राजस्थान में किसानों से सीखेंगे कृषि विभाग के लोग

जयपुर : किसानों को खेतीकिसानी की जानकारी देने वाले राजस्थान के कृषि अधिकारी व कर्मचारी अब प्रगतिशील व खेतों में काम कर के सफलता की बुलंदियां छूने वाले किसानों से एक कार्यशाला में खेतीबाड़ी की तालीम व जानकारी लेंगे.

‘राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति एवं सेंटर फार इंटर नेशनल ट्रेड इन एग्रीकल्चर एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज’ (सिटा) द्वारा 16-17 अक्तूबर को आयोजित की गई 2 दिवसीय ‘कृषि पुनर्जागरण एवं कृषक संवाद संगोष्ठी’ के समापन के मौके पर राजस्थान के राज्य कृषि प्रबंध संस्थान के निदेशक डा. शीतल शर्मा ने यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इस के लिए जल्दी ही कृषि विभाग द्वारा राज्य कृषि प्रबंध संस्थान में एक कार्यशाला आयोजित कराई जाएगी और इस में चुने हुए प्रगतिशील किसानों को बुलाया जाएगा. उन्होंने कहा कि नई व आधुनिक खेती में सब को एकदूसरे से सीखने की जरूरत है और ज्ञान से विज्ञान को जोड़ने की भी जरूरत है. अतिरिक्त उद्यान निदेशक शरद गोधा ने कहा कि राजस्थान के हर जिले में आज 25 से 50 किसान ऐसे हैं, जिन्होंने आधुनिक कृषि अपना कर अपना जीवन स्तर बदला है. उन्होंने कहा कि किसानों को बड़े आकार के फल और सब्जियां पैदा करने का रिकार्ड बनाने की बजाय बाजार व उपभोक्ताओं की जरूरत को ध्यान में रख कर सब्जियों का उत्पादन करना चाहिए.

गोष्ठी के उद्घाटन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक प्रो. नरेंद्र सिंह राठौर ने कहा कि हमारे देश में खेती के लिहाज से आज भी दूसरे देशों की तुलना में कम जमीन है. उन्होंने कहा कि देश में दलहन के लिए उपलब्ध रकबे में से आधे हिस्से पर ही इस की खेती किए जाने से दालों के उत्पादन में कमी आई है. यदि पूरे रकबे में इस का उत्पादन होता तो दालों का संकट पैदा नहीं होता. उन्होंने किसानों से पैदावार की ट्रेडिंग का काम अपने हाथों में लेने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि ऐसा होने पर किसान खुदबखुद खुशहाल हो जाएंगे. प्रो. राठौर ने कहा कि केंद्र सरकार का खेती की ओर पूरा ध्यान है और 13वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि विज्ञान केंद्रों की संख्या भी 642 से बढ़ कर 1200 होने जा रही है, जिस का फायदा भी किसानों को मिलेगा. राजस्थान के कृषि आयुक्त कुलदीप रांका ने किसानों से आधुनिक कृषि तकनीक और नवीन व मिश्रित फसलों को शामिल कर के सरकारी योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाने को कहा. उन्होंने कम पानी में होने वाली जैविक खेती पर बल देते हुए किसानों से क्लस्टर बना कर जैविक खेती का विस्तार करते हुए आगे बढ़ने की बात कही. राजस्थान पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर के कुलपति प्रो. एके गहलोत ने कहा कि कृषि व पशुपालन में आज भी नवाचार अपनाने की गति धीमी है, इस में तेजी लाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इस के लिए किसानों तक जानकारी पहुंचानी होगी और किसानों को उसे अपनाना होगा. उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर परिवर्तित जलवायु से कृषि क्षेत्र में भी चुनौतियां बढ़ी हैं, इन का तोड़ भी निकालना होगा.

इस अवसर पर सिटा के निदेशक भागवत धड़ाजी पवार ने कहा कि वर्तमान खेती इतनी खराब नहीं है, लेकिन हमें खेती में क्या करना है, क्या कर सकते हैं, नई दिशा क्या हो सकती है, निर्यातक कैसे बनें? वगैरह पहलुओं को मद्देनजर रखते हुए सही तकनीक से खेती करनी होगी, तभी हम आत्मनिर्भर बन सकेंगे. उन्होंने पौलीहाउस, ग्रीनहाउस और प्लास्टिक कल्चर की उपयोगिता से खेती में होने वाले लाभ पर भी प्रकाश डाला. गोष्ठी में दूरदर्शन केंद्र जयपुर के निदेशक रमेश शर्मा ने कहा कि आज खेती की जमीन किसी और की है और उस का लाभ कोई और ले रहा है. उन्होंने कहा कि जब कोई किसान खेती से दुखी हो कर आत्महत्या करता है तो लगता है कि एक कौम ने आत्महत्या कर ली है. यह दुखद है. राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के निदेशक राजवीर सिंह ने उन्नत खेती पर जोर देते हुए इस में आने वाली समस्याओं पर विस्तार से अपने विचार जाहिर किए जबकि समिति के अध्यक्ष डा. राजेंद्र भाणावत ने किसानों की समस्याओं को सुना और समाधान की कोशिश की.

कृषक संवाद में जम्मू कश्मीर से आए मकबूल मोहम्मद रैना, हरियाणा के ईश्वर सिंह कुंडू, प्रिंस कंबोज, राजस्थान की राज दईयां, सुंडाराम वर्मा, भगवती देवी, जगदीश पारीक, मोटाराम शर्मा, गुरमेल सिंह धौंसी व जसवीर कौर सहित तमाम प्रगतिशील किसानों ने अपनी सफलताओं की जानकारी दी और वहां तक पहुंचने में आई कठिनाइयों के बारे में बताया.इस मौके पर देशभर से आए करीब 30 किसानों को सम्मानपत्र दे कर सम्मानित किया गया. गोष्ठी के समाप्न पर डा. महेंद्र मधुप ने सभी का शुक्रिया अदा किया.                       

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सभी किसानों को मिलेगा मुआवजा

लखनऊ : कुदरती कहर से फसल तबाह होने पर अब उत्तर प्रदेश सूबे के सभी किसान मुआवजे के हकदार होंगे, भले ही बैंक ने संबंधित किसान के ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ पर बीमा की किस्त काटी हो या न काटी हो. ‘राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन’ के राष्ट्रीय संयोजक वीएम सिंह की याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया?है. वीएम सिंह के मुताबिक पिछले साल रबी के दौरान भयंकर बारिश व ओलों से सूबे के 1 करोड़ 60 लाख किसानों की फसलें तबाह हुई थीं. इसी बीच 1153 किसानों की मौतें हुईं. इन में से कई किसानों ने खुदकुशी की तो तमाम किसानों की मौत फसल की तबाही के सदमे में हो गई. सिंह ने बताया कि ओलों व बरसात से सूबे के 73 जिलों में करीब 84 लाख हेक्टेयर यानी 2 लाख 13 हजार एकड़ रकबे में फसलों की बरबादी हुई. सूबे की सरकार ने तबाही में कुल मिला कर 7543 करोड़ 14 लाख रुपए के नुकसान का अंदाजा लगाया. इस पर सिंह ने तर्क दिया कि 1 एकड़ रकबे में अगर महज 10 हजार रुपए का भी नुकसान माना जाए, तो भी कम से कम 20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान बैठेगा.   

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इजाफा

अनाज भंडारण कूवत बढ़ेगी

पटना : बिहार में अनाज भंडारण की कूवत बढ़ाने की कवायद शुरू की गई है. साल 2017 तक 20 लाख 75 हजार मीट्रिक टन अनाज भंडारण की कूवत बढ़ा लेने का लक्ष्य रखा गया?है. फिलहाल राज्य में 37 करोड़ रुपए खर्च कर के 143 गोदामों को बनाने का काम पूरा कर लिया गया है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून व अंत्योदय योजना सहित अन्य कई योजनाओं के लाभ पाने वालों को समय पर अनाज मुहैया कराने के लिए अनाज भंडारण की कूवत बढ़ाने का काम चालू किया गया है. गोदामों को बनाने का काम पंचायत लेबल पर किया जाना है.

अनाज भंडारण की कूवत बढ़ाने के लिए पैक्सों और व्यापार मंडलों को 10 लाख, 75 हजार मीट्रिक टन कूवत के गोदाम बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. वहीं दूसरी ओर राज्य भंडार निगम को 10 लाख मीट्रिक टन कूवत के गोदाम बनाने का काम सौंपा गया है. राज्य भंडार निगम से मिली जानकारी के मुताबिक अब तक 6.50 लाख मीट्रिक टन कूवत के गोदाम बनाने का काम अंतिम स्टेज में?है और चालू माली साल में 2 लाख मीट्रिक टन की कूवत वाले गोदाम बना लिए जाएंगे.पैक्स और व्यापार मंडल इन गोदामों में धान व गेहूं सहित सभी अनाज रख सकेंगे. इन गोदामों में किसान खाद भी रख सकेंगे.     

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हकीकत

गन्ने की मिठास चीनी से भी कम

चंडीगढ़ : लगता है कि इस बार गन्ने की मिठास चीनी से भी कम है. चीनी तो मीठी है, पर हरियाणा के गन्ने की मिठास कम होती जा रही है. पिछले साल की तुलना में इस बार गन्ने से कम मात्रा में चीनी निकली. यूरिया का ज्यादा इस्तेमाल इस की अहम वजह मानी जा रही है. प्राइवेट शुगर मिलें गन्ने से चीनी की कम रिकवरी को आधार बना कर इस बार समय से पहले उत्पादन करने को तैयार नहीं हैं. वहीं किसानों के भुगतान के लिए राज्य सरकार निजी शुगर मिलों को लोन दिलाने में मदद करती है, लेकिन सरकार से ज्यादा मदद की आस में मिलमालिकों के नखरे बढ़ रहे हैं. बाजार में इस बार चीनी के दाम काफी नीचे गिरे हैं. कच्चे तेल के दाम में गिरावट और ब्राजील समेत दूसरे चीनी उत्पादक देशों द्वारा एथेनोल बनाने के बजाय ज्यादा चीनी का उत्पादन इस का सब से बड़ा कारण रहा है. हरियाणा में चीनी मिलों की लागत ज्यादा आ रही है. लागत अधिक होने और चीनी की रिकवरी कम पड़ जाने से मिलें घाटे में जा रही हैं. इसे आधार बना कर वे किसानों का गन्ना खरीदने को तैयार नहीं हैं. कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने विधानसभा के मानसून सत्र में खुद इस बात को माना. उन्होंने कहा कि जमीन की स्थिति, मौसम और दूसरी भौगोलिक हालात के कारण गन्ने से चीनी की रिकवरी इस बार काफी कम हुई है. उत्तर प्रदेश में 9 फीसदी और महाराष्ट्र में 11 फीसदी चीनी की रिकवरी हुई है, वहीं हरियाणा में साढे़ 8 से 9 फीसदी तक रिकवरी हुई है.                          

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हालात

अरहर की दाल हुई बेकाबू किल्लत बरकरार

नई दिल्ली : त्योहार का सीजन आते ही दालों ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं. कभी साधारण तबके का आहार समझी जाने वाली अरहर की दाल अब आम लोगों के बस से बाहर की बात हो गई है. कहा जाता है कि पैसे वाले लोग ही महंगी दालें खा सकते हैं, पर ऐसा नहीं है. सच यही है कि महंगाई की मार से कोई भी अछूता नहीं बचा है. हैदराबाद में लोग दाल छोड़ कर अंडे खा रहे हैं. वहीं बिहार में गरीब लोग चावल और चटनी का जायका ले रहे हैं. वे कहते हैं कि पता नहीं क्यों दाल की आसमान छूती कीमतें चुनाव का मुद्दा नहीं बन पाईं. अरहर की दाल अब 200 रुपए प्रति किलोग्राम है. दिल्ली में इस से सस्ता तो चिकन है. चिकन 150-160 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मिल रहा है. सड़क के किनारे खाने की दुकान लगाने वाली एक औरत ने बताया कि जब दाल 140 रुपए प्रति किलोग्राम थी, तो वह 1 प्लेट दालचावल का 40 रुपए लेती थी. अब दाल की कीमत बढ़ गई है, तो वह 1 प्लेट दालचावल का दाम 50 रुपए लेती है. दिल्ली में अरहर या तूर की दाल की कीमत खुदरा बाजार में 200 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है. वहीं दिल्ली के बाहर दूसरी दालें भी सस्ती नहीं हैं.

डब्बाबंद तूर की दाल 180 से 200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. धुली मसूर की कीमत 130 और 180 रुपए प्रति किलोग्राम के बीच है. इसी तरह मूंग व उड़द की दालें भी 140 ये 150 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही हैं. मार्च में बेमौसम बरसात के कारण इस साल दाल की कीमतों में बेइंतहा इजाफा हुआ है. कुछ लोगों का कहना है कि कीमतें अभी और भी बढ़ेंगी.          

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नसीहत

पढ़ाई के साथ सब्जियां उगाएं

पटना : शहर में एक ऐसा कालेज है, जहां के स्टूडेंट पढ़ाई के साथसाथ कालेज कैंपस की खाली पड़ी जमीन पर सब्जियां और फल उगाते हैं. खेती से कालेज को आमदनी होती?है और साथ ही कैंपस में हरियाली भी रहती है. पटना वूमेंस कालेज की छात्राएं कैंपस में खेती कर के राज्य और देश के बाकी कालेजों के लिए मिसाल पेश कर रही?हैं. कैंपस में कालेज के स्टाफ और छात्राएं मिल कर खेती का काम करते हैं. फल और सब्जियों को मार्केट रेट से काफी कम कीमत पर बेचा जाता है. कालेज के हास्टल में रहने वाली छात्राओं को इस से काफी फायदा मिल जाता?है. उन्हें हास्टल में भी कम कीमत पर फलसब्जियां मिल जाती हैं.                   

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फरमान

धान का पैसा दे सरकार

पटना : बिहार के किसानों को तय समय पर धान का पैसा नहीं मिलने से नाराज और हताश किसान आखिरकार अदालत का दरवाजा खटखटा रहे?हैं. इस मामले पर दर्जन भर से ज्यादा रिट याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य और केंद्र सरकार हर हाल में किसानों को पैसा दें. इस के साथ ही धानखरीद की तय की गई तारीख तक खरीदे गए धान का उठाव भी किया जाए. अदालत ने कहा है कि जिन किसानों ने निर्धारित समय से पहले पैक्स समेत खरीद केंद्रों पर अपना धान दे कर उस की रसीद ले ली है, उन किसानों को धान का पैसा फौरन देना होगा. गौरतलब है कि पैक्स किसानों का धान लेने के बाद भी भुगतान करने में आनाकानी कर रहे?हैं. इस से किसानों की मालीहालत खराब हो रही?है और?बैंकों और महाजनों से लिया गया कर्ज चुकाने में दिक्कत हो रही?है. इस साल 91 लाख मीट्रिक टन धान उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था और 30 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद का भी लक्ष्य तय किया गया था. धान की खरीद में देरी होने और कई तरह के पेंच होने की वजह से कई किसान बैंकों और महाजनों का कर्ज चुकाने और अपने परिवार का पेट पालने के लिए बिचौलियों को अपना धान बेचने के लिए मजबूर हुए थे. उम्मीद है कि अदालत के फरमान के बाद किसानों को अपना पैसा मिल जाएगा.     

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तरक्की

मुरगीपालन में नया कदम

नई दिल्ली : भारत के देहाती इलाकों में मुरगीपालन पारंपरिक काम रहा है. यह काम आमतौर पर काफी लोग करते हैं, लेकिन इस काम से वे ज्यादा मुनाफा नहीं ले पाते. क्योंकि उन लोगों को नईनई तकनीको के बारे में जानकारी नहीं होती?है. मुरगीपालन को बढ़ावा देने की दिशा में नई तकनीक इजाद की है ‘तेलंगाना स्टेट यूनिवर्सिटी फोर वैटेरिनटी, एनिमल एवं फिशनरी साइंस हैदराबाद’ ने. इस तकनीक से 1 साल के अंदर 1 मुरगी 150 अंडे देती है. इसतकनीक के तहत मुरगी का वजन 18 हफ्तों में डेढ़ किलोग्राम हो जाता?है और 5 से 6 महीने में मुरगी दोबारा अंडे देने के लिए तैयार हो जाती है. इस मुरगी के अंडे ब्राउन कलर के होते?हैं, जो दूसरे अंडों के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक होते हैं. ठ्ठ

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खोज

खून बढ़ाएगी आलू की नई किस्म

पटना : केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र ने आलू की एक नई किस्म को विकसित किया है. इस का ऊपरी हिस्सा नीला और भीतरी हिस्सा लाल रंग का?है. इसे खाने से शरीर में खून की कमी दूर होगी. खास बात यह है कि इस नई किस्म के आलू के पौधों को कीटों से?भी कोई खतरा नहीं होगा और साधारण आलू के मुकाबले उत्पादन भी ज्यादा होगा. इस किस्म का शुरुआती प्रयोग कामयाब रहा?है और जल्द ही नई किस्म को नाम भी दिया जाएगा. अगले 2 सालों में किसानों को इस नई किस्म का बीज मिलने लगेगा. आलू का उत्पादन करने वाले किसानों को कीमत भी ज्यादा मिलेगी. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, पंजाब और छत्तीसगढ़ वगैरह राज्यों में आलू की नई किस्म के उत्पादन के लिए सही वातावरण है. इस आलू में विटामिन ए और सी भरपूर मात्रा में हैं और इसे खाने से मोटापा भी नहीं बढ़ेगा. इस में फैट की मात्रा कफी कम?है. इस में फाइबर की मात्रा ज्यादा है, जिस से यह पचने में आसान है. आलू की बाकी किस्मों के मुकाबले यह ज्यादा समय तक सुरक्षित रह सकता?है. इस आलू को गाजर, मूली, खीरा, टमाटर व चुकंदर वगैरह की तरह सलाद के रूप में भी खाया जा सकता?है. केंद्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र की पटना शाखा के डायरेक्टर वीरपाल सिंह ने बताया कि इस आलू की फसल कम से कम 70 और अधिक से अधिक 90 दिनों के भीतर तैयार हो जाएगी. इस आलू की प्रति हेक्टेयर 400-500 क्विंटल तक पैदावार मिल सकेगी और इस में झुलसा रोग होने का खतरा भी काफी कम होगा.

गौरतलब है कि बिहार में सालाना 70 लाख टन आलू की पैदावार होती है. मुख्य रूप से पटना, नालंदा, वैशाली, सिवान, छपरा, समस्तीपुर, बेगूसराय, गोपालगंज, पूर्णियां, कटिहार, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण में आलू का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता?है.                       ठ

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तकनीक

मिट्टी की जांच अब होगी जीपीएस से

लखनऊ : भारत के तमाम किसान खेतीबारी में अभी भी पुराने तरीके ही आजमाने की कोशिश करते हैं. ज्यादातर किसानों का मानना है कि पुराने तरीके तो सीखे हुए हैं, लेकिन नए तो सीखने पडे़ंगे. सीखने के लिए वक्त चाहिए, जो उन के पास नहीं है. जितने दिन सीखेंगे, उतने दिनों में तो पूरी खेती हो जाएगी. पुराने समय में भले ही मिट्टी की जांच हाथ में ले कर की जाती थी, पर अब ऐसा नहीं है. सूत्रों के मुताबिक, अब जीपीएस सिस्टम से मिट्टी की जांच की जाएगी. मिट्टी नमूनों की जांच के लिए जमीन भी जीपीएस सिस्टम से तय की जाएगी. जांच के आधार पर जो आंकड़े आएंगे, उन की भी डिजिटल मैपिंग की जाएगी. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अफसरों ने यह हिदायत उत्तर भारत के राज्यों से आए कृषि विभाग के अधिकारियों को एक बैठक में दी. इस बैठक में सामने आया कि ज्यादा से ज्यादाकैमिकल खाद के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है. उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश सब से बड़ा राज्य है. यहां की मिट्टी में भी उर्वरता में काफी कमी आई है, जो कि चिंता की बात?है. बैठक में सभी राज्यों को निर्देश दिया गया कि 5 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मृदा यानी मिट्टी दिवस बड़े पैमाने पर मनाया जाए, ताकि किसानों में मिट्टी को ले कर जागरूकता आए.

बैठक में कृषि विभाग के अफसरों से कहा गया कि मिट्टी जांच का जो विश्लेषण हो, उस की पूरी जानकारी किसानों को जरूर दी जाए. मिटटी के नमूनों की जांच के आधार पर ही जरूरत के अनुसार खाद का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को बताया जाए. कैमिकल खाद के कम से कम इस्तेमाल और जैविक खाद के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पर जोर दिया जाए.     

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मुहिम

बाढ़ का गाद बेच किसान बनेंगे मालामाल

पटना : बिहार की कोसी नदी की बालू से टाइल्स, क्राकरी के सामान और ईंट बनाने की योजना बनाई गई?है. साल 2008 में कोसी नदी में आई भयंकर बाढ़ के बाद बाढ़ प्रभावित इलाकों में काफी बालू और गाद जमा हो गया?है. कोसी ने जिन इलाकों में बाढ़ का कहर मचाया था, उन इलाकों में करीब 20 फुट तक बालू और गाद जमा हो गया है, जिसे हटाना सरकार के लिए मुसीबत बनी हुई है. कृषि उत्पादन आयुक्त विजय प्रकाश ने बताया कि वेस्ट को वेल्थ बनाने के लिए कोसी की जमी बालू और गाद की जांच का काम शुरू किया गया?है. इस के रासायनिक और भूगर्भीय गुणों के साथ ही इस के औद्योगिक कामों में इस्तेमाल की संभावनाओं की पड़ताल भी की जा रही?है. खेतों में जमा बालू को बेच कर किसानों को काफी मुनाफा भी हो सकेगा. आईसीएआर (पटना), सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (नई दिल्ली) और सेंट्रल ग्लास एंड सेरेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (कोलकाता) बालू की स्टडी का काम कर रही?हैं. अगले 2 महीने में रिपोर्ट आने के बाद बालू और गाद से टाइल्स वगैरह बनाने के लिए इंडस्ट्री मालिकों से बाकायदा बातचीत की जाएगी.

सेंट्रल ग्लास एंड सेरेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक पीके मुखोपाध्याय ने बताया कि शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक कोसी की बालू और गाद से टाइल्स और क्राकरी वगैरह के बनाने का काम किया जा सकता?है. इस में लागत भी कम आने की उम्मीद है. अंतिम रिपोर्ट आने के बाद अगर बालू व गाद का इस्तेमाल हो सकेगा, तो जिन किसानों के खेतों में बालू और गाद जमा?हैं, उन किसानों को भी खासा मुनाफा हो सकेगा.               

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तालीम

पढे़लिखे ही पाएंगे बिक्री का लाइसेंस

नई दिल्ली : उर्वरक बिक्री करने का लाइसेंस कृषि की पढ़ाई करने वालों को ही मिल सकेगा. केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया?है. हालांकि जिन लोगों के पास पहले से लाइसेंस है, उन्हें अभी कोई समस्या नहीं होगी. कृषि जानकारों का कहना?है कि सरकार के इस फैसले से कृषि के क्षेत्र में दूरगामी नतीजे होंगे. अब तक कृषि उर्वरक, कीटनाशक बेचने का लाइसेंस कोई भी व्यक्ति आसानी से ले सकता था, जिस के कारण घटिया उर्वरक, बीज, कीटनाशक वगैरह उन के द्वारा किसानों तक पहुंचते थे. किसानों को किस खेत में कितना खाद बीज इस्तेमाल करना है इस की जानकारी भी ये लोग नहीं दे सकते?थे. इसलिए सरकार का यह फैसला किसानों के हित में होगा. साथ ही कृषि पढ़ने वालों को रोजगार का साधन भी मिलेगा. सरकार के इस फैसले के तहत जिन्होंने कृषि विज्ञान में स्नातक किया हो या किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से कृषि क्षेत्र का कोई कोर्स किया हो. उन्हें ही इस का फायदा मिल सकेगा.      

             

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सुविधा

एससीएसटी को मुफ्त चूजे

पटना : बिहार के एससी और एसटी वर्ग के लोगों की माली हालत में सुधार के साथ उन के स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिए एक ही तीर से 2 शिकार करने की योजना बनाई गई?है. इस के तहत एससी और एसटी वर्ग के गरीब लोगों को मुफ्त में 25-25 चूजे दिए जाएंगे. सरकार को यकीन है कि इस से एससीएसटी के गरीब लोग मुरगीपालन कर के अपनी आमदनी बढ़ाएंगे और साथ में मुरगी के अंडों को खा कर अपने स्वास्थ्य को भी दुरुस्त रख सकेंगे. मुरगीपालन कर के हर परिवार को हर महीने 3 हजार रुपए तक की आमदनी हो सकेगी. 63 हजार एससीएसटी परिवारों के बीच 15 लाख, 75 हजार चूजे बांटने का लक्ष्य रखा गया?है. 1 चूजे को 1 महीने तक मदर यूनिट में रख कर वैक्सीन कराने के लिए 35 रुपए दिए जाएंगे. इस योजना पर राज्य सरकार 6 करोड़ रुपए खर्च करेगी. लो इनपुट वेराइटी की मुरगी बाकी वेराइटी के मुकाबले ज्यादा अंडे देती है. इस वेराइटी की मुरगी हर साल 150 से 175 अंडे देती?है. सब से खास बात यह?है कि इस वेराइटी की मुरगी के रखरखाव पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता है. इस किस्म की मुरगी को घर के आसपास ही खाने के लिए अनाज और कीड़ेमकोड़े मिल जाते?हैं, इसलिए उसे खिलाने के लिए अलग से कोई इंतजाम नहीं करना पड़ता है. अगर अलग से कुछ खाने को दिया जाए तो इस किस्म की मुरगी और मुरगा का वजन काफी बढ़ जाता है. एक मुरगा 2-3 किलोग्राम तक का हो सकता?है और ऐसे मुरगे की कीमत 300 से 400 रुपए तक आसानी से मिल जाती?है. वहीं 1 अंडे के 7 से 10 रुपए तक मिल जाते?हैं.                    

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वापसी

मैगी अब नए रंगरूप में

मुंबई : बस 2 मिनट में बनने वाली बेहद लोकप्रिय मैगी बच्चों को आज भी याद है. मैगी का नाम सुनते ही उन के मुंह में पानी आ जाता है. बच्चों की चहेती बन चुकी नैस्ले की मैगी फिर से बाजार में जल्दी ही दिखने लगेगी मैगी के नमूने की जांच को मुंबई हाईकोर्ट ने सही ठहराया है. कंपनी का कहना है कि वह दोबारा बाजार में मैगी उतारेगी. बता दें कि नैस्ले कंपनी की मैगी में लैड की मात्रा ज्यादा पाई गई थी. इस के बाद कंपनी ने बाजार से मैगी के पैकेट वापस मंगा लिए थे और उन को जला दिया गया था. इस से इस कंपनी को करोड़ों रुपए की चपत लगी थी. इधर बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि की आटे से बनी मैगी बाजार में जल्दी ही देखने को मिलेगी. अब देखना यह है कि बच्चों को कौन सी मैगी भाती है. अरबों रुपए का कारोबार करने वाले बाबा रामदेव बडे़बडे़ रिटेल स्टोरों के साथ तालमेल बनाने पर जुटे हैं. बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ने अपनी चीजों को बेचने के लिए फ्यूचर ग्रुप से एक करार किया है.           

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मुहिम

बिहार में दूध उत्पादन में लंबी छलांग

पटना : बिहार सरकार का दावा है कि पिछले 7 सालों में राज्य में दूध उत्पादन में 4 गुना इजाफा हुआ है. दुग्ध संघों और सहकारी समितियों की कोशिशों की वजह से यह मुमकिन हो सका है. पटना, मगध और तिरहुत समेत सभी 38 जिलों के दुग्ध संघों ने बेहतर नतीजे दिए हैं. साल 2008 में जहां 4 लाख, 17 हजार किलोग्राम दूध उत्पादन होता था, वह आज बढ़ कर 16 लाख, 90 हजार किलोग्राम हो चुका है. इस के अलावा हजारों किलोग्राम दूध दुग्ध उत्पादक अपने घरों के लिए भी रख रह हैं. बिहार स्टेट मिल्क कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड सहित बाकी सहकारी समितियों के मुताबिक नई तकनीक और रिसर्च का फायदा मिल्क इंडस्ट्री को मिला?है. राष्ट्रीय डेरी विकास के द्वारा चलाए जा रहे ट्रेनिंग प्रोग्राम से दूध उत्पादकों को काफी मदद मिली है. बिहार स्टेट मिल्क कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड के एमडी आदेश तितरमारे ने बताया कि डेरी विकास की योजनाओं से किसानों और दूध उत्पादकों को फायदा मिल रहा है. पशुपालन से ले कर पशुओं को पौष्टिक चारे और संतुलित आहार देने तक की ट्रेनिंग पशुपालकों को दी गई है और किसानों ने उस पर अमल भी किया है.

राज्य के बड़े दुग्ध उत्पादन संघ वैशाल पाटलीपुत्र दुग्ध उत्पादन संघ ने साल 2011-12 में 210.15 लाख किलोग्राम, साल 2012-13 में 224.85 लाख किलोग्राम, साल 2013-14 में 282.09 लाख किलोग्राम और साल 2014-15 में 318.15 लाख किलोग्राम दूध का उत्पादन किया.        

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बेबसी

सूखे से लाखों किसान परेशान

जयपुर : राजस्थान भी सूखे की मार झेल रहा है. राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत ने कहा कि प्रदेश और देश में आज भयंकर अकाल व सूखे जैसे हालात हैं. लाखों किसानों के सामने जीवन का संकट खड़ा हो गया है, जिसे सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि मनरेगा के कारण सरकारों पर से अकालसूखे से निबटने का दबाव कम तो हुआ है, फिर भी इसे गंभीरता से लिया जाना जरूरी?है. अशोक गहलोत ने माना कि जब से संप्रग सरकार ने कानून बना कर मनरेगा लागू किया है, तब से सरकारों पर से दबाव कम हुआ है, लेकिन फिर भी समय पर राहत कार्य नहीं किए जा रहे हैं. पीने के पानी का भी सही इंतजाम नहीं है. उन्होंने जोर दे कर कहा कि राज्य सरकार ने ओले गिरने और बेमौसम बारिश के समय जिस लापरवाही का प्रदर्शन किया, उस से सबक लेते हुए उसे समय रहते तुरंत सूखे से जुडे़ राहत कार्य शुरूकरने चाहिए.              

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हालात

एक करोड़ टन दाल के आयात की जरूरत

नई दिल्ली : काफी अरसे से मचा दाल का हाहाकार किसी से छिपा नहीं है. इस मामले ने आम आदमी का चावलरोटी तो फीका किया ही है, साथ ही सरकार की हालत भी खस्ता कर दी है. अब आलम यह है कि घरघर की दाल की दिक्कत दूर करने के लिए सरकार को 1 करोड़ टन दाल का आयात करना पड़ेगा. कमजोर मानसून के कारण इस साल दाल का उत्पादन महज 170 लाख टन रहने का अंदाजा है. बीते साल में दाल का उत्पादन 172 लाख टन था, तब इतना हाहाकार मचा तो उत्पादन और कम होने पर क्या नजारा होगा, इस का अंदाजा लगाया जा सकता है. औद्योगिक संगठन एसोचैम के एक अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है. इसी अध्ययन के मुताबिक इस साल दाल की मांग में और इजाफा होने से 1 करोड़ टन दाल आयात करनी पड़ेगी. एसोचैम का अंदाजा है कि वैश्विक स्तर पर दाल की आसानी से आपूर्ति न होने के कारण इस साल दाल की मांग व आपूर्ति के अंतर को पाटना मुश्किल होगा. दाल के दामों में लगातार इजाफे से इस का असर महंगाई पर भी नजर आएगा. खरीफ की फसल दाल के उत्पादन में पूरे भारत में महाराष्ट्र सूबा पहले नंबर पर है. महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश सूबों में सब से ज्यादा दाल पैदा की जाती है. खरीफ में दाल के उत्पादन में इन पांचों सूबों की हिस्सेदारी 70 फीसदी है, मगर इन सभी सूबों में इस बार मौसम ने कहर बरपाया है, लिहाजा पैदावार गड़बड़ाना लाजिम है.

बहरहाल, हालात आसानी से काबू में आने वाले नहीं हैं. बड़े पैमाने पर दाल के आयात से आयात बिल पर बोझ बढ़ेगा, इस के अलावा आयातित दाल को देश के सभी हिस्सों में पहुंचाना भी सरल नहीं है.         

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मुहिम

किसान आंदोलन : रेल हुई बेपटरी

चंडीगढ़ : बरबाद हुई फसल का सही मुआवजा न मिलने के विरोध में उतरे किसानों ने रेल रोको आंदोलन चलाया. इस से पंजाब में रेल यातायात ठप रहा.  उधर, किसानों के आंदोलन व धरने को कमजोर करने के लिए मुख्य रास्तों और गंवई इलाके के कच्चे रास्तों पर नाकाबंदी कर दी गई. बठिंडा पुलिस ने अब तक 3 सौ से ज्यादा किसानों को पकड़ा है. वहीं रामपुरा में पुलिस और रेलवे ट्रैक जाम कर रहे किसानों के बीच टकराव होतेहोते टला. इसी तरह अमृतसर के गांव मुछल में बासमती धान की वाजिब कीमत की मांग को ले कर किसान अपनी बात पर डटे रहे. अमृतसर स्टेशन पर न तो कोई रेलगाड़ी पहुंची और न ही वहां से कोई ट्रेन चली. सभी रेलगाडि़यों को ब्यास स्टेशन सेपहले ही रोक दिया गया. कृषि मंत्री तोता सिंह से इस्तीफे की मांग की गई. किसानों की मांग है कि कपास फसल की बरबादी का मुआवजा 40 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से दिया जाए, किसानों का कहना है कि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार को माली मदद दी जाए और ऐसे परिवारों के 1-1 सदस्य को नौकरी भी दी जाए.

मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने रेल रोको आंदोलन कर रहे किसानों से संघर्ष का रास्ता छोड़ने की अपील की. इस वजह से मुसाफिरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि वे किसानों की जायज मांगों को मानने के लिए हमेशा तैयार रहे हैं. किसानों के आंदोलन का असर भारतपाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस पर भी पड़ा. साथ ही, किसानआंदोलन की गाज सरकारी अफसरों पर भी गिरी. प्रदेश सरकार ने पुलिस महकमे में भारी फेरबदल करते हुए 3 एसएसपी समेत 21 आईपीएस और 6 पीपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया. सरकार का मानना है कि किसानों में उपजे गुस्से के बारे में सरकारी मुलाजिम पूरीपूरी और सही सही जानकारी नहीं जुटा सके, इसी वजह से किसान रेल रोको आंदोलन कर रहे हैं. देखते हैं कि सरकार झुकती है या किसान यों ही इस आंदोलन को खत्म करते हैं.    

               

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सख्ती

दाल की जमाखोरी पर लगाम

लखनऊ : यह सारी दुनिया का दस्तूर है और हमारे देश का तो है ही कि जैसे ही किसी चीज की किल्लत हुई तो उसे आननफानन में मार्केट से गायब कर दिया जाता?है. आजकल दाल बाजार से गायब है, पर न जाने कितने कारोबारियों ने उसेअपने गुप्त गोदामों में छिपा कर रखा होगा. इस जमाखोरी का अंदाजा तो लगाया जा सकता?है, पर पता लगाना आसान नहीं है. इसी सिलसिले में मुख्य सचिव आलोक रंजन ने कहा कि दाल की जमाखोरी व कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार जल्द ही कानून लागू करेगी. इस मामले में जल्दी से जल्दी कैबिनेट से प्रस्ताव मंजूर कराया जाएगा. मुख्य सचिव ने बताया कि सूबे में दाल पर स्टाक लिमिट कानून तो लागू है, मगर यह ज्यादा खुल कर नहीं बनाया गया. दाल आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में भी नहीं आती, लिहाजा इस पर इस अधिनियम की धारा 3/7 के तहत भी कार्यवाही नहीं की जा सकती. अब कैबिनेट में लाए जाने वाले प्रस्ताव में इस कमी को भी दूर कर के जमाखोरी व कालाबाजारी रोकने का सख्त कानून बना कर लागू किया जाएगा.

सवाल सिर्फ दाल की जमाखोरी का नहीं?है. भारत में कभी चीनी गायब हो जाती?है, तो कभी आटे के लाले पड़ जाते हैं. कभी प्याज लापता हो जाता?है, तो कभी आलू तलाशने से भी नहीं मिलता. यानी हर किस्म की जरूरी चीजों की जमाखोरी बंद करना लाजिम है.   

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पेशकश

सोनालिका ने पेश की एडवांस्ड ट्रैक्टर सीरीज

कुल्लू : देश में तीसरी सब से बड़ी ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी सोनालिका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड ने कूल्लू, हिमाचल प्रदेश के दशहरा मेले में नए एडवांस्ड गार्डन ट्रैक 26 और आरएक्स 30 बागबान सुपर ट्रैक्टर पेश किए. इन ट्रैक्टरों को फलों के बागानों (सेब, अंगूर, पपीता और अनार) व कतारबद्ध फसलें जैसे कपास, गन्ना और मूंगफली की खेती की विशेष जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. गार्डन ट्रैक 26 और आरएक्स 30 बागबान सुपर ट्रैक्टर तकनीकी रूप से बेहद उन्नत हैं और इन में 26 एचपी और 30 एचपी का बेहद दमदार इंजन लगा है. इस के साथ ही इन में पावर स्टीयरिंग हाइड्रोलिक सिस्टम विद आटोमैटिक डैप्थ एंड ड्राफ्ट कंट्रोल (एडीडीसी) है, जो काम को बहुत आसान बना देता है. ईंधन की खपत के लिहाज से बेहद किफायती ये ट्रैक्टर आसानी से लंबे समय तक लगातार काम कर सकते हैं. ये ट्रैक्टर आकार में छोटे डिजाइन किए गए हैं. इन का टर्निंग रेडियस यानी मोड़ने में लगने वाली जगह भी बहुत कम है और ये 4 व्हील ड्राइव में आते हैं, जो ट्रैक्टर को बेहतर पकड़ व ताकत प्रदान करते हैं. इन का हर एक कलपुर्जा हैवी ड्यूटी बनाया गया है, ताकि ट्रैक्टर को लंबी उम्र मिले.

सोनालिका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड के सहायक उपाध्यक्ष (सेल्स) विवेक गोयल ने बताया, ‘हमारे नए एडवांस्ड गार्डन ट्रैक 26 और आरएक्स 30 बागबान सुपर ट्रैक्टर बागबानी करने वाले किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होंगे. इन दोनों ही ट्रैक्टरों को आज की मांग को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है और ये अंतर खेती, स्प्रेइंग, रोटावेटर, ट्राली और दूसरे कामों के लिए बिलकुल सही हैं. हमारी एडवांस्ड सीरीज के ये ट्रैक्टर हमारे ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने की हमारी प्रतिबद्धता को पुख्ता करते हैं. हम अपने ट्रैक्टरों में लगातार सुधार करते रहते हैं और क्वालिटी पर करीब से नजर रखते हैं.’                                                           ठ्ठ

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धांधली

ब्लैक में बिक रहा सेना का दूध 

मनाली : बेईमान किस्म के लोगों के लिए दुनिया में कोई दायरा नहीं बना. जहां भी जिस हद तक मुमकिन होता है, बेईमान लोग चोरीचकारी कर लेते हैं. ऐसा ही नजारा हिमाचल प्रदेश के मनाली में भी सामने आया, सेना के लिए भेजा जाने वाला दूध वहां के बाजार में ब्लैक में बेचा जा रहा है. मनाली की एसडीएम ज्योति राणा ने छापेमारी कर के एक दुकान से करीब 50 लीटर दूध की की थैलियां बरामद कीं. उन पैकेटों पर ‘डिफेंस सर्विस ओनली’ छपा था. पैकेटों पर दाम भी दर्ज नहीं थे. दुकानदार के मुताबिक सेना के लोग उसे 40 रुपए प्रति लीटर की दर से दूध बेच जाते हैं, जिसे वह 60 रुपए प्रति लीटर की दर से बेचता है. मनाल के पचलान में सेना के ट्रांजिट कैंप, सीमा सड़क संगठन और लेहलद्दाख से सटे इलाकों में तैनात जवानों के लिए खानेपीने की चीजें इसी रास्ते से जाती हैं, ऐसे में ये चोरी हैरानी वाली बात नहीं है. 

हैरत

मटन से महंगी दाल

झूलघाट (पिथौरागढ़) : जब भारत में अरहर की दाल के दाम 200 रुपए प्रति किलोग्राम का दायरा लांघ गए थे, तो तमाम लोग कहने लगे थे कि इस से बेहतर तो 150 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास मिलने वाल चिकन ही है. और अब नेपाल में अरहर की दाल 400 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है यानी मटन से महंगी बिक रही है. पश्चिमी नेपाल के बैतड़ी जिला मुख्यालय से सटे देहमाणू बाजार में इन दिनों खामोशी छाई हुई है. भारत की ओर से की गई नाकेबंदी के बाद महंगाई चरम पर पहुंच गई है. पैट्रोल व डीजल की दिक्कत की वजह से धनगढ़ी मंडी से सामान नहीं आ पा रहा है. जरूरी चीजों की सप्लाई न होने से अरहर की दाल 400 रुपए (नेपाली मुद्रा) प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. बहुत महंगी होने की वजह से व्यापारियों ने अरहर की दाल मंगाना कम कर दिया है. नेपाल में स्थानीय लोबिया, गहत, राजमा, सोयाबीन व भट्ट की दाल के दाम भी बेहद बढ़ गए हैं. पिछले साल के मुकाबले स्थानीय दालों की कीमतें 30 फीसदी तक बढ़ गई हैं. नेपाल के डडेलधुरा, बैतड़ी व दार्चुला बाजारों में जरूरी चीजों की बेहद कमी हो गई है.    

राहत

सूखे की वजह से अभी वसूली नहीं

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने सूबे में सूखे का आलम देख कर मुख्य देयकों यानी लगान की वसूली 31 मार्च, 2016 तक रोकने का फैसला किया है. मुख्य सचिव आलोक रंजन ने किसानों के साथ किसी भी तरह की सख्त कार्यवाही न करने का आदेश दिया है. फिलहाल न तो कोई आरसी जारी की जाएगी न ही किसी मुद्दे पर किसानों को गिरफ्तार कर के जेल भेजा जाएगा. वसूली संबंधी मामलों में फिलहाल राहत देने के साथसाथ मुख्य सचिव ने 15 लाख किसानों को फसलबीमा की रकम का जल्दी से जल्दी भुगतान कराने को कहा?है. मुख्य सचिव आलोक रंजन ने इस बार के सूखे पर विभागीय अफसरों के साथ हालात पर गौर किया. इस के अलावा उन्होंने मंडलायुक्तों व कलेक्टरों से बात कर के सूखे के लिहाज से की जा रही कार्यवाही की भी जानकारी ली. जांचपड़ताल में सूबे के 31 जिले ऐसे पाए गए हैं, जहां 50 फीसदी से भी कम बरसात हुई?है. सरकार द्वारा किसानों का खयाल रखा जाना काबिलेतारीफ?है.                                                            

– मधुप सहाय, भानु प्रकाश, अक्षय कुलश्रेष्ठ, बीरेंद्र बरियार और मनोहर कुमार जोशी

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सवाल किसानों के

सवाल : मैं अनार का छोटा सा बाग लगाना चाहती हूं. कृपया इस बारे में जानकारी दें?

-शीला, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश

जवाब : अनार के पौधे ज्यादा सर्दी नहीं झेल पाते. इस की बागबानी के लिए अच्छे जल निकास वाली मिट्टी बेहतर रहती?है. इस की खास किस्में हैं. गणेश, अलांदी, धोलका, कनधारी व मस्कट. अनार को बसंत के मौसम या बारिश के मौसम में लगाना अच्छा रहता है. पौधों को 3 से 5 मीटर के फासले पर लगाना सही रहता?है और विस्तार से जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकती हैं.

सवाल : मैं बड़े पैमाने पर बैगन की खेती करना चाहता हूं. कृपया इस की अच्छी किस्मों की जानकारी दें. कीड़ों व बीमारियों से बचाव के बारे में भी बताएं?

-पप्पू श्रीवास्तव, जबलपुर, मध्य प्रदेश

जवाब : बैगन की लंबे फल वाली उन्नतशील किस्में हैं: पंजाब सदाबहार, पंजाब बरसाती, पूसा परपल लांग व पंत सम्राट. बैगन की गोल फल वाली उन्नतशील किस्में हैं: पंत ऋतुराज, अरुणा व राजनगर जाइंट. बैगन की संकर किस्में?हैं: पूसा संकर 5, 8 व नवकिरण. बैगन की बोआई का समय जूनजुलाई, दिसंबरजनवरी व मार्चअप्रैल?है. बैगन को तनाबेधक व फलबेधक कीटों से बहुत नुकसान पहुंचता है. तनाबेधक कीटों द्वारा प्रभावित तनों को?ऊपर से सूंड़ी सहित तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए. यह काम हफ्ते में 1 बार जरूर करें. खेत में फेरोमोन ट्रेप लगा कर नर कीटों को पकड़ कर अंडों की तादाद में कमी लाई जा सकती?है. इस के अलावा कार्बोसिल्फान 25 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. हरा फुदका (जैसिड) की रोकथाम के लिए बैगन के पौध की जड़ को कानफिडोर नामक दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में मिला कर बनाए गए घोल में 1 घंटे तक डुबोने के बाद क्यारी में लगाएं. बैगन की खेती के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए आप अपने इलाके के कृषि विज्ञान केंद्र जा कर बात कर सकते?हैं.

सवाल : मैं अपने किचन गार्डन में मशरूम उगाना चाहती हूं. क्या यह मुमकिन है? कृपया पूरी जानकारी दें?

-संतोष कुमारी, मुंबई, महाराष्ट्र

जवाब : संतोष कुमारीजी मशरूम की खेती खुले खेत में नहीं की जा सकती. इस के लिए भूसे का मिक्चर तैयार कर के उस पर बंद कमरे या ग्रीन हाउस में मशरूम उगाया जाता?है. इस के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में जा कर प्रशिक्षण प्राप्त करें. मशरूम के बीज यानी स्पान भी आप को कृषि विज्ञान केंद्र के जरीए ही हासिल हो सकते?हैं. आप को मशरूम की खेती का शौक तो है, मगर इसे करना उतना आसान नहीं?है.       

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