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आशा और प्रेमलता न सिर्फ शहर की मशहूर हस्तियां थीं, आपस में पक्की सहेलियां भी थीं. अचानक एक दिन प्रेमलता ने अपनी रिवाल्वर से आशा की गोली मार कर हत्या कर दी और पुलिस के सामने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया. इस हाईप्रोफाइल हत्या से पूरा शहर सन्न था. हर किसी की जबान पर एक ही बात थी कि दिनरात साथ रहने वाली इन सहेलियों के बीच आखिर ऐसा क्या विवाद हुआ जो प्रेमलता ने आशा की हत्या कर दी? लेकिन जब पुलिस तफतीश में जुटी तो मामले पर से धीरेधीरे परदा उठने लगा…
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सामने की दीवार पर आशा का बहुत बड़ा आकर्षक चित्र लगा था. बैडरूम की साइड टेबल पर दोनों सहेलियों की कालेज के दिनों की एकदूसरे के गले में बांहें डाले खड़ी तसवीर थी.
‘‘प्रेमलता की अलमारियां खोलने के लिए तो आप महिला कांस्टेबल की मौजूदगी चाहेंगी?’’ देव ने स्नेहा की ओर देखा.
‘‘जी हां, जब तक महिला कांस्टेबल आए तब तक मैं प्रेमलता का फेसबुक अकाउंट चैक कर के, उन की और आशा मैडम की किसी कालेज फ्रैंड से संपर्क करना चाहूंगी.’’
देव ने सराहना से उस की ओर देखा.
‘‘ठीक है. मैं नौकरों से पूछताछ कर रहा हूं, आप भी सुनना चाहेंगी?’’
‘‘यहां भी वही दया वाले जवाब होंगे. असलियत जानने के लिए तो कोई कौमन फ्रैंड ही खोजनी होगी,’’ कह कर स्नेहा आई पैड पर फेसबुक खोलने लगी.
स्नेहा का कहना ठीक था, प्रेमलता की नौकरानी भगवती ने भी वही कहा जो दया ने कहा था.
‘‘हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि बीबीजी आशा बीबी की जान लेंगी. वे तो जान छिड़कती थी उन पर. रात को जब तक आशा बीबी का फोन नहीं आ जाता था कि वे घर आ गई हैं, बीबीजी खाना नहीं खाती थीं. सोने से पहले भी फोन पर दोनों घंटों बतियाती थीं और करतीं भी क्या साहब, दोनों ही तो अकेली थीं. हमारी बीबीजी ने तो ओहदे के चक्कर में शादी नहीं की और आशा बीबी कर के भी ओहदे के पीछे पति के साथ न गईं. दिन तो काम में कट जाता था पर रात एकदूसरे से बतिया कर कटती थी.’’
‘‘यह तुम्हें कैसे पता?’’ देव ने पूछा.
‘‘कई बार देखा, कभी पानी की बोतल रखना भूलने पर कमरे में जाना पड़ता था या दूध के पैसे मांगने या और कोई जरूरी बात पूछने तो बीबीजी कान पर फोन लगाए होती थीं और कहती थीं कि एक पल रुक आशी फिर जल्दी से हमें निबटा कर बतियाने लगती थीं.’’
‘‘फेसबुक या लिंक्डइन में मैडम का अकाउंट नहीं है और न ही मैडम के मोबाइल पर रूपम का नंबर है,’’ स्नेहा मायूसी से बोली.
‘‘यह रूपम कौन है?’’
‘‘1 सप्ताह पहले मैं मैडम के साथ इंटरनैशनल बुक फेयर में गई थी. वहां मैडम को एक पुरानी सहपाठिन रूपम मिली थीं. उन के पति प्रणव कुछ रोज पहले ही किसी कंपनी के वाइस प्रैसिडैंट बन कर यहां आए हैं. रूपम से मिलना बहुत जरूरी है, लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा कि उन्होंने अपने पति की कंपनी का क्या नाम बताया था.’’
‘‘वसंत, तुरंत पता लगाओ कि किस कंपनी में प्रणव नाम का नया वाइस प्रैसिडैंट आया है और कहां रहता है?’’ देव ने स्नेहा की बात काट कर वसंत को आदेश दिया, ‘‘रूपम का पता तो आप को मिल जाएगा, लेकिन उन से मिलने के चक्कर में आप एअरपोर्ट जाना तो नहीं टालेंगी?’’
‘‘वह कैसे टाल सकती हूं, सर ने कहा है मुझे आने को. फोन नंबर मिल जाए तो रूपम से मिलने का समय ले लूंगी. मुझे लगता है उन से जरूर कुछ मदद मिलेगी.’’
‘‘ऐसा क्यों?’’
‘‘क्योंकि वह मैडम को प्रेमलता का नाम ले कर छेड़ रही थीं. हो सकता है उन्हें उस रिश्ते के बारे में मालूम हो जिस पर हम शक कर रहे हैं,’’ कहते हुए स्नेहा सकपका गई.
देव भी झिझका.
‘‘अगर रूपम हमारे शक की पुष्टि कर देती हैं तो फिर तो यह मामला कुछ हद तक सुलझ जाएगा, लेकिन अभी दिलीप से इस बारे में कुछ पूछना जल्दबाजी होगी.’’
‘‘जी हां, क्योंकि दया के अनुसार तो प्रेमलता दिलीप सर की उपस्थिति में उन के घर नहीं आती थी.’’
तभी महिला कांस्टेबल रैचेल आ गई.
अलमारियों में कपड़ों के अलावा कुछ जेवर थे, कुछ हजार रुपए, चैकबुक और कुछ अन्य दस्तावेज. लेकिन कुछ भी संदिग्ध नहीं था सिवा महंगे विदेशी इत्र और पारदर्शी नाइटियों के.
‘‘हर हसबैंड हैज स्पैंट ए फौरच्युन औन दीज,’’ रैचेल कहे बगैर न रह सकी.
‘‘शी इज अनमैरिड, ए स्पिनिस्टर टू बी ऐग्जैक्ट,’’ स्नेहा के कड़वे व्यंग्य पर देव ने मुश्किल से हंसी रोकी.
‘‘कविताओं से तो नहीं लगता कि महापौर अवसादग्रस्त थीं या किसी मानसिक विकृति का शिकार, लेकिन उन्होंने जो कुछ भी किया है किसी मानसिक व्याधि के कारण ही किया है,’’ देव बोला, ‘‘उन की दवाओं की अलमारी की बारीकी से छानबीन करनी होगी.’’
अलमारी में मामूली खांसीजुकाम, आंखों की दवा और विटामिन की गोलियों के अलावा कुछ नहीं था. तभी वसंत ने बताया कि प्रणव एक विदेशी बैंक का वाइस प्रैसिडैंट है और गोल्फ लिंक्स में बैंक के गैस्ट हाउस में रह रहा है.
‘‘गैस्ट हाउस में तो बगैर फोन किए यानी अपौइंटमैंट लिए भी जा सकती हूं,’’ स्नेहा बोली.
‘‘मगर अभी तो आप एअरपोर्ट चलिए. प्लेन लैंड करने वाला होगा,’’ देव ने कहा और फिर स्नेहा को पार्किंग में रुकने को कह देव अंदर चला गया. फिर कुछ देर बात ही अस्तव्यस्त से व्यथित दिलीप के साथ आ गया. स्नेहा गाड़ी से उतर कर दिलीप के पास गई. उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे. बस इतना ही पूछा, ‘‘आप का सामान सर?’’
‘‘सामान मेरे आदमी घर पर ले आएंगे स्नेहाजी, गाड़ी मैं चलाऊंगा, आप पीछे दिलीपजी के साथ बैठ कर बातें करिए,’’ देव ने कहा, ‘‘बेफिक्र रहिए, तेज चला कर आप की गाड़ी कहीं ठोकूंगा नहीं.’’
‘‘गाड़ी मेरी अपनी नहीं औफिस की है. अब गाड़ी तो क्या, शायद नौकरी भी नहीं रहेगी,’’ स्नेहा का स्वर रुंध गया.
‘‘आशा ने तुम्हें बताया नहीं था कि तुम्हारा नाम आशा की गैरहाजिरी में ऐसोसिएट ऐडिटर के लिए मंजूर हो गया है?’’ दिलीप ने हैरानी से पूछा.
‘‘मैडम कहीं जाने वाली थीं?’’ स्नेहा ने चौंक कर पूछा.
‘‘मेरे पास दुबई आ रही थी. मैं ने टूअरिंग जौब के बजाय दुबई में डैस्क जौब ले ली है और आशा को वहां भी ऐडिटर की…’’
‘‘ओह आई सी,’’ देव ने बात काटी, ‘‘तो आज शाम पार्टी इसी खुशी में थी?’’
‘‘कैसी पार्टी इंस्पैक्टर?’’ दिलीप ने चौंक कर पूछा.
स्नेहा ने दया की कही हुई बात दोहरा दी.
दिलीप ने एक उसांस ली, ‘‘दावत वाली पार्टी नहीं थी. जिस एजेंट ने मुझे दुबई में घर दिलवाया था वही हमें यहां के घर के लिए भी किराएदार दिलवा रहा था. उसी पार्टी को घर दिखाने की बात मैं और आशा कर रहे थे. आशा का पोस्टमार्टम तो हो चुका होगा, इंस्पैक्टर? चलिए, बौडी को ले कर ही घर चलेंगे.’’
‘‘दाहसंस्कार आज ही कर देंगे?’’
‘‘कल सब के आने पर. बौडी आज घर पर ही रखूंगा.’’
‘‘आप प्रेमलता से मिलना चाहेंगे?’’
‘‘क्या फायदा? उस से तो जो उगलवाना है आप ही उगलवाएंगे.’’
‘‘आप की उस से दोस्ती थी?’’
‘‘हालांकि आशा और प्रेम बचपन की सहेलियां थीं, लेकिन उन्होंने अपनी दोस्ती मुझ पर कभी नहीं थोपी यानी आशा न तो प्रेम को जबतब घर बुलाती थी और न ही मुझे उस के घर चलने को कहती थी. वह एक निहायत सौम्य, शालीन महिला हैं, मेरे साथ उन का व्यवहार अपने पद की गरिमा और मर्यादा के अनुकूल था. उस ने आशा की हत्या क्यों की यह मेरी समझ से बाहर है.’’
‘‘दया के अनुसार प्रेमलता अकसर रात को आप के यहां रहती थी और आशाजी उसके. दोनों रोज देर रात तक फोन पर भी बातें भी करती थीं.’’
‘‘मुझे मालूम है आशा अकसर बताती थी कि आज प्रेम आ रही है या वह प्रेम के घर जा रही है. दिन में तो दोनों व्यस्त रहती थीं, रात को ही मिल या बात कर सकती थीं,’’ दिलीप ने कहा और फिर कुछ सोच कर जोड़ा, ‘‘वैसे आशा अकेले रहतेरहते परेशान हो चुकी थी. उसी के कहने पर मैं ने फील्ड जौब छोड़ कर डैस्क जौब ली है. वह अब बच्चा चाहती थी यानी भरीपूरी गृहस्थी.’’
‘‘प्रेमलता ने शादी क्यों नहीं की यह कभी पूछा नहीं आप ने?’’
‘‘प्रेम का अफेयर है किसी ऐसे के साथ जिस से शादी नहीं कर सकती. इस से ज्यादा मुझे नहीं मालूम, क्योंकि आशा के साथ जो भी समय मिलता था उसे मैं दूसरों के बारे में बात करने में नहीं गंवाता था.’’
‘‘यह जो प्रेमलता ने बेवफाई वाली बात कही है उस से आप को भी लगता है कि आशाजी प्रेमलता की कोई गोपनीय बात प्रकाशित करने जा रही थीं?’’
‘‘यह तो स्नेहा या प्रेमलता के औफिस वाले बेहतर बता सकते हैं. एक बात बता दूं, आशा किसी बात को ले कर परेशान नहीं थी और न ही प्रेमलता से डर कर यहां से भाग रही थी. वह तो चाहती थी कि मैं यहीं वापस आ कर कोई बिजनैस करूं. अभी भी इसी शर्त पर मानी थी कि चंद वर्ष विदेश में पैसा कमा कर फिर यहां आ कर कोई काम करेंगे.’’
आशा की बौडी लेने जब दिलीप अंदर गया तो देव ने स्नेहा से कहा, ‘‘इस ने तो मामला और भी उलझा दिया है.’’
‘‘आप को नहीं लगता कि प्रेमलता ने आशा के अपने पति के पास जाने के फैसले को खुद से बेवफाई समझा था?’’
देव चौंक पड़ा, ‘‘यह तो तभी हो सकता है जब हमारा शक उन दोनों के रिश्तों के बारे में सही हो और दिलीप की यह बात सुन कर कि आशा अब बच्चा चाहती थी हमारा शक तो बेबुनियाद लगता है.’’
‘‘हो सकता है आशा हैट्रो सैक्सुअल हो. हालांकि मेरा दिलीप सर के साथ रहना जरूरी है, लेकिन उस से भी जरूरी है रूपम से मिलना और वह भी उस के पति के औफिस से लौटने से पहले, क्योंकि उस के सामने रूपम ये सब बातें शायद न करे.’’
देव कुछ बोलता उस से पहले ही दिलीप आ गया, ‘‘मैं तो आशा के साथ ऐंबुलैंस में आऊंगा, आप लोग जाइए. स्नेहा, तुम सुबह से अपने घर से निकली हो सो अब घर जा फ्रैश हो आओ. मेरे घर पर आशा के बहनभाई पहुंच गए हैं और मेरे परिवार वाले भी पहुंचने वाले हैं. मैं ने यश को फोन किया था. उसी ने बताया सब.’’
‘‘ठीक है सर, मैं कुछ देर बाद आती हूं. टेक केयर,’’ स्नेहा का स्वर रुंध गया.
‘‘आप चलिए, मैं दिलीप के साथ रुकता हूं,’’ देव ने कहा, ‘‘मेरा नंबर ले लीजिए, अगर रूपम से कुछ सुराग मिले तो फोन करिएगा.’’
‘‘जरूर.’’
घर जा कर फ्रैश होने के बाद स्नेहा रूपम से मिलने गई. गैस्ट हाउस में रिसैप्शनिस्ट से मैसेज मिलते ही रूपम ने उसे अपने कमरे में बुला लिया.
‘‘मैं ने टीवी पर न्यूज सुनते ही आप के औफिस में फोन किया था पर आप मिली नहीं…’’
‘‘जी हां, मैं भी सीआईडी इंस्पैक्टर के साथ तफतीश में लगी हुई हूं. प्रेमलताजी ने यह कह कर कि आशा बेवफाई पर उतर आई थी, अटकलों का पिटारा तो खोल दिया और फिर यह कह कर कि यह व्यक्तिगत बात है चुप्पी साध ली. अब इतनी बड़ी शख्सीयत का मुंह खुलवाने का रास्ता पुलिस के आला अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा सो मामला आननफानन में सीआईडी के सुपुर्द कर दिया है,’’ स्नेहा सांस लेने को रुकी, ‘‘फिलहाल प्रेमलता के घर पर जो देखा उस से सीआईडी का सब से माहिर इंस्पैक्टर देव भी चकरा गया है और मैं इसी सिलसिले में आप की मदद लेने आई हूं.’’
‘‘मेरी मदद?’’ रूपम ने भौंहें चढ़ा कर पूछा, ‘‘मैं भला क्या मदद कर सकती हूं? कई वर्षों बाद मैं पिछले सप्ताह आशा से मिली थी. प्रेम से तो अभी मुलाकात ही नहीं हुई. सो उस के घर में आप ने जो देखा उस के बारे में मुझे क्या पता होगा?’’
‘‘मैं बताती हूं, प्रेमलता के बैडरूम में आशा का लाइफसाइज पोट्रैट लगा था…’’
‘‘ओह नो,’’ और रूपम हंसी से लोटपोट हो गई. फिर अपने को संयत करते हुए बोली, ‘‘क्षमा करिएगा, मैं खुद पर काबू नहीं रख सकी.’’
‘‘यानी इस रिश्ते के बारे में आप को मालूम था?’’