यह खेद की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की सीबीआई, ईडी व एनआईए जैसी जांच एजेंसियों के जरिए विपक्षी दलों को डराने की कोशिशों को गलत ठहराने से इनकार कर दिया है. एक याचिका में विपक्षी दलों ने आंकड़ों से स्पष्ट किया कि 2014 से इन जांच एजेंसियों का विपक्षी दलों के खिलाफ जम कर इस्तेमाल हो रहा है और अनसुल झे मामले भरे पड़े हैं पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे सरकार और जांच एजेंसियों की स्वायत्तता का मामला कह कर टाल दिया.
विपक्षी दलों की याचिका में स्पष्ट किया गया था कि ईडी यानी एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट के 121 मामलों और सीबीआई यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो के 124 मामलों में से 95 फीसदी विपक्षी दलों के खिलाफ ही हैं और कुछ में ही अंतिम फैसला हो पाया है. लेकिन कोर्ट ने इसे सामान्य बात कह कर ठुकरा दिया. नेता दूध के धुले हैं, यह कोई नहीं मानता पर भाजपा के नेता गाय के दूध, गौमूत्र और गंगाजल तीनों से धुले व पवित्र हैं, यह भी कोई नहीं मान सकता. यह अनायास ही नहीं है कि ऐन चुनावों से पहले ये एजेंसियां उन राज्यों में विपक्षी दलों के खिलाफ सक्रिय हो जाती हैं जो भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरा बन सकते हैं.
दिल्ली में नगरनिगम के चुनावों से पहले और तुरंत बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारी क्या साबित करती है? ममता बनर्जी को परेशान करने के लिए ठीक चुनावों से पहले वहां कई नेताओं को लपेटे में लिया गया. राजनीति में जम कर बेईमानी हो रही है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि हर राजनेता बहुत थोड़े से वेतन के बावजूद शानदार तरीके से रहना शुरू कर देता है. चुनावों पर भारी खर्च होता है जो कहीं से तो आता है पर यह काम सिर्फ विपक्षी दल कर रहे होते तो वे ही जीतते और भारतीय जनता पार्टी पैसे की कमी के कारण हारती नजर आती.
सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर आंखें क्यों मूंदीं, यह अस्पष्ट है. राजनीति में बेईमानी हटाना असंभव है और आज जब एक शासकीय फैसला लेने वाले लोग 5-7 लाख रुपए नहीं, 500-700 करोड़ रुपए कमा सकते हैं, यह सोचना भी नामुमकिन है कि जिस के हाथ में शक्ति है वह अपना हिस्सा नहीं रखेगा पर यह काम सिर्फ विपक्षी पार्टियां कर रही हों और भारतीय जनता पार्टी जनता के वोटों व उन की इच्छा से दिए चंदे से चल रही हो, यह मानना भी ठीक नहीं है. जांच एजेंसियों को अपनी साख बनाए रखना बहुत जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र उन्हीं पर निर्भर है.
उन्हीं की रिपोर्टें संसद व बाहर राजनीतिक आरोपों का आधार बनती हैं. जिन के पास सत्ता होती है आमतौर पर वे पैसा नहीं चाहते क्योंकि जो पैसे वाले होते हैं वे तो खुद अपना पैसा लगा कर सत्ता में आने के लिए छटपटाते हैं क्योंकि उस की आनबान पैसे से कहीं बड़ी होती है. सत्ता में बैठा हर राजनीतिबाज पैसे का लालची है, यह सम झना भी गलत है पर हाल की घटनाएं कुछ ऐसी छवि ही प्रकट करती हैं.
हाल तो यह हो गया है कि अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गिरफ्तारी के बाद बीसियों कार्टून भारत में बने जिन में ट्रंप को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की बात कही गई ताकि वे आरोपों से छुटकारा पा सकें. इस असंभव बात को कार्टूनिस्टों और चुटकुले बनाने वालों ने इस्तेमाल किया. यह बात दरअसल जांच एजेंसियों और सत्ताधारी पार्टी के गैरसंवैधानिक संबंधों की छवि स्पष्ट करती है.