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कुकुरमुत्तों की तरह फैलतीं शिक्षा की दुकानें

जिस तरह जंगलों में बिना देखभाल के कुकुरमुत्ते के पौधे पनपते रहते हैं, ठीक वैसे ही आजकल शहरोंकसबों में विद्यालय और महाविद्यालय देखे जा रहे हैं. कुकुरमुत्ता के पौधे हालांकि किसी काम के नहीं होते, लेकिन वे दूसरे को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाते जबकि ये विद्यालय महाविद्यालय नौनिहालों को ठगने में लिप्त हैं.

मैं ने एमए करने के लिए इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी की वैबसाइट पर अपना रजिस्ट्रेशन करवाया, लेकिन कुछ ही घंटों में मेरे पास एक मैसेज आया जिस में लिखा था, ‘हम विवेकानंद सुभारती यूनिवर्सिटी से डिस्टेंस लर्निंग कोर्स करवाते हैं. कृपया आप अपना कौंटैक्ट नंबर दें.’

मेरे कौंटैक्ट नंबर देने पर मेरे पास एक कौल आई और बताया गया कि हम आप को सभी तरह की सुविधाएं देंगे. यही नहीं, पास होने की भी गारंटी है और अगर आप चाहें तो 2 साल का कोर्स 1 ही साल में पूरा कर सकती हैं.

मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि हम आप का 2 साल का कोर्स 1 साल में ही पूरा करवा देंगे लेकिन फीस उसी हिसाब से लेंगे. 1 साल की फीस 13,800 रुपए है जबकि 2 साल के 28 हजार रुपए और प्रौस्पैक्टस के 500 रुपए. इस के बाद उन्होंने मुझ से 10वीं, 12वीं और बीए की मार्कशीट मांगी और कहा कि फीस जमा कराएं.

जब मैं ने उन्हें बताया कि प्रौस्पैक्टस तो मुझे मिला ही नहीं, फिर मैं उस के रुपए क्यों दूं? तो उन्होंने कहा कि हम आप के नंबर पर डिटेल्ड व्हाट्सऐप कर रहे हैं. यह पूरा फी स्ट्रक्चर है जो आप को देना है.

वे 10-12 दिनों तक मुझ पर फीस जमा कराने का प्रैशर बनाते रहे. मेरे बारबार यह पूछने पर कि क्या मेरे पेपर्स वैरीफाई हो गए हैं? उन्होंने जवाब दिया कि जब आप फीस जमा कराएंगे, उस के बाद ही आप के पास वैरिफिकेशन कौल आएगी. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. तब मैं ने कहा कि क्या सारी फीस एकसाथ जमा करानी जरूरी है, मैं अभी आधी फीस ही भर पाऊंगी.

इस पर काउंसलर ने कहा कि कोई बात नहीं. बाकी आप बाद में देते रहिएगा. मैं ने 5 हजार रुपए उन के अकाउंट में जमा करवा दिए. उन की तरफ से कोई भी रसीद या मेल न आने पर मैं ने एक बार फिर फोन घुमाया. इस पर काउंसलर ने मुझ से कहा कि आप के रुपए हमारे अकाउंट में आ गए हैं, अब जल्द ही आप के पास वैरिफिकेशन कौल आएगी और उस के बाद कोर्स की सौफ्टकौपी और हार्डकौपी भेजी जाएगी.

एक महीना निकलने पर भी वैरिफिकेशन कौल नहीं आई. काउंसलर को बारबार फोन करने के बाद एक दिन कौल आई और कहा गया कि हम ने पेपर वैरीफाई कर दिए हैं. हम जल्द ही आप को कोर्स मैटीरियल भिजवाते हैं. इस के बावजूद न कोई रसीद आई, न ही कोई पाठ्यसामग्री.

ऐसे ही 3 महीने निकल गए. मुझे कुछ गड़बड़ी का अंदेशा हुआ और मैं ने जब एक बार फिर संपर्क किया तो वहां से जूही नाम की लड़की ने कहा कि पहले आप 2 साल की पूरी पेमैंट करें, तभी आप को कोर्स मैटीरियल भेजा जाएगा.

मैं ने कहा कि जब तक मुझे कोर्स मैटीरियल नहीं मिलेगा, मैं रुपए नहीं दूंगी. आज तक मेरे पास कोर्स की कोई भी सौफ्ट या हार्ड कौपी नहीं आई है, न ही कोर्स से संबंधित कोई डिटेल आई है. बस, आया तो एक मेल जिस में लिखा था कि बाकी रुपए जल्दी जमा कराएं.

2 दिनों बाद मेरे पास इस यूनिवर्सिटी से मुबीन नाम के एक आदमी की कौल आई कि मैडम, आप के पेपर पूरे नहीं हैं. आप पूरे पेपर्स भेजिए वरना हम आप का ऐडमिशन कैंसिल कर देंगे.

मैं ने उसे समझाना चाहा कि पेपर्स पूरे हैं, लेकिन वह बारबार एक ही बात बोलता रहा. फिर मैं ने दोबारा इस यूनिवर्सिटी की काउंसलर रुकैया से बात की, लेकिन रुकैया ने भी बड़ी लापरवाही से मुझे जवाब दिया कि आप के पास इस नाम के व्यक्ति की कोई कौल आ ही नहीं सकती. इस नाम का व्यक्ति तो बहुत पहले ही यहां से चला गया है और आप ने अभी तक अपने पूरे पेपर्स व फोटोग्राफ हमें नहीं भेजे हैं.

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यह सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया. मैं ने कहा कि कितनी बार आप पेपर्स और फोटो झूठ बोल कर लेंगे? आप लोग मुझे सही नहीं लग रहे हैं. आज तक मेरे पास कोई कोर्स मैटीरियल नहीं आया है.

इस पर काउंसलर ने गुस्से में फोन रख दिया. तभी 2 मिनट के अंदर एक कौल आई जिस में मुझ से कहा जाता है, ‘‘आप को रुकैयाजी से इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए थी. हम फेक नहीं हैं. आप जब तक पूरे रुपए जमा नहीं कराएंगी, आप को कोई स्टडी मैटीरियल नहीं भेजा जाएगा. वैसे भी आप के पेपर्स पूरे नहीं हैं.’’

मैं ने उन पर गुस्सा करते हुए कहा कि अगर पेपर्स पूरे नहीं थे तो वैरिफिकेशन कौल कैसे आ गई? वैरिफिकेशन कौल का मतलब यह है कि आप ने मुझे ऐडमिशन देने के लिए वैरीफाई कर दिया है. फिर आप झूठ क्यों बोल रहे हैं?

इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि अगर आज शाम तक आप ने पूरे रुपए नहीं जमा कराए, तो हम ऐडमिशन कैंसिल कर देंगे. आप पूरे 28 हजार रुपए एकसाथ दीजिए. इस के अलावा 8 हजार रुपए का खर्च आप को अलग से देना है.

जिस बात की शंका थी वही हुआ. न ही मुझे दाखिला मिला न ही कोई स्टडी मैटीरियल आया. ये छोटीछोटी दुकानें खोले बैठे वे लोग हैं जो खुलेआम लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. झूठी डिगरियां, झूठे सपने दिखाते हैं. 5 हजार रुपए का मुझे जो नुकसान हुआ सो हुआ, लेकिन उस से ज्यादा दुख इस बात का था कि मैं इन लोगों की बातों में कैसे आ गई? न जाने मेरे जैसे कितने लोग इन के जाल में फंसते होंगे.

जिधर देखो उधर इंटर व डिगरी कालेज दिखाई दे रहे हैं. ऐसा क्यों? बहुत सोचने पर जो समझ आया, वह है देश की बढ़ती आबादी तथा शिक्षा की तरफ लोगों का बढ़ रहा रुझान और आम जनता का सरकारी व वित्तपोषित कालेज से भंग हो रहा मोह.

लेकिन प्रमुख कारण है सरकार द्वारा बनाए गए नियमों की शिथिल प्रणाली, जिस का फायदा उठा कर इंटर व डिगरी कालेज अपनी जेबें भर रहे हैं. नतीजतन, पूरे क्षेत्र में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए इन विद्यालयोंमहाविद्यालयों के बोर्ड, बैनर व पोस्टर लगे दिखाई दे जाएंगे और जब इन के पास जाया जाता है तो पता चलता है कि ये 4 कमरे व 2 व्यक्तियों को बैठा कर पंजीकरण शुरू कर देने वाली दुकानें मात्र हैं.

इन के झांसे में आ कर जब कुछ छात्र व छात्राएं दाखिला लेते हैं, तो औनेपौने वेतन पर बेरोजगारों को ला कर फैकल्टी के तौर पर पढ़वाना शुरू करवा दिया जाता है. यही नहीं, किसी वित्तविहीन महाविद्यालय में छात्रों का पंजीकरण करा दिया जाता है. जहां पर उन को केवल वार्षिक परीक्षा देने जाना पड़ता है. गैरमान्यता वाले महाविद्यालय विद्यार्थियों से मोटी रकम वसूल कर, उन्हें परीक्षा में मनमुताबिक अंक दिलाने का वादा करते हैं.

दिल्ली के रहने वाले प्रकाश सिंह अपने बेटे का इंटर कालेज में ऐडमिशन कराना चाहते थे. अखबार में उन्होंने एक इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी से जुड़े इंटर कालेज का विज्ञापन देखा, जिस में लंबेचौड़े वादे किए गए थे. प्रकाश सिंह ने कालेज जा कर देखा और स्टाफ से मिले. इस के बाद उन्होंने बेटे का ऐडमिशन करा दिया. अभी एक साल भी नहीं गुजरा था कि उन्हें पता चला कि उस कालेज की तो कोई मान्यता ही नहीं है. दरअसल, झूठे विज्ञापन के जरिए यह कालेज लाखों स्टूडैंट्स के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा था.

धन उगाही का खेल

महाविद्यालयों में मानक के अनुरूप शिक्षक न होने से विद्यार्थियों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सब से बड़ी समस्या तो संबंधित विषय की जानकारी न होने के कारण डिगरी के बावजूद विद्यार्थी बेरोजगार ही रहता है और समय को कोसने के लिए मजबूर होता है. आज शिक्षा का स्तर इतना गिर गया है कि छात्रों को शिक्षा का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है. संस्थान तो केवल धनउगाही के कुचक्र में फंसे रहते हैं.

नवाबगंज के देवीदीन सिंह महाविद्यालय के प्रबंधन ने बीएससी प्रथम वर्ष की परीक्षा में फेल हो चुके 60 विद्यार्थियों को पास होने की नकली मार्कशीट बना कर थमा दी. मार्कशीट अवध विश्वविद्यालय की असली मार्कशीट की तरह होने के कारण छात्र भी धोखा खा गए. शक होने पर जब एक छात्रा ने विश्वविद्यालय जा कर इस की सत्यता की पड़ताल कराई तो इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ.

इस समय रायबरेली जनपद, मेरठ, नोएडा आदि चाहे ग्रामीण क्षेत्र हों या शहरी, सभी जगह आप को मानकविहीन विद्यालय कुकुरमुत्तों की तरह पैर फैलाए मिल जाएंगे. सब से आश्चर्यजनक बात यह है कि इन विद्यालयों में न्यूनतम मानक के अनुरूप न तो शिक्षा भवन हैं और न ही प्रयोगशाला. लेकिन वहां स्नातक स्तर के छात्र पढ़ने के लिए आते हैं. विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है और शिक्षा विभाग इन्हें देखते हुए भी अनजान बना रहता है. आज जो विद्यालय वित्तविहीन मान्यताप्राप्त अथवा वित्तपोषित भी हैं, वहां भी मानक शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं.

चंद्रवलिया गांव की रहने वाली बीना देवी के मुताबिक, उस ने शैक्षिक वर्ष 2015-16 में नवाबगंज थाना क्षेत्र के कटरा शिवदयालगंज स्थित देवीदीन सिंह महाविद्यालय में बीएससी प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था. फरवरी 2016 में आयोजित परीक्षा में वह फेल हो गई थी. इस कारण नए सत्र में उस ने अपना नाम जिले के वजीरगंज थाना क्षेत्र के भागीरथी सिंह स्मारक महाविद्यालय में बीएससी प्रथम वर्ष में ही लिखा लिया.

बीना का कहना है कि प्रवेश लेने के बाद अगस्त 2016 में देवीदीन महाविद्यालय के क्लर्क चंदन सिंह उर्फ संदीप सिंह ने उस के मोबाइल पर फोन कर उसे पास होने की जानकारी दी और बीएससी द्वितीय वर्ष में प्रवेश लेने के लिए कहा. इस पर भरोसा कर के भागीरथी कालेज को छोड़ कर उस ने फिर से देवीदीन सिंह महाविद्यालय में बीएससी द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया.

कुछ दिनों बाद उसे मार्कशीट के फर्जी होने का शक हुआ तो उस ने अवध विश्वविद्यालय जा कर मार्कशीट की जांच कराने का फैसला किया. बीना ने बताया कि जब उस ने विश्वविद्यालय में मार्कशीट की जांच कराई तो पता चला कि वह फेल है और उसे जो मार्कशीट दी गई है वह जाली है. इस जानकारी के बाद वह फिर से महाविद्यालय पहुंची और मार्कशीट नकली होने की जानकारी देते हुए क्लर्क से परीक्षा की क्रौसलिस्ट दिखाने की मांग की.

बीना का आरोप है कि अपनी पोल खुलती देख क्लर्क ने पहले तो उसे चुप रहने की नसीहत दी, लेकिन जब वह नहीं मानी तो उस ने उस से अभद्रता करते हुए उसे जान से मारने की धमकी देते हुए कालेज से भगा दिया.

बीना का कहना है कि उस के अलावा, बीएससी प्रथम वर्ष में कुल 72 छात्र थे और सब के सब फेल हो गए थे. लेकिन महाविद्यालय ने छात्रा मधु गुप्ता, पूजा सिंह, धनोसरी मिश्रा, वली मोहम्मद समेत करीब 60 छात्रों को पास वाली फर्जी मार्कशीट दे कर अपने यहां बीएससी द्वितीय वर्ष में दाखिला दे दिया था.

इन फर्जी महाविद्यालयों के कारण बच्चों को आधाअधूरा ज्ञान ही मिल पा रहा है. इसी कारण शिक्षा का स्तर भी दिनप्रतिदिन गिरता जा रहा है. देखा जाए तो इन रसूखदार, लंबरदार व प्रभावशाली लोगों द्वारा संचालित किए जा रहे विद्यालयों के आगे जिलाप्रशासन, शिक्षा विभाग व विश्वविद्यालय आंख मूंदे हुए हैं और अपनी झोली भरने में मशगूल हैं.

आज हमारे बीच से जो जा रही है वह है शिक्षा, जिस का परिणाम अब धीरेधीरे दिखाई पड़ने लगा है और भविष्य में इस का परिणाम और भी भयानक हो सकता है. कुकुरमुत्तों की तरह फैले डिगरी व इंटर कालेजों पर शासनप्रशासन द्वारा शिकंजा कभी नहीं कसा जाएगा, क्योंकि पूरा तंत्र इन्हें विकसित करने में लगा है. सरकारी नीतियां ही इस तरह बन रही हैं कि शिक्षा कुछ को मिले और लोग दक्षिणा की तरह फीस दे कर भूल जाएं कि बदले में आश्वासन के अलावा कुछ मिलेगा.

मूंछों का बंटवारा : उत्तर बनाम दक्षिण

एक जमाना था जब मूंछें मर्दों की आन, बान और शान समझी जाती थीं. मूंछ की सब से पहली तसवीर एक प्राचीन ईरानी की बताई जाती है जो घोड़े पर सवार था, हालांकि उस की दाढ़ी नहीं थी. यह तसवीर ईसापूर्व 300 बीसी की है. इस के बाद अनेक देशों और संस्कृतियों में कई प्रकार की मूंछें देखी गई हैं.

पहले तो मूंछों के साथसाथ पुरुष दाढ़ी भी रखते थे, पर 19वीं सदी के अंत तक दाढ़ी का सफाया होने लगा. इस की खास वजह नई पीढ़ी की सोच थी कि दाढ़ी के लंबे बालों में बैक्टीरिया व जर्म्स होते हैं. कुछ समय तो उत्तरी अमेरिका और यूरोप में दाढ़ी रखने वालों पर होटलों में भोजन बनाने व परोसने पर प्रतिबंध था. अस्पतालों में दाढ़ी वाले रोगियों की दाढ़ी भी जबरन कटवाई जाती थी. धीरेधीरे दाढ़ी के साथ मूंछ भी गायब होने लगी.

अधिकतर भारतीय पुरुष पहले मूंछें रखते थे. कहा जाता है कि ब्रिटिश सेना को भी भारतीय सैनिकों की देखादेखी मूंछ रखनी पड़ी थी. धीरेधीरे युवा पीढ़ी में मूंछ रखने का प्रचलन समाप्त होने लगा, उन्हें क्लीनशेव्ड, चिकना चेहरा सुंदर लगता था और शायद आधुनिक लड़कियों की भी यही पसंद है.

मूंछ बनाम क्लीनशेव्ड

आजकल अधिकतर भारतीय युवाओं ने मूंछ को अलविदा कह दिया है. कुछ हद तक अब यह सैनिकों व पुलिसकर्मियों के बीच सिकुड़ कर रह गई है. भारत में आधुनिकता और फैशन के प्रतीक माने वाले ज्यादातर बौलीवुड स्टार्स भी क्लीनशेव्ड हैं. पर यहां एक अंतर उत्तर और दक्षिण भारत के बीच देखने को मिलता है. उत्तर भारत और बौलीवुड में भले ही मूंछ रखना आउट औफ फैशन हो गया हो, पर दक्षिण में और दक्षिण की फिल्म इंडस्ट्री टौलीवुड व कालीवुड में अभी भी मूंछें रखने का चलन है.

दक्षिण भारत में अभी भी ज्यादातर पुरुषों और ऐक्टर्स में मूंछ अपनी जड़ें जमाए हुए है. दशकों पहले  ऐक्टर्स अशोक कुमार, देव आनंद, दिलीप कुमार से ले कर अमिताभ बच्चन और खान ब्रदर्स सभी की मूंछें गायब थीं. ‘मूछें हों तो नत्थूलाल जैसी…’ फेमस डायलौग वाले बच्चन साहब ने भी युवावस्था में खुद मूंछें नहीं रखीं. कुछ अभिनेता इस के अपवाद हैं जैसे राज कपूर, अनिल कपूर, राजकिरण, रणधीर कपूर, जैकी श्रौफ, किशोर कुमार, प्रदीप कुमार आदि. बौलीवुड में परदे पर खलनायकों को भले मूंछोें के साथ देखा गया है पर हीरोज को बहुत कम.

बौलीवुड के ठीक उलट दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री में अधिकतर अभिनेता पहले भी मूंछें रखते थे और आज भी रखते हैं. उन्हें मूंछ रखने का शौक है. तमिल के जानेमाने शिवाजी गणेशन या फिर कन्नड़ के सुपरस्टार राजकुमार ने अपनी मूंछें नहीं कटवाईं. दक्षिण की फिल्मों में हीरो, हीरो के पिता या अन्य मुख्य पात्र अभी भी मूंछों में दिखते हैं.

भारत जैसे सिनेमाप्रेमी देश में चंद ऐक्टर्स के मूंछ रखने या न रखने का प्रभाव लोगों पर अच्छाखासा देखा जा सकता है यानी जहां बौलीवुड के प्रभाव से उत्तर की मूंछें गायब हुईं वहीं दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री से वहां मूंछें फैशन बनीं, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम फिल्मों के ज्यादातर अभिनेता मूंछें रखते हैं. नागार्जुन, चिरंजीवी, कमल हासन, प्रभास, धनुष, रजनीकांत, विजय, सूर्या, रामचरण, पवन कल्याण, एनटीआर जूनियर, करथी, सुदीप आदि अभिनेता मूंछें रखना पसंद करते हैं.

इसी तरह का विरोधाभास हिंदी टीवी सीरियल्स और दक्षिण के सीरियल्स में भी देखा जा सकता है. उत्तर भारत या बौलीवुड से ज्यादातर मशहूर पुरुष मौडल्स बिना मूंछों वाले ही हैं.

उत्तर और दक्षिण के बीच मूंछों के फासले की कोई ठोस एक वजह नहीं हो सकती है. पर हमारा बौलीवुड पश्चिम के हौलीवुड और अन्य अंगरेजी फिल्म इंडस्ट्री से जल्दी और ज्यादा प्रभावित दिखता है. अमेरिका और यूरोप में मूंछों का जमाना लद गया है तो उस का असर उत्तर पर ज्यादा पड़ा है. दक्षिण के लोग इतनी जल्दी इस बदलाव से प्रभावित नहीं हुए हैं. उन की संस्कृति पर विदेशी प्रभाव उतना ज्यादा नहीं पड़ा है. दूसरी वजह हो सकती है दक्षिण का अधिकतर भाग समुद्रीतट पर है. इस कारण इस पर विदेशी आक्रमण बहुत कम हुए हैं, शायद इसलिए उत्तर में मूंछों पर विदेशियों का असर ज्यादा पड़ा है.

फिटनैस के लिए पौष्टिक डाइट है बेहद जरूरी

महिलाएं हर जगह बहुत ही बोल्ड किरदार निभाती हैं और कैसी भी विषम परिस्थिति क्यों न हो कभी हिम्मत नहीं हारतीं और हमेशा अपने परिवार की भी हिम्मत बनी रहती हैं. यही नहीं बल्कि वे उन के खानपान का भी पूरा ध्यान रखती हैं ताकि उन की व्यस्त दिनचर्या में भी उन्हें पौष्टिकता से भरपूर डाइट परोसी जा सके. उन के इसी प्रयास में दिल्ली प्रैस द्वारा 17 अप्रैल, 2018 को दिल्ली के पीतमपुरा स्थित एमयू ब्लौक में आईटीसी द्वारा आशीर्वाद इवैंट का आयोजन किया गया, जिस में भारी संख्या में महिलाओं ने उपस्थित हो कर कार्यक्रम को सफल बनाया.

इवैंट में जान डाली ऐंकर अंकिता मंडल ने जिन्होंने मनोरंजक ऐक्टिविटीज से औडियंस में नई ऊर्जा का संचार किया. कार्यक्रम की शुरुआत रोटी मेकिंग की ऐक्टिविटी से हुई जिस में 3 महिलाओं ने दिए आटे से रोटी बना कर कला का बेहतरीन नमूना पेश किया. वैसे तो तीनों ही महिलाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन विनर रही वह रोटी जो आशीर्वाद सलैक्ट आटे से बनी हुई थी.

रोटी मेकिंग की ऐक्टिविटी के बाद शैफ रमेश कुमार रौय ने आशीर्वाद शुगर रिलीज कंट्रोल आटे की खूबियां बताते हुए बताया कि अकसर जब हमारे परिवार में डायबिटीज पेशैंट स्वीट डिश की डिमांड करता है तो हम मना कर देते हैं जबकि उन्हें आप शुगर रिलीज कंट्रोल आटे व गुड़ से कैबेज पुडिंग क्रेप्स यानी पैन केक बना कर सर्व कर के उन की स्वीट डिश खाने की इच्छा पूरी कर सकते हैं.

शैफ की क्रिएटिव डिश की तारीफ करते हुए न्यूट्रिशनिस्ट मिस दिपांशी मल्होत्रा ने आशीर्वाद मल्टीग्रेन आटे में उपस्थित चीजों के फायदे बताते हुए कहा कि आप जितना पौष्टिक भोजन खाएंगे आप अंदर से उतना ही फिट रहेंगे. इसलिए फास्टफूड से ज्यादा हैल्दी खाने पर जोर दें. बीचबीच में ऐंकर ने औडियंस को गेम्स खेल कर उन्हें प्राइज जीतने का मौका दिया.

इस के बाद मोस्ट पौपुलर दीवा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिस में आशीर्वाद पौपुलर आटे के साथसाथ कुछ इंग्रीडीऐंड्स दे कर डिश बनाने को कहा जिस में कोमल ने आटे का चीला बना कर न सिर्फ मोस्ट पौपुलर दीवा का अवार्ड जीता बल्कि बहुत ही फुरती से बना कर बता दिया कि कुछ भी असंभव नहीं, वहीं सीमा मित्तल का आटे का चीला भी तारीफ के काबिल रहा.

अंत में रैसिपी विनर्स की घोषणा की गई. बीट फ्लोर डोसा बना कर विजय ने सांत्वना पुरस्कार जीता, तो वहीं तृतीय पुरस्कार जीता आटा ओट्स बना कर मिस गीतांजलि बंसल ने. द्वितीय पुरस्कार विजेता रहीं आटे की सब्जी बना कर मिस सरिता अग्रवाल. फर्स्ट रनरअप रहीं रोडानजा बनाने वाली ममता काली और प्रथम पुरस्कार जीता चपाती नूडल्स बना कर मिस सरिका गुप्ता ने. प्रतियोगिता के अंत में सभी को गुडी बैग्स दिए गए.

रसोई को बेहतरीन लुक देना है तो तरीका हम से जानिए

अगर आप की किचन कुछ बड़ी है और उस के मध्य में कुछ जगह बच रही हो तो आप अपनी किचन में आईलैंड अवश्य बनाएं. किचन आईलैंड आप की किचन को बेहतरीन लुक देगा. उस की सुंदरता और बढ़ जाएगी. इस के अलावा इस के और भी फायदे हो सकते हैं.

आईलैंड फिक्स्ड भी हो सकता है और मोबाइल भी. मोबाइल आईलैंड के कुछ अलग फायदे हैं.

आईलैंड के फायदे

– आईलैंड के नीचे दोनों तरफ आप अतिरिक्त कैबिनेट, ड्राअर और शैल्फ बना सकती हैं. इस तरह किचन आईलैंड में अतिरिक्त स्टोरेज के लिए जगह होगी.

– आप इस के  अंदर रिसाइकल बिन रख कर उस में किचन वेस्ट रख सकती हैं.

– आवश्यकता पड़ने पर यह अतिरिक्त डाइनिंग टेबल का काम भी कर सकता है. इस की दोनों तरफ आप कुरसियां रख सकती हैं.

– आप के घर में कोई पार्टी या गैटटुगैदर हो तो इस पर खानेपीने का सामान सजा सकती हैं.

– यह आप के लिए अतिरिक्त काउंटर स्पेस देगा. अगर आईलैंड मोबाइल हो और ऐक्स्ट्रा फ्लोर स्पेस की जरूरत पड़े तो इसे आप हटा सकती हैं.

– किचन आईलैंड में आप चाहें तो ऐक्स्ट्रा सिंक या वाशबेसिन भी रख सकती हैं.

– आईलैंड टौप के मध्य में आप गुलदस्ते में फूल या अन्य सजावट का सामान रख सकती हैं.

– आप इसे अपनी निजी जरूरत के अनुसार बनवा सकती हैं. अगर यह स्थाई हो तो इस में बिजली और पानी की लाइन रख कर मिक्सी, टोस्टर आदि यंत्र भी रख सकती हैं.

– आप चाहें तो किचन आईलैंड में बरतन धोने की मशीन डिशवाशर भी लगा सकती हैं.

बेसन के ब्यूटी कनैक्शन के बारे में जानती हैं आप

बेसन के नाम से जाने जाना वाला चने का आटा रसोई में तो इस्तेमाल होता ही है, साथ ही साफ और दमकती त्वचा पाने का भी बेहद पुराना तरीका है. बेसन त्वचा की सफाई तो करता ही है, साथ ही इस में रंग गोरा करने का खास गुण भी पाया जाता है. अगर आप प्राकृतिक रूप से गोरा होना चाहती हैं, तो रोजाना बेसन का प्रयोग करें.

बेसन को कई तरह के उत्पादों के साथ मिला कर त्वचा के सौंदर्य को प्राकृतिक रूप से बढ़ाया जा सकता है. इस की सब से अच्छी बात यह है कि यह हर तरह की त्वचा पर प्रयोग किया जा सकता है. इस से किसी तरह का नुकसान नहीं होता.

बिना किसी झिझक के किसी भी त्वचा पर बेसन का इस्तेमाल कर सकती हैं. चाहे त्वचा तैलीय हो, शुष्क हो या फिर संवेदनशील. बेसन टैन और मृत त्वचा को निकालने में मदद करता है और साथ ही देता है कांति भरी त्वचा. गोरा बनाने के साथ ही बेसन त्वचा की कई समस्याओं को भी दूर करता है. यह मुरझाई त्वचा को ठीक करता है. कीलमुंहासों और काली होती त्वचा के लिए बेसन बेहतरीन इलाज है.

बेसन के फायदे

त्वचा पर बेसन का फेस पैक एवं मास्क का प्रयोग कर के आप इसे चमकदार तथा गोरा बना सकती हैं. बेसन क्षारीय होता है, जिसे दही में मिला कर अम्लीय बनाया जा सकता है. अपनी त्वचा के मुताबिक बेसन फेस पैकों को इस्तेमाल करें.

पुराने जमाने से ही महिलाएं बेसन को चेहरे और बालों पर लगाती आ रही हैं.

अगर गरदन और बगलें काली हैं तो भी बेसन पैक लगा कर उन्हें साफ किया जा सकता है.

आइए, जानते हैं बेसन के सौंदर्य लाभ आश्मीन मुंजाल से:

मुंहासे दूर करने के लिए: अगर आप की त्वचा पर बहुत पिंपल्स होते हैं तो परेशान न हों. बेसन के साथ चंदन पाउडर, हलदी और दूध मिलाइए और चेहरे पर 20 मिनट तक लगा रहने के बाद धो लें. इसे हफ्ते में कम से कम 3 बार लगाएं. इस के अलावा बेसन में शहद मिला कर चेहरे पर लगा कर भी मुंहासों की समस्या से निबटा जा सकता है.

औयली स्किन के लिए: अगर आप की स्किन औयली है तो आप दही, रोजवाटर और बेसन का पेस्ट चेहरे पर लगा सकती है. इस से त्वचा से सारी गंदगी साफ हो जाएगी और वह कोमल हो जाएगी. बेसन, शहद, चुटकी भर हलदी और थोड़ा सा दूध मिला कर पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं, 20 मिनट बाद चेहरे को धो लें.

खुले रोमछिद्रों के लिए: त्वचा को साफ रखने व रोमछिद्रों को टाइट करने के लिहाज से भी बेसन फायदेमंद है. इस के लिए बेसन और खीरे के रस को मिला कर पेस्ट बनाएं. फिर फेसपैक की तरह ही इस का इस्तेमाल करें. सूखने के बाद ठंडे पानी से धो लें. खुले रोमछिद्रों की समस्या दूर हो जाएगी.

टैनिंग दूर करने के लिए: बेसन टैनिंग दूर करने के लिए काफी प्रभावशाली माना जाता है. टैनिंग दूर करने वाले इस पैक को बनाने के लिए 4 बादाम का पाउडर, 1 चम्मच दूध, थोड़ा नीबू रस व बेसन मिला कर चेहरे पर 30 मिनट तक लगाए रखने के बाद चेहरे को धो लें. कुछ दिन लगातार इस्तेमाल करने से टैनिंग दूर हो जाएगी.

अनचाहे बालों के लिए: अगर आप के चेहरे पर अनचाहे बाल हैं और आप ब्लीच नहीं करना चाहती हैं तो इस के लिए भी बेसन काम कर सकता है. बेसन में थोड़ा सा नीबू का रस और पानी की कुछ बूंदें मिला कर गाढ़ा पेस्ट बनाएं और फिर प्रभावित स्थानों पर हलके हाथों से इस पेस्ट को रगड़ें. कुछ देर चेहरे पर लगे रहने के बाद यानी जब वह सूख जाए तो चेहरे को धो लें. आप इस में मेथी के दानों को भी पीस कर मिला सकती हैं.

रूखी त्वचा के लिए: इस की समस्या से बचने के लिए बेसन आप की मदद कर सकता है. इस के लिए बेसन में मलाई या दूध, शहद और 1 चुटकी हलदी मिलाएं और इस पैक को करीब 15-20 मिनट चेहरे पर लगाए रखने के बाद चेहरे को पानी से धो लें. बेसन लगाने से रूखी त्वचा को प्राकृतिक नमी मिलती है और उस में निखार आता है.

डार्क अंडर आर्म्स और गले के लिए: कई महिलाएं अपनी बगलों और गरदन की सफाई पर ध्यान नहीं देतीं. इस वजह से इन जगहों की त्वचा का रंग डार्क हो जाता है. अत: इन स्थानों को साफ और गोरा रखने के लिए बेसन, दही और हलदी को मिला कर इन जगहों पर लगाएं. 30 मिनट बाद धो कर तिल के तेल से मसाज करें.

समझौता : भाग 1

जब मां का फोन आया, तब मैं बाथरूम से बाहर निकल रहा था. मेरे रिसीवर उठाने से पहले ही शिखा ने फोन पर वार्त्तालाप आरंभ कर दिया था. मां उस से कह रही थीं, ‘‘शिखा, मैं ने तुम्हें एक सलाह देने के लिए फोन किया है. मैं जो कुछ कहने जा रही हूं, वह सिर्फ मेरी सलाह है, सास होने के नाते आदेश नहीं. उम्मीद है तुम उस पर विचार करोगी और हो सका तो मानोगी भी…’’

‘‘बोलिए, मांजी?’’ ‘‘बेटी, तुम्हारे देवर पंकज की शादी है. वह कोई गैर नहीं, तुम्हारे पति का सगा भाई है. तुम दोनों के व्यापार अलग हैं, घर अलग हैं, कुछ भी तो साझा नहीं है. फिर भी तुम लोगों के बीच मधुर संबंध नहीं हैं बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि संबंध टूट चुके हैं. मैं तो समझती हूं कि अलगअलग रह कर संबंधों को निभाना ज्यादा आसान हो जाता है.

‘‘वैसे उस की गलती क्या है…बस यही कि उस ने तुम दोनों को इस नए शहर में बुलाया, अपने साथ रखा और नए सिरे से व्यापार शुरू करने को प्रोत्साहित किया. हो सकता है, उस के साथ रहने में तुम्हें कुछ परेशानी हुई हो, एकदूसरे से कुछ शिकायतें भी हों, किंतु इन बातों से क्या रिश्ते समाप्त हो जाते हैं? उस की सगाई में तो तुम नहीं आई थीं, किंतु शादी में जरूर आना. बहू का फर्ज परिवार को जोड़ना होना चाहिए.’’ ‘‘तो क्या मैं ने रिश्तों को तोड़ा है? पंकज ही सब जगह हमारी बुराई करते फिरते हैं. लोगों से यहां तक कहा है, ‘मेरा बस चले तो भाभी को गोली मार दूं. उस ने आते ही हम दोनों भाइयों के बीच दरार डाल दी.’ मांजी, दरार डालने वाली मैं कौन होती हूं? असल में पंकज के भाई ही उन से खुश नहीं हैं. मुझे तो अपने पति की पसंद के हिसाब से चलना पड़ेगा. वे कहेंगे तो आ जाऊंगी.’’

‘‘देखो, मैं यह तो नहीं कहती कि तुम ने रिश्ते को तोड़ा है, लेकिन जोड़ने का प्रयास भी नहीं किया. रही बात लोगों के कहने की, तो कुछ लोगों का काम ही यही होता है. वे इधरउधर की झूठी बातें कर के परिवार में, संबंधों में फूट डालते रहते हैं और झगड़ा करा कर मजा लूटते हैं. तुम्हारी गलती बस इतनी है कि तुम ने दूसरों की बातों पर विश्वास कर लिया. ‘‘देखो शिखा, मैं ने आज तक कभी तुम्हारे सामने चर्चा नहीं की है, किंतु आज कह रही हूं. तुम्हारी शादी के बाद कई लोगों ने हम से कहा, ‘आप कैसी लड़की को बहू बना कर ले आए. इस ने अपनी भाभी को चैन से नहीं जीने दिया, बहुत सताया. अपनी भाभी की हत्या के सिलसिले में इस का नाम भी पुलिस में दर्ज था. कुंआरी लड़की है, शादी में दिक्कतें आएंगी, यही सोच कर रिश्वत खिला कर उस का नाम, घर वालों ने उस केस से निकलवाया है.’

‘‘अगर शादी से पहले हमें यह समाचार मिलता तो शायद हम सचाई जानने के लिए प्रयास भी करते, लेकिन तब तक तुम बहू बन कर हमारे घर आ चुकी थीं. कहने वालों को हम ने फटकार कर भगा दिया था. यह सब बता कर मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहती, बल्कि कहना यह चाहती हूं कि आंखें बंद कर के लोगों की बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए. खैर, मैं ने तुम्हें शादी में आने की सलाह देने के लिए फोन किया है, मानना न मानना तुम्हारी मरजी पर निर्भर करता है,’’ इतना कह कर मां ने फोन काट दिया था. मां ने कई बार मुझे भी समझाने की कोशिश की थी, किंतु मैं ने उन की पूरी बात कभी नहीं सुनी. बल्कि,? उन पर यही दोषारोपण करता रहा कि वह मुझ से ज्यादा पंकज को प्यार करती हैं, इसलिए उन्हें मेरा ही दोष नजर आता है, पंकज का नहीं. इस पर वे हमेशा यहां से रोती हुई ही लौटी थीं.

लेकिन सचाई तो यह थी कि मैं खुद भी पंकज के खिलाफ था. हमेशा दूसरों की बातों पर विश्वास करता रहा. इस तरह हम दोनों भाइयों के बीच खाई चौड़ी होती चली गई. लेकिन फोन पर की गई मां की बातें सुन कर कुछ हद तक उन से सहमत ही हुआ. मां यहां नहीं रहती थीं. शादी की वजह से ही पंकज के पास उस के घर आई हुई थीं. वे हम दोनों भाइयों के बीच अच्छे संबंध न होने की वजह से बहुत दुखी रहतीं इसीलिए यहां बहुत कम ही आतीं.

लोग सही कहते हैं, अधिकतर पति पारिवारिक रिश्तों को निभाने के मामले में पत्नी पर निर्भर हो जाते हैं. उस की नजरों से ही अपने रिश्तों का मूल्यांकन करने लगते हैं. शायद यही वजह है, पुरुष अपने मातापिता, भाईबहनों आदि से दूर होते जाते हैं और ससुराल वालों के नजदीक होते जाते हैं.

दूसरों शब्दों में यों भी कहा जा सकता है कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में अपने रक्त संबंधों के प्रति अधिक वफादार होती हैं. इसीलिए अपने मायके वालों से उन के संबंध मधुर बने रहते हैं. बल्कि कड़ी बन कर वे पतियों को भी अपने परिवार से जोड़ने का प्रयास करती रहती हैं. वैसे पुरुष का अपनी ससुराल से जुड़ना गलत नहीं है. गलत है तो यह कि पुरुष रिश्तों में संतुलन नहीं रख पाते, वे नए परिवार से तो जुड़ते हैं, किंतु धीरेधीरे अपने परिवार से दूर होते चले जाते हैं. भाईभाई में, भाईबहनों में कहासुनी कहां नहीं होती. लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं होता कि संबंध समाप्त

कर लिए जाएं. मेरे साथ यही हुआ, जानेअनजाने मैं पंकज से ही नहीं, अपने परिवार के अन्य सदस्यों से भी दूर होता चला गया. सही माने में देखा जाए तो संपन्नता व कामयाबी के जिस शिखर पर बैठ कर मैं व मेरी पत्नी गर्व महसूस कर रहे थे, उस की जमीन मेरे लिए पंकज ने ही तैयार की थी. उस के पूर्ण सहयोग व प्रोत्साहन के बिना अपनी पत्नी के साथ मैं इस अजनबी शहर में आने व अल्प पूंजी से नए सिरे से व्यवसाय शुरू करने की बात सोच भी नहीं सकता था. उस का आभार मानने के बदले मैं ने उस रिश्ते को दफन कर दिया. मेरी उन्नति में मेरी ससुराल वालों का 1 प्रतिशत भी योगदान नहीं था, किंतु धीरेधीरे वही मेरे नजदीक होते गए. दोष शिखा का नहीं, मेरा था. मैं ही अपने निकटतम रिश्तों के प्रति ईमानदार नहीं रहा. जब मैं ने ही उन के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाया तो मेरी पत्नी शिखा भला उन रिश्तों की कद्र क्यों करती?

समाज में साथ रहने वाले मित्र, पड़ोसी, परिचित सब हमारे हिसाब से नहीं चलते. हम में मतभेद भी होते हैं. एकदूसरे से नाखुश भी होते हैं, आगेपीछे एकदूसरे की आलोचना भी करते हैं, लेकिन फिर भी संबंधों का निर्वाह करते हैं. उन के दुखसुख में शामिल होते हैं. फिर अपनों के प्रति हम इतने कठोर क्यों हो जाते हैं? उन की जराजरा सी त्रुटियों को बढ़ाचढ़ा कर क्यों देखते हैं? कुछ बातों को नजरअंदाज क्यों नहीं कर पाते? तिल का ताड़ क्यों बना देते हैं? मैं सोचने लगा, पंकज मेरा सगा भाई है. यदि जानेअनजाने उस ने कुछ गलत किया या कहा भी है तो आपस में मिलबैठ कर मतभेद मिटाने का प्रयास भी तो कर सकते थे. गलतफहमियों को दूर करने के बदले हम रिश्तों को समाप्त करने के लिए कमर कस लें, यह तो समझदारी नहीं है. असलियत तो यह है कि कुछ शातिर लोगों ने दोस्ती का ढोंग रचाते हुए हमें एकदूसरे के विरुद्ध भड़काया, हमारे बीच की खाई को गहरा किया. हमारी नासमझी की वजह से वे अपनी कोशिश में कामयाब भी रहे, क्योंकि हम ने अपनों की तुलना में गैरों पर विश्वास किया.

जिन्ना का जिन्न : एक व्यर्थ की बहस की शुरुआत

विभाजन के गड़े मुरदे मोहम्मद अली जिन्ना को, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में लगे उन के चित्र को ले कर, उखाड़ा जा रहा है. एक व्यर्थ की बहस की शुरुआत की गई है कि 1947 में देश के विभाजन के लिए आखिर जिम्मेदार कौन था – मोहम्मद अली जिन्ना जो पाकिस्तान के कायदे आजम बने या कांग्रेस जिस ने उस के बाद दशकों तक राज किया? विभाजन एक ऐसी बात थी जिस का 1947 से पहले चाहे अंदाजा था पर उसे इस बुरी तरह मारपीट की शक्ल मिलेगी, इस का अंदाजा नहीं था. भारत में नरसंहार के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराया जाता है और पाकिस्तान में हिंदुओं को. कोई भी यह कहने को तैयार नहीं है कि असल में जिम्मेदार कौन था और कितना गुनाहगार था. आज इस बात को न उठाया जाए तो ही अच्छा है, क्योंकि इस में बहुत सी कड़वी सचाइयां ही सामने नहीं आएंगी, बल्कि 1947 के विभाजन के कारण जो आज भी सामने हैं, दिखने लगेंगे.

आज जिस तरह भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है और गांधी की मूर्तियों पर कालिख पोती जा रही है उस से साफ है कि देश का एक वर्ग उन्हीं मूर्तियों को चाहता है जिन के जरिए वह पैसा उगाहने में सफल हो. देश के कोनेकोने में देवीदेवताओं की मूर्तियों को लगाया जा रहा है, क्योंकि उन के माध्यम से वे ही लोग पैसा कमा रहे हैं जो जिन्ना के फोटोग्राफ या अंबेडकर की मूर्तियों से चिढ़ रहे हैं. 1947 की बात याद दिला कर कट्टरपंथी असल में यह बात दोहरा रहे हैं कि देश में पौराणिक राज चलेगा और जिसे पौराणिक अभयदान नहीं है उस की देश में जरूरत नहीं है. इन लोगों ने अपनी गिनती कुछ को बहलाफुसला कर बढ़ा ली है वरना ये धर्म के पैरोकार रहते हुए भी बेचारे ही थे. अब हिंदूमुसलिम राग आलाप कर असल में वे जाति के घाव कुरेद रहे हैं जो वर्षों से ढके हुए हैं.

मोहम्मद अली जिन्ना की फोटो का अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में कोई खास औचित्य नहीं है और वैसे ही किसी देवीदेवता, मदन मोहन मालवीय, दयानंद, दीनदयाल उपाध्याय, जवाहरलाल नेहरू, मोहनदास कर्मचंद गांधी के चित्रों का भी कोई महत्त्व नहीं है. ये सब इतिहास की किताबों में शोभा देते हैं, दीवारों और सड़कों पर नहीं.

लौन्च के साथ ही विवादों में घिरा रामदेव का किंभो मैसेजिंग ऐप

रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने एक इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप किंभो (Kimbho) को लौन्च किया है. कंपनी इसे व्हाट्सऐप के एक ‘स्वेदशी’ विकल्प के तौर पर पेश करना चाहती है. हालांकि, एंड्रायड और आईओएस प्लेटफार्म पर लाए गए Kimbho App को कई जानकारों ने बेहद ही असुरक्षित करार दिया है. एलियट एंडरसन नाम के एक फ्रेंच सिक्योरिटी रिसर्चर ने तो इस ऐप को सिक्योरिटी के नाम पर मजाक बताया है.

इस ऐप को एंड्रायड के ऐप मार्केट प्लेटफार्म गूगल प्ले से हटा भी लिया गया है, लेकिन यह ऐप्पल ऐप स्टोर पर अब भी डाउनलोड के लिए उपलब्ध है. इस प्लेटफार्म पर सोशल नेटवर्किंग कैटेगरी में यह ऐप चौथे स्थान पर दिखा रहा है. व्हाट्सऐप, फेसबुक और फेसबुक मैसेंजर के बाद. वैसे, रामदेव ने अभीतक इस ऐप को लेकर सार्वजनिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन उनके आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किंभो ऐप लान्च से संबंधित ट्वीट को रिट्वीट जरूर किया गया है.

Alderson (@fs0c131y) नाम के ट्विटर हैंडल से साझा किए गए स्क्रीनशाट के मुताबिक, किंभो ऐप में आसानी से पढ़ जाने वाले JSON सिंटेक्स में यूजर डेटा को स्टोर किया जाता है. उन्होंने इस ऐप को एक मजाक और बेहद ही असुरक्षित करार दिया. उन्होंने दावा किया है कि वे आसानी से सभी यूजर के मैसेज को पढ़ पा रहे थे. एक वीडियो के जरिए उन्होंने यह भी दिखाया कि वह कितनी आसानी से 0001 और 9999 के बीच के किसी भी सिक्योरिटी कोड को चुन पा रहे थे और अपनी पसंद के किसी भी नंबर को भेजने में सफल रहे.

एक और ट्विटर यूजर ने दावा किया कि इस नए ऐप को बोलो नाम के ऐप पर बनाया गया है और पतंजलि की टीम तो ऐप के अंदर कई जगह पर बोलो की जगह किंभो का नाम इस्तेमाल करना भी भूल गई. देखा जाए तो किंभो की लिस्टिंग पेज पर दिया गया ब्योरा बोलो ऐप के पेज पर दिए गए ब्योरे से पूरी तरह से मेल खाता है, सिर्फ नाम बदल दिया गया है. दूसरी तरफ, इस ऐप को डाउनलोड करने वाले कई यूजर भी निराश हुए. एक ने ट्वीट किया कि ऐप पर बार-बार सर्वर एरर दिखा रहा है. दूसरे ने दावा किया कि मैसेज भी डिलीवर नहीं हो रहे हैं.

इससे पहले कथित तौर पर पतंजलि आयुर्वेद के प्रवक्ता एसके तिजारवाला ने ट्विटर पर Kimbho ऐप के लान्च के बारे में ऐलान किया था. उनके मुताबिक, किंभो एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है- आप कैसे हैं? मजेदार बात यह है कि एंड्रायड ऐप को पतंजलि कम्युनिकेशन्स द्वारा डेवलप किया गया है. वहीं, आईओएस पर अप्लाइज इंक को डेवलपर के तौर पर लिस्ट किया गया है.

कहीं आपने भी तो नहीं पाल रखी हैं गैजेट्स से जुड़ी ये गलतफहमियां..!

दौड़-भाग के इस दौर में हमारा आमना-सामना अक्सर ऐसी बातों से भी होता है, जो सच नहीं होतीं लेकिन बड़े भरोसे के साथ कही गई होती हैं. बड़े भरोसे के साथ कही गई बात यानी कि गलतफहमियां. जिंदगी हो या टेक्नालजी की दुनिया, गलतफहमियों का बोलबाला हर जगह है. हमारे दोस्त, परिजन, अजनबी कई बार हमें ऐसा कुछ बता देते हैं, जिसकी पड़ताल किए बिना ही हम उसे सच मानने लगते हैं. ऐसे में कई बार हमें नुकसान तो उठाना पड़ता ही है. साथ ही एक गलत जानकारी को हम बेधड़क आगे भी बढ़ा रहे होते हैं. तो क्यों ना आज हम उन गलतफहमियों पर बात करें जो जुड़ीं हैं टेक्नौलजी से-

ज्यादा खंभे मतलब ज्यादा सिग्नल

आपके फोन के ऊपरी हिस्से में दायीं या बायीं ओर सिग्नल के डंडे होते हैं. ऐसा मान लिया गया है कि ये जितने ज्यादा होंगे, सिग्नल कनेक्टिविटी उतनी ही मजबूत होगी. दरअसल, ये डंडे आपके फोन की नजदीकी टावर से निकटता दिखाते हैं. ऐसे में इन्हें यह बिल्कुल ना समझें कि पूरी डंडे आने पर आपके फोन का सिग्नल बिंदास काम कर रहा है.

मेगापिक्सल ज्यादा तो कैमरा होगा मस्त

इस मिथ को समझने के लिए आपको समझना होगा पिक्सल क्या होता है? दरअसल, कोई भी तस्वीर छोटे-छोटे डाट से मिलकर बनती है, जिन्हें पिक्सल कहा जाता है. इनसे मिलकर ही तस्वीर तैयार होती है. ये पिक्सल, हजारों-लाखों छोटे-छोटे डाट से बनते हैं, जो आम तौर पर आपको फोटो में नजर नहीं आते. कैमरे की गुणवत्ता तय होती है कैमरा लेंस, लाइट सेंसर, इमेज प्रोसेसिंग हार्डवेयर और सौफ्टवेयर की जुगलबंदी से. उदाहरण के लिए आईफोन 6, जो 8 मेगापिक्सल कैमरे के साथ आता है और बाजार में मौजूद कई 13 मेगापिक्सल कैमरे वाले फोन को मात दे देता है. फोन में अतिरिक्त मेगापिक्सल सिर्फ आपकी प्रिंट की गई तस्वीर में सहायक हो सकते हैं. यहां एक बात और साफ कर दें कि कोई भी फोन कैमरा, कभी भी डीएसएलआर की कमी पूरी नहीं कर सकता.

प्रोसेसर हो ज्यादा कोर वाला

मल्टी कोर प्रोसेसर आपके फोन के कामों को एक-दूसरे में बांट देते हैं, जिससे टास्क जल्दी संभव हो. डुअल कोर, आक्टा कोर, क्वाड कोर किसी भी सीपीयू में प्रोसेसर की संख्या बयां करते हैं. डुअल मतलब 2, आक्टा का अर्थ 8 और क्वाड का आशय 4 होता है. क्वाड कोर प्रोसेसर सिंगल और डुअल कोर प्रोसेसर से उसी दशा में तेज हो सकता है, जब उसे दिए गए काम उसकी क्षमताओं से मेल खाते हों. कुछ ऐप खास तौर से सिंगल या डुअल कोर प्रोसेसर पर चलने के लिए बने होते हैं. ये अतिरिक्त पावर वहन नहीं कर पाते. साथ ही अतिरिक्त कोर से यूजर अनुभव में कोई सुधार नहीं आता. उदाहरण के लिए आक्टा कोर प्रोसेसर पर चल रहे एचडी वीडियो की गुणवत्ता फोन के इंटीग्रेटेड ग्राफिक्स की वजह से भी बिगड़ सकती है. इसलिए क्लाक स्पीड और प्रोसेसर की संख्या ‘रामबाण’ इलाज है, ऐसा कहना गलत होगा. इसलिए ही आईफोन उन कुछ फोन से बेहतर प्रदर्शन करते पाए गए, जिनमें डुअल या ज्यादा कोर इस्तेमाल हुए थे.

ऐप्पल के सिस्टम में वायरस नहीं आता

संभव है, आपने भी कभी अपने ऐप्पल डिवाइस रखने वाले दोस्त से सुना हो – इसमें वायरस कभी आ ही नहीं सकता. दरअसल, दुनिया में ऐसा शायद ही कोई सिस्टम बना है, जिसमें वायरस का प्रवेश ना हो सकता हो. इतना जरूर है कि ऐप्पल के मैक कंप्यूटर का बाकी विंडोज पीसी के मुकाबले ट्रैक रिकार्ड अच्छा है. इसका एक कारण यह भी है कि मैक से ज्यादा संख्या विंडोज पीसी की रही है.

चुपके से करना है ब्राउज तो खोलो इनकाग्निटो

यह अफवाह भी टेक्नौलजी का इस्तेमाल करने वालों के बीच है कि इनकाग्निटो विंडो सबसे सुरक्षित विकल्प है. हर ब्राउजर में एक प्राइवेट विंडो का विकल्प रहता है. दरअसल, सच यह है कि आप इस विंडो में जितनी भी साइट को विजिट कर रहे हैं, आपका ब्यौरा आपके इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और साइट से छिपा नहीं सकते. इस बात को बिल्कुल अपने दिमाग से निकाल दें कि आप इनकाग्निटो पर कुछ भी विजिट करेंगे तो वह सिर्फ आपके और आपके कम्प्यूटर के बीच रहेगा. गूगल क्रोम पर आप इनकाग्निटो को सीधे CTRL + SHIFT + N से खोल सकते हैं. वहीं, इंटरनेट एक्सप्लोरर, सफारी पर इसके लिए आपको CTRL + SHIFT + P दबाना होगा. मैक के लिए यह शार्टकट CTRL + OPTION + P होगा.

‘लवरात्रि’ के विरोध में हिंदू संगठन, सलमान को पीटने वाले को मिलेगा 2 लाख इनाम

सलमान खान प्रोडक्शन की फिल्म लवरात्रि इस समय मुसीबतों मे घिरती नजर आ रही है. इस फिल्म से सलमान खान के जीजा आयुष शर्मा फिल्मी सफर की शुरुआत करने जा रहे हैं. यह फिल्म सितंबर में रिलीज होनी है. लेकिन रिलीज से पहले ही इसका काफी विरोध किया जा रहा है. विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया के नए संगठन ‘हिंदू ही आगे’ के आगरा इकाई प्रमुख गोविंद पराशर ने सलमान खान पर हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया है. इसी के साथ ही पराशर ने सलमान को सार्वजनिक रूप से पीटने वाले को दो लाख रुपये ईनाम देने का भी ऐलान किया है.

गुरुवार को इस संगठन ने आगरा में सलमान खान का पुतला फूंका. अपने कई सहयोगियों के साथ सड़क पर उतरकर पराशर ने फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की. उन्होंने कहा कि वह फिल्म को रिलीज नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा कि फिल्म का नाम लवरात्रि है जो हिंदुओं के त्योहार नवरात्रि का मजाक उड़ा रहा है. इस नाम से हिंदुओं की भावनाएं आहत हो रही हैं.

गोविंद ने कहा कि सेंसर बोर्ड को इस मामले में हस्तक्षेप करके फिल्म की रिलीज पर रोक लगानी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर सेंसर बोर्ड ने इस नाम से फिल्म रिलीज होने पर रोक नहीं लगाई तो वे लोग आंदोलन करेंगे. बता दें कि पराशर ने ही संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत का भी विरोध किया था. साथ ही अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की नाक और गला काटकर लाने वाले को इनाम देने की भी घोषणा की थी.

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