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सामाजिक संदेश देने वाली फिल्म है ‘‘नागमणि – नाग का गहना’’

नाग और नागिन को लेकर अब तक हौरर या प्रतिशोध लेने वाली फिल्में ही बनती आई हैं, मगर पहली बार लेखक व निर्देशन के क्षेत्र में कदम रख रहे पति पत्नी प्रीति प्रकाश की जोड़ी नाग नागिन को ही केंद्र में रखकर वर्तमान समय के हालातों को देखते हुए एक सामाजिक संदेश परक फिल्म ‘‘नागमणि-नाग का गहना’’लेकर आ रहे हैं.

‘‘मां कैलादेवी फिल्मस’’ के बैनर तले बाबू राजोरिया निर्मित इस फिल्म में इस बात को रेखांकित किया है कि कि वर्तमान समय में पैसा कमाने की अंधी दौड़ में नई पीढ़ी किस तरह अपने जमीर को बेच रही है. खुद फिल्म की कहानी व पटकथा लेखक तथा निर्देशक जोड़ी की प्रीति कहती हैं- ‘‘यूं तो हमारी फिल्म ‘नागमणि-नाग का गहना’ में मुख्य तौर से एक नाग-नागिन के प्यार की कहानी है. कई बार लोग मजाक-मजाक में ऐसी बात बोल देते हैं, कि कभी-कभी वह सच भी हो जाती है और फिर उससे विभिन्न समस्याएं उपजती हैं. एक बार नागिन भी मज़ाक में ऐसी ही कुछ बात बोल जाती है, जिसके चलते बहुत सारे घटनाक्रम बन जाते हैं. इसके अलावा वर्तमान में देष व समाज में जो देखने-सुनने मिल रहा है कि लोग खासतौर से युवा पीढ़ी पैसे कमाने के लिए किस तरह गिर रहे हैं, किस तरह अपने जमीर को बेच रहे हैं, यही इसमें फोकस किया गया है.’’

निर्देशक जोड़ी प्रीति प्रकाश के प्रकाश मूलतः बुलंदशहर (उ.प्र.)निवासी हैं. वह तकरीबन 10-12 साल पहले फिल्में में गीत लिखने का सपना लेक मुंबई पहुंचे थे. पर सफलता न मिलते देख उन्होंने दक्षिण भारतीय भाषा की फिल्मों के हिंदी में डबिंग राइट्स लेकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रदर्शित करना शुरू कर दिया. इससे उन्होने धन व शोहरत दोनो कमाई. इसी दौरान दिल्ली से मुंबई आकर लेखक के तौर पर संघर्ष कर रही प्रीति से प्रकाश की मुलाकात हुई. समान रचनात्मक रूचि के चलते दोनो करीब आ गए और शादी कर ली. आज इनके दो बेटे हैं. अब अपनी निर्देषक जोड़ी बनाकर बतौर निर्देषक पहली फिल्म ‘नागमणि-नाग का गहना’लेकर आ रहे हैं.

फिल्म के दूसरे निर्देशक प्रकाश अपनी फिल्म की चर्चा करते हुए कहते हैं- फिल्म ‘नागमणि-नाग का गहना’ के बारे में हम लोग यही कहेंगे कि यह एक स्वस्थ मनोरंजक व पारिवारिक फिल्म है, जिसे प्रत्येक दर्शक-वर्ग के लोग पसंद करेंगे. फिल्म में जरा भी अश्लीलता नहीं है. इसमें कुल 6 गीत हैं, जिनके गायक कलाकार हैं शाहिद मालिया, खुशबू जैन, रमाकांत व्यास, अर्पिता बोबरे और गोविन्द विद्यार्थी आदि.यहां एक बात विशेष तौर से हम कहना चाहेंगे कि इस फिल्म का विषय नाग-नागिन वाली अन्य फिल्मों से एकदम हटकर है और उम्मीद है कि फिल्म अवश्य ही सफल होगी, सभी को पसंद आएगी.’’

फिल्म ‘‘नागमणि-नाग का गहना’’ के नायक बाबू राजोरिया हैं. अन्य कलाकर हैं- कंचन सोनी, प्रिया सचन, आशा व्यास, अजय राठौर, मनीषा सोनी, प्रतिभा गोरेगांवकर, अब्दुल गफ्फार खान और अरुण बख्शी आदि. लेखक – निर्देशक प्रीति – प्रकाश, गीत प्रदीप वर्मा, प्रीति-प्रकाश, संगीत रमाकांत व्यास व वैष्णव देवा, नृत्य अशोक संकट एवं सिनेमेटोग्राफर हिमांशु मिश्रा.

रुपये में गिरावट से आम आदमी को क्या होता है नुकसान

डौलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है. गुरुवार को भी रुपए में भारी गिरावट देखने को मिली. रुपया 28 पैसे की कमजोरी के साथ खुला. इस बड़ी गिरावट के साथ रुपए 69 के स्तर के बेहद करीब पहुंच गया है. यह इतिहास का सबसे निचला स्तर है. जानकारों की मानें तो रुपए में गिरावट जारी रह सकती है. लेकिन, अगर रुपया कमजोर होगा तो सिर्फ देश को ही नुकसान नहीं होता है बल्कि, आम आदमी पर रुपये की कमजोरी का बड़ा असर होता है. आइये जानते हैं अगर रुपया होगा कमजोर तो आप पर क्या फर्क पड़ेगा.

रुपये की कमजोरी से आपको होते हैं ये 4 बड़े नुकसान

महंगाई बढ़ने का खतरा

रुपया के सामने डौलर मजबूत होने से कच्चे तेल के दाम बढ़ जाएंगे. ऐसे में सीधे तो पर पेट्रोल-डीजल के दाम पर असर होगा. पिछले कुछ दिनों में क्रूड के सस्ता होने से पेट्रोल-डीजल के दाम में कटौती देखने को मिली थी. इसके अलावा जो देश कच्चे तेल का इंपोर्ट करते हैं, उन्हें ज्यादा रुपए खर्च करने पड़ेंगे. भारत के लिए ज्यादा खतरा इसलिए है क्योंकि, क्रूड के महंगा होने से सीधे तौर पर महंगाई बढ़ सकती है.

बढ़ेगा इंपोर्ट बिल

रुपया कमजोर होने की स्थिति में भारत जहां भी डौलर के मुकाबले पेमेंट करता है, वह महंगा हो जाएगा. सीधे तौर पर समझें को भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ जाएगा. इसका सीधा असर भी उपभोक्ताओं पर पड़ता है.

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विदेश में पढ़ाई होगी महंगी

अगर आपका बच्चा विदेश में पढ़ाई कर रहा है तो इससे उसकी पढ़ाई भी महंगी हो जाएगी. पहले के मुकाबले ज्यादा फीस, हौस्टल बिल्स और करेंसी कन्वर्ट के भी ज्यादा पैसे चुकाने होंगे.

विदेश घूमना महंगा होगा

रुपये की कमजोरी से विदेश यात्रा महंगी हो जाएगी. ज्यादातर देशों में डौलर में भुगतान होता है. करेंसी कन्वर्ट कराने के लिए भी आपको डौलर के मुकाबले ज्यादा भारतीय रुपये खर्च करने होंगे.

आम आदमी पर ये भी होगा असर

– रुपये के कमजोर होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

– रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात महंगा हो जाएगा.

– डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई में तेजी आ सकती है.

– भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम प्रोडक्‍ट आयात करता है.

– इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है.

– तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल की घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती हैं.

एयरसेल-मैक्सिस डील : जांच अधिकारी की होगी जांच

सर्वोच्च न्यायालय ने एयरसेल-मैक्सिस डील मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के जांच अधिकारी राजेश्वर सिंह के खिलाफ जांच को हरी झंडी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस हलफनामे को आधार बनाया है जिसमें कहा गया है कि किसी भी दोषी व्यक्ति को, चाहे वह कितने भी ऊंचे पद पर हो, उसे संरक्षण नहीं दिया जाएगा.

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि वह एयरसेल-मैक्सिस डील मामले की जांच को मुकाम पर ले जाएगा. डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने न्यायालय से कहा कि वे खुश हैं कि केंद्र सरकार एयरसेल-मैक्सिस डील मामले की जांच को मुकाम तक पहुंचाने के दौरान ईडी अधिकारी के खिलाफ लगे आरोपों की भी जांच करेगी.

राजेश्वर सिंह के खिलाफ आरोपों की जांच की मांग करने वाले रजनीश कपूर कल सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे. उन्होंने कोर्ट से कहा कि वे एक खोजी पत्रकार हैं. सुनवाई के दौरान आज केंद्र सरकार ने सीलबंद लिफाफे में राजेश्वर सिंह के खिलाफ जांच रिपोर्ट सौंपी थी.

रिपोर्ट पर जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा ने कहा था कि ईडी के अधिकारी राजेश्वर सिंह के खिलाफ इस जांच रिपोर्ट में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए संवेदनशील सूचनाएं हैं. इसे सबके साथ साझा नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी रिपोर्ट को देखने के बाद कल दोपहर बाद अपना फैसला सुनाया.

अर्जेंटीना की जीत के बाद माराडोना की तबीयत बिगड़ी

फीफा विश्व कप में मंगलवार को अर्जेंटीना ने नाइजीरिया को 2-1 से हराकर अंतिम-16 में प्रवेश कर लिया. अर्जेंटीना की इस जीत पर पूर्व कप्तान डिएगो माराडोना इतने खुश हुए कि उनकी तबीयत बिगड़ गई. जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया.

हालांकि इस घटना के दो घंटे बाद सोशल मीडिया पर एक फोटो पोस्ट कर दावा किया गया कि वो ठीक हैं और मॉस्को रवाना हो गए हैं. फोटो में माराडोना मुस्कुराते नजर आ रहे हैं. नाइजीरिया के खिलाफ मैच की शुरूआत में जब मेसी ने अर्जेंटीना को बढ़त दिलाई, तो माराडोना खुशी से उछल पड़े. उन्होंने अपने हाथों से छाती पर क्रॉस बनाया और आसमान की तरफ देखकर ईश्वर का शुक्रिया अदा किया.

नाइजीरिया ने जब दूसरे हाफ के शुरू में पेनल्टी पर बराबरी का गोल दागा, तो राडोना काफी परेशान दिख रहे थे, लेकिन जैसे ही 86वें मिनट में मार्कोस रोजो ने गोल दागा माडारोना उछल पड़े. उन्होंने अपने दोनों हाथों की बीच की उंगलियां मैदान की तरफ करके जश्न मनाया. लेकिन अंतिम सीटी बजने के तुरंत बाद उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता शुरू हो गई, जब सोशल मीडिया पर दिखाए गए एक वीडियो में दिखाया गया कि उन्हें चलने में दिक्कत हो रही है.

अर्जेंटीनी मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार माराडोना को रक्तचाप की वजह से परेशानी हुई थी. हालांकि अब उनकी तबीयत ठीक है.

युवतियां कैसे बनें पावरफुल

हर दिन समाचारपत्रों और टीवी पर यही खबर देखनेपढ़ने को मिलती है कि फलां जगह युवती के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ या फिर अपने ही जानकार ने मुंह काला किया… युवतियों के साथ हो रही यौन हिंसा और तेजाब फेंक कर उन्हें घायल करने की बढ़ती घटनाओं ने युवतियों में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है. लेकिन युवतियों को इन वारदातों से डरने के बजाय सतर्क रहने व ऐसी घटनाओं के खिलाफ ऐक्शन लेने की जरूरत है. इस संबंध में पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी से बातचीत की गई और उन्होंने कुछ ऐसी बातें बताईं जिन पर अमल कर के हम खुद ऐसी परेशानियों का सामना बोल्डली कर सकते हैं जैसे :

चुप न रहें

–       यदि कोई व्यक्ति आप को परेशान कर रहा है तो इस की शिकायत तुरंत अपने पेरैंट्स या टीचर्स से करें. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को भी सूचित करें.

कुछ खास ऐप्स भी काफी फायदेमंद

दामिनी : यह एक खास ऐप है जिसे चालू करते ही मोबाइल का कैमरा अपनेआप वीडियो बनाने लगता है. साथ ही मैसेज के साथसाथ वीडियो लिंक्स भी भेजता है.

आई फौलो : यह भी खास ऐप है जो मोबाइल को हिलाने पर आप की ‘हैल्प मी’ कौल 3 लोगों को एकसाथ भेजता है.

निम्न सावधानियां बरतना जरूरी :

–       अनजान लोगों पर भरोसा न करें.

–       जब भी अकेली हों तब अधिक  सतर्कता बरतें.

–       रात के समय अकेली कहीं न जाएं, ग्रुप में ही बाहर निकलें.

–       अनजाने या सुनसान रास्ते पर दिन में भी न जाएं.

–       आप कहां जा रही हैं इस की जानकारी घर के किसी सदस्य को अवश्य दें.

–       अनावश्यक रूप से किसी से बहस न करें.

–       सड़क पर चलते समय हैडफोन का इस्तेमाल न करें.

यदि अकेली रहती हैं तो…

कभीकभी नौकरी या पढ़ाई के कारण किसी शहर में जा कर वहां अकेले रहना मजबूरी बन जाती है. वहां आप या तो पीजी में रहती हैं या फिर किराए पर कमरा ले कर रहती हैं. ऐसी स्थिति में सतर्क रहने के साथसाथ निम्न बातों का भी ध्यान रखें :

–       जिस सोसायटी मेंआप बतौर किराएदार रह रही हैं वहां के सिक्योरिटी गार्ड के बारे में अच्छे से जानकारी ले लें.

–       कीहोल से देख कर ही दरवाजा खोलें.

–       किसी भी अनजान व्यक्ति को घर के भीतर न आने दें.

– अपनों से मधुर संबंध रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे आप के काम आ सकें.

–       रात को देर से घर लौटने की आदत से बचें

बनें बोल्ड, ऐट्मौस्फियर रखें बोल्ड

बोल्ड होना कोई दादागीरी या फिर रोब जमाना नहीं होता बल्कि अपने हक के लिए लड़ना, मुसीबत या बुरे समय में न घबराना और विपरीत परिस्थितियों को अपनी सूझबूझ से काबू करना होता है. दूसरे शब्दों में कहें तो बोल्डनैस स्मार्टनैस है यानी कि कठिन सिचुऐशन को पैनिक हुए बिना कौन्फिडैंस के साथ हैंडिल करना ही बोल्डनैस है. आइए, जानें हम कहां और कैसे बोल्ड हो सकते हैं :

गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से ब्रेकअप होने के बाद

गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से ब्रेकअप होने के बाद युवाओं की दुनिया ही बदल जाती है. उन का किसी भी काम में मन नहीं लगता, वे तनाव महसूस करते हैं व लोगों से कटेकटे से रहने लाते हैं. इस से आसपास का माहौल भी खराब होता है. लोग ऐसे लोगों से बात करने में कतराते हैं और उसे बेचारा समझ कर दया की नजर से देखते हैं.

लेकिन अगर ब्रेकअप के बाद आप को बेचारा नहीं बनना तो ब्रेकअप को बोल्डली हैंडिल करें. अगर आप का ब्रेकअप हो गया है तो उसे जिंदगी का अंत नहीं बल्कि जिंदगी की नई शुरुआत के तौर पर देखें. जिस तरह आप ने फ्रैंडशिप होने पर सैलिब्रेट किया था उसी तरह ब्रेकअप को भी सैलिब्रेट कर के अलग हों, ब्रेकअप के बाद एकदूसरे के दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त की तरह रहें. ऐक्स की जिंदगी में अगर कोई और आ जाता है तो उसे मुबारकबाद दें और खुद भी आगे बढ़ जाएं. आसपास के लोगों को भी यह बता दें कि यह आप के जीवन की कोई दुखद घटना नहीं है बल्कि लाइफ का एक फेस है जिसे ऐक्सैप्ट करते हुए आप आगे बढ़ रहे हैं.

नशे की लत

मजेमजे में एकाध बार दोस्तों के साथ नशा करने पर आप को पता ही नहीं चला कि कब उस की लत लग गई, उस की वजह से घर में मम्मी, पापा, बहन सब परेशान हैं. लेकिन आप को परेशान नहीं होना है और उन्हें कौन्फिडैंस के साथ कहना है कि अगर लत लग गई है तो क्या हुआ इसे छोड़ा भी जा सकता है. इसे एक बीमारी की तरह लें और उस का इलाज कराएं. योगा और अन्य उन सभी चीजों का इस्तेमाल करें जो नशे की लत को छुड़ाने में मददगार साबित हों. जब आप खुद अपने लिए इस तरह के स्टैंड लेंगे तो घर के लोगों और दोस्तों को भी आप पर विश्वास होगा और वे खुद हिम्मत हारने के बजाय इस में आप का साथ देंगे.

कैब में गड़बड़ होने पर

अगर आप कैब से सफर कर रहे हैं और आप को लगता है कि कैब ड्राइवर गलत है, उस के इरादे ठीक नहीं हैं या वह आप को अनजानसुनसान रास्तों से ले जा रहा है और उस के 1-2 साथी भी कैब में बैठे हैं तो उस सिचुऐशन को बोल्डली हैंडिल करें.

घबराएं नहीं और कैब ड्राइवर को यह एहसास न होने दें कि आप डर रही हैं बल्कि कौन्फिडैंटली उसे कहें कि आप इस रास्ते से नहीं जाना चाहतीं, आप उसे रास्ता खुद बताएंगी. साथ ही अपने घर वालों को तुरंत गाड़ी का नंबर आदि उस के सामने ही बताएं कि आप इस नंबर की गाड़ी से घर आ रही हैं.

जहां से कैब बुलाई है उस कंपनी में बात करें. जब उन्हें लगेगा कि आप डर नहीं रही हैं, तो उन की आधी हिम्मत तो वैसे ही टूट जाएगी. अगर फिर भी खतरा लगे और किसी भी रैड लाइट पर गाड़ी रुके तो किसी को बिना कुछ कहे तुरंत गाड़ी से उतर जाएं और कैब कंपनी व पुलिस को इस की शिकायत करें.

यदि इस पूरे मामले को आप बिना डरे, समझदारी और कौन्फिडैंस के साथ निबटाएंगी तो सुरक्षित बच निकलेंगी. यह न सोचें कि आप फंस गई हैं बल्कि यह सोचें कि इस स्थिति से निकलने का एक मौका तो है ही आप के पास और इस में आप सफल भी होंगी. यह सोचते ही आप को आसपास का वातावरण अपने पक्ष में लगने लगेगा.

नंबर कम आने पर

अगर आप के नंबर कम आए हैं और  किसी अच्छे कालेज में ऐडमिशन होने की उम्मीद भी नहीं बची है, तो ऐसे में हिम्मत हारने के बजाय ठंडे दिमाग से यह सोचें कि क्या कालेज में ऐडमिशन मिलना ही आखिरी रास्ता है या फिर आप अपनी जिंदगी में कुछ और चाहते हैं. एक बार फिर खुद को टटोलें कि कहीं आप की बिजनैस करने की इच्छा तो नहीं है. अगर ऐसा है तो अब अपने पेरैंट्स को बोल्डली बताएं कि नंबर कम आने की वजह ही यही है कि आप को पढ़ाई में रुचि नहीं है. अपनी लाइफ के लिए आप ने कुछ और ही सोचा हुआ है और उस में आप को सफलता जरूर मिलेगी, इसलिए इन नंबरों से कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो भी जो हुआ सो हुआ.  कालेज में ऐडमिशन नहीं मिल रहा है तो कोई बात नहीं बाकी औप्शंस के बारे में सोचें और प्रोफैशनल कोर्सेज के बारे में पता करें और पेरैंट्स को बताएं कि आप को यह बेहतर लग रहा है.

नई जौब मिलने पर

नई जौब में बिंदास रहें. जो काम नहीं आता है उस के लिए घबराएं नहीं बल्कि उसे सीखें. अपने आसपास के लोगों को यह बिलकुल भी जाहिर न होने दें कि आप नए हैं और आप को यह काम नहीं आता है बल्कि उन्हें बताएं और दिखाएं कि आप अपने काम को ले कर पूरी तरह कौन्फिडैंट हैं और आप सब कर सकते हैं बस, मौका मिलने की देर है. आगे बढ़ कर काम को अपने हाथ में लें और उसे समय पर पूरा कर अपनी एक अलग पहचान बनाएं.

चोरों के चंगुल में फंसने पर

अगर कभी रास्ते में गाड़ी रुकवा कर कोई आप को लूटने की कोशिश करे तो घबराएं नहीं बल्कि हिम्मत से सामना करें.इसी तरह अगर घर में चोर घुस जाएं तो घबराए बिना पहले यह देखें कि उन की संख्या कितनी है और क्या परिवार के सभी लोग मिल कर उन पर काबू पा सकेंगे. हमेशा याद रखें कि आप की संख्या यदि उन से अधिक है तो आप उन्हें आसानी से काबू कर लेंगे बस, हिम्मत का परिचय देना होगा और मन में विश्वास रखना होगा.

ईव टीजिंग का शिकार होने पर

कालेज हो, बस हो या फिर मार्केट हर जगह ऐसे लोग मिल ही जाते हैं जो अश्लील टिप्पणियां करने से बाज नहीं आते. लेकिन यह भी सच है कि वे उन्हीं युवतियों पर ज्यादा फबतियां कसते हैं जो उन की बातें सुनती हैं, बरदाश्त करती हैं और उन से डर कर अपना रास्ता बदलने की कोशिश करती हैं. अगर आप के साथ भी ऐसा हो तो डरें नहीं बल्कि उस का डट कर सामना करें. उन की बातों का जवाब दें और आसपास के लोगों को एकत्रित कर के उन की हरकतों के बारे में बताएं. तुरंत पुलिस को भी सूचित करें. आप का यह जोश देख कर पास खड़े लोग भी मदद के लिए जरूर आएंगे इसलिए ऐसे लोगों से डरें नहीं बल्कि तुरंत उन की शिकायत करें और उस का हल निकालें. रास्ता बदल देना समस्या का समाधान नहीं है बल्कि उसे जड़ से खत्म करना होगा.

रोटी बेटी के संबंध से टूटेगी दीवार

सुरभि अग्रवाल (बदला नाम) को साल 1990 में एक दलित नौजवान केदार (बदला नाम) से प्यार हो गया तो उस ने जातपांत, नातेरिश्तेदारी, घरपरिवार और समाज की परवाह न करते हुए केदार से शादी कर साबित कर दिया कि सच्चा प्यार वाकई ऊंचनीच नहीं देखता है.

लेकिन सुरभि यह भूल गई कि महज उस के देखने न देखने से कुछ नहीं होता, धर्मकानून और समाज कभी यह गवारा नहीं करता कि ऊंची जाति का कोई लड़का या लड़की छोटी जाति के लड़के या लड़की से शादी कर धर्म के बनाए नियमों को तोड़े. लिहाजा, ऐसे लोगों का पीछा शादी के बाद भी नहीं छोड़ा जाता.

शादी के बाद पति की जाति ही पत्नी की जाति हो जाती है इसलिए अकसर लड़कियां अपना सरनेम बदल कर पति का सरनेम अपना लेती हैं जो उन की नई पहचान बन चुका होता है.

केदार से शादी करने के बाद सुरभि ने बुलंदशहर के कलक्टर दफ्तर में पति की तरह अपने दलित होने का सर्टिफिकेट मांगा जो उन्हें दे भी दिया गया. इस सर्र्टिफिकेट की बदौलत सुरभि को सैंट्रल स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई.

अब चूंकि वे अनुसूचित जाति की हो चुकी थीं इसलिए उन्हें कोेटे के तहत प्रमोशन भी मिले और वे सैंट्रल स्कूल की वाइस प्रिंसिपल तक बन गईं.

सुरभि तो दुनिया की चालबाजियों से अनजान घरगृहस्थी में रम गई थीं लेकिन जलने वालों के कलेजे में ठंडक नहीं पड़ रही थी कि एक ऊंची जाति की लड़की दलित लड़के के साथ शादी कर धर्म और समाज के उसूल तोड़े.

उन्होंने स्कूल मैनेजमैंट से शिकायत कर दी कि सुरभि ने नाजायज तरीके से शैड्यूल कास्ट का सर्टिफिकेट हासिल किया है इसलिए वे नौकरी और प्रमोशन की हकदार नहीं हैं.

स्कूल वालों ने इस शिकायत पर कार्यवाही करते हुए सुरभि का जाति प्रमाणपत्र रद्द कर दिया तो वे इस के खिलाफ अदालत चली गईं. इलाहाबाद हाईकोर्ट में उन्हें अधूरा इंसाफ यह मिला कि उन की नौकरी तो कायम रहेगी लेकिन जाति प्रमाणपत्र फर्जी है.

सुरभि ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. 20 जनवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए यह कहा कि किसी भी औरत की जाति उस के जन्म से तय होती है न कि इस बात से कि उस ने दूसरी जाति के मर्द से शादी की है यानी एक अग्रवाल लड़की ने अनुसूचित जाति के लड़के से शादी की है इसलिए उसे अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि सुरभि का नौकरी का रिकौर्ड बेहतर है इसलिए उन्हें नौकरी से बरखास्त न किया जाए. रिटायरमैंट दे दी जाए.

यह है गड़बड़झाला

दूसरी जाति में शादी करना अब बेहद आम बात है लेकिन ऐसा बराबरी की जाति वालों में ही हो रहा है. हजारों नहीं बल्कि करोड़ों में से एकाध मामला ऐसा सामने आता है जिस में किसी ऊंची जाति वाले ने दलित से शादी की हो.

हालात वही हैं जो आजादी और उस के पहले थे इसलिए संविधान बनाने वालों का ध्यान इस तरफ नहीं गया था कि अगर कभी किसी ऊंची जाति वाले लड़के या लड़की ने दलित से शादी की तो उस की जाति बदलेगी या नहीं और बच्चों की जाति क्या होगी और क्या उन्हें भी रिजर्वेशन का फायदा मिलेगा.

सुरभि के मामले में आए फैसले से एक बात तो साफ हो गई कि कोई ऊंची जाति की लड़की किसी दलित लड़के से शादी करती है तो वह रिजर्वेशन की हकदार नहीं होगी लेकिन चूंकि पिता दलित है इसलिए उन से पैदा हुए बच्चे को रिजर्वेशन का फायदा मिलेगा.

इस के उलट अगर ऊंची जाति का लड़का किसी दलित लड़की से शादी करता है तो उन के बच्चे को रिजर्वेशन का फायदा नहीं मिलेगा, फिर भले ही बच्चे की मां दलित तबके की क्यों न हो.

society

मतलब औरत या मां होने के कोई माने नहीं हैं. सरकार औरतों के लिए तरहतरह की योजनाएं ला रही है. बच्चे की मार्कशीट और तमाम सरकारी दस्तावेजों में मां का नाम लिखा जाना भी जरूरी कर दिया गया है पर साफ दिख रहा है कि यह एक बेतुकी और बेवजह ही पीठ थपथपाने वाली बात है. समाज पर मर्दों का दबदबा है इसलिए बच्चा भी उन्हीं की जाति का माना जाता है.

औंधे मुंह गिरी योजना

दलित व ऊंचे तबके की खाई पाटने के मकसद से सरकार ने साल 2013 में एक योजना शुरू की थी. इस योजना का नाम था ‘डाक्टर अंबेडकर स्कीम फौर सोशल इंटीगे्रशन टू इंटरकास्ट मैरिज स्कीम 2013’.

इस योजना के तहत अगर कोई गैरदलित किसी दलित से शादी करता है तो उसे सरकार की तरफ से ढाई लाख रुपए दिए जाएंगे. सालाना 500 जोड़ों को यह रकम देने का टारगेट रखा गया था.

इस योजना में एक बंदिश यह थी कि शादी करने वाले जोड़े की सालाना आमदनी 5 लाख रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए जिसे नरेंद्र मोदी की सरकार ने खत्म कर दिया है. पर जातपांत कितने गहरे तक जड़ें जमाए बैठी है, यह बात पहले ही साल में उजागर हो गई थी जब सवा सौ करोड़ की आबादी वाले हमारे देश मेें महज 5 जोड़ों को ही यह रकम मिली. साल 2015-16 में 72 और फिर साल 2016-17 में भी 72 जोड़ों को ही यह रकम मिली. साल 2017 में 74 जोड़ों को यह रकम मिली.

हमारे देश में किसी सरकारी योजना में अगर एक हजार रुपए भी मिल रहे हों तो लोग उस के लिए मधुमक्खी की तरह टूट पड़ते हैं. लेकिन दलितों से शादी करने की योजना में अगर सौ लोग भी ढाई लाख रुपए की तगड़ी रकम लेने को तैयार नहीं हैं तो आसानी से समझा जा सकता है कि कोई भी ऊंची जाति वाला छोटी जाति वालों से शादी नहीं करना चाहता.

ऐसा हो तो बात बने

केंद्र में सत्तारूढ़ होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी और उसे हांकने वाले हिंदूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सामाजिक बराबरी का राग अलापा था जिस का मकसद जैसे भी हो दलितों को अपने पाले में करना था क्योंकि उस पर ऊंची जाति की पार्टी होने का ठप्पा लगा हुआ था.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में दलित समुदाय ने भाजपा के विकास के नारे पर भरोसा जताते हुए उसे वोट दिया जिस की दूसरी अहम वजह उस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का छोटी जाति का होना था. नरेंद्र मोदी साहू तेली समुदाय से हैं जिस की हैसियत दलितों से थोड़ी ही ऊपर है.

दलितों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी दलित तबके पर ध्यान देंगे, पर हुआ उलटा. नोटबंदी पर उन के फैसले से सब से ज्यादा परेशानियां इसी तबके के लोगों को झेलनी पड़ीं. सामाजिक बराबरी का टोटका दिल्ली और बिहार में नहीं चला लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में चला तो इस राग की ढपली गुजरात में भी जोरशोर से बजाई गई लेकिन वहां भाजपा को कोई खास फायदा नहीं हुआ. वह सत्ता मेें तो आ गई लेकिन सियासत के जानकारों को समझ आ गया कि दलित आदिवासी तबके के लोगों का जी अब भाजपा से उचट रहा है.

जातिगत बराबरी के नाम पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उज्जैन कुंभ में एक दलित संत उमेशनाथ के साथ क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाई थी और इस के पहले भी जगहजगह दलितों के घर जा कर उन के साथ खाना खाया था.

बराबरी के इन टोटकों की हकीकत अब दलितों को समझ आ रही है कि इन से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ है उलटे उन पर होने वाले जुल्मोसितम और बढ़ने लगे हैं. ऊना के दलितों की धुनाई की तरह जगहजगह गाय के चमड़े की आड़ में दलितों की ठुकाईपिटाई अब आम बात हो चली है. भीमा कोरेगांव के हादसे के बाद तो दलित और सहम गए हैं कि आखिर जाति के नाम पर यह हो क्या रहा है.

 

हकीकत यह है कि धर्म के बाद अब सत्ता की डोर भी पूरी तरह से ऊंची जाति वालों के हाथों में आ गई है. गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को अंजाम देने के लिए दलितों को अपने साथ लाने की बातें तो कर रहा है पर ऐसा कोई काम नहीं कर रहा जिस से दलितों को लगे कि यह उन के भले की बात है.

संघ और भाजपा से जुड़े दलित हिंदुओं को इस बाबत राजी किया जा रहा है कि वे वर्ण व्यवस्था को मंजूरी देते हुए उन की हिंदू राष्ट्र की मुहिम का हिस्सा बन जाएं यानी ऊंची जाति वालों की पालकी ढोएं.

ये बातें दलित जागरूकता के मद्देनजर भी काफी अहम हैं जो सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन हटाने को ले कर भी डरे हुए हैं. दलितों से शादी की योजना ढाई लाख रुपए की इमदाद मिलने के बाद भी परवान नहीं चढ़ रही है और सुरभि जैसी लड़कियां दलित से शादी करने का कानूनी खमियाजा रिटायरमैंट ले कर भुगत रही हैं तो जरूरी है कि अगर वाकई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा बराबरी चाहते हैं तो वे दलितों से रोटीबेटी के रिश्ते पर फोकस करें.

15 जनवरी, 2018 को उज्जैन में महाकाल सेना के मुखिया महेश पुजारी ने अपने दर्जनभर साथियों समेत सवर्ण संत अवधेशानंद और भाजपा नेताओं के साथ कुंभ की डुबकी लगाने वाले दलित संत उमेशनाथ से मिल कर साफसाफ कहा कि दलितों के घर खाना खाने और उन की झोंपड़ी में रात गुजारने से देश में बराबरी नहीं आने वाली. देश का माहौल तेजी से बिगड़ रहा है और सवर्णदलित संघर्ष बढ़ रहा है. ऐसे में इस परेशानी से बचने का एकलौता रास्ता यही है कि ऊंचे तबके के लोग दलितों के बेटेबेटियों से शादी की पहल करें.

ऐसा हो पाएगा यह कहने की कोई वजह नहीं पर यह मांग पहली दफा उठी है इसलिए इसे हर लैवल पर समर्थन मिलना जरूरी है. जब तक ऊंची जाति वाले दलितों से रोटीबेटी के संबंध कायम करना शुरू नहीं करेंगे तब तक समरसता के नाम पर धर्म और राजनीति की ढपली, जो खोखली हो चली है, बजती रहेगी.

सुरभि के मामले से अहसास होता है कि दलितों से शादी की योजना भी परवान चढ़ सकती है बशर्ते इन बातों को लागू करने की हिम्मत सरकार दिखाए और इस के बाबत दलित तबका भी सरकार पर दबाए बनाए:

* कोई भी गैरदलित अगर दलित तबके के लड़के या लड़की से शादी करता है तो उसे भी रिजर्वेशन का इस शर्त पर फायदा मिलना चाहिए कि वह अगर जीवनसाथी को छोड़ेगा तो यह सहूलियत उस से छिन जाएगी.

* दलितों से शादी करने वाली योजना की रकम बढ़ाई जानी चाहिए.

* अगर दलित से शादी करने पर सुरभि अग्रवाल जैसी लड़कियों की जाति नहीं बदली जा सकती तो उन के पति को ऊंची जाति का माना जाना चाहिए लेकिन उन से रिजर्वेशन की सहूलियत नहीं छीनी जानी चाहिए.

* जाति वाले तमाम संबोधनों पर कानूनी रोक लगनी चाहिए.

* दलितों के साथ हिंसा करने वाले और उन्हें बेइज्जत करने वालों पर तुरंत कार्यवाही होनी चाहिए और फैसला आने तक उन्हें जमानत भी नहीं मिलनी चाहिए.

ऐसी बातें धर्म के ठेकेदारों को नागवार गुरजेंगी जिन की रोजीरोटी ही जातपांत फैलाने और जातिगत भेदभाव से चलती हैं पर हर लैवल पर बराबरी का दर्जा देने वाले लोकतंत्र में अगर जाति की बिना पर ज्यादती होती है जिस से संविधान और लोकतंत्र दोनों ही खतरे में पड़ते हों और देश में जातिगत लड़ाई का माहौल बने तो धर्म की परवाह और लिहाज करना दलितों के साथ सब से बड़ी ज्यादती है.

देश की तरक्की धर्म से नहीं बल्कि जातिगत बराबरी से ही होना मुमकिन है जिस की राह में सब से बड़ा रोड़ा मनुवादी वर्ण व्यवस्था है जो ऊंची जाति वाले लोगों के दिलोदिमाग में दलितों के प्रति नफरत पैदा करती है. इसे दूर करने के लिए जरूरी है कि ऊंची जाति वाले दलित तबके से रोटीबेटी का रिश्ता कायम करें और इस बाबत उन्हें रिजर्वेशन समेत जो सहूलियतें चाहिए वे दी जाएं, ठीक उसी तरह जिस तरह दलितों कोे दी जाती हैं.

उज्जैन की महाकाल सेना ने मांग नहीं की है बल्कि कट्टर हिंदूवादियों के सामने एक चुनौती पेश कर दी है कि अगर उन की मंशा वाकई जातिगत बराबरी की है तो वे दलित तबके से रोटीबेटी के संबंध बना कर दिखाएं, नहीं तो उन्हें ठगने और छलने की गरज से बराबरी के नाम पर बहाना बनाना बंद करें.

सुरभि के मामले से भी हालात साफ नहीं हो रहे कि अदालतें आखिर चाहती क्या हैं. अगर उन का अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र वाकई फर्जी था तो उन्हें नौकरी क्यों करने दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें फर्जीवाड़े का कुसूरवार मानते हुए सजा क्यों नहीं दी.

जाहिर है कि अदालतें भी इस मसले पर चकराई हुई हैं कि ऊंची जाति की ऐसी लड़कियों को दलित मानें या न मानें जिन्होंने दलित लड़के से शादी की हैं.

यह तय कर पाना भी मुश्किल है कि अगर कोई दलित लड़की ऊंची जाति के लड़के से शादी करती है तो उस की जाति क्या होगी? वह जो जन्म से है या फिर वह जो शादी के बाद हो गई है?

लगता ऐसा है कि कानून भी नहीं चाहता कि दलितसवर्ण शादी कर गैरबराबरी की खाई पाटें. अगर दलित लड़की की औलाद को रिजर्वेशन का फायदा न मिले तो उस की गिनती ऊंची जाति वालों में की जाएगी क्योंकि उस का पति ऊंची जाति का है. ऐसे में औलाद का गुनाह क्या है जिसे रिजर्वेशन से महरूम रखा जा रहा है?

जिम ट्रेनर की आखिरी ट्रेनिंग : सृष्टि ने कैसे जितेंद्र को निपटाया

तेंद्र मान ग्रेटर नोएडा स्थित एवीजे हाइट्स सोसाइटी में छठी मंजिल के फ्लैट में रहता था. यह फ्लैट उस के फुफेरे भाई प्रीतम का था. इस फ्लैट की एक चाबी प्रीतम के पास रहती थी और दूसरी जितेंद्र के पास. 12 जनवरी, 2018 को प्रीतम अपने भाई जितेंद्र से मिलने फ्लैट पर पहुंचा. जैसे ही उस ने फ्लैट का मुख्य दरवाजा खोला तो उसे अंदर कमरे का दरवाजा खुला मिला. दरवाजे से लौबी साफ दिख रही थी. वहीं से उस ने देखा कि फर्श पर गद्दा बिछा है और उस गद्दे पर कोई कंबल ओढ़े सो रहा है.

फ्लैट में घुसते ही उसे थोड़ी दुर्गंध आती महसूस हुई तो घबरा कर वह सीधे लौबी में पहुंचा. थोड़ा अजीब तो लग रहा था, पर यह सोच कर उस ने जितेंद्र को आवाज दी कि कंबल में वही सोया होगा. जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो प्रीतम ने कंबल हटाया. कंबल के नीचे जितेंद्र की लाश पड़ी थी. भाई की लाश देखते ही प्रीतम की चीख निकल गई.

चीख की आवाज सुन कर कई पड़ोसी भी वहां आ गए. प्रीतम ने फोन कर के इस की सूचना पुलिस को भी दे दी. कुछ देर बाद ही सूरजपुर थाने के थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान एसआई सोहनवीर मलिक, हरिराज, कांस्टेबल कृष्णकुमार और राजेश कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जितेंद्र की लाश पर से कंबल हटा कर देखा तो गद्दा खून से सना हुआ था. खून भी जम कर काला पड़ गया था. लाश से आ रही बदबू से लग रहा था कि उस की हत्या कई दिन पहले की गई होगी.

जितेंद्र मान की लाश चित अवस्था में थी. लाश पलटी तो उस की पीठ पर गोलियों के 3 निशान मिले. एक गोली उस की गरदन पर भी लगी थी. थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसपी (देहात) सुनीति शर्मा और सीओ अमित किशोर श्रीवास्तव को भी दे दी.

कमरे का निरीक्षण किया गया तो वहां शराब और सोडे की खाली बोतलें और 2 खाली गिलासों के अलावा कुछ जूठे बरतन भी पड़े मिले. इस से लगा कि वहां 2 लोगों ने शराब पी थी और जितेंद्र की हत्या किसी जानकार ने ही की होगी.

थानाप्रभारी प्रधान मौकामुआयना कर ही रहे थे कि एसपी (देहात) सुनीति शर्मा और सीओ (ग्रेटर नोएडा) अमित किशोर भी मौके पर पहुंच गए. एसपी (देहात) सुनीति शर्मा ने पड़ोसियों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन्हें गोलियों की आवाज नहीं आई थी. इस बात पर पुलिस भी हैरत में पड़ गई कि 4 गोलियां चलीं और पड़ोसी आवाज भी नहीं सुन सके.

फ्लैट में सारा सामान अपनी जगह रखा था, इसलिए वहां लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी. मृतक का मोबाइल फोन और पर्स नदारद था. यानी ये दोनों चीजें हत्यारा अपने साथ ले गया था.

प्रीतम ने जितेंद्र की हत्या की खबर उस के घर वालों को भी दे दी थी. उस के घर वाले भी वहां पहुंच गए. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

प्रीतम की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया. इस केस की जांच थानाप्रभारी ने खुद संभाली.

जितेंद्र मान की पृष्ठभूमि

13 जनवरी को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. मरने की वजह गोलियों से शरीर के अंदरूनी अंगों की क्षति पहुंचना बताया गया था. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि हत्या 10 जनवरी को दोपहर से शाम के बीच की गई थी.

14 जनवरी, 2018 को सुबह के समय थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान फिर से एवीजे हाइट्स सोसाइटी पहुंचे. उन्होंने गेट पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों से पूछताछ की. आगंतुक रजिस्टर भी चैक किया, पर वहां से कोई क्लू नहीं मिला. तब उन्होंने सोसाइटी में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज का निरीक्षण किया.

फुटेज से जानकारी मिली कि 10 जनवरी को दोपहर करीब साढ़े 11 बजे जितेंद्र मान सीढि़यों से फ्लैट में गया और 4 बज कर 20 मिनट पर फ्लैट से बाहर निकला और चला गया. इस के बाद थानाप्रभारी सोसाइटी से चले आए.

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उन्होंने जांच की तो पता चला कि दिल्ली के मुनीरका के रहने वाले प्रीतम ने अपने दोस्त नितिन चौधरी के साथ ग्रेटर नोएडा में कुछ दिनों पहले ही एक जिम खोला था. प्रीतम जिम में ज्यादा समय नहीं दे पाता था. घर से रोजाना ग्रेटर नोएडा आनाजाना उस के लिए संभव नहीं था, इसलिए उस ने जिम के नजदीक स्थित एवीजे हाइट्स सोसाइटी में किराए पर एक फ्लैट ले लिया था.

प्रीतम का एक ममेरा भाई था जितेंद्र मान, जो बाहरी दिल्ली के अलीपुर में रहता था. फिलहाल वह बेरोजगार था. उस ने कई साल जिम में प्रैक्टिस कर के अपना शरीर बना रखा था और एक अच्छा खिलाड़ी भी था. इसलिए प्रीतम ने उसे अपने जिम में ट्रेनर के रूप में रख लिया था.

चूंकि हत्या वाले दिन जितेंद्र प्रीतम के फ्लैट पर आया था, इसलिए थानाप्रभारी पूछताछ करने के लिए उस के जिम में पहुंच गए.

थानाप्रभारी ने जिम में पूछताछ की तो मालूम हुआ कि 10 जनवरी को जितेंद्र अपनी शिफ्ट पूरी कर के पौने 12 बजे घर जाने के लिए निकला था. एवीजे हाइट्स सोसाइटी जिम के पास है. अगर किसी गाड़ी से जाया जाए तो सोसाइटी का रास्ता 10 मिनट का है. एवीजे हाइट्स की सीसीटीवी फुटेज में जितेंद्र साढ़े 11 बजे सीढि़यां चढ़ कर फ्लैट में जाता दिखा था.

इस से साफ हो गया कि जिम से निकलने के बाद जितेंद्र सीधे घर आया था. इस के बाद दोपहर करीब साढ़े 12 बजे कोई जितेंद्र के फ्लैट में आया. वहां शराब पी गई. पुलिस ने जितेंद्र की काल डिटेल्स निकलवाई. उस काल डिटेल्स में 17 मोबाइल नंबरों को चिह्नित किया. इन में से एक फोन नंबर प्रीतम का निकला और 5 फोन नंबर जिम के कर्मचारियों व परिवार के लोगों के थे. इसलिए इन 6 नंबरों को संदेह से अलग कर दिया गया.

पुलिस ने 11 नंबरों की गहन छानबीन की तो चौंकाने वाली बात यह पता चली कि वह सभी फोन नंबर लड़कियों के थे. उन में से 10 लड़कियां घर पर ही मिल गईं. थानाप्रभारी ने उन्हें एसपी (देहात) सुनीति शर्मा के सामने पेश किया.

पुलिस इन्वैस्टीगेशन में आया लड़की का नाम

एसपी (देहात) सुनीति शर्मा ने सभी लड़कियों से अलगअलग बात की मगर कोई काम की बात पता नहीं चली. अब केवल एक लड़की बची थी, उस का फोन स्विच्ड औफ आने की वजह से संपर्क नहीं हो सका. पुलिस ने उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह फोन नंबर ग्रेटर नोएडा की होराइजन सोसाइटी के फ्लैट टी-1103 में रहने वाली सृष्टि गुप्ता का है. मोबाइल कंपनी से पते के साथ सृष्टि गुप्ता का फोटो भी मिल गया.

मामले की तह तक पहुंचने के लिए एसआई हरिराज सीधे होराइजन सोसाइटी पहुंचे. सृष्टि गुप्ता जिस फ्लैट में रहती थी, वह बंद मिला. इस पर एसआई ने सोसाइटी के सुरक्षाकर्मियों को सृष्टि का फोटो दिखाया. सुरक्षाकर्मियों ने फोटो पहचानते हुए कहा कि यह लड़की यहीं रहती है. उन्होंने  बताया कि सृष्टि स्टूडेंट है और फ्लैट में अकेली ही रहती है. उस के यहां एक मेड काम करने आती है.

पर कुछ दिनों से सृष्टि फ्लैट में नहीं है, इसलिए मेड भी काम पर नहीं आती. एसआई हरिराज ने उन सुरक्षाकर्मियों को अपना फोन नंबर देते हुए कहा कि जब भी सृष्टि सोसाइटी में आए तो वह उन्हें फोन कर दें.

एक दिन एसआई हरिराज को होराइजन सोसाइटी के एक सुरक्षागार्ड ने फोन कर के सूचना दी कि सृष्टि अपने फ्लैट में मौजूद है. सूचना मिलते ही एसआई हरिराज महिला कांस्टेबल मोनिका व ऋचा को ले कर सृष्टि के फ्लैट पर पहुंच गए. वह पूछताछ के लिए सृष्टि को सूरजपुर थाने ले आए.

संदेह के दायरे में आई सृष्टि

थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान ने सृष्टि से जितेंद्र मान के बारे में पूछताछ की तो उस ने यह बात कबूल कर ली कि वह जितेंद्र मान को जानती है. क्योंकि वह पहले जितेंद्र के जिम में जाती थी.

‘‘आप कब से कब तक जिम जाती रहीं?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मार्च से सितंबर 2017 तक.’’ सृष्टि बोली.

‘‘जिम छोड़ने के बाद आप की जितेंद्र से कभी बात हुई?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘नहीं, मेरी उस से कोई बात नहीं हुई.’’ सृष्टि ने बताया.

तभी थानाप्रभारी ने उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘आप झूठ क्यों बोल रही हैं? उस से आप की रोजाना बात होती थी.’’

थानाप्रभारी की बात का सृष्टि ने कोई जवाब नहीं दिया. उस ने अपनी नजरें भी झुका लीं. वह आगे बोले, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि 10 जनवरी को दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक आप कहां थीं?’’

कुछ देर के बाद वह बोली, ‘‘उस दोपहर को मैं अपना कैमरा रिपेयर कराने के लिए दुर्गापुरी चौक गई थी.’’

‘‘उस के बाद..?’’

‘‘उस के बाद रोजमर्रा का सामान लेने जीआईपी मौल गई थी. वहां से लौटतेलौटते शाम हो गई थी. आप चाहें तो इस बारे में दुकानदार और मौल से मेरी बात की सच्चाई जान सकते हैं.’’

थानाप्रभारी ने सृष्टि के घरपरिवार की भी जानकारी हासिल कर ली थी. उस ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के खुर्जा की रहने वाली है. उस के पिता की खुर्जा में मोबाइल एक्सेसरीज की दुकान है.

सृष्टि से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने उसे हिदायत दे कर थाने से भेज दिया. साथ ही उन्होंने कांस्टेबल राजेश को सृष्टि की निगरानी के लिए लगा दिया.

आगे की जांच के लिए एक पुलिस टीम खुर्जा में सृष्टि के पिता सुधीर गुप्ता के पास भेजी गई. सुधीर गुप्ता ने बताया कि करीब 2 साल से उन के सृष्टि से कोई संबंध नहीं हैं. इस की वजह बताते हुए वह नरवस भी हो गए. उन्होंने कहा कि 2 साल पहले सृष्टि मेरठ यूनिवर्सिटी में बीबीए की पढ़ाई के दौरान किसी मुसलमान लड़के के चक्कर में पड़ गई थी. वह उसी के साथ रह रही थी. यह बात मुझे पता लगी तो मैं ने बेटी को समझाया, जब वह नहीं मानी तो हम ने उस से नाता ही तोड़ लिया.

आखिर फंस ही गई जितेंद्र मान की कातिल

17 जनवरी की शाम को कांस्टेबल राजेश ने थानाप्रभारी को सूचना दी कि एक इनोवा कार में सृष्टि अपना सामान रख रही है. उस का इरादा शायद फ्लैट खाली करने का है.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान पुलिस टीम के साथ होराइजन सोसाइटी पहुंच गए. पुलिस सृष्टि को फिर से थाने ले आई. इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए कहा कि उस ने ही जितेंद्र मान की हत्या की थी. हत्या के पीछे उस ने जो कहानी बताई, वह प्रेम संबंधों पर आधारित निकली—

24 वर्षीय सृष्टि गुप्ता जब मेरठ यूनिवर्सिटी में बीबीए की पढ़ाई कर रही थी, तभी उस ने अपना खर्च चलाने के लिए नोएडा स्थित इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के सेल्स डिपार्टमेंट में नौकरी जौइन कर ली थी.

वह फ्लैट बेचने के लिए टेलीकालिंग करती थी. इस काम के लिए उसे हर महीने 25 हजार रुपए वेतन मिलता था. एक दिन वह रुटीन में इमरान कुरैशी नाम के व्यक्ति से फ्लैट बेचने के लिए काल कर रही थी, तभी इमरान बातों बातों में उस की पर्सनल लाइफ से जुड़े सवाल पूछने लगा. जब सृष्टि ने बताया कि वह खुर्जा की रहने वाली है तो इमरान बोला, ‘‘मैं भी खुर्जा का रहने वाला हूं. मोहल्ला तारीनान में जो किला मसजिद है, उसी गली नंबर-7 में रहता हूं.’’

सृष्टि को जब यह पता चला कि इमरान भी खुर्जा का है तो उसे बड़ी खुशी हुई. उस दिन दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत होती रही. उस दिन के बाद दोनों की अकसर फोन पर बातें होने लगीं, जो बाद में प्यार में बदल गईं. वे दोनों रेस्टोरेंट वगैरह में मिलने भी लगे.

इमरान न तो हैंडसम था और न ही ज्यादा पढ़ालिखा, मगर वह गले में सोने की मोटी चेन, अंगुलियों में हीरे की अंगूठियां पहनता था और स्कोडा कार से चलता था. इस सब से उस की संपन्नता साफ झलकती थी.

इमरान शादीशुदा था. इतना ही नहीं, उस के 4 बच्चे भी थे. उस के 6 भाई थे जो सभी बीफ एक्सपोर्ट करते थे. गोश्त के इस धंधे में उन्हें अच्छीखासी आमदनी होती थी.

इमरान की पैसों की चमकदमक देख कर सृष्टि उस पर मर मिटी. उसी ने होराइजन सोसाइटी में उसे फ्लैट ले कर दे दिया था. सृष्टि किराए के मकान से फ्लैट में आ गई. इतना ही नहीं, इमरान उसे हर माह 50 हजार रुपए खर्च के लिए भी देता था. जब इमरान उस का हर तरह से खयाल रखने लगा तो सृष्टि ने इमरान को अपना पति मान लिया और नौकरी छोड़ दी.

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मातापिता से नहीं था कोई संबंध

ये सारी बातें सृष्टि के पिता को पता चलीं तो उन्होंने अपनी बेटी से संबंध खत्म कर लिए, पर सृष्टि ने इस सब की परवाह नहीं की.

इसी दौरान सृष्टि की बीबीए की पढ़ाई पूरी हो गई. वह पत्रकार बनना चाहती थी, इसलिए उस ने ग्रेटर नोएडा के एक संस्थान में मास कम्युनिकेशन का कोर्स करने के लिए दाखिला ले लिया. इस का खर्च भी इमरान उठा रहा था.

इमरान सृष्टि पर दोनों हाथों से पैसा लुटा रहा था. सृष्टि ने शरीर की फिटनेस बनाए रखने के लिए एक जिम भी जौइन कर लिया. वह जिम प्रीतम का था, जिस में जितेंद्र मान ट्रेनर था.

जितेंद्र मान बाहरी दिल्ली के अलीपुर गांव के रहने वाले सत्यप्रकाश मान का बेटा था. सत्यप्रकाश के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे व एक बेटी थी. जितेंद्र भाइयों में छोटा था. जितेंद्र जब 2 साल का था, तभी उस की मां की मृत्यु हो गई थी. जब वह 10 साल का हुआ तो उस के पिता का भी स्वर्गवास हो गया.

जितेंद्र मान की एक बुआ मुंडका में रहती थी. भाई की मौत के बाद वह जितेंद्र को अपने साथ ले गई थी. उन्होंने ही जितेंद्र की परवरिश की. मान की बुआ का बेटा प्रीतम टोकस जितेंद्र से 3 साल बड़ा था. जितेंद्र ने आगे की पढ़ाई अपने फुफेरे भाई प्रीतम के साथ ही की. दोनों ने दयाल सिंह कालेज ने ग्रैजुएशन किया.

प्रीतम और जितेंद्र को कुश्ती व बौक्सिंग का शौक था. किशोरावस्था में पहुंचते ही दोनों का रुझान मुक्केबाजी की ओर हो गया. दोनों ने नैशनल लेवल के कोच राजेश टोकस से कोचिंग ली और दिल्ली की ओर से मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भाग लेने लगे. बाद में जितेंद्र मान और प्रीतम ने हरियाणा स्टेट बौक्सिंग में भी अपना पंजीकरण करा लिया.

हरियाणा की ओर से खेलते हुए जितेंद्र ने देशविदेश की कई प्रतियोगिताओं में स्वर्णपदक जीते. उस ने उज्बेकिस्तान, क्यूबा, फ्रांस और रूस की कई चैंपियनशिप के जूनियर वर्ग में भारत की अगुवाई की.

जितेंद्र मान की उपलब्धियों का ही नतीजा था कि उसे फौज में नौकरी मिल गई. भरती के समय सेनाधिकारियों ने मान को आश्वस्त किया था कि जल्द ही उसे प्रमोशन दे कर हवलदार बना दिया जाएगा.

मान ने सेना के लिए कई बार मैडल जीते. कई साल बीतने के बावजूद पदोन्नति नहीं मिली तो 2 साल पहले मान नौकरी छोड़ कर घर आ गया. फिर वह प्रीतम के जिम में ट्रेनर के रूप में काम करने लगा.

पूर्व फौजी था जितेंद्र मान

मार्च, 2017 में सृष्टि ने प्रीतम की अल्टीमेट फिटनैस एकेडमी जौइन की. खूबसूरत होने के साथसाथ जितेंद्र मान का व्यक्तित्व भी आकर्षक था. जितेंद्र और सृष्टि की ऐसी दोस्ती बढ़ी कि दोनों जिम के बाहर भी मिलने लगे.

सृष्टि से मिलने के लिए जितेंद्र उस के घर तक पहुंचने लगा. एक दिन दोपहर में मान सृष्टि के घर आया तो उस ने कौफी बनाई. सृष्टि ने कौफी के दोनों कप मेज पर रख दिए. तभी मान ने उस से पानी मांगा. सृष्टि पानी लेने गई. तभी मौका देख कर मान ने उस की कौफी में नशे की गोली मिला दी. कौफी पीते ही सृष्टि अर्द्धबेहोश हो गई. इस के बाद मान ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए तो ही, उस की वीडियो क्लिप भी बना ली.

उसी अश्लील वीडियो क्लिप के जरिए वह सृष्टि को ब्लैकमेल कर के उस का शारीरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक शोषण भी करने लगा. यह बात सृष्टि ने इमरान को भी बता दी. उस ने इमरान से कहा कि जो पैसे तुम मुझे देते हो, उन में से आधे तो मान ऐंठ लेता है. उस ने इमरान को पूरी बात बता कर कहा कि वह किसी भी तरह जितेंद्र मान से पीछा छुड़ाना चाहती है.

इमरान कुछ देर सोचने के बाद बोला, ‘‘सृष्टि अवैध संबंध ऐसा खेल है, जिस में किसी न किसी को मरना पड़ता है.’’

यह सुन कर सृष्टि के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. उस ने कहा, ‘‘इमरान, क्या तुम मुझे मार दोगे?’’

‘‘अगर तुम अपनी मरजी से मान के साथ मौजमस्ती कर रही हो तो मैं तुम्हें बेहिचक मार दूंगा.’’ इमरान ने जिंदगी और मौत के खेल में उसे भी शामिल करते हुए कहा, ‘‘और हां, अगर तुम वाकई मान की ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रही हो तो तुम्हें ही उस का कत्ल करना होगा.’’

‘‘इमरान, मैं मान से बहुत परेशान हूं. मैं उस से वाकई निजात पाना चाहती हूं.’’ वह बोली.

‘‘तो ठीक है, तुम उसे निपटा दो. इस काम में मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूं.’’ इमरान ने कहा.

इमरान ने रची थी साजिश

इस के बाद इमरान ने अपने ड्राइवर नफीस और सृष्टि को बिठा कर एक योजना बनाई. योजना के अनुसार, इमरान ने कहीं से एक पिस्तौल ला कर सृष्टि को दे दी और उसे पिस्तौल चलाना सिखा भी दिया. 9 जनवरी, 2018 को इमरान ने सृष्टि से जितेंद्र मान को फोन कराया.

सृष्टि ने उस से प्यार भरी बातें करते हुए कहा, ‘‘मान, कल मैं बिलकुल खाली हूं, इसलिए चाहती हूं कि कल कुछ खास एंजौय किया जाए.’’

‘‘बताओ जानेमन, तुम क्या चाहती हो?’’ मान बोला.

‘‘मैं चाहती हूं कि कल मैं तुम्हारे फ्लैट पर आ जाऊं. वहीं वोदका पिएंगे.’’ सृष्टि ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम आ जाना. मैं इंतजार करूंगा.’’ जितेंद्र मान बोला.

जितेंद्र अपने भाई प्रीतम के एवीजे हाइट्स सोसाइटी स्थित फ्लैट में रहता था. 10 जनवरी, 2018 को सृष्टि एवीजे हाइट्स सोसाइटी पहुंच गई, जहां मान उस का इंतजार कर रहा था.

मान ने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. फिर उस के और सृष्टि के बीच खानेपीने का दौर चला. बाद में मान ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. इस के बाद सृष्टि ने मान से अश्लील क्लिपिंग डिलीट करने को कहा. इस पर मान ने कोई जवाब देने के बजाय उस की तरफ पीठ घुमा ली.

सृष्टि को समझ में आ गया कि वह क्लिपिंग डिलीट नहीं करेगा. उस ने अपने बैग से पिस्तौल निकाली और एकएक कर के उसे 4 गोलियां मारीं. कुछ ही देर में मान की मौत हो गई. सृष्टि ने लाश को चित कर के उसे कंबल ओढ़ा दिया.

इस के बाद सृष्टि ने मान के मोबाइल से जिम वाले फोन पर मैसेज किया, ‘‘मैं जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं. शाम को जिम नहीं आऊंगा.’’

सृष्टि ने होशियारी तो बहुत की पर फंस ही गई

सृष्टि अपने साथ एक जोड़ी कपड़े ले कर गई थी. पहने हुए कपड़ों पर खून लग गया था, अत: बाथरूम में जा कर उस ने अपने कपड़े बदले. फिर फ्लैट को बाहर से बंद कर के चाबी पर्स में डाली और चेहरे पर स्कार्फ बांध कर सोसायटी से बाहर निकल आई. वहां से वह डीएलएफ मौल पहुंची, जहां इनोवा कार में इमरान व ड्राइवर नफीस उस का इंतजार कर रहे थे.

सृष्टि ने एक चालाकी यह भी की थी कि वह अपने दोनों मोबाइल नफीस के पास ही छोड़ गई थी. नफीस उस के मोबाइल ले कर दिलशाद गार्डन होता हुआ दुर्गापुरी चौक पहुंच गया था.

तभी योजनानुसार इमरान ने अपने फोन से सृष्टि के फोन पर 2 बार काल की, जो नफीस ने रिसीव कर ली थी. यह इन्होंने इसलिए किया था, ताकि वारदात के समय सृष्टि के फोन की लोकेशन घटनास्थल के बजाय कहीं दूसरी जगह की आए.

सृष्टि से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी इमरान व उस के ड्राइवर नफीस को भी गिरफ्तार कर लिया. इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त पिस्तौल भी बरामद कर ली. लेकिन जितेंद्र का मोबाइल फोन बरामद नहीं हो सका. वह मोबाइल उस ने दनकौर नहर में फेंक दिया था.

इस के बाद इमरान और नफीस से भी उन्होंने पूछताछ की. तीनों अभियुक्तों को सीजेएम गौतमबुद्धनगर की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

# मी टू : शोषित महिलाओं का महामंच

शाम के 7 बज रहे थे. मायानगरी मुंबई के अंधेरी (वेस्ट) इलाके में स्थित एक मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर के औफिस में औडिशन चल रहा था. औडिशन प्रोड्यूसर और डायरेक्टर मिल कर कर रहे थे. एकएक कर के कई लड़कियां औडिशन दे कर जा चुकी थीं. औडिशन के द्वारा एक मध्यम बजट वाली फिल्म की हीरोइन की खोज हो रही थी.

कई लड़कियों के बाद एक और लड़की औडिशन के लिए अंदर आई. इशारा मिलने के बाद वह कुरसी पर बैठ गई. डायरेक्टर ने लड़की को ऊपर से नीचे तक देखा. लड़की खूबसूरत थी. आंखें बिलकुल बोलती सी. चेहरा बिलकुल फ्रैश. उच्चारण में विविधता. उच की हिंदी भी बेहतरीन थी. यही नहीं हिंदी के साथ वह खनकदार उर्दू भी जहीन अंदाज में बोल लेती थी.

डायरेक्टर ने बोलने के लिए उसे कुछ पंक्तियां दीं. लड़की ने पूरी भावभंगिमाओं के साथ उन पंक्तियों को बोला. सुन कर प्रोड्यूसर के मुंह से अनायास निकल गया, ‘वाव’. मतलब लड़की का उच्चारण उसे पसंद आया. उस ने थंबअप किया. लड़की खुश थी. तभी प्रोड्यूसर ने उस से बातचीत करनी शुरू की.

‘‘तुम ने बहुत अच्छा डायलौग बोला.’’

‘‘शुक्रिया सर.’’

‘‘तुम क्याक्या कर सकती हो?’’ यह सवाल डायरेक्टर का था.

‘‘सर, मैं सब कुछ कर सकती हूं. मैं ने सब कुछ बहुत मेहनत और बारीकी से सीखा है.’’ लड़की के जवाब में उत्साह के साथ आत्मविश्वास था.

‘‘सब कुछ का मतलब क्या?’’ प्रोड्यूसर ने जवाब में स्पष्टता चाही.

‘‘सर, मैं एक्टिंग कर सकती हूं. डांस कर सकती हूं. थोड़ाबहुत गा भी सकती हूं.’’

‘‘और क्या कर सकती हो?’’ डायरेक्टर ने प्रोड्यूसर के सवाल को आगे बढ़ाया.

‘‘…और सर, मैं लिखने के साथसाथ जरूरत पड़ने पर डायरेक्शन भी कर सकती हूं.’’ लड़की ने अपनी कुछ और खूबियां गिनाईं.

‘‘इस के अलावा और क्या…?’’ प्रोड्यूसर के स्वर में थोड़ी खीझ थी.

लड़की ने सवालों के इस सिलसिले में अचानक आई बारीक सी खीझ को पकड़ लिया. वह समझ गई कि इस और का क्या मतलब है? यह समझते ही उस के चेहरे का रंग बदल गया. वह अचानक गंभीर हो गई और पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, ‘‘सर, मैं सैक्स नहीं कर सकती.’’

यह कह कर लड़की उठी, मुड़ी और सैल्यूट के अंदाज में हाथ ऊपर उठाए दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

स्वरा भास्कर को तो आप जानते ही होंगे, वही स्वरा भास्कर जिन्होंने ‘तनु वेड्स मनु’ और  ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’  में कंगना रनौत की सहेली की भूमिका निभाई थी. जी हां, यह लड़की कोई और नहीं, आज की बौलीवुड की स्थापित एक्ट्रैस स्वरा भास्कर ही थीं, जिन्होंने पिछले साल यह किस्सा मुझे तब सुनाया था, जब पूरी दुनिया में चल रहे ‘प्तमी टू’ अभियान ने बौलीवुड में दस्तक दी थी और एकएक कर के बौलीवुड की कई लड़कियों ने अपनी आपबीती मीडिया के साथ साझा की.

उन्हीं दिनों मैं ने स्वरा से इस संबंध में एक इंटरव्यू किया था, जिस में उन्होंने मुझे यह आपबीती सुनाई थी कि उन्हें बौलीवुड में अपने स्ट्रगल के दौरान किसकिस तरह के शोषण का शिकार होना पड़ा.

पिछले साल हौलीवुड की एक हीरोइन एश्ले जुड के द्वारा यौन हिंसा के खिलाफ शुरू किए गए ‘प्तमी टू’ कैंपेन को अमेरिका की मशहूर पत्रिका ‘टाइम’ ने साल 2017 का ‘टाइम परसन औफ ईयर’ चुना था. एश्ले ने ऐसी महिलाओं को, जिन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से अतीत में अपने साथ हुए यौनशोषण का ‘प्तमी टू’ के साथ खुलासा किया था, को द साइलेंस ब्रेकर्स नाम दिया था.ॉ

एश्ले जुड के अभियान ने नया रूप ले कर दुनिया भर की महिलाओं को दिया नया मंच

सब से पहले यह खुलासा करने वाली हौलीवुड अभिनेत्री एश्ले जुड ही थीं, जिन्होंने हौलीवुड के एक बडे़ निर्माता हार्वे वाइंस्टीन के बारे में खुलासा किया था कि उस ने उन्हें काम देने के एवज में उन का यौनशोषण किया था. इस अभियान की शुरुआत कोई बहुत योजनाबद्ध ढंग से नहीं की गई थी.

वास्तव में एश्ले जुड ने अपने साथ गुजरे जमाने में हुए यौनशोषण को कन्फेशन के तौर पर सोशल मीडिया में शेयर किया था. लेकिन इस के सामने आते ही उन तमाम महिलाओं ने अपनी चुप्पी तोड़ दी, जो सालों ही नहीं दशकों से अपने साथ हुए शोषण को अपने दिल में एक कसक की तरह दबाए हुए थीं.

जल्द ही ‘प्तमी टू’ अभियान दुनिया भर के तमाम प्रतिष्ठित लोगों की पोल खोलने का जरिया बन गया, जिन्होंने अपने अच्छेपन के मुखौटे में रहते हुए तमाम महिलाओं का यौनशोषण किया था.

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इस अभियान में सिर्फ प्रोफैशनल दुनिया में हुए यौनशोषण का ही खुलासा नहीं किया गया था, बल्कि जैसेजैसे यह अभियान आगे बढ़ा, वैसेवैसे दुनिया भर की महिलाओं ने अपने जीवन के किसी मोड़ पर भोगी गई यौन प्रताड़ना, यौन हमले या बलात्कार जैसी घटनाओं आदि का खुलासा किया.

इस अभियान ने सिर्फ अमेरिका या पश्चिम समाज को ही अपनी गिरफ्त में नहीं लिया, बल्कि जल्द ही यूरोप, एशिया और पूरी दुनिया इस अभियान से जुड़ती गईं. भारत में भी तमाम महिलाओं ने अपने साथ अतीत में हुए यौनशोषणों की बदरंग कहानियों को  सोशल मीडिया के साथ साझा किया. बौलीवुड की तमाम महिलाओं के साथ भी ऐसी घटनाएं घटी थीं.

सब से पहले ऐसी बदरंग कहानी ले कर सामने आईं मुनमुन दत्ता. मुनमुन दत्ता ने पिछले साल अक्तूबर महीने में अपनी आपबीती सोशल मीडिया में शेयर की. मुनमुन दत्ता को आप शायद जानते ही होंगे, नहीं जानते तो अब जान लीजिए. मुनमुन मशहूर टीवी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में बबीताजी का किरदार निभाती हैं.

एक्ट्रैस मुनमुन दत्ता ने 16 अक्तूबर, 2017 को अपने यौनशोषण की कहानी को सोशल मीडिया में साझा किया. मुनमुन ने लिखा, ‘‘मैं देख रही हूं कि ‘प्तमी टू’ पर आने वाली कहानियों और रिएक्शंस को देख कर कई पुरुष बड़े हैरान हैं या हैरान होने का नाटक कर रहे हैं. मैं उन से कहती हूं, हैरान मत होइए. यह आप के घर के बैकयार्ड में ही हो रहा है. वह भी आप के घर में, आप की बहन, बेटी, मां और पत्नियों के साथ हो रहा है. यहां तक कि आप की कामवाली के साथ भी. कभी उन का भरोसा जीत कर उन से पूछने की कोशिश करिए. आप उन के जवाब सुन कर हैरान रह जाएंगे.’’ मुनमुन ने विस्तार से अपनी आपबीती इन शब्दों में पेश की.

उन्होंने लिखा, ‘‘यहां मैं वह सब लिख रही हूं, जिसे बचपन में जीते हुए मेरी आंखों में आंसू आ जाते थे. मेरे पड़ोस के एक अंकल मौका पा कर मुझे जकड़ लेते थे. वह मुझे धमकाते थे कि मैं यह सब किसी और को न बताऊं. यह अंकल मेरी जिंदगी का वह शख्स था, जिस ने मुझे मेरे जन्म के बाद अस्पताल में देखा था और 13 साल बाद उसी ने मुझे गलत ढंग से छुआ, क्योंकि उसे लगा कि अब मैं बड़ी हो चुकी हूं और मुझे इस तरह से छूना सही है.

‘‘लेकिन यह अकेला अंकल ही ऐसा व्यक्ति नहीं था. यह कहानी मेरे ट्यूशन टीचर तक भी जाती है, जो अकसर मेरे अंत:वस्त्रों में अपने हाथ डाल देता था. एक और टीचर जिसे मैं राखी बांधती थी, वह क्लास में लड़कियों की ब्रा खींच कर उन्हें डांटा करता था. मैं तब भी यह सोच कर हैरान थी कि यह सब क्यों होता है? लेकिन तब मैं छोटी थी, इसलिए इस तरह के तमाम सवाल मेरे जेहन में ही कुलबुलाते रहते थे, बाहर नहीं आ पाते थे.

‘‘दरअसल, शोषक जानबूझ कर ऐसी कमजोर महिलाओं और छोटी बच्चियों को अपने शिकार के रूप में चुनते हैं, जो अपना बचाव नहीं कर सकतीं या आवाज नहीं उठा सकतीं.

‘‘मुझे या मुझ जैसी हादसों का शिकार होने वाली लड़कियां नहीं जानतीं कि वे यह सब अपने पिता से कैसे कहें? इस लाचारी के कारण शिकार लड़कियां बस मन ही मन पुरुषों के खिलाफ नफरत से भरती रहती हैं.’’

स्वरा भास्कर ने बयां की एक और सच्चाई

मुनमुन दत्ता के सोशल मीडिया में इस कन्फेशन के बाद स्वरा भास्कर ने भी सोशल मीडिया में अपनी एक और कहानी का खुलासा किया, जो इस लेख की शुरुआत में आई कहानी से अलग है.

स्वरा के मुताबिक, उन के साथ यह सब तब हुआ था, जब वह एक फिल्म की आउटडोर शूटिंग के सिलसिले में 56 दिनों के लिए मुंबई से बाहर गई थीं.

स्वरा के मुताबिक, ‘शूटिंग के दौरान फिल्म के डायरेक्टर ने मुझे बहुत हैरेस किया. वह मुझे दिन भर घूरता रहता और डिनर के लिए बारबार मैसेज भेजता था.’ स्वरा ने आगे लिखा कि एक बार उस ने मुझे फिल्म के एक सीन पर चर्चा करने के लिए अपने कमरे में बुलाया.

‘‘जब मैं कमरे में पहुंची तो वह शराब पी रहा था.’’ स्वरा ने यह भी लिखा कि उस दौरान उस ने मुझ से जबरदस्ती प्यार और सैक्स की बातें की थीं. एक दिन तो वह शराब के नशे में मेरे होटल रूम में ही घुस आया और कहने लगा, ‘मैं तुम्हें गले लगाना चाहता हूं.’

स्वरा के मुताबिक इस घटना से वह इतना परेशान हो गई थीं कि शूटिंग खत्म होते ही अपने कमरे में लौट आती थीं और लाइट बंद कर लेती थीं ताकि उसे लगे कि मैं सो रही हूं.

‘प्तमी टू’ अभियान ने पूरी दुनिया की यौन शोषित महिलाओं को जुबान दी, जिस से प्रेरित हो कर उन्होंने अपने साथ घटी ऐसी तमाम घटनाओं को दुनिया के सामने उजागर किया. इन कहानियों का खुलासा करने वाली महिलाओं में हौलीवुड से ले कर बौलीवुड तक की सिर्फ अभिनेत्रियां ही नहीं थीं, बल्कि न जाने कितनी नर्स, पुलिसकर्मी और दूसरे पेशों से जुड़ी महिलाएं भी थीं.

भारत में बौलीवुड की अभिनेत्रियों ने इस अभियान के दौरान अपने यौनशोषण की कहानियों का खुलासा किया, लेकिन इस के पहले बौलीवुड से यौनशोषण की बदरंग कहानियां बाहर न आती रहीं हों, ऐसा भी नहीं है. सच्चाई तो यह है कि ऐसा कोई दौर ही नहीं रहा, जब बौलीवुड से छन कर ऐसी कहानियां बाहर न आती रही हों.

याद करिए, करीब डेढ़ दशक पहले ममता कुलकर्णी नाम की बौलीवुड अभिनेत्री ने फिल्म ‘चाइना गेट’ की शूटिंग के दौरान एक जानेमाने फिल्म निर्देशक पर सैक्स के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया था.

ममता के मुताबिक, जब उस ने निर्देशक की बात नहीं मानी तो उस ने फिल्म में उस के रोल को काट कर छोटा कर दिया. कुछ ऐसा ही आरोप इजरायल की एक मौडल रीना गोलन ने बीते जमाने के एक मशहूर फिल्म निर्मातानिर्देशक पर लगाया था.

बौलीवुड में और भी लड़कियों का हुआ यौनशोषण

गौरतलब है कि रीना गोलन बौलीवुड में अपना कैरियर शुरू करना चाहती थी और इस के लिए उस ने हिट फिल्में देने वाले उस निर्मातानिर्देशक से सहायता मांगी थी. इस पर उन साहब ने रीना गोलन को काम दिलवाने के एवज में सैक्स की मांग की थी. ऐसे ही आरोप एक बड़े एक्टर पर ममता पटेल नाम की उन की कोस्टार ने लगाए थे. यहां भी बात काम दिलाने की ही थी.

इसी तरह अभिनेत्री पायल रोहतगी ने मशहूर निर्देशक दिबाकर बनर्जी पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था. लेकिन दिबाकर बनर्जी की बौलीवुड में अच्छी साख के चलते किसी ने पायल रोहतगी की बात नहीं सुनी. उल्टे लोगों ने उसे ही पागल घोषित कर दिया. लोगों का कहना था कि वह काम के लिए दिबाकर को ब्लैकमेल करना चाहती थी.

फिल्म इंडस्ट्री के सब से गंभीर माने जाने वाले निर्देशकों में से एक मधुर भंडारकर हैं,जिन के बारे में माना जाता है कि वह हमेशा महिलाओं से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बहुत संवेदनशीलता के साथ सोचते हैं और उन पर फिल्में बनाते हैं. उन की फिल्म ‘फैशन’ इस बात की गवाह भी थी. प्रीति जैन नाम की एक नई एक्ट्रेस ने बहुत साल पहले भंडारकर साहब पर यौनशोषण का आरोप लगाया था, जिसे ले कर बरसों तक मुकदमा चला, जो सुबूतों के अभाव में खारिज हो गया. खास बात यह कि सजा प्रीति को ही हुई, क्योंकि उस ने मधुर भंडारकर को मरवाने की कोशिश की थी.

बौलीवुड की एक और नायिका व अभिनेत्री सुचित्रा कृष्णमूर्ति ने ‘प्तमी टू’ अभियान के माध्यम से सोशल मीडिया में एक पोस्ट डाली थी, जिस में उन्होंने लिखा थैंक्स गौड, मैं बच गई. इस पहेली का उन्होंने आगे खुलासा करते हुए लिखा कि साल 2009 में एक प्रोड्यूसर उन में बहुत ज्यादा गैरजरूरी रुचि ले रहा था, जिस के बारे में बाद में खुलासा हुआ कि उस ने इंडस्ट्री की कई लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर दी है.

कहने का मतलब यह है कि ‘प्तमी टू’ कैंपेन के पहले भी यौनशोषण की अनगिनत कहानियां परदे के पीछे से निकल कर दुनिया के सामने आई हैं. यह अलग बात है कि उन कहानियों का खामियाजा ज्यादातर उन लड़कियों को ही भुगतना पड़ा, जो पीडि़त थीं. शायद इसीवजह से कोई उन कहानियों को याद नहीं करना चाहता.

लेकिन ‘प्तमी टू’ अभियान से जब ऐसी ही कहानियां लोगों के सामने आईं तो दुनिया ने न सिर्फ पीडि़तों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की, बल्कि कुछ यौनशोषकों को इस की सजा भी मिली.

इसलिए यौनशोषण के लंबे इतिहास में ‘प्तमी टू’ ने सिर्फ यौनशोषण की भुक्तभोगियों के स्वीकार की कहानी भर नहीं, बल्कि आरोपियों को उन के किए की सजा दिलवाने में भी भूमिका निभाई. इसीलिए आत्मस्वीकृति का यह अभियान अब तक का सब से कारगर अभियान साबित हुआ है.

कोंकणा सेन शर्मा भी जुड़ीं ‘प्तमी टू’ से शायद यही कारण है कि बौलीवुड की तमाम अभिनेत्रिंया इस अभियान में खुल कर सामने आईं हैं. सामने आने वाली बौलीवुड अभिनेत्रियों में कोंकणा सेन शर्मा भी शामिल हैं. उन्होंने हाल ही में संपन्न मामी फिल्मोत्सव के दौरान कहा, ‘‘इस कैंपेन की अच्छी बात यह है कि अगर लोग इस के जरिए इस समस्या की गंभीरता को समझेंगे तो अच्छा होगा और अगर लोग इस के जरिए इन मुद्दों पर आगे आ कर बोलना शुरू कर देंगे तो ये और भी अच्छा होगा.’’

कोंकणा के मुताबिक यह पहला ऐसा अभियान है, जिस में महिलाओं के बीच एकजुटता नजर आती है. लेकिन उन का यह भी कहना है कि हमें ऐसी समस्या को खत्म करने के लिए गहराई और गंभीरता से सोचने की जरूरत है और अगर इस में पुरुषों को साथ लिया जा सकता है तो हर हाल में लिया जाना चाहिए.

कोंकणा की ही तरह राधिका आप्टे ने भी इस अभियान को अपना समर्थन देते हुए लिखा है, ‘मैं ने इस कैंपेन पर कुछ लिखा तो नहीं है, लेकिन मैं ने इस के बारे में पढ़ा है और मैं इस का समर्थन करती हूं. ये परेशान नहीं करता, बल्कि अच्छा यह है कि महिलाएं खुल कर अपनी बात रख रही हैं.’

इसी क्रम में यौन उत्पीड़न पर चल रहे इस कैंपेन को कंगना रनौत का समर्थन भी मिला है. उन्होंने मीडिया से इस अभियान के बारे में कहा, ‘‘यह उन मुद्दों में से है, जिन की मैं हमेशा ही निंदा करती हूं. शारीरिक शोषण, यौन उत्पीड़न और समान भुगतान न मिलना जैसे मुद्दे. मैं उन सभी लड़ाइयों के लिए तैयार हूं, जो मेरे रास्ते में आएंगी.’

सामाजिक मुद्दों पर खुल कर बोलने वाली अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने भी ‘प्तमी टू’ कैंपेन के संदर्भ में कहा है कि यह महत्त्वपूर्ण है कि लोग अब यौन उत्पीड़न के मुद्दे की गंभीरता से चर्चा करने लगे हैं. लेकिन मैं चाहती हूं कि इस पर वे हमेशा चर्चा करें, केवल तब नहीं जब यह सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा हो.’

रिचा के मुताबिक, पहले तो मैं चाहूंगी कि मौखिक या किसी भी अन्य रूप में मीडिया यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर लगातार अभियान चलाए.

केवल तब जल्दबाजी में इस की चर्चा न करे, जब यह टीआरपी का जरिया बन गया हो. साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ‘दूसरी बात जो मैं महसूस करती हूं, वह यह है कि दुनिया भर के पुरुषों को उस विशेषाधिकार को पहचानने की जरूरत है, जो उन के पास है.

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‘मसलन, वे जो चाहे पहन सकते हैं. जहां चाहे जा सकते है. किसी के साथ भी घूम सकते हैं. उन के चरित्र पर कोई सवाल भी नहीं उठाता, जबकि लड़कियों को यह सुविधा हासिल नहीं है. दुनिया पुरुषों की तरफ झुकी हुई है और ऐसे में मुझे आश्चर्य नहीं है कि महिलाएं ‘प्तमी टू’ अभियान का हिस्सा बन रही हैं.

प्रियंका चोपड़ा ने बहुत कुछ कहा इशारों इशारों में बौलीवुड की सुपरस्टार और पूर्व विश्व सुंदरी प्रियंका चोपड़ा ने भी बौलीवुड के भीतर यौनशोषण के संकेत दिए हैं. उन्होंने ‘प्तमी टू’ कैंपेन पर तो नहीं, लेकिन यौन उत्पीड़न के मामले पर अपनी राय जरूर जाहिर की. ‘मैरी क्लेयर पावर ट्रिप’ संवाद के दौरान हौलीवुड में कदम रख चुकीं इस बौलीवुड सुपर स्टार ने सिनेमा में हार्वे वाइंस्टीन की भूमिका का जिक्र छेड़ते हुए कहा कि ये सिर्फ सैक्स की बात नहीं है, बल्कि ये पावर का मामला है और हकीकत भी है.

उन्होंने ये भी कहा कि यह बात सिर्फ हार्वे वाइंस्टीन तक सीमित नहीं है, बल्कि हौलीवुड में इन के जैसे अनेक हैं और ऐसी चीजें हर जगह होती हैं.

अभिनेत्री ने सीधे तौर पर बौलीवुड का जिक्र तो नहीं किया, लेकिन इशारों में ही कहा कि हार्वे वाइंस्टीन सिर्फ हौलीवुड में नहीं हैं, बल्कि ऐसे लोग बौलीवुड में भी हैं. कुल मिला कर ‘प्तमी टू’ अभियान पुराने जमाने की जादुई कहानियों में शामिल रहने वाले उस मंत्र की तरह है, ओझा द्वारा जिस के पढ़ने के बाद तमाम अपराधी भीड़ में से बाहर आआ कर लोगों के सामने स्वीकारते हैं कि उन्होंने अपराध किया है.

‘प्तमी टू’ अभियान के बाद हालांकि अपराधी तो सामने नहीं आए और न ही किसी ने इस बात को स्वीकार किया है कि उन पर लगाए गए आरोप सही हैं, मगर इस के चलते हजारेंहजार महिलाएं जो सालों से अपने शोषण की कहानियों का बोझ अपने सीने में दबा कर घूम रही थीं, ने उन्हें सार्वजनिक कर दिया है.

हाल के सालों में संभवत: यह पहला ऐसा अभियान है, जिस ने पूरी दुनिया की महिलाओं को न सिर्फ भावनात्मक तौर पर झकझोरा है, बल्कि उन्हें एक मंच पर भी खड़ा किया है.

हौलीवुड की तमाम बदरंग कहानियों के खुलासे के बाद सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि इन कहानियों को सुन कर लोगों ने पीडि़तों को ही इस की सजा देने की सोच नहीं दर्शाई बल्कि सही मायनों में उन्हें बहादुर माना है.

इस नजरिए से ये बदरंग कहानियां      सिर्फ अपने दुर्भाग्य का ब्यौरा भर नहीं देतीं, बल्कि कल की दुनिया को न्यायिक कानून सम्मत और लोकतांत्रिक बनाने का हौसला भी देती हैं.

क्या है # मी टू

यौनशोषण की आपबीती कहानियों का पिछले साल अक्तूबर, 2017 में पर्याय

बना ‘प्तमी टू’ आंदोलन, देखा जाए तो 10 साल पहले शुरू हुआ था. इस की शुरुआत अमेरिका की सामाजिक कार्यकर्ता तराना बर्के ने की थी. उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन के द्वारा रचा गया यह मुहावरा ‘मी टू’ यौन पीडि़त महिलाओं का सब से बड़ा संबल बन जाएगा.

उन्होंने तो इस मुहावरे की रचना सोशल मीडिया पर महिलाओं के सशक्तिकरण में इस्तेमाल के लिए की थी. तराना बर्के ने साल 2006 में पहली बार माई स्पेस सोशल नेटवर्क में ‘मी टू’ के साथ कोई बात कहने की कोशिश की, जिस का मकसद था दुनिया की सहानुभूति के जरिए समाज के हाशिए पर खड़ी महिलाओं का उत्थान करना.

इस मुहावरे ने हाशिए की महिलाओं का कितना सशक्तिकरण किया, यह तो पता नहीं लेकिन पिछले साल अक्तूबर में जब हौलीवुड के एक चर्चित प्रोड्यूसर द्वारा यौन शोषण की कहानियों को इस मुहावरे के साथ सोशल मीडिया में प्रसारित किया गया तो देखते ही देखते यह मुहावरा आपबीती दास्तानों का बड़ा मंच बन गया.

जब यौन उत्पीडि़त महिलाओं ने अपनी आपबीती दुनिया को सुनाने के लिए सोशल मीडिया में ‘प्तमी टू’ के साथ अपनी कहानियां डालीं तो देखते ही देखते ये 3 शब्द सजगता और सशक्तिकरण के सब से बड़े हथियार बन गए.

यह सब तब हुआ जब हौलीवुड के चर्चित प्रोड्यूसर हार्वे वाइंस्टीन द्वारा शोषित महिलाओं ने अपने शोषण की कहानियां दुनिया को सुनाने के लिए ‘प्तमी टू’ का इस्तेमाल किया. लेकिन इस मुहावरे का इस्तेमाल इस के पहले भी ऐसी ही आपबीती के लिए हो चुका था, लेकिन तब यह इतना चर्चित नहीं हुआ था.

दरअसल, जेसिका एडम्स नाम की महिला ने पहली बार ‘प्तमी टू’ का इस्तेमाल अपने यौन शोषण की कहानी दुनिया के साथ साझा करने के लिए किया था. गौरतलब है कि अमेरिका के एक मशहूर संगीतकार जोर्डी वाइट ने जेसिका के साथ बलात्कार और यौन हिंसा की थी, जिसे जेसिका ने ज्यों का त्यों लिख कर सोशल मीडिया में ‘हैशटेग मी टू’ शीर्षक के साथ डाल दिया था. पता नहीं इसे कितने लोगों ने पढ़ा. लेकिन कोई हंगामा नहीं हुआ.

बाद में 24 अक्तूबर, 2017 को मर्लिन मैनसन ने और फिर एश्ले जुड नाम की हौलीवुड हीरोइन ने अपने यौनशोषण की आपबीती सुनाने के लिए इसे इंटरनेट पर डाला तो हंगामा खड़ा हो गया. देखतेदेखते इसे दुनिया की लाखों महिलाओं ने पढ़ा और आपस में शेयर किया. साथ ही वे अपने साथ घटी ऐसी घटनाओं को इंटरनेट पर ‘प्तमी टू’ के साथ डालने लगीं.

हौलीवुड की एक्ट्रैस और सिंगर जेनिफर लोपेज ने एक इंटरव्यू में अपने कैरियर के शुरुआती दिनों के बुरे अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि जब वे अपनी फिल्म के डयरेक्टर से पहली बार मिलीं तो उस ने उन्हें अर्द्धनग्न होने को कहा था. लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. यह उन के लिए डरावने सपने जैसा था. यह मामला भी ‘प्तमी टू’ में चर्चित रहा.

इंटरनेट पर मानो ऐसी आपबीती कहानियों का सैलाब आ गया. दुनिया के कोनेकोने से महिलाएं अपने दिल के अंधेरे कोने में छिपी पड़ी ऐसी कहानियों को निकाल कर सोशल मीडिया के उजाले में ले आईं. देखते ही देखते यह ट्रैंड इतना तेज हो गया कि पिछले साल दिसंबर और इस साल जनवरी के आतेआते हर मिनट में ऐसी औसतन 10 कहानियां इंटरनेट पर प्रेषित की जाने लगीं.

एक अनुमान है कि अभी तक 2 करोड़ से ज्यादा महिलाओं ने जीवन में अपने साथ हुए यौन शोषण की त्रासदी को इंटरनेट पर डाला है. यहां तक कि इस आंदोलन ने कट्टर मुसलिम देशों की महिलाओं को भी प्रेरित किया है कि वे अपनी आपबीती कहानियां इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया को बताएं.

सोशल मीडिया पर सब से पहले इस्लामी दुनिया की ऐसी त्रासद कहानी ले कर लेखिका और पत्रकार मोना टाह्वी आईं. उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती में लिखा, ‘साल 2013 में मैं ने हज यात्रा की थी. उस दौरान मेरा यौन शोषण हुआ. मैं ने सालों तक यह क्रूर हादसा अपने सीने में छिपा कर रखा. लेकिन जब मैं ने ‘प्तमी टू’ कैंपेन के चलते तमाम महिलाओं की कहानियां पढ़ीं तो मैं भी खुद को अपने साथ घटी इस कहानी को सोशल मीडिया पर लाने से नहीं रोक सकी.’

मोना टाह्वी के मुताबिक जब उन्होंने ट्विटर पर अपनी कहानी डाली तो इसे पढ़ कर एक मुसलिम महिला ने लिखा कि उन की मां के साथ भी ऐसा ही हुआ था. लेकिन  हम लोगों के पास रोने के सिवा और कुछ नहीं था. यह बात फारसी ट्वीटर पर 10 से ज्यादा बार ट्रैंड हुई.

इस के बाद तो मुस्लिम महिलाओं ने भी आपबीतियों की झड़ी लगा दीं. करीब 20 लाख मुसलमान हर साल हज के लिए जाते हैं, इन में बड़े पैमाने पर महिलाएं भी होती हैं और इन महिलाओं के साथ यौन शोषण की तमाम कहानियां वैसे ही घटित होती हैं, जैसे दूसरी जगहों पर महिलाओं के साथ होती हैं.

सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं ने यह अभियान हैशटेग मास्क मी टू के तहत लिख कर किया. हालांकि मुस्लिम जगत में तमाम पुरुषों ने इस पर बहुत हंगामा किया. कई सरकारों ने भी इसे महिलाओं की उदंड्ता समझा. लेकिन आपबीती के इस ग्लोबल तूफान को कोई रोक नहीं पाया.

बहरहाल हैशटैग आंदोलन ने किसी एक देश, किसी एक समाज को नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. करोड़ोंकरोड़ कहानियों ने यह खुलासा कर दिया है कि हम चाहे सभ्यता और शिष्टता के कितने ही मुखौटे क्यों न ओढ़े रहते हों, लेकिन मुखौटों के भीतर हम सदियों पूर्व के बर्बर इंसान ही हैं.

हालांकि इस अभियान को कुछ लोगों ने एक प्रयोजित अभियान भी बताया और यह भी कहा कि इस से महिलाएं ताकतवर नहीं, बल्कि कमजोर होती हैं. बावजूद इस के इस अभियान को रोका नहीं जा सका और यह भी कहा जा सकता है कि इस अभियान में दुनिया भर की महिलाओं को बहुत सजग बनाया है.

एक तरह से इस अभियान का फायदा यौन शिक्षा और सजगताके रूप में भी मिला है. इस अभियान के बाद दुनिया के तमाम देशों के स्कूलों में विशेष रूप से लड़कियों के लिए यौनशिक्षा देना शुरू किया गया, साथ ही इन कहानियों से पुरुष भी महिलाओं के प्रति पहले से कहीं ज्यादा सहयोगी और ईमानदार हुए हैं.

इरफान खान : स्वाभाविक अभिनय के बादशाह

फिल्म अभिनेता इरफान खान के फैन गुजरे 5 मार्च, 2018 को उस समय सकते में आ गए, जब उन्हें किसी और ने नहीं, बल्कि खुद इरफान खान ने ही ट्वीट कर के बताया कि वह एक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त हैं. हालांकि यह दुर्लभ बीमारी क्या है, इस का उन्होंने अपने ट्वीट में खुलासा नहीं किया था, बल्कि उन्होंने किसी जासूसी उपन्यास के अधूरे वाक्य की तरह इसे अधूरा छोड़ दिया था.

इस के बाद अफवाहों और अनुमानों का तूफान उठना ही था, सो मीडिया से ले कर समूचे सोशल मीडिया का मंच उन की अनुमानित बीमारियों से भर गया. कुछ अनुमान तो दावे की हद से परे थे, विशेषकर ब्रेन कैंसर होने का अनुमान.

बहरहाल एक हफ्ते तक कहर ढाने वाली इन अफवाहों के तूफान को खुद इरफान खान ने ही आगे बढ़ कर संभाला, अपनी ‘दुर्लभ बीमारी’ के बारे में खुलासा कर के उन्होंने अपने चाहने वालों के लिए फिर एक ट्वीट किया और इस ट्वीट में बताया, ‘मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी है.’

साथ ही उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया कि इस दुर्लभ बीमारी के इलाज के लिए वह आजकल देश से बाहर हैं. हालांकि, अपने इस खुलासे में भी उन्होंने कई रहस्यात्मक पौज छोड़ दिए.

मसलन उन्होंने यह साफ नहीं किया कि बीमारी उन के शरीर के किस हिस्से में है और किस स्टेज में पहुंच चुकी है. इरफान खान ने अपने कमजोर दिल वाले फैंस को ध्यान में रख कर यह भी उजागर नहीं किया कि यह घातक है या फिर कोई सामान्य बीमारी है. बस, उन्होंने उलाहने की शक्ल में यह भर कहा कि न्यूरो संबंधी बीमारी हमेशा दिमाग में ही नहीं होती. यह जवाब उन लागों के लिए था जो अपने अनुमानों से यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि इरफान खान को ब्रेन कैंसर है.

संजीदा स्वभाव के इरफान खान ने  कुछ नहीं छिपाया

7 जनवरी, 1967 को राजस्थान के जिला जयपुर के अंतर्गत आने वाले टोंक कस्बे में जन्में इरफान अली खान अपने अभिनय की बदौलत बौलीवुड से ले कर हौलीवुड तक अपने चाहने वालों की एक अच्छीखासी फौज के दिलों में राज करते हैं. 51 साल के इस अभिनेता ने बहुत कम समय में जितनी शोहरत हासिल की है, उस से कहीं ज्यादा सम्मान भी हासिल किया है.

इसलिए वह अपने चाहने वालों के लिए अपने बारे में जानकारी देने की शिष्टता और गरिमा दोनों का महत्त्व समझते हैं. यही वजह थी कि उन्होंने अपने बारे में अफवाहों के बाजार को नहीं चढ़ने दिया.
वह खुद सामने आए और अपनी बात मार्गेरेट मिशेल के इस आकर्षक विचार से शुरू की कि जिंदगी पर इस बात का आरोप नहीं लगाया जा सकता कि जिंदगी ने हमें वह सब नहीं दिया, जिस की हमें उस से उम्मीद थी. अपने फैंस के लिए लिखे गए ट्वीट में उन्होंने यह भी कहा कि मैं ने सीखा है कि अचानक सामने आने वाली चीजें हमें जिंदगी में आगे बढ़ाती हैं.

जब मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का पता चला तो इसे स्वीकार कर पाना आसान नहीं था, लेकिन मेरे आसपास मौजूद लोगों के प्यार और मेरी इच्छाशक्ति ने मुझे उम्मीद दी है कि मैं इस से पार पा जाऊंगा, बस आप सब मेरे लिए दुआएं कीजिए.

उन्होंने अपने एक के बाद एक किए गए कई ट्वीट में यह भी कहा कि न्यूरो शब्द का इस्तेमाल हमेशा ब्रेन के लिए ही नहीं होता और रिसर्च के लिए गूगल से आसान रास्ता नहीं है. जिन लोगों ने मेरे लिखने का इंतजार किया, उम्मीद है उन्हें बताने के लिए मैं कई कहानियों के साथ लौटूंगा.

इस के पहले जब उन्होंने पहली बार खुद ही अपनी बीमारी का खुलासा किया था, तब भी उन्होंने इसे बहुत ही शालीन तरीके से अपने चाहने वालों के बीच रखा था. तब उन्होने लिखा था, ‘कभीकभी आप एक झटके से जागते हैं. पिछले 15 दिन मेरे जीवन की सस्पेंस स्टोरी जैसे रहे हैं. मैं एक दुर्लभ बीमारी से पीडि़त हूं. मैं ने जिंदगी में कभी समझौता नहीं किया. मैं हमेशा अपनी पसंद के लिए लड़ता रहा और आगे भी ऐसा ही करूंगा.’

अपने एक और ट्वीट में उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए यह भी लिखा, ‘मेरा परिवार और मेरे दोस्त मेरे साथ हैं. हम बेहतर रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे ही सारे टेस्ट हो जाएंगे, मैं आने वाले 10 दिनों में अपने बारे में सब बातें बता दूंगा. तब तक मेरे लिए दुआ करें.’

एक कहावत है कि बड़े लोगों को बीमारियां भी बड़ी होती हैं. हालांकि ऐसी कहावतों पर यकीन नहीं होता, क्योंकि उन्हे हम जितने सरलीकृत ढंग से समझते हैं, वे इतनी सरल नहीं होतीं. यह बात भी पूरी तरह से सरल निष्कर्षों से परे है, हो सकता है इस कहावत का यह मतलब हो कि दुर्लभ बीमारियां होती तो सब को हैं, लेकिन इन का पता सिर्फ अमीर लोगों को ही चलता है.

वजह ये कि बड़े लोग बीमारी का पता करने के लिए जितना कुछ खर्च कर सकते हैं, उतना हर कोई नहीं कर सकता. अकारण ही इरफान खान की बीमारी का नाम सामने आते ही स्टीव जौब्स का नाम नहीं आया, बल्कि इस नाम के सामने आने का एक मनोविज्ञान है कि स्टीव की तरह इरफान खान भी खास हैं, इसलिए न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर ने उन्हें अपने लिए चुना.

बहरहाल, अब इरफान के चाहने वाले ही नहीं बल्कि जिस तरह से यह बीमारी सामने आई है, उस के बारे में देश का आम से आम आदमी भी यह जानना चाहता है कि आखिर यह बीमारी है क्या? जो दुर्लभ लोगों को ही होती है.

आखिर इस बीमारी की  हकीकत क्या है?

दरअसल, न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर उस अवस्था को कहते हैं, जिस में शरीर में हार्मोंन पैदा करने वाले ‘न्यूरोएंडोक्राइन सेल्स’ सामान्य से बहुत ज्यादा हार्मोन बनाने लगते हैं. एक तरह से यह शरीर में हार्मोंस बनने की अधिकता की बीमारी है. इसलिए इस ट्यूमर को कारसिनौयड्स भी कहते हैं.
हालांकि जिन कुछ खास लोगों में यह बीमारी सामने आई है, उन में से ज्यादातर के पेनक्रियाज में ये ट्यूमर पाए गए हैं.

लेकिन पेनक्रियाज शरीर की अकेली जगह नहीं है, जहां यह ट्यूमर हो सकता है. यह ट्यूमर शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है, जैसे कि लंग्स, गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल टै्रक्स, थायरौयड या एड्रिनल ग्लैंड.
असल में यह शरीर में अपनी मौजूदगी के विशेष स्थान के आधार पर ही अपना आकार, प्रकार तय करता है. इस का इलाज संभव है, बशर्ते समय रहते या इस ट्यूमर के एडवांस स्टेज में पहुंचने के पहले इस का पता चल जाए.

अभी इरफान खान के डाक्टरों और उन के परिजनों के अलावा और कोई नहीं जानता कि उन में यह किस स्टेज का है. इरफान खान ने इस बात को बहुत सावधानी से गोपनीय बनाए रखा है, यह जरूरी भी है, क्योंकि संचार के इस ग्लोबल युग में जरा सी जानकारी लीक हुई कि उस के अनिगिनत अर्थ लगाए जाने लगते हैं.

बहरहाल ये ट्यूमर एक नहीं 3 प्रकार के होते हैं.
1. गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल न्यूरोजएंडोक्राइन टयूमर- यह गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल टै्रक्ट के किसी भी हिस्से में हो सकता है, जिस में बड़ी आंत और एपेंडिक्स शामिल हैं.
2. लंग न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर- यह फेफड़ों में होने वाला ट्यूमर है, जिस में खांसी के दौरान ब्लड आना और सांस लेने में दिक्कत होती है.
3. पेंक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर – यह पेनक्रियाज में होने वाला ट्यूमर है. हार्मोन से जुड़ाव के कारण न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर ब्लड शुगर को काफी प्रभावित करता है.

सवाल है, आखिर यह ट्यूमर होता क्यों है? इस की कई वजह हैं, मसलन इस की एक सब से बड़ी वजह मातापिता में इस बीमारी के होने को माना जाता है. माता या पिता में से किसी एक को भी अगर यह बीमारी है तो बच्चों में भी इस के होने की आशंका बढ़ जाती है.

इस के होने का दूसरा बड़ा कारण स्मोकिंग और ढलती उम्र के साथ शरीर का कमजोर प्रतिरक्षातंत्र भी होता है. असल में जब हमारे अंदर किसी भी किस्म की बीमारी से लड़ने की स्वाभाविक ताकत नहीं रहती तो कोई भी बीमारी परेशान कर सकती है.

इस के अलावा अल्ट्रावायोलेट किरणें भी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने के खतरे को बढ़ाती हैं. लेकिन इतना खतरनाक होने के बावजूद भी यह कई दूसरी बीमारियों की तरह बहुत चुपचाप वार करने वाली बीमारी है या कहें साइलैंट किरण है.

इस बीमारी की पहचान

आखिर हम कैसे जानें कि वे कौन सी चीजें हैं, जिन की शरीर में मौजूदगी से पता चल सके कि हम न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का शिकार हो चुके हैं. इस की मौजूदगी के सामान्य लक्षण इस तरह है-ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, थकान या कमजोरी लगातार महसूस होती है. पेट में अकसर दर्द बना रहता है और वजन गिरने लगता है.

कई बार इस के चलते टखनों में सूजन भी आ जाती है और त्वचा में बहुत चमकीले धब्बे निकलने लगते हैं. जब यह बीमारी काफी ऊंची स्टेज में पहुंच गई हो और लोग इस का पता न लगा पा रहे हों तो भी इस का पता लगाया जा सकता है. मसलन अगर शरीर से सामान्य से ज्यादा पसीना आ रहा है और रह रह कर बेहोशी छा रही है. बहुत डलनेस महसूस हो रही है तो फिर इसे होने से कोई नहीं रोक सकता.
इस बीमारी में खासतौर पर शरीर में ग्लूकोज का लेबल तेजी से बढ़ने या गिरने लगता है. जिन लोगों को इस के बारे में ज्यादा कुछ मालूम न हो और इसे जानना चाहते हों तो इसे कुछ इस प्रकार समझना चाहिए.

— सीबीसी, बायोकैमेस्ट्री टेस्ट, सीटी स्केन, एमआरआई और बायोप्सी कर के इस बीमारी की पुष्टि की जाती है.

— इस के अलावा बेरियम टेस्ट, पैट स्केन, एंडोस्कोपी व बोन स्कैन भी इस का पता लगाने में सहायता करते हैं.

— आखिर ट्यूमर किस स्टेज में है यह भी कुछ जांचों से पता चल जाता है.
जहां तक इस के इलाज का सवाल है तो इस का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि वह शरीर के किस हिस्से में है. साथ ही वह किस स्टेज में है.

इलाज के जो कई तरीके हैं, उन में से एक तरीका सर्जरी की मदद से इस ट्यूमर को हटाया जाना भी है. कुछ मामलों में रिजल्ट के आधार पर दोबारा सर्जरी भी की जाती है, ड्रग थैरेपी भी देते हैं. इस में कीमोथैरेपी, टारगेटेड थैरेपी और दवाएं ली जाती हैं.

साथ ही रेडिएशन और लिवर डायरेक्टटेड थैरेपी भी दी जाती है. इस बीमारी को शायद आज पूरी दुनिया इतनी गहराई से नहीं जान पाती, यदि यह खास बीमारी स्टीव जौब्स को न हुई होती. इस बीमारी से पीडि़त स्टीव जौब्स वास्तव में अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी एप्पल के पूर्व फाउंडर थे, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे. स्टीव जौब्स की मौत का कारण पेनक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर था, जिस का खुलासा उन्होंने 2009 में एक ओपन लैटर में दिया था.

इरफान खान का फिल्मी कैरियर

अब यही बीमारी सहज अभिनय के लिए जाने जाने वाले इरफान खान को भी हो गई है. इरफान खान नई दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल औफ ड्रामा से पासआउट हैं. वह अपने सहज अभिनय के लिए जाने जाते हैं. 1988 में मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बौंबे’ से उन्होंने फिल्मों में डेब्यू किया था. यह फिल्म औस्कर अवार्ड के लिए भी नौमिनेट हुई थी. इरफान खान के फैंस उन्हें विशेष रूप से कुछ खास फिल्मों के लिए जानते हैं. इन फिल्मों में हैं, ‘हासिल’, ‘मकबूल’, ‘लाइफ इन मैट्रो’, ‘न्यूयार्क’, ‘द नेमसेक’, ‘लाइफ औफ पई’, ‘साहब, बीवी और गैंगस्टर-2’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘लंच बौक्स’ और ‘हिंदी मीडियम’.

इरफान के बेजोड़ अभिनय को सरकार ने भी नोटिस किया, जिस की वजह से साल 2011 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए साल 2012 में बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.

इरफान खान मूलत: जयपुर के टोंक कस्बे से हैं. उन का ताल्लुक जमींदार फैमिली से है और असली नाम है साहबजादे इरफान अली खान. इरफान की लाइफ में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब वह एक्टिंग छोड़ना चाहते थे. दरअसल, नैशनल अवार्ड विनर इरफान खान एक तरह की एक्टिंग से ऊब गए थे.
1994-1998 के बीच उन्होंने कई टीवी शोज में काम किया. ये सब एक ही तरह के थे. इसलिए इरफान खान रोजरोज एक जैसा काम कर के परेशान होने लगे थे. तभी एक दिन उन्होंने तय किया कि अब रोजरोज यह सब नहीं करना. उस वक्त उन्होंने अभिनय करने से ही तौबा करने का मन बना लिया था.
लेकिन उन्हीं दिनों उन की भेंट आसिफ कपाडि़या से हो गई जिन्होंने उन्हें फिल्म ‘वेरियर’ में पेश किया. इस फिल्म की स्क्रिप्ट इरफान खान को बेजोड़ लगी. उन्होंने इस फिल्म में अभिनय भी बेजोड़ किया और इस तरह से उन का मन बदल गया और वह फिल्म इंडस्ट्री में बने रहने के लिए तैयार हो गए.

फिल्म ‘वैरियर’ के बाद उन्हें और भी कई अच्छी फिल्में मिलीं. इरफान खान जब एनएसडी में फाइनल ईयर में थे तभी डायरेक्टर मीरा नायर ने उन्हें फिल्म ‘सलाम बौंबे’ में काम करने के लिए औफर दिया था. लेकिन हाइट ज्यादा होने की वजह से उन का रोल काट दिया गया था. फिर भी ‘सलाम बौंबे’ से उन की पहचान जुड़ी रही. क्योंकि उन्होंने इस फिल्म से साल 1988 में डेब्यू किया था.

योद्धा हैं इरफान खान

इरफान खान अपने सहज अभिनय के लिए ही नहीं, बल्कि साफगोई भरी बातचीत के लिए भी जाने जाते हैं. इरफान ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि कैरियर के शुरुआती दिनों में उन्हें कास्टिंग काउच के दौर से गुजरना पड़ा था.

बकौल इरफान, ‘मुझे मेल और फीमेल दोनों ही डायरेक्टर्स ने काम के लिए साथ सोने का औफर दिया था. ऐसा नहीं है कि कास्टिंग काउच का सामना सिर्फ एक्ट्रेस को ही करना पड़ता है, ये लड़कों के साथ भी हो सकता है. इस तरह की स्थितियों का सामना दोनों को ही करना पड़ता है. हालांकि इस परेशानी से लड़कियों को ज्यादा जूझना पड़ता है. कास्टिंग काउच काफी फोर्सफुली किया जाता है. यहां तक कि कई बार इस में आपसी सहमति भी नहीं होती, उस स्थिति में यह काफी दर्दनाक हो जाता है.

इरफान की पत्नी सुपता सिकदर ने अपने फेसबुक एकाउंट पर एक पोस्ट लिखी है, जो इमोशनल होने के साथ ही उन के मजबूत इरादों को भी दिखाती हैं. सुपता सिकदर ने अपनी पोस्ट में लिखा है, ‘मेरे सब से अच्छे दोस्त और पार्टनर एक वौरियर (योद्धा) हैं और वे इस मुश्किल से बहुत ही बेहतरीन ढंग से निबट रहे हैं.

‘आप के काल्स और मैसेजेस के जवाब न देने के लिए मैं क्षमा चाहूंगी, लेकिन आप के प्यार और दुआओं के लिए मैं आप की शुक्रगुजार हूं. मैं भगवान और अपने पार्टनर की भी आभारी हूं कि उन्होंने मुझे वौरियर बनाया. इस समय मेरा फोकस उस युद्ध के मैदान पर है, जिसे मुझे जीतना है.’

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