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पुरुष भी होते हैं स्तन कैंसर के शिकार

स्तन कैंसर अब सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं रह गया है. स्तन कैंसर से जुड़ा सब से बड़ा भ्रम यह है कि यह सिर्फ महिलाओं को ही प्रभावित करता है और ज्यादातर सूचनाएं, जागरूकता अभियान, शोध एवं जानकारी महिलाओं पर ही केंद्रित होती है. इसीलिए पुरुष स्तन कैंसर के चिन्हों और लक्षणों को समझने और उन की पहचान करने में अकसर असफल होते हैं.

चौंकाते हैं शोध के परिणाम

विभिन्न संस्थानों में और विभिन्न स्तरों पर किए गए कई अध्ययनों में मिले परिणाम चौंकाने वाले हैं. कई मामलों में 80 फीसदी पुरुषों को इस बारे में जानकारी नहीं होती है कि उन में स्तन कैंसर का खतरा हो सकता है.

ज्यादातर पुरुष स्तन कैंसर (एमबीसी) के लक्षण पहचान भी नहीं पाते हैं. गांठ एकमात्र ऐसा लक्षण है, जिस के बारे में उन्हें जानकारी है. इस के अलावा उन्हें कोई अन्य जानकारी नहीं होती है.

चूंकि पुरुष स्तन कैंसर के ज्यादातर मामले अंतिम स्तर पर पता चलते हैं, इसलिए महिलाओं के स्तन कैंसर के मामलों के मुकाबले पुरुषों के स्स्न कैंसर के मामलों में मृत्यु दर अधिक है. देरी से जानकारी मिलने के परिणामस्वरूप एमबीसी बड़ा हो सकता है और इस का अन्य अंगों तक पहुंचने का भी खतरा अधिक होता है.

पुरुषों में स्तन कैंसर के प्रमुख लक्षण

– सब से साधारण लक्षण स्तन में गांठ है.

– निपल से तरल पदार्थ बाहर निकलना.

– निपल में खिंचाव या घाव.

– स्तन में दर्द होना, जिसे आमतौर पर छाती में होने वाला दर्द मान लिया जाता है.

– कांख के आसपास और स्तन के करीब सूजन.

पुरुषों को समयसमय पर स्वपरीक्षण करते रहना चाहिए और बदलावों की जानकारी तत्काल डाक्टर को देनी चाहिए.

समय से बीमारी का पता चलना कैंसर से एकमात्र बचाव है. गांठों का नियमित परीक्षण और समय पर जानकारी जीवन बचाने में मददगार है. सेहत पर पड़ने वाले किसी भी गंभीर असर से बचने के लिए हमें सेहतमंद जीवनशैली की जरूरत होती है.

– मनदीप एस मल्होत्रा, फोर्टिस फ्लाइट लैफ्टिनैंट राजन ढल हौस्पिटल (एफएचवीके) के हैड, नैक एवं ब्रैस्ट औंकोप्लास्टी डिपार्टमैंट

समझौता : भाग 2

सगाई वाले दिन मैं जल्दी ही दुकान बंद कर के घर आ गया था, लेकिन शिखा ने कलह शुरू कर दिया था. वह पंकज के प्रति शिकायतों का पुराना पुलिंदा खोल कर बैठ गई थी. उस ने मेरा मूड इतना खराब कर दिया था कि जाने का उत्साह ही ठंडा पड़ गया. मैं बिस्तर पर पड़ापड़ा सो गया था. जब नींद खुली तो रात के 10 बज रहे थे. मन अंदर से कहीं कचोट रहा था कि तेरे सगे भाई की सगाई है और तू यहां घर में पड़ा है. फिर मैं बिना कुछ विचार किए, देर से ही सही, पंकज के घर चला गया था.

मानव का स्वभाव है कि अपनी गलती न मान कर दोष दूसरे के सिर पर मढ़ देता है, जैसे कि वह दोष मैं ने शिखा के सिर पर मढ़ दिया. ठीक है, शिखा ने मुझे रोकने का प्रयास अवश्य किया था किंतु मेरे पैरों में बेड़ी तो नहीं डाली थी. दोषी मैं ही था. वह तो दूसरे घर से आई थी. नए रिश्तों में एकदम से लगाव नहीं होता. मुझे ही कड़ी बन कर उस को अपने परिवार से जोड़ना चाहिए था, जैसे उस ने मुझे अपने परिवार से जोड़ लिया था.

शिखा की सिसकियों की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ. वह बाहर वाले कमरे में थी. उसे मालूम नहीं था कि मैं नहा कर बाहर आ चुका हूं और फोन की पैरलेल लाइन पर मां व उस की पूरी बातें सुन चुका हूं. मैं सहजता से बाहर गया और उस से पूछा, ‘‘शिखा, रो क्यों रही हो?’’ ‘‘मुझे रुलाने का ठेका तो तुम्हारे घर वालों ने ले रखा है. अभी आप की मां का फोन आया था. आप को तो पता है न, मेरी भाभी ने आत्महत्या की थी. आप की मां ने आरोप लगाया है कि भाभी की हत्या की साजिश में मैं भी शामिल थी,’’ कह कर वह जोर से रोने लगी.

‘‘बस, यही आरोप लगाने के लिए उन्होंने फोन किया था?’’ ‘‘उन के हिसाब से मैं ने रिश्तों को तोड़ा है. फिर भी वे चाहती हैं कि मैं पंकज की शादी में जाऊं. मैं इस शादी में हरगिज नहीं जाऊंगी, यह मेरा अंतिम फैसला है. तुम्हें भी वहां नहीं जाना चाहिए.’’

‘‘सुनो, हम दोनों अपनाअपना फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं चाहते हुए भी तुम्हें पंकज के यहां चलने के लिए बाध्य नहीं करना चाहता. किंतु अपना निर्णय लेने के लिए मैं स्वतंत्र हूं. मुझे तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए.’’ ‘‘तो तुम जाओगे? पंकज तुम्हारे व मेरे लिए जगहजगह इतना जहर उगलता फिरता है, फिर भी जाओगे?’’

‘‘उस ने कभी मुझ से या मेरे सामने ऐसा नहीं कहा. लोगों के कहने पर हमें पूरी तरह विश्वास नहीं करना चाहिए. लोगों के कहने की परवा मैं ने की होती तो तुम को कभी भी वह प्यार न दे पाता, जो मैं ने तुम्हें दिया है. अभी तुम मांजी द्वारा आरोप लगाए जाने की बात कर रही थीं. पर वह उन्होंने नहीं लगाया. लोगों ने उन्हें ऐसा बताया होगा. आज तक मैं ने भी इस बारे में तुम से कुछ पूछा या कहा नहीं. आज कह रहा हूं… तुम्हारे ही कुछ परिचितों व रिश्तेदारों ने मुझ से भी कहा कि शिखा बहुत तेजमिजाज लड़की है. अपनी भाभी को इस ने कभी चैन से नहीं जीने दिया. इस के जुल्मों से परेशान हो कर भाभी की मौत हुई थी. पता नहीं वह हत्या थी या आत्महत्या…लेकिन मैं ने उन लोगों की परवा नहीं की…’’ ‘‘पर तुम ने उन की बातों पर विश्वास कर लिया? क्या तुम भी मुझे अपराधी समझते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें अपराधी नहीं समझता. न ही मैं ने उन लोगों की बातों पर विश्वास किया था. अगर विश्वास किया होता तो तुम से शादी न करता. तुम से बस एक सवाल करना चाहता हूं, लोग जब किसी के बारे में कुछ कहते हैं तो क्या हमें उस बात पर विश्वास कर लेना चाहिए.’’

‘‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह सब झूठ है. हम से जलने वालों ने यह अफवाह फैलाई थी. इसी वजह से मेरी शादी में कई बार रुकावटें आईं.’’ ‘‘मैं ने भी उसे सच नहीं माना, बस तुम्हें यह एहसास कराना चाहता हूं कि जैसे ये सब बातें झूठी हैं, वैसे ही पंकज के खिलाफ हमें भड़काने वालों की बातें भी झूठी हो सकती हैं. उन्हें हम सत्य क्यों मान रहे हैं?’’

‘‘लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे बातें झूठी हैं. खैर, लोगों ने सच कहा हो या झूठ, मैं तो नहीं जाऊंगी. एक बार भी उन्होंने मुझ से शादी में आने को नहीं कहा.’’ ‘‘कैसे कहता, सगाई पर आने के लिए तुम से कितना आग्रह कर के गया था. यहां तक कि उस ने तुम से माफी भी मांगी थी. फिर भी तुम नहीं गईं. इतना घमंड अच्छा नहीं. उस की जगह मैं होता तो दोबारा बुलाने न आता.’’

‘‘सब नाटक था, लेकिन आज अचानक तुम्हें हो क्या गया है? आज तो पंकज की बड़ी तरफदारी की जा रही है?’’

तभी द्वार की घंटी बजी. पंकज आया था. उस ने शिखा से कहा, ‘‘भाभी, भैया से तो आप को साथ लाने को कह ही चुका हूं, आप से भी कह रहा हूं. आप आएंगी तो मुझे खुशी होगी. अब मैं चलता हूं, बहुत काम करने हैं.’’ पंकज प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा किए बिना लौट गया.

मैं ने पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारी यह शिकायत भी दूर हो गई कि तुम से उस ने आने को नहीं कहा? अब क्या इरादा है?’’

‘‘इरादा क्या होना है, हमारे पड़ोसियों से तो एक सप्ताह पहले ही आने को कह गया था. मुझे एक दिन पहले न्योता देने आया है. असली बात तो यह है कि मेरा मन उन से इतना खट्टा हो गया है कि मैं जाना नहीं चाहती. मैं नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘तुम्हारी मरजी,’’ कह कर मैं दुकान चला गया.

थोड़ी देर बाद ही शिखा का फोन आया, ‘‘सुनो, एक खुशखबरी है. मेरे भाई हिमांशु की शादी तय हो गई है. 10 दिन बाद ही शादी है. उस के बाद कई महीने तक शादियां नहीं होंगी. इसीलिए जल्दी शादी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘बधाई हो, कब जा रही हो?’’ ‘‘पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे मैं अकेली ही जाऊंगी. तुम नहीं जाओगे?’’

‘‘तुम ने सही सोचा, तुम्हारे भाई की शादी है, तुम जाओ, मैं नहीं जाऊंगा.’’ ‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें, कैसी बातें कर रहे हो? मेरे मांबाप की जगहंसाई कराने का इरादा है क्या? सब पूछेंगे, दामाद क्यों नहीं आया तो

क्या जवाब देंगे? लोग कई तरह की बातें बनाएंगे…’’ ‘‘बातें तो लोगों ने तब भी बनाई होंगी, जब एक ही शहर में रहते हुए, सगी भाभी हो कर भी तुम देवर की सगाई में नहीं गईं…और अब शादी में भी नहीं जाओगी. जगहंसाई क्या

यहां नहीं होगी या फिर इज्जत का ठेका तुम्हारे खानदान ने ही ले रखा है, हमारे खानदान की तो कोई इज्जत ही नहीं है?’’

‘‘मत करो तुलना दोनों खानदानों की. मेरे घर वाले तुम्हें बहुत प्यार करते हैं. क्या तुम्हारे घर वाले मुझे वह इज्जत व प्यार दे पाए?’’ ‘‘हरेक को इज्जत व प्यार अपने व्यवहार से मिलता है.’’

‘‘तो क्या तुम्हारा अंतिम फैसला है कि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगी ?’’ ‘‘अंतिम ही समझो. यदि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगी तो मैं भला तुम्हारे भाई की शादी में क्यों जाऊंगा?’’

‘‘अच्छा, तो तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो?’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

दूसरे दिन पंकज की शादी में शिखा को आया देख कर मांजी का चेहरा खुशी से खिल उठा था. पंकज भी बहुत खुश था.

मांजी ने स्नेह से शिखा की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम आ गई, मैं बहुत खुश हूं. मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’ ‘‘आती कैसे नहीं, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप के आग्रह को कैसे टाल सकती थी?’’

मैं मन ही मन मुसकराया. शिखा किन परिस्थितियों के कारण यहां आई, यह तो बस मैं ही जानता था. उस के ये संवाद भले ही झूठे थे, पर अपने सफल अभिनय द्वारा उस ने मां को प्रसन्न कर दिया था. यह हमारे बीच हुए समझौते की एक सुखद सफलता थी.

ये उपाय अपनाकर बढ़ाएं अपने पुराने लैपटौप की स्पीड

नए लैपटाप न सिर्फ स्लिम, स्टाइलिश, हल्के और पावरफुल होते हैं, बल्कि हर वह कार्य करने में सक्षम होते हैं, जो पहले सिर्फ डेस्कटाप पर ही हो पाते थे. मगर लैपटाप पुराना हो जाए, तो फिर अक्सर लोग इसके धीमा हो जाने की शिकायत करते हैं. हालांकि कुछ तरीके हैं, जिनकी मदद से पुराने लैपटाप को भी फास्ट बनाया जा सकता है.

सी ड्राइव रखें खाली: यदि आप ब्रांडेड कम्प्यूटर लेते हैं, तो उसमें सिर्फ सी ड्राइव ही होती है. मगर सुरक्षा की दृष्टि से कई लोग हार्ड ड्राइव में पार्टिशन बना देते हैं. सी ड्राइव में विंडोज आपरेटिंग सिस्टम और डी, ई, एफ आदि में डाटा रखते हैं. ड्राइव का पार्टिशन करना अच्छा है, क्योंकि साफ्टवेयर में कुछ परेशानी आती है, तो आपका डाटा बच जाएगा. हालांकि सी ड्राइव को जितना खाली रखेंगे, लैपटाप उतना ही बेहतर कार्य करेगा. यह तेजी से आन होगा और परफार्मेंस भी स्मूद रहेगा.

टेंपरेरी फाइल्स करें डिलीट: लैपटाप पर कार्य करने के दौरान टेंपरेरी फाइल्स बनती हैं. इनमें कुछ तो डाक्यूमेंट बंद करने के साथ ही नष्ट हो जाती हैं लेकिन कुछ लैपटाप में स्टोर हो जाती है. ये फाइलें सी ड्राइव में स्टोर होती हैं, जो ज्यादा भरने पर लैपटाप को धीमा करती हैं. इसलिए इन्हें सर्च करके नष्ट कर दें, तो बेहतर होगा.

डिस्क करें क्लीन: अपने लैपटाप की सी ड्राइव के अलावा बाकी डिस्क भी क्लियर रखें, तो बेहतर होगा. इसके लिए लैपटाप के ‘रन” में जाकर (कीबोर्ड से कंट्रोल और आर को एक साथ प्रेस करेंगे, तो भी रन आ जाएगा) आप बनी cleanmgr.exe लिखकर एंटर करेंगे, तो डिस्क क्लीन हो जाएगी.

स्टार्टअप एप्स करें बंद: कई एप्स ऐसे होते हैं, जो लैपटाप स्टार्ट होने के साथ ही आन हो जाते हैं. इन्हें स्टार्टअप एप्स कहते हैं. ये एप्स लैपटाप के स्टार्ट को और धीमा कर देते हैं. ऐसे में इनमें से जो एप्स आपके काम के नहीं हैं, उन्हें डिसएबल कर दें. इसके लिए विंडोज पीसी के रन में जाएं और वहां msconfig टाइप करें. अब जब सिस्टम कॉन्फिग्रेशन ओपन होगा, तो आपको सर्विस पर क्लिक करना है और उन सभी एप्स को अनचेक करना है, जिनका आप उपयोग नहीं करते.

माइक्रोसाफ्ट फिट इट: कम्प्यूटर और लैपटाप के लिए माइक्रोसाफ्ट का ही एक टूल है माइक्रोसाफ्ट फिट इट. यह लैपटाप के परफार्मेंस को बेहतर बनाता है. यह मुफ्त में उपलब्ध है. इसे डाउनलोड कर रन करने पर न सिर्फ लैपटाप का परफार्मेंस स्मूद होगा, बल्कि स्पीड भी बढ़ जाएगी.

कैश-कुकीज करें क्लीन: जब आप इंटरनेट ब्राउज करते हैं, तो बहुत सारा डाटा कैश के रूप में सेव होता रहता है. इसके अलावा कुकीज और हिस्ट्री भी सेव होते रहते हैं. जब ये ब्राउजिंग को धीमा करने लगें, तो ब्राउजर से कैश को क्लीन करते रहना बेहतर होता है.

ओएस व एप्स रखें अपडेट: समय-समय पर विंडोज आपरेटिंग सिस्टम का अपडेट आता है. आप कोशिश करें कि आपरेटिंग सिस्टम को हमेशा अपडेट रखें. हालांकि कई लोग पीसी को फास्ट करने के लिए सिस्टम अपडेट को बंद कर देते हैं लेकिन इससे नुकसान ही होता है. इससे सिस्टम की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है. इसके अलावा लैपटाप में जो साफ्टवेयर्स हैं, उन्हें भी अपडेट रख पायरेटेड साफ्टवेयर से रहें दूर विंडोज पीसी के लिए पायरेटेड साफ्टवेयर की भरमार है. ये लैपटाप को धीमा करते हैं. एक साफ्टवेयर के साथ कई दूसरे साफ्टवेयर भी डाउनलोड हो जाते हैं और लैपटाप को नुकसान पहुंचाते है.

लैपटाप को करें रीस्टार्ट: कई लोग अपने लैपटाप को महीनों तक हाइबरनेट पर ही रखते हैं. कुछ दिन तक तो यह ठीक है लेकिन जब महीने भर तक हाइबरनेट पर ही रखते हैं, तो उससे परफार्मेंस पर फर्क पड़ता है. इसलिए कोशिश करें कि कुछ दिनों के अंतराल पर लैपटाप को पूरी तरह शट-डाउन कर रीस्टार्ट करें. इससे परफार्मेंस ठीकहो जाता है.

सीसी क्लीनर: विंडोज लैपटाप पीसी के लिए सीसी क्लीनर बहुत अच्छा साफ्टवेयर है और यह आपके पीसी के परफार्मेंस को भी बेहतर करता है. सबसे अच्छी बात यह है कि सीसी क्लीनर पूरी तरह से मुक्त है. इसलिए इसे अपने लैपटाप में जरूर रखें और समय-समय पर रन करते रहें.

फेसबुक के देशी नुसखों से रहें सावधान

पिछले दिनों मेरे पास एक युवक को ले कर उस की मां आई थी. युवक भयानक उलटी और दस्त से ग्रस्त था. जब उस से ‘रात क्या खाया था’ पूछा गया तो वह लगातार बात को छिपाने की कोशिश करता रहा.

जब मैं ने उस से कहा कि यदि आप अपने खाने पीने के बारे में सही सही नहीं बताएंगे तो इलाज कैसे संभव होगा? तब उसने झिझकते हुए कहा, ‘‘शाम को मैं ने फेसबुक पर एक देसी नुसखा पढ़ा था.’’

‘‘किस चीज का?’’

‘‘जोश ताकत का,’’ शरमाते हुए उस ने बताया.

‘‘क्या खाया था?’’

‘‘कमल के बीजों को पीस कर उस में लहसुन मिला कर खाया था, खाने के एक घंटे बाद ही तबीयत खराब होने लगी थी,’’ उस ने बताया. मैं ने उस को सेलाइन चढ़ाई और आवश्यक दवाएं दीं. 2 दिनों बाद उस की हालत ठीक हुई.

ऐसे एक दर्जन से अधिक मरीज मेरे पास फालतू चीजें खा कर इलाज के लिए आ चुके हैं. इन में महिलाएं और वृद्घ भी हैं. सोशल साइट्स पर इन दिनों बहुत सी गंभीर बीमारियों के इलाज और मनगढं़त परिणामों का उल्लेख मिल जाएगा, जैसे शुगर की बीमारी से मिनटों में आराम, मोटापे में शर्तिया फायदा, घुटनों के दर्द में एक सप्ताह में आराम वगैरा. इस के साथ ही जो इन साइट्स पर देसी दवाओं का उल्लेख करता है वह बाकायदा अपने अनुभवों का विस्तृत वर्णन करता है जिस से पढ़ने वाले या रोगग्रस्त व्यक्ति उन गलत बातों पर विश्वास कर लेते हैं.

पिछले दिनों हृदय रोग में पीपल के पत्तों के काढ़े से हार्ट सर्जरी से मुक्ति की पोस्ट बहुत चर्चित हुई थी. वहीं शुगर की बीमारी में गोंद, अलसी और जामुन के बीजों के मिश्रण को सुबह व रात को पीने की बात कही गई थी. मरता क्या न करता, जो इन बीमारियों से ग्रस्त हैं और ढेर सारे रुपए को फूंक चुके हैं वे तुरंत इन नुसखों को अपना कर अपनी बीमारियों को तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही अन्य बीमारियों से ग्रस्त भी हो जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि यदि आप ऐसी मनगढ़ंत दवाओं के विषय में फेसबुक पर देखें तो उसे तुरंत हटा दें न कि शेयर कर के और लोगों तक गलत बातों को पहुंचाने में मदद करें.

आजकल सोशल साइट्स का उपयोग अंधविश्वास को फैलाने में भी होने लगा है. साइट्स में कहा जाता है कि इस देवीदेवता की तसवीरों को शेयर करें तो आप की बीमारी दूर हो जाएगी वरना आप और अधिक बीमार हो जाएंगे. ऐसी स्थिति में घबरा कर कमजोर मानसिकता के व्यक्ति ऐसी पोस्ट को शेयर कर देते हैं, और अनजाने ही, ऐसे अंधविश्वास को फैलाने में सहयोगी हो जाते हैं.

फेसबुक पर दुबले होने के लिए भी बहुत से नुसखे होते हैं जो आप को दुष्परिणाम दे सकते हैं. इन दिनों फेसबुक पर एक और पोस्ट आ रही है, ‘निसंतान दंपती यदि अमुकअमुक टोटका कर के इन अमुक दवाओं का सेवन करेंगे तो जरूर बच्चा पैदा हो जाएगा.’

यह पोस्ट देख कर तुरंत महिलाओं के दिमाग में अपनी उन एक दर्जन सहेलियों, रिश्तेदारों के नाम याद आ जाते हैं जो निसंतान हैं और वे उसे यह पोस्ट शेयर कर के बाकायदा फोन कर के कहती भी हैं कि इसे अमल में लाओ. परिणामस्वरूप गलत नुसखों का प्रचारप्रसार करने में आप अनचाहे ही सहयोगी हो जाते हैं. ऐसी किसी भी पोस्ट को तुरंत अपनी फेसबुक से हटा देना ही बेहतर होगा ताकि आप इस बहाने समाज में गलत बातों के प्रचारप्रसार में सहयोगी न बन सकें. इसलिए ऐसी बातों का खुल कर विरोध करें और उस नुसखे के नीचे किसी भी तरह का उपयोग नहीं करने का अपना मैसेज भी टाइप कर दें ताकि जिस ने वह पोस्ट किया है उस तक आप की बात पहुंच सके.

सोशल मीडिया पर बताई गई दवाओं या मनगढं़त दवाओं के विषय में बातों को आगे न बढ़ाएं. अपनी बीमारी के विषय में अपने चिकित्सक से सलाह लिए बिना कोई भी दवा या देशी नुसखों का उपयोग न करें. वरना आप को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

जानें, घर बैठे कमाई करने का आसान तरीका

आज हर महिला खुद को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है. खुद के बलबूते पर कुछ कर दिखाना चाहती हैं. उनके अंदर काम करने की क्षमता तो होती है पर शायद आइडियाज की कमी के चलते वो खुद के हुनर को निखार नहीं पाती. इसे देखते हुए महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए हम बता रहे हैं कुछ लोकप्रिय बिजनेस आइडियाज के बारे में, जिन्हें महिलाएं काफी आराम से कर सकती हैं और साथ ही इन बिजनेस से उन्हें अच्छी कमाई भी हो सकती है.

फैशन डिजाइनिंग: फैशन, कपड़े और गहने महिलाओं की पसंदीदा चीजें हैं, जिनमें बिजनेस करना महिलाओं को पसंद है और इन सेक्टर में इन्वेस्टमेंट भी कम चाहिए होता है. आप अकेले ही अपना बिजनेस शुरू कर सकती हैं अपने दोस्तों को अपनी चीजें खरीदने के लिए कह सकती हैं और साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म और ई-कामर्स पोर्टल्स का इस्तेमाल करके भी अच्छी कमाई कर सकती हैं.

हेल्थ और फिटनेस: हेल्थ, फिटनेस और वैलनेस का उद्योग भारत में तेजी से बढ़ रहा है. बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता के साथ, हेल्थ स्टूडियो की मांग में भी तेजी से वृद्धि हो रही है. योग, जुम्बा, एरोबिक्स क्लासेज लेने के लिए इंस्टिट्यूट ज्वाइन कर रहे हैं. इस बिजनेस में इन्वेस्टमेंट काफी कम है, इसके लिए आपको इन स्किल्स में महारथी होना जरूरी है और एक बड़ा हाल जहां आप लोगों को ये सिखा सकें.

इवेंट मैनेजमेंट: इवेंट मैनेजमेंट एक और क्षेत्र है, जहां महिलाएं खूब पैसा कमा सकती हैं. आजकल इवेंट्स और पार्टियों का मैनेजमेंट कोई छोटा काम नहीं है, इसलिए लोग इवेंट मैनेजरों को हायर करने लगे हैं. जन्मदिन की पार्टियों, कारपोरेट इवेंट्स, फेस्टिवल इवेंट्स आदि आयोजित करने में महिलाएं की स्किल्स की काफी सराहना की जाती है.

कुकिंग: ज्यादातर महिलाओं को खाना पकाने में रुचि होती है और खाने का कारोबार शुरू करने में उनकी काफी रुचि भी होती है. आजकल लड़कियां खाना बनाने की क्लासेज लेती हैं. महिलाएं कुकिंग क्लासेज देने के अलावा अपने खाने को बेच भी सकती हैं. वे टिफिन का बिजनेस शुरू कर सकती हैं. वह आनलाइन फूड डिलीवरी पोर्टल का यूज कर अपने खाने को बेच सकती हैं.

ट्यूशन और शिक्षा: हमारे देश में शिक्षा से संबंधित सेवाओं की काफी जरूरत है. इसी वजह से इस बिजनेस को उभरता हुआ बिजनेस माना जाता है. अब महिलाएं विडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कहीं भी रह कर स्टूडेंट्स को पढ़ा सकती हैं. आनलाइन टीचिंग एक ऐसा सेक्टर है जो काफी उभर चुका है और इसके जरिए अच्छी कमाई भी की जा सकती है.

कंसल्टिंग: पढ़ी-लिखी महिलाएं कंसल्टिंग का बिजनेस शुरू कर सकती हैं, वे अपने पसंदीदा फील्ड की जानकारी दूसरों के साथ शेयर कर के उनके भविष्य को बनाने में उनकी मदद कर सकती हैं. कंसल्टेशन बिजनेस एक उभरता हुआ बिजनेस सेक्टर है जिसके बारे में कम लोगों को जानकारी है.

इस गेंदबाज के डर से स्ट्राइक नहीं लेना चाहते थे सचिन

24 सालों तक भारतीय दर्शकों के लिए क्रिकेट का दूसरा नाम रहे सचिन ने खुलासा किया है कि वह 1999 में ऑस्ट्रिलिया में हुई सीरीज को अपने करियर की सबसे मुश्किल सीरीज मानते हैं.

मुंबई में एक कार्यक्रम में तेंदुलकर ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि सबसे कड़ी सीरीज 1999 की थी जब हम ऑस्ट्रेलिया गए थे और उनकी टीम बेजोड़ थी. उनकी एकादश में सात से आठ मैच विजेता थे और बाकी भी काफी अच्छे थे. यह ऐसी टीम थी जिसने विश्व क्रिकेट में कई वर्षों तक दबदबा बनाया. उनकी खेलने की अपनी शैली थी, काफी आक्रामक.’

आपको बता दें कि स्टीव वॉ की टीम ने तीन मैचों की इस सीरीज में पूरी तरह से दबदबा बनाते हुए भारत का 3-0 से वाइटवॉश किया था.

सचिन तेंदुलकर ने कहा कि उन्हें अच्छी तरह से याद है कि मेलबर्न, एडिलेड और सिडनी में ऑस्ट्रेलिया ने जिस तरह का क्रिकेट खेला उससे पूरी दुनिया प्रभावित हुई थी. सभी इसी तरह का क्रिकेट खेलना चाहते थे. हालांकि हम सभी अपने खेलने के तरीके का सम्मान करते हैं लेकिन सभी को लगता था कि उन्होंने जो क्रिकेट खेला वह विशेष था. तेंदुलकर ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी लगातार ऐसा ऐसा प्रदर्शन करने में सफल रहे. वह विश्व स्तरीय टीम थी.

इस गेंदबाज का सामना करने से घबराते थे सचिन

तेंदुलकर ने रहस्योद्घाटन किया कि उन्हें दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोन्ये का सामना करना पसंद नहीं था. उन्होंने कहा, ‘1989 में जब से मैंने खेलना शुरू किया उस वक्त कम से कम 25 विश्व स्तरीय गेंदबाज मौजूद थे. लेकिन जिनके खिलाफ बल्लेबाजी का मैंने लुत्फ नहीं उठाया वह हैंसी क्रोन्ये थे. किसी न किसी कारण से मैं आउट हो जाता था और मुझे महसूस होने लगा था कि मैं गेंदबाजी छोर पर खड़ा ही अच्छा हूं. पिच पर जो भी दूसरा बल्लेबाज होता था मैं उसे कहता था कि हैंसी की गेंद पर स्ट्राइक तुम रखो.’

हैंसी ने कितने बार किया आउट

आपको बता दें कि दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोन्ये ने सचिन तेंदुलकर को 32 वनडे मैचों में सिर्फ तीन बार आउट किया था. लेकिन 11 टेस्ट मैचों में क्रोन्ये ने सचिन को 5 बार पवेलियन की राह दिखाई थी.

हैंसी क्रोन्ये एक मीडियम पेसर थे और वो अपने मजबूत कंधों की वजह से गेंद को बाउंस कराने के साथ-साथ उसे तेजी भी प्रदान करते थे, जिसकी वजह से उन्हें खेलना मुश्किल हो जाता था.

टेस्ट है फेवरेट फॉर्मेट

सचिन तेंदुलकर ने कहा कि अगर उन्हें टेस्ट और एकदिवसीय की तुलना करनी पड़े तो उन्हें टेस्ट में अच्छा प्रदर्शन करने पर ज्यादा संतोष मिलता है. शायद यही वजह है कि सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट क्रिकेट से सबसे आखिर में सन्यास लिया था. बताते चलें कि सचिन ने अपने करियर में केवल एक टी-20 इंटरनेशनल मैच खेला है.

आईपीएल के इस सुपरस्टार ने गर्लफ्रेंड संग रचाई शादी

आईपीएल 2018 में किंग्स इलेवन पंजाब के सलामी बल्लेबाज और घरेलू क्रिकेट में कई बड़े रिकार्ड अपने नाम करने वाले क्रिकेटर मयंक अग्रवाल शादी के बंधन में बंध गए. उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड आशिता सूद से शादी कर ली है. मयंक ने लंदन के थेम्स रिवर के किनारे हवाई झूले पर अपनी गर्लफ्रेंड आशिता को प्रपोज किया, जिसके बाद वह उन्हें मना नहीं कर पाई. अब सोशल मीडिया पर मयंक अग्रवाल और आशिता सूद की शादी की कई तस्वीरें वायरल हो रही हैं.

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मयंक और आशिता की शादी में केएल राहुल भी बाराती बनकर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने जमकर ठुमके भी लगाए. केएल राहुल ने अपने आफिशियल इंस्टाग्राम पेज से मयंक की शादी के बेहतरीन लम्हों को फैंस के बीच शेयर भी किया. केएल राहुल ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से फोटोज शेयर करते हुए इस कपल को शादी की बधाई दी. केएल राहुल ने लिखा, ‘मयंक के जीवन का आज बहुत बड़ा दिन है’. केएल राहुल के अलावा और भी कई क्रिकेटर्स ने मयंक अग्रवाल और आशिता को आने वाले जीवन के लिए बधाई दी है.

हाल ही में हुए सीएट क्रिकेट अवार्ड्स में मयंक अग्रवाल को वर्ष के सर्वश्रेष्ठ घरेलू खिलाड़ी का अवार्ड भी मिला है. मयंक अग्रवाल ने रणजी ट्राफी 2017-18 में 105.45 के औसत से 1160 रन ठोके, जिनमें 5 शतक शामिल रहे. पिछले साल घरेलू क्रिकेट में अपने बल्ले से जमकर धमाल मचाने वाले कर्नाटक के इस बल्लेबाज को इंग्लैंड दौरे के लिए ‘इंडिया ए’ टीम में चुना गया था. इस दौरे से पहले ही मयंक अग्रवाल ने अपनी गर्लफ्रेंड संग शादी रचा ली है.

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हालांकि, आईपीएल 2018 में मयंक अग्रवाल का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा. आईपीएल के इस सीजन में मयंक अग्रवाल ने 11 मैच खेलकर 12.00 की औसत और 127.65 की स्ट्राइक रेट से केवल 120 रन ही बनाए.

‘भावेश जोशी’ को डुबाने में पी आर कंपनी की भूमिका या साजिश..?

विक्रमादित्य निर्देशित और  अनिल कपूर के बेटे व सोनम कपूर के भाई हर्षवर्धन कपूर के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ की बाक्स आफिस पर जितनी दुर्गति हो रही है, उसकी तो किसी ने कल्पना भी नही की थी. भावेश जोशी को पूरे देश में एक हजार सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया और इस फिल्म ने चार दिन के अंदर सिर्फ एक करोड़ रूपए ही इकट्ठा किये. यानी कि खर्च निकालकर निर्माता के हाथ में सिर्फ चालीस लाख रूपए ही आए.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ‘भावेश जोशी’’ की क्या दुर्गति हो रही है. हालात यह बन गए हैं कि अब सिनेमाघरों ने ‘भावेश जोशी’ के शो रद्द करके सोनम कपूर की फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ को देना शुरू कर दिया है. एक मल्टीप्लैक्स के मालिक ने अपना नाम छिपाते हुए कहा-‘‘फिल्म ‘भावेश जोशी’ को देखने के लिए एक भी दर्शक नहीं आ रहा है. ऐसे में हमारे पास इस फिल्म के शो को रद्द करने के अलावा कोई चारा नहीं है. पर हम फिल्म ‘भावेश जोशी’ के शो रद्द करके सोनम कपूर आहुजा की फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ को दे रहे हैं, क्योंकि ‘वीरे दी वेडिंग’ को मुंबई से इतर कुछ क्षेत्रों में अच्छे दर्शक मिल रहे हैं.’’

यूं तो हमने फिल्म ‘भावेश जोशी’ की समीक्षा में साफ तौर पर लिखा था कि इस फिल्म को दर्शक मिलने कठिन हैं. क्योंकि इस फिल्म में कहानी निर्देशन सहित सब कुछ बहुत ही कमजोर है. असफल फिल्म ‘मिर्जिया’ से करियर की शुरुआत करने वाले हर्षवर्धन कपूर की दूसरी फिल्म है-‘भावेश जोशी’. लेकिन इस फिल्म में भी हर्षवर्धन कपूर अपने अभिनय में सुधार नहीं ला पाए हैं. ऐसे में भावेश जोशी को दर्शकों द्वारा पसंद ना किया जाना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है.

मगर बौलीवुड से जुड़े कुछ लोग आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ निर्माण के स्तर पर कमजोर होने के साथ साथ इस फिल्म की पी आर कंपनी ने इस फिल्म को असफल बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है. इस सूत्र का दावा है कि भुक्तभोगी सोनम कपूर को चाहिए था कि वह अपने भाई हर्षवर्धन कपूर की भलाई के लिए उसे सलाह देती कि वह निर्माता से कह कर फिल्म की पी आर कंपनी को बदलवाता.

ज्ञातब्य है कि फिल्म ‘‘खूबसूरत’’ के असफल होने पर इसका सारा दोष सोनम कपूर ने फिल्म ‘खूबसूरत’ की पी आर कंपनी पर मढ़ते हुए कई आरोप लगाए थे. मजेदार बात यह है कि ‘खूबसूरत’ का पी आर करने वाली कंपनी ने ही ‘भावेश जोशी’ का पी आर किया है.

लोग सवाल उठा रहे हैं कि फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ की पी आर कंपनी ने इस फिल्म को ठीक से प्रचारित क्यों नहीं किया? ‘भावेश जोशी’ की पी आर कंपनी ने फिल्म के कलाकारों इंटरव्यू भी सही ढंग से नहीं करवाए. तमाम पत्रकारों की अनदेखी की गयी. जिसके चलते भावेश जोशी सही ढंग से प्रचारित नहीं हो पायी. यदि फिल्म सही ढंग से प्रचारित होती, तो इस फिल्म को कम से कम ओपनिंग तो अच्छी मिल जाती. कुछ लोग पी आर कंपनी की बजाय हर्षवर्धन कपूर को दोष दे रहे हैं कि जब पी आर कंपनी उन्हे व फिल्म को सही ढंग से प्रचारित नहीं कर रही थी, तो उन्होंने किसी अन्य प्रचारक को रखकर अपना प्रचार क्यों नहीं करवाया.

जबकि बौलीवुड का एक तबका मानता है कि वर्तमान समय के फिल्म निर्माता अपनी पी आर कंपनी से जवाब तलब क्यों नहीं करते हैं? फिल्म निर्माता को स्वंय इस बात पर नजर रखनी चाहिए कि उनकी फिल्म का पी आर सही ढंग से उनकी फिल्म को प्रचारित कर रही है या नहीं?

वहीं बौलीवुड का एक सूत्र दावा कर रहा है कि एक साजिश के तहत कमजोर फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ को पूरी तरह से डुबाया गया. इस तरह की शंका व्यक्त करने वाले लोग सवाल उठा रहे हैं कि ‘भावेश जोशी’ को अचानक 25 मई की बजाय 1 जून को ‘वीरे दी वेडिंग’ के साथ प्रदर्शित करने का निर्णय क्यों लिया गया? क्या ऐसा सोनम कपूर, रिया कपूर और अनिल कपूर की मंशा से किया गया? कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि हर्षवर्धन कपूर के करियर पर कम से कम आंच आए, इसके लिए ‘वीरे दी वेडिंग’ के साथ ‘भावेश जोशी’ को प्रदर्शित किया गया, जिससे यह कहा जा सके कि भाई बहन की फिल्मों के टकराव में जीत बहन की फिल्म की हुई.

कुल मिलाकर ‘‘भावेश जोशी’’ की बाक्स आफिस पर हो रही दुर्गति के बाद अफवाहों का बाजार गर्म है..

फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’ क्यों नही आएगी तीन अगस्त को

‘यशराज फिल्म्स’ के आदित्य चोपड़ा ने घोषित किया है कि दिबाकर बनर्जी निर्देशित फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’ अब तीन अगस्त की बजाय एक मार्च 2019 को प्रदर्शित होगी. ‘यशराज फिल्म्स’ के अनुसार इसकी मूल वजह यह है कि फिल्म का पोस्ट प्रोडक्शन का काम बाकी है. उधर फिल्म के निर्देशक दिबाकर बनर्जी कहते हैं- ‘‘हमारी फिल्म की शूटिंग नेपाल के अलावा उत्तराखंड के जूनाघाट में की गयी है. नेपाल सीमा पर खराब मौसम के चलते हमारी फिल्म की शूटिंग में एक माह की देरी हो गयी. तो वही पोस्ट प्रोडक्शन का काफी काम बाकी है. इसी के चलते हमने व आदित्य ने मिलकर तय किया है कि हम अपनी फिल्म को तीन अगस्त की बजाय अगले वर्ष एक मार्च को प्रदर्शित करेंगे.’’

मगर बौलीवुड से जुड़े सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म के प्रदर्शन की तारीख टालने की वजह कुछ और है. सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म ‘‘संदीप और पिंकी फरार’’ में अर्जुन कपूर और परिणीत चोपड़ा की अहम भूमिकाएं हैं. फिलहाल अर्जुन कपूर का करियर डांवाडोल चल रहा है. हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ में अर्जुन कपूर मेहमान कलाकार के रूप में नजर आए, मगर इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा. उधर परिणीति चोपड़ा की पिछली फिल्मों ने निर्माताओं को नुकसान ही पहुंचाया है. इसलिए अब ‘यशराज फिल्म्स’ कुछ समय इंतजार करना चाहता है. इसके अलावा वह चाहते हैं कि अर्जुन कपूर और परिणीत चोपड़ा की फिल्म‘‘नमस्ते लंडन’’पहले प्रदर्शित हो जाए, तो शायद हालात बदल जाएं.

जबकि ‘‘यशराज फिल्म्स’’ के करीबी सूत्रों के अनुसार फिल्म ‘‘संदीप और पिंकी फरार’’ का कुछ अंश देखकर आदित्य चोपड़ा काफी निराश हुए और अब उन्होंने निर्देशक दिबाकर बनर्जी को इस फिल्म के 25 प्रतिशत हिस्से को पुनः फिल्माने का आदेश दिया है. यानी कि अब फिल्म का कुछ हिस्सा पुनः फिल्माया जाएगा, जिसमें समय लगना स्वाभाविक है. इसी के चलते फिल्म के प्रदर्शन की तारीख बदली गयी है.

नीट : असमानता और भेदभाव की साजिश

एक राष्ट्र, एक परीक्षा’ जैसी दार्शनिक विचारधारा को ध्यान में रखते हुए नैशनल एलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट यानी नीट लागू किया गया. यह एक ऐसा बाहुबली एग्जाम है जिस का आयोजन देश के उन सभी मैडिकल और डैंटल कालेजों में ऐडमिशन के लिए 2017 से अनिवार्य कर दिया गया जो मैडिकल और डैंटल काउंसिल औफ इंडिया द्वारा संचालित हैं. इस परीक्षा का उद्देश्य राज्यस्तरीय और प्राइवेट कालेजों द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं से विद्यार्थियों को मुक्त करना और ऐडमिशन प्रोसैस में समानता लाना है, लेकिन आज के हालात देखें, तो नीट ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों, गरीब, पिछड़ी जातियों और स्टेट बोर्ड के छात्रों के पक्ष में नहीं है.

शुरू से ही नीट स्टूडैंट्स और उन के पेरैंट्स के लिए सिरदर्द बना हुआ है. केरल में कई स्टूडैंट्स को परीक्षा केंद्रों पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. कन्नूर जिले में एक छात्रा को एग्जाम हौल में जाने से पहले इनरवियर निकालना पड़ा था, क्योंकि उस में मैटल हुक लगा था जो मैटल डिटैक्टर से पता चला. इस पर आपत्ति जताते हुए केरल के एक सांसद पी के श्रीमाधी ने कहा था, ‘‘परीक्षा केंद्रों पर छात्राओं के कपड़े उतरवाना बेहद चौंकाने वाली व अमानवीय घटना है.’’

अगस्त 2017 में तमिलनाडु के त्रिची जिले के एक कुली की 17 वर्षीया बेटी अनीता ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे मैडिकल में ऐडमिशन नहीं मिल सका. अनीता ने नीट में 700 में से मात्र 86 मार्क्स प्राप्त किए थे जो मैडिकल की पढ़ाई के लिए पर्याप्त नहीं थे, जबकि स्टेट बोर्ड के परिणाम के अनुसार, अनीता एक मेधावी और प्रतिभाशाली छात्रा थी, 12वीं में उसे कुल 1,200 में से 1,176 मार्क्स मिले थे. फिजिक्स और मैथ्स में 100 प्रतिशत के साथ उस ने कुल 98 प्रतिशत मार्क्स प्राप्त किए थे.

दरअसल, तमिलनाडु में मैडिकल में ऐडमिशन के लिए नीट के स्कोर को अनिवार्य करने के केंद्र के फैसले के विरोध में अनीता ने देश की सब से बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और याचिका दाखिल की, जिस में उस ने कहा था कि उस के जैसे गरीब व ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे, शहर के बच्चों जैसी कोचिंग क्लासेस नहीं ले सकते हैं, इसलिए उन्हें नीट जैसी कठिन प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा में छूट दी जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अनीता की याचिका को खारिज करते हुए आदेश दिया कि तमिलनाडु में मैडिकल में प्रवेश 12वीं कक्षा के अंकों पर नहीं, बल्कि नीट के परिणाम पर ही आधारित हो. यह फैसला आने के बाद अनीता की डाक्टर बनने की आखिरी उम्मीद भी टूट गई और उस ने आत्महत्या कर ली. यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि नीट के जरिए हम किस तरह के मैडिकल छात्रों का चुनाव कर रहे हैं.

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ऐसे में नैशनल एलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट न केवल एक गलत विचार है बल्कि इसे आयोजित करने का तरीका आज के समय में किसी कल्पना से कम नहीं है. देश के मैडिकल कालेजों में ऐडमिशन लेने के लिए नीट एकमात्र जरिया है, इसलिए इस की कठिनाई के स्तर पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं. विविधताओं से भरे भारत जैसे देश में ऐसा कोई संस्थान सक्षम और योग्य नहीं है जिस में नीट जैसी परीक्षा को इतने बड़े स्तर पर उचित ढंग से आयोजित करने की क्षमता हो.

केंद्रीय पाठयक्रम और स्टेट बोर्ड:?भारतीय शिक्षा विरोधी संघ

नीट का पैटर्न एनसीईआरटी द्वारा तय 11वीं व 12वीं के पाठ्यक्रम पर आधारित है. इस में स्टेट एवं अन्य बोर्ड्स के पाठ्यक्रमों को शामिल करने पर कोई अध्ययन या विचार तक नहीं किया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया ने नीट के लिए एनसीईआरटी के ही पाठ्यक्रम को चुना है, जबकि देश में मात्र कुछ ही फीसदी छात्र एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम पढ़ते हैं.

इस निर्णय पर देश के कई शिक्षाविदों ने सवाल उठाया था कि उस देश में केवल एक बोर्ड पर आधारित नीट की अनिवार्यता कैसे न्यायपूर्ण हो सकती है, जहां शिक्षा बोर्ड और उन के सिलेबस एकसमान नहीं हैं. नीट राज्यस्तरीय शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह नजरअंदाज कर केंद्रीय शिक्षा प्रणाली को स्वीकार कर रहा है. इस के अलावा नीट प्रश्नपत्र अंगरेजी और हिंदी में होने के कारण क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ रहे छात्रों की जरूरतों को नजरअंदाज किया जा रहा है. इस से स्पष्ट है कि नीट, भारत के संघीय ढांचे में भेदभाव पैदा कर रहा है और असमानता फैला रहा है.

अप्रासंगिक हुआ 12वीं का परिणाम

नीट का प्रश्नपत्र बहुविकल्पीयहोता है, जिस में फिजिक्स, कैमिस्ट्री, बायोलौजी, जूलौजी और इंगलिश सब्जैक्ट शामिल हैं. नीट ने उन छात्रों के लिए 12वीं के परिणाम को अप्रासंगिक बना दिया है जो मैडिकल में ऐडमिशन के लिए मेहनत करते हैं क्योंकि अब मैडिकल काउंसिल द्वारा मान्य तकनीकी जरूरतों के अलावा अन्य अंकों की गणना नहीं की जाएगी. नीट की परीक्षा के लिए 12वीं में सामान्य वर्ग के छात्रों को कम से कम 50 फीसदी और आरक्षित वर्ग के छात्रों को 40 फीसदी अंक प्राप्त करना जरूरी है, विशेषकर इंगलिश, फिजिक्स, कैमिस्ट्री और बायोलौजी के पेपर में पास होना अनिवार्य है. इस के बावजूद नीट की मैरिट लिस्ट में आने के बाद ही आप किसी मैडिकल कालेज में ऐडमिशन के लिए योग्य होंगे.

सवाल है कि दोनों परीक्षाओं में औसत परिणाम अनिवार्य करने की आवश्यकता क्या है? जब ऐडमिशन के लिए नीट के परिणाम ही सर्वमान्य हैं तो मैडिकल काउंसिल को 12वीं में 5 फीसदी लाने की अनिवार्यता खत्म कर देनी चाहिए जिस से छात्रों को दोहरी पढ़ाई के भार से राहत मिल सके.

मुंबई के केसी कालेज की फिजिक्स की प्रोफैसर ज्योत्सना पांडेय के अनुसार, एनसीईआरटी (नैशनल काउंसिल औफ एजुकेशन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग) द्वारा निर्धारित फिजिक्स, कैमिस्ट्री, जूलौजी और मैथ्स के पाठयक्रम विशेषरूप से मैडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने वाले स्टूडैंट्स को ट्रेनिंग देने के उद्देश्य से तैयार किए जाते हैं. वहीं स्टेट बोर्ड साइंस को ले कर हैलिकौप्टर दृष्टिकोण अपनाता है, जिस के कारण स्टूडैंट्स को नीट जैसी परीक्षा पास करना मुश्किल साबित होता है. स्टेट बोर्ड साइंस के बजाय क्षेत्रीय भाषा, कला और संस्कृति पर अधिक जोर देता है जो नौनसाइंस कोर्सेस के लिए उपयुक्त है.

नीट की तैयारी कर रहे छात्रों का कहना है कि स्टेट बोर्ड का सिलेबस सब्जैक्टिव होता है जबकि नीट का सिलेबस काफी व्यापक व बहुविकल्पीय होता है. ऐसे में दोनों की अलगअलग तैयारी करनी पड़ती है, जिस से उन पर दोहरा भार पड़ता है. इतना ही नहीं, बिना कोचिंग क्लासेस के नीट पास कर के किसी अच्छे कालेज में ऐडमिशन लेना लगभग असंभव है.

कोचिंग के बिना नीट पास करना मुश्किल

नीट का पेपर कुल 700 मार्क्स का होता है, जिस में से स्टूडैंट्स को कम से कम 400 मार्क्स हासिल करना अनिवार्य है. इस के बाद भी ऐडमिशन राज्य में सीटों की उपलब्धता पर निर्भर करता है. कर्नाटक में लोअर रैंक लाने वाले छात्रों को भी ऐडमिशन मिल जाता है, क्योंकि पड़ोसी राज्यों केरल और महाराष्ट्र की तुलना में वहां मैडिकल कालेजों की संख्या ज्यादा है.

मुंबई के केईएम मैडिकल कालेज में नीट पास कर के आए एमबीबीएस के स्टूडैंट्स का कहना था कि नीट और स्टेट बोर्ड के सिलेबस में काफी अंतर है. नीट के प्रश्नपत्र में जहां 90 प्रतिशत सीबीएसई बोर्ड का विषय रहता है, तो वहीं

10 प्रतिशत स्टेट बोर्ड का होता है. ऐसे में स्टेट बोर्ड के छात्रों को बिना कोचिंग क्लास के यह परीक्षा पास करना बहुत कठिन है. परीक्षा में केवल पास होना ही माने नहीं रखता, बल्कि केईएम जैसे बड़े मैडिकल कालेज में ऐडमिशन के लिए नीट में अधिकतम स्कोर प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण है, जो बिना कोचिंग के संभव नहीं है. यही वजह है कि देश के हर कोने में बड़ी संख्या में कोचिंग सैंटर फलफूल रहे हैं.

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महाराष्ट्र में कोचिंग सैंटर चला रहे एक प्रोफैसर का कहना है कि राज्य में इन क्लासेस की फीस क्षेत्र के अनुसार 1 लाख से ले कर 5 लाख रुपए है, जो मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों के लिए बहुत ज्यादा है. यह समस्या ग्रामीण इलाकों में और भी गंभीर है, जहां शिक्षकों और बुनियादी ढांचे दोनों की कमी है.

नीट समर्थकों का कहना है कि स्कूल के शिक्षकों को एनसीईआरटी का सिलेबस पढ़ाना चाहिए जिस से बच्चों को इस तरह के एग्जाम्स देने में आसानी हो. परंतु हम सब जानते हैं कि सरकारी स्कूलों में ज्यादातर शिक्षक नदारद रहते हैं. ऐसे में उन से अतिरिक्त जिम्मेदारी उठाने की अपेक्षा अविश्वसनीय है. परिणामस्वरूप, 40 प्रतिशत शहरी छात्रों की तुलना में केवल 1-2 प्रतिशत छात्र ग्रामीण क्षेत्रों से होंगे जो नीट पास कर पाते हैं. इस वजह से मैडिकल की पढ़ाई कर रहे शहर के छात्र ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टिस नहीं करना चाहते हैं. यहां तक कि सरकारी कालेजों से पढ़े डाक्टर, जो ग्रामीण इलाकों में प्रैक्टिस करने के लिए बाध्य हैं, भी शहर में आने के मौके तलाशते हैं.

शिक्षा व्यवस्था में जातिवाद की जड़ें

भारत में जाति व्यवस्था लगभग सभी सरकारी प्रक्रियाओं का एक अभिन्न अंग है और इस की जड़ें भारतीय शिक्षा प्रणाली में गहराई तक फैली हुई हैं. ऐसे में जातिगत भेदभाव स्कूल से ही शुरू हो जाता है. देश के कई राज्यों में जातिवाद की पकड़ मजबूत है. जहां ऊंची जाति के लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते हैं, तो वहीं पिछड़ी जातियों के लिए विकास का मतलब अपने बच्चों को निजी संस्थानों में भेजना होता है. यद्यपि नीट समर्थकों की मानें तो नीट के अंतर्गत आरक्षण में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि नीट ऊंची जातियों और वर्ग के पक्ष में है. इतना ही नहीं, नीट शिक्षा का बेहतर स्तर भी सुनिश्चित नहीं करता है. ऐसे में इसे एकतरफा लागू करना अनुचित है जब तक कि सभी को समान स्तर की शिक्षा न दी जाए.

शहर और गांव में भेदभाव

2017 में सीबीएसई ने देश के 103 बड़े शहरों में 1,921 परीक्षा केंद्रों पर नीट की परीक्षा आयोजित की थी, जहां स्टूडैंट्स को अपनी सुविधानुसार राज्य के 3 केंद्र चुनने थे. उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र में मुंबई, ठाणे, औरंगाबाद, पुणे, नासिक, नागपुर में परीक्षा केंद्र थे जहां नीट आयोजित किया गया था, जिस में से कोई 3 केंद्र चुनने थे. लेकिन सीबीएसई की तरफ से यह सुनिश्चित नहीं किया जाता है कि परीक्षा का स्थान कहां होगा, जिस के कारण दूरदराज के छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.

2017 में नीट के सैंटर कम होने से दूरदराज के ग्रामीण विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने में आर्थिक व मानसिक रूप से कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था. इसलिए यहां के छात्र संगठनों ने परीक्षा केंद्रों की संख्या बढ़ाने की मांग की थी.

2017 में नीट अनिवार्य करने से पहले, प्री मैडिकल एग्जाम टैस्ट के रूप में एमएचसीईटी को डिविजनल अथौरिटी द्वारा राज्य के सभी 36 जिलों में आयोजित किया जाता था. इस के मुंबई जैसे शहर में 11, ठाणे में 13 और अधिकतम सैंटर चंद्रपुर में 45, गढ़चिरौली में 46 थे. इसलिए बच्चों को सैंटर को ले कर कोई परेशानी नहीं होती थी.

प्राइवेट कालेजों की आसमान छूती फीस

सरकारी और प्राइवेट कालेजों में अपनी सीट सुरक्षित करने के लिए स्टूडैंट्स को नीट पास करना किसी युद्ध लड़ने से कम नहीं है. महाराष्ट्र में 48 सरकारी मैडिकल कालेज हैं जिन में कुल 6,245 सीटें हैं.

मुंबई के जेजे हौस्पिटल के डा. योगेंद्र यादव के अनुसार, सरकारी मैडिकल कालेजों में एमबीबीएस की कुल फीस ढाई लाख रुपए है तो वहीं नवी मुंबई के डीवाई पाटिल जैसे प्राइवेट मैडिकल कालेज में 23 लाख रुपए वार्षिक है. महाराष्ट्र के ज्यादातर प्राइवेट कालेजों की फीस 16 लाख से 23 लाख रुपए वार्षिक है. ऐसे में यदि गरीब और पिछड़े वर्ग के छात्र नीट की मैरिट लिस्ट में जगह हासिल कर सरकारी मैडिकल कालेज में सीट नहीं प्राप्त करते हैं तो उन को डाक्टर बनने के लिए प्राइवेट कालेजों में ऐडमिशन पाना लगभग सपने के समान है क्योंकि इन कालेजों में आसमान छूती फीस चुका पाना उन के लिए असंभव है.

वहीं केरल सरकार ने सभी मैडिकल कालेजों के लिए एकसमान फीस स्ट्रक्चर तय किया था. लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की मैडिकल फीस 5 लाख रुपए की एक निश्चित सीमा खारिज कर दी और प्राइवेट मैडिकल कालेजों को 11 लाख रुपए वार्षिक फीस तय करने का आदेश दिया. यह आदेश ऐडमिशन प्रोसैस समाप्त होने के 3 दिन पहले आया, जबकि ज्यादातर कालेजों ने एकसमान फीस स्ट्रक्चर के तहत 5 लाख रुपए ही फीस ली और शेष 6 लाख रुपए की बैंक गारंटी दी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केरल

के मुख्यमंत्री ने कहा था, ‘‘मैडिकल के एकसमान फीस स्ट्रक्चर को हटाना हमारी मजबूरी है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मैडिकल के लिए एकमात्र प्रवेश परीक्षा नीट अनिवार्य करने के बाद सरकार एकसमान फीस स्ट्रक्चर को जारी नहीं रख सकती है. यह शिक्षा के क्षेत्र में राज्य की स्वायत्तता पर अतिक्रमण है. सरकार उन छात्रों और उन के परिवारों के साथ है जो इस फैसले से पीडि़त हैं.’’

परिणामस्वरूप, डाक्टर बनने योग्य कई छात्रों ने अपना रास्ता बदल लिया है. बीडीएस में ऐडमिशन के पहले राउंड में सीट सुरक्षित करने वाली छात्रा लिंडा एकसमान फीस स्ट्रक्चर के तहत सैल्फ फाइनैंसिंग कालेज में एमबीबीएस के लिए ऐडमिशन लेने वाली थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उस ने यह विचार छोड़ दिया, क्योंकि लिंडा जैसे मध्यवर्गीय स्टूडैंट्स इतनी अधिक फीस की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं. आज डाक्टर बनने के लिए पैसारूपी ताकत की जरूरत है और यही वजह है कि डाक्टर बनने के बाद ये लोग समाज की सेवा करने के बजाय पैसा कमाने को ज्यादा महत्त्व देते हैं.

दक्षिण भारतीय राज्यों का विरोध

अब तक तमिलनाडु में 10वीं के मार्क्स के आधार पर ही मैडिकल में ऐडमिशन हो रहा था, जिस से वहां के गांव और छोटे शहरों के छात्रों को मैडिकल की पढ़ाई करना आसान होता था. यही वजह है कि तमिलनाडु शुरू से ही नीट के पक्ष में नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने भी तमिलनाडु को नीट की परीक्षा से बाहर रखा था, लेकिन नीट को ले कर तमिलनाडु और केंद्र सरकार की लड़ाई में आखिरकार केंद्र की जीत हुई और 2017 से तमिलनाडु में अनिवार्यरूप से नीट को लागू कर दिया गया.

मई 2013 में पहली बार जब औल इंडिया प्री मैडिकल टैस्ट की जगह नीट को आयोजित किया गया, तब तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल ने स्टेट एजुकेशन बोर्ड को खतरा बताते हुए इस का कड़ा विरोध किया था. जुलाई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नीट को असंवैधानिक करार दे दिया. इतना ही नहीं, नीट को राज्य में दोबारा शुरू करने की केंद्र की घोषणा के बाद फरवरी 2016 में मुख्यमंत्री जयललिता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर नीट के खिलाफ कड़े विरोध की चेतावनी दी थी. पत्र में उन्होंने लिखा था कि नीट लागू करना संघवाद का उल्लंघन और तमिलनाडु के छात्रों के प्रति अन्याय है, क्योंकि नैशनल एलिजिबिलिटी एग्जाम यानी नीट के लिए सीबीएसई के छात्रों जैसी ट्रेनिंग स्टेट बोर्ड के छात्रों को नहीं दी जाती है.

जयललिता की आपत्ति को नजरअंदाज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एमबीबीएस और बीडीएस कोर्सेस में ऐडमिशन के लिए नीट अनिवार्य कर दिया, जिस के सामने स्टेट बोर्ड के परिणाम बेमानी रह गए. 24 मई, 2017 को मद्रास होईकोर्ट ने सीबीएसई के खिलाफ नीट के परिणाम पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया. राज्य सरकार ने तमिलनाडु के विद्यार्थियों के लिए विशेष छूट दिए जाने का अनुरोध करते हुए केंद्र सरकार से संपर्क किया और इस के लिए एक अध्यादेश भेजा, लेकिन वह भी मंजूरी हासिल करने में विफल रही. 27 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार तमिलनाडु में मैडिकल में ऐडमिशन के लिए नीट को अनिवार्य कर दिया गया.

शिक्षा नीति पर पुनर्विचार

हम भारत की विविधता और एकता पर गर्व करते हैं, लेकिन नीट शिक्षा बोर्ड और उन में पढ़ रहे शहरी व ग्रामीण छात्रों के बीच एक बड़ी दरार पैदा कर रहा है. शिक्षाविदों के अनुसार, नीट सीबीएसई की विचारधारा रखने वालों के लिए फायदेमंद है जहां तक अनीता जैसे छात्र नहीं पहुंच सकते हैं.

यह परीक्षा पूरी तरह से इंगलिश में होती है जिस को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित किया जाता है. एनडीए की सरकार हो या यूपीए की, आजकल भारत में चलन बन गया है कि पहले किसी विचार को जनता पर थोप दिया जाए, फिर जनता को खुद इस से लड़ने व समझौता करने दिया जाए. ऐसे में कभीकभी देश की सब से बड़ी अदालत भी जमीनी हकीकत को समझने में विफल हो जाती है और सरकार के पक्ष में फैसला ले लेती है, जबकि अनीता जैसे गरीब और समाज में हाशिये पर रहने वाले लोगों की आवाज को सब से अधिक सुरक्षा की आवश्यकता है.

देश की पूरी शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि देश की शिक्षा नीति केवल अमीर, शहरी और समतावादी वर्ग के पक्ष में न हो कर, ग्रामीण, क्षेत्रीय भाषा और उन की जरूरतों को भी पूरा करे.

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