कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मैं ने कहा, "मुझे छत पर जाने नहीं देते. सब लोग कपड़े छत पर सुखाते हैं और मुझे कहते हैं कि अपने देवर को दे दो वह सूखा देगा. मम्मी बताओ तो अंडरगारमैंट्स अपने जवान देवर को कैसे देती फैलाने?" मेरे सासससुर कहते हैं कि अब तेरा घर यही है. अब तू पीहर नहीं जाएगी. बहुत रह लिया पीहर में."

मेरी मम्मी सुन कर बहुत रोईं.मेरे मम्मीपापा मुझे जान से भी ज्यादा चाहते थे. पापा तो मुझे आकांक्षा भी नहीं बुलाते आकांक्षाजी कहते थे. उन्होंने हमेशा मुझे प्रेम, प्यार और इज्जत से रखा.

जब मैं पीहर आती तो मेरे ससुरजी मेरे पर्स की तलाशी लेते और कहते कि हमारे घर से क्या ले जा रही हो? उन के घर में कुछ भी नहीं था जो मैं साथ ले जाती. और ले भी क्यों जाती क्योंकि पीहर में कोई कमी नहीं थी.

एक दिन तो मुझे बहुत तेज गुस्सा आया. जैसे ही उन्होंने कहा कि पर्स दो तो मैं ने कह दिया, "पापाजी, आप तो बहू से घूंघट करवाते हो. फिर आप कैसे बहू के पर्स को खोल कर देख सकते हो? हमें अपने पर्स में सैनिटरी पैड्स भी रखना पड़ता है... हम आप को दिखाएं?"

सास अनपढ़ थीं. उन को कुछ समझ में नहीं आता. वह भी ससुर से उलटा चुगली करती थीं. ससुरजी हमेशा लड़ने को तैयार रहते थे. इस बीच ऐसा हुआ कि मेरे दूर के मामाजी, जो जयपुर में ही रहते थे, मेरे ससुरजी उन की औफिस में पहुंच गए.

उन से बोले,"आप की भांजी देवरों के अंडरवियर नहीं धोती." मामाजी भौंचक्के रह गए. मामाजी ने सिर्फ इतना कहा, "साहब, छोटी बात को बड़ा मत कीजिए? अभी तो वह 20 साल की ही है. घर में लाड़प्यार से पलीबङी बच्ची है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा."

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...