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वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए ये नुस्खे आजमाएं

यों तो हमारा समाज पुरुषप्रधान समाज है और यही समझा जाता है कि पति ही पत्नियों को प्रताडि़त करते हैं, लेकिन ऐसी पत्नियों की संख्या भी कम नहीं है जिन्होंने पतियों की नाक  में दम कर रखा होता है. पत्नियां किसकिस तरह पतियों को प्रताडि़त करती हैं और उन्हें पतियों से क्याक्या शिकायतें होती हैं:

कई पत्नियों को तो पतियों से इतनी शिकायतें होती हैं कि अगर उन्हें रूप में कामदेव, मर्यादा में राम और प्रेम में कृष्ण भी मिल जाए तो भी जरा सा भी मौका मिलते ही सखियों से, पड़ोसियों से पतिपुराण शुरू हो जाएगा.

उच्चशिक्षित व उच्च पद पर आसीन पत्नियां तो नजरों व हावभाव से भी पतियों का अपमान कर देती हैं. मसलन, उन के अंगरेजी के उच्चारण, रहनसहन, पहननेओढ़ने के तरीकों व पसंद का सब के सामने मजाक उड़ा देती हैं और पति बेचारा अपमान का घूंट पी कर रह जाता है और अंदर ही अंदर अपना आत्मविश्वास खोने लगता है. बाहरी तौर पर कुछ दिखाई न देने पर भी पति के लिए ये सब बहुत कष्टदायक होता है.

मानसिक प्रताड़ना

सोनाली उच्च शिक्षित है और उस का पति नीरज भी बहुत अच्छी नौकरी पर है. पर सीधेसाधे नीरज के व्यक्तित्व से यह सब नहीं झलकता. वह बात करने में भी बहुत सीधा है. उस के कुछ भी गड़गड़ बोलने या गड़बड़ हरकत करने पर सोनाली सब के सामने नाटकीय अंदाज में व्यंग्य से कह देती है कि भई माफ करना मेरे पति को, उन की तो यह आदत है. आदत से मजबूर हैं बेचारे. सुनने वाले कभी उसे तो कभी उस के पति को देखते रह जाते.

पत्नियां कई बार पतियों को मानसिक रूप से वे सब करने के लिए मजबूर कर देती हैं, जो वे बिलकुल नहीं करना चाहते. पति के मातापिता, भाईबहन के विरुद्ध बोलना, उन की छोटी से छोटी बात को बढ़ाचढ़ा कर बोल कर पति के कान भरना, घर से अलग हो जाने के लिए मजबूर करना आदि. लेकिन इन्हीं बातों में वे मायके में अपने भाईभाभी या बहनों के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश करती हैं या उन की बातों को छिपा लेती हैं, पर ससुराल की बातों को नजरअंदाज करना ज्यादातर पत्नियों को नहीं आता.

झूठे मुकदमे की धमकियां

आजकल की आधुनिक नवयुवतियों ने तो हद ही कर डाली है. अब तो पत्नी के पक्ष में कई कानून बन गए हैं. इन कानूनों का फायदा ज्यादातर उन्हें नहीं मिल पाता जिन्हें वाकई उन की जरूरत होती है. इन कानूनों को हथियार बना कर कई मगरूर पत्नियां पति को कई तरह से प्रताडि़त करती हैं. इन अधिकारों के बल पर परिवारों में बड़ी तेजी से बिखराव आ रहा है. जो स्त्री दया, त्याग, नम्रता, भावुकता, वात्सल्य, समर्पण, सहनशीनता का प्रतिरूप थी वही एक एकल परिवार की पक्षधर हो कर उसी को अपना आदर्श मान रही है.

सारे कानून एकपक्षीय हैं. पति ने तलाक के पेपर पर दस्तखत नहीं किए तो उस पर दहेज या घरेलू हिंसा का केस दर्ज कर उसे फंसा लिया जाता है. फिर तो मजबूरन दस्तखत करने ही पड़ते हैं. अगर पत्नी की ज्यादातियों से तंग आ कर पति पत्नी को तलाक देना भी चाहे तो उसे अच्छीखासी रकम पत्नी की देनी पड़ती है. कई बार यह उस के बूते से बाहर की बात होती है.

हालांकि ऐसी भी पत्नियां हैं जो अपनी सहनशक्ति व कोमल स्वभाव से टूटे घर को भी बना देती हैं, पर उस की संख्या कम है. पति को बारबार टोकना, प्रताडि़त करना, मानसिक कष्ट देना जिंदगी के प्रति पति की खिन्नता को बढ़ाएगा. अंदर ही अंदर उस के आत्मविश्वास को तोड़ेगा, जिस से उस का व्यक्तित्व प्रभावित होगा.

तरहतरह की शिकायतें

इतिहास गवाह है कि उच्च शिक्षित पतियों ने अनपढ़ व कम शिक्षित पत्नियों के साथ भी निर्वाह किया, लेकिन उच्चशिक्षित व उच्च पद पर आसीन पत्नियां, यदि पति उन के अनुरूप नहीं है तो बरदाश्त नहींकर पातीं. वे सर्वगुण संपन्न पति ही चाहती हैं. पत्नियों को पतियों से तरहतरह की शिकायतें होती हैं और वे पति को अपनी बात मानने के लिए मजबूर करती हैं.

पौराणिक व ऐतिहासिक उदाहरणों से पता चलता है कि कैसे उस समय भी पत्नियां सामदामदंडभेद अपना कर पति से उस की इच्छा के विरुद्ध अपनी बात मनवा लेती थीं और कालांतर में उन की जिद्द और महत्त्वकांक्षा पति की मृत्यु और कुल के विनाश का कारण बनती थी. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं इतिहास में जहां पत्नियों की महत्त्वकांक्षाओं ने राज्यों की नींवें हिला दीं और इतिहास की धारा मोड़ कर रख दी.

पत्नियों की अनगिनत शिकायतों का बोझ उठातेउठाते पति बूढ़े हो जाते हैं. मानव साधारण घर से था. लेकिन मेधावी मानव आईआईटी से इंजीनियरिंग और आईआईएम अमहमदाबाद से एमबीए कर के एक प्रतिष्ठित मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर पदस्त हो गया. हालांकि सफलताओं ने, वातावरण ने उसे काफी कुछ सिखा दिया था, पर उस की साधारण परवरिश की छाप उस के व्यक्तित्व पर नजर आ ही जाती. उस की यह कमी उस की पत्नी जो देहरादून के प्रसिद्ध स्कूल से पढ़ी थी, को बरदाश्त नहीं होती थी. मानव के अंगरेजी के उच्चारण से तो उसे सख्त चिढ़ थी. जबतब कह देती, ‘‘तुम तो अंगरेजी बोलने की कोशिश मत किया करो मेरे सामने या फिर पहले ठीक से अंगरेजी सीख लो.’’

सरेआम बेइज्जती

राखी का अपने पति की पसंद पर कटाक्ष होता, ‘‘क्या गोविंदा टाइप कपड़े पसंद करते हो…वह तो कम से कम फिल्मों में ही पहनता है…तुम्हें तो कपड़े पसंद करने के लिए साथ ले जाना ही बेकार है.’’

रोहन जब सोफे पर टांग पर टांग रख कर बैठता तो पैंट या लोअर ऊपर चढ़ जाए या अस्तव्यस्त हो जाए वह परवाह नहीं करता था. वैसा ही अस्तव्यस्त सा बैठा रहता. उस की पत्नी मानसी को उस का नफासत से न बैठना घोर नागवार गुजरता. उस की मित्रमंडली की परवाह किए बिना बारबार उसे आंखें दिखाती रहती कि ठीक से बैठो. उस का ध्यान बातों में कम व रोहन की हरकतों पर अधिक होता.

नमन औफिस से आते ही जूतेमोजे एक तरफ फेंक कर बाथरूम में घुस जाता और फिर चप्पलों सहित पैर धो कर छपछप कर पूरे फर्श को गीला करता हुआ सोफे में धंस कर अधलेटा हो जाता. यह देख कर उस की पत्नी मीना का दिमाग खराब हो जाता और फिर उन में झगड़ा शुरू हो जाता.

इस के अलावा भी कई शिकायतें हैं उसे पति से. पति का अलमारी के कपड़े बेतरबीत कर देना, गीला तौलिया बिस्तर पर डाल देना, गंदे हाथों से कुछ भी खा लेना, खाना खातेखाते जूठे हाथ से फोन पकड़ लेना, जूठे हाथ से डोंगे से दालसब्जी निकाल लेना आदि.

सामाजिक प्रतिष्ठा पर आंच

यदि पति का व्यक्तित्व तन और मन से यदि असंतुलित होगा तो पत्नी भी इस से अप्रभावित नहीं रहेगी. यदि पति की सामाजिक प्रतिष्ठा पर आंच आएगी तो मान पत्नी का भी न होगा. यदि बच्चे पिता का सम्मान नहीं करेंगे तो कालांतर में मां का भी नहीं करेंगे.

पति को बदलने व सुधारने की कोशिश में ही जीवन की खुशियों का गला घोट देना कहां की समझदारी है. जीवन तो एकदूसरे के अनुसार ढलने में है न कि ढालने में. पति कोई दूध पीता बच्चा है जिस की आदतें पत्नी अपने अनुसार ढाल लेगी? किसी का भी व्यक्तित्व एक दिन में नहीं बनता. अगर कोई बदलाव आएगा भी तो बहुत धीरेधीरे और वह भी आलोचना कर के या उस का मजाक उड़ा कर नहीं. आलोचना नकारात्मकता को बढ़ावा देती है.

कमजोर होता है मनोबल

आज विवाहित स्त्रियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है. लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में यह बात भी सत्य है कि हर सफल स्त्री के पीछे एक पुरुष का हाथ होता है. पति के प्यार, संरक्षण, सहयोग के बिना कोई भी पत्नी अपने क्षेत्र में मनचाही सफलता प्राप्त नहीं कर सकती.

पति को भी छोटीमोटी बातों के कारण अपना आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए. आत्मविश्वास खोने से मनोबल कमजोर होता है. यदि पति को लगता है कि उस के अंदर वास्तव में कुछ ऐसी आदतें हैं, जो उन के सुखी वैवाहिक जीवन में दीवार बन रही है, तो खुद को बदलने की कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है.

स्मार्टफोन खरीदते समय उसके प्रोसेसर पर दें विशेष ध्यान

प्रोसेसर को फोन का दिमाग कहा जा सकता है जो सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है. यह एक इलेक्ट्रानिक सर्किट होता है, एक चिप होती है, जिसकी परफारमेंस हर्ट्ज, किलोहर्ट्ज, मेगाहर्ट्ज और गीगाहर्ट्ज के आधार पर मापी जाती है. अगर प्रोसेसर का चिपसेट बेहतर है तो आपके फोन की परफारमेंस भी जानदार रहेगी. आज जानते हैं प्रोसेसर के प्रकार, इनके महत्व और इनके फीचर के बारे में, जिससे भविष्य में आप जब स्मार्टफोन खरीदें तो प्रोसेसर का चयन उसमें अहम भूमिका निभाए.

सिंगल कोर: यह प्रोसेसिंग यूनिट सिंगल कोर पर काम करता है. सिंगल प्रोसेसिंग यूनिट (सीपीयू) होने के चलते इसमें मल्टी-टास्किंग के दौरान बहुत परेशानी आती है. सिंगल कोर प्रोसेसर उन लोगों के लिए बिलकुल मुफीद नहीं होगा जो गेमिंग या एक ही समय पर एक से ज्यादा टास्क करने को तवज्जो देते हैं. इसे बुनियादी प्रोसेसर कहा जा सकता है, तो साधारण इंटरनेट इस्तेमाल, ऐप और हल्के गेम में ही प्रभावी रह सकता है.

डुअल कोर: सिंगल कोर प्रोसेसर में जहां कोर यूनिट की संख्या सिंगल होती है, वहीं डुअल कोर में यह संख्या दो है. और ऐसा प्रोसेसर के नाम से ही पता चलता है. सरल शब्दों में कहें तो  डुअल कोर प्रोसेसर के जरिए स्मार्टफोन की परफारमेंस दो बराबर भागों में बंट जाती है. यहां यूजर को इंटरनेट के साथ-साथ कुछ अन्य ऐप एक समय पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं. लेकिन यह भी हैवी टास्क के लिए आज के दौर में उपयुक्त नहीं माना जाता. कहा जा सकता है कि डुअल कोर प्रोसेसर यूजर्स को बेसिक से थोड़े बेहतर परिणाम ही दे पाने में सक्षम है.

क्वाड-कोर प्रोसेसर: इस प्रोसेसर में डुअल कोर से अतिरिक्त दो कोर दिए जाते हैं. यानी, यूजर को दोगुने कोर होने के चलते परफारमेंस भी दोगुनी मिलती है. 4 कोर यूनिट के साथ यह फास्ट डेटा ट्रांसफर तो करने में मददगार होता ही है साथ ही गेमिंग के दीवानों के लिए यह प्रोसेसर बेहतर है. गेम के साथ-साथ कुछ हल्के-फुल्के टास्क भी इसकी मदद से आसानी से किए जा सकते हैं. कुल मिलाकर 4 कोर यूनिट की मदद से यूजर तुलनात्मक तौर पर इससे बेहतर परफारमेंस की उम्मीद कर सकते हैं.

आक्टा-कोर प्रोसेसर: आक्टा-कोर लेटेस्ट प्रोसेसर में से एक माना गया है. इसमें 8 कोर होते हैं. 8 अलग-अलग कोर के दम पर यह प्रोसेसर ना सिर्फ स्मार्टफोन की स्पीड और उसकी परफारमेंस को शानदार बना देता है बल्कि वीडियो डाउनलोडिंग, स्ट्रीमिंग, मल्टी-टास्किंग का भी उत्तम अनुभव प्रदान करता है.

इन प्रोसेसर के अलावा भी हेक्सा कोर प्रोसेसर, डेका कोर प्रोसेसर भी चर्चा में रहे हैं. डेका कोर में 10 कोर यूनिट होते हैं, जो यूजर को हर छोटे-बड़े टास्क फोन की मदद से ही करना सुगम बनाते हैं. वहीं, बात करें हेक्सा कोर प्रोसेसर की, तो इसे सैमसंग ने गैलेक्सी नोट 3 नियो में पेश किया था. इसमें 6 कोर होते हैं. यह डुअल व क्वाड के मुकाबले दमदार है और इसमें मल्टी-टास्किंग बेहतर ढंग से संभव होती है.

क्या आपको पता है भारत अफगानिस्तान टेस्ट मैच से जुड़ी रोचक बातें

भारत और अफगानिस्तान के बीच पहला टेस्ट मैच शुरु हो गया है. यह अफगानिस्तान का पहला टेस्ट मैच है और इस ऐतिहासिक टेस्ट के साथ कई रोचक बातें जुड़ी हैं. हाल ही में अफगानिस्तान को टेस्ट मैच का दर्जा हासिल होने के बाद भारत अफगानिस्तान क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए काफी सक्रिय है और बीसीसीआई ने फैसला किया है कि अगले कुछ समय तक भारत ही अफगानिस्तान के लिए मेजबान देश होगा. इसका मतलब यह है कि अफगानिस्तान के लिए होने वाले मैच भारत में ही होंगे. इस टेस्ट मैच के साथ कई रोचक बातें जुड़ी है.

अफगानिस्तान ऐसा देश है जिसने रिफ्यूजी कैम्प में क्रिकेट खेलना शुरु किया था. अफगानिस्तान लंबे समय से आतंकवाद से पीड़ित देश रहा है. 2001 से उसने एफिलिएट देश के तौर पर क्रिकेट की शुरुआत की थी और भारत के साथ ऐतिहासिक टेस्ट खेलकर टेस्ट खेलने वाल 12वां देश बन गया है. अफगानिस्तान भारत के साथ अपना पहला टेस्ट खेलने वाले देशों में पाकिस्तान (1952), जिम्बाब्वे (1992), बांग्लादेश (2000) भी हैं. केवल श्रीलंका और आयरलैंड ऐसे देश हैं जो भारत के टेस्ट खेलने के बाद भारत के खिलाफ अपना पहला टेस्ट नहीं खेले हैं.

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यह पहली बार है कि भारत में कोई टेस्ट मैच जून के महीने में हो रहा है. इससे पहले अब तक भारत में केवल या तो मई के महीने में या फिर जुलाई के महीने में टेस्ट मैच हुए हैं. उल्लेखनीय है कि भारत में जून के महीने में ही मानसून आता है. खासतौर पर दक्षिण भारत में जून के पहले ही हफ्ते में मानसून दस्तक दे देता है. ऐसे में आमऔर पर जून के महीने में टेस्ट मैच नहीं होते. ऐसे में लोगों को हैरानी जरूर हुई जब बेंगलुरू में ही 14 जून को टेस्ट मैच का कार्यक्रम तय किया गया. फिलहाल पहले दिन का खेल जारी है और अभी बारिश के कोई आसार नहीं है.

इसके साथ ही कई और रोचक बातें हैं जो इस टेस्ट  मैच से जुड़ी हैं जिसमें से एक है भारत के नियमित कप्तान विराट कोहली का न होना. विराट हालांकि इस समय अपनी गर्दन की चोट से उबर रहे हैं, वे शुरु से ही इस टेस्ट से बाहर थे क्योंकि उनका पहले से ही जुलाई में होने वाली इंग्लैंड के खिलाफ वनडे और उसके बाद टेस्ट सीरीज की तैयारी के लिए काउंटी क्रिकेट खेलने की योजना बन चुकी थी.

दिनेश कार्तिक का खास रिकौर्ड

इस टेस्ट मैच में लंबे समय बाद वापसी कर रहे भारत के विकेटकीपर दिनेश कार्तिक ने एक खास रिकौर्ड अपने नाम कर लिया. कार्तिक भारत के ऐसे खिलाड़ी बन गए हैं जिन्होंने सबसे लंबे अंतराल के बाद (टेस्ट मैचों की संख्या के लिहाज से) टेस्ट क्रिकेट टीम में वापसी की है. कार्तिक ने भारत के 87 मैचों के बाद टेस्ट टीम में वापसी की है. उनके बाद पार्थिव पटेल (83 टेस्ट) का नंबर आता है. वहीं अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों में दिनेश कार्तिक का नंबर सातवां नंबर है. सबसे ज्यादा इंग्लैंड के जी बैटी 142 टेस्ट मैचों के बाद वापसी की थी. उन्होंने 2005 के बाद 2016 में वापसी की थी. वहीं दिनेश कार्तिक ने 2010 के बाद 2018 में अपनी टीम में वापसी की है.

मुजीब उर रहमान का अनोखा रिकौर्ड

अफगानिस्तान के मुजीब उर रहमान 21वीं सदी में पैदा होने वाले पहले टेस्ट क्रिकेटर बन गए हैं. मुजीब 2009 के बाद पहले ऐसे क्रिकेटर हैं जिन्होंने 17 साल या उससे कम उम्र में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की हो. इससे पहले 2009 में पाकिस्तान के मोहम्मद आमिर ने  टेस्ट क्रिकेट में पहला टेस्ट 17 साल से कम उम्र में शुरु किया था. इसके साथ ही मुजीब छठे ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपना फर्स्ट क्लास  करियर टेस्ट मैच से शुरु किया है.  उनसे पहले न्यूजीलैंड के ग्राहम विवियन, जिम्बाब्वे के उजेश रणछोड़, बांग्लादेश के मशराफे मुर्तजा, पाकिस्तान के यासिर अली और बांग्लादेश के ही नजमूल होसेन ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके हैं.

स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले हो जाएं सावधान! हो सकती हैं ये परेशानियां

आपने एक मुहावरा तो जरूर सुना होगा हर चीज की अति बुरी होती है. ठीक उसी प्रकार स्मार्टफोन का अत्यधिक उपयोग भी हानिकारक होता है. जो लोग फोन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, वे खुद को बहुत अलग-थलग महसूस करते हैं. ऐसे लोग अकेलापन, उदासी और चिंता महसूस करते हैं. एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है. अध्ययन के मुताबिक, जो लोग स्मार्टफोन का अधिक उपयोग करते हैं, वे लगातार गतिविधियों के बीच फोन में खो जाते हैं और अपना ध्यान केंद्रित नहीं रख पाते. इस तरह की लत हमें मानसिक रूप से थका देती है.

हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डा. के. के. अग्रवाल ने कहा, ‘हमारे फोन और कंप्यूटर पर आने वाले नोटिफिकेशन, कंपन और अन्य अलर्ट हमें लगातार स्क्रीन की ओर देखने के लिए मजबूर करते हैं. शोध के मुताबिक, यह अलर्टनेस कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया का परिणाम है जैसा कि किसी खतरे के समय या हमले के समय प्रतीत होता है.’

उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब यह है कि हमारा मस्तिष्क लगातार सक्रिय और सतर्क रहता है, जोकि इसकी स्वस्थ कार्य प्रणाली के अनुरूप नहीं है. हम लगातार उस गतिविधि की तलाश करते हैं और उसकी अनुपस्थिति में बेचैन, उत्तेजित और अकेलापन महसूस करने लगते हैं.’

डा. अग्रवाल ने कहा, ‘यदि हमें 30 मिनट तक कोई कौल प्राप्त न हो तो चिंता होने लगती है. करीब 30 प्रतिशत मोबाइल उपयोगकर्ताओं में यह समस्या होती है. फैंटम रिंगिंग 20 से 30 प्रतिशत मोबाइल उपयोगकर्ताओं में मौजूद होती है. आपको ऐसा महसूस होता है कि आपका फोन बज रहा है और आप बार बार उसे चेक करते हैं, जबकि ऐसा सच में होता नहीं है.’

अध्ययन में कहा गया, ’30 प्रतिशत मामलों में स्मार्टफोन माता-पिता के बीच झगड़े का कारण भी बनता है. मोबाइल अधिक उपयोग करने वाले बच्चे अक्सर देर से उठते हैं और स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं. औसतन, लोग सोने से पहले स्मार्टफोन के साथ बिस्तर में 30 से 60 मिनट बिताते हैं.

डा. अग्रवाल ने इससे बचाव का सुझाव देते हुए कहा, ‘इलेक्ट्रानिक कर्फ्यू का मतलब है सोने से 30 मिनट पहले किसी भी इलेक्ट्रानिक गैजेट का उपयोग न करना. हर तीन महीने में सात दिनों के लिए फेसबुक से अवकाश लें. सप्ताह में एक बार पूरे दिन सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बचें. मोबाइल का उपयोग केवल जरूरी बात करने के लिए करें. दिन में तीन घंटे से अधिक समय तक कंप्यूटर का उपयोग ना करें. इसके अलावा अपने मोबाइल टौकटाइम को दिन में दो घंटे से अधिक समय तक सीमित करें. दिन में एक से अधिक बार अपनी मोबाइल बैटरी रिचार्ज ना करें. अस्पताल के सेटअप में मोबाइल भी संक्रमण का स्रोत हो सकता है, इसलिए, इसे हर रोज कीटाणुरहित करना आवश्यक है.’

मेरी उम्र का असर मेरी बल्लेबाजी पर दिखने लगा है : धोनी

चेन्नई सुपर किंग्स को तीसरा इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) खिताब दिलाने वाले कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का मानना है कि अब उम्र का असर उनकी बल्लेबाजी पर पड़ रहा है. वह अब निचलेक्रम में बल्लेबाजी करते हुए फंसा हुआ महसूस करते हैं और इसलिए अब थोड़ा ऊपर आकर बल्लेबाजी करना पसंद कर रहे हैं. धोनी ने आईपीएल के इस सीजन में 16 मैचों में 455 रन बनाए और टीम के मध्यक्रम की जिम्मेदारी को बखूबी संभाला. ‘बुजुर्गों’ की टीम कही जा रही चेन्नई ने जब यह खिताब जीता तो जीत का सेहरा महेंद्र सिंह धोनी के सिर पर सजा. हर कोई महेंद्र सिंह धोनी और उनकी कप्तानी की तारीफ कर रहा था

वेबसाइट ईएसपीएनक्रिकइंफो ने महेंद्र सिंह धोनी के हवाले से लिखा है, “मेरी सोच साफ थी कि मैं अब ऊपर आकर बल्लेबाजी करना चाहता हूं क्योंकि उम्र के कारण निचले क्रम में बल्लेबाजी करते हुए मुझे परेशानी होती है, मैं फंसा हुआ महसूस करता हूं.”

यहां एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए भारतीय टीम के पूर्व कप्तान ने कहा, “मैं इस बात को आश्वस्त करना चाहता था कि मैं मैच को खत्म करने और टीम के जीत दिलाने की जिम्मेदारी लूं, लेकिन निचले क्रम में आते हुए मैं अपने आप को समय नहीं दे पा रहा था.”

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धोनी ने कहा, “इसलिए मेरे लिए यह मुश्किल था. मैंने ऐसी टीम बनाई जिसकी बल्लेबाजी में गहराई हो ताकि मैं ऊपर आकर खेल सकूं. मेरे लिए ऊपर आने का मतलब तीसरे, चौथे या और किसी नंबर पर बल्लेबाजी करने से नहीं है बल्कि इस बात से है कि मेरे पास ओवर कितने बचे हैं.”

धोनी की कप्तानी में चेन्नई ने 2010, 2011 और 2018 में तीन बार आईपीएल खिताब पर कब्जा जमाया है. वह इस आईपीएल में दो साल के प्रतिबंध के बाद आई थी. चेन्नई ने अभी तक नौ आईपीएल खेले हैं जिसमें हर बार वह प्लेऔफ में जगह बनाने में सफल रही है. उसने सात बार फाइनल में प्रवेश किया है. आईपीएल के सबसे सफल कप्तान धोनी ने कहा, “मैंने कहा था कि मैं ऊपर बल्लेबाजी करना चाहता हूं ताकि जब मैं बल्लेबाजी करने जाऊं तो मैं आक्रामक होकर बल्लेबाजी कर सकूं.”

36 वर्षीय महेंद्र सिंह धोनी ने चेन्नई सुपर किंग्स की कप्तानी करते हुए तीसरी बार आईपीएल खिताब जीत कर एक और सुनहरा मुकाम तय किया. चेन्नई सुपर किंग्स की टीम दो साल के प्रतिबंध के बाद टूर्नामेंट में लौटी और धोनी के नेतृत्व में टीम तीसरी बार खिताब जीत कर मुंबई इंडियंस के बराबर आ गई जिसने यह खिताब 3 बार जीता है. धोनी के लिए यह सीजन शानदार रहा. उन्होंने 16 मैचों में 455 रन बनाए. महेंद्र सिंह धोनी अब आयरलैंड के साथ टी-20 मुकाबलो में खेलते नजर आएंगे.

घर खरीदने वालों के लिये आई खुशखबरी, सरकार देगी यह तोहफा

मोदी सरकार घर खरीदारों के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आई है. सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घरों के साइज में बड़ा बदलाव किया है. मिडिल इनकम ग्रुप यानि एमआईजी-I और एमआईजी-II कैटेगरी में घरों का कार्पेट एरिया बढ़ा दिया गया है. एमआईजी-I में एरिया 120 वर्गमीटर से बढ़ाकर 160 वर्गमीटर कर दिया गया है. वहीं, एमआईजी-II में घरों का एरिया 150 वर्गमीटर से बढ़ाकर 200 वर्गमीटर कर दिया गया है. एमआईजी-I में सालाना 6 से 12 लाख तक कमाने वाले वालों को और एमआईजी-II में 12 से 18 लाख तक कमाने वालों को घर के लिए लोन मिलता है.

2016 में लौन्च हुई थी योजना

प्रधानमंत्री आवास योजना को पीएम मोदी ने 2016 में लौन्च किया था. इसकी डेडलाइन मार्च 2019 रखी गई थी. एक तरफ ग्रामीण इलाकों में जहां 40 लाख घर बनाए जा चुके हैं. वहीं, शहरी इलाकों में जमीन और पैसे की समस्या के चलते 5 लाख घरों का ही निर्माण हुआ है. यहां अभी 22 लाख घरों का निर्माण और होना है.

मिडिल क्लास को सबसे ज्यादा फायदा

इन बदलावों से मिडिल क्लास को अब सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा. गौरतलब है कि एमआईजी-I में 6-12 लाख रुपए कमाई वालों को लोन पात्रता होती है. वहीं, एमआईजी-II में 12-18 लाख रुपए कमाई वालों को लोन पात्रता होती है. एमआईजी-I में ग्राहक को 4 फीसदी की लोन सब्सिडी मिलती है. एमआईजी-II में ग्राहक को 3 फीसदी की लोन सब्सिडी मिलती है. एमआईजी-I में ग्राहक को 235068 का सीधा फायदा मिलेगा. वहीं, एमआईजी-II में ग्राहक को 2,30,156 रुपए का सीधा फायदा मिलेगा.

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इसी साल आवंटित होंगे घर

एक खबर के मुताबिक, शहरों में कुल 1.18 करोड़ घरों का निर्माण 2022 के बजाए साल 2020 तक पूरा हो जाएगा. वहीं, ग्रामीण इलाकों में 1 करोड़ घरों का निर्माण इस साल के अंत तक आवंटित कर दिए जाएंगे. आवंटन करने के पीछे मकसद है कि लोगों को भरोसा होगा कि उनको मकान मिलने वाले हैं. बता दें, इससे पहले 45 लाख घरों को मंजूरी दी जा चुकी है.

मिलेगा सब्सिडी का भी फायदा

सरकार का यह फैसला 1 जनवरी 2017 से प्रभावी होगा. मतलब यह कि अगर आपने 1 जनवरी 2017 के बाद मकान खरीदा है और बढ़े हुए कार्पेट एरिया में खरीदा है तो आपको प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी का भी फायदा मिलेगा. सरकार ने यह भी जानकारी दी है कि 11 जून तक 736 करोड़ रुपए की सब्सिडी लोगों दी जा चुकी है.

ग्रामीण इलाकों में पहले मिलेंगे घर

सरकार की योजना के तहत गरीबों को घर देने का मकसद प्रधानमंत्री आवास योजना को ग्रामीण इलाकों तक लेकर जाना है. पहले इन्हीं इलाकों में घर दिए जाएंगे. गरीबों को घर मिलने से एक बड़ा बदलाव आएगा और न्यू इंडिया का निर्माण होगा.

उत्तर प्रदेश में बनाए गए 8 लाख घर

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सबसे ज्यादा घर उत्तर प्रदेश में बनाए गए हैं. राज्य के ग्रामीण इलाकों में घरों की कमी सबसे ज्यादा थी. यही वजह है कि पिछले एक साल में उत्तर प्रदेश सरकार ने 8 लाख घर बनवाएं हैं. यह किसी भी राज्य से ज्यादा हैं. यही नहीं राज्य में घर लेने वाले लोगों को 1.2 लाख रुपए की सब्सिडी भी दी गई है.

और किन राज्यों में कितने घर

पिछले एक साल में मध्य प्रदेश ने 6 लाख घरों का निर्माण किया है. वहीं, राजस्थान में 3.5 लाख घरों का निर्माण किया है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अभी तक 40 लाख से ज्यादा घरों का निर्माण पूरा हो चुका है. जून तक हमारा लक्ष्य 60 लाख घर बनाने का है. बाकी 40 लाख घरों का निर्माण दिसंबर 2018 तक बनाने का लक्ष्य है.

तो बीस साल बाद आइफा के मंच पर परफार्म करेंगी रेखा

लगभग बीस वर्ष बाद मशहूर अदाकारा रेखा स्टेज पर परफार्म करते हुए नजर आएंगी और यह स्टेज/मंच होगा ‘‘आइफा’’ का. इस बात की घोषणा मुंबई में आयोजित संवाददाता सम्मेलन मे की गयी. ज्ञातब्य है कि ‘‘इंटरनेशनल इंडियन फिल्म अकादमी’’ यानी कि ‘‘आइफा’’ की तरफ से हर वर्ष विश्व के किसी एक देश में तीन दिवसीय ‘आइफा वीकेंड’ आयोजित होता है. जिसमें एक दिन पुरस्कार भी वितरित किए जाते हैं. गत वर्ष 18वें ‘आइफा’ वीकेंड के ही दौरान एक फिल्म भी फिल्मायी गयी थी. इस बार 19 वां ‘‘आइफा वीकेंड’’ 22 से 24 जून के दौरान बैंकाक, थाईलैंड में आयोजित होगा. इसका प्रसारण ‘कलर्स’ चैनल पर होगा.

19वें ‘‘आइफा वीकेंड’’ को लेकर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में वरूण धवन ने घोषणा की कि इस बार ‘आइफा’ का सबसे बड़ा आकर्षण मशहूर अदाकारा रेखा का लाइव परफार्मेंस होगा.

‘‘आइफा’’ में रेखा किस गाने पर लाइव परफार्म करेंगी, इस सवाल पर खुद रेखा ने कहा- ‘‘मेरा दूसरा नाम है-रहस्य/राज. आज इस बात को आपके सामने उजागर करने का कोई अर्थ ही नहीं है कि मैं किस गाने पर परफार्म करने वाली हूं.’’

रेखा के अलावा इस बार ‘‘आइफा वीकेंड’’ में रणबीर कपूर, शाहिद कपूर, श्रृद्धा कपूर, अर्जुन कपूर, बौबी देओल, लूलिया वंटूर, वरूण धवन व कृति सैनन भी परफार्म करने वाली हैं.

‘‘आइफा वीकेंड’’ के मुख्य समारोह का संचालन करण जोहर व रितेश देशमुख करेंगे. इस वीकेंड की शुरुआत ‘आइफा राक्स’ से होगी. जिसमें संगीतकार प्रीतम के साथ श्रीराम चंद्र, अमित मिश्रा, शालमली खोलगडे, अंतरा मित्रा, नक्श अजीज व निकिता के साथ वाणी कपूर व नुसरत भरूचा जैसे कलाकार परफार्म करेंगे. ‘आइफा राक्स’ का संचालन आयुष्मान खुराना व कार्तिक आर्यन करेंगे. जबकि अंतिम समारोह ‘नेक्सा आइफा अवार्ड’ का आयोजन सियाम निरामित थिएटर, बैंकाक, थाईलैंड में होगा.

‘आइफा’ के सह संस्थापक व ‘विजक्राफ्ट इंटरनेशनल’ के निर्देशक सब्बास जोसेफ ने कहा- ‘‘विश्व के हर देश की सभ्यता संस्कृति व लोगों को एक दूसरे के करीब लाने के लिए ‘आइफा’ हर वर्ष यात्रा करता है. दस वर्ष बाद हम एक बार फिर बैंकाक में भारतीय सिनेमा का जश्न मनाने जा रहे हैं. इस बार सिनेप्रेमियों को ऐसा मनोरंजन देने वाले हैं, जो उन्हें अब तक नहीं मिला.’’

विदेश में इतिहास रचने के करीब है यह भारतीय महिला

वैश्विक कौरपोरेट जगत में एक और भारतीय महिला इतिहास रचने के करीब है. दिव्‍या सूर्यदेवड़ा दुनिया की सबसे बड़ी औटो कंपनी का CFO (मुख्‍य वित्‍तीय अधिकारी) पद संभालेंगी. जनरल मोटर्स (GM) ने भारतीय कौरपोरेट दिव्‍या सूर्यदेवड़ा को यह जिम्‍मेदारी सौंपी है. दिव्‍या फिलवक्‍त कंपनी के कौरपोरेट फाइनेंस विभाग की उपाध्‍यक्ष हैं. वह 1 सितंबर 2018 को यह पदभार ग्रहण करेंगी.

जनरल मोटर्स अमेरिका की नंबर 1 औटो निर्माता कंपनी है. 39 वर्षीय दिव्‍या ने जीएम के कई बड़े व महत्‍वपूर्ण सौदों में अहम भूमिका निभाई है. इससे कंपनी के पुनर्गठन की प्रक्रिया को काफी मजबूती मिली थी. इसमें कंपनी की यूरोपीय इकाई ओपल का मामला हो चाहे क्रूज के अधिग्रहण का. दोनों ही सौदे कंपनी के लिए महत्‍वपूर्ण थे. उनकी भूमिका में ही जापान के सौफ्ट बैंक ने कंपनी में 2.25 अरब डौलर का निवेश किया.

13 साल से हैं कंपनी के साथ

डेट्रौयट स्थित कंपनी में दिव्‍या 13 साल से काम कर रही हैं. उन्‍होंने कंपनी की रेटिंग सुधारने में बड़ा रोल अदा किया है. इससे कंपनी की क्रेडिट सुविधा बढ़कर 14.5 अरब डौलर पर पहुंच गई. जुलाई 2017 में उन्‍हें कंपनी के कौरपोरेट फाइनेंस विभाग का उपाध्‍यक्ष बनाया गया. इसके साथ ही उन्‍हें निवेशकों के प्रोत्‍साहन की जिम्‍मेदारी भी सौंपी गई थी. 2016 में उन्‍हें औटोमोटिव क्षेत्र की ‘राइजिंग स्‍टार’ का खिताब दिया गया था. भारत में कौलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिव्‍या अमेरिका चली गई थीं. उस समय वह 22 साल की थीं. उन्‍होंने वहां जाकर हार्वर्ड में पढ़ाई की. पहली नौकरी यूबीएस में मिली थी. उसके एक साल बाद वह जीएम में आ गईं.

न्‍यूयौर्क में रहता है परिवार

एक खबर के मुताबिक दिव्‍या का परिवार (पति व बच्‍ची) न्‍यूयौर्क में रहता है. जब परिवार से मिलना होता है तो वह डेट्रौयट से न्‍यूयौर्क आती हैं. दिव्‍या को नई जिम्‍मेदारी चक स्‍टीवेंस के रिटायरमेंट के साथ मिलेगी. स्‍टीवेंस जीएम के साथ पिछले 40 साल से काम कर रहे हैं. वह जनवरी 2014 में सीएफओ बने थे.

कोचिंग नगरी के स्वर्ण लुटेरे

अर्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी पर नजर डाली, सुबह के 5 बजे थे. मोबाइल की रिंगटोन सुन कर गहरी नींद से जागे अर्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी की ओर देखने के बाद करवट बदल कर तकिए में मुंह गड़ा लिया. रविवार 22 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश की वजह से मीणा लंबी तान कर सोए हुए थे. नींद में खलल डालने वाली मोबाइल रिंगटोन के प्रति मीणा ने भले ही लापरवाही बरती, लेकिन जब रुकरुक कर बजने वाली रिंगटोन का सिलसिला थमता नजर नहीं आया तो उन का माथा ठनके बिना नहीं रहा.

तमाम अंदेशों से घिरे मीणा ने कौर्नर स्टैंड पर रखा मोबाइल उठा लिया. स्क्रीन पर उन के अधीनस्थ इंसपेक्टर रामजीलाल बैरवा का नंबर था. हैरानी और परेशानी में डूबते उतराते मीणा ने फोन कानों से सटा लिया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी ओर की आवाज सुन कर उन का अलसाया चेहरा तन गया. हाथ से छूटते मोबाइल सैट को बमुश्किल थामते हुए उन के मुंह से अनायास निकल गया, ‘‘क्या कह रहे हो?’’ एकाएक उन की भौंहें सिकुड़ गईं. उन्होंने अटकते हुए कहा, ‘‘तुम होश में तो हो?’’

जवाब में मीणा ने दूसरी तरफ से जो कुछ सुना, वह उन के कानों में पिघला शीशा उडे़लने जैसा था. रामजीलाल कह रहे थे, ‘‘सर, आप के चैंबर के लौकर में रखे ढाई करोड़ के जेवर गायब हैं. वारदात बीती रात को हुई.’’

मीणा में कुछ और सुनने की ताकत नहीं बची थी. उन का चेहरा बर्फ की तरह सफेद हो चुका था. वह बोले, ‘‘मैं फौरन पहुंच रहा हूं.’’

अर्जुन लाल मीणा कोटा स्थित आयकर महकमे के डिप्टी डायरेक्टर (इनवैस्टीगेशन) पद पर थे. बीते 3 दिन के दौरान महकमे के खोजी दल ने कोटा के 3 सर्राफा व्यवसायियों के ठिकानों पर छापे डाल कर सर्वे की काररवाई की थी और 2 करोड़ 94 लाख रुपए के जेवर और 90 लाख की नकदी जब्त की थी.

शनिवार 21 अप्रैल को सरकारी छुट्टी होने के कारण नकदी तो बैंक में जमा करा दी गई थी, लेकिन जेवरात सरकारी खजाने में जमा नहीं कराए जा सके थे. ये जेवरात मीणा के चैंबर की अलमारी में ही रखे हुए थे.

मीणा लगभग 5 मिनट में ही सीएडी सर्किल स्थित आयकर भवन पहुंच गए. उन का चैंबर इमारत की दूसरी मंजिल पर था. उन के मातहत पहले ही वहां पहुंचे हुए थे. मीणा को फोन से खबर करने वाले इंसपेक्टर रामजीलाल बैरवा के अलावा चौकीदार बनवारीलाल, कर्मचारी नीरज कुमार, प्रवीण सिन्हा, राजेश भाटी और सिक्योरिटी गार्ड दुर्गेश मीणा ऊपरी तल के टूटे हुए मेन गेट पर ही खड़े थे.

इंसपेक्टर रामजीलाल ने चौकीदार बनवारीलाल सुमन की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘मुझे वारदात की खबर सुमन ने ही दी थी.’’

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मीणा अपने चैंबर की तरफ बढ़े तो एंट्री डोर टूटा हुआ नजर आया. इस से पहले कि वे भीतर दाखिल होते, उन की नजर दूसरी मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरों की तरफ गई, जो लगभग उखड़े हुए थे. कमरे में रखी गोदरेज की अलमारी का गेट खुला हुआ था और लौकर खाली था.

निस्संदेह अलमारी से चाबी बरामद करने के बाद लौकर को खोला गया था. उस में रखे जेवरात के दोनों डिब्बे गायब थे. अलमारी में रखी फाइलें फर्श पर बिखरी पड़ी थीं और उन के पास ही फैले हुए थे बीते दिनों किए गए सर्वे के दस्तावेज. सभी दस्तावेज फटे हुए थे.

मीणा अनुभवी अधिकारी थे, जेवरात के वही डिब्बे गायब थे, जिन्हें पिछले 3 दिनों में जब्त किया गया था. जबकि दूसरे लौकर में रखा बौक्स यथावत मौजूद था. इस बौक्स में 69 लाख के जेवरात सुरक्षित थे. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बिना घर के भेदी के यह वारदात हो ही नहीं सकती.

उन्होंने तत्काल मोबाइल पर जोधपुर स्थित मुख्यालय पर अपने उच्चाधिकारियों को वारदात की जानकारी दे दी तो उन्हें कहा गया कि फौरन पुलिस को इत्तला करें और अपने स्तर पर अधिकारियों को साथ ले कर पूरी छानबीन करें. मीणा ने एक पल चौकीदार बनवारीलाल सुमन की तरफ देखा तो वो बुरी तरह सकपका गया.

‘‘साब…साब…’’ कह कर उस ने हांफते हुए सफाई देने की कोशिश की, ‘‘मैं ने  तो पूरी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी पूरी की, लेकिन पता नहीं कैसे और कब चोरों को वारदात करने का मौका मिल गया.’’ एक पल रुकते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे तो सिक्योरिटी गार्ड दुर्गेश मीणा के बताने पर पता चला. इमारत के भीतर की जिम्मेदारी तो सिक्योरिटी गार्ड की ही है.’’

मीणा ने असहाय भाव से सुमन की तरफ देखा. फिर निरीक्षक बैरवा को जरूरी निर्देश दे कर मोबाइल पर आईजी विशाल बंसल से संपर्क किया.

पिछले कुछ दिनों से कोटा में आपराधिक वारदातों का ग्राफ बढ़ने से पुलिस की मुस्तैदी में तेजी आई तो आईजी विशाल बंसल ने भी अपना रूटीन बदल दिया था. वह सुबह को जल्दी औफिस में बैठने लगे थे.

रविवार 22 अप्रैल छुट्टी का दिन था तो भी उन की दिनचर्या में कोई खास फर्क नहीं आया था. जब आयकर विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अर्जुनलाल मीणा ने उन्हें फोन किया, उस समय बंसल औफिस में ही मौजूद थे.

मीणा ने अपना परिचय देने के साथ सारा माजरा बताया तो बंसल हैरान रह गए. उन्होंने पलट कर सवाल किया, ‘‘कब हुई वारदात? और आप कहां से बोल रहे हैं?’’

मीणा ने घटना का संक्षिप्त सा ब्यौरा देते हुए कहा, ‘‘सर, संभावना है कि वारदात रात को एक और 3 बजे के बीच हुई होगी. सर्वे की काररवाई के कुछ दस्तावेजी काम निपटा कर हम रात करीब 12 बजे फारिग हुए थे. दिन भर की थकान के बाद रात को करीब एक बजे मैं घर जा कर सो गया था. अगले दिन रविवार के अवकाश की वजह से मैं निश्चिंत हो कर सो गया था.’’

एक पल रुकने के बाद मीणा ने कहना शुरू किया, ‘‘मुझे मेरे अधीनस्थ इंसपेक्टर बनवारी लाल बैरवा ने तड़के 5 बजे फोन कर के वारदात की इत्तला दी. उन्हें भी वारदात की बाबत चौकीदार के बताने पर पता चला. उस के बाद से ही मैं औफिस में हूं.’’

‘‘लेकिन मीणा साहब, इस वक्त तो सवा 6 बजने वाले हैं,’’ बंसल ने उलाहना देते हुए कहा, ‘‘आप वारदात की खबर सवा घंटे बाद दे रहे हैं.’’

थोड़ा हिचकते हुए मीणा ने सफाई देने की कोशिश की, ‘‘सर, मुझे इस के लिए हायर अथौरिटीज की इजाजत और निर्देश लेने थे. मुझे अपने स्तर पर भी छानबीन करनी थी कि आखिर क्या कुछ हुआ था और कैसे हुआ था?’’

बंसल की पेशानी पर मीणा की इस लेटलतीफी पर सलवटें पड़े बिना नहीं रहीं. लेकिन उन्होंने मौके की नजाकत को तवज्जो देना ज्यादा जरूरी समझा. अगले ही पल उन्होंने एडीशनल एसपी समीर कुमार को तलब कर पुलिस टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंचने के लिए निर्देश दिए. आईजी विशाल बंसल के सक्रिय होते ही कोटा पुलिस हरकत में आ गई.

वारदात का क्षेत्र जवाहर नगर था, इसलिए थानाप्रभारी नीरज गुप्ता जब अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे उस वक्त सुबह के 7 बज कर 20 मिनट हो चुके थे. नीरज गुप्ता ने घटनास्थल का जायजा लेना शुरू किया. तब तक फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड टीम भी वहां पहुंच चुकी थी.

कोटा में जहां आयकर औफिस की इमारत है, उसे सीएडी रोड कहा जाता है. दरअसल, नए कोटा की सरहद यहीं से शुरू होती है. इस मार्ग पर कमांड एरिया डवलपमेंट का परियोजना भवन होने के कारण इस का नाम सीएडी रोड पड़ गया है. आयकर भवन की इमारत इसी लाइन में तीसरी है. इस से पहले कोटा नगर विकास न्यास का कार्यालय भवन है.

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आयकर भवन के पिछवाड़े निचली बस्ती है, जिसे दुर्गा बस्ती के नाम से जाना जाता है. आयकर कार्यालय पुलिस कंट्रोल रूम और अभय कमांड सेंटर से महज चंद कदमों की दूरी पर है. आयकर भवन वाली कतार में चंद कदमों के फासले पर ही अभय कमांड सेंटर आमनेसामने हैं.

आयकर महकमे की टोली ने डिप्टी डायरेक्टर (इनवैस्टीगेशन) अर्जुनलाल मीणा के निर्देशन में पिछले 3 दिनों में क्रमश: 18, 19 और 20 अप्रैल को सर्राफा व्यवसाइयों के 3 ठिकानों पर सर्वे के दौरान रेड डाल कर 2 करोड़ 94 लाख के जेवरात और 90 लाख की नकदी जब्त की थी.

शीर्ष अधिकारियों के निर्देशानुसार पुलिस के पहुंचने तक अर्जुनलाल मीणा ने अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल की छानबीन करनी शुरू की. उन्होंने आयकर भवन के दूसरे तल के समूचे ब्लौक की जांच की. इस ब्लौक में 14 कमरे थे, लेकिन वारदात उसी कमरे में हुई, जिस में मीणा बैठते थे.

मीणा ने एक बार पीछे लौट कर दूसरे तल में दाखिल होने वाले गेट का मुआयना किया. उन्होंने ध्यान से देखा. जिस तरह दरवाजे की कुंडी टूटी नजर आई, उस से उन के लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कुंडी को तोड़ने के लिए किसी नुकीले औजार का इस्तेमाल किया गया था.

इस के बाद ही चोर ब्लौक में दाखिल हुए थे. मीणा को अचानक कुछ याद आया तो वह अपने चैंबर में दाखिल हो कर नए सिरे से अलमारी की जांच करने लगे. उन्होंने अलमारी को ध्यान से देखा तो पता चला कि अलमारी को चाबी से खोला गया था.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि जब अलमारी चाबी से खुल गई थी तो उसे डैमेज क्यों किया गया? काफी सोचविचार के बावजूद मीणा समझ नहीं पाए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?

ब्लौक में टूट कर लटके हुए सीसीटीवी कैमरों को देख कर निराश हो चुके मीणा ने बेनतीजा कोशिश के बावजूद एक बार उन की फुटेज पर सरसरी निगाह डाल लेना जरूरी समझा. अपनी टीम के साथ जैसे ही मीणा ने सीसीटीवी फुटेज खंगालने शुरू किए. उन की आंखें चमकने लगीं. उस में नकाब पहने 3 बदमाश नजर आए. अब तक लगभग निढाल से मीणा एकाएक जोश में आ गए.

उन्होंने अपने सहयोगियों को झिंझोड़ दिया, ‘‘देखो, यह शख्स क्या तुम्हें हमारे संविदा कर्मचारी रविंद्र सिंह की तरह नहीं लगता?’’ मीणा ने उस शख्स की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘जरा इस की चालढाल पर गौर करो, मुझे तो यह रविंद्र ही लग रहा है?’’

सहयोगियों के सिर सहमति में हिले, इस से पहले मीणा ने अपनी बात की तस्दीक में सवाल उछाला, ‘‘सर्वे में जब्त किए गए जेवरातों के बारे में जिन 5-7 लोगों को पता था, उस में रविंद्र सिंह भी एक था?’’

‘‘सर, चोर तो घर का भेदी निकला.’’ इंसपेक्टर बनवारीलाल ने मीणा के तर्क पर सहमति जताते हुए हैरानी जताई, ‘‘लेकिन अब क्या किया जाए?’’

मीणा का चेहरा खुशी से दमक रहा था. उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण सबूत हासिल कर लिया था. लेकिन जटिल प्रश्न यह था कि अब क्या किया जाए.

‘‘ऐसा करो…’’ एकाएक जैसे मीणा को उपाय सूझ गया. उन्होंने बैरवा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘रविंद्र समेत स्टाफ के सभी लोगों को फोन कर के यहां आने को कहो?’’

‘‘लेकिन सर,’’ झिझकते हुए बैरवा की बात काटते हुए मीणा ने समझाया, ‘‘सब को सिर्फ इतना कहना कि साब को अर्जेंट काम से अभी जोधपुर जाना है, इसलिए फौरन औफिस पहुंचो.’’

अब मीणा को बेताबी से इंतजार था, तो कारस्तानी करने वाले का और पुलिस का भी. अब उन के लिए जयपुर स्थित प्रादेशिक मुख्यालय को भी इत्तला देनी जरूरी थी. वे तुरंत इस काम में जुट गए.

रविवार 22 अप्रैल की सुबह 10 बजे तक आईजी विशाल बंसल समेत उच्च अधिकारी भी मौके पर पहुंच चुके थे. एडीशनल एसपी समीर कुमार पहले ही अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे हुए थे.

आईजी बंसल की अनुमति से उन्होंने डीएसपी बने सिंह, राजेश मेश्राम, सर्किल इंसपेक्टर नीरज गुप्ता, लोकेंद्र पालीवाल आदि को अपनी टीम में शामिल किया था.

अर्जुनलाल मीणा ने अपनी अब तक की पड़ताल और शकशुबहा को ले कर रविंद्र सिंह की बाबत बताया, ‘‘मुझे इस आदमी पर संदेह हो रहा है. यह हमारे यहां संविदा पर तैनात कंप्यूटर औपरेटर है.’’

पुलिस अधिकारियों ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले तो मीणा की शंका की तस्दीक होती नजर आई. मीणा के शक पर मुहर लगाई सीसीटीवी कैमरे के उस दृश्य ने जिस में पिछले शनिवार 21 अप्रैल की रात के 8 बजे रविंद्र दफ्तर में पहुंचा तो जरूर, लेकिन भीतर दाखिल होने के बजाए ताकझांक कर के वापस लौट गया.

समीर कुमार ने जब मीणा से पूछा कि क्या इसे आप ने बुलाया था, मीणा के इनकार पर समीर कुमार ने उन पर पैनी निगाहें गड़ाते हुए कहा, ‘‘मीणा साहब, मैं दावे से कह सकता हूं कि यही हमारा शिकार है, कल यह रैकी करने आया था, और आप लोगों की मौजूदगी देख कर उलटे पांव वापस लौट गया. आखिर बिना बुलाए रात 8 बजे औफिस आने का क्या मतलब?’’

समीर कुमार सारा माजरा समझ चुके थे. उन्होंने रविंद्र सिंह की तसवीर की तरफ इशारा करते हुए सर्किल इंसपेक्टर नीरज गुप्ता से कहा, ‘‘इसे उठा कर लाओ, यही है मुलजिम?’’ नीरज गुप्ता ने एक पल की भी देर नहीं लगाई.

समीर गुप्ता ने मीणा के आगे सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा, ‘‘आप के यहां कितने संविदा कर्मचारी हैं? और क्या उन का पुलिस वेरिफिकेशन हो चुका है.’’

मीणा ने बताया कि औफिस में रविंद्र सिंह ही एकलौता संविदा कर्मचारी था और पिछले 2 सालों से कंप्यूटर औपरेटर का काम कर रहा था. उन्होंने यह भी बताया सुकेत का रहने वाला रविंद्र सिंह दुर्गा बस्ती में रहता है.

‘‘मीणा साहब.’’ समीर कुमार ने उन की तरफ गहरी नजर से देखते हुए कहा, ‘‘सीसीटीवी कैमरे खंगालते समय आप ने एक बात नोट नहीं की, वरना उसी वक्त समझ जाते कि करतूत तो घर के भेदी की ही है.’’

‘‘जी, मैं समझा नहीं?’’ अर्जुन लाल मीणा ने हैरानी जताते हुए कहा.

समीर मुसकराते हुए बोले, ‘‘फुटेज में बदमाश सीधा आप के कमरे में ही पहुंच रहा था, जाहिर है, उसे पता था कि उस का टारगेट क्या है? वारदात करने वाला यहीं का आदमी था, तभी तो उसे मालूम था कि उसे कहां पहुंचना है. फाइलें फाड़ने का काम तो उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए किया?’’

लगभग एक घंटे बाद ही रविंद्र सिंह एडीशनल एसपी के सामने खड़ा था. एडीशनल एसपी समीर कुमार कुछ क्षण अपने सामने खड़े रविंद्र सिंह को पैनी निगाह से देखते रहे. समीर कुमार उस के बदन पर टीशर्ट और पैरों के जूतों पर सरसरी निगाह दौड़ाते हुए चौंके. लेकिन संयम बरतते हुए उन्होंने उस के कंधों पर हाथ रखा, ‘‘देखो, जो कुछ हुआ सो हुआ, लेकिन सच बोलने से तुम्हारी सजा कम हो सकती है.’’

रविंद्र लगभग 23-24 वर्षीय युवक था. उस ने हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘साब, मैं ने कुछ किया हो तो बताऊं? मैं तो पिछले 2 सालों से यहां कंप्यूटर औपरेटर हूं. मैं अपनी नौकरी खतरे में क्यों डालूंगा?’’

‘‘हां, तुम्हारी बात तो ठीक है. कोई अपनी नौकरी कैसे खतरे में डाल सकता है. चलो, तुम इतना तो बता सकते हो कि कल शाम को 8 बजे तुम दफ्तर क्यों आए थे? और आए थे तो बिना किसी से मिले बाहर से ही क्यों लौट गए?’’

‘‘साब, जिस दफ्तर में नौकरी करता हूं, वहां आना कोई गुनाह तो नहीं. मुझे तो यहां अपनी स्कूटी खड़ी करनी थी. ऐसे में किसी से मिलने ना मिलने का कोई औचित्य नहीं था.’’

समीर कुमार ने तुरंत कहा, ‘‘बिलकुल ठीक कहते हो तुम, खैर यह बताओ कि कल रात को तुम कहां थे?’’

‘‘साब, कल रात को मैं कहां था, इस से क्या फर्क पड़ता है? अपने यारदोस्तों के साथ था और कहां था?’’

‘‘यारदोस्त कौन थे और क्या कर रहे थे? यह सब बताए बिना तुम्हारा पीछा छूटने वाला नहीं है?’’ एडीशनल एसपी ने डपटते हुए कहा.

अब तक हौसला दिखाने की कोशिश कर रहे रविंद्र की पेशानी पर पसीना छलक आया था. थोड़ा अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘साब, विकास के घर पर हम 3-4 दोस्त उस की बर्थडे पार्टी मना रहे थे.’’

‘‘लगे हाथ उन दोस्तों के नाम और ठौरठिकाने भी बता दो?’’

‘‘लेकिन साब, मेरे दोस्तों से क्या मतलब?’’ अब रविंद्र पर घबराहट तारी होने लगी. वह एडीशनल एसपी की घूरती निगाहों का ज्यादा देर सामना नहीं कर पाया और जल्दी ही बोल पड़ा, ‘‘विकास नर्सिंग का कोर्स कर रहा है और मेरे गांव का ही रहने वाला है. कोटा में महावीर नगर विस्तार योजना में रहता है.’’

‘‘और…और…’’ समीर कुमार की आवाज में सख्ती का पुट था. ‘‘और कौन था?’’

‘‘और आशीष था, वह फ्लिपकार्ट कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी करता है, वो भी सुकेत का ही रहने वाला है. मेरा हमउम्र ही है.’’ उस ने हड़बड़ाते हुए बात पूरी की, ‘‘2-3 लड़के और थे, उन्हें मैं नहीं जानता… वे आशीष और विकास के मिलने वाले थे. उन्हें ही पता होगा?’’

‘‘रविंद्र, तुम शायद अपनी मुक्ति नहीं चाहते. लेकिन याद रखो पुलिस तो गूंगे को भी बुलवा लेती है. खैर, तुम्हारी मरजी?’’ समीर कुमार ने रविंद्र सिंह को काफी कुरेदा, पर वह इस बात से बराबर इनकार करता रहा कि उस का इस वारदात में कोई हाथ है.

अचानक समीर कुमार के दिमाग में युक्ति आई उन्होंने रविंद्र से कहा, ‘‘ठीक है, तुम आराम से बैठो और ठीक से सोच लो. आधे घंटे बाद तुम से फिर पूछताछ होगी.’’

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रविंद्र के जातेजाते समीर कुमार ने पूछा, ‘‘तुम कौन से शूज पहनते हो?’’

रविंद्र इत्मीनान से बोला, ‘‘स्पोर्ट्स शूज साब, लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘तुम्हारी पसंद पूछ रहा हूं?’’ रविंद्र का जवाब सुनते ही एडीशनल एसपी के चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई.

अब तक दोपहर के 2 बज चुके थे. रविंद्र को सिपाहियों के हवाले करते ही एडीशनल एसपी समीर कुमार ने सर्किल इंसपेक्टर लोकेंद्र पालीवाल की तरफ मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘रविंद्र के जूतों के निशान ले कर बस्ती की दीवार के पीछे बने जूतों के निशान से उन का मिलान करो?’’

रविंद्र जिस तरह भटकाने की कोशिश कर रहा था, समीर कुमार का गुस्सा खौलने लगा था. लेकिन संयम बरतते हुए वह सीओ राजेश मेश्राम और बने सिंह की तरफ मुखातिब हुए, ‘‘विकास और आशीष बोलेंगे तो यह भी बोलने लगेगा. क्रौस इंटेरोगेशन में तीनों बोलेंगे.’’

इस बीच सर्किल इंसपेक्टर मुनींद्र सिंह, महावीर यादव, आनंद यादव, घनश्याम मीणा और रामकिशन की अगुवाई में अलगअलग हिस्सों में तहकीकात के लिए बंटी पुलिस टीमों ने आयकर महकमे की सर्च टीम में पहले शामिल रहे अधिकारियों, कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मचारियों तथा इमारत के आसपास रहने वालों से भी पूछताछ कर ली.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए चालानशुदा अपराधियों को भी टटोला, 50 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों को भी खंगाला गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच पुलिस रविंद्र के दोस्तों विकास और आशीष को उठा लाई थी.

जूतों के निशान के मामले में एडीशनल एसपी समीर कुमार का अंदेशा सही निकला, सर्किल इंसपेक्टर पालीवाल ने लौट कर जो बताया उसे सुन कर समीर कुमार की बांछें खिल गईं. दुर्गा बस्ती की दीवार के पीछे की नमी वाली जमीन पर बने स्पोर्ट्स शूज के निशान रविंद्र के जूतों से मिल रहे थे.

पूछताछ में रविंद्र ने शनिवार की रात अपनी मौजूदगी बर्थडे पार्टी में बताई थी, लेकिन पुलिस ने जब उस के घर वालों से उस के कथन की तसदीक की तो उन का कहना था कि वह घर से खाना खा कर गया था.

एडीशनल एसपी ने जब उसे उस के घर वालों के कथन का हवाला दे कर दोबारा बर्थडे पार्टी पर सवाल किया तो वह हड़बड़ा गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया और टांगें कांपने लगीं. वह समझ गया था कि उस के शूज का नाप क्यों लिया गया था और उस से शूज के ब्रांड के बारे में क्यों पूछा गया था.

इस बार रविंद्र एडीशनल एसपी समीर कुमार की आंखों में झलकते क्रोध को सहने की हिम्मत नहीं जुटा सका और नजरें चुराने लगा.

रविंद्र फिर भी खामोश रहा तो समीर कुमार ने उस के चेहरे पर नजरें जमाते हुए कहा, ‘‘अभी वक्त है, तुम चाहो तो सच्चाई उगल सकते हो, तुम चालू दोस्तों के बहकावे में आ गए? हम तुम्हें बचाने की पूरी कोशिश करेंगे.’’

आखिर रविंद्र टूट गया. उस ने जो कुछ बताया वो मौजमस्ती और हालात से निजात पाने की गुनहगार कोशिश थी…’’

गुनाह में पिरोई गई सारी योजना रविंद्र सिंह ने तैयार की थी, लेकन इस के पीछे थे उन के अपने छोटेमोटे स्वार्थ. रविंद्र सिंह आयकर महकमे में ठेकेदार के जरिए 2 साल के लिए लगा हुआ संविदाकर्मी था.

यह अवधि पूरी होने जा रही थी और ठेकेदार अब अपना कोई नया आदमी लगने का मंसूबा पाले हुए था. नौकरी जाने के डर से रविंद्र वारदात कर के बड़ी रकम जुटाने की कोशिश में था.

विकास और आशीष भी उसी के गांव सुकेत के रहने वाले थे, तीनों में गहरा दोस्ताना था. विकास नर्सिंग कोर्स की पढ़ाई कर रहा था. लेकिन 2 वजह से उसे बड़ी रकम की जरूरत थी. उस की एक जरूरत तो कालेज की फीस भरने की थी और दूसरे गर्लफ्रैंड के तकाजे उस पर ज्यादा भारी पड़ रहे थे.

प्यार और फीस में उलझा विकास हालात से उबरने के लिए रविंद्र की योजना में शामिल हो गया. आशीष उर्फ आशु हालांकि फ्लिपकार्ट कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी करता था, लेकिन महंगे शौक मामूली नौकरी से पूरे नहीं हो पा रहे थे. इसलिए वारदात में शामिल हुआ. पुलिस ने विकास और आशीष से क्रौस इंट्रोगेशन की तो दोनों टूट गए. उस के बाद तो वारदात की कडि़यां जुड़ती चली गईं.

एसपी (सिटी) अंशुमान भोमिया के सामने एडीशनल एसपी समीर कुमार द्वारा की गई पूछताछ में रविंद्र कुमार ने बताया कि एक दिन पहले भी उन्होंने वारदात करने की योजना बनाई थी. लेकिन गार्ड दुर्गेश के चौकन्ना रहने के कारण अंजाम नहीं दे सके. सीसीटीवी कैमरों की जानकारी लेने के लिए उस ने शनिवार की दोपहर को कार्यालय के चारों तरफ चक्कर लगाया.

इमारत के पीछे सब से कम कैमरे थे, इसलिए दुर्गा बस्ती के पीछे से दीवार लांघ कर वे आयकर महकमे की बिल्डिंग में घुसे थे. रविंद्र ने बताया कि ऐहतियात बरतने के लिए वे नकाब पहन कर औफिस में दाखिल हुए थे.

ज्वैलर के यहां से जब्त की गई फाइलें फाड़ने की वजह क्या थी, पूछने पर रविंद्र का कहना था, ‘‘हम पुलिस को भटकाना चाहते थे ताकि शक सर्राफा फर्मों की तरफ जाए.’’

तीनों को इस बात पर हैरानी थी कि जब उन्होंने कैमरों की जद में आने से बचने के लिए दूसरे तल पर लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया था तो सीसीटीवी की फुटेज में उन की तसवीर कैसे आ गई? असल में वापस लौटते समय उन्होंने ऐहतियात नहीं बरती और कैमरों में कैद हो गए. पुलिस ने 12 घंटों में ही वारदात का खुलासा करते हुए चोरों को गिरफ्तार कर के सारा सोना बरामद कर लिया.

वारदात के बाद सोना तीनों ने आपस में बांट लिया था. पुलिस ने विकास के घर की पानी की टंकी में से सोना बरामद किया. जबकि रविंद्र ने अपने दुर्गा बस्ती स्थित घर में सोना छिपा कर रखा था, पुलिस ने उसे भी जब्त कर लिया. आशीष से उस के वीर सावरकर नगर स्थित घर से जेवर बरामद किए गए. कथा लिखे जाने तक आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित  

इज्जत, हक और हिंसा

2 अप्रैल, 2018 को देशभर में खासतौर से हिंदीभाषी राज्यों में जो हिंसा हुई वह हर लिहाज से चिंता वाली बात है. दरअसल, 20 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए फैसले में कहा था कि एससीएसटी ऐक्ट के तहत अब किसी आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और उसे अग्रिम जमानत का हक भी दिया जाता है.

इस फैसले से दलित समुदाय में गुस्सा फैलना कुदरती बात थी तो इस की अपनी वजहें भी हैं, लेकिन हिंसा के बाद 3 अप्रैल, 2018 को केंद्र सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट दोबारा इस मामले पर सुनवाई के लिए राजी हुआ तो कई अहम बातें खुल कर सामने आईं.

हिंसा से थर्राई केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की थी कि वह अपने पुराने फैसले पर स्टे लगाए. इस बाबत केंद्र सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जो दलीलें रखीं उन के सुप्रीम कोर्ट के जजों यूयू ललित और एके गोयल की बैंच ने तुरंत सटीक जवाब दिए.

सवालजवाब

केके वेणुगोपाल : कोर्ट के फैसले से देशभर के दलित नाराज हैं. दंगों में 10 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. कोर्ट अपने फैसले पर अंतरिम रोक लगाए.

कोर्ट : हम एससीएसटी ऐक्ट के खिलाफ नहीं हैं. पर यह देखना होगा कि बेगुनाह को सजा न मिले. सरकार क्यों चाहती है कि लोग बिना जांच के गिरफ्तार कर लिए जाएं? अगर सरकारी कर्मचारी पर कोई आरोप लगाएगा तो वह कैसे काम करेगा? हम ने एससीएसटी ऐक्ट नहीं बदला है बल्कि सीआरपीसी की व्याख्या की है.

केके वेणुगोपाल : अदालत के 20 मार्च के फैसले से एससीएसटी ऐक्ट कमजोर हुआ है. तत्काल गिरफ्तारी पर रोक से पुलिस मामले को टालेगी. मामले दर्ज ही नहीं होंगे.

कोर्ट : झूठी शिकायत पर कोई बेगुनाह जेल नहीं जाना चाहिए. जेल जाना भी एक सजा है. संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार पर विचार करते हुए बेगुनाहों को बचाने के लिए कोर्ट ने फैसला दिया है.

केके वेणुगोपाल : लेकिन एसीएसटी ऐक्ट के इंतजामों में किसी गाइडलाइन की जरूरत ही नहीं है.

कोर्ट : इस कानून में आरोपों की पुष्टि मुश्किल है, इसलिए गाइडलाइन जारी की.

केके वेणुगोपाल : पीडि़तों को मुआवजा भी एफआईआर दर्ज होने पर ही मिलता है. एफआईआर नहीं होगी तो मुआवजा नहीं दे पाएंगे.

कोर्ट : पीडि़त बेहद जरूरतमंद हैं तो एफआईआर के बिना भी जिला मजिस्ट्रेट उसे मुआवजा दे सकता है.

केके वेणुगोपाल : कोर्ट ने जो 7 दिन का समय दिया है उस दौरान पीडि़त को धमकाया भी जा सकता है.

कोर्ट : 7 दिन का समय अधिकतम है. यह नहीं कहा कि जांच 7 दिन में ही पूरी करनी है. यह 15 मिनट, आधा घंटा या एक दिन में भी पूरी हो सकती है.

केके वेणुगोपाल : यह ऐक्ट पहले से ही मजबूत है. इस में बदलाव की जरूरत नहीं है.

कोर्ट : सब से बड़ी खामी यह है कि इस ऐक्ट में अग्रिम जमानत का इंतजाम ही नहीं है. जमानत हर आरोपी का हक है. अगर किसी को जेल भेजते हैं और बाद में वह बेगुनाह साबित होता है तो उस के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकते. आंकड़े बताते हैं कि कानून का अकसर बेजा इस्तेमाल होता है.

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केके वेणुगोपाल : कई मामलों में बेजा इस्तेमाल का पता चला है, पर उस की बिना पर कानून में बदलाव जरूरी नहीं है.

कोर्ट : क्या किसी बेगुनाह को सुने बिना जेल भेजा जाना सही है? अगर किसी सरकारी मुलाजिम के मामले में ऐसा होता है तो वह काम कैसे करेगा? कानून सजा की बात करता है. गिरफ्तारी जरूरी नहीं.

यह अकेला ऐसा कानून है जिस में किसी को कानूनी इलाज नहीं मिलता. मामला दर्ज होते ही आदमी को तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेज देते हैं. झूठे इलजाम लगा कर किसी की आजादी छीनने का हक किसी को नहीं दे सकते.

कार्यवाही का सार

एक तरह से केके वेणुगोपाल ने अदालत के सामने वे सारी दलीलें पेश कर दीं जो शक या डर बन कर दलितों के मन में उमड़घुमड़ रही थीं. पर अदालत ने इन दलीलों से कोई इत्तिफाक न रखते हुए सारा ध्यान बेगुनाहों की गिरफ्तारी पर रखा तो साफ है कि इंसाफ तो हुआ है, पर वह कानूनी लैवल पर ही हुआ है.

खुली अदालत में चली इस कार्यवाही में कहीं भी दलितों की बदतर हालत का जिक्र नहीं हुआ और न ही यह सच सामने आया कि दबंग उन पर आज भी कैसेकैसे कहर ढाते हैं.

सरकार चाह रही थी कि 2 अप्रैल, 2018 की हिंसा के मद्देनजर अदालत अपना 20 मार्च, 2018 का फैसला रद्द कर दे, लेकिन उस के पास इस बाबत सटीक दलीलें नहीं थीं.

मामला जिस ने ऐक्ट बदला

इस सारे बवंडर की वजह महाराष्ट्र का एक मामला था. शिक्षा विभाग के एक दलित स्टोरकीपर ने महकमे के डायरैक्टर सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ यह रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि वे अपने उन 2 मातहतों के खिलाफ कार्यवाही में अड़ंगा डाल रहे हैं जिन्होंने उस की सीआर यानी गोपनीय रिपोर्ट में जातिसूचक बात कही थी.

नियम के मुताबिक पुलिस ने सुभाष महाजन से इन दोनों आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए इजाजत मांगी तो उन्होंने इजाजत देने से मना कर दिया.

इस अफसर की दलील थी कि अगर किसी अनुसूचित जाति के मुलाजिम के खिलाफ ईमानदारी से बात करना गुनाह हो जाएगा तो इस से काम करना मुश्किल हो जाएगा. इस पर पुलिस ने उन के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया.

5 मई, 2017 को सुभाष महाजन ने हाईकोर्ट की पनाह ली. हाईकोर्ट ने उन के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की राह पकड़ी.

20 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस अफसर के खिलाफ एफआईआर हटाने का आदेश दिया और अपने फैसले में यह इंतजाम भी किया कि अब एससीएसटी ऐक्ट में तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी और इस ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों में अग्रिम जमानत भी मिलेगी. पुलिस को 7 दिन में इस ऐक्ट के तहत दर्ज मामलों की जांच करनी होगी और किसी सरकारी अफसर की गिरफ्तारी के लिए महकमे के मुखिया से इजाजत लेनी पड़ेगी. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी जोड़ा था कि जांच डीएसपी लैवल का कोई अफसर ही करेगा.

कितना असरदार ऐक्ट

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वाकई चौंका देने वाला था. एससीएसटी ऐक्ट यानी अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम साल 1989 में बना था, तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी.

इस ऐक्ट में साफतौर पर इंतजाम था कि दलितआदिवासियों को जातिगत संबोधनों से बेइज्जत करने वालों, गालीगलौज और मारपीट करने वालों, दलित दूल्हों को घोड़ी पर न बैठने देने वालों, उन्हें सार्वजनिक जगहों से पानी न भरने देने वालों और दूसरे जुल्म करने वालों पर कानूनी शिकंजा कसा जाना जरूरी है. आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी और अग्रिम जमानत न देने के इंतजाम इस ऐक्ट में किए गए थे जिस के पीछे मंशा यह थी कि अगर आरोपी, जो आमतौर पर दबंग होता है, गिरफ्तार नहीं हुआ तो वह पीडि़तों को और डराएगा और समझौते के लिए दबाव डालेगा.

तब इस ऐक्ट का दलित समुदाय ने स्वागत किया था क्योंकि यह उन की इज्जत और गैरत का बचाव करता हुआ था. देखते ही देखते इस ऐक्ट के तहत मामले दर्ज होने लगे और दलितों पर कहर ढाने वालों की शामत आ गई.

मगर हर कानून की तरह इस में भी कुछ खामियां थीं. पीडि़त को मुआवजा मिलने के इंतजाम इस में हैं. लिहाजा 90 के दशक में ही झूठे मामले भी सामने आने लगे और कई मामले ऐसे भी सामने आए जिन में दलितों ने ऊंची जाति वालों को फंसाने की गरज से झूठी रिपोर्टें दर्ज कराना शुरू कर दी थीं.

लेकिन इस ऐक्ट का अच्छा असर यह भी हुआ कि दबंग पहले की तरह दलितों को सताने से डरने लगे थे.

इस का मतलब यह नहीं था कि दलितों पर जोरजुल्म कम हो गए थे. वे बदस्तूर जारी थे और हर जगह थे. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद गिरफ्तारियां होती थीं, कुछ दिनों बाद आरोपियों को जमानत मिल जाती थी और फिर मामला अदालत में चलता रहता था. कुछेक मामलों में आरोपियों को सजा भी होती थी. पर ज्यादातर में वे छूट जाते थे. वजह, आरोप का साबित न होना, कुछ लेदे कर समझौता हो जाना और दलितों पर दबाव भी रहता था.

मौजूद ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2016 में एससीएसटी ऐक्ट के तहत दर्ज मामलों की तादाद 47,370 थी. उन में से तकरीबन 70 फीसदी में ही कार्यवाही हुई और 26 फीसदी आरोपियों को सजा हुई.

ये आंकड़े इस बात की तो गवाही देते हैं कि इस ऐक्ट का बेजा इस्तेमाल वाकई होने लगा था, जिस की सजा उन बेकुसूर लोगों को भुगतनी पड़ती थी जिन्होंने कोई जुल्म या जोरजबरदस्ती दलितों के साथ नहीं की थी. लेकिन साबित यह भी हो रहा था कि साल 1989 के पहले जो सौ फीसदी लोग बच कर निकल जाते थे उन में से तकरीबन 25 फीसदी लोगों को सबक भी मिला था.

यों बिगड़ी बात

सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च, 2018 के फैसले के बाद दलितों को यह डर सताने लगा कि उन की हिफाजत के लिए जो एकलौता ऐक्ट वजूद में था, वह खत्म सा कर दिया गया है तो वे इस फैसले का विरोध करने लगे.

23 मार्च, 2018 को एक पोस्ट वायरल हुई जिस में कहा गया था कि 2 अप्रैल, 2018 को इस फैसले के खिलाफ भारत बंद का आयोजन किया गया है. लिहाजा, सभी दलितआदिवासी इकट्ठा हो कर सड़कों पर आएं और भारत बंद में सहयोग करें.

कई पोस्टों में भीमराव अंबेडकर का भी हवाला दिया गया और दलित सांसदों और विधायकों को भी कोसा गया था.

हिंसा या भड़ास

2 अप्रैल, 2018 को तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक दलित समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे. उन के हाथों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध जताती तख्तियां, हाथों में नीले झंडे और जबान पर तरहतरह के नारे थे. सब से ज्यादा हिंसक वारदातें मध्य प्रदेश में हुईं.

चंबल में बंद के लिए प्रदर्शनकारियों ने जम कर तोड़फोड़ की, जबरन दुकानें बंद कराईं और हिंसा पर उतारू हो आई भीड़ पर पुलिस ने भी जम कर लाठियां भांजी.

हिंसा से उत्तर प्रदेश भी अछूता नहीं रहा. हिंसक वारदातें मेरठ, आगरा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, हापुड़ और गाजियाबाद में हुईं. हिंसा में 3 लोगों की जानें गईं.

राजस्थान के अलवर में पुलिस की गाडि़यां प्रदर्शनकारियों ने जलाईं. यहां पुलिस फायरिंग में एक नौजवान की मौत भी हुई. जोधपुर में भी जम कर उपद्रव हुआ और इसी दौरान एक पुलिस इंस्पैक्टर को दिल का दौरा पड़ गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में जम कर हिंसा हुई पर किसी की मौत नहीं हुई.

बिहार में प्रदर्शनकारियों का गुस्सा अलग तरीके से फूटा. जगहजगह ट्रेनें रोकी गईं और रोड जाम किए गए.

हरकत में आए नेता

2 अप्रैल, 2918 की दोपहर होतेहोते जब यह तय हो गया कि दलितों का विरोधप्रदर्शन कामयाब रहा है और दलितों ने गजब की एकजुटता दिखाई है तो जल्द ही सभी दलों के नेता, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप थे, अपने दड़बों के बाहर आ कर हिंसा की आग में अपनी सियासी रोटियां सेंकने लगे.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दलितों के इस आंदोलन को न केवल समर्थन दिया बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को जम कर लताड़ा भी. उन का कहना था कि भारतीय समाज में दलितों के सब से निचले पायदान पर रखना संघ और भाजपा का डीएनए है. जो इस सोच को चुनौती देता है कि वे उसे हिंसा से दबा देते हैं. हजारों दलित भाईबहन सड़कों पर उतर कर अपने हक के लिए लड़ रहे हैं, हम उन्हें सलाम करते हैं.

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी लखनऊ में प्रैस कौंफ्रैंस कर भाजपा पर हमला बोला, लेकिन दलितों ने उन्हें पहले सा भाव नहीं दिया. वजह, साल 2007 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते खुद मायावती ने यह फरमान जारी किया था कि एससीएसटी ऐक्ट के तहत बगैर जांचपड़ताल के किसी की गिरफ्तारी नहीं होगी क्योंकि इस ऐक्ट का बेजा इस्तेमाल होता है.

भाजपा के सहयोगी दलों के दलित नेता रामविलास पासवान, रामदास अठावले और उदित राज इस हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए एक तरह से दलितों से अपना मुंह ही छिपाते रहे. इस के उलट लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने भाजपा के साथसाथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पर भी हमला करते हुए जेल में बैठे अपने पिता को दलितों का मसीहा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

समरसता की खुली पोल

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों ने देशभर में भाजपा का साथ दिया था तो इस की वजह उस का और संघ का समरसता का ड्रामा था.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जगहजगह दलितों के घर जा कर खाना खाते हुए यह जताने की कोशिश की थी कि भाजपा अब बदल रही है. इतना ही नहीं, उज्जैन के कुंभ के मेले में वे दलित संतों के साथ खुद भी नहाए थे और सवर्ण संतों को भी नहलाया था. तब भाजपा की भरसक कोशिश यह जताने की थी कि दलितों ने उस पर भरोसा कर कोई घाटे का सौदा नहीं किया है.

मंशा यह जताने की भी थी कि भाजपा अब ब्राह्मण और बनियों की पार्टी नहीं रह गई है. तब दलितों ने इस बात पर भरोसा भी किया था जो 4 साल में पूरी तरह टूट गया है.

दलित समुदाय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिम्मेदार केंद्र सरकार को मान रहा है. हालांकि फुरती दिखाते हुए केंद्र सरकार ने हिंसा के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट में दोबारा सुनवाई के बाबत गुहार लगाई, लेकिन जब 3 अप्रैल, 2018 को कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह अपने फैसले से टस से मस नहीं होगा तो दलितों में फिर मायूसी छा गई.

बात का दूसरा पहलू भाजपा राज में  दलितों पर होने वाले जोरजुल्म भी हैं जिन के बाबत सरकार कभी कुछ नहीं बोली. दलितों के हक और भले के लिए कोई दमदार योजना भी नरेंद्र मोदी सरकार ने नहीं बनाई है.

इस हिंसा की जड़ में धर्म भी था जिस का जिक्र किसी ने नहीं किया. धार्मिक किताबों में जगहजगह दलितों को दोयम दर्जे का बता कर उन्हें परेशान करने की हिदायतें भी दी गई हैं. भाजपा राज में जोरजुल्म बढ़े तो दलित समुदाय का गुस्सा अपनी जगह जायज था जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बहाने फूटा तो इस का खमियाजा भाजपा को कर्नाटक समेत इस साल होने वाले 3 अहम राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए.

पिछड़ों का डबल रोल

2 अप्रैल, 2018 के विरोध प्रदर्शन में दलितों ने यह जता दिया कि अपनी लड़ाई लड़ने में वे अब किसी के मुहताज नहीं हैं लेकिन एससीएसटी ऐक्ट के खिलाफ उन्हें पिछड़े तबके का साथ न मिलना इस लिहाज से हैरानी की बात रही कि सियासी तौर पर दलित पिछड़ों की जुगलबंदी फिर जोर पकड़ रही है.

दलितआदिवासियों की तरह पिछड़ों का भी एक डर आरक्षण छिनने का है. इस मसले पर तो वे दलितों के साथ हैं, पर एससीएसटी ऐक्ट पर नहीं क्योंकि इस कानून के तहत दर्ज होने वाले तकरीबन 50 फीसदी मामलों में आरोपी पिछड़े तबके के ही लोग होते हैं. इन में भी रसूखदार पिछड़ों की तादाद ज्यादा रही.

आरक्षण पर साथ, लेकिन ऐक्ट पर एतराज है तो लगता नहीं कि दलितपिछड़ा गठजोड़ ज्यादा दूर तक चल पाएगा. ऊंची जाति वालों की तरह पिछड़े भी दलितों पर कहर ढाते हैं, लेकिन सत्ता में साथ चाहते हैं. यह उन का दोहरापन है. पिछड़ा तबका कभी खुद भी ऊंची जाति वालों के कहर का शिकार रहा है लेकिन तालीम और जागरूकता के चलते अब अपने दम पर खड़ा है.

दरअसल, दलितों को दबाए रखना अगड़ेपन की निशानी हो गई है. आरक्षण पर अगर कोई पहल हुई तो पिछड़े दलितों के मुहताज रहेंगे तब शायद उन्हें अपने इन सियासी भाइयों की याद आए, पर तब तक बात काफी बिगड़ चुकी होगी.

भगवा होते अंबेडकर

2 अप्रैल की हिंसा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर दे कर यह बात कही कि कुछ लोग भीमराव अंबेडकर के नाम पर राजनीति करते हुए समाज में भेदभाव फैला रहे हैं तो हैरानी होना कुदरती बात थी.

अंबेडकर पर सियासत की शुरुआत का जिम्मा भाजपा को ही जाता है जो सत्ता में आने के बाद से लगातार अंबेडकर की बातें करते हुए उन की जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर बड़ेबड़े जलसे करती है. वह अंबेडकर की दुहाई देते थकती नहीं, पर इस में छिपा दोहरापन सभी को नजर नहीं आता.

भाजपा इस हकीकत से हमेशा कतराती रही है कि अंबेडकर हिंदू धर्म में पसरी जातिगत छुआछूत, भेदभाव और पाखंडों के खिलाफ थे इसीलिए उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था और हिंदू धर्मग्रंथों को बहा देने की बात कही थी.

अंबेडकर की पूछपरख के पीछे भाजपा की मंशा उन के हिंदू धर्म से ताल्लुक रखते विचारों को भुला देने की है, पर दलित इस पर खबरदार हैं उसे मालूम है कि हिंदूवादी अब उन के मसीहा को भी हथियाने की फिराक में हैं. इसलिए वह भी अंबेडकर की जयंती और पुण्यतिथि पहले से ज्यादा धूमधड़ाके से मनाने लगा है. यह सियासत नहीं बल्कि ठीक वैसी ही आस्था है जैसी ऊंची जाति वालों की शंकर, राम, कृष्ण और हनुमान में है. फर्क इतना है कि अभी अंबेडकर के नाम पर पूजापाठ और चढ़ावे का रिवाज कम है, जो अगर बढ़ा तो वह दलितों के लिए ही नुकसानदेह साबित होगा और यही भाजपा चाहती है.

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