सफलतम मौडल से अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके जौन अब्राहम की पहचान एक एक्शन हीरो के रूप में होती है, जबकि वह खुद हास्य फिल्में देखना व हास्य किरदारों को निभाना ज्यादा पसंद करते हैं. मगर ‘‘विक्की डोनर’’ और ‘‘मद्रास कैफे’’ जैसी फिल्में बनाकर अपनी संजीदगी का अहसास करा चुके हैं.
जौन अब्राहम का मानना है कि वह संजीदा विषयों पर संजीदा फिल्में बनाकर दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ ही उन्हे शिक्षित भी करना चाहते हैं. जौन अब्राहम से बातचीत करते समय इस बात का भी अहसास होता है कि वह अभिनेता व फिल्म निर्माता होने के साथ साथ देश के राजनैतिक व सामाजिक हालातों को लेकर पूरी तरह से सजग हैं और वह युवा पीढ़ी को भी सजग करना चाहते हैं.
आपकी पिछली कुछ फिल्मों को बाक्स आफिस पर असफलता मिली थी?
फिल्म ‘‘फोर्स 2’’ तो नोटबंदी के अवसर पर रिलीज हुई थी, इसलिए नहीं चली. उससे पहले मेरी फिल्म ‘राकी हैंडसम’ असफल हुई. पर मैं आज भी मानता हूं कि ‘राकी हैंडसम’ भारत की सर्वश्रेष्ठ एक्शन वाली फिल्म है.
जब ‘‘राकी हैंडसम’’ जैसी फिल्में असफल होती है, तब कैसा लगता है?
बहुत तकलीफ होती है. जब हम किसी फिल्म के लिए मेहनत करते हैं, अच्छा काम करते हैं और उसे सराहा ना जाए तो तकलीफ होती है. जब यह फिल्म थिएटरों में आयी थी, तो इसे सफलता नहीं मिली थी. लेकिन अब यह ‘नेट फिलिक्स’ पर काफी पसंद की जा रही है. सभी अब कमेंट लिख रहे हैं कि उन्हें इस फिल्म का एक्शन बहुत पसंद आ रहा है. नेट फिलिक्स वाले हमें बता रहे थे कि एक्शन फिल्मों में ‘राकी हैंडसम’ पहले नंबर पर और ‘फोर्स 2’ दूसरे नंबर पर है. मुझे लगता है कि हम इस फिल्म को सही मार्केटिंग करके सही ढंग से रिलीज नही कर पाए थे. देखिए, मैं इसलिए निर्माता बन गया. क्योंकि मैं अपनी फिल्म को सही ढंग से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता हूं. मैं मानता हूं कि दर्शक सिनेमा से मनोरंजन चाहता है, पर मेरा नजरिया यह है कि मनोरंजन भी जरूरी है, तो वहीं ‘मद्रास कैफे’ व ‘परमाणु’ जैसी फिल्में भी जरूरी हैं.
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