रचना ने प्रमोद के हाथों में ताजमहल का शोपीस वापस रखते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो प्रमोद, मैं प्यार की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. मैं प्यार के इस खेल में बुरी तरह हार गई हूं. मैं तुम्हारे प्यार की इस धरोहर को वापस करने को विवश हो गई हूं. मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी इस विवशता को समझोगे और इसे वापस ले कर अपने प्यार की लाज भी रखोगे.’’ प्रमोद हैरान था. उस ने अभी कुछ दिन पहले ही अपने प्यार की मलिका रचना को प्यार का प्रतीक ताजमहल भेंट करते हुए कहा था, ‘यह हमारे प्यार की बेशकीमती निशानी है रचना, इसे संभाल कर रखना. यह तुम्हें हमारे प्यार की याद दिलाता रहेगा. जैसे ही मुझे कोई अच्छी जौब मिलेगी, मैं तुरंत शादी करने आ जाऊंगा. तब तक तुम्हें यह अपने प्यार से भटकने नहीं देगा.’
रचना रोतेरोते बोली, ‘‘मैं स्वार्थी निकली प्रमोद, मुझ से अपने प्यार की रक्षा नहीं हो सकी. मैं कमजोर पड़ गई…मुझे माफ कर दो…मुझे अब इसे अपने पास रखने का कोई अधिकार नहीं रह गया है.’’
प्रमोद असहज हो कर रचना की मजबूरी समझने की कोशिश कर रहा था कि रचना वापस भी चली गई. सबकुछ इतने कम समय में हो गया कि वह कुछ समझ ही नहीं सका. अभी कुछ दिन पहले ही तो उस की रचना से मुलाकात हुई थी. उस का प्यार धीरेधीरे पल्लवित हो रहा था. वह एक के बाद एक मंजिल तय कर रहा था कि प्यार की यह इमारत ही ढह गई. वह निराश हो कर वहीं पास के चबूतरे पर धम से बैठ गया. उस का सिर चकराने लगा मानो वह पूरी तरह कुंठित हो कर रह गया था.
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कुछ महीने पहले की ही तो बात है जब उस ने रचना के साथ इसी चबूतरे के पीछे बरगद के पेड़ के सामने वाले मैदान में बैडमिंटन का मैच खेला था. रचना बहुत अच्छा खेल रही थी, जिस से वह खुद भी उस का प्रशंसक बन गया था.
हालांकि वह मैच जीत गया था लेकिन अपनी इस जीत से वह खुश नहीं था. उस के दिमाग में बारबार एक ही खयाल आ रहा था कि यह इनाम उसे नहीं बल्कि रचना को मिलना चाहिए था. बैडमिंटन का कुशल खिलाड़ी प्रमोद उस मैच में रचना को अपना गुरु मान चुका था.
अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद वह रचना से केवल 1 पौइंट से ही तो जीत पाया था. इस बीच रचना मजे से खेल रही थी. उसे मैच हारने का भी कोई गम न था.
मैच जीतने के बाद भी खुद को वह उस खुशी में शामिल नहीं कर पा रहा था. सोचता, ‘काश, वह रचना के हाथों हार जाता, तो जरूर स्वयं को जीता हुआ पाता.’ यह उस के अपने दिल की बात थी और इस में किसी, क्यों और क्या का कोई भी महत्त्व नहीं था. उसे रचना अपने दिल की गहराइयों में उतरते लग रही थी. किसी खूबसूरत लड़की के हाथों हारने का आनंद भला लोग क्या जानेंगे.
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दिन बीतते गए. एक दिन रचना की चचेरी बहन ने बताया कि वह बैडमिंटन मैच खेलने वाली लड़की उस से मिलना चाहती है. वह तुरंत उस से मिलने के लिए चल पड़ा. अपनी चचेरी बहन चंदा के घर पर रचना उस का इंतजार कर रही थी.
‘हैलो,’ मानो कहीं वीणा के तार झंकृत हो गए हों.
उस के सामने रचना मोहक अंदाज में खड़ी मुसकरा रही थी. उस पर नीले रंग का सलवारसूट खूब फब रहा था. वह समझ ही नहीं पाया कि रचना के मोहपाश में बंधा वह कब उस के सामने आ खड़ा हुआ था. हलके मेकअप में उस की नीलीनीली, बड़ीबड़ी आंखें, बहुत गजब लग रही थीं और उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रही थीं. रूप के समुद्र में वह इतना खो गया था कि प्रत्युत्तर में हैलो कहना ही भूल गया. वह जरूर उस की कल्पना की दुनिया की एक खूबसूरत झलक थी.
‘कैसे हैं आप?’ फिर एक मधुर स्वर कानों में गूंजा.
वह बिना कुछ बोले उसे निहारता ही रह गया. उस के मुंह से बोल ही नहीं फूट पा रहे थे. चेहरे पर झूलती बालों की लटें उस की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा रही थीं. वास्तव में रचना प्रकृति की सुंदरतम रचना ही लग रही थी. वह किंचित स्वप्न से जागा और बोला, ‘मैं अच्छा हूं और आप कैसी हैं?’
‘जी, अच्छी हूं. आप को जीत की बधाई देने के लिए ही मैं ने आप को यहां आने का कष्ट दिया है. माफी चाहती हूं.’
‘महिलाएं तो अब हर क्षेत्र में पुरुषों से एक कदम आगे खड़ी हैं. उन्हें तो अपनेआप ही मास्टरी हासिल है,’ प्रमोद ने हलका सा मजाक किया तो रचना की मुसकराहट दोगुनी हो गई.