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भावेश जोशी : बेदम पटकथा व हर्षवर्धन कपूर का अति घटिया अभिनय

साधारण इंसान के असाधारण करतब के कारण उसे सुपर हीरो के रूप में पेश करने वाली तमाम फिल्में बौलीवुड में बन चुकी हैं. मगर विक्रमादित्य मोटावणे की एक्शन प्रधान फिल्म ‘भावेश जोशी’ तो एक सुपर हीरो की कहानी है. फिल्म का मकसद भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करने के साथ ही आम इंसान को न्याय दिलाना है, मगर फिल्मकार व लेखक अपने इस मकसद में पूरी तरह से विफल हुए हैं. फिल्म में युवा शक्ति की बात की गयी है, जो कि उनसे लड़ता है, जो कि हम सभी को तकलीफ पहुंचाते हैं. पर यह बात भी दर्शकों तक नहीं पहुंच पाती.

फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ की कहानी मुंबई के मालाड़ इलाके से शुरू होती है, जहां सिकंदर खन्ना (हर्षवर्धन कपूर) अपने दो दोस्तों भावेश जोशी (प्रियांशु पैन्युली) और रजत (आशीष वर्मा) के साथ रहता है. इसी बीच सिकंदर खन्ना के दोस्त की हत्या हो जाती है. तब वह दोस्त की हत्या का बदला लेने के लिए सुपर हीरो का रूप धारण करता है. यह तीनों दोस्त समाज से बुराईयों को खत्म करने की मुहिम में लग जाते है. कभी सिग्नल तोड़ने वालों के खिलाफ, कभी गंदगी फैलाने वालों के खिलाफ तो कभी भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए लड़ते हैं.

यानी कि यह तीनो दोस्त सदैव सच्चाई व ईमानदारी की राह पर चलते रहते हैं. अचानक इनका सामना पानी की चोरी करने वाले पानी माफिया से होता है. इस दौरान भावेश जोशी के उपर कई तरह के आरोप भी लग जाते हैं. उधर कारपोरेटर पाटिल और राज्य के मंत्री राणा (निशिकांत कामत) पुरजोर कोशिश करते हैं कि वह किसी तरह भावेश जोशी को खत्म कर दें. उसके बाद फिल्म की कहानी कई उतार चढ़ाव से होकर गुजरती है.

Bhavesh-joshi

बेहतरीन मकसद वाली कहानी अति घटिया पटकथा लेखन के चलते तहस नहस हो गयी है. लेखकत्रय ने इस फिल्म के माध्यम से बहुत कुछ कहने की कोशिश की है, पर अफसोस वह कुछ भी कह नहीं पाए. फिल्म को बेवजह लंबी बनाया गया है. फिल्म सिर्फ बोर करती है. फिल्म को एडीटिंग टेबल पर कांट छांट किए जाने की जरुरत को नजरंदाज कर फिल्मकार ने अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारी है. फिल्म के संवाद भी प्रभावहीन हैं. आम आदमी की बात करने वाली इस फिल्म के साथ एक भी आम आदमी खुद को जोड़ नहीं पाता. फिल्म में इस बात को रेखांकित करने का असफल प्रयास किया गया है कि यदि हम स्वार्थ से परे निडरता से काम करे तो हम असली सुपर हीरो बन सकते हैं. फिल्म का आइटम नंबर भी फिल्म को देखने योग्य नहीं बनाता.

फिल्म ‘भावेश जोशी’ देखकर कहीं से भी यह अहसास नहीं होता कि इस फिल्म के निर्देशक विक्रमादित्य मोटावणे हैं, जो कि अतीत में राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत फिल्म ‘‘उड़ान’’ के अलावा ‘‘लुटेरा’’ जैसी फिल्म निर्देशित कर चुके हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो पहली फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ के बाद अब दूसरी फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ में भी हर्षवर्धन कपूर ने निराश किया है. निशिकांत कामत का अभिनय भी आकर्षित नहीं करता. हर्षवर्धन कपूर के मुकाबले प्रियांशु पैन्युली व आशीष वर्मा उम्मीद जगाते हैं.

Bhavesh-joshi

दो घंटे पैंतिस मिनट की अवधि वाली फिल्म‘ ‘भावेश जोशी’’ का निर्माण ‘ईरोज इंटरनेशनल’, ‘रिलायंस इंटरटेनमेंट’, विकास बहल, मधु मेंटेना व अनुराग कश्यप ने किया है. फिल्म के लेखक विक्रमादित्य मोटावणे, अनुराग कश्यप व अभय कोराणे, निर्देषक विक्रमादित्य मोटावणे, संगीतकार अमित त्रिवेदी तथा कलाकार हैं – हर्षवर्धन कपूर, प्रियांशु पैन्युली, निशिकांत कामत, राधिका आप्टे, आशीष वर्मा, श्रियाह सभरवाल व अन्य.

बीमा कराने से पहले इन बारीकियों को जरूर समझें

जीवन बीमा एक ऐसी व्यवस्था है, जिस के द्वारा व्यक्ति अपने न रहने पर परिवार को कुछ हद तक आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर सकता है. ज्यादातर लोग बीमा ऐजेंट के कहने या टैक्स बचाने अथवा कभीकभी निवेश के साधन के रूप में भी बीमा करवाते हैं. बीमा व्यक्ति के भविष्य का आर्थिक नियोजन है, इसलिए बीमा पौलिसी खरीदते समय पूरी सावधानी बरतनी जरूरी है.

सब से पहले यह तय करना चाहिए कि बीमा क्यों करवाना चाहते हैं. वैसे बीमा मुख्य रूप से बीमित व्यक्ति के नहीं रहने पर उस के आश्रितों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है. यदि इस उद्देश्य के लिए बीमा लेना है तो सब से बढि़या आजीवन बीमा यानी टर्म इंश्योरैंस लेना बेहतर रहता है. इस के अंतर्गत बीमित व्यक्ति को एक अवधि तक प्रीमियम जमा करना होता है. यह राशि काफी कम होती है और इस राशि के बदले बड़ी राशि की बीमा सुरक्षा मिल जाती है.

उपयुक्त बीमा कंपनी का चुनाव

व्यक्ति को भविष्य की योजना बनाते समय परिवार की सुरक्षा के लिए इस तरह का बीमा जरूर लेना चाहिए. बीमा प्रीमियम के रूप में चुकाई गई राशि पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के अंतर्गत क्व1.50 लाख तक की छूट मिलती है. आमतौर पर लोग कर बचाने के लिए ऐजेंट के कहे अनुसार बीमा करा लेते हैं. यदि केवल कर बचाने के लिए कुछ करना है तो बीमा अच्छा विकल्प नहीं है, क्योंकि इस धारा के अंतर्गत बीमा के अलावा और कई विकल्प हैं, जिन से कर छूट मिल जाएगी और आप के द्वारा जमा की गई राशि पर अच्छा रिटर्न भी मिल जाएगा.

बीमा का कवर पर्याप्त और भविष्य में परिवार की जरूरतों को ध्यान में रख कर लिया जाना चाहिए. कई बीमा योजनाएं ऐसी होती हैं, जिन में बीचबीच में राशि वापस मिलती रहती है. यह पौलिसी सुनने में तो अच्छी लगती है, परंतु बीचबीच में राशि वापस मिलने पर अंत में मिलने वाली राशि काफी कम हो जाती है, जो सुरक्षा की दृष्टि से अपर्याप्त होती है. ऐसी पौलिसी का प्रीमियम भी अपेक्षाकृत ज्यादा होता है.

बीमा कराते समय उपयुक्त बीमा कंपनी का चुनाव भी जरूरी है. पहले तो केवल भारतीय जीवन बीमा निगम ही जीवन बीमा कर सकता था, लेकिन अब दर्जनों निजी और विदेशी बीमा कंपनियां भी जीवन बीमा करने लगी हैं. अत: बीमा कराते समय बीमा कंपनी की विश्वसनीयता का ध्यान भी रखा जाना चाहिए. बीमा लंबी अवधि के लिए होता है, इसलिए कंपनी चुनते समय यह देखना चाहिए कि आज से 25-30 साल बाद या इस से भी बाद भुगतान मिलेगा. इसलिए कंपनी ऐसी हो जो इतनी लंबी अवधि तक कायम रह सके और भुगतान कर सके.

गलत ऐजेंट से सावधान रहें

कंपनी की दावा भुगतान करने की प्रक्रिया को जानना भी जरूरी है. यदि उस की दावा भुगतान की प्रक्रिया लंबी हो और वह भुगतान करने में आनाकानी करती हो तो उस तरह की बीमा कंपनी से बीमा नहीं कराना चाहिए.

प्राय: ऐजेंट उन बीमा पौलिसियों को बेचने की कोशिश करते हैं, जिन में उन्हें कमीशन अधिक मिलता है. जब कंपनी ऐजेंट को ज्यादा कमीशन देगी तो उस के पास आगे निवेश करने के लिए राशि कम रह जाएगी. जब कम निवेश किया जाएगा तो बीमा कराने वाले या उस के परिवार को मिलने वाली राशि भी कम हो जाएगी. कई कंपनियों ने बाजार आधारित पौलिसीज भी जारी कर रखी हैं. वे प्राप्त बीमा प्रीमियम में से अपने खर्चे निकाल कर शेष राशि को बाजार में निवेश करती हैं. शुरू के सालों में तो खर्च निकालने के बाद निवेश की जाने वाली राशि आधी भी नहीं रहती. अब इतनी कम राशि निवेश हो और वह भी शेयर बाजार आदि में तो उस राशि को मूल राशि तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है. कई बार वर्षों तक मूल राशि तक पहुंच भी नहीं पाती.

विगत वर्षों में इस तरह की पौलिसी लेने वाले लाखों लोगों को अपनी जमा राशि का आधी या चौथाई राशि भी नहीं मिली और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा.

योजनाओं की जानकारी लें

बीमा कंपनियां एकल प्रीमियम वाली पौलिसी भी जारी करती हैं. यह पौलिसी उन के लिए उपयोगी है, जिन की कोई नियमित आय नहीं होती. यदि उन्हें कोई बड़ी राशि मिल जाए तो वे इस राशि से एकल प्रीमियत वाली पौलिसी खरीद सकते हैं. ऐसी पौलिसी में उन्हें नियमित रूप से बारबार राशि नहीं जमा करानी पड़ती.

यदि आप बीमे के माध्यम से पैंश्?ान प्राप्त करना चाहते हैं तो बीमा कंपनियों ने कई पैंशन प्लान भी बना रखे हैं, जिन में कुछ वर्षों तक नियमित प्रीमियम जमा कराने के बाद आजीवन पैंशन और बाद में उत्तराधिकारी को एकमुश्त राशि का भुगतान कर दिया जाता है. पैंशन का प्रीमियम एकमुश्त जमा करा कर भी आजीवन पैंशन प्राप्त की जा सकती है.

कुल मिला कर बीमा की बहुत सी योजनाएं हैं, उन से जुड़े लाभ और सुविधाएं भी अलगअलग होती हैं. इसलिए बीमा कराते समय सभी योजनाओं की जानकारी ले कर और अपनी भावी जरूरतों को ध्यान में रख कर ही बीमा पौलिसी का चुनाव करना चाहिए न कि ऐजेंट के कहने या किसी की सुनीसुनाई बात के आधार पर बीमा लेना चाहिए.

जरूरी है सावधानी

कई बार कुछ बीमा कंपनियों के ऐजेंट फोन कर के यह पूछते हैं कि आप ने जो बीमा करा रखा है उस में कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है. वे कहते हैं कि हम सरकार के बीमा सेवा केंद्र या इसी तरह का कोई दूसरा नाम ले कर आप से जानकारी प्राप्त करते हैं. फिर आप को अपनी चालू पौलिसी को बंद करवा कर किसी पौलिसी को शुरू करवाने के लिए कहते हैं और उस में अधिक लाभ का झांसा भी देते हैं. कई बार ये फोन पर कहते हैं कि आप की बीमा पौलिसी पर बोनस आया हुआ है, उसे प्राप्त करने के लिए आप को किसी नई योजना में राशि जमा करानी होगी. ये सभी फर्जी फोन होते हैं.

भारतीय बीमा नियामक आयोग समयसमय पर इन से बचने हेतु विज्ञापन भी जारी करता है. फिर भी ये फोन आते हैं. बीमा नियामक ऐसे फोन आने पर उस की शिकायत पुलिस से करने को कहता है. ऐसे फोन से सावधान रहें. जरूरत पड़ने पर इन की शिकायत भी करें.

बीमा पौलिसी का चुनाव करते समय यदि कोई विश्वसनीय निवेश सलाहकार हो तो इस मामले में उस की सेवा भी ली जा सकती है.

इस तरह यदि आप इन सभी बातों को ध्यान में रख कर बीमा पौलिसी का चुनाव करते हैं तो आप जिस उद्देश्य से बीमा पौलिसी ले रहे हैं वह उद्देश्य पूरा हो सकेगा और आप ठगे नहीं जाएंगे.

– डा. अजय जोशी  

वाशिंग मशीन खरीदते समय रखें इन 5 बातों का ध्यान

क्या आप भी वाशिंग मशीन खरीदने जा रहे हैं, लेकिन आरपीएम, आटोमेटिक और सेमी आटोमेटिक जैसे शब्दों में उलझे हुए हैं. अगर ऐसा है तो पहले ये क्या है इसकी जानकारी ले लें, फिर खरीदें वाशिंग मशीन.

फुली या सेमी आटोमेटिक

तकनीक के आधार पर वाशिंग मशीन दो प्रकार की होती है, फुली आटोमेटिक या सेमी आटोमेटिक. जब भी आप इसे खरीदें, तो पहले अपनी आवश्यकताओं को समझें, फिर निर्णय लें. फुली आटोमेटिक वाशिंग मशीन कपड़े अंदर डालने के बाद स्वतः धोती एवं सुखाती है. लेकिन, सेमी आटोमेटिक वाशिंग मशीन में आपको टब में कपड़े निकाल ड्रायर में डालने होते हैं. यह फुली आटोमेटिक से सस्ती होती है.

क्या होता है आरपीएम

वाशिंग मशीन में कपड़े सुखाने के लिए स्पिन चक्र को प्रति मिनट आरपीएम (रिवोल्यूशन पर मिनट) के रूप में मापा जाता है. आरपीएम जितना अधिक होगा, उतनी ही जल्दी यह आपके कपड़े को सुखाएगी. हालांकि, यह कपड़ों के प्रकारों पर निर्भर करेगा. नाजुक कपड़े के लिए, स्पिन चक्र 300-500 आरपीएम है, जबकि जींस के लिए लगभग 1,000 आरपीएम होता है.

वाशिंग मशीन के प्रकार

वाशिंग मशीनों को फ्रंट लोडिंग और टौप लोडिंग मशीन के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है.

फ्रंट लोडिंग: इसमें कपड़ों को सामने से डाला जाता है, जिन्हें आप देख पाएंगे कि कैसे कपड़े की जबरदस्त धुलाई हो रही है.

टौप लोडिंग: इसमें कपड़े ऊपर से डाले जाते हैं. फ्रंट लोडिंग वाली वाशिंग मशीन की तुलना में टौप लोडिंग वाशिंग मशीन सस्ती होती है.

तापमान नियंत्रण

अगर वाशिंग मशीन में हीटर है, तो यह सुविधा पानी के तापमान को समायोजित करने में मदद करेगी. यह सर्दियों में ज्यादा उपयोगी साबित हो सकता है. इसके अलावा, गर्म पानी से कपड़े बेहतर साफ हो जाते हैं. कुछ मशीनों में भाप की सुविधा होती है, जो गंदगी और दाग से अच्छी तरह लड़ने में मदद करती है.

कौन सा वाशिंग मशीन है आपके लिए बेहतर

व्हर्लपूल स्टेवाश अल्ट्रा 6.5 किलोग्रामः  इसका डिजाइन बहुत जबदस्त है. यह अच्छी क्षमता वाली वाशिंग मशीन है. छोटे परिवार के लिए यह एक बेहतरीन विकल्प है. इसमें नार्मल, स्पीडी, हैवी और डेलीकेट वाशिंग मोड मिलते हैं. इसमें लिंट फिल्टर होता है. इसके टब को आसानी से साफ किया जा सकता है. इसमें जेडपीएफ टेक्नोलाजी इस्तेमाल की गई है. इसका टब स्टेनलेस स्टील से बना है और बौडी मेटल की है. यह भी 360 वौट पावर लेती है. यह 87 सेंटीमीटर ऊंची, 54 सेंटीमीटर चौड़ी और 56 सेंटीमीटर लंबी है.

सैमसंग 6.5 किलोग्राम ‘डब्ल्यू 65 एम 4000 एचए: छोटे परिवार के लिए यह एक बेहतरीन वाशिंग मशीन है. इसकी स्पिन कि अधिकतम गति 700 आरपीएम है. इसमें क्विक वाश, डेलीकेट्स, ब्लेंकेट, जींस, ईको टब क्लीन, स्पिन ओनली आदि वाश मोड हैं. इसका टब स्टेनलेस स्टील से बना है और बौडी फाइबर की है. इसमें डिजिटल डिस्प्ले, प्रीसेट टाइमर, लिंट फिल्टर, मेमोरी बैकअप आदि फीचर हैं. यह 325 वौट पावर लेती है. इसमें वाश मोटर 325 वौट पावर लेता है और स्पिन मशीन 350 वौट पावर लेती है. इसमें आटो पावर आफ का विकल्प भी मिलता है. यह 906 मिलीमीटर ऊंची, 540 मिलीमीटर चौड़ी, 568 मिलीमीटर लंबी और 31 किलोग्राम वजन की है.

आईएफबी सेनोरिटा एक्वा एसएक्स 1000 आरपीएम 6.5 किलोग्राम: यह 6.5 किलोग्राम क्षमता के साथ एक बेहतरीन वाशिंग मशीन है. इस मशीन में लोअर ड्रायर टाइमर का विकल्प भी है. इसके अंदर आपको स्मार्ट सेंस, एक्सप्रेस वाश, एक्वा कंसर्व, टब क्लीन, जींस, डेलीकेट्स आदि वाशिंग मोड मिलते हैं. इसका टब स्टेनलेस स्टील से बना है और बौडी प्लास्टिक से बनाई गई है. इसमें आपको डिजिटल डिस्प्ले मिलती है, जिस पर सारे वाशिंग विकल्प होते हैं. यह 325 वौट पावर लेती है. इसमें आटो पावर आफ का विकल्प भी मिलता है. इसकी ऊंचाई 95 सेंटीमीटर, चौड़ाई 57 सेंटीमीटर, लंबाई 59 सेंटीमीटर और वजन 35 किलोग्राम है. इसमें लाक आप्शन भी दिया गया है. इसमें 3डी वाश सिस्टम, एक्वा एनर्जी टेक्नोलाजी इस्तेमाल की गई है.

बच्चों के जन्म से पहले बदली जा सकेगी जींस

वैज्ञानिक अब पहले से डिजाइन किए गए बच्चों के जन्म की तकनीक विकसित करने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसा नहीं है कि यह अभी सोच के स्तर पर ही है. जानवरों में इस तरह के प्रयोग सफल होने के बाद आदमी में भी इस तरह का प्रयोग करने पर बातें हो रही हैं.

यह मानव जीन को इच्छानुसार संपादित करने की तकनीक है. इसे ‘क्रिस्पआर’ नाम दिया गया है. वाशिंगटन में इस पर वैज्ञानिकों का सम्मेलन भी हुआ.

दरअसल, मानव भ्रूण में डीएनए में बदलाव से अच्छी चीजें संभव हैं तो कई तरह की आशंकाएं भी हैं. अच्छा यह है कि इससे कई किस्म के रोगों पर पहले ही नियंत्रण पाना संभव होगा. थैलेसीमिया और कुछ खास कोशिकाओं तक रक्त पहुंचने में बाधा वाले रोगों से बचने के लिए यह तकनीक लगभग वरदान की तरह है.

जो भी रोग जेनेटिक हैं, उन पर इस तकनीक से जन्म से पहले ही सुधार संभव हो सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि बुद्धिमान होने के लिए ‘सही जीन्स’ और ‘सही वातावरण’ की ही जरूरत नहीं होती, बल्कि “जीन्स के सही सम्मिलन” की भी जरूरत होती है.

किस जीन की क्या विशेषता है, इस पर पिछले दस साल में अलग-अलग काफी जानकारियां जुटाई गई हैं. फिर भी वैज्ञानिक इस पर एक राय नहीं हो पाए हैं कि इनके सम्मिलन से क्या होता है या क्या कुछ हो सकता है.

वाशिंगटन सम्मेलन में मानव जीन में बदलाव के मेडिकल, सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक परिणामों पर वैज्ञानिकों ने और बात करने पर जोर दिया. यूनेस्को अंतरराष्ट्रीय जैवनैतिकता समिति ने भी इसे ‘संवेदनशील’ मामला बताया है.

वीरे दी वेडिंग : ‘सेक्स एंड द सिटी’ और ‘ब्राइडसमैड’ का घटिया रूपांतरण

यदि आप मानते हैं कि नारी की प्रगतिशीलता के मायने ड्रग्स का सेवन करना, खुलेआम शराब व सिगरेट पीना, अपने पति को गंदी गंदी गालियां देना, खुलेआम सेक्स व आर्गज्म पर बेबाक बातें करना है, तो फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ आपके लिए है, अन्यथा कहानी के नाम पर यह फिल्म शून्य है.

जी हां! रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ तमाम सामाजिक मान्यताओं व सोच को तोड़ने वाली बोल्ड फिल्म होते हुए भी विचलित करती है. पूरी फिल्म एकता कपूर की कंपनी ‘बालाजी टेलीफिल्मस’ मार्का सीरियल व कई तरह के विज्ञापनों का मुरब्बा है. फिल्मकार शशांक घोष ने अपनी इस फिल्म में नारी पात्रों के मार्फत विवाह को मूर्खता, दोस्ती को जीवन उद्धारक, शराब को पानी का पर्याय, यौन संबंध को स्वास्थ्यवर्धक, सिगरेट को तनाव भगाने का आसान उपाय, बदनामी को अति आवश्यक और फैशन को हर समय की जरुरत बताया है.

फिल्म की कहानी के केंद्र में दिल्ली में रह रही हाई स्कूल के दिनों की चार सहेलियां कालिंदी पुरी (करीना कपूर), अवनी शर्मा (सोनम कपूर), साक्षी सोनी (स्वरा भास्कर) और मीरा सूद (शिखा तलसानिया) हैं. इनकी सूत्रधार कालिंदी पुरी है. फिल्म शुरू होती है हाई स्कूल की परीक्षा के समापन का जश्न मनाते हुए, इन लड़कियों की हरकतों यानी कि इनके बियर्ड प्वाइंट पर पहुंचने पर इनके एटीट्यूड का अहसास होता है. फिर कहानी दस साल बाद शुरू होती है.

अवनी शर्मा फैमिली कोर्ट में मेट्रोमोनियल एडवोकेट हैं और अपनी मां (नीना गुप्ता) के साथ रहती है. दिल से काफी रोमांटिक है, उसे स्कूल के दिनों से ही शादी कर बच्चे पैदा करने की इच्छा रही है. इसी के चलते वह अर्जुन, निर्मल, भंडारी सहित कई युवकों के  संपर्क में आती रहती है, मगर उसे सही जीवन साथी नहीं मिलता, जबकि उसकी मां भी उसके लिए लड़का तलाश रही है. अवनी को सच्चे प्यार की तलाश है.

कालिंदी बिखरे हुए माता पिता की अकेली औलाद है. वह ‘कमिटमेंट फोबिया’ की शिकार है. वह रिषभ मल्होत्रा (सुमित व्यास) के संग आस्ट्रेलिया में दो वर्ष से भी अधिक समय से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है, मगर अपने माता पिता के वैवाहिक जीवन के झगड़ों की गवाह रही कालिंदी को शादी व रिश्तों से डर लगता है. पर वक्त के साथ बहते हुए वह रिषभ मल्होत्रा के संग शादी के लिए हामी भर देती है. उसकी शादी दिल्ली में पंजाबी रीतिरिवाजों के संग होनी है, जिसमें उसकी अन्य तीनों सहेलियां भी शामिल होती हैं, पर रिश्ते निभाते निभाते वह रिषभ से बीच में ही शादी न करने का फैसला ले लेती है. पर अंत में एक ऐसा मोड़ आता है कि वह रिषभ के साथ शादी के बंधन में बंध जाती है.

मीरा सूद एक युवा विद्रोही है, जिसने अपने बड़े पापा के विरोध के बावजूद एक अमरीकन से शादी की है, उसका एक कबीर नामक बेटा है, पर शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं है. वहीं साक्षी सोनी एक अति अमीर औरत है, वह विनीत से शादी कर लंदन रहने लगती है, पर सेक्स संतुष्टि के लिए ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ में यकीन करने वाली साक्षी सोनी जल्दी ही विनीत से तलाक लेकर वापस अपने करोड़पति माता पिता के पास रहने आ गयी है. अब वह दिन भर क्लब व ड्रग्स आदि मे डूबी रहती है. बात बात पर गंदी गंदी गालियां बकना उसकी आदत का हिस्सा है. यह चारों सहेलियां भावनात्मक रूप से काफी जटिल स्वभाव की हैं. इन चारों अति आधुनिक व स्वतंत्र सहेलियों की जिंदगी, पुरुष, सेक्स, प्यार, शादी, दिल टूटने सहित औरतों से जुड़े हर मुद्दे पर अपनी एकदम अलग सोच व राय है. इनके अंदर इतना गट्स है कि यह सभी अपनी सोच के साथ ही जिंदगी जीती हैं. यह शादी से पहले सेक्स पर भी बातें करती हैं. इन्हे किसी का कोई डर नही है.

भारतीय सिनेमा जगत में स्वतंत्र व आधुनिक नारी के इस रूप व इस तरह की हरकतों वाली फिल्म अब तक नहीं बनी है. इस तरह ‘वीरे दी वेडिंग’ सिने जगत में एक नए अध्याय की शुरुआत है. यह चारों नारी पात्र अपनी सफलता, अपनी असफलता व अपने हर कदम को अपने लिए एक सम्मानजनक तमगा समझती हैं. यह सभी अपनी गलतियों के साथ निरंतर आगे बढ़ती रहती हैं. भारतीय परिवेश व भारतीय सोच के तहत इन्हें पवित्र परिभाषित नहीं किया जा सकता. जब वासना व प्यार की बात आती है, तो यह चारों लड़कियां भारतीय सामाजिक मूल्यों व सोच के तहत असहनीय मानी जाएंगी.

यूं तो कहानी व कहानी के मोड़ जीवन को बदलने वाले या चौंकाने वाले नहीं हैं. अपनी अपनी जिंदगी से जूझना व दिल के टूटने के कथानक पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं, पर पहली बार इस कथानक पर नारी पात्रों के साथ फिल्म बनायी गयी है. मगर लेखक व निर्देशक किसी भी किरदार को गहराई के साथ पेश नहीं कर पाए. पटकथा लेखक बुरी तरह से असफल हुए हैं. सभी पात्र काफी सतही व उथले छोर से हैं. परिणामतः दर्शक इन किरदारों की यात्रा का सहभागी नहीं बन पाता. इनके साथ जुड़ नहीं पाता.

चारों सहेलियों की गप्पबाजी के चलते फिल्म एक ही जगह ठहरी हुई सी लगती है. फिल्म पर निर्देशक शशांक घोष की कोई पकड़ नजर नहीं आती. फिल्म बार बार एकता कपूर मार्का टीवी सीरियल की याद दिलाती रहती है. फिल्म कई जगह आपको  विचलित करती है. युवा पीढ़ी खासकर टीनएजर उम्र के दर्शकों को अहसास हो सकता है कि फिल्म उनके मन की बात करती है. प्यार व शादी को लेकर यह फिल्म उत्साहित नहीं करती. जिन्होंने विदेशी सीरियल ‘सेक्स एंड द सिटी’ या ‘‘ब्राइड्समैड’’ देखा है, उन्हे यह फिल्म इनका अति घटिया रूपांतरण नजर आएगी.

फिल्म में बेवजह कालिंदी के पिता (अंजुम राजाबली) व उनकी दूसरी पत्नी परोमिता (एकावली खन्ना) तथा कालिंदी के समलैंगिक चाचा (विवेक मुश्रान) की कहानी को बेवजह जोड़ा गया है, यह फिल्म की कहानी को अवरूद्ध ही करते हैं. फिल्म को संवारने की बजाय तहस नहस करने में पार्श्वसंगीत की अहम भूमिका है. फिल्म की एडीटिंग भी काफी गड़बड़ है.

शादी के नाम से डरी हुई महिला कालिंदी पुरी के किरदार में करीना कपूर ने काफी बेहतर अभिनय किया है. स्वरा भास्कर ने काफी स्वाभाविक अभिनय किया है. अवनी शर्मा के किरदार में एक बार फिर सोनम कपूर ने साबित कर दिखाया कि कलाकार के तौर पर वह निरंतर विकास कर रही हैं. मगर परदे पर इन चारों की दोस्ती बनावटी नजर आती है.

दो घंटे पांच मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ का निर्माण अनिल कपूर, रिया कपूर, निखिल द्विवेदी और एकता कपूर ने किया है. फिल्म के लेखकद्वय निधि मेहरा व मेहुल सूरी, निर्देशक शशांक घोष, संगीतकार विशाल मिश्रा, शाश्वत सचदेव, करण, पार्श्वसंगीतकार अर्जित दत्ता, कैमरामैन सुधाकर रेड्डी यकांती व कलाकार हैं- सोनम कपूर, करीना कपूर, स्वरा भास्कर, शिखा टलसानिया, सुमित व्यास, विश्वास किनी, आएशा रजा, विवेक मुश्रान, मनोज पाहवा, नीना गुप्ता, गेवी चहल, शीबा चड्ढा, अलका कौशल व अन्य.

तनहाइयां-भाग 1: बस में बैठे लड़के से अंजू का क्या रिश्ता था ?

आजकल जिंदगी भी न जाने कैसी हो गई है. भागतीदौड़ती हुई, जिस में किसी को दूसरे के लिए सोचने का वक्त ही नहीं है. हर व्यक्ति केवल अपने तक सीमित रह गया है. वह भाग रहा है तो अपने लिए, रुक रहा है तो अपने लिए. एक मैं हूं कि इस भागती हुई जिंदगी में से भी कुछ लमहे सोचने के लिए निकाल लेती हूं.

एक दिन जब रोज की तरह बस में बैठ कर कालेज जा रही थी तो सामने की सीट पर बैठे हुए एक 15-16 साल के लड़के को देख कर न जाने क्याक्या विचार मन को घेरने लगे. उस लड़के की लंबाई काफी अच्छी थी. वह बहुत सुंदर था, उस के बाल घुंघराले, रंग साफ और होंठ लाल थे. जब तक मेरा कालेज नहीं आया तब तक रहरह कर मैं उसे देखती रही और सोचती रही कि यदि मेरी शादी समय पर हो गई होती तो इतना ही बड़ा मेरा बेटा होता. इतना ही सुंदर, इतना ही भोला, इतना ही मासूम. जब वह मेरे साथ चलता तो मेरा दायां हाथ बन कर मेरे साथ रहता. उसे देख कर ही मैं अपना सारा जीवन बिता देती.

कालेज में भी उसी लड़के का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूमता रहा और खुशियां मेरे रोमरोम में समाती रहीं.

‘‘आज कहां खोई हो?’’ मेरी सहेली राधा ने पूछ ही लिया.

‘‘कहीं भी तो नहीं खोई हूं. यहीं तो हूं,’’ मैं ने सकपका कर कहा.

‘‘कुछ तो है यार,’’ वह रहस्यभरे स्वर में बोली, फिर मुसकरा दी.

कालेज से लौटते हुए वह लड़का मुझे फिर मिला. इस बार उसे सीट नहीं मिली थी. वह खड़ा था. मुझे उस समय बड़ा आश्चर्य हुआ जब वह वहां उतरा जहां मुझे उतरना था. ‘तो क्या यह यहीं मेरे महल्ले में रहता है?’ मेरे मन में प्रश्न उठा और एक जिज्ञासा भी जाग उठी कि इस का घर कहां है? वह धीरेधीरे चल रहा था. मैं उस के पीछे चल रही थी. मेरे घर के बाद तीसरे मकान में वह लड़का चला गया.

‘ओह, तो ब्रजेशजी के इस मकान को छोड़ने के बाद जो नए पड़ोसी आए हैं, यह लड़का उन्हीं का है,’ मैं ने मन ही मन सोचा, ‘जरूर इस का दाखिला जौनसन स्कूल में हुआ होगा. फिर तो यह मुझे रोज बस में मिला करेगा.’ सोच कर मुझे बहुत अच्छा लगा. शाम को जब शकुंतला बरतन धोने आई तो मैं ने बातों ही बातों में उस से पूछा कि ब्रजेशजी के घर में उस ने काम पकड़ा या नहीं?

‘‘हां, बीबीजी, वहां का काम भी मैं ने पकड़ लिया है. कुल 3 जने हैं. अगर ज्यादा होते तो मैं न करती.’’

‘‘कौनकौन हैं घर में?’’ मैं ने चाय पीते समय अपनी दृष्टि शकुंतला के चेहरे पर स्थिर कर दी.

‘‘एक साहब हैं, उन की मां और उन का एक लड़का है, मोनू.’’

‘‘क्या साहब की पत्नी साथ में नहीं रहती?’’

‘‘नहीं, उन को मरे 2 साल हो गए, एक ऐक्सिडैंट में मर गईं.’’

मेरे हाथ से चाय का प्याला छूटतेछूटते बचा. शकुंतला के जाने के बाद मन अवसाद से भर उठा. सोचने लगी, ‘कितना सुंदर लड़का है और बेचारे की मां नहीं है.’ दूसरे दिन बस में इत्तफाक से वह मेरे पास ही बैठा. मेरी सारी ममता उस के लिए आतुर हो उठी.

‘‘बेटे, तुम्हारा क्या नाम है?’’ मैं ने उस से पूछा.

‘‘मनीष, वैसे घर में मुझे सब मोनू कहते हैं,’’ वह मुसकरा कर बोला.

‘‘इस शहर में तुम नए आए हो?’’

‘‘जी, मैडम.’’

‘‘देखो, मैं तुम्हारी मां की उम्र की हूं. मुझे तुम मौसी कह सकते हो,’’ मैं ने स्नेहिल दृष्टि उस पर टिका दी.

प्रत्युत्तर में वह केवल मुसकरा कर रह गया. दूसरे दिन शाम को स्कूटर पर उसे एक परिचित चेहरे के साथ बाजार में देखा. यह वह चेहरा था जिस ने मेरे चेहरे को सौगात में हजारों आंसू दिए थे, जिस ने ताउम्र साथ चलने का वादा कर के अचानक अपनी मंजिल बदल डाली थी, जिस ने मुझ पर स्नेह बरसा कर अकारण ही मेरे मन को हमेशाहमेशा के लिए रीता कर दिया था. मैं अपने पिता के मरने का दुख भूल सकती थी लेकिन इस चेहरे को कभी नहीं भूल सकती थी.

‘‘कल शाम स्कूटर पर तुम किस के साथ बाजार गए थे?’’ मैं ने बस में मिलने पर उस से प्रश्न किया.

‘‘मौसी, वह मेरे पिताजी थे,’’ मोनू बोला.

मैं अवाक् रह गई. मेरी सारी ममता, सारा स्नेह, जो कुछ दिनों से मोनू के प्रति उमड़ रहा था, अचानक जैसे सूख गया. मेरा स्नेह घृणा में परिणत हो गया और मैं धीरेधीरे सरक कर उस से काफी दूर खड़ी हो गई.

कालेज पहुंच कर मेरे मन का रोष उतरा बेचारी छात्राओं पर. यहां तक कि बेवजह लाइब्रेरियन से भी उलझ पड़ी. उस दिन मेरी सहेली राधा भी मुझे देख कर हैरान थी. स्टाफ की अन्य प्राध्यापिकाएं नीलिमा, सपना, रितु, शिखा, तृप्ति, मेघा-सभी अचरज से मेरे परिवर्तित रूप को देख रही थीं. छात्राएं तो काफी सहमीसहमी थीं. उन्हें क्या मालूम कि मैडम अपने व्यक्तित्व से चिपके दर्द को किसी भी हाल में अलग नहीं कर सकतीं. मैडम भी इंसान हैं, जो पुराने घाव पर चोट लगते ही दर्द से चीख उठती हैं, जो घाव के रिसने पर कराहती हैं.

मैं रोज हस्तमैथुन करता हूं. इस से मेरे चेहरे पर फोड़े आ जाते हैं. इस का क्या इलाज है.

सवाल
मैं रोज हस्तमैथुन करता हूं. इस से मेरे चेहरे पर फोड़े आ जाते हैं. इस का क्या इलाज है?

जवाब
हस्तमैथुन करने से चेहरे पर फोड़े नहीं होते हैं. फोड़ों की वजह कोई और होगी. आप किसी माहिर डाक्टर को अपने फोड़े दिखा कर इलाज कराएं. नीमहकीमों के चक्कर में न पड़ें. वे आप को लूट लेंगे.

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मदद के नाम पर देह धंधा

उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी की रहने वाली सुनीता की मां अकसर बीमार रहती थी. उसे लगता था कि अगर कहीं उस की नौकरी लग जाती तो वह अपनी मां का ठीक से इलाज करा लेती. उस के पिता की मौत हो चुकी थी.

एक छोटा भाई जरूर था, लेकिन वह अभी पढ़ रहा था. एक दिन उस के फोन पर एक मिसकाल आई. उस ने पलट कर फोन किया तो पता चला वह नंबर लखनऊ की रहने वाली सोनी का था.

इस के बाद सोनी और सुनीता में बातचीत होने लगी. बाचतीत में एक दिन सुनीता ने सोनी से अपनी परेशानी कह सुनाई. सोनी बातचीत में काफी माहिर थी. मीठीमीठी बातें कर के उस ने सुनीता से दोस्ती गांठ ली. फोन के साथसाथ दोनों वाट्सऐप पर भी एकदूसरे को मैसेज करने लगी थीं.

सुनीता काफी सुंदर थी. उस की सुंदरता ने सोनी का मन मोह लिया. इसी वजह से सोनी के मन में लालच आ गया. उसे लगा कि अगर सुनीता उस के पास आ जाए तो उस का काम बन जाए.

सुनीता वाराणसी के लंका स्थित अपने घर में मां के साथ रहती थी. संयोग से एक दिन उस ने खुद ही सोनी को मौका दे दिया. उस ने कहा, ‘‘सोनी, मेरी मां की तबीयत खराब रहती है. उन का इलाज कराना है, घर में कोई मदद करने वाला नहीं है. मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं पा रही हूं. कोई नौकरी भी नहीं मिल रही है.’’

‘‘अगर तुम लखनऊ में होती तो मैं तुम्हारी मदद कर देती. यहां मैं कोई नौकरी दिला देती, जिस से तुम्हें आराम से 10 से 15 हजार रुपए महीना वेतन मिल जाता. अगर तुम बढि़या काम करती तो जल्दी ही तुम्हारा वेतन दोगुना हो जाता.’’ जवाब में सोनी ने सुनीता को समझाते हुए कहा.

‘‘अभी तो मैं मां को ले कर लखनऊ आ नहीं सकती. अगर नौकरी मिल जाए और महीने, 2 महीने में कुछ पैसे मिल जाएं तो मैं मां को ला कर वहीं रहने लगती.’’ सोनी की बात सुन कर सुनीता ने कहा.

सुनीता की बातों से सोनी को लगा कि वह लखनऊ आ सकती है. उसे आकर्षित करने के लिए सोनी ने कहा, ‘‘सुनीता, तुम यहां आ जाओ और हम लोगों के साथ रह कर काम को देखसमझ लो. अगर काम पसंद आ जाए तो मां को ले आना. यहां रहने की कोई कमी नहीं है. मैं अपनी सहेली सुमन के साथ रहती हूं. हम से मिल कर तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा.’’

सुनीता जरूरतमंद थी ही, इसलिए उसे लगा कि एक बार लखनऊ जा कर सोनी से मिलने में कोई बुराई नहीं है. लखनऊ कोई बहुत दूर तो है नहीं, क्यों न एक बार जा कर उस के काम को देखसमझ ले. अगर काम अच्छा लगा तो करेगी, वरना वाराणसी लौट आएगी.

सोनी से हुई बातचीत के करीब 10 दिनों बाद सुनीता वाराणसी पैसेंजर ट्रेन से लखनऊ के लिए निकल पड़ी. सुमन और सोनी को उस ने अपने आने की बात पहले ही बता दी थी, इसलिए दोनों उसे लेने के लिए चारबाग रेलवे स्टेशन पहुंच गई थीं.

सोनी और सुमन से मिलने के बाद सुनीता ने कहा, ‘‘यार ट्रेन काफी लेट हो गई, जिस से यहां पहुंचने में काफी देर हो गई. चलो, पहले वहां चलते हैं, जहां नौकरी की बात करनी है. उस के बाद बैठ कर आराम से आपस में बातें करेंगे. अगर नौकरी पसंद आई तो रुक जाऊंगी, वरना रात की ट्रेन से वापस लौट जाऊंगी. तुम दोनों को नाहक परेशान नहीं होना पड़ेगा.’’

‘‘सुनीता, तुम जंगल में नहीं आई हो. हम दोनों तुम्हारे साथ हैं. आज तो देर हो गई है. औफिस बंद हो गया होगा. कल वहां चल कर बात कर लेंगे. अभी तुम हमारे साथ मेरे कमरे पर चलो. आज हम तीनों पार्टी कर के खूब एंजौय करेंगे.’’ सोनी ने कहा.

सुनीता को बहुत दिनों बाद घर से बाहर निकल कर तनावरहित कुछ समय गुजारने का मौका मिला था. सुमन और सोनी से मिल कर वह काफी खुश थी. दोनों उसे बहुत अच्छी लगी थीं. तीनों एक कार में बैठ कर लखनऊ के तेलीबाग स्थित सोनी के घर पहुंच गईं.

घर में सिर्फ सोनी का पति तौहीद था. वह देखने में काफी सीधासादा था. तीनों के घर पहुंचते ही वह घर से चला गया. उस समय शाम के करीब 6 बज रहे थे.

ठंडी का मौसम था. सुनीता का स्वागत चायपकौड़ों से किया गया. तीनों आपस में चाय पीते हुए बातें करने लगीं. चाय खत्म हुई तो सोनी ने कहा, ‘‘सुनीता, मैं तुम्हें कपड़े देती हूं. तुम फ्रैश हो कर कपड़े बदल लो.’’

‘‘सुनीता, सोनी के कपड़े तुम्हें एकदम फिट आएंगे. यह बहुत ही सैक्सी लुक वाले कपड़े पहनती है. उन्हें पहन कर तो तुम कयामत लगोगी.’’ सुमन ने कहा.

इस बीच सोनी कपड़े ले आई. न चाहते हुए भी सुनीता को सोनी की ड्रैस पहननी पड़ी. कपड़े पहन कर उस ने खुद को देखा तो सचमुच ही वह अलग दिख रही थी. वह खुश हो गई. बातें करतेकरते एकदूसरे के फोटो खींचे जाने लगे.

सोनी ने सुनीता के मौडलिंग वाले फोटो खींचतेखींचते बिना कपड़ों के भी फोटो खींचे. उस समय सुनीता की समझ में कुछ नहीं आया. वह सोच रही थी कि यह लड़कियों की दोस्ती है.

थोड़ी देर बाद सुमन अपने घर चली गई. अब सोनी और सुनीता ही रह गईं. रात में सोनी का पति तौहीद आया तो खाना खा कर सोनी अपने पति के साथ सोने चली गई. सुनीता भी अलग कमरे में सो गई. उसे नींद आने लगी थी, तभी उस के कमरे का दरवाजा खुला. सोनी एक आदमी के साथ उस के कमरे में आई.

सोनी उस आदमी को वहीं छोड़ कर बाहर निकल गई और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया. अब कमरे में सुनीता और वह आदमी ही रह गए. सोनी के जाते ही उस ने कहा, ‘‘सुनीता, आज की रात के लिए सोनी ने तुम्हारा 6 हजार रुपए में सौदा किया है.’’

उस आदमी की बात सुन कर सुनीता के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस की आंखों के सामने लखनऊ से ले कर वाराणसी तक की दोस्ती, बातचीत और आवभगत की तसवीर घूमने लगी. सुनीता समझ गई कि वह फंस चुकी है. उस आदमी ने सुनीता को उस के वे निर्वस्त्र फोटो दिखाए, जो कुछ देर पहले ही सोनी और सुमन ने मजाकमजाक में खींचे थे. उस ने कहा, ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो ये तुम्हारी इन तसवीरों को सार्वजनिक कर देंगी. तब लोग तुम्हें ही गलत समझेंगे.’’

सुनीता के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उसे पूरी रात उस आदमी की दरिंदगी का सामना करने को मजबूर होना पड़ा. सवेरा होते ही वह आदमी चला गया. उस के जाने के बाद सोनी कमरे में आई. सुनीता ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई.

सोनी चुपचाप सब सुनती रही. इस के बाद उस ने सुनीता को एक हजार रुपए देते हुए कहा, ‘‘सुनीता, आज से यही तुम्हारी नौकरी है. तुम्हारा खानापीना, कपड़े और मैकअप का सारा खर्च हम उठाएंगे. रहने के लिए हमारा घर है ही. इस सब के अलावा तुम्हें हर रात के एक हजार मिलेंगे. तुम 8-10 हजार रुपए की बात कर रही थी, मैं तुम्हें 20 से 25 हजार रुपए देने की बात कर रही हूं. अब तुम देख लो कि तुम्हें बदनाम होना है या मैं जो कह रही हूं, वह करना है.’’

चंगुल में फंस चुकी सुनीता को बचाव का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. उसे लगा कि अगर उस ने लड़ाईझगड़ा किया तो वे उस के साथ और ज्यादा बुरा कर सकते हैं. इसलिए वह मजबूर हो गई. फिर उस के साथ यह सिलसिला सा चल निकला.

पहले रात को ही कोई आदमी आता था. कुछ दिनों बाद दिन में भी उस के पास ग्राहक आने लगे. सुनीता कुछ कहती तो सुमन, सोनी और दोनों के पति तौहीद और सुरजीत कहते, ‘‘सुनीता जाड़े के दिनों में कमाई ज्यादा होती है. अभी कमा कर रुपए जमा कर लो, गरमी में ग्राहक कम होंगे तो ये काम आएंगे.’’

कुछ ही दिनों में सुनीता को यह काम बोझ लगने लगा. 10 दिन साथ रहने के बाद उन लोगों को सुनीता पर भरोसा हो गया. वे उसे ग्राहकों के साथ बाहर भी भेजने लगे. सुनीता को बाहर जाना होता तो तौहीद और सुरजीत उसे पहुंचाने जाते. सवेरा होने पर वे जा कर उसे ले आते. इस तरह वह दिन में अलग और रात को अलग ग्राहकों को खुश करने लगी.

एक दिन सोनी ने सुनीता से कहा, ‘‘सुनीता, मैं तुम्हें अपनी सहेली के यहां भेज रही हूं. तुम वहां जा कर काम करो. हम लोग एक जगह इस तरह का काम नहीं कर सकते. एक जगह ऐसा काम करने में पकड़े जाने का खतरा रहता है.’’

सोनी ने सुनीता को अपनी सहेली शोभा के यहां भेज दिया. शोभा जानकीपुरम में रहती थी. वहां सुनीता के साथ और ज्यादा बुरा सलूक होने लगा. शोभा के यहां दिन में 2 और रात में 2 ग्राहक उस के पास आने लगे. ज्यादा कमाई के चक्कर में शोभा ने ग्राहकों की संख्या बढ़ा दी थी. क्योंकि उसे पता था कि सुनीता एक सप्ताह के लिए ही उस के पास आई है.

वह लालच में फंस गई. ज्यादा काम करने से सुनीता की तबीयत खराब हो गई. इस के बाद भी शोभा ने उस के पास ग्राहकों को भेजना जारी रखा. एक दिन सवेरे सुनीता को भागने का मौका मिल गया.

बिना किसी बात की परवाह किए सुनीता सवेरे 4 बजे घर से भाग निकली. घर से बाहर आते ही उसे मौर्निंग वाक कर जाने वाले प्रदीप मिल गए. उन की मदद से वह थाना जानकीपुरम पहुंची, जहां उस की मुलाकात इंसपेक्टर अमरनाथ वर्मा से हुई. उन्होंने सुनीता को आराम से बैठाया और उस की पूरी बात ध्यान से सुनी.

इस के बाद उन्होंने महिला सिपाही कोमल और ज्योति के जरिए पूरी जानकारी प्राप्त की. सुनीता से पता चला कि उस की तरह तमाम लड़कियां इस जाल में फंसी हुई हैं. वाट्सऐप के जरिए लड़कियों के फोटो भेज कर उन का सौदा किया जाता है.

सौदा तय होने के बाद वे लड़कियों को ग्राहकों तक पहुंचाते थे. लड़की को ग्राहक के पास पहुंचा कर वे पैसा ले लेते थे. अगले दिन सुबह जा कर लड़की को ले आते थे.

सीओ अलीगंज डा. मीनाक्षी ने मामले की जांच कराई. इसी के साथ शोभा, मणिशंकर, सुरजीत, तौहीद, सुमन और सोनी के खिलाफ देहव्यापार कराने का मुकदमा दर्ज किया गया. पुलिस ने सुरजीत, तौहीद, सुमन और सोनी को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन शोभा और मणिशंकर फरार होने में कामयाब रहे.

दरअसल, सुनीता के भागने का पता चलते ही वे भी घर छोड़ कर भाग गए थे. जांच में पता चला कि सुमन और सोनी मीठीमीठी बातें कर के लड़कियों को जाल में फंसाती थीं. इस के लिए वे कई बार रेलवे स्टेशन या बसअड्डे पर भी जाती थीं. इन का निशाना ऐसी लड़कियां होती थीं, जो नौकरी की तलाश में रहती थीं.

सुमन और सोनी महिलाएं थीं, इसलिए लड़कियां उन पर भरोसा कर लेती थीं. दोनों लड़कियों का भरोसा जीतने के लिए उन्हें अपने घर ठहराती थीं. वहां हंसीमजाक के दौरान उन की अश्लील फोटो खींच लेती थीं. इस के बाद उन्हीं फोटो की बदौलत वे उन्हें ब्लैकमेल कर के देहव्यापार में उतार देती थीं.

ये लड़की को बताते थे कि उन का ग्राहक बहुत बड़ा आदमी है. वह नौकरी दिलाएगा. इस के बाद बुकिंग और सप्लाई का धंधा शुरू हो जाता था. लड़की का पूरा खर्च यही लोग उठाते थे. ग्राहक के हिसाब से लड़की को हजार, 5 सौ रुपए दिए जाते थे.

ग्राहकों को लुभाने के लिए लड़कियों को आकर्षक कपड़े पहनने को दिए जाते थे, बढि़या मेकअप किया जाता था. जिस से ग्राहक मोटा पैसा दे सके. हर लड़की के एक रात के लिए 6 से 8 हजार रुपए लिए जाते थे.

कई बार ज्यादा कमाई के लिए ग्राहकों की संख्या बढ़ा दी जाती थी. बाद में यही लड़कियां दूसरी जरूरतमंद लड़कियों को यहां ले आती थीं. पुलिस ने सुनीता को उस के घर भेज कर बाकी आरोपियों को जेल भेज दिया है.

सुनीता का कहना है, ‘‘मुझे जरा भी अहसास नहीं हुआ कि मैं एक ऐसे जाल में फंसने जा रही हूं, जिस से मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं ने उन लोगों का क्या बिगाड़ा था, जो उन्होंने मेरा भविष्य खराब कर दिया. मैं ने तो मदद मांगी थी, उन लोगों ने मदद के बहाने मुझे देह के बाजार में धकेल दिया.’’

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित तथा सुनीता परिवर्तित नाम है

मशहूर चित्रकार की जिंदगी पर बायोपिक फिल्म बनाएंगे संजय छैल

बहुत कम लोगों को पता होगा कि मशहूर लेखक व निर्देशक सजय छैल बेहतरीन चित्रकार भी हैं. उनका यह नया रूप अब उस वक्त लोगों के सामने आया है, जब संजय छैल ने अपनी बनायी हुई पचास पेंटिंग्स की प्रदर्शनी मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में लगायी. पेंटिंग्स की यह प्रदर्शनी 29 मई से शुरू हुई है, जो कि 4 जून तक चलेगी.

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अपनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी की शुरुआत के दिन संजय छैल ने घोषणा की कि वह एक मशहूर महिला चित्रकार की जिंदगी पर फिल्म बनाने वाले हैं. संजय छैल की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी के उद्घाटन के वक्त मशहूर गजल गायक पंकज उदास, उमेश शुक्ला, श्वेता खंडूरी, डी जे शेजवुड, बाबूभाई सोनी, धर्मेश मेहता, संतोष मजूमदार व प्रकाश कोठारी सहित कई हस्तियां मौजूद थी.

इस अवसर पर संजय छैल ने कहा- ‘‘मेरे पिता मशहूर कला निर्देशक थे. उनसे मुझे पेंटिंग्स बनाने की प्रेरणा मिली और मैं बचपन से ही पेंटिंग्स बनाता आ रहा हूं. मैंने अब तक सैकड़ों पेंटिंग्स बनायी है. पर पहली बार चुनिंदा पेटिंग्स की प्रदर्शनी लगायी है. मैं अपने बचपन के इस शौक पर फिल्म बनाने वाला हूं. इसके लिए मैंने हिंदुस्तान की मशहूर महिला चित्रकार से उनकी जिंदगी पर बायोपिक फिल्म बनाने के लिए अधिकार मांगे हैं, जैसे ही वह फिल्म बनाने के अधिकार मुझे देंगी, वैसे ही मैं फिल्म और इस महान चित्रकार के नाम की घोषणा करूंगा. यह बहुत बड़े स्तर की फिल्म होगी.’’

हम वर्ल्ड कप के प्रबल दावेदार नहीं : लियोनल मेसी

अर्जेटीना के स्टार फारवर्ड लियोनल मेसी भले ही फीपी वर्ल्डकप 2018 के सबसे पसंदीदा फुटबौलरों में से एक हों, लेकिन ऐसा लगता है कि वे अपनी टीम को जिता पाने के लिए आश्वस्त नहीं है. मेसी का मानना है कि उनकी रूस में 14 जून से शुरू होने वाले फीफा विश्व कप का खिताब जीने की प्रबल दावेदार नहीं है लेकिन उनके पास ऐसे खिलाड़ी हैं जो “किसी से भी लड़ सकते हैं.” मेसी ने मंगलवार रात हैट्रिक लगाते हुए एक दोस्ताना मैच में अर्जेटीना को हैती के खिलाफ 4-0 से जीत दिलाई.

टीवाईसी स्पोर्ट्स ने मेसी के हवाले से बताया, “मैं उन सभी प्रशंसकों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने हमारा समर्थन किया. हम विश्व कप जीतने के प्रबल दोवेदार नहीं है लेकिन हमारी टीम अच्छी है और खिलाड़ी किसी का भी सामना करने के लिए तैयार हैं. खिलाड़ी लंबे समय समय से एकसाथ हैं और हम खिताब जीतना चाहते हैं.”

मेसी ने कहा, “हम पूरे उत्साह के साथ रूस जा रहे हैं. हम मैदान पर अपना 100 प्रतिशत देंगे. हम विश्व कप जीतने के सपने का पूरा करना चाहते हैं.” विश्व कप के लिए अर्जेटीना को ग्रुप डी में क्रोएशिया, आइसलैंड एवं नाइजीरिया के साथ रखा गया है.

मेसी इससे पहले कह चुके हैं कि उन्हें अपनी टीम पर भरोसा है और वह शांत तरीके स्वभाव से टूर्नामेंट में भाग लेगी. उन्होंने यह भी कहा कि वह खिताबी जीत की गारंटी नहीं ले सकते क्योंकि उनका मानना है कि केवल वे ही यहां सर्वश्रेष्ठ नहीं है बल्कि और भी टीमें टक्कर में हैं.

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मेसी ने एक टेलीविजन को दिए साक्षात्कार में कहा था, “हमें अपनी पूरी क्षमता और अनुभव के साथ खेलना होगा, लेकिन शांति के साथ. हम यह नहीं जता सकते कि हम सर्वश्रेष्ठ हैं और खिताब जीतेंगे क्योंकि वास्तव में ऐसा नहीं है.” कप्तान ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम मैच दर मैच अपना ध्यान लगाएं और 16 जून को आइसलैंड के साथ होने वाले पहले मैच को जीतने पर ध्यान दें.

मेसी का कहना है, “विश्व कप में जीत के साथ आगाज करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि शांत रहने से आपको अन्य टीमों के साथ मुकाबला करने में आसानी होगी. यह ग्रुप आसान नहीं है.” उन्होंने कहा कि अर्जेटीना 21 जून को क्रोएशिया और 26 जून को नाइजीरिया के साथ होने वाले मैचों में भी शांत स्वभाव के साथ उतरेगा. कप्तान ने कहा, “इसे लेकर ईमानदार रहना है. यहां पर कई सारी टीमें हैं जो हमसे अच्छे हैं. इसे लेकर हमें वास्तविक रहना होगा.”

एक बयान से लगा कि वे स्पेन के लिए खेलना चाहते हैं

उल्लेखनीय है कि हाल ही में मेसी को कहना पड़ा था कि उन्होंने एक मिनट के लिए भी स्पेन की राष्ट्रीय फुटबाल टीम के लिए खेलने के बारे में नहीं सोचा. मेसी का कहना है कि अपने पड़ोसी देश की टीम के लिए खेलना एक अनूठा अनुभव होगा. एक रिपोर्ट के अनुसार, अर्जेटीना के चैनल ‘चैनल 13’ को दिए एक साक्षात्कार के दौरान मेसी ने कहा, “मैं अपने दोस्त से बात कर रहा था और उसने मुझसे कहा कि देखो अगर तुम स्पेन में रह रहे हो, तो तुम पहले से ही विश्व चैम्पियन हो.”

मेसी ने कहा कि जब वह 15 या 16 साल के थे, तब उन्हें स्पेन की अंडर-17 फुटबाल टीम ने टीम में जगह देना का प्रस्ताव दिया था.

एक किशोर खिलाड़ी के रूप में मेसी अपने गृहनगर रोसारियो से निकलकर बार्सिलोना क्लब में शामिल हुए. इस क्लब में उन्होंने कई जीत हासिल की. इस कारण से मेसी ने कहा कि वह आश्वस्त हैं कि अगर वह भविष्य में यूरोप में खेलना जारी रखेंगे, तो वह किसी अन्य टीम के साथ नहीं बल्कि उसी टीम के साथ रहेंगे, जिसके साथ उन्होंने अपना पूरा करियर बिताया है.

तो प्रियंका चोपड़ा कर रही हैं निक जोनास के संग डेटिंग

बौलीवुड में खबर गर्म है कि बौलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की जिंदगी में एक नया इंसान आ गया है. सूत्रों के अनुसार प्रियंका चोपड़ा और पच्चीस वर्षीय अंतरराष्ट्रीय पौप गायक व अभिनेता निक जोनास के बीच पिछले एक वर्ष से प्यार की खिचड़ी पक रही है. सूत्रों के अनुसार यह दोनों पहली बार उस वक्त सूर्खियों में आए थे, जब दोनों एक साथ हाथ में हाथ डाले एक समारोह में रेड कारपेट पर शिरकत करते हुए नजर आए थे. उसके बाद से कई बार यह दोनों एक साथ देखे जा चुके हैं.

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सूत्रों की माने तो प्रियंका चोपड़ा व निक जोनास हौलीवुड में ‘ब्यूटी एंड बीस्ट’ के लाइव कंर्सट में भी नजर आ चुके हैं. फिर 27 मई 2018 को डोजर्स बेसबाल गेम में एक साथ नजर आए. 28 मई को यह दोनों लौस एंजेल्स के एक रेस्टारेंट में कुछ अन्य दोस्तों के साथ डिनर करते हुए नजर आएं.

मजेदार बात यह है कि प्रियंका चोपड़ा व निक जोनास के एक साथ खुशी के मूड की तस्वीरें निक जानेास व प्रियंका चोपड़ा के अलावा उनके करीबी दोस्त भी लगातार इंस्टाग्राम सहित कई सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं. इससे बौलीवुड में चर्चा गर्म हुई है कि प्रियंका चोपड़ा व निक जोनास के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है. वैसे अभी तक इस मसले पर प्रियंका चोपड़ा या निक जोनास की तरफ से कुछ भी नहीं कहा गया है.

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