जमीन-जायदाद में पैसा लगाना अक्सर फायदेमंद साबित होता है. इनके दाम में गिरावट आने की आशंका कम होती है. लेकिन दूसरी परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए इस बाजार में दांव लगाने से पहले की तैयारी ज्यादा जटिल होती है.

आम तौर पर माना जाता है कि जमीन-जायदाद की कीमत कभी कम नहीं होती. पिछले एक दशक के दौरान प्रॉपर्टी की दाम जिस हिसाब से बढ़े हैं उसे देखकर ये निवेश के आकर्षक साधन नजर आते हैं. लेकिन, इस मामले में अक्सर यह हकीकत भुला दी जाती है कि किसी निवेश से जितना ज्यादा रिटर्न की गुंजाइश होती है, उसमें जोखिम भी उतना ही अधिक होता है.

फिलहाल जमीन-जायदाद और आवास निर्माण कारोबार मुश्किल दौर में है. फ्लैट और प्लॉट के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन इसी हिसाब से लोगों की आमदनी नहीं बढ़ी. इस कारण प्रॉपर्टी की मांग कम हो गई, जिहाजा इसका बिजनेस ठंडा पड़ गया है.

नेशनल हाउसिंग बैंक की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ महानगरों में प्रॉपर्टी के दाम घटे हैं. इसके अलावा गाहे-बगाहे नोएडा में सुपरटेक के टावर जैसे मामले में सामने आते रहते हैं, जिनमें बड़ी-बड़ी कंपनियों के रिहायशी प्रोजेक्ट कानून के पचड़े में फंस गए हैं. ऐसे प्रोजेक्ट में पैसा लगाने वाले खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं. चाहे उन्होंने निवेश के तौर पर दांव लगाया हो या निजी इस्तेमाल के लिए फ्लैट खरीदे हों. इसलिए पैसा लगाने से पहले इसके तमाम पहलूओं पर बारीकी से गौर करना जरूरी है.

पोर्टफोलियो में रियल एस्टेट

हकीकत यही है कि एक या एक से अधिक फ्लैट या फिर ढेर सारे प्लॉट खरीदने से पोर्टफोलियो नहीं बनता. चूंकि पिछले एक दशक के दौरान जमीन-जायदाद में पैसा लगाने वालों को तगड़ा फायदा हुआ है, लिहाजा इस सेक्टर में दांव लगाने वाले नए निवेशकों के लिए पहली जरूरत यह पता लगाना है कि कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला आगे भी जारी रहने की गुंजाइश है या नहीं. इसका सही जवाब मुश्किल है और इस मामले में जो अनुमान लगाए जा रहे हैं, उनका सही होना संदिग्ध है.

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