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पिछले एक महीने में व्हाट्सऐप में आए ये 5 शानदार फीचर्स

व्हाट्सऐप अपने यूजर्स की सुविधाओं के लिए पिछले एक महीने में कई सारे फीचर्स लेकर आया हैं. जिनमें से कई फीचर्स सिक्योरिटी के लिए तो कई फीचर्स खासकर ग्रुप एडमिन के लिए हैं. अगर आप व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं तो आपको व्हाट्सऐप के इन 5 नए फीचर्स के बारे में पता होना चाहिए. आइए फिर बिनी देर किए जानें इनके बारे में.

ग्रुप डिस्क्रिप्शन

इस फीचर की मदद से आप व्हाट्सऐप ग्रुप का विवरण लिख सकते हैं. यानी कि आप ये बता सकते हैं कि उस ग्रुप का मकसद क्या है? इसके लिए ग्रुप के नाम पर टैप करें और फिर आपको नीचे एड डिस्क्रिप्शन का विकल्प मिलेगा. जिसपर जाकर आप इस फीचर का प्रयोग कर सकेंगे.

ग्रुप का आइकन कौन-कौन बदल सकता है?

व्हाट्सऐप के किसी भी ग्रुप का एडमिन तय कर सकता है कि ग्रुप का कौन-सा मेंबर ग्रुप की प्रोफाइल फोटो और डिस्क्रिप्शन बदल सकता है और कौन नहीं. यानि कि अब इस फीचर के आने के बाद आप बिना एडमिन की इजाजत ग्रुप का आइकन और विवरण नहीं बदल पाएंगे.

ग्रुप मेंबर को सर्च करें

व्हाट्सऐप ग्रुप में किसी मेंबर को सर्च करने का पहले विकल्प नहीं था लेकिन अब ग्रुप के नाम पर टैप करके किसी भी मेंबर को ग्रुप में सर्च कर सकेंगे. पहले सर्च करने के लिए नीचे तक स्क्रौल करना पड़ता था. पर आपको इस नए अपडेट के बाद ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

किसी मेंबर को बार-बार ग्रुप में एड नहीं किया जा सकता

व्हाट्सऐप ने एक और फीचर पेश किया है जिसके बाद ग्रुप के किसी मेंबर द्वारा ग्रुप छोड़ने के बाद उसे ग्रुप में बार-बार एड नहीं किया जा सकेगा.

ग्रुप बनाने वाले को ग्रुप से नहीं हटाया जा सकता

व्हाट्सऐप के नए अपडेट के बाद ग्रुप बनाने को ग्रुप से नहीं हटाया जा सकता है. यानि आपने कोई व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है तो आपको कोई दूसरा एडमिन ग्रुप से रिमूव नहीं कर सकेगा. यह फीचर ग्रुप एडमिन को ज्यादा पावरफुल बनाता है.

दर्शकों का मनोरंजन ही नहीं उन्हें शिक्षित भी करना चाहता हूं : जौन अब्राहम

सफलतम मौडल से अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके जौन अब्राहम की पहचान एक एक्शन हीरो के रूप में होती है, जबकि वह खुद हास्य फिल्में देखना व हास्य किरदारों को निभाना ज्यादा पसंद करते हैं. मगर ‘‘विक्की डोनर’’ और ‘‘मद्रास कैफे’’ जैसी फिल्में बनाकर अपनी संजीदगी का अहसास करा चुके हैं.

जौन अब्राहम का मानना है कि वह संजीदा विषयों पर संजीदा फिल्में बनाकर दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ ही उन्हे शिक्षित भी करना चाहते हैं. जौन अब्राहम से बातचीत करते समय इस बात का भी अहसास होता है कि वह अभिनेता व फिल्म निर्माता होने के साथ साथ देश के राजनैतिक व सामाजिक हालातों को लेकर पूरी तरह से सजग हैं और वह युवा पीढ़ी को भी सजग करना चाहते हैं.

आपकी पिछली कुछ फिल्मों को बाक्स आफिस पर असफलता मिली थी?

फिल्म ‘‘फोर्स 2’’ तो नोटबंदी के अवसर पर रिलीज हुई थी, इसलिए नहीं चली. उससे पहले मेरी फिल्म ‘राकी हैंडसम’ असफल हुई. पर मैं आज भी मानता हूं कि ‘राकी हैंडसम’ भारत की सर्वश्रेष्ठ एक्शन वाली फिल्म है.

जब ‘‘राकी हैंडसम’’ जैसी फिल्में असफल होती है, तब कैसा लगता है?

बहुत तकलीफ होती है. जब हम किसी फिल्म के लिए मेहनत करते हैं, अच्छा काम करते हैं और उसे सराहा ना जाए तो तकलीफ होती है. जब यह फिल्म थिएटरों में आयी थी, तो इसे सफलता नहीं मिली थी. लेकिन अब यह ‘नेट फिलिक्स’ पर काफी पसंद की जा रही है. सभी अब कमेंट लिख रहे हैं कि उन्हें इस फिल्म का एक्शन बहुत पसंद आ रहा है. नेट फिलिक्स वाले हमें बता रहे थे कि एक्शन फिल्मों में ‘राकी हैंडसम’ पहले नंबर पर और ‘फोर्स 2’ दूसरे नंबर पर है. मुझे लगता है कि हम इस फिल्म को सही मार्केटिंग करके सही ढंग से रिलीज नही कर पाए थे. देखिए, मैं इसलिए निर्माता बन गया. क्योंकि मैं अपनी फिल्म को सही ढंग से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता हूं. मैं मानता हूं कि दर्शक सिनेमा से मनोरंजन चाहता है, पर मेरा नजरिया यह है कि मनोरंजन भी जरूरी है, तो वहीं ‘मद्रास कैफे’ व ‘परमाणु’ जैसी फिल्में भी जरूरी हैं.

पर मद्रास कैफे’ की ही तरह परमाणु में भी देशभक्ति..?

देशभक्ति तो बायप्रोडक्ट है. मेरा मकसद अच्छी, साफसुथरी और महत्वपूर्ण कहानी लोगों को सुनाना है. मैं लोगों को बताना चाह रहा था कि अमरीका के 11000 सेटेलाइट हमारे भारत देश के उपर निगरानी कर रहे थे, उन सबसे छिप कर हमने किस तरह से न्यूकलियर/परमाणु बम विस्फोट किया. मेरा मकसद देशभक्ति की नारेबाजी करना नहीं है. हमारी फिल्म में हम भारत का तिरंगा झंडा लेकर दौड़ते हुए देशभक्ति की बात नहीं कर रहे हैं. हम तो एक ऐसी कहानी सुना रहे हैं, जिससे आप में देशभक्ति जागृत होती है. मैं बेवजह देशभक्ति के नाम पर किसी तरह की भाषण बाजी में यकीन ही नहीं करता. हमारी फिल्म में हमारा नायक कहता है, ‘हीरो वर्दी से नहीं, इरादे से बनता हैं.’ हमारी फिल्म साधारण होते हुए भी रोमांचक है. यह फिल्म डाक्यूमेंट्री नहीं है, बल्कि ऐसी फीचर फिल्म है, जिसे देखते हुए दर्शक इंज्वाय करेंगे.

इस फिल्म को बनाने से पहले आपने किस तरह का रिसर्च वर्क किया?

काफी रिसर्च किया है. शोधकार्य करना बहुत जरूरी था. क्योंकि हमें एक तथ्यपरक फिल्म बनानी थी. हम बीआरसी, वीआरडीओ, इंटेलीजेंस ब्यूरो, आर्मी इन सब जगहों पर गए. लोगों से बातें की. पूरा रिसर्च किया. मगर लोगों की पहचान को छिपाए रखने के लिए हम यह उजागर नहीं कर सकते कि हमने किनसे बात की. पर बिना रिसर्च के अच्छी फिल्म बन नहीं सकती थी. रिसर्च के लिए हमारा उन लोगों से मिलना जरूरी था, जिन्होंने बम बनाया, जिन्होंने डिनोनेटर बनाए. हमने उन वैज्ञानिको से भी मुलाकात की, जिन्होंने अमरीकन सेटेलाइट को ट्रेस करके उनकी नजरों से भारतीय गतिविधियों को छिपाया. 1998 में आर्मी से जुड़े लोग तो शूटिंग के समय हमारे साथ रहे. हम पोखरण में हुए परमाणु बम विस्फोट से जुड़े रहें हर विभाग के लोगों से मुलाकात की. उनको जोड़कर ही यह फिल्म बनायी है. हां! मैं यह कबूल करता हूं कि पूरी कहानी सत्य घटनाक्रम पर है, पर हमने इसे कमर्शियल फिल्म के रूप में बनाया.

जब आप ऐसे लोगों से मिल रहे थे तो आपके दिमाग में क्या विचार आ रहा था?

हम लोगों से मिल रहे थे, लोग हमें जानकारी दे रहे थे, पर सभी की एक ही शर्त थी कि हमारा नाम कहीं मत लेना. इससे मेरे दिमाग में यह बात आयी कि लोग किस कदर नाम की परवाह किए बगैर देश के लिए मर मिटने, काम करने के लिए तैयार रहते हैं. हमारे देश का स्ट्रक्चर/नींव बहुत मजबूत है. भले लोग इस पर यकीन ना करें. हमारा देश जिस तरह से प्रगति कर रहा है, बहुत जल्द विश्व का नंबर वन देश बन जाएगा.

आपकी फिल्म में राजनीति भी जुड़ी हुई है?

जी हां! पोखरण में कराए गए परमाणु बम विस्टोफ के पीछे राजनीति का जुड़ाव है. पहले 1995 में न्यूक्लीयर बम विस्फोट होने वाले थे. उस वक्त कई दलों की मिश्रित सरकार थी और इसी मसले पर सरकार गिरने वाली थी. इसलिए न्यूक्लियर बम विस्फोट को रोक दिया गया था. जिससे सरकार बच गयी थी. पर 1998 में बाजपेयी के अटल इरादों ने न्यूक्लियर बम विस्फोट करवा लिया. तो हमारी फिल्म में सब कुछ सही सही दर्ज किया गया है. दर्शक परमाणु विस्फोट की कहानी को सुनता आया है. पर फिल्म देखते समय वह बहुत सी जगहों पर चौकेगा. मैने पूरी फिल्म यथार्थ परक बनायी है. जिस तरह से न्यूकलियर बम विस्फोट हुए थे, उसी तरह से हमने दिखाया है. देखिए हम वास्तव में ब्लास्ट तो कर ही नही सकते थे, इसलिए हमने वीएफएक्स का सहारा लिया.

माजिद मजीदी की माने तो वीएफएक्स से नकलीपना आ जाता है?

वह अपनी जगह सही है. मगर हम अपनी इस फिल्म के लिए न्यूकलियर बम विस्फोट तो कर ही नहीं सकते थे. आज की तारीख में मैं अपनी बाडी को बनाने के लिए जिम में मेहनत करता हूं. मेरे अलावा टाइगर श्राफ भी जिम में बहुत मेहनत करता है. बाकी के कलाकार तो महज वीएफएक्स में ही अपनी बाडी बनाते रहते हैं. बालीवुड में मैं और टाइगर श्राफ यह दो लोग ही हैं, जो जिम में मेहनत करते हैं, बाकी तो सब थ्री डी में ही बना लेते हैं. जो वास्तव में होता है, वह वीएफएक्स से नहीं आता. वीएफएक्स से नकलीपना ही आता है. इसलिए मैं माजिद मजीदी के कथन से पूर्णतया सहमत हूं.

रिसर्च के दौरान पोखरण से जुड़े रहे लोगों से बात करते समय आपको उनमें क्या खासियत नजर आयी, जिसने आपको प्रेरित किया?

मैंने पाया कि यह वैसे हीरो नही है, जो कि कैमरे के सामने खड़े होकर अपनी हीरो जैसी बाडी दिखाते हैं. यह बहुत साधारण, लेकिन देश के असली हीरो हैं. ‘जय जवान जय विज्ञान’. यह बहुत साधारण व चुपचाप काम करते हैं. आपके सामने से निकल जाते हैं, और आपको अहसास नहीं होता कि इन्होंने ही न्यूकलियर बम विस्फोट किया था. इन्हें देखकर हमारा हौसला बढ़ता है. इन्हें तो अपना नाम तक नहीं चाहिए. काम करने के बाद भी कहते हैं कि हमारा नाम मत लो. यह जो त्याग है, उसने मुझे बहुत प्रभावित किया.

अमरीका जैसे कई देश खुद तो न्यूकलियर बम बनाते हैं. पर दूसरों पर प्रतिबंध लगाते हैं. इस बारे में आपकी क्या राय है?

जो सच है. वह हमारी फिल्म का हिस्सा है. हमने ट्रेलर में ही बोल दिया है. अमरीका हजार से भी अधिक न्यूकलियर टेस्ट कर चुका है. उसके नक्शेकदम पर चलते हुए चीन 43 टेस्ट कर चुका है और एक के बाद एक अपने परमाणु बम पाकिस्तान में निर्यात कर रहा है. इसलिए अब जरूरत है कि भारत न्यूकलियर देश बने. हमने साफ साफ कह दिया है कि हम किसी के सामने झुकेंगे नहीं.

इंसान के तौर पर आप न्यूक्लीयर बम बनाने के पक्ष में हैं?

लोगों की यह सोच ही गलत है कि न्यूकलियर बम विस्फोट करने का अर्थ यह हुआ कि हम बम बना रहे हैं. हमने अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए न्यूकलियर बम विस्फोट किया. ऐसा काम हमने महज ताकत हासिल करने के लिए किया. हम दूसरों पर निर्भर ना रहें, इसलिए हमने न्यूकलियर टेस्ट किया. उस वक्त भी हमने दुनिया को समझाने की भरपूर कोशिश की थी. पर कोई माना नहीं.1995 में तो हम पर दबाव डालकर रोक ही दिया था,1998 में हमने अंततः किया.

क्या आप मानते हैं कि सरकार बदलने के साथ ही इस तरह का निर्णय लोगों पर असर करता है?

जरूर करता है. बाजपेयी जैसे ही शासन में आए, उन्होंने वैज्ञानिकों को आगे बढ़ने के लिए हरी झंडी दे दी.

वर्तमान सरकार को लेकर आपकी क्या सोच है?

मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं राजनैतिक इंसान नही हूं. मैं किसी राजनैतिक दल से जुड़ा नहीं हूं और ना ही मेरी कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा है. मैं कोई नास्तिक इंसान भी नही हूं. पर मैं कहना चाहता हूं कि हमारी वर्तमान केंद्र सरकार देश के विकास के लिए अच्छा काम कर रही है. यह सरकार देश का विकास चाहती है. और इन्हें 2019 में फिर से सरकार बनाकर काम करने का अवसर देना चाहिए. यदि ऐसा नही हुआ, तो विकास में अवरोध आ जाएगा.

विकास के लिए किन चीजों पर ध्यान दिया जाना चाहिए?

भ्रष्टाचार को खत्म करने और इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने पर ही जोर दिया जाना चाहिए. विकास के लिए यह दोनों बहुत जरुरी है. देखिए, जब आप सड़क, पुल, रेल आदि बनाएंगे यानी कि इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करेंगे, तो दूर दूर रह रहे लोगों के बीच आवाजाही होगी, जुड़ाव होगा. यह हर देश के लिए बहुत जरूरी है. इन सारी चीजों का हमारे देश में बहुत अभाव रहा है. अब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने पर जोर दे रही है. आप खुद देखिए, कितनी तेजी से रोड बन रहे हैं, हाईवे बन रहे हैं, नए नए पुल बन रहे हैं. रेलवे में बहुत कुछ सुधार हो रहा है.

अब तक आपने जो किरदार निभाए, उनमें से किस किरदार ने आपकी निजी जिंदगी पर असर डाला?

फिल्म‘‘मद्रास कैफे’’करते हुए मैंने महूसस किया कि मैं उस जमाने में पहुंच गया, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. कलाकार के तौर पर मुझे लगा कि मैं एक मुकाम तक पहुंच गया हूं. मैंने अपने किरदार को बड़ी मैच्योरिटी के साथ अभिनीत किया था.

मेरा सवाल है कि किस किरदार का आपकी जिंदगी पर क्या असर हुआ?

मैं वही सोच रहा था. मैंने नागेश कुकनूर की एक फिल्म की थी ‘आशाएं. जो कि चली नहीं थी. उसका मेरी जिंदगी पर बहुत असर पड़ा था. इस फिल्म के लिए मैने उन कैंसर रोगियों के बीच जाकर शूटिंग की थी, जो कि अपना इलाज नहीं कराना चाहते. यह कहते हैं कि, ‘हम मरेंगे, पर इलाज नहीं करवाएंगें, दवा नहीं खाएंगे.’ जिसका असर यह हुआ कि मैं चार माह के लिए डिप्रेशन में चला गया था. उस वक्त मुझे ऐसा लगा कि जीवन इतना खूबसूरत व बहुमूल्य है, फिर भी हम इसे साधारण तरीके से लेते हैं. हम जरा सी गर्मी ठंडी बढ़ने पर हायतोबा मचाने लगते हैं. जबकि यहां लोग दवा भी नहीं लेना चाहते.

डिप्रेशन से उबरने के लिए आपने क्या किया था?

सच कह रहा हूं. इस फिल्म को करने के बाद मैं चार माह के लिए डिप्रेशन में चला गया था. लेकिन उसके बाद मैंने दो कामेडी फिल्में की और खुश हो गया. देखिए, मेरा फेवरेट जानर कामेडी ही है. मुझे कामेडी फिल्में देखना व करना बहुत पसंद है. लोग मुझे एक्शन हीरो मानते हैं, पर हकीकत में मुझे कामेडी बहुत पसंद है.

हौलीवुड फिल्मों के भारत आने से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पर किस तरह का असर पड़ रहा है?

देखिए, हम भारतीयों को मानकर चलना होगा कि मार्वल्स, एवेंजर्स, बैटमैन जैसी बड़ी फ्रेंचाइजी वाली फिल्में भारत में 300 से 500 करोड़ कमाएंगी. यह भी तय है कि हम भारतीय इन फिल्मों के बराबर की फिल्म बना नहीं सकते. क्योंकि हम उनके स्तर का धन नहीं लगा सकते. ऐसे में जरूरी है कि हम इमोशनल और भारतीय संस्कृति से जुड़ी फिल्में बनाएं, वह चलेंगी. मैं बता दूं कि हौलीवुड जाने वाला नहीं है. हौलीवुड ने भारत में अपनी पैठ बना ली है. तो इसका मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि हम गुणवत्ता वाली फिल्में बनाएं. अन्यथा हमें काफी नुकसान उठाना पड़ेगा. इसी के साथ मैं यह भी मानता हूं कि हौलीवुड भारत में चाहे जितने पैर जमा ले, भारतीय सिनेमा खत्म नहीं होगा. पूरे विश्व में भारत एक अपवाद है. जहां बौलीवुड की फिल्में ही सबसे ज्यादा चलेंगी.

इसके बाद कौन सी फिल्में कर रहे हैं?

कई फिल्में कर रहा हूं. जिनमें से मनोज बाजपेयी के साथ एक फिल्म‘‘सत्यमेव जयते’’पूरी हो गयी है. यह कमाल की फिल्म होगी. इसके अलावा ‘‘रोमियो अकबर आल्टर’’ कर रहा हूं. निखिल अडवानी के साथ एक फिल्म ‘‘बाटला हाउस’’कर रहा हूं, जिसमें डीसीपी संजीव कुमार यादव का किरदार निभाने वाला हूं. यह फिल्म भी 2008 में दिल्ली के बाटला हाउस में घटित सत्य घटनाक्रम पर आधारित होगी. इसकी शूटिंग हम सितंबर माह में शुरू करेंगे. उससे पहले मैं इसके लिए तैयारी करने वाला हूं. डीसीपी संजीव कुमार यादव से मिलने वाला हूं. अब तक मैने जो कुछ पढ़ा है समझा है, उसके अनुसार संजीव कुमार यादव बहुत ही विनम्र इंसान हैं.

मैच हारने के बाद धोनी ने कहा, हां दुखी हूं मैं

प्लेऔफ की दौड़ से पहले ही बाहर हो चुकी दिल्ली ने शुक्रवार को अपने घर फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेले गए आईपीएल के एक अहम मैच में चेन्नई सुपर किंग्स को 34 रनों से हरा उलटफेर कर दिया. दिल्ली ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवरों में संघर्ष के बाद पांच विकेट के नुकसान पर 162 रनों का सम्माजनक स्कोर खड़ा किया था, लेकिन चेन्नई इस आसान से लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई और पूरे ओवर खेलने के बाद छह विकेट पर 128 रन ही बना सकी.

मैच के बाद धोनी ने कहा, “हां इस हार में मैं थोड़ा दुखी हूं लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे पास बहुत कुछ करने को था. हम कुछ क्षेत्रों में सुधार करना चाहते हैं. ओपनर के अलावा, हमें मिडिल और्डर में अच्छी पार्टनरशिप की जरूरत है.”

इस जीत से दिल्ली को कोई फायदा तो नहीं हुआ है, लेकिन उसने चेन्नई को अंक तालिका में पहले स्थान पर जाने से जरूर रोक दिया. चेन्नई इस समय दूसरे स्थान पर है. यह चेन्नई की इस सीजन में पांचवीं हार और दिल्ली की चौथी जीत है. चेन्नई के लिए इनफौर्म बल्लेबाज अंबाती रायुडू ने 50 रन बनाए जिसके लिए उन्होंने सिर्फ 29 गेंदें ली, जिनमें चार छक्के और चार चौके लगाए. लक्ष्य को देखते हुए रायुडू ने शेन वाटसन (14) के साथ मिलकर टीम को धीमी ही सही, लेकिन सधी हुई शुरूआत दी, लेकिन टीम का मध्यक्रम और निचला क्रम पूरी तरह से बिखर गया.

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दोनों ने पहले विकेट के लिए 46 रन जोड़े. वाटसन को अमित मिश्रा ने ट्रैंट बाउल्ट के हाथों कैच कराया. रायुडू ने 10वें ओवर की चौथी गेंद पर एक रन लेकर अपना अर्धशतक पूरा किया. वह इसी ओवर की आखिरी गेंद पर ग्लेन मैक्सवेल के हाथों लपके गए. 70 के कुल योग पर उनका विकेट हर्षल पटेल ने गिराया. सुरेश रैना 18 गेंदों में सिर्फ 15 रन ही बना सके और संदीप लामिछाने की गेंद पर विजय शंकर को डीप मिडविकेट पर आसान सा कैच दे बैठे.

सैम बिलिंग्स (1) को मिश्रा ने अपना दूसरा शिकार बनाया और 93 के कुल स्कोर पर उन्हें अभिषेक शर्मा के हाथों कैच कराया. 15वें ओवर की तीसरी गेंद पर बिलिंग्स आउट हुए. चार विकेट खो चुकी चेन्नई को जीत दिलाने की जिम्मेदारी कप्तान महेंद्र सिंह धौनी पर थी, लेकिन इस मैच में धौनी का बल्ला भी शांत रहा. 18वें ओवर की आखिरी गेंद पर कप्तान पवेलियन लौट लिए. उन्होंने 23 गेंदों में 17 रन बनाए जिसमें सिर्फ एक चौका शामिल था.

ड्वेन ब्रावो एक रन बना सके. रवींद्र जडेजा 18 गेंदों में दो छक्के मारकर 27 रनों पर नाबाद रहे, लेकिन टीम को जीत नहीं दिला सके. इससे पहले, हर्षल पटेल (नाबाद 36), विजय शंकर (नाबाद 36) की संघर्षपूर्ण पारियों के दम पर दिल्ली सम्माजनक स्कोर खड़ा करने में सफल रही. मेजबान टीम के लिए यह स्कोर भी मुश्किल लग रहा था लेकिन हर्षल ने तीन और शंकर ने एक छक्के की मदद से 26 रन बटोर अपनी टीम को सम्मानजनक स्कोर प्रदान किया.

हर्षल ने 16 गेंदों में चार छक्के और एक चौका लगाया. वहीं शंकर ने 28 गेंदों में दो चौके और दो छक्के लगाए. दोनों ने छठे विकेट के लिए 65 रनों की साझेदारी कर टीम को कम स्कोर तक सीमित रहने से बचाया. दिल्ली को अच्छी शुरूआत की जरूरत थी लेकिन वो उसे मिली नहीं. युवा बल्लेबाज पृथ्वी शौ (17) बड़ा शौट खलेने की कोशिशि में दीपक चहर की गेंद पर शार्दुल ठाकुर के हाथों लपके गए. उनका विकेट 24 रनों के कुल स्कोर पर गिरा.

इसके बाद दिल्ली की उम्मीद ऋषभ पंत ने मैदान पर कदम रखा. चेन्नई की नपी तुली गेंदबाजी ने हालांकि पंत को हाथ खोलने के ज्यादा मौके नहीं दिए. छह ओवर में दिल्ली ने 39 रन बनाए थे. उसे 50 का आंकड़ा छूने के लिए 7.4 ओवरों तक इंतजार करना पड़ा. अय्यर ने पंत के साथ मिलकर दूसरे विकेट के लिए 54 रनों की साझेदारी की.

अय्यर लुंगी नगिदी की गेंद पर हटकर शौट खेलने के प्रयास में 78 के कुल स्कोर पर बोल्ड हो गए. इसी ओवर में पंत भी पवेलियन लौट लिए. नगिदी की गेंद उनके बल्ले का ऊपरी किनारा लेकर थर्डमैन पर खड़े ब्रावो के हाथों में गई जिसे लपकने में उन्होंने कोई गलती नहीं की. पंत का विकेट 81 के कुल स्कोर पर गिरा. पंत ने 26 गेंदों में 38 रनों की पारी खेली जिसमें छह चौके और दो छक्के शामिल थे. यहां से दिल्ली की हालत खराब होती चली गई. मैक्सवेल (5) का बल्ला एक बार फिर शांत रहा और जडेजा ने उन्हें अपनी एक शानदार गेंद पर बोल्ड कर दिया. वह 94 के कुल स्कोर पर आउट हुए.

पिछले मैच में शानदार प्रदर्शन करने वाले युवा बल्लेबाज अभिषेक इस मैच में सिर्फ दो रन ही बना सके और 97 के कुल स्कोर पर ठाकुर की गेंद पर हरभजन सिंह के हाथों लपके गए. आउट होने से एक गेंद पहले ही रैना ने अभिषेक को जीवनदान दिया था जिसका वो फायदा नहीं उठा पाए. यहां से शंकर और हर्षल ने टीम को संभाला और सम्मानजनक स्कोर प्रदान किया. दोनों ने आखिरी ओवर में 26 रन बटोरे. हर्षल ने आखिरी ओवर में तीन और शंकर ने एक छक्का लगाया. चेन्नई के लिए नगिदी ने दो विकेट लिए. जडेजा, ठाकुर और चहर को एक-एक सफलता मिली.

तो अब अर्जुन रामपाल और मेहर जेसिया भी होंगे अलग

फरहान अख्तर और शाहरुख खान के खास दोस्त व अभिनेता फरहान अख्तर का वैवाहिक जीवन भी बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है. सूत्रों के अनुसार अर्जुन रामपाल और उनकी पत्नी मेहर जेसिया पिछले एक साल से एक दूसरे से अलग रह रहे है.

सूत्रों का दावा है कि अर्जुन रामपाल की सुजैन खान के साथ बढ़ती नजदीकियों की वजह से ही अर्जुन रामपाल की शादी टूटने के करीब पहुंच गयी है.

अब सूत्र दावा कर रहे हैं कि समझौते के सारे रास्ते बंद होने के बाद अर्जुन रामपाल ने अपनी पत्नी मेहर जेसिया से अलग रहने चले गए हैं. मगर इस मसले पर अर्जुन रामपाल ने चुप्पी साध रखी है…देखना है कि इनके बीच समझौता होता है या…

छीन ली सांसों की डोर : भाग 2

सूचना पा कर एसआई बृजेश शुक्ल फोर्स के साथ मौके पे पहुंच चुके थे. उन्होंने शव का मुआयना किया. मृतका के गले पर अनेक घाव थे. चूंकि पूरी वारदात मृतका की छोटी बहन सिया के सामने घटित हुई थी, इसलिए उस ने एसआई बृजेश शुक्ल को सारी बातें बता दीं. उस ने बताया कि बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी, प्रधान का ही भतीजा सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव ने दीदी की हत्या की है.

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने जितेंद्र दुबे की तहरीर पर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उस के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस, सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव के खिलाफ हत्या और छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि ग्रामप्रधान कृपाशंकर का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग किया करता था. वह रागिनी से एकतरफा प्यार करता था. कई बार वह रागिनी से अपने प्यार का इजहार कर चुका था लेकिन रागिनी न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस ने उस के प्रेम पर अपनी स्वीकृति की मोहर ही लगाई थी.

पहले तो रागिनी उस की हरकतों को नजरअंदाज करती रही. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर जाने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.

बेटी की परेशान जान कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी हुई थी, भला वह इसे कैसे सहन कर सकते थे. वह उसी समय शिकायत ले कर ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे. संयोग से कृपाशंकर घर पर ही मिल गए. जितेंद्र ने उन के बेटे की हरकतों का पिटारा उन के सामने खोल दिया. लेकिन कृपाशंकर ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानी के घमंड में चूर कृपाशंकर तिवारी ने जितेंद्र को डांटडपट कर भगा दिया.

जितेंद्र दुबे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रधान से उस के बेटे की शिकायत करनी उन्हें भारी पड़ जाएगी. अगर उन्हें इस बात का खयाल होता तो वह शिकायत कभी नहीं करते.

बाप ने दी बेटे को शह

शिकायत का परिणाम उल्टा यह हुआ कि शाम के समय जब प्रिंस कहीं से घूम कर घर लौटा तो कृपाशंकर ने उस से पूछा, ‘‘बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर यहां आए थे. वे कह रहे थे कि उन की बेटी को आतेजाते तंग करते हो, क्या बात है?’’

इस पर प्रिंस ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘पापा, यह सब गलत है, झूठ है. मैं ने उस की बेटी के साथ कभी बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. मुझे बदनाम करने के लिए पंडितजी झूठ बोल रहे होंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं जानता हूं बेटा. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है कि तू ऐसावैसा कोई काम नहीं करेगा. वैसे मैं ने पंडितजी को डांट कर भगा दिया है.’’

‘‘ठीक किया पापा,’’ प्रिंस के होंठों पर जहरीली मुसकान उभर आई.

प्रिंस ने उस समय तो पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. पुत्रमोह में अंधे कृपाशंकर को भी बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि प्रिंस की आंखों में दुबे की बेटी रागिनी के लिए नफरत और गुस्से का लावा फूट पड़ा. उसे लगा कि पंडित की हिम्मत कैसे हुई कि उस के घर शिकायत करने आ गया. प्रिंस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. आखिर उस ने वही किया, जो उस ने मन में ठान लिया था.

दिनदहाड़े रागिनी की हत्या के बाद आसपास के इलाके में दहशत फैल गई थी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए एसपी सुजाता सिंह ने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए. कप्तान का आदेश पाते ही एसआई बृजेश शुक्ल अपनी पुलिस टीम के साथ आरोपियों को तलाशने में जुट गए.

8 अगस्त, 2017 को पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया. पुलिस को इस का लाभ भी मिला. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वह जिला छोड़ कर गोरखपुर जा रहे थे.

दोनों को गिरफ्तार कर के पुलिस उन्हें थाना बांसडीह रोड ले आई. दोनों आरोपियों से रागिनी दुबे की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की गई. पहले तो प्रिंस ने पुलिस को अपने पिता की ताकत की धौंस दिखाई लेकिन कानून के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई. आखिर दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेकने में ही भलाई समझी. उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के 3 आरोपी मौके से फरार हो गए थे.

दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

55 वर्षीय जितेंद्र दुबे मूलत: बलिया जिले के बांसडीह में 6 सदस्यों के परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 1 बेटा अमन था. निजी व्यवसाय से वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. उन का परिवार संस्कारी था.

बेटियों पर गर्व था दुबेजी को

उन की तीनों बेटियां गांव में मिसाल के तौर पर गिनी जाती थीं, क्योंकि तीनों ही अपने काम से काम रखती थीं. वे न तो अनर्गल किसी दूसरे के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू की गप्पें लड़ाती थीं. वे पढ़ाई के साथ घर के काम में भी हाथ बंटाती थीं. दुबेजी बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. तभी तो उन की पढ़ाई पर पानी की तरह पैसा बहाते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर हमेशा खरा उतरने की कोशिश करती थीं.

तीनों बेटियों में नेहा बीए में पढ़ती थी, रागिनी 11वीं पास कर के 12वीं में गई थी जबकि सिया 11वीं में थी. स्वभाव में रागिनी नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग थी. रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक सब में अव्वल रहती थीं. वह शरमीली और भावुक किस्म की लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकलती थी.

बात 2015 के करीब की है. रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. उस समय रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें घर से रोजाना बजहां गांव हो कर पैदल ही स्कूल के लिए जातीआती थीं. बजहां गांव के ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य उन्हें स्कूल आतेजाते बड़े गौर से देखा करता था.

प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया था. थी तो रागिनी साधारण शक्लसूरत की, मगर उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जाया करती, वह उन के इंतजार में गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ खड़ा रहता था.

डिविलियर्स ने बताया कैसे ताजमहल पर किया था अपनी पत्नी को प्रपोज

एबी डिविलियर्स अभी काफी चर्चा में चल रहे हैं. उनके चर्चा की वजह बेंगलुरु हैदराबाद मैच में उनकी शानदार बल्लेबाजी के बाद उनका एक अविश्वस्नीय कैच है. इस मैच में एबी डिविलियर्स ने ऐसा कैच लिया जिसे देखकर हर कोई हैरान रह गया. डिविलियर्स ने हाल ही में एक इंटरव्यू में खुलासा किया कि कैसे उन्होंने अपनी पत्नी को शादी के लिए प्रपोज किया जो उनके लिए बहुत ही यादगार लम्हें हैं.

एबी ने बताया कि पांच साल पहले ही उनकी शादी हुई थी और उससे पहले जब वे भारत आए थे, तब वे कुछ फोटोग्राफर्स को अपने साथ आगरा के ताजमहल ले गए थे और डेनियल को बताया कि वे उनके सिक्योरिटी गार्ड्स हैं. जबकि वे पूरे वाक्ये को ही शूट कर रहे थे. एबी ने पहले ही इसे पूरी योजना से अंजाम दिया था जिससे डेनियल काफी सरप्राइज हईं. एबी उन लम्हों को काफी खास मानते हैं. उन्हें याद कर एबी कहते हैं कि जब वे इस वाक्ये के बाद लौटे और विराट को इसके बारे में बताया तब विराट ने कहा था, ‘तुम हमारे लिए स्टैंडर्ड काफी ऊंचा कर रहे हो.’ इसके बाद मैंने देखा कि विराट ने अनुष्का के लिए भी काफी अच्छा किया था.

एबी के साथ इस इंटरव्यू में जोंटी रोड्स भी थे एबी ने इस इंटरव्यू के दौरान बताया कि जोंटी रोड्स स्कूल के जमाने से उनके हीरो रहे थे. उनके पास रोड्स की एक हरी कैप भी है जिसपर पीले रंग से जोंटी का नाम भी लिखा है. एबी ने जोंटी की तारीफ करते हुए कहा कि वे एक अच्छे टीचर के साथ साथ ही बहुत अच्छे इंसान भी हैं.

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डिविलियर्स इन दिनों आईपीएल में काफी छाए हुए हैं. उनका बल्ला जम कर चल रहा है वे इस सीजन में सबसे लंबा छक्का मार चुके हैं. गुरुवार के मैच में उन्होंने एक शानदार कैच पकड़ा. जब हैदराबाद 219 रनों के लक्ष्य का पीछा कर रही थी तब अलेक्स हेल्स ने मोइन अली की गेंद को मैदान से बाहर पहुंचाने के इरादे से शौट मारा. गेंद पूरी तरह से बल्ले पर नहीं आई और बाउंड्री लाइन पर तैनात एबी ने छलांग लगाई और गेंद को हवा में एक हाथ से पकड़ लिया.

बेंगलुरु के कप्तान विराट कोहली और मैदान पर मौजूद दर्शकों को तो एक बार विश्वास ही नहीं हुआ कि कैच ले लिया गया है. यह आईपीएल इतिहास के सबसे अच्छे कैचों में से एक माना जा रहा है. मैच के बाद विराट ने खुद कहा कि यह स्पाइडरमैन जैसा काम था. आप आम इंसानों की तरह ऐसा काम नहीं कर सकते. एबी का यह छक्का सोशल मीडिया में वायरल हो गया है.

उल्लेखनीय है कि एबी और विराट की बहुत गहरी दोस्ती है. इसका जिक्र भी डिविलियर्स ने अपने उस वाक्ये की चर्चा के दौरान भी किया है. दोनों के बीच मैदान पर खासी अंडरस्टैंडिंग है और वे कभी भी आईपीएल मैदानों में एक कप्तान खिलाड़ी के तौर पर व्यवहार नहीं कर पाते हालाकि दोनों ही काफी प्रोफेशनल हैं. एबी का भारत से खास रिश्ता भी है उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में खुलासा किया कि उन्होंने भारत में ही अपनी पत्नी को शादी के लिए प्रपोज किया था और कोई ऐसी वैसी जगह नहीं बल्कि ताजमहल में ले जाकर डेनियल डिविलियर्स (उस समय डेनियल स्वार्ट) को प्रपोज किया था.

आयकर विभाग ने टीडीएस फाइलिंग को लेकर दी चेतावनी

आयकर विभाग ने ‘स्रोत पर कर’ की कटौती यानी टीडीएस काटने वाले नियोक्ताओं को चेताया है कि जनवरी-मार्च तिमाही में काटे गए टीडीएस की जानकारी 31 मई तक फाइल करें. तय तारीख तक टीडीएस की जानकारी देने में नाकाम रहने पर 200 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना देना होगा. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने इस संबंध में आज समाचार-पत्रों में विज्ञापन जारी किया है.

क्या है आयकर विभाग का आदेश

आयकर विभाग ने जो आदेश दिया है उसमें कहा गया है कि जनवरी-मार्च तिमाही का टीडीएस फाइल करने की अंतिम तिथि 31 मई है. टीडीएस फाइल करने में देरी होने पर प्रतिदिन 200 रुपए का जुर्माना लगेगा. आगे कहा गया है कि जिन कटौतीकर्ताओं यानी नियोक्ता ने कर की कटौती की है और निर्धारित तिथि तक उसे जमा नहीं किया वे तुरंत इसे जमा करें.

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कहां जमा करेंगे नियोक्ता

इसके लिए उन्हें खुद को आयकर विभाग की आधिकारिक वेबसाइट ‘www.tdscpc.gov.in’ पर पंजीकृत करना होगा. विभाग ने नियोक्ताओं को टीएएन (कर कटौती एवं संग्रह खाता संख्या) सही भरने और टीडीएस का भुगतान करने वालों का पैन (स्थायी खाता संख्या) संख्या सही भरने की सलाह दी है ताकि वे आसानी से “टैक्स क्रेडिट” प्राप्त कर सकें. टीडीएस की जानकरी में पैन और टीएएन संख्या नहीं होने पर जुर्माना लग सकता है.

हर तीन महीने में देना होता है ब्योरा

आयकर विभाग के नियमों के मुताबिक, कटौतीकर्ता (नियोक्ता) कर्मचारी के वेतन से टीडीएस की कटौती करता है और उसे हर तिमाही या तीन महीने का विवरण आयकर विभाग के साथ साझा करना होता है.

धोखाधड़ी : कबूतरबाजी का काला धंधा

साल 1989 में आई सलमान खान और भाग्यश्री की सुपरहिट फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ का एक गाना ‘कबूतर जाजाजा, कबूतर जा…’ बहुत मशहूर हुआ था, जिस में भाग्यश्री अपना लव लैटर एक खूबसूरत सफेद कबूतर की मारफत दूर गए सलमान खान तक भिजवाती है. वह समझदार कबूतर सलमान खान तक चिट्ठी पहुंचा कर कर अपना फर्ज निभाता है.

पर कुछ कबूतर समझदार नहीं, बल्कि शातिर होते हैं. उन की सरपरस्ती करने वाले कबूतरबाज तो और भी चालबाज. यहां कबूतर कोई पक्षी नहीं, बल्कि वे लालची लोग होते हैं जो पौंड, डौलर में कमाई करने की खातिर गैरकानूनी तरीके से विदेशों की धरती पर पैर रखते ही वहां ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग. लोगों को इस तरह एक देश से दूसरे देश में भेजने को ‘कबूतरबाजी’ का नाम दिया गया है.

साल 2003 में पंजाबी गायक दलेर मेहंदी कबूतरबाजी के मामले में फंसे थे. तब उन पर और उन के बड़े भाई शमशेर सिंह पर आरोप लगा था कि वे प्रशासन को धोखे में रख कर कुछ लोगों को अपनी सिंगिंग टीम का हिस्सा बता कर विदेश ले गए थे और उन्हें वहीं छोड़ दिया था. इस के एवज में उन्होंने काफी मोटी रकम भी वसूली थी.

मामला कुछ यों है कि साल 1998 और 1999 में दलेर मेहंदी 2 बार अमेरिका गए थे. इस दौरान वे 10 ऐसे लोगों को भी अपने साथ ले गए थे, जो लौटे ही नहीं.

साल 2003 में बख्शीश सिंह नाम के एक शख्स ने दलेर मेहंदी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. पंजाब की पटियाला पुलिस ने जानकारी के आधार पर दलेर मेहंदी के भाई शमशेर मेहंदी को गिरफ्तार किया था. पर तब पूरी पुलिस टीम का ही तबादला कर दिया गया था. ऐसा माना जाता है कि किसी भारी दबाव के चलते ऐसा फैसला लिया गया था.

लेकिन अब 15 साल के बाद पटियाला कोर्ट ने दलेर मेहंदी को गैरकानूनी तरीके से लोगों को विदेश ले जाने के मामले में कुसूरवार बताया है. दलेर मेहंदी को 2 साल की सजा सुनाई गई है. साथ ही, उन पर 2 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है.

हालांकि, दलेर मेहंदी को फौरन जमानत भी मिल गई और उन के वकील ने कहा कि वे निचली अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे.

चूंकि यह हाईप्रोफाइल मामला पंजाबी गायक दलेर मेहंदी से जुड़ा हुआ है, इसलिए जल्दी ही सुर्खियों में आ गया, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में भी मानव तस्करी के नाम पर कबूतरबाजी का खेल खेलने का सिलसिला बेरोकटोक जारी है.

नवंबर, 2017 में मुंबई की सहार इलाके की पुलिस ने 40 साल के बल्लू कानू भाई को गुजरात से गिरफ्तार किया था. उस पर जाली पासपोर्ट के जरीए लोगों को अमेरिका और कनाडा भेजने का आरोप लगा था. पुलिस के मुताबिक यह आरोपी अब तक फर्जी तरीके से 53 लोगों को विदेश भेज चुका था.

कबूतरबाजी के सिलसिले में पुलिस की यह धरपकड़ मई महीने से ही शुरू हो गई थी. तब सहार पुलिस ने लोगों को जाली पासपोर्ट के आधार पर अमेरिका और कनाडा भेजने वाले एक कबूतरबाज गैंग का परदाफाश किया था. उस समय कुल 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने इस गोरखधंधे से जुड़े 3 इमिग्रेशन अफसरों को भी पकड़ा था.

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पुलिस की पूछताछ में बल्लू कानू भाई ने बताया कि साल 2015 से साल 2017 के दौरान उस ने कुल 53 लोगों को गलत तरीके से विदेश भेजा था. इस के एवज में हर शख्स से 50 लाख से 60 लाख रुपए लिए गए थे. इस काम में उस का पूरा गिरोह मदद करता था. लोगों से लिए गए पैसे में गैंग के हर सदस्य की हिस्सेदारी बंधी होती थी.

अगस्त, 2016 में दिल्ली पुलिस ने कबूतरबाजी के ऐसे गिरोह का परदाफाश किया था जो दुबई में अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों से ठगी करता था. यह गिरोह पौश एरिया में आलीशान दफ्तर खोल कर कबूतरबाजी के काले कारोबार को अंजाम दे रहा था.

इस गिरोह के सदस्य ऐसे बेरोजगार नौजवानों को ठगते थे जिन को नौकरी की तलाश होती थी. वे उन्हें दुबई समेत कई दूसरे देशों में नौकरी दिलाने का लालच दे कर उन से लाखों रुपए की रकम ऐंठ लेते थे.

ऐसा ही एक मामला दिल्ली से सटे राज्य उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का भी था. वहां कैला भट्टा इलाके का रहने वाला फुरकान कविनगर में एक शख्स से मिला था. उस ने दुबई के एक होटल में नौकरी लगवाने का झांसा दे कर उस से 50 हजार रुपए ऐंठ लिए थे. इस के एवज में फुरकान को जो वीजा दिया गया था वह फर्जी निकला.

उस शख्स ने फुरकान के साथसाथ 4 नेपाली लोगों से भी इसी काम के नाम पर 50-50 हजार रुपए हड़प लिए थे. केरल का वह धोखेबाज इस करतूत को अंजाम दे कर फरार हो गया था.

कुछ लोगों के साथ तो इस से भी ज्यादा बुरा होता है. मध्य प्रदेश के भिंड इलाके का रहने वाला नरेंद्र सिंह विदेश में नौकरी कर के अपने घर की माली हालत सुधारना चाहता था. इस सिलसिले में उस की मुलाकात धर्मेंद्र सिंह से हुई जिस ने उस से सऊदी अरब में नौकरी दिलाने का वादा किया और उस से तकरीबन पौने 2 लाख रुपए ले लिए.

इस के बाद एक फर्जी पासपोर्ट बनवा कर नरेंद्र सिंह को किसी तरह सऊदी अरब भेज दिया गया. अभी एक साल भी नहीं बीता था कि नरेंद्र सिंह ने अपने परिवार वालों को फोन कर के बताया कि उसे भूखा रखा जाता है और तय की गई तनख्वाह भी नहीं दी जाती है.

तब नरेंद्र सिंह के परिवार वालों ने धर्मेंद्र सिंह से उसे वापस लाने को कहा तो उस ने उन से दोबारा ढाई लाख रुपए ले लिए, पर नरेंद्र सिंह वापस नहीं लौटा. पुलिस की मदद से धर्मेंद्र सिंह को पकड़ लिया गया और उस से की गई पूछताछ में पता चला कि वह एक कबूतरबाज गिरोह से जुड़ा था जिस ने 12 से ज्यादा लोगों को विदेश भेज कर लाखों रुपए की ठगी की थी. विदेश भेजे गए लोग नरेंद्र सिंह की तरह नरक की सी जिंदगी जी रहे थे.

ऐसा बहुत से मामलों में होता है कि यूरोप या दूसरे अमीर देशों में भेजने के नाम पर लोगों को अफ्रीका के गरीब देशों में भेज दिया जाता है. कई लोग पकड़े जाते हैं तो वे जिंदगीभर जेलों में सड़ते रहते हैं. बहुतों को तो ढंग से अंगरेजी भी नहीं बोलनी आती है जिस से वे अपनी बात विदेशी अफसरों से कह सकें. लिहाजा, वे न तो इधर के रहते हैं और न ही उधर के.

सवाल उठता है कि काबिल न होने के बाद भी बेरोजगारों में विदेश जाने का चसका क्यों लगता है? दरअसल, किसी परिवार से अगर कोई शख्स विदेश जा कर अच्छी कमाई करता है तो उस के परिवार के दूसरे सदस्य भी वहां जा कर पैसा बनाने का ख्वाब देखने लगते हैं. जब कानूनी तौर पर वे विदेश जा कर वहां रहने या रोजगार करने के लायक नहीं होते हैं तो वे किसी भी तरह अपना सपना पूरा करने की जुगत भिड़ाने लगते हैं.

पंजाब जैसे राज्यों में तो बहुत से नौजवान अपनी बेशकीमती जमीन बेच कर विदेश जाने की योजनाएं बनाते हैं, चाहे वहां जा कर उन्हें होटलों में बरतन ही क्यों न मांजने पड़ें. इस के लिए कानूनी नहीं तो गैरकानूनी तरीका ही उन्हें आसान लगता है, जिस का फायदा कबूतरबाज उठाते हैं.

गलीमहल्ले में बैठे ऐसे क्लियरिंग एजेंट बेरोजगारों से बहुत सी बातें छिपा जाते हैं. वे आसान तरीके से विदेश में घुसने के सब्जबाग दिखा कर लोगों को बरगलाते हैं ताकि उन्हें अपने जाल में फंसा कर पैसे ऐंठ सकें.

छोटी नौकरियों से जुड़े सरकारी नियमों की बात करें तो प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय के तहत प्रोटैक्टर जनरल औफ इमिग्रैंट्स के पास बिना कोई भी एजेंसी या विदेशी ऐंप्लौयर भारतीय श्रमिकों की सेवाएं नहीं ले सकता. इस औफिस द्वारा वैलिड परमिट जारी किए जाने के बाद ही एजेंट या विदेशी ऐंप्लौयर भारतीय श्रमिकों से काम ले सकता है.

आप का एजेंट फर्जी तो नहीं है, इस के लिए आप नजदीकी प्रोटैक्टर के औफिस में मिल कर तसल्ली कर सकते हैं. बिना पढ़े किसी भी एग्रीमैंट पर दस्तखत न करें. खुद कोई बात समझ न आए तो किसी पढ़ेलिखे से समझ लें. एजेंट को दिए जाने वाले पैसों की रसीद लें. अगर आप विदेश पहुंच जाएं तो अपने ऐंप्लौयर से किसी तरह के नए एग्रीमैंट पर दस्तखत न करें.

विदेश जा कर पैसा कमाने में कोई बुराई नहीं है पर वहां किसी गैरकानूनी तरीके से जाना बहुत बड़ा जुर्म है, जिस की सजा में पूरी उम्र तक जेल में गुजर सकती है.

बरतें ये सावधानियां

विदेश जा कर पैसा कमाने का ख्वाब देखना बुरा नहीं है, लेकिन किसी पर भी अंधा विश्वास कर के अपनी गाढ़ी कमाई उसे सौंप देना किसी लिहाज से ठीक बात नहीं है. ऐसा करने से पहले इन बातों पर जरूर ध्यान दें :

* विदेश जाने से पहले उस देश की एंबैसी से बात जरूर कर लें.

* अगर कोई आप को विदेश में पढ़ाईलिखाई से जुड़ा कोई कोर्स कराने के नाम पर वहां भेजने की बात करता है तो उस कोर्स के संबंध में कंप्यूटर वगैरह पर पूरी जानकारी ले लें.

* जो शख्स या एजेंसी आप को विदेश भेजना चाहती है उस की पूरी तहकीकात कर लें. ज्यादा जरूरी हो तो उन लोगों से भी बातचीत कर लें जो उस शख्स या एजेंसी की सेवाएं ले चुके हैं.

* अपनी तसल्ली करने के बाद ही पैसा दें.

* जरा सी भी भनक लगे, तो उन लोगों से फौरन दूर हो जाएं.

क्रिकेटर निकला कबूतरबाज

भारत की ओर से 10 इंटरनैशनल वनडे मैच खेलने वाले क्रिकेटर जैकब मार्टिन को साल 2011 में कबूतरबाजी के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. वह वडोदरा रणजी टीम का कप्तान रह चुका था और 138 रणजी मैच भी खेल चुका था.

जैकब मार्टिन को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उस पर आरोप था कि वह युवा खिलाडि़यों को विदेशी टीमों की ओर से क्रिकेट मैच खिलाने के नाम पर उन्हें दूसरे देशों में ले जाता था और कई खिलाडि़यों को वहीं छोड़ देता था. इस के लिए वह फर्जी क्रिकेट टीम बनाता था. एक ऐसे ही फर्जी क्रिकेटर की गिरफ्तारी के बाद इस मामले का खुलासा हुआ था.

छीन ली सांसों की डोर : भाग 1

खुशमिजाज रागिनी दुबे सुबह तैयार हो कर अपनी छोटी बहन सिया के साथ घर से पैदल ही स्कूल के लिए निकली थी. वह बलिया जिले के बांसडीह की रहने वाली थी. दोनों बहनें सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. रागिनी 12वीं कक्षा में थी तो सिया 11वीं में.

उस दिन रागिनी महीनों बाद स्कूल जा रही थी. स्कूल जा कर उसे अपने बोर्ड परीक्षा फार्म के बारे में पता करना था कि परीक्षा फार्म कब भरा जाएगा. वह कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए परीक्षा फार्म के बारे में उसे सही जानकारी नहीं थी.

दोनों बहनें पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते हो कर स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करते हुए जा रही थीं, जब दोनों काली मंदिर के पास पहुंची तभी अचानक उन के सामने 2 बाइकें आ कर रुक गईं. दोनों बाइकों पर 4 लड़के सवार थे. अचानक सामने बाइक देख रागिनी और सिया सकपका गईं, वे बाइक से टकरातेटकराते बचीं.

‘‘ये क्या बदतमीजी है, तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका?’’ रागिनी लड़कों पर गुर्राई.

‘‘एक बार नहीं, हजार बार रोकूंगा.’’ उन चारों में से एक लड़का बाइक से नीचे उतरते हुए बोला. उस का नाम प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी था. प्रिंस आगे बोला, ‘‘जाओ, तुम्हें जो करना हो कर लेना. तुम्हारी गीदड़भभकी से मैं डरने वाला नहीं, समझी.’’

‘‘देखो, मैं शराफत से कह रही हूं, हमारा रास्ता छोड़ो और स्कूल जाने दो.’’ रागिनी बोली.

‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम क्या करोगी?’’ प्रिंस ने अकड़ते हुए कहा.

‘‘दीदी, छोड़ो इन लड़कों को. मां ने क्या कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे. चलो हम ही अपना रास्ता बदल देते हैं.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘नहीं सिया नहीं, हम बहुत सह चुके इन के जुल्म. अब और बरदाश्त नहीं करेंगे. इन दुष्टों ने हमारा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरोगी, उतना ही ये हमारे सिर पर चढ़ कर तांडव करेंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ओ झांसी की रानी,’’ प्रिंस गुर्राया,  ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता भी है कि तू किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं, मिनट में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात ही क्या है. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था ना, पर तू नहीं मानी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरने के बजाए प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई. ‘‘तुम मुझे स्कूल जाने से रोकोगे, ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो,’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजरोज मर के जीने से तो अच्छा होगा कि एक ही दिन मर जाएं. कम से कम जिल्लत की जिंदगी तो नहीं जिएंगे. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

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‘‘तूने किसे दुष्ट कहा?’’ प्रिंस गुस्से से बोला.

‘‘तुझे और किसे…’’ रागिनी भी आंखें दिखाते हुए बोली.

आतंक पहुंचा हत्या तक

इस तरह दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. विवाद बढ़ता देख कर प्रिंस के सभी दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर कर उस के पास जा खड़े हुए. सिया रागिनी को समझाने लगी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने बहन की एक नहीं सुनी. गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव उस ने रागिनी को जोरदार धक्का मारा.

रागिनी लड़खड़ाती हुई जमीन पर जा गिरी. अभी वह संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि वह उस पर टूट पड़ा. पहले से कमर में खोंस कर रखे चाकू से उस ने रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ देर तड़पने के बाद रागिनी की मौत हो गई. उस की हत्या कर वे चारों वहां से फरार हो गए.

घटना इतने अप्रत्याशित तरीके से घटी थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चीख निकल पड़ी. उस की चीख इतनी तेज थी कि गांव वाले अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जहां से चीखने की आवाज आ रही थी, वहां पहुंच गए. उन्होंने मौके पर पहुंच कर देखा तो रागिनी खून से सनी जमीन पर पड़ी थी. वहीं उस की बहन उस के पास बैठी दहाड़ें मार कर रो रही थी.

दिनदहाड़े हुई दिन दहला देने वाली इस घटना से सभी सन्न रह गए. लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि समाज में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि राह चलती बहूबेटियों का जीना तक मुश्किल हो गया है. इस बीच किसी ने फोन द्वारा घटना की सूचना बांसडीह रोड थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी थी.

गांव वाले रागिनी को पहचानते थे. वह पास के गांव बांसडीह के रहने वाले जितेंद्र दुबे की बेटी थी, इसलिए उन्होंने जितेंद्र दुबे को भी सूचना दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी की चिंता सता रही थी आखिरकार वो हो गई.

जितेंद्र दुबे जिस हालत में थे, उसी हालत में घटनास्थल की तरफ दौडे़. वह बजहां गांव के काली मंदिर के पास पहुंचे तो वहां उन की बेटी की लाश पड़ी थी.

लाश के पास ही छोटी बेटी सिया दहाड़े मार कर रो रही थी. बेटी की रक्तरंजित लाश देख कर जितेंद्र भी फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें 2-3 दिन पहले ही कुछ शरारती तत्व घर पर धमकी दे कर गए थे कि रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए.

संकट में बाघ वंश : बाघों की लगातार होती मौतों का सच

इसी मार्च महीने के तीसरे सप्ताह में लगे 2 बड़े झटकों ने वन्यजीव प्रेमियों को हिला कर रख दिया. दोनों झटके राजस्थान में केवल 24 घंटे के अंतराल पर लगे. विश्वप्रसिद्ध सरिस्का अभयारण्य में एक बाघ की फंदे में फंसने से मौत हो गई. इस के अगले ही दिन रणथंभौर अभयारण्य का एक बाघ पास के एक गांव में घुस गया. ग्रामीणों की सूचना पर पहुंचे वन विभाग के कर्मचारियों ने उसे बेहोश कर पकड़ने के लिए ट्रैंकुलाइज किया, लेकिन बाघ बेहोशी की दवा का असर नहीं झेल सका और उस की मौत हो गई.

सरिस्का में फरवरी के चौथे सप्ताह से बाघिन एसटी-5 लापता चल रही थी. इस बाघिन की तलाश में वन विभाग के कर्मचारी दिनरात ट्रैकिंग कर रहे थे. इसी दौरान 19 मार्च, 2018 की रात करीब 9 बजे सरिस्का अभयारण्य की सदर रेंज के इंदौक इलाके में कालामेढ़ा गांव के एक खेत में बाघ का शव पड़ा होने की सूचना मिली.

इस सूचना पर सरिस्का मुख्यालय के अफसर मौके पर पहुंचे और बाघ केशव के शव को कब्जे में ले लिया. उस की गरदन क्लच वायर द्वारा बनाए गए फंदे में फंसी हुई थी. वह 4 साल के जवान नर बाघ एसटी-11 का शव था. इस बाघ की मौत कुछ घंटों पहले ही हुई थी. जिस खेत में उस की लाश मिली थी, वह खेत भगवान सहाय प्रजापति का था. वन अधिकारियों ने खेत मालिक को हिरासत में ले लिया. भगवान सहाय ने वन अधिकारियों को बताया कि फसलों को नीलगायों और दूसरे जंगली जानवरों से बचाने के लिए उस ने खेत में ब्रेक वायर जैसा तार लगा रखा था. खेत की तरफ आने पर बाघ फंदे में उलझ गया होगा और फंदे से निकलने की जद्दोजहद में तार से उस का गला घुट गया होगा, जिस से उस की मौत हो गई.

जिस जगह बाघ एसटी-11 का शव मिला, वह इलाका बाघिन एसटी-3 के लापता होने वाली जगह से कुछ ही दूर है. कुछ दिनों पहले बाघिन एसटी-5 और बाघ एसटी-11 सरिस्का की अकबरपुर रेंज में साथसाथ देखे गए थे. इन के पगमार्क और लोकेशन साथ मिले थे.

उस के बाद से बाघिन एसटी-5 लापता हो गई थी, लेकिन बाघ एसटी-11 के रेडियो कौलर के सिगनल लगातार मिल रहे थे. बाघ एसटी-11 सरिस्का अभयारण्य का पहला शावक था. उस का जन्म रणथंभौर से लाई गई बाघिन एसटी-2 से करीब 4 साल पहले हुआ था.

बाघ का शव मिलने के दूसरे दिन 20 मार्च को जयपुर से वन विभाग के आला अफसर और देहरादून से भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक सरिस्का पहुंच गए. सरिस्का प्रशासन और देहरादून से आए वैज्ञानिकों ने कालामेढ़ा पहुंच कर बाघ की मौत से जुड़े साक्ष्य जुटाए. हिरासत में लिए गए खेत मालिक की निशानदेही पर तार का फंदा और बाघ के बाल आदि बरामद किए गए.

बाद में सरिस्का मुख्यालय पर बाघ के शव का पोस्टमार्टम कराया गया. इसी दिन अधिकारियों और वन्यजीव प्रेमियों की मौजूदगी में बाघ के शव को जला दिया गया. वन विभाग ने बाघ की मौत के मामले में खेत के मालिक भगवान सहाय प्रजापति को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

हैरानी की बात यह रही कि राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डा. जी.वी. रेड्डी ने पूरे मामले की जांच से पहले ही आरोपी किसान को बेकसूर बताते हुए कहा कि उस ने खेत में फसल बचाने के लिए फंदा लगाया था, जिस में फंस कर बाघ मारा गया. किसान ने खुद वन विभाग को बाघ के मरने की सूचना दी थी. फिर भी हम इस बात की जांच करेंगे कि क्या वह आदतन फंदा लगाता रहा है.

यह दुखद रहा कि जिस समय सरिस्का में बाघ एसटी-11 के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, उसी समय सरिस्का से करीब 250 किलोमीटर दूर रणथंभौर अभयारण्य में 6 साल के नर बाघ टी-28 की मौत हो गई. वह करीब 13 साल का था.

मारा गया जंगल का राजा

करीब 6 साल तक इस बाघ का रणथंभौर अभयारण्य के जोन-3 में एकछत्र राज था. जंगल के इस राजा ने साढ़े 4 साल की उम्र में बूढ़े बाघ टी-2 को भिडंत में हरा कर इस इलाके पर कब्जा जमाया था. उस दौरान दूसरे जवान बाघों ने इस इलाके पर अपना कब्जा करने के लिए टी-28 को चुनौती दी थी लेकिन वह किसी बाघ से नहीं डरा. करीब डेढ़दो साल पहले जवान बाघ टी-57 ने उसे जोन-3 से खदेड़ दिया था. इस के कुछ दिन बाद बाघ टी-86 ने उसे जंगल से बाहर का ही रास्ता दिखा दिया था.

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करीब 13 साल से ज्यादा उम्र का होने के कारण बाघ टी-28 अभयारण्य में जवान बाघों का मुकाबला नहीं कर सका. वह इधरउधर भटकने लगा था. कभी जंगल तो कभी खेतों तो कभी नालों में रह कर वह अपनी जिंदगी के दिन काट रहा था. उम्र ज्यादा होने की वजह से अब उस के लिए जंगल में शिकार करना भी मुश्किल हो गया था.

उस दिन यानी 20 मार्च, 2018 को सुबह करीब 9 साढ़े 9 बजे बाघ टी-28 भोजन की तलाश में खंडार रेंज से निकल कर छाण गांव के पास खेतों में आ गया. बाघ को देख कर आसपास के ग्रामीणों की भीड़ वहां जमा हो गई. लोगों ने उसे घेरने के बाद वन विभाग को सूचना दे दी. इस बीच लगातार भागदौड़ कर रहे इस बाघ के हमले से जैतपुर गांव का अहसर और छाण गांव का लईक जख्मी हो गए. इलाज के लिए उन्हें अस्पताल भेज दिया गया.

लोगों की सूचना पर वन विभाग के अफसर और कर्मचारी छाण गांव में मौके पर पहुंच गए. वन अधिकारियों ने पहचान लिया कि खेत में घुसा हुआ बाघ टी-28 है. अफसरों ने ग्रामीणों को समझाया कि बाघ खुद ही जंगल में चला जाएगा, लेकिन ग्रामीण अधिकारियों पर उस बाघ को पकड़ने का दबाव डाल रहे थे. हालात ऐसे थे कि बाघ चारों ओर से घिरा हुआ था. ऐसे में वह आतंकित होने के साथ खुद के बचाव का रास्ता भी ढूंढ रहा था. इस स्थिति में आक्रामक हो कर वह ग्रामीणों पर हमला भी कर सकता था.

ग्रामीणों के दबाव में वन अफसरों ने बाघ को ट्रैंकुलाइज कर बेहोश करने के लिए सवाई माधोपुर से टीम बुलाई. दोपहर करीब 12 बजे मौके पर पहुंची टीम ने अपनी काररवाई शुरू की. दोपहर करीब पौने एक बजे टीम ने निशाना साध कर एक बार में ही बाघ को ट्रैंकुलाइज कर बेहोश कर दिया.

कुछ देर इंतजार करने के बाद वन अफसरों की टीम बाघ के पास पहुंची तो वह बेहोश मिला. वन विभाग की टीम ने बेहोश बाघ को पिंजरे में डाला. इस के बाद टीम वापस जाने लगी तो ग्रामीणों ने वन विभाग की गाड़ी रोक ली. ग्रामीणों ने बाघ के कारण खेत में हुए नुकसान की भरपाई करने के बाद ही बाघ को वहां से ले जाने देने की बात कही.

इस बात पर विवाद हो गया. वन कर्मचारियों ने पैसा देने में अपनी मजबूरी बताई तो गुस्से में ग्रामीणों ने वन विभाग की टीम पर पथराव शुरू कर दिया. इस बीच वन विभाग के अफसरों ने फोन कर के किसी से उधार पैसे मंगाए और 2 खेत मालिकों को उन की फसल के नुकसान की भरपाई के रूप में 30-30 हजार रुपए नकद दे दिए.

इस के बाद ग्रामीणों ने वन विभाग की टीम को जाने की इजाजत दी. वन कर्मचारियों ने गांव से निकलते समय पिंजरे में बंद बाघ टी-28 की जांच की तो पता चला कि उस की सांसें थम चुकी थीं. बाद में उसी दिन बाघ के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

बाघों की मौत पर सवाल

2 दिन में 2 बाघों की मौत से राजस्थान में बाघों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए. पूरा वन विभाग हिल गया. राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने इन बाघों की मौत पर दुख जताते हुए कहा कि देश में बढ़ती आबादी और जंगलों में अतिक्रमण के कारण बाघों की मौत हो रही है. जंगलों से गांव स्थानांतरित नहीं हो पा रहे हैं.

सरिस्का में बाघ एसटी-11 से कुछ दिन पहले ही देश भर में टाइगर रिजर्व पर नजर रखने वाली बौडी नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी यानी एनटीसीए के चीफ डा. देवब्रत ने सरिस्का का दौरा करने के बाद राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि जब तक सरिस्का टाइगर रिजर्व में अतिक्रमण और अन्य गैरकानूनी गतिविधियां होती रहेंगी तथा पर्याप्त स्टाफ नहीं होगा, तब तक बाघ खतरे में रहेंगे.

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रणथंभौर के बाघ टी-28 की मौत के सिलसिले में 21 मार्च को सवाई माधोपुर जिले के खंडार पुलिस थाने में फलौदी रेंजर तुलसीराम ने एक रिपोर्ट दर्ज कराई. 21 लोगों के नामजद और लगभग 100 अन्य लोगों के खिलाफ दर्ज कराई रिपोर्ट में बाघ को टैं्रकुलाइज कर लाते समय सरकारी वाहन पर पथराव कर तोड़फोड़ करने और राजकीय कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाया गया. उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि यदि टैं्रकुलाइज किए बाघ को इतनी देर तक नहीं रोका जाता तो उस की जान बचाई जा सकती थी.

21 मार्च को ही सवाई माधोपुर में पथिक लोक सेवा समिति और कंज्यूमर रिलीफ सोसायटी के कार्यकर्ताओं ने कलेक्टरेट पर प्रदर्शन कर कलेक्टर को प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन दिया. उन्होंने बाघ की मौत की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की. ज्ञापन में वन विभाग पर ट्रैंकुलाइज करने में लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा गया कि वन विभाग के पास बाघों को ट्रैंकुलाइज करने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं. ऐसे में अयोग्य वनकर्मियों से बाघों को ट्रैंकुलाइज कराया जा रहा है.

नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी यानी एनटीसीए ने घटना के 2 दिन बाद ही टी-28 की मौत के संबंध में राज्य के वन विभाग से रिपोर्ट मांग ली. इस में बाघ की उम्र, उस की मौत के कारण, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि सभी तथ्यात्मक जानकारियां मांगी गईं.

दूसरी तरफ सरिस्का में बाघ एसटी-11 की मौत के सिलसिले में की गई जांच में संगठित गिरोह के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है. इस में सरिस्का अभयारण्य  में पर्यटकों को घुमाने वाले जिप्सी चालकों के शामिल होने का भी संदेह है.

वन विभाग ने गिरफ्तार भगवान सहाय प्रजापति से पूछताछ के आधार पर लीलूंडा गांव में एक मकान से बंदूक, तलवार व सांभर आदि के सींग भी बरामद किए.

इस के अलावा अन्य जगहों से भी टोपीदार बंदूकें बरामद की गईं. इन आरोपियों के खिलाफ वन विभाग ने वन्यजीव अधिनियम की धाराओं के तहत काररवाई न कर के मालाखेड़ा पुलिस थाने में आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया.

पुलिस ने आर्म्स एक्ट में इंदौक गांव के बिल्लूराम मीणा, हरिकिशन मीणा व त्रिलोक मीणा और लीलूंडा गांव के रतनलाल गुर्जर को गिरफ्तार किया. हालांकि इन की गिरफ्तारी भगवान सहाय प्रजापति से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर की गई थी. वन विभाग अभी बाघ एसटी-11 की मौत के मामले की जांच कर रहा है.

फरवरी के चौथे सप्ताह से लापताबाघिन एसटी-5 के शिकार की भी आशंका जताई जा रही है. बाघिन का कोई सुराग नहीं मिलने पर एनटीसीए ने प्रोटोकोल के अनुसार सरिस्का प्रशासन को आदेश दिए हैं कि इस बाघिन के जीवित या मरने की पुष्टि की जाए.

दरअसल, बाघ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. चाहे राजस्थान का रणथंभौर हो या सरिस्का अभयारण्य हो अथवा देश का कोई अन्य अभयारण्य. सभी अभयारण्यों की अपनी समस्या है.

असुरक्षित हैं शरणस्थली

राजस्थान में बाघों की शरणस्थली के रूप में मुख्यरूप से 2 अभयारण्य हैं, रणथंभौर और सरिस्का. इन दोनों बाघ परियोजनाओं को स्थापित हुए करीब 4 दशक बीत चुके हैं. सरिस्का सन 2000 तक कार्बेट नेशनल पार्क के बाद बाघों का सब से सुरक्षित अभयारण्य माना जाता था.

इस के बावजूद वन विभाग के अफसरों की लापरवाही से सक्रिय हुए शिकारियों ने सरिस्का अभयारण्य से बाघों का सफाया कर दिया. सन 2005 में सरिस्का के बाघ विहीन होने की बात सामने आई. तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निर्देश पर इस मामले की सीबीआई ने भी जांच की थी.

जिला अलवर और जयपुर जिले के कुछ हिस्से तक करीब 1200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरिस्का टाइगर रिजर्व को तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक और बाद में राजस्थान के हैड औफ फोरेस्ट फोर्स बने आर.एन. मेहरोत्रा के प्रयासों से फिर बाघों से आबाद करने की कार्ययोजना बनाई गई.

मेहरोत्रा ने इस काम में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया का सहयोग लिया. डब्ल्यूआईआई और मेहरोत्रा के प्रयासों से 28 जून, 2008 को भारत में बाघ का पहला ट्रांसलोकेशन किया गया.

इस में रणथंभौर अभयारण्य से बाघ को ट्रैंकुलाइज कर भारतीय वायुसेना के हेलीकौप्टर से सरिस्का अभयारण्य ला कर छोड़ा गया था. इस के बाद समयसमय पर रणथंभौर से 2 नर और 2 मादा बाघों को ला कर सरिस्का में छोड़ा गया.

इस तरह सरिस्का अभयारण्य में बाघों का पुनर्वास कर वंशवृद्धि की कवायद शुरू की गई. हालांकि भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे आर.एन. मेहरोत्रा के प्रयास फलीभूत होने लग गए थे, लेकिन सब से पहले लाए गए नर बाघ की नवंबर 2010 में पायजनिंग से मौत हो गई. अब बाघ एसटी-11 की संदिग्ध तरीके से मौत हो गई.

बाघिन एसटी-5 फरवरी के तीसरे सप्ताह से लापता चल रही थी. फिलहाल सरिस्का में 11 बाघबाघिन हैं. इन में भी 2 किशोर उम्र के शावक हैं. इन के अलावा 7 शावक हैं. सरिस्का अभयारण्य का क्षेत्रफल काफी लंबाचौड़ा होने से यहां बाघ के दर्शन बड़ी मुश्किल से हो पाते हैं.

राजकुमार के नाम से जाने जाने वाले सरिस्का के बाघ एसटी-11 की मौत के बाद बाघों की वंशवृद्धि पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

सरिस्का में फिलहाल बाघिनों के मुकाबले बाघों की संख्या कम है. नर बाघों में जवान बाघ 2 ही हैं. अब इन्हीं पर सरिस्का में बाघों की वंशवृद्धि की उम्मीद टिकी हुई है. सरिस्का में पिछले ढाई साल से नया शावक नजर नहीं आया है.

सरिस्का में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है. बाघबाघिनों की नई खेप अब अपने लिए नए ठिकाने तलाश रही है. इस के लिए वे आसपास के जंगलों में चले जाते हैं.

दूसरी ओर रणथंभौर से निकल कर जवान होते बाघ अपनी विचरणस्थली करौली और दौसा जिले में भी बना रहे हैं. कुछ बाघबाघिन सवाई माधोपुर जिले की सीमाएं पार कर बूंदी और कोटा होते हुए जंगल के कारीडोर से हो कर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश तक पहुंच गए हैं. रणथंभौर से 2-2 बाघबाघिनों को अब सरिस्का और नए बनाए गए मुकंदरा अभयारण्य में स्थानांतरित करने के प्रयास भी चल रहे हैं.

संरक्षण के प्रयासों के बावजूद खतरा ही खतरा

राज्य के हैड औफ फोरेस्ट फोर्स से सेवानिवृत्त अधिकारी आर.एन. मेहरोत्रा का कहना है कि रणथंभौर में बाघ की मौत मैनेजमेंट की काररवाई की वजह से हुई. रणथंभौर में 5 साल में सब से ज्यादा व्यवहारिक गतिविधियां बढ़ी हैं. वहां कानून व्यवस्था बिगाड़ने का काम हुआ है. वन कानूनों की खुली धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.

दूसरी तरफ सरिस्का में विभागीय अधिकारी वन्यजीवों के संरक्षण में जुटे हैं, लेकिन किसान अपनी फसलों को वन्यजीवों से बचाने के लिए कानून के विपरीत फंदे लगा कर जानवरों को फांसने का काम कर रहे हैं. इसे कठोरता से रोकना जरूरी है. सरिस्का में भी अवैध कब्जे बढ़ाने की कोशिशें हो रही हैं, इन्हें सख्ती से नहीं रोका गया तो भविष्य में रणथंभौर जैसी स्थिति हो सकती है.

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया के मुताबिक सन 2004 में हुई गणना में देश भर में 1411 बाघ थे. सरकार के प्रयासों से सन 2011 में बाघों की तादाद बढ़ कर 1706 हो गई. सन 2014 में फोटोग्राफिक डाटा बेस के आधार पर देश भर में 2226 बाघ गिने गए. यह संख्या दुनिया भर के बाघों की संख्या का करीब 70 फीसदी थी. दुनिया भर में बाघों की फिलहाल कुल संख्या लगभग 3890 है.

सन 2017 देश में बाघों के लिए संकट का साल रहा. इस दौरान देश भर में 115 बाघों की मौत हई. नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल देश में 98 बाघों के शव और 17 बाघों के अवशेष बरामद किए गए. इन में से 32 मादा और 28 नर बाघों की पहचान हो सकी.

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बाकी मृत बाघों की पहचान नहीं हो सकी. बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का नाम पहले नंबर पर आता है. वहां 29 बाघों की मौत हुई.

इस के अलावा महाराष्ट्र में 21, कर्नाटक में 16, उत्तराखंड में 16 और असम में 16 बाघों की मौत दर्ज की गई. बाघों की मौत के पीछे करंट लगना, शिकार, जहर, आपसी संघर्ष, प्राकृतिक मौत, ट्रेन या सड़क हादसों को कारण बताया गया. पिछले 5 सालों में 414 बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं. इन में सन 2013 में 63, सन 2014 में 66, सन 2015 में 70, सन 2016 में 100 और 2017 में 115 मामले शामिल हैं.

बाघों के संरक्षण के लिए सरकार ने सन 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था. तब से ले कर अब तक देश में 50 टाइगर रिजर्व बनाए गए हैं, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.12 प्रतिशत है. सन 2014 के बाद इस साल फिर देश भर में बाघों की गणना की जाएगी.

इस बार गणना में परंपरागत तरीकों के अलावा हाईटेक तरीके का भी इस्तेमाल किया जाएगा. इस के लिए वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया ने एक ऐप डेवलप किया है. इसे मौनिटरिंग सिस्टम फौर टाइगर इंटेंसिव प्रोटेक्शन ऐंड इकोलौजिकल स्टेटस या एम स्ट्राइप्स नाम दिया गया है.

बहरहाल, जंगलों में बढ़ते मानवीय दखल, कटाई, चराई, स्वच्छंद विचरण का दायरा घटने से बाघों पर संकट मंडरा रहा है. इन के अलावा सब से बड़ा संकट शिकारियों का है. बेशकीमती खाल और अवशेषों से यौन उत्तेजक दवाएं बनाने वालों की निगाहें हमेशा बाघों पर टिकी रहती हैं. इसी कारण बाघ बेमौत मारे जा रहे हैं.

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