दिल्ली सरकार ने उन अभिनेताओं की पत्नियों को पत्र लिखे हैं जो पान मसाले का प्रचार करते हैं. इन में शाहरुख खान, अजय देवगन, अरबाज खान, गोविंदा, सैफ अली खान आदि शामिल हैं. इन सितारों के विज्ञापन टैलीविजन पर इस शान से पान मसाले के गुणगान करते नजर आते हैं मानो इसे खाने वाले दुनिया फतह कर सकते हैं. इन विज्ञापनों पर बहुत मोटा पैसा खर्च होता है और इन की प्रोडक्शन क्वालिटी बहुत ही अच्छी होती है, क्योंकि हर तरह के दुर्गुण से भरे पान मसाले को बेचने योग्य बनाना आसान नहीं है. तरकीब यह है कि पात्र को सफल, अति सफल या सफलतम दिखाओ और कह दो कि वह तो पान मसाला भी खाता है. अरबों रुपयों के नशीले पान मसालों के विज्ञापन पत्रपत्रिकाओं, बोर्डों, सिनेमा स्क्रीनों, दुकानों पर भरे पड़े हैं, क्योंकि विज्ञापनों से मोटा पैसा मिलता है कुछ को छोड़ कर (जिन में दिल्ली प्रैस शामिल है) बाकी सब इस सिन इनकम को छोड़ने को तैयार नहीं हैं. सितारे भी क्यों छोड़ें और उन की पत्नियों से भी कोई उम्मीद करना बेकार है, क्योंकि आते पैसे को कोई मना नहीं करता.

वैसे भी औरतें समाज की कुछ ज्यादा ही हितकारी होती हैं, यह भी भ्रांति है. समाज में फैले भेदभाव, अंधविश्वास, डोमैस्टिक वायलैंस, दहेज, कन्या भू्रण हत्या के लिए तो औरतें जिम्मेदार हैं ही, अब तो नशे की वकालत करती भी नजर आ रही हैं. शराब कंपनियों ने लगता है शूटिंग सैटों पर ट्रक भरभर कर शराब भेजनी शुरू कर दी है कि हर दूसरी फिल्म में औरतें खुल कर शराब पीती नजर आती हैं. इन में न केवल अविवाहित युवा औरतें हैं, बल्कि कहानी में बच्चों की मांएं भी शामिल होने लगी हैं. सिनेमा को नशे से कोई एतराज नहीं है. ऐसी हालत में दिल्ली सरकार ने स्टार पत्नियों को पत्र लिख कर सरकारी कागज और डाक खर्च बेकार ही किया है. अब पहले की तरह औरतों का नशा करना छिनालपन की निशानी नहीं रहा है, बल्कि नशा न करना अब दकियानूसी और बेवकूफीपन की निशानी है.

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