मैं एक विद्यालय में पढ़ाती हूं. मेरी एक सहकर्मी की डींगे मारने की आदत है. उन की बातों का विषय अकसर ही उन की बेटी और उस की उपलब्धियां हुआ करता था. अकसर ही वे कहतीं, ‘‘मेरी बेटी तो कल्पना चावला की बहुत बड़ी फैन है. वह भी कल्पना चावला की तरह बहुत बड़ी साइंटिस्ट बनना चाहती है.’’ एक दिन उन की बेटी हमारे स्कूल आई. बातोंबातों में हमारी लाइब्रेरियन मैम ने उस से बड़े प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, आप बड़े हो कर कल्पना चावला की तरह बनना चाहते हो?’ तो वह बोली, ‘‘कौन कल्पना चावला? मैं तो किसी कल्पना चावला को नहीं जानती.’’ उस की बात सुन कर हम सभी भौचक्के रह गए और उन सहकर्मी पर घड़ों पानी पड़ गया.
ऋतु गुप्ता
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आधी रात को पति उठ कर बैठ गए. बिस्तर पर चिंताग्रस्त पति को देख कर पत्नी बोली, ‘‘क्या हो गया, चिंता किस बात की?’’ पति बोले, ‘‘साहूकार से 50 हजार रुपए उधार लिया था, उचित समय में न दे सका. उस ने मुझे धमकी दी है, नींद उड़ गई है. चैन से सो नहीं सकता.’’ पत्नी लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘बस, यही अड़चन है न, चिंता न करें?’’ उस ने फोन से साहूकार को डांट लगाई, ‘‘मैं उस आदमी की पत्नी बोली रही हूं, जिस की आप ने नींद हराम की है. जाओ, हम आप के पैसे नहीं दे सकते. चाहे जो करो, हां, पंगा मुझ से है.’’ अब उस साहूकार की नींद हराम हो गई थी, बेचारा.
लक्ष्मण कुन्हेकर