नकदी की एक बार फिर कमी ने जनता की जान आफत में डाल दी है. एटीएमों के बाहर लाइनें लगने लगी हैं और व्यापार ढीला पड़ गया है क्योंकि नकदी की कमी में लेनदेन कम होने लगा है. जब लोगों को काम करने के बजाय लाइन में अपना ही पैसा निकालने के लिए खड़ा होने की मुसीबत झेलनी पड़े तो सरकार को कोसने के अलावा बचता ही क्या है. ‘नो कैश’ के बोर्डों का मतलब है ‘नो सरकार’.

नकदी की कमी का कारण वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक की गलती है. वित्त मंत्री लगातार कोशिश कर रहे हैं कि देश में सारा व्यापार, लेनदेन, जमा कैशलैस हो, चाहे इस से आम आदमी को जो मरजी कठिनाई हो. उन को लगता है कि अगर कैशलैस अर्थव्यवस्था होगी तो काला धन न होगा, बेईमानी न होगी.

वे यह याद ही नहीं रखना चाहते कि बैंकों के मारफत ही नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या जैसे बीसियों धन्ना सेठों ने पैसे निकाले ही नहीं, विदेश भी ले गए. कम नकदी असल में आम व्यापारी, किसान, मजदूर, छोटे कर्मचारी को परेशान करती है जिसे हर खर्च के लिए बैंक का मुंह ताकना पड़ता है.

जेब में नकदी हो तो सामान खरीदा और मामला खत्म. चैक, क्रैडिट कार्ड से खरीद का मतलब है कि महीने के आखिर तक इंतजार करो कि लेनदेन का ब्योरा आए और फिर एकएक खर्च को जांचो. कोई गड़बड़ी हो तो सिर धुनो, क्योंकि बैंक तो आप की सुनने वाला नहीं है. बैंक क्रैडिट कार्ड देते समय आप को लुभावने सपने दिखाएगा पर बाद में वह आप को दिन में तारे गिनवा देगा. कोई बैंक न अपने किसी अधिकारी का नाम बताने को तैयार होता है न नंबर.

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