बात 15 साल पहले की है. हम लोग सहारनपुर में थे. मेरे पति वहां सर्विस करते थे.
1995 में मेरे ससुर का निधन हो गया. बड़ा सा घर खाली रहता, सो, मेरे पति मुझे व मेरे दोनों बच्चों को जयपुर छोड़ गए. उस समय मेरा छोटा बेटा 10वीं में था. कुछ समय बाद मैं बहुत बीमार हो गई.
मेरे पति लंबे समय के लिए 2 बार मुझे सहारनपुर ले गए. इस बीच बच्चे अकेले ही जयपुर में रहे. जब मैं जयपुर आती तो मेरी पड़ोसिन कहती, ‘‘देखा, आप के न रहने से आप का छोटा बेटा दिनभर पतंग उड़ाता रहता है.’’
मैं बहुत दुखी होती व अपने को अपराधी समझती कि मेरे कारण मेरा बेटा पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहा है. वह पढ़ाई में पीछे हो जाएगा जबकि 10वीं की बोर्ड की परीक्षा है. आखिर परीक्षा का समय आ गया. मेरा दिल बहुत घबरा रहा था, पता नहीं क्या होगा. मैं तो यह ही सोच रही थी कि ज्यादा से ज्यादा पास भर होगा. इसलिए उस का रिजल्ट देखने का बिल्कुल भी उत्साह नहीं था.
गरमियों की छुट्टियों में हम लोग सो रहे थे कि एक दिन सुबहसुबह एक फोन आया जो मैं ने रिसीव किया. फोन मेरे बेटे के पिं्रसिपल का था. वे बोले, ‘‘बधाई हो, आप के बेटे की 10वीं की परीक्षा में पूरे राजस्थान में 35वीं रैंक आई है.’’
मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ.
मैं ने कहा, ‘‘सर, यह किसी और का रिजल्ट होगा.’’
जब उन्होंने कहा कि नहीं मैडम, आप के बेटे गरुड़ का ही है, तब मुझे विश्वास हुआ. मारे खुशी के बहुत देर तक मुझ से कुछ बोला ही नहीं गया.
थोड़ी देर बाद सामान्य हो कर मैं ने बेटे को जगा कर खूब प्यार किया. उस ने बिना किसी गाइडैंस के इतनी बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर के मेरा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया था.
आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)

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