एक राष्ट्र, एक परीक्षा’ जैसी दार्शनिक विचारधारा को ध्यान में रखते हुए नैशनल एलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट यानी नीट लागू किया गया. यह एक ऐसा बाहुबली एग्जाम है जिस का आयोजन देश के उन सभी मैडिकल और डैंटल कालेजों में ऐडमिशन के लिए 2017 से अनिवार्य कर दिया गया जो मैडिकल और डैंटल काउंसिल औफ इंडिया द्वारा संचालित हैं. इस परीक्षा का उद्देश्य राज्यस्तरीय और प्राइवेट कालेजों द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं से विद्यार्थियों को मुक्त करना और ऐडमिशन प्रोसैस में समानता लाना है, लेकिन आज के हालात देखें, तो नीट ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों, गरीब, पिछड़ी जातियों और स्टेट बोर्ड के छात्रों के पक्ष में नहीं है.

शुरू से ही नीट स्टूडैंट्स और उन के पेरैंट्स के लिए सिरदर्द बना हुआ है. केरल में कई स्टूडैंट्स को परीक्षा केंद्रों पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. कन्नूर जिले में एक छात्रा को एग्जाम हौल में जाने से पहले इनरवियर निकालना पड़ा था, क्योंकि उस में मैटल हुक लगा था जो मैटल डिटैक्टर से पता चला. इस पर आपत्ति जताते हुए केरल के एक सांसद पी के श्रीमाधी ने कहा था, ‘‘परीक्षा केंद्रों पर छात्राओं के कपड़े उतरवाना बेहद चौंकाने वाली व अमानवीय घटना है.’’

अगस्त 2017 में तमिलनाडु के त्रिची जिले के एक कुली की 17 वर्षीया बेटी अनीता ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे मैडिकल में ऐडमिशन नहीं मिल सका. अनीता ने नीट में 700 में से मात्र 86 मार्क्स प्राप्त किए थे जो मैडिकल की पढ़ाई के लिए पर्याप्त नहीं थे, जबकि स्टेट बोर्ड के परिणाम के अनुसार, अनीता एक मेधावी और प्रतिभाशाली छात्रा थी, 12वीं में उसे कुल 1,200 में से 1,176 मार्क्स मिले थे. फिजिक्स और मैथ्स में 100 प्रतिशत के साथ उस ने कुल 98 प्रतिशत मार्क्स प्राप्त किए थे.

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