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शाहिद अफरीदी को लेकर अर्शी खान ने किया चौंकाने वाला खुलासा

बिग बौस से मशहूर हुई अर्शी खान अक्सर अपने बयानों और डांस को लेकर सुर्खियों में बनी रहती हैं. वो अक्सर ही किसी ना किसी पार्टी या स्टेज शो में भी नजर आती रहती हैं. और इस बार वो राजीव खंडेलवाल के टौक शो जज्बात में मेहमान बनकर पहुंची. यहां अर्शी ने अपनी निजी जिंदगी और करियर के बारे में काफी बातें शेयर कीं. इतना ही नहीं यहां उन्होंने एक ऐसे सच का भी खुलासा किया जिसकी वजह से उनकी खूब बदनामी हुई थी.

शो में उन्होंने शाहिद अफ्रीदी को लेकर किए गए कंट्रोवर्सियल ट्वीट पर सफाई दी. अर्शी ने कहा कि मुझसे गलती हुई. बता दें कि जब राजीव ने अर्शी से अफरीदी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ‘शाहिद अफरीदी के साथ मेरा रिश्ता बहुत अच्छा है. मैं उनकी इज्जत करती हूं और वो अच्छे इंसान हैं. मेरा ट्वीट करना एक गलती थी. ऐसी बातों पर खुलकर बात नहीं करनी चाहिए.’

बता दें साल 2015 में अर्शी ने क्रिकेटर शाहिद अफरीदी पर कुछ आरोप लगाए थे. उन्होंने लिखा था- ”हां मैंने शाहिद अफ्रीदी के साथ सेक्स किया. क्या किसी के साथ सोने के लिए मुझे मीडिया की अनुमति लेनी होगी? ये मेरी निजी लाइफ है. ये मेरे लिए प्यार था.” हालांकि इस मामले पर कभी शाहिद ने कोई बयान नहीं दिया था.

इन दो क्रिकेट खिलाड़ियों की वजह से पाक से हार गई थी टीम इंडिया..!

पिछले साल इंग्लैंड में खेले गए आईसीसी चैम्पियंस टौफी के फाइनल में पाकिस्तान ने भारत पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. इस फाइनल मैच को लेकर एक खुलासा हुआ है कि भारत को हराने के पीछे वर्तमान टीम कोच रवि शास्त्री और सुनील गावस्कर का हाथ था.

यह बात क्रिकबज़ को दिए एक इंटरव्यू के दौरान पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के मैनेजर तलत अली ने कही है. तलत अली का कहना है कि भारतीय क्रिकेट के सबसे पसंदीदा खिलाड़ी रह चुके गावस्कर और शास्त्री के कमेंट्स के कारण पाकिस्तानी टीम को ट्रौफी जीतने का मौका मिला.

अली ने कहा कि मैं मैच से पहले शास्त्री और गावस्कर का विशलेषण सुन रहा था जिसमें उनका कहना था कि पाकिस्तान के पास चैम्पियंस ट्रौफी जीतने का कोई चांस नहीं है. उनका कहना था कि पाकिस्तान के साथ कोई मुकाबला ही नहीं है. दोनों पूर्व भारतीय खिलाड़ियों की इस बात ने हमारे खिलाड़ियों के अंदर जोश भर दिया. हमने इसे चुनौती के तौर पर लिया और खिलाड़ियों से कहा बल्ले और गेंद से जवाब देते हैं.

इस मैच का टौस भारत ने जीता था लेकिन उन्होंने हमें पहले बैटिंग करने का मौका दिया. अली ने कहा कि मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि टौस जीतकर भारत के पास हमारे सामने रनों का बड़ा सा लक्ष्य रखने का मौका था लेकिन फिर भी उन्होंने बल्लेबाजी के बजाए पहले गेंदबाजी करने का फैसला लिया.

हम थोड़े लकी साबित हुए और हमने फाइनल में भारत को हराकर चैम्पियंस ट्रौफी पर कब्जा जमाया. भाग्य ने हमारा साथ दिया है. हमारा जब साउथ अफ्रीका के साथ मैच हुआ था, तो हमने पहले ही अपने बहुत से विकेट खो दिए थे और फिर बारिश शुरु हो गई, जिसके कारण मैच रद्द हो गया. ऐसा ही कुछ श्रीलंका के साथ हुए मैच में भी हुआ जहां पर हम जीतने के लिए संघर्ष कर रहे थे. मुझे इसका कोई आइडिया नहीं है कि कैसे थिसारा परेरा के हाथ से कैच छूट गया और हम जीत गए. इस टूर्नामेंट में हम बहुत भाग्यशाली रहे थे.

बचत करने के ये 5 तरीके बनाएंगे आपको टेंशन फ्री

अक्सर हममें से ज्यादातर लोग अपने मन ही मन सोचते हैं कि हम बचत नहीं कर पा रहे हैं. हमारे पास बिल्‍कुल भी सेविंग नहीं है, आखिर ऐसा कब तक चलेगा. और अगर आप इस सारी बातों को लेकर टेंशन में हैं तो अब आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है क्‍योंकि अब आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है क्‍योंकि यहां पर आपको हम बचत के ऐसे ही 5 तरीके बताने वाले हैं जिसे अपनाने के बाद आप आराम से सेविंग कर पाएंगे.

सार्वजनिक वाहन का इस्‍तेमाल करें

जैसा कि आप सब जानते हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमत हर महीन-पंद्रह दिन में घटती बढ़ती रहती है लेकिन कीमतें घटने से ज्‍यादा बढ़ जाती हैं जिसका असर आपके मंथली इनकम पर पड़ता है क्‍योंकि आपकी सैलरी साल में सिर्फ एक ही बार बढ़ती है. तो इसलिए अपने पैसे बचाने के लिए आप खुद के वाहनों की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्‍तेमाल कर सकते हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे बस और ट्रेन का किराया भी आपके पर्सनल व्‍हीकल के पेट्रोल से कम ही पड़ता है.

सेकंड हैण्‍ड चीजें भी हो सकती हैं काम की

नए सामान खरीदने के वजाय सेकंड हैण्‍ड चीजें खरींदे. जैसे कि सोफा, बेड, शू-केश और डायनिंग टेबल आदि. जब हम नई चीजों को बेचते हैं तो उसमें हमें लागत कम मिलती है. इसलिए सेकण्‍ड हैण्‍ड चीजों को खरीदना ही उचित होगा न कि नई चीजों को खरीदना. सेकंड हैण्‍ड चीजें आप OLX, Quiker और फेसबुक के वाय एण्‍ड सेल ग्रुप से भी खरीद सकते हैं और वहां पर अपना सामान बेच भी सकते हैं.

आनलाइन शापिंग से करें बचत

जब आप आनलाइन शापिंग करते हैं तो आप डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड का इस्‍तेमाल करते हैं. जिसमें आपको कई बार कुछ चीजों में डिस्‍काउंट और रिवार्ड्स भी मिलते हैं. किराने का सामान, मूवी टिकट, दवाईयां सब कुछ आपको आनलाइन मिल जाएगा. आनलाइन खरीदे गए सामान में आपको होम डिलीवरी मिलेगी. यानी कि खरीदने में डिस्‍काउंट मिलने के साथ-साथ आपका आने जाने का खर्चा और समय भी बचेगा.

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1 किलो और 25 किलो के रेट में काफी फर्क होता है. जैसे आप जब चावल दाल खरीदते हैं तो 5 किलो के बजाए 25 किलो 25 किलो की बोरी लें इससे 20 प्रतिशत पैसे आप बचा सकते हैं. ज्‍यादा उपयोग में आने वाली चीजें थोक में खरीदें.

लायल्‍टी कार्ड का करें उपयोग

आज कल सभी बैंक के पास डेबिट और क्रेडिट कार्ड के लिए लायल्‍टी प्रोग्राम्‍स होते हैं इससे आप हर बार पेमेंट करने पर छोटी-छोटी बचत कर सकते हैं.

मोहब्बत पर भारी सियासत : चोरी छिपे शादी करने का अंजाम

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से महज 35 किलोमीटर दूर रायसेन जिले का एक कस्बा है, उदयपुरा. इस कस्बे की गिनती पिछड़े इलाकों में शुमार होती है. हालांकि आधुनिकता और नए गजेट्स उदयपुरा भी पहुंच चुके हैं, लेकिन वे चीजें इस कस्बे के पिछड़ेपन की पहचान मिटाने में नाकाम साबित हुई हैं.

उदयपुरा की राजनैतिक पहचान ठाकुर रामपाल सिंह हैं, जो इन दिनों राज्य के लोक निर्माण विभाग के मंत्री हैं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले जानते हैं कि जिन इनेगिने नेताओं से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के घरेलू संबंध हैं उन में से रामपाल सिंह भी हैं. विदिशा रायसेन संसदीय क्षेत्र से लगभग एक साथ राजनैतिक सफर शुरू करने वाले ये दोनों नेता एकदूसरे पर आंख बंद कर के विश्वास करते हैं. साल 2006 में विदिशा लोकसभा सीट से उपचुनाव की वजह से शिवराज सिंह चौहान की जिद ने रामपाल सिंह को ही उम्मीदवार बनाया गया था.

हालांकि रामपाल सिंह तब इतने बड़े और लोकप्रिय नेता नहीं थे, लेकिन उन्होंने भाजपा का परंपरागत गढ़ ढहने नहीं दिया था और भाजपा व शिवराज सिंह चौहान का भरोसा कायम रखा था. 2013 के विधानसभा चुनाव में वे रायसेन की ही सिलवानी सीट से जीते तो शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें कैबिनेट में शामिल किया था.

यह रामपाल सिंह की खूबी ही कही जाएगी कि कभी उन का नाम किसी विवाद में नहीं आया. वे आमतौर पर शांत रहने वाले नेता हैं. उन की पहुंच सीधे पार्टी आलाकमान तक है. भोपाल के शिवाजी नगर के लिंक रोड स्थित उन के सरकारी बंगले पर दूसरे मंत्रियों जितनी भीड़भाड़ नहीं दिखती. जो 2-4 लोग दिखते भी हैं वे उन के क्षेत्र उदयपुरा के भाजपा कार्यकर्ता या फिर मतदाता होते हैं.

रामपाल सिंह का पैतृक घर उदयपुरा के लक्ष्मी चौक मोहल्ले में है. वह पैतृक घर किसी चुनाव के वक्त या महत्त्वपूर्ण तीज त्यौहारों पर जा पाते हैं. जब भी वे उदयपुरा में होते हैं तो सभी से खासतौर पर अड़ोसियोंपड़ोसियों से मिल कर उन की कुशलक्षेम पूछते हैं. ऐसा सिर्फ नेतागिरि के लिए नहीं, बल्कि खुद के मिलनसार स्वभाव की वजह से होता है. शायद इसी विनम्रता के चलते उन की छवि अडि़यल और अक्खड़ ठाकुर की नहीं बन पाई.

रामपाल सिंह के घर के ठीक सामने एक किसान चंदनसिंह रघुवंशी का घर है. पड़ोसी होने के नाते दोनों में पारिवारिक संबंध थे. मंत्री बनने के बाद रामपाल सिंह का अधिकांश वक्त भोपाल में ही बीतता था, लिहाजा अपने क्षेत्र की बात तो दूर मोहल्ले और घर की जानकारियां भी उन्हें पहले की तरह नहीं रहती थीं.

उन्हें तो यह भी नहीं मालूम था कि उन के मंझले बेटे गिरजेश प्रताप सिंह ने चोरीछिपे चंदनसिंह की बेटी प्रीति से शादी कर ली है. 28 वर्षीय प्रीति खासी खूबसूरत थी और 10वीं क्लास से आगे नहीं पढ़ पाई थी. यही हाल गिरजेश का था, उस की भी पढ़ाईलिखाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. दसवीं के बाद उस ने भी पढ़ाई से नाता तोड़ लिया था.

बीती 17 मार्च को सोशल मीडिया पर एक सनसनीखेज पोस्ट तेजी से वायरल हुई, जिस में लिखा था कि मंत्री रामपाल सिंह की बहू ने घर में फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली है. इस पोस्ट ने हर किसी को चौंकाया, जिस में लिखी इबारत का सार यह था कि सुबह तड़के 5 बजे रामपाल सिंह की बहू प्रीति रघुवंशी ने उदयपुरा स्थित अपने घर में फांसीं लगा कर जान दे दी है.

इस वायरल पोस्ट में प्रीति का एक फोटो भी संलग्न था, जिस में वह एक मंदिर के प्रांगण में रेलिंग से टिकी हुई दिखाई दे रही थी. सफेद गुलाबी रंग का सूट पहने प्रीति के चेहरे पर सौम्य मुसकराहट थी और वह फोटो में काफी खुश नजर आ रही थी.

जिस ने भी इस पोस्ट को देखा, पढ़ा उन में से हर किसी को पूरा किस्सा तो समझ नहीं आया, लेकिन इस पोस्ट को अधिकतर लोगों ने फारवर्ड किया. खुद रामपाल सिंह सहित उन के जानने वाले हैरान थे कि गिरजेश की तो अभी शादी ही नहीं हुई है, फिर प्रीति को क्यों उस की पत्नी बताया जा रहा है. जबकि पोस्ट में साफ तौर पर प्रीति को गिरजेश की पत्नी बताया गया था.

रामपाल सिंह के बेहद नजदीकी और रिश्तेदार ही यह जानते थे कि 2 दिन पहले ही गिरजेश की सगाई बुंदेलखंड इलाके के टीकमगढ़ जिले से 60 किलोमीटर दूर खरियापुर में एक किले में हुई, फिर प्रीति उस की पत्नी कैसे कहीं जा रही है.

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17 मार्च की सुबह करीब 6 बजे प्रीति की मां रामाबाई जब उस के कमरे में पहुंची तो वहां का नजारा देख कर सन्न रह गईं. उन की लाडली बेटी फांसी के फंदे पर झूल रही थी. उन्होंने शोर मचाया तो वे घर के सारे सदस्य प्रीति के कमरे की तरफ दौड़े.

रामपाल सिंह के परिवार की तरह चंदन सिंह का परिवार भी संयुक्त है. सभी ने मिल कर आहिस्ता से प्रीति को नीचे उतारा और उस की नब्ज टटोली तो वह बंद हो चुकी थी. कुछ देर सोचविचार के बाद प्रीति को उदयपुरा के अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उस के मृत होने की पुष्टि कर दी.

सुबह 8 बजे से ले कर 10 बजे तक क्या हुआ, यह किसी को कुछ खास नहीं मालूम, लेकिन जो होने जा रहा था वह किसी हाहाकार से कम नहीं था. प्रीति की मौत की पुष्टि हो जाने के बाद एकाएक ही न केवल उदयपुरा, रायसेन और भोपाल बल्कि राज्यभर का पारा चढ़ते सूरज के साथ गरमा उठा था.

अस्पताल में खासी भीड़ जमा हो गई थी. इसी भीड़ के सामने प्रीति ने पिता ने यह रहस्योद्घाटन किया कि प्रीति की शादी पिछले साल 20 जून को मंत्री रामपाल सिंह के बेटे गिरजेश के साथ भोपाल के जवाहर चौक स्थित आर्य समाज मंदिर में हुई थी.

चंदन सिंह के इस रहस्योद्घाटन या स्वीकारोक्ति कुछ भी कह लें से मामले ने सियासी तूल भी पकड़ लिया. बवाल उस वक्त और मचा जब अपनी शिकायत उन्होंने उदयपुरा थाने में दर्ज कराई.

इस शिकायत से बहुत कुछ के साथ एक प्रेमकथा भी सामने आई. साथ ही सामने आई एक कस्बाई युवती की बेबसी की कहानी, जिस में उस के प्रेमी ने पहले उस के साथ चोरीछिपे शादी की और फिर मांबाप को दबाव में ले कर दूसरी जगह भी सगाई कर डाली. यानी प्यार में धोखा भी दिया.

प्रीति और गिरजेश बचपन से एकदूसरे को जानते थे. उन की यह पहचान जवानी आतेआते कब प्यार में बदल गई. उन्हें पता ही नहीं चला. एकदूसरे को दिल दे चुके थे और साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं.

चूंकि गांव में खुलेआम मिलनाजुलना जोखिम वाली बात थी, इसलिए दोनों अकसर धार्मिक आयोजनों में मिलते थे और वहां भक्तों की आंखों में धूल झोंक कर प्यार भरी बातें करते रहते थे. गांव देहातों में प्रेमीप्रेमिकाओं के मिलने को लिए मौल, पार्क या कौफी हाउस तो होते नहीं, इसलिए उन्हें खेत खलिहान या बाग बगीचे में जगह ढूंढनी होती है.

धार्मिक या शादी ब्याह जैसे सामूहिक आयोजन भी उन की आंखों की प्यास बुझाने का जरिया बन जाते हैं. प्रीति और गिरजेश का भी यही हाल था.

इस बात का अहसास गिरजेश को भी था और प्रीति को भी कि घर वाले आसानी से नहीं मानेंगे. लेकिन दोनों ही प्रीत में पूरी तरह डूब चुके थे. इसलिए उन की स्थिति असमंजस भरी थी. प्यारप्यार में गिरजेश तो प्रीति से शादी करने का वादा कर चुका था. प्रीति का भी यही हाल था, वह गिरजेश को अपना सब कुछ मान चुकी थी.

गिरजेश में इतनी हिम्मत नहीं थी कि दिल की बात मांबाप से कर सके. लेकिन उस में प्रीति से चोरीछिपे शादी करने का साहस न जाने कहां से आ गया था. जून के दूसरे हफ्ते में दोनों योजना बना कर भोपाल आए. गिरजेश का तो भोपाल आनाजाना लगा रहता था, लेकिन प्रीति इलाज के बहाने अपने भाई को साथ ले आई थी.

14 जून को दोनों नेहरू नगर स्थित आर्य समाज मंदिर गए. वहां उन्होंने मंदिर के प्रभारी प्रमोद वर्मा से शादी करने के लिए जानकारी ली कि क्याक्या औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी और कौनकौन से कागज लगेंगे.

प्रमोद वर्मा के लिए यह हैरानी की बात नहीं थी, क्योंकि रोज कोई न कोई युगल आ कर ऐसी जानकारी हासिल करता था. बाद में उन में से कई शादी के लिए आते थे और भी शादी के ख्वाहिशमंद जोड़ों को बता दिया जाता था कि उन के फोटो, शपथ पत्र और आयु संबंधी प्रमाण पत्र के अलावा 2 गवाहों की जरूरत पड़ेगी.

यह जानकारी ले कर प्रीति और गिरजेश लौट आए और फिर 20 जून को जरूरी कागजात ले कर वहां पहुंच गए. दोनों के साथ नजदीकी रिश्तेदार या दोस्त भी थे. 20 जून की दोपहर को आर्य समाज पद्धति से दोनों की शादी हो गई और उन्हें शादी का प्रमाण पत्र भी जारी हो गया. इस से प्रीति और गिरजेश ने सुकून की सांस ली कि बिना किसी अड़ंगे के शादी संपन्न हो गई.

जुदा होते वक्त दोनों ने भविष्य के बारे में कुछ जरूरी बातें कीं और वापस अपने घर लौट गए. आर्य समाज मंदिर में गिरजेश ने अपना भोपाल का पता लिखवाया था.

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चोरीछिपे शादी तो कर ली पर दोनों को बाद की दुश्वारियों का अंदाजा नहीं था. अलबत्ता यह बात दोनों जानते थे कि ठाकुर सनातनी उसूलों के चलते औलाद की बलि तो चढ़ा सकते हैं पर उसूलों से कोई समझौता नहीं कर सकते.

बहरहाल शादी के 8 महीने तक दोनों अलगअलग रह कर एकदूसरे की जुदाई में तड़पते रहे. लेकिन गिरजेश की हिम्मत अपने मंत्री पिता को सच बताने की नहीं हुई. उलट इस के प्रीति के घर वालों को दूसरे दिन ही मंदिर में शादी की बात पता चल गई थी. लेकिन वे चुप थे, क्योंकि गिरजेश ने प्रीति से वादा किया हुआ था कि वह जल्द ही घर वालों को मना लेगा और उसे ससम्मान बहू की तरह घर ले जाएगा.

दुखी और गुस्साए चंदन सिंह उदयपुरा के अस्पताल में 17 मार्च को बेटी की लाश के पास खड़े हो कर यही आरोप लगा रहे थे, पर उन के निशाने पर गिरजेश नहीं बल्कि रामपाल सिंह थे. जाहिर है कि वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि रामपाल सिंह को अपने बेटे की चोरीछिपे की गई शादी की खबर नहीं होगी.

चंदन सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शादी के बाद गिरजेश प्रीति को यह कह कर मायके छोड़ गया था कि वह जल्द ही अपने मांबाप को राजी कर लेगा. प्रीति को उस ने तब तक खामोश रहने के लिए कहा था. रामपाल सिंह ने गिरजेश की सगाई कहीं और तय कर दी तो प्रीति मानसिक तौर पर परेशान हो उठी थी. खुदकुशी के एक दिन पहले उस ने फोन कर पति से बात भी की थी.

चंदन सिंह के मुताबिक शादी से नाखुश मंत्री रामपाल सिंह और उन का पूरा परिवार प्रीति को प्रताडि़त कर रहा था और उन से भी यह कहा जा रहा था कि वे कुछ ले दे कर प्रीति की शादी कहीं और कर दें. रामपाल सिंह ने ही प्रीति की जिंदगी बरबाद की है.

इस बयान के साथ ही प्रीति का लिखा सुसाइड नोट भी सामने आया जो लाल स्याही से लिखा गया था. सुसाइड नोट की भाषा से ही पता चल रहा था कि प्रीति जिंदगी के कितने बड़े इम्तहान और कशमकश से गुजर रही थी और आत्महत्या के सिवाय उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

हादसे की रात गिरजेश प्रीति के घर के सामने वाले मकान में ही था, सुबह होने के पहले ही वह गायब हुआ था. इस के बाद प्रीति ने गिरजेश को उस का दिया हुआ मोबाइल फोन और 25 तोले सोने के गहने वापस लौटा दिए थे.

अपने सुसाइड नोट में प्रीति ने बारबार अपनी बड़ी गलती के लिए मांबाप से माफी मांगी थी और चंदन सिंह से आग्रह किया था कि वे मम्मी से न लड़ें और न ही चाचा को कुछ कहें.

प्रीति गिरजेश को किस हद तक चाहती थी, इस का अंदाजा उस के सुसाइड नोट से लगता है क्योंकि उस ने कहीं और उस का जिक्र नहीं किया था. तय है इसलिए कि वह गिरजेश की मजबूरी या बेवफाई कुछ भी कह लें समझ गई थी. वह चाहती तो गिरजेश की बेवफाई को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहरा सकती थी.

चंदन सिंह की शिकायत के बाद भी पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया तो राज्य का रघुवंशी समाज आक्रोशित हो उठा. मध्य प्रदेश में गुना, राजगढ़, रायसेन, विदिशा, होशंगाबाद, बैतूल, नरसिंहपुर, जबलपुर और छिंदवाड़ा जिलों में रघुवंशी बहुतायत में हैं. प्रीति की मौत की खबर सुन कर लोग उदयपुरा पहुंचने लगे थे.

अब मोहब्बत पर सियासत होने लगी थी. भोपाल में कांग्रेसियों ने धरने प्रदर्शन शुरू कर दिए थे. कांग्रेसियों ने शिवराज सिंह मंत्रीमंडल के एक बेदाग छवि वाले मंत्री को घेरने का सुनहरा मौका हाथ से जाने नहीं दिया.

18 मार्च को बड़ी दिक्कत उस वक्त खड़ी हो गई, जब चंदन सिंह रघुवंशी और उन के परिजन इस जिद पर अड़ गए कि रामपाल सिंह प्रीति का शव लें और गिरजेश पति की जिम्मेदारी निभाते उस का अंतिम संस्कार करे. एफआईआर दर्ज न किए जाने पर रघुवंशी समाज ने भी आंदोलन की चेतावनी दे डाली थी और जगहजगह रामपाल सिंह के पुतले भी फूंके जा रहे थे.

दूसरी तमाम जातियों की तरह रघुवंशी जाति का भी अपना गौरवशाली इतिहास और अतीत है, जो इच्छावाकु से शुरू हो कर राम के बेटों लवकुश पर खत्म होता है. रघुवंशी समुदाय बड़े गर्व से खुद को राजा रघु और राम का वंशज बताता है.

यहां असल विवाद यही था जिसे हर कोई समझा कि असल लड़ाई जाति और ठसक की थी. रामपाल सिंह क्षत्रिय राजपूत हैं. हालांकि रसूख और हैसियत में रघुवंशी किसी से कम नहीं बैठते, जिन के बारे में इतिहास में यह दिलचस्प बात दर्ज है कि रघुवंशी जमींदार होते थे और वे खुद खेती नहीं करते थे, बल्कि करवाते थे.

अतीत के कई विवाद और जातिगत पूर्वाग्रह व किस्से कहानियां साकार हो रहे थे. रघुवंशी समुदाय ने जब साफ कह दिया कि मृतका प्रीति को रामपाल बहू मानें तभी उस का अंतिम संस्कार होगा तो अब बारी रामपाल सिंह की भी थी. वे या तो सर झुका कर इस मांग को मान लें या फिर अड़ कर भाजपा और शिवराज सिंह के लिए सिरदर्द खड़ा करें.

जब उन से इस बारे में सवाल किया गया तो वे साफ तौर पर बोले कि बेटे ने शादी कर ली है, यह उन्हें नहीं पता. गिरजेश सामने क्यों नहीं आ रहा, इस सवाल पर रामपाल सिंह का जवाब बड़ा मासूमियत भरा था कि उन की उस से बातचीत हुई है और वह साफ कह रहा है कि उसे फंसाया जा रहा है.

रामपाल सिंह ने अपने बचाव में यह भी कहा कि विपक्ष उन्हें और उन के परिवार को जानबूझ कर इस मामले में घसीट रहा है. यह बयान कितना खोखला है चालाकी भरा था, यह जल्द ही उजागर भी हो गया.

राज्य में माहौल गर्मा उठा था और 18 मार्च को ही उदयपुरा कस्बा पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. किसी अनहोनी की आशंका से कोई इनकार नहीं कर रहा था.

कांग्रेस के ताबड़तोड़ हमलों से घबराए भाजपाई सब कुछ जानतेसमझते हुए भी रामपाल सिंह के बचाव को अपना धर्म या अधर्म जो भी समझ लें, निभा रहे थे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहते पल्ला झाड़ लिया था कि प्रीति रघुवंशी की मौत की जांच चल रही है और जल्द ही सभी तथ्य सामने आ जाएंगे.

गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने भी रामपाल सिंह का बचाव करते हुए कहा कि सुसाइड नोट में पीडि़ता ने किसी का भी नाम नहीं लिखा है. जांच चल रही है और जांच के बाद दोषियों पर काररवाई की जाएगी.

इधर उदयपुरा के अस्पताल जहां प्रीति का शव रखा हुआ था में भी खासा बवाल मचा हुआ था. इस दिन प्रीति के परिवार वालों ने 3 प्रार्थना पत्र प्रशासन को दिए. इन प्रार्थनापत्रों में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी की मांग के अलावा रामपाल सिंह से सुरक्षा की मांग की गई थी कि अगर भविष्य में उन को कुछ हुआ तो उस का जिम्मेदार रामपाल सिंह को माना जाए.

रायसेन की कलेक्टर और एसपी पूरी कोशिश कर रही थीं कि जैसे भी हो प्रीति का अंतिम संस्कार हो जाए. पर यह आसान काम नहीं था, क्योंकि रघुवंशी समाज रामपाल सिंह को मंत्री पद से हटाने की मांग करने लगा था. इधर भोपाल में भी कांग्रेसियों की तरफ से बयानबाजी जारी थी. नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का आरोप था कि पूरी सरकार रामपाल सिंह और उन के बेटे को बचाने में लगी हुई है, जबकि प्रथम दृष्टया प्रीति की मौत के जिम्मेदार ये दोनों ही हैं.

रायसेन की कलेक्टर भावना वालिंबे निष्पक्ष जांच की बात करती रहीं तो एसपी किरणलता केरकेड़ा ने साफ तौर पर कहा कि मामले में अभी आरोपों के प्रमाण नहीं आए हैं, जांच जारी है.

रायसेन से भोपाल के आर्य समाज मंदिर गई पुलिस टीम को मंदिर संचालक प्रमोद वर्मा ने प्रीति और गिरजेश की शादी का प्रमाणपत्र सौंपा, जिस की प्रति भी वायरल हुई तो लोगों के दिल से यह शक जाता रहा कि इन दोनों की शादी वास्तव में हुई थी भी या नहीं.

दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता करने वालों के साथसाथ भड़काने वालों की फौज भी इकट्ठा हो गई थी. एक पक्ष के लोगों की राय यह थी कि बगैर एफआईआर दर्ज हुए अंतिम संस्कार हुआ तो सारा मामला बेदम हो जाएगा.

मामला चूंकि ठाकुर रामपाल सिंह का था, इसलिए प्रशासन एफआईआर दर्ज करने की हिम्मत या हिमाकत नहीं कर पा रहा था. अब तक जो हुआ था, उस में गिरजेश की बुजदिली और रामपाल सिंह की चालाकी साफ दिखाई दे रही थी. इस पर यह दोहा सटीक बैठ रहा था कि समरथ को नहीं दोष गुसाईं.

प्रीति अगर जिंदा होती तो जरूर ये नजारे देख और चर्चे सुन कर शर्म से मर जाती. राजनैतिक उठापटक के बीच कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के दफ्तरों में बतियाते कार्यकर्ता अपनाअपना हिसाबकिताब पेश कर रहे थे कि जिस सिलवानी विधानसभा से रामपाल सिंह जीतते रहे हैं, उस में रघुवंशी मतदाताओं की तादाद 40 हजार से ज्यादा है.

ऐसे में अब भाजपा उन्हें सिलवानी तो क्या विदिशा रायसेन की किसी भी विधानसभा सीट से नहीं उतार सकती, क्योंकि हर जगह रघुवंशी वोट खासी तादाद में हैं, जो अब उन्हें नहीं मिलेंगे.

प्रीति के बौखलाए परिजनों ने उत्तेजना और आक्रोश में रामपाल सिंह के खिलाफ कुछ सच्चे और कुछ झूठे आरोप लगा दिए थे, पर इस के बाद क्या होगा यह सोच कर वे घबरा भी उठे थे.

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अपना दबाव बढ़ाने की गरज से ये लोग दाह संस्कार से मना कर रहे थे, लेकिन स्थिति उस वक्त और अप्रिय हो उठी जब प्रीति के भाइयों ने उस का शव नैशनल हाइवे पर रख कर चक्का जाम करने की धौंस दे डाली.

बात में और दम लाने के लिए प्रीति के चाचा जयसिंह ने खुलासा किया कि प्रीति और गिरजेश की शादी में प्रीति का छोटा भाई नीरज भी मौजूद था. उस ने शादी के फोटो खींचने की कोशिश की थी, लेकिन गिरजेश के साथियों ने उसे फोटो नहीं खींचने दिए थे. शादी का प्रमाणपत्र भी प्रीति को नहीं दिया गया था, इसलिए फरवरी में वे लोग प्रमाणपत्र लेने गए थे.

प्रीति की मां रामाबाई ने नया रहस्योद्घाटन यह किया कि उन्हें शादी की जानकारी 21 जून को ही हो गई थी. कुछ दिन बाद दोनों परिवारों की मीटिंग भी हुई थी, जिस में गिरजेश की मां शशिप्रभा ने दोटूक कहा था कि वे प्रीति को अपनी बहू नहीं मानेंगी और जरूरत पड़ी तो गिरजेश को गोली मार देंगी.

इन सब बातों के बीच अंतिम संस्कार खटाई में पड़ता नजर आया तो समाज के कुछ बुजुर्ग आगे आए और सभी को समझाया. फलस्वरूप प्रीति के घर वाले क्रियाकर्म करने के लिए तैयार हुए. सूरज ढलने के कुछ देर पहले प्रीति को मुखाग्नि उस के भाई ने दी. प्रीति को बाकायदा दुलहन की तरह सजा कर, सुहागन की तरह दुनिया से विदा किया गया.

अब तक ये बातें बहुत आम हो चुकी थीं कि प्रीति और गिरजेश का प्रेमप्रसंग बीते 6 सालों से चल रहा था और उदयपुरा का बच्चाबच्चा जानता था कि दोनों शादी कर चुके हैं. लेकिन जाने क्यों बेटे की शादी की खबर दुनिया भर की खबर रखने वाले रामपाल सिंह को नहीं थी.

अब तक रामपाल सिंह की खासी छीछालेदर हो चुकी थी. व्यक्तिगत के बजाए हर कोई राजनैतिक नफानुकसान देखने और आंकने लगा था. कांग्रेस ने जगहजगह घेराव कर विधानसभा में हल्ला किया और विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान कर डाला, क्योंकि वे सदन में इस मामले पर बहस की इजाजत नहीं दे रहे थे.

एक बार दूसरे दिन फिर से पाला बदलते रामपाल सिंह ने चौंका देने वाला यह बयान दे डाला कि वे प्रीति को बहू का दर्जा देने को तैयार हैं, क्योंकि बेटे गिरजेश ने उस से शादी की थी.

इतना ही नहीं पत्नी के अंतिम संस्कार तक घर में दुबके बैठे गिरजेश को उन्होंने प्रीति की खारी उठाने भी भेज दिया. खारी का कार्यक्रम मुखाग्नि के तीसरे दिन होता है. कुछ लोग इसे तीजा भी कहते हैं. यह और बात है कि गिरजेश के साथ करीब 60 लोगों की फौज थी.

प्रीति के अंतिम संस्कार के बाद उस का यह डर सच साबित हुआ कि उस की मौत के बाद उस के घर वालों को परेशान किया जा सकता है. चंदन सिंह एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश करते रहे और पुलिस जांच की बात कहते उन्हें टालती रही. अब नेता तो नेता आम लोग भी शिवराज सिंह को कोसने लगे कि वे बडे़ फख्र से खुद को मामा तो कहलवाते हैं, लेकिन प्रीति नाम की भांजी को इंसाफ नहीं दिला पा रहे हैं.

23 मार्च को जब चंदन सिंह को बयान देने के लिए पुलिस ने भोपाल बुलाया तो उन से ऐसेऐसे बेतुके सवाल पूछे गए कि उन की तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. प्रीति मांग भरती थी या नहीं, मंगलसूत्र और दूसरे सुहाग चिन्ह पहनती थी या नहीं, जैसे सवालों से जाहिर हो गया कि सत्ता पक्ष अब अपनी पर उतारू हो आया है.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस ने गिरजेश या किसी और के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की थी. चंदनसिंह का परिवार हैरानपरेशान और घबराया हुआ था और उदयपुरा में खुद को असुरक्षित बता रहा था. लेकिन उन की सुनवाई कहीं नहीं हो रही थी. कांग्रेसी पहले की तरहतरह से रामपाल सिंह और शिवराज सिंह चौहान पर हमलावर थे. राज्य में लड़कियां सुरक्षित कैसे हैं, इन नारों को तरहतरह से उछाला जा रहा था.

प्रीति की प्र्रेमकथा का अंत दुखद हुआ, लेकिन विवाद का नहीं जो इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दा होगा और इस का असर भाजपा सरकार की छवि पर पड़ना अभी से तय नजर आ रहा है.

चोरीछिपे शादी करने का अंजाम अकसर खतरनाक साबित होता है और हर बार प्रेमी अपने वादे पर खरा उतरे यह जरूरी नहीं. प्रीति की मौत से ये बातें साबित हो रहीं हैं कि जो प्रेमी की बेवफाई पति की बुजदिली और ठाकुरों की ठसक का शिकार हुई.

देखा जाए तो इस मामले का बड़ा गुनहगार गिरजेश है, जिसे मंत्री पुत्र होने का फायदा मिला. प्रीति ने गिरजेश पर विश्वास किया था और एवज में विश्वासघात मिला तो उस ने मौत को गले लगा लिया.

मंजुला की मौत का रहस्य : पड़ोसन से बदला लेने के लिए रची साजिश

17 वर्षीय मंजुला अपने परिवार के साथ मोहाली के गांव मटौर में रहती थी. सेक्टर-69 के एक वकील के यहां वह बेबीसिटर की नौकरी करते हुए उन के छोटे बच्चे को संभालती थी. दिन के 9 बजे उस की ड्यूटी शुरू होती थी और प्राय: शाम 4 बजे छुट्टी कर के वह पैदल ही घर के लिए निकल पड़ती थी.

9 नवंबर, 2017 की सुबह भी वह नौकरी पर जाने के लिए रोजाना की तरह घर से निकली थी. मगर उस शाम घर नहीं लौटी.

पैदल चल कर भी वह अकसर 5 बजे तक घर पहुंच जाया करती थी. उस रोज 6 बज गए और वह नहीं लौटी तो उस के भाई ने वकील के यहां फोन कर के दरियाफ्त की. वकील साहब ने बताया कि मंजुला तो हमेशा की तरह शाम के 4 बजे छुट्टी कर के चली गई थी.

इस जानकारी से घर में सब को लड़की की फिक्र हो गई. पहले तो उस की तलाश में काफी भागदौड़ की गई. फिर उस के भाई ने इस संबंध में पुलिस से गुहार लगाई तो फेज-8 के थाने में मंजुला की गुशुदगी लिखा दी गई. नाबालिग लड़की का मामला होने की वजह से पुलिस ने भी मंजुला की तलाश के लिए हाथपैर चलाए. लेकिन उस के संबंध में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

इस के बाद लगातार मंजुला की तलाश की जाती रही. उस का मिल पाना तो दूर की बात, उस के बारे में कहीं से कोई छोटीमोटी खबर तक नहीं मिल पाई थी.

देखतेदेखते मंजुला को गायब हुए 5 दिन गुजर गए.

14 नवंबर को बालदिवस की वजह से कुछ बच्चे एक समारोह अटैंड कर के अपने घर लौट रहे थे. पैदल चलते हुए वे सेक्टर-69 स्थित निजी अस्पताल मायो के पास से हो कर आगे निकले तो 2 बच्चों को पेशाब की हाजत हुई. इस से फारिग होने को वे पास की झाडि़यों में चले गए. वहां पीछे एक छोटामोटा जंगल था.

झाडि़यों से निकलते वक्त इन की निगाह जंगल की तरफ चली गई. वहां इन्हें लेडीज कपड़ों के टुकड़े पड़े दिखाई दिए. जिज्ञासावश ये थोड़ा आगे बढ़ गए.

आगे का दृश्य देख इन के मुंह से चीख निकल गई, जिसे सुन कर उन के साथी भी दौड़ते हुए वहां आ पहुंचे. फिर तो जो कुछ इन लड़कों ने वहां देखा, उस से उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

इन से जरा ही फासले पर एक लड़की की गलीसड़ी नग्न हालत में लाश पड़ी थी.

ऐसा भयानक दृश्य देख, सभी लड़के भागते हुए सड़क पर आ गए. वहां उन्हें एक नौजवान खड़ा दिखाई दिया. उसे उन्होंने इस बाबत बता दिया. उस नौजवान ने अपने मोबाइल से तुरंत इस की सूचना पुलिस को दे दी.

जरा सी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी वहां आ पहुंची. पीसीआर कर्मियों ने मौकामुलाहजा कर के मामला फ्लैश कर दिया.

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जिस वक्त यह सूचना फेज-8 के थाने में पहुंची, थानाप्रभारी राजीव कुमार अपने दफ्तर ही में थे. सबइंसपेक्टर जागीर सिंह व कुछ सिपाहियों को साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे. नाबालिग मंजुला की गुमशुदगी की सूचना उन्हीं के थाने में दर्ज थी, जिस के साथ गुमशुदा लड़की का फोटो भी लगा था.

राजीव कुमार को लाश की सूरत मंजुला से मेल खाती लगी. उन्होंने तुरंत थाने से संबंधित फाइल मंगवा कर शव और फोटो में लड़की के हुलिए से मिलान करने का प्रयास किया. रिजल्ट पौजीटिव आते देख उन्होंने मंजुला के भाई को बुलवा भेजा. आते ही वह शव को देख फूटफूट कर रो पड़ा. उस ने इस की शिनाख्त अपनी बहन मंजुला के रूप में कर दी.

पहली ही नजर में साफ था कि लड़की के साथ गैंगरेप करने के बाद चाकुओं से गोदगोद कर उसे मौत के घाट उतारा गया था.

पुलिस ने अपनी आगे की काररवाई शुरू की. थानाप्रभारी ने मंजुला के भाई की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 363, 366, 302, 376-डी एवं 120-बी के अलावा पौक्सो एक्ट की धारा 4, 5 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस दौरान मौके की दीगर काररवाइयों को अंजाम देते हुए पुलिस ने मंजुला के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

अस्पताल में डाक्टरों के विशेष पैनल ने मंजुला के शव का पोस्टमार्टम कर के अपनी रिपोर्ट में उस के जिस्म पर तेजधार हथियार के 13 घावों का उल्लेख करने के अलावा इस बात की भी पुष्टि की कि उस के साथ एक से ज्यादा पुरुषों ने बलात्कार किया था. डाक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में मौत का कारण अत्यधिक रक्तस्राव बताया था. मंजुला का बिसरा भी रासायनिक परीक्षण के लिए फोरेंसिक लैबोरेट्री भेज दिया.

पोस्टमार्टम के बाद मंजुला का शव उस के परिजनों के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने रोतेबिलखते उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

यह एक ब्लाइंड मर्डर केस था जो थाना पुलिस हल कर पाने में सफल नहीं हो पा रही थी. मोहाली के एसएसपी कुलदीप चहल ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए इस की जांच का जिम्मा जिला पुलिस की सीआईए ब्रांच को सौंप दिया.

सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने केस की फाइल हाथ में आते ही न केवल इस का गहराई से अध्ययन किया बल्कि घटनास्थल पर जा कर बारीकी से जांच भी की. हालांकि  घटना को हुए काफी दिन गुजर चुके थे, ऐसे में उन्हें घटनास्थल से कत्ल संबंधी कोई क्लू मिलने की उम्मीद नहीं थी. क्लू उन्हें चाहिए भी नहीं था. उन्होंने अपनी पुलिस की नौकरी में न जाने कितने ब्लाइंड मर्डर केस सौल्व किए थे.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन कर के एकएक नुक्ते को जोड़ कर अपराधी तक पहुंचने का प्रयास किया था. उन्होंने घटनास्थल की फिर से फोटोग्राफी भी कराई फिर फाइल का ठीक से अध्ययन किया.

नक्शा व फोटो सामने रख कर इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उन का घटनास्थल से मिलान करते हुए एकाग्रचित्त हो कर अपनी अलग तरह की जांच शुरू की. उन्होंने लाश बरामद होने के समय खींचे गए फोटो को भी बड़े ध्यान से देखा.

एक फोटो में जमीन की मिट्टी पर एक ऐसे हाथ की छाप उभर रही थी जो किसी युवती का लग रहा था. यह हाथ मृतका का भी हो सकता था. मगर इस मुद्दे को यहीं पर खत्म न कर के तरलोचन सिंह ने चित्र के आधार पर उस जगह की तलाश की, जहां का यह फोटो था.

अनुमान और प्रयासों के आधार पर वह जगह मिल गई. लेकिन हाथ की छाप अब वहां नहीं थी. अब तक उस में शायद धूल वगैरह भर गई थी. तरलोचन सिंह ने इस जगह को आसपास से खुदवाया तो वहां से हरे रंग के कांच की चूड़ी का एक टुकड़ा उन के हाथ लग गया. उन्होंने उसे अपने पास संभाल कर रख लिया. टुकड़े को ले कर वह एसएसपी चहल के पास पहुंचे. फिर सीधेसपाट लहजे में बोले, ‘‘सर, इस ब्लाइंड मर्डर केस में कोई न कोई लड़की इन्वौल्व है.’’

‘‘लेकिन तरलोचन सिंह आप यह क्यों भूल रहे हो कि मर्डर के साथ यह गैंगरेप का मामला भी है.’’

‘‘लेकिन वो सब बदला लेने के नीयत से भी तो करवाया जा सकता है, सर.’’

‘‘मतलब यह कि किसी लड़की ने इस लड़की से बदला लेने के लिए पहले इस का गैंगरेप करवाया और फिर इस का मर्डर करवा दिया.’’

‘‘गैंगरेप जरूर करवाया गया सर, लेकिन मर्डर इस लड़की ने खुद अपने हाथों किया है. हां, ऐसा करते वक्त दूसरों की मदद जरूर ली गई होगी, यह सोचा जा सकता है.’’

‘‘तरलोचन सिंह, मेरी समझ में फिलहाल आप की बात नहीं आ रही है. आखिर ऐसा कौन सा क्लू आप के हाथ लग गया जो आप इतने उत्साहित हैं.’’

एसएसपी की बात पर हरे रंग की चूड़ी का टुकड़ा निकाल कर दिखाते हुए तरलोचन सिंह ने पहले घटनास्थल पर किए गए अपने प्रयास की बात बताई. फिर बताया कि रिकौर्ड में दर्शाया गया है कि मृतका ने लाल रंग की चूडि़यां पहन रखी थीं.

इस मामले में अभी तक पुलिस अपनी जो काररवाई करती आई थी वो यही थी कि पिछले कुछ अरसे में पकडे़ गए गैंग रेप आरोपियों को बुड़ैल जेल से ट्रांजिट रिमांड पर ला कर उन से इस केस के बारे में गहन पूछताछ करती रही थी.

मुखबिरों को लगा कर उन के कहने पर कुछ संदिग्ध लोगों पर भी शिकंजा कसा गया था. मगर पुलिस की पूछताछ में उन्हें बेकसूर पा कर हरी झंडी दे दी गई थी.

आगे छानबीन का सारा कार्यक्रम ही बदल दिया गया. अपने अन्य प्रयासों के अलावा सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने इस काम पर अपने खास मुखबिरों को लगाया.

10 जनवरी, 2018 को इंसपेक्टर तरलोचन सिंह के एक खास मुखबिर ने आ कर उन्हें इस केस के बारे में अहम सूचना दी. इस सूचना के अनुसार मृतका के मटौर स्थित निवास के पास एक औरत शीला अपनी जवान लड़की पूजा के साथ रहती थी. उन्हीं दोनों ने पहले अपने साथियों से मंजुला का रेप करवाया, फिर उसे मौत के घाट उतार दिया.

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‘‘लेकिन इस के पीछे कोई वजह भी तो रही होगी? इतने बड़े कांड को अंजाम देने का कोई कारण तो होगा?’’ तरलोचन सिंह ने मुखबिर से पूछा.

‘‘इस सब की जानकारी मुझे नहीं हो पाई है. लेकिन इस केस के असली कसूरवार यही लोग हैं. इन्होंने एक जगह बैठ कर आपस में मीटिंग की है. मैं ने छिप कर इन की सारी बातें सुनी हैं. आज ये लोग यहां से निकल भागने वाले हैं. मैं आप को वहां ले चलता हूं, जहां इन्होंने शरण ले रखी है. आप अभी उन्हें काबू कर लें, वरना पछतावे वाली बात हो जाएगी.’’ मुखबिर ने कहा.

ज्यादा सोचनेसमझने का वक्त नहीं था. इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उसी वक्त अपनी पुलिस पार्टी तैयार कर के मुखबिर को साथ लिया और उस की बताई जगह पर छापा मारा. वहां एक औरत व एक युवती के अलावा एक अन्य शख्स पुलिस के हत्थे चढ़ गया. मालूम पड़ा इन के साथ एक और भी आदमी था जो किसी तरह फरार होने में सफल हो गया था.

काबू में आए तीनों लोगों को सीआईए के पूछताछ केंद्र में अभी लाया ही गया था  कि तीनों ने मंजुला को कत्ल किए जाने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस आधार पर उन्हें अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड ले लिया गया.

रिमांड की अवधि में हुई गहन पूछताछ के दौरान इन तीनों ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक अलग ही कहानी सामने आई.

पकड़ी गई औरत का नाम शीला और युवती थी उस की बेटी पूजा. इन के साथ पकड़े गए शख्स का नाम मक्खन था, जो शख्स भागने में सफल हो गया था, उस का नाम था रहूण.

शीला उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की रहने वाली थी. इस के पति रामनिवास का काम अच्छा नहीं चल रहा था, मगर वह अपना मूल प्रदेश छोड़ कर किसी अन्य प्रदेश में जाना भी नहीं चाहता था. घर की गुजरबसर के लिए शीला और उस की बेटी पूजा छोटीमोटी नौकरी करती थीं. शीला जवान हो रही थी, घर वालों को उस की शादी की चिंता स्वाभाविक ही थी.

उत्तर प्रदेश के कामगार यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि पंजाब में उन के लिए हमेशा रोजगार के अवसर रहते हैं. इसी वजह से शीला कुछ साल पहले पति से अनुमति ले कर बेटी पूजा के साथ मोहाली आ गई. मोहाली की एक फैक्ट्री में दोनों को काम मिल गया. रहने के लिए मोहाली के गांव मटौर में किराए का मकान भी ले लिया.

यहीं पर पड़ोस में मंजुला अपने परिवार के साथ रहती थी. शीला ने पुलिस को बताया कि एक बार उस का पति उन लोगों से मिलने मटौर आया.

एक दिन मंजुला ने उस पर छेड़खानी का आरोप लगाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया. जैसेतैसे बात संभल तो गई लेकिन मंजुला ने धमकी देते हुए कहा कि वह रामनिवास को छोड़ेगी नहीं. उसे उस की करतूत की सजा दे कर रहेगी.

कुछ दिनों बाद रामनिवास वापस उत्तर प्रदेश चला गया, जहां सड़क दुर्घटना में उस की मृत्यु हो गई. उसे टक्कर मारने वाला चालक अपना वाहन भगा ले गया था. बाद में उसे पकड़ा नहीं जा सका.

पूजा और शीला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की मौत के पीछे मंजुला का हाथ था. उसी ने योजना बना कर रामनिवास को मरवाया था. इसीलिए मांबेटी ने तय कर लिया कि वे मंजुला को भी दर्दनाक मौत दे कर रहेंगी. योजना बनी तो इन लोगों ने पैसों का लालच दे कर मटौर में रहने वाले अपने परिचित मक्खन व रहूण को भी तैयार कर लिया. ये दोनों मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे.

दोनों ने मांबेटी से एक ही बात कही कि उन्हें इस काम के लिए पैसा नहीं चाहिए. बस वे मंजुला को मारने से पहले उस के साथ शारीरिक संबंध बनाएंगे.

योजना बन गई. इस के लिए लंबे फल वाला एक चाकू भी खरीद लिया गया. मंजुला का पीछा कर के उस के आनेजाने के रास्तों के बारे में पता लगा कर उसे 9 नवंबर, 2017 की शाम को उस वक्त झाडि़यों में खींच लिया गया जब वह वकील के यहां से छुट्टी कर के पैदल वहां से गुजर रही थी.

जंगल में ले जा कर मक्खन और रहूण ने उसे निर्वस्त्र कर के बारीबारी से उस के साथ बलात्कार किया. फिर मक्खन और रहूण के अलावा पूजा ने मंजुला के हाथपैर पकड़े. तभी शीला ने चाकुओं से लगातार वार कर के मंजुला की हत्या कर दी.

पूछताछ के दौरान ही शीला की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया था. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर तीनों अभियुक्तों को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. रहूण कथा लिखे जाने तक फरार था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मंजुला परिवर्तित नाम है

ऐसे पाएं बेहतरीन फ्यूजन लुक, कुछ इस तरह

व्यक्तित्व को निखारने में फैशन का अपना अलग महत्त्व होता है. पुराने फैशन में नए का फ्यूजन आजकल नया ट्रैंड है, जिसे इंडोवैस्टर्न आउटफिट के नाम से जानते हैं. इन इंडोवैस्टर्न फ्यूजन ड्रैसेज को आप आजमा सकती हैं. फैशन के प्रति अपनाएं यह नया दृष्टिकोण और फिर बन जाएं सब के आकर्षण का केंद्र.

गाउन साड़ी: साड़ी को गाउन फौरमैट में पल्लू के साथ पहन सकती हैं. शाम की महफिल में यह सुपरस्टाइलिश लुक देगी.

स्लिट सिलौटी: यह गाउन है, लेकिन धोती सलवार या चूड़ीदार के ऊपर से आधा कटा हुआ. ऊपर के हिस्से में गाउन के ऊपरी भाग पर खोल डाल कर भी पहन सकती हैं.

कोरसेट टौप के साथ लहंगा: स्कर्टनुमा लहंगे का लुक कोरसेट टौप या ब्लाउज के साथ बहुत ही फैशनेबल हो जाता है.

पंत साड़ी: इस साड़ी को एक विशेष तरीके से पहना जाता है. अगर बोहेमियन लुक पसंद करती हैं तो इसे पार्टी में पहना जा सकता है.

क्रौप टौप लहंगा: प्रिंटेड टौप के साथ प्लेन रंगीन लहंगा पहनें. लहंगे में चाहे चुन्नट ज्यादा डलवाएं या ए लाइन बनवाएं, हां मैटीरियल जरूर सिल्क बेस्ड हो.

ड्रैस से मैच करती ज्वैलरी

भले ही आकर्षक हो मगर ज्वैलरी उस से मैच करती नहीं हो तो लुक पर फर्क पड़ता है. आइए, जानते हैं कि किस ड्रैस पर कौन सी ज्वैलरी पहनें कि आप ग्लैमरस दिखें:

– आप इंडोवैस्टर्न ड्रैस के साथ वैस्टर्न लुक वाले इंडियन कुंदन ज्वैलरी सैट मैच कर सकती हैं, जो शाम से रात तक के वक्त की पार्टी आदि में खूब चल सकता है.

– डार्क कलर की ड्रैस के साथ डार्क शेड की हैवी ऐक्सैसरीज पहनी जा सकती है.

– अपने व्यक्तित्व पर फबती हलके कलर की इंडोवैस्टर्न ड्रैस के साथ ब्लैक मैटल या सिल्वर कलर में भी ऐक्सैसरीज आजमा सकती हैं.

– अगर आप ने ट्यूनिक या कुरती व चूड़ीदार पहना है और उसे इंडोवैस्टर्न पैटर्न में बदलना चाहती हैं, तो कुरती व चूड़ीदार के साथ गले में स्कार्फ तथा डैनिम के ट्यूनिक के साथ छोटा फ्लोरल स्कार्फ आप को बहुत ही स्टाइलिश लुक देगा.

– अगर प्लाजो या क्रौप पैंट पहन रही हैं तो आईकट ट्यूनिक हाई कौलर में आजमाएं फुल स्लीव के साथ. साथ में पैसले मोटिफ के इयररिंग्स खूब जमेंगे.

– पैंसिल स्कर्ट और कौटन टौप के साथ जमेंगे गोल, त्रिकोण या तीर शेप वाले गोल्ड प्लेटेड ब्रास के इयररिंग्स.

– यलो लौंग स्कर्ट और टौप के ऊपर मोतियों की नैकलाइन वाली जैकेट डालें और साथ पहनें ज्यामितीय आकार के इयररिंग्स.

ड्रैस से मैच करते बैग

ड्रैस और ज्वैलरी के साथसाथ बैग के महत्त्व को भी न भूलें. आप अगर विभिन्न मौकों पर जरूरत के हिसाब से और ड्रैस से मैच करते बैग का चयन करती हैं, तो यह आप के व्यक्तित्व को नया निखार देगा.

सैरोल्स बैग: यह डबल हैंडल वाला होता है. इस बैग में काफी स्पेस होती है. लंचबौक्स, मेकअप का सामान, मनी, मोबाइल सब कुछ इस में आराम से आ जाता है.

यह सीरियस टाइप फौर्मल ड्रैस के साथ जंचेगा. चाहें तो आप इसे फ्लोर लैंथ स्ट्रेट कट कुरती के साथ भी कैरी कर सकती हैं.

टोटे बैग: इसे बीच बैग भी कह सकते हैं. यह भी काफी बड़ा होता है. यानी इस में काफी कुछ आ जाता है. समंदर के किनारे ले जाने के लिए एकदम सही बैग है.

इस बैग को आप प्लाजो स्टाइल कुरती और जैकेट के साथ कैरी कर सकती हैं.

बास्केट बैग: जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि ये भी काफी बड़ा और स्टाइल के साथ कैरी करने लायक होता है.

होबो बैग: कैजुअल आउटिंग के लिए एकदम बेहतर है यह बैग.

बीच साइड पार्टी में काफ्तान स्टाइल कुरती और शौर्ट्स के साथ इसे कैरी कर सकती हैं.

स्लिंग बैग: युवतियों के लिए बेहद उपयोगी और आकर्षक. यह शरीर को घेरते हुए घुटनों की लंबाई तक रह सकती है.

यह बैग फ्लेयर्ड ट्रैडिशनल स्कर्ट और फ्लोरल टौप के साथ जंचेगा.

ईवनिंग बैग: यह पार्टी और इवेंट के लिए सही रहता है.

फौर्मल हैंडबैग और क्लच बैग: अगर अनारकली कुरती और रियल लुक में हैं, तो ये बैग आप को ऐलिगैंट लुक देंगे.

कुकिंग को ले कर बता रही हैं एमी त्रिवेदी

खाना खिलाना पसंद है या खाना?

दोनों पसंद हैं, लेकिन सब से ज्यादा दूसरों को खिलाना, क्योंकि खिलाने में जो मजा आता है वह अकेले खाने में कहां है. पहले तो मैं कम ही कुकिंग करती थी, लेकिन जब से मां बनी हूं बच्चों के खाने की डिमांड पूरी करतेकरते अब मैं पूरी तरह से शैफ बन गई हूं.

किस तरह का खाना पसंद है?

साउथ इंडियन, नौर्थ इंडियन, चाइनीज, कौंटिनैटल हर तरह का खाना बनाना और खाना पसंद है. लेकिन फैवरिट खाना मेरा गुजराती ही है. ढोकला और पापड़ी का नाम सुन कर

मुंह में पानी आ जाता है. इस खाने की सब से बड़ी खासीयत यह है कि यह हैल्थ के लिए फायदेमंद है.

खाना बनाना किस से सीखा?

पहली कुकिंग क्लास तो मां से ही मिली लेकिन शादी से पहले मैं सिर्फ उन के हाथों का बना खाती थी, बनाती कम थी. मगर जब शादी हुई तब कुकिंग क्लास मैं ने की और अब पति व बच्चों की जो डिमांड होती है, मैं खुद बनाती हूं.

कुकिंग आज भी करती हैं या ऐक्टिंग में बिजी होने के चलते बंद कर दी?

अभी मैं शूट पर जा रही हूं, लेकिन घर से खाना बना कर आई हूं. मेरे बच्चे मेरे हाथ का ही बना खाते हैं. कितना भी व्यस्त रहूं लेकिन परिवार के लिए समय निकालना पड़ता है.

सपने कितने पूरे हुए?

मैं ने ज्यादा सपने नहीं देखे थे. एक परिवार का सपना देखा था. वह पूरा हो गया है. मैं थोड़े में ही संतोष करने वाली हूं. कभी ऐसा कुछ नहीं सोचा जो पूरा न हो सके. कुछ सपने हैं जिन के बारे में उम्मीद है वे भी सच हो जाएंगे जैसे ये हो गए.

फिल्मों में नहीं जाना

कई एनीमेटिड फिल्मों में डबिंग आर्टिस्ट के रूप में अपनी आवाज दे चुकीं एमी कहती हैं, ‘‘फिल्मों में काम करने का मेरा मूड कभी नहीं रहा. जो सामने है उसी पर पूरा ध्यान देती हूं. ज्यादा की तमन्ना नहीं है.’’

कौमेडी करना आसान नहीं

कौमेडी पर एमी कहती हैं, ‘‘किसी को हंसाना आसान काम नहीं. चूंकि मैं हमेशा हलकीफुलकी कौमेडी वाले रोल करती रहती हूं, इसलिए मुझे पागलपंती करने में ज्यादा प्रौब्लम नहीं होती.’’

सादगी अट्रैक्ट करती है

एमी का कहना है, ‘‘मुझे किसी से दोस्ती करने के लिए उस की सादगी बहुत अट्रैक्ट करती है, मेरे इंडस्ट्री में कई दोस्त हैं. इंडस्ट्री से बाहर के भी हैं लेकिन उन सभी में दिखावा बिलकुल नहीं है.’’

गुजराती थिएटर

एमी के पिता तुषार त्रिवेदी गुजराती थिएटर के माने हुए आर्टिस्ट हैं. एमी और उन के भाई ने बचपन से ही प्ले में अभिनय करना शुरू कर दिया था. एमी ने हिंदी से ज्यादा गुजराती प्ले किए हैं. लेकिन टीवी पर 1992 में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट पहला शो ‘हमराही’ किया था. इस के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा नहीं. बच्चे के जन्म के बाद 2 साल का ब्रेक लेने के बाद अब सोनी सब टीवी के शो ‘सात फेरों की हेराफेरी’ में काम कर रही हैं.

बेजबानों की जान पर भारी फैशन

पिछले साल मैं जैनी के घर नागपुर गई. रास्ते में मुझे बताया गया कि परिवार बहुत धार्मिक है और सूर्यास्त से पहले ही खाना खा लेता है. यह परिवार जमीन के अंदर उगने वाली कोई सब्जी नहीं खाता. जब मैं उन के ड्राइंगरूम में घुसी तो देखा कि उन के ड्राइंगरूम में घोड़े की चमड़ी से बना गलीचा बिछा है. छोटे घोड़ों को मार कर उन की खाल निकाल ली जाती है और फिर उसे बारीकी से सिल कर गलीचा बनाया जाता है. उन्हें बेहद अमीर लोग ही अफौर्ड कर सकते हैं.

मेरे मेजबान जब कहने की कोशिश करने लगे कि यह नकली सिंथैटिक रंग है तो मैं ने उन्हें खाल पर चिपके बाल दिखाए. ये चीजें अमेरिका में बनती हैं. लोग फर के कोट, जूते, फर के बने सौफ्ट टौएज भी खरीदते हैं और सोचते हैं कि चूंकि ये बहुत सस्ते हैं तो अवश्य नकली सिंथैटिक मैटीरियल के होंगे.

यह सच नहीं है: ह्यूमन सोसायटी इंटरनैशनल ने पाया कि इन में से बहुत सी चीजें नकली फर, एक्रिलिक या पैट्रोलियम प्रोडक्टों से नहीं असली फर की बनी हैं, जो जानवरों से आती हैं. सोसायटी ने पाया कि बहुत से स्टोर जो नो फर नीति की घोषणा करते हैं वास्तव में फर की बनी चीजें ही बेचते हैं. बूट्स के बनाए क्लिप नकली फर के नहीं असली मिंक जानवर की फर के होते हैं. टैस्को स्टोर की रिंग और फैट फेस कंपनी के दस्ताने खरगोशों की खाल के ही होते हैं. अरबन आउटफिट्स असली फर के स्वैटर फेक फर के नाम से बेचती है.

असली को नकली बता कर बेचते हैं: लोगों को मालूम भी नहीं होता और बिल्ली की फर से बने लाइनिंग के जूते मिसगाइड कंपनी बेचती है. हाउस औफ फ्रासर, लिली लुलु, अमेजन, एएसओएस असली फर को नकली फर के नाम पर बेचते हैं, क्योंकि पशुप्रेमी असली फर बेचने पर बहुत हल्ला मचाते हैं.

जानवरों की खाल से बनी फर: नेइमन मारकस कोहल्स फौरएवर जैसे स्टोर जो नो फर नीति को मानने का विश्वास ग्राहकों को दिलाते हैं असल में जानवरों की खाल से बनी फर की चीजें बेचते पाए गए हैं. लोग सोचते हैं कि ये चीजें सस्ती हैं तो असली फर की नहीं होंगी पर सच यह है कि इन जानवरों को अब आधुनिक डेयरी फार्मों की तरह फार्मों में रख कर पाला जाने लगा है और बहुत ही क्रूर तरीके से इन्हें बड़ा कर के इन की खाल का इस्तेमाल करा जाता है. आधुनिक तकनीक और दवाइयों के कारण इन की उत्पादन लागत बहुत कम हो गई है.

कोई नहीं समझता इन का दर्द: जालियों के पिंजरों में रखे जाने वाले इन जानवरों को पोलैंड, चीन, कजाकिस्तान जैसे देशों में पाला जाता है जहां पशुप्रेमियों का बस नहीं चलता. लेखक टैंसी हौस्किंस ने इंगलैंड के अखबार द गार्जियन में लिखा है, ‘फर फार्मों में 7.5 करोड़ जानवरों को छोटेछोटे पिंजरों में रखा जाता है जहां इन्हें बीमारियां हो जाती हैं, घाव बन जाते हैं और ये दर्द से छटपटाते रहते हैं. ये घंटों अपनी गंद में पड़े रहते हैं. बहुत से जानवर तो दर्द के कारण पागल हो जाते हैं.’

इन जानवरों की वीडियोग्राफी तक कर ली गई है और बेहद दुखदाई क्लिप्स सार्वजनिक हो चुकी हैं.

हर चीज के पीछे जानवरों की चीखें: कई जगह इन्हें दवाइयां दे कर मोटा करा जाता है ताकि एक जानवर से ज्यादा से ज्यादा खाल मिल सके. इसी कारण अब फर से बनी चीजें बेहद सस्ती होने लगी हैं. भेडि़या, चिंचिल, भिंक, लोमड़ी, खरगोश, रैकून, कुत्तों और बिल्लियों का व्यापार अब बेहद कम दाम वाला बन गया है. इन की खाल से बनी चीजें अब सिंथैटिक चीजों से भी सस्ती होने लगी हैं जबकि हर चीज के पीछे जानवरों का दर्द व चीखें होती हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या ऐसे बचेगी दिल्ली

दिल्ली में सीलिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट का लचीला न होना एक अच्छा संकेत है. दिल्ली की ही नहीं हर शहर की हालत बुरी हो रही है. बाबुओं और नेताओं को अपनी जेबें भरने की चिंता है, नागरिकों, औरतों, बच्चों, बूढ़ों की नहीं. शहरों में रोजगार मिलने और सिर पर साए की तलाश में आए लोगों ने पहले से रह रहे लोगों का जीवन तो नर्क बना ही डाला, अपने लिए भी कूड़े के ढेरों पर रहने, खाने, काम करने का अभ्यास कर लिया. ऐसा लगता है कि दिल्ली जैसे शहरों में सिर्फ जानवर रहते हैं और इन जानवरों में भी गंदगी पसंद सूअर ही ज्यादा हैं.

दुकानदारों और मकानदारों की मांग के आगे झुकते चले जाते खुद को कामदार कहने वाले नेताओं को तो भजनपूजन व प्रवचन से ही फुरसत नहीं है और उन के मातहतों को हलवापूरी खाने और हर नागरिक, दुकानदार और अतिक्रमण करने वाले से पैसा वसूलने से. दिल्ली जैसे शहरों को सुधारा नहीं जा सकता यह बेमतलब की बात है. दुनिया के कितने ही गरीब देशों की राजधानियां दिल्ली से कहीं ज्यादा अच्छी हैं और हमारे यहां तो प्रधानमंत्री कार्यालय के 1 किलोमीटर के दायरे में सड़कों पर कच्ची दुकानें, बड़े दफ्तरों के आगे टिन के गार्डरूम, पटरियों पर पंप हाउस, आड़ेतिरछे पेड़पौधे दिख जाएंगे.

लगता ही नहीं कि नागरिक सेवाओं की चिंता इस 1 किलोमीटर में भी म्यूनिसिपल कौरपोरेशन, दिल्ली सरकार या मोदी सरकार को है. यह 1 किलोमीटर स्वच्छ भारत अभियान की पोल खोलने के लिए काफी है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट के कई जजों के घर इस दायरे में हैं, उन की चिंता सही है.

दिल्ली को सुधारने के लिए थोड़ा लचीलापन, थोड़ी दूरदर्शिता व थोड़ी सूझबूझ चाहिए जो हमारे नौकरशाहों और नेताओं दोनों में ही नहीं है. दिल्ली को सुधारने के लिए एक तो इसे बहुमंजिला बनाना होगा, दोहरेतीहरे बेसमैंटों में पार्किंग हो और ऊपर वर्टिकल गार्डन से लगते 20-25 मंजिला मकान. 2-3 मंजिलों में दुकानें, दफ्तर हों ताकि लोगों को दूर न जाना पड़े. बड़े प्लाटों पर तो 2-3 मंजिलों में स्कूल तक खोले जा सकते हैं ताकि लिफ्ट का उपयोग बढ़े, सड़कों और वाहनों का नहीं.

दिल्ली को साफ करने के लिए बड़े सीवरों का प्लान करना होगा, इतने बड़े कि उन में आदमी चल सकें. यह 2-3 सदी पहले यूरोप के कई शहरों में बन चुके हैं. तकनीक कोई कठिन नहीं है. अब जब मैट्रो बनाना आ सकता है, तो सीवर क्यों नहीं बन सकते? सड़कों पर भीड़ कम करने के लिए अतिक्रमण तो हटे ही, मल्टी लेवल सड़कें भी प्लान की जाएं. चौड़ी सड़कें इतनी लाभदायक नहीं होतीं जितनी दोमंजिला या तीनमंजिला. यह तकनीक भी उपलब्ध है और शहरी जमीन के अधिग्रहण के मुआवजे से शायद सस्ती पड़ेगी.

लोगों पर कानून लादने की जगह सरकार अपने लिए नियम बनाए. हर कानून में यह प्रोवीजन हो कि सरकारी कर्मचारी पर क्या करने और क्या न करने पर क्या जुरमाना लगेगा. शहर तब ठीक होगा जब उस से मलाई खा रहे लोगों को भी अदालतों के चक्कर काटने पड़ें. केवल नागरिकों को दंड देना अदालतों का काम नहीं है.

फैशन को धर्म से जोड़ना गलत

हिजाब, बुरका, परदा, घूंघट वैसे तो सामाजिक नियमों से बंधे हैं और इन्हें न अपनाने वाले अपने धर्म से अलग नहीं करे जाते पर यह पक्का है कि कुछ को छोड़ कर ज्यादातर औरतें इन्हें अपनी सामाजिक व पारिवारिक गुलामी का रूप ही मानती हैं.

अरब देशों की बहुत सी पढ़ीलिखी युवतियां जो अपने देश में हिजाब या बुरका पहनने को मजबूर रहती हैं, यूरोप के देशों में पहुंचते ही उन्हें बक्सों में बंद कर अपने रूप सौंदर्य पर इतराने का लोभ नहीं छोड़ पातीं.

भारत के कट्टरपंथी घरों से निकलते ही औरतों का परदा या घूंघट सिर से खिसक कर कंधों पर आ गिरता है और उन के गहरे काले बालों का सौंदर्य जगमग करने लगता है.

यह कहना कि औरतें इन्हें खुदबखुद अपनी सामाजिक संस्कृति बचाने के लिए अपनाती हैं, सच नहीं है. सिर पर क्या पहना जाए यह औरतों का अपना स्वविवेक है. एक समय दक्षिण भारत में बालों में फूल लगाने का चलन था पर कोई अनिवार्यता न थी. उत्तर भारत में भी इस का खूब फैशन था पर आज नहीं है.

एक समय लड़कियों ने साधना कट बाल कटवाए थे तो फिर हेयर स्विचों का जमाना आया था. आज नहीं है. जब इन्हें इस्तेमाल करा जा रहा था तो कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी. अपनी स्वतंत्रता थी. अच्छा लगे तो करें वरना छोड़ दें.

यूरोप के बहुत से देशों में हवा में लंबे बाल न उड़ें इसलिए स्कार्फ पहनना फैशन था. आज ऐसे हेयर कैमिकल आ गए हैं कि शाम तक बाल बिखरते नहीं हैं और स्कार्फ का प्रयोग न के बराबर हो गया है. सर्दियों में ठंड से बचने के लिए आदमी औरत दोनों कैप पहनते हैं और गरमियों में नहीं. यह फैशन और सुविधा का मामला है.

इसलाम जबरन औरतों को हिजाब और पुरुषों को स्कल पहनने को मजबूर कर रहा है. इसलाम के प्रचारक इसे सामाजिक व धार्मिक पहचान का हिस्सा मान रहे हैं जबकि यह मानसिक गुलामी का एक स्वरूप है. आप जो पहनते हैं यदि वह किसी नियम से बंधा है, तो इस का अर्थ यह है कि आप उस नियम को बनाने या लागू करने वालों के और आदेशों को भी मानेंगे ही. तभी पुलिस, सेना व बड़ी फैक्टरियों के मजदूरों में एक ड्रैस होती है. यह विभिन्नता को कम करने का मानसिक तरीका है. पर पुलिस, सेना या फैक्टरियां यह नहीं कहतीं कि घर में भी निर्धारित कपड़े पहने जाएं, हिजाब, बुरका, परदा और घूंघट समर्थक 24 घंटे इन का प्रयोग अनिवार्य मानते हैं.

अगर फ्रांस जैसे देश इन का विरोध कर रहे हैं, तो सही कर रहे हैं, स्कूलों, कालेजों व दफ्तरों में धार्मिक या सामाजिक रूप से अलग दिखाने वाले निशान अपनाने पर रोक होनी चाहिए, फिर चाहे व तिलक हो या टोपी.

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