6 मई, 2018 को नैशनल एलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट यानी नीट में शामिल हुए देशभर के कोई 13 लाख 36 हजार छात्रों ने चैन की सांस ली, क्योंकि यह अहम परीक्षा किसी अड़चन यानी बिना पेपर लीक हुए हो गई, नहीं तो छात्र नीट की विश्वसनीयता और गोपनीयता को ले कर बेवजह शंकित नहीं थे. इस साल इस परीक्षा के जरिए 66 हजार युवाओं का डाक्टर बनने का सपना पूरा होगा.

छात्रों का डर और चिंता अपनी जगह वाजिब थे क्योंकि साल की शुरुआत प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से ठीक नहीं रही थी. अलगअलग परीक्षाओं सहित सीबीएसई तक के पेपर लीक होने से प्रतिभागियों और छात्रों के मन में खटका था कि कहीं उन की मेहनत और भविष्य पर भी लीक का ग्रहण न लग जाए. वजह, बीते 2 मार्च को होली के दिन जब पूरे देश में रंगगुलाल उड़ रहा था तब दिल्ली में कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) के कार्यालय के बाहर लगभग 2 हजार छात्र धरनाप्रदर्शन कर रहे थे. दिल्ली और आसपास के राज्यों से इकट्ठा हुए इन छात्रों का यह आरोप गंभीर था कि बीती 17 से 21 फरवरी तक एसएससी द्वारा आयोजित टियर टू की परीक्षा में भारी धांधलियां की गई हैं.

ये धांधलियां वैसी ही थीं जैसी कि आमतौर पर देश की प्रतियोगी परीक्षाओं में होती हैं. मसलन, 21 फरवरी को गणित का पेपर दोपहर साढ़े 12 बजे से था, लगभग 15 मिनट बाद परीक्षा रोक दी गई. अनधिकृत या मौखिक रूप से यह बताया गया कि यह पेपर लीक हो चुका है. फिर 15 मिनट बाद प्रश्नपत्र का दूसरा सैट दे कर परीक्षा शुरू करवाई गई.  पेपर पूरा हो जाने के बाद छात्रों को बताया गया कि अब गणित का पेपर 9 मार्च को होगा.

पेपर रद्द क्यों हुआ, इसे ले कर हुई गफलत अभी तक बरकरार है. एक उम्मीदवार रीतेश गुप्ता का कहना था कि परीक्षा शुरू होने के कुछ देर बाद ही गणित के पेपर का स्क्रीन शौट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. उलट इस के एसएससी के अधिकारियों की मासूमियतभरी दलील यह थी कि तकनीकी कारणों के चलते पेपर रद्द किया गया. इन कथित तकनीकी कारणों का खुलासा शायद ही सीबीआई जांच के बाद हो पाए.

लेकिन बात इतनी भर नहीं थी.  उम्मीदवारों का स्पष्ट आरोप यह भी था कि एसएससी की परीक्षाओं में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़े और धांधलियों का रैकेट चल रहा है. हरेक नौकरी की कीमत तय है.

पूछने पर उम्मीदवारों ने दरें भी गिना दीं कि एग्जामिनर के पद के लिए 40 लाख रुपए, इनकम टैक्स विभाग के लिए 35 लाख रुपए, सब इंस्पैक्टर के लिए 25 लाख रुपए और क्लर्क के लिए 8 लाख रुपए का रेट चल रहा है.

उम्मीदवारों का प्रदर्शन 26 फरवरी से ही शुरू हो गया था. धीरेधीरे दूसरे राज्यों से भी उम्मीदवार आने लगे. इस से पहले उम्मीदवारों ने अपने आरोपों के प्रमाण एसएससी के अधिकारियों को सौंपे थे.  इस पर एसएससी के चेयरमैन असीम खुराना ने झल्लाते हुए कहा था कि उन्हें मिली जानकारी के मुताबिक, कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूट इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं. उन्होंने अनजान बनते यह भी कहा कि अगर छात्रों के पास कोई सुबूत है तो वे उन्हें पेश करें.

छात्र यानी उम्मीदवार सुबूत पेश कर चुके थे और यह कहने लगे थे कि आरोपों की सीबीआई जांच कराई जाए, वरना वे धरनाप्रदर्शन बंद नहीं करेंगे.  फिर भी ऐसा लग नहीं रहा था कि उम्मीदवारों की सुनवाई कोई करेगा.  लेकिन जब स्वराज इंडिया के मुखिया योगेंद्र यादव उम्मीदवारों से मिले और इस के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उम्मीदवारों की मांगों का समर्थन किया तो सियासी सुगबुगाहट शुरू हो गई.

सालोंसाल चलती जांच

मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे ने भी इन उम्मीदवारों की मांगों का समर्थन किया तो चौकन्नी हो चली भाजपा को लगा कि कहीं ऐसा न हो कि देखते ही देखते देशभर के लाखों उम्मीदवार, जो  परीक्षा में शामिल हुए थे, इस आंदोलन में शामिल हो जाएं. दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने प्रदर्शनकारी छात्रों से मुलाकात की और उन्हें गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलवाया. राजनाथ सिंह ने तुरंत सीबीआई जांच के आदेश दे दिए, तब कहीं जा कर 6 मार्च को उम्मीदवार अपने घरों को लौटे थे.

अपने भविष्य के प्रति चिंतित इन छात्रों को जाहिर है कतई अंदाजा नहीं कि सीबीआई जांच कोई अलादीन का चिराग नहीं होती, उलटे, यह बीरबल की खिचड़ी है जो सालोंसाल पकती रहती है.  इंसाफ की आस लगाए बैठे उम्मीदवारों के बालों में सफेदी आने लगती है, लेकिन सीबीआई जांच पूरी नहीं होती.  इस का बेहतर उदाहरण मध्य प्रदेश का व्यापमं महाघोटाला है जिस की सीबीआई जांच कछुए की चाल को भी मात कर रही है. व्यापमं महाघोटाले के सीबीआई के हाथ में आने के बाद इतना जरूर हुआ कि घोटाले के कई दिग्गज आरोपियों को एकएक कर जमानत मिल गई और वे खुली हवा में चैन की सांस लेते सुकूनभरी जिंदगी गुजार रहे हैं.

नीट पर शक क्यों

एसएससी परीक्षा में पेपर लीक हुए थे और पद भी बिके थे, इस की सीबीआई जांच जब तक चलेगी तब तक नतीजों के कोई माने नहीं रहेंगे. फिर छात्रों के भविष्य का क्या होगा, यह बताने को कोई तैयार नहीं.

दरअसल, सच यह है कि देशभर की प्रवेश और प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता और गोपनीयता एक बार फिर शक के दायरे में आ गई है जिस की किसी भी जांच के नतीजे कुछ भी आएं, नुकसान युवाओं का ही होना है जिन की आंखों में सरकारी नौकरी के सपने हैं.  इन सपनों को पंख नहीं लगते, बल्कि भ्रष्टाचार, धांधलियों और नीलामी का ग्रहण लगता है. और ये बेचारे टुकुरटुकुर देखते रह जाते हैं कि यह आखिर क्या हो रहा है.

सीबीएसई द्वारा आयोजित की जाने वाली ऐसी ही एक अहम परीक्षा नीट (राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा) 6 मई को को चुकी है. साल 2013 से नीट आयोजित हो रही है जिसे कराने के पीछे सरकार का मकसद यह था कि इस से भ्रष्टाचार मिटेगा, पारदर्शिता आएगी और फर्जीवाड़ा खत्म हो जाएगा.

ये बातें अब कहनेसुनने में भी भली नहीं लगतीं. वजह, नीट का हाल भी एसएससी जैसा होना शुरू हो गया है.  पिछले साल अक्तूबर में दिल्ली क्राइम ब्रांच ने पटना मैडिकल कालेज हौस्पिटल (पीएमसीएच) में छापामारी करते 32 वर्षीय डाक्टर जौन मेहता उर्फ राजीव रंजन को गिरफ्तार किया था.

दरअसल, यह डाक्टर उस गिरोह का मास्टरमाइंड था जो नीट में सैटिंग के खेल के लिए मशहूर है. यह शख्स बिहार के मधेपुरा जिले के गांव तुलसिया का रहने वाला है जो बिहारीगंज थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है. साल 2009 में डाक्टर जौन को पीएमसीएच में एमबीबीएस में प्रवेश मिला था और साल 2017 की पीजी परीक्षा में वह अपने बैच का टौपर था. पढ़ाई के बाद वह इसी संस्थान में रेडियोलौजी विभाग में बहैसियत जूनियर डाक्टर नौकरी करने लगा था

नीट का यह घोटाला या फर्जीवाड़ा एक तरह से व्यापमं महाघोटाले की तरह ही था. एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डाक्टर जौन साल्वर गैंग्स से सांठगांठ करने लगा था. दिल्ली क्राइम ब्रांच मान चुकी है कि वह पिछले 2 वर्षों से नीट की औनलाइन परीक्षा में सौफ्टवेयर हैक कर रहा था. उस पर दूसरे राज्यों में भी मुकदमे दर्ज हैं. पोस्टग्रेजुएट परीक्षा में सफलता दिलाने के लिए वह प्रतिछात्र 50 लाख रुपए से ले कर

1 करोड़ रुपए तक लेता था. इस सौदेबाजी में गिरोह से जुड़े दूसरे लोगों को भी हिस्सा जाता था. इस के बाद भी डाक्टर जौन को लगभग 25 लाख रुपए प्रतिछात्र मिल जाते थे.

जब धांधली का शक और शिकायतें हुईं तो जांच शुरू हुई. गिरफ्तारी के बाद इस आरोपी ने अपने गिरोह में शामिल कुछ डाक्टर्स के अलावा उन छात्रों के नाम भी बताए थे जिन्होंने सैटिंग के जरिए मैडिकल कालेजों में दाखिला लिया था.  डाक्टर जौन के बाद 22 और आरोपी गिरफ्तार किए गए थे, जिन में साल्वर गैंग का सरगना, सौफ्टवेयर हैकर, इंजीनियर और औपरेटर शामिल थे.

नीट परीक्षा पर ग्रहण लगाते इस गिरोह में शामिल लोग कौन और कैसे थे, इस का पुलिस पूरी तरह खुलासा जब करेगी तब करेगी, लेकिन यह साफ दिख रहा है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए हाड़तोड़ मेहनत करने वाले और पैसा खर्च करने वाले उम्मीदवार बेफिक्र हो कर अपनी काबिलीयत के बलबूते पर डाक्टर बनने का सपना पूरा नहीं कर सकते, क्योंकि देशभर में फर्जीवाड़ा होना आम बात है. कोई भी नियमकानून वजूद में आता नहीं कि उस का तोड़ अपराधी निकाल लेते हैं.

नीट की परीक्षा अब शुद्ध नहीं रह गई है, इस का एक उदाहरण पिछले साल मई में जयपुर से भी मिला था. डाक्टर जौन तो सौफ्टवेयर हैक कर धोखाधड़ी करता था, लेकिन जयपुर में खुलेआम नीट के पेपर बिके थे. आरोपियों के नाम विक्रम सिंह, विकास कुमार सिन्हा, भूपेश कुमार शर्मा, दिशांक उर्फ राहुल मलिक और आलोक गुप्ता थे.

इन पांचों ने कुछ छात्रों को 5-5 लाख रुपए में नीट के प्रश्नपत्र उपलब्ध कराए थे, वह भी व्यापमं की तर्ज पर कि खरीदारों को पहले तयशुदा स्थान पर परीक्षा की रात बुलवाया गया और फिर उन्हें सीधे परीक्षा केंद्रों पर छोड़ा गया.

एटीएस की टीम ने इन में से 2 को दिल्ली और 3 को जयपुर से गिरफ्तार किया था. कथित रूप से ही सही, नीट के भी पेपर बिके थे, इस से परीक्षार्थियों में निराशा आनी स्वाभाविक बात थी. यह निराशा उस वक्त गहरा गई जब व्यापमं महाघोटाले की राजधानी भोपाल से सैकड़ों उम्मीदवारों द्वारा फर्जी मूलनिवास प्रमाणपत्र 2-2 राज्यों से बनवाने की बात सामने आई थी.

गौरतलब है कि नीट की परीक्षा से 85 फीसदी सीटें राज्यों के मूल निवासियों से भरी जाती हैं. ये सीटें राज्य कोटे की कहलाती हैं. बाकी बची 15 फीसदी सीटें औल इंडिया कोटे से भरी जाती हैं. 2-2 राज्यों के मूल निवास प्रमाणपत्र बनवा कर कई छात्र मध्य प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों से भी राज्य कोटे की सीट के पात्र हो गए जिस से वहां के मूल निवासियों का हक मारा गया. इस मामले की भी जांच अभी चल रही है.

जाहिर है नीट परीक्षा भी बेदाग नहीं रह गई है जो दूसरे कई तरीकों से भी छात्रों का नुकसान करती है. इन नुकसानों का आकलन कोई नहीं करता कि  असफल रहे 95 फीसदी छात्रों की हालत बाद में क्या होती है.

सुनहरे वक्त की बरबादी

भोपाल का 26 वर्षीय अविनाश रायजादा (बदला नाम) गहरे अवसाद से ग्रस्त है जिस का इलाज एक नामी मनोचिकित्सक के यहां चल रहा है.

अविनाश साल 2015 से नीट की परीक्षा दे रहा था, लेकिन सफल नहीं हुआ. उस ने मन लगा कर इस प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की थी और एक नहीं, बल्कि 3-3 कोचिंग इंस्टिट्यूट से कोचिंग भी ली थी. उस के सिर पर डाक्टर बनने की धुन इस कदर सवार थी कि वह बाकी दुनिया और घटनाओं से कट गया था. 8 घंटे सोने के अलावा वह पूरा वक्त परीक्षा की तैयारी में बिता रहा था. उसे उम्मीद थी कि मेहनत रंग लाएगी.

लेकिन 2017 में भी उस का चयन मैडिकल के लिए नहीं हुआ तो वह भीतर तक टूट गया. प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने को वह अपना नकारापन मानने लगा था और  उसे लगने लगा था कि अब वह किसी काम का नहीं रह गया है. राजनीति में क्या हो रहा है, क्रिकेट में कौन सी स्पर्धा  चल रही है, पड़ोस में कौन से नए अंकलआंटी आ गए हैं और बाजार में कौन से नए गैजेट्स आए हैं, यह तक उसे नहीं मालूम था. एक पढ़ाई के अलावा बाकी सभी बातों से उस की दिलचस्पी खत्म हो गई थी.

ऐसे में उस का अवसादग्रस्त होना स्वाभाविक बात थी, जिस की जिम्मेदार वह प्रतियोगी परीक्षा थी जिसे वह सबकुछ मान बैठा था. जैसेतैसे बीएससी तो उस ने कर ली थी पर एमएससी की पढ़ाई करने की उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. बीएससी बायोलौजी से पास युवक को कहीं नौकरी नहीं मिलती, यह बात जब उस के दिलोदिमाग में घर कर गई तो मांबाप के लिए खासी परेशानी उठ खड़ी हुई. इधर, उस का छोटा भाई मनीष जिंदगी के सब रंगों में जीता एमबीए कर पुणे में एक नामी कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी करने लगा था.

मम्मीपापा और छोटे भाई ने तरहतरह से समझाया कि हारजीत और फेलपास वगैरह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. लेकिन स्वेट मार्डेन छाप इस समझाइश का अविनाश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. उलटे, वह पहले से ज्यादा एकांत में रहने लगा. न किसी से मिलना और न ही उम्र के हिसाब से कोई शौक होना चिंता की बात थी. मांबाप डरने लगे थे कि इस हालत के चलते वह कोई आत्मघाती कदम न उठा बैठे.

यह ठीक है कि अविनाश बहुत गहरे अवसाद में है, लेकिन इस से कम अवसाद में हर वह छात्र होता है जो खुद को प्रतियोगी परीक्षाओं में झोंक देता है.  जिंदगी की अनगिनत रंगीनियों से इन युवाओं को कोई सरोकार नहीं रह जाता, उन का बस एक ही मकसद होता है कैसे भी हो, कंपीटिशन का महाभारत जीतो.  यह तो 3-4 वर्षों बाद पता चलता है कि वे इस महाभारत के अर्जुन नहीं बन पाए, बल्कि अभिमन्यु बन कर ही चक्रव्यूह  में घिरे हुए हैं.

जवानी के 4-5 साल एक धुन या सनक में जीते ये युवा फिर किसी दूसरे क्षेत्र में जाने की बात नहीं सोच पाते, क्योंकि उन की हिम्मत टूट चुकी होती है और उन की पूरी ऊर्जा प्रतियोगी परीक्षा नाम की जोंक चूस चुकी होती है.

तेजी से बढ़ती युवाओं की यह भीड़ चिंता का विषय है. नीट में उलझे छात्रों का शक बेवजह नहीं है कि इस में नंबरों की खरीदफरोख्त होगी. यहां भी एसएससी जैसे सीटों की नीलामी होगी.  नीट की परीक्षा दे रहे छात्रों की जिंदगी तो 4 ऐसे विषयों में उलझ कर रह जाती है जिन का व्यावहारिक जिंदगी से कोई वास्ता नहीं रहता.

फिर औचित्य क्या

नीट से जुड़ी खबरों को बड़े चाव से पढ़ा जाता है. हर साल नीट के नियमों में बदलावों का ढिंढोरा संविधान के संशोधनों की तरह पीटा जाता है. मसलन, अब 25 साल तक की उम्र के युवा ही नीट की परीक्षा दे पाएंगे. नीट अब उर्दू में भी होगी और विदेश डाक्टरी पढ़ने जाने वाले छात्रों को भी नीट पास करनी होगी. इन खबरों का छात्रों के भविष्य या चयन से कोई बहुत महत्त्वपूर्ण संबंध नहीं है.

अब छात्र नीट की परीक्षा असीमित बार दे सकते हैं, हालांकि नए नियमों से छात्रों का कोई भला नहीं होता. इसे तकनीकी तौर पर देखें तो रायपुर मैनिट के एक प्राध्यापक के इस तर्क में दम है कि यह राजस्व की लड़ाई है जो पहले राज्य सरकार को जाता था, अब केंद्र सरकार उसे समेट रही है.

हास्यास्पद बात तो यह भी है कि डाक्टर बन जाना अब एक झूठी शान की बात भर रह गई है. इस पेशे में भी कैरियर या सुनहरे भविष्य की कोई गारंटी नहीं रह गई है. भोपाल के शाहपुरा इलाके के एक नामी नर्सिंगहोम में कार्यरत आदिवासी बाहुल्य जिले बैतूल के एक डाक्टर का कहना है कि वे पिछले 8 वर्षों से औसतन 40 हजार रुपए की पगार पर नौकरी कर रहे हैं और नौकरी के नाम पर उन्हें अधिकतर रात की ड्यूटी करनी पड़ती है. इस डाक्टर के मुताबिक, चिकित्सा व्यवसाय अब मगरमच्छों के हाथों में है.

ऐसी परीक्षा, जिस में विश्वसनीयता और गोपनीयता की गारंटी न हो, का आयोजन क्यों? एक छात्र सालभर में लाखों रुपए इस पर खर्चता है, जिंदगी का खूबसूरत व हसीन वक्त जाया करता है और असफल हो जाने पर किसी काम का नहीं रह जाता. सफल होने पर भी भविष्य की गारंटी नहीं होती तो फिर नीट की औचित्यता पर सोचा जाना जरूरी है.

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