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शास्त्री और द्रविड़ को लेकर ‘बीसीसीआई’ और ‘सीओए’ में टकराव

आईपीएल में भारतीय क्रिकेट दिग्गजों की कौमेंट्री खास तौर पर पसंद की जाती है. बीसीसीआई की ओर से इस समय आईपीएल प्लेऔफ के कौमेंट्री पैनल में सुनील गावस्कर और संजय मांजरेकर के नाम ही रहे. लेकिन अगले साल दो नए खास नाम और आने की संभावना है जो इस समय राष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख पदों पर मौजूद हैं. लेकिन ये दो नाम आते ही विवाद हो गया और बीसीसीआई और प्रशासकों की समिति (सीओए) आमने सामने आ गए.

हाल ही में जारी एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय क्रिकेट दो प्रमुख कोच रवि शास्त्री और राहुल द्रविड़ को अगले साल आईपीएल कौमेंट्री करने की इजाजत देने के मामले में बीसीसीआई और सीओए के बीच एक बार फिर टकराव हो गई है. कहा जा रहा है कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो अगले साल के आईपीएल में दर्शक इन दोनों दिग्गज को कौमेंट्री करते देख सकते हैं. इस समय टीम इंडिया के लिए रवि शास्त्री मुख्य कोच और राहुल द्रविड़ अंडर 19 टीम के कोच हैं.

उल्लेखनीय है कि बीसीसीआई और सीओए के बीच टकराहट कोई नई बात नहीं हैं. पहले भी ऐसा कई बार हो चुका है कि किसी बात को लेकर दोनों आमने सामने हों. पिछले महीने ही टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली के अफगानिस्तान टेस्ट को छोड़कर काउंटी क्रिकेट को चुनने को लेकर भी दोनों में टकराव हुआ था.

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इस मीडिया रिपोर्ट के अऩुसार सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त की गई प्रशासकों की समिति (सीओए) इस नियम पर पुनर्विचार कर रही है जिसकी शास्त्री और द्रविड़ को कोच रहते आईपीएल में कौमेंट्री करने की इजाजत नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक इस निर्णय से बीसीसीआई अधिकारी हैरत में है, उनका कहना है कि पहले भी ‘हितों का टकराव’ के नियम के तहत पहले दोनों ही कोच को दोहरी भूमिका नहीं दी गई थी क्योंकि दोनों ही राष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख पदों पर हैं.

रिपोर्ट में एक सूत्र के हवाले से कहा गया है कि सीओए का हितों के टकराव के इस नियम पर पुनर्विचार करना, जिसकी वजह से शास्त्री और द्रविड़ को कौमेंट्री करने की इजाजत मिल जाएगी, यह उनका (सीओए का) ओछा व्यवहार दर्शाता है. वे अपने कार्य के प्रति ईमानदार नहीं हैं. और हरएक चीज को पूर्वाग्रह के चश्मे से देखते हैं जिसका परिणाम यह है कि उन्हें बीसीसीआई के प्रशासन की निगरानी करने का काम सौंपा गया है लेकिन उनकी सोच इसके विपरीत है जो उनके कार्यों में बेईमानी को दर्शाता है.

विवादास्पद रहे कुछ निर्णय सीओए के

रिपोर्ट में इस सूत्र ने उदाहरण के तौर पर यह बताया की जब सीओए के प्रमुख विनोद राय का कार्यकाल खत्म हो चुका है तब भी वे क्यों अपनी जिम्मेदारियां निभाए जा रहे हैं. सूत्र ने खास उदाहरण देते हुए बताया “समिति का प्रमुख निर्णय था कि कुछ अधिकारियों को अयोग्य घोषित कर उन्हें कमेटी मीटिंग में भाग लेने तक से मना कर दिया गया था जबकि विशेष तौर पर एन राम को मीटिंग का भाग लेने के लिए कहा गया जबकि उनकी भी उम्र 70 साल से ज्यादा है और इस आधार पर ही उन्हें औफिस जारी रखने के लिए अयोग्य माना गया था. इससे ज्यादा विनोद राय का कार्यों में दोहरापन क्या हो सकता है.

भारतीय जनता पार्टी के दांव पर किरकिरी

कर्नाटक में बहुमत न पा कर भी सत्ता में आ जाने की प्रबल चाह भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई शर्म या नैतिक मूल्य के घटने का मामला नहीं है. हिंदू पौराणिक सोच के अनुसार यह अपनेआप में सही है और हमारे पुराण इस तरह की घटनाओं से भरे पड़े हैं. इन्हीं पुराणों का गुणगान आज भी प्रवचनकर्ता बड़े गर्व से करते हैं.

भाजपा वैसे बड़ेबड़े सपने दिखा रही है पर वह देश को भ्रष्टाचारमुक्त और गरीबीमुक्त कर पाए या न कर पाए, कांग्रेसमुक्त बनाने में एड़ीचोटी का जोर लगा रही है. कर्नाटक में 130 से 150 सीटें हासिल करने की उम्मीद लगाए भाजपा 104 सीटों पर सिमट गई तो कितने ही चैनलों के एंकरों के मुंह जिस तरह लटके रह गए थे उस से साफ है कि भारतीय जनता पार्टी की सोच किस तरह हमारे देश के अमीर, समृद्ध और उच्चवर्ग में गहरे तक बैठी है कि उस की हजार गलतियों को अनदेखा किया जा रहा है.

कांग्रेस में कोई सुरखाब के पर नहीं लगे हैं लेकिन वह देश को जाति व धर्म के नाम पर भाजपा की तरह विभाजित नहीं कर रही. गैरभाजपा पार्टियों को जाति का सवाल भाजपा के हमले से बचाव में उठाना पड़ रहा है. देश के मतदाताओं में बहुमत पिछड़ी व निचली जातियों के मतदाताओं का ही है, इसलिए सभी पार्टियां उन पर डोरे डाल रही हैं. भारतीय जनता पार्टी सब से बड़ी व सक्षम पार्टी होते हुए भी पूरी तरह छा नहीं पा रही. उस की पिछड़ी व निचली जातियों को जोड़ने की कला अब कमजोर हो रही है, क्योंकि पिछड़ी व निचली जातियां अपने साथ हो रहे भेदभाव पर नाराजगी जताने लगी हैं.

कर्नाटक में कांग्रेस को जिन सीटों का नुकसान हुआ है वे असल में पिछले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के विभाजित वोटों के लाभ से मिली थीं.

55 घंटे के मुख्यमंत्री बने बी एस येदियुरप्पा ने तब अलग पार्टी बना कर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. अब चूंकि भ्रष्टाचार के आरोपों में तब हटाए गए येदियुरप्पा अब फिर से शुद्धि पा कर भाजपाई हो गए हैं तो भाजपा ने कांग्रेस से सीटें छीन लीं. 2014 के चुनावों में जो सफलता भाजपा को मिली थी वह अब दोहराई नहीं गई पर भाजपा को आशा थी कि वह कांग्रेस व जनता दल (सैक्युलर) में विभीषणों को ढूंढ़ लेगी और सत्ता पर बनी रहेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

104 सीटें पा कर जनता दल (सैक्युलर) व कांग्रेस के संयुक्त मोरचे की 116 सीटों के मुकाबले कम सीटें मिलने पर भी भाजपा ने गोवा व मणिपुर को दोहराया तो इसलिए कि यहां का उच्चवर्ग इसी बात का समर्थन करता है. सत्ता उस के पास हो जो जन्म से इस का अधिकारी हो. ऐरेगैरों को भला सत्ता कैसे दी जा सकती है.

अफसोस यह है कि कांग्रेस और जनता दल (सैक्युलर) का एक भी विधायक भाजपा के साथ जुड़ने को तैयार नहीं हुआ और येदियुरप्पा 55 घंटे मुख्यमंत्री बने रहने के बाद चलते बने. भाजपा चुप नहीं बैठेगी, यह पक्का है. पर उस की अलग पार्टी की छवि गोवा, मणिपुर के बाद अब ध्वस्त हो गई है. फिर भी, ‘जो राजा उसी का बजेगा बाजा,’ पुरानी मगर सही कहावत है.

पढ़ाई के लिए जब जाना हो विदेश

बढ़ते वैश्वीकरण ने बाजार के लगभग हर उत्पाद व सेवा को ग्लोबल कर दिया है. शिक्षाजगत भी इस से अछूता नहीं है. लिहाजा, आज स्टूडैंट्स अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं. विदेश जा कर पढ़ाई करने का चलन पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल करीब 43 लाख स्टूडैंट्स अपना देश छोड़ कर किसी दूसरे देश पढ़ने जा रहे हैं. वैसे तो भारत में 400 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं जहां वे पढ़ सकते हैं, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मामले में हमारे यहां आईआईटी और आईआईएम जैसे चंद शिक्षण संस्थान ही हैं जो विश्वस्तरीय सूची में शामिल हैं, बाकी शिक्षा के व्यावसायीकरण में मोटी कमाई करने में जुटे हैं.

यही वजह है कि आज भारतीय छात्र अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के नामचीन शिक्षा संस्थानों में पढ़ने के लिए न सिर्फ अच्छाखासा रुपया खर्च करने को तैयार दिखते हैं, बल्कि घर से दूर रहने से भी नहीं हिचकते. अमेरिका के इंस्टिट्यूट औफ इंटरनैशनल एजुकेशन से जुड़े डैनियल ओब्स्ट के मुताबिक, वैश्वीकरण के इस दौर में कामयाबी के लिए हर छात्र को विदेश में पढ़ाई करनी चाहिए. इस से वह अलग भाषा और संस्कृति वाले लोगों से तालमेल बिठाना सीखेगा और मल्टीनैशनल कंपनियों में काम करना उस के लिए आसान होगा. हालांकि यह आसान काम नहीं है.

विदेश में रहना, वहां के विश्वविद्यालयों की फीस भरना, किताबों की कीमत, वीजापासपोर्ट और ट्रैवल का खर्च आदि कई बातें हैं जिन पर सोचे बिना विदेशों में पढ़ाई का सपना पूरा नहीं होता. इसलिए यदि आप भी विदेश में पढ़ाई करने की सोच रहे हैं तो कुछ बातों और तैयारियों से दोचार हो लें :

क्या पढ़ना चाहते हैं?

आप किस सब्जैक्ट या बीट या कोर्स के लिए विदेशी कालेज में दाखिला लेना चाहते हैं, यह सब से पहले तय कर लें. संबंधित कोर्स के बारे में पूरी रिसर्च करें. हो सके तो जो प्रोफैसर या जानकार विदेश से पढ़ कर या काम कर के आए हैं, उन से गाइडैंस ले लें. विदेश में पढ़ने के तमाम तरह के प्रोग्राम होते हैं. कई बार अलगअलग देशों में सेमेस्टर या कोर्स की अवधि भी अलग होती है और कुछ कोर्स अंगरेजी में होते हैं. कई संस्थान एकसाथ 2-2 डिगरियों की पढ़ाई की इजाजत भी देते हैं. आप जो भी कोर्स करना चाहते हैं, उन कोर्सेस की भविष्य में कहांकहां व किस स्तर की मान्यता है, शौर्टटर्म है या फुलटाइम आदि जरूरी बातों का पता कर के देश और संबंधित संस्थानों के बारे में सर्च करें. संबंधित संस्थान की प्लेसमैंट रिपोर्ट, उस की रैपुटेशन कैसी है आदि जानकारियां आजकल इंटरनैट के जरिए मालूम की जा सकती हैं.

बजट, स्कौलरशिप और लोन

अब बात आती है खर्च की. किसी भी कोर्स को चुनने से पहले अनुमान लगा लें कि आप विदेश में पढ़ाई पर कितना खर्च वहन कर सकते हैं. विदेशों में पढ़ाई के लिए सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों के विकल्प होते हैं. हर कालेज या यूनिवर्सिटी की ट्यूशन फीस भी अलगअलग होती है. इस के अलावा हर देश में रहने और खानेपीने का खर्च अलगअलग होता है. इसलिए देश तथा संस्थान चुनते वक्त आप को अपने बजट का भी ध्यान रखना होगा. वैसे तो विदेश में पढ़ाई महंगी पड़ती है, लेकिन स्कौलरशिप इस के लिए सब से बेहतर विकल्प है. कई निजी और सरकारी और्गनाइजेशंस की ओर से भी आप को विदेश में पढ़ने का मौका मिल सकता है, लेकिन यह सिर्फ योग्य छात्रों को ही मिलता है. ऐसे बहुत से देश (जरमनी, फिनलैंड, नौर्वे, ब्राजील, स्लोवेनिया और स्वीडन) हैं, जिन के कुछ विश्वविद्यालय विदेशी छात्रों की डिगरी, उन की स्कौलरशिप व काबिलीयत को देख कर उन का खर्च उठाने के लिए तैयार रहते हैं.

कुछ स्कौलरशिप्स में ट्यूशन फीस का कुछ हिस्सा कवर होता है, जबकि कई में पूरी फीस शामिल होती है. जितना हिस्सा स्कौलरशिप से मिल जाए, उस के बाद बची रकम अभिभावक या बैंक लोन से पूरी की जा सकती है. अगर आप अपनी लोकल यूनिवर्सिटी के किसी प्रोग्राम के तहत जा रहे हैं, तो आप को लोकल यूनिवर्सिटी की फीस देनी होगी. साथ ही, विदेश में पढ़ने का खर्च भी उठाना होगा.

हर देश में पढ़ाई का खर्च अलगअलग होता है. आमतौर पर अमेरिका के मुकाबले यूरोप में पढ़ाई सस्ती है. अगर आप लंदन में रह कर पढ़ते हैं, तो आप का रहनेखाने का खर्च ज्यादा आएगा. इस के मुकाबले मैनचेस्टर में पढ़ाई सस्ती होगी. अमूमन अमेरिका में पढ़ाई का खर्च सालाना 25 से 50 लाख रुपए आ सकता है. हालांकि, दूसरे कई देशों में यह सस्ता है.

इंटरनैशनल स्टडीज के मामले में काउंसलिंग सैशन का खर्च प्रति सैशन 5,000 रुपए आ सकता है और औल इनक्लूसिव पैकेज की बात करें तो यह 75,000 से 10 लाख रुपए के बीच आता है. इस के अलावा एजुकेशन लोन भी एक विकल्प है. हालांकि शिक्षा के लिए लोन पर ब्याजदर अपेक्षाकृत कम होती है फिर भी इस से बचना चाहिए. यदि पेरैंट्स ने पहले से आप के लिए कोई एजुकेशन पौलिसी या बचत कर रखी है तो यह सब से अच्छा है.

वीजा की तैयारी

विदेश जाने के लिए सब से जरूरी है वीजा. कई स्टूडैंट्स अधूरी तैयारी की वजह से विदेश नहीं  जा पाते हैं. गौरतलब है कि विदेश जाने के लिए छात्र को 1-20 वीजा की जरूरत होती है. इस के लिए आप के पास संबंधित संस्थान से प्राप्त एफ -1 फौर्म होना जरूरी है. इस के बाद वीजा फौर्म को बिना किसी गलती के सावधानी से भरें. हर बात स्पष्ट हो. नोट में पूरे विश्वास के साथ बताएं कि आप वहां पढ़ाई करने जा रहे हैं. इस के साथ जीआरई, जीमैट और टौफेल जैसे टैस्ट की मूल प्रतियां तैयार रखें.

क्या करें और क्या नहीं

विदेश पहुंच गए तो यह न सोचें कि अब सब काम अपनेआप हो जाएंगे. कुछ बातें हैं जिन को वहां पहुंचते ही समझ लेना चाहिए, मसलन आप के देश का दूतावास कहां है, वहां का फोन नंबर आदि. वहां की भाषा की बेसिक समझ के लिए डिक्शनरी रखें.

वहां पहुंचते ही घूमने के चक्कर में अपना पढ़ाई का समय न गंवाएं. जाते ही लोकल बैंक में अपना खाता खुलवा लें. वहीं इमरजैंसी नंबर्स जैसे पुलिस, फायर ब्रिगेड व अन्य सेवाओं के संपर्क नंबर पता कर लें. आत्मविश्वास से लबरेज रहें.

अलग देश और अलग भाषा वाले लोगों से तालमेल बिठाना, अपनी दिक्कतों का हल खोजना आदि सीखें. वहां की भाषा, संस्कृति, खानपान के बारे में जानें. इस से ग्लोबल सिटिजन बनने में आसानी होगी. बहुत से बच्चे तो विदेश पढ़ने ऐसे जाते हैं जैसे छुट्टियों में घूमने जा रहे हों. ऐसा सोचना पैसे और वक्त दोनों की बरबादी होगी. यह गलती न करें. विदेशों में किसी कोर्स से जुड़ने के बाद पर्सनल से ले कर प्रोफैशनल स्तर तक आप का पूरा मेकओवर हो जाता है. बाहर जा कर आप अपनी जिम्मेदारियों से पहले से ज्यादा वाकिफ होते हैं.

कुल मिला कर विदेश में पढ़ाई को हौआ न मानें. हर जगह अच्छे और बुरे संस्थान होते हैं. इसलिए किसी के कहने या देखादेखी विदेश जाना ठीक नहीं है. यदि आप को लगता है कि संबंधित कोर्स विदेश जा कर अच्छे से पढ़ा जा सकता है और उस से रोजगारपरक संभावना बढ़ती है तो ही जाएं. वरना विदेश से पढ़ कर आने से अच्छी नौकरी मिल जाएगी, इस की गारंटी नहीं है. अपना बजट, घरेलू स्थितियां और संबंधित देश के मौजूदा सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक हाल देख कर ही वहां पढ़ाई करने के लिए जाने की सोचें.

नीट नहीं रहा नीट, परीक्षा में दिख रही है धांधली व रिश्वतखोरी

6 मई, 2018 को नैशनल एलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट यानी नीट में शामिल हुए देशभर के कोई 13 लाख 36 हजार छात्रों ने चैन की सांस ली, क्योंकि यह अहम परीक्षा किसी अड़चन यानी बिना पेपर लीक हुए हो गई, नहीं तो छात्र नीट की विश्वसनीयता और गोपनीयता को ले कर बेवजह शंकित नहीं थे. इस साल इस परीक्षा के जरिए 66 हजार युवाओं का डाक्टर बनने का सपना पूरा होगा.

छात्रों का डर और चिंता अपनी जगह वाजिब थे क्योंकि साल की शुरुआत प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से ठीक नहीं रही थी. अलगअलग परीक्षाओं सहित सीबीएसई तक के पेपर लीक होने से प्रतिभागियों और छात्रों के मन में खटका था कि कहीं उन की मेहनत और भविष्य पर भी लीक का ग्रहण न लग जाए. वजह, बीते 2 मार्च को होली के दिन जब पूरे देश में रंगगुलाल उड़ रहा था तब दिल्ली में कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) के कार्यालय के बाहर लगभग 2 हजार छात्र धरनाप्रदर्शन कर रहे थे. दिल्ली और आसपास के राज्यों से इकट्ठा हुए इन छात्रों का यह आरोप गंभीर था कि बीती 17 से 21 फरवरी तक एसएससी द्वारा आयोजित टियर टू की परीक्षा में भारी धांधलियां की गई हैं.

ये धांधलियां वैसी ही थीं जैसी कि आमतौर पर देश की प्रतियोगी परीक्षाओं में होती हैं. मसलन, 21 फरवरी को गणित का पेपर दोपहर साढ़े 12 बजे से था, लगभग 15 मिनट बाद परीक्षा रोक दी गई. अनधिकृत या मौखिक रूप से यह बताया गया कि यह पेपर लीक हो चुका है. फिर 15 मिनट बाद प्रश्नपत्र का दूसरा सैट दे कर परीक्षा शुरू करवाई गई.  पेपर पूरा हो जाने के बाद छात्रों को बताया गया कि अब गणित का पेपर 9 मार्च को होगा.

पेपर रद्द क्यों हुआ, इसे ले कर हुई गफलत अभी तक बरकरार है. एक उम्मीदवार रीतेश गुप्ता का कहना था कि परीक्षा शुरू होने के कुछ देर बाद ही गणित के पेपर का स्क्रीन शौट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. उलट इस के एसएससी के अधिकारियों की मासूमियतभरी दलील यह थी कि तकनीकी कारणों के चलते पेपर रद्द किया गया. इन कथित तकनीकी कारणों का खुलासा शायद ही सीबीआई जांच के बाद हो पाए.

लेकिन बात इतनी भर नहीं थी.  उम्मीदवारों का स्पष्ट आरोप यह भी था कि एसएससी की परीक्षाओं में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़े और धांधलियों का रैकेट चल रहा है. हरेक नौकरी की कीमत तय है.

पूछने पर उम्मीदवारों ने दरें भी गिना दीं कि एग्जामिनर के पद के लिए 40 लाख रुपए, इनकम टैक्स विभाग के लिए 35 लाख रुपए, सब इंस्पैक्टर के लिए 25 लाख रुपए और क्लर्क के लिए 8 लाख रुपए का रेट चल रहा है.

उम्मीदवारों का प्रदर्शन 26 फरवरी से ही शुरू हो गया था. धीरेधीरे दूसरे राज्यों से भी उम्मीदवार आने लगे. इस से पहले उम्मीदवारों ने अपने आरोपों के प्रमाण एसएससी के अधिकारियों को सौंपे थे.  इस पर एसएससी के चेयरमैन असीम खुराना ने झल्लाते हुए कहा था कि उन्हें मिली जानकारी के मुताबिक, कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूट इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं. उन्होंने अनजान बनते यह भी कहा कि अगर छात्रों के पास कोई सुबूत है तो वे उन्हें पेश करें.

छात्र यानी उम्मीदवार सुबूत पेश कर चुके थे और यह कहने लगे थे कि आरोपों की सीबीआई जांच कराई जाए, वरना वे धरनाप्रदर्शन बंद नहीं करेंगे.  फिर भी ऐसा लग नहीं रहा था कि उम्मीदवारों की सुनवाई कोई करेगा.  लेकिन जब स्वराज इंडिया के मुखिया योगेंद्र यादव उम्मीदवारों से मिले और इस के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उम्मीदवारों की मांगों का समर्थन किया तो सियासी सुगबुगाहट शुरू हो गई.

सालोंसाल चलती जांच

मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे ने भी इन उम्मीदवारों की मांगों का समर्थन किया तो चौकन्नी हो चली भाजपा को लगा कि कहीं ऐसा न हो कि देखते ही देखते देशभर के लाखों उम्मीदवार, जो  परीक्षा में शामिल हुए थे, इस आंदोलन में शामिल हो जाएं. दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने प्रदर्शनकारी छात्रों से मुलाकात की और उन्हें गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलवाया. राजनाथ सिंह ने तुरंत सीबीआई जांच के आदेश दे दिए, तब कहीं जा कर 6 मार्च को उम्मीदवार अपने घरों को लौटे थे.

अपने भविष्य के प्रति चिंतित इन छात्रों को जाहिर है कतई अंदाजा नहीं कि सीबीआई जांच कोई अलादीन का चिराग नहीं होती, उलटे, यह बीरबल की खिचड़ी है जो सालोंसाल पकती रहती है.  इंसाफ की आस लगाए बैठे उम्मीदवारों के बालों में सफेदी आने लगती है, लेकिन सीबीआई जांच पूरी नहीं होती.  इस का बेहतर उदाहरण मध्य प्रदेश का व्यापमं महाघोटाला है जिस की सीबीआई जांच कछुए की चाल को भी मात कर रही है. व्यापमं महाघोटाले के सीबीआई के हाथ में आने के बाद इतना जरूर हुआ कि घोटाले के कई दिग्गज आरोपियों को एकएक कर जमानत मिल गई और वे खुली हवा में चैन की सांस लेते सुकूनभरी जिंदगी गुजार रहे हैं.

नीट पर शक क्यों

एसएससी परीक्षा में पेपर लीक हुए थे और पद भी बिके थे, इस की सीबीआई जांच जब तक चलेगी तब तक नतीजों के कोई माने नहीं रहेंगे. फिर छात्रों के भविष्य का क्या होगा, यह बताने को कोई तैयार नहीं.

दरअसल, सच यह है कि देशभर की प्रवेश और प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता और गोपनीयता एक बार फिर शक के दायरे में आ गई है जिस की किसी भी जांच के नतीजे कुछ भी आएं, नुकसान युवाओं का ही होना है जिन की आंखों में सरकारी नौकरी के सपने हैं.  इन सपनों को पंख नहीं लगते, बल्कि भ्रष्टाचार, धांधलियों और नीलामी का ग्रहण लगता है. और ये बेचारे टुकुरटुकुर देखते रह जाते हैं कि यह आखिर क्या हो रहा है.

सीबीएसई द्वारा आयोजित की जाने वाली ऐसी ही एक अहम परीक्षा नीट (राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा) 6 मई को को चुकी है. साल 2013 से नीट आयोजित हो रही है जिसे कराने के पीछे सरकार का मकसद यह था कि इस से भ्रष्टाचार मिटेगा, पारदर्शिता आएगी और फर्जीवाड़ा खत्म हो जाएगा.

ये बातें अब कहनेसुनने में भी भली नहीं लगतीं. वजह, नीट का हाल भी एसएससी जैसा होना शुरू हो गया है.  पिछले साल अक्तूबर में दिल्ली क्राइम ब्रांच ने पटना मैडिकल कालेज हौस्पिटल (पीएमसीएच) में छापामारी करते 32 वर्षीय डाक्टर जौन मेहता उर्फ राजीव रंजन को गिरफ्तार किया था.

दरअसल, यह डाक्टर उस गिरोह का मास्टरमाइंड था जो नीट में सैटिंग के खेल के लिए मशहूर है. यह शख्स बिहार के मधेपुरा जिले के गांव तुलसिया का रहने वाला है जो बिहारीगंज थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है. साल 2009 में डाक्टर जौन को पीएमसीएच में एमबीबीएस में प्रवेश मिला था और साल 2017 की पीजी परीक्षा में वह अपने बैच का टौपर था. पढ़ाई के बाद वह इसी संस्थान में रेडियोलौजी विभाग में बहैसियत जूनियर डाक्टर नौकरी करने लगा था

नीट का यह घोटाला या फर्जीवाड़ा एक तरह से व्यापमं महाघोटाले की तरह ही था. एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डाक्टर जौन साल्वर गैंग्स से सांठगांठ करने लगा था. दिल्ली क्राइम ब्रांच मान चुकी है कि वह पिछले 2 वर्षों से नीट की औनलाइन परीक्षा में सौफ्टवेयर हैक कर रहा था. उस पर दूसरे राज्यों में भी मुकदमे दर्ज हैं. पोस्टग्रेजुएट परीक्षा में सफलता दिलाने के लिए वह प्रतिछात्र 50 लाख रुपए से ले कर

1 करोड़ रुपए तक लेता था. इस सौदेबाजी में गिरोह से जुड़े दूसरे लोगों को भी हिस्सा जाता था. इस के बाद भी डाक्टर जौन को लगभग 25 लाख रुपए प्रतिछात्र मिल जाते थे.

जब धांधली का शक और शिकायतें हुईं तो जांच शुरू हुई. गिरफ्तारी के बाद इस आरोपी ने अपने गिरोह में शामिल कुछ डाक्टर्स के अलावा उन छात्रों के नाम भी बताए थे जिन्होंने सैटिंग के जरिए मैडिकल कालेजों में दाखिला लिया था.  डाक्टर जौन के बाद 22 और आरोपी गिरफ्तार किए गए थे, जिन में साल्वर गैंग का सरगना, सौफ्टवेयर हैकर, इंजीनियर और औपरेटर शामिल थे.

नीट परीक्षा पर ग्रहण लगाते इस गिरोह में शामिल लोग कौन और कैसे थे, इस का पुलिस पूरी तरह खुलासा जब करेगी तब करेगी, लेकिन यह साफ दिख रहा है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए हाड़तोड़ मेहनत करने वाले और पैसा खर्च करने वाले उम्मीदवार बेफिक्र हो कर अपनी काबिलीयत के बलबूते पर डाक्टर बनने का सपना पूरा नहीं कर सकते, क्योंकि देशभर में फर्जीवाड़ा होना आम बात है. कोई भी नियमकानून वजूद में आता नहीं कि उस का तोड़ अपराधी निकाल लेते हैं.

नीट की परीक्षा अब शुद्ध नहीं रह गई है, इस का एक उदाहरण पिछले साल मई में जयपुर से भी मिला था. डाक्टर जौन तो सौफ्टवेयर हैक कर धोखाधड़ी करता था, लेकिन जयपुर में खुलेआम नीट के पेपर बिके थे. आरोपियों के नाम विक्रम सिंह, विकास कुमार सिन्हा, भूपेश कुमार शर्मा, दिशांक उर्फ राहुल मलिक और आलोक गुप्ता थे.

इन पांचों ने कुछ छात्रों को 5-5 लाख रुपए में नीट के प्रश्नपत्र उपलब्ध कराए थे, वह भी व्यापमं की तर्ज पर कि खरीदारों को पहले तयशुदा स्थान पर परीक्षा की रात बुलवाया गया और फिर उन्हें सीधे परीक्षा केंद्रों पर छोड़ा गया.

एटीएस की टीम ने इन में से 2 को दिल्ली और 3 को जयपुर से गिरफ्तार किया था. कथित रूप से ही सही, नीट के भी पेपर बिके थे, इस से परीक्षार्थियों में निराशा आनी स्वाभाविक बात थी. यह निराशा उस वक्त गहरा गई जब व्यापमं महाघोटाले की राजधानी भोपाल से सैकड़ों उम्मीदवारों द्वारा फर्जी मूलनिवास प्रमाणपत्र 2-2 राज्यों से बनवाने की बात सामने आई थी.

गौरतलब है कि नीट की परीक्षा से 85 फीसदी सीटें राज्यों के मूल निवासियों से भरी जाती हैं. ये सीटें राज्य कोटे की कहलाती हैं. बाकी बची 15 फीसदी सीटें औल इंडिया कोटे से भरी जाती हैं. 2-2 राज्यों के मूल निवास प्रमाणपत्र बनवा कर कई छात्र मध्य प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों से भी राज्य कोटे की सीट के पात्र हो गए जिस से वहां के मूल निवासियों का हक मारा गया. इस मामले की भी जांच अभी चल रही है.

जाहिर है नीट परीक्षा भी बेदाग नहीं रह गई है जो दूसरे कई तरीकों से भी छात्रों का नुकसान करती है. इन नुकसानों का आकलन कोई नहीं करता कि  असफल रहे 95 फीसदी छात्रों की हालत बाद में क्या होती है.

सुनहरे वक्त की बरबादी

भोपाल का 26 वर्षीय अविनाश रायजादा (बदला नाम) गहरे अवसाद से ग्रस्त है जिस का इलाज एक नामी मनोचिकित्सक के यहां चल रहा है.

अविनाश साल 2015 से नीट की परीक्षा दे रहा था, लेकिन सफल नहीं हुआ. उस ने मन लगा कर इस प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की थी और एक नहीं, बल्कि 3-3 कोचिंग इंस्टिट्यूट से कोचिंग भी ली थी. उस के सिर पर डाक्टर बनने की धुन इस कदर सवार थी कि वह बाकी दुनिया और घटनाओं से कट गया था. 8 घंटे सोने के अलावा वह पूरा वक्त परीक्षा की तैयारी में बिता रहा था. उसे उम्मीद थी कि मेहनत रंग लाएगी.

लेकिन 2017 में भी उस का चयन मैडिकल के लिए नहीं हुआ तो वह भीतर तक टूट गया. प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने को वह अपना नकारापन मानने लगा था और  उसे लगने लगा था कि अब वह किसी काम का नहीं रह गया है. राजनीति में क्या हो रहा है, क्रिकेट में कौन सी स्पर्धा  चल रही है, पड़ोस में कौन से नए अंकलआंटी आ गए हैं और बाजार में कौन से नए गैजेट्स आए हैं, यह तक उसे नहीं मालूम था. एक पढ़ाई के अलावा बाकी सभी बातों से उस की दिलचस्पी खत्म हो गई थी.

ऐसे में उस का अवसादग्रस्त होना स्वाभाविक बात थी, जिस की जिम्मेदार वह प्रतियोगी परीक्षा थी जिसे वह सबकुछ मान बैठा था. जैसेतैसे बीएससी तो उस ने कर ली थी पर एमएससी की पढ़ाई करने की उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. बीएससी बायोलौजी से पास युवक को कहीं नौकरी नहीं मिलती, यह बात जब उस के दिलोदिमाग में घर कर गई तो मांबाप के लिए खासी परेशानी उठ खड़ी हुई. इधर, उस का छोटा भाई मनीष जिंदगी के सब रंगों में जीता एमबीए कर पुणे में एक नामी कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी करने लगा था.

मम्मीपापा और छोटे भाई ने तरहतरह से समझाया कि हारजीत और फेलपास वगैरह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. लेकिन स्वेट मार्डेन छाप इस समझाइश का अविनाश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. उलटे, वह पहले से ज्यादा एकांत में रहने लगा. न किसी से मिलना और न ही उम्र के हिसाब से कोई शौक होना चिंता की बात थी. मांबाप डरने लगे थे कि इस हालत के चलते वह कोई आत्मघाती कदम न उठा बैठे.

यह ठीक है कि अविनाश बहुत गहरे अवसाद में है, लेकिन इस से कम अवसाद में हर वह छात्र होता है जो खुद को प्रतियोगी परीक्षाओं में झोंक देता है.  जिंदगी की अनगिनत रंगीनियों से इन युवाओं को कोई सरोकार नहीं रह जाता, उन का बस एक ही मकसद होता है कैसे भी हो, कंपीटिशन का महाभारत जीतो.  यह तो 3-4 वर्षों बाद पता चलता है कि वे इस महाभारत के अर्जुन नहीं बन पाए, बल्कि अभिमन्यु बन कर ही चक्रव्यूह  में घिरे हुए हैं.

जवानी के 4-5 साल एक धुन या सनक में जीते ये युवा फिर किसी दूसरे क्षेत्र में जाने की बात नहीं सोच पाते, क्योंकि उन की हिम्मत टूट चुकी होती है और उन की पूरी ऊर्जा प्रतियोगी परीक्षा नाम की जोंक चूस चुकी होती है.

तेजी से बढ़ती युवाओं की यह भीड़ चिंता का विषय है. नीट में उलझे छात्रों का शक बेवजह नहीं है कि इस में नंबरों की खरीदफरोख्त होगी. यहां भी एसएससी जैसे सीटों की नीलामी होगी.  नीट की परीक्षा दे रहे छात्रों की जिंदगी तो 4 ऐसे विषयों में उलझ कर रह जाती है जिन का व्यावहारिक जिंदगी से कोई वास्ता नहीं रहता.

फिर औचित्य क्या

नीट से जुड़ी खबरों को बड़े चाव से पढ़ा जाता है. हर साल नीट के नियमों में बदलावों का ढिंढोरा संविधान के संशोधनों की तरह पीटा जाता है. मसलन, अब 25 साल तक की उम्र के युवा ही नीट की परीक्षा दे पाएंगे. नीट अब उर्दू में भी होगी और विदेश डाक्टरी पढ़ने जाने वाले छात्रों को भी नीट पास करनी होगी. इन खबरों का छात्रों के भविष्य या चयन से कोई बहुत महत्त्वपूर्ण संबंध नहीं है.

अब छात्र नीट की परीक्षा असीमित बार दे सकते हैं, हालांकि नए नियमों से छात्रों का कोई भला नहीं होता. इसे तकनीकी तौर पर देखें तो रायपुर मैनिट के एक प्राध्यापक के इस तर्क में दम है कि यह राजस्व की लड़ाई है जो पहले राज्य सरकार को जाता था, अब केंद्र सरकार उसे समेट रही है.

हास्यास्पद बात तो यह भी है कि डाक्टर बन जाना अब एक झूठी शान की बात भर रह गई है. इस पेशे में भी कैरियर या सुनहरे भविष्य की कोई गारंटी नहीं रह गई है. भोपाल के शाहपुरा इलाके के एक नामी नर्सिंगहोम में कार्यरत आदिवासी बाहुल्य जिले बैतूल के एक डाक्टर का कहना है कि वे पिछले 8 वर्षों से औसतन 40 हजार रुपए की पगार पर नौकरी कर रहे हैं और नौकरी के नाम पर उन्हें अधिकतर रात की ड्यूटी करनी पड़ती है. इस डाक्टर के मुताबिक, चिकित्सा व्यवसाय अब मगरमच्छों के हाथों में है.

ऐसी परीक्षा, जिस में विश्वसनीयता और गोपनीयता की गारंटी न हो, का आयोजन क्यों? एक छात्र सालभर में लाखों रुपए इस पर खर्चता है, जिंदगी का खूबसूरत व हसीन वक्त जाया करता है और असफल हो जाने पर किसी काम का नहीं रह जाता. सफल होने पर भी भविष्य की गारंटी नहीं होती तो फिर नीट की औचित्यता पर सोचा जाना जरूरी है.

यह रिजल्ट आखिरी तो नहीं

परीक्षाओं का दौर खत्म होने के बाद छात्रों को कुछ दिनों की राहत तो मिलती है पर साथ ही रिजल्ट का अनचाहा दबाव बढ़ने लगता है. बच्चे भले ही हम से न कहें पर उन्हें दिनरात अपने रिजल्ट की चिंता सताती रहती है. बोर्ड एग्जाम्स को तो हमारे यहां हौआ से कम नहीं माना जाता, जबकि यह इतना गंभीर नहीं होता जितना हम इसे बना देते हैं.

आजकल तो छोटी क्लास के बच्चों पर भी रिजल्ट का दबाव रहता है और इस दबाव की वजह सिर्फ और सिर्फ उन के पेरैंट्स होते हैं. ज्यादातर पेरैंट्स बच्चों के रिजल्ट को अपने मानसम्मान और प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखते हैं. यही वजह है कि वे खुद तो तनाव में रहते हैं, बच्चों को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तनाव का शिकार बना देते हैं.

छात्रों पर बढ़ता दबाव

एग्जाम्स के रिजल्ट आने से पहले ही छात्रों के मनमस्तिष्क पर अपने रिजल्ट को ले कर दबाव पड़ने लगता है. एक तो स्वयं की उच्च महत्त्वाकांक्षा और उस पर प्रतिस्पर्धा का दौर छात्रों के लिए कष्टकारक होता है.

वैसे तो छात्रों को पता होता है कि उन के पेपर कैसे हुए और अमूमन रिजल्ट के बारे में उन्हें पहले से ही पता होता है, इसीलिए कुछ छात्र तो निश्ंिचत रहते हैं पर कुछ को इस बात का भय सताता रहता है कि रिजल्ट खराब आने पर वे अपने पेरैंट्स का सामना कैसे करेंगे.

आत्महत्याएं चिंता का विषय

प्रतिस्पर्धा के दौर में सब से आगे रहने की महत्त्वाकांक्षा और इस महत्त्वाकांक्षा का पूरा न हो पाना छात्रों को अवसाद की तरफ धकेल देता है, जिस पर पेरैंट्स हर वक्त उन की पढ़ाई पर किए जाने वाले खर्च की दुहाई देते हुए उन पर लगातार दबाव डालते रहते हैं. इस से कभीकभी छात्र यह सोच कर हीनभावना के शिकार हो जाते हैं कि वे अपने पेरैंट्स की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके. यही वजह कभीकभी उन्हें अवसाद के दलदल में धकेल देती है और वे नासमझी में आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं.

पेरैंट्स के पास सिवा पछतावे के कुछ नहीं बचता. ऐसे में उन्हें यह विचार सताने लगता है कि काश, उन्होंने समय रहते अपने बच्चे की कद्र की होती. जिसे इतने अरमानों से पालापोसा, बड़ा किया वह उन के कंधों पर दुख का बोझ छोड़ कर चला गया. पिछले 15 सालों में 34,525 छात्रों ने केवल अनुत्तीर्ण होने की वजह से आत्महत्या की. ये आंकड़े सच में निराशाजनक और चिंतनीय हैं जिन पर सभी को विचार करने की जरूरत है.

बच्चों के साथ फ्रैंडली रहें

पेरैंट्स यदि बच्चों के साथ ज्यादातर सख्ती से पेश आएंगे तो बच्चे उन्हें अपने मन की बात नहीं बताएंगे. अगर वे रिजल्ट को ले कर तनाव में हैं तो भी डर के कारण नहीं बता पाएंगे. बच्चों के साथ आप का दोस्ताना व्यवहार उन्हें आप के नजदीक लाएगा और वे खुल कर आप से बात करना सीखेंगे. इस से न केवल वे तनावमुक्त रहेंगे बल्कि उन का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. उन्हें इस एहसास के साथ जीने दें कि चाहे जो भी रिजल्ट आए, पेरैंट्स उन के दोस्त के रूप में उन के साथ हैं.

तुम हमारे लिए सब से कीमती

बच्चों को इस बात का एहसास कराएं कि इस दुनिया में आप के लिए सब से कीमती वे हैं न कि बच्चों का रिजल्ट. अपने मानसम्मान को बच्चों के कंधों का बोझ न बनाएं. बच्चों के सब से पहले काउंसलर उन के पेरैंट्स ही होते हैं. यदि वे उन्हें नहीं समझेंगे तो हो सकता है बच्चे अवसाद के शिकार हो जाएं. उन्हें यह एहसास दिलाना होगा कि कोई भी परिणाम हमारे लिए तुम्हारी सलामती से बढ़ कर नहीं है.

मनोवैज्ञानिक और काउंसलर अब्दुल माबूद कहते हैं, ‘‘यह काफी नाजुक दौर होता है, बच्चों को उन की जिंदगी की कीमत समझाना अभिभावकों का पहला काम होना चाहिए.’’ शिक्षा को अहमियत देना गलत नहीं है लेकिन शिक्षा व परीक्षा के नाम व्यक्तिगत जिंदगी से सबकुछ खत्म कर लेना और उसे ही जीवन का अंतिम सत्य मान लेना खुद को कष्ट पहुंचाना ही है. अगर जीवन के हर भाव व पहलुओं का आनंद लेना है तो बच्चों की खुशी का भी ख्याल रखना होगा.

रिजल्ट के दिनों में पैरेंट्स के लिए बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखना बेहद जरूरी है. यह देखें कि कहीं वे गुमसुम या परेशान तो नहीं, ठीक से खाना खाते हैं या नहीं, जीवन के बारे में निराशावादी तो नहीं हो रहे हैं. इस समय पेरैंट्स को धैर्य का परिचय दे कर बच्चों के लिए संबल बनना चाहिए, न कि उन पर दबाव डालना चाहिए. उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि उन का रिजल्ट चाहे जैसा रहे, उन के पेरैंट्स हमेशा उन के साथ हैं.

जीवन चलने का नाम है. एक बार गिर कर दोबारा उठा जा सकता है. जीवन में न जाने कितनी परीक्षाएं आतीजाती रहेंगी. उठो, चलो और आगे बढ़ो. अपनी क्षमताओं को पहचानो.

दुनिया ऐसे उदाहरणों से भरी पड़ी है जिन में बचपन में पढ़ाई में कमजोर रहे छात्रों ने बाद में सफलता के कई नए रिकौर्ड कायम किए हैं, आविष्कार किए हैं. यह परीक्षा जीवन की आखिरी परीक्षा नहीं है. जीवन चुनौतियों का नाम है. फेल होने का मतलब जिंदगी का अंत नहीं होता. इंसान वह है जो अपनी गलतियों से सीख कर आगे बढ़े.

जानिए रिश्तों की जीवंतता के लिए करें कौन सा इन्वैस्टमैंट

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य की जिंदगी आत्मकेंद्रित हो कर रह गई है, संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है, कामकाजी दंपती अवकाश में नातेरिश्तेदारों के यहां जाने के बजाय घूमने जाना अधिक पसंद करते हैं. इस का दुष्परिणाम यह होता है कि उन के बच्चे नानानानी, दादादादी, चाचा, ताऊ, बूआ जैसे महत्त्वपूर्ण और निजी रिश्तों से अपरिचित ही रह जाते हैं. यह कटु सत्य है कि इंसान कितना ही पैसा कमा ले, कितना ही घूम ले परिवार और मित्रों के बिना हर खुशी अधूरी है. मातापिता, भाईबहन, दोस्तों की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. इसीलिए रिश्तों को सहेज कर रखना बेहद आवश्यक है.

जिस प्रकार अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हम धन का इन्वैस्टमैंट करते हैं उसी प्रकार रिश्तेनातों की जीवंतता बनाए रखने के लिए भी समय, प्यार, परस्पर आवागमन और मेलमिलाप का इन्वैस्टमैंट करना बहुत आवश्यक है. इन के अभाव में कितने ही करीबी रिश्ते क्यों न हों एक न एक दिन अपनी अंतिम सांसें गिनने ही लगते हैं, क्योंकि निर्जीव से चाकू का ही यदि लंबे समय तक प्रयोग न किया जाए तो वह अपनी धार का पैनापन खो देता है. फिर रिश्ते तो जीवित लोगों से होते हैं. यदि उन का पैनापन बनाए रखना है तो सहेजने का प्रयास तो करना ही होगा.

परस्पर आवागमन बेहद जरूरी

रेणु और उस की इकलौती बहन ने तय कर रखा है कि कैसी भी स्थिति हो वे साल में कम से कम 1 बार अवश्य मिलेंगी. इस का सब से अच्छा उपाय उन्होंने निकाला साल में एक बार साथसाथ घूमने जाना. इस से उन के आपसी संबंध बहुत अधिक गहरे हैं. इस के विपरीत रीता और उस की बहन पिछले 5 वर्षों से आपस में नहीं मिली हैं. नतीजा उनके बच्चे आपस में एकदूसरे को जानते तक नहीं.

वास्तव में रिश्तों में प्यार की गर्मजोशी बनाए रखने के लिए एकदूसरे से मिलनाजुलना बहुत आवश्यक है. जब भी किसी नातेरिश्तेदार से मिलने जाएं छोटामोटा उपहार अवश्य ले जाएं. उपहार ले जाने का यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि उन्हें आप के उपहार की आवश्यकता है, बल्कि यह तो परस्पर प्यार और अपनत्व से भरी भावनाओं का लेनदेन मात्र है.

संतुलित भाषा का करें प्रयोग

कहावत है आप जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे. यदि आप दूसरों से कटु भाषा का प्रयोग करेंगे तो दूसरा भी वैसा ही करेगा. मिसेज गुप्ता जब भी मिलती हैं हमेशा यही कहती हैं कि अरे रीमा तुम्हें तो कभी फुरसत ही नहीं मिलती. जरा हमारे घर की तरफ भी नजर कर लिया करो. इसी प्रकार मेरी एक सहेली को जब भी फोन करो तुरंत ताना मारती है कि अरे, आज हमारी याद कैसे आ गई?’’

एक दिन मैं अपनी एक आंटी के यहां मिलने गई. जैसे ही आंटी ने गेट खोला तुरंत तेज स्वर में बोलीं कि अरे प्रतिभा आज आंटी के घर का रास्ता कैसे भूल गईं. उन का ताना सुन कर मेरे आने का सारा जोश हवा हो गया. जबकि मेरे घर के नजदीक ही रहने के बाद भी वे स्वयं न कभी फोन करतीं और न ही आने की जहमत उठाती है. आपसी संबंधों में इस प्रकार के कटाक्ष और व्यंग्ययुक्त भाषा की जगह सदैव प्यार, अपनत्व और विनम्रतायुक्त मीठी वाणी का प्रयोग करें. सदैव प्रयास करें कि आप की वाणी या व्यवहार से किसी की भावनाएं आहत न हों.

संबंध निभाएं

गुप्ता दंपती को यदि कोई बुलाता है तो वे भले ही 10 मिनट को जाएं पर जाते जरूर हैं. कई बार नातेरिश्तेदारों या परिचितों के यहां कोई प्रोग्राम होने पर हम अकसर बहाना बना देते हैं या मूड न होने पर नहीं जाते. यह सही है कि आप के जाने या न जाने से उस प्रोगाम पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, परंतु आप का न जाना संबंधों के प्रति आप की उदासीनता अवश्य प्रदर्शित करता है. यदि किसी परिस्थितिवश आप उस समय नहीं जा पा रहे हैं तो बाद में अवश्य जाएं. किसी भी शुभ अवसर पर जाने का सब से बड़ा लाभ यह होता है कि आप अपने सभी प्रमुख नातेरिश्तेदारों और परिचितों से मिल लेते हैं, जिस से रिश्तों में जीवंतता बनी रहती है.

करें नई तकनीक का प्रयोग

मेरे एक अंकल जो कभी हमारे मकानमालिक हुआ करते थे, उन की आदत है कि वे देश में हों या विदेश में हमारे पूरे परिवार के बर्थडे और हमारी मैरिज ऐनिवर्सरी विश करना कभी नहीं भूलते. उस का ही परिणाम है कि हमें उन से दूर हुए 6 साल हो गए हैं, परंतु हमारे संबंधों में आज भी मिठास है. आज का युग तकनीक का युग है. व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वीडियो कौलिंग आदि के माध्यम से आप मीलों दूर विदेश में बसे अपने मित्रों और रिश्तेदारों से संपर्क में रह सकते हैं. सभी का प्रयोग कर के अपने रिश्ते को सुदृढ़ बनाएं. कई बार कार्य की व्यस्तता के कारण लंबे समय तक परिवार में जाना नहीं हो पाता. ऐसे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर के आप अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का प्रयास अवश्य करें.

करें गर्मजोशी से स्वागत

घर आने वाले मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत करें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप को उन के आने से खुशी हुई है. शोभना के घर जब भी जाओ हमेशा पहुंच कर ऐसा लगता है कि हम यहां क्यों आ गए? न मुसकान से स्वागत, न खुश हो कर बातचीत, बस उदासीन भाव से चायनाश्ता ला कर टेबल पर रख देती हैं, आप करो या न करो उन की बला से. इस के विपरीत हम जब भी अनिमेशजी के यहां जाते हैं उन पतिपत्नी की खुशी देखते ही बनती है. घर में प्रवेश करते ही खुश हो कर मिलना, गर्मजोशी से स्वागत करना, उन के हावभाव को देख कर ही लगता है कि हां हमारे आने से इन्हें खुशी हुई है.

आप के द्वारा किए गए व्यवहार को देख कर ही आगंतुक दोबारा आने का साहस करेगा.

छोटीछोटी बातों का रखें ध्यान

नमिता के चचिया ससुर आए थे. उसे याद था कि चाचाजी शुगर के पेशैंट हैं. अत: जब वह उन के लिए बिना शकर की चाय ले कर आई तो उस की इस छोटी सी बात पर ही चाचाजी गद्गद हो उठे. रीता की जेठानी आर्थ्राइटिस की मरीज है. अत: उन्हें बाथरूम में ऊंचा पटड़ा चाहिए होता है. उन के आने से पूर्व उस ने उतना ही ऊंचा पटड़ा बाजार से ला कर बाथरूम में रख दिया. जेठानी ने जब देखा तो खुश हो गई.

अर्चना के यहां जब भी कोई आता है वह प्रत्येक सदस्य की पसंद का पूरापूरा ध्यान रखती है. उस के यहां जो भी आता है उस की कोशिश होती है कि उन्हीं की पसंद का भोजन, नाश्ता आदि बनाया जाए.

समय दें

किसी भी मेहमान के आने पर उसे भरपूर समय दें, क्योंकि सामने वाला भी तो अपना कीमती वक्त निकाल कर आप से मिलने पैसे खर्च कर के ही आया है. अनीता जब परिवार सहित अपने भाई के यहां 2-4 दिनों के लिए गई तो भाई अपने औफिस चला गया और भाभी किचन और इकलौते बेटे में ही व्यस्त रही. बस समय पर खाना, नाश्ता टेबल पर लगा दिया मानो किसी होटल में रुके हों. अगले दिन भाई ने औफिस से अवकाश तो लिया पर अपने घर के काम ही निबटाता रहा. अनीता और उस के परिवार के पास बैठ कर 2 बातें करने का किसी के पास वक्त ही नहीं था. 2 दिन एक ही कमरे में बंद रहने के बाद वे अपने घर वापस आ गए, इस कसम के साथ कि अब कभी भी भाई के घर नहीं जाना. इस प्रकार का व्यवहार आपसी संबंधों में कटुता घोलता है. संबंध सदा के लिए खराब हो जाते हैं.

कई बार अपने सब से करीबी का ही जानेअनजाने में किया गया कठोर व्यवहार हमें अंदर तक आहत कर जाता है. अपने साथ किए गए लोगों के अच्छे व्यवहार का सदैव ध्यान रखें और मन को दुखी करने वाले व्यवहार को एक क्षणिक आवेश मान कर भूलना सीखें, क्योंकि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है.

आईसीसी वनडे रैंकिंग में नजर आएंगी नेपाल सहित चार नई टीमें

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पिछले कुछ सालों में कई बदलाव आए हैं खास तौर पर टी20 क्रिकेट के आने का बाद क्रिकेट की लोकप्रियता में इजाफा होने लगा है. अब कई ऐसे देशों में क्रिकेट पसंद किया जाने लगा है जहां कुछ साल पहले तक लोग क्रिकेट के बारे में जानते तक नहीं थे. अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी होने जा रही है तो किसी को आश्चर्य नहीं हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने ताजा वनडे रैंकिंग में चार और नई टीमों को शामिल किया है.

आईसीसी की ओर से शुक्रवार को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, इन चार टीमों में नेपाल, स्कौटलैंड, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और नीदरलैंड्स की टीमें शामिल हैं. क्रिकेट की शीर्ष संस्था ने कहा कि अब ये नई टीमें अब जो द्विपक्षीय वनडे मैच खेलेंगे उन्हें रेटिंग गणना में शामिल किया जाएगा. आईसीसी ने यह फैसला एक मई 2015 से 30 अप्रैल 2017 के बीच खेले गए इन टीमों के प्रदर्शन के आधार पर लिया है.

नीदरलैंड्स ने पिछले साल आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग चैंपियनशिप जीतकर वनडे दर्जा और 13 टीमों के वनडे लीग में जगह बनाई है. वहीं स्कौटलैंड, नेपाल और यूएई ने आईसीसी विश्व कप क्वालीफायर 2018 में एसोसिएट देशों में शीर्ष तीन में रहते हुए वनडे का दर्जा हासिल किया था.

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आईसीसी की ताजा रैंकिग में स्कौटलैंड को 28 अंकों के साथ 13वीं रैंकिंग दी गई है. वह 12वें स्थान पर काबिज आयरलैंड से दस अंक पीछे है. यूएई के 18 अंक हैं और वह 14वें स्थान पर हैं. वहीं नीदरलैंड के 13 रेटिंग अंक हैं. नीदरलैंड और नेपाल को इस तालिका में जगह बनाने के लिये अभी चार मैच और खेलने की जरूरत है. वनडे रैंकिंग में इन चार नई टीमों के शामिल करने से टेस्ट खेलने वाले 12 देशों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

आईसीसी रैंकिंग में टौप पर है इंग्लैंड

इन चार टीमों के अलावा 2019 विश्व कप का मेजबान देश इंग्लैंड 125 अंकों के साथ शीर्ष पर कायम है. वहीं भारत दूसरे, दक्षिण अफ्रीका तीसरे, न्यूजीलैंड चौथे और विश्व चैंपियन आस्ट्रेलिया पांचवें नंबर पर मौजूद हैं. इस समय आईसीसी रैंकिंग की टौप 8 टीमें ही वर्ल्डकप के लिए क्वालिफाई करतीं हैं. बाकी दो टीमों का फैसला आईसीसी वर्ल्डकप क्वालीफायर टूर्नामेंट में शीर्ष दो टीमों को चुना जाता है.

इंग्लैंड में होने वाले साल 2019 के विश्वकप में वेस्टइंडीज और अफगानिस्तान ऐसी टीमें रहीं जो क्वालीफायर टूर्नामेंट में शीर्ष पर रहीं और इस विश्व कप में खेलेंगी. अब अगला विश्वकप 2023 में भारत में खेला जाएगा. यह पहला विश्वकप होगा जिसके सारे मैच भारत में खेले जाएंगे.

उल्लेखनीय है कि आईसीसी पिछले कुछ समय से क्रिकेट के उसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए उसके स्वरूप पर काम कर रहा है. खेल को और लोकप्रिय करने और इसका प्रसार करने के लिए उसने एक महीने पहली ही अपने सभी 104 सदस्यों के टी-20 मैचों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मान्यता दे दी. साथ ही आईसीसी की योजना टी-20 के इन सभी सदस्यों की वैश्विक रैंकिंग जारी करने की है. यह फैसला महिला एवं पुरुष क्रिकेट दोनों पर लागू होगा. इस कदम का मकसद टी-20 प्रारूप को वैश्विक स्तर पर और प्रचलित करना है. ऐसे सामान्य मानक तय किए जाएंगे कि सदस्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना आसान रहे.

ट्रेन में सफर के दौरान मशहूर रेस्टोरेंट से खाना मंगा सकेंगे यात्री

भारतीय रेलवे ने यात्रियों की खान – पान संबंधी सुविधाओं का ख्याल रखने के लिए एक नया कदम उठाया है जिसके जरिए सफर कर रहे यात्रियों को क्षेत्रीय या स्थानीय व्यंजनों का विकल्प मुहैया कराया जा सकेगा. रेलवे ने एक बयान जारी कर बताया कि इसके लिए आईआरसीटीसी ने डिलिवरी सेवा देने वाले ‘त्रापिगो’ और ‘ श्री महालक्ष्मी स्वयं सहायता बचत घाट (रत्नागिरी)’ के साथ साझेदारी की है.

त्रापिगो आईआईटी – आईआईएम और निफ्ट स्नातकों का एक स्टार्टअप है जो आखिरी मंजिल तक खाद्य सामग्री पहुंचाने वाला एक “ बिजनेस टू बिजनेस ” लौजिस्टिक सेवा प्रदाता है.

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बयान में बताया गया , “ शहर के बढ़िया रेस्टोरेंट से गर्म और ताजे खाने की भरोसेमंद डिलिवरी के लिए त्रापिगो डिलिवरी करने वाले लड़कों के अपने दस्ते के साथ इसके क्रियान्वयन की गारंटी लेता है. आईआरसीटीसी की ई – केटरिंग वेबसाइट www.Ecatering.Irctc.Co.In या ‘ फूड औन ट्रैक ’ ऐप के जरिए दिए गए आर्डर की डिलिवरी त्रापिगो द्वारा 15 रुपये के नाममात्र शुल्क पर कराई जाएगी. ”

इसमें बताया गया, “ इस नई साझेदारी ने प्रायोगिक आधार पर नागपुर से काम करना शुरू कर दिया है और बाद में इसे नई दिल्ली, इटारसी, झांसी और भोपाल जैसे उत्तर – मध्य पट्टी के शहरों तक विस्तार दिया जाएगा. ”

स्वंय सहायता समूह श्री महालक्ष्मी स्वयं सहायता बचत घाट ने यात्रियों को प्राकृतिक तौर पर पके जैविक आमों को यात्रियों को बेचने में दिलचस्पी दिखाई है.

बीवी के साथ हमबिस्तरी करने पर मैं कुछ सैकंड में पस्त हो जाता हूं. दोबारा कोशिश करने पर मेरा अंग साथ नहीं देता. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 40 साल का हूं. बीवी के साथ हमबिस्तरी करने पर मैं कुछ सैकंड में पस्त हो जाता हूं. दोबारा कोशिश करने पर मेरा अंग साथ नहीं देता. इस से मैं हर समय तनाव में रहता हूं. मैं क्या करूं?

जवाब
आप काफी देर तक फोरप्ले करने के बाद पूरे हौसले से हमबिस्तरी करें, तो आप की कूवत में इजाफा होगा. एक बार फेल हो जाएं, तो तुरंत दोबारा कोशिश करने के बजाय 10-15 मिनट ठहर कर कोशिश करें. ऐसा करने से आप जरूर कामयाब होंगे.

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सैक्स से पहले छेड़छाड़ है बेहद जरूरी

प्रिया का कहना है कि उस का पति जिस्मानी रिश्ता बनाते समय बिलकुल भी छेड़छाड़ नहीं करता और न ही प्यार भरी बातें करता है. उसे तो बस अपनी तसल्ली से मतलब होता है. जब तन की आग बुझ जाती है, तो निढाल हो कर चुपचाप सो जाता है. वह बिन पानी की मछली की तरह तड़पती ही रह जाती है.

कुछ इसी तरह राजेंद्र का कहना है, ‘‘जिस्मानी रिश्ता कायम करते वक्त मेरी पत्नी बिलकुल सुस्त पड़ जाती है. वह न तो इनकार करती है और न ही प्यार में पूरी तरह हिस्सेदार बनती है. न ही छेड़छाड़ होती है और न ही रूठनामनाना. नतीजतन, सैक्स में कोई मजा ही नहीं आता.’’

इसी तरह सरिता की भी शिकायत है कि उस का पति उस के कहने पर जिस्मानी रिश्ता तो कायम करता है, पर वह सुख नहीं दे पाता, जो चरम सीमा पर पहुंचाता हो. हालांकि वह अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है, फिर भी सरिता को ऐसा लगता है, मानो वह अपनी मंजिल पर पहुंच कर भी नहीं पहुंची. सैक्स के दौरान वह इतनी जल्दबाजी करता है, मानो कोई ट्रेन पकड़नी हो. उसे यह भी खयाल नहीं रहता कि सोते समय और भी कई राहों से गुजरना पड़ता है. मसलन छेड़छाड़, चुंबन, सहलाना वगैरह. नतीजतन, सरिता सुख भोग कर भी प्यासी ही रह जाती है.

मनोज की हालत तो सब से अलग  है. उस का कहना है, ‘‘मेरी पत्नी इतनी शरमीली है कि जिस्मानी रिश्ता ही नहीं बनाने देती. अगर मैं उस के संग जबरदस्ती करता हूं, तो वह नाराज हो जाती है. छेड़छाड़ करता हूं, तो तुनक जाती?है, मानो मैं कोई पराया मर्द हूं. समझाने पर वह कहती है कि अभी नहीं, इस के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी हुई है.’’

इसी तरह और भी अनगिनत पतिपत्नी हैं, जो एकदूसरे की दिली चाहत को बिलकुल नहीं समझते और न ही समझने की कोशिश करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि शादीशुदा जिंदगी कच्चे धागे की तरह होती है. इस में जरा सी खरोंच लग जाए, तो वह पलभर में टूट सकती है.

पतिपत्नी में छेड़छाड़ तो बहुत जरूरी है, इस के बिना तो जिंदगी में कोई रस ही नहीं, इसलिए यह जरूरी है कि पति की छेड़छाड़ का जवाब पत्नी पूरे जोश से दे और पत्नी की छेड़छाड़ का जवाब पति भी दोगुने मजे से दे. इस से जिंदगी में हमेशा नएपन का एहसास होता है.

अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने के दौरान या किसी दूसरे समय पर भी पति अपनी पत्नी को सहलाए और उस के जवाब में पत्नी पूरे जोश के साथ प्यार से पति के गालों को चूमते हुए अपने दांत गड़ा दे, तो उस मजे की कोई सीमा नहीं होती. पति तुरंत सैक्स सुख के सागर में डूबनेउतराने लगता है.

इसी तरह पत्नी भी अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने से पहले या उस दौरान पति से छेड़छाड़ करते हुए उस के अंगों को सहला दे, तो कुदरती बात है कि पति जोश से भर उठेगा और उस के जोश की सीमा भी बढ़ जाएगी.

कभीकभी यह सवाल भी उठता है कि क्या जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए कायम किया जाता है? क्या दिमागी सुकून से उस का कोई लेनादेना नहीं होता? क्या जिस्मानी रिश्ते के दौरान छेड़छाड़ करना जरूरी है? क्या छेड़छाड़ सैक्स सुख में बढ़ोतरी करती है? क्या छेड़छाड़ से पतिपत्नी को सच्चा सुख मिलता है?

इसी तरह और भी कई सवाल हैं, जो पतिपत्नी को बेचैन किए रहते हैं. जवाब यह है कि जिस्मानी रिश्तों के दौरान छेड़छाड़ व कुछ रोमांटिक बातें बहुत जरूरी हैं. इस के बिना तो सैक्स सुख का मजा बिलकुल अधूरा है. जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए ही नहीं, बल्कि दिमागी सुकून के लिए भी किया जाता है.

कुछ पति ऐसे होते हैं, जो पत्नी की मरजी की बिलकुल भी परवाह नहीं करते, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. पत्नी की चाहत का भी पूरा खयाल रखना चाहिए, नहीं तो आप की पत्नी जिंदगीभर तड़पती ही रह जाएगी.

कुछ औरतें बिलकुल ही सुस्त होती हैं. वे पति को अपना जिस्म सौंप कर फर्ज अदायगी कर लेती हैं. उन्हें यह भी एहसास नहीं होता कि इस तरह वे अपने पति को अपने से दूर कर रही हैं.

कुछ पति जिस्मानी रिश्ता तो कायम करते हैं और जल्दबाजी में अपनी मंजिल पर पहुंच भी जाते हैं, परंतु उन्हें इतना भी पता नहीं होता कि इस के पहले भी और कई काम होते हैं, जो उन के मजे को कई गुना बढ़ा सकते हैं.

कुछ औरतें शरमीली होती हैं. वे जिस्मानी रिश्तों से दूर तो होती ही हैं, छेड़छाड़ को भी बुरा मानती हैं.

अब आप ही बताइए कि ऐसे हालात में क्या पत्नी पति से और पति पत्नी से खुश रह सकता है?

नहीं न… तो फिर ऐसे हालात ही क्यों पैदा किए जाएं, जिन से पतिपत्नी एकदूसरे से नाखुश रहें?

इसलिए प्यार के सुनहरे पलों को छेड़छाड़, हंसीखुशी व रोमांटिक बातों में बिताइए, ताकि आने वाला कल आप के लिए और ज्यादा मजेदार बन जाए.

‘कलंक’ की शूटिंग के दौरान वरुण धवन को लगी गंभीर चोट

बौलीवुड अभिनेता वरुण धवन की फैन फौलोइंग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. फिलहाल वरुण आजकल ‘कलंक’ की शूटिंग में बिजी हैं. खबरों के मुताबिक, फिल्म ‘कलंक’ की सेट पर वो घायल हो गए हैं. रिपोर्ट की मानें तो वरुण फाइट-सीक्वेंस की शूटिंग कर रहे थे और शूटिंग के दौरान ही उनके बाजुओं में गंभीर चोट लग गई.

खबरों के मुताबिक वरुण जिस सीन की शूटिंग कर रहे थे, उसमें उन्हें दरवाजा उठाकर फेकना था लेकिन इस सीन को करते हुए वरुण के बाजुओं में चोट लग गई. जिसके बाद उन्हें फौरन अस्पताल ले जाया गया और फिल्म की शूटिंग रोकना पड़ी.

आपको बता दें कि फिल्म ‘कलंक’ में वरुण आलिया भट्ट के साथ चौथी बार स्क्रीन शेयर करते हुए नजर आएंगे. दोनों ने 2012 में आई फिल्म स्टूडेंट आफ द ईयर से बौलीवुड में डेब्यू किया था. कलंक में वरुण धवन और आलिया भट्ट के अलावा संजय दत्त और माधुरी दीक्षित की जोड़ी भी 21 साल बाद वापसी कर रही है.

इस फिल्म में आदित्य राय कपूर और सोनाक्षी सिन्हा को भी कास्ट किया गया है. खबरों की मानें तो ‘कलंक’ में संजय दत्त और माधुरी दीक्षित माता-पिता के किरदार में नजर आएंगे. जबकि आदित्य और वरुण फिल्म में सौतेले भाईयों की भूमिका में दिखेंगे.

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