लखनऊ में मई की एक दोपहर में मम्मी मेरे भाई को गोद में लिए बस में चढ़ीं. एक भी सीट खाली न होने से वे एक सीट के सहारे खड़ी हो गईं. तभी एक सज्जन ने यह कह कर अपनी सीट पर उन्हें बिठा दिया, ‘‘बहनजी, आप की गोद में बच्चा है, आप को खड़े होने में परेशानी हो रही होगी.’’ मां के मना करने के बावजूद वे सज्जन नहीं माने.

मां ने उन की सीट पर बैठ कर सचमुच राहत की सांस ली. भाई को पानी पिलाया. फिर वे उन भले सज्जन को ढूंढ़ने लगीं, जिन्होंने उन्हें अपनी सीट दे कर एहसान किया था.

कुछ आगे ही एक सीट से सट कर वे सज्जन खड़े हो गए थे. अचानक मां का ध्यान उन के हाथ में होती हरकत पर चला गया. ध्यान से देखने पर पता चला कि उस सीट पर 14-15 साल की एक मासूम लड़की बैठी थी और वे सज्जन बारबार अपना हाथ उस की बगल में लगा रहे थे, जिस से वह लड़की बारबार कसमसा कर रह जाती थी.

उस लड़की की बेबसी और उन सज्जन की नापाक हरकत मां की अनुभवी निगाहों ने तुरंत ताड़ लीं. तुरंत ही भाई को संभालती हुई वे उठ खड़ी हुईं और तपाक से उन सज्जन के पास पहुंच कर एक जोरदार तमाचा उन के गाल पर रसीद कर दिया.

‘‘वाह भाईसाहब, अच्छी भलमनसाहत दिखाई आप ने. बहनजी बोल कर अपनी सीट इसलिए मेरे हवाले की थी कि अपनी बेटी की उम्र की इस बच्ची से छेड़छाड़ कर सकें. छि:, धिक्कार है आप की सज्जनता पर,’’ कह कर मां ने उन्हें बहुत डांटा.

अचानक पड़े इस थप्पड़ से अवाक रह गए उन सज्जन के मुंह से कोई बोल न फूटा. भीड़ की तीखी नजरों से बचतेबचाते अगला स्टौप आते ही बस से उतर गए. इधर मां ने उस मासूम के सिर पर प्यार से हाथ फेरा, जो नम आंखों से मौन की भाषा में उन्हें धन्यवाद कह रही थी.

पूनम पाठक

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हम लोग रेलगाड़ी द्वारा छपरा से झांसी जा रहे थे. ट्रेन लखनऊ पहुंचने वाली थी, तभी खिड़की से तेजी से आया पत्थर मेरे भाई की आंख को लहूलुहान कर गया और हम लोग घबरा गए. तभी हमारे एक सहयात्री हमारी सहायतार्थ आगे बढ़े. लखनऊ उतर कर इलाज की पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी स्वयं लेते हुए उन्होंने मुझे व मेरी मां को अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया.

संगीता गुप्ता

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