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एक दिन राजीव ताला लगाना भूल गए. मैं ने जो उसे खोल कर देखा तो सारे पत्र उस में थे. मुझे बहुत तेज गुस्सा आया. मैं ने राजीव को औफिस से आते ही कहा तो मुझे गालियां देने लगे और बुरी तरह से पिटाई भी की और बाहर से ताला लगा कर कहीं चले गए.फिर मैं ने पड़ोसियों को आवाज दी और बोली "मेरा पति मेरे सोते समय ताला लगा चले गए. अब उन के आने में देर हो रही है बच्चा रो रहा है. अब प्लीज आप ताला तोड़ दो."

कोई सज्जन पुरुष थे. उन्होंने ताला तोड़ दिया तो मैं उन्हें शुक्रिया कह कर जयपुर आ गई. मम्मीपापा मुझे देख कर दंग रह गए. मेरी मम्मी को तो बहुत गुस्सा आया और वे खूब चिल्लाने लगीं. पापा मेरे सहनशील व्यक्ति थे.उन्होंने कहा,"आकांक्षा के ससुराल में सूचित कर देता हूं. ऐसे मामले में जल्दबाजी ठीक नहीं."

ससुराल वालों ने अपनी बेटे की गलती को मानने के बदले मेरी सहनशीलता को दोष दिया. खैर, हम ने कुछ नहीं किया. पापा बोले,"ऐसी स्थिति में बेटी को हम बीएड करा कर पैरों पर खड़े कर देते हैं."

मैं बीएड की तैयारी में लग गई. राजीव का पत्र आया कि तुम आ जाओ सब ठीक हो जाएगा. जब उन्हें पता चला कि मैं बीएड की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही हूं तो उन्होंने राजीव को हमारे घर पर भेजा. "अब मैं ठीक रहूंगा, तुम्हें कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा. तुम मेरे साथ आ जाओ. मैं तुम्हें नौकरी भी करने दूंगा," राजीव कहने लगे.

मैं ने उन्हें कहा,"बगैर बीएड किए मैं यहां से नहीं जाऊंगी." राजीव उस समय तो यहां से चले गए. फिर जहां नौकरी करते थे वहां के जिले में कोर्ट केस कर दिया,"मेरी पत्नी को मेरे साथ आ कर रहना चाहिए. मैं चाहता हूं वह मेरे साथ रहे."

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