सुबह के वक्त पति के औफिस जाने के बाद 11 बजे मैं मेनगेट बंद करने जा रही थी. उसी समय 26-27 वर्ष का एक लड़का मेरे पास आया. मेरे पैर छू कर उस ने प्रणाम किया और बोला, ‘‘चाचीजी, आप ने हमें नहीं पहचाना, मैं पंडितजी का लड़का हूं.’’ मैं थोड़ी सकपका गई और न कहते हुए सिर हिलाया. लेकिन फिर भी उस ने कहा, ‘‘स्थानीय नर्सिंग होम में मेरी पत्नी की डिलीवरी हुई है, मां ने शाम को छठी में आप को बुलाया है कि मैं आप से 2,000 रुपए ले आऊं.’’

चूंकि वह इतने आत्मविश्वास के साथ बोला और देखने में भी भला सा लग रहा था, तो मुझे भी लगा कि हो सकता है, गांव के पंडितजी का लड़का हो. यह कहते हुए कि अभी तो मेरे पास इतने ही हैं, 1,000 रुपए उसे दे दिए. दूसरे दिन जब मेरे पति ने पंडितजी से फोन पर बात की तो उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लड़के की तो शादी ही नहीं हुई है.’’

अगले दिन पंडितजी अपने लड़के को ले कर मेरे घर पर आए और बोले, ‘‘क्या यही लड़का था?’’ मैं बोली, ‘‘नहीं.’’ तब मुझे समझ में आया कि दिनदहाड़े कोई मुझे चूना लगा गया था.       

- शोभा दास

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मैं अपने मायके बनारस आई हुई थी. मेरा भतीजा, जोकि बिहार के एक गांव में रहता है, की पत्नी अपने 2 बच्चों के साथ बनारस में रह कर उन्हें शिक्षा दिला रही थी. पिछले 17 अप्रैल को गांव से मेरे भाईभाभी अपनी इस बहू के पास बनारस आए हुए थे. भाभी को कान के टौप्स लेने थे. अगले दिन वे अपनी बहूबेटे के साथ बाजार गईं और उन्होंने टौप्स खरीदे. बहू ने टौप्स का पाउच ज्वैलर्स के थैले से निकाल कर दूसरे थैले में रख दिया, जिस में दवा आदि थी. चूंकि घर पास ही था, वे पैदल ही आ रहे थे. रास्ते में साड़ी की दुकान देख भाभी साड़ी लेने बहू के साथ दुकान में चली गईं और उन का बेटा, उन्हें दुकान में छोड़, अपने काम से चला गया. घर, दुकान से 30-40 गज की ही दूरी पर था.

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