आपने मर्द को औरत पर अत्याचार करते सुना होगा और औरत को भी मर्द पर अत्याचार करते सुना होगा. आप ने मां-बाप को बच्चों पर अत्याचार करते सुना होगा. पर क्या आप ने कभी यह सुना है कि छोटे-छोटे बच्चे भी मां-बाप पर अत्याचार करते हैं. जिस प्रकार से उपरोक्त सारी बातें सच हैं, उसी तरह यह भी सच है कि छोटे-छोटे बच्चे भी मां-बाप पर अत्याचार करते हैं. बहुत छोटे बच्चों का छोटी-छोटी जिदों को मनवाने के लिए रूठना, कुछ खाने या कुछ न खाने की जिद में जोरजोर से रोना-चिल्लाना आदि उन की उम्र के मानसिक उत्पीड़न के उपकरण हैं.

यही बच्चे जब कुछ बडे़ हो कर स्कूल पहुंचते हैं तो जिस प्रकार ये मां-बाप को पीड़ा पहुंचाते हैं, वह न सुनते बनता है न कहते. शुरू में तो इनके टीचर ही इनके मसीहा बन जाते हैं. जो टीचर जिस बच्चे को भा गई, समझिए कि बच्चा आप का न रह कर उस का बन गया. वह टीचर चाहे जितनी भी गलत हो, बच्चा आप की सही बात को भी मानने को तैयार नहीं होगा और उस की गलत से गलत बात को भी सही मान कर उसी पर अमल करेगा, फिर चाहे आप जितने दुखी होते फिरें, बच्चे की बला से.

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बच्चा जैसे ही कुछ और बड़ा हुआ और दोस्तों में रमने लगा, तब तो पूछिए मत. उस का दोस्त या सहेली ही उस के लिए सबकुछ हो जाएंगे, फिर चाहे मां-बाप दीवार से सिर फोड़ लें, बच्चा फिर भी उन्हें ही गलत मानेगा. इसके पीछे पहला कारण तो उम्र का फासला है और दूसरा, मां-बाप बच्चे को गलत काम करने से रोकते हैं, हर वक्त नसीहतें देते रहते हैं. और यही बच्चों को अच्छा नहीं लगता.

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