जकल हर दूसरे दिन फैशन में बदलाव हो जाता है यानी लगातार पहनावे के अंदाज बदल रहे हैं. ऐसे में युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए ऑप्शन बहुत हैं. हर लड़की/ महिला चाहती है कि वह कुछ लेटेस्ट ट्रेंड का स्टाइलिश आउटफिट पहने. आप को भी ऐसा लगता है तो इंतजार किस बात का? अपने बजट के हिसाब से कुछ ट्रेंडी सा खरीदें और पहनें. यह मत सोचें कि लोग क्या कहेंगे या वह ड्रेस आप के बॉडी शेप के अनुसार सही है या नहीं. आप को जो दिल करे वह पहनें.

आप हर तरह के कपड़े ट्राई करें. खुद को यह सोच कर मत रोकिए कि आप का वजन ज्यादा है तो आप बॉडी हगिंग ड्रेस नहीं पहन सकतीं या आप दुबली पतली हैं तो आप पर स्लीवलेस नहीं जमेगा या रंग सांवला है तो काले कपड़े कैसे पहनें. यह भी न सोचें कि सामने बैठी लड़की आप का मजाक तो नहीं उड़ा रही या पार्टी में आप कहीं अजीब तो नहीं लग रहीं. आप का शरीर है और आप की पसंद. दूसरों का इस में क्या लेना देना? इस बात का भी लोड न लें कि लोग क्या कहेंगे. घर से बाहर जाते समय भी आप का मन है कि घर में पहने जाने वाले कम्फर्टेबल कपड़े पहनने हैं तो पहनिए. आप कपड़े अपनी पसंद और जरूरत के मुताबिक पहन रहे हैं या लोगों को दिखाने के लिए?

अपनी पसंद को दें तवज्जो

समाज द्वारा किसी भी अवसर या माहौल के मुताबिक कपड़े पहनने का सलीका तैयार किया जाता है. हर समाज में शोक के अवसर पर खास रंगों के वस्त्र धारण किए जाते रहे हैं. उत्सवी माहौल के कपड़ों के रंग भी अलग हैं. कई पूजा स्थलों में महिलाओं के सिर पर दुपट्टा और पुरुषों द्वारा सिर पर रूमाल आदि से सिर ढक कर जाने की रिवायत भी जारी है. शादी के समय दुल्हन से अपेक्षा की जाती है कि वह भारी लहंगा चोली और घूंघट पहने. मगर आप इस तरह घुटन महसूस कर रही हैं तो इंकार कीजिए. ईसाई और मुस्लिम समाज में भी अपने तरीके के लिबास तय हैं. मगर ऐसी बंदिशें क्यों?

अगर आप को सलवार कुर्ते में या जींस टॉप में शादी करनी है तो वैसा ही कीजिए. दुनिया से आप को क्या लेना. अगर दूल्हा आप को समझ रहा है और उसे कोई ऐतराज नहीं तो बहुत अच्छा है. मगर यदि वह ऐतराज करता है तो आप उस से भी किनारा करने से हिचकें नहीं. क्योंकि अगर आप की इच्छा और पसंद को तवज्जो नहीं मिल रही तो ऐसे जीवनसाथी या उस के परिवार वालों से आप कितना निभा पाएंगी? इसी तरह यदि आप लहंगा पहन कर ही शादी करने में कंफर्टेबल हैं और आप को शादी की पारम्परिक वेशभूषा ही पसंद है तो फिर वैसा ही कीजिए. बात यहाँ केवल अपनी इच्छा और पसंद की है जिसे किसी और के लिए मत बदलिए और कपड़ों के मामले में अपनी चॉइस को ही सब से ऊपर रखिए.

मानसिक सेहत पर असर

क्या आप ने भी कभी सामाजिक मानदंडों में फिट होने के लिए कपड़े पहनने का फैसला किया है? क्या आप के साथ ऐसा कभी हुआ है कि आपने कुछ पहना था और इसे बदलने का फैसला किया क्योंकि यह आप के बॉडी शेप के अनुरूप नहीं है? सच कहा जाए तो हम सब ने कभी न कभी ये किया होगा. कभी कभी आप अपनी पसंदीदा टी-शर्ट या मिडी को अलमारी के पीछे फेंक देती हैं क्योंकि आप इसे पहन कर शर्मिंदगी महसूस नहीं करना चाहती हैं. मगर क्या आप जानती हैं कि आप जो पहनती हैं उस का आप के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है ? जाने अनजाने हम ने लोगों की पसंद के हिसाब से कपड़े पहना शुरू कर दिया और यह हमें शायद पता भी नहीं होगा. मगर हमारी यही आदतें हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं.

सीधे शब्दों में कहें तो बॉडी इमेज का मतलब है कि कोई व्यक्ति अपने शरीर को कैसे देखता है. इस में उस का अपने बारे में धारणा शामिल है. हर बार जब आप आईने के सामने खड़ी होती हैं और खुद को बताती हैं कि यह कपड़ा मेरे लिए सही नहीं है या मैं इस में भद्दी दिखती हूं तो समझ लेजिए आप की मेंटल हेल्थ खतरे में है.

सुंदरता के सामाजिक मानकों के अनुरूप खुद को ढालने की कोशिश का यह प्रभाव न केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य बल्कि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है. दूसरों के आगे हमारा इंप्रेशन कैसा पड़ेगा यानी हम कैसे दिखेंगे यह हमारे लिए बहुत मायने रखता है. हम सभी चाहते हैं कि हमें सकारात्मक रूप से देखा जाए. सौंदर्य के साथ रुढ़िवाद हमेशा से ही जुड़ा रहा है और यही कारण है कि हम आज भी सोचते हैं कि हमारे अंदर कुछ गलत है. आप के आस पास के बुजुर्गों ने आपके वजन के बारे में मजाक किया होगा या आप को वज़न कम करने या कम खाने के लिए कहा होगा. इस तरह की टिप्पणियों और सलाह ने आप को यह विश्वास दिलाया होगा कि निश्चित ही आप के शरीर में कुछ कमी है. इसलिए आप अपने मन का कपड़ा पहनना छोड़ देते हैं.

हम मॉडल, इन्फ़्लुएन्सर और मशहूर हस्तियों को देखते हैं. ये लोग एक निश्चित तरीके से कपड़े पहनते हैं और एक निश्चित तरीके से दिखते हैं. हम उनके जैसा बनने की ख्वाहिश रखते हैं. इसलिए जो दिखाया जाता है उस से जब हम अलग दिखते हैं तो निराश महसूस करने लगते हैं.हम ऐसे आउटफिट चुनना शुरू करते हैं जो हमें शरीर के उन हिस्सों को छिपाने में मदद करें जो लोगों के ब्यूटी स्टैंडर्ड के अनुरूप नहीं हैं.

मानसिक स्वास्थ्य पर इस सोच का प्रभाव

यदि आप हर बार कपड़े चुनने से पहले समाज के स्टैंडर्ड चैक करती हैं और उनके हिसाब से कपड़े पहनती हैं तो आप के आत्मसम्मान को चोट लग सकती है. अपने शरीर की खराब छवि के बारे में सोच कर आप के मन में नकारात्मक विचार पैदा हो सकते हैं.

अगर आप को लगता है कि आपको वह नहीं पहनना चाहिए जो आप वास्तव में पहनना चाहती हैं क्योंकि आप के शरीर का प्रकार ‘उपयुक्त नहीं’ है या लोग आप को नकारात्मक रूप से देखेंगे तो इस से आप के आत्मविश्वास का स्तर भी कम होने लगेगा. इसलिए आप को क्या पहनना है यह आपकी चॉइस होनी चाहिए न कि समाज की.

देखा जाए तो सभी के लिए आजादी के मायने अलग है. अपनी पसंद के कपड़े पहनना आप का अधिकार है. जो मन करे वो पहनें. ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो सब तरह के कपड़े पहनना पसंद करती हैं लेकिन पहनती वही हैं जो घर वाले कहते हैं. जैसे सूट-सलवार और दुपट्टा जो टाइट न हो और बदन न दिखे या हिजाब और घूँघट. मगर याद रखिए बिकिनी, शॉर्ट्स, सूट, घूंघट या हिजाब आप क्या कपड़े पहनेंगी यह आप का अपना निर्णय है और यह अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित है. वैसे भी गन्दी नजरें तो घूँघट और हिजाब के अंदर भी पहुँच जाती हैं. इस लिए यह बात महिला या लड़की को खुद तय करना चाहिए कि उसे कब क्या पहनना है.

आप को अपने पसंद के कपड़े पहनने के लिए लोगों से लड़ना पड़ेगा. सब से पहली लड़ाई शुरू करें घर से और फिर खुद से. अपनी पसंद के कपड़े पहन कर जब आप बाहर निकलें और मर्दों से ज्यादा औरतें घूर-घूर के देखती हैं तो परेशान मत होइए. अपने मन का कीजिए.

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