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Best Hindi Story : गुजर जाते हैं जो मुकाम – अकेले पुरुष की तन्हाइयां

Best Hindi Story : मानसी के जाने के बाद रजनीश मानो सदमे में चला गया था. दुखदर्द और समस्याओं के आने से जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ा जाता. उस ने बहनों की शादी की, विधवा मां का बराबर ध्यान रखा, पर उन के कहने पर भी दोबारा शादी नहीं की क्योंकि वह दोबारा धोखा नहीं खाना चाहता था.

यह 50 बरस की उम्र भी बड़ी अजीब होती है, न तो व्यक्ति ठीक से जवान रह पाता है और न बूढ़ों में ही गिनती होती है.

आज रजनीश ने अपना 50वां जन्मदिन का केक काटा है. केक शुगरफ्री था क्योंकि रजनीश को डायबिटीज है. केक को खाने वाला वह और उस का इकलौता दोस्त डाक्टर नवीन ही तो हैं, इसलिए उस ने केक को शुगरफ्री बनवाया.

पिछले 10 वर्षों से अकेला है रजनीश, फिर भी वह अपना जन्मदिन सैलिब्रेट करना नहीं भूलता. रजनीश केक काट कर उस का एक टुकड़ा खाने के बाद बाकी का केक फ्रिज में रख कर नीचे उतर आया. आगे के मोड़ से मुड़ कर वह पार्क में आ गया और पार्क के अंदर उगाई हुई घास में टहलने लगा. उस की नजर वहां घूम रहे युवाओं व बच्चों पर पड़ी. वे सभी लोग अपनी गरदन झुकाए अपने मोबाइलों में व्यस्त थे.

‘हुंह, सब लोग कहते हैं कि मोबाइल ने हम से बहुतकुछ छीन लिया है पर फिर भी सब लोग मोबाइल में ही मस्त और व्यस्त हैं,’ उस की बुदबुदाहट में क्रोध और हताशा का मिश्रण था.

लगभग रोज ही रजनीश इस पार्क में आता है, कुछ और लोग भी आते हैं और पार्क में आने वाले लोगों में बिना एकदूसरे से बोले ही एक आपसी जानपहचान भी पनप जाती है. यदि उन लोगों में से कोई कुछ दिन न दिखाई दे तो मन खुद ही उस व्यक्ति को याद कर उठता है. रजनीश को भी 70 साल की उन अम्मा की याद आई जो अपनी 20 साल की पोती के साथ पार्क में आ कर बैंच पर बैठती हैं और उन के बैठते ही उन की पोती उन्हें अपने साथ लाया हुआ एक रेडियो दे देती जिसे वे अपने कान से सटा लेती हैं. फिर धीरेधीरे उन की आंखों में कोई नई रोशनी सी जाग जाती है जो उन के गालों से होते हुए उन के होंठों पर मुसकराहट बन कर थिरक जाती है. और फिर, जैसे उन्हें दीनदुनिया से कोई मतलब नहीं रह जाता. शायद वे कोई फिल्मी गीत या गीतों वाला कोई प्रोग्राम सुन रही होंगी पर अब रेडियो पर भला कितने ऐसे प्रोग्राम आते होंगे जो लोगों का तनाव दूर कर दें और उन्हें मुसकराने पर विवश कर दें.

इस बात का तो रजनीश को भी नहीं पता, भले ही रजनीश और रेडियो का पुराना नाता है. यह नाता तब शुरू हुआ था जब अपनी बीए की पढ़ाई खत्म करने के बाद उस ने अपना वौयस टैस्ट लखनऊ के आकाशवाणी केंद्र में दिया था और उस की गहराई ली हुई आवाज और उस के भारीपन व साफ उच्चारण के कारण उसे उद्घोषक की नौकरी मिल गई थी.

हालांकि अभी उसे स्थायी तौर पर नियुक्तिपत्र नहीं मिला था, एक तरह से उस की नौकरी संविदा पर ही थी लेकिन सैलरी ठीकठाक थी. और फिर, समाज में तो आकाशवाणी में जौब करने वाले व्यक्ति को बड़ी अच्छी दृष्टि से देखा जाता है, इसलिए रजनीश संतुष्ट था.

रजनीश ने अपनी आवाज, अद्भुत प्रतिभा और कल्पनाशीलता भरे प्रोग्राम्स के जरिए जल्दी ही लोकप्रियता हासिल कर ली. यह उस की कल्पनाशीलता ही थी कि रजनीश ने अपने श्रोताओं के लिए ‘मुझ से बातें करोगे’ नामक एक ऐसा प्रोग्राम लौंच किया जिस में रेडियो सुनने वाले लोग आकाशवाणी के बताए गए फोन नंबर पर डायरैक्ट फोन कर के रेडियो उद्घोषक यानी रजनीश से बातें शेयर कर सकते थे.

इस दौरान रजनीश और श्रोताओं के बीच बहुत सी चुटकीली बातें होतीं तो कहीं कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत समस्याएं भी बताते और ये सब औन एयर चल रहा होता. स्पष्ट है कि इस प्रोग्राम में रजनीश को अपनी वाकपटुता द्वारा कार्यक्रम के संचालन में रुचि बनाए रखनी होती थी. रजनीश बहुत ही सुंदरता के साथ अपनी आवाज का जादू जगाता और लोगों के साथ बहुत आत्मीयता से जुड़ता, साथ ही, श्रोताओं की पसंद के गीतों को भी बजाया जाता. आकाशवाणी की कम होती लोकप्रियता एक बार फिर से बढ़ने लगी थी और लोग अपनी कार व दुकानों पर रेडियो सुनने लगे थे. उन सब का पसंदीदा उद्घोषक था रजनीश.

‘मुझ से बातें करोगे’ नामक प्रोग्राम में मानसी नाम की एक लड़की का फोन कई बार आता और वह रजनीश से बड़े ही खुलेपन व खुलेमन से बात करती थी. उस का बिंदास होना मानसी को और लड़कियों से अलग बनाता था तभी तो रजनीश भी उस की हैलो सुन कर ही बिंदास मानसी को पहचान जाता और बिंदास होना शायद उस की चरित्रगत विशेषता थी. तभी तो औन एयर उस ने रजनीश से कहा था कि उस की आवाज से मानसी को प्यार हो गया है और वह ऐसी ही मखमली आवाज वाले व्यक्ति से शादी करना चाहेगी.

उस दिन तो गजब ही हो गया जब कार्यक्रम खत्म होने के बाद मानसी रजनीश से मिलने के लिए आकाशवाणी भवन के बाहर पहुंच गई थी. रजनीश को बातोंबातों में हजरतगंज चल कर कौफी पीने के लिए मना भी लिया. मानसी की हाजिरजवाबी व बातबात पर उन्मुक्त हो कर हंसना रजनीश को भी अच्छा लगा.

बातें बढ़ीं तो मुलाकातों के दौर भी बढ़ गए. कौफी से बात शुरू हुई थी तो अब इन का संबंध टौकीज में जा कर एकदूसरे का हाथ थाम कर रोमांटिक मूवी देखने तक पहुंच गया था. हालांकि रजनीश को अपने व्यस्त शेड्यूल से घूमनेफिरने का समय निकाल पाना बहुत मुश्किल होता था पर मानसी के प्यार में इतनी गर्मजोशी थी कि उसे यह सब करना पड़ता था.

प्रेमभरे दिन तेजी से बीतते हैं और दिन बीतने के साथ वह दिन भी आ गया जब मानसी ने खुद ही रजनीश के सामने उन दोनों की शादी का प्रस्ताव रख दिया. ‘प्यारव्यार तो ठीक है पर शादी करना जरा पेचीदा मामला है और फिर तुम मेरे परिवार के बारे में जानती ही क्या हो?’ रजनीश का लहजा थोड़ा तल्ख हो चला था.

पर उस के इस सवाल के जवाब में जो मानसी ने कहा उसे सुन कर रजनीश की सारी कठोरता जाती रही. ‘सबकुछ जानती हूं तुम्हारे बारे में, यही न कि तुम एक सामान्य परिवार से हो और तुम पर विधवा मां और 2 कुंआरी बहनों की जिम्मेदारी है.’ मानसी की आवाज में प्यारभरी बेचैनी साफ झलक रही थी.
रजनीश ने अपने निम्नमध्यवर्गीय होने से ले कर अपनी हर जिम्मेदारी के बारे में मानसी को बता दिया था पर मानसी का रजनीश के लिए प्रेम किसी उफनते सागर की लहरों की तरह उमड़ रहा था.
मानसी ने रजनीश की मां और उस की बहनों से मुलाकात की और अपने व रजनीश के प्रेम के बारे में उन्हें सबकुछ बता दिया. रजनीश के घरवालों को मानसी का यह खुला और जल्दबाजीभरा व्यवहार थोड़ा अजीब तो लगा पर इस में भी एक अपनापन ?ालक रहा था. मानसी का रजनीश के घरवालों के साथ भी अच्छा संबंध बन गया था.
‘शादी तो करनी ही है, अच्छा होगा कि तू उस लड़की से शादी कर जो तु?ा से प्रेम करती है.’ हालांकि अभी रजनीश को शादी करने की जल्दी नहीं थी फिर भी मानसी की तरफ से लगातार मनुहार किए जाने के कारण मां ने भी हरी झंडी दे दी थी और रजनीश व मानसी शादी के बंधन में बंध गए थे.

एक साल तक तो मानसी ने किसी कुशल बहू की तरह सब का ध्यान रखा और शादी का दूसरा साल लगतेलगते वह एक बेटी की मां बन गई. घर में खुशियों का माहौल था. कुछ महीनों बाद मानसी की रेलवे परीक्षा का परिणाम आया और उस की भरती रेलवे सीतापुर में क्लर्क के पद पर हो गई.

मानसी अपनी नौकरी को ले कर बहुत उत्साहित थी. रजनीश ने सीतापुर जा कर उस की जौइनिंग से ले कर उस के रहने का प्रबंध करवा दिया और छोटी बच्ची का ध्यान रखने के लिए अपनी छोटी बहन को उस के साथ भेज दिया.

हर सप्ताहांत में रजनीश मानसी के पास डेढ़ सौ किलोमीटर का सफर तय कर के आता और मानसी के साथ समय बिताता. लेकिन उस का जीवन जैसे 2 जगह बंट गया था. इसलिए मानसी ने अपना ट्रांसफर लखनऊ कराने के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया. इतनी जल्दी ट्रांसफर होना कठिन था पर इस काम में मानसी की सहायता उस के एक सीनियर अधिकारी तेज वर्मा ने की जो मानसी से उम्र में तीनचार साल बड़े थे.

मानसी बच्ची को ले कर वापस लखनऊ शिफ्ट तो हो गई पर पिछले कुछ दिनों से मानसी से मिलने पर रजनीश को मानसी में बदलाव दिखा. उस के स्वभाव में परिवर्तन आ गया था जो चिड़चिड़ेपन और पारिवारिक मनमुटाव के रूप में बाहर आ रहा था. रजनीश ने कारण जानना चाहा तो मानसी ने सच बता दिया कि सीतापुर में पोस्टिंग के दौरान मानसी और तेज वर्मा के बीच प्रेम पनप गया है और उसे लगता है कि तेज वर्मा रजनीश से अच्छा जीवनसाथी साबित होगा.

रजनीश अवाक था. उसे अपने सुने पर भरोसा नहीं हो रहा था. कोई लड़की ऐसा कैसे कर सकती है और क्या उस का पति कोई ‘चौइस’ है जिसे वह बदलना चाह रही है. पर, मानसी ऐसी ही थी. उस का प्यार एक बुलबुले की तरह था जिसे उठने की जितनी जल्दी होती है तो फूट जाने का उतावलापन भी उतना ही रहता है.

कैसे कोई शादीशुदा और छोटे बच्चे वाली स्त्री ऐसा कर सकती है और फिर रजनीश तो निम्न मध्यवर्गीय परिवार से था, उस के परिवारों में तो शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है और तलाक को एक बदनुमा दाग. दिमाग नहीं चल रहा था रजनीश का, इसलिए उस ने अपने इकलौते दोस्त डाक्टर नवीन को सारी बातें बताईं व इस मसले पर उस की राय मांगी.

डाक्टर नवीन ने उसे मानसी को तलाक दे देने की बात कही, ‘इतना ही कम है क्या कि मानसी ने तुम्हें सब सच बता दिया. अगर वह चाहती तो बड़े आराम से दो नावों पर पैर रख सकती थी.’
नवीन द्वारा मानसी को क्लीन चिट दिया जाना रजनीश को अखर रहा था. बहस और तर्क का समय नहीं था और वैसे भी मानसी द्वारा अपने प्रेम को स्वीकार कर लेने के बाद तो रजनीश के पास उसे तलाक देने के अलावा कोई चारा ही नहीं था. दोनों ने आपसी सहमति से कोर्ट में जा कर तलाक ले लिया पर आश्चर्यजनक रूप से बेटी को मानसी ने अपने पास रखा, लेकिन उस के जीवनयापन के लिए रजनीश से पैसे लेने के लिए अतिरिक्त दबाव नहीं बनाया.

मानसी के जाने के बाद रजनीश मानो सदमे में चला गया था. मानसी ने खुद ही उस से शादी की पहल की थी और परिवार को भी आगे बढ़ाया. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उस का मन किसी परपुरुष के साथ लग गया और वह अपने पति को तलाक तक देने को राजी हो गई. अपनेआप से बहुत सवाल करने के बाद इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सका रजनीश को.
रजनीश की मनोव्यथा इतनी बढ़ गई थी कि वह दोबारा आकाशवाणी के माइक पर बोल नहीं सका और उद्घोषक का कार्य छोड़ कर औफिस की क्रिएटिव टीम का हिस्सा बन कर काम करने लगा. साथियों ने उसे इस सदमे की हालत से निकालने का बहुत प्रयास किया पर वे सफल नहीं हुए और फिर रजनीश का मन आकाशवाणी में लग भी तो नहीं रहा था. सो, रजनीश ने वहां से त्यागपत्र दे दिया.

दुखदर्द और समस्याओं के आने से अपनी जिम्मेदारियों से तो मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. रजनीश ने अपनी दोनों बहनों की शादी कर दी और अपनी विधवा मां का उन के जीवित रहने तक बराबर ध्यान रखा. शायद रजनीश दोबारा शादी करने की मां की जिद मान लेता तो मां और जी जाती पर रजनीश एक बार धोखा खाने के बाद दोबारा धोखा नहीं खाना चाहता था.

पिछले 20 सालों में लखनऊ में काफीकुछ बदल गया था. इन वर्षों में मानसी कहां गई थी और किस हाल में रही, उस की बेटी कैसी है और क्या उसे अपने पापा की याद नहीं आती है? ये सब जानने की कोशिश तक नहीं की थी रजनीश ने और खुद को भी इतना मजबूत रखा था कि उसे भी अपनी बेटी की याद न आए.

आज पार्क में उस अम्मा को निहार रहा था, तभी रजनीश ने मोबाइल पर एक अनजाना नंबर देख कर अनमने मन से फोन उठाया. ‘‘हां जी, कहिए.’’ पर रजनीश को उत्तर नहीं मिला. उस ने फिर हैलो किया पर उत्तर नदारद था. फोन करने वाला जी भर कर रजनीश की आवाज सुन लेना चाहता था. उकता कर रजनीश ने फोन काट दिया.
पर फोन फौरन फिर बज उठा और जब रजनीश ने हैलो किया तब उधर से एक महिला का स्वर था. चूंकि 20 साल में चेहरा बदलने के साथसाथ आवाज भी बदल जाती है, इसलिए महिला ने खुद अपना नाम बता दिया.
‘‘देखो रजनीश, प्लीज फोन मत काटना. मैं बोल रही हूं तुम्हारी मानसी.’’
रजनीश मौन था, उसे क्या बोलना है, यह समझ भी नहीं आ रहा था उसे. मानसी उसे फोन कर रही है पर उस ने तो सालों पहले ही अपना रास्ता अलग कर लिया था और फिर, अब क्यों?
‘‘दरअसल मैं तुम से मिलना चाहती हूं, बस. इस के अलावा कुछ नहीं चाहिए मुझे और मैं जानती हूं कि तुम मुझ से बहुत नफरत करते होगे पर एक बार मिल लो,’’ मानसी के स्वर में याचना का भाव लग रहा था और उस की आवाज में बहुत थकावट सी भी लग रही थी.
रजनीश बारबार फोन को काट देना चाहता था. वह मानसी पर चिल्लाना भी चाहता था पर यह सब कर न सका और कुछ न बोल सका. ‘पर इतने सालों बाद, अब, मिलनेमिलाने में क्या सार है?’ रजनीश बुदबुदाया.
लेकिन मानसी 20 साल पहले की तरह ही उतावली लग रही थी.
आखिरकार, रजनीश ने बेमन से मिलने के लिए हां कर ही दी.
दोनों ने परिवर्तन चौक के पास शहादत अली के मकबरे पर मिलना तय किया. रिश्ता खत्म हुए 20 साल हो गए थे, इसलिए उन लोगों को मकबरे की शांति ज्यादा सुहा रही थी.

रजनीश जब पहुंचा तब मानसी वहां पहले से ही थी. दोनों की नजरें टकराईं तो रजनीश के मन में एक विषाद सा पैदा हो गया, उस ने देखा कि मानसी की सुंदर और छरहरी काया अब थोड़ी सी स्थूलकाय हो चली थी और बाल कनपटी के पास से सफेद होने लगे थे व चेहरे में कसावट की जगह थोड़ा ढीलापन आने लगा था. मानसी ने भी रजनीश के चेहरे पर ढीलापन देखा था.
रजनीश ने मानसी के चेहरे से नजरें हटा लीं और उस के बोलने का इंतजार करने लगा. कुछ मिनटों तक खामोशी ही छाई रही थी.
‘‘तुम ने तो कभी मेरा हाल जानने की कोशिश ही नहीं की,’’ मानसी की हलक से बड़ी मुश्किल से शब्द निकल रहे थे.
‘‘तुम ने कोई संबंध ही कहां रखा था,’’ रूखे स्वर में रजनीश ने कहा.
टूटे हुए रिश्ते आज आमनेसामने थे और दोनों के बीच एक खाई सी थी जो अब भर नहीं सकती थी. मानसी ने हिम्मत कर के बोलना शुरू किया और रजनीश को बताया कि तेज वर्मा के साथ शादी कर लेने का उस का निर्णय किस तरह से गलत निकला था.

तेज वर्मा की फितरत ही औरतों को धोखा देने वाली थी. उस का अफेयर किसी फैशन मौडल से हुआ तो उस ने मानसी को छोड़ दिया तब मानसी को एहसास हुआ कि अपने साथी द्वारा छोड़ा जाना कितनी पीड़ा पहुंचाता है. उस के बाद मानसी ने अपनी बेटी की परवरिश अकेले ही की. भले ही उस के पास सरकारी नौकरी थी पर फिर भी वह अपनी बेटी को पिता का प्यार, अनुशासन नहीं दे पाई थी.

नतीजा यह निकला कि वह मात्र 20 साल की थी व गलत संगत में पड़ गई है और नशे का शिकार हो गई है. रातरातभर वह घर नहीं आती, न तो उसे पढ़ाईलिखाई की चिंता है और न ही कैरियर बनाने का शौक.

मानसी अपनी कहानी आगे भी सुनाना चाहती थी पर रजनीश ने खीझाते हुए उसे रोक दिया, ‘‘मुझ से चाहती क्या हो? और फिर, आज यह कहानी सुनाने का क्या फायदा, तुम पहले भी तो आ सकती थी मेरे पास?’’
‘‘बस, हिम्मत नहीं कर पाई और किस मुंह से आती पर अब लगता है कि मैं ने तुम्हारे साथ गलत किया. बस, एक बार माफ कर दो मुझ और कुछ नहीं चाहिए तुम से,’’ मानसी गिड़गिड़ा रही थी.
मानसी के चरित्र में उतावलापन था. बहुत जल्दी ही अपने सारे निर्णयों को वह सही मान कर आगे बढ़ जाती थी. जिस तरह से उस ने रजनीश से शादी करने में जिद दिखाई उसी तरह की जिद तेज वर्मा के साथ घर बसाने में की और क्या पता आज भी वह किसी जल्दबाजी में ये सब बात कर रही हो.

रजनीश कुछ बोल नहीं पा रहा था. फिर भी उस ने इतना कहा, ‘‘माफ करने के लिए
मेरे तुम्हारे बीच में कोई रिश्ता तो होना चाहिए. तुम ने वही नहीं रखा तो अब क्या
जरूरत है इस सब नाटक की. तुम ने मुझे जो दंश दिया उस के कारण पूरी स्त्री जाति से मेरा भरोसा उठ गया है. इस का परिणाम यह रहा कि मैं ने आज तक दोबारा शादी नहीं की.’’
माफी और पश्चात्ताप की सारी बातों को पूरी तरह खत्म कर दिया था रजनीश ने. मानसी अकेली मकबरे के लौन में खड़ी थी. उस के आंसू भी उस की आंखों का साथ छोड़ रहे थे.
इस बात को हुए तीनचार दिन बीत गए. दरवाजे पर दस्तक हुई तो रजनीश ने दरवाजा खोला, देखा, सामने डाक्टर नवीन खड़ा था. दोनों बैठने के बजाय सीधा किचन में गए जहां नवीन चाय बनाने लगा. हमेशा नवीन ही चाय बनाता था क्योंकि रजनीश को अच्छी चाय बनानी नहीं आती थी.

‘‘माफ क्यों नहीं कर देते मानसी को,’’ नवीन अचानक से बोल उठा था.
नवीन के मुंह से आज इतने सालों बाद मानसी का नाम सुन कर रजनीश हैरान था. उस ने सवालिया नजरों से नवीन को देखा. आंखों के सवालों को सम?ा कर नवीन ने सोफे पर बैठे हुए, चाय की चुस्की के साथ उत्तर देना शुरू कर दिया
‘‘इतना ही कम है क्या कि 20 साल बाद ही सही पर उसे अपने अपराध का बोध हुआ और वह तुम से माफी मांग रही है. अगर न भी मांगे तो क्या?’’ एक लंबी सांस छोड़ी थी नवीन ने और आगे कहना शुरू किया.
उस ने बताया कि पिछले दिनों मानसी नवीन के अस्पताल में ही अपनी बेटी दिया को ले कर आई थी. दिया ने एक नशीली दवा का ओवरडोज ले लिया था. दिया को ठीक करने में डाक्टर नवीन ने पूरी जान लगा दी थी क्योंकि मानसी और नवीन एकदूसरे को पहचान गए थे. दिया की तबीयत ठीक हुई तो मानसी ने नवीन को अपने बीते सालों के बारे में बताया कि उसे कैसे अपने किए पर पछतावा है और नवीन से ही मानसी ने रजनीश का नंबर लिया था.

‘‘पर इतने दिनों बाद भला मेरी जरूरत क्यों?’’ रजनीश का धैर्य जवाब दे चुका था.
‘‘तुम्हारी जरूरत उसे अपने लिए नहीं बल्कि अपनी बेटी के लिए है क्योंकि मानसी को लास्ट स्टेज का कैंसर है और वह अधिक दिन जीवित नहीं रहेगी. इसलिए मरने से पहले वह अपनी बेटी को तुम्हारे सेफ हाथों में सौंप जाना चाहती है.’’ एक ही सांस में सब कह गया था डाक्टर नवीन.
सन्न रह गया था रजनीश. भले ही मानसी से उस का कोई रिश्ता नहीं रह गया था पर उस की बेटी में तो रजनीश का ही खून था. इतने वर्षों अलग रहने के बाद ममता दब सी गई थी जो अब जागती सी मालूम हुई पर मानसी के बारे में सुन कर रजनीश को जरूर दुख हुआ. लेकिन यह मानसी ही तो थी जिस के कारण उस का जीवन, उस का कैरियर सब बरबाद हुआ. इसलिए फिर भी नवीन को वह कोई उत्तर न दे सका.

आज इन सब बातों को 15 दिन बीत चुके हैं. रजनीश शाम को पार्क में पहुंचा और अपनी पसंदीदा बैंच पर बैठ गया. सामने अम्मा वाली बैंच आज खाली थी, सिर्फ उन की पोती ही अकेले बैठी थी और उस के पास वही रेडियो रखा था. उस की बेटी दिया इतनी बड़ी ही होगी, रजनीश उस लड़की के पास पहुंचा.
‘‘आज आप की दादी नहीं आईं?’’ रजनीश ने सवाल किया तो वह लड़की फफक कर रो पड़ी और रोतेरोते उस ने बताया कि दादी को कैंसर था, उन की मृत्यु हो गई है.
‘‘कैंसर…’’ रजनीश के होंठ हिल रहे थे. उस ने सुना कि रेडियो पर धीमी आवाज में एक गीत बज रहा था जिस के बोल थे-
‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते…’
रजनीश वहां खड़ा न रह सका. वह नवीन के फ्लैट की तरफ बढ़ चला और कांपते हाथों से उस ने मानसी का नंबर डायल कर दिया था.

Best Short Story : अनमोल गिफ्ट – पतिपत्नी के बीच का अनकहा प्यार बयां करती कहानी

Best Short Story : देर से घर आने पर पत्नी उस से नाराज होगी, इस बात से वह डर रहा था लेकिन पत्नी को मुसकराते हुए स्वागत करता देख वह हैरान रह गया.

वह मेरे पसीने में भीगे कपड़ों को देख कर ऐसे नाकभौं सिकोड़ रहा था जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह का प्राणी हूं. शायद उसे मेरे पसीने की दुर्गंध आ रही थी, पर मैं क्या करता दिनभर धूप में जीतोड़ मेहनत कर रहा था. कभी इधर तो कभी उधर सामान ले कर जाना पड़ रहा था, उस पर साहब का गुस्सा. जैसेतैसे मैं अपना काम निबटा कर औफिस से जल्दी घर निकलना चाहता था, क्योंकि सुबह ही पत्नी से वादा किया था कि 20वीं सालगिरह है, आज किसी रैस्टोरेंट चलेंगे डिनर करने.

काम की वजह से आज भी भागदौड़ रोज की तरह बनी रही. 7 बजे फ्री होते ही मैट्रो पकड़ी और घर को चल दिया. मेरे बगल में सूटबूट पहने एक व्यक्ति मुझे पसीने में देख अजीब सी नजरों से घूरे जा रहा था. मैं भी अपनी जगहजगह से घिस चुकी कमीज को उस की नजरों से बचाता संकोचवश अपनेआप को सिकोड़े गेट के पास खड़ा शर्मिंदगी महसूस कर रहा था.

कश्मीरी गेट मैट्रो स्टेशन से बाहर निकला तो ताजा हवा में थोड़ा सुकून मिला. देर होने के कारण मार्केट बंद हो गई थी और मैं पत्नी के लिए कोई गिफ्ट न ले सका. अनमने मन से जल्दी में औटो पकड़ घर की ओर चल दिया. घर पहुंचतेपहुंचते रात के 10 बज चुके थे और पत्नी दरवाजे पर खड़ी बेसब्री से मेरी राह ताक रही थी.

“सौरी यार, मैं काम की वजह से तुम्हारे लिए कोई गिफ्ट नहीं ला सका,” मैं बहुत ही अजीब महसूस कर रहा था.

उस ने जैसे कुछ सुना ही नहीं. वह मुझ से लिपट गई,”यह जरूरी है क्या कि हर बार तुम ही मुझे गिफ्ट दो,” मुझे एक पैकेट पकड़ाते हुए मैरिज ऐनिवर्सरी की उस ने बधाई दी.

मैं ने पैकेट खोल कर देखा तो दंग रह गया. उस में खूबसूरत पिंक शर्ट और ब्लैक पेंट थे.

“सही कहती हो, तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है,” मैं ने कहा.

“सो तो है, तुम्हें जो पसंद किया है,” वह मुसकराते हुए बोली.

दरअसल, पत्नी को मालूम था कि पसीने की खुशबू क्या होती है.

लेखक : संजय कुमार गिरी

Emotional Story : कशमकश – बच्चे को तरसते पतिपत्नी

Emotional Story : कमल लगातार सुधा पर अपनी बात मनवाने का दबाव डाल रहा था कि जो हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता. भावनाओं में बह कर गलत निर्णय मत लो और किशोर को भी समझाओ. क्या मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चे नहीं हैं? लेकिन सुधा और किशोर निर्णय ले चुके थे कि अब अपनी खुशियों के आड़े वे किसी को नहीं आने देंगे.

‘‘एक बार फिर से सोच लो, किशोर. इस उम्र में छोटी सी बच्ची को गोद लेना
कहां की समझदारी है? मुझे लगता है कि तुम्हें यह विचार त्याग देना
चाहिए,’’ कमल ने चाय की प्याली को मेज पर रखते हुए कहा.
‘‘मैं ने यह निर्णय सोचविचार करने के बाद ही लिया है, कमल. मैं और सुधा अभी इतने बूढ़े नहीं हुए हैं कि एक बच्ची की परवरिश न कर सकें. मैं अच्छा कमाता हूं. रिटायरमैंट होने में अभी कुछ वर्ष बाकी हैं और उस के बाद भी मैं इतना सक्षम रहूंगा कि बच्ची की देखभाल अच्छी तरह से कर सकूं,’’ किशोर ने उत्तर दिया.
‘‘मैं रुपएपैसे की बात नहीं कर रहा हूं, किशोर. उस के अलावा भी सौ बातों को दिमाग में रख कर सोचना पड़ता है. तुम्हारे परिवार वाले और रिश्तेदार तुम्हारे इस निर्णय के खिलाफ हैं और समाज का क्या, तुम ने कभी सोचा है कि लोग क्या कहेंगे? देखो किशोर, मैं केवल सुधा का बड़ा भाई ही नहीं हूं बल्कि तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त भी हूं. इसी नाते तुम्हें समझ रहा हूं. मेरी बात को समझने का प्रयास करो,’’ कमल ने किशोर पर दबाव बनाते हुए कहा.
‘‘लोग क्या सोचेंगे, समाज क्या कहेगा, मैं ने इस की परवा करनी छोड़ दी है और जहां तक परिवार व रिश्तेदारों का प्रश्न है, अगर उन्हें हमारी परवा होती तो वे आगे बढ़ कर इस निर्णय में हमारा साथ देते. इस तरह तुम्हें अपना वकील बना कर हमारे पास न भेजते,’’ किशोर अब क्रोधित होने लगे थे.
‘‘तुम से तो बात करना बेकार है. तुम बात को समझना ही नहीं चाहते हो.’’
कमल ने अपनी बहन सुधा की ओर देखा जो चुपचाप अपने पति किशोर के पीछे हाथ बांधे खड़ी थी.
‘‘सुधा, कम से कम तुम तो समझदारी से काम लो. इस उम्र में बच्ची को गोद लोगी तो समाज में तरहतरह की बातें होंगी. लोगों के तानों का सामना कर पाओगी तुम?’’
‘‘भाईसाहब, आप मुझ से यह पूछ रहे हैं कि मैं लोगों के ताने सुन पाऊंगी या नहीं, शादी के 26 साल बाद भी मेरी गोद सूनी है. आप को क्या लगता है कि मैं ने समाज के ताने नहीं सुने हैं. जिस तरह आज तक सुनती आई हूं, आगे भी सुन लूंगी.’’
‘‘देखो सुधा, जो हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता है. उसे प्रकृति की मरजी समझ कर स्वीकार करो. भावनाओं में बह कर गलत निर्णय मत लो और किशोर को भी समझने का प्रयास करो. रही बात बच्चों की तो क्या मेरे बच्चे मेघा और शुभम तुम्हारे बच्चे नहीं हैं?’’ कमल ने सुधा पर दबाव बनाने की कोशिश की.
‘‘भाईसाहब, आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिए. अगर मेघा और शुभम मेरे बच्चे होते तो क्या भाभी मुझे बांझ होने का ताना देतीं?’’ सुधा ने कमल से प्रश्न किया तो उन की नजरें शर्म से नीचे झुक गईं.
अब सुधा ने हाथ जोड़ कर आगे कहा, ‘‘मैं बरसों से इस सुख से वंचित रही हूं, भाईसाहब. आज 26 सालों के बाद मेरी गोद में मेरी बच्ची आने वाली है. उसे गोद लेना हम दोनों का साझा निर्णय है. मेरी आप से विनती है कि हमारी खुशी में हमारा साथ दीजिए.’’
‘‘खैर, अब तुम दोनों ने निर्णय ले ही लिया है तो फिर मैं कर भी क्या सकता हूं. आज तुम दोनों किसी की बात नहीं सुन रहे हो. लेकिन याद रखना, अगर भविष्य में तुम्हें अपने इस निर्णय पर पछताना पड़ा तो इस के जिम्मेदार तुम खुद होगे.’’
इतना कहने के बाद कमल भी बाकी रिश्तेदारों की तरह हथियार डाल कर वहां से चले गए.
कमल के वहां से जाने के बाद सुधा की हिम्मत जवाब दे गई. वह धम्म से सोफे पर बैठ गई व उस की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली. अपनी पत्नी को कमजोर पड़ते देख कर किशोर भावुक हो उठे. उन्होंने अपने जज्बातों पर काबू पाते हुए सुधा के कंधे को थपथपा कर उसे हिम्मत देने का प्रयास किया.
‘‘ये लोग क्यों नहीं समझ रहे हैं, किशोर? आज इतने सालों बाद समय हम पर मेहरबान हुआ है. हमें हमारी औलाद मिलने जा रही है. ये लोग क्यों हम से हमारी खुशी छीनने का प्रयास कर रहे हैं,’’ सुधा ने बेबसी से किशोर की ओर देखते हुए कहा.

किशोर सुधा की पीड़ा से अपरिचित नहीं थे. अच्छे से अच्छे डाक्टरी इलाज और हर जगह सिर झुकाने के बावजूद उस की गोद नहीं भर पाई थी. वे सालों से उसे भीतर से खोखला होते देख रहे थे. मगर चाह कर भी उस के लिए कभी कुछ कर नहीं सके. ऐसा नहीं है कि पहले कभी उन्होंने बच्चा गोद लेने के बारे में नहीं सोचा. उन्होंने कई बार अपनी अम्मा से दबे शब्दों में इस बात का जिक्र किया था. एक बार हिम्मत जुटा कर अम्मा से इस बारे में सीधे बात करने की कोशिश भी की थी. लेकिन अम्मा ने कई दिनों तक घर में ऐसा कुहराम मचाया कि वे घबरा कर पीछे हट गए.
उस के बाद उन की इस बारे में जिक्र करने तक की हिम्मत नहीं हुई. उन की इस बुजदिली का खमियाजा उन की सुधा को आज तक भुगतना पड़ रहा था. सालों से वह सब के ताने सुनती आ रही थी. समाज के लोग तो दूर, अपने खुद के परिवार के लोग उस के निसंतान होने के कारण न जाने कैसेकैसे अंधविश्वास के चलते उस का अपमान कर बैठते थे. परिवार ने तो उन पर दूसरा विवाह करने का दबाव भी बनाया था. लेकिन वे अपनी सुधा से असीम प्रेम करते थे. उन्होंने करारा जवाब दे कर सब का मुंह बंद कर दिया था.
सुधा आज तक उन की खातिर कितनाकुछ सहन करती आ रही थी. अपना पूरा जीवन निस्वार्थ उन पर न्योछावर किया था उस ने. अब उस के लिए कुछ करने की बारी उन की थी. जो खुशी वे उसे आज तक नहीं दे पाए थे, वह अब देने जा रहे थे.
समय भी जैसे उन के इस निर्णय में उन का साथ दे रहा था. यह संयोग था कि थोड़ी ही तलाश के बाद उन्हें एक ऐसी महिला मिली जो अपनी संतान को गोद देने के लिए एक भले दंपती की तलाश में थी. पति की अकस्मात मृत्यु के बाद विमला पर बूढ़े, बीमार सासससुर व 3 छोटे बच्चों की जिम्मेदारी आ गई थी. ऐसे में उस के लिए गरीबी की मार सहते हुए अपनी नवजात बच्ची का लालनपालन कर पाना संभव नहीं था. पहले वह उन के बारे में जान कर थोड़ा हिचक रही थी. लेकिन उन से मिलने के बाद उस की सारी शंकाएं दूर हो गईं.
सुधा से इस बात का जिक्र करने से पहले किशोर ने गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी. सुधा के मन में कोई भी उम्मीद की किरण जगाने से पहले वे खुद पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते थे. पूरी तसल्ली करने के बाद ही उन्होंने सुधा को यह बात बता कर विमला व उस की नवजात बच्ची से उस का परिचय करवाया. पहलेपहल तो सुधा को यकीन ही नहीं हुआ कि उस के जीवन में कुछ ऐसा घटित होने जा रहा है. फिर उसे आशंकाओं ने घेर लिया पर आखिर में किशोर की बात समझ कर जब उस ने उस नवजात बच्ची को अपनी गोद में लिया तो उस की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. जल्दी ही बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई. धीरेधीरे सुधा के मुरझाए चेहरे पर रौनक लौटने लगी थी.
दोनों पक्षों की रजामंदी थी, इसलिए प्रक्रिया में कोई अड़चन तो नहीं थी लेकिन ऐसे कामों में थोड़ा वक्त तो लगता ही है. प्रक्रिया शुरू होने के बाद सब से कठिन कार्य था अपने परिवारों को यह खबर देना. किशोर व सुधा दोनों ने अपनेअपने परिजनों को फोन कर के सूचित कर दिया. किशोर को जिस बात का अंदेशा था, ठीक वैसा ही हुआ. दोनों ओर से विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए. पहले सब फोन करकर के ही उन्हें रोकने का प्रयत्न कर रहे थे. अपनी कोशिशें नाकामयाब होने के बाद उन्होंने आज सुधा के बड़े भाई व किशोर के परम मित्र कमल बाबू को अपना प्रतिनिधि बना कर उन के घर भेजा था.

नतीजा यह हुआ कि उन के यहां आने के बाद सुधा कमजोर पड़ने लगी थी. किशोर ने सुधा को तो समझाबुझा कर सुला दिया था लेकिन उन की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वे यह जानते थे कि कमल बाबू आखिरी व्यक्ति नहीं थे जो उन्हें रोकने का प्रयास करने के लिए घर आए थे. यह तो तूफान की शुरुआत भर थी.
3 दिन किसी का फोन आए बगैर सुकून से गुजर गए. जिंदगी अपनी सामान्य रफ्तार से चलती रही. सुधा भी अब शांत थी. चौथे दिन किशोर दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोलने पर अपने छोटे भाई सतीश व उस के परिवार को सामने पा कर किशोर यह समझ गए थे कि कमल बाबू की वकालत फेल होने के बाद सतीश ने केस की कमान अपने हाथों में ले ली है. वैसे तो उन के और सुधा के परिजनों की आपस में कभी नहीं बनी. वे सभी पारिवारिक समारोहों और उत्सवों में किसी तरह एकदूसरे को बरदाश्त कर लेते थे. लेकिन आज जब उन के और सुधा के निर्णय के खिलाफ खड़े होने की बारी आई तो वे सब अचानक ही एकता की शक्ति को पहचान गए थे.
किशोर ने न चाहते हुए भी मुसकरा कर सब का स्वागत किया. उन्होंने सुधा का चिंतित चेहरा देखते ही दफ्तर में फोन कर के छुट्टी ले ली. वे सतीश की तेजतर्रार पत्नी मीना के स्वभाव से भलीभांति परिचित थे. उन्हें मालूम था कि मीना मौका देख कर बच्ची को गोद लेने वाली बात का बतंगड़ जरूर बनाएगी. अब देखना यह था कि उसे यह मौका किस वक्त मिलेगा. शाम तक का वक्त तो शांति से गुजर गया.
शाम के समय किशोर व सतीश साथ बैठ कर बातें कर रहे थे. मीना सुधा के साथ रसोई में चली गई थी. उन के बच्चे पूजा और यश टीवी देखने में मग्न थे. सुधा रसोई से उन चारों के लिए चाय की ट्रे ले कर आई और पीछेपीछे मीना पकौड़े ले कर आ गई. सुधा बच्चों को पकौड़े व कैचअप देने में व्यस्त थी. तभी किशोर ने देखा कि मीना आंखों से सतीश को कुछ इशारा कर रही थी.
वे कुछ समझ पाते, इस से पहले ही सतीश बोल पड़ा, ‘‘भाईसाहब, मुझे आप से कुछ बात करनी है.’’
यह तो किशोर भी जानते थे कि उन के छोटे भाई को उन से क्या बात करनी थी. फिर भी उन्होंने अनजान बनते हुए कहा, ‘‘हां, बोलो सतीश, किस बारे में बात करनी है?’’

सतीश अपनी पत्नी मीना की भांति तेजतर्रार नहीं था. उस ने गोलमोल बातें करनी शुरू कर दीं, ‘‘वह भाईसाहब, आप को पता तो होगा कि घर वाले आप से नाराज हैं. रिश्तेदारों के बीच में भी यही चर्चा चल रही है. दीदी का फोन आया था, वे भी बहुत चिंतित लग रही थीं. आप सम?ा रहे हो न कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं?’’
किशोर ने धैर्यपूर्वक कहा, ‘‘नहीं सतीश, मैं कुछ नहीं समझ पा रहा हूं. इस प्रकार घुमाफिरा कर बात मत करो. जो कहना चाहते हो, साफसाफ कहो.’’
सतीश ने मीना की ओर देखा जो उसे गुस्से में खा जाने वाली नजरों से घूर रही थी. फिर उस ने किशोर की ओर देख कर कहा, ‘‘भाईसाहब, आप और भाभी एक बच्ची को गोद लेना चाहते हैं न. इस में हम में से किसी की भी सहमति नहीं है. रिश्तेदार और परिवार सभी आप से नाराज हैं, इसलिए आप यह विचार त्याग दीजिए.’’
किशोर ने शांत भाव से पकौड़ा खाया और कहा, ‘‘किसी की सहमति नहीं है, से तुम्हारा क्या मतलब है, सतीश? मैं ने तुम्हारी या किसी और की आज्ञा मांगी ही कब थी?’’
सतीश से इस का कोई उत्तर न देते बना तो उस ने सहायता के लिए मीना की ओर देखा.
मीना ने पति की हालत देख कर बिना देर किए बातचीत की कमान खुद संभाल ली.
‘‘भाईसाहब, इन के कहने का मतलब था कि पूरी उम्र तो आप ने बच्चा गोद लेने के बारे में सोचा नहीं. अब कहां इस उम्र में आप छोटी सी बच्ची की जिम्मेदारी उठाएंगे और अगर आप को बच्चों की कमी इतनी ही खल रही है तो पूजा और यश हैं न. आप अपने सारे अरमान इन के जरिए पूरे कीजिए. ये दोनों भी तो आप ही की संतान हैं. मैं ठीक कह रही हूं न, भाभीजी.’’ इतना कह कर मीना ने सुधा की ओर देखा, जिस का पूरा ध्यान अब मीना और सतीश की बातों पर था.
किशोर ने मीना से मुसकरा कर कहा, ‘‘मीना, यह विचार तो मेरे मन में बरसों पहले ही आ गया था. लेकिन अगर उस वक्त मैं ने अम्मा के आगे न झुक कर थोड़ी हिम्मत से काम लिया होता तो आज हमारी संतान भी यश की उम्र की होती और जहां तक पूजा और यश को अपनी संतान मानने की बात है तो ये दोनों भी हमारे ही बच्चे हैं. हम ने सदा इन्हें अपना ही माना है. मगर मुझे यह बताओ कि यह बात तुम ने उस वक्त क्यों नहीं कही जब यश के जन्मदिन पर तुम्हारी माताजी ने सुधा को बांझ कह कर उसे यश को केक खिलाने से रोक दिया था?’’ इतना सुनते ही मीना के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

वह बात को संभालते हुए बोली, ‘‘भाईसाहब, आप तो जानते हैं कि मेरी मां पढ़ीलिखी नहीं हैं. वे गांव में रहती हैं और कई बार बड़ेबूढ़े लोग ऐसी दकियानूसी बातों में विश्वास कर के कुछ भी बोल देते हैं. मगर मेरा विश्वास कीजिए, मेरे मन में ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने पार्टी के बाद मां से इसी बात को ले कर झगड़ा भी किया था.’’
किशोर ने कहा, ‘‘चलो ठीक है, मैं ने मान लिया कि तुम्हारे मन में ऐसी कोई बात नहीं है मगर अब इन सब बातों को दोहराने का कोई फायदा नहीं है. हमारी बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. हम दोनों पूजा और यश से बहुत प्यार करते हैं. लेकिन अब हम किसी की खातिर अपना निर्णय नहीं बदलेंगे.’’
सतीश के हावभाव देख कर किशोर समझ गए थे कि वह हार मान चुका है. मगर मीना अब गुस्से से तिलमिला रही थी. उस ने आखिरी बार अपने पति की ओर देखा जिस ने कंधे उचका कर न में सिर हिला दिया. अपनी दाल न गलते देख कर मीना भड़क उठी, ‘‘अरे, ऐसे कैसे बुढ़ापे में बच्ची गोद ले लेंगे. अगर बच्चे पालने का इतना ही शौक है तो मेरे पूजा और यश को अपने पास रख लो. जब घर में बच्चे मौजूद हैं तो उन के होते हुए कैसे किसी पराए खून को आप अपना सबकुछ उठा कर दे देंगे. इन सब पर तो पूजा और यश का हक बनता है.’’
किशोर मुसकरा उठे, ‘‘चलो अच्छा हुआ, मीना. आखिर तुम्हारे मन की बात तुम्हारी जबान पर तो आई.’’ यह सुन कर मीना झेंप गई. उस ने सहायता के लिए सतीश की ओर देखा जो खुद उसे अब अवाक हो कर देख रहा था. पूजा और यश भी अपनी मां को हैरानी से देख रहे थे.
मीना ने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मेरे कहने का वह मतलब नहीं था. मैं तो बस इस बात की फिक्र कर रही हूं कि कहीं कोई आप के सीधेपन का फायदा उठाते हुए बच्ची गोद देने का लालच दिखा कर आप को ठग न ले. आजकल रुपए के लालच में लोग किसी भी हद तक गिर जाते हैं.’’
‘‘वह तो मैं देख ही रहा हूं, मीना. मैं अच्छी तरह से समझ भी रहा हूं कि तुम्हारी किस बात का क्या मतलब था.’’
इतना कह कर किशोर ने सुधा की ओर देखा. सुधा चुपचाप उन के समीप आ कर खड़ी हो गई. फिर किशोर ने सतीश और मीना से कहा, ‘‘माफ करना, हम दोनों के पास आप को देने के लिए पर्याप्त समय नहीं है. हम अपनी बच्ची को घर लाने की तैयारियों में आजकल बहुत व्यस्त रहते हैं. सतीश तुम्हें अपनी दुकान संभालनी है और बच्चों की पढ़ाई का भी नुकसान हो रहा होगा तो आप लोग अधिक समय तक यहां रुकेंगे भी नहीं. वापसी का टिकट करा लिया है या मैं बुक करा दूं?’’

सतीश और उस का परिवार अगली सुबह ही अपने घर के लिए रवाना हो गए. जातेजाते मीना उन्हें चेतावनी देना नहीं भूली कि अब बाला दीदी ही उन दोनों से बात करेंगी. सुधा मीना के स्वभाव से तो परिचित थी, मगर उसे उस के इस रूप का तनिक भी अंदाजा नहीं था. अब उसे इस बात का डर सताने लगा कि कहीं उस की ननद बाला के हस्तक्षेप के बाद किशोर अपना निर्णय बदलने पर मजबूर न हो जाएं क्योंकि बाला दीदी किशोर के जीवन में सब से अहम स्थान रखती थीं. उन्होंने ही किशोर को उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया. उन्हें कानपुर से दिल्ली लाने में भी बाला दीदी का ही योगदान था. किशोर ने आज तक अपनी मां समान बड़ी बहन की कोई बात नहीं टाली थी. जब सुधा ने अपनी चिंता का कारण किशोर को बताया तो उन्होंने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है.
किशोर सुधा को तो तसल्ली दे रहे थे लेकिन उन के मन के भीतर भी तूफान आया हुआ था. दिनरात बाला दीदी के फोन का इंतजार कर के चिंता में घुलने से भी क्या लाभ होता. किशोर ने सुधा से कहा कि अब जबकि उन की बच्ची जल्दी ही घर आने वाली है तो उन्हें उस के लिए थोड़ी खरीदारी शुरू कर देनी चाहिए.
किशोर का प्रयोग सफल साबित हुआ. बच्ची के लिए कपड़े, खिलौने व उस की जरूरतों के अन्य सामान की सूची बनातेबनाते ही सुधा का ध्यान बाला दीदी की ओर से हट गया. जब एक सप्ताह शांतिपूर्वक बीत गया तो किशोर को लगा कि शायद बाला दीदी चुप रह कर उन्हें अपना समर्थन दे रही हैं. लेकिन व्यक्ति अपनी मरजी से कोई बड़ा कार्य करने चले और उस में व्यवधान न आए, ऐसा असंभव है.
एक शाम जब वे दोनों खरीदारी कर के घर लौटे तो किशोर के मोबाइल की घंटी बजने लगी. स्क्रीन पर बाला दीदी का नाम देखते ही किशोर समझ गए कि दीदी की चुप्पी उन का समर्थन नहीं था. असल में वह तूफान के पहले की खामोशी थी. उन्होंने सुधा की ओर देखा जो डरतेडरते उन्हें फोन उठाने के लिए कह रही थी.
फोन उठाते ही दीदी ने नमस्ते के उत्तर में पूछ डाला कि उसे परिवार के सम्मान और प्रतिष्ठा की तनिक भी परवा है या नहीं. किशोर बहुत संभलसंभल कर उत्तर देने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं दीदी उन के जवाब को अपना अपमान सम?ा कर उन से नाराज न हो जाएं. उन्हें पता था कि बाला दीदी किसी को आसानी से क्षमा करने वालों में से नहीं हैं फिर चाहे वह उन का प्रिय छोटा भाई ही क्यों न हो. दीदी किशोर को अपना निर्णय बदलने के लिए कहती रहीं और वे दीदी को समझाबुझा कर उन्हें स्थिति को अपने दृष्टिकोण से देखने की प्रार्थना करते रहे.
आखिरकार दीदी ने कह ही दिया, ‘‘तुम्हें पता भी है कि उस बच्ची के मातापिता कौन हैं? उस का धर्म क्या है? वह किस जाति, किस खानदान की है? किसी ऐरेगैरे के बच्चे को घर ला कर क्यों अपने खानदान का नाम डुबोने पर तुले हो? क्या तुम्हें अपने पिता और परिवार के नाम व मानसम्मान की तनिक भी चिंता नहीं है?’’
किशोर को उन की बात सुन कर झटका लगा. अब बाला दीदी भी अम्मा की भाषा बोलने लगी थीं. यह सोच कर उन्होंने बाला दीदी को वही उत्तर दिया जो कभी वे अम्मा को देना चाहते थे, मगर दे नहीं पाए थे.

उन्होंने कहा, ‘‘हां दीदी, मैं जानता हूं कि उस के मांबाप कौन हैं और वह किस खानदान की है. उस के परिवार वाले बहुत ही शरीफ और खुद्दार लोग हैं. उस की मां अपनी मजबूरियों के चलते उसे हमें गोद दे रही है. रही बात जाति और धर्म की तो इन सब बातों में क्या रखा है. पैदा तो वह इंसान की बच्ची बन कर हुई है और आप ही तो कहती थीं कि बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं. उन्हें जिस सांचे में ढालो, वे उसी सांचे में ढल जाते हैं. आप बिलकुल फिक्र मत कीजिए, दीदी. आप की भतीजी की परवरिश उसी तरह से होगी जिस तरह आप चाहती हैं.’’
‘‘बातों के जाल मुझ पर मत फेंको, किशोर. तुम अच्छी तरह से जानते हो कि आज अगर अम्मा हमारे बीच में होतीं तो वे भी यही कहतीं. आज तुम बहुत बड़ीबड़ी बातें कर रहे हो. आदर्शवादी होने का विचार तो बहुत अच्छा है पर असल जिंदगी में इस विचार का कोई स्थान नहीं है. याद रखना, एक दिन तुम अपने इस निर्णय पर बहुत पछताओगे. मैं ने आज तक हर बात में तुम्हारा साथ दिया है. यहां तक कि सुधा को दिल्ली ले कर आने के निर्णय में भी मैं ने अम्मा के खिलाफ जा कर तुम्हारी मदद की थी. लेकिन आज तुम्हारे इस फैसले में मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं. याद रखना, अगर तुम इस बच्ची को घर लाओगे तो आज के बाद मेरा और तुम्हारा कोई संबंध नहीं होगा. यह मेरा अंतिम निर्णय है.’’
इतना कह कर बाला दीदी खामोश हो गईं, लेकिन उन्होंने फोन का रिसीवर नहीं रखा था.
किशोर की आंखें नम हो गईं. वे बाला दीदी का बहुत सम्मान करते थे लेकिन वे अपनी पत्नी सुधा से भी बहुत प्यार करते थे. वे खुद को इस वक्त 2 हिस्सों में बंटा हुआ महसूस कर रहे थे. उन्होंने भी मन ही मन निर्णय ले लिया था कि उन्हें क्या करना है. वे अपनी सुधा के साथ अब और अन्याय नहीं कर सकते थे.
उन्होंने गहरी सांस भरते हुए कहा, ‘‘दीदी, आप मेरे लिए सिर्फ मेरी बड़ी बहन नहीं हैं बल्कि मेरी मां से भी बढ़ कर हैं. मैं चाहता हूं कि आप की भतीजी आप की नाराजगी नहीं, आप के आशीर्वाद के साथ अपने घर में प्रवेश करे. उस का नाम भी आप ही को रखना है. आप के बिना हमारी खुशियां अधूरी रहेंगी. हम सब आप के घर आने का इंतजार करेंगे. आप का छोटा भाई आप की नन्ही भतीजी के साथ आप का इंतजार करेगा.’’

उस रात किशोर सो न सके. वे पूरी रात बेचैनी से करवटें बदलते रहे. सुधा चिंतित हो कर उन्हें जागते हुए देखती रही. सुबह उन का उतरा हुआ चेहरा देख कर उस से रहा न गया. वह किशोर को चाय का कप दे कर उन के पास ही बैठ गई और बहुत ध्यान से उन का चेहरा देखने लगी.
किशोर ने उस की ओर बिना देखे पूछ लिया, ‘‘कुछ कहना चाहती हो, सुधा?’’
सुधा बस उन के इसी प्रश्न का इंतजार कर रही थी.
वह रोंआसी हो उठी, ‘‘आप जानते हैं न कि मेरे लिए इस संसार में आप से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई नहीं है. औलाद भी नहीं और मैं भी अच्छी तरह से जानती हूं कि आप के जीवन में बाला दीदी का क्या स्थान है. आप उन्हें मना लीजिए. मुझे बच्ची नहीं चाहिए. क्या मैं पहले संतान के बगैर नहीं जी रही थी जो आगे नहीं जी पाऊंगी. मैं सोच लूंगी कि मेरे जीवन में संतान का सुख ही नहीं था. मैं आप को इस तरह परेशान होते हुए नहीं देख सकती. आप पूरी रात एक मिनट के लिए भी नहीं सोए हैं. दफ्तर में सारा दिन कैसे बिताएंगे? इस तरह तो आप की तबीयत खराब हो जाएगी. आप बाला दीदी को फोन कर के कह दीजिए कि हम बच्ची को गोद नहीं ले रहे हैं.’’
अपने प्रति सुधा का यह प्रेम और समर्पण देख कर किशोर मन ही मन मुसकरा उठे. सुधा के एक कथन ने उन के मन में चल रही कशमकश को खत्म कर दिया था. अब उन्हें पहले से भी कहीं अधिक विश्वास हो गया था कि उन का निर्णय बिलकुल सही है.
उन्होंने सुधा का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मुझे एक रात जागते देख कर तुम्हें इतनी तकलीफ हुई है. मैं ने तो तुम्हें इतने वर्षों में अनगिनत रातें रोरो कर काटते हुए देखा है. जरा सोचो सुधा, मुझे तुम्हें इस तरह देख कर कितनी तकलीफ हुई होगी.’’
सुधा उन्हें आश्चर्यचकित हो कर देखने लगी.
फिर किशोर ने आगे कहा, ‘‘तुम कितना भी चाहो लेकिन मुझ से अपने आंसू और दर्द नहीं छिपा सकती हो, सुधा. पिछले 26 सालों में तुम ने बिना कोई सवाल किए मेरी हर बात मानी है. मेरे हर सुखदुख में मेरा साथ दिया है. मेरे और मेरे परिवार के प्रति अपने सारे कर्तव्य अपनी क्षमता से बढ़ कर निभाए हैं और बदले में मुझ से कभी कोई उम्मीद नहीं की. अब मेरी बारी है, सुधा. तुम्हारे प्रति मेरे इस कर्तव्य को निभाने से मुझे संसार की कोई शक्ति नहीं रोक पाएगी. जहां तक बाला दीदी का प्रश्न है तो मैं जीवनभर उन्हें मनाने का प्रयास करता रहूंगा और मैं जानता हूं कि एक न एक दिन वे जरूर मान जाएंगी. लेकिन अब मैं इतना आगे बढ़ने के बाद अपने कदम पीछे नहीं हटाऊंगा.’’
उन की बातें सुन कर सुधा की आंखों से आंसू बह निकले. किशोर ने उन्हें अपने हाथों से पोंछते हुए कहा, ‘‘अच्छा बाबा, अब ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं है. जरा यह तो बताओ कि तुम हमारी बिटिया को प्यार से क्या कह कर बुलाओगी?’’
सुधा ने सिसकते हुए कहा, ‘‘बिट्टो.’’
‘‘मुझ पर यकीन रखो, सुधा. बहुत जल्दी हमारी बिट्टो घर आएगी.’’
उस दिन के बाद किशोर या सुधा, किसी के घर वालों ने उन से संपर्क करने की कोशिश नहीं की. बच्ची के घर आने से एक सप्ताह पूर्व तक उन के रिश्तेदारों के साथसाथ, मित्रों व पड़ोसियों को भी उस के आने की खबर मिल गई थी. कुछ चुनिंदा लोगों ने उन के इस कदम की सराहना की. लेकिन कटाक्ष व आलोचना करने वालों की संख्या अधिक थी. किशोर व सुधा ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वे अपने घर को अपनी बच्ची के हिसाब से व्यवस्थित करने में व्यस्त रहे.
दोनों ने साथ मिल कर अपनी बिट्टो का कमरा सजाया था. सुधा दिन में कईकई बार जा कर सारा कमरा देखती कि कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई है. घर के सारे नुकीले कोनों वाले सामान व फर्नीचर को बदल दिया गया. उन के घर में अब उन की जरूरत से ज्यादा उन की बच्ची की जरूरत का सामान था.

किशोर इस बात को ले कर अकसर सुधा को छेड़ते और सुधा मुसकरा कर कह उठती, ‘‘अभी मैं ने अपनी बिट्टो के लिए कुछ खरीदा ही कहां है. एक बार उसे घर आने दो, फिर देखना पता नहीं किसकिस चीज की जरूरत पड़ेगी. मैं उसे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दूंगी.’’
सुधा का खिला हुआ चेहरा देख कर किशोर मन ही मन खुश हो जाते थे.
और फिर वह दिन भी जल्दी ही आ गया जिस के लिए सुधा ने पूरे 26 सालों तक इंतजार किया था. उन दोनों ने सब से पहले अपनी बच्ची को ले डाक्टर से उस की जांच करवाई. बच्ची बिलकुल स्वस्थ थी. उस के बाद ही वे उसे घर ले कर आए. सुधा की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था. उस की नजरें एक पल के लिए भी अपनी बेटी के चेहरे से नहीं हट रही थीं.
वह बारबार उसे चूमती व उस की बलाएं लेती. बच्ची के रोने पर भी वह खुशी से हंसती हुई बावरी हुई जा रही थी. बस, एक ही समस्या थी. बच्ची अभी उन्हें पहचानती नहीं थी. वह उन्हें ध्यान से देखती, फिर अनजान चेहरों को सामने पा कर हिलकहिलक कर रोती. लाख चुप कराने पर भी वह सुबकती रहती. फिर थकहार कर, दूध पी कर सो जाती.
यह सब देख कर सुधा बहुत चिंतित हो गई.
किशोर ने उसे समझाने का प्रयास किया, ‘‘देखो सुधा, हमारी बेटी अभी बहुत छोटी है. उसे हमें पहचानने व अपनाने में थोड़ा समय लगेगा. अगर हमें अपना घर छोड़ कर, अपनों से दूर जा कर रहना पड़े तो हम भी बेचैन हो जाएंगे. फिर यह तो कुछ माह की अबोध बच्ची है. थोड़ा समय दो और धीरज रखो. इस में परेशान होने वाली कोई बात नहीं है.’’
शुरूशुरू में सुधा बच्ची के रोने व चिड़चिड़ाने पर परेशान हो जाती थी. लेकिन फिर किशोर की सलाह पर उस ने थोड़ा संयम से काम लिया. इस बीच उन के घर में मित्रों व परिचितों का आनाजाना लगा रहा.

सुधा व किशोर को अपने धैर्य का पुरस्कार उस दिन मिला जब उन के एक मित्र
दंपती घर पर आए. वे उन की बच्ची को गोद में ले कर दुलार कर रहे थे. मित्र
की पत्नी के मुंह से ‘मां’ शब्द निकलते ही बिट्टो ने सुधा की ओर अपनी नन्ही उंगली से इशारा किया. सुधा ने यह देखा और फिर से उन्हें ऐसा ही कहने के लिए कहा.
मां शब्द सुनते ही बिट्टो ने फिर से सुधा की ओर इशारा किया. सुधा ने मुसकरा कर प्यार से बिट्टो कह कर पुकारा तो उस ने किलकारी भरते हुए सुधा की ओर हाथ बढ़ा दिए मानो कह रही हो, ‘मां, मुझे अपनी गोद में ले लो.’
बेटी की बात समझाते हुए सुधा ने उसे अपनी गोद में ले लिया, उस का माथा चूमा. सभी हतप्रभ हो कर दोनों मांबेटी का मिलाप देख रहे थे. सुधा किशोर की ओर देख कर चहक उठी जो पहले से ही उन दोनों को नम आंखों से देखते हुए मुसकरा रहे थे.
उस के बाद तो जैसे उन दोनों की दुनिया ही बदल गई. किशोर ने कुछ दिनों के लिए दफ्तर से छुट्टी ले ली थी. वे अपना सारा समय अपनी पत्नी और नन्ही बिटिया के साथ बिताना चाहते थे. सुधा अपनी बिट्टो को रोज नईनई, रंगबिरंगी, सुंदर फ्रौक पहनाती. बिट्टो अपने खिलौनों को देख कर ताली बजाती और उन से अपनी भाषा में बात करती.
वह किशोर की पैंट खींच कर उन से खुद को गोद में लेने के लिए कहती. लेकिन सुधा के कमरे में आते ही उस की गोद में चली जाती. फिर किशोर ?ाठमूठ रूठने का नाटक करते और दोनों मांबेटी मिल कर उन पर हंसतीं. बिट्टो ने उन के सूने, अंधेरे जीवन में खुशियों का उजाला भर दिया था. अब वह उन्हें अपने मातापिता के रूप में पहचानने लगी थी. इस से बढ़ कर खुशी की बात उन के लिए हो ही नहीं सकती थी.
सबकुछ अच्छा चल रहा था. अब, बस, एक ही कमी थी. वे दोनों चाहते थे कि उन के परिवार के सभी सदस्य भी उन की बच्ची को स्वीकार कर लें. बिट्टो उन की बेटी थी. इस सत्य को अब उन्हें भी सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए था.
किशोर ने कई बार बाला दीदी को फोन किया था, लेकिन उन्होंने नंबर देख कर फोन नहीं उठाया. उन्होंने घर के फोन पर कौल किया तो बाला दीदी ने नौकर से कहलवा दिया कि वे घर पर नहीं हैं. इसी दौरान उन्हें एक रिश्तेदार से पता चला कि बाला दीदी की बेटी गौरी की शादी अगले माह होना तय हुई है. उन्हें छोड़ कर बाकी सभी को निमंत्रण भेजा गया है. किशोर को यह सुन कर धक्का लगा. वे जानते थे कि बाला दीदी उन से नाराज हैं. मगर इतनी भी क्या नाराजगी कि इकलौती भांजी की शादी में मामा को न बुलाया जाए. सुधा ने मायूस हो कर कहा कि अब उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए कि परिवार ने उन से सारे नाते तोड़ लिए हैं.
किशोर ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा, ‘‘कोई कुछ भी कह ले मगर मैं जानता हूं कि मेरी दीदी मुझे न्योता देने जरूर आएंगी. वे भले ही मुझ से कितनी भी नाराज क्यों न हों, मगर वे मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती हैं और अगर उन्होंने मुझे नहीं भी बुलाया तो क्या हुआ, मैं उन का छोटा भाई हूं और गौरी का मामा हूं. वे मुझे बुलाएं या न, मैं अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए वहां जरूर जाऊंगा.’’
सुधा भलीभांति जानती थी कि किशोर का मन बहुत व्याकुल है. लेकिन वह उन की पीड़ा बांटने के अलावा और कर भी क्या सकती थी. सो वही करती रही.
सुधा के लगातार समझने पर किशोर अपना पूरा ध्यान अपने काम व बेटी में लगाने की कोशिश करते रहे. जैसेजैसे गौरी की शादी की तारीख निकट आती गई, किशोर की उम्मीद की डोर भी कमजोर होती चली गई. शादी से 8 दिनों पहले उन्होंने सुधा के सामने यह स्वीकार भी कर लिया कि वे हार गए हैं और मानते हैं कि अब दीदी उन्हें अपने जीवन व हृदय से पूरी तरह निकाल चुकी हैं. अपने पति को इस तरह टूटता देख कर सुधा का हृदय भी तड़प उठा. वह उन के आंसू पोंछने ही वाली थी कि तभी उस से पहले बिट्टो ने हाथ बढ़ा कर किशोर के आंसू पोंछ दिए व उन की गोद में जा कर उन्हें प्यार करने लगी. अपनी मासूम बच्ची का प्रेम देख कर किशोर ने उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया.

अगली शाम सुधा ने उन से पार्क में चलने का आग्रह किया. पहले तो वे मना करने लगे पर जब बिट्टो ने उन का हाथ पकड़ कर दरवाजे की ओर इशारा किया तो वे जाने के लिए मान गए. दोनों ने थोड़ी देर बिट्टो को पार्क में घुमाया, फिर बैंच पर जा कर बैठ गए. बिट्टो अब सोसाइटी के बच्चों को भी अच्छी तरह से पहचानने लगी थी. बच्चे उसे उस के नाम से पुकारते और उसे दिखादिखा कर गेंद को हवा में ऊंचा उछालते. बिट्टो गेंद को देख कर जोरजोर से ताली बजाती व किलकारी भरती. बिट्टो को इस प्रकार चहकता देख कर किशोर भी खुश हो रहे थे और उन दोनों को खुश देख कर सुधा खुश थी.
किशोर का ध्यान बिट्टो से तब हटा जब उन के कानों में एक परिचित स्वर पड़ा, ‘‘मामाजी.’’
उन्होंने पलट कर देखा तो वहां गौरी खड़ी थी.
किशोर ने चौंक कर कहा, ‘‘गौरी, तुम यहां?’’ और इधरउधर देखने लगे.
‘‘मामाजी, आप मां को ढूंढ़ रहे हैं न?’’
किशोर के कोई उत्तर न देने पर गौरी ने सुधा की ओर देख कर कहा, ‘‘मामीजी, यह मेरी छोटी बहन है न? लाइए इसे मेरी गोद में दीजिए.’’
गौरी ने बिट्टो को गोद में ले कर प्यार किया और फिर किशोर की ओर देखा जो अभी भी उसे अचंभित हो कर देख रहे थे.
‘‘कितनी अजीब बात है न, मामाजी. हम सभी आदर्शवाद की बड़ीबड़ी बातें तो करते हैं लेकिन यदि हमारा कोई अपना उन बातों पर अमल करता है तो हम ही सब से पहले उस के खिलाफ खड़े हो कर उस का विरोध करते हैं. हमारा झुठा अहंकार हमें उन का साथ देने की या सही और गलत में फर्क कर के फैसला करने की इजाजत नहीं देता. समाज के इन खोखले कायदेकानूनों को मानने के चक्कर में हम खुद को अपनों से दूर कर बैठते हैं.
‘‘मां ने भी यही गलती की है. सब की बातों में आ कर उन्होंने आप से रिश्ता तोड़ने की बात कह दी. यहां तक कि आप को मेरी शादी में आने का निमंत्रण भी नहीं दिया. यहां आप परेशान हैं और वहां वे खुद कब से आप से मिलने और बात करने के लिए तड़प रही हैं. लेकिन अपने मन में पनपी कशमकश के चलते वे ऐसा नहीं कर पा रही थीं. कल रात जब मैं ने उन्हें आप के लिए छिपछिप कर रोते देखा तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं ने उन्हें गाड़ी में बिठाया और सीधे यहां ले आई. अब उन्हें यह डर सता रहा है कि पता नहीं आप उन्हें माफ करेंगे या नहीं. उन से बात भी करेंगे या नहीं.’’
‘‘क्या, दीदी यहां आई हैं?’’ किशोर ने चौंक कर पूछा.

फिर गौरी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना सुधा की ओर देख कर कहा, ‘‘देखा सुधा, मैं ने तुम से पहले ही कहा था न कि दीदी मुझ से अधिक देर तक नाराज नहीं रह सकती हैं, वे जरूर आएंगी.’’
फिर सुधा की बात सुने बिना पार्क से बाहर की ओर जाते हुए कहने लगे, ‘‘मैं अभी अपनी दीदी को घर ले कर आता हूं.’’
‘‘अरे मामाजी, आप कहां भागे जा रहे हैं, बिट्टो को तो साथ लेते जाइए. मां आप से पहले अपनी भतीजी से मिलना चाहती हैं. बिट्टो के बिना मेरी शादी में आने की सोचिएगा भी मत,’’ गौरी ने किशोर का उतावलापन देख कर हंसते हुए कहा.
किशोर ने जल्दी से वापस आ कर बिट्टो को अपनी गोद में लिया व उस का माथा चूम कर आंखों में चमक लिए सुधा की ओर देख कर कहा, ‘‘देखा सुधा, बिट्टो को घर लाने का मेरा निर्णय बिलकुल सही था.’’
फिर बेटी को गुदगुदी करते हुए कहा, ‘‘चल बिट्टो, तेरी बूआ को घर ले कर आते हैं.’’
नन्ही बिट्टो को भला क्या समझ आता. वह किलकारी भरते हुए अपने पिता के साथ चली गई. गौरी उन्हें बहुत गंभीर हो कर देख रही थी.
उसे ध्यानमग्न देख कर सुधा ने उस से पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो, गौरी?’’
गौरी ने हलकी सी मुसकान के साथ उत्तर दिया, ‘‘बिट्टो को घर ला कर आप ने बहुत अच्छा किया है, मामीजी. मुझे आप दोनों पर गर्व है.’’
उस की बात सुन कर सुधा ने उसे गले से लगा लिया और धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘थैंक्यू गौरी.’’
अब उस के दिल में किसी तरह की कोई उलझन या कशमकश नहीं थी. वह आंखों में गर्व और तृप्ति की चमक लिए अपने पति व बेटी को पार्क से बाहर जाते हुए देख रही थी.

Smartphones : सरकार थोप रही मोबाइल

Smartphones : सरकार द्वारा कई स्कीमों को चलाया जा रहा है. बिना एडवांस मोबाइल फोन और इंटरनैट सेवा की इन स्कीमों का फायदा उठाना असंभव है. ऐसा अनावश्यक जोर क्या सही है?

बढ़ते मोबाइल अर्थात ईगवर्नेंस के प्रभाव से हम सभ्यता का आखिर कौन सा मानदंड अगली पीढि़यों को सौंपने जा रहे हैं. आजकल बहुत सभ्य समाज के असभ्य आचरण पर हम रोजाना पढ़ते भी हैं और रोते तो बहुत हैं. आज के अत्यधिक डिजिटलाइज्ड युग में सवाल उठता है कि हम किस गिरफ्त में फंसने को विवश हैं?
सरकार द्वारा प्रस्तावित सेवाएं जरूरी हैं, इसलिए सभी को इन्हें मानना होगा. लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं यह दिखावा या अत्यधिक नियंत्रण हमारे और आने वाली पीढि़यों के लिए नुकसानदायक न साबित हो.

ईशासन और समाज में मोबाइल की बढ़ती स्वीकार्यता को देखते हुए भारत सरकार ने न केवल नागरिक सेवाओं, बल्कि कई अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाओं को भी मोबाइल के जरिए लोगों तक पहुंचाने का निर्णय लिया है. इस के लिए सरकार विभिन्न साझेदारों के साथ मिल कर इस योजना को साकार करने की कोशिश कर रही है.
सरकारी विभागों और एजेंसियों की वैबसाइटों को निर्देशित किया गया है कि ‘वन वैब’ दृष्टिकोण के अंतर्गत मोबाइल कंप्लाइंट का विकास किया जाए पर क्या यह इतना जरूरी हो गया कि इस के बिना काम नहीं हो सकता?

यह सवाल तृप्ति के मन में आया जब वह एक वाकए से गुजरी. हुआ यह कि वह 2 साल बाद अपने शहर पटना गई. कार का पौल्यूशन सर्टिफिकेट एक्सपायर हो गया तो नया बनाना था. नियम बदल गए थे, पहले कार चैक कर के शुल्क का भुगतान कर सर्टिफिकेट मिल जाता था पर इस बार 3 चक्कर लग गए और वजह फोन नंबर आधार से अपडेट करना था. आधार नंबर पर दर्ज फोन नंबर चूंकि पुराना बंद हो चुका था सो पौल्यूशन सर्टिफिकेट नहीं बन पाया.

दूसरे दिन सर्वर डाउन, तीसरे दिन दूसरा नंबर अपडेटेड हुआ, चौथे दिन काम हो पाया. मन में सवाल उठते रहे जब गाड़ी की आरसी संबंधित सभी जानकारी विभाग के पास है तो आधार नंबर, मोबाइल नंबर की बाध्यता क्यों? सरकार मोबाइल के उपयोग पर अनावश्यक क्यों जोर दे रही है?

हम किस के गुलाम हो रहे हैं

पुलिस, पावर, अथौरिटी को पावरफुल बनाने के लिए यह आम नागरिकों के लिए षड्यंत्र ही है. कहीं टैक्नोलौजी का विस्तार निजता का हनन न बन जाए.
इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में मोबाइल आधारित सेवाओं, जैसे एसएमएस (लघु संदेश सेवा), यूएसएसडी (असंरचित पूरक सेवा डेटा), आईवीआरएस (इंटरएक्टिव वौयस रिस्पौंस सिस्टम), सीबीएस (सेल ब्रौडकास्टिंग सर्विस), एलबीएस (स्थान आधारित सेवाएं) आदि के लिए जनरल इंटरफेस उपलब्ध होगा पर इस के दूसरे पहलुओं पर जैसे कि इस की सेवा की लागत अधिक हो सकती है, सुरक्षात्मक मामले, जोखिमों और गोपनीयता संबंधी चिंताओं से फोन और फोन नंबर की अनिवार्यता बोझ बन सकती है.

विरोधाभास

क्यूट परीक्षा में मोबाइल नंबर को आवश्यक रूप में दिखाया गया है. 12वीं के छात्रों के लिए सरकार ने मोबाइल कंपल्सरी किया है. सवाल यह कि कहीं हम नई तकनीक में आगे जाने की होड़ में किसी मेधावी कम आयवर्ग के बच्चे को दूर तो नहीं कर रहे.

यह सही है कि डिजिटल माध्यमों के सुविधाजनक होने के कारण वे औपचारिक शिक्षा व्यवस्था का एक हिस्सा बन गए हैं. हम चाहें या नहीं, आजकल छात्रों के लिए स्कूल में इंटरनैट और सोशल मीडिया का उपयोग जरूरी हो गया है.

यह जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था में मोबाइल आधारित शिक्षा से दूर रहें. मानसिक स्वास्थ्य और हमारे वातावरण के साथ संतुलित व्यवहार की भावना बहुत जरूरी है. आत्मनिर्भर व्यक्तित्व का विकास इसी रास्ते से संभव है. सरकार की बिना सोचसमझ के लागू की गई नीतियां समस्या का कारण बन रही हैं. यह हैरानी की बात है कि इस मुद्दे पर विपक्ष चुप है.

हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार गरीब छात्रों व लोगों की शिक्षा और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी ले और ये सेवाएं उन्हें मुफ्त में उपलब्ध कराए, न कि मोबाइल जैसी जरूरी सेवाओं के नाम पर उन्हें और अधिक आर्थिक बोझ में दबाए.

लेखिका : पम्मी सिंह ‘तृप्ति’

Casteism : सोशल मीडिया ने फिर पैदा किए जाति के टोले

Casteism : सोशल मीडिया कोई दूसरी दुनिया की चीज नहीं है, यह वह भोंडी, सड़ीगली जगह है जो आम लोग बाहर की दुनिया में भीतर से महसूस करते हैं और अपनी उलटी बेझिझक यहां उड़ेलते हैं. ये भड़ास के वे अड्डे हैं, जहां वे अपनी असल पहचान जाहिर करते हैं.

भारत एक ऐसा देश है जहां विविधता और संस्कृति की आड़ में ऊंची जातियां जातिवाद के बचाव में आने से नहीं कतराते. यहां अलगअलग भाषाएं, खानपान और रहनसहन का मोजैक बेशक है मगर सम्प्रदायों और जातियों के तनाव की ऊंची दीवारें भी हैं, जो सदियों से हमारे समाज को विभाजित करती आई हैं.

जाति व्यवस्था भारतीय समाज की एक ऐसी वास्तविकता है जिस ने न केवल हमारे गांवों और शहरों को बांटा है, बल्कि अब यह डिजिटल दुनिया में भी अपनी जड़ें जमा चुकी है. यहां तक कि सोशल मीडिया का मंच जाति के टोलों में बंट चुका है.

फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफौर्म्स पर जाति का प्रदर्शन, जातिवादी टिप्पणियां और जाति आधारित ग्रुप्स ने एक नए तरह के सोशल पार्टीशन को जन्म दिया है. गांवदेहातों में जैसे बामनटोला, ठाकुरबाड़ी, चमारटोला, प्रजापति महल्ला, बंसल व अहिरवाल गांव हुआ करते हैं, जिन के घाट, तालाब, पगडंडियां, नल सब बटे हुए होते हैं वैसे ही सोशल मीडिया पर जातियां बंट गई हैं. लोग अपनी जाति के मुताबिक अपने ग्रुप चुनते हैं, अपने दोस्त चुनते हैं, अपने लिए गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड को चुनते हैं, कई बार शादी के लिए लड़कालड़की इन्हीं ग्रुप्स के इश्तेहारों को देखते हैं.

सोशल मीडिया पर ऊंची जातियों के यूजर्स उपनाम के बहाने अपनी जातियों की घोषणा करते हैं और बताते हैं कि वे शर्मा, श्रीवास्तव, झा, सिन्हा, जोशी, मिश्रा, तिवारी, पांडे, चौहान, पवार, सोलंकी, राजपूत इत्यादि हैं और बाकियों से श्रेष्ठ हैं.

जातिवादी तो छोड़िए, कितने ही ऐसे कथित जातिविरोधी यूजर्स सोशल मीडिया पर जातीय उत्पीड़न संबंधित लंबीलंबी पोस्ट करते नहीं थकते पर जब उन के उपनाम की बात आती है तो गर्व से सिंह, उपाध्याय, बनर्जी, ठाकुर लगाते हैं. यह खुद को सुपीरियर या मसीहा देखने की प्रवर्ती है जो किसी आत्ममुग्द्धा से कम नहीं.

दूसरी तरफ यादव, कुर्मी, पटेल, जाट लठमार अंदाज में दिखाई देते हैं. वे अपनी शक्ति और अपनी संख्या का बखान करते हैं. इन जातियों के युवा इंस्टा रील्स में गैंग बना के घूमते दिखाई देते हैं, बुलेट पर यादव, जाट, गुर्जर लिखवा लेते हैं, तमंचे और दूनाली लहरा रहे होते हैं.

बचीकुची निचली जातियों की ऊपरी जातियां अब कुछ आर्थिक संपन्न होने के चलते जाति व्यवस्था को स्वीकार कर पंडो की दी जाति पर ही गर्व करने लगी हैं.

लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ पहचान का मामला है या फिर यह एक तरह का जातिवादी अहंकार है? जब लोग अपनी जाति को अपने नाम के साथ जोड़ कर प्रदर्शित करते हैं, खासकर सोशल मीडिया पर, तो क्या वे अनजाने में ही सामाजिक विभाजन को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं? बात सिर्फ उपनाम की नहीं बात उन सोशल मीडिया ग्रुप्स की है जिस से वे चाहेअनचाहे जुड़ते चले जाते हैं.

उदाहरण के लिए, फेसबुक पर ‘आल इंडिया ब्राह्मण सेवा मंच’ एक ग्रुप है. इसे लगभग 48 हजार लोग फौलो करते हैं. फौलोवर्स की लिस्ट देखें तो त्यागी, झा, दीक्षित, दुबे, पाठक, कौशिक जैसे उपनाम वाले दिखाई देते हैं. इसे चलाने वाले खुद को सोशल मीडिया एक्टिविस्ट कहते हैं. इन की क्या एक्टिविज्म है आइए देखते हैं.

यह ग्रुप हालिया 10 फरवरी को खेल जगत से जुड़ी जानकारी पोस्ट करता है. पोस्ट में रोहित शर्मा के शतक का जिक्र होता है. यह अपने कैप्शन में लिखता है, “भारतीय ब्राह्मण कप्तान रोहित शर्मा लंबे अरसे बाद शतक बना कर जब लौटे तो नजारा खुशी भरा था. कट्टर हिंदू ब्राह्मण शेर रोहित गुरुनाथ शर्मा.”

ऐसी ही एक पोस्ट हौकी प्लेयर राधिका शर्मा पर भी है, जिस में लिखा गया है, “ब्राह्मण समाज की बेटी राधिका शर्मा को राष्ट्रीय स्तर हौकी टीम में चयन पर बधाई. ब्राह्मण स्वर्ण समाज आप पर गर्व करता है.” यानी कि ब्राह्मण है वही गर्व की बात है.

यह एकमात्र ब्राह्मण ग्रुप नहीं है. फेसबुक पर ब्राह्मण टाइप करते ही दसियों ग्रुप लाइनअप हो जाते हैं. किसी के 2 लाख फौलोअर्स हैं तो किसी के 5 लाख. इन में बधाई संदेश और जातीय श्रेष्टता खूब दिखाई देती है. उम्मीद के मुताबिक़ यहां ऊंची जाति के युवा दिखाई देते हैं. यह हैरानी वाली बात नहीं कि हाल में बेंगलुरु बेस्ड आंत्रप्रेन्योर अनुराधा तिवारी ने एक्स पर अपने मसल्स फ्लेस्क्स करते हुए एक फोटो पोस्ट की जिस का कैप्शन ‘ब्राह्मण जीन्स’ लिखा. विवाद बढ़ा तो वह

सिर्फ ब्राह्मण ग्रुप ही नहीं, सोशल मीडिया पर दूसरी जातियों के ग्रुप्स की भी भरमार है. फेसबुक पर ‘यादव समाज’ टाइप करते ही ढेरों ग्रुप्स दिखाई पड़ते हैं जैसे, ‘यादव ब्रांड’, ‘अहीर औफ इंडिया’, ‘यादव किंगडम’. ऐसे ही ‘जाट समुदाय’, ‘जाट परिवार’, ‘जाट एकता’, ‘जाट के ठाट हुक्का और खाट’ जैसे ग्रुप्स आसानी से मिल जाएंगे. कोई भी जाति जो ब्राह्मवाद की देन है लगभग उन सब जातियों के ग्रुप्स फेसबुक पर दिखाई देते हैं. इन ग्रुप्स में लोग अपनी जाति के बारे में चर्चा करते हैं, अपने समुदाय की समस्याओं को उठाते हैं और कई बार दूसरी जातियों के खिलाफ नफरत फैलाते हैं.

ऐसा ही इंस्टाग्राम पर भी है. इंस्टाग्राम पर किसी जाति का कोई शख्स प्रशासनिक पद पर पहुंचा हो, कोई पार्षदी जीता हो, खेल से जुड़ा हो या गैंगस्टर ही क्यों न हो, उस के स्लो मोशन के साथ बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ रील में जाति विशेष के गाने चलने लगते हैं.

ऊंची जातियों के बहुत से गाने पहले ही सोशल मीडिया पर हैं, जैसे-

“हाथ में लेके लट्ठ बामन चाले से
देख के सारा सिस्टम थरथर काम्पे से
दब गया जो बामन तो बामन कौन कवेगा से”

इसी तरह निचली जातियों ने भी खासे गाने बना लिए हैं, जैसे

“जय भीम लिखा रे शीशे पे
वीआईपी नंबर कारा ते
थारे रेंज के बाहर बालक से
छोरे देख चमारा के”

इंस्टाग्राम पर निचली जाति के युवा ज्यादा वोकल नहीं हो पाए हैं. इन में अधिकतर वे ही एक्सप्रेसिव हुए हैं जो इन में भी मजबूत जातियां हैं और आगे बढ़ गए हैं, पर जितनी संख्या में भी हुए हैं उन्होंने अपनी जाति से जुड़े ग्रुप्स जरूर ज्वाइन किए हैं. जैसे, “बेस्ड चमार’, ‘जाटव किंग’, ‘औफिशियल वाल्मीकि समाज’ इत्यादि ये इंस्टाग्राम के कुछ ग्रुप्स हैं. फेसबुक में ऐसे ग्रुप्स की भरमार है क्योंकि वहां ऐसे युवाओं की एक्सेप्टेंसी ज्यादा है वहां रील्स नहीं बनानी पड़तीं और सुंदर दिखने का उतना प्रेशर नहीं है.

हालांकि जातियों के ग्रुप्स में होने वाली चर्चाएं कई बार सकारात्मक होती हैं, जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक उत्थान से जुड़े मुद्दे, लेकिन कई बार यहां जातिवादी टिप्पणियां और दूसरी जातियों के प्रति नफरत भरी बातें भी देखने को मिलती हैं. उदाहरण के लिए, ‘भीमटा मुक्त भारत’ ऐसा ग्रुप है जो निचली जातियों व मुस्लिमों को टार्गेट करने के लिए बनाया गया है. इस ग्रुप की अबाउटरी में व्याकरण गलतियों के साथ लिखा हुआ है, “मुसलिम सोचसमझ कर एड होना क्यों कि इस ग्रुप में हलाला पुत्रों का आना मतलब आते ही हिंदू धर्म अपनाना पड़ेगा.”

इस में एक पोस्ट में लिखा गया है, “भीमटादास (दलित) दोहा, क्रमांक 15, अज्ञानी, मूर्ख बेवकूफ सब भीमचट्टों के नाम, ज्ञान की बात पर भी गाली देना जिन का काम.” ऐसे ही ‘इंडिया अगेंस्ट रिजर्वेशन’ नाम से ग्रुप है जो दलितों को टारगेट करने के लिए बनाया गया है.

हालांकि एकदूसरे को टारगेट करने वाले ग्रुप्स सभी जातीयों द्वारा बनाए गए हैं, बावजूद धन, बल और सिस्टेमेटिक तरीके से ऊंची जातियां नीची जातियों को टारगेट करती हैं. दरअसल उन्हें अपनी बातें, ट्रेंड कराने की समझ और टैक्नीक अच्छे से पता हैं, वे संसाधन से लैस हैं, वे ज्यादा टैक्निकल हैं, एआई चलाते हैं, तो सोशल मीडिया पर हावी दिखाई देते हैं. वे यहां तक कि एक्स जैसे प्लेटफौर्म्स पर हैशटैग्स ट्रेंड चलाने की क्षमता रखते हैं.

आंकड़ा 5 साल पुराना है जिसे सीएसडीएस सर्वे ने पब्लिश किया था जो बताता है कि भारत में सोशल मीडिया जैसे, फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम पर सब ज्यादा कब्जा ऊंची जातियों का है.

सोशल मीडिया पर जातिवाद होने के पीछे कई कारण हैं. कोई कुछ तर्क दे सकता है कोई कुछ कह सकता है पर सब से बड़ा और बुनियादी कारण है बाहरी समाज में सोशल मीडिया से ज्यादा अनुपात में जातिवाद का व्याप्त होना है. सोशल मीडिया कोई दूसरी दुनिया की चीज नहीं है, यह वह भोंडा, सड़ा गला रूप है जो आम लोग बाहर की दुनिया में भीतर से महसूस करते हैं और अपनी उलटी बेझिझक यहां उड़ेलते हैं. ये भड़ास के अड्डे हैं. दरअसल अपनी असली पहचान जाहिर करने के आसियाने हैं.

Real Love Story : विस्थापन की कड़वी यादें और वेरा स्लोमिन का साथ

Real Love Story : कम्युनिस्ट क्रान्ति के बाद मात्र 20 साल की उम्र में व्लादिमीर नाबोकोव को रूस छोड़ कर जाना पड़ा. विस्थापन की यादें कड़वी जरूर थीं मगर उन्होंने अपनी लेखनी में इसे जाहिर करना बेहतर समझा और इस में उन की पत्नी वेरा ने उन की सहायता की.

साल 1917. रूस में 2 क्रांतियां हुईं, फरवरी क्रांति और अक्तूबर क्रांति. फरवरी क्रांति के बाद जार निकोलस द्वितीय का शासन यानी राजशाही खत्म हुआ. वह राजशाही जो ‘खूनी रविवार’ जैसी अनेकों घटनाओं के खून से रंगी हुई थी. राजशाही खत्म हुई तो मेंशेविकों (बुर्जुआ) की अंतरिम सरकार सत्ता में आई. मगर यह ज्यादा समय टिक नहीं पाई और अक्टूबर क्रांति में बोल्शेविकों (कम्युनिस्टों) ने सत्ता पलट दी. व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में एक कम्युनिस्ट सरकार बनी. इस के बाद रूस में गृहयुद्ध छिड़ गया, जिसे वैचारिक युद्ध भी कहा गया.

इस दौरान रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, खाद्य संकट गहरा गया और आम लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो गया. कम्युनिस्ट क्रांति के बाद कुलीनों व अमीरों को निशाना बनाया गया, क्योंकि बोल्शेविकों ने उन्हें ‘शोषक वर्ग’ के रूप में देखा.

इस की गाज व्लादिमीर नाबोकोव के परिवार पर भी गिरी जो इसी वर्ग से आते थे. उन के परिवार की संपत्ति जब्त कर ली गई और 1919 में उन के पास अपनी सुरक्षा के लिए भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. तब वे महज 20 साल के थे.

नाबोकोव और उन के परिवार ने पहले क्रीमिया से एक जहाज़ के जरिए रूस छोड़ा. इस्तांबुल की यात्रा की फिर वे यूरोप में बस गए. उन्होंने जरमनी, फ्रांस और अंत में अमेरिका में शरण ली. वही अमेरिका जो आज ट्रम्प युग में शरणार्थी भगाओ मोर्चे में जुटा है.

नाबोकोव ने क्रांति और बोल्शेविकों के प्रति गहरी नाराजगी जताई. वे कम्युनिस्ट विचारधारा के विरोधी बने और इसे फ्रीडम औफ स्पीच और क्रिएटिविटी के लिए खतरनाक माना. जिस का असर आगे चल कर जीवन पर पड़ा और वे चर्चित लेखक बने. उन के लेखन में क्रांति और उस के परिणामों के प्रति एक तीखी आलोचना दिखी. उदाहरण के लिए, उन के उपन्यास ‘द गिफ्ट’ (1938) में रूसी क्रांति और उस के बाद के समाज की जटिलताओं को दर्शाया गया.

अपने विस्थापन की कड़वी यादें भले उन्होंने जाहिर नहीं की मगर उन के लेखनों में यह छाप दिखाई देने लगी. उन के लिखे उपन्यास ‘द गिफ्ट’ और ‘स्पीक, मेमोरी’ (उन की आत्मकथा) में उन्होंने रूस छोड़ने के दर्द और निर्वासन के अनुभव को व्यक्त किया.

व्लादिमीर नाबोकोव की सब से प्रसिद्ध नोवल ‘लोलिता’ (1955) है, जो एक विवादास्पद उपन्यास है और साहित्यिक दुनिया में उन की पहचान बनाने में महत्वपूर्ण रही. मगर वे इस प्रसिद्धि तक शायद उस स्तर तक न पहुंच पाते यदि उन का साथ यहूदी परिवार से आने वाली वेरा स्लोनिम न देतीं.

वेरा स्लोनिम, व्लादिमीर नाबोकोव की पत्नी, उन के जीवन और लेखन में एक अहम भूमिका निभाती रहीं. उन की मुलाकात 1923 में बर्लिन में हुई थी. दोनों ने 1925 में शादी कर ली. वेरा स्लोनिम नाबोकोव की साहित्यिक सहयोगी, संपादक, अनुवादक और उन की सब से बड़ी प्रशंसक थीं. वे उन के लेखन को कम्पोज करती थीं, उन के व्याख्यानों को संगठित करती थीं और यहां तक कि उन के साथ यात्राएं भी करती थीं.

नाबोकोव ने अपनी कई किताबों को वेरा को समर्पित किया और उन के बीच का रिश्ता गहरा प्रेम और साझेदारी पर आधारित था. वेरा नाबोकोव के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण थीं कि उन के बिना उन की साहित्यिक उपलब्धियों की कल्पना करना मुश्किल है. नाबोकोव का वेरा के लिए प्यार और समर्पण उन के द्वारा वेरा को लिखे पत्रों से ही जाहिर हो जाता है, जिसे आज की रील्स में डूबे युवाओं को जरूर पढ़ना चाहिए.

(बौक्स)

मेरी प्यारी, मेरी जान, मेरी जिंदगी, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. तुम मेरे बिना कैसे रह सकती हो? मैं तुम्हारे साथ इतना अभ्यस्त हो चुका हूं कि अब खुद को खोया हुआ और खाली महसूस करता हूं. तुम मेरी जिंदगी को कुछ हल्का, अद्भुत, इंद्रधनुषी बना देती हो. तुम हर चीज पर खुशी की एक चमक डाल देती हो, कभी तुम धुंधले गुलाबी, मुलायम होती हो, कभी गहरी, पंखों वाली और मैं नहीं जानता कि मुझे तुम्हारी आंखें कब ज्यादा पसंद हैं जब वे खुली होती हैं या बंद. अभी ग्यारह बजे हैं मैं तुम्हें इस दूरी में देखने की कोशिश कर रहा हूं.

आज मैं तुम्हारे लिए अपनी तड़प के अलावा कुछ नहीं लिख सकता. मैं उदास और डरा हुआ हूं. मूर्खतापूर्ण विचार मन में घूम रहे हैं कि तुम मेट्रो से कूदते समय ठो कर खा जाओगी, या कोई तुम से सड़क पर टकरा जाएगा. मैं नहीं जानता कि इस हफ्ते को कैसे काटूंगा.

मेरी कोमलता, मेरी खुशी, मैं तुम्हारे लिए कौन से शब्द लिखूं? कितना अजीब है कि भले ही मेरा जीवन का काम कागज पर कलम चलाना है, मैं यह नहीं जानता कि तुम्हें कैसे बताऊं कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं, तुम्हें कितना चाहता हूं. मैं तुम्हारे साथ, तुम में तैर रहा हूं, जल रहा हूं और पिघल रहा हूं.

जब हम पिछली बार कब्रिस्तान में थे, मैं ने इसे इतनी गहराई से और स्पष्ट रूप से महसूस किया. तुम सब जानती हो, तुम जानती हो कि मृत्यु के बाद क्या होगा. तुम इसे बिल्कुल सरलता और शांति से जानती हो जैसे एक चिड़िया जानती है कि डाली से फड़फड़ाते हुए वह उड़ेगी और नीचे नहीं गिरेगी और इसीलिए मैं तुम्हारे साथ इतना खुश हूं, मेरी प्यारी. और यह भी तुम और मैं इतने खास हैं जो चमत्कार हम जानते हैं, कोई नहीं जानता और कोई भी हमारी तरह प्यार नहीं करता.

तुम अभी क्या कर रही हो? किसी कारण से मुझे लगता है कि तुम अध्ययन कक्ष में हो. तुम उठी हो, दरवाजे तक गई हो, तुम दरवाजे के पंखों को एक साथ खींच रही हो और एक पल के लिए रुकी हो—यह देखने के लिए कि क्या वे फिर से अलग हो जाएंगे. मैं थक गया. मैं बहुत अब आराम चाहता हूं. कल मैं तुम्हें रोजमर्रा की चीजों के बारे में लिखूंगा. मेरा प्यार.

Education Department : करप्शन की भेंट चढ़ते सहायता प्राप्त स्कूल

Education Department : सहायता प्राप्त स्कूलों का प्रबंधन शिक्षा विभाग और खर्चे सरकार के जिम्मे होते हैं. बावजूद इन में से कई स्कूल डोनेशन और करप्शन की भेंट चढ़े होते हैं. ऐसे मामले बहुत हैं पर कार्यवाही कुछ नहीं.

शिक्षा विभाग (डिपार्टमेंट औफ एजुकेशन) के तहत सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में भर्ती और प्रवेश के मामलों में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है. दिल्ली के स्कूल दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियमों के तहत आते हैं, जिन का प्रबंधन शिक्षा विभाग द्वारा किया जाता है. इस के अनुसार, हर नियमित शिक्षक को 7वीं वेतन आयोग के मानकों के हिसाब से वेतन मिलता है. दिल्ली के स्कूलों के नियमित शिक्षकों का वेतन औसतन 50,000 रुपए से 1.8 लाख रुपए तक होता है. शिक्षा विभाग के तहत सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन का 95% खर्च सरकार वहन करती है, जबकि 5% स्कूल सोसाइटी द्वारा दिया जाता है.

नियमों का जम कर उल्लंघन

मानदंडों के अनुसार, सहायता प्राप्त स्कूलों को छात्रों से किसी भी रूप में डोनेशन या शुल्क लेने की अनुमति नहीं है, लेकिन यह नियम अधिकांश स्कूलों द्वारा उल्लंघन किया जाता है. ये स्कूल प्रवेश के समय भारी डोनेशन एकत्रित करते हैं और मासिक भुगतान के रूप में फीस के बदले डोनेशन लेते हैं. बहुत बार यह कहते हैं कि स्कूल में पंखे, टाइल्स या टोयलेट बनाने के लिए पैसों की जरूरत है जिस के एवज में ये पैसे मांगते हैं. प्रबंध समिति के भ्रष्ट सदस्य इन फंड्स का बड़ा हिस्सा हड़प लेते हैं और इस का रिकौर्ड भी नहीं रखते.

यह विडंबना है कि सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत स्कूल सोसाइटी बिना किसी जवाबदेही, निगरानी या नियंत्रण के चलाए जाते हैं. सोसाइटी रजिस्ट्रार द्वारा इन सोसाइटियों पर कोई निगरानी नहीं रखी जाती है, जो अपनी वार्षिक रिटर्न, औडिट रिपोर्ट और प्रबंध समिति के मिनट्स जमा नहीं करतीं या अपनी सामान्य बैठकें नहीं आयोजित करतीं.

स्कूल सोसाइटी पर आयकर और जीएसटी लागू नहीं होने से स्कूलों में व्यावसायिक गतिविधियों के बावजूद उन के लेखाजोखा में विसंगतियां आती हैं. एक सामान्य स्कूल की वार्षिक आय और खर्च 5 से 10 करोड़ रुपए के बीच होता है और बड़े स्कूलों में ये आंकड़े दोगुने हो जाते हैं. शिक्षा विभाग के पास स्कूल सोसाइटी और उन के कार्यों पर ज्यादा नियंत्रण नहीं है.

स्कूल सोसाइटी के पदाधिकारी वे होते हैं जो उच्च-शिक्षित और उच्च वेतन पाने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं. शिक्षा विभाग ने प्रबंध समिति के सदस्य के लिए न्यूनतम योग्यता स्नातक निर्धारित की है, लेकिन कई स्कूलों में तो अध्यक्ष और कार्यालयधारी भी स्नातक नहीं होते. शिक्षा विभाग ने स्कूलों की प्रबंध समितियों पर भर्ती, कर्मचारी मूल्यांकन और अनुशासनात्मक कार्यवाही जैसी जिम्मेदारियां डाली हैं, लेकिन इन के मूल्यांकन और नियंत्रण के लिए कोई ठोस ढांचा नहीं है.

जोनल डिप्टी डायरेक्टर मुख्य रूप से सरकारी स्कूलों के कामों में लगे रहते हैं, जबकि निजी स्कूलों की अपनी रुचियां होती हैं, लेकिन सहायता प्राप्त स्कूलों को इस मामले में छोड़ दिया जाता है.

भ्रष्टाचार का अड्डा

कई सहायता प्राप्त स्कूलों की प्रबंध समितियां भ्रष्टाचार और अक्षमता का अड्डा बन गई हैं, जिस कारण स्कूलों में वित्तीय गड़बड़ी, गलत लेखाजोखा और मनमाने फैसले होते हैं, जिस से बच्चों का भविष्य प्रभावित हो रहा है.

अल्पसंख्यक स्कूलों के मामलों में यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है, क्योंकि शिक्षा विभाग के पास नियुक्ति और प्रशासन पर कोई नियंत्रण नहीं होता, जो उन के विशिष्ट संस्कृति और मूल्यों को बनाए रखने में मदद कर सके. यह एक तरह का बहाना भी बन जाता है अपनी मनमानी चलाने का.

दुर्भाग्यवश, स्वायत्तता का दुरुपयोग हो रहा है और यह कुछ लोगों के नियंत्रण में तानाशाही का रूप ले चुका है. शिक्षा विभाग के नियंत्रक भी अधिकार का गलत उपयोग कर रहे हैं, जिस से सामंजस्यपूर्ण कार्यवाही की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.

स्वायत्तता का दुरुपयोग

शिक्षा विभाग ने अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए भर्ती और पदोन्नति जैसे मानदंडों की निगरानी के लिए कोई उचित तंत्र नहीं बनाया है, जिस से स्वायत्तता का दुरुपयोग हो रहा है और स्कूल भ्रष्टाचार का केंद्र बनते जा रहे हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक सूत्र ने बताया कि दिल्ली के मंदिर मार्ग स्तिथ बंगाली स्कूल में भी इन दिनों खूब मनमानी हो रही है. बंगाली सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बिना अनुमति के डोनेशन लेने और मासिक भुगतान के बदले फीस लेने का आरोप है, जिस में 45 कर्मचारियों की सीधी भर्ती का मामला है.बिना किसी जवाबदेही और नियंत्रण के.

सूत्रों के मुताबिक इस मामले में प्रबंध समिति का गठन ठीक से नहीं किया गया. 50% पद रिक्त है और सभी शक्तियां अध्यक्ष अरुण घोषाल के पास ही हैं, जो स्कूल के पूर्व मुख्य लिपिक हैं. यहां तक कि प्रबंध समिति के सदस्य भी स्नातक नहीं हैं. प्रबंध समिति प्रत्येक भर्ती के लिए 20-25 लाख रुपए की रिश्वत ले रही है. जिस की कंप्लेंट सदतपुर बंगीय समाज द्वारा पिछले साल दिसंबर 2024 को की गई थी,जिस की एकएक कौपी शिक्षा निदेशक, ईडी और सीबीआई को भी संलग्न की गई.

सूत्र कहते हैं कि स्कूल में अभी कोई आधिकारिक प्रिंसिपल नहीं है और स्कूल प्रभारी संजय योगी और एक प्रभावशाली सहायक शिक्षक मंजीत राणा उम्मीदवारों से रिश्वत ले रहे हैं.जब इस मामले को ले कर हम ने संजय जोगी से बात की तो उन्होंने बताया कि ये सबआरोप गलत हैं.जहां तक भर्ती का मामला है तो इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है.

विडंबना यह है कि इस स्कूल का कोई भाषाई अल्पसंख्यक दर्जा नहीं है और अब तक की सभी भर्तियां सामान्य भर्ती मानदंडों के तहत की गई हैं. प्रबंध समिति शिक्षा विभाग के नियंत्रण को दरकिनार कर रही है, लेकिन यह देखना बाकी है कि वेतन निर्धारण के समय क्या होगा. वर्तमान में भर्तियों के खिलाफ सतर्कता जांच चल रही है.

रायसीना बंगाली सीनियर सेकेंडरी स्कूल (सी आर पार्क) में भी स्थिति अलग नहीं है, जहां अध्यक्ष प्रणब शाश्मोल (जो स्नातक नहीं हैं) और मुख्य लिपिक चिन्मय सरकार भर्ती के बदले भारी रिश्वत ले रहे हैं. स्कूल पहले ही बैंक में डिफौल्टर है और पूरा स्कूल भवन बैंक द्वारा कब्जे में लिया जा सकता है.

यहां तक कि दोनों स्कूलों के अध्यक्ष नियमित रूप से एकदूसरे से संपर्क में हैं और अपनी अवैध गतिविधियों को योजना बना रहे हैं.

भर्ती में धांधली

यह सिर्फ कुछेक मामले नहीं हैं. साल 2023 में सरकार के सतर्कता निदेशालय ने सहायता प्राप्त स्कूलों में पिछले 10 सालों में भर्ती प्रक्रिया की जांच की सिफारिश की. निदेशालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एक साल में ही फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बड़े मामले सामने आए.

इन में से एक मामला वी एस एग्रीकल्चर सीनियर सेकेंडरी स्कूल खेड़ा गढ़ी का था, जिसे वैदिक संस्कृति एग्रीकलचर सोसाइटी द्वारा चलाया जा रहा था. सीबीआई ने प्रथम स्तर पर जांच के बाद शिक्षक प्रवीण बाज, चित्ररेखा, सोनिया, प्रतिभा, पिंकी आर्य व मनीष कुमार के मामले में फर्जी दस्तावेजों के उपयोग का पता लगाया था.

दूसरा मामला, दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने पकड़ा. यह मामला 2008 बैच के निलंबित आईएएस उदित प्रकाश राय की पत्नी शिल्पी राय द्वारा सहायता प्राप्त स्कूल में नौकरी पाने के दस्तावेजों की जांच के बाद सामने आया था.

बेशक दिल्ली के शिक्षा के क्षेत्र में सहायता स्कूलों का भी योगदान माना जाता है. दिल्ली में लगभग 200 से अधिक ऐसे स्कूल हैं. इन में कुल मिला कर 8000 के करीब शिक्षक हैं. एकएक स्कूल में 40 से ले कर 50 तक शिक्षकों के पद सृजित हैं. यहां पद रिक्त भी हैं.

समयसमय पर यहां पद भरे जाने के लिए प्रक्रिया चलती रहती है. कई स्कूलों में भर्ती प्रक्रिया को ले कर कई बार विवाद हुआ है मगर जांच के नाम पर खानापूर्ति होती रही है.

बात सिर्फ दिल्ली के सहायता प्राप्त स्कूलों की नहीं है, अन्य राज्यों में भी यही हाल है. इस तरह के घोटालों से स्कूल या प्रशासन का तो कुछ नहीं बिगड़ता पर जो छात्र उन स्कूलों में पढ़ते हैं उन के भविष्य पर बट्टा लग जाता है. जब स्कूल ही करप्शन की भेंट चढ़ा हो वहां छात्रों से कैसी उम्मीद करें कि वे देश व समाज को संवारेंगे.

Hindi Kahani : डबल सैलिब्रेशन – क्या मां को खुशियां दे पाया अंगद

Hindi Kahani : मां 50 प्लस हैं लेकिन जिंदगी में खुशियों की हकदार तो वे भी हैं. खुशियां और इच्छाएं उम्र की मुहताज नहीं होतीं. हर उम्र के अपने अलग एहसास होते हैं. उन्हें वही समझ सकता है जो उम्र के उस दौर से गुजरा हो. जिंदगी में सुखद लमहों को बारबार जीने की तमन्ना तो कोई हमउम्र ही समझ सकता है. समाज के डर से मां की जिंदगी में आती खुशियों को क्यों रोका जाए?

जैसे ही अंगद के बौस चौहान सर ने उस के प्रमोशन की खबर अनाउंस की, सारा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा क्योंकि प्रमोशन के साथसाथ उसे औफिस की तरफ से एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में 2 साल के लिए शिकागो भेजा जा रहा था. अंगद की टीमवर्क के नेचर व जौब के प्रति उस की डैडिकेशन की आदत ने सिर्फ 2 साल में ही उसे इस प्रमोशन का हकदार बनाया था. उस के प्रमोशन से सभी बहुत खुश थे.
‘‘वाऊ, यू आर सो लकी अंगद, तेरी तो लौटरी खुल गई, यार,’’ उस के खास दोस्त नितिन ने उस के कंधे पर धौल जमाते हुए कहा. उस के कहने पर अंगद थोड़ा सा मुसकराया.
‘‘चल, पार्टी दे बढि़या सी,’’ नितिन आगे बोला.
तभी चौहान सर अंगद की तरफ आए, ‘‘क्या हुआ यंग बौय, इतनी बड़ी खुशखबरी सुन कर तुम खुश नहीं नजर आ रहे, एनी प्रौब्लम?’’
‘‘नो, नो सर, नथिंग,’’ कहते हुए न चाहते हुए भी उस की जबान लड़खड़ा गई थी.
‘‘नो, एवरीथिंग इज नौट ओके, तुम्हारा चेहरा कुछ कह रहा है और आंखें कुछ और ही बयां कर रही हैं. तुम अपनी प्रौब्लम शेयर कर सकते हो. शायद, मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं.’’
‘‘ओके सर. थैंक्स, सो नाइस
औफ यू.’’
‘‘घर जाओ, पार्टी करो और अपनी इस खुशी को एंजौय करो,’’ चौहान सर ने कहा.
चौहान सर के यह कहने पर अंगद मिठाई का डब्बा ले कर घर पहुंचा और मां को गुड न्यूज सुनाई, ‘‘मां, तेरी बरसों की मेहनत ने रंग दिखा दिया है. मुझे आज प्रमोशन मिला है और साथ ही, 2 साल के लिए विदेश जाने का मौका भी.’’
मां मानसी के चेहरे पर प्रमोशन की बात सुन कर खुशी की लहर दौड़ गई लेकिन दूसरे ही क्षण 2 साल के लिए शिकागो जाने की बात सुन कर चेहरे पर कई रंग आए और गए.
मानसी अपनी आंखों की नमी छिपाते हुए बोली, ‘‘इतने लंबे समय के लिए जा रहा है तो शादी कर के मीरा को भी साथ ले कर जा. वह बेचारी तो तेरे लौटने के इंतजार में 2 साल में सूख कर आधी हो जाएगी.’’
‘‘और तुम्हारा क्या मां, तुम भी तो इतने बड़े घर में एकदम अकेली पड़ जाओगी.’’
मां चुप रह गई यह सुन कर. अंगद मां की आंखों की नमी देख कर परेशान हो गया, उसे सम?ा ही नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में वह क्या निर्णय ले. उस ने मीरा को फोन मिलाया. उसे मालूम था कि मीरा बहुत प्रैक्टिकल है, वह इस परिस्थिति का कोई न कोई हल जरूर निकाल ही देगी.
मीरा अंगद की मंगेतर थी. अंगद और मीरा का रिश्ता अंगद के पिता रमाकांत ने अपने दोस्त विश्वनाथ से बात कर के बचपन में ही पक्का कर दिया था. मीरा व अंगद भी युवावस्था तक आतेआते अपने इस रिश्ते को स्वीकार कर चुके थे. मीरा भी एमबीए कर के एक मल्टीनैशनल कंपनी में मार्केटिंग हैड के पद पर कार्यरत थी.

अंगद के पिता की मृत्यु जब वह 15 साल का था, तभी हो गई थी एक सड़क दुर्घटना में. मानसी के सुखी दांपत्य को दुख की काली छाया ने ढक लिया था. मानसी ने अंगद के सुनहरे भविष्य की खातिर इस दुर्घटना को विधि का विधान मान कर अपने मन को सम?ा लिया था.
मानसी अधिक शिक्षित नहीं थी. लेकिन व्यावहारिकता व कर्मठता कूटकूट कर भरी थी उस में. बचपन में सीखे बुनाई के हुनर को तराशा. मानसी के हाथ के बुने स्वेटर मार्केट के रेडीमेड स्वेटरों को मात देते. मानसी ने मीरा की मदद से अपने इस काम में बुनाई में रुचि रखने वाली कई महिलाओं को जोड़ लिया जिस से मार्केट से मिलने वाले और्डर को सही समय पर पूरा किया जा सके. थोड़ा समय जरूर लगा लेकिन कुछ ही दिनों में काम काफी बढ़ गया और सफलता मिलने लगी.

अपने व्यस्त कार्यकारी जीवन में भी उस ने अंगद की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखा और देखतेदेखते अंगद ने इंजीनियरिंग पास कर के एमबीए भी कर लिया व नामी कंपनी हिंदुस्तान लीवर में नौकरी भी मिल गई.
मीरा का अंगद के घर जबतब आनाजाना लगा रहता था. दोनों ही अपनीअपनी हर छोटीबड़ी बात शेयर करते, फोन पर घंटों बात करते और फ्यूचर के रंगीन सपने बुनते. वीकैंड दोनों साथ ही गुजारते कभी लौंग ड्राइव पर जा कर तो कभी रोमांटिक फिल्म देख कर.
अंगद ने फोन कर के मीरा को अपने प्रमोशन व शिकागो जाने की बात शेयर की तो मीरा खुशी से उछल पड़ी, ‘‘ओह, व्हाट अ प्लेजेंट सरप्राइज. मुझ से तो रुका ही नहीं जा रहा. मैं औफिस से सीधे तुम्हारे घर आ रही हूं इस खुशी को सैलिब्रेट करने के लिए.’’
मीरा के आने पर अंगद ने बताया कि मां चाहती है, शिकागो जाने से पहले शादी कर के तुम्हें भी साथ ले कर जाऊं.
‘‘वह सब तो ठीक है, यदि मैं और तुम दोनों चले गए तो मां बेचारी तो एकदम अकेली पड़ जाएंगी न.’’
‘‘हां, मैं भी तो तब से यही सोच रहा था और प्रमोशन व शिकागो की ट्रिप पर जाने की न्यूज को एंजौय ही नहीं कर पा रहा था. क्या शिकागो जाने का औफर ठुकरा दूं?’’ अंगद ने पूछा.
‘‘अरे नहींनहीं, समय का दरवाजा हर समय सब के लिए नहीं खुलता. तुम तो इस मौके को लपक लो दोनों हाथों से, बाकी सब मुझ पर छोड़ दो. रही मेरी और तुम्हारी शादी की बात, सो मेरी एक शर्त है, मैं तुम से शादी
तभी करूंगी जब तुम मां को भी सैटल कर दो.’’
‘‘मतलब?’’ अंगद ने चौंकाते हुए कहा.
‘‘मतलब सीधा सा है, अपनी शादी करने से पहले मां की भी शादी करा दो.’’
‘‘यह क्या अंटशंट बोल रही हो. नातेरिश्तेदार सब क्या कहेंगे ये सब सुन कर. कुछ भी बोल देती हो बिना सोचेसमझे. यह कोई उन की शादी करने की उम्र है क्या? तुम भी कभीकभी सिरफिरों जैसी बातें करती हो. मां भला मानेगी शादी के लिए इस उम्र में?’’
‘‘आजकल यह सब कोई नई बात नहीं है,’’ मीरा ने जवाब दिया, ‘‘हमतुम तो शादी कर के उड़नछू हो जाएंगे लेकिन मां की तो सोचो. मां आसानी से तो राजी नहीं होगी परंतु मैं उन्हें मना लूंगी और फिर, मां की अभी उम्र ही क्या है, मुश्किल से 50-55 वर्ष के बीच की होगी. सोचो, कितना संघर्ष कर के मां ने तो तुम को इस मुकाम तक पहुंचाया है.
‘‘जिंदगी में खुशियों की हकदार तो वे भी हैं. खुशियां और इच्छाएं उम्र की मुहताज नहीं होतीं. हर उम्र के अपने अलगअलग एहसास होते हैं. उन्हें वही समझ सकता है जो उम्र के उस दौर से गुजरा हो. जिंदगी में सुखद लमहों को बारबार जीने की तमन्ना तो कोई हमउम्र ही समझ सकता है. लोग क्या कहेंगे जैसे पूर्वाग्रह से डर कर क्या हम मां की जिंदगी में आती खुशियों को नहीं रोक रहे. क्या फर्क पड़ेगा किसी को यदि मां बाकी की अपनी जिंदगी हंस कर गुजारें तो. जिंदगी इतनी कठोर भी नहीं होती कि उम्मीद की संभावनाओं को अनदेखा कर दिया जाए.’’
मीरा की कही बातों का अंगद पर काफी प्रभाव पड़ रहा था.

‘‘तुम को मेरे पापा के दोस्त शर्मा
अंकल याद हैं न. अचानक
मीरा ने चहकते हुए कहा,’’ आंटी के गुजर जाने के बाद एकदम अकेले पड़ गए थे. फिर बहूबेटे उन्हें अपने साथ जिद कर के अमेरिका ले गए. जाने से पहले अंकल यहां की सारी प्रौपर्टी बेच कर गए थे. मन में था कि अब शेष लाइफ बच्चों के साथ उन के पास रह कर ही गुजारेंगे लेकिन 6 महीने में ही उन का मोहभंग हो गया. अकेलेपन से तो वहां भी पीछा नहीं छूटा. हालांकि बेटाबहू अपनी तरफ से भरसक प्रयास करते लेकिन जौब की मजबूरियां उन्हें बांधे रखतीं. चाहते हुए भी वे दोनों शर्मा अंकल को उतना समय नहीं दे पाते.
‘‘शर्मा अंकल के लिए इस उम्र में वहां की लाइफस्टाइल अपनाना मुसीबत सा लगता. काफी सोचविचार के बाद अपने देश इंडिया आने का निर्णय कर लिया, ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं’ वाली कहावत उन्हें याद आई.
‘‘हां, इंडिया वापस आ कर अपने लिए एक लाइफ पार्टनर के साथ शेष लाइफ गुजारने का सपना जरूर
साथ लाए.
‘‘एक दिन पापा के पास आ कर जब अपने लिए लाइफ पार्टनर तलाशने की बात की तो पहले तो पापा को उन की बातों पर यकीन नहीं हुआ, पापा ने पूछा, ‘क्या तू सच में सीरियस है इस शादी की बात को ले कर?’
‘‘उन्होंने कहा, ‘पहले मुझे कुछ दिन कहीं पेइंगगेस्ट बन कर रहने का इंतजाम करना होगा, फिर आगे का प्लान पूरा करना है.’

अंगद, मेरे मन में आइडिया आया है, सोचो, तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा रूम तो खाली हो ही जाएगा और मां अकेली हो जाएंगी. सो, क्यों न शर्मा अंकल को तुम्हारे घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ्ट करवा दें. घर में रौनक भी रहेगी और मां का अकेलापन भी नहीं रहेगा. दोनों साथ रहेंगे तो मेलजोल भी बढ़ेगा और एकदूसरे की पसंद व नापसंद भी जान जाएंगे. फिर साथ रहतेरहते कौन जाने इन दोनों का मन भी मिल जाए.’’
अंगद को मीरा का आइडिया क्लिक कर गया.
अंगद के जाने के बाद मीरा ने उस की मां मानसी से बात कर के शर्मा अंकल को उस के घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ्ट करवा दिया. कुछ दिनों तक तो शर्माजी मानसी से सिर्फ जरूरतभर की ही बातचीत करते, जिस का जवाब मानसी हां या हूं में ही देती.

मानसी सरल स्वभाव की महिला थी. उसे बेवजह किसी से बात करना पसंद नहीं था. शायद, इस का कारण उस की परिस्थितियां थीं. उस का अधिकांश समय अपनी बुनाई के और्डर पूरा करने में ही व्यतीत होता.
शर्माजी को मानसी का ऐसा व्यवहार नागवार लगता. वे चाहते कि मानसी उन से खुल कर बातचीत करे, उन के साथ हंसेबोले, घूमने जाए. इस के लिए शर्माजी मानसी को विदेश का उदाहरण दे कर बताते कि वहां लोग लाइफ को कैसे एंजौय करते हैं.
एक दिन वे बोले, ‘‘मानसी, तुम को अपनेआप को सिर्फ काम में ही नहीं मगन रहने देना चाहिए. यू नो, मानसी, लाइफ में एंजौयमैंट भी बहुत जरूरी है. तुम अपनी इस बोरिंग लाइफ से बाहर निकलो. घर के पास की टौकीज में एक पुरानी मूवी लगी है ‘हम दिल दे चुके सनम.’ मैं ने कल की 2 टिकटें बुक करवा ली हैं. कल हमतुम दोनों पहले मूवी देखने जाएंगे, फिर किसी अच्छे रैस्तरां में डिनर करेंगे. तुम अच्छी तरह तैयार हो कर चलना.’’
मानसी को शर्माजी का उस की लाइफ में इस तरह घुसते जाना व जिंदगी जीने के बारे में समयसमय पर अपने सुझाव देना नागवार लगने लगा. हद तो तब हो गई जब शर्माजी एक दिन बाहर से पी कर लौटे और घर में घुसते ही उन्होंने मानसी का हाथ पकड़ लिया. उस समय मानसी ने उन को धक्का दे कर अपनेआप को बचाया और अपने रूम में जा कर दरवाजा बंद कर लिया.
मानसी उस पूरी रात सो न सकी. उस ने मन ही मन शर्माजी को अपने घर से निकालने के बारे में सोचा. दूसरे दिन जब वह अपनी बुनाई का औडर देने दुकान पर गई तो उस दुकान के मालिक ने उसे टोका, ‘‘क्या बात है, आप कुछ परेशान लग रही हैं. यदि आप चाहें
तो अपनी समस्या मुझ से शेयर कर सकती हैं.’’
मानसी चूंकि उस दुकानदार को अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि बुनाई का व्यवसाय शुरू करने में इन मिस्टर यादव ने काफी मदद की थी, सो यादवजी से घरेलू ताल्लुकात हो गए थे. मानसी ने शर्माजी के अब तक के व्यवहार के बारे में सारी बातें यादवजी को बता दीं, साथ ही, यह इच्छा भी जाहिर कर दी कि वह अब शर्माजी को अपने घर से निकालना चाहती है.

मिस्टर यादव के उस शहर में कई बड़े शोरूम थे, उस का उठनाबैठना कई रसूखदारों से था. उस ने मानसी को विश्वास दिलाया कि इस शर्मा नाम की मुसीबत से छुटकारा दिलाने में वह उस की पूरी मदद करेगा.
वादे के मुताबिक यादव ने शर्माजी को मानसी के घर से निकलवा दिया. यादव 45-50 वर्ष की उम्र का आदमी था, सो अब मानसी के घर उस का आनाजाना बराबर लगा रहता. यादव की पत्नी एक फैशनेबल महिला थी, किटी, जिम, मौल में शौपिंग व सैरसपाटा उस की आदतों में शामिल था. यादव का मानसी के घर आनाजाना लगा रहता, कभी पत्नी के साथ तो कभी अकेले भी आ जाता. मानसी उस के एहसान तले दब सी गई थी, सो कुछ कह भी न पाती.

अड़ोसपड़ोस के लोगों ने जब यादव को इस तरह खुलेआम उन के घर आतेजाते देखा तो उन को यह सब अच्छा नहीं लगा. यादव की फैशनपरस्त बीवी ने मानसी को अपने साथ ले जा कर किटी पार्टी का मैंबर बनवा दिया था. इतना ही नहीं, वह अपने साथ मानसी को शौपिंग करवाने के लिए मौल भी ले जाने लगी. देखा जाए तो मानसी एक तरह से उन के हाथों की कठपुतली सी बन गई थी. यादव ने व्यावसायिक रूप से उस की इतनी मदद की थी कि वह कुछ कह ही न पाती.
जब मीरा को इन सब बातों का पता चला तो उस ने इस बाबत अंगद से फोन पर बात कर के सारा हाल उसे बताया. अंगद ने सारी बातें सुनने के बाद कहा, ‘‘मीरा, क्या टैलीपैथी है मेरेतुम्हारे बीच, इनफैक्ट मैं भी अब चाहता हूं कि मां का घर भी बसा ही दूं ताकि आसपड़ोस वालों की उंगलियां उठनी बंद हो जाएं.
‘‘यहां मेरी मुलाकात मेरे बचपन के दोस्त समीर से अचानक हुई. वह भी अपने डैड के अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी जानपहचान में शादी करवा के उन का घर फिर से बसाना चाहता है.
‘‘मैं ने मां की बाबत जब सबकुछ बताया तो वह बहुत खुश हुआ, कहने लगा, ‘अरे, हम दोनों तो एक ही कश्ती में सवार हैं, फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द हम दोनों इंडिया आने का प्रोग्राम बनाते हैं. अब तो मेरे डैड व तेरे सिर पर सेहरा एकसाथ ही बंधेगा.’ यानी डबल सैलिब्रेशन.’’ और मीरा सैलिब्रेशन की तैयारी में जुट गई.

लेखिका : माधुरी

Hindi Story : फोन कॉल्स – आखिर कौन था देर रात मीनाक्षी को फोन करने वाला

Hindi Story : ‘ट्रिंग ट्रिंग… लगा फिर से फोन बजने,‘ फोन की आवाज से पूरा हौल गूंज उठा. आज रात तीसरी बार फोन बजा था. उस समय रात के 2 बज रहे थे. मीनाक्षी गहरी नींद में सो रही थी. उस के पिता विजय बाबू ने फोन उठाया. उस तरफ से कोई नाटकीय अंदाज में पूछ रहा था, ‘‘मीनाक्षी है क्या?’’

‘‘आप कौन?’’ विजय बाबू ने पूछा तो उलटे उधर से भी सवाल दाग दिया गया, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘यह भी खूब रही, तुम ने फोन किया है और उलटे हम से ही पूछ रहे हो कि मैं कौन हूं.’’

‘‘तो यह मीनाक्षी का नंबर नहीं है क्या? मुझे उस से ही बात करनी है, मैं बुड्ढों से बात नहीं करता?’’

‘‘बदतमीज, कौन है तू? मैं अभी पुलिस में तेरी शिकायत करता हूं.’’

‘‘बुड्ढे शांत रह वरना तेरी भी खबर ले लूंगा,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

विजय बाबू गुस्से से तिलमिला उठे. उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उन का मन हुआ कि जा कर दोचार थप्पड़ लगा दें मीनाक्षी को.

‘2 दिन से इसी तरह के कई कौल्स आ रहे हैं. पहले ‘हैलोहैलो’ के अलावा और कोई आवाज नहीं आती थी और आज इस तरह की अजीब कौल…’ विजय बाबू सोच में पड़ गए.

मीनाक्षी ने अच्छे नंबरों से 12वीं पास की और एक अच्छे कालेज में बी कौम (औनर्स) में दाखिला लिया था. पहले स्कूल जाने वाली मीनाक्षी अब कालेज गोइंग गर्ल हो गई थी. कालेज में प्रवेश करते ही एक नई रौनक होती है. मीनाक्षी थी भी गजब की खूबसूरत. उस के काफी लड़केलड़कियां दोस्त होंगे, पर ये कैसे दोस्त हैं जो लगातार फोन करते रहते हैं तथा बेतुकी बातें करते हैं.

अगली सुबह जब विजय बाबू चाय की चुसकियां ले रहे थे और उधर मीनाक्षी कालेज के लिए तैयार हो रही थी, तभी विजय बाबू ने मीनाक्षी को बुलाया, ‘‘मीनाक्षी, जरा इधर आना.’’

डरतेडरते वह पिता के सामने आई. उस का शरीर कांप रहा था. वह जानती थी कि पिताजी आधी रात में आने वाली फोन कौल्स के बारे में पूछने वाले हैं क्योंकि परसों रात जो कौल आई थी, मीनाक्षी के फोन उठाते ही उधर से अश्लील बातें शुरू हो गई थीं. वह कौल करने वाला कौन है, उसे क्यों फोन कर रहा है, ये सब उसे कुछ भी मालूम नहीं था. वह बेहद परेशान थी. इस समस्या के बारे में किस से बात की जाए, वह यह भी समझ नहीं पा रही थी.

‘‘कालेज जा रही हो?’’ विजय बाबू ने बेटी से पूछा.

मीनाक्षी ने सिर हिला कर हामी भरी.

‘‘मन लगा कर पढ़ाई हो रही है न?’’

‘‘हां पिताजी,’’ मीनाक्षी ने जवाब दिया.

‘‘कालेज से लौटते वक्त बस आसानी से मिल जाती है न, ज्यादा देर तो

नहीं होती?’’

‘‘हां पिताजी, कालेज के बिलकुल पास ही बस स्टौप है. 5-10 मिनट में बस मिल ही जाती है.’’

‘‘क्लास में न जा कर दोस्तों के साथ इधरउधर घूमने तो नहीं जाती न,’’ मीनाक्षी को गौर से देखते हुए विजय बाबू ने पूछा.

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है पिताजी.’’

‘‘देखो, अगर कोई तुम्हारे साथ गलत व्यवहार करता हो तो मुझे फौरन बताओ, डरो मत. मेरी इज्जतप्रतिष्ठा को जरा भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. मैं इसे कभी बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

मीनाक्षी ने ‘ठीक है’, कहते हुए सिर हिलाया. आंखों में भर आए आंसुओं को रोकते हुए वह वहां से जाने लगी.

‘‘मीनाक्षी’’, विजय बाबू ने रोका, मीनाक्षी रुक गई.

‘‘रात को 3 बार तुम्हारे लिए फोन आया. क्या तुम ने किसी को नंबर दिया था?’’

‘‘नहीं पिताजी, मैं ने अपने क्लासमेट्स को वे भी जो मेरे खास दोस्त हैं, को ही अपना नंबर दिया है.’’

‘‘उन खास दोस्तों में लड़के भी हैं क्या?’’ विजय बाबू ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ परिचित जरूर हैं, पर दोस्त नहीं.’’

‘‘ठीक है, अब तुम कालेज जाओ.’’

इस के बाद विजय बाबू ने फोन कौल्स के बारे में ज्यादा नहीं सोचा, ‘कोई आवारा लड़का होगा,’ यह सोच कर निश्चिंत हो गए.

शाम को जब विजय बाबू दफ्तर से लौटे तो मीनाक्षी की मां लक्ष्मी को कुछ परेशान देख उन्होंने इस का कारण पूछा तो वे नाश्ता तैयार करने चली गईं.

दोनों चायबिस्कुट के साथ आराम से बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे, लेकिन विजय बाबू को लक्ष्मी के चेहरे पर कुछ उदासी नजर आई.

‘‘ऐसा लगता है कि तुम किसी बात को ले कर परेशान हो. जरा मुझे भी तो बताओ?’’ विजय बाबू ने अचानक सवाल किया.

‘‘मीनाक्षी के बारे में… वह… फोन कौल…‘‘ लक्ष्मी ने इतना ही कहा कि विजय बाबू सब मामला समझते हुए बोले, ‘‘अच्छा रात की बात? अरे, कोई आवारा होगा. अगर उस ने आज भी कौल की तो फिर पुलिस को इन्फौर्म कर ही देंगे.’’

लक्ष्मी ने सिर हिला कर कहा, ‘‘नहीं. पिछले 2-3 दिन से ही ऐसे कौल्स आ रहे हैं. मैं ने मीनाक्षी को फोन पर दबी आवाज में बातें करते हुए भी देखा है. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने ‘रौंग नंबर‘ कह कर टाल दिया. आज दोपहर में भी फोन आया था. मैं ने उठाया तो उधर से वह अश्लील बातें करने लगा. मुझे तो ऐसा लगता है कि हमारी बेटी जरूर हम से कुछ छिपा रही है.’’

‘‘तुम्हारा क्या सोचना है कि ऐसे लड़के मीनाक्षी के बौयफ्रैंड्स हैं?’’

‘‘कह नहीं सकती. पर क्या बौयफ्रैंड्स ऐसे लफंगे होते हैं. हमारे समय में भी कालेज हुआ करते थे. उस वक्त भी कुछ लड़के असभ्य होते थे. लड़कियां, लड़कों से बातें करने में शरमाती थीं कि कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा. वे तो हमें कीड़ेमकोड़े की तरह दिखते थे.

फिर भी वहां लड़केलड़कियों में डिग्निटी रहती थी.’’

‘‘ऐसे कीड़े तो हर जगह होते हैं लक्ष्मी, जरूरी होता है कि हम उन कीड़ों से कितना बच कर रहते हैं. आज रात अगर फोन कौल आई तो हम इस की खबर पुलिस में करेंगे, तुम भी मीनाक्षी से प्यार से पूछ कर देखो,’’ विजय बाबू ने समझाया.

लक्ष्मी ने गहरी सांस लेते हुए सिर हिला कर हामी भरी और गहरी सोच में डूब गई. जवान होती लड़कियों की समस्याओं के बारे में वे भी जानती थीं. प्रेमपत्र, बदनामी, जाली फोटो, बेचारी लड़कियां न किसी को बता पाती हैं और मन में रख कर ही घुटघुट कर जीती हैं. कुछ कहने पर लोग उलटे उन्हीं पर शक करते हैं. कितनी यातनाएं इन लड़कियों को सहनी पड़ती हैं.

पहले जमाने में लोग लड़कियों को घर से बाहर पढ़ने नहीं भेजते थे बल्कि घरों में ही कैद रखते थे. लोग सोचते थे कि कहीं ऊंचनीच न हो जाए जिस से समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इस से उन के व्यक्तित्व पर कितना बुरा असर पड़ता है, लेकिन अब समय के साथ लोगों की मानसिकता बदली है. लोग बेटियों को भी बेटे के समान ही मानते हैं. उन्हें जीने की पूरी आजादी दे रहे हैं. इस से इस तरह की कई समस्याएं भी सामने आ रही हैं.

लक्ष्मी ने मन ही मन सोचा कि मीनाक्षी को बेकार की बातों से परेशान नहीं करेंगी तथा प्यार से सारी बातें पूछेंगी.

उस रात भी फोन कौल्स आईं. फोन एक बार तो विजय बाबू ने उठाया, फिर लक्ष्मी ने उठाया तो कोई जवाब नहीं आया. जब तीसरी बार फोन आया तो उन दोनों ने मीनाक्षी से फोन उठाने को कहा और उस का हौसला बढ़ाया. मीनाक्षी ने डरतेडरते फोन उठाया. मीनाक्षी बोली, ‘‘मैं तुम्हें बिलकुल नहीं जानती. मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मेरे पीछे पड़े हो. मेरा पीछा छोड़ दोे.’’ यह कह कर वह फफक पड़ी. ‘अभी पूछना सही नहीं होगा,‘ यह सोच मीनाक्षी को चुप करा कर सभी सो गए. पर नींद किसी की आंखों में नहीं थी. अगली सुबह दोनों ने मीनाक्षी से पूछा, ‘‘बेटी, यह क्या झमेला है?’’

मीनाक्षी रोंआसी हो कर बोली, ‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘रात को फोन करने वाले ने तुझ से क्या कहा.’’

‘‘कह रहा था कि मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम बहुत खूबसूरत हो. क्या तुम कल सुबह कालेज के पास वाले पार्क में मिलोगी.’’

‘‘ठीक है, अब तुम निडर हो कर कालेज जाओ. बाकी मैं देखता हूं, इस के बारे में तुम बिलकुल मत सोचो, अब तुम अकेली नहीं, बल्कि तुम्हारे मातापिता भी तुम्हारे साथ हैं.’’

‘‘मीनाक्षी ने हामी भरी और कालेज जाने की तैयारी करने लगी. विजय बाबू सीधे पुलिस स्टेशन गए और वहां उन्होंने शिकायत दर्ज कराई और सारा माजरा बता दिया. इंस्पैक्टर ने उन्हें जल्द कार्यवाही करने की तसल्ली दे कर घर जाने को कहा.’’

2-3 दिन गुजर गए. अगले दिन पुलिस स्टेशन से फोन आया. मीनाक्षी को भी साथ ले कर आने को कहा गया था. विजय बाबू जल्दीजल्दी मीनाक्षी को साथ ले कर थाने पहुंचे.

पुलिस इंस्पैक्टर ने उन्हें बैठने को कहा और कौंस्टेबल को बुला कर उसे कुछ हिदायतें दीं. वह अंदर जा कर एक लड़के के साथ वापस आया.

इंस्पैक्टर ने पूछा, ‘‘क्या आप इस लड़के को जानती हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं इसे नहीं जानती.’’

‘‘मैं बताता हूं, यह कौन है और इस ने क्या किया है.’’ इंस्पैक्टर ने कहना जारी रखा, ‘‘आप अपनी सहेली नीलू को जानती हैं न.’’

‘‘जी हां, मैं उसे बखूबी जानती हूं. वह मेरी कालेज में सब से क्लोज फ्रैंड है.’’

‘‘और यह आप की क्लोज फ्रैंड का सगा भाई नीरज है. यह बहुत आवारा किस्म का इंसान है. यह अपनी बहन नीलू के मोबाइल में आप का फोटो देख कर आप का दीवाना हो गया और फिर उसी के मोबाइल से आप का नंबर ले कर आप को कौल्स करने लगा. इसी तरह यह आप के सिवा और भी कई लड़कियों के नंबर्स नीलू के मोबाइल से ले कर चोरीछिपे उन्हें तंग करता है. इस के खिलाफ कईर् शिकायतें हमें मिलीं हैं. अब यह हमारे हाथ आया है और मैं इस की ऐसी क्लास लूंगा कि यह हमेशा के लिए ऐसी हरकतें करना भूल जाएगा. मैं ने इस के मातापिता तथा नीलू को खबर कर दी है. वे यहां आते ही होंगे.’’

‘‘मैं इस पर केस करना चाहता हूं. इस तरह के अपराधियों को जब सजा मिलेगी तभी ये ऐसी घिनौनी हरकतें करना बंद करेंगे,’’ विजय बाबू ने जोर दे कर कहा.

मीनाक्षी चुपचाप उन की बातें सुन रही थी. वह अंदर ही अंदर उबल रही थी कि 4-5 थप्पड़ जड़ दे उसे.

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप का कहना भी सही है पर ऐसे केस जल्दी सुलझते नहीं हैं. बारबार कोेर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इन्हें बेल भी चुटकी में मिल जाती है.’’

इतने में नीरज के मातापिता तथा बहन नीलू भी वहां आ पहुंचे. नीलू को देख कर मीनाक्षी उस के गले लिपट कर रोने लगी. नीलू की मां ने नीरज को जा कर 4-5 थप्पड़ जड़ दिए और बोलीं, ‘‘नालायक तुझे इतना भी खयाल नहीं आया कि तेरी भी एक बहन है और बहन की सहेली भी बहन ही तो होती है. इंस्पैक्टर साहब, इसे जो सजा देना चाहते हैं दीजिए.’’

नीरज के पिता, विजय बाबू से विनती कर बोले, ‘‘भाई साहब, इसे माफ कर दीजिए. मैं मानता हूं कि इस ने गलती की है.  इस में इस की उम्र का दोष है. इस उम्र के बच्चे कुछ भी कर बैठते हैं. ये अब ऐसी हरकतें नहीं करेगा. इस की जिम्मेदारी मैं लेता हूं और आप को विश्वास दिलाता हूं कि यह दोबारा ऐसे फोन कौल्स नहीं करेगा.’’ फिर बेटे की तरफ देख कर बोले, ‘‘देखता क्या है जा अंकल से सौरी बोल.’’

नीरज सिर झुका कर विजय बाबू के पास गया और उन के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए अंकल, अब मुझ से ऐसी गलती कभी नहीं होगी. आज से मेरे बारे में कोई शिकायत आप के पास नहीं आएगी,’’ फिर वह मीनाक्षी की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आई एम वैरी सौरी मीनाक्षी दीदी, प्लीज मुझे माफ कर दो. आज से मैं तुम्हें तो क्या कभी किसी और लड़की को तंग नहीं करूंगा.’’

गुस्से से लाल मीनाक्षी ने सिर उठा कर नीरज की तरफ देखा और फिर सिर हिला दिया.

Online Hindi Story : सबक – आखिर कैसे बदल गई निशा?

Online Hindi Story : सुबह सैर कर के लौटी निशा ने अखबार पढ़ रहे अपने पति रवि को खुशीखुशी बताया, ‘‘पार्क में कुछ दिन पहले मेरी सपना नाम की सहेली बनी है. आजकल उस का अजय नाम के लड़के से जोरशोर के साथ इश्क चल रहा है.’’ ‘‘मुझे यह क्यों बता रही हो?’’ रवि ने अखबार पर से बिना नजरें उठाए पूछा.

‘‘यह सपना शादीशुदा महिला है.’’ ‘‘इस में आवाज ऊंची करने वाली क्या बात है? आजकल ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं.’’

‘‘आप को चटपटी खबर सुनाने का कोई फायदा नहीं होता. अभी औफिस में कोई समस्या पैदा हो जाए तो आप के अंदर जान पड़ जाएगी. उसे सुलझाने में रात के 12 बज जाएं पर आप के माथे पर एक शिकन नहीं पड़ेगी. बस मेरे लिए आप के पास न सुबह वक्त है, न रात को,’’ निशा रोंआसी हो उठी. ‘‘तुम से झगड़ने का तो बिलकुल भी वक्त नहीं है मेरे पास,’’ कह रवि ने मुसकराते हुए उठ कर निशा का माथा चूमा और फिर तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

निशा ने माथे में बल डाले और फिर सोच में डूबी कुछ पल अपनी जगह खड़ी रही. फिर गहरी सांस खींच कर मुसकराई और रसोई की तरफ चल पड़ी. उस दिन औफिस में रवि को 4 परचियां मिलीं. ये उस के लंच बौक्स, पर्स, ब्रीफकेस और रूमाल में रखी थीं. इन सभी पर निशा ने सुंदर अक्षरों में ‘आईलवयू’ लिखा था.

इन्हें पढ़ कर रवि खुश भी हुआ और हैरान भी क्योंकि निशा की यह हरकत उस की समझ से बाहर थी. उस के मन में तो निशा की छवि एक शांत और खुद में सीमित रहने वाली महिला की थी.

रोज की तरह उस दिन भी रवि को औफिस से लौटने में रात के 11 बज गए. उन चारों परचियों की याद अभी भी उस के दिल को गुदगुदा रही थी. उस ने निशा को अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘आज कोई खास दिन है क्या?’’ ‘‘नहीं तो,’’ निशा ने मुसकराते हुए

जवाब दिया. ‘‘फिर वे सब परचियां मेरे सामान में क्यों रखी थीं?’’

‘‘क्या प्यार का इजहार करते रहना गलत है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ ‘‘तुम ने शादी के 2 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए मुझे हैरानी हो रही है.’’

‘‘तो फिर लगे हाथ एक नई बात और बताती हूं. आप की शक्ल फिल्म स्टार शाहिद कपूर से मिलती है.’’ ‘‘अरे नहीं. मजाक मत उड़ाओ, यार,’’ रवि एकदम से खुश हो उठा था.

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं उड़ा रही हूं, जनाब. वैसे मेरा अंदाजा है कि आप बन रहे हो. अब तक न जाने कितनी लड़कियां आप से यह बात कह चुकी होंगी.’’ ‘‘आज तक 1 ने भी नहीं कही है यह बात.’’

‘‘चलो शाहिद कपूर नहीं कहा होगा, पर आप के इस सुंदर चेहरे पर जान छिड़कने वाली लड़कियों की कालेज में तो कभी कमी नहीं रही होगी,’’ निशा ने अपने पति की ठोड़ी बड़े स्टाइल से पकड़ कर उसे छेड़ा. ‘‘मैडम, मेरी दिलचस्पी लड़कियों में नहीं, बल्कि पढ़नेलिखने में थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती कि कालेज में आप की कोई खास सहेली नहीं थी. आज तो मैं उस के बारे में सब कुछ जान कर ही रहूंगी,’’ निशा बड़ी अदा से मुसकराई और फिर स्टाइल से चलते हुए चाय बनाने के लिए रसोई में घुस गई. उस दिन से रवि के लिए अपनी पत्नी के बदले व्यवहार को समझना कठिन होता चला

गया था. उस रात निशा ने रवि से उस की गुजरी जिंदगी के बारे में ढेर सारे सवाल पूछे. रवि शुरू में झिझका पर धीरेधीरे काफी खुल गया. उसे पुराने दोस्तों और घटनाओं की चर्चा करते हुए बहुत मजा आ रहा था.

वैसे वह पलंग पर लेटने के कुछ मिनटों बाद ही गहरी नींद में डूब जाता था, लेकिन उस रात सोतेसोते 1 बज गया.

‘‘गुड नाइट स्वीट हार्ट,’’ निशा को खुद से लिपटा कर सोने से पहले रवि की आंखों में उस के लिए प्यार के गहरे भाव साफ नजर आ रहे थे.

अगले दिन निशा सैर कर के लौटी तो उस के हाथ में एक बड़ी सी चौकलेट थी. रवि के सवाल के जवाब में उस ने बताया, ‘‘यह मुझे सपना ने दी है. उस का प्रेमी अजय उस के लिए ऐसी 2 चौकलेट लाया था.’’ ‘‘क्या तुम्हें चौकलेट अभी भी पसंद है?’’

‘‘किसी को चौकलेट दिलवाने का खयाल आना बंद हो जाए, तो क्या दूसरे इंसान की उसे शौक से खाने की इच्छा भी मर जाएगी?’’ निशा ने सवाल पूछने के बाद नाटकीय अंदाज में गहरी सांस खींची और अगले ही पल खिलखिला कर हंस भी पड़ी. रवि ने झेंपे से अंदाज में चौकलेट के कुछ टुकड़े खाए और साथ ही साथ मन में निशा के लिए जल्दीजल्दी चौकलेट लाते रहने का निश्चय भी कर लिया.

‘‘आज शाम को क्या आप समय से लौट सकेंगे?’’ औफिस जा रहे रवि की टाई को ठीक करते हुए निशा ने सवाल किया. ‘‘कोई काम है क्या?’’

‘‘काम तो नहीं है, पर समय से आ गए तो आप का कुछ फायदा जरूर होगा.’’ ‘‘किस तरह का फायदा?’’

‘‘आज शाम को वक्त से लौटिएगा और जान जाइएगा.’’ निशा ने और जानकारी नहीं दी तो मन में उत्सुकता के भाव समेटे रवि को औफिस जाना पड़ा.

मन की इस उत्सुकता ने ही उस शाम रवि को औफिस से जल्दी घर लौटने को मजबूर कर दिया था. उस शाम निशा ने उस का मनपसंद भोजन तैयार किया था. शाही पनीर, भरवां भिंडी, बूंदी का रायता और परांठों के साथसाथ उस ने मेवा डाल कर खीर भी बनाई थी.

‘‘आज किस खुशी में इतनी खातिर कर रही हो?’’ अपने पसंदीदा भोजन को देख कर रवि बहुत खुश हो गया. ‘‘प्यार का इजहार करने का यह क्या बढि़या तरीका नहीं है?’’ निशा ने इतराते हुए पूछा तो रवि ठहाका मार कर हंस पड़ा.

भर पेट खाना खा कर रवि ने डकार ली और फिर निशा से बोला, ‘‘मजा आ गया, जानेमन. इस वक्त मैं बहुत खुश हूं… तुम्हारी किसी भी इच्छा या मांग को जरूर पूरा करने का वचन देता हूं.’’ ‘‘मेरी कोई इच्छा या मांग नहीं है, साहब.’’

‘‘फिर पिछले 2 दिनों से मुझे खुश करने की इतनी ज्यादा कोशिश क्यों की जा रही है?’’ ‘‘सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को खुश देख कर मुझे खुशी मिलती है, हिसाबकिताब रख कर काम आप करते होंगे, मैं नहीं.’’ निशा ने नकली नाराजगी दिखाई तो रवि फौरन उसे मनाने के काम में लग गया.

रवि ने मेज साफ करने में निशा का हाथ बंटाया. फिर उसे रसोई में सहयोग दिया. निशा जब तक सहज भाव से मुसकराने नहीं लगी, तब तक वह उसे मनाने का खेल खेलता रहा. उस रात खाना खाने के बाद रवि निशा के साथ कुछ देर छत पर भी घूमा. बड़े लंबे समय के बाद दोनों ने इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करते हुए यों साथसाथ समय गुजारा.

अगले दिन रविवार होने के कारण रवि देर तक सोया. सैर से लौट आने के बाद निशा ने चाय बनाने के बाद ही उसे उठाया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. रवि ने नोट किया कि निशा लगातार शरारती अंदाज में मुसकराए जा रही है. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आज भी मुझे कोई सरप्राइज मिलने वाला है?’’

‘‘बहुत सारे मिलने वाले हैं,’’ निशा की मुसकान रहस्यमयी हो उठी. ‘‘पहला बताओ न?’’

‘‘मैं ने अखबार छिपा दिया है.’’ ‘‘ऐसा जुल्म न करो, यार. अखबार पढ़े बिना मुझे चैन नहीं आएगा.’’

‘‘आप की बेचैनी दूर करने का इंतजाम भी मेरे पास है.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘आइए,’’ निशा ने उस का हाथ पकड़ा और छत पर ले आई. छत पर दरी बिछी हुई थी. पास में सरसों के तेल से भरी बोतल रखी थी. रवि की समझ में सारा माजरा आया तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा और उस ने खुशी से पूछा, ‘‘क्या तेल मालिश करोगी?’’

‘‘यस सर.’’ ‘‘आई लव तेल मालिश.’’ रवि फटाफट कपड़े उतारने लगा.

‘‘ऐंड आईलवयू,’’ निशा ने प्यार से उस का गाल चूमा और फिर अपने कुरते की बाजुएं चढ़ाने लगी.

रवि के लिए वह रविवार यादगार दिन बन गया.

तेल मालिश करातेकराते वह छत पर ही गहरी नींद सो गया. जब उठा तो आलस ने उसे घेर लिया.

‘‘गरम पानी तैयार है, जहांपनाह और आज यह रानी आप को स्नान कराएगी,’’ निशा की इस घोषणा को सुन कर रवि के तनमन में गुदगुदी की लहर दौड़ गई.

रवि तो उसे नहाते हुए ही जी भर कर प्यार करना चाहता था पर निशा ने खुद को उस की पकड़ में आने से बचाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी से खेल बिगड़ जाता है, साहब.

अभी तो कई सरप्राइज बाकी हैं. प्यार का जोश रात को दिखाना.’’ ‘‘तुम कितनी रोमांटिक…कितनी प्यारी…कितनी बदलीबदली सी हो गई हो.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ उस की कमर पर साबुन लगाते हुए निशा ने जरा सी बगल गुदगुदाई तो वह बच्चे की तरह हंसता हुआ फर्श पर लुढ़क गया. निशा ने बाहर खाना खाने की इच्छा जाहिर की तो रवि उसे ले कर शहर के सब

से लोकप्रिय होटल में आ गया. भर पेट खाना खा कर होटल से बाहर आए तो यौन उत्तेजना का शिकार बने रवि ने घर लौटने की इच्छा जाहिर की. ‘‘सब्र का फल ज्यादा मीठा होता है, सरकार. पहले इस सरप्राइज का मजा तो ले लीजिए,’’ निशा ने अपने पर्स से शाहरुख खान की ताजा फिल्म के ईवनिंग शो के 2 टिकट निकाल कर उसे पकड़ाए तो रवि ने पहले बुरा सा मुंह बनाया पर फिर निशा के माथे में पड़े बलों को देख कर फौरन मुसकराने लगा.

निशा को प्यार करने की रवि की इच्छा रात के 10 बजे पूरी हुई. निशा तो कुछ देर पार्क में टहलना चाहती थी, लेकिन अपनी मनपसंद आइसक्रीम की रिश्वत खा कर वह सीधे घर लौटने को राजी हो गई. रवि का मनपसंद सैंट लगा कर जब वह रवि के पास पहुंची तो उस ने अपनी बांहें प्यार से फैला दीं.

‘‘नो सर. आज सारी बातें मेरी पसंद से हुई हैं, तो इस वक्त प्यार की कमान भी आप मुझे संभालने दीजिए. बस, आप रिलैक्स करो और मजा लो.’’ निशा की इस हिदायत को सुन कर रवि ने खुशीखुशी अपनेआपको उस के हवाले कर दिया.

रवि को खुश करने में निशा ने उस रात कोईर् कसर बाकी नहीं छोड़ी. अपनी पत्नी के इस नए रूप को देख कर हैरान हो रहा रवि मस्ती भरी आवाज में लगातार निशा के रंगरूप और गुणों की तारीफ करता रहा. मस्ती का तूफान थम जाने के बाद रवि ने उसे अपनी छाती से लगा कर पूछा, ‘‘तुम इतनी ज्यादा कैसे बदल गईर् हो, जानेमन? अचानक इतनी सारी शोख, चंचल अदाएं कहां से सीख ली हैं?’’

‘‘तुम्हें मेरा नया रूप पसंद आ रहा है न?’’ निशा ने उस की आंखों में प्यार से झांकते

हुए पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा.’’

‘‘थैंक यू.’’ ‘‘लेकिन यह तो बताओ कि ट्रेनिंग कहां से ले रही हो?’’

‘‘कोई देता है क्या ऐसी बातों की ट्रेनिंग?’’ ‘‘विवाहित महिला एक पे्रमी बना ले तो उस के अंदर सैक्स के प्रति उत्साह यकीनन बढ़ जाएगा. कम से कम पुरुषों के मामले में तो ऐसा पक्का होता है. कहीं तुम ने भी तो अपनी उस पार्क वाली सहेली सपना की तरह किसी के साथ टांका फिट नहीं कर लिया है?’’

‘‘छि: आप भी कैसी घटिया बात मुंह से निकाल रहे हो?’’ निशा रवि की छाती से और ज्यादा ताकत से लिपट गई, ‘‘मुझ पर शक करोगे तो मैं पहले जैसा नीरस और उबाऊ ढर्रा फिर से अपना लूंगी.’’ ‘‘ऐसा मत करना, जानेमन. मैं तो तुम्हें जरा सा छेड़ रहा था.’’

‘‘किसी का दिल दुखाने को छेड़ना नहीं कहते हैं.’’ ‘‘अब गुस्सा थूक भी दो, स्वीटहार्ट. आज तुम ने मुझे जो भी सरप्राइज दिए हैं, उन के लिए बंदा ‘थैंकयू’ बोलने के साथसाथ एक सरप्राइज भी तुम्हें देना चाहता है.’’

‘‘क्या है सरप्राइज?’’ निशा ने उत्साहित लहजे में पूछा. ‘‘मैं ने तुम्हारी गर्भनिरोधक गोलियां फेंक

दी है?’’ ‘‘क्यों?’’ निशा चौंक पड़ी.

‘‘क्योंकि अब 3 साल इंतजार करने के बजाय मैं जल्दी पापा बनना चाहता हूं.’’ ‘‘सच.’’ निशा खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां, निशा. वैसे तो मैं भी अब ज्यादा से ज्यादा समय तुम्हारे साथ बिताने की कोशिश किया करूंगा, पर अकेलेपन के कारण तुम्हारे सुंदर चेहरे को मुरझाया सा देखना अब मुझे स्वीकार नहीं. मेरे इस फैसले से तुम खुश हो न?’’ निशा ने उस के होंठों को चूम कर अपना जवाब दे दिया.

रवि तो बहुत जल्दी गहरी नींद में सो गया, लेकिन निशा कुछ देर तक जागती रही. वह इस वक्त सचमुच अपनेआप को बेहद खुश व सुखी महसूस कर रही थी. उस ने मन ही मन अपनी सहेली सपना और उस के प्रेमी को धन्यवाद दिया. इन दोनों के कारण ही उस के विवाहित जीवन में आज रौनक पैदा हो गई थी.

पार्क में जानपहचान होने के कुछ दिनों बाद ही अजय ने सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने के प्रयास शुरू कर दिए थे. सपना तो उसे डांट कर दूर कर देती, लेकिन निशा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

‘‘सपना, मैं देखना चाहती हूं कि वह तुम्हारा दिल जीतने के लिए क्याक्या तरकीबें अपनाता है. यह बंदा रोमांस करने में माहिर है और मैं तुम्हारे जरीए कुछ दिनों के लिए इस की शागिर्दी करना चाहती हूं.’’

निशा की इस इच्छा को जान कर सपना हैरान नजर आने लगी थी. ‘‘पर उस की शागिर्दी कर के तुम्हें हासिल क्या होगा?’’ आंखों में उलझन के भाव लिए सपना ने पूछा.

‘‘अजय के रोमांस करने के नुसखे सीख कर मैं उन्हें अपने पति पर आजमाऊंगी, यार.

उन्हें औफिस के काम के सिवा आजकल और कुछ नहीं सूझता है. उन के लिए कैरियर ही सबकुछ हो गया है. मेरी खुशी व इच्छाएं ज्यादा माने नहीं रखतीं. उन के अंदर बदलाव लाना मेरे मन की सुखशांति के लिए जरूरी हो गया

है, यार.’’ अपनी सहेली की खुशी की खातिर सपना ने अजय के साथ रोमांस करने का नाटक चालू रखा. सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने को वह जो कुछ भी करने की इच्छा प्रकट करता, निशा उसी तरकीब को रवि पर आजमाती.

पिछले दिनों निशा ने रवि को खुश करने के लिए जो भी काम किए थे, वे सब अजय की ऐसी ही इच्छाओं पर आधारित थे. उस ने कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भविष्य के लिए भी सीखे थे. ‘विवाहित जीवन में ताजगी, उत्साह और नवीनता बनाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का दिल जीतने के प्रयास 2 प्रेमियों की तरह ही करते रहना चाहिए,’ इस सबक को उस ने हमेशा के लिए अपनी गांठ में बांध लिया.

‘अपने इस मजनू को अब हरी झंडी दिखा दो,’ सपना को कल सुबह यह संदेशा देने की बात सोच कर निशा पहले मुसकराई और फिर सो रहे रवि के होंठों को हलके से चूम कर उस ने खुशी से आंखें मूंद लीं.

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