एक स्टार
कटु सत्य यही है कि बौलीवुड का फिल्मकार अजेंडे वाला सिनेमा नहीं बना सकता. हिंदी सिनेमा के फिल्मकार जब अजेंडे वाला सिनेमा बनाते हैं, तो वह खुद के साथ ही दूसरों को भी डुबाने का प्रण ले लेते हैं. यही बात ‘सर्कस’ और ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ की असफलता का दंश झेल रहे फिल्मकार रोहित शेट्टी पर भी लागू होती है. अपने निर्देशन कैरियर को बुरी तरह डूबते देख रोहित शेट्टी ने सोचा कि क्यों न राष्ट्रवादियों व अंध भक्तों को खुश करने वाली फिल्म बनाई जाए लेकिन रोहित शेट्टी ने दर्शकों को मनोरंजन परोसने के साथ एक अच्छी कहानी सुनाने की दिशा में काम करने की बनिस्बत ‘सिंघम अगेन’ के नाम पर सीधे ऐसा अजेंडे वाला सिनेमा ले कर आ गए, जिसे देख दर्शक अपना माथा पीट रहा है और कसमें खा रहा है कि वह दूसरों को उन का सिरदर्द करवाने से बचाएगा.
एक नवंबर को दिवाली के अवसर पर सिनेमाघरों में प्रदर्शित बड़े बजट की फिल्म ‘सिंघम अगेन’ पूरी तरह से सरकार परस्त सिनेमा है. जिस में कहानी तो है ही नहीं. कुछ लोग इसे डाक्यूमेंट्री की भी संज्ञा दे सकते हैं. गुटके का विज्ञापन करने वाले दो स्टार कलाकार इस में ‘ड्रग्स’ बेचने वाले रैकेट को पकड़़ने की बात करते हैं. है न हास्यास्पद बात.
रोहित शेट्टी ने अपनी इस फिल्म में देशभक्ति, ‘नए भारत का नया कश्मीर’, निजी बदले के लिए किसी भी हद तक गुजर जाने के साथ ही देश की संस्कृति के नाम पर धर्म, रामायण, श्रीराम व राष्ट्रवाद को बेचते हुए बारबार ‘श्री राम’ के नारे लगवाने से भी बाज नहीं आए. ‘राम’, ‘रामायण’, ‘हनुमान’ आदि को ले कर फिल्म की शुरूआत में ही ‘अस्वीकरण’ किया गया है कि इस के पात्रों को पूजनीय रूप में न देखा जाए.