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हौलीवुड फिल्मों में काम करना चाहती हैं काजोल

बौलीवुड अभिनेत्री काजोल ने हाल ही में ‘इन्क्रेडिबल्स 2’ के हिंदी संस्करण में एक किरदार के लिए अपनी आवाज दी है. यह फिल्म 22 जून को रिलीज होनी है. रिलीज के कुछ दिन पहले काजोल ने अपनी कुछ ख्वाहिशे जाहिर की हैं. अदाकारा का कहना है कि वह बौलीवुड में भी कोई ऐसा किरदार निभाना चाहेंगी क्योंकि वह खुद भी इस वर्ग की फिल्मों की प्रशंसक हैं.

डिज्नी पिक्सर के ‘इनक्रेडिबल्स 2’ के हिंदी संस्करण की डबिंग का हिस्सा बनीं अभिनेत्री काजोल ने कहा कि उनके बच्चे इस फिल्म में उनकी डबिंग को लेकर उत्साहित हैं. और जब उन्हें इस बात का पता चला कि स्क्रिनिंग के दौरान वह इस फिल्म को देखने वाले पहले इंसान होंगे, तो यह सुनकर वह और भी उत्साहित हैं.

भारत में महिला सुपर हीरो पर फिल्म बनाए जाने के सवाल पर काजोल ने कहा, ‘जी हां, मुझे वास्तव में लगता है कि यह अच्छा रहेगा. मैं यकीनन एक सुपरहीरो का किरदार निभाना चाहूंगी, लेकिन दिक्कत यह है कि मुझे नहीं पता कि मेरी सुपर पावर क्या होगी…. इसके कई सारे विकल्प मौजूद हैं.’

इसके अलावा वह पश्चिम की दुनिया में संभावनाओं को तलाशने और हौलीवुड फिल्मों में काम करने के लिए तैयार हैं. काजोल ने कहा, “मैं हौलीवुड फिल्म में काम करना पसंद करूंगी. कोई विशेष शैली ध्यान में नहीं है और यह निर्भर करता है कि पटकथा मुझे आकर्षित करती है या नहीं.”

अफगानिस्तान सीरीज के बाद सलेक्टर्स से करुंगा बात : अजिंक्य रहाणे

सीमित ओवरों के प्रारूपों में टीम में जगह पक्की नहीं होने के कारण भारत के कार्यवाहक टेस्ट कप्तान अंजिक्य रहाणे ने कहा कि वह इंग्लैंड में होने वाली टेस्ट सीरीज की अपनी तैयारियों के संदर्भ में स्पष्ट तस्वीर पता करने लिए राष्ट्रीय चयनकर्ताओं से बात करेंगे. अफगानिस्तान के खिलाफ कल (14 जून) से शुरू होने वाले एकमात्र टेस्ट मैच के बाद रहाणे को फिलहाल डेढ़ महीने तक खेलने का मौका नहीं मिल पाएगा क्योंकि उन्हें सीमित ओवरों की टीम से बाहर कर दिया गया है. इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज एक अगस्त से शुरू होगी लेकिन इससे पहले तीन जुलाई से तीन टी-20 और इतने ही वनडे मैचों की सीरीज खेली जाएगी.

अजिंक्य रहाणे से पूछा गया कि अगले डेढ़ महीने में वह क्या करेंगे, उन्होंने कहा, ‘‘देखिए, मैं नहीं जानता कि इस टेस्ट मैच के बाद क्या होने जा रहा है. लेकिन हां, मैं चयनकर्ताओं से जरूर बात करूंगा.’’ ऐसी चर्चा है कि वह भारत ए की तरफ से कुछ मैचों में खेल सकते हैं लेकिन अभी तक इसको लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.

रहाणे ने कहा, ‘‘लेकिन मैं मुंबई में अपनी तैयारियां शुरू कर दूंगा जैसा कि मैं हमेशा बांद्रा कुर्ला काम्पलेक्स (बीकेसी) में करता रहा हूं. प्रत्येक सीरीज से पहले मैं अच्छी तैयारी करता हूं लेकिन अभी मेरा ध्यान इस टेस्ट मैच पर है. हर टेस्ट मैच मायने रखता है और हमें यह मैच जीतना होगा.’’

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अफगानिस्तान का भले ही यह पहला टेस्ट मैच हो, लेकिन रहाणे ने किसी भी टेस्ट टीम के खिलाफ ‘निर्ममता’ दिखाने की जरुरत पर जोर दिया भले ही वह उसका पदार्पण मैच ही क्यों नहीं हो. उन्होंने कहा, ‘‘हम अफगानिस्तान को हल्के से नहीं ले रहे हैं. उनकी टीम बहुत अच्छी है. उनके पास अच्छे गेंदबाज हैं.’’

रहाणे ने कहा, ‘‘एक टीम के तौर पर हम कुछ भी तय नहीं मानकर नहीं चल सकते क्योंकि क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है. हमें मैदान पर निर्ममता दिखानी होगी. हां एक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर हम उनका सम्मान करते है लेकिन हमारे लिये यह महत्वपूर्ण है कि हम मैदान पर उतरकर 100 प्रतिशत से अधिक योगदान दें. हमें निर्मम होने की जरूरत है.’’

दिनेश कार्तिक की तरह रहाणे ने अफगानिस्तान के कप्तान अशगर स्टेनिकजई के इस बयान को तवज्जो नहीं दी कि उनके स्पिनर भारत के रविचंद्रन अश्विन, रविंद्र जडेजा और कुलदीप यादव से बेहतर हैं. रहाणे ने कहा, ‘‘प्रत्येक सदस्य यह विश्वास करना चाहेगा कि उनकी टीम अच्छी है. आंकड़ों के बारे में हम सभी जानते हैं लेकिन हम आंकड़ों पर ध्यान नहीं देना चाहते हैं. अश्विन, जडेजा और कुलदीप अनुभवी स्पिनर है. किसी भी दिन आपकी मानसिकता अंतर पैदा करती है.’’

रहाणे ने कहा कि पिछले तीन दिन लंबे प्रारूप के अनुरूप खुद को ढालने के लिहाज से महत्वपूर्ण रहे. उन्होंने कहा, ‘‘बेंगलुरू में हमने दो अभ्यास सत्रों में हिस्सा लिया और ये शानदार रहे. आईपीएल के बाद यह महत्वपूर्ण था कि हम अपनी मानसिकता बदलें. हम अफगानिस्तान को हल्के से नहीं ले रहे हैं.’’

तो ‘संजू’ की स्पेशल स्क्रीनिंग में नहीं जाएंगे संजय दत्त

बौलीवुड अभिनेता संजय दत्त ने अपनी आने वाली बायोपिक फिल्म ‘संजू’ की रिलीज से कुछ दिन पहले एक बड़ा फैसला लिया है. संजय दत्त ने फैसला लिया है कि वह अपनी ही जिंदगी पर बनी इस फिल्म को नहीं देखेंगे. अरे अरे घबराइए नहीं संजय ने ये फैसला सिर्फ तब तक के लिए ही लिया है जब तक उनकी यह फिल्म सिनेमाहाल में रिलीज नहीं हो जाती. उन्होंने फिल्म के निर्देशक राजकुमार हिरानी से गुजारिश की है कि उनके लिए फिल्म ‘संजू’ की स्पेशल स्क्रीनिंग ना रखी जाए, क्योंकि वह इस फिल्म को तभी जेखेंगे जब यह फिल्म सिनेमाघरों में आ जाएगी.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिल्म के ट्रेलर को देखने के बाद संजय दत्त ने अपनी बायोपिक की स्पेशल स्क्रीनिंग से दूरी बनाने का फैसला लिया. ट्रेलर में परेश रावल और रणबीर कपूर का सीन देखकर वह भावुक हो गए. फिल्म में परेश रावल सुनील दत्त का किरदार निभा रहे हैं. संजय दत्त से जुड़े करीबी सूत्रों ने बताया कि आम दर्शक के लिए यह भले ही एक फिल्म हो. मगर संजय दत्त के लिए यह बीते लम्हों को दोबारा जीने का मौका है. वह अपनी बायोपिक में माता-पिता के साथ अपने रिश्ते को देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक हैं. लेकिन वह एक दर्शक की तरह थियेटर में इस फिल्म को देखना चाहते हैं.

बता दें कि संजय दत्त ने फिल्म ‘संजू’ की स्क्रिप्ट तक नहीं पढ़ी है और ना ही इसके निर्माण में कोई दखलअंदाजी की है. फिल्म ‘संजू’ की स्क्रिप्ट लिखने से पहले राजकुमार हिरानी ने संजय दत्त से पूरे 200 घंटे बातचीत की थी. इसके बाद अभिजात जोशी के साथ मिलकर हिरानी ने ‘संजू’ की पटकथा तैयार की. निर्देशन और पटकथा लिखने के अलावा हिरानी इस फिल्म के सह निर्माता भी हैं. उन्होंने विधु विनोद चोपड़ा के साथ मिलकर फिल्म को को-प्रोड्यूस किया है.

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गौरतलब है कि फिल्म ‘संजू’ रिलीज से पहले विवादों में भी घिर गई है. फिल्म में जेल के बैरक में टौयलेट लीकेज वाले सीन का विरोध करते हुए ‘संघर्ष’ नामक संस्था ने सेंसर बोर्ड से इसकी शिकायत की है. फिल्म ‘संजू’ में रणबीर कपूर ने लीड रोल किया है. इसके अलावा, मनीषा कोइराला, सोनम कपूर,दीया मिर्जा, करिश्मा तन्ना, विकी कौशल और अनुष्का शर्मा ने भी अहम किरदार निभाए हैं. फिल्म में रणबीर कपूर द्वारा फिल्माए गए संजय दत्त के किरदार को काफी तारीफ मिली है और यह भी एक खास वजह है इस फिल्म के चर्चा में रहने का.

सोलह श्रृंगार वाला बाबा : लोगों को ऐसे ठगता था बाबा

‘‘कुलदीप सिंह, तुम्हारा भांडा फूट चुका है.’’ पुलिस अफसर ने कड़क लहजे में कहा, ‘‘हम तुम्हें युवराज सिंह को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार करने आए हैं.’’

‘‘भक्त, तुम भोले हो. तुम्हें हमारे बारे में किसी ने गलत सूचना दी है.’’ कुलदीप सिंह ने पुलिस अफसर को अपनी मीठी बातों से फुसलाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘हम तो माताजी हैं, माताजी मतलब मातेश्वरी.’’

‘‘न तो मैं तुम्हारा कोई भक्त हूं और न तुम कोई मातेश्वरी हो.’’ पुलिस अफसर ने सख्ती से कुलदीप सिंह को बांह पकड़ कर उठाते हुए कहा, ‘‘औरत का वेश धारण कर के तुम लोगों को बेवकूफ बनाते हो, खुद को लिपस्टिक बाबा और माताजी बताते हो.’’

‘‘साहब, मेरी बात तो सुनो,’’ कुलदीप सिंह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘मैं ने कोई अपराध नहीं किया है. मुझे थाने मत ले जाओ, मेरी सारी इज्जत खराब हो जाएगी. हजारों लोग मेरे भक्त और अनुयाई हैं. वे मेरे बारे में बुराभला सोचेंगे.’’

‘‘अब ज्यादा नाटक करने की जरूरत नहीं है. चुपचाप चल कर बाहर खड़ी पुलिस की गाड़ी में बैठ जाओ, वरना हमें तुम्हारे जैसे पाखंडियों को ठीक करना आता है.’’ पुलिस अफसर ने उसे कमरे से बाहर निकालते हुए कहा.

कुलदीप सिंह ने खुद को देवी का रूप बता कर पुलिस टीम को अपने प्रभाव में लेने की काफी कोशिश की, लेकिन दाल गलती नहीं देख उस ने पुलिस के साथ जाने में ही भलाई समझी.

वह सिर नीचा कर अपने घर जय मां शक्ति पावन धाम से बाहर निकला. बाहर पुलिस की कई गाडि़यां खड़ी थीं. पुलिस टीम के कुछ लोग उन गाडि़यों में बैठे थे और कुछ हथियारबंद पुलिस वाले कुलदीप सिंह के मकान को घेरे खड़े थे.

अपने घर से बाहर आ कर कुलदीप सिंह चुपचाप पुलिस की एक गाड़ी में बैठ गया. पुलिस की गाडि़यां उसे ले कर सीधे कोतवाली की ओर रवाना हो गईं. 27 मार्च की दोपहर को पुलिस ने कुलदीप सिंह को राजस्थान के झालावाड़ शहर में उस के मकान से पकड़ा था.

पुलिस अधिकारी कुलदीप सिंह को ले कर सीधे कोतवाली थाने आ गए. कोतवाली में डीएसपी छगन सिंह राठौड़ और अन्य पुलिस अधिकारियों ने कुलदीप सिंह से पूछताछ की. इस के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस का मोबाइल भी जब्त कर लिया.

पुलिस द्वारा कुलदीप सिंह उर्फ मातेश्वरी को उस के घर से पकड़ कर ले जाने की बात पूरे शहर में फैल गई. लोग तरहतरह की चर्चा करने लगे.

दरअसल, चर्चा का कारण यह था कि कुलदीप सिंह शहर का जानापहचाना शख्स था. वह पिछले कई सालों से तंत्रमंत्र से लोगों के कष्टों का निवारण करने का दावा करता आ रहा था. खुद को वह मातेश्वरी के रूप में प्रचारित करता था. अधिकांश समय वह औरत का वेश धारण कर के कथित तंत्रमंत्र करता था. उस ने अपने घर का नाम भी मां शक्ति पावन धाम लिखवा रखा था. कुछ अनुयाई उसे लिपस्टिक बाबा भी कहते थे. उस के अनुयायियों में पुरुषों के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं.

कुलदीप सिंह कौन था, उस के बारे में जानने से पहले यह जान लें कि उसे पुलिस ने गिरफ्तार क्यों किया.

झालावाड़ शहर में पंचमुखी बालाजी के सामने रहने वाले सोहन सिंह राजपूत जयपुर बिजली वितरण निगम में कर्मचारी हैं. सोहन सिंह का छोटा सा परिवार था. पत्नी शीला सिंह, बड़ी बेटी और छोटा बेटा.

बेटी की उन्होंने शादी कर दी थी. एकलौता बेटा युवराज सिंह ही उन के भविष्य का सहारा था. युवराज होनहार था. उस ने बीसीए कंपलीट कर ली थी. इस के बाद वह जयपुर से एमसीए करने की तैयारी में जुटा था.

सोहन सिंह चाहते थे कि बेटे की शादी कर दी जाए. युवराज 23 साल का हो गया था. सोहन सिंह बेटे के विवाह के लिए ऐसी लड़की तलाश रहे थे, जो उन के परिवार को भी संभाल सके और युवराज के साथ उस के मातापिता की भी सेवा कर सके. सोहन सिंह ने युवराज के लिए 2-4 रिश्ते देखे भी थे, लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं हुईं कि रिश्ता तय नहीं हो सका.

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इस बीच ऐसा कुछ हो गया, जिस की उम्मीद न सोहन सिंह को थी और अन्य किसी घरवाले को. युवराज ने फांसी लगा ली. करीब 17-18 घंटे तक जीवन और मौत से संघर्ष करते हुए वह परिवार वालों को बिलखता छोड़ गया. इस घटना ने सोहन सिंह की सारी खुशियां छीन लीं.

एकलौते बेटे की मौत ने मजबूत कलेजे वाले सोहन सिंह को हिला दिया. वह जानते थे कि युवराज कमजोर दिल का नहीं था, जरूर उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया होगा. सोहन सिंह को यह भी पता था कि युवराज कथित तांत्रिक कुलदीप के चंगुल में फंसा हुआ था. कुलदीप सिंह ने युवराज का जीवन नरक बना दिया था.

घर का चिराग बुझने पर सोहन सिंह ने तय किया कि वे पाखंडी कुलदीप सिंह की असलियत सब के सामने उजागर कर के रहेंगे. इस के बाद सोहन सिंह ने मार्च के पहले सप्ताह में झालावाड़ एसपी को एक प्रार्थनापत्र दिया था. एसपी ने सोहन सिंह का वह प्रार्थनापत्र मुकदमा दर्ज कर ने और जांच के लिए झालावाड़ कोतवाली भेज दिया.

कोतवाली में 14 मार्च को सोहन सिंह के प्रार्थनापत्र पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया. प्रार्थनापत्र में सोहन सिंह ने बताया कि उस का 23 साल का एकलौता बेटा युवराज सिंह उर्फ बाबू 19 फरवरी को शाम करीब 7 बज कर 10 मिनट पर बाहर से घर आया.

इस के करीब 10 मिनट बाद ही उस ने घर में फांसी लगा ली. हमें युवराज के फांसी लगाने की घटना का तुरंत पता चल गया. इस पर हम उसे अस्पताल ले गए. दूसरे दिन 20 फरवरी को दोपहर करीब डेढ़ बजे अस्पताल के आईसीयू में इलाज के दौरान उस ने दम तोड़ दिया.

उस समय अस्पताल में सोहन सिंह के परिवार वाले और कुलदीप सिंह के घर में बने मंदिर के 15-20 सेवादार मौजूद थे. एकलौते वारिस की मौत हो जाने पर परिवार के लोग होशोहवास खो बैठे थे. इस का फायदा उठा कर कुलदीप सिंह और मंदिर के सेवादारों ने हमारे परिवार की महिलाओं और अन्य घर वालों पर युवराज सिंह के शव का पोस्टमार्टम न करवाने का दबाव बनाया. इसी वजह से युवराज सिंह के शव का पोस्टमार्टम और थाने में उसी समय रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई गई.

सोहन सिंह ने रिपोर्ट में बताया कि कुलदीप सिंह काफी समय से खुद को माताजी के रूप में देवी बताता है और जादूटोना, तंत्रमंत्र व वशीकरण आदि तांत्रिक क्रियाएं करता है.

रिपोर्ट में बताया गया कि युवराज सिंह पिछले करीब 6 साल से कुलदीप सिंह के गोदाम की तलाई स्थित मंदिररूपी मकान पर जाया करता था. वह कई बार कुलदीप सिंह के घर सो भी जाता था. कुलदीप सिंह अपने मोबाइल से मेरे बेटे युवराज सिंह के वाट्सऐप पर अश्लील मैसेज भेजता था. कभीकभी वह युवराज को रात को बुला कर उस के साथ अश्लील हरकतें और अप्राकृतिक कृत्य भी करता था.

सोहन सिंह जब भी बेटे युवराज की शादी के लिए लड़की देखने जाते तो कुलदीप सिंह घर वालों को भ्रमित करता और युवराज को भी शादी नहीं करने के लिए प्रेरित करता था.

सोहन सिंह ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कुलदीप सिंह के घर पर बने मंदिर में जाने वाले अधिकतर लड़केलड़कियों ने बताया है कि कुलदीप सिंह दीक्षा देने के बहाने अश्लील हरकतें और अप्राकृतिक कृत्य करने का दबाव बनाता था. मोबाइल पर अश्लील मैसेज भेजता था, मंदिर में आने वाले लड़केलड़कियां उस का विरोध करते तो वह उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त करता और मारपीट भी करता था. साथ ही लड़कियों को बदनाम करने की धमकी भी देता था.

सोहन सिंह ने अपने घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज पुलिस को देते हुए रिपोर्ट में बताया कि युवराज 19 फरवरी की शाम को जब घर पर आया तो मानसिक रूप से परेशान और घबराया हुआ दिखाई दे रहा था.

बाद में कुलदीप सिंह के घर पर बने मंदिर में आने वाले लोगों से पता चला कि युवराज उस दिन कुलदीप सिंह के साथ ही था. कुलदीप सिंह ने उस दिन मंदिर के सदस्यों के सामने युवराज सिंह के साथ गालीगलौज व मारपीट की थी और कहा था कि तू कल मरता है तो आज मर जा, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

रिपोर्ट में सोहन सिंह ने इस बात का जिक्र भी किया था कि 19 मार्च को युवराज के फांसी लगाने के बाद जब हम उसे अस्पताल ले गए थे तो वहां मेरे भाई खेमराज सिंह के सामने मोहित गुर्जर ने युवराज का मोबाइल, पर्स, चेन, कड़ा व अन्य चीजें निकाली थीं.

मेरे भाई खेमराज ने युवराज की ये चीजें अस्पताल में मौजूद युवराज की मां को देने को कहा था, लेकिन रात साढ़े 8 बजे से रात डेढ़ बजे तक वे सभी चीजें मोहित के पास ही रहीं. इस बीच कुलदीप सिंह, अभय सिंह, अमित, सत्यनारायण, भानू जांगिड़ वगैरह अस्पताल आए थे.

उन्होंने युवराज के मोबाइल की काल डिटेल्स, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम आदि का डेटा खत्म कर दिया था. इस के अलावा उसी रात हमारे घर की सीसीटीवी फुटेज में कुलदीप सिंह की बहन रानू और मंदिर के सदस्यों का युवराज के फांसी लगाने वाले कमरे में जाने का पता चला.

इस से यह संदेह है कि इन्होंने युवराज का सुसाइड नोट गायब कर दिया. झालावाड़ कोतवाली में सोहन सिंह के प्रार्थनापत्र पर 5 लोगों तांत्रिक कुलदीप सिंह राजपूत, अभय सिंह राजपूत, सत्यनारायण, भानू जांगिड़ और अमित के खिलाफ भादंसं की धारा 306 एवं 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

चूंकि घटना 19 फरवरी की थी और पुलिस में रिपोर्ट 14 मार्च को दर्ज हुई थी, इसलिए आरोपियों की ओर से अधिकांश सबूत नष्ट किए जाने की आशंका थी. पुलिस ने इस की जांचपड़ताल शुरू कर दी.

इस बीच युवराज के घर वालों और समाज के लोगों ने अपने हाथों में तख्तियां ले कर न्याय दिलाने की मांग की. इन में युवराज के पिता सोहन सिंह और उन के परिवार के अलावा समाज की महिलाएं भी शामिल हुईं. इन लोगों ने तांत्रिक कुलदीप सिंह और उस के साथियों पर युवराज को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए पुलिस की ओर से कोई काररवाई नहीं करने पर विरोध जताया.

दूसरी ओर 19 मार्च को जय मां शक्ति पावन धाम से जुड़े कुलदीप सिंह, अभय सिंह सिसोदिया व सत्यप्रकाश शर्मा ने एसपी को परिवाद दे कर सोहन सिंह की ओर से दर्ज कराई गई रिपोर्ट को मिथ्या और भ्रामक बताया. उन्होंने युवराज की आत्महत्या मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की.

22 मार्च को विभिन्न संगठनों ने झालावाड़ शहर में रैली निकाल कर प्रदर्शन किया और मिनी सचिवालय पहुंच कर जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया. इस में आरोपियों के खिलाफ काररवाई की मांग की गई. रैली में हाड़ौती महासभा अध्यक्ष तेज सिंह हाड़ा, बारां से मदनमोहन, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के नंद सिंह राठौड़, करणी सेना की अनीता झाला, महेश हाड़ा, नारायण लाल, नारायण राठौड़, श्याम राठौड़, सुनील राठौड़ सहित झालावाड़, बूंदी, बारां व कई अन्य शहरों के लोग बड़ी संख्या में शामिल थे.

युवराज की आत्महत्या के मामले में लगातार हो रहे प्रदर्शन और लोगों में आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने अपनी जांचपड़ताल में तेजी ला कर उज्जैन की एक युवती सहित कथित तांत्रिक द्वारा पीडि़त कई लोगों के बयान दर्ज किए.

इन बयानों से इस बात की पुष्टि हो गई कि तांत्रिक कुलदीप सिंह ने 19 फरवरी को युवराज से गालीगलौज और मारपीट कर उसे आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर किया गया.

आवश्यक सबूत जुटाने के बाद पुलिस ने 29 मार्च को तांत्रिक कुलदीप सिंह राजपूत को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया था. तांत्रिक कुलदीप सिंह कौन था, यह जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा.

झालावाड़ शहर में गोदाम की तलाई में रहने वाला कुलदीप सिंह 7-8 साल से तंत्रमंत्र के जरिए लोगों के कष्टों का निवारण करने का दावा करता था. शहर में हजारों लोग उस के अनुयाई बन गए थे. अनुयायियों की ओर से शहर में फ्लेक्स लगा कर तांत्रिक बाबा का प्रचारप्रसार किया जाता था. इस से उस के भक्तों की संख्या बढ़ने लगी थी.

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कुलदीप सिंह खुद को मातेश्वरी और जगदंबा का रूप बताता था. उस ने अपने मकान का नाम जय मां शक्ति पावन धाम रखा हुआ था और घर में ही मंदिर बना रखा था. वह बडे़बड़े बाल रखता था. दिन में भी वह अकसर महिलाओं के कपड़े पहने रहता था.

वह होंठों पर लिपस्टिक लगाता था, इसीलिए कई भक्त उसे लिपस्टिक बाबा के नाम से भी पुकारते थे. नाक में बाली, कान में कुंडल, माथे पर बिंदिया, पैरों में पायल व बिछिया सहित वह महिलाओं के पूरे 16 शृंगार करता था. तांत्रिक बाबा के शृंगार के लिए ब्यूटी पार्लर से महिलाएं आती थीं.

औरत का वेश धारण कर बाबा माता का दरबार लगाता और तंत्रमंत्र करता था. आरोप है कि मंदिर पर आने वाले लोगों पर वह तांत्रिक क्रियाएं करता था. इस से अधिकतर लोग तथाकथित वशीकरण में रहते थे. उस के अनुयायियों में बड़ी संख्या जवान लड़केलड़कियों की थी.

कुलदीप सिंह महिला का वेश धारण कर, 16 शृंगार कर के साल में एक बार गुरुदीक्षा शोभायात्रा निकालता था. शोभायात्रा में उस के अनुयाई शामिल होते थे.

तांत्रिक कुलदीप सिंह ने गुरुदीक्षा देने का कार्यक्रम मई 2010 में शुरू किया था. गुरुदीक्षा का कार्यक्रम अब तक करीब 9 बार हो चुका था. इस कार्यक्रम में अगले साल की दीक्षा की तिथि घोषित कर दी जाती थी ताकि सभी लोगों को पता रहे. इस बीच, एक साल तक गुरुदीक्षा कार्यक्रम का व्यापक प्रचारप्रसार किया जाता था.

आरोप है कि दीक्षा के बहाने वह रात को कमरे में लड़केलड़कियों से अश्लील हरकतें करता था. इस दौरान कोई उस का विरोध करता था तो वह उसे मानसिक रूप से प्रताडि़त कर मारपीट करता था. लड़कियों को बदनाम करने की धमकी देता था. वह कष्टों का निवारण करने और गुरुदीक्षा के नाम पर लोगों से पैसे भी लेता था.

जांचपड़ताल और पूछताछ में कुलदीप सिंह के 3 बैंकों में खाते होने और अनुयायियों के पैसों से करीब साढ़े 4 बीघा जमीन खरीदने का पता चला. यह जमीन उस ने देवरीघटा बिलोनिया गांव के पास खरीदी थी.

इस के लिए उस ने 25-30 अनुयायियों से एकएक लाख रुपए लिए थे और वहां माता का भव्य मंदिर बनाने के बाद सभी को एकएक प्लौट देने का वादा किया था. जमीन की रजिस्ट्री कुलदीप सिंह के खुद के नाम से थी. पुलिस ने कुलदीप के बैंक खाते सील करा दिए.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने तांत्रिक कुलदीप सिंह को 3 दिन के रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने 30 मार्च को उसे अदालत में पेश किया. पुलिस के निवेदन पर अदालत ने उसे फिर 3 दिन के रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया. बाद में 2 अप्रैल को उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

मृतक युवराज के पिता सोहन सिंह ने पुलिस को सबूत के तौर पर एक डायरी सौंपी. तांत्रिक कुलदीप अपने अनुयायियों को इसी तरह की डायरियों के माध्यम से तांत्रिक विद्या सिखाता था. पुलिस ने इस डायरी की बाकायदा जांच की. कुलदीप सिंह के मोबाइल की भी जांच की गई.

4 अप्रैल को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट स्वाति शर्मा ने कुलदीप सिंह की जमानत अरजी खारिज कर दी. मृतक युवराज के पिता फरियादी सोहन सिंह के अधिवक्ता राजेंद्र सिंह झाला ने बताया कि सीजेएम ने अपने आदेश में कहा कि प्रकरण में अनुसंधान चल रहा है. साक्ष्य की विस्तृत विवेचना किए बिना और प्रकरण की गंभीरता तथा इस से समाज पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अभियुक्त कुलदीप सिंह को जमानत का लाभ दिया जाना, न्यायोचित नहीं है.

जेल में न्यायिक अभिरक्षा भुगत रहे तांत्रिक कुलदीप की मुसीबतें खत्म होने के बजाए और बढ़ गई हैं. उस के खिलाफ 13 अप्रैल को एक और मुकदमा झालावाड़ के महिला पुलिस थाने में दर्ज हुआ. अदालती इस्तगासे के माध्यम से झालावाड़ की एक युवती ने कुलदीप सिंह के खिलाफ गलत हरकत और छेड़खानी करने का मुकदमा दर्ज कराया.

इस महिला ने इस्तगासे में बताया कि वह कुलदीप सिंह के मंदिर जय मां शक्ति पावन धाम पर जाती थी. वहां कुलदीप सिंह ने उस पर बुरी आत्मा का प्रभाव बता कर उस का निवारण करने की बात कही. कष्ट निवारण के बहाने कुलदीप सिंह उस युवती को एक व्यक्ति के मकान पर ले गया. वहां उस ने उस युवती को 5-6 अन्य युवतियों के साथ एक कमरे में खुद को बंद कर दिया.

इस के बाद उस युवती की आंखों पर पट्टी बांध कर कहा गया कि अब बुरी आत्मा प्रकट होगी. वह किसी के साथ कोई भी गलत हरकत कर सकती है. इस दौरान तांत्रिक ने काफी डरावनी आवाजें निकालीं.

इस प्रक्रिया के बीच युवती से छेड़खानी एवं गलत हरकतें कीं. युवती के विरोध करने पर तांत्रिक ने धमकी दी कि अगर यह बात किसी को बताई तो वह तंत्र विद्या से उस के परिवार को तबाह कर देगा.

परिवादी युवती के अधिवक्ता राजेंद्र सिंह झाला ने बताया कि 16 अप्रैल को पीडि़ता के बयान अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के समक्ष दर्ज कराए गए.

इस मामले में महिला थाना पुलिस आरोपी तांत्रिक कुलदीप सिंह को 26 अप्रैल को प्रोडक्शन वारंट पर ले कर आई. पूछताछ के बाद उसी दिन उसे अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उसे फिर जेल भेज दिया.

इस मामले की जांच महिला थाने की कृष्ण चंद्रावत कर रही हैं. युवराज को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जांच कोतवाली के सब इंसपेक्टर नैनूराम कर रहे हैं.

तांत्रिक कुलदीप सिंह के खिलाफ दोनों ही मामलों में पीडि़तों की पैरवी कर रहे झालावाड़ के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र सिंह झाला का कहना है कि धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले ऐसे ढोंगी बाबाओं को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

एकलौते बेटे युवराज को खो चुके दुखियारे पिता सोहन सिंह का कहना है कि इस मामले में अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर सख्ती से पूछताछ की जाए तो तांत्रिक के कई अनछुए राज और उजागर हो सकते हैं. न्यायपालिका पर पूरा भरोसा रखने वाले सोहन सिंह कहते हैं कि मेरा बेटा तो चला गया, अब ऐसे पाखंडियों को सजा दिलाना ही उन का मकसद है.

–  कथा पुलिस सूत्रों, युवराज के पिता से की गई बातचीत और दस्तावेजों पर आधारित

यार के लिए पत्नी का वार : जब प्रेमी के चक्कर में फंसी पत्नी

कृष्णा आगरा के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले मधुनगर इलाके में अपने मांबाप और भाई अवनीत के साथ रहता था. इटौरा में उस की स्टील रेलिंग की दुकान थी जो काफी अच्छी चल रही थी. कृष्णा की अभी शादी नहीं हुई थी. उस की शादी के लिए जिला मैनपुरी के कस्बा बेवर की युवती प्रतिभा से बात चल रही थी. कृष्णा ने अपने परिवार के साथ जा कर लड़की देखी तो सब को लड़की पसंद आ गई. देखभाल के बाद शादी की तारीख भी नियत कर दी गई. फिर हंसीखुशी से शादी हो गई.

नई दुलहन को सब ने हाथोंहाथ लिया, लेकिन कृष्णा की मां ने महसूस किया कि दुलहन के चेहरे पर जो खुशी होनी चाहिए थी, वह नहीं है. जबकि कृष्णा बहुत खुश था. मां ने सोचा कि प्रतिभा जब घर में सब से घुलमिल जाएगी तो ठीक हो जाएगी.

हफ्ते भर बाद जब सारे रिश्तेदार अपनेअपने घर चले गए तो प्रतिभा का भाई उसे लेने के लिए आ गया. किसी ने भी इस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया कि प्रतिभा आम लड़कियों की तरह खुश क्यों नहीं है.

वह भाई के साथ पगफेरे के लिए चली गई और 4-6 दिन बाद कृष्णा उसे फिर ले आया. इस के बाद कृष्णा की पुरानी दिनचर्या शुरू हो गई. इसी बीच आगरा की आवासविकास कालोनी का रहने वाला ऋषि कठेरिया उस की दुकान पर आनेजाने लगा. ऋषि ठेके पर मकान बना कर देता था.

धीरेधीरे कृष्णा का ऋषि के साथ व्यापारिक संबंध जुड़ने लगा. ऋषि कृष्णा को स्टील रेलिंग के ठेके दिलवाने लगा.

दूसरी ओर प्रतिभा का व्यवहार परिवार वालों की समझ में नहीं आ रहा था. वह जबतब मायके जाने की जिद करने लगती तो सास उसे समझाती कि शादी के बाद बारबार मायके जाना ठीक नहीं है, ससुराल की जिम्मेदारियां भी संभालनी होती हैं.

एक दिन प्रतिभा ने कृष्णा से कहा कि उसे अपने मांबाप की याद आ रही है, वह अपने मायके जाना चाहती है. इस पर कृष्णा ने कहा कि जब उसे फुरसत मिलेगी, वह उसे छोड़ आएगा.

ठीक उसी समय प्रतिभा के मोबाइल पर किसी का फोन आया तो प्रतिभा ने फोन यह कह कर काट दिया कि वह फिर बात करेगी. लेकिन मायके जाने की बात पर वह अड़ी रही. आखिर कृष्णा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी कर लो, मैं तुम्हें कल तुम्हारे मायके छोड़ आऊंगा.’’

अगले दिन घर वालों की इच्छा के खिलाफ कृष्णा उसे ससुराल ले गया. बस में बैठते ही प्रतिभा का मूड एकदम बदल गया. अब वह काफी खुश थी. शादी के 4 महीने बाद भी कृष्णा अपनी पत्नी के मूड को समझ नहीं पाया था. पर कृष्णा की मां की समझ में यह बात अच्छी तरह आ गई थी कि बहू कुछ तो उन से छिपा रही है.

प्रतिभा ने मायके जाने से पहले फोन द्वारा किसी को खबर तक नहीं दी थी. अत: जब वह मायके पहुंची तो उसे देख कर उस की मां हैरान हो कर बोली, ‘‘अरे दामादजी, आप अचानक ही… फोन कर के खबर तो कर दी होती.’’

इस से पहले कि कृष्णा कुछ कहता प्रतिभा बोली, ‘‘मम्मी, हमारा फोन खराब था, इसलिए खबर नहीं कर पाई.’’

कृष्णा पत्नी की इस बात पर हैरान था कि प्रतिभा मां से झूठ क्यों बोली. उस ने महसूस किया कि उस की सास लक्ष्मी के माथे पर बल पड़े हुए थे.

पत्नी को मायके छोड़ने के बाद कृष्णा जैसे ही आगरा वापस जाने के लिए घर से निकला तो उसे ऋषि दिख गया. उस ने पूछा, ‘‘अरे ऋषि, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मैं गुप्ताजी से मिलने आया हूं.’’ उस ने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘वह रहा गुप्ताजी का घर.’’

‘‘अरे वो तो प्रतिभा के चाचा का घर है.’’ कृष्णा बोला.

‘‘हां, वही गुप्ताजी. मेरे पुराने जानकार हैं.’’ ऋषि ने कहा.

कृष्णा हैरान था. तभी उस ने पूछा, ‘‘तब तो तुम यह भी जानते होगे कि गुप्ताजी के बड़े भाई मेरे ससुर हैं?’’

‘‘हांहां जानता हूं, प्रतिभा उन की ही तो बेटी है.’’ ऋषि ने लापरवाही से कहा.

‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे पहले कभी नहीं बताई.’’ ऋषि ने पूछा.

‘‘कभी जरूरत ही नहीं पड़ी.’’ ऋषि ने  कहा तो कृष्णा ने मुड़ कर प्रतिभा को देखा. शक का एक कीड़ा उस के दिमाग में घुस चुका था.

उस ने सामने से जाते हुए ईरिक्शा को रोका और बसअड्डे पहुंच गया. रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि यदि ऋषि का प्रतिभा के चाचा के घर आनाजाना था तो यह बात उस ने या प्रतिभा ने उसे क्यों नहीं बताई.

उस के जेहन में यह बात भी खटकने लगी कि मां ने उसे एकदो बार बताया था कि ऋषि उस की गैरमौजूदगी में भी कई बार उस के घर आया था. यह बातें सोच कर वह काफी तनाव में आ गया.

अभी तक तो वह यह समझ रहा था कि नईनई शादी होने की वजह से प्रतिभा को मायके वालों की याद आती होगी, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा होगा, लेकिन अब उसे लगने लगा कि उस का जल्दीजल्दी मायके आने का कोई और ही मकसद है.

इसी तनाव में वह घर पहुंचा तो मां ने छूटते ही कहा, ‘‘बेटा, तेरी बीवी के रंगढंग हमें समझ नहीं आ रहे. उस का रोजरोज मायके जाना ठीक नहीं है.’’

उस समय कृष्णा ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि अभी उसे केवल शक ही था, जब तक वह मामले की तह तक नहीं पहुंचता तब तक घर में बता कर बेकार का फसाद फैलाना ठीक नहीं था.

हफ्ते भर बाद वह पत्नी को मायके से लिवा लाया. कुछ दिन बाद पता चला कि प्रतिभा गर्भवती है. पिता बनने की चाह में कृष्णा के मन की कड़वाहट पिघलने लगी. लेकिन उस ने अब ऋषि से घुलमिल कर बातें करनी बंद कर दीं. इधर ऋषि भी समझ गया था कि कृष्णा के तेवर कुछ बदले हुए से हैं, इसलिए वह भी सतर्क हो गया.

शक का कीड़ा जो कृष्णा के दिमाग में रेंग रहा था, वह उसे चैन से नहीं रहने दे रहा था. वह अपनी परेशानी किसी को बता भी नहीं सकता था.

एक दिन कृष्णा के बहनबहनोई घर आए तो बहनोई ने बातों ही बातों में कृष्णा से पूछा, ‘‘आजकल लगता है दुकान पर तुम्हारा मन नहीं लगता. क्या कोई परेशानी है?’’

‘‘नहीं जीजाजी, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल तबीयत कुछ ठीक नहीं है.’’ कृष्णा ने जवाब दिया.

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‘‘लगता है, प्रतिभा तुम्हारा ठीक से खयाल नहीं रखती.’’ बहनोई ने पूछा तो कृष्णा की मां ने कह दिया, ‘‘अरे दामादजी, खयाल तो वो तब रखे जब उसे मायके आनेजाने से फुरसत मिले.’’

सास की बात प्रतिभा को अच्छी नहीं लगी. उस ने छूटते ही कहा, ‘‘इस घर में किसी को मेरी खुशी भी नहीं सुहाती.’’ कह कर वह दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई. इस से कृष्णा के बहनबइनोई समझ गए कि पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं हैं.

कृष्णा को पत्नी का यह व्यवहार बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. बहनबहनोई तो चले गए, लेकिन कमरे में आने के बाद उस ने प्रतिभा को दो  तमाचे जड़ते हुए कहा, ‘‘अपना व्यवहार सुधारो वरना अच्छा नहीं होगा.’’

‘‘अब इस से ज्यादा बुरा क्या होगा कि तुम्हारे जैसे आदमी के साथ मेरी शादी हो गई.’’ कह कर प्रतिभा बैड पर जा कर बैठ गई. उस दिन के बाद उन दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं.

दूसरी ओर प्रतिभा रात में देरदेर तक ऋषि के साथ मोबाइल पर बातें करती. एक दिन कृष्णा की नींद खुल गई तो उस ने देखा कि प्रतिभा किसी से बातें कर रही थी. वह समझ गया कि ऋषि से ही बातें कर रही होगी. कृष्णा समझ गया कि प्रतिभा अब आपे से बाहर होती जा रही है. पर करे तो क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था.

इसी बीच प्रतिभा ने एक बेटी को जन्म दिया. पूरे घर में जैसे खुशी छा गई. बच्ची का नाम राधिका रखा गया. कृष्णा को उम्मीद थी कि मां बन जाने के बाद शायद प्रतिभा के व्यवहार में कोई फर्क आ जाए, पर ऐसा हुआ नहीं. कृष्णा को इस बात की पुष्टि हो गई थी कि ऋषि के साथ प्रतिभा के नाजायज संबंध शादी से पहले से थे. चूंकि ऋषि शादीशुदा था, इसलिए उस के साथ शादी करना प्रतिभा की मजबूरी थी.

प्रतिभा के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इसीलिए उन्होंने बेटी को कृष्णा के गले बांध दिया और सोचा कि शादी के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन प्रतिभा का रवैया नहीं बदला.

कृष्णा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था. वह प्रतिभा को भी खुश रखने का भरसक प्रयास करता था लेकिन अपनी परेशानी घर में किसी को बता नहीं पा रहा था. जबकि प्रतिभा के व्यवहार से कोई भी खुश नहीं था.

धीरेधीरे समय गुजर रहा था. मौका मिलते ही प्रतिभा चोरीछिपे ऋषि से यहांवहां मिल लेती पर वह जानती थी कि कृष्णा जैसे व्यक्ति के साथ वह पूरा जीवन नहीं गुजार सकती. दूसरी ओर ऋषि भी शादीशुदा था, उसे लगता था कि उस का जीवन कटी पतंग की तरह है. प्रेमी ने कभी उसे इस बात के लिए आश्वस्त नहीं किया कि वह उसे अपने साथ रख सकता है.

संभवत: इसी कशमकश में प्रतिभा भी समझ नहीं पा रही थी कि वह करे तो क्या करे. कृष्णा से छुटकारा पाने के बारे में वह सोचने लगी पर वह जानती थी कि मायके वाले भी ऋषि के कारण उस के खिलाफ थे.

इसी बीच कृष्णा ने 25 लाख रुपए में अपनी एक जमीन बेच दी. वह रकम उस ने घर में ही रख दी थी. यह बात प्रतिभा को पता चल गई थी और अचानक उसे लगा कि पति के इस पैसे से वह प्रेमी को बाध्य कर देगी कि वह उस के साथ अपनी दुनिया बसा ले.

प्रेमी को पाने की धुन में वह गुनहगार बनने को भी तैयार हो गई. एक दिन उस ने ऋषि को फोन कर के कहा कि वह उसे बड़ा फायदा करा सकती है.

ऋषि हंसने लगा, ‘‘अरे तुम तो हमेशा ही मुझे खुशियां देती हो.’’

‘‘लेकिन तुम तो मुझे केवल सपने ही दिखाते हो जो आंखें खुलते ही टूट जाते हैं.’’ प्रतिभा ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘प्रतिभा, यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरी मजबूरियां क्या हैं. मेरी पत्नी है, बच्चे हैं. मैं उन्हें किस के सहारे छोड़ सकता हूं.’’ ऋषि ने कहा.

प्रतिभा गुस्से में भर उठी, ‘‘तो मुझ से प्यार क्यों किया? क्यों मुझे झूठे सपने दिखाए? तुम ने तो सिर्फ अपना मतलब पूरा किया है. तुम्हें तो कभी मुझ से प्यार था ही नहीं.’’

प्रतिभा ने उस दिन ऋषि को साफसाफ कह दिया, ‘‘या तो तुम मुझे अपने साथ रखो अन्यथा मैं तुम्हारी जिंदगी से दूर चली जाऊंगी. समझ लो मैं आत्महत्या भी कर सकती हूं, जिस का दोष तुम्हारे ऊपर आएगा.’’

ऋषि ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. अत: उस ने उस दिन प्रतिभा को किसी तरह समझाबुझा दिया कि वह कुछ सोचेगा. तभी प्रतिभा ने धीरे से कहा, ‘‘कृष्णा ने अपनी जमीन बेची है. 25 लाख की बिकी है.’’

ऋषि के कान खड़े हो गए. प्रतिभा ने आगे कहा, ‘‘इन 25 लाख के सहारे हम कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा सकते हैं.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या, चोरी के इलजाम में जेल भिजवाओगी हमें.’’ ऋषि ने कहा. लेकिन वह जानता था कि प्रतिभा उस के प्यार में अंधी है और थोड़ाबहुत लाभ उसे हो सकता है. ऋषि ने उसे 2 दिन बाद किसी होटल में मिलने को कहा.

इस के बाद ऋषि को भी लालच आ गया. उस ने प्रतिभा से फोन पर बात की. प्रतिभा ने उस से साफ कह दिया, ‘‘मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. लेकिन कृष्णा हमारी खुशियों की राह में रोड़ा बना हुआ है.’’

फिर एक दिन बेटी को डाक्टर को दिखाने का बहाना कर प्रतिभा घर से निकली और एक कौफीहाउस में ऋषि से मिली. दोनों ने मिल कर एक षडयंत्र रचा, जिस में कृष्णा को रास्ते से हटाने की बात तय कर ली गई.

नादान प्रतिभा प्रेमी की आशिकी में अंधी हो चुकी थी. उसे भलाबुरा नहीं सूझ रहा था. उस ने यह भी नहीं सोचा कि उस की 9 माह की बेटी का क्या होगा. इधर प्रतिभा के बदले हुए तेवर देख कर एक दिन सास ने कहा, ‘‘बहू, क्या बात है आजकल तू हर वक्त घर से निकलने के बहाने ढूंढती रहती है?’’

‘‘नहीं तो मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है. राधिका की तबीयत ठीक नहीं रहती, इसलिए परेशान रहती हूं.’’ प्रतिभा ने बहाना बनाया.

‘‘देख बहू, हमारे परिवार का समाज में सम्मान है. हमारे परिवार में बहुएं सिर्फ घर के बच्चों और पति के लिए ही जीतीमरती हैं.’’ कह कर सास अपने कमरे में चली गई.

कृष्णा को रास्ते से हटाने की योजना बन चुकी थी और 25 लाख रुपए में से 5 लाख रुपए देने का वादा कर ऋषि ने इस साजिश में अपने दोस्त पवन निवासी रायमा, जिला मथुरा को भी शामिल कर लिया था.

13 फरवरी, 2018 को कृष्णा के पास ऋषि का फोन आया. उस ने बताया कि उसे एक बहुत बड़ा ठेका मिला है. उस बिल्डिंग में स्टील ग्रिल भी लगनी है. अगर तुम यह काम करना चाहते हो तो बात करने के लिए रायमा आ जाओ. कृष्णा ने पहले तो सोचा कि वह उस से कोई संबंध नहीं रखना चाहता, क्योंकि वह विश्वास के काबिल नहीं है. पर फिर उसे लगा कि पारिवारिक बातों को व्यापार से अलग ही रखना चाहिए. अत: उस ने कह दिया कि वह शाम तक रायमा पहुंच जाएगा.

कृष्णा ने घर से निकलते वक्त अपनी मां को बता दिया कि एक सौदा करने के लिए वह रायमा जा रहा है. पति के घर से निकलने के बाद प्रतिभा ने अपने प्रेमी ऋषि को फोन कर के बता दिया कि कृष्णा घर से चल दिया है.

घर में किसी को भी नहीं मालूम था कि कौन सा कहर टूटने वाला था. कृष्णा रायमा पहुंचा तो वहां ऋषि, पवन और रायमा निवासी टिल्लू बातों में उलझा कर कृष्णा को खेतों की ओर ले गए. लेकिन तभी वहां कुछ लोग आ गए और वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके. जब रात में कृष्णा घर पहुंचा तो उसे देख कर प्रतिभा हैरान रह गई. देर रात को प्रतिभा ने ऋषि को फोन किया तो उस ने प्रेमिका को सारी बात बता दी.

अगले दिन ऋषि ने कृष्णा के फोन पर बता दिया कि उस की पवन से बात हो गई है. वह अब अपने घर में रेलिंग लगाने का ठेका देने को तैयार हो गया है, तुम आ जाओ.

सीधासादा कृष्णा बिना कुछ सोचेसमझे 14 फरवरी, 2018 को अपनी मां से रायमा जाने की बात कह कर घर से निकल गया, जहां स्टेशन पर ही उसे ऋषि मिल गया. ऋषि उसे बातों में लगा कर इधरउधर घुमाता रहा. तब तक शाम हो गई. तभी पवन का फोन आ गया. उस के कहे मुताबिक, ऋषि कृष्णा को खेतों की तरफ ले गया. तब तक अंधेरा होने लगा था.

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तभी वहां उसे पवन दिखाई दिया, जिस ने इशारा कर के उन्हें सड़क पार कर खेत में आने को कहा. कृष्णा को जब तक कुछ समझ में आता तब तक काफी देर हो चुकी थी. वहीं टिल्लू भी आ गया तो कृष्णा ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें सौदा मंजूर है तो अब जल्दी से कुछ एडवांस दे दो. रात भी हो रही है, मुझे घर पहुंचना है. प्रतिभा इंतजार कर रही होगी.’’

यह सुनते ही पवन हंसने लगा, ‘‘ओह क्या सचमुच तेरी बीवी तेरा इंतजार करती है. हमें तो यह पता है कि वह ऋषि का इंतजार करती है.’’

कृष्णा की समझ में अब कुछकुछ आने लगा था. उस ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है, जल्दी करो मुझे जाना है.’’ यह कहते हुए वह अपनी बाइक की तरफ बढ़ा लेकिन तीनों झपट कर उसे खेत के अंदर ले गए और डंडों से उस की पिटाई शुरू कर दी. डंडों से पीटपीट कर उन्होंने उस की हत्या कर लाश वहीं छोड़ दी और चले गए.

इधर कृष्णा घर नहीं पहुंचा था. घर से जाने के बाद उस ने कोई फोन भी नहीं किया था. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. सभी रिश्तेदारों को फोन कर पूछ लिया गया, पर वह कहीं नहीं था. अंतत: आगरा के थाना सदर में उस की गुमशुदगी लिखवा दी गई.

प्रतिभा के मायके वालों को फोन किया गया तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि ऋषि से पूछताछ करें. थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह ने सभी थानों को वायरलैस द्वारा कृष्णा की गुमशुदगी की सूचना दे दी.

16 फरवरी को पुलिस को रायमा के खेत में एक लाश मिलने की सूचना मिली, जिसे कृष्णा के भाई अवनीश ने पहचान कर शिनाख्त कर दी.

घर वालों से पूछताछ की गई तो कृष्णा की मां ने कहा कि कृष्णा ने उसे बताया था कि रेलिंग का ठेका लेने के लिए वह रायमा जा रहा है. पर वह कहां जा रहा था, उसे पता नहीं था. 13 और 14 फरवरी को भी वह रायमा गया था. 13 को वह देर रात घर लौटा था. वह नहीं बता पाई कि कृष्णा रायमा में किस के पास गया था.

पुलिस टीम हत्यारे की खोजबीन में लग गई. पुलिस की एक टीम बेवर भेजी गई तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता, लेकिन यदि कृष्णा के दोस्त ऋषि से पूछताछ की जाए तो कुछ पता चल सकता है. जांच अधिकारी ने महसूस किया कि प्रतिभा के मायके वाले कुछ छिपा रहे हैं.

इस के बाद थानाप्रभारी ने कृष्णा के घर जा कर प्रतिभा से पूछताछ की तो महसूस किया कि उसे पति की मौत का जैसे कोई दुख नहीं था. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने बताया कि ऋषि की दोस्ती रायमा निवासी पवन के साथ है. अगर उसे हिरासत में लिया जाए तो केस खुल सकता है.

पुलिस ने रायमा में पवन को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो पता चला कि मृतक की पत्नी प्रतिभा के साथ ऋषि के नाजायज संबंध थे. मृतक की पत्नी प्रतिभा ने ऋषि को बता दिया था कि कृष्णा ने जो 25 लाख रुपए की जमीन बेची है, उन पैसों से वे एक अच्छी जिंदगी की बुनियाद रख सकते हैं. इस के बाद पवन ने कृष्णा की हत्या की सारी कहानी बता दी.

पुलिस ने 18 फरवरी को प्रतिभा को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस बीच पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि ऋषि ने बाह थाने में अपने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में उस ने बताया था कि वह किसी तरह अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूट कर भागा है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने ऋषि और टिल्लू को भी गिरफ्तार कर लिया.

प्रतिभा ने योजना बना कर अपने हाथों अपना सुहाग तो उजाड़ दिया, लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि जिन 25 लाख रुपयों के लालच में उस ने यह सब किया, वह रकम कृष्णा ने अपने कमरे में न रख कर अपनी मां के पास रख दी थी.

पुलिस ने ऋषि, प्रतिभा, पवन और टिल्लू से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. 9 माह की राधिका अनाथ हो चुकी है. मां जेल में है और पिता की हत्या कर दी गई है. बूढ़ी दादी अब कैसे उसे पाल पाएगी, यह बड़ा सवाल है.

अहंकार ले डूबा : अरबपति भाइयों ने खेला खूनी खेल

27 अप्रैल, 2018 को उत्तरपश्चिम दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में घटी एक घटना ने 6 साल पहले हुए बड़े बिजनैसमैन पोंटी चड्ढा और उन के भाई हरदीप हत्याकांड की याद ताजा कर दी. मौडल टाउन वाली घटना में जिन 2 सिख भाइयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वे भी अरबों रुपए की संपत्ति वाले बिजनैसमैन थे.

शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा भले ही अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक थे, लेकिन प्रौपर्टी विवाद को ले कर दोनों भाइयों के बीच रंजिश की जड़ें भी बहुत गहरी हो चली थीं. जिस के चलते सन 2012 में दिल्ली के छतरपुर इलाके में उन के ही फार्महाउस में गोली मार कर दोनों भाइयों की हत्या कर दी गई थी, जिस का केस अदालत में विचाराधीन है.

हरनाम सिंह ‘तूफान’ मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे, जो देश के विभाजन के बाद दिल्ली के मौडल टाउन पार्ट-2 में आ कर बस गए थे. उन्होंने धीरेधीरे यहीं पर अपना व्यवसाय जमाया. उन के 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. उन का खुशहाल परिवार था.

हरनाम सिंह ‘तूफान’ एक दबंग छवि वाले इंसान थे. वह लोगों के छोटेमोटे आपसी विवादों को निपटाते थे. जिस से उन के पास विवादों का फैसला कराने के लिए दूरदूर से लोग आते थे. अपनी मेहनत के बूते हरनाम सिंह ने अरबों रुपए की संपत्ति बनाई. अपने पीछे वह तीनों बेटों के लिए अरबों रुपए की संपत्ति छोड़ गए थे.

पिता की मौत के बाद भाइयों में प्रौपर्टी का बंटवारा हो गया था. बड़ा भाई सतनाम मौडल टाउन के एफ ब्लौक में रहते थे तो दोनों छोटे भाई जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह मौडल टाउन पार्ट-2 में ही डी-13/19 में अपने परिवारों के साथ रहते थे.

जसपाल अनेजा इस कोठी के ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और छोटे भाई गुरजीत सिंह पहली मंजिल पर. गुरजीत सिंह का मौडल टाउन के केडीएफ चौक पर ग्रेट वाल रेस्ट्रोबार नाम का एक नामी रेस्तरां था और जसपाल अनेजा का फाइनैंस का कारोबार. दोनों भाइयों की आमदनी भी अच्छी थी लेकिन उन के बीच आपस में कड़वाहट भी कम नहीं थी.

दोनों ही एकदूसरे को नीचा दिखाने और खुद को रसूखदार और दमदार दिखाने की होड़ में लगे रहते थे. जसपाल अनेजा के पास औडी के अलावा 2 अन्य लग्जरी कारें थीं, जबकि छोटे भाई गुरजीत सिंह के पास फोर्ड एंडेवर, फौर्च्युनर आदि कारें थीं. गुरजीत सिंह अपने साथ 2 शस्त्रधारी अंगरक्षक भी रखता था.

कोठी के सामने दोनों के लिए पार्किंग की जगह निर्धारित थी. इस के बावजूद उन के बीच आए दिन कार पार्किंग को ले कर झगड़ा होता रहता था. इस के अलावा प्रौपर्टी को ले कर भी उन के बीच झगड़ा चल रहा था, जिस की वजह से आए दिन दोनों भाइयों के थाना मौडल टाउन में चक्कर लगते रहते थे.

दोनों भाई थाने में एकदूसरे के खिलाफ आधा दरजन से ज्यादा केस दर्ज करा चुके थे. इस के अलावा मारपीट, जान से मारने की कोशिश करने, छेड़छाड़ आदि के भी उन्होंने 9 केस दर्ज कराए थे. दोनों ओर की महिलाओं ने भी अपने जेठ और देवर के खिलाफ छेड़छाड़ के मामले दर्ज कराए थे.

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मामला बड़े कारोबारियों के बीच का था, इसलिए पुलिस भी दोनों को समझाबुझा कर मामले को शांत करा देती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि दोनों ही छोटीछोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार रहते थे. हाल ही में जसपाल के बेटे कुंवर अनेजा पर गुरजीत ने कार से कुचल कर मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था.

आए दिन दोनों की शिकायत से पुलिस भी परेशान हो चुकी थी. पुलिस ने उन्हें अपनी कोठी के बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगवाने का सुझाव दिया था, जिस से आरोपों की सच्चाई का पता लग सके. तब दोनों भाइयों ने कोठी के हर कौर्नर को कवर करने के लिए 12 सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए थे. कोठी के एक गेट पर 7 कैमरे लगे थे तो दूसरे पर 5. इस के बावजूद भी उन का झगड़ा बंद नहीं हुआ.

27 अप्रैल, 2018 को आधी रात के करीब उन के बीच शुरू हुआ झगड़ा इस मुकाम पर जा कर खत्म हुआ, जब 3 लोगों की मौत हो गई.

दरअसल, हुआ यूं कि 27 अप्रैल की रात करीब साढ़े 12 बजे जसपाल अनेजा (52) की औडी कार कोठी के दरवाजे पर खड़ी थी. वह अपने दोस्त राजीव को छोड़ने जा रहा था. उसी वक्त गुरजीत (45) अपनी फोर्ड एंडेवर गाड़ी ले कर गेट पर पहुंचा. गुरजीत ने सख्त लहजे में जसपाल से गाड़ी हटाने को कहा.

इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. उस समय गुरजीत के दोनों अंगरक्षक विक्की और पवन भी उस के साथ थे. शोर सुन कर जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर और गुरजीत का बेटा गुरनूर भी कोठी से बाहर निकल आए. दोनों के बीच मारपीट शुरू हो गई.

लाठीडंडों के अलावा दोनों ओर से बोतलें भी चलीं. इसी दौरान जसपाल ने कृपाण से गुरजीत के गले पर वार कर दिया, जिस से वह वहीं लहूलुहान हो कर गिर गया. इतना ही नहीं, उस ने गुरजीत के बेटे गुरनूर के सीने व गले के पास भी कृपाण से वार किए.

उसी दौरान गुरजीत के अंगरक्षक विक्की ने पिस्टल निकाल कर जसपाल व उस की पत्नी प्रभजोत पर फायरिंग की. प्रभजोत की आंख के पास से होती हुई गोली सिर में जा घुसी, जिस से वह वहीं ढेर हो गई. गोली लगने के बाद भी जसपाल जान बचाने के लिए पड़ोसी के मकान में घुस गया और झूले पर जा कर बैठ गया. इस के बाद गुरजीत के दोनों अंगरक्षक वहां से भाग गए.

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करीब 17 मिनट तक चले इस खूनी खेल का नजारा सीसीटीवी कैमरों में भी कैद हो गया. सूचना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने सभी घायलों को अस्पताल पहुंचाया, जहां पर दोनों भाइयों जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह के अलावा जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. डीसीपी असलम खान ने भी मौके का दौरा कर थाना पुलिस को आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

पुलिस ने गुरजीत के दोनों अंगरक्षकों विक्की और पवन को गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर बुराड़ी में स्थित उन के कमरे से उन की लाइसेंसी पिस्टल भी बरामद कर ली है. उन से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें भी जेल भेज दिया.

छोटे शहर की लड़की (भाग -1) : जब पूजा ने दी दस्तक

‘एक दिन अचानक पूजा उस के घर आई तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह पूजा को पहचानता था, वह उस के पड़ोस में ही रहती थी. परंतु उस के साथ कभी कोई बात नहीं होती थी. कारण, वह बहुत संकोची था और पूजा अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की. वह शर्मीली लड़की की तरह पूजा के घर के सामने से सिर झुका कर गुजर जाता. अकसर उस ने पूजा को अपने घर से बाहर अपनी सहेलियों से बातें करते हुए देखा था. कई बार उस ने महसूस भी किया कि वे सभी उस की तरफ कुछ इशारा कर के हंसती थीं. यह उस का भ्रम भी हो सकता था, परंतु संकोचवश वह तुरंत उन के सामने से हट जाता और घर आ कर अपनी तेज सांसों पर काबू पाने का प्रयास करता. वह पूजा की हंसी और मुसकराहट का अर्थ आज तक समझ नहीं पाया था. आज जब पूजा उस के घर आई और उसे देख कर बड़ी अदा से मुसकराई तो उस के दिल पर मानो बिजली गिर गई हो. लड़कियों को देख कर वैसे ही उस के हाथपैर कांपने लगते और मुंह लाल हो जाता था. पूजा को अपने घर पर देख कर उस के दिल की धड़कन और भी बढ़ गई थी.

घर पर उस की मां थीं, छोटी बहन थी और रविवार होने के कारण उस के पिता भी घर पर ही थे. वे लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे? उस ने मुड़ कर अपने कमरे की तरफ भागने का प्रयास किया ही था कि पूजा की मधुर आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘भाग रहे हो? अपने ही घर में भाग कर कहां छिपोगे?’’ पूजा पहली बार उस से ऐसे बोली थी. वह ठिठक कर खड़ा हो गया, सचमुच वह अपने घर से भाग कर कहां जाएगा? उस ने पूजा के प्रफुल्लित चेहरे को बच्चे की तरह देखा और मन ही मन कहा, ‘तुम यहां क्या मेरी दुर्गति करने के लिए आई हो?’

पूजा ने पूछा, ‘‘आंटीजी हैं क्या, और तुम्हारी बहन कहां है?’’ वह इस तरह बात कर रही थी, जैसे विनोद उस से

छोटा हो और उस का इस घर में बहुत ज्यादा आनाजाना हो. पूजा का आत्मविश्वास और साहस देख कर उसे अपनेआप पर शर्म आने लगी. काश, वह भी उस की तरह दबंग होता. वह जानता था कि उस की मां से पूजा गली में कभीकभार बात कर लेती थी, लेकिन यह बिलकुल पता नहीं था कि उस की छोटी बहन दीप्ति से पूजा की कोई बोलचाल थी या वे दोनों आपस में मिलतीजुलती थीं. दोनों की उम्र में लगभग 4-5 साल का अंतर था.

उस ने पूजा की बात का जवाब देने के बजाय ऊंचे स्वर में लगभग चीखते हुए मां को आवाज लगाई, ‘‘मम्मी, दीप्ति, देखो तो तुम से कोई मिलने आया है?’’ और वह फिर से जाने के लिए उद्यत हुआ. पूजा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘अरे, तुम बौखला क्यों रहे हो? क्या कोई कुत्ता तुम्हारे पीछे पड़ा है?’’

उस ने मन ही मन कहा, ‘नहीं, एक बिल्ली है, जो मेरा मुंह नोचने के लिए आई है. क्या कोई मुझे इस बिल्ली से बचाएगा?’ वह और जोर से चिल्लाया, ‘‘दीप्ति, आती क्यों नहीं?’’ उस की मां किचन में थीं, दीप्ति झटपट बाहर निकली और सामने का नजारा देख कर कुछ चौंकी. पूजा को पहली बार अपने घर में देख कर वह बोली, ‘‘दीदी, आप… यहां?’’

‘‘हां, वैसे ही एक काम आ गया था,’’ वह दो कदम आगे बढ़ कर बोली, ‘‘परंतु तुम्हारा भाई तो बहुत झेंपू है, क्या वह लड़कियों के साथ ज्यादा उठताबैठता है, क्योंकि उन्हीं के जैसे गुण और लक्षण इस में आ गए हैं,’’ अपने कमरे में घुसतेघुसते उस ने पूजा को दीप्ति से कहते सुना. उस का दिल बैठ गया, ‘क्या वह इतना दब्बू है कि लड़कियां उस के बारे में ऐसे खयाल रखती हैं?‘ उस ने अपने दिल को संयत किया और मन ही मन बोला, ‘एक दिन दिखा दूंगा तुम्हें पूजा की बच्ची कि मैं कायर और डरपोक नहीं हूं. तुम मुझे झेंपू समझने की भूल मत करना.’

कमरे में आए उसे थोड़ी ही देर हुई थी कि धमधमाते हुए दोनों उस के कमरे में ही आ गईं. पूजा आगे थी और दीप्ति उस के पीछे. दोनों पता नहीं आपस में क्या बातें कर के आई थीं और अब उन का मकसद क्या था. वह अपने बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया. ‘‘क्या कर रहे हो… पढ़ाई? अभीअभी तो नए सत्र की कक्षाएं शुरू हुई हैं. अच्छा, विनोद यह बताओ, तुम कौन सी कक्षा में गए हो?’’ पूजा ने निस्संकोच उस के पास आ कर पूछा.

विनोद धम् से कुरसी पर बैठ गया. जैसे चेहरे पर किसी ने गोबर मल दिया हो. उस की बोलती बंद थी और दिल काबू में नहीं था. वे दोनों उसे देखदेख कर मुसकराती रहीं.

‘‘बताओ न मुझे पढ़ाई में तुम से मदद लेनी है,’’ पूजा उस के पास आ कर खड़ी हो गई और मटकती हुई बोली. जवान लड़की के बदन की एक अनोखी गंध उस के नथुनों में समा गई. विनोद ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और बोला, ‘‘बीए में.’’ ‘‘कौन सा साल है?’’ यह पूछते हुए वह लगभग उस से सट गई थी.

विनोद ने अपने को पीछे की तरफ धकेला. कुरसी थोड़ा पीछे की तरफ सरक गई. उस के गले में सांस फंस कर रह गई. शब्द गले में अटक गए और वह बता नहीं पाया कि बीए अंतिम वर्ष में था. पूजा यह बात जानती थी. वह स्वयं बीए द्वितीय वर्ष में थी. वह तो जानबूझ कर विनोद को बनाने की कोशिश कर रही थी. पूजा उस की हालत पर मुसकराई, ‘‘तुम कांप क्यों रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, मैं ठीक हूं,’’ उस के गले से फंसी हुई सी सांस निकली. वह कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया और बिना आदत के तन कर बोला, ‘‘तुम आराम से बैठ कर बात करो. मेरे ऊपर क्यों चढ़ी आ रही हो.’’ ‘‘ओह, माफ करना, वीनू, मेरी आदत कुछ खराब है. मैं जब तक किसी से सट कर बात नहीं करती, मुझे बातचीत में अपनापन नहीं लगता. खैर, तुम चिंता मत करो. एक दिन तुम्हें भी मुझ से सट कर बात करने की आदत हो जाएगी,’’ और वह मुसकराते हुए दीप्ति की तरफ देखने लगी. पूजा के चेहरे पर शर्मोहया का कोई नामोनिशान नहीं था. विनोद को वह बड़ी निर्लज्ज लड़की लगी.

‘‘अच्छा, क्या तुम मुझे पढ़ा दिया करोगे. दीप्ति ने मुझे बताया कि तुम पढ़ने में बहुत अच्छे हो,’’ उस ने बात बदली. ‘‘मेरे पास समय नहीं है,’’ उस ने किसी तरह कहा.

‘‘तुम्हें मेरे घर आने की जरूरत नहीं है. मैं स्वयं तुम्हारे पास आ कर पढ़ लिया करूंगी. प्लीज, तुम मेरी थोड़ी सी मदद कर दोगे तो…’’ फिर उस ने बात को अधूरा छोड़ दिया. वह पूजा की बातों का अर्थ नहीं समझ पाया. ‘क्या वह पढ़ने में कमजोर थी. अगर हां, तो अभी तक उसे यह खयाल क्यों नहीं आया. कोई दूसरी बात होगी,‘ उस ने सोचा. उस ने कहीं पढ़ा था कि अगर किसी लड़की का किसी लड़के पर दिल आ जाता है तो वह बहाने बना कर उस लड़के से मिलती है. क्या पूजा भी… उस के दिमाग में एक धमाका सा हुआ. उस का दिल और दिमाग दोनों बौखला गए थे. वह पूजा की किसी बात का ठीक से जवाब नहीं दे पाया, न उस की किसी बात का अर्थ समझ में आया और फिर दोनों लड़कियां उसे विचारों के सागर में डूबता हुआ छोड़ कर चली गईं.

उस दिन भले ही वह पूजा की बातों का अर्थ नहीं समझ पाया था, लेकिन उस की बातों का अर्थ समझने में उसे ज्यादा समय नहीं लगा. अब पूजा नियमित रूप से उस के घर आती. वह समझ गया था कि पूजा के मन में क्या है और वह उस से क्या चाहती है.

आमनेसामने पड़ने और रोजरोज बातें करने से विनोद के मन का संकोच भी बहुत जल्दी खत्म हो गया. वह पूजा से खुल कर बातें करने लगा, लेकिन अभी भी उस की बातें कम ही होती थीं और ऐसा लगता था जैसे पूजा उस के मुंह से बातें उगलवा रही हो.

फिर उन के मन भी मिल गए. पूजा और विनोद के रास्ते अब मिल कर एक हो गए थे. वे लगभग एक ही समय पर घर से कालेज के लिए निकलते और थोड़ा आगे चल कर उन का रास्ता एक हो जाता. कालेज से वापस आते समय वे शहर के बाहर जाने वाली सड़क से हो कर खेतों के बीच से होते हुए अपने घर लौटते. वे शहर के बाहर नई बस्ती में रहते थे, जिस के पीछे दूरदूर तक खेत ही खेत थे. उन दिनों बरसात का मौसम था और खेतों में मकई की फसल लहलहा रही थी. दूरदूर जहां तक दृष्टि जाती, हरियाली का साम्राज्य दिखता. खेतों में मकई के पौधे काफी ऊंचे और बड़े हो गए थे, आदमी के कद को छूते हुए, उन में हरेपीले भुट्टे लग गए थे और उन भुट्टों में दाने भी आ गए थे. पहले भुट्टों में छोटे शिशु की भांति दूध के दांत जैसे दाने आए थे. हाथ से दबाने पर पच्च से उन का दूध बाहर आ जाता था. धीरेधीरे दाने थोड़ा बड़े हो कर कड़े होते गए और उन में पीलापन आता गया. जब भुट्टे पूरी तरह पक गए तो किसी नवयुवती के मोती जैसे चमकते दांतों की तरह चमकीले और सुडौल हो गए.

दिन धुलेधुले से थे और प्रकृति की छटा देख कर ऐसा लगता था जैसे अभीअभी किसी युवती ने अपना घूंघट उठाया हो और उस ने देखने वाले को अपनी सुंदरता से भावविभोर कर दिया हो. इसी तरह सावन के महीने में नवयुवतियां भी किसी के प्रेम रस में विभोर हो कर बारिश की बूंदों में भीगते हुए भुट्टों की तरह हंसतीमुसकराती हैं, खिलखिलाती हैं और अल्हड़ हवाओं के साथ अठखेलियां करती हुई, झूलों में पींगें बढ़ाती हुई अपने प्रेमी का इंतजार करती हैं.

पूजा पर भी सावन की छटा ने अपना रंग बिखेरा था, वह भी बारिश की बूंदों से भीग कर अपने में सिमटी थी. कजरी के गीतों ने उस के मन में भी मधुर संगीत की धुनों के विभिन्न राग छेड़े थे. अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलते हुए, दबे होंठों से गीत गाते हुए उस ने भी अपने प्रिय साजन को बुलाने की टेर लगाई थी. उस की टेर पर उस का साजन तो उस से मिलने नहीं आया था, परंतु वह लोकलाज का भय त्याग कर स्वयं उस से मिलने के लिए उस के घर आ गई थी और आज दोनों साथसाथ घूम रहे थे.

मौसम ने उन दोनों के जीवन में प्यार के बहुत सारे रंग बिखेर दिए थे. दोनों के बीच प्यार की कली पनप गई थी. पूजा पहले से ही विनोद से प्यार करती थी. अब विनोद को भी पूजा के प्यार में रंगने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. पूजा की चंचलता ने विनोद को चंद दिनों में ही उस का दीवाना बना दिया. हालांकि दोनों के स्वभाव में बड़ा अंतर था. पूजा मुखर, वाचाल और चंचल थी तो विनोद मृदुभाषी, संकोची और लड़कियों से डर कर रहने वाला लड़का. पूजा के साथ रहते हुए वह सदा चौकन्ना रहता था कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा. पूजा लड़कों की तरह निर्भीक थी तो विनोद लड़कियों की तरह लज्जाशील. वह एक कैदी की तरह पूजा के पीछेपीछे चलता रहता.

खेतों के बीच से होते हुए वह कच्ची सड़क के किनारे किसी पेड़ की छाया के नीचे थोड़ी देर बैठ कर सुस्ताते, प्यार भरी बातें करते और मकई के खेतों के किनारे से होते हुए एक रखवाले की नजर बचा कर कभी 2 भुट्टे चुपके से तोड़ लेते तो कभी उन से विनययाचना कर के मांग लेते थे. खेतों की रखवाली करने वाली ज्यादातर लड़कियां होती थीं, ऐसी लड़कियां जो दिल की बहुत अच्छी होती थीं और जवानी के सपने देखने की उन की उम्र हो चुकी थी. उन के मन में प्यार के फूल खिलने लगे थे और वे पूजा और विनोद को देख कर मंदमंद मुसकराती हुईं अपने दुपट्टे का छोर दांतों तले दबा लेती थीं. वे न केवल अपने हाथों से पके भुट्टे तोड़ कर उन्हें देतीं, बल्कि कभीकभी मचान के नीचे जलने वाली आग में उन्हें पका भी देती थीं, तब दोनों मचान के ऊपर बैठ कर मकई के खेतों के ऊपर उड़ने वाले परिंदों को देखा करते थे और बैठे परिंदों को उड़ाने का बचकाना प्रयास करते, जिसे देख कर खेत की रखवाली करने वाली लड़कियां भी खुल कर हंसतीं और उन्हें परिंदों को उड़ाने का तरीका बतातीं. प्यार भरे मौसम का एक साल बीत गया. उन के इम्तहान खत्म हो गए. अब वह दोनों घरों में कैद हो कर रह गए थे, परंतु पूजा अपने घर में रुकने वाली कहां थी. उस ने दीप्ति से दोस्ती गांठ ली थी और उस से मिलने के बहाने लगभग रोज ही विनोद के घर पर डेरा जमा कर बैठने लगी. विनोद के मातापिता को इस में कोई एतराज नहीं था क्योंकि वह दीप्ति के पास आती थी और उसी के साथ विनोद के कमरे में जाती थी. दीप्ति भी उन के प्यार को समझ गई थी और उसे दोनों के बीच पनपते प्यार से कोई एतराज नहीं था. उसे पूजा बहुत अच्छी लगती थी क्योंकि वह बहुत प्यारीप्यारी बातें करती थी और पूजा दीप्ति को अपनी छोटी बहन की तरह प्यार देती थी.

परीक्षा परिणाम घोषित होते ही विनोद के घर में एक धमाका हो गया. उस के पिताजी ने उसे दिल्ली जाने का फरमान जारी कर दिया. उस के भविष्य का निर्णय करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘विनोद, बीए में तुम्हारे अंक काफी अच्छे हैं और मैं चाहता हूं कि दिल्ली जा कर तुम किसी कालेज में एमए में दाखिला ले लो और वहीं रह कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करो. तुम्हें आईएएस या आईपीएस बन कर दिखाना है,’’ उस के पिता ने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया था. मां ने भी उस के पिता के निर्णय का समर्थन किया, लेकिन पूजा को यह पसंद नहीं आया. ‘‘तुम यहां रह कर भी तो सिविल सर्विसेज की तैयारी कर सकते हो. यहां भी तो अच्छे कालेज हैं, विश्वविद्यालय है,’’ उस ने तुनकते हुए विनोद से कहा.

‘‘देखो पूजा, पहली बात तो यह है कि मैं पिताजी की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता और फिर दिल्ली में अच्छे कोचिंग संस्थान हैं. वहां ऐसे कालेज हैं जहां विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ही तैयारी करने के लिए पढ़ते हैं. मेरी

भी तमन्ना है कि मैं अपने पिताजी की आकांक्षाओं को पूरा करूं.’’ ‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी?’’ पूजा ने एक छोटे बच्चे की तरह मचलते हुए कहा.

‘‘रह लोगी, समय सबकुछ सिखा देता है और मैं कोई सदा के लिए थोड़े ही जा रहा हूं. छुट्टियों में तो आता ही रहूंगा.’’ ‘‘मुझे इस बात का डर नहीं है कि तुम सदा के लिए जा रहे हो. मुझे डर इस बात का है कि दिल्ली जबलपुर के मुकाबले एक बड़ा शहर है. वहां ज्यादा खुलापन है. वहां की लड़कियां अधिक आधुनिक हैं और वह लड़कों के साथ बहुत खुल कर मिलतीजुलती हैं. साथसाथ पढ़ते हुए पता नहीं कौन सी परी तुम्हें अपना बना ले,’’ उस के स्वर में उदासी झलक रही थी. ‘‘हर लड़की तुम्हारी तरह तो नहीं होती,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘हां, सच, पर तुम अब इतने भोंदू और संकोची भी नहीं रहे. क्या पता, तुम्हें ही कोई लड़की पसंद आ जाए और तुम उसे अपने जाल में फंसा लो,’’ उस ने आंखों को चौड़ा करते हुए कहा. ‘‘हां, यह बात तो है, भविष्य को किस ने देखा है,’’ उस ने चुटकी ली.

‘‘2 या 3 साल, पता नहीं कितना समय लगे तुम्हें नौकरी मिलने में? तब तक तुम पूरी तरह से बदल तो नहीं जाओगे?’’ उस के स्वर में निराशा का भाव आ गया था. ‘‘तुम अपनेआप पर भरोसा रखो. शायद कुछ भी न बदले,’’ विनोद ने उसे तसल्ली देने का प्रयास किया.

‘‘क्या पता सिविल सेवा की परीक्षा पास करते ही तुम्हारा मन बदल जाए और क्या तुम्हारे मम्मीपापा उस स्थिति में मेरे साथ तुम्हारी शादी के लिए तैयार होंगे?’’ ‘‘यह तो वही बता सकते हैं?’’ उस ने स्पष्ट किया. पूजा का मन डूब गया.

 – क्रमश:

हुनर पाने में लगाएं दमखम

शिक्षा संस्थानों व सरकारी नौकरियों में युवाओं की आरक्षण की चाहत हर पार्टी के लिए गले की हड्डी बन गई है. नौकरी के गिरते अवसरों से परेशान युवा एक बार फिर सरकारी नौकरियों के पीछे दौड़ रहे हैं पर वहां पहली बाधा पद के अनुकूल स्कूली या कालेजी शिक्षा की अनिवार्यता आड़े आ जाती है. दोनों जगहों पर पिछड़ी व निचली जातियों के युवा और ऊंची जातियों के युवा जिन में सदियों से सवर्ण माने गए पढ़ेलिखे व खातेपीते घरों के तो हैं ही, 1947 के बाद हुए भूमि सुधारों से जमीनमालिक बने तब के थोड़े कम पिछड़े घरों के युवा भी अब शामिल होने लगे हैं. नतीजा यह है कि सरकारी शिक्षा संस्थानों या सरकारी नौकरियों में लाखों को निराशा होने लगी है. जिन्हें आरक्षण नहीं मिला वे रोना रोते रहते हैं कि आरक्षण न होता तो वे अपने से कमतर के मुकाबले स्कूलकालेज या सरकारी दफ्तर में जगह पा जाते. उन का गुस्सा कहीं मराठा, कहीं जाट, कहीं पाटीदार, कहीं केषलिंगा तो कहीं किसी और जाति के नाम से दिख रहा है.

सड़कों पर भगवा दुपट्टा लपेटे युवाओं के जो हुजूम दिखने लगे हैं उन में ज्यादातर इसी नाराज वर्ग से हैं. वे धर्म के पैरोकार बन कर आरक्षण को समाप्त करने की जुगत में पूजापाठी बनने का ढोंग रच रहे हैं. वे शासकों को खुश करना चाहते हैं कि उन से ज्यादा बड़ा भक्त कोई नहीं है. वे, दाता, अब तो कालेज में सीट या सरकारी नौकरी का वर दे दो, की गुहार करते नजर आते हैं. ये युवा भटके ही नहीं, मूर्ख भी हैं. इन्हें नहीं मालूम कि सपनों के चमकीले पहाड़ को तोड़ने का लालच दे कर इन से लोगों के सिर तुड़वाए जा रहे हैं. एक राजनीतिक माफिया तैयार किया जा रहा है जिस का हिस्सा बन कर ये युवा अपनी पूरी जिंदगी स्वाह कर देंगे. आज तो ये मातापिता के या धमकियों से वसूले चंदे के पैसों से मोटरसाइकिलों पर नारे लगाते घूमते हैं और झंडे, लाउडस्पीकर, गाय, राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रगान के नाम पर तोड़फोड़ करते हैं पर जैसे ही जरा बड़े होंगे तो इन के हाथों में न शिक्षा होगी, न नौकरी और न ही हुनर. बाइकों पर इन की जगह युवाओं की अगली खेप ले लेगी और बुढ़ाते नेता भी इन्हें दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंकेंगे.

आरक्षण का लाभ ज्यादा जातियों को मिले तो भी सीटें तो उतनी ही रहेंगी. यदि दलितों, ओबीसीयों के हाथों से कुछ छीना गया तो वे भी उसी तरह का शोर मचाने लगेंगे जैसे आज पाटीदार, जाट व गुर्जर मचा रहे हैं. उन का हल्ला ज्यादा दमदार होगा और ज्यादा खतरनाक क्योंकि वे लोग सदियों का हिसाब करने के लिए तैयार बैठे हैं. धर्म की लुटिया पूरी तरह डूब सकती है और उन का आरक्षण आबादी के हिसाब से 50 से बढ़ कर 70-75 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. अच्छा यही है कि युवा अपना दमखम नए हुनर पाने में लगाएं. आज हुनरमंदों की हर क्षेत्र में जरूरत है. अगर चीन जैसा बनना है तो चीन जैसी उत्पादन क्षमता तैयार करनी होगी.

उत्तर प्रदेश : भाजपा के निशाने पर हैं मायावती और अखिलेश

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद भाजपा को सपाबसपा की दोस्ती किसी भी तरह से हजम नहीं हो रही है. भाजपा को अखिलेश यादव और मायावती के बीच दोस्ती की उम्मीद नहीं लग रही थी, पर उन दोनों नेताओं ने जिस तरह से बहुत सारे विवादों को किनारे कर के दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया है, वह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है.   साल 2019 के लोकसभा चुनाव की नजर से उत्तर प्रदेश सब से अहम राज्य है. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा और उस के सहयोगी दलों को वहां की कुल 80 सीटों में से 72 सीटें मिली थीं.

2 उपचुनाव हार कर यह तादाद अब  70 हो गई है. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को तकरीबन 42 फीसदी वोट मिले थे. इस चुनाव में सपा को 22 और बसपा को 20 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को तकरीबन 7 फीसदी वोट हासिल हुए थे. ऐसे में सपाबसपा और कांग्रेस के गठबंधन का वोट फीसदी मिला कर 49 फीसदी हो जाता है. इस से उत्तर प्रदेश से भाजपा का सूपड़ा साफ हो सकता है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पास नरेंद्र मोदी का चेहरा  भले हो, पर ‘मोदी मैजिक’ असरकारक नहीं रहेगा. पिछले 4 साल के दौरान ‘शाहमोदी’ की जोड़ी ने भाजपा के अंदर भी लोकतंत्र को खत्म कर दिया है. ऐसे में विरोध की आवाजें वहां भी उभरने लगी हैं.  साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ‘दलित, अतिपिछड़ा और सवर्ण’ समीकरण के साथ हिंदुत्व का सहारा ले कर कामयाबी हासिल की थी. तब ‘दलित और अतिपिछड़ा वर्ग’ हिंदुत्व के नाम पर अपनी पुश्तैनी पार्टियों से किनारा कर के भाजपा में शामिल हो गया था. पर नवहिंदुत्व का शिकार हुए इस तबके को चुनाव के बाद कुछ हासिल नहीं हुआ. यही वजह है कि इन जातियों के नेता अब भाजपा के खिलाफ मुखर होने लगे हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन एक साल बाकी है.

इस बीच भाजपा को कई तरह की चुनौतियों से निबटना है. भाजपा को अपनी पार्टी के दलित और अतिपिछड़ा तबके के नेताओं के असंतोष को खत्म करना है. पार्टी के मूल कैडर में भी बाहरी नेताओं को अहमियत दिए जाने से नाखुशी है. उत्तर प्रदेश और केंद्र में भाजपा मंत्रिमंडल का विस्तार कर इन तबकों के नेताओं को साधने की कोशिश होगी. गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में मिली हार उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए बानगीभर है. इस तरह के नतीजों से भाजपा के दलित नेताओं के होश उड़ गए हैं. वे भी चुनाव करीब देख कर विरोध करने लगे हैं.

सपाबसपा की दोस्ती से डर भाजपा को दोहरा डर है. एक तो उसे यह लग रहा  कि सपाबसपा की दोस्ती से लड़ना पड़ेगा. दूसरे, उसे अपनी पार्टी के दलित नेताओं के बयानों को भी रोकना है.  ऐसे में भाजपा अनुसचित जाति मोरचा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद कौशल किशोर कहते हैं, ‘‘भाजपा की केंद्र सरकार बाबा साहब के मिशन को पूरा करेगी. वह गरीबी के खिलाफ लड़ रही है. साल 2022 तक हर गरीब के पास अपना मकान होगा. उस के पास अपना रोजगार होगा.

समाज में दलित गरीब और पिछड़ा वर्ग तभी भेदभाव मुक्त रह पाएगा जब वह मालीतौर पर मजबूत होगा.’’  भाजपा अपने बचाव में 2 बातें कह रही है. एक तो यह कि उस के किए गए कामों का असर साल 2022 में दिखेगा. दूसरा, सपाबसपा निजी फायदे की दोस्ती कर के उस को कुरसी से हटा कर भ्रष्टाचार और भाईभतीजावाद को बढ़ावा देगी.  सपाबसपा की हिंदुत्व से लड़ाई नई नहीं है. साल 1990 के बाद जब रामलहर में चुनाव हो रहे थे तो भाजपा ने हिंदी बोली वाले प्रदेशों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में अपनी सरकार बना ली थी.  उस के बाद उत्तर प्रदेश में सपाबसपा ने एकजुट हो कर भाजपा का मुकाबला किया था और साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता से दूर कर दिया था. सपा के मुलायम सिंह यादव और बसपा के कांशीराम के बीच हुई इस दोस्ती को ‘मिले मुलायमकांशीराम हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ के नारे से बधाई दी गई थी.

भाजपा को यह दोस्ती रास नहीं आई थी. वह इस गठबंधन को तोड़ने में जुट गई थी. बसपा नेता मायावती के कंधे पर बंदूक रख कर इस गठबंधन को तोड़ दिया गया. सपाबसपा के बीच ‘गैस्ट हाउस कांड’ की दरार पड़ गई. ‘गैस्ट हाउस कांड’ को मायावती के मानसिक और शारीरिक अपमान के रूप में जाना जाता है. साल 1995 के ‘गैस्ट हाउस कांड’ के बाद साल 2018 में सपाबसपा पहली बार एकसाथ आती दिखी हैं.  23 साल के बाद बसपा और सपा में नई पीढ़ी आ चुकी है, जिस ने ‘गैस्ट हाउस कांड’  के बारे में केवल सुना है. ‘गैस्ट हाउस कांड’ की शिकार खुद मायावती भी इस कांड को भूल कर आगे बढ़ चुकी हैं.  राज्यसभा चुनाव में यह साफ देखने को मिला.

भाजपा को लग रहा था कि राज्यसभा चुनावों में अगर बसपा उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर चुनाव हार जाएंगे तो सपाबसपा की दोस्ती टूट सकती है. राज्यसभा चुनाव में हार के बाद भी बसपा ने साफ कर दिया कि सपा के साथ दोस्ती नहीं टूटेगी. बसपा के साथ संबंधों पर सपा नेता अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘हमें मायावती के तजरबे पर यकीन है. हम उन के तजरबे का फायदा लेंगे. समाजवादियों का दिल बड़ा है. मौका लगेगा तो जो देना होगा देंगे.’’ अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ समेत भाजपा के नेताओं के बयानों की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘हमारी दोस्ती पर जिस तरह के बयान मुख्यमंत्री दे रहे हैं, ये उन को शोभा नहीं देते. भाजपा के लोग हमें तरहतरह से परेशान करने के उपाय निकालेंगे.’’ अखिलेश यादव की ही तर्ज पर बसपा प्रमुख मायावती ने भी अपने कार्यकर्ताओं को बुला कर मीटिंग की. उन्हें समझाया कि किसी तरह की बयानबाजी में न पड़ें.

मीडिया की खबरों से दूर रहें. भाजपा उन को लड़ाने का काम कर सकती है.  जमीनी लैवल पर देखें तो अगड़ों से ज्यादा दलित और पिछड़े एकदूसरे के खिलाफ दिखते हैं. दलितों के मुकाबले पिछड़े और अतिपिछड़े ज्यादा धार्मिक होते हैं. ऐसे में बसपा और सपा के बीच बनने वाला गठबंधन राजनीतिक फायदा तो दे सकता है, पर सामाजिक फायदा नहीं देगा. उत्तर प्रदेश में साल 2007 से ले कर साल 2012 के बीच मायावती की सरकार में सब से ज्यादा परेशानी पिछड़ों को ही थी. यही वजह है कि जब साल 2012 के चुनाव हुए तो पिछड़ों ने पूरी तरह से बसपा से दूरी बना कर सपा को वोट दे दिया था और मायावती चुनाव हार गई थीं. मायावती अपने कार्यकाल में दलितों का भला नहीं कर पाईं. दलित ऐक्ट और दलित महापुरुषों की मूर्तियों के सहारे ही वे चुनाव जीतना चाहती थीं.

जब तक सामाजिक लैवल पर कोई काम नहीं होगा, बदलाव होना मुश्किल है.  धार्मिक रूप से दलित और पिछड़ों की सोच में बहुत फर्क है. दलित ऐक्ट के विरोध के समय हुए आंदोलन में यह देखने को मिला कि जब कुछ आंदोलन करने वालों ने भगवान से अभद्रता करने वाले फोटो सोशल मीडिया पर वायरल किए तो आंदोलन का समर्थन करने वाले पिछड़ों ने दलितों की बुराई शुरू कर दी.  यह बात भी सामने आ गई कि दलित ऐक्ट में जिस संशोधन की बात अदालत कर रही है, उत्तर प्रदेश में मायावती ने अपने कार्यकाल में उस में संशोधन कर दिया था. यह उस समय की बात है जब वे सोशल इंजीनियरिंग का नाम ले कर सत्ता में आई थीं. मायावती के समय दलित ऐक्ट में संशोधन जरूर हो गया था, पर उस का असर न के बराबर था.  कांग्रेस का पेंच दलितों में भी कई मुद्दों को ले कर एक राय नहीं है. दलित पिछड़ों में भी आपसी भेदभाव कायम है. ऐसे में सपाबसपा की दोस्ती से सामाजिक लैवल पर कोई बदलाव होगा, यह सोचना सही नहीं है.  साल 2019 में लोकसभा का अगला चुनाव है.

ऐसे में सपाबसपा कांग्रेस को कितनी सीटें देंगी, इस पर यह गठबंधन तय होगा. अभी तक की बातचीत के मुताबिक कांग्रेस और दूसरे दलों को केवल 20 सीटें देने की बात हो रही है. बाकी बची 30-30 सीटें सपाबसपा आपस में लेना चाहती हैं. इस तरह से कांग्रेस के पक्ष में मुश्किल से 15 सीटें आएंगी. कांग्रेस राष्ट्रीय लैवल पर भाजपा के मुकाबले सब से बड़ी पार्टी है. वह सपाबसपा के बराबर सीटें चाहती है. अगर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर जीत हासिल करती है तो उस का दबाव और बढ़ेगा.   कांग्रेस उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भले ही सपाबसपा को ज्यादा अहमियत देने दे, पर लोकसभा चुनाव में वह कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी.

मायावती साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर तालमेल करना चाहती हैं जबकि कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर सीटों का समझौता करना चाहती है.  साल 2014 के लोकसभा चुनाव  में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, पर कांग्रेस के पास 2 सीटें थीं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटें बसपा की सीटों के मुकाबले आधी ही थीं. अपनी मांग को मजबूती से रखने के लिए दोनों ही दल समझौते की शर्त अपने मुताबिक रखना चाहते हैं. कांग्रेस का मानना है कि जब चुनाव लोकसभा के हैं तो आधार लोकसभा चुनाव ही होना चाहिए. कांग्रेस का पेंच सपा के लिए भी हल करना जरूरी है, क्योंकि कांग्रेस और सपा का समझौता विधानसभा चुनाव में हो चुका है. राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच आपसी तालमेल है. मायावती दोनों के बीच कैसे जगह बना पाएंगी, यह देखने वाली बात होगी.

ये स्किन केयर टिप्स आप को देंगी स्वस्थ और सुंदर त्वचा

त्वचा हमारे शरीर को धूलमिट्टी, बैक्टीरिया, सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों आदि से बचाती है. मगर जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है त्वचा पतली होती जाती है. उस का लचीलापन कम होने लगता है. तब यह खुद को बाहरी नुकसान से नहीं बचा पाती है. उम्र बढ़ने के साथ त्वचा में मौजूद इलास्टिक टिशू नष्ट होने लगता है. परिणामस्वरूप त्वचा लटकने लगती है. वह अधिक पारदर्शी हो जाती है. तब एजिंग के साथसाथ झुर्रिंया पड़नी भी शुरू हो जाती हैं. ऐसे में त्वचा की विशेष देखभाल की जरूरत होती है. कुछ टिप्स अपनाने पर त्वचा हमेशा चमकतीदमकती रहेगी:

त्वचा को धूप से रखें सुरक्षित: त्वचा की धूप से सुरक्षा ऐंटीएजिंग में बहुत अधिक मददगार साबित होती है. सूर्य की किरणों से त्वचा में एजिंग जल्दी होती है. धूप के कारण त्वचा की उम्र समय से पहले बढ़ जाती है. इसे फोटोएजिंग कहा जाता है. त्वचा को धूप और हानिकारण यूवी किरणों से बचाने के लिए डर्मेटोलौजिस्ट कुछ सुझाव देते हैं:

छाया में रहें: सुबह 10 से दोपहर 3 बजे तक धूप के संपर्क में आने से बचें. जहां तक हो सके छाया में रहने की कोशिश करें.

खुद को ढक कर रखें: खुद को टोपी या स्कार्फ  से कवर कर लें. पूरी बाजू के कपड़े और पैंट्स आदि पहनें. सनग्लासेज का इस्तेमाल करें.

बाहर जाने से पहले सनस्क्रीन लगाएं: कम से कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन इस्तेमाल करें. यह यूवीए और यूवीबी दोनों तरह की किरणों से बचाता है. धूप के कारण त्वचा पर झुर्रियां, एजिंग के धब्बे और अन्य कई समस्याएं हो सकती हैं. सनस्क्रीन का प्रयोग धूप से होने वाली इन सभी समस्याओं से बचाता है.

मेकअप उतारें: रात को सोने से पहले मेकअप उतारना बिलकुल न भूलें. इस से त्वचा रात भर सांस ले सकेगी. अगर मेकअप रात भर त्वचा पर लगा रहेगा तो उस के पोर्स बंद हो जाएंगे, जिस से ब्लैकहैड्स हो सकते हैं.

रोज मौइश्चराइजर लगाएं: जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है त्वचा रूखी होती जाती है. उसे सही हाइड्रेशन न मिलने से फाइन लाइंस और झुर्रियां पड़ने लगती हैं. मौइश्चराइजर से त्वचा में नमी समा जाती है और वह जवां एवं मुलायम हो जाती है.

आप फेशियल मौइश्चराइजर, बौडी मौइश्चराइजर और लिप बाम इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐसी चीजों का इस्तेमाल न करें जो त्वचा को सुखाती हैं जैसे सख्त साबुन, अलकोहल आधारित उत्पाद वगैरह.

खाने पर विशेष ध्यान दें: अपने आहार में ताजे फलों, हरी सब्जियों, प्रोटीन और विटामिन का भरपूर सेवन करें. विटामिन सी युक्त, कम वसा और कम चीनी वाला आहार त्वचा को चमकदार बनाता है. कम चीनी से शरीर में इंसुलिन का स्तर सामान्य बना रहता है. ताजे फलों और सब्जियों का सेवन त्वचा को स्वस्थ बनाने के लिए बेहद जरूरी है.

व्यायाम करें: नियमित व्यायाम करने से त्वचा साफ रहती है. दौड़ने, जौगिंग करने आदि से शरीर में रक्तप्रवाह ठीक होने लगता है. ऐसा करने पर आप पाएंगी कि आप के चेहरे पर चमक आने लगी है.

खुद को हाइड्रेट करें: त्वचा में बड़ी मात्रा में रक्तवाहिकाएं होती हैं. त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने के लिए इन में खून का प्रवाह ठीक होना चाहिए. रोजाना कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं. पर्याप्त मात्रा में ताजे फल और सब्जियां खाएं. ऐसे फलों का सेवन करें, जिन में पानी बहुत ज्यादा होता है जैसे तरबूज, संतरा, खीरा, स्ट्राबेरी, अंगूर, खरबूजा आदि.

पूरी नींद लें: कम से कम 8 घंटे जरूर सोएं. अगर आप पूरी नींद नहीं लेंगी तो त्वचा बीमार दिखने लगेगी. सोने से पहले चेहरे को धो कर मौइश्चराइजर लगाना न भूलें.

पूरे शरीर की देखभाल करें: चेहरे के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों जैसे गरदन, छाती व हाथों की भी देखभाल करें. उगलियों और पैरों के नाखूनों को भी विशेष देखभाल की जरूरत होती है. इन्हें पानी में भिगोए रखने के बाद टौवेल से रगड़ कर डैड स्किन निकाल दें.

ऐंटीएजिंग ट्रीटमैंट्स बोटोक्स: यह सब से लोकप्रिय गैर सर्जिकल कौस्मैटिक ट्रीटमैंट है, जिस का इस्तेमाल झुर्रियों और माथे पर मौजूद एजिंग की लाइनों को हटाने के लिए किया जाता है. यह ट्रीटमैंट किया जाए तो ज्यादा कारगर होता है. यह आमतौर पर 7-8 महीने तक चलता है. मगर झुर्रियां और फाइन लाइंस आने से पहले गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को यह उपचार नहीं लेना चाहिए.

फिलर्स: चेहरे को स्मूद बनाने और झुर्रियां हटाने के लिए जैल जैसे फिलर्स इंजैक्ट किए जाते हैं. फिलर इंजैक्शन कौस्मैटिक ट्रीटमैंट है, जो झुर्रियों को दूर कर चेहरे को वौल्यूम देता है.

लिफ्टिंग: इस तकनीक में थ्रैड यानी धागे जैसी चीज को त्वचा में डाला जाता है, जिसे त्वचा सोख लेती है. यह थ्रैड बिना किसी सर्जरी के फेसलिफ्टिंग करता है. इस में ऐनेस्थीसिया की भी जरूरत नहीं होती. थ्रैड लिफ्टिंग त्वचा की झुर्रियों को दूर कर उसे स्मूद बनाती है. यह त्वचा के टैक्स्चर और टोन में सुधार ला कर उसे जवां और खूबसूरत बनाती है.

लेजर: लेजर का इस्तेमाल झुर्रियों, फोटो एजिंग व पिगमैंटेशन के इलाज के लिए किया जाता है. यह उपचार सूर्य की हानिकारण किरणों से होने वाली एजिंग को भी दूर करता है. लेजर ट्रीटमैंट त्वचा में कोलोजन के निर्माण को बढ़ाता है, जिस से त्वचा रिपेयर होने लगती है. वह कोमल और जवां हो जाती है.

पील: पील एक तरह का जैल है, जिस से एजिंग के कारण होने वाली त्वचा की कई समस्याओं का इलाज किया जाता है. पीलिंग त्वचा की खराब हो गई बाहरी परत को निकाल देती है. उस के बाद प्राकृतिक रूप से त्वचा की नई कोशिकाएं बनने लगती हैं. इस से त्वचा पर फाइन लाइंस, झुर्रियां, डार्कस्पौट, अनइवन स्किन टोन और टैक्स्चर का भी इलाज हो जाता है.

माइक्रोडर्माब्रेजन: यह प्रक्रिया बेहद फायदेमंद है. यह फाइन लाइंस को दूर करती है. त्वचा की डैड परतों को निकाल कर कोलोजन बनने में मदद करती है. इस में त्वचा की ऊपरी परत को हलके से निकाल दिया जाता है, जिस से भीतर से नई और स्वस्थ कोशिकाएं बननी शुरू हो जाती है. इस प्रक्रिया में ज्यादा समय नहीं लगता, कयोंकि सिर्फ प्रभावित हिस्से का ही उपचार किया जाता है.

प्लेटलेट रिच प्लाज्मा (पीआरपी): पीआरपी एक ऐसी तकनीक है, जिस में पहले ब्लड सैंपल ले कर जांच की जाती है. उस के बाद ब्लड को प्लेटलेट्स के साथ मिला कर रिच प्लाज्मा बनाया जाता है और फिर उसे त्वचा के प्रभावित हिस्से में इंजैक्ट कर दिया जाता है.

इंजैक्शन देने से पहले इस हिस्से में क्रीम ऐनेस्थीसिया दिया जाता है. पीआरपी इंजैक्ट करने से त्वचा में कोलोजन और ह्यालूरोनिक ऐसिड बनने लगता है जो त्वचा की मरम्मत करता है. यह त्वचा की झुर्रियों, डार्क सर्कल्स, दागधब्बों, अनइवन स्किन टोन, मुंहासों के निशानों, ढीली त्वचा आदि का इलाज करता है.

– डा. साक्षी श्रीवास्तव, कंसलटैंट डर्मेटोलौजिस्ट, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

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