विदेश में बुजुर्गों को इस बात का डर रहता है कि उन्हें अपने बच्चों पर निर्भर न होना पड़े लेकिन भारत में स्थिति विपरीत है. यहां बुजुर्गों को लगता है कि जिस तरह से उनके बच्चे अपनी जवानी के दिनों में उन पर निर्भर थे उसी तरह वृद्धावस्था में उनका अधिकार है कि वे अपने बच्चों से अपनी सेवा करवाएं. लेकिन सच तो यह है कि बच्चों से यह अपेक्षा और उन्हें कर्तव्य याद दिलाने की कवायद ही गलत है. अगर शादी के बाद आप संतान उत्पन्न करते हैं तो उसे अपना खिलौना न समझें. उस से कोई अपेक्षा न रखें.

आधुनिक भारतीय परिवार में वो दिन गए जब मां बाप अपने बेटे के साथ रहना चाहते थे. ढलते सूरज की ओर कदम बढ़ाते हुए कहें कि मज़ा इसमें नहीं कि ज़िंदगी को आपने कैसे जिया. सवाल इसका है कि मौत को आपने कितनी खूबसूरती से गले लगाया. रिटायरमेंट के बाद आप अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीना पसंद करेंगे. हो सकता है आप को और आप की पत्नी को किताबें पढ़ना पसंद हो, प्रकृति का आनंद लेना पसंद हो और अपने ही तरह के लोगों के साथ बातें करना पसंद हो. अगर आप अपने बेटों के साथ रहेंगे तो वो आप की ज़िंदगी पर राज करेंगे मगर आप को यह गवारा नहीं होगा.

दरअसल परिवार का मतलब यह नहीं कि एडल्ट होने के बाद भी आप बच्चों को खुद से बाँध कर रखें. उन्हें आगे बढ़ने के लिए यदि दूसरे शहर या दूसरे देश जाना है तो आप उन्हें रोक नहीं सकते. यह जरुरी नहीं कि एडल्ट बच्चे हमेशा अपने माता पिता के साथ रहे और उन की देखभाल करें. माता-पिता अपने बच्चों से अपेक्षा करते हैं कि जरूरत पड़ने पर वे उन की देखभाल करें. लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि इन अपेक्षाओं की एक कीमत होती है. यदि आप को बदले में बच्चों की नाराजगी और उपेक्षा मिल रही है तो फिर क्या ही फायदा. इस लिए बच्चों पर कभी इस बात का दवाब न डालें या उन्हें फर्ज न गिनाएं कि बचपन में आप ने उन्हें संभाला और बड़ा किया तो अब उन्हें आप के बुढ़ापे की लाठी बनना होगा. आप को अपने बच्चों और उनके परिवारों के साथ रिश्ते को सहज बनाए रखने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए;

जीते जी अपना धन बच्चों में बांटे नहीं और न ही वसीयत ही करें

फिल्म बागबान का सीन याद कर लें. जब अमिताभ बच्चन ने अपने बच्चों में सारी संपत्ति बाँट दी फिर उन का और उन की पत्नी का क्या हश्र हुआ. प्यार और भावना में बह कर ऐसा कतई न करें. यह सुनिश्चित करें कि आप अपनी सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. यदि आप के पास एक घर है तो उसे अपने पास रखें और जब तक संभव हो उस में रहें. अपने दैनिक खर्चों को मैनेज करने के लिए एक अपने पास रुपए रखें. अपने बच्चों पर फ़ालतू रुपए खर्च करने के बजाय अपने लिए धन जमा रखें. हम में से अधिकांश लोग बुढ़ापे में बच्चों के ऊपर सब कुछ ख़त्म कर देते हैं और बाँट देते हैं यह सही नहीं.

जीवन में एक उद्देश्य खोजें

एक सेवानिवृत्त व्यक्ति के रूप में आप के पास समय है, दूसरों के प्रति आप की जिम्मेदारियां सीमित हैं और आप भविष्य के लिए अपने धन को ले कर सुरक्षित हैं. जबकि आप के बच्चों को अपना करियर देखना है, अपने बच्चों का पालन-पोषण करना है और धन कमाना है. उन के ऊपर इस बात के लिए निर्भर न रहे कि वे आप को समय देंगे, आप का ध्यान रखेंगे या रुपए पैसे खर्च करेंगे. इस के लिए उन पर निर्भर न रहें. इस से बेहतर है कि आप अपने समान विचारधारा वाले दोस्तों पर भरोसा करें और एक ऐसा उद्देश्य खोजें जो आप के बड़े हो चुके बच्चों और उन के परिवारों के साथ घूमने-फिरने से परे हो. ऐसा मकसद जिस से आप को ख़ुशी मिले और समाज का भी कुछ भला हो जाए.

संवाद के माध्यम खुले रहें

कोशिश करें कि आप के और आप के बच्चों के बीच संबंध मधुर रहे और आप के बच्चे कठिन समय में आप का सपोर्ट करने को तैयार हों. अपने लिए उन के समय की मांग करते हुए खीजते रहने से अच्छा है कि अपनी सामान्य रोजमर्रा की दिनचर्या का ध्यान रखें और सेहत बना कर रखें. उन से अपने डर या बीमारी के बारे में बात करें और उन्हें उस स्थिति में मदद करने के लिए जरूर कहें जो वास्तव में आपके लिए अकेले निपटना कठिन हो सकता है. मगर हर समय उन्हें परेशान न करें.

सक्रियता

बुजुर्गों को घर की चारदीवारी तक सीमित रखने के बजाए सक्रिय और फिट बने रहना चाहिए. अपनी दिनचर्या में व्यायाम और वाकिंग शामिल करना चाहिए. इससे न केवल शारीरिक बीमारियां दूर होंगी बल्कि अकेलापन और अवसाद भी कम होगा.

अपना पैसा बर्बाद न करें

रीति रिवाजों, अंधविश्वास , पण्डे पुजारियों और उपहारों में ज्यादा पैसे न फेंकें. घर में फ़ालतू की चीजें इकट्ठी न करें. सामान खरीदने का कोई अंत नहीं है. अक्सर हम दूसरों के लिए बेकार में कपड़े खरीदते हैं जबकि कपड़े, आभूषण, कलाकृतियाँ, घरेलू सामान के मामलों में सभी की व्यक्तिगत पसंद अलग होती है. इसलिए रुपए बचाने की सोचें यही बाद में काम आएगा.

बच्चों पर बोझ न डालें

अपने बच्चों की संपत्ति पर खुद को हकदार न समझें. हम मांग कर सकते हैं कि हम ने उनके लिए जो किया उसके लिए वे आभारी रहें पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे अपने बच्चों के पालन-पोषण में व्यस्त हैं. हमें उन पर किसी भी तरह का बोझ नहीं डालना चाहिए.

सरल जीवन जीएं

अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा करते हैं और जब वे बाहर सर्विस करने लगते हैं तो माता पिता अपने बच्चों को फोन करते हैं और बताते हैं कि आज मैंने इस महाराज से दीक्षा ली या इतना समय कीर्तन में बिताया. अब मैं इतने नियमों का पालन कर रहा हूँ वगैरह. अब बिचारे उनके बच्चे खुशी व्यक्त करने के बजाए यही कह पाते हैं कि आप ज्यादा नियम, धर्म, कीर्तन और दान दक्षिणा के चक्कर में न पड़ें. आप को ही मुश्किल होगी. साथ ही वे मन में यह भी सोच रहे होते हैं कि माँ बाप को साथ रखना अब आसान नहीं होगा. आखिर युवा वर्ग ऐसे अंधविश्वासों के चक्कर में कहाँ फंसते हैं.

जितनी आप अपेक्षा रखोगे उतनी उपेक्षा होगी

दीनदयाल के दो बेटे हैं, एक बंगलुरु में और एक अमेरिका में. वह जब भी बड़े बेटे को फोन लगाते तो वह कभी कहता कि पापा अभी मैं मीटिंग में बिजी हूँ, बाद में बात करता हूँ. कभी कहता पापा मैं बाहर हूँ बाद में रिंग करता हूँ. पर वह कभी रिंग नहीं करता. वह फोन का इन्तजार करते रहते थे पर कभी फोन नहीं आता था. छोटे बेटे के साथ भी ऐसा ही होता था. एक दिन उन का हृदय बदल गया. एकदम कचोट सी उठी. तब उन्होंने तय किया कि जिन बच्चों के लिए उन से ज़्यादा मीटिंग महत्त्वपूर्ण है उन से क्या मतलब रखना. अब वह अपने लिए जिएंगे. अपने बेटों को कभी फोन नहीं लगाएंगे. उन का फोन आया तो ही बात करेंगे. अपना सम्पर्क अपने साथ जोड़ेंगे. इस के बाद दीनदयाल के जीने का तरीका ही बदल गया. बेटे के बजाए वह दोस्तों को फोन लगाने लगे. सुबह वॉक पर जाने लगे. वहां और भी अपनी उम्र के नए दोस्त बने. उन दोस्तों के साथ समय बेहद खूबसूरती से गुजरने लगा. बेटे की उपेक्षाओं का दर्द धुलने लगा और जीवन में नई खुशियां बिखेरने लगी. इसलिए कहते हैं कि मोह मनुष्य को रुलाता है और उसकी दुर्गति कराता है. ऐसा मोह बच्चों से कभी मत पालिये. अपने जीवन में खुश रहिए.

ओल्ड ऐज होम और कुछ संस्थाएं भी हैं विकल्प

वृद्धावस्था में व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बल हो जाता है. अधिकांश बुजुर्गों के समझ आर्थिक संकट भी रहता है. ऐसे में उसकी दूसरों पर निर्भरता बढ़ जाती है. रिटायरमेंट के बाद लोग मायूस हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि जीवन खत्म सा हो गया है. उम्र बढ़ने के साथ वैसे भी तमाम रोग उसे घेर लेते हैं. कई बार उसे घर परिवार में दुरूह स्थिति का सामना करना पड़ता है. उनको बोझ समझा जाने लगता है और अकेले छोड़ दिया जाता है. मगर देश में बहुत सी समितियां और ओल्ड ऐज होम हैं जो यह बुजुर्गों के लिए बुढ़ापे की लाठी की तरह काम कर रही है. ऐसी कई संस्थाएं हैं जहाँ सभी अकेलापन भूलकर जीवन के अंतिम क्षणों में स्वस्थ एवं सुखी रह सकते हैं तथा जीवन को अपने तरीके से जी सकते हैं.कई बुज़ुर्ग संयुक्त परिवार से दूर हट कर अपनी ही शर्तों पर ज़िंदगी बिताना चाहते हैं इसलिए रिटायर होने के बाद किसी ऐसे शानदार रिटायरमेंट होम का रुख कर रहे हैं जिसमें वे अपनी बची ज़िंदगी के बिताना चाहते हैं. बंगलौर, चेन्नई, कोयंबटूर, पुणे, हैदराबाद, हरिद्वार व ऋषिकेश जैसे इलाकों में ऐसे रिटायरमेंट होम बनाए जा रहे हैं.

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