प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब चीताचीता करेंगे क्योंकि नामीबिया से मंगाए 8 चीतों को जंगल में छोडऩे की रस्म को उन्होंने खुद पूरा किया है. इस से यह साफ है कि देश के नेताओं के सामने प्राथमिकताएं न बेरोजगारी है, न महंगाई, न बढ़ता भेदभाव, न औरतों की सुरक्षा. बीती 17 सितंबर को चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नैशनल पार्क में छोडऩे के लिए नरेंद्र मोदी गए तो वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी गए और एयरफोर्स को लगाना भी पड़ा.

स्पैशल हवाई जहाज से मंगाए गए ये 8 चीते कितने साल भारत में जिंदा रहेंगे और इन के कितने बच्चे पैदा होंगे, यह पता नहीं. ये अफ्रीकी चीता हैं. इन्हें न भारत के जंगलों का अतापता है, न यहां के जानवरों का टेस्ट इन्हें आता है.

70 साल पहले लुप्त हो गए चीतों को फिर से लाने का काम पशु वैज्ञानिकों का है लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इसे तमाशा बना कर देश के सामने पेश करना सर्कस दिखाने जैसा लगता है, जबकि देश हर मोरचे पर बुरी तरह कराह रहा है.

चीतों को छोड़ने के लिए नरेंद्र मोदी खुद कूनो पार्क गए तो भाजपाई नेता राहुल गांधी को कोसने से कुछ समय निकाल कर चीता गुणगान करते दिखे. भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट कर मोदीभक्ति प्रदर्शित की. वहीं, तेजस्वी सूर्या, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वसुंधराराजे सिंधिया जैसे नेता या तो वहां पहुंचे या उन्होंने 4-5 ट्वीट किए ताकि नरेंद्र मोदी की आईटी टीम को उन की अंधभक्ति का पता चल जाए.

जिस विमान से चीतों को लाया गया, उसे चीते का रंग दिया गया था. चीतों का ऐसा स्वागतसत्कार हुआ कि लगता था जैसे किसी बड़े देश का राष्ट्रपति आया हो. लगता है मोदी को किसी ने पट्टी पढ़ा दी थी कि चीतों में रुचि दिखा कर देश की मुसीबतों से देशवासियों का ध्यान बंटाया जा सकता है. जो काम इंडियन फौरेस्ट औफिसर्स का था वह प्रधानमंत्री करने लगे तो 10-20 करोड़ की जगह 400-500 करोड़ रुपए स्वाहा हो जाएं, तो बड़ी बात नहीं.

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