बिहार में शर्मनाक हार से भारतीय जनता पार्टी को इतना नुकसान नहीं हो रहा जितना उस को अंदरूनी विद्रोह से हो रहा है. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, शांता कुमार और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नामी नेताओं ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की धौंसबाजी के खिलाफ खुल कर लिखित बयान जारी कर के या टीवी पर बोल कर जता दिया है कि भारतीय जनता पार्टी कोई दूध की धुली, दूसरी पार्टियों से अलग नहीं है. नरेंद्र मोदी ने बिहार के चुनावों में अपनी पार्टी के दूसरे नेताओं की अवहेलना कर यह जताने की कोशिश की कि वे दूसरे स्टालिन या माओत्से-तुंग हैं और उन्हीं की बदौलत यह देश चल सकता है, दलदल से उबर सकता है. वास्तव में यह भारतीय जनता पार्टी के लिए घातक था. नरेंद्र मोदी बड़ेबड़े वादों पर चढ़ कर चुनाव जीत पाए थे पर उन वादों में से कुछ ही पूरे हुए थे और ऐसे में सब को साथ ले चलना ही बुद्धिमानी थी ताकि जीत का सेहरा तो उन के सिर पर बंधता पर हार सब की सामूहिक होती.

यह मोदी का अतिविश्वास था कि बिहार में जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल और कांगे्रस का गठबंधन होने के बाद भी वे ही जीतेंगे. अगर पूरी भाजपा अपना दम वैसे ही लगाती जैसा उस ने 2014 के लोकसभा चुनावों में लगाया था तो या तो हार होती ही नहीं, होती भी तो सब उस हार के जिम्मेदार होते. अब नरेंद्र मोदी को बारबार कदमकदम पर सफाई देनी होगी, जोकि उन के व्यक्तित्व के खिलाफ है. वे जल्दी ही विद्रोह पर उतारू हो सकते हैं और इन नाराज नेताओं को पार्टी से निकालने की जिद पकड़ सकते हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में आज इतनी हिम्मत नहीं कि वे नरेंद्र मोदी की बात ठुकरा सकें और अगर यह हुआ तो बात सुधरेगी नहीं, बिगड़ेगी.

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