलिस थाने के थानाप्रभारी रवींद्र देसाई और उन के वरिष्ठ अधिकारियों को दी. वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में थानाप्रभारी रवींद्र देसाई ने अपनी जांच तेजी से शुरू कर दी.

उन्होंने 24 घंटे के अंदर बसवराज बसु हत्याकांड में शामिल कल्पना बसु के साथ पंकज पवार, अब्दुल शेख और सुरेश सोलंकी को गिरफ्त में ले कर वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश किया, जहां सीपी अरविंद गवस ने उन से पूछताछ की. पुलिस गिरफ्त में आए चारों आरोपी कोई पेशेवर अपराधी नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

9 मई, 2018 को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस अनमोड़ घाट की उस जगह पर ले कर गई, जहां उन्होंने बसवराज बसु के शव के टुकड़े दफन किए थे. उन की निशानदेही पर पुलिस ने शव के तीनों टुकड़ों को बरामद कर लिया. घटना के समय बसवराज जींस पैंट पहने हुए था. उस की पैंट की जेब में उस का ड्राइविंग लाइसेंस मिला, जिस से यह बात सिद्ध हो गई कि शव बसवराज का ही था. शव को कब्जे में लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मडगांव के बांबोली अस्पताल भेज दिया.

पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कल्पना बसु, पंकज पवार, सुरेश सोलंकी और अब्दुल शेख से विस्तृत पूछताछ कर के उन के विरुद्ध भांदंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. फिर चारों को मडगांव मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इस हत्याकांड का एक आरोपी आदित्य गुंजर फरार था, जिस की पुलिस बड़ी सरगरमी से तलाश कर रही थी.

छीन ली सांसों की डोर : भाग 3

वह उन्हें तब तक निहारता रहता था जब तक रागिनी और सिया उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थीं. जबकि दोनों बहनें उस की बातों को नजरअंदाज कर के बिना कोई प्रतिक्रिया किए स्कूल के लिए निकल जाती थीं.

ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अंजान थीं, वे उन के मकसद को भलीभांति जान गई थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, प्रिंस उतना ही उस की मोहब्बत में पागल हुआ जा रहा था.

17 वर्षीय आदित्य उर्फ प्रिंस उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बजहां गांव का रहने वाला था. उस का पिता कृपाशंकर तिवारी गांव का प्रधान था. प्रधान तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी. उस से टकराने की कोई हिमाकत नहीं करता था. जो उस से टकराने की जुर्रत करता भी था, वह उसे अपनी पौवर का अहसास करा देता था. उस की सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. ऊंची पहुंच ने प्रधान तिवारी को घमंडी बना दिया था.

ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस भी उसी के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की ही तरह प्रिंस भी अभिमानी स्वभाव का था. जिसे चाहे वह उस से उलझ जाता था और मारपीट पर आमादा हो जाता था. वह जब भी चलता था उस के साथ 5-7 लड़कों की टोली चलती थी.

उस की टोली में नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव खासमखास थे. ये तीनों प्रिंस के लिए किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहते  थे. इसीलिए वह इन पर पानी की तरह पैसा बहाता था.

घातक बनी एकतरफा मोहब्बत

प्रिंस रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करता था. उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर उस से बात तक करना उचित नहीं समझती थी.

रागिनी के प्यार में प्रिंस इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो यारदोस्तों से पहले की तरह ज्यादा मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज और दीपू परेशान रहने लगे थे. यार की जिंदगी की सलामती के खातिर तीनों दोस्तों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, वह उस का प्यार यार के कदमों में ला कर डालेंगे.

नीरज, सोनू और दीपू तीनों ने मिल कर एक दिन रागिनी और सिया को स्कूल जाते समय रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक से रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह से डर गईं, ‘‘ये क्या बदतमीजी है? तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका? हटो हमें स्कूल जाने दो.’’ रागिनी हिम्मत जुटा कर बोली.

‘‘हम तुम्हारे रास्ते से भी हट जाएंगे और तुम्हें स्कूल भी जाने देंगे, बस तुम्हें हमारी कुछ बातें माननी होंगी.’’ नीरज बोला.

‘‘न तो मैं तुम्हारी कोई बात मानूंगी और न ही सुनूंगी. बस तुम हमारा रास्ता छोड़ दो. हमें स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ रागिनी नाराजगी भरे लहजे में बोली.

‘‘देखो रागिनी, ये किसी की जिंदगी और मौत की सवाल है. मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ नीरज ने कहा.

‘‘मैं ने कहा न, मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. क्या मुझे ऐसीवैसी लड़की समझ रखा है. जो राह चलते आवारा किस्म के लड़के के मुंह लगे.’’ रागिनी बोली.

‘‘देखो रागिनी, तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह जायज है. मैं जानता हूं कि तुम ऐसीवैसी लड़की नहीं, खानदानी लड़की हो. लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो मेरा भाई जो तुम से प्यार करता है, मर जाएगा. तुम उसे बचा लो.’’ नीरज रागिनी के सामेन गिड़गिड़ाया.

‘‘तुम्हारा भाई मरता है तो मेरी बला से. मैं उसे प्यार नहीं करती. एक बात कान खोल कर सुन लो कि आज के बाद इस तरह की वाहियात बात फिर मेरे सामने मत दोहराना, वरना इन का परिणाम बहुत बुरा होगा, समझे.’’ नीरज को खरीखोटी सुनाती हुई रागिनी और सिया चली गईं.

रागिनी की बातें नीरज के दिल को लग गई थी. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि रागिनी उसे ऐसा जवाब दे सकती है. रागिनी की बातों से उसे काफी गहरा आघात पहुंचा था. चूंकि मामला उस के भाई के प्यार से जुड़ा हुआ था इसलिए उस ने रागिनी के अपमान को अमृत समझ कर पी लिया था. उस समय तो नीरज और उस के दोस्तों ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन नीरज ये बात अपने तक सीमित नहीं रख सका.

उस ने घर जा कर यह बात प्रिंस से बता दी. भाई की बात सुन कर प्रिंस गुस्से से उबल पड़ा कि रागिनी की ऐसी मजाल जो उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया. अगर वो मेरे प्यार को ठुकरा सकती है तो मैं भी उसे जीने नहीं दूंगा. अगर वो मेरी नहीं हो सकती तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.

society

प्रिंस के गुस्से को नीरज और उस के दोस्तों ने और हवा दे दी थी. रागिनी के प्यार में मर मिटने वाला जुनूनी आशिक प्रिंस ठुकराए जाने के बाद एकदम फिल्मी खलनायक बन गया था.

उस दिन के बाद से रागिनी जब भी कहीं आतीजाती दिखती थी, प्रिंस चारों दोस्तों के साथ मिल कर अश्लील शब्दों की फब्तियां कस कर उसे जलील करता, उसे छेड़ता रहता था. और तो और वह दोस्तों को ले कर उस के घर तक धमकाने के लिए पहुंच जाता था.

लिख दिया मौत का परवाना

प्रिंस के इस रवैये से उस के घर वाले परेशान हो गए थे. डर के मारे रागिनी ने घर से बाहर निकलना छोड़ दिया था. उस ने स्कूल जाना भी  बंद कर दिया था. प्रिंस का खौफ रागिनी के दिल में बैठ गया था. जब बात हद से आगे बढ़ गई तो रागिनी ने पिता जितेंद्र दुबे ने बांसडीह रोड थाने में प्रिंस और उस के दोस्तों के खिलाफ लिखित शिकायत की.

लेकिन प्रधान कृपाशंकर की राजनैतिक पहुंच की वजह से मामला वहीं रफादफा हो गया था. इस के बाद प्रिंस और भी उग्र हो गया. वह सोचता था कि जितेंद्र दुबे ने उस के खिलाफ थाने में शिकायत करने की जुर्रत कैसे की.

बात अप्रैल, 2017 की है. प्रिंस अपने तीनों दोस्तों नीरज, सोनू और दीपू यादव को ले कर जितेंद्र दुबे के घर गया और उन्हें धमकाया कि आज के बाद तुम्हारी बेटी रागिनी अगर स्कूल पढ़ने गई तो वो दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा.

इस की धमकी के बाद रागिनी के घर वाले डर गए. उन्होंने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया. वह कई महीनों तक स्कूल नहीं गई.

इस वर्ष उस का इंटरमीडिएट था. स्कूल में परीक्षा फार्म भरे जा रहे थे. परीक्षा फार्म भरने के लिए वह 8 अगस्त, 2017 को छोटी बहन सिया के साथ स्कूल जा रही थी. पता नहीं कैसे प्रिंस को रागिनी के आने की खबर मिल गई और उस ने उस का गला रेत कर हत्या कर दी.

बहरहाल, पुलिस ने रागिनी हत्याकांड के नामजद 5 आरोपियों में से 2 आरोपियों प्रिंस और दीपू यादव को तो गिरफ्तार कर लिया. बाकी के 3 आरोपी प्रधान कृपाशंकर, नीरज तिवारी और सोनू फरार होने में कामयाब हो गए. आरोपियों को गिरफ्तार करने को ले कर मृतका की बड़ी बहन नेहा तिवारी सैकड़ों छात्रछात्राओं के साथ कलेक्ट्रेट परिसर पहुंची और धरने पर बैठ गई.

उन लोगों ने परिवार के सदस्यों को मिल रही धमकी के लिए पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. कांग्रेस के नेता सागर सिंह राहुल ने भी लापरवाही बरतने के लिए पुलिस प्रशासन को कोसा. तब कहीं जा कर बाकी के आरोपियों प्रधान कृपाशंकर तिवारी, सोनू तिवारी और नीरज तिवारी ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया.

कथा लिखे जाने तक पांचों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. होनहार बेटी की मौत से पिता जितेंद्र दुबे काफी दुखी हैं. उन्होंने शासनप्रशासन से गुहार लगाई है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकारें यदि बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकतीं तो उन्हें पैदा होने से पहले ही कोख में मार देने की इजाजत दे दें, ताकि बेटियों को ऐसी जिल्लत और जलालत की मौत रोजरोज न मरना पड़े.        ?

  – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मैं 17 साल का युवक हूं, मेरे चेहरे पर बहुत ज्यादा मुंहासे हैं जिन से मैं काफी परेशान हूं. कोई उपाय बताएं.

सवाल
मैं 17 साल का युवक हूं, मेरे चेहरे पर बहुत ज्यादा मुंहासे हैं जिन से मैं काफी परेशान हूं. कोई उपाय बताएं जिस से मैं अपना खोया कौन्फिडैंस वापस पा सकूं?

जवाब
चाहे युवक हो या युवती हर कोई खूबसूरत दिखने की चाह रखता है. आप के चेहरे के मुंहासे आप की परेशानी का कारण बने हुए हैं, तो आप परेशान न हों क्योंकि इस उम्र में हारमोनल चैंजेज की वजह से ही ऐसी दिक्कतें आती हैं या फिर पेट संबंधी समस्याओं के कारण.

इस के लिए आप सब से पहले औयली स्किन वाले फेसवाश इस्तेमाल न करें और जितना हो सके तलीभुनी चीजों से दूर रहें. जब भी बाहर से आएं तो फेसवाश करें और ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं. अगर इस से भी आप को कोई फर्क नहीं पड़ता तो स्किन विशेषज्ञ को दिखा कर सही ट्रीटमैंट लें ताकि आप की स्किन भी साफ हो जाए और आप का खोया कौन्फिडैंस भी लौट सके.

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मुंहासों से यों पाएं छुटकारा

मौनसून अपने साथ बहुत सी समस्याएं भी ले कर आता है. उन में सब से ज्यादा परेशान करने वाली समस्या है पसीना. पसीना कई बार पिंपल्स का कारण भी बनता है. क्या हैं इस से बचने के उपाय, आइए बताते हैं:

– जब चेहरे पर पसीना आता है तो वह चेहरे को चिपचिपा बना देता है, जिस से धूल के कण चेहरे पर चिपक जाते हैं और रोमछिद्र बंद हो जाते हैं. इस से घमौरियों की समस्या होने लगती है. इस के अलावा कई महिलाओं की स्किन बहुत ज्यादा सैंसिटिव होती है. ऐसे में जब चेहरे पर पसीने की वजह से धूल चिपकती है तो उस में खुजली और रैशेज जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं.

– औयली स्कैल्प भी पिंपल्स का एक बड़ा कारण है. पसीने की वजह से औयली हुई स्कैल्प पिंपल्स को जन्म देती है.

– पसीने की वजह से चेहरा तैलीय न लगे, इसलिए कई महिलाएं चेहरे पर पाउडर लगा लेती हैं. अगर आप भी ऐसा करती हैं तो फौरन सावधान हो जाएं, क्योंकि पाउडर का ज्यादा प्रयोग रोमछिद्रों को ब्लौक कर मुंहासों की समस्या को जन्म देता है.

उपाय

– इस मौसम में जितना हो सके हलका मेकअप ही करें और सोने से पहले उसे साफ जरूर कर लें.

– औयल मेकअप प्रोडक्ट का प्रयोग न करें.

– क्ले मास्क का प्रयोग करें. इस से चेहरे पर पसीना कम आता है.

– 2 बूंदें लैमन जूस की रोज वाटर में मिला कर चेहरे पर लगाएं. फिर 10 मिनट बाद चेहरे को धो लें. इस से पसीने की वजह से चेहरे पर जमा हुआ अतिरिक्त औयल साफ हो जाता है और अगर मुंहासे हुए हों तो वे भी जल्दी ठीक हो जाते हैं.

– मस्टर्ड पाउडर में शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं व

15 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इस से भी पसीने की समस्या कम होती है और पिंपल्स से भी राहत मिलती है.

– बर्फ को सूती कपड़े या तौलिए में लपेट कर चेहरे पर

1-2 मिनट तक रब करें. इस से भी पिंपल्स और अतिरिक्त तेल से मुक्ति मिलेगी.

इस के बारे में पुलत्स्या कैडल स्किन केयर सैंटर के डर्मैटोलौजिस्ट डा. विवेक मेहता का कहना है कि इसे करते वक्त आंखों के आसपास इस का प्रयोग न करें. इस के अलावा कभी इसे 2 मिनट से ज्यादा देर तक न करें. सब से महत्त्वपूर्ण बात बर्फ को कभी स्किन पर सीधे अप्लाई न करें वरना फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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