Relationship Advice: यह सरकार 10 साल से मेरे बहनोई को परेशान कर रही है विपक्ष के नेता राहुल गांधी के इस बयान पर भले ही भाजपा की तरफ से थोड़ी बयानबाजी और राजनीति हुई हो, लेकिन इसे एक भाई का अपनी बहन के प्रति स्नेह और संरक्षण देने के नजरिए से देखा जाना ज्यादा अहम है.

राजनीति में भाईबहन की इस जोड़ी का प्यार कभी किसी से छिपा नहीं रहा है. अकसर दोनों एकदूसरे की तारीफ और वकालात करते रहे हैं. प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा के खिलाफ एक मामले में चार्ज शीट दायर हुई तो राहुल की भावनाएं उमड़ पड़ना कोई हैरत की बात नहीं कही जा सकती.

मामला कोई भी हो, भाई कोई भी हो बहन बहनोई को दिक्कत या संकट में देख कर खामोश नहीं रह सकता. प्यार और खून के रिश्तों की इस कशिश को कोई न तो नकार सकता और न ही चुनौती नहीं दे सकता.

बात राहुल और प्रियंका की ही करें तो जब भी राहुल पर कोई परेशानी या संकट आया है तो प्रियंका भी चुप नहीं रही हैं.

पिछले साल दिसंबर में जब संसद में धक्कामुक्की के दौरान राहुल गांधी ने कथित तौर पर एक महिला को धक्का दिया था तब भाजपा ने खासा बवाल मचाया था. इन्हीं दिनों में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा डाक्टर भीम राव आंबेडकर पर की गई एक टिप्पणी पर विपक्ष ने उन की घेराबंदी कर रखी थी जिस से अमित शाह की किरकिरी हो रही थी. तब प्रियंका ने कहा था कि वे लोग अमित शाह को बचाने और उन की विवादित टिप्पणी पर से ध्यान बंटाने के लिए भैया पर धक्का देने का आरोप लगा रहे हैं. यहां गौरतलब है कि उन्होंने भैया संबोधन का इस्तेमाल किया था राहुल या राहुल जी नहीं कहा था.

राजनीति की हर बात को राजनितिक नजरिए से देखा जाना स्वभाविक है फिर भले ही उन के पीछे भावनाएं और प्यार छिपा हो या बयान या बात की असल वजह भावनात्मक लगाव हो. आम जिंदगी में भी भाईबहन एकदूसरे का सहारा बने खड़े नजर आते हैं.

इस दौर में हर रिश्ते में खुदगर्जी और दरकन साफसाफ नजर आती है. लोग मदद के वक्त कतराते नजर आते हैं लेकिन एक बहन हमेशा भाई के लिए आधी रात को भी दौड़ने तैयार रहती है. जबकि दौर ऐसा भी है कि वक्त दोनों के पास नहीं है.

भोपाल के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज के एक प्रोफैसर की मानें तो मां के गुजर जाने के बाद उन की इकलौती बड़ी बहन से संबंध टेलीफोनिक और हायहेलो तक सीमित रह गए थे.

बहन पुणे में नौकरी करती है जिस का अपनी घर ग्रहस्थी की व्यस्तता के चलते भोपाल आनाजाना न के बराबर था. कभी आई भी कुछ घंटों के लिए जिस से भाईबहन इम्फार्मल हो कर पहले की तरह बतिया ही नहीं पाए. नहीं तो दोनों की शादी के पहले पुराने घर, बचपन की यादें और बातों में रात कब गुजर जाती थी इस का पता भी नहीं चलता था.

एक बार मालूम है तू बहुत छोटा था. 5-6 साल का तब एक बारात के पीछेपीछे चला गया था तब कितना परेशान हुए थे सब… और…एक बार तो हद हो गई थी 6-8 महीने का रहा होगा अब जयपुर वाले मौसाजी एक सेमिनार में शामिल होने भोपाल आए थे और तुझे गोद उठा कर हवा में उछाल रहे थे तब तूने उन के मुंह पर सूसू कर दी थी तो मम्मी, पापा, मौसी और मैं सब खिलखिला कर हंस पड़े थे तब मौसाजी ने झेंप मिटाते कहा था कि जैसे खुशी के आंसू होते हैं वैसे ही यह खुशी की सूसू है…और एक बार ….

प्रोफैसर साहब कालेज और घर गृहस्थी की सारी झंझटे भूलभाल कर बचपन में पहुंच जाते थे. लेकिन यह सिलसिला एक बार बंद हुआ तो वे भूल ही गए कि उन्मुक्त हंसी क्या होती है, मीठीमीठी यादें क्या होती हैं, बहन का प्यार क्या होता है. फिर एक दिन अचानक अप्रिय तरीके से ही सही वे दिन वापस लौटे.

हुआ यूं था कि उन का एमपी नगर चौराहे पर एक्सीडैंट हो गया. होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया. आसपास नजर दौड़ाई तो सामने दीदी भी खड़ी थी. सदमे और सकते की सी हालत में हैरान यह सोचते रह गए कि वे भोपाल में हैं या पुणे में हैं.

कराहते हुए जब पूछताछ की तो पत्नी ने बताया कि उन्हें 8 घंटे बाद होश आया है शरीर में तीन जगह फ्रैक्चर हुआ था, एक माइनर सर्जरी हुई है. राहगीर उठा कर अस्पताल में भर्ती करा गए थे. पुलिस आई तो जेब में रखे आधार कार्ड और बाइक के नंबर से पहचान हुई और उसे खबर मिली.

अस्पताल आतेआते उस ने कैब में बैठेबैठे ही यह खबर घर के व्हाट्सऐप ग्रुप में शेयर कर दी थी. दीदी ने पढ़ा तो जिस हालत में थी उसी में भागीभागी आई. इत्तफाक से पुणे से भोपाल की फ्लाइट भी मिल गई. 4 घंटे में वे भोपाल आ गई थीं लेकिन तब से पानी तक नही पिया कहती रहीं कि जब तक गुल्लू का औपरेशन नहीं हो जाता और वह होश में नहीं आ जाता, तबतक अन्न जल कुछ नहीं लूंगी.

2 घंटे में जाने कितनी मन्नते मांग चुकी हैं. खैर, खतरे की बात नहीं डाक्टर्स ने कहा है कि 4 दिन बाद डिस्चार्ज कर देंगे.

प्रोफैसर साहब हतप्रभ रह गए. क्योंकि लगभग सभी जगह खबर हो जाने के बाद भी देखने कोई परिचित रिश्तेदार अस्पताल नहीं आया था जिन्होंने ग्रुप में मेसेज देख लिया था उन में से अधिकतर ने डिजिटल संवेदनाएं प्रगट कर दी थीं कि ओह दुखद खबर… गेट वेल सून या ईश्वर उन्हें जल्द स्वस्थ करे….अगर कोई जरूरत हो तो इन्फार्म करें. लेकिन जिसे आना था वह बिना एक सेकंड का भी वक्त गंवाए पुणे से भोपाल आ गई थी और वह सिर्फ एक बहन ही हो सकती थी.

आंखों में अब दर्द के बजाय खुशी के आंसू थे. बहन ने जैसे ही होले से सर पर हाथ रखा तो उन्हें लगा अम्माबाबूजी का स्पर्श मिल गया. कुछ दिन बाद डिस्चार्ज हो कर अस्पताल से घर आ गए. बहन तो दूसरे ही दिन पुणे चली गई थी लेकिन घर आने के तीसरे ही दिन जीजाजी और भांजे के साथ फिर भोपाल आ गई और तीन दिन रुकी रही.

इस दौरान कुल चार दोस्त रिश्तेदार ही अस्पताल आए जबकि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर सैकड़ों लोगों से उन की यारी दोस्ती थी. बहन आई तो बिना रक्षाबंधन के ही राखी जैसा बल्कि उस से भी बढ़ कर त्योहार मन गया.

नई पुरानी बातें हुई भोपाल घूमेफिरे नएनए पकवान घर में बने, कैरम और लूडो के गेम्स हुए, ब्लूटूथ स्पीकर चालू कर कराते पर गाने गाए गए, बहुत दिनों बाद टाकीज में फिल्म देखी गई, भोपाल के नामी रैस्टोरेंट्स में डिनर हुए और भी न जाने क्याक्या हुआ जो सालों से नहीं हुआ था. तब उन्हें लगा था कि काश वक्त यहीं ठहर जाए.

लेकिन वक्त कभी किसी के लिए ठहरता नहीं 3 दिन रुक कर बहन चली गई तब तक वे पूरी तरह ठीक हो गए थे और पहले की तरह चलनेफिरने लगे थे.

इस हादसे ने उन्हें यह सबक जरूर सिखा दिया कि बहन बहन होती है और मुसीबत में वही काम आती है. छोटे बच्चे को पड़ोसी के हवाले कर कैसे वह भाग कर पुणे से भोपाल आ गई. न पैसों का मुंह देखा और न ही वक्त का और उन से भी अहम काम जीजाजी ने किया जो किसी किस्म का एतराज नहीं जताया और फिर खुद भी साथ आ गए.

यह किसी एक का नहीं बल्कि तमाम बहनों का हाल है जो भाई को परेशानी में देख कुछ नहीं सोचती सिवाय इस के कि मेरा भाई खुश और सलामत रहे.

अपवाद स्वरूप ही ऐसा होता है कि भाई को जरूरत होने पर बहन आए नहीं. संजय और संजना के उदाहरण से तो यह भी समझ आता है कि विवाद होने पर भी बहने अपना फर्ज और प्यार नहीं भूल पातीं.

कारोबारी पिता की मौत के बाद उन की कोई 3 करोड़ की संपत्ति में संजना ने हिस्सा क्या मांग लिया संजय ने उसे न केवल सोशल मीडिया से बल्कि जिंदगी से ही ब्लौक कर दिया.

मामला अदालत में चल रहा है लेकिन जीएसटी चोरी के मामले में संजय गिरफ्तार हुआ तो सब से पहले संजना भाग कर आई और जमानत का इंतजाम किया. 4 दिन उस ने अपनी भाभी और भांजी को भी संभाला जिन के हाथपांव फूल गए थे क्योंकि उन के खानदान में किसी ने कभी थाने वकीलों और अदालत का मुंह नहीं देखा था.

जमानत पर संजय जेल से बाहर आया तो बहन के गले से लिपट कर बच्चों की तरह रोया. 3 दिन जेल में रहते उसे दुनिया समझ आ गई थी और बहन के प्रति पूर्वाग्रह भी खत्म हो गया था.

अब मामला अदालत के बाहर घर पर ही सुलझ गया है. संजय संजना का हिस्सा देने खुशीखुशी तैयार हो गया है लेकिन संजना ने प्रतीकात्मक तौर पर ही अपनी जरूरत के मुताबिक एक चौथाई हिस्सा लिया.

संजय को इस बात पर भी गिल्ट फील हुआ कि बहन को पैसों की जरूरत थी और वह पैतृक संपत्ति में से अपना वाजिब हक मांग रही थी. लेकिन उस ने पूरी निर्ममता स्वार्थ और बेईमानी से कौरवों की तरह यह कहते एक छदाम भी देने से मना कर दिया था कि तुम्हारा हिस्सा तो तुम्हारी शादी और दहेज की शक्ल में ही चला गया था और इस खानदान में लड़कियों का पुश्तैनी जायदाद पर कोई हक नहीं बनता.

हालांकि उस के वकील ने बता दिया था कि कानूनन हिस्सा तो देना पड़ेगा आप उस से बच नहीं सकते.

संकट में यही बहन काम आई तो मन से मेल भी धुल गया और रिश्ता भी टूटने से बच गया निस्वार्थ प्यार समर्पण स्नेह और मित्रत्ता के इस रिश्ते को निभाने आप क्या कर रहे हैं कभी ईमानदारी से सोचें और खुद का अवलोकन भी करें.

बकौल संजय यह वही संजना है जो मुझे रात देर से आने पर पापा की डांट और मार से बचाने आधी रात तक दरवाजा खोलने जागती रहती थी. एक बार जन्मदिन पर दोस्तों का दबाव था कि मैं उन्हें होटल में पार्टी दूं तब तकरीबन 2 हजार रुपए का खर्च था. लेकिन पापा ने यह कहते मना कर दिया था कि इस फिजूलखर्ची के लिए उन के पास देने फालतू पैसे नहीं तो मेरा रुआंसा चेहरा देख संजना ने अपनी साइकिल के लिए जोड़े 1500 रुपए उदारतापूर्वक दे दिए थे. और एक मैं हूं जिस ने उसे उस का वाजिब हिस्सा देने से इंकार कर दिया था. एक बार भाई खुदगर्ज हो सकता है लेकिन बहन नहीं.

इस रिश्ते और भाईबहन के त्याग व प्यार को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता राहुल प्रियंका का उदहारण तो प्रसंगवश है. नहीं तो सोशल मीडिया पर आए दिन रियल किस्से वायरल होते रहते हैं जिन में भाईबहन के प्यार को सहज समझा जा सकता है.

– साल 2021 में वायरल हुई एक पोस्ट में केरल की आफरा और उस के भाई मोहम्मद रफीक की दास्तां बताई गई थी. ये दोनों ही एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी एसएमए यानी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित थे.

इस बीमारी में मसल्स बेहद कमजोर होती जाती हैं जिस से कुछ सालों में ही मरीज की मौत हो जाती है. इस का इलाज बेहद महंगा और मुश्किल भी है. आफरा की हालत बिगड़ने लगी तो उस ने यह ठान लिया कि कम से कम अपने डेढ़ साल के नन्हें मासूम भाई को तो बचाने कुछ किया जाए.

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक महंगी दवा जोलगेंस्मा की कीमत लगभग 16 करोड़ रुपए है.

आफरा ने सोशल मीडिया के जरिए और अपना खुद का यूट्यूब चैनल बना कर लोगों से मदद की अपील की इस बाबत कुछ रियल वीडियोज शेयर किए जिन में भाई के लिए उस का प्यार साफ झलकता था.

मुहिम रंग लाई और कुछ ही दिनों में उम्मीद से ज्यादा लगभग 47 करोड़ रुपए इकट्ठा हो गए लेकिन आफरा अपने भाई का इलाज देखने जिंदा नहीं बची अगस्त 2021 में उस की मौत हो गई.

आफरा चमत्कारिक ढंग से रफीक को जिंदगी दे गई और भाईबहन के प्यार और त्याग की मिसाल भी कायम कर गई.

– ऐसी ही दिल को छू लेने वाली सच्ची कहानी गुजरात के भरूच की शीतल की भी है जिस के मातापिता दोनों की मौत हो गई थी. जैसा कि होता है इस बुरे वक्त में किसी ने शीतल की मदद नहीं की तिस पर भी दिक्कत यह कि उस का छोटा भाई मानसिक और शारीरिक तौर पर विकलांग था. वह अपने रोजमर्रा के काम तक नहीं कर पाता था.

शीतल ने अपने दम और स्तर पर संघर्ष किया भाई की देखभाल के लिए उसने शादी भी नहीं की और जब भाई को फुल टाइम देखरेख की जरूरत पड़ने लगी तो उस ने अपनी लगी लगाई नौकरी भी छोड़ दी. वह खुद उसे अपने हाथ से खाना खिलाती थी नहलातीधुलाती थी कपड़े बदलती थी.

2024 में यह कहानी मीडिया की सुर्खियों में रही थी लेकिन इस के बाद शीतल ने ही मीडिया से दूरी बना ली थी. शीतल चाहती और स्वार्थी होती तो भाई को उस के हाल पर छोड़ कर अपनी दुनिया बसा सकती थी या उसे किसी विकलांगों वाले आश्रम में भी छोड़ सकती थी लेकिन ऐसा कुछ न कर यह साबित कर दिखाया कि एक बहन अपने भाई के लिए क्या कुछ नहीं कर सकती. Relationship Advice

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