मेरा नाम आकांक्षा है. अब बड़ी होने के बाद अकसर सोचती हूं कि मेरा यह नाम क्यों पङा… सभी कहते थे कि तुम्हारा नाम बहुत प्यारा है. मम्मी कहती थीं,”मैं ने तो पंडितजी से पूछा था. उन्होंने कहा था कि इस का नाम आकांक्षा रखना ताकि इस लड़की की सारी इच्छाएं पूरी हों.”
सारी इच्छाएं तो जाने दें, यहां तो जरूरी इच्छाएं भी पूरी नहीं हुईं. आप सोच रहे होंगे कि यह मैं कैसी पहेली बुझा रही हूं? मगर यह पहेली नहीं, मेरी जिंदगी का सत्य है.
मेरे मम्मीपापा पढ़ेलिखे और नौकरी करने वाले थे. मेरी मां एमए पास थीं. उन्होंने मुझे अंगरेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाया. आजकल तो गलीगली में अंगरेजी मीडियम के स्कूल हैं. उस समय तो एक ही स्कूल था. जानेमाने स्कूल में मेरा दाखिला दिलवाया था. दोनों ही बड़े खुले विचारों और आधुनिक सोच वाले थे.
मैं पढ़ने में तेज और औलराउंडर थी.पढ़ने के साथ ऐक्टिंग व संगीत में भी मैं माहिर थी. मम्मी को गाने का बहुत शौक था इसलिए उन्होंने स्कूल के बाद गायन क्लास में भी ऐडमिशन दिलवाया.
पापा मेरी किसी भी बात को मना नहीं करते थे. उन से मैं ने बहुत कुछ सीखा. तब स्कूल के सभी प्रोग्राम में मैं भाग लेती थी. क्या नाटक, क्या वादविवाद और क्या गानाबजाना, सभी में मैं ने पुरस्कार प्राप्त किया था. मैं टीचर्स की फैवरिट स्टूडेंट्स में से एक थी.
स्कूल के बाद मैं कालेज में आई. मैं ने नाटकों और लगभग सभी ऐक्टिविटीज में भाग लिया. कालेज के शिक्षकों ने भी मुझे बहुत प्रोत्साहित किया.
मेरी मम्मी आकाशवाणी में प्रोग्राम देती थीं. मैं भी उन के साथ बच्चों के प्रोग्राम में भाग लेती थी. बड़ी होने पर वहां पर मुझे दूसरे प्रोग्राम में लेने लगे. मैं कंपेयरिंग करने लगी.
थोड़े दिनों बाद तो जयपुर शहर में दूरदर्शन भी खुल गया था. मुझे वहां भी जाने का अवसर प्राप्त हुआ. आकाशवाणी में न्यूज रीडर और ड्रामा विभाग में मेरा सिलैक्शन हो गया था.
मैं ने पढ़ाई के साथसाथ दूरदर्शन में न्यूज रीडर और ड्रामा आर्टिस्ट के लिए इंटरव्यू दिया. दोनों ही में मेरा सिलैक्शन हो गया. मम्मीपापा बड़े खुश हुए. मैं तो खुश थी ही क्योंकि मेरी मनोकामनाएं जो पूरी हो गई थीं.
सब ठीकठाक चल रहा था. मम्मी को मेरी शादी की चिंता होने लगी. इसी समय मेरे पापा का ऐक्सीडैंट हो गया. उन की आंखों से कम दिखाई देने लगा. जब मोतियाबिंद का औपरेशन कराया तो वह बिगड़ गया. पापा डिप्रैशन में आ गए थे. अतः उन का बाहर आनाजाना कम हो गया.
अब तो मम्मी को मेरी बहुत चिंता सताने लगी कि बेटी की शादी कैसे होगी? जैसे ही मेरे एमए प्रीवियस का रिजल्ट आया मैं अच्छे नंबरों से पास हो गई. अब तो मेरी मम्मी ज्यादा ही शोर मचाने लगीं,”अभी से देखना शुरू करेंगे तभी लड़का मिलेगा. ढूंढ़ने में भी 2 साल लगेंगे,” ऐसा वे हरएक से कहती रहतीं.
पता नहीं पापा के डिप्रैशन से उन्हें भी डिप्रैशन हो गया, जिसे मैं पहचान नहीं पाई. मुझ में कोई कमी तो थी नहीं. शक्लसूरत भी मेरी अच्छी थी. पढ़ाई के साथ लगभग हर ऐक्टिविटीज में भी आगे थी ही, इस के अलावा मम्मी ने मुझे घर के कामों में भी निपुण बना दिया था.
ननिहाल वालों ने एक लड़का बताया जो लैक्चरर था, पर उन की फैमिली बहुत बैकवर्ड थी. पापा उसे बड़े परेशान हो कर देखने गए. उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आया. मम्मी को यह बात अच्छी नहीं लगी. वे कहने लगीं,”शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. कालेज में लैक्चरर है और क्या चाहिए?”
वे कई दिनों तक नाराज रहीं.पापा बोले, “लड़का इंग्लिश मीडियम का पढ़ा हुआ नहीं है, छोटीछोटी जगहों पर उस की पोस्टिंग होगी. बेटी आकांक्षा को तकलीफ होगी.”
खैर मेरे तक तो बात पहुंची नहीं, वहीं समाप्त हो गई. अब किसी ने मम्मी को बता दिया एक लड़का सरकारी कालेज में लैक्चरर है. पापामम्मी दोनों देखने गए. लड़का सचमुच अच्छा था, देखने में भी और योग्यता में भी, पर वे लोग बहुत ही पारंपरिक, अंधविश्वासी और पूजापाठ करने वाले थे. मेरे पापा तो आर्य समाजी थे. उन को यह सब बातें पसंद नहीं आईं. पर मेरी मम्मी तो पीछे ही पड़ गईं. लड़का पढ़ालिखा है, बाहर जा कर तेज हो जाएगा. उदाहरण दे कर समझाने लगीं.
मेरे पापा बोले,”ठीक है, शादी कर लेते हैं पर लड़की को एमए पास कर लेने दो.” लड़के के पापा अङ गए,”नहीं… 1 महीने के अंदर ही शादी होगी. नहीं तो यह शादी नहीं होगी?” पापा तो हरगिज तैयार नहीं थे. उन को लगा दाल में कुछ काला है, पर मम्मी तो पीछे पड़ गईं, “लड़के वाले हैं, उन की बात तो माननी ही पड़ेगी. वे कह रहे हैं कि हम उसे पढ़ने के लिए नहीं रोकेंगे, फिर क्या बात है…”
मुझे भी लड़का पसंद तो आया था पर घरपरिवार से मैं संतुष्ट नहीं थी. मम्मी ने अपने पीहर वालों को भी इस बारे में बताया. मामाजी और नानीजी भी आ गए.