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मुझे माहवारी 5 महीने बाद आती है, कही इसी वजह से तो मैं मां नहीं बन पा रही हूं?

सवाल
मैं एक सैनिक की पत्नी हूं. विवाह को 3 साल हो चुके हैं. मेरे पति 6 महीने बाद घर आते हैं. मुझे अभी तक मातृत्व का सुख नहीं मिला. मुझे माहवारी कभी 3 महीने बाद आती है, तो कभी 5 महीने बाद. मेरे मां न बनने के लिए कहीं यही तो वजह नहीं है?

जवाब
अनियमित माहवारी के लिए आप को स्त्रीरोग विशेषज्ञा से परामर्श लेना चाहिए. विवाह के 3 सालों के बाद भी आप को संतानसुख प्राप्त नहीं हुआ है, तो इस बार जब आप के पति आएं तो उन के साथ किसी परिवार कल्याण केंद्र में जा कर जांच कराएं. पतिपत्नी दोनों की जांच करने के बाद ही पता चलेगा कि अब तक आप संतानसुख से वंचित क्यों हैं, संतानोत्पत्ति की कितनी संभावना है? उस के अनुसार ही आप को उपचार यदि आवश्यक हुआ तो दिया जाएगा.

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माहवारी नहीं बीमारी

किशोरावस्था लड़कियों के जीवन का वह समय होता है जिस में उन्हें तमाम तरह के शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. इस दौरान लड़कियां अपने शरीर में होने वाले बदलावों से अनजान होती हैं, जिस की वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिस में उलझन, चिंता और बेचैनी के साथसाथ हर चीज के बारे में जानने की उत्सुकता रहती है. लड़कियों को उन के परिवार के सदस्यों द्वारा न ही बच्चा समझा जाता है और न ही बड़ा. ऐसे में उन के प्रति कोई भी लापरवाही घातक हो सकती है.

लड़कियों में किशोरावस्था की शुरुआत 9 वर्ष से हो जाती है, जो 19 वर्ष तक रहती है. जब लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करती है तो उस के प्रजनन अंगों में तमाम तरह के परिवर्तन बड़ी तेजी से होते हैं. इसी दौरान लड़कियों में माहवारी की शुरुआत होती है, जो उन के प्रजनन तंत्र के स्वस्थ होने का संकेत देती है.

किशोरावस्था की शुरुआत में परिवारजनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बेटी की उचित देखभाल करने के साथसाथ उसे भलेबुरे का भी परामर्श देते रहें, क्योंकि यह एक ऐसी उम्र है जिस में लड़की सपनों की दुनिया बुनने की शुरुआत करती है. ऐसे में लड़कियां उचित देखभाल व परामर्श न मिलने से गलत कदम भी उठा सकती हैं.

हर लड़की के मातापिता को चाहिए कि वे तमाम शारीरिक परिवर्तनों के बारे में उसे पहले से अगवत कराएं, जिस से वह अपने शारीरिक बदलाव का मुकाबला करने में सक्षम हो पाए. किशोरावस्था में लड़की के प्रजनन अंगों से अचानक खून आना उसे मानसिक रूप से विचलित कर सकता है, इसलिए यह जरूरी है कि इस के बारे में लड़की को पहले से ही जानकारी हो. जिस से माहवारी में अस्वच्छता से होने वाली बीमारियों व संक्रमण से उस का बचाव किया जा सके.

क्या है माहवारी

महिला रोग विशेषज्ञ डा. प्रीति मिश्रा के अनुसार, लड़कियां में मुख्यत: 2 अंडाशय, गर्भाशय व उस को जोड़ने वाली फैलोपियंस ट्यूब नामक 2 नलियां होती हैं. यही आगे चल कर स्वस्थ बच्चा जनने में सहायक होती हैं. लड़की जब जवान होती है तो उस के अंडाशय से हर सप्ताह 1 अंडा फूट कर बाहर आने लगता है, जो बच्चेदानी की भीतरी दीवार पर हर माह जमने वाले खून की परत से जा कर चिपक जाता है. अगर इस दौरान लड़की के अंडे से पुरुष शुक्राणु नहीं मिलते तो बच्चेदानी के अंदर जमी खून की परत टूट जाती है और ये अंडे शरीर से बाहर निकलने लगते हैं, जिसे माहवारी के रूप में जाना जाता है.

माहवारी के पहले दिन से ले कर 2 सप्ताह बाद तक अंडाशय में नया अंडा फूटने के लिए तैयार होने लगता है और गर्भाशय में दोबारा खून की नई परत जमने लगती है. इसी प्रकार यह मासिक चक्र चलता रहता है. महिलाओं में माह के 28वें दिन माहवारी आने का समय होता है, अगर इस से पहले स्त्री का अंडाणु और पुरुष का शुक्राणु मिल जाएं तो गर्भ ठहर सकता है और माहवारी बंद हो जाती है.

माहवारी के दौरान आमतौर पर एक महिला की योनि से 35 से 50 मिलीलिटर खून निकलता है, जो कभीकभी इस मात्रा से अधिक भी हो सकता है. ऐसी अवस्था में कभी भी उसे घबराना नहीं चाहिए. आमतौर पर माहवारी का चक्र 2 से 7 दिन तक चलता है, जिस के शुरुआती दिनों में खून का बहाव तेज होता है और बाद में धीरेधीरे कम व समाप्त हो जाता है. अगर माहवारी के दौरान अधिक रक्तस्राव हो रहा है तो खून की कमी की समस्या हो सकती है. ऐसे में किसी अच्छे डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

यह आम बात है

लड़कियों के लिए माहवारी के शुरुआती कुछ महीने बेहद संवेदनशील होते हैं, क्योंकि माहवारी के दौरान कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं, जिस से लड़कियां मानसिक रूप से परेशान हो सकती हैं. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि उन्हें माहवारी के दौरान आने वाली परेशानियों के बारे में पूरी जानकारी हो, जिस से वे इन चीजों का  मुकाबला कर पाएं.

माहवारी के दौरान अकसर थकान होने के साथ ही शरीर ढीला हो जाता है और सिर दर्द, चिड़चिड़ापन और स्तनों में कसाव की समस्या देखने को मिलती है. इस दौरान लड़कियों में कब्ज की शिकायत व काम में मन न लगने जैसी समस्या होना आम बात है. इस के अलावा उन्हें कमर व पेड़ू में दर्द की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है, जो कैल्शियम व आयरन की कमी से हो सकती है. इस कमी को दूर करने के लिए लड़कियों को नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए, जिस से उन्हें राहत महसूस होती है.

कभीकभार माहवारी आने का अंतराल 3 महीने का भी हो जाता है, जो लड़कियों में दबाव या चिंता के कारण होता है. यह कारण किसी अपने से बिछड़ने को ले कर भी हो सकता है. जिन लड़कियों में माहवारी की शुरुआत जल्द हुई हो उन में एकदो साल तक माहवारी चक्र अनियमित होने की शिकायत देखने को मिलती है. ऐसे में अगर किसी लड़की में माहवारी चक्र 21 से 45 दिन का है तो यह सामान्य बात हो सकती है, अगर माहवारी चक्र में अंतराल 2 या 3 महीने का हो और यह लगातार चला आ रहा हो तो ऐसी अवस्था में किसी महिला डाक्टर से सलाह लेना जरूरी हो जाता है.

डा. प्रीति मिश्रा के अनुसार अगर लड़कियों में एक ही महीने में 2 बार माहवारी की समस्या है तो डाक्टर की सलाह लेनी जरूरी है, लेकिन कभीकभी बहुत ज्यादा खुशी, चिंता, दुख या डर की वजह से भी माहवारी जल्दी आ सकती है.

माहवारी से जुड़े अंधविश्वास से बचें

सौंदर्य विशेषज्ञ व सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रिया सिंह राठौर का कहना है कि युवामन किसी तरह के बंधन में बंध कर नहीं रहना चाहता, ऐसे में उन पर विभिन्न प्रकार की रूढि़वादी परंपराओं को थोपना घातक हो सकता है. अकसर माहवारी को ले कर तमाम तरह की भ्रांतियां व अंधविश्वास देखने को मिलते हैं, जिन्हें लड़कियों पर भी थोपने की कोशिश की जाती है. ये अंधविश्वास और भ्रांतियां लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं.

सुप्रिया सिंह का कहना है कि अधिकतर लोगों की सोच है कि माहवारी के दौरान निकलने वाला खून गंदा होता है, जबकि यह खून हमारे शरीर में उपलब्ध खून की तरह ही होता है जो माहवारी के दौरान योनिमार्ग से बाहर निकलता है. यदि यौनांगों की साफसफाई का ध्यान रखा जाए तो माहवारी के दौरान निकलने वाले खून से किसी प्रकार का संक्रमण नहीं होता.

माहवारी को ले कर सदियों से यह अंधविश्वास बना हुआ है कि माहवारी के दौरान लड़की को खाना नहीं बनाना चाहिए न ही खानेपीने की वस्तुओं, कुओं, तालाबों, नदियों आदि के पास जाना चाहिए. ऐसा करने से सब अशुद्ध हो जाता है, जबकि माहवारी के दौरान इन सब चीजों के छूने से किसी तरह की हानि नहीं होती, यह मात्र अंधविश्वास और भ्रांति के कारण होता है. हां, यह जरूर है कि माहवारी के दौरान अगर खाना बनाने या परोसने का काम किया जा रहा है, तो हाथों को साबुन से भलीभांति धो लेना चाहिए, जिस से किसी तरह का संक्रमण फैलने से रोका जा सके.

माहवारी के दौरान खानपान को ले कर भी तमाम तरह की भ्रांतियां हैं, जिन की वजह से लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लोगों का मानना है कि माहवारी के दौरान खट्टा पदार्थ खाने से अधिक खून निकलता है जबकि इस दौरान खट्टी चीजें खाने से कोई नुकसान नहीं होता. इस के अलावा दूध, दही और पनीर खाने पर भी रोक लगाई जाती है जबकि माहवारी के दौरान इन पदार्थों के खाने से शरीर को पोषण प्राप्त होता है.

अच्छा खानपान जरूरी

माहवारी के दौरान लड़कियों के खानपान पर खास ध्यान देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि किशोरावस्था के दौरान उन के शरीर का विकास तेजी से होता है, ऐसे में माहवारी के दौरान कभीकभी अधिक रक्तस्राव उन में लौहतत्त्वों की कमी का कारण बन सकता है. इसलिए लड़कियों को हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल, दालें, गुड़ के साथ पौष्टिक पदार्थों के खाने पर विशेष जोर देना चाहिए. उन्हें आयरन की गोलियां खाने को दी जानी चाहिए. अकसर यह भी सुनने में आता है कि परिवार वाले उन लड़कियों को धार्मिक स्थलों पर जाने की इजाजत नहीं देते. जिन्हें माहवारी हो रही है. वैसे तो धार्मिक स्थलों पर जाने से कोई फायदा नहीं है पर लड़कियों पर इस तरह की बंदिश ठीक नहीं है.

अकसर लड़कियां माहवारी की जटिलताओं से बचने के लिए अपने अभिभावकों से अपनी समस्याएं साझा करने से हिचकती हैं, जो ठीक नहीं है, क्योंकि इस से आगे चल कर उन के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लड़कियों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए माहवारी के दौरान अपनी साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. साथ ही खानेपीने की वस्तुओं को छूने से पहले व बाद में साबुन से हाथ धोना नहीं भूलना चाहिए.

28 मई को विश्व माहवारी दिवस मनाया गया जिस में विश्व की महिलाओं द्वारा अलगअलग स्थानों पर जुलूस निकाले गए ताकि लड़कियों को इस बारे में सही जानकारी दी जा सके. साथ ही यह संदेश भी दिया गया कि माहवारी के बारे में चर्चा करना शर्म की बात नहीं है. यह शरीर की एक प्रक्रिया है और अंधविश्वास से इस का कोई सरोकार नहीं है.

लापरवाही बन सकती है संक्रमण का कारण

माहवारी के दौरान की गई लापरवाही संक्रमण का कारण बन सकती है, क्योंकि जानकारी के अभाव में अकसर लड़कियां माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का प्रयोग करती हैं, जिस से उन के प्रजनन अंगों में कई तरह के संक्रमण पैदा हो जाते हैं. यह संक्रमण यौनांगों में किसी प्रकार के घाव होने, बदबूदार पानी निकलने, दर्द, दाने या खुजली के रूप में हो सकते हैं. जिन की वजह से असामान्य रूप से स्राव होने लगता है, जो कमर व पेड़ू के दर्द का कारण बनता है. कभीकभार यौनांगों में अधिक संक्रमण की वजह से बदबूदार सफेद पानी भी आने लगता है, जिस की वजह से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

इन बातों का रखें खयाल

माहवारी के दौरान साफसफाई का विशेष खयाल रखना चाहिए. इस दौरान की गई कोई भी लापरवाही लड़की के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है. डाक्टर प्रीति मिश्रा के अनुसार माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले पैड की स्वच्छता का विशेष खयाल रखना चाहिए. आमतौर पर ग्रामीण लड़कियां माहवारी के दौरान खून को सोखने के लिए पुराने व गंदे कपड़ों के पैड का इस्तेमाल करती हैं, जो उन के प्रजनन तंत्र के संक्रमण का कारण बन सकता है. ऐसी अवस्था में यह जरूरी है कि लड़की सिर्फ सैनेटरी पैड का ही इस्तेमाल करे जो आजकल बेहद सस्ते दामों में बाजार में उपलब्ध हैं.

माहवारी के दौरान प्रतिदिन स्नान करना भी जरूरी होता है. नहाते समय अपने भीतरी कपड़ों को अच्छी तरह से साबुन और साफ पानी से धो कर खुली धूप में सुखाना चाहिए और माहवारी के दौरान प्रयोग किए जाने वाले सैनेटरी पैड को दिन में कम से कम 2 से 3 बार जरूर बदलते रहना चाहिए. सैनेटरी पैड बदलने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोएं.

डा. प्रीति मिश्रा के अनुसार माहवारी के दौरान निकलने वाले खून को सोखने के लिए जिस सैनेटरी पैड का इस्तेमाल किया जाता है वह अलगअलग ब्रैंड्स में उपलब्ध हैं. ऐसी अवस्था में कम पैसे में भी इस की खरीदारी की जा सकती है. यह न केवल आरामदेह होता है बल्कि इस से संक्रामक बीमारियों से भी बचाव होता है. ये सैनेटरी पैड मैडिकल स्टोर, जनरल स्टोर या फिर डिपार्टमैंटल स्टोर पर आसानी से मिल जाते हैं.

बिना शर्त: भाग-3

‘कोई बात नहीं. आप अपने मम्मीपापा का कहना मानो. वैसे भी शर्तों के आधार पर जीवन में साथसाथ नहीं चला जा सकता,’ उस ने दुखी मन से कहा था.

‘सोच लेना, आभा, सारी रात है. कल मु झे जवाब दे देना.’

‘मेरा निर्णय तो सदा यही रहेगा कि जो मु झे मेरी बेटी से दूर करना चाहता है उस के साथ मैं सपने में भी नहीं रह सकती.’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा था.

कुछ देर बाद महेश उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था.

विचारों में डूबतेतैरते आभा को नींद आ गई थी. सुबह आभा की आंख खुली तो सिर में दर्द हो रहा था और उठने को मन भी नहीं कर रहा था. रात की बातें याद आने लगीं. हृदय पर फिर से भारी बो झ पड़ने लगा. क्या महेश ऊपरी मन से मिन्नी को प्रेम व दुलार देता था? मिन्नी को बेटीबेटी कहना केवल दिखावा था. यदि वह पहले ही यह सब जान जाती तो महेश की ओर कदम ही न बढ़ाती. महेश भी तो मिन्नी को उस से दूर करना चाहता है.

नहीं, वह मिन्नी को कभी स्वयं से दूर नहीं करेगी. प्रशांत के जाने के बाद उस ने मिन्नी को पढ़ालिखा कर किसी योग्य बनाने का लक्ष्य बनाया था. पर जब महेश ने उस की ओर हाथ बढ़ाया तो वह स्वयं को रोक नहीं पाई थी.

दोपहर को आभा के मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर महेश का नाम था. उस ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘आभा, आज आप औफिस नहीं आईं?’’ स्वर महेश का था.

‘‘हां, आज तबीयत ठीक नहीं है, औफिस नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘दवा ले लेना. मेरी जरूरत हो तो फोन कर देना. मैं डाक्टर के यहां ले चलूंगा.’’

‘‘ठीक है.’’

उधर से मोबाइल बंद हो गया. आभा मन ही मन तड़प कर रह गई. उस ने सोचा था कि शायद महेश यह कह देगा कि मिन्नी हमारे साथ ही रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. अब वह एक अंतिम निर्णय लेने पर विवश हो गई. ठीक है जब महेश को उस की बेटी मिन्नी की जरा भी चिंता नहीं है तो उसे क्या जरूरत है महेश के बारे में सोचने की.

दोपहर बाद मांजी आभा के पास आईं और बोलीं, ‘‘अरे बेटी, आज तुम औफिस नहीं गईं?’’

‘‘मांजी, आज तबीयत कुछ खराब थी, इसलिए औफिस से छुट्टी कर ली.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? मु झे बता देती. मैं कमल से कह कर दवा मंगा देती. कहीं डाक्टर को दिखाना है तो मैं शाम को तेरे साथ चलूंगी.’’

‘‘नहींनहीं, मांजी. मामूली सा सिरदर्द था, अब तो ठीक भी हो गया है. आप चिंता न करें.’’

‘‘तू मेरी बेटी की तरह है. बेटी की चिंता मां को नहीं होगी तो फिर किसे होगी?’’ मांजी ने आभा की ओर देखते हुए कहा.

आभा मांजी की ओर देखती रह गई. ठीक ही तो कह रही हैं मांजी. बेटी की चिंता मां नहीं करेगी तो कौन करेगा. उस के चेहरे पर प्रसन्नता फैल गई. वह कुछ नहीं बोली.

‘‘बेटी, बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रही थी, पर डर रही थी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ,’’ मांजी बोलीं.

‘‘मांजी, आप कहिए. मां की बात का बेटी भी कहीं बुरा मानती है क्या?’’

‘‘बेटी, तुम तो हमारे छोटे से घरपरिवार के बारे में जानती हो. कमल में कोई ऐब नहीं है. उस की आयु भी ज्यादा नहीं है. जब भी उस से दूसरी शादी की बात करती हूं तो मना कर देता है. उसे डर है कि दूसरी लड़की भी तेज झगड़ालू आदत की आ गई तो यह घर घर न रहेगा.’’

आभा सम झ गई जो मांजी कहना चाहती हैं लेकिन वह चुप रही.

मांजी आगे बोलीं, ‘‘बेटी, जब से तुम हमारे यहां किराएदार बन कर आई हो, मैं तुम्हारा व्यवहार अच्छी तरह परख चुकी हूं. राजू और मिन्नी भी आपस में हिलमिल गए हैं. तुम्हारे औफिस जाने के बाद दोनों आपस में खूब खेलते हैं. मैं चाहती हूं कि तुम हमारे घर में बहू बन कर आ जाओ. राजू को बहन और मिन्नी को भाई मिल जाएगा. कमल भी ऐसा ही चाहता है. मैं बहुत आशाएं ले कर आई हूं, निराश न करना अपनी इस मांजी को.’’

सुनते ही आभा की आंखों के सामने महेश और कमल के चेहरे आ गए. कितना अंतर है दोनों में. महेश तो अपने मम्मीपापा के कहने में आ कर बेटी मिन्नी को उस से दूर करना चाहता है जबकि मांजी मिन्नी को अपने पास ही रखना चाहती हैं. इस में तो कमल की भी स्वीकृति है.

‘‘क्या सोच रही हो, बेटी? मु झे तुम्हारा उत्तर चाहिए. यदि तुम ने हमारे राजू को अपना बेटा बना लिया तो मेरी बहुत बड़ी चिंता दूर हो जाएगी,’’ मांजी ने आभा की ओर देखा.

आभा कुछ नहीं बोली. वह चुपचाप उठी, साड़ी का पल्लू सिर पर किया और मुड़ कर मांजी के चरण छू लिए.

मांजी को उत्तर मिल गया था. वे प्रसन्नता से गदगद हो कर बोलीं, ‘‘मु झे तुम से ऐसी ही आशा थी, बेटी. सदा सुखी रहो. तुम अपने मम्मीपापा को बुला लेना. उन से भी बात करनी है.’’

‘‘अच्छा मांजी.’’

‘‘और हां, आज रात का खाना हम सभी इकट्ठा खाएंगे.’’

‘‘खाना मैं बनाऊंगी, मांजी. मैं आप की और कमल की पसंद जानती हूं.’’

‘‘ठीक है, बेटी. अब मैं चलती हूं. कमल को भी यह खुशखबरी सुनाना चाहती हूं. उस से कह दूंगी कि औफिस से लौटते समय मिठाई का डब्बा लेता आए क्योंकि आज सभी का मुंह मीठा कराना है,’’ मांजी ने कहा और कमरे से बाहर निकल गईं.

अगले दिन सुबह जब आभा की नींद खुली तो 7 बज रहे थे. रात की बातें याद आते ही उस के चेहरे पर प्रसन्नता दौड़ने लगी. रात खाने की मेज पर कमल, मांजी, वह, राजू और मिन्नी बैठे थे. खाना खाते समय कमल व मांजी ने बहुत तारीफ की थी कि कितना स्वादिष्ठ खाना बनाया है. हंसी, मजाक व बातों के बीच पता भी न चला कि कब 2 घंटे व्यतीत हो गए. उसे बहुत अच्छा लगा था.

वह आंखें बंद किए अलसाई सी लेटी रही. बराबर में मिन्नी सो रही थी.

अगली सुबह आभा नाश्ता कर रही थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने देखा कौल महेश की थी.

‘‘हैलो,’’ वह बोली.

‘‘अब कैसी हो, आभा?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मैं ने मम्मीपापा को मना लिया है. वे बहुत मुश्किल से तैयार हुए हैं. अब मिन्नी हमारे साथ रह सकती है.’’

‘‘आप को अपने मम्मीपापा को जबरदस्ती मनाने की जरूरत नहीं थी.’’

‘‘मैं कुछ सम झा नहीं?’’

‘‘सौरी महेश, आप ने थोड़ी सी देर कर दी. अब तो मैं अपनी मिन्नी के साथ काफी दूर निकल चुकी हूं. अब लौट कर नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘आभा, तुम क्या कह रही हो, मेरी सम झ में कुछ नहीं आ रहा है,’’ महेश का परेशान व चिंतित सा स्वर सुनाई दिया.

‘‘अभी आप इतना ही सम झ लीजिए कि मु झे बिना शर्त का रिश्ता यानी अपना घरपरिवार मिल गया है, जहां मिन्नी को ले कर कोई शर्त नहीं. मिन्नी भी साथ रहेगी. आप अविवाहित हैं, आप की शादी भी जल्द हो जाएगी. मैं आज औफिस आ रही हूं, बाकी बातें वहां आ कर सम झा दूंगी,’’ यह कह कर आभा ने मोबाइल बंद कर दिया और निश्चिंत हो कर नाश्ता करने लगी.

बिना शर्त: भाग-2

शाम को वह मिन्नी के साथ रैस्टोरैंट में पहुंच गई थी जहां महेश उस की प्रतीक्षा कर रहा था. खाने के बाद जब वह घर वापस लौटी तो 10 बज रहे थे.

बिस्तर पर लेटते ही मिन्नी सो गई थी. पर उस की आंखों में नींद न थी. वह आज महेश के बारे में बहुतकुछ जान चुकी थी कि महेश के पापा एक व्यापारी हैं. वह अपने घरपरिवार में इकलौता है. मम्मीपापा उस की शादी के लिए बारबार कह रहे हैं. कई लड़कियों को वह नापसंद कर चुका है. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया है कि वह जब भी शादी करेगा तो अपनी मरजी से करेगा.

वह सम झ नहीं पा रही थी कि महेश उस की ओर इतना आकर्षित क्यों हो रहा है. महेश युवा है, अविवाहित और सुंदर है. अच्छीखासी नौकरी है. उस के लिए लड़कियों की कमी नहीं. महेश कहीं इस दोस्ती की आड़ में उसे छलना तो नहीं चाहता? पर वह इतनी कमजोर नहीं है जो यों किसी के बहकावे में आ जाए. उस के अंदर एक मजबूत नारी है. वह कभी ऐसा कोई गलत काम नहीं करेगी जिस से आजीवन प्रायश्चित्त करना पड़े.

कमल उस का मकान मालिक था. उस का फ्लैट भी बराबर में ही था. वह एक सरकारी विभाग में कार्यरत था. परिवार के नाम पर कमल, मां और 5 वर्षीय बेटा राजू थे. कमल की पत्नी बहुत तेज व  झगड़ालू स्वभाव की थी. वह कभी भी आत्महत्या करने और कमल व मांजी को जेल पहुंचाने की धमकी भी दे देती थी. रोजाना घर में किसी न किसी बात पर क्लेश करती थी. कमल ने रोजाना के  झगड़ों से परेशान हो कर पत्नी से तलाक ले लिया था.

आभा मिन्नी को सुबह औफिस जाते समय एक महिला के घर छोड़ आती थी, जहां कुछ कामकाजी परिवार अपने छोटे बच्चों को छोड़ आते थे. शाम को औफिस से लौटते समय वह मिन्नी को वहां से ले आती थी.

एक दिन मांजी ने आभा के पास आ कर कहा था, ‘बेटी, तुम औफिस जाते समय मिन्नी को हमारे पास छोड़ जाया करो. वह राजू के साथ खेलेगी. दोनों का मन लगा रहेगा. हमारे होते हुए तुम किसी तरह की चिंता न करना, आभा.’

उस दिन के बाद वह मिन्नी को मांजी के पास छोड़ कर औफिस जाने लगी.

रविवार छुट्टी का दिन था. वह मिन्नी के साथ एक शौपिंग मौल में पहुंची. लौट कर बाहर सड़क पर खड़ी औटो की प्रतीक्षा कर रही थी, तभी एक बाइक उस के सामने रुकी, बाइक पर बैठे कमल ने कहा, ‘आभाजी, आइए बैठिए.’

वह चौंकी, ‘अरे आप? नहींनहीं, कोई बात नहीं, मैं चली जाऊंगी. थ्रीव्हीलर मिल जाएगा.’

‘क्यों, टूव्हीलर से काम नहीं चलेगा क्या? इस ओर मेरा एक मित्र रहता है. बस, उसी से मिल कर आ रहा हूं. यहां आप को देखा तो मैं सम झ गया कि आप किसी बस या औटो की प्रतीक्षा में हैं. आइए, आप जहां कहेंगी, मैं आप को छोड़ दूंगा.’

‘मु झे पलटन बाजार जाना है,’ उस ने बाइक पर बैठते हुए कहा.

‘ओके मैडम. घर पहुंच कर मां को मेरे लिए भी एक रस्क का पैकेट दे देना.’ उस ने रस्क के कई पैकेट खरीदे थे जो कमल ने देख लिए थे.

‘ठीक है,’ उस ने कहा था.

कमल उसे व मिन्नी को पलटन बाजार में छोड़ कर चला गया.

आभा कभीकभी मांजी व कमल के बारे में सोचती कि कितना अच्छा स्वभाव है दोनों का. हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं. दोनों ही बहुत मिलनसार व परोपकारी हैं.

अकसर मांजी राजू को साथ ले कर उस के पास आ जाती थीं. राजू और मिन्नी खेलते रहते. वह मांजी के साथ बातों में लगी रहती.

एक दिन मांजी ने कहा था, ‘आभा, हमारे साथ तो कुछ भी ठीक नहीं हुआ. ऐसी  झगड़ालू बहू घर में आ गई थी कि क्या बताऊं. बहू थी या जान का क्लेश. हमें तो तुम जैसी सुशील बहू चाहिए थी.’

वह कुछ नहीं बोली. बस, इधरउधर देखने लगी.

धीरेधीरे उस के व महेश के संबंधों की दूरी घटने लगी थी. महेश ने उस से कह दिया था कि वह जल्द ही उस के जीवन का हमसफर बन जाएगा. उसे भी लग रहा था कि उस ने महेश की ओर हाथ बढ़ा कर कुछ गलत नहीं किया है.

आज शाम जब वह रसोई में थी तो महेश का फोन आ गया था, ‘मैं कुछ देर बाद आ रहा हूं. कुछ जरूरी बात करनी है.’ ऐसी क्या जरूरी बात है जो महेश घर आ कर ही बताना चाहता है. उस ने जानना भी चाहा, परंतु महेश ने कह दिया था कि वहीं घर आ कर बताएगा.

एक घंटे बाद महेश उस के पास आ गया.

‘क्या लोगे? ठंडा या गरम?’ उस ने पूछा था.

‘कुछ नहीं.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है? कोल्डडिं्रक्स ले लीजिए,’ कहते हुए वह रसोई की ओर चली गई. जब लौटी तो ट्रे में 2 गिलास कोल्डडिं्रक्स के साथ खाने का कुछ सामान था.

‘अब कहिए अपनी जरूरी बात,’ उस ने मुसकरा कर महेश की ओर देखते हुए कहा.

‘आज मम्मीपापा आए हैं दिल्ली से. मैं ने उन को सबकुछ बता दिया था. यह भी कह दिया था कि शादी करूंगा तो केवल आभा से. कल वे तुम से मिलने आ रहे हैं,’ महेश ने उस की ओर देखते हुए कहा था. उस के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाएं फैलने लगीं.

‘मम्मीपापा ने इस शादी की स्वीकृति तो दे दी है, परंतु एक शर्त रख दी है.’

वह चौंक उठी, ‘शर्त, कैसी शर्त?’

‘वे कहते हैं कि शादी के बाद मिन्नी किसी होस्टल में रहेगी या नानानानी के पास रहेगी.’

यह सुन कर मन ही मन तड़प उठी थी वह. उस ने कहा, ‘यह तो मम्मीपापा की शर्त है, आप का क्या कहना है?’

‘देखो आभा, मेरी बात को सम झने की कोशिश करो. मिन्नी को अच्छे स्कूल व होस्टल में भेज देंगे. हम उस से मिलते भी रहेंगे.’

‘नहीं, महेश ऐसा नहीं हो सकता. मैं मिन्नी के बिना और मिन्नी मेरे बिना नहीं रह सकती.’

‘ओह आभा, तुम सम झती क्यों नहीं.’

‘मु झे कुछ नहीं सम झना है. मैं एक मां हूं. मिन्नी मेरी बेटी है. आप ने यह कैसे कह दिया कि मिन्नी होस्टल में रह लेगी. मैं अपनी मिन्नी को अपने से दूर नहीं कर सकती.’

‘तब तो बहुत कठिन हो जाएगा, आभा. मम्मीपापा नहीं मानेंगे.’

आगे पढ़ें- वैसे भी शर्तों के आधार पर जीवन में साथसाथ,…

बिना शर्त: भाग-1

महेश के कमरे से बाहर निकलते ही आभा के हृदय की धड़कन धीमी होने लगी. उस ने सोफे पर गरदन टिका कर आंखें बंद कर लीं.

आभा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि महेश आज उसे ऐसा उत्तर देगा जिस से उस के विश्वास का महल रेत का घरौंदा बन कर ढह जाएगा. महेश ने उस की गुडि़या सी लाड़ली बेटी मिन्नी के बारे में ऐसा कह कर उस के सपनों को चूरचूर कर दिया. पता नहीं वह कैसे सहन कर पाई उन शब्दों को जो अभीअभी महेश कह कर गया था.

वह काफी देर तक चिंतित बैठी रही. कुछ देर बाद दूसरे कमरे में गई जहां मिन्नी सो रही थी. मिन्नी को देखते ही उस के दिल में एक हूक सी उठी और रुलाई आ गई. नहीं, वह अपनी बेटी को अपने से अलग नहीं करेगी. मासूम भोली सी मिन्नी अभी 3 वर्ष की ही तो है. वह मिन्नी के बराबर में लेट गई और उसे अपने सीने से लगा लिया.

5 वर्ष पहले उस का विवाह प्रशांत से हुआ था. परिवार के नाम पर प्रशांत व उस की मां थी, जिसे वह मांजी कहती थी.

प्रशांत एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक था.

वह स्वयं एक अन्य कंपनी में काम करती थी.

2 वर्षों बाद ही उन के घरपरिवार में एक प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ. बेटी का मिन्नी नाम रखा मांजी ने. मांजी को तो जैसे कोई खिलौना मिल गया हो. मांजी और प्रशांत मिन्नी को बहुत प्यार करते थे.

एक दिन उस के हंसते, खुशियोंभरे जीवन पर बिजली गिर पड़ी थी. औफिस से घर लौटते हुए प्रशांत की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. सुन कर उसे लगा था मानो कोई भयंकर सपना देख लिया हो. पोस्टमार्टम के बाद जब प्रशांत का शव घर पर आया तो वह एक पत्थर की प्रतिमा की तरह निर्जीव हो गई थी.

मिन्नी अभी केवल 2 वर्ष की थी. उस की हंसीखुशी, सुखचैन मानो प्रशांत के साथ ही चला गया था. जब भी वह अपना शृंगारविहीन चेहरा शीशे में देखती तो उसे रुलाई आ जाती थी. कभीकभी तो वह अकेली देर तक रोती रहती.

उस के मां व बाबूजी आते रहते थे उस के दुख को कुछ कम करने के लिए. उस ने औफिस से लंबी छुट्टी ले ली थी.

एक दिन उस के बाबूजी ने उसे सम झाते हुए कहा था, ‘देख बेटी, जो दुख तु झे मिला है उस से बढ़ कर कोई दुख हो ही नहीं सकता. अब तो इस दुख को सहन करना ही होगा. यह तेरा ही नहीं, हमारा भी दुख है.’

वह चुपचाप सुनती रही.

‘बेटी, मिन्नी अभी बहुत छोटी है. तेरी आयु भी केवल 30 साल की है. अभी तो तेरे जीवन का सफर लंबा है. हम चाहते हैं कि फिर से तु झे कोई जीवनसाथी मिल जाए.’

‘नहीं, मु झे नहीं चाहिए कोई जीवनसाथी. अब तो मैं मिन्नी के सहारे ही अपना जीवन गुजार लूंगी. मैं इसे पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दूंगी. अगर मेरे जीवन में जीवनसाथी का सुख होता तो प्रशांत हमें छोड़ कर जाता ही क्यों?’ उस ने कहा था.

तब मां व बाबूजी ने उसे बहुत सम झाया था, पर उस ने दूसरी शादी करने से मना कर दिया था.

4 महीने बाद कंपनी ने उस का ट्रांस्फर देहरादून कर दिया था. वह बेटी मिन्नी के साथ देहरादून पहुंच गई थी.

देहरादून में उस की एक सहेली लीना थी. लीना का 4-5 कमरों का मकान था. लीना तो कहती थी कि उसे किराए का मकान लेने की क्या जरूरत है. यहीं उस के साथ रहे, जिस से उसे अकेलेपन का भी एहसास नहीं होगा. पर वह नहीं मानी थी.

उस ने हरिद्वार रोड पर 2 कमरों का एक फ्लैट किराए पर ले लिया था.

कुछ दिनों में उसे ऐसा लगने लगा था कि एक व्यक्ति उस में कुछ ज्यादा रुचि ले रहा है. वह व्यक्ति था महेश. कंपनी का सहायक प्रबंधक. महेश उसे किसी न किसी बहाने केबिन में बुलाता और उस से औफिस के काम के बारे में बातचीत करता.

एक दिन सुबह वह सो कर भी नहीं उठी थी कि मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. सुबहसुबह किस का फोन आ गया.

उस ने मोबाइल स्क्रीन पर पढ़ा – महेश.

महेश ने सुबहसुबह क्यों फोन किया? आखिर क्या कहना चाहता है वह? उस ने फोन एक तरफ रख दिया. आंखें बंद कर लेटी रही. फोन की घंटी बजती रही. दूसरी बार फिर फोन की घंटी बजी, तो उस ने  झुं झला कर फोन उठा कर कहा, ‘हैलो…’

‘आभाजी, आप सोच रही होंगी कि पता नहीं क्यों सुबहसुबह डिस्टर्ब कर रहा हूं जबकि हो सकता है आप सो रही हों. पर बात ही ऐसी है कि…’

‘ऐसी क्या बात है जो आप को इतनी सुबह फोन करने की जरूरत आ पड़ी. यह सब तो आप औफिस में भी…’

‘नहीं आभाजी, औफिस खुलने में अभी 3 घंटे हैं और मैं 3 घंटे प्रतीक्षा नहीं कर सकता.’

‘अच्छा, तो कहिए.’ वह सम झ नहीं पा रही थी कि वह कौन सी बात है जिसे कहने के लिए महेश 3 घंटे भी प्रतीक्षा नहीं कर पा रहा है.

‘जन्मदिन की शुभकामनाएं आप को व बेटी मिन्नी को. आप दोनों के जन्मदिन की तारीख भी एक ही है,’ उधर से महेश का स्वर सुनाई दिया.

चौंक उठी थी वह. अरे हां, आज तो उस का व बेटी मिन्नी का जन्मदिन है. वह तो भूल गई थी पर महेश को कैसे पता चला? हो सकता है औफिस की कंप्यूटर डिजाइनर संगीता ने बता दिया हो क्योंकि उस ने संगीता को ही बताया था कि उस की व मिन्नी के जन्म की तिथि एक ही है.

‘थैंक्स सर,’ उस ने कहा था.

‘केवल थैंक्स कहने से काम नहीं चलेगा, आज शाम की दावत मेरी तरफ से होगी. जिस रैस्टोरैंट में आप कहो, वहीं चलेंगे तीनों.’

‘तीनों कौन?’

‘आप, मिन्नी और मैं.’

सुन कर वह चुप हो गई थी. सम झ नहीं पा रही थी कि क्या उत्तर दे.

‘आभाजी, प्लीज मना न करना, वरना इस बेचारे का यह छोटा सा दिल टूट जाएगा,’ बहुत ही विनम्र शब्द सुनाई दिए थे महेश के.

वह मना न कर सकी. मुसकराते हुए उस ने कहा था, ‘ओके.’

आगे पढ़ें- शाम को वह मिन्नी के साथ रैस्टोरैंट में पहुंच गई…

स्त्री विरोधी संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में तलाक को लेकर जो बयान दिया है, उससे स्त्रियों के प्रति उनकी दकियानूसी सोच तो जाहिर होती ही है, यह भी पता चलता है कि भारतीय समाज के बारे में उनकी जानकारी कितनी कम है. भागवत ने कहा कि – ‘तलाक के ज्यादातर मामले पढ़े-लिखे और सम्पन्न परिवारों में ही देखने को मिल रहे हैं. इन दिनों शिक्षा और आर्थिक सम्पन्नता के साथ लोगों में घमंड भी आ रहा है, जिसके कारण परिवार टूट रहे हैं.’

भागवत के इस बयान पर पहली प्रतिक्रिया बॉलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर की आयी. सोनम ने ट्विटर पर भागवत की आलोचना करते हुए लिखा, ‘कौन समझदार इंसान ऐसी बातें करता है? पिछड़ा हुआ मूर्खतापूर्ण बयान.’

इस छोटी सी प्रतिक्रिया के निहितार्थ बड़े हैं. सोनम की हिम्मत की दाद देनी होगी. सोनम ने थोड़े से शब्दों में भागवत की अक्लमंदी पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. उनकी दकियानूसी सोच पर सवाल खड़ा कर दिया है. भागवत के बयान पर गौर करें तो भारतीयों को न तो ज्यादा पढ़ा लिखा होना चाहिए और न ही सम्पन्न होना चाहिए, क्योंकि शिक्षित और सम्पन्न होना तलाक का कारण है. इसे विडम्बना ही कहिए कि ऐसी बदबू मारती विचारधारा आज देश की सत्ता चला रहे लोगों के पीछे काम कर रही है. यही विचारधारा जो पति को परमेश्वर का दर्जा दे कर औरत को उसके पैरों में पड़ा रहने को मजबूर करती है. यही विचारधारा जो औरत को ताड़ण का अधिकारी बनाती है. पुरुष को औरत पर प्रहार करने के लिए उकसाती है. यही विचारधारा जो देश और स्त्री की प्रगति के मार्ग में अवरोध है. यही विचारधारा है जो देश को सदियों पीछे ढकेल देना चाहती है. यही विचारधारा स्त्रियों की आजादी की दुश्मन है. यही विचारधारा है जो मनुवाद को पुन: स्थापित करके स्त्रियों को फिर से बंधनों में जकड़ देना चाहती है, उसे पुरुष का गुलाम बना देना चाहती है.

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एनआरसी, सीएए, एनपीआर के जरिए हिन्दू राष्ट्र यानी मनुवाद की स्थापना की मंशा लेकर निकले संघ को अब स्त्रियां चुनौती दे रही हैं. इसीलिए शाहीनबाग ने जन्म लिया है, जामिया और जेएनयू सीना तान कर खड़ा है. संघ के खिलाफ लड़ाई में आज हर धर्म से जुड़ी औरतें कूद पड़ी हैं. आधी आबादी हरगिज नहीं चाहती कि ‘मनुवाद की स्थापना’ जैसी संघ की अतिमहत्वकांक्षी योजना मोदी-शाह के हाथों परवान चढ़ जाए. भारतीय स्त्री जो पितृसत्ता की गुलामी से किसी तरह बाहर आ रही है, वह क्यों चाहेगी कि वापस उसी कुएं में ढकेल दी जाएं. यह मोर्चाबंदी इसलिए जोर पकड़ रही है क्योंकि संघ के हिन्दू राष्ट्र में जिस तरह की नारी की कल्पना है, वह देश की पढ़ी-लिखी, तरक्कीपसंद लड़कियों के सपनों के ठीक उलटी है. आने वाले वक्त में संघ की विचारधारा, उसकी मानसिकता और सबल लड़कियों का टकराव और तेज होगा, इसमें कोई शक नहीं है.

गौरतलब है कि संघसरचालक जिन्हें ‘परम-पूज्य’ कह कर सम्बोधित किया जाता है और जिनकी वाणी को ‘देववाणी’ जैसा महत्व दिया जाता है, उनके अनुसार नारी को हमेशा पुरुष के ऊपर आश्रित होना चाहिए. संघसरचालक के कथनानुसार- ‘पति और पत्नी एक अनुबंध में बंधे हैं जिसके तहत पति ने पत्नी को घर संभालने की जिम्मेदारी सौंपी है और वादा किया है कि मैं तुम्हारी सभी जरूरतें पूरी करूंगा, मैं तुम्हें सुरक्षित रखूंगा. अगर पति इस अनुबंध की शर्तों का पालन करता है, और जब तक पत्नी इस अनुबंध की शर्तों को मानती है, पति उसके साथ रहता है, अगर पत्नी अनुबंध को तोड़ती है तो पति उसे छोड़ सकता है.’ इस बकवास को आज की पढ़ी-लिखी पीढ़ी भला क्योंकर मानने लगी?

उल्लेखनीय है कि औरतों से संघ के रिश्ते हमेशा छत्तीस के रहे हैं. संघ में औरतों का प्रवेश वर्जित है क्योंकि संघ का नेतृत्व हमेशा से ब्रह्मचर्य का व्रत लेने वालों के हाथों में रहा है. इन्हें औरतों से खतरा महसूस होता है. उनकी नजरों में औरतें माता या पुत्री हो सकती हैं, जिनका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व सम्भव नहीं है. उनके मुताबिक औरतें स्वयंसेवक नहीं हो सकतीं, वे सिर्फ सेविकाएं हो सकती हैं. वे सेवा कर सकती हैं, लेकिन वह भी स्वयं की इच्छा से नहीं, बल्कि अपने पुरुष के कहे अनुसार. संघ का मत है कि पुरुष का कार्य है बाहर जाकर काम करना, धन कमाना, पौरुष दिखाना, जबकि स्त्री का गुण मातृत्व है. स्त्री को साड़ी पहननी चाहिए, शाकाहारी भोजन करना चाहिए, विदेशी संस्कृति का परित्याग करना चाहिए, धार्मिक कार्यों में अपना समय लगाना चाहिए, हिन्दू संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए, खेलकूद और राजनीति से बिल्कुल दूर रहना चाहिए.

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औरतों को बंधनों में जकड़े रखने वाली ऐसी विचारधारा को संघ के अनुयायी कैसे सिर-आंखों पर रखते हैं और उसका पालन करवाने की कोशिश करते हैं, इसके उदाहरण भी समाज में बिखरे पड़े हैं. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी कहते हैं, ‘मैं आरएसएस से जुड़ा हुआ हूं और मुझे इस पर गर्व है. मैं बीएचयू को जेएनयू नहीं बनने दूंगा.’

गौरतलब है कि नवंबर 2014 में जब देश में भाजपा का शासन आया तो मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में संघ से जुड़े प्रोफेसर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी वाइसचांसलर नियुक्त हुए थे और तभी से उन्होंने संघ की महिला-विरोधी विचारधारा को यूनिवर्सिटी में लागू करना शुरू कर दिया था. उन्होंने गर्ल्स हॉस्टल के भीतर ड्रेस कोड लागू कर डाला और रात दस बजे के बाद छात्राओं द्वारा मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी. बीते छह सालों में बीएचयू में लड़कियों के ऊपर पाबन्दियां बढ़ती चली गयीं. पाबंदियों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है. यहां छात्राओं के जीवन को संघ के दर्शन के अनुरूप ढालने के प्रयास में वाइसचांसलर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी दिनरात एक किये हुए हैं. यूनिवर्सिटी में लड़कों और लड़कियों के लिए एक नियम नहीं, बल्कि अलग-अलग नियम चल रहे हैं. वहां लड़कियों को हर हाल में अपने हॉस्टल में रात आठ बजे तक लौटना होता है. वहां लड़कों को मेस में मांसाहारी भोजन मिलता है, लेकिन लड़कियों को नहीं मिलता है. वहां लड़कियां रात दस बजे के बाद अपना मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं. वहां छात्राओं को लिखित शपथ लेनी होती है कि वे किसी राजनीतिक गतिविधि या विरोध प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लेंगी. वहां गर्ल्स हॉस्टल के भीतर भी छोटे कपड़े पहनने पर पाबंदी है.

संघ और मोदी-शाह के लिए बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी अपने एजेंडे को लागू करने के लिए मॉडल यूनिवर्सिटी है. वहां का कुलपति संघ का आदमी है, जो सीना पीट कर कहता है कि वह बीएचयू को जेएनयू नहीं बनने देगा. वह वहां लड़कियों पर संघ की विचारधारा को लागू कर सकता है. इसलिए बीएचयू मोदी की मॉडल यूनिवर्सिटी है.

लेकिन सारे प्रतिबंधों के बावजूद आज बीएचयू की छात्राएं शासन-प्रशासन से मोर्चा ले रही हैं. वहां से आने वाली तस्वीरों पर नजर दौड़ाइये, धरना-प्रदर्शनों में शामिल कोई लड़की साड़ी में नजर नहीं आती, सभी जींस-पैंट या सलवार-कुर्ते में हैं. इनके हाथों में सरकार विरोधी पोस्टर हैं. वे पुलिस के डंडे खाने के लिए तैयार हैं क्योंकि इन लड़कियों की आंखों में मां बनने के नहीं, करियर के सपने हैं. उन्हें मालूम है कि अगर आज वे नहीं निकलीं तो सदियों पीछे ढकेल दी जाएंगी. वे बहुत जद्दोजहद के बाद घर से निकल पायी हैं, वे समाज में अपने दम पर इज्जत से रहना चाहती हैं. हॉस्टल में रहने की अनुमति उन्हें आसानी से नहीं मिली होगी. इसके लिए उन्होंने संघर्ष किया होगा. अपनों से लड़ी होंगी. इस सफलता को वे संघ की इच्छा की बलिवेदी पर हरगिज नहीं चढ़ने देंगी.

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उन्हें हिन्दू राष्ट्र की रक्षा के लिए सबल और संस्कारी पुत्र पैदा करने की भूमिका में धकेला जाना कैसे मंजूर होगा? वे साक्षी महाराज के चार बच्चे पैदा करने के आह्वान में योगदान करने वाली माताएं बनने के इरादे से तो यूनिवर्सिटी नहीं आयी हैं. संघ की पौधशाला से उमा भारती और साध्वी निरंजन ज्योति ही पैदा हो सकती हैं, जिन्होंने कभी किसी यूनिवर्सिटी की शोभा नहीं बढ़ायी, लेकिन ये लड़कियां वहां से बहुत आगे निकल चुकी हैं. उन्हें आदर्श बहू या संस्कारी हिन्दू माता बनाने की कोशिश जिस किसी यूनिवर्सिटी में होगी, वहां ऐसा ही टकराव ही देखने को मिलेगा.

पत्नीभ्याम् नम:

आज के कलियुगी पति अपनी पत्नियों से बड़े परेशान रहते हैं. वे तमाम कोशिशों के बावजूद कलियुग की इस देवी को प्रसन्न नहीं कर पाते. नतीजतन, उन का जीवन अशांत और परिवार कलह का केंद्र बन जाता है. आज के युग में यदि आप शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शांति चाहते हैं तो आप को पत्नी देवी को प्रसन्न करना ही होगा. उस के आशीर्वाद और वरदान के बिना जीवन में सुखशांति मिलना असंभव है. लेकिन पतियों के सामने समस्या यह है कि वे पत्नी को प्रसन्न करें तो कैसे? ऐसे पतियों को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे रोज सुबह स्नानादि से निवृत्त हो कर और रात को सोने से पूर्व नियमपूर्वक श्रद्धाभाव से नीचे दिए गए पत्नी स्तोत्र का पारायण करें तो निश्चित ही उन की पत्नी उन से प्रसन्न होगी और उन का जीवन सुख व शांति से व्यतीत होने लगेगा.

‘पत्नी स्तोत्र’ का मूल पाठ बहुत वृहद और क्लिष्ट है, जिस का पूरा पाठ करना आज के व्यस्त जीवन में संभव नहीं है. पतियों की सुविधा के लिए यहां उस का संक्षिप्त हिंदी अुनवाद दिया जा रहा है.

‘‘जिस के एक हाथ में बेलन और दूसरे में झाड़ू है, जिस के माथे पर खतरे के निशान सा चमकता लाल सिंदूर, आंखों में पति को भयभीत करने वाला क्रोध और पैरों में मनचलों को प्रसादस्वरूप मिलने वाली पादुकाएं हैं, उस शक्तिरूपा देवी की मैं वंदना करता हूं.

‘‘जिस की वाणी में पति को आज्ञाकारी और सेवाभावी बनाने की शक्ति है, जिस के मुखकमल से निकला हुआ एकएक शब्द पति के लिए ब्रह्म वाक्य है, जिस की मधुर वाणी के लिए पति सदैव तरसता रहता है, जिस की हर आज्ञा पति के लिए शिरोधार्य होती है, जिस के मुखारविंद से निकला हर वाक्य पति के लिए संविधान है और जिस में पति को यों ही मूड आने पर ‘तनखैया’ घोषित करने की अद्भुत शक्ति है उस देवी को मेरा नमस्कार है.

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‘‘हमेशा फरमाइश करने वाली, पति को केवल अपने लिए बनी अहस्तांतरित वस्तु समझने वाली, उसे निरंतर आदेश और उपदेश देने वाली, पति की महिला मित्रों को सौत और पुरुष मित्रों को देवर समझने वाली, बातबात पर ताने देने वाली, पुरुषों को पति होने का एहसास कराने वाली, उन के अहंकार को चूर करने वाली और उन्हें सहनशील बनाने वाली उस करुणामयी देवी को मैं प्रणाम करता हूं.

‘‘जिस के इच्छारूपी अथाह सागर की थाह लेने के चक्कर में पति जीवन भर उस में डूबताउतराता रहता है, जिस की बातबात पर पति का पानी उतरता रहता है, जिस के सामने अच्छेअच्छे पति पानी मांगने लगते हैं, जिस का पानी रखने के लिए पति को खुद पानीपानी होना पड़ता है और जिस के सताए जाने पर पति पानी तक नहीं मांग पाते, ऐसी यशस्विनी देवी को बारंबार नमस्कार है.

‘‘जिस के कारण सांसारिकता में रचेबसे रागी पुरुष भी वीतरागी हो जाते हैं, जिस के निरंतर सद्व्यवहार से अच्छेअच्छे भौतिकतावादी दार्शनिक बन जाते हैं, जिस के सत्संग में रहने पर आदमी सांसारिक बंधनों से मुक्त होने को छटपटाने लगता है, जिसे देखदेख कर मनुष्य की अंतर्दृष्टि विकसित हो कर खुद के लिए पाप कर्मों का निरीक्षण करने लगती है और मनुष्य पश्चात्ताप की अग्नि में झुलसने लगता है, ऐसी उस तेजस्विनी देवी का मैं बारबार स्मरण करता हूं.

‘‘जिस के सामने आते ही शेर सियार और घोड़े गधे बन जाते हैं, दुर्जनता सज्जनता में और अहंकार विनम्रता में बदल जाते हैं, जिसे देखते ही आलस्य और प्रसाद स्फूर्ति बन जाते हैं, जिस के सम्मुख वीरता कायरता में और हास्य करुणा में परिवर्तित हो जाता है, ऐसी प्रभामयी देवी (पत्नी) का मैं पुनिपुनि अभिनंदन करता हूं.

‘‘जिस का रौद्र रूप देख कर दहाड़ता हुआ पति रिरियाने लगता है, तेजस्वी पति के चेहरे का तेज लुप्त हो कर उस पर मुर्दनी छा जाती है, सामाजिक जीवन के शतरंज में वजीर रहने वाला पति पैदल बन जाता है, व्यंग्यकार कवि और समीक्षक कहानीकार बन जाते हैं, उस वीरांगना देवी को मेरा नमस्कार है.’’

उपरोक्त स्तोत्र का पाठ नियमपूर्वक करने से लाभ अवश्य होगा. 1 सप्ताह तक नियमित करने से ही लाभ दिखाई देगा. न हो तो 1 माह तक करें. अवश्य लाभ होगा. यह संक्षिप्त पाठ केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए लाभदायक होगा जिन की पत्नियां औसत पत्नी की श्रेणी में आती हैं. विशिष्ट श्रेणी की पत्नी वाले पतियों को ‘पत्नी स्तोत्र’ का संपूर्ण पाठ करना चाहिए.

जिन पतियों की पत्नियां इन दोनों के नियमित पारायण से भी प्रसन्न न हों वे ‘आत्महत्या क्यों और कैसे?’ पुस्तक पढ़ कर अपना रास्ता तय कर सकते हैं.

पतिगण अपना भलाबुरा स्वयं जानते हैं. (शायद, क्योंकि, अगर जानते होते तो शादी ही क्यों करते?) इसलिए वे जो भी करें उस की जिम्मेदारी उन्हीं पर होगी. यह लेखक किसी दुर्घटना के लिए जवाबदेह नहीं होगा.

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बिहार से लेकर मदुरई तक होगी अक्षय कुमार-सारा अली खान की फिल्म अतरंगी रे की शूटिंग 

डायरेक्टर-प्रोड्यूसर आनंद एल राय अपनी अपकमिंग फिल्म अतरंगी रे में तीन अलग-अलग अपरंपरागत एक्टर्स अक्षय कुमार, धनुष और सारा अली खान को एक ही फिल्म में साथ ला रहे हैं. फिल्म की जर्नी मार्च में शुरू होगी, जहां पहले ये बिहार जाएंगे उसके बाद मदुरई. 60 से 80 दिन के शूटिंग शेड्यूल में तीन अलग-अलग किरदारों को शूट किया जाएगा जो इस फिल्म के लिए साथ आए हैं.

अगले साल वैलेंटाइन पर होगी रिलीज…

कई लोग यह सोच रहे हैं कि यह फिल्म टिपिकल लव ट्राइएंगल हैं, लेकिन इस फिल्ममेकर ने इस बात से इंकार करते हुए यह हिंट दिया हैं कि इस फिल्म से हम कुछ और उम्मीदें रखें. यह फिल्म 2021 में वैलेंटाइन के मौके पर रिलीज़ हो रही है.

“आप इस फिल्म को किसी विशेष शैली में नहीं डाल सकते. इस फिल्म के तीनो किरदार मज़ेदार और अजीब हैं, ये उनकी इमोशनल जर्नी है. मैंने हमेशा ऐसे साथी की ही तलाशा की है जिसमें इमोशनल टच हो, जैसा कि मैं अपनी कहानियों के साथ हूं और ये तीनों कुछ इस तरह के ही हैं. इस फिल्म के हर किरदार में अलग लक्षण है जिसे हम एक अनदेखी जगह में डाल रहे हैं.”

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अतरंगी रे का निर्देशन आनंद एल राय कर रहे हैं, इस फिल्म की कहानी नेशनल अवॉर्ड विनर हिमांशु शर्मा में लिखी हैं. यह फिल्म ए आर रहमान की म्यूज़िकल ड्रामा है जिसमें अक्षय कुमार, सारा अली खान और धनुष मुख्य भूमिका में नज़र आएंगे. आनंद एल राय का कलर येलो प्रोडक्शन, टी सीरीज और केप ऑफ गुड फिल्म्स इस फिल्म का निर्माण कर रहे हैं, फिल्म 1 मार्च 2020 से फ्लोर पर आएगी.

बता दें कि फिल्म निर्माता आनंद एल राय की कहानियों का भारत के हृदय स्थल से एक विशेष संबंध है, फिर चाहे वो वाराणसी के घाट की बात करें या फिर लखनऊ शहर की. उन्होंने हमेशा इस बात का खास ख्याल रखा है कि उनके किरदारों और कहानियों में देसी टच हमेशा बरक़रार रहे.


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सभ्य और जागरूक समाज की पहचान हैं बढ़ते तलाक, स्त्री विरोधी है मोहन भागवत का बयान

तलाक की अवधारणा हिन्दू धर्म, संस्कृति और समाज के बुनियादी उसूलों से मेल ही नहीं खाती जिसमें औरत को फख्र से पैर की जूती, दासी और नर्क का द्वार करार दिया गया है. धर्म ग्रन्थों में जगह-जगह महिलाओं को निर्देशित किया गया है कि उनका धर्म और कर्तव्य यह है कि वे पति परमेश्वर की सेवा करती रहें फिर चाहे वह कितना ही लंपट, दुष्ट, जुआरी, शराबी, कबाबी, व्यभिचारी और पत्नी पर कहर ढाने बाला क्यों न हो.

सार ये कि औरत गुलाम रहे. बचपन में वह पिता के, जवानी में भाई के और शादी के बाद पति के संरक्षण में रहे और शर्त ये कि इन तीनों ही अवस्थाओं में खामोश रहते हुए ज़्यादतियां और जुल्मों सितम बर्दाश्त करती रहे. इसी में उसके जीवन की सार्थकता है. जब तक ऐसा था (हालांकि अभी भी बहुतायत से ऐसा होता है) तब तक हिन्दू समाज बड़ा सुखी, सम्पन्न और संस्कारवान धर्म के ठेकेदारों के बही खाते में था.

हिन्दू धर्म में तलाक का कभी प्रावधान ही नहीं था. हां पुरुषों को यह छूट जरूर थी कि वे जब चाहें कोई सटीक वजह हो न हो पत्नी को छोड़ दें और दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवी शादी कर लें. आजादी मिलने तक समाज पर मर्दों का यह दबदबा कायम रहा लेकिन जैसे ही हिन्दू कोड बिल में तलाक का प्रावधान आया तो धर्म के ये ठेकेदार तिलमिला उठे क्योंकि आजाद भारत का संविधान और कानून महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देते थे.

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डाक्टर भीमराव अंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदूवादियों के उग्र विरोध को नजरंदाज करके किश्तों में महिलाओं को उनके हक दिये थे जिसे लेकर वे आज भी यह कहते हुए कोसे जाते हैं कि हिन्दू धर्म के इन दुश्मनों ने उसे तोड़ मरोड़ कर रख दिया.

गुजरे कल की इन बातों का आज से गहरा ताल्लुक स्थापित करने की कोशिश ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान को कहा जाएगा जिसमें उन्होने तलाक की बढ़ती दर पर चिंता जताई है और इस चिंता की चीर फाड़ भी उम्मीद के मुताबिक ही हो रही है.

अहमदाबाद में उन्होने स्वयं सेवकों से कहा– इन दिनों तलाक के अधिक मामले शिक्षित और सम्पन्न परिवारों में सामने आ रहे हैं क्योंकि शिक्षा और संपन्नता अहंकार पैदा कर रहा है जिसका नतीजा परिवार का टूटना है इससे समाज भी खंडित होता है क्योंकि समाज भी एक परिवार है.

आइये अब इस बयान का दूसरा हिस्सा भी देखें जो पहले हिस्से से ज्यादा अहम है. उन्होने कहा, समाज की ऐसी स्थिति इसलिए है कि हम पिछले 2 हजार साल से परम्पराओं का अनुपालन कर रहे हैं.  हमने महिलाओं को घर तक सीमित कर दिया यह स्थिति 2 हजार साल पहले नहीं थी वह हमारे समाज का स्वर्णिम युग था.

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विरोधाभास और चालाकी

ऐसा लगता है कि मोहन भागवत खुलकर स्पष्ट शब्दों में अपनी मंशा पूरी तरह उजागर करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये लेकिन इशारों में उन्होंने महिला शिक्षा को इस स्थिति का जिम्मेदार ठहरा ही दिया. इस बात से शायद ही कोई मुकर पाये कि शिक्षा से जागरूकता आती है अब अगर इसे अहंकार कहते तलाक की वजह माना जाये तो सी ग्रेड की ही सही एक्ट्रेस मिनी माथुर का यह तंज़ ही बात को समझने काफी है कि, चलिये हम सब अनपढ़ रहते हैं और आर्थिक रूप से गरीब रहते हैं कम से कम इससे तलाक तो नहीं होगा.

इससे पहले एक और अभिनेत्री सोनम कपूर ने भी ताना मारा था कि कौन समझदार इंसान  ऐसी बातें करता है, यह पिछड़ा हुआ मूर्खतापूर्ण बयान है.

इन दोनों अभिनेत्रियों ने बहुत कम शब्दों में महिलाओं का पक्ष रख दिया है कि जब तक वह आर्थिक रूप से पुरुष पर निर्भर थी और अशिक्षित थी तब तक कोई एतराज किसी को नहीं था क्योंकि उस स्थिति में वह तलाक की बात सोच भी नहीं पाती थी अब आत्मनिर्भरता और शिक्षा ने उसे स्वाभिमान से जीने के मौके दे दिये हैं तो लोगों के पेट में तलाक को लेकर मरोड़ें उठने लगी हैं.

मोहन भागवत का यह बयान सरासर स्त्री विरोधी और विकट का विरोधाभासी है उन्हें पहले  यह बताना चाहिए कि संपन्नता और शिक्षा अहंकार कैसे पैदा करते हैं ये तो जागरूकता लाते हैं और इसी जागरूकता की देन तलाक की बढ़ती दर है. इससे परिवार टूट रहे हैं तो इसमें हर्ज की बात क्या है अगर वजहें कुछ भी हों पति पत्नी में पटरी नहीं बैठ रही है तो वे क्यों परिवार और समाज को अखंडित रखने खुद खंड खंड घुटन भरी ज़िंदगी जिए. वे क्यों न तलाक लेकर अपनी मर्जी से आजादी की ज़िंदगी जिए.

वैवाहिक जीवन का तनाव झेल रहे या फिर तलाक के मुकदमे में पेशियां कर रहे पति और खासतौर से पत्नी ही बेहतर बता सकते हैं कि इस हालत की वजह कोई शिक्षा या संपन्नता नहीं बल्कि उनके विचारों का न मिलना है. तलाक की वजह उनका अहंकार नहीं बल्कि स्वाभिमान है और यह निहायत ही व्यक्तिगत बात है. आप इस पर किसी धर्म या समाज की एकजुटता के नाम पर उंगुली उठाने का अधिकार नहीं रखते.

आप तो क्या कोई और भी यह अधिकार नहीं रखता कि वह आर्थिक आधार पर समाज को सम्पन्न और निर्धन कहते उसका वर्गीकरण तलाक के मद्देनजर करे. शायद मोहन भागवत नहीं जानते या जानबूझकर इस हकीकत को छुपाना चाहते हैं कि तलाक हर वर्ग में हो रहे हैं और अशिक्षित समाज भी इससे अछूता नहीं है जो पीपल के पेड़ के नीचे लगने बाली पंचायत में तलाक ले लेता है. अब इस वर्ग की गिनती मानव मात्र में या हिन्दू समाज में की जानी चाहिए या नहीं यह भी मोहन भागवत जैसे चिंतक और दार्शनिक स्पष्ट कर देते तो समाज उनसे उपकृत ही होता क्योंकि इस तबके में दलित आदिवासी और अशिक्षित गरीब पिछड़े ही आते हैं जिनके हिन्दू होने न होने को लेकर आए दिन बबाल मचता रहता है.

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आरएसएस क्यों स्त्री विरोधी संगठन माना जाता है यह उसके मुखिया ने स्पष्ट कर दिया है कि उससे यह स्थिति सहन नहीं हो रही कि महिलाएं तलाक लेने की जुर्रत करने लगीं हैं वे पुरुष की गुलामी ढोने से इंकार कर रही हैं वे अपने मुताबिक जीने लगी हैं और अभी यह देश में शुरुआती दौर में है. जब महिला स्वतंत्रता के आगाज पर ही इतनी तिलमिलाहट है तो अंजाम पर कैसी होगी इसका सहज अंदाजा सोनम कपूर और मिनी माथुर जैसी अभिनेत्रियों की प्रतिक्रियाओं से लगाया जा सकता है.

रही बात 2 हजार साल के पहले के स्वर्णिम युग की तो उसे समझने सीता त्याग का प्रचलित उदाहरण ही पर्याप्त है जिसके तहत अपनी प्रतिष्ठा के लिए मर्यादा पुरषोत्तम कहे जाने बाले राम ने बेरहमी से चरित्र शंका के चलते लंका मे रही सीता को अग्नि परीक्षा देने मजबूर कर दिया था.

इस प्रसंग पर पोंगा पंथी हिंदूवादियो पर तरस ही आता है जब वे इसे भी तरह तरह के किस्से कहानी गढ़ते लीला बताते हैं इतना ही नहीं एक मंचीय कवि कुमार विश्वास (शर्मा) जो राम कथा बांचकर भी पैसा कमाते हैं यह हास्यास्पद दलील देकर राम का बचाव करने की असफल कोशिश करने से नहीं चूकते कि बाल्मीकि रामायण में तो उत्तरकाण्ड था ही नहीं यह तो भगवान की छवि खराब करने बाद में शरारती और षड्यंत्रकारियों ने रामायण में जोड़ा. ये लोग कौन थे यह इस कवि को नहीं मालूम और न ही वह यह कह पाते कि दुर्भावनापूर्ण मंशा से जोड़े गए  उत्तरकाण्ड को रामायण से अलग कर या फाड़ कर फेक दिया जाना चाहिए .

मुद्दे की बात बढ़ती तलाक दर है तो उसका स्वागत यह कहते किया जाना चाहिए कि लोग जागरूक हो रहे हैं तलाक उनका संवैधानिक अधिकार है लेकिन अगर किसी को इससे समाज टूटता लगता है तो तलाक कानून को खत्म कर फिर से खासतौर से औरतों की आजादी छीन लेनी चाहिए फिर न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.

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अनकही इच्छाएं: भाग-3

लेखक- डा. हरिश्चंद्र पाठक

मिल में इन दिनों काफी दिक्कतें आ गई थीं. मजदूरों की हड़ताल चल रही थी. ये बातें भी मुझे बाहर से पता चलती थीं. वे तो इन बातों का जिक्र ही नहीं करते थे. शाम को डाइनिंग टेबल पर सिर झुका कर खाना खाते. कभीकभी तो मुझे इस अंगरेजी सभ्यता पर क्रोध भी आता. कुरसी पर बैठ कर खाइए, जो चाहिए खुद ले लीजिए और रोटी के लिए नौकर को आवाज लगा दीजिए.

कभी जी में आता कि मैं भी मां की तरह अपने हाथों से रसोई बनाऊं. सब को सामने बैठा कर अपने हाथों से खाना खिलाऊं. दाल में नमक पूछूं. यह भी पूछूं कि क्या चाहिए? पर यहां तो पतिपत्नी के बीच संवाद ही नहीं था. कोई विषय ही नहीं था, जिस पर हम चर्चा कर सकें. यह सब सोच कर मेरी आंखें भर आतीं.

खैर, धीरेधीरे फैक्टरी की समस्याएं कम हो गईं. विजय ने सबकुछ संभाल लिया था. इसी बीच एक दिन डा. दीपक कुमार की पत्नी से शौपिंग सैंटर पर मुलाकात हुई. उन्होंने विजय की तबीयत के बारे में पूछा तो मैं हैरान हुई. फिर जब उन्होंने कहा कि विजय का ब्लडप्रैशर पिछले दिनों बढ़ गया था तो मैं हक्कीबक्की रह गई. यह तो हद थी खामोशी की.

उस रात मैं ने खाना नहीं खाया. जब विजय ने मेरे बालों में हाथ फेरते हुए इस की वजह पूछी तो मैं उन के सीने से लग कर खूब रोई और फिर मैं ने अपने दिल की सारी भड़ास निकाल दी.

पूरी बात सुन कर विजय इत्मीनान से बोले, ‘दरअसल, मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था. तुम बहुत सीधी हो और बेकार में दुखी होगी, यही सब सोच कर मैं अपना दुख खुद सहता गया और वैसे भी, यह इतनी बड़ी बात थोड़े ही है.’

‘लेकिन विजय, तुम्हें क्या मालूम कि तुम जिस बात को मामूली समझते हो, वही बात मेरे लिए कितनी बड़ी है. अपने पति की बीमारी के बारे में मुझे बाहर वालों से पता चले, यह कितनी कष्टप्रद बात है मेरे लिए. इसे तुम क्या समझो.’ इस के बाद मेरा मन, मेरे मन का कठघरा, कठघरे में विजय और फिर रातभर की जिरह. मैं कभी किसी से कुछ कह नहीं पाती थी, लेकिन इतना सोचती थी कि रात भी छोटी पड़ जाती.

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फिर वत्सला पैदा हुई. वत्सला को मैं ने सामान्य बच्चों की तरह पाला. हालांकि उस के हिस्से का संपूर्ण प्यार उसे दिया, लेकिन उस से कोई आशा नहीं बांधी. अब मैं ने अपनी इस नियति को स्वीकार कर लिया था. वैसे भी आशाएं जब टूटती हैं तो दिल जारजार रोता है और अब वह दुख मेरी बरदाश्त से बाहर था.

वत्सला ने मेरी काफी सेवा की. वह मुझे बहुत प्यार करती थी. प्यार तो मुझे अरुण भी करता था, लेकिन अपने डैडी के सामने वह मुझे भूल जाता. शायद वह जानता था कि मैं तो उसे प्यार करती ही हूं, इसलिए डैडी से जो थोड़ाबहुत समय मिलता है, उस में उन का प्यार भी वसूल कर लूं. वह हमेशा अपने डैडी की तरफदारी करता. पिकनिक कहां जाएंगे, घर में किस कलर का पेंट होगा, बर्थडे किस तरह मनाया जाएगा या दीवाली में कितनी आतिशबाजी छोड़ी जाएगी, यह सब निर्णय बापबेटा खुद मिल कर करते थे. लेकिन वत्सला मेरी वकालत करती रहती और उस के डैडी अकसर उस की बातें मान लिया करते. वत्सला को मेरी पसंद की चीजें ही अच्छी लगतीं. अपनी शादी के वक्त भी उस ने सारे कपड़े और गहने मेरी पसंद के ही लिए. उसे देख कर मुझे जब अपना बचपना याद आता, मां की फटकार याद आती तो मेरे आंसू छलक आते.

मां ने हमेशा मेरी बालसुलभ इच्छाओं को दबाया. उन्होंने मुझे उन तारीफों से वंचित रखा जो एक किशोरी के विकास के लिए जरूरी हैं. हालांकि विजय ने अपने सारे कर्तव्यों को पूरा किया, फिर भी मुझे एक पत्नी के अधिकारों से दूर रखा. अरुण ने मेरे ममत्व को ठेस पहुंचाई, जबकि मैं ने उसे पालने में

कोई कमी या कसर नहीं छोड़ी. दरअसल, हम स्वार्थी मांएं ऐसे ही दुखी होती हैं जब हमारे बच्चे हमारे प्यार के बदले की गई हमारी इच्छाओं को पूरा नहीं करते.

लेकिन वत्सला, जिस से मैं ने कभी कोई आशा ही नहीं की, मुझे जीवनभर का संपूर्ण प्यार दिया. जब वह मेरे सिर में अपने छोटेछोटे हाथों से बाम लगाती तो यही एहसास होता कि मैं अपनी मां की गोद में सोई हूं. जब वह अपने कालेज की या दोस्तों की बातें बता कर हंसाती तो उस में मुझे अपनी अंतरंग सहेली की झलक नजर आती. यद्यपि मैं ने उस से कभी कुछ नहीं कहा, लेकिन वह मेरे दुख को महसूस करती थी. उस की शादी के दिन मैं उसे निहारनिहार कर खूब रोई. विदाई के समय तो मैं बेहोश हो गई थी.

विजय ने अरुण को पढ़ने के लिए अमेरिका भेज दिया. उस दिन भी मेरी आंखों में आंसुओं की बाढ़ नहीं थम रही थी, जब उस ने मेरे कंधों पर हाथ रख कर कहा, ‘ममा, अपना खयाल रखना.’ मैं उस से लिपट कर ऐसे बिफर पड़ी कि फिर संभल न पाई. विजय ने मुझे अरुण से अलग किया और फिर मैं घर कैसे पहुंची, मुझे कुछ याद नहीं.

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अब तक तो घर में चहलपहल थी. दोनों बच्चों के चले जाने के बाद घर काटने को दौड़ता. नौकरों की चहलपहल से अपने जीवित होने का एहसास होता. मन के भीतर तो पहले ही सूनापन था, अब बाहर भी वीराना हो गया.

यही सब सोचतेसोचते कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. सुबह घड़ी के अलार्म से नींद टूटी. सिर दर्द से भारी हो रहा था. आंखों की दोनों कोरें नम थीं. मैं उठ कर बाथरूम में चली गई. चाय के साथ विजय को अरुण के फोन के बारे में बताने के लिए खुद को तैयार जो करना था.

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